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CTET Notes In Hindi | गणित का पाठ्यक्रम में स्थान

CTET Notes In Hindi | गणित का पाठ्यक्रम में स्थान

गणित का पाठ्यक्रम में स्थान
                       Place of Mathematics in Syllabus
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने
से यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में 1 प्रश्न,
2012 में 4 प्रश्न, 2013 में 5 प्रश्न, 2014 में 4 प्रश्न, 2015 में
8 प्रश्न तथा वर्ष 2016 में 4 प्रश्न पूछे गए हैं। इस अध्याय से
CTET परीक्षा में पूछे गए प्रश्न मुख्यतः पैटर्न, गणित के कौशल
तथा राष्ट्रीय पाठ्यचर्या से सम्बन्धित है।
2.1 गणित का महत्त्व
शिक्षा के क्षेत्र में किसी भी विषय का महत्त्व एवं स्थान इस बात पर निर्भर करता
है, कि यह विषय शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने में किस सीमा तक सहायक
हो रहा है। यदि कोई विषय शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में अधिक सहायक
सिद्ध होता है तो उस विषय की महत्ता अधिक हो जाती है। प्राचीन काल से ही
गणित अन्य विषयों की अपेक्षा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में अधिक सहायक
सिद्ध हुआ है। वर्तमान समय विज्ञान तथा तकनीकी का युग है। इस युग में जो भी
भौतिक एवं तकनीकी प्रगति विज्ञान के कारण हुई है, उसका श्रेय गणित को ही
दिया जाना चाहिए, इतना महत्त्वपूर्ण विषय होते हुए भी पाठ्यक्रम में गणित को
क्या स्थान दिया जाना चाहिए, इस पर अधिक विचार-विमर्श की आवश्यकता
गणित के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए महान् गणितज्ञ श्री महावीराचार्य जी
ने अपनी गणित-सार संग्रह’ नामक पुस्तक में लिखा है, कि “लौकिक,
वैदिक तथा सामाजिक जो भी व्यापार हैं, उन सभी में गणित का प्रयोग है।
अर्थशास्त्र, नाट्यशास्त्र, पाकशास्त्र, कामशास्त्र, छन्द, अलंकार, व्याकरण तथा
गति, दिशा तथा समय ज्ञात करने में गणित की आवश्यकता होती है। गुण,
मात्रा संहिता तथा संख्या आदि से सम्बन्धित सभी विषय गणित पर ही
निर्भर है।” विद्यालय पाठ्यक्रम में गणित की शिक्षा दसवीं कक्षा (माध्यमिक
स्तर) तक अनिवार्य विषय बनाने के सम्बन्ध में कोठारी कमीशन ने स्पष्ट
नहीं है।
किया कि “गणित को सामान्य शिक्षा के अन्तर्गत सभी विद्यार्थियों के लिए
पहली कक्षा से लेकर दसवीं कक्षा तक एक अनिवार्य विषय बना देना
चाहिए।” परन्तु कुछ लोग अभी भी गणित को आठवीं कक्षा तक अनिवार्य
तथा इसके बाद ऐच्छिक (Optional) विषय बनाने पर जोर दे रहे हैं।
गणित को माध्यमिक स्तर तक अनिवार्य विषय न बनाए जाने के निम्न कारण
स्पष्ट किए गए
• गणित बहुत ही जटिल विषय है। इसे सीखने के लिए एक विशेष प्रकार
की बुद्धि और मस्तिष्क की आवश्यकता है। अतः सभी बच्चों को गणित
की शिक्षा ग्रहण करने में कठिनाई होगी।
• गणित के अध्ययन से सभी मानसिक शक्तियों, अनुशासन, सांस्कृतिक,
सामाजिक तथा नैतिक विकास होने की बात कल्पना मात्र ही है।
• अन्य विषयों की अपेक्षा हाई स्कूल परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने वाले छात्रों की
संख्या गणित विषय में सर्वाधिक होती है।
• उच्च कक्षाओं में भी गणित का ज्ञान उन्हीं छात्रों के लिए उपयोगी रहता है,
जोकि भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र अथवा गणित को ही अपने अध्ययन का
विषय रखना चाहते हैं। इसीलिए शेष छात्रों के लिए गणित के ज्ञान की
कोई आवश्यकता नहीं रहती।
• प्रत्येक विद्यार्थी न तो इंजीनियर बन पाता है और न ही मिस्त्री, फिर सभी
के लिए गणित की अनिवार्यता का क्या लाभ है?
इस प्रकार गणित को माध्यमिक स्तर (कक्षा दस) तक अनिवार्य विषय न बनाए
जाने के समर्थन में विरोधी पक्ष द्वारा दिए गए उपरोक्त मत वास्तव में निराधार
ही प्रतीत होते हैं।
2.2 गणित की अनिवार्यता से सम्बन्धित तर्क
सभी महान् शिक्षाविदों; जैसे― हर्बर्ट, पेस्टालॉजी आदि ने भी गणित को
मानव-विकास का प्रतीक माना है। गणित विषय को बौद्धिक और सांस्कृतिक
(Intellectual and Cultural) विकास का सर्वश्रेष्ठ साधन मानते हुए सभी
शिक्षाविदों ने गणित को पाठ्यक्रम में सर्वोच्च स्थान प्रदान किया है। इस
प्रकार गणित को अनिवार्य विषय बनाने के सम्बन्ध में हम कुछ तर्क दे सकते
हैं, जो निम्नलिखित हैं
• यदि गणित विषय को पाठ्यक्रम में उचित स्थान न दिया गया तो बच्चों
को मानसिक प्रशिक्षण (Mental Training) के अवसर नहीं मिल सकेंगे
जिसके अभाव में उनका बौद्धिक विकास प्रभावित हो सकता है।
• गणित का ज्ञानार्जन करने के लिए गणित सम्बन्धी ऐसी कोई जन्म-जात
विशेष योग्यता एवं कुशलता नहीं होती, जोकि दूसरे विषयों के अध्ययन की
योग्यता से अलग हो।
• गणित ही एक ऐसा विषय है जिसमें बच्चों को अपनी तर्कशक्ति,
विचार-शक्ति, अनुशासन, आत्मविश्वास तथा भावनाओं पर नियन्त्रण रखने
का प्रशिक्षण मिलता है।
• गणित के अध्ययन से ही छात्रों में नियमित तथा क्रमबद्ध रूप से ज्ञान
ग्रहण करने की आदतों का विकास होता है। प्रत्येक विषय के अध्ययन में
गणित के ज्ञान की प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से आवश्यकता पड़ती है
क्योकि गणित को सभी विज्ञानों का विज्ञान तथा समस्त कलाओं की कला
माना जाता है।
अत: उपरोक्त विवेचना के आधार पर सार रूप में यह कहा जा सकता है,
कि गणित एक ऐसा विषय है जिसके ज्ञान की आवश्यकता जीवन भर हो
सकती है। यह तभी सम्भव है जबकि पढ़ने वाला प्रत्येक छात्र कक्षा दस
तक अनिवार्य रूप से गणित विषय का अध्ययन करे। इंजीनियर से लेकर
मिस्त्री तक तथा मजदूर से लेकर वित्त मन्त्री अथवा अन्य उद्योगपतियों आदि
सभी को उनकी आवश्यकतानुसार गणित के ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है।
अमेरिका, इंग्लैण्ड आदि देशों में तो हाई स्कूल स्तर के विद्यार्थियों का ज्ञान
यहाँ के इण्टरमीडिएट स्तर के विद्यार्थियों के बराबर होता है। वहाँ के
बालकों को अपने भविष्य तथा उच्च कक्षाओं के लिए विषयों का चयन
करना अपेक्षाकृत सरल तथा रुचिकर हो जाता है। इस प्रकार यदि
रोजी-रोटी कमाने के उद्देश्य से ही पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाए, तब
भी गणित विषय का स्थान सर्वोपरि होना चाहिए। गणित को कक्षा एक से
कक्षा दस तक अनिवार्य विषय अवश्य ही बनाया जाए अन्यथा इसके बिना
सभी विषय निरर्थक प्रतीत होंगे।
2.3 गणित को पाठ्यक्रम में विशेष स्थान देने के कारण
1. यह विज्ञान विषयों का आधार है (It is Base of Science
Subjects) विज्ञान की विभिन्न शाखाओं यथा―भौतिकशास्त्र,
रसायनशास्त्र, नक्षत्रशास्त्र, जीव विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, भू-गर्भ
विज्ञान, ज्योतिष विज्ञान आदि महत्त्वपूर्ण विषयों की आधारशिला गणित
ही है। उदाहरणार्थ-आयतन, क्षेत्रफल, भार, घनत्व, अणु-परमाणुओं की
संख्या, औषधि निर्माण तथा अन्य माप-तौल आदि सभी का अध्ययन
गणित के ज्ञान से ही सम्बन्धित है।
2. गणित का मानव जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है (Close Relation of
Mathematics in Human Life) आज के इस भौतिक युग में गणित
का ज्ञान अति आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण है क्योकि प्रत्येक व्यक्ति को
इसके ज्ञान की किसी-न-किसी रूप में आवश्यकता होती है।
इंजीनियरिंग, बैंकिंग तथा अन्य व्यवसाय जो गणित से सीधे सम्बन्धित
है, उनके लिए तो गणित का ज्ञान नींव की ईंट के समान कार्य करता है,
परन्तु ऐसे व्यवसाय जिनका गणित से अप्रत्यक्ष सम्बन्ध है वे भी गणित
पर पूरी तरह से निर्भर रहते हैं। इसके अलावा दैनिक जीवन में
आय-व्यय, लेन-देन आदि में भी गणित की सामान्य जानकारी उपयोगी
है। अत: गणित का हमारे जीवन से घनिष्ठ तथा अटूट सम्बन्ध है।
3. गणित बच्चों में तार्किक दृष्टिकोण पैदा करता है (Mathematics
Produce Logical View in Children) गणित की प्रत्येक समस्या को
हल करने हेतु बच्चों को तर्कपूर्ण विचार करना होता है। प्रत्येक पद का
सम्बन्ध दूसरे पद से एक निश्चित तर्क पर आधारित होता है। जिससे
छात्रों में अनेक मानसिक शक्तियों का विकास होता है। जिनका प्रभाव
उनके बौद्धिक विकास पर पड़ता है।
4. गणित एक विशेष प्रकार से सोचने का दृष्टिकोण प्रदान करता है
(Mathematics Produce aSpecial View to Think) गणित पड़ने
वाले बालकों में एक ऐसा दृष्टिकोण विकसित होने लगता है, कि
जिसके द्वारा वे अपना कार्य, क्रमबद्ध, नियमित तथा शुद्धता के साथ
करना सीख जाते हैं। इसके साथ-साथ उनमें तार्किक ढंग से सोचने एवं
समझने का दृष्टिकोण भी विकसित होता है।
5. गणित एक यथार्थ विज्ञान है (Mathematics is a Real Science)
गणित के अध्ययन से बालकों में किसी भी ज्ञान को यथार्थ रूप से
ग्रहण करने की भावना का विकास होता है। गणित के सभी प्रत्यय, सूत्र,
तथ्य आदि पूर्णरूप से सही तथा स्पष्ट होते हैं। उनमें किसी प्रकार का
सन्देह नहीं रहता है। उदाहरण के लिए 2 + 2 = 4 होते है जोकि 3
या 5 नहीं हो सकते।
इनके अतिरिक्त नीचे कुछ अन्य कारण भी दिए गए हैं, जिनकी वजह से
गणित को पाठयक्रम में विशेष स्थान दिया जाना चाहिए। यह निम्न है
• गणित मानसिक शक्तियों को विकसित करने का अवसर प्रदान करता है।
• गणित का ज्ञान चरित्र निर्माण एवं नैतिकता के विकास में सहायक है।
• बच्चों में अनुशासन सम्बन्धी गुण या विशेषता का विकास होता है।
• गणित की भाषा सार्वभौमिक होती है।
• गणित का ज्ञान अन्य विषयों के अध्ययन में सहायक होता है।
• गणित में सार्थक, अमूर्त एवं संगत संरचनाओं का अध्ययन किया
जाता है।
• गणित समूहों (समुच्चय) तथा संरचनाओं का अध्ययन है।
2.3.1 गणित की आधारभूत संरचना
गणित में तीन आधारभूत संरचनाएँ होती हैं
1. बीज गणितीय संरचना (Algebraic Structure) इसके अन्तर्गत
हम योग एवं गुणा तथा सामान्यीकरण आदि संक्रियाओं का अध्ययन
करते है।
2. तलरूप संरचना (Plane Form Structure) इसके अन्तर्गत
विभिन्न प्रत्ययों जैसे-सीमा, समीपता या निकटता आदि को
सम्मिलित किया गया है।
3. क्रमिक संरचना (Series Structure) क्रमिक संरचना में ‘से
बड़ा’ तथा ‘से छोटा’ आदि प्रत्ययों को सम्मिलित किया गया है।
2.4 विद्यालय पाठ्यक्रम में गणित का महत्त्व
विद्यालय पाठ्यक्रम में गणित एक महत्त्वपूर्ण विषय है। अन्य विषयों की
अपेक्षा गणित का हमारे दैनिक जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। मातृभाषा के
अलावा अन्य कोई विषय ऐसा नहीं है, जोकि गणित की भाँति दैनिक जीवन
से इतना अधिक सम्बन्धित हो। गणित को विज्ञान का जन्मदाता भी माना
जाता है। वर्तमान समय में गणित को विद्यालयी पाठ्यक्रम में विशेष महत्त्व
दिया गया है। किसी विषय को पाठ्यक्रम में विशेष महत्त्व देने के लिए उस
विषय को सामान्यतः तीन दृष्टिकोणों से देखा जाता है
1. अमुक (उस) विषय की बच्चों के दैनिक जीवन में उपादेयता
(Utility)
2. अमुक विषय से बच्चों को मानसिक अनुशासन (Mental
Discipline) में सहायता मिलती है अथवा नहीं।
3. अमुक विषय का सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व (Social and
Cultural Importance)
आज विद्यालयों में गणित एक अनिवार्य विषय है। गणित विषय को
विद्यालयों के पाठ्यक्रम में अनिवार्य करने के लिए किसी विशेष दृष्टिकोण
से गणित का मूल्यांकन (Evaluation) अथवा परीक्षण (Testing) करने की
आवश्यकता नहीं है। अन्य विषयों की भांति गणित भी बच्चों को एक
सामाजिक तथा बुद्धिमान नागरिक के रूप में विकसित करने में सहायक है।
जब बालक गणित का अध्ययन करता है तो अनुशासन जैसे अन्य गुणों का
विकास स्वतः ही हो जाता है। इसके अलावा गणित विषय द्वारा उन सभी
गुणों का विकास भी सम्भव है, जोकि किसी अन्य विषय द्वारा विकसित हो
सकते हैं। यही नहीं गणित, विज्ञान और तकनीकी शिक्षा को दिनों-दिन महत्त्व
दिया जा रहा है और कहा जा रहा है, कि यदि हमें राष्ट्र को आगे बढ़ाना है
तो इन विषयों के स्तर को उन्नत करना होगा तथा प्राथमिक स्तर से ही इन
पर ध्यान देना होगा।
इस सम्बन्ध में कोठारी आयोग ने अपने सुझावों में स्पष्ट किया कि
“विद्यालयी जीवन के प्रथम दस वर्षों में विज्ञान एवं गणित विषय सभी बच्चों
को अनिवार्य रूप से पढ़ाए जाने चाहिए। व्यापक रूप से देखा जाए तो बच्चे
को विद्यालय में विभिन्न लक्ष्यों (Goals) की प्राप्ति के लिए भेजा जाता है।
सामान्यत: यह अपेक्षा की जाती है कि विद्यालय में बच्चा निम्नलिखित लक्ष्यों
को प्राप्त करने में समर्थ हो सकेगा
• ज्ञान तथा कुशलताओं (कौशलों) की प्राप्ति
(Acquisition of Knowledge and skills)
बौद्धिक आदतों एवं विभिन्न शक्तियों―अनुशासन आदि की प्राप्ति
(Acquisition of Intellectual Habits and Various Powers as
Discipline etc)
• वांछित दृष्टिकोण एवं आदर्शों की प्राप्ति
(Acquisition of Desirable Attitudes and Ideals)
अब यह प्रश्न उठता है, कि क्या गणित विषय का अध्ययन करने से बच्चा
इन लक्ष्यों की प्राप्ति करता है? यदि गणित का अध्ययन इन लक्ष्यों की प्राप्ति
में सहायक है, तब तो यह शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यवान है तथा शिक्षा का एक
महत्त्वपूर्ण अंग है।
2.4.1 गणित शिक्षण के मूल्य
वास्तविक रूप से गणित विषय को इतना अधिक महत्त्व देने और अनिवार्य
विषय बनाने में इसके अध्ययन से बच्चों को विभिन्न लाभ होते हैं जिनको
हम गणित शिक्षण के मूल्य (Values) भी कहते हैं। गणित शिक्षण द्वारा मुख्य
रूप से निम्नलिखित मूल्यों या लाभों की प्राप्ति हो सकती है
• बौद्धिक मूल्य (Intellectual value)
• प्रयोगात्मक मूल्य (Utilitarian or Practical value)
• अनुशासन सम्बन्धी मूल्य (Disciplinary value)
• नैतिक मूल्य (Moral value)
• सामाजिक मूल्य (Social value)
• सांस्कृतिक मूल्य (Cultural value)
• सौन्दर्यात्मक या कलात्मक मूल्य (Aesthetic value)
• जीविकोपार्जन सम्बन्धी मूल्य (Vocational value)
• मनोवैज्ञानिक मूल्य (Psychological value)
• वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सम्बन्धित मूल्य
(Value related to Scientific attitude)
• अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य (International value)
2.4.2 स्कूल गणित शिक्षा की समस्याएँ
स्कूलों में दी जाने वाली गणित विषय को शिक्षा में कुछ समस्याएँ उत्पन्न हो
जाती है, इनमें से प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित है
• बहुत से बच्चे गणित से डरते है और इस विषय में असफलता से भयभीत
रहते है। वे जल्दी ही गणित की गंभीर पढ़ाई से विमुख हो जाते है।
• यह पाठ्यचर्या केवल इससे विमुख होने वालों के लिए ही निराशाजनक
नहीं है बल्कि यह प्रतिभाशाली बच्चों के लिए भी कोई चुनौती पेश नहीं
करती है।
• समस्याएँ, अभ्यास व मूल्यांकन पद्धति यांत्रिक है और दुहरावग्रस्त हैं।
इसमें संगणना पर अत्यधिक जोर दिया गया है। इसमें स्थानिक चिंतन जैसे
गणितीय क्षेत्रों को पर्याप्त स्थान नहीं दिया गया है।
• अध्यापकों में आत्मविश्वास व तैयारी की कमी है और उन्हें आवश्यक
मदद भी नहीं मिल पाती।
2.4.3 स्कूली गणित का दर्शन
स्कूलों में शिक्षकों द्वारा बच्चों को गणित विषय इस प्रकार पढ़ाया जाना
चाहिए जिससे कि
• बच्चे गणित से भयभीत होने की बजाए उसका आनंद उठाएँ।
• बच्चे महत्त्वपूर्ण गणित सीखें; गणित में सूत्रों व यांत्रिक प्रक्रियाओं से आगे भी
बहुत कुछ है।
• बच्चे गणित को ऐसा विषय मानें जिस पर वे बात कर सकते हैं, जिससे
संप्रेषण हो सकता है, आपस में जिस पर चर्चा कर सकते हैं और जिस
पर साथ-साथ काम कर सकते है।
• बच्चे सार्थक समस्याएँ उठाएँ और उन्हें हल करें।
• बच्चे अमूर्त का प्रयोग सम्बन्धों को समझने, संरचनाओं को देख पाने और
चीजों का विवेचन करने, कथनों की सत्यता या असत्यता को लेकर तर्क
करने में कर पाएँ।
• बच्चे गणित की मूल संरचना को समझें: अंकगणित, बीजगणित,
रेखागणित, त्रिकोणमिति।
• स्कूल गणित के सभी मूल तत्व अमूर्त की प्रणाली, संघटन और
सामान्यीकरण के लिए पद्धति मुहैया कराते हैं।
उपरोक्त के अतिरिक्त अध्यापक कक्षा में प्रत्येक बच्चे के साथ इस विश्वास
के आधार पर काम करे कि प्रत्येक बच्चा गणित सीख सकता है।
2.5 राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005
गणित की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चे की गणितीकरण की क्षमताओं का
विकास करना है। स्कूली गणित का सीमित लक्ष्य है ‘ लाभप्रद’ क्षमताओं का
विकास, विशेषकर अंक ज्ञान-संख्या से जुड़ी क्षमताएँ, सांख्यिक संक्रियाएँ,
माप, दशमलव व प्रतिशत। इससे उच्च लक्ष्य हैं
बच्चे के साधनों को विकसित करना ताकि वह गणितीय ढंग से सोच सके व
तर्क कर सके, मान्यताओं के तार्किक परिणाम निकाल सके और अमूर्त को
समझ सके।
इसके अन्तर्गत चीजों को करने और समस्याओं को सूत्रबद्ध करने व उनका
हल ढूँढ़ने की क्षमता का विकास करना आता है।
इसके लिए ऐसी पाठ्यचर्या चाहिए जो महत्वाकांक्षी हो, सुसंगत हो और
गणित के महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों को पढ़ाए और गणित की शिक्षा को सुगम व
सहज बनाए। इसी परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा-2005 तैयार किया
गया है। NCF-2005 के दिशा-निर्देशों की मदद से एक शिक्षक या एक
स्कूल एक बेहतर पाठ्य-सामग्री तैयार कर सकता है। जो न सिर्फ उनके
बौद्धिक विकास में सहायक हो बल्कि उनके लिए आसान भी हो।
                                      अभ्यास प्रश्न
1. “गणित एक ऐसा विषय है जो मानसिक
शक्तियों को प्रशिक्षित करने का अवसर
प्रदान करता है तथा एक सुषुप्त आत्मा में
चेतना एवं नवीन जागृति उत्पन्न करने के
कौशल का विकास करता है।” ये कथन
किसका है?
(1) प्लूटो
(2) रिस्क
(3) स्किनर
(4) हर्ट
2. गणित शिक्षण में पाठ्यक्रम का निम्न में से
कौन-सा एक महत्त्व नहीं है?
(1) नवीन विचारों की जानकारी देना
(2) अभ्यास हेतु
(3) मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु
(4) शिक्षण सामग्री के रूप में
3. निम्न में से कौन-सा एक गणित शिक्षण में
अभ्यास कार्य का महत्त्व नहीं है?
(1) निपुणता प्राप्त करने के लिए
(2) कुशलता प्राप्त करने के लिए
(3) आत्मविश्वास के विकास हेतु
(4) व्यावसायिक कुशलता प्राप्त करने हेतु
4. उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण का
सर्वाधिक महत्त्व किस रूप में है?
(1) भौतिक
(2) मानसिक
(3) व्यावहारिक
(4) आध्यात्मिक
5. पाठ्यक्रम में अंकगणित शिक्षण का
महत्त्व है।
(1) घरेलू कार्य हेतु
(2) मजदूरी व व्यवसाय हेतु
(3) व्यावहारिक उपयोग हेतु
(4) उपरोक्त सभी
6. पाठ्यक्रम में गणित शिक्षण इसलिए अति
महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से छात्रों
में ज्ञानापयोग सम्बन्धित जो व्यवहारगत
परिवर्तन होता है, वह है
(1) गणित की परिभाषाओं का प्रत्यास्मरण करना
(2) उपकरणों को सही ढंग से व्यवस्थित करना
(3) समस्याओं को हल करने के लिए उपरोक्त
विधि एवं सूत्र का चयन करना
(4) सोचने-समझने के बाद निर्णय लेना
7. पाठ्यक्रम निर्माण का सिद्धान्त निम्न में से
कौन-सा है?
(1) विभिन्न विषयों से सह-सम्बन्ध
(2) अप्रदर्शी
(3) अवकाश का सदुपयोग
(4) उपरोक्त सभी
8. गणित शिक्षण के माध्यम से बच्चों में निम्न
में से किस भावना पर नियन्त्रण रखने का
कौशल विकसित हो जाता है?
(1) तर्कशक्ति
(2) आत्मविश्वास
(3) विचार शक्ति
(4) ये सभी
9. निम्न में से कौन-सा विषय विज्ञान विषयों
के आधार विषय के रूप में माना जाता है?
(1) हिन्दी
(2) अंग्रेजी
(3) गणित
(4) सामाजिक अध्ययन
10. अमूर्त एवं संगत संरचनाओं के अध्ययन का
विषय निम्न में से किस विषय को कहा
जाता है?
(1) हिन्दी
(2) सामाजिक विज्ञान
(3) कला
(4) गणित
11. गणित का पाठ्यक्रम में स्थान इसलिए
महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह सहायक है
(1) भौतिक विज्ञान के अध्ययन में
(2) रसायन विज्ञान के अध्ययन में
(3) सांख्यिकी के अध्ययन में
(4) उपरोक्त सभी
12. गणित पाठ्य-पुस्तक की सामग्री का विकास
किस रूप में होना चाहिए?
(1) अभ्यास रूप में
(2) तर्क संगत रूप में
(3) समस्याओं के रूप में
(4) आधुनिक गणित के रूप में
13. माध्यमिक स्तर के बाद गणित की
कौन-कौन-सी शाखाएँ पाठ्यक्रम में
सम्मिलित हो जाती है?
(1) अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति
(2) ज्यामिति, बीजगणित, त्रिकोणमिति
(3) अवकलन, समाकलन, बीजगणित
(4) अंकगणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी
14. विद्यालय पाठ्यक्रम में गणित का महत्त्व है
(1) ज्ञान एवं कौशलों की प्राप्ति में
(2) बौद्धिक आदतों के विकास में
(3) वाछित दृष्टिकोण पैदा करने में
(4) उपरोक्त सभी
15. गणित शिक्षण में पाठ्य-पुस्तक के द्वारा
छात्र विषय-वस्तु का निम्न में से किसकी
सहायता से युग्म बनाता है?
(1) विषय-वस्तु को एकत्रित करके
(2) संगठित करके
(3) व्यवस्थित करके
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
16. निम्न में से कौन-सा गणित पाठ्यक्रम के
उपागम है?
(1) क्रिया केन्द्रित उपागम
(2) अनुभव केन्द्रित उपागम
(3) विषय-वस्तु केन्द्रित उपागम
(4) उपरोक्त सभी
17. गणित को पाठ्यक्रम में विशेष स्थान देने
का प्रमुख कारण क्या है?
(1) बच्चों में तार्किक दृष्टिकोण पैदा करने में
(2) बच्चों का समाजीकरण करने में
(3) बच्चों का चरित्र विकास करने में
(4) उपरोक्त सभी
18. वर्तमान पाठ्यक्रम का दोष है
(1) पुस्तकीय ज्ञान पर बल
(2) विषयों में सह-सम्बन्ध का अभाव
(3) लचीलेपन का अभाव
(4) उपरोक्त सभी
19. कक्षा में गणित शिक्षण के साथ-साथ
आयोजित की जाने वाली मासिक परीक्षाओं
की आवश्यकता होती है
(1) छात्रों की कमजोरी दूर करने के लिए
(2) छात्रों को वार्षिक परीक्षाएँ उत्तीर्ण कराने के लिए
(3) छात्रों को अधिक-से-अधिक अभ्यास कार्य
करवाने के लिए
(4) छात्रों की गणित विषय के प्रति रुचि बदाने के
लिए
20. गणित का पाठ्यक्रम में महत्त्व नहीं है,
क्योकि यह
(1) विज्ञान शिक्षण में सहायक है
(2) बालक की तर्कात्मक सोच का विकास करने में
सहायक है
(3) व्यावहारिक जीवन में उपयोगी है
(4) उपरोक्त सभी
                               विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
21. एन.सी.एफ. (2005) मानता है कि गणित में
‘सोचने एवं तर्क का एक निश्चित तरीका’
निहित है।                         [CTET June 2011]
नीचे दिए गए कथनों में से वह कथन चुनिए,
जो उपरोक्त सिद्धान्त का पालन नहीं करता
(1) उसे पढ़ाने की विधि
(2) आंकिक प्रश्नों का हल करने के लिए
विद्यार्थियों को निर्धारित सूत्र बताना
(3) पाठ्य-पुस्तकों में प्रस्तुत सामग्रियों के लिखने
का तरीका
(4) कक्षा के लिए चुने गए क्रियाकलाप एवं अभ्यास
22. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (2005)
मानती है कि गणित में ‘चिंतन और तर्कणा
का एक तरीका शामिल होता है। इस
दृष्टिकोण को किसके द्वारा प्राप्त किया जा
सकता है?                       [CTET Jan 2012]
(1) विद्यार्थियों को विशेष कोचिंग देना
(2) खोजबीन उपागम का प्रयोग करना,
हस्तचालकों का प्रयोग करना, संकल्पनाओं को
वास्तविक जीवन से जोड़ना, विद्यार्थियों को
चर्चाओं में शामिल करना
(3) गणित की सभी पाठ्य पुस्तकों का पुनर्लेखन
करना
(4) विद्यार्थियों को बहुत सारे सवाल कार्य-पत्रक
(Worksheets) देना
23. ‘पैटर्न की पहचान करना और उन्हें पूरा
करना’ प्राथमिक स्तर पर गणित की
पाठ्यचर्या का एक अनिवार्य हिस्सा है
क्योकि                     [CTET Jan 2012]
(1) विद्यार्थियों में सृजनात्मकता और कलात्मक
गुणों को विकसित करता है
(2) विद्यार्थियों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए
तैयार करता है
(3) ‘सुडोकू’ पहेली को हल करने में विद्यार्थियों
की सहायता करता है
(4) यह विद्यार्थियों में सृजनात्मकता को बढ़ावा
देता है और संख्याओं तथा संक्रियाओं की
विशेषताओं को समझने में उनकी सहायता
करता है
24. गणित में गणना करने सम्बन्धी कौशलों को
किसके द्वारा बढ़ाया जा सकता है?
                                        [CTET Jan 2012]
(1) केवल एल्गोरिथ्म (Algorithm) का वर्णन करके
(2) क्क्षा में अभ्यास हेतु क्रियाशील गतिविधियों का
आयोजन करके
(3) संकल्पनाओं और प्रक्रियाओं को स्पष्ट करने के
बाद अधिक-से-अधिक अभ्यास कराना
(4) केवल संकल्पनात्मक ज्ञान देकर
25. सुश्री रीना दशमलव के गुणन की संकल्पना
का शिक्षण करने के लिए ग्रिड गतिविधि
का प्रयोग करती है। उसका एक नमूना नीचे
दिया गया है
ph1
0.2×0.3 = 0.06
इस पद्धति के द्वारा सुश्री रीना
                                    [CTET Jan 2012]
(1) संकल्पनात्मक शान और समस्या समाधान पर
ज्यादा बल दे रही है तथा प्रक्रमणशील ज्ञान
पर कम
(2) सीखने के परम्परागत उपागम का प्रयोग कर
रही है
(3) समस्या समाधान कौशल के विकास पर बल दे
रही है
(4) प्रक्रमणशील झान पर ज्यादा बल दे रही है
और संकल्पनात्मक ज्ञान पर कम
26. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005
पर बल देती है।                    [CTET July 2013]
(1) गणित चयनित शिक्षार्थियों को पढ़ाया जाएगा
(2) गणित में सफलता प्रत्येक बध्ये के लिए
आवश्यक है
(3) शिक्षार्थियों की तार्किक गणितीय योग्यता के
लिए पहले उनकी परीक्षा होनी चाहिए
(4) निम्न उपलब्धिकर्ताओं के लिए गणित पाठ्यचर्या
अलग होगी
27. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के
अनुसार, “गणित को शिक्षा का मुख्य
उद्देश्य बच्चे की गणितीकरण की
क्षमताओं का विकास करना है। स्कूली
गणित का सीमित लक्ष्य है।
‘लाभप्रद’ क्षमताओं का विकास।”
यहाँ ‘गणितीकरण’ बच्चे की ……
क्षमताओं का विकास करने की ओर संकेत
करता है।                    [CTET July 2013]
(1) पूर्वधारणाओं को उनके तार्किक निष्कर्ष का
अनुशीलन करने और अमूर्तन का प्रचलन करने
के लिए गणितीय रूप से चिन्तन और तर्क के
बच्चे के संसाधनों का विकास करने
(2) वर्गमूल और घनमूल निकालने सहित सभी
संख्या संक्रियाओं के प्रभावी निष्पादन की
(3) स्वतन्त्र रूप से ज्यामितीय प्रमेयों का निरूपण
और उनका सत्यापन करने की
(4) शब्द-समस्याओं को रेखीय समीकरण में
अनुदित करने की
28. एक अच्छी पाठ्यपुस्तक को विशिष्टताएँ है
A. उनमें कठोर अभ्यास देने के लिए बहुत
सारे अभ्यास हैं
B. स्थितियों के माध्यम से सभी
संकल्पनाओं का परिचय दिया जा
सकता है।
C. केवल हल किए गए अभ्यास ही शामिल
किए गए हैं
D. उन्हें मोटी व भारी होना आवश्यक है
                                         [CTET July 2013]
(1) Bऔर D
(2) A और B
(3) C और D
(4) A और C
29. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005
अधिगमकता रचनावादी उपागम पर बल
देती है, क्योंकि यह …. पर केन्द्रित है।
                                          [CTET July 2013]
(1) शिक्षक द्वारा प्रभावी व्याख्यान और अनुदेशन
(2) परिभाषाओं और सूत्रों को याद करने
(3) नियमित गृह-कार्य जमा कराने
(4) गतिविधियों में शामिल करते हुए शिक्षार्थियों
की सक्रिय भागीदारिता
30. निम्नलिखित बिन्दियों का प्रयोग करते हुए
15 को प्रदर्शित करने वाले संयोजित
(array) आरेख है
ph2
31. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा, 2005 में
उल्लिखित ‘गणित की लम्बी आकृति’
संकेत करती है                 [CTET Feb 2014]
(1) चुनौतीपूर्ण समस्याओं को हल करना
(2) गणित के खेलों का सृजन
(3) हस्तसिद्ध अनुभव प्रदान करना
(4) एक संकल्पना पर दूसरी संकल्पना बनाना
32. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा, 2005 में
यह उल्लेख किया गया है कि गणित
शिक्षण महत्त्वाकांक्षी, सुसंगत और
महत्त्वपूर्ण होना चाहिए। यहाँ ‘महत्त्वाकांक्षी’
से तात्पर्य निम्नलिखित में से किसकी
उपलब्धि है?                [CTET Feb 2014]
(1) गणित के संकीर्ण उद्देश्यों (लक्ष्यों) की
(2) गणित को अन्य विषयों से जोड़ने की
(3) गणित के अनुप्रयोग की
(4) गणित के उच्च उद्देश्यों (लक्ष्यो) की
33. राष्ट्रीय पाठ्यचर्चा की रूपरेखा 2005 के
अनुसार, प्राथमिक स्तर पर संख्याओं और
उन पर संक्रियाओं, मात्राओं का मापन आदि
का शिक्षण                        [CTET Sept 2014]
(1) गणित शिक्षण के संकीर्ण उद्देश्य को पूरा
करता है
(2) गणित शिक्षण के उच्च उद्देश्य को पूरा करता
है
(3) बच्चे की चिन्तन प्रक्रिया के गणितीयकरण के
उद्देश्य को पूरा करता है
(4) महत्त्वपूर्ण गणित शिक्षण के उद्देश्य को पूरा
करता है
34. कक्षा-कक्ष में गणितीय भाषा में निपुणता
को निम्नलिखित क्रम में समस्याओं को
प्रदर्शित करने के द्वारा बढ़ाया जा सकता है
                                    [CTET Sept 2014]
(1) रोजमर्रा की भाषा→गणितीयकरण स्थिति
भाषा→गणितीय समस्या समाधान की भाषा
→प्रतीकात्मक भाषा
(2) प्रतीकात्मक भाषण→ गणितीय
समस्या समाधान की भाषा→ गणितीयकरण
स्थिति भाषा→ रोजमर्रा की भाषा
(3) रोजमर्रा की भाषा→ गणितीय
समस्या- या समाधान की भाषा→ गणितीयकरण
स्थिति भाषा→ प्रतीकात्मक भाषा
(4) गणितीय समस्या समाधान की भाषा→
गणितीयकरण स्थिति भाषा→ प्रतीकात्मक
भाषा→रोजमर्रा की भाषा
35. गणित की पाठ्य-पुस्तक में विभिन्न प्रकरणों
में खण्ड ‘अभ्यास समय’ को समावेशित
करने का उद्देश्य है                  [CTET Feb 2016]
(1) विद्यार्थियों को आनन्द व मस्ती प्रदान करना
(2) दैनिक जीवनचर्या में बदलाव करना
(3) समय का बेहतर सदुपयोग सुनिश्चित करना
(4) विस्तृत अधिगम अवसर प्रदान करना
36. ‘वैदिक गणित’, आजकल विशेष रूप से
प्राथमिक विद्यालय के बच्चों में बहुत
लोकप्रिय होता जा रहा है। इसका प्रयोग
निम्नलिखित में से किसके विकास/संवर्द्धन में
होता है?                         [CTET Feb 2015]
(1) विद्यार्थियों की गणित में परिकलन प्रक्रिया की
समझ
(2) विद्यार्थियों के गणित में समस्या समाधान कौशल
(3) विद्यार्थियों की गणित में एकाप्रता
(4) गणित में गणना के कौशल तथा गति
37. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राथमिक स्तर
पर गणित शिक्षण की पाठ्यचर्या अपेक्षाओं
के साथ मेल नहीं खाता है?         [CTET Feb 2015]
(1) भिन्न को पूर्ण के अंश के रूप में प्रदर्शित करना
तथा सरत भिन्नों को व्यवस्थित करना
(2) वर्गीकृत आँकड़ों के निरूपण का विश्लेषण करना
तथा निष्कर्ष निकालना
(3) दैनिक जीवन की तार्किक कार्य-प्रणाली तथा
गणितीय सोच के बीच संयोजन का विकास
(4) मानक परिकलन प्रणाली से संख्या-सम्बन्धी
संक्रियाओं के करने में भाषा और प्रतीक चिह्नों
का विकास
38. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा, 2005 के
अनुसार, विद्यालय में गणित शिक्षण का
संकीर्ण उद्देश्य है                   [CTET Feb 2016]
(1) रैखिक बीजगणित से सम्बन्धित दैनिक जीवन
की समस्याओं की शिक्षा
(2) संख्यात्मक कौशलों का विकास
(3) बीजगणित पढ़ाना
(4) परिकलन व मापन पदाना
39. एक बच्चा जिस अवस्था में सभी संख्या
सम्बन्धी संक्रियाओं को करने में सक्षम है
तथा भिन्नों के सम्प्रत्यय की व्याख्या करने में
सक्षम है, वह अवस्था है          [CTET Feb 2015]
(1) विभाजनात्मक अवस्था
(2) संक्रियात्मक अवस्था
(3) आरम्भिक अवस्था
(4) परिमाणात्मक अवस्था
40. कक्षा IV का छात्र, अर्जुन संख्या प्रणाली से
सम्बन्धित सभी प्रश्नों का उत्तर मौखिक रूप
से दे सकता है परन्तु संख्या प्रणाली पर
आधारित समस्याओं के हल लिखने में
गलतियाँ करता है। लिखने में उसकी
त्रुटियों को सुधारने के लिए सबसे अच्छी
उपचारात्मक तकनीक है         [CTETFeb 2015]
(1) उसे 10 अभ्यास परीक्षाएँ देना
(2) वास्तविक जीवन के अनुभवों को गणितीय
संकल्पनाओं के साथ सम्बन्धित करना
(3) उसको एक कार्य-पत्रक देना जिसमें समस्याएँ
आंशिक रूप से हल की गई हों और उसे
खाली स्थान भरने हों
(4) संख्या प्रणाली की समस्याएँ हल करने के
लिए एक से अधिक तरीके सिखाना
41. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा, 2005
सिफारिश करता है कि प्राथमिक स्तर पर
गणित की शिक्षा का केन्द्र होना चाहिए
                                                [CTET Sept 2016]
(1) उच्चतर गणित के लिए तैयारी
(2) गणित के अमूर्त विचार जानना
(3) कक्षा-कक्ष में की गई पकाई को विद्यार्थियों की
दैनिक जिन्दगी से जोड़ने में सहायता करना
(4) विद्यार्थियों को गणित की शिक्षा में
अन्तर्राष्ट्रीय मापदण्ड अर्जित करने में
सहायता करना
42. प्राथमिक स्तर पर ‘लम्बाई को मापना’
विषय पढ़ाने के लिए कौन-सा श्रेणीक्रम
उत्तम है?                  [CTET Sept 2015]
(1) तुलना करना → अप्रामाणिक मापों का
उपयोग करना → प्रामाणिक इकाई को
विकसित करना → प्रामाणिक मापों का
उपयोग करना
(2) तुलना करना → अप्रामाणिक मापों का
उपयोग करना → प्रामाणिक मापों का
उपयोग करना → प्रामाणिक इकाई को
विकसित करना
(3) प्रामाणिक इकाई को विकसित करना
→प्रामाणिक मापों का उपयोग करना→
अप्रामाणिक मापों का उपयोग करना→
तुलना करना
(4) प्रामाणिक मापों का उपयोग करना→
अप्रामाणिक मापों का उपयोग करना →
प्रामाणिक इकाई को विकसित करना→
तुलना करना
43. दो-अंकीय संख्या को दूसरी एक-अंकीय
या दो-अंकीय संख्या से गुणा करने की
प्रक्रिया को समझने के लिए निम्नलिखित
में से कौन-सी पूर्व जानकारी होनी
आवश्यक है?                   [CTET Sept 2016]
(1) योग का क्रमविनिमेय गुण
(2) गुणन का क्रमविनिमेय गुण
(3) गुणन, योग पर वितरण के रूप में
(4) गुणन, विभाजन के प्रतिलोम के रूप में
44. प्राथमिक स्तर पर शिक्षार्थियों के ‘माप’ का
संदर्भ पढ़ाने के लिए निम्नलिखित में से
कौन-सा कथन सत्य है?   [CTET Sept 2016]
(1) अप्रामाणिक मापों का उपयोग प्रामाणिक माप
के बाद करना चाहिए
(2) प्रामाणिक मापों का उपयोग अप्रामाणिक मापों
के बाद करना चाहिए
(3) केवल अप्रामाणिक मापों का उपयोग करना
चाहिए
(4) अप्रामाणिक मापों का उपयोग नहीं करना
चाहिए
45. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा
(एन०सी०एफ०), 2005 के अनुसार
प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण का
उद्देश्य निम्नलिखित में से कौन-सा नहीं
है?                  [CTET Sept 2016]
(1) गणित में उच्चतर और अमूर्त पदाई की तैयारी
कराना
(2) गणित को बच्चे की जिंदगी के अनुभवों का
भाग बनाना
(3) समस्या समाधान और समस्या प्रस्तुत करने के
कौशल को प्रोत्साहित करना
(4) तर्कसंगत विचारों को प्रोत्साहित करना
46. कक्षा II की एक शिक्षिका ने अपने
विद्यार्थियों को 4 इकाई और 3 दहाई लिखने
4
के लिए कहा। कुछ विद्यार्थियों ने 34 के
स्थान पर 43 लिखा। एक शिक्षिका के रूप
में आप विद्यार्थियों को इस संकल्पना को
कैसे समझाएँगी?                 [CTET Sept 2016]
(1) हमेशा दहाई और इकाई के स्तम्भों में लिखना
सिखाएँगी जिससे कोई भ्रम न हो
(2) स्तम्भ विधि में अभ्यास करने के लिए बहुत
सारे प्रश्न देगी
(3) विद्यार्थियों को गिनतारा पर प्रदर्शित करने के
लिए कहेंगी और फिर लिखने के लिए कहेंगी
(4) उन्हें बताएँगी कि यह गलत है और फिर उन्हें
सही उत्तर को 5 बार लिखने के लिए कहेंगी
                                              उत्तरमाला
1. (1) 2. (3) 3. (4) 4. (3) 5. (4) 6. (3) 7. (4) 8. (4) 9. (3) 10. (4)
11. (4) 12. (2) 13. (1) 14. (4) 15. (2) 16. (4) 17. (4) 18. (4)
19. (3) 20. (4) 21. (2) 22. (2) 23. (4) 24. (2) 25. (1) 26. (2)
27. (1) 28. (2) 29. (4) 30. (1) 31. (4) 32. (4) 33. (1) 34. (1)
35. (4) 36. (4) 37. (2) 38. (2) 39. (2) 40. (4) 41. (3) 42. (2)
43. (3) 44. (4) 45. (4) 46. (2)
                                                 ★★★

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