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गणित का शिक्षणशास्त्र-1

गणित का शिक्षणशास्त्र-1

गणित का शिक्षणशास्त्र-1
                                        (प्राथमिक स्तर)
                                          लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. गणित में मनोरंजक क्रियाओं का महत्त्व बताएँ।
उत्तर-गणित मनोरंजक क्रियाओं का महत्त्व सामान्य रूप से गणित नीरस विषय
माना जाता है। अतः प्रभावपूर्ण शिक्षण के लिए गणित के वर्गकक्ष में मनोरंजक क्रियाओं
का होना आवश्यक है। इसके अनेक कारण हैं
1. मनोरंजक क्रियाएँ छात्र-छात्राओं को पाठ को सीखने के लिए अभिप्रेरित करती है।
2. वे पाठ को सुगम तथा बोधगम्य बनाती है।
3. मनोरंजक क्रियाएँ छात्र को अवकाश के क्षणों के सदुपयोग के लिए तैयार करती
हैं। इस दृष्टि से पहेलियों का महत्त्व स्पष्ट झलकता है।
4. ये मनोरंजक क्रियाएँ अनेक सूक्ष्म सम्बन्ध स्थापित करती हैं, जो हमें कभी-कभी
व्यर्थ-सी प्रतीत होती हैं।
5. ये क्रियाएँ बुद्धि को तीव्र करती हैं तथा त्वरित चिन्तन को बढ़ावा देती हैं।
6. ये क्रियाएँ खेल भावना विकसित करती हैं तथा पारस्परिक सहयोग एवं स्वस्थ प्रतिस्पर्धा
को प्रोत्साहित करती हैं।
प्रश्न 2. पैटर्न, तर्क, सामान्यीकरण तथा परिवर्तनशीलता के आधार पर गणित की
उत्तर-गणित की प्रकृति-गणित की प्रकृति निम्नलिखित हैं-
1. “गणित सभी विषयों का प्रवेशद्वार तथा कुंजी है।” रोजन बैकन के ठक्त कथन
से स्पष्ट है कि गणित की प्रगति के साथ ही अन्य विषयों की प्रगति जुड़ी है। इसका
प्रयोग लगभग सभी विषयों में किया जाता है।
2. गणित विषय के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ हैं जिन पर विश्वास किया जा
सकता है, क्योंकि ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थायी व वास्तविक होता है।
3. जीवन के अमूर्त प्रत्ययों की व्याख्या गणित की सहायता से की जा सकती है तथा
बाद में अमूर्त को स्थल रूप में ही इसका सहायता से प्रदर्शित किया जा सकता है।
4. वातावरण में उपलब्ध वस्तुओं के आपस में सम्बन्धों को संख्यात्मक रूप में प्रस्तुत
कर निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं, क्योंकि ये निष्कर्ष एक पुनः सत्यापित की जाने
वाली प्रक्रिया पर आधारित होता है।
5. यदि गणित में प्रयुक्त विभिन्न पदों, अवधारणाओं, प्रत्ययों, सूत्रों, संकेतों, सिद्धान्तों
को देखने से ज्ञात होता है कि गणित की एक अलग लिपि या भाषा होती है।
6. गणित में सर्वप्रमुख प्रयुक्त संख्याओं, स्थान, मापन आदि का प्रयोग वर्तमान में अन्य
प्रकृति या महत्व बताइए।
विषयों में भी किया जाता है।
7. गणित में सामान्यीकरण, निगमन, आगमन के लिए पर्याप्त सीमा होती है।
8. गणित के माध्यम से जो निष्कर्ष निकाले जाते हैं तथा उनके आधार पर भविष्यवाणी
की जाती हैं, वे हमारे उद्देश्यों को पूरा करने में समर्थ होती है।
9. गणित सार्वभौमिक विषय है, जिसकी मान्यताएँ दुनिया के प्रत्येक कोने में सर्वमान्य
हैं, यह ज्ञान समय व स्थान के साथ परिवर्तित नहीं होता है। जिस वस्तु, तथ्य या
घटना पर व्यक्ति समय व स्थान का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, इसे किसी भी स्थान
पर सत्यापित किया जा सकता है।
प्रश्न 3. बच्चे गणित से क्यों डरते हैं?
उत्तर-गणित का शिक्षक, माता, पिता, बड़े भाई, बहन यदि बच्चे को गणित सिखाते
समय गलती होने पर आँख दिखाए, उसे मारे तो बच्चा पहले अपने गणित सिखाने वाले से
डरने लगता है। बाद में गणित विषय से ही इसे डर लगता है तथा गणित पढ़ना नहीं चाहता।
गणित पढ़ाने वाले शिक्षकों को बच्चे गणित सीखने में रुचि लें इसके लिए उन्हें खेल-खेल
में गणित सिखाना चाहिए । शिक्षकों, माता, पिता, भाई, बहन की भाषा सरल व स्पष्ट न होने
पर भी बच्चे को गणित सीखने में दिक्कतें पैदा करती हैं।
प्रश्न 4. गणित की प्रकृति का दर्शन स्पष्ट कीजिए।
उत्तर―गणित को प्रकृति को हम दर्शन के अनुसार निम्न प्रकार समझ सकते हैं―
(i) सामान्यतः समान समझी जाने वाली वस्तुओं में अन्तर स्पष्ट करना तथा असमान
दिखाई देने वाली वस्तुओं में सम्बन्ध स्थापित करना।
(ii) वस्तु की प्रकृति से सम्बन्धित सिद्धान्त का वर्णन करना ।
(iii) अनुभवों और मूल्यों को व्यवस्थित और परिष्कृत करना ।
प्रश्न 5.पियाजे का संख्यात्मक अवधारणा सीखने के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
अथवा, पियाजे के ज्ञान स्तरों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-पियाजे के अनुसार संख्याओं का ज्ञान बच्चों को तीन स्तरों में होता है―
(i) आर्डिनेशन (क्रमिकता), (ii) को-आर्डिनेशन (सह-सम्बन्ध), (iii) कंजरवेशन
(संरक्षण)।
(i) आर्डिनेशन (कमिकता)― बच्चे पहले बिना क्रम से संख्या बोलता है, जैसे―
2,5,7 आदि । इस स्थिति में बच्चे को संख्या के क्रम का बोध नहीं होता है। धीरे-धीरे
वह क्रम से गिनना 1, 2, 3, 4, 5 …. सीखता है। क्रम से गिनने की प्रक्रिया को आर्डिनेशन
कहते हैं।
(ii) को-आर्डिनेशन (सह-सम्बन्य)―इस स्तर में बच्चे संख्या के अनुरूप वस्तु को
गिनना या अलग करना सीखते हैं, अर्थात् इस प्रकार बच्चे मूर्त वस्तुओं की सहायता से गिनना
सीखते हैं।
(iii) कंजरवेशन (संरक्षण)― इस स्तर पर बच्चे वस्तुओं को अलग-अलग समूहों में
वस्तुओं की संख्या गिनना सीखते हैं तथा संख्या की समझ विकसित करते हैं। कंजरवेशन
या संरक्षण का सिद्धान्त कहता है कि किसी वस्तु की मात्रा पर उस वस्तु के आकार में
परिवर्तन करने अथवा वस्तु को हिस्सों में या टुकड़ों में विभक्त कर देने का कोई प्रभाव
नहीं पड़ता है।
प्रश्न 6. बच्चे खेल-खेल में कैसे गणित सीख सकते हैं? एक उदाहरण सहित
समझाइए।
उत्तर-बच्चे गणित की कई बुनियादी अवधारणाएँ खेलों से ही सीख सकते हैं। उन्हें
जाने पहचाने संदर्भो में खेलने में मज़ा आता है। उनके खेलों से, अपने आप ही. मजे-मजे
में बहुत सारी गणितीय गतिविधियाँ आ जाती है। नए विचारों और अवधारणाओं से छोटे
बच्चों का परिचय खेलों व ऐसी परिचित स्थितियों से कराया जा सकता है, जो उन्हें मजेदार
हो और जिनसे उन्हें घबराहट या परेशानी न हो। यही बात प्राईमरी के बड़े बच्चों के लिए
भी लागू होती है।
जब छोटे बच्चे चीजों को आपस में बाँटते हैं वास्तव में वे एक-से-एक का मेल मिलाते
हैं। जब वे गुटकों से खेलते हैं तो वे अलग-अलग आकारों से प्रयोग कर रहे होते हैं। जब
वे ‘पाँच छोटे बंदर’ जैसा गाना गाते हैं तो वे संख्याओं के नाम सीखते हैं।
प्रश्न 7. गणित को कैसे रोचक बनाया जाए? सुझाव दीजिए।
उत्तर―गणित को रोचक बनाने हेतु सुझाव (Suggestions)—गणित की शिक्षा देते
समय गणित के अध्ययन के प्रति बच्चे की रुचि का होना सबसे महत्वपूर्ण बात है। उसे
विषय सरल और रोचक प्रतीत होना चाहिए । ज्योंही छात्र की विषय के प्रति रुचि में कमी
हुई उसे गणित नीरस लगने लगेगा और गणित कार्य की गति धीमी हो जाएगी। अत: गणित
शिक्षण को रोचक व रुचिकर बनाने हेतु शिक्षक को निम्नलिखित प्रयास करने चाहिए―
1.मानसिक शक्तियों के प्रयोग के लिए अवसर प्रदान करना—गणित के प्रति रुचि
जाग्रत करने और उसे बनाए रखने में यह ध्यान रखना चाहिए कि कार्य बच्चों की मानसिक
शक्तियों का उपयोग करने का पूर्ण अवसर प्रदान करे । हमें समस्यात्मक और अन्वेषणात्मक
दृष्टिकोण को लेकर गणित का अध्ययन कराना चाहिए।
2. गणित के व्यावसायिक मूल्यों से परिचित करना—गणित की शिक्षा जीविकोपार्जन
दृष्टिकोण को लेकर दी जानी चाहिए ताकि बच्चे विभिन्न व्यवसायों में गणित के उपयोग
से परिचित हो सकें तथा उसे अपनी रोजी-रोटी कमाने का साधन समझकर उसे सीखने के
लिए पूरे मन से जुट जाएँ।
3. गणित के प्रयोगात्मक मूल्य पर जोर देना-गणित की पढ़ाई प्रयोगात्मक अथवा
व्यवहारात्मक ज्ञान की प्राप्ति को ध्यान में रखकर कराई जाए।
4. गणित के सांस्कृतिक मूल्य से परिचित करना–सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित
रखने, उसमें वृद्धि करने तथा उसे आने वाली पीढ़ियों को सौंपे जाने में गणित का अध्ययन
अपना विशेष स्थान रखता है। गणितज्ञों की जीवनियाँ, गणित के नियमों की सार्वभौमिकता
तथा पारस्परिक आदान-प्रदान अध्ययन की सामग्री जो गणित के अध्ययन के प्रति रुचि बढ़ाने
में सफल सिद्ध हो सकती हैं। विभिन्न प्रकरणों, नियमों, सूत्रों तथा संकेतों आदि में निहित
अतीत की कहानी उनके अध्ययन के प्रति जाग्रत करने तथा उन्हें भली-भांति समझने में सहायता
कर सकती है।
5. क्रियात्मक कार्य द्वारा― गणित के अध्ययन में रुचि जाग्रत करने तथा अधिक समय
तक बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि गणित की सैद्धान्तिक पढ़ाई के साथ-साथ
उसके क्रियात्मक पक्ष पर भी बल दिया जाए। ‘योजना विधि’ तथा ‘प्रयोगशाला विधि’ को
गणित की पढ़ाई में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाना चाहिए।’
6. गणित के मनोरंजन सम्बन्धी मूल्य की जानकारी लेना-गणित सम्बन्धी विभिन्न
सहायक साधनों का प्रयोग करके गणित की शिक्षा को रोचक बनाने का प्रयत्ल करना चाहिए।
अध्यापक गणित सम्बन्धी विभिन्न बुझारतों या कूट प्रश्न, पहेलियों, अंक अजूबे, मायावी वर्ग
तथा संख्या सम्बन्धी खेलों का ज्ञान गणित के अध्ययन के प्रति बच्चों की रुचि बनाने में
बहुत सहायता कर सकता है तथा समस्याओं के समाधान करने हेतु जिज्ञासा वृत्ति का विकास
होता है।
प्रश्न 8. आपके अनुसार बच्चे को गिनती सीखाने का उपयुक्त तरीका क्या हो
सकता है?
उत्तर―गिनती सीखाने के लिए बच्चे को सर्वप्रथम एक से दस तक या उससे अधिक
संख्याएँ सही क्रम में याद करने के लिए कहेंगे। अब उसके सामने हम दस कंकर रखते
हैं। अब उससे कहते हैं कि कंकड़ को अपनी ऊँगली से छूते हुए जोर से गिने और जब
बच्चा एक बार गिनना शुरू कर देता है तो उसे बीच में हमें नहीं टोकना चाहिए।
जब बच्चा गिनती गिनना शुरू कर देता है तो हमें निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए―
(1) क्या बच्चे ने कंकड़ों को एक से ज्यादा बार गिना ?
(2) क्या उसने कुछ कंकड़ों को छोड़ दिए?
(3) क्या उसने बगैर किसी कंकड़ को छुए भी संख्या बोला?
(4) क्या सारे कंकड़ छू लेने के बाद भी वह संख्याएँ बोलता रहा?
इस तरह हम बच्चे को गिनती सिखा सकते हैं
प्रश्न 9. NCF-2005 के निर्देशानुसार प्राथमिक कक्षाओं में गणित शिक्षण कैसा
होना चाहिए?
उत्तर―NCF-2005 के निर्देशानुसार प्राथमिक कक्षाओं में गणित शिक्षण ऐसा होना चाहिए
जिसमें सभी बच्चे आनन्ददायक रूप से महत्वपूर्ण व सार्थक गणित सीखें, और उनमें गणितीय
सोच, मनोवृत्ति अर्थात् सोच का गणितीयकरण करने पर बल दिया जाए। सोच की प्रक्रिया
का गणितीयकरण तभी होगा जब बच्चा स्वयं अपने लिए जिज्ञासु मन मस्तिष्क से रुचिपूर्वक
गणित के प्रक्रियात्मक अवधारणात्मक पक्षों को अपनी गति से अपने सीखने के अभिन्न तरीकों
के माध्यम से सीखकर आत्मसात् करके अपने अधिगम, अपने मन में गणित के प्रति सकारात्मक
रूझान और लगाव उत्पन्न करना, उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि संज्ञानात्मक कौशलों और
अवधारणाओं का विकास है। प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण गणितीय खेल, पहेलियाँ,
कहानियाँ और विभिन्न प्रकार के मनोरंजक क्रियाकलापों के माध्यम से करने की आवश्यकता
है। यह सब गणित के प्रति सकारात्मक रुझान विकसित करने में गणित और दैनिक जीवन
की सोच के बीच सम्बन्ध बनाने में मदद करते हैं।
प्रश्न 10. प्राथमिक कक्षाओं हेतु गणित पाठ्यचर्या की रूपरेखा किस प्रकार तैयार
करनी चाहिए?
उत्तर―राष्ट्रीय पाठ्यचर्या प्रारूप (2005) के अनुसार पाठ्यचर्या की रूपरेखा में गणित
शिक्षा के स्थान के बारे में हमारा चिन्तन दो सरोकारों पर आधारित है―
(i) प्रत्येक विद्यार्थी के मस्तिष्क को व्यस्त रखने के लिए गणित शिक्षा क्या कर
सकती है?
(ii) यह उसकी आंतरिक शक्तियों को किस प्रकार मजबूत कर सकती है?
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या प्रारूप (2005) के उपर्युक्त कथन को ध्यान में रखकर गणित पाठ्यचर्या
की रूपरेखा तैयार करनी चाहिए। गणित शिक्षा का मुख्य लक्ष्य बच्चों में गणितीयकरण की
सोच को विकसित करना है। इसके अतिरिक्त सटीकता, सुस्पष्टता, तार्किकता, अमूर्तता,
सांकेतिक, स्थानिक-संरचना, गणित के मुख्य तत्व हैं, जो बच्चों को सोचने, तर्क करने,
विश्लेषण करने और तार्किक रूप से सम्प्रेषण योग्यता को विकसित करने में सहायक होते हैं।
पाठ्यचर्या के निर्धारण का आधार गणित के मुख्य तत्वों, गणित शिक्षा के लक्ष्यों और
उद्देश्यों तथा सभी बच्चों के सोच को गणितीयकरण करने तथा उनकी जरूरतों को पूरा करने
वाला होना चाहिए। गणित पाठ्यचर्या सरल, बोधगम्य व आनन्ददायक हो ताकि बच्चे गणित
के भय से मुक्त होकर गणित सीख सकें। इसके अतिरिक्त पाठ्यचर्या बच्चों के परिवेश
से जुड़ी होनी चाहिए। बच्चों को गणित की विभिन्न अवधारणाओं को उसके परिवेश से
जुड़े क्रियाकलापों और घटनाओं के माध्यम से समझने,व अनुभव करने के लिए पर्याप्त अवसर
मिलना चाहिए।
प्राथमिक स्तर गणित शिक्षा के संकीर्ण लक्ष्य (प्रक्रियात्मक पक्षों) तथा उच्च लक्ष्यों
(गणितीयकरण) को ध्यान में रखकर वर्तमान चुनौतियों, विद्यार्थियों की सामाजिक एवं वैयक्तिक
आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर गणित पाठ्यचर्या का निर्धारण किया जाना आवश्यक है।
प्रश्न 11. प्राथमिक स्तर पर पाठ्यचर्या में आँकड़ों का प्रबन्धन का समावेश किस
प्रकार उपयोगी है? वर्णन कीजिए।
“उत्तर–आँकड़ों का प्रबन्धन, निरूपण और दृष्टीकरण महत्वपूर्ण गणितीय कौशल है जो
इस स्तर पर सिखाए जा सकते हैं। वे जीवन कौशलों’ के रूप में बहुत उपयोगी हो सकते
है। विद्यार्थियों को यह जानना चाहिए कि किस तरह रेल समय-सारणियों, निर्देशिकाओं और
पंचांगों में जानकारी को सुसंगत रूप से संगठित किया जाता है।
आँकड़ों के प्रबन्धन की प्रक्रिया को समझने, निरूपित करने और दिन-प्रतिदिन के आँकड़ों
के ग्राफीय निरूपण को बढ़ावा देना चाहिए। रैखिक ग्राफ बनाने की औपचारिक तकनीके
पढ़ाई जानी चाहिए। दृश्य अधिगम समझ, संगठन और कल्पनाशीलता को प्रोत्साहित करता
है। द्वि-स्तंभीय उपपत्तियों पर जोर देने के बजाय विद्यार्थियों को सहमति द्वारा अपने निष्कर्षों
को सही साबित करने का अवसर दिया जाना चाहिए । विद्यार्थी की दिकस्थान सम्बन्धी तार्किक
क्षमता और दृश्यीकरण कौशल का विस्तार होना चाहिए। ज्यामिती के अध्ययन में उपलब्ध
तकनीकी का पूरा इस्तेमाल होना चाहिए। सीखने के लिए दृश्य अभिप्राय देने पर विद्यार्थी
चित्र, रेखाचित्र, प्रवाह चार्ट, सूत्र और प्रक्रियाएँ याद रखता है।
प्रश्न 12. गणित शिक्षण का महत्त्व एवं उपयोगिता बताइए।
उत्तर―गणित शिक्षण का महत्त्व शिक्षा के क्षेत्र में गणित का अत्यधिक महत्त्व है।
गणित का हमारे दैनिक जीवन में घनिष्ठ सम्बन्ध है। आधुनिक युग में सभ्यता का आधार
गणित ही है। मातृभाषा के अलावा ऐसा कोई विषय नहीं है जो हमारे दैनिक जीवन में इतना
अधिक सम्बन्धित हो। गणित को व्यापार का प्राण एवं विज्ञान का जन्मदाता माना जाता है।
वर्तमान समय में गणित को विद्यालय पाठ्य-विषयों में विशेष स्थान प्रदान किया गया है।
इसका प्रमुख कारण है कि यह जीवन के विभिन्न कार्यों को सीखने और करने में सहायता
करता है। विद्यार्थियों का मानसिक विकास करके उनकी बुद्धि को प्रखर बनाता है। यह
विद्यार्थियों में स्पष्टता, आत्मविश्वास, नियमितता, शुद्धता, एकाग्रता आदि गुणों को विकसित
करता है तथा चरित्र के निर्माण में सहायता करता है।
गणित शिक्षण की उपयोगिता–उपयोगिता की दृष्टि से गणित का हमारे जीवन में अत्यन्त
महत्त्वपूर्ण स्थान है। किसी भी विषय को पढ़ाने का कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता है।
बिना उद्देश्य के शिक्षण उस नाविक की नाव की भाँति है, जो कभी गन्तव्य पर नहीं पहुँचती
है। ये उद्देश्य समय के साथ बदलते रहते हैं। प्राचीन काल में गणित के अध्ययन का उद्देश्य
केवल दैनिक जीवन में आने वाली समस्याओं से सम्बन्धित था, परन्तु आज गणित शिक्षण
व अध्ययन के उद्देश्य बदल गये हैं। नयी शिक्षा प्रणाली सम्बन्धी दस्तावेज में कहा गया है
कि, “हमारा समाज एक तकनीकी युग की ओर अग्रसर है। केवल गणितीय कौशल प्राप्त
करना ही पर्याप्त नहीं हैं, हमें लोगों में गणित की ठोस दक्षता प्राप्त करने की आवश्यकता है।”
प्रश्न 13. मापन क्या है? यह हमारे दैनिक जीवन में किस प्रकार उपयोगी है?
उत्तर―मापन एक ऐसा हुनर है जो हर व्यक्ति के जीवन में जरूरी है। हममें हर व्यक्ति
को कुछ-न-कुछ नापना ही पड़ता है। हमें कुएँ से पानी खींचने के लिए रस्सी के नाप की
जरूरत पड़ सकती हैं, खिड़की दरवाजों के लिए पर्दे के कपड़े की लम्बाई बतानी होती है,
हमारे मकान के बेडरूप का साइज तय करना पड़ सकता है, इत्यादि। इन सभी मामलों में
नापने की बात आ जाती है। दरअसल मापन का अर्थ होता है कि किसी साइज को मात्रात्मक
रूप में पता/व्यक्त करना/जब मात्र गुणात्मक विवरण से काम न चले तो हम किसी चीज
की लम्बाई, क्षेत्रफल या आयतन दर्शाने के लिए उसे एक संख्या दे देते हैं। बच्चों के मापन
की कई प्रणालियाँ सीखनी पड़ती हैं। इनमें से लम्बाई, क्षेत्रफल, कोण और आयतन प्रारंभिक,
स्कूल के गणित में शामिल है।
प्रश्न 14. लम्बाई का मापन कैसे करेंगे?
उत्तर―मापन में अनुमान की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती हैं। अनुमान वह प्रक्रिया है जिसके
लिये, बिना किसी उपकरण अथवा कागज-पेन्सिल पर परिकलन के लिए, एक सन्निकट उत्तर
हासिल किया जाता है । इसके जरिये नाप की त्रुटियों को पहचानकर दूर भी किया जा सकता
है बशर्ते कि बच्चे के पास इतना अनुमान हुनर हो कि वह इस प्रश्न का उत्तर खोज ले कि
‘क्या मेरा उत्तर उचित लगता है?’ अनुमान एक तरह से मापन ही है जो दिमागी ढंग से किया
जाता है किसी जानी-पहचानी मानक या गैर-मानक इकाई के संदर्भ में किसी चीज को नापने
से पहले उसकी लम्बाई का अनुमान लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। तभी
तो वे मापन में प्राप्त संख्या का अर्थ देख पाएँगे। यदि कोई बच्चा गलती से मोटर स्केल
को उल्टा पकड़कर डिब्बे की लम्बाई नापने लगे जो 37 सेमी ऊँचा है, तो होगा यह कि
वह 60 सेमी का अंक पढ़कर आगे गिनने लगेगा, इकसठ, बासठ, त्रिसठ इत्यादि । मगर यदि
उसके नापने से पहले अनुमान लगाया है कि डिब्बा लगभग 40 सेमी ऊँचा है तो वह शायद
अपने मापन की जाँच करके अपनी गलती पकड़ लेगा।
प्रश्न 15. बच्चे गणित से डरते हैं। क्यों?
उत्तर―गणित का शिक्षक, मात, पिता, बड़े भाई, वहिन आदि को गणित सिखाते समय
गलती होने पर आँख दिखाए, उसे मारे तो बच्चा पहले अपने गणित सिखाने वाले से डरने
लगता है। बाद में गणित विषय से ही इसे डर लगता है तथा गणित पढ़ना नहीं चाहता।
गणित पढ़ाने वाले शिक्षकों को बच्चे गणित सीखने में रुचि लें इसके लिए उन्हें खेल-खेल
में गणित सिखाना चाहिए । शिक्षकों, माता, पिता, भाई, बहन की भाषा सरल व स्पष्ट न होने
पर भी बच्चे को गणित सीखने में दिक्कत पैदा करती हैं
                                               □□□

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