GJN 10th Hindi

Gujarat Board Class 10 Hindi Vyakaran कहावतें

Gujarat Board Class 10 Hindi Vyakaran कहावतें

GSEB Std 10 Hindi Vyakaran कहावतें

कहावत का अर्थ दिया जाता है और विकल्प के रूप में चार कहावतें दी जाती हैं। उनमें से सही विकल्प बताना होता है।

कहावत क्या है?

किसी घटना, प्रसंग आदि का वर्णन करते समय प्रयोग किए जानेवाले रूढ़ और मार्मिक कथन को ‘कहावत’ कहते हैं। कहावत की पृष्ठभूमि में कोई कहानी या घटना होती है। धीरे-धीरे जब यह रूढ हो जाती है तो कहावत बन जाती है।

कहावतें प्रायः पूर्ण वाक्य के रूप में होती हैं और किसी प्रसंग के अंत में आकर उसे स्पष्ट करने का कार्य करती है। जैसे यदि कोई व्यक्ति किसी काम को नहीं जानता और दूसरों को दोष देता है, तो उसकी इस बहानेबाजी को सूचित करने के लिए कहा जाता है- ‘नाच न जाने, आँगन टेढ़ा।’ अर्थात् नाचना आता नहीं, इसलिए आंगन को टेढ़ा (अनुपयुक्त या दोषपूर्ण) बताकर वह नाचने से बचना चाहता है। माता-पिता अपने कमाऊ बेटे का बुरा व्यवहार भी सहन कर लेते हैं। उनकी इस स्थिति को प्रकट करने के लिए कहा जाता है ‘दुधार गाय की लात भी भली।’ कभी-कभी कवियों की मार्मिक सूक्तियाँ भी कहावत का रूप ले लेती हैं। जैसे –

  1. ढाई अक्षर प्रेम के पड़े सो पंडित होय।
  2. रहिमन याचकता गहे बड़े छोट है जात।

कहावतों का प्रयोग करने के लिए उनके सूचितार्थं को समझना आवश्यक है। जैसे –

1. साँप भी मरे और लाठी भी न टूटे – काम भी हो जाए और कोई नुकसान भी न हो।
जहां बिना नुकसान उठाए काम करने की बात होती है, वहाँ इस कहावत का प्रयोग किया जाता है। जैसे –
ऐसा उपाय बताओ कि उससे रुपए भी मिल जाएं और सबंध भी न बिगड़े। ‘साँप भी मरे और लाठी भी न टूटे।’

2. जान बची तो लाखों पाए – नुकसान जो हुआ सो हुआ, जान तो बच गई।
कभी-कभी मनुष्य ऐसी विपत्ति में फंस जाता है कि उसकी जान जोखिम में पड़ जाती है। ऐसी स्थिति में यदि कोई हानि उठाकर भी प्राण बच जाते हैं, तो यह कम भाग्य की बात नहीं है! इसी बात को प्रकट करने के लिए इस कहावत का प्रयोग किया जाता है। जैसे –
अच्छा हुआ कि डाकू रुपए ही छीनकर भाग गए, मेरी जान नहीं ली। ‘जान बची तो लाखों पाए।’

3. आँख के अंधे, नाम नयनसुख – नाम और गुण में एकरूपता न होना।
कभी-कभी व्यक्ति का नाम उसके गुणों के बिलकुल विपरीत : होता है। ऐसी स्थिति में इस कहावत का प्रयोग किया जाता है। जैसे –
देखो तो सही, यह शान्तिलाल दंगे-फसाद में हमेशा आगे रहता है। सच ही है, ‘आँख के अंधे, नाम नयनसुख।’

महत्वपूर्ण कहावतें-सुभाषित और उनके अर्थ

निम्नलिखित कहावतों का अर्थ स्पष्ट कीजिए :

  1. नाम बड़े और दर्शन छोटे – नाम के विपरीत व्यक्तित्व होना।
  2. काला अक्षर भैस बराबर – बिलकुल अनपढ़ होना।
  3. बिना विचारे जो करै, सो पाछे पछिताय – बिना समझेबूझे काम करने पर बाद में पछताना पड़ता है।
  4. नाच न जाने, आँगन टेढ़ा – अपनी असमर्थता छिपाने के लिए बहाना बनाना।
  5. अपनी डफली अपना राग – मिलकर काम न करने पर कहा जाता है।
  6. स्वामी होनो सहज है, दुर्लभ होनो दास – स्वामी बनना आसान है, दास बनना कठिन है।
  7. सावन सूखे, न भादों हरे – अच्छे-बुरे समय में एक-सा अपरिवर्तित रहना।
  8. दूध का दूध, पानी का पानी – सच्चा न्याय करना।
  9. नो नगद, न तेरह उधार – कुछ न मिलने की अपेक्षा थोड़ा बहुत मिल जाना भी बेहतर है।
  10. न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी – कार्य न करने के लिए कारण को ही तहस-नहस कर देना।
  11. जिसकी लाठी उसकी भैंस – संसार में सब जगह बलवान व्यक्ति की ही विजय होती है।
  12. सौ सुनार की, एक लुहार की – कमजोर की सौ चोटें तथा बलवान की एक चोट बराबर होती है।
  13. दुधार गाय की लात भी भली – जिससे लाभ हो उसकी झिड़कियाँ भी सहनी पड़ती हैं।
  14. साँप भी मरे और लाठी भी न टूटे – बिना किसी तरह का नुकसान सहे काम पूरा करना।
  15. चार दिनों की चाँदनी फिर अंधेरी रात – जीवन में सुख थोड़े दिनों के लिए या अल्पकाल के लिए होता है।
  16. जहाँ चाह वहाँ राह – दृढ इच्छा हो तो कोई न कोई रास्ता मिल ही जाता है।
  17. किसी का घर जले कोई तापे – एक के नुकसान से । जब दूसरा लाभ उठाए।
  18. सिर मुंडाते ही ओले पड़े – कार्य के आरंभ में ही विघ्न आया।
  19. रस्सी जल गई, बल न गया – बरबाद होने पर भी अपनी अकड़ न छोड़ना।
  20. घर का भेदी लंका ढावे – आपस की फूट से अपना ही सर्वनाश होता है।
  21. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता – बड़ा काम एक आदमी से नहीं हो सकता।
  22. दूर के ढोल सुहावने लगे – सभी चीजें दूर से ही अच्छी लगती हैं।
  23. आंख के अंधे, नाम नयनसुख – गुण के विरुद्ध नाम होना।
  24. करत-करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान – किसी विषय का निरंतर अभ्यास करने से मूर्ख व्यक्ति भी पारंगत हो जाता है।
  25. करेला और नीम चढ़ा – स्वाभाविक कटुता हो और किसी कारण उसमें वृद्धि हो तब कहा जाता है।
  26. हाथ कंगन को आरसी क्या? – जो बात या घटना प्रत्यक्ष हुई हो उसके लिए किसी प्रकार के प्रमाण की आवश्यकता नहीं है।
  27. पराधीन सपने हूँ सुख नहीं – परतंत्र व्यक्ति को सपने में भी सुख प्राप्त नहीं होता।
  28. कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तैली? – दो व्यक्तियों की योग्यता में जमीन-आसमान का फर्क होना।
  29. अधजल गगरी छलकत जाय – अल्प ज्ञानी अधिक ज्ञानी होने का स्वांग करता है।
  30. अंधा क्या चाहे, दो आँखें – किसी के पास जिस वस्तु की कमी होती है, उसी की वह कामना करता है।
  31. अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत – कोई काम बिगड़ जाने के बाद उस पर पश्चात्ताप करना व्यर्थ है।
  32. तेते पांव पसारिये, जेती लांबी सौर – अपनी शक्ति के अनुसार ही खर्च करना चाहिए।
  33. अंधेर नगरी चौपट राजा – अधिकारी अयोग्य होने पर सारे काम बिगड़ते हैं।
  34. दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम – जिसका मन अस्थिर हो वह किसी प्रकार का लाभ प्राप्त नहीं कर सकता।
  35. अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है – अपने घर पर या मुहल्ले में कमजोर आदमी भी वीरता प्रदर्शित करता है।
  36. अन्धों में काना राजा – मूल् के समुदाय में थोड़ा-बहुत पढ़ा-लिखा आदमी भी पंडित माना जाता है।
  37. जैसी करनी वैसी भरनी – अच्छे काम करने से अच्छा और बुरे काम करने से बुरा फल मिलता है।
  38. आटे के साथ घन भी पिसता है – दोषी आदमी के साथ रहनेवाले निर्दोष आदमी को भी परेशानी उठानी पड़ती है।
  39. आम खाने से काम, पेड़ गिनने से क्या? – मतलब की बात करनी चाहिए, बेमतलब की नहीं।
  40. तू डाल-डाल, मैं पात-पात – एक चालाक हो और दूसरा उससे भी बढ़कर चालाक हो।
  41. एक तरफ खाई, एक तरफ खंदक – दोनों तरफ संकट होना।
  42. मुख में राम बगल में छुरी – कथनी और करनी में अंतर होना।

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