GJN 10th Hindi

Gujarat Board Class 10 Hindi Vyakaran समास

Gujarat Board Class 10 Hindi Vyakaran समास

GSEB Std 10 Hindi Vyakaran समास

समास के बारे में प्रश्न इस प्रकार होंगे:

दिए हुए, चार समास में से सूचित समास बताना।
दिए समास के चार प्रकारों में से रेखांकित समास का प्रकार बताना।

निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित शब्दों का अध्ययन कीजिए।

अ: आजकल वह दिन और रात काम करता है।
आजकल वह दिन-रात काम करता है।

ब: राजा ने उसे सेना का नायक बनाया।
राजा ने उसे सेनानायक बनाया।

क: कालिदास महान कवि थे।
कालिदास महाकवि थे।

ड: मेघों से मंडित आकाश की शोभा निराली होती है।
मेघमंडित आकाश की शोभा निराली होती है।

च : मैं शक्ति के अनुसार काम करूंगा।
मैं यथाशक्ति काम करूंगा।

‘अ’ विभाग के पहले वाक्य में ‘दिन और रात’ रेखांकित शब्द हैं। उनके बीच का ‘और’ हटाकर दूसरे वाक्य में ‘दिन-रात’ शब्द का प्रयोग हुआ है।
‘ब’ विभाग के पहले वाक्य में ‘सेना का नायक’ रेखांकित शब्द हैं। दूसरे वाक्य में ‘सेना’ और ‘नायक’ शब्दों के बीच की सम्बन्धकारक विभक्ति ‘का’ को हटाकर ‘सेनानायक’ शब्द का प्रयोग किया गया है।
‘क’ विभाग के पहले वाक्य में ‘महान कवि’ रेखांकित शब्द हैं। दूसरे वाक्य में ‘महान’ से ‘न’ को हटाने से बने ‘महाकवि’ शब्द का प्रयोग हुआ है। –
‘ड’ विभाग के पहले वाक्य में ‘मेघों से मंडित’ शब्दसमूह के बदले दूसरे वाक्य में ‘मेघमंडित’ शब्द का प्रयोग हुआ है। ‘मेघों से मंडित’ की ‘से’ विभक्ति हटाने से दोनों शब्द मिल गए हैं और उनका एक शब्द बना है।
‘च’ विभाग के पहले वाक्य में ‘शक्ति के अनुसार’ के बदले दूसरे वाक्य में ‘यथाशक्ति’ शब्द का प्रयोग हुआ है।

प्रत्येक विभाग के दोनों वाक्यों में प्रयुक्त रेखांकित शब्दसमूहों में अर्थं का भेद नहीं है। उनके बीच आनेवाली विभक्ति या अन्य शब्द को हटाकर उन्हें मिला दिया गया है और एक स्वतंत्र शब्द का रूप दे दिया गया है। परस्पर सम्बन्ध रखनेवाले शब्दों के इस तरह के मेल को ‘समास’ कहते हैं।

इस प्रकार जब दो या अधिक शब्द मिलकर एक स्वतंत्र शब्द बनता है, तो उसे ‘समास’ कहते हैं।

समास के शब्दों (पदों) का परस्पर सम्बन्ध प्रकट करने की क्रिया को ‘विग्रह’ कहते हैं।

समास के मुख्य प्रकार :

द्वन्द्व समास:

नीचे दिए हुए वाक्य पढ़िए:

  • सफलता के लिए उसने रात-दिन एक कर दिया।
  • वह अपने माता-पिता की बात नहीं टालता।
  • मंदिर में हमने राधा-कृष्ण के दर्शन किए।
  • खेल में हार-जीत तो होती ही रहती है।
  • उन्हें लाभ-हानि की चिंता नहीं थी।

ऊपर के वाक्यों में रेखांकित सामासिक शब्दों पर ध्यान दीजिए। इन सामासिक शब्दों में दोनों पद (शब्द) प्रधान हैं, अर्थात् इन शब्दों के बीच समानता का सम्बन्ध है। इस प्रकार के समास में दोनों शब्दों के बीच आनेवाला समुच्चयबोधक ‘और’, ‘अथवा’ / ‘या’ लुप्त रहता है। ऐसे समासों का विग्रह इस प्रकार होगा :

  • रात-दिन-रात और दिन
  • माता-पिता-माता और पिता
  • राधा-कृष्ण-राधा और कृष्ण
  • हार-जीत – हार या जीत
  • लाभ-हानि – लाभ या हानि

इस प्रकार के समास को द्वन्द्व समास कहते हैं।

द्वन्द्व समास का विग्रह करते समय पहले और दूसरे पदों के बीच १ ‘और’, ‘या’, ‘अथवा’ अव्ययों का प्रयोग किया जाता है।
द्वन्द्व समास के दोनों पद संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण या क्रियाविशेषण हो सकते हैं। जैसे –

  • भाई-बहन – भाई और बहन (संज्ञा)
  • हम-तुम – हम और तुम (सर्वनाम)
  • भला-बुरा-भला या बुरा (विशेषण)
  • ऊपर-नीचे-ऊपर या नीचे (क्रियाविशेषण)

कभी-कभी द्वन्द्व समास में दो से अधिक पद भी होते हैं। जैसे – तन-मन-धन
इस समास का विग्रह भी ऊपर बताए तरीके से ही होता है। जैसे – तन और मन और धन

द्विगु समास:

कुछ सामासिक शब्द संख्यावाची शब्दों की सहायता से बनते है। जैसे

  • पंचतत्त्व – पांच तत्त्वों का समूह
  • त्रिभुवन – तीन भुवनों का समूह
  • सप्तर्षि – सात ऋषियों का समूह
  • दोपहर – दो पहरों का समूह
  • नवरात्रि- नव (नौ) रातों का समूह

इन समासों में पहला पद क्रमश: ‘पंच’ (पांच), ‘त्रि’ (तीन), ‘सप्त’ (सात), ‘दो’ और ‘नव’ (नौ) हैं। ये सब संख्यावाची पद हैं। इनके दूसरे पद के रूप में क्रमश: ‘तत्त्व’, ‘भुवन’, ‘ऋषि’, ‘पहर’ और ‘रात्रि’ संज्ञा-पद आए हैं।
प्रत्येक समास का पहला पद दूसरे पद की संख्या सूचित करता है। ऐसे समास को द्विगु समास कहते हैं।

द्विगु समास के कुछ अन्य उदाहरण :

  • चौराहा – चार राहों का समूह
  • पंचवटी – पाँच वटों (वटवृक्षों) का समूह
  • षडरस – षड़ (छ:) रसों का समूह
  • अष्टधातु – आठ धातुओं का समूह
  • त्रिमूर्ति – तीन मूर्तियों का समूह

तत्पुरुष समास:

नीचे दिए हुए वाक्य पढ़िए :

  • राजपुत्र ने अपना वचन निभाया।
  • देवी मुण्डमाला पहने हुए थीं।
  • सुखप्राप्त व्यक्ति कब किसी की परवाह करता है?
  • मुनि ध्यानमग्न थे।
  • उनका व्यवहार प्रेमपूर्ण था।

उपर्युक्त वाक्यों के रेखांकित पद सामासिक शब्द हैं। उनका विग्रह निम्न प्रकार से होता है:

  • राजपुत्र – राजा का पुत्र
  • मुण्डमाला – मुण्डों की माला
  • सुखप्राप्त – सुख को प्राप्त
  • ध्यानमग्न – ध्यान में मग्न
  • प्रेमपूर्ण – प्रेम से पूर्ण

इन समासों के विग्रह में का, की, को, में, से – इन कारकविभक्तियों का प्रयोग हुआ है। ‘का’ और ‘की’ विभक्तियाँ सम्बन्धकारक की हैं। ‘को’ विभक्ति कर्मकारक की है। ‘में’ विभक्ति अधिकरणकारक की है। ‘से’ विभक्ति करणकारक की है। सामासिक शब्दों में इन विभक्तियों का लोप हो गया है।

ऊपर जो सामासिक शब्द दिए गए हैं, उनमें पहला पद गौण और दूसरा पद प्रधान (मुख्य) है तथा पहले पद की कारक-विभक्ति का लोप हुआ है। ऐसे समासों को तत्पुरुष समास कहते हैं।

तत्पुरुष समास के कारकों की विभक्तियों पर आधारित निम्नलिखित प्रकार (भेद) हैं:

तत्पुरुष समास का एक अन्य प्रकार भी है, जिसे ‘उपपद तत्पुरुष’ कहते हैं।

जब तत्पुरुष समास का दूसरा पद ऐसा कृदंत हो जिसका स्वतंत्र उपयोग न हो सकता हो, तब उस समास को उपपद समास कहते हैं। जैसे –

  • गिरिधर – गिरि को धारण करनेवाला
  • राजनीतिज्ञ – राजनीति को जाननेवाला
  • मनोहर – मन को हरनेवाला

अव्ययीभाव समास :

नीचे दिए हुए वाक्य पढ़िए :

  • मैं यथाशक्ति आपकी सहायता करूंगा।
  • उसने आजन्म देश की सेवा की।
  • महाराज प्रतिदिन सुबह प्रार्थना करते थे।

उपर्युक्त वाक्यों के रेखांकित शब्दों में पहला शब्द अव्यय है और पूरा शब्द अव्यय के रूप में प्रयुक्त हुआ है। ऐसे सामासिक शब्दों को अव्ययीभाव समास कहते हैं। हिन्दी में संज्ञा की द्विरुक्ति होने पर भी अव्ययीभाव समास बनता है। जैसे – रोम-रोम, दिन-दिन, घर-घर आदि।

उपर्युक्त सामासिक शब्दों का विग्रह निम्न प्रकार से होता है –

  • यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार
  • आजन्म – जन्म (जीवन) तक
  • प्रतिदिन – प्रत्येक दिन
  • रोम-रोम – प्रत्येक रोम
  • दिन-दिन- प्रत्येक दिन

अव्ययीभाव समास के कुछ अन्य उदाहरण :

  • यथाविधि – विधि के अनुसार
  • यथामति – मति के अनुसार
  • यथार्थ – अर्थ के अनुसार
  • प्रतिक्षण – प्रत्येक क्षण
  • प्रतिवर्ष – प्रत्येक वर्ष
  • आमरण – मरण तक
  • प्रत्यक्ष- आँखों के सामने
  • परोक्ष – आँखों से परे

कर्मधारय समास:

नीचे दिए हुए वाक्य पढ़िए :

  • कालिदास महाकवि थे।
  • शर्माजी बड़े सज्जन हैं।
  • चलते-चलते सीता के चरण-कमल मुरझा गए।
  • धरतीमाता बड़ी उदार है।
  • श्रीकृष्ण पीताम्बर धारण किए हुए थे।

इन वाक्यों के रेखांकित सामासिक शब्दों की रचना पर ध्यान दीजिए :

  • पहले वाक्य के ‘महाकवि’ शब्द में ‘महा’ और दूसरे वाक्य के ‘सज्जन’ शब्द में ‘सत्’ विशेषण हैं।
  • तीसरे वाक्य में सीता के कोमल चरणों की तुलना कमलों से की चौथे वाक्य में धरती को माता की उपमा दी गई है। पांचवें वाक्य . में ‘अम्बर’ के साथ ‘पीत’ (पीला) विशेषण आया है।
  • जिस समास का पहला पद विशेषण हो और दूसरा पद विशेष्य हो अथवा जिस समास द्वारा तुलना या उपमा प्रकट की गई हो, उसे कर्मधारय समास कहते हैं।
  • कर्मधारय समास के उपर्युक्त सामासिक शब्दों का विग्रह निम्न प्रकार से होता है:
  • महाकवि – महान कवि
  • सज्जन – सत् (अच्छा) जन
  • चरण-कमल – चरणरूपी कमल, कमल जैसे चरण
  • धरतीमाता – धरती ही माता, धरतीरूपी माता
  • पीताम्बर – पीत (पीला) अम्बर (वस्त्र)

मध्यमपदलोपी समास :

नीचे दिए हुए सामासिक पदों का विग्रह देखिए :

पद-यात्रा – पदों – पैरों से चलकर की जानेवाली यात्रा
सिंहासन – सिंह की आकृतिवाला आसन ।

इस समास में पूर्वपद और उत्तरपद के बीच सम्बधित शब्दों का लोप होता है। समास का विग्रह करते समय उन्हीं लुप्त पदों को शामिल कर दिया जाता है। जैसे –

पहले समास में ‘पद’ और ‘यात्रा’ पदों के बीच ‘चलकर की जानेवाली’ पदों का प्रयोग किए बिना उनका सही विग्रह नहीं हो पाएगा। इसलिए ‘चलकर की जानेवाली’ लुप्त पदों को विग्रह में शामिल किया गया है।

इसी तरह दूसरे समास में ‘सिंह’ और ‘आसन’ पदों के बीच : विग्रह करते समय ‘आकृतिवाला’ पद जोड़ा गया है। ऐसे समास को मध्यमपदलोपी समास कहते हैं। मध्यमपदलोपी : समास कर्मधारय समास का ही एक भेद है।

मध्यमपदलोपी समास के कुछ अन्य उदाहरण :

  • पर्ण-कुटीर – पर्ण से बना हुआ कुटीर
  • प्रेमालिंगन – प्रेम से पूर्ण आलिंगन
  • वन-फूल – वन में खिलनेवाला फूल

बहुव्रीहि समास :

नीचे दिए हुए वाक्य पढ़िए :

  • चन्द्रमौलि की महिमा अपार है।
  • भगवान चक्रपाणि तुरन्त आ पहुंचे।
  • वह सुन्दर तो है ही, सुशीला भी है।
  • मैं अपने काम में दत्तचित्त हो गया।
  • भगवान पीताम्बर ने द्रौपदी की पुकार सुन ली।

पहले वाक्य में ‘चन्द्रमौलि’ शब्द का अर्थ है – चंद्र है मौलि (मस्तक) पर जिसके वह। यह सामासिक शब्द भगवान शिव का निर्देश करता है।

दूसरे वाक्य में ‘चक्रपाणि’ शब्द का अर्थ है – चक्र है पाणि (हाथ) में जिसके वह। यह सामासिक शब्द श्रीकृष्ण की ओर संकेत करता है।

तीसरे वाक्य में ‘सुशीला’ शब्द का अर्थ है – अच्छा है शील जिसका वह (स्त्री)। यह सामासिक शब्द वाक्य में निर्दिष्ट सुंदर स्त्री की विशेषता बताता है।

चौथे वाक्य के ‘दत्तचित्त’ शब्द का अर्थ है- दत्त है चित्त जिसका वह अर्थात् जिसने काम में अपना चित्त लगा दिया है वह। यह सामासिक शब्द सर्वनाम ‘मैं’ की विशेषता बताता है।

पांचवें वाक्य में ‘पीताम्बर’ शब्द का अर्थ है – पौत (पीला) है अम्बर (वस्त्र) जिसका वह अर्थात् श्रीकृष्ण। श्रीकृष्ण अथवा विष्णु पीताम्बर धारण करते हैं। इसलिए ‘पीताम्बर’ सामासिक शब्द श्रीकृष्ण (या विष्णु) का वाचक है।

इन सामासिक शब्दों में पहले या दूसरे किसी पद का प्राधान्य नहीं है, किन्तु पूरा समास किसी अन्य की ओर संकेत करता है।

जिस समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता और जो अपने पदों से भिन्न किसी संज्ञा की विशेषता सूचित करता है, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं।

बहुव्रीहि समास के कुछ अन्य उदाहरण :

  • दीर्घायु – दीर्घ (लम्बी) है आयु जिसकी वह
  • चारपाई – चार है पाइयाँ (पाये) जिसकी वह
  • प्रज्ञाचक्षु – प्रज्ञा है चक्षु जिसका वह
  • अल्पमति – अल्प (कम) है मति जिसकी वह
  • गजानन – गज (हाथी) के आनन (मुख) के समान आनन है जिसका वह

महत्वपूर्ण समास और उनके प्रकार

  • सत्यव्रत – बहुव्रीहि समास
  • घनश्याम – कर्मधारय समास
  • मदमाता – तत्पुरुष समास
  • मनोहर – उपपद तत्पुरुष समास
  • गंगाजल – तत्पुरुष समास
  • अम्बर – अवनी – द्वन्द्व समास
  • स्वर्ग – अपवर्ग – द्वन्द्व समास
  • महारथी – कर्मधारय समास
  • कण्जलपुता – तत्पुरुष समास
  • श्रमरत – तत्पुरुष समास
  • स्वर्ग-सुख – तत्पुरुष समास
  • मंदिर-मस्जिद – द्वन्द्व समास
  • खून-पसीना – द्वन्द्व समास
  • विद्याधर – उपपद तत्पुरुष समास
  • गिरधारी – उपपद तत्पुरुष समास
  • ब्रह्मलेख – तत्पुरुष समास
  • अयग्रस्त – तत्पुरुष समास
  • महावन – कर्मधारय समास
  • अतिथिदेव – कर्मधारय समास
  • आजीवन – अव्ययीभाव समास
  • सुख-दु:ख – द्वन्द्व समास
  • गगनचुम्बी – उपपद तत्पुरुष समास
  • दुअन्नी – द्विगु समास
  • महानगर – कर्मधारय समास
  • करकमल – कर्मधारय समास
  • महात्मा – बहुव्रीहि समास
  • कमलनयन – कर्मधारय समास
  • परदेश – कर्मधारय समास
  • बेचैन – बहुव्रीहि समास
  • गृहस्वामी – तत्पुरुष समास
  • निष्प्राण – बहुव्रीहि समास
  • सुशील – बहुव्रीहि समास
  • यथार्थ – अव्ययीभाव समास
  • जीवन – शाला – कर्मधारय समास
  • प्रियदर्शन – बहुव्रीहि समास
  • निर्जीव – बहुवीहि समास
  • दत्तचित्त – बहुव्रीहि समास
  • सूर्य-प्रतिमा – तत्पुरुष समास
  • आकाशवाणी – मध्यमपदलोपो समास
  • चौराहा – द्विगु समास
  • बहुमूल्य – बहुव्रीहि समास
  • मनोवृत्ति – तत्पुरुष समास
  • समाजसेवा – तत्पुरुष समास
  • जीवनयात्रा – कर्मधारय समास
  • कलाकार – उपपद तत्पुरुष समास
  • युद्धभूमि – तत्पुरुष समास
  • भारतमाता – कर्मधारय समास
  • अंधविश्वास – कर्मधारय समास
  • विशेषज्ञ – उपपद तत्पुरुष समास
  • जड़ी-बूटी – द्वन्द्व समास
  • शांतिप्रिय – बहुव्रीहि समास
  • धर्मविरुद्ध – तत्पुरुष समास

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