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Haryana Board 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ

Haryana Board 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ

HBSE 10th Class Civics लोकतंत्र की चुनौतियाँ Textbook Questions and Answers

अध्याय का संक्षिप्त परिचय

1. लोकतंत्र और आधुनिक विश्व – समकालीन विश्व में लोकतंत्र शासन का एक प्रमुख रूप है । इसको कोई गंभीर चुनौती नहीं है और न ही कोई दूसरी शासन प्रणाली इसकी प्रतिद्वंद्वी है ।
2. चुनौती- कोई ऐसी कठिनाई जिसके भीतर उससे छुटकारा मिलने की संभावना छुपी होती है।
3. लोकतंत्र के सम्मुख प्रमुख चुनौतियाँ- 
(1) लोकतांत्रिक सरकार गठित करने के लिए बुनियादी आधार बनाने की चुनौती,
(2) लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती,
(3) लोकतंत्र को मजबूत बनाने की चुनौती |
4. बुनियादी आधार मजबूत करने की चुनौती के बिंदु – 
(1) मौजूदा गैर-लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था को गिराना,
(2) सत्ता पर सेना के नियंत्रण को समाप्त करना,
(3) एक संप्रभु तथा कारगर शासन व्यवस्था स्थापित करना ।
5. विस्तार की चुनौती के बिंदु – 
(1) स्थानीय सरकारों को अधिक अधिकार संपन्न बनाना,
(2) संघ की सभी इकाइयों के लिए संघ के सिद्धांतों को व्यावहारिक स्तर पर लागू करना,
(3) महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदायों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करना,
(4) कम-से-कम चीजें लोकतांत्रिक नियंत्रण से बाहर रहनी चाहिएँ ।
6. लोकतंत्र को मजबूत करने की चुनौती के बिंदु –
(1) लोकतांत्रिक संस्थाओं और बर्तावों को मजबूत करना,
(2) संस्थाओं की कार्य-पद्धति को सुधारना ,
(3) लोकतंत्र में लोगों की भागीदारी और नियंत्रण में वृद्धि करना ।
7. लोकतांत्रिक सुधार – लोकतंत्र की विभिन्न चुनौतियों के बारे में दिए गए सभी सुझाव |
8. भारत में राजनीतिक सुधारों के तरीके- 
(1) कानून बनाकर,
(2) राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा,
(3) राजनीतिक दलों के द्वारा,
(4) राजनीतिक रूप से सचेत नागरिकों द्वारा ।
9. समकालीन राजनेताओं के बारे में लोगों की सोच – लोग समकालीन नेताओं को भ्रष्टाचार, दल-बदल, जातिवाद, सांप्रदायिक दंगे और अपराध जैसी हर गड़बड़ के लिए जिम्मेदार मानते हैं ।
10. नेताओं को सुधारने में लोगों की भूमिका- लोग चुनावों में दिलचस्पी लेकर व चौकस रहकर भ्रष्ट व खराब नेताओं को हटाएँ तथा अच्छे लोगों का चुनाव करें ।
11. लोकतंत्र की पुनर्परिभाषा के बिंदु – 
(1) लोग शासकों का चुनाव खुद करते हैं ।
(2) लोगों द्वारा चुने गए शासक ही सारे प्रमुख फैसले लेते हैं,
(3) चुनाव में लोगों को वर्तमान शासक बदलने का पर्याप्त अवसर मिलता है,
(4) लोकतंत्र बहुमत का तानाशाही या क्रूर शासन नहीं हो सकता है ।

HBSE 10th Class Civics लोकतंत्र की चुनौतियाँ Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. इनमें से प्रत्येक कार्टून लोकतंत्र की एक चुनौती को देखता है। बताएं कि वह चुनौती क्या है? यह भी बताएं कि इस अध्याय में चुनौतियाँ की जो तीन श्रेणियाँ बताइ गई हैं, यह उनमें से किस श्रेणी की चुनौती है।
उत्तर- (i) मुबारक फिर चुने गए
यह कार्टून चुनावों में सशक्त लोगों के प्रस्ताव को व्यक्त करता है। अनेक देशों में लोकतंत्र को मजबूत करने की जरूरत है। यह तीसरी प्रकार की चुनौती है:
लोकतात्रिक संस्थाओं को मजबूत करना।

(ii) लोकतंत्र पर नजर
यह कार्टून इस तथ्य पर जोर देता है कि ऐसे क्षेत्रों में जहाँ लोकतंत्र है ही नहीं, वहाँ लोकतंत्र को बुनियादी रूप से शुरू करने की जरूरत है। यह पहली प्रकार की चुनौती हैः
बुनियादी लोकतंत्रिक व्यवस्थाओं को आरंभ करना, जहाँ लोकतंत्र नहीं है।

(iii) उदारवादी लैंगिक समानता
यह कार्टून इस तथ्य पर जोर देता है कि लोकतंत्र के दायरे में महिलाओं की भागीदारी को सम्मिलित करने की जरूरत है। यह दूसरी प्रकार की चुनौती है।
लोकतंत्र का प्रसार लोकतांत्रिक संस्थाओं में अनेकों समूहों व महिलाओं के योगदान पर बल देना।

(iv) चुनाव अभियान का पैसा की भूमिका
यह कार्टून स्पष्ट करता है कि लोकतंत्र में चुनावों के दौरान धन का कितना अधिक महत्त्व होता है। अमीर व सशक्त व्यक्ति चुनावों में पैसा लगाकर अपने समर्थन के लोगों को निर्णय-निर्माण की स्थिति में ले आते हैं। यह तीसरी प्रकार की चुनौती है :
लोकतंत्र में किसी वर्ग विशेष का प्रभाव नहीं होना चाहिए। इससे लोकतंत्र कमजोर पड़ता है।

प्रश्न 2. लोकतंत्र की अपनी यात्रा के सभी महत्त्वपूर्ण पड़ावों पर लौटने से हम हमारी यादें ताज़ा कर सकते हैं तथा उन पड़ावों पर लोकतंत्र के समाने वाली कौन-सी चुनौतियाँ देखते हैं?
उत्तर-
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प्रश्न 3. अब जबकि आपने इन सभी चुनौतियों को लिख डाला है तो आइए इन्हें कछ बड़ी श्रेणियों में डालें नीचे लोकतांत्रिक राजनीति में कुछ दायरों को खानों में रखा गया है। पिछले खंड में एक या एक से अधिक देशों में आपने कुछ चुनौतियाँ लक्ष्य की थी। कुछ कार्टूनों में भी आपने इन्हें देखा। आप चाहे तो नीचे दिए गए खानों के समाने मेल का ध्यान रखते हुए इन चुनौतियों को लिख सकते हैं। इनके अलावा भारत में भी इन खानों में भी दिए जाने वाले एक-एक उदाहरण दर्ज करें। अगर आपको कोई चुनौती इन खानों में फिट बैठती नहीं लगती तो आप नयी श्रेणियाँ बनाकर उनमें इन मुद्दों को रख सकते हैं।
उत्तर –
संवैधानिक बनावट
घाना : नए संविधान की आवश्यकता हैं
म्यांमार : लोकतांत्रिक की बहाली के लिए नया संविधान बनाया जाए।? सऊदी अरब : लोकतंत्र की स्थापना व समान अधिकार
भारत : संविधान का समय-समय पर मूल्यांकन।

लोकतांत्रिक अधिकार
दक्षिणी अफ्रीका : संविधान को लागू करके लोकतांत्रिक अधिकारों को प्रयोजन
चीली : कभी देशों से बाहर निकाले गए दलों की वापसी हो।
म्यांमार : सू को छोड़ा जाए।
भारत : महिलाओं के लिए केन्द्र व राज्यों में 33% आरक्षण की व्यवस्था।

संस्थाओं का काम काज
चीली : नागरिक नियंत्रण में वृद्धि
घानाः कार्यपालिका अध्यक्ष का नियमित व सामाजिक चुनाव व प्रभावकारी संस्थाओं की व्यवस्था।
भारत : राजकीय संस्थाओं में भ्रष्टाचार उन्मूलन के प्रयास किए जाएं।

चुनाव
पोलैंड : राजनीतिक दलों के दायरे में सामान्य चुनाव हो।
म्यांमार : बहुदलीय व्यवस्थाओं के दायरे में चुनाव कराए जाएं।
भारत : निपष्क्ष, नियमित, स्वतंत्र, सामायिक चुनाव।
पाकिस्तान : लोकतंत्र को बहाली के आम चुनाव हों।
इराक : बहुदलीय व्यवस्था का प्रयोजन व चुनाव

संघवाद विकेंद्रीकरण
घाना : संघीय सिद्धांतों का प्रयोजन व उनका सूचार कार्य संचालन
भारत : केन्द्र-राज्य संबंधों का सामाजिक मूल्यांकन तथा सूभावित सुझावों का कार्यरूप हो।

विविधता को समेटना
इराक, श्रीलंका, सऊदी अरब, यूगोस्लाविया, नेपाल आदि देशों में सामाजिक विविधताओं में परस्पर तालमेल हो। भारतः विभिन्न सामाजिक वर्गों के उत्थान के प्रयास किए जाएँ।

राजनीतिक संगठन
म्यांमार : में सामाजिक संगठनों को दल बनाने की अनुमति हो; नेपाल में संविधान सभा का निर्माण हो;
अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के महत्त्व का सम्मान हो।

कोई अन्य श्रेणी सामाजिक व आर्थिक विकास
भारत : सामाजिक संगठनों का भ्रष्टाचार नेताओं पर नियंत्रण हो। विभिन्न देशों में आर्थिक-सामाजिक विकास हेतु योजनाएं बनायी जाएं लोकतंत्रा की सफलता के लिए सामाजिक-आर्थिक नींव मजबूत होनी चाहिए। भारत के आधुनिकीकरण हेतु आर्थिक विकास पर जोर तथा सामाजिक तालमेल के महत्त्व पर बल दिया जाए। राष्ट्रीय एकता व अखण्डता किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था को सशक्त बनाती है। किसी देश में इनकी चुनौतियां गंभीर हो सकती है। अतः सभी देशों में सद्भावना, सहनशीलता
परस्पर संबंध आदि को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

कोई अन्य श्रेणी राष्ट्रीय एकता
भारत : एकता व अखंडता विकास की पूंजी है।

प्रश्न 4. इन श्रेणियों का नया वर्गीकरण करें। इन बार इसके लिए हम उन मानकों को आधार बनाएंगे जिनकी चर्चा अध्याय के पहले हिस्से में हुई है। इन सभी श्रेणियों के लिए कम-से-कम एक उदाहरण भारत से भी खोजे।
उत्तर- आधार तैयार करने की चुनौतियाँ – म्यांमार, सऊदी अरब तथा अन्य उन सभी देशों में जहाँ लोकतंत्र नहीं है, वहां लोकतंत्र की स्थापना के लिए बुनियादी वातावरण बनया जाए। पाकिस्तान में लोकतंत्र की
बहाली हो।
विस्तार की चुनौती – आयरलैण्ड, इराक, श्रीलंका, मैक्सिकों, इन जैसे अन्य देशों में लोकतंत्र के विस्तार हेतु बाधाएं दूर करायी जाएं तथा उसके विस्तार के लिए अधिकाधिक लोगों व समूहों को लोकतंत्र में सम्मिलित किया जाए।
लोकतंत्र को गहराई तक मजबूत बनाने की चुनौती –
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, बेल्जियम, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में लोकतंत्र के संचालन में पैसे, जोर-जबदस्ती, अपराधीकरणर आदि को रोका जाए। भारत में लोकतंत्र के संचालन के लिए संस्थात्मक बाधाएं व स्वच्छ शासन दिए जाने के प्रभाव हैं।

आइए, अब सिर्फ भारत के बारे में विचार करें। समकालीन भारत के लोकतंत्र के सामने मौजूद चुनौतियों पर गौर करें। इनमें से उन पाँच की सूची बनाइए जिन पर पहले ध्यान दिया जाना चाहिए। यह सूची प्राथमिकता को भी बताने वाली होनी चाहिए यानी आप जिस चुनौती को सबसे महत्त्वपूर्ण और भारी मानते हैं उसे सबसे ऊपर रखें। शेष को इसी फ्रम से बाद में। ऐसी चुनौती का एक उदाहरण दें और बताएं कि आपकी प्राथमिकता में उसे कोई खास जगह क्यों दी गई है।
उत्तर-
im

प्रश्न 5. अच्छे लोकतंत्र को परिभाषित करने के लिए अपना मत दीजिए। (अपना नाम लिखें) क, ख, ग, की अच्छे लोकतंत्र की परिभाषा (अधिकतम 50 शब्दों में)
उत्तर- लोकतंत्र शासन का वह रूप है जहाँ समस्त शासन की नींव लोगों की सहमति पर आधारित होती है, लोग सरकार बनाते हैं, लोग सरकार चलाते हैं। तथा सरकार भी लोगों के हित में काम करती है। लोकतंत्र शासन के रूप में अतिरिक्त एक स्वच्छ सामाजिक व्यवस्था है जहाँ सब वर्ग सद्भावना व सहयोग से एक-दूसरे के साथ रहते हुए सामुदायिक एकता को मजबूत बनाते हैं। विशेषाताएँ [सिर्फ बिंदुवार लिखें। जितने बिंदु आप बताना चाहें उतने बता सकते हैं। इसे कम-से-कम बिंदुओं में निपटने का प्रयास करें।]

  1. समानता लोकतंत्र की एक प्रमुख विशेषता है: लोगों का एक समान समझा जाना।
  2. स्वतंत्रता समानता के साथ मिल एक लोकतांत्रिक समाज बनती है। इस से अभिप्राय है : सरकार तक अपनी बात कहने की छूट।
  3. कल्याणकारिता लोकतंत्र की एक अन्य विशेषता है: लोकतांत्रिक सरकार सर्वहित व सर्वकल्याण हेतु शासन करती है।
  4. बन्धुत्व वह भाव है जो लोकतंत्र को सीमेंट प्रदान करता है। लोगों में एकता अखण्डता, सामंजस्य, सहनशीलता सहयोग।
  5. जनसहमति, जनमत, जागृति-लोकतांत्रिक की अन्य विशेषताएं।
परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न [Long – Answer Type Questions] 
प्रश्न 1. लोकतंत्र की प्रमुख चुनौतियों का विस्तारपूर्वक वर्णन करो ।
अथवा 
‘विभिन्न देशों को विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उदाहरण देकर कथन को सिद्ध कीजिए । 
उत्तर – लोकतंत्र की चुनौतियों का अर्थ है – लोकतंत्र के मार्ग में आने वाली मुश्किलें । ये मुश्किलें महत्त्वपूर्ण होती हैं, लेकिन इनका समाधान मिलने की भी संभावना विद्यमान होती है । लोकतंत्र की तीन मुख्य चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं –
1. लोकतंत्र का बुनियादी आधार बनाने की चुनौती – वर्तमान समय में भी दुनिया के लगभग एक चौथाई भाग में अभी भी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था नहीं है । इन क्षेत्रों में लोकतंत्र के लिए बहुत ही कठिन चुनौतियाँ हैं। इन देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था की तरफ जाने और लोकतांत्रिक सरकार गठित करने के लिए आवश्यक बुनियादी आधार बनाने की चुनौती है। इनमें वर्तमान गैर-लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को गिराने, सत्ता पर सेना के नियंत्रण को खत्म करने और एक संप्रभु तथा कारगर शासन व्यवस्था को स्थापित करने की चुनौती है।
2. लोकतंत्र का विस्तार करने की चुनौती – अधिकांश स्थापित लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के सामने अपने विस्तार की चुनौती है। इसमें लोकतांत्रिक शासन के बुनियादी सिद्धांतों को सभी क्षेत्रों, सभी सामाजिक समूहों और विभिन्न संस्थाओं में लागू करना सम्मिलित है। स्थानीय सरकारों को अधिक अधिकार संपन्न बनाना, संघ की सभी इकाइयों के लिए संघ के सिद्धांतों को व्यावहारिक स्तर पर लागू करना, महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों की उचित भागीदारी तय करना आदि ऐसी ही चुनौतियाँ हैं। इसका यह भी मतलब है कि कम-से-कम ही वस्तुएँ लोकतांत्रिक नियंत्रण के बाहर रहनी चाहिएँ । भारत और विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्रों में अमेरिका जैसे देशों के सामने भी यह चुनौती है।
3. लोकतंत्र को मजबूत बनाने की चुनौती- लोकतंत्र को मजबूत बनाना प्रत्येक लोकतांत्रिक व्यवस्था के सामने किसी-न-किसी रूप में चुनौती ही है। इसमें लोकतांत्रिक संस्थाओं और बरतावों को मजबूत बनाना शामिल है। यह कार्य इस तरह से होना चाहिए कि लोग लोकतंत्र से जुड़ी अपनी आशाओं को पूरा कर सकें, लेकिन अलग-अलग समाजों में आम आदमी की लोकतंत्र से अलग-अलग अपेक्षाएँ होती हैं इसलिए यह चुनौती विश्व के अलग-अलग भागों में अलग अर्थ और अलग स्वरूप ले लेती है। संक्षेप में कहें तो इसका अर्थ संस्थाओं की कार्य-पद्धति को सुधारना और मजबूत करना होता है ताकि लोगों की भागीदारी और नियंत्रण में वृद्धि हो । इसके लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया पर अमीर और प्रभावशाली लोगों के लिए नियंत्रण और प्रभाव को कम करने की आवश्यकता होती है ।
प्रश्न 2. लोकतांत्रिक या राजनीतिक सुधारों के लिए आप भारतीय संदर्भ में कौन-कौन से उपाय सुझा सकते हैं?
अथवा
भारत में लोकतांत्रिक सुधारों या राजनीतिक सुधारों का वर्णन कीजिए । 
उत्तर – लोकतांत्रिक या राजनीतिक सुधारों के लिए भारतीय संदर्भ में हम निम्नलिखित उपाय सुझा सकते हैं –
1. कानून बनाकर – कानून बनाकर राजनीति को सुधारने की बात सोचना बहुत मनभावन लग सकता है। नए कानून समस्त अवांछित चीज़ें समाप्त कर देंगे। यह सोच लेना भले ही सुखद हो, लेकिन इस लालच पर लगाम लगाना ही अच्छा है। निश्चित रूप से सुधारों के मामले में कानून की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सावधानी से बनाए गए कानून गलत राजनीतिक आचरणों को हतोत्साहित और अच्छे कामकाज को प्रोत्साहित करेंगे, परंतु विधिक-संवैधानिक परिवर्तनों को ला देने भर से लोकतंत्र की चुनौतियों को हल नहीं किया जा सकता ।
2. कानूनों के कल्याणकारी उद्देश्य के माध्यम से – कानून में बदलाव करते हुए इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि राजनीति पर इसका क्या असर पड़ेगा। कई बार नतीजे एकदम विपरीत निकलते हैं, जैसे कई राज्यों ने दो से अधिक बच्चों वाले लोगों के पंचायत चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी है। इसके चलते अनेक गरीब लोग और महिलाएँ लोकतांत्रिक मौके से वंचित हुईं जबकि ऐसा करने के पीछे यह मंशा न थी । आम तौर पर किसी वस्तु की मनाही करने वाले कानून राजनीति में अधिक सफल नहीं होते । राजनीतिक कार्यकर्ता को अच्छे काम करने के लिए बढ़ावा देने वाले या लाभ पहुँचाने वाले कानूनों के कामयाब होने की संभावना अधिक होती है। ।
3. लोकतांत्रिक कामकाज को मजबूत बनाकर –  राजनीतिक दलों के द्वारा लोकतांत्रिक कामकाज को मजबूत बनाकर राजनीतिक सुधारों की दिशा में कदम उठाया जा सकता है। राजनीतिक दलों द्वारा किए गए सभी सुधारों में मुख्य चिंता इस बात की होनी चाहिए कि नागरिक की राजनीतिक भागीदारी के स्तर और गुणवत्ता में सुधार होता है या नहीं ।
4. सुधारों को लागू करने के उद्देश्य को स्पष्ट करके –  राजनीतिक सुधार के किसी भी प्रस्ताव में अच्छे हल की चिंता होने के साथ-साथ यह सोच भी होनी चाहिए कि इन्हें कौन और क्यों लागू करेगा । यह मान लेना समझदारी नहीं कि संसद कोई ऐसा कानून बना देगी जो हर राजनीतिक दल और सांसद के हितों के विरुद्ध हो परंतु लोकतांत्रिक आंदोलन, नागरिक संगठन और मीडिया पर विश्वास करने वाले उपायों के कामयाब होने की संभावना होती है ।
प्रश्न 3. राजनीति में धन की शक्ति के प्रयोग की चुनौती से आप क्या समझते हैं ? इससे निपटने के लिए उपाय सुझाइए । 
उत्तर–लोकसभा का चुनाव केवल लड़ने वाले प्रत्येक उम्मीदवार की संपत्ति औसतन एक करोड़ रुपए से अधिक की थी। अनुमान लगाया जा रहा है कि अब चुनाव लड़ना केवल अमीरों या उनका समर्थन रखने वालों के लिए ही संभव है। अधिकतर राजनीतिक दल बड़े व्यावसायिक घरानों के चंदों पर निर्भर हैं। भय इस बात का है कि राजनीति में पैसों की यह बढ़ती हुई भूमिका गरीबों के विरुद्ध जाएगी और अपने लोकतंत्र में जो थोड़ी-बहुत आवाज़ वे उठा पाते हैं उससे भी वंचित हो जाएँगे ।
सुधार के उपाय – (1) प्रत्येक राजनीतिक दल के वित्तीय लेखा-जोखा को सार्वजनिक कर दिया जाना चाहिए। इसका लेखा सरकारी ऑडिटरों से कराया जाना चाहिए,
(2) चुनाव का खर्च सरकार को उठाना चाहिए । पार्टियों को चुनावी खर्च के लिए सरकार कुछ पैसा दे । नागरिकों को भी दलों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को चंदा देने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए । ऐसे चंदों पर आयकर में छूट मिलनी चाहिए ।
प्रश्न 4. लोकतंत्र की पुनर्परिभाषा की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – लोकतंत्र विश्व का सर्वप्रिय शासन है। दुनिया के अधिकतर देशों ने लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनाया है । लोकतंत्र की परंपरागत परिभाषा के अनुसार, लोकतंत्र एक ऐसा शासन है जिसमें शासकों का चुनाव जनता के द्वारा किया जाता है। लेकिन वर्तमान समय में लोकतंत्र जनता की कसौटी पर खरा उतरने के लिए बहुत परिवर्तित हो चुका है। वर्तमान समय में लोकतंत्र को निम्नलिखित रूप से परिभाषित किया जा सकता है –
(1) लोगों द्वारा चुने गए शासक ही सारे प्रमुख फैसले लेते हैं,
(2) चुनाव में लोगों को वर्तमान शासकों को बदलने और अपनी पसंद जाहिर करने का पर्याप्त अवसर और विकल्प मिलना चाहिए। ये अवसर और विकल्प हर किसी को बराबरी में उपलब्ध होने चाहिएँ,
(3) विकल्प चुनने के तरीके से ऐसी सरकार का गठन होना चाहिए जो संविधान के बुनियादी नियमों और नागरिकों के अधिकारों को मानते हुए काम करे,
(4) भेदभाव को समाप्त करना लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण अंग होना चाहिए,
(5) लोकतांत्रिक व्यवस्था में हमें कुछ महत्त्वपूर्ण नतीजों की उम्मीद अवश्य करनी चाहिए,
(6) लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सामाजिक और आर्थिक अधिकार नागरिकों को दे दिए जाने चाहिएँ ।
लघुत्तरात्मक प्रश्न [Short – Answer Type Questions]
प्रश्न 1. लोकतंत्र की नींव डालने ( बुनियादी आधार बनाने की चुनौती का क्या अर्थ है? 
उत्तर – वर्तमान समय में भी दुनिया के लगभग एक चौथाई भाग में अभी भी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था नहीं है। इन क्षेत्रों में लोकतंत्र के लिए बहुत ही कठिन चुनौतियाँ हैं। इन देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था की तरफ जाने और लोकतांत्रिक सरकार गठित करने के लिए आवश्यक बुनियादी आधार बनाने की चुनौती है। इनमें वर्तमान गैर-लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को गिराने, सत्ता पर सेना के नियंत्रण को खत्म करने और एक संप्रभु तथा कारगर शासन व्यवस्था को स्थापित करने की चुनौती है।
प्रश्न 2. लोकतंत्र के विकास की चुनौती का क्या अर्थ है?
उत्तर – अधिकांश स्थापित लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के सामने अपने विस्तार की चुनौती है। इसमें लोकतांत्रिक शासन के बुनियादी सिद्धांतों को सभी क्षेत्रों, सभी सामाजिक समूहों और विभिन्न संस्थाओं में लागू करना सम्मिलित है। स्थानीय सरकारों को अधिक अधिकार संपन्न बनाना, संघ की सभी इकाइयों के लिए संघ के सिद्धांतों को व्यावहारिक स्तर पर लागू करना, महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों की उचित भागीदारी तय करना आदि ऐसी ही चुनौतियाँ हैं। इसका अर्थ है कि कम-से-कम वस्तुएँ ही लोकतांत्रिक नियंत्रण के बाहर रहनी चाहिएँ । भारत और विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्रों में अमेरिका जैसे देशों के सामने भी यह चुनौती है।
प्रश्न 3. लोकतंत्र को मजबूत बनाने की चुनौती का क्या अर्थ है ?
उत्तर – लोकतंत्र को मजबूत बनाना प्रत्येक लोकतांत्रिक व्यवस्था के सामने किसी-न-किसी रूप में चुनौती ही है। इसमें लोकतांत्रिक संस्थाओं और व्यवहारों को मज़बूत बनाना शामिल है। यह कार्य इस तरह से होना चाहिए कि लोग लोकतंत्र से जुड़ी अपनी आशाओं को पूरा कर सकें, लेकिन, अलग-अलग समाजों में आम आदमी की लोकतंत्र से अलग-अलग अपक्षाएँ होती हैं। इसलिए यह चुनौती विश्व के अलग-अलग भागों में अलग अर्थ और अलग स्वरूप ले लेती है। संक्षेप में कहें तो इसका अर्थ संस्थाओं की कार्यपद्धति को सुधारना और मजबूत करना होता है ताकि लोगों की भागीदारी और नियंत्रण में वृद्धि हो। इसके लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया पर अमीर और प्रभावशाली लोगों के लिए नियंत्रण और प्रभाव को कम करने की आवश्यकता होती है ।
प्रश्न 4. एक लोकतंत्र के लिए आवश्यक कुछ महत्त्वपूर्ण योग्यताओं का वर्णन करें। 
उत्तर – एक लोकतंत्र के लिए आवश्यक महत्त्वपूर्ण योग्यताएँ निम्नलिखित हैं –
(1) लोगों द्वारा चुने गए शासक ही सारे मुख्य निर्णय लें।
(2) चुनाव में लोगों को वर्तमान शासकों को बदलने और अपनी पसंद ज़ाहिर करने का उचित मौका और विकल्प मिलना चाहिए। ये विकल्प और मौके प्रत्येक नागरिक को समान रूप से उपलब्ध होने चाहिएँ ।
(3) विकल्प चुनने के इस ढंग से ऐसी सरकार का गठन होना चाहिए जो संविधान के बुनियादी नियमों और नागरिकों के अधिकारों को मानते हुए काम करे ।
प्रश्न 5. सांप्रदायिकता क्या है ? भारत में सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाले विभिन्न कारकों का उल्लेख कीजिए । 
उत्तर- धर्म के नाम पर लोगों के बीच आपसी भेदभाव और घृणा पैदा करना सांप्रदायिकता कहलाता है। जब भी एक धार्मिक समुदाय या वर्ग किसी भी कारण से दूसरे का विरोध करता है तो सांप्रदायिक तनाव उभरने लगता है।
भारत में सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
(1) जब भी एक धार्मिक समुदाय या वर्ग किसी भी कारण से दूसरे समुदाय का विरोध करता है तो सांप्रदायिक तनाव उभरने लगता है
(2) कभी-कभी कोई धर्म अथवा उपधर्म दूसरे के हितों की उपेक्षा करके अपने हितों को साधने का प्रयास करता है, इसके परिणामस्वरूप सांप्रदायिक टकराव बढ़ता है ।
(3) किसी धर्म द्वारा अपनी विशिष्ट पहचान बनाए जाने की प्रक्रिया से भी सांप्रदायिकता का विकास होता है।
(4) कट्टरपंथी अपने धार्मिक समुदाय को अन्य धर्मों की तुलना में श्रेष्ठ तथा पृथक् दिखाने का प्रयास करते हैं। वे सामान्य हितों की अपेक्षा अपने हितों को अधिक महत्त्व देते हैं। वे प्रत्येक नागरिक को व्यक्तिगत रूप से नहीं अपितु सांप्रदायिक दृष्टि से देखते हैं। इस प्रकार वे अपनी पृथक् पहचान बनाए रखकर, दूसरों की अपने से तथा अपनी दूसरों से दूरी बनाए रखते हैं। इससे सांप्रदायिकता बढ़ती है और समाज का विघटन होता है ।
(5) कुछ राजनीतिक नेता सांप्रदायिक तनाव पैदा करवाकर वोटों का ध्रुवीकरण करवा देते हैं और आसानी से चुनाव जीत जाते हैं ।
प्रश्न 6. सांप्रदायिकता तथा जातिवाद की समस्याओं से निपटने के लिए कुछ सुझाव दीजिए |
उत्तर – सांप्रदायिकता और जातिवाद जैसी समस्याएँ देश की राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए एक बहुत बड़ा खतरा हैं । यदि इन पर नियंत्रण न किया गया तो इनसे राष्ट्र के सामने अनेक गंभीर समस्याएँ पैदा हो सकती हैं। इनसे निपटने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं –
(1) सामाजिक, राजनीतिक तथा चुनावी प्रक्रिया में इन सांप्रदायिक तथा जातिगत शक्तियों को प्रभावहीन करने के लिए प्रबुद्ध नागरिकों को प्रयास करने चाहिएँ ।
(2) देश की राजनीतिक तथा मतदान प्रक्रिया में सांप्रदायिक तथा जातिगत दलों को कोई महत्त्व न दिया जाए ।
(3) सांप्रदायिक खून-खराबे तथा जातीय झगड़ों से कठोरता से निपटा जाना चाहिए ।
(4) किसी को भी धार्मिक संस्थाओं का प्रयोग सांप्रदायिक प्रचार करने के लिए नहीं करना चाहिए ।
(5) धर्म तथा जाति को राजनीति के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए ।
अति-लघुत्तरात्मक प्रश्न [Very Short – Answer Type Questions]
प्रश्न 1. समकालीन विश्व में लोकतंत्र की क्या स्थिति है ?
उत्तर–समकालीन विश्व में लोकतंत्र शासन का एक प्रमुख रूप है । इसे कोई गंभीर चुनौती नहीं है और न ही कोई दूसरी शासन प्रणाली इसकी प्रतिद्वंद्वी है ।
प्रश्न 2. लोकतंत्र की किन्हीं दो चुनौतियों के नाम लिखिए ।
उत्तर – (1) लोकतांत्रिक सरकार गठित करने के लिए बुनियादी आधार बनाने की चुनौती ।
(2) लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती |
प्रश्न 3. लोकतंत्र का बुनियादी आधार मजबूत बनाने की चुनौती के दो बिंदु लिखिए ।
उत्तर – (1) देश में विद्यमान मौजूदा गैर-लोकतांत्रिक व्यवस्था को गिराना ।
(2) सत्ता पर सेना के नियंत्रण को समाप्त करना ।
प्रश्न 4. लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती का क्या अर्थ है ?
उत्तर – लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती का अर्थ है, लोकतांत्रिक शासन के बुनियादी सिद्धांतों को सभी इलाकों, सभी सामाजिक समूहों और विभिन्न संस्थाओं में लागू करना है।
प्रश्न 5. लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती के दो बिंदु लिखिए ।
उत्तर – (1) स्थानीय सरकारों को अधिक अधिकार संपन्न बनाना ।
(2) महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करना ।
प्रश्न 6. लोकतंत्र को मजबूत करने की चुनौती के दो बिंदु लिखिए ।
उत्तर – (1) संस्थाओं की कार्य पद्धति को सुधारना और मजबूत करना ।
(2) फैसला लेने की प्रक्रिया पर अमीर और प्रभावशाली लोगों के नियंत्रण को कम करना ।
प्रश्न 7. सांप्रदायिकता का क्या अर्थ है ?
उत्तर – सांप्रदायिकता एक ऐसा विचार है जिसमें व्यक्ति अपने धर्म तथा उससे जुड़े लोगों को श्रेष्ठ मानता है और अन्य धर्म और उससे जुड़े लोगों को हीनता और घृणा की भावना से देखता है ।
प्रश्न 8. लोकतांत्रिक सुधारों अथवा राजनीतिक सुधारों का क्या अर्थ है ? 
उत्तर – आमतौर पर लोकतंत्र की विभिन्न चुनौतियों के बारे में सभी सुझाव या प्रस्ताव लोकतांत्रिक अथवा राजनीतिक सुधार कहलाते हैं ।
प्रश्न 9. लोकतांत्रिक सुधारों को किस प्रकार लागू किया जाता है ?
उत्तर- लोकतांत्रिक सुधारों को राजनीतिक दलों, उनके कार्यकर्त्ताओं, आंदोलनों और राजनीतिक रूप से सचेत लोगों के द्वारा लागू किया जाता है।
प्रश्न 10. राजनीतिक सुधार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – जब लोकतंत्र की अलग-अलग चुनौतियों को दूर करने के लिए कुछ सुझाव सामने आते हैं, उन्हें राजनीतिक सुधार कहते हैं ।
प्रश्न 11. उत्तरप्रदेश में डॉक्टरों की अनुपस्थिति संबंधी दो सुधार प्रस्ताव लिखें । 
उत्तर- (1) सरकार को डॉक्टरों का नियुक्ति वाली जगह पर रहना अनिवार्य कर देना चाहिए ।
(2) डॉक्टरों की उपस्थिति की जाँच के लिए जिला प्रशासन और पुलिस को सतर्क रहना चाहिए ।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न [Objective Type Questions]
I. एक शब्द या एक वाक्य में उत्तर दीजिए 
प्रश्न 1. किन्हीं चार राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के नाम बताओ।
उत्तर- कांग्रेस, बसपा, बी. जे. पी., भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ।
प्रश्न 2. आर्थिक असमानता का क्या अर्थ है ?
उत्तर – आर्थिक असमानता का अर्थ है- अमीरों और गरीबों के बीच में बहुत अधिक अंतर का होना ।
प्रश्न 3. एनक्रूमा कहाँ के राष्ट्रपति चुने गए?
उत्तर – घाना के ।
प्रश्न 4. चीन में कौन-सी पार्टी सत्ता में है?
उत्तर – कम्युनिस्ट पार्टी ।
प्रश्न 5. नेल्सन मंडेला किस देश के रहने वाले थे ?
उत्तर- नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के रहने वाले थे ।
प्रश्न 6 बोलिविया में जल-विद्रोह के बाद कौन प्रधानमंत्री बना?
उत्तर- मोरालेज ।
प्रश्न 7. किस देश ने जातीय समूहों की आकांक्षाओं के बीच सफलतापूर्वक सामंजस्य स्थापित किया ? 
उत्तर – बोलिविया ने ।
II. बहुविकल्पीय प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर दीजिए
1. निम्नलिखित में से कौन-सी लोकतंत्र की चुनौती है?
(A) बुनियादी आधार बनाने की चुनौती
(B) विस्तार की चुनौती
(C) मजबूत बनाने की चुनौती
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(D)
2. गैर-लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को गिराना किस प्रकार की चुनौती है?
(A) बुनियादी आधार को मजबूत करना
(B) लोकतंत्र का विस्तार करना
(C) लोकतंत्र को मजबूत करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर- (A)
3. स्थानीय सरकारों को अधिकार संपन्न बनाना किस प्रकार की चुनौती का उदाहरण है ?
(A) लोकतंत्र की नींव डालने की चुनौती
(B) लोकतंत्र का विस्तार करने की चुनौती
(C) लोकतंत्र को मजबूत करने की चुनौती
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(B)
4. महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदायों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करना किस प्रकार की चुनौती का उदाहरण है?
(A) लोकतंत्र की नींव डालने की चुनौती
(B) लोकतंत्र का विस्तार करने की चुनौती
(C) लोकतंत्र को मजबूत करने की चुनौती
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(B)
5. कौन-सी चुनौती का संबंध लोकतंत्र के बुनियादी आधार को मजबूत करने से है ?
(A) गैर-लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को गिराना
(B) सत्ता पर सेना के नियंत्रण को समाप्त करना
(C) एक संप्रभु तथा कामगार शासन स्थापित करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(D)
6. लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती से संबंधित है  –
(A) इकाइयों के लिए संघ के सिद्धांतों को व्यावहारिक स्तर पर लागू करना
(B) महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना
(C) कम-से-कम चीजों का लोकतांत्रिक नियंत्रण से बाहर रहना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(D)
7. अमेरिका द्वारा संयुक्त राष्ट्र की परवाह न करना किस प्रकार की चुनौती का उदाहरण है ?
(A) लोकतंत्र की नींव डालने की चुनौती
(B) निरंकुशतावाद की चुनौती
(C) लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती
(D) लोकतंत्र को मजबूत बनाने की चुनौती
उत्तर-(B)
8. लोकतंत्र की विभिन्न चुनौतियों के बारे में सभी अधिकार कहलाते हैं –
(A) लोकतांत्रिक अधिकार
(B) राजनीतिक अधिकार
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर-(C)
9. राजनीतिक सुधार लाने का कार्य कौन करता है?
(A) राजनीतिक दल
(B) राजनीतिक कार्यकर्त्ता
(C) राजनीतिक रूप से जागरूक नागरिक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(D)
10. चुनाव सुधार के लिए कौन-सा उपाय किया जाना चाहिए ?
(A) चुनाव का खर्च सरकार को उठाना चाहिए
(B) राजनीतिक दल के लेखा-जोखा का सरकारी ऑडिटरों द्वारा लेखा करवाना चाहिए
(C) नागरिकों को राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(D)
11. जनरल पिनोशे कहाँ के शासक थे ?
(A) बोलिविया
(B) चिले
(C) घाना
(D) मिस्र
उत्तर-(B)
12. पोलैंड में सोलिडरिटी की पहली सफलता का क्या परिणाम निकला ?
(A) देश में सैनिक शासन लागू कर दिया गया
(B) सोलिडरिटी पर प्रतिबंध लगा दिया गया
(C) (A) और (B) दोनों
(D) सोलिडरिटी की सरकार गठित कर दी गई
उत्तर – (C)
13. नागरिक अधिकार आंदोलन किस देश में चलाया गया ?
(A) नेपाल
(B) अमेरिका
(C) बोलिविया
(D) उत्तरी आयरलैंड
उत्तर-(B)
14. कोसोवो प्रांत किस देश में स्थित है ?
(A) यूगोस्लाविया
(B) चिले
(C) मैक्सिको
(D) म्याँमार
उत्तर – (A)
15. लोकतंत्र के सामने कौन-सी चुनौती है?
(A) बुनियादी आधार मजबूत करने की चुनौती
(B) विस्तार की चुनौती
(C) लोकतंत्र को मजबूत करने की चुनौती
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(D)
III. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. एनक्रूमा ………………. के राष्ट्रपति चुने गए।
2. नेल्सन मंडेला …………… के रहने वाले थे ।
3. ………………. ने जातीय समूहों की आकांक्षाओं के बीच सफलतापूर्वक सामंजस्य स्थापित किया ।
4. जनरल पिनोशे ………………… के शासक थे ।
5. आर०टी०आई० ……………….. का अधिकार है ।
उत्तर – 1. घाना, 2. दक्षिण अफ्रीका, 3. बोलिविया, 4. चिले, 5. सूचना ।
IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर हाँ/नहीं में दीजिए
1. क्या नागरिक अधिकार आंदोलन अमेरिका में चलाया गया ?
2. अमेरिका द्वारा संयुक्त राष्ट्र की परवाह न करना लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती का उदाहरण है ?
3. गैर-लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को गिराना बुनियादी आधार को मजबूत करना है ?
4. क्या योजना का अधिकार अधिनियम लोगों को यह जानने के लिए सशक्त करता है कि सरकार के भीतर क्या चल रहा है?
5. क्या लोकतांत्रिक व्यवहारों को मजबूत करना लोकतंत्र की गहनता को मजबूत करने का संकेत देता है ?
उत्तर – 1. हाँ, 2. नहीं, 3. हाँ, 4. नहीं, 5 हाँ ।

Haryana Board 10th Class Social Science Notes Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ

लोकतंत्र की चुनौतियाँ Class 10 Notes HBSE

→ लोकतांत्रिक व्यवस्था में बनी सरकार एक मुश्किल प्रकार कीसरकार होती है। ऐसी सरकार अन्य प्रकार की सरकारों से बेहतर अवश्य होती है। परंतु इस प्रकार की अपनी ही विशेष प्रकार की चुनौतियाँ होती है

→ लोकतांत्रिक युग होने के बावजूद भी आज संसार में एक-चौथाई भाग में लोकतांत्रिक नहीं है। ऐसे भाग में चुनौतियाँ उस भाग से जहाँ लोकतंत्र है की चुनौतियाँ से अलग है। कुल मिलाकर लोकतंत्र के समक्ष की चुनौतयों को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है।

→ जिन देशों में लोकतंत्र नहीं है, उन देशों में लोकतांत्रिक सरकरों का गठन करने हेतु बुनियादी आधार तैयार करने की चुनौतियाँ है। इन देशों में गैर-लोकतांत्रिक शासकीय व्यवस्था को मिटाना, सेना शासन का अंत करना तथा लोक संप्रभुता का निर्माण करना।

लोकतंत्र की चुनौतियाँ Class 10 Notes In Hindi HBSE

→ जहाँ लोकतंत्र विद्यमान है, उस भाग में लोकतंत्र का विस्तार करना; लोकतांत्रिक संस्थाओं को अधिक अधिकार संपन्न बनाना, स्थानीय इकाइयों को सुदृढ़ करना, महिलाओं व अल्पसंख्यक वर्गों की भागीदारी बढ़ाना।

→ लोकतंत्र को मजबूत करना; लोकतांत्रिक मूल्यों में वृद्धि लोकतांत्रिक आकांक्षाओं की पूर्ति तथा जनमानस का लोकतंत्र में विश्वास बढ़ाना; लोकतंत्र की कार्यविधि में सुधार करना।

→ लोकतंत्र एक कठिन प्रकार की शासन प्रणाली है। इसे शत्रुओं से बचाना तथा इसकी मान-मर्यादा को, मजबूत करना इसे बनाए रखने के लिए जरूरी साधन है।

→ प्रत्येक प्रकार का लोकतंत्र अलग-अगल है, उसके संदर्भ भी अलग-अलग है तथा उसकी चुनौतियाँ भी अलग-अलग। अतः लोकतंत्रीय व्यवस्था में लगातार राजनीतिक सुधार किए जाने चाहिए।

→ उनमें जो लोकतंत्र का प्रयोग करते हैं तथा उनमें जिन पर लोकतंत्र लागू होता है तथा उन सभी संस्थाओं, प्रक्रियाओं व परिस्थितियों में जिनमें लोकतंत्र का संचालन होता है।

→ बुनियादी आधार : वह जिसका संबंध नींव से हो, वास्तविकता से जुड़ी ज़मीनी वास्तविकता।

→ कुछ महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ : स्थानीय संस्थाओं को संपन्न बनाना, महिलाओं व अल्पसंख्यकों के समूहों की पर्याप्त भागीदार, राजनीतिक जागरूकता आदि।

→ लोकतंत्रीय मूल्य : वह मूल्य जो लोकतंत्र की मजबूत कर सकते हैं। लोकतांत्रिक संस्थाएँ जितनी अधिक लागू दी जाएंगी उनकी मुश्किलों को उतनी अधिक सुलझाने के प्रयास किए जाएंगे।

→ नागरिक नियंत्रण : शासकीय संस्थाओं की कार्यवाही में नागरिकों द्वारा नियंत्रण

→ संविधानवाद : संविधान के उपबन्धों द्वारा किया गया शासन

→ लोकतांत्रिक अधिकार : लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी नागरिकों को एक समान अधिकारों की उपलब्धि

→ निर्वाचन : प्रतिनिधियों व शासकीय अधिकारियों का चुना जाना।

→ संघवाद : संघीय व उसके चारों ओर का इकाइयों की सरकारों की व्यवस्था। यह शासन का एक रूप है।

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