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Haryana Board 10th Class Social Science Solutions History Chapter 4 मध्यकालीन समाज : यूरोप एवं भारत

Haryana Board 10th Class Social Science Solutions History Chapter 4 मध्यकालीन समाज : यूरोप एवं भारत

HBSE 10th Class History मध्यकालीन समाज : यूरोप एवं भारत Textbook Questions and Answers

अध्याय का संक्षिप्त परिचय
◆ मध्यकालीन यूरोपीय समाज – यह समाज प्रमुख रूप से तीन वर्गों में बंटा था। प्रथम वर्ग पादरियों का वर्ग था जो ईश्वर की सेवा करते और चर्च की व्यवस्था देखते थे । दूसरा वर्ग सामन्तों का वर्ग था जो समाज की रक्षा करते थे। तीसरा वर्ग जन सामान्य का वर्ग था जो प्रथम वर्ग और दूसरे वर्ग के लिए जीवनयापन के साधन जुटाता था।
◆ पादरी– पादरी वर्ग का समाज में सबसे ऊँचा स्थान था तथा इनका यूरोपीय समाज पर बहुत अधिक प्रभाव था। पादरी वर्ग गिरजाघर से संबंधित था जो ईसाइयों की उपासना का घर होता था ।
◆ बिशप – गिरजाघर की व्यवस्था देखने वाले तथा नेतृत्व करने वाले पादरियों को बिशप कहा जाता था। बिशप का जीवन शानो-शौकत से पूर्ण था। ये बड़े-बड़े शानदार महलों में रहते थे।
◆ मेनर – मेनर छोटे सामन्तों की भू-सम्पदा होती थी जिसमें एक किला व सैकड़ों एकड़ भूमि होती थी ।
◆ सामन्त वर्ग – सामन्त वर्ग का प्रमुख कार्य न्याय व रक्षा करना था। सामन्त वर्ग यूरोपीय समाज का शासकीय वर्ग था।
◆ बपतिस्मा – बपतिस्मा एक प्रकार की धार्मिक क्रिया है जो ईसाई धर्म में प्रक्षालन करने अर्थात् किसी व्यक्ति को चर्च की सदस्यता देने के लिए की जाती है। किसान अंधविश्वास के कारण बपतिस्मा का जल फसलों पर छिड़कने तथा पशुओं को पिलाने के लिए उपयोग करते थे ।
◆ नाईट – नाईट का यूरोपीय समाज में बहुत अधिक सम्मान था । मध्यकालीन यूरोप में योद्धा वर्ग के लोगों को नाईट कहा जाता था। नाईट अपने पास भाला, चाकू, शिरास्त्राण इत्यादि रखता था।
◆ यूरोप के विश्वविद्यालय – बोलाग्ना विश्वविद्यालय (इटली), पेरिस विश्वविद्यालय (फ्रांस), ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ( इंग्लैंड), कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (इंग्लैंड), विटेनबर्ग विश्वविद्यालय (जर्मनी) ।
◆ उलेमा – उलेमा फारसी भाषा के शब्द आलिम का बहुवचन है जो मूल रूप से ‘इल्म’ से बना है जिसका अर्थ ज्ञान होता है।
◆ खुदकाश्त – कृषक श्रेणी में यह शब्द ऊँचे दर्जे के किसानों के लिए प्रयोग होता है। खुदकाश्त दो शब्दों के मेल से बना है खुद एवं काश्त जिसका अर्थ है वह व्यक्ति जो अपनी भूमि को स्वयं जोतता हो अर्थात् अपनी भूमि पर स्वयं खेती करने वाला ।
◆ पाहीकाश्त– पाही का अर्थ होता है पड़ोसी या ऊपरी / बाहरी अर्थात् वह व्यक्ति जो पड़ोस के गाँव या दूसरे गाँव की ज़मीन पर खेती करता था । वह दूसरे गाँव की ज़मीन ठेके पर लेता था या खरीद लेता था ।
◆ मुजरियान – यह कृषकों की श्रेणी में सबसे निचले दर्जे पर था। उसके पास हल व बैल तो अपने थे लेकिन वह ज़मीन का मालिक नहीं था। उसके पास भूमि खरीदने व ठेके पर लेने की क्षमता भी नहीं थी।
अभ्यास के प्रश्न-उत्तर
⇒ आओ फिर से याद करें –
प्रश्न 1. यूरोप में शासकीय वर्ग के मुख्य काम क्या थे?
उत्तर मध्यकाल में यूरोपीय समाज तीन वर्गों में बँटा हुआ था-
(1) पादरी वर्ग, (2) सामन्त वर्ग, (3) सामान्य जन ।
सामन्त वर्ग/शासकीय वर्ग — यूरोप में सामन्तों का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण वर्ग था । इसे ही शासकीय वर्ग कहा जाता था। इसका मुख्य कार्य न्याय करना तथा लोगों की रक्षा करना था। इस वर्ग का भूमि पर भी पूर्णत: अधिकार होता था। यह वर्ग अनेक उपवर्गों में बँटा हुआ था।
प्रश्न 2. यूरोप में कृषकों की दशा कैसी थी ?
उत्तर— यूरोप में कृषकों की दशा अत्यंत दयनीय थी। मध्यकालीन यूरोपीय समाज की अर्थव्यवस्था की अनिवार्य आवश्यकताओं के साथ-साथ कृषक भी भू-स्वामियों की सम्पत्ति ही माना जाता था। भू-स्वामी उसे जोतने के लिए जो जमीन देता था, उस पर उपज करने पर भी उसे उपज़ का कुछ ही भाग प्राप्त होता था जिसमें से उसे दसवां हिस्सा चर्च को देना होता था । कृषक दासों का सा जीवन व्यतीत करते थे। वे घास-फूंस की बनी झोंपड़ी में रहते थे। वर्षा और शीत ऋतु में उनके पशु भी उसी झोंपड़ी में आ जाते थे । वह अपने बच्चों की शादी भी अपनी मर्जी से नहीं कर सकते थे। इसके लिए उसे अपने स्वामी या लार्ड की इज़ाजत लेनी पड़ती थी । भूमि पर खेती के अतिरिक्त उसे भू-स्वामी के घर का काम भी करना पड़ता था, जिसके लिए उसे कोई मेहनताना नहीं दिया जाता था। इस प्रकार के कार्यों को ‘बेगार’ कहा जाता था। इसके अलावा उसके परिवार के सदस्यों को भी स्वामी के घर का कार्य करना पड़ता था। इससे यह स्पष्ट होता है कि यूरोप से कृषकों का जीवन अत्यंत कष्टपूर्ण था।
प्रश्न 3. भारत की सामाजिक संरचना किस प्रकार की थी?
उत्तर – मध्यकाल में भारत की सामाजिक संरचना बहुत जटिल थी । भारत पर तुर्कों के आक्रमण के बाद मध्य एशिया से बड़ी संख्या में लोग भारत में आए तथा उन्होंने भारत में रहना शुरू कर दिया जिसके कारण भारतीय समाज में जटिलता आई क्योंकि उनके धर्म या पंथ भारत के मूल नागरिकों से भिन्न थे। भारतीय सामाजिक संरचना में कृषकों का महत्त्वपूर्ण स्थान था तथा यहां का समाज ग्रामीण था जिसमें किसानों/कृषकों की बहुत संख्या में श्रेणियाँ थीं। भारतीय समाज में अनेक वर्ग सम्मिलित थे—
1. शासकीय वर्ग – शासकीय वर्ग को शासकीय अधिकार प्राप्त थे तथा वह शासकीय कार्यों में संलग्न थे। शासकीय वर्ग शासकों के साथ सत्ता में भागीदारी रखते थे तथा इसके लिए ऊँचा वेतन प्राप्त करते थे ।
2. धार्मिक वर्ग – मध्यकाल में भारत में हिंदुओं और मुसलमान के धर्मों में एक ऐसा वर्ग था जो धार्मिक क्रियाकलापों से अपनी जीविका चलाता था । हिन्दू समाज के लिए धार्मिक क्रियाकलाप का कार्य ब्राह्मण ही करते थे।
3. व्यापारी व दुकानदार वर्ग – भारतीय समाज में व्यापारी व दुकानदार का विशाल वर्ग था। व्यापारी वर्ग अन्तर्राष्ट्रीय तथा अंतर्क्षेत्रीय – व्यापार करते थे ।
4. कृषक वर्ग – मध्यकालीन भारतीय समाज में कृषकों का एक बहुत बड़ा वर्ग था जो समस्त समाज के लिए भरण-पोषण का दायित्व वहन करता था ।
5. दास – भारतीय समाज में दास प्रथा का भी बोलबाला था । स्त्री, पुरुष व बच्चे सभी दासों में सम्मिलित थे।
6. शिक्षा, साहित्य एवं मनोरंजन – मध्यकाल में भारत की प्राचीन शिक्षा के प्रमुख केंद्र नालन्दा, तक्षशिला, मथुरा, उज्जैन आदि अवनति की ओर अग्रसर हो गए। विभिन्न भाषाओं के साहित्य का भी विकास हुआ जिसमें भक्त संतों की प्रमुख भूमिका रही। भारत के मनोरंजन के साधनों में संगीत, मल्लयुद्ध, शतरंज, कुश्ती इत्यादि प्रमुख थे ।
प्रश्न 4. मध्यकाल में भारत में किसानों की दशा कैसी थी?
उत्तर- मध्यकाल में भारत में किसानों की दशा यूरोपीय कृषकों/किसानों की तरह दयनीय थी। भारत में किसानों के कई वर्ग थे। इस वर्ग में खुदकाश्त किसानों की श्रेणी थी जो अपनी भूमि पर स्वयं काश्त या खेती करता था। दूसरी श्रेणी पाहीकाश्त किसानों की होती थी जो दूसरे गांव में जाकर खेती करते थे। तीसरी श्रेणी मुजारियाँ/मुजारियान की होती थी जो किसी भू-स्वामी की भूमि पर खेती करते थे क्योंकि इनकी स्वयं की भूमि नहीं होती थी। इन किसानों की अवस्था शोचनीय थी। राज्य की आय का प्रमुख स्रोत भूमि कर ही था जिससे वे अपने अधिकारयों को वेतन देते थे, जिसका किसान विरोध नहीं कर सकते थे।
प्रश्न 5. मध्यकाल में भारत में दास प्रथा पर निबंध लिखें।
उत्तर- मनुष्य में दूसरे के अधीन करने की प्रवृत्ति पुरातन काल से ही चली आ रही है। विश्व के प्रायः सभी प्राचीन सभ्यताओं के विषय में यह उल्लेख मिलता है कि वहाँ दास प्रथा थी। दास उस देश अथवा जाति के निवासी न होकर किसी अन्य देश के निवासी होते थे। मिस्र, यूनान आदि प्राचीन सभ्यता वाले देशों के इतिहास में इस बात का उल्लेख मिलता है कि इन देशों में भी दास प्रथा थी। प्रो० रंगाचारी ने अपने ग्रंथ ” पूर्व मध्यकालीन भारत में इस बात का उल्लेख किया है कि दास प्रथा पूर्व पाषाण काल से ही चली आ रही है। मिस्र, असीरिया, सुमेरिया, बेबीलोनिया आदि विश्व का प्राचीनतम सभ्यताओं में इस बात का उल्लेख है कि दास प्रथा भी समाज में एक वर्ग था।
परन्तु भारत में दास प्रथा का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। वास्तव में दास प्रथा भारतीय सभ्यता का अंग नहीं है। वैदिक काल एवं उत्तर वैदिक काल में इस प्रकार की कोई संस्था विद्यमान नहीं थी। भारत में दास प्रथा का प्रादुर्भाव आर्यों के पश्चिम भारत से पूर्व की ओर बढ़ने के समय हुआ। ऋग्वेद में इस दास प्रथा अथवा दास शब्द का उल्लेख नहीं मिलता है। ऋग्वेद के आधार पर ऐसा अनुमान किया जाता है कि दास (दस्यु) समझे जाने वाले लोग एक अलग वर्ग के थे। ऐसा लगता है कि दास प्रथा का आरम्भ प्राचीन भारत में ऋग्वेद के पश्चात् ही हुआ। ऋग्वेद एवं धार्मिक ग्रन्थों में दास के परोपकार के रूप में असुर, आवृत्त एवं शुद्र आदि शब्दों का प्रयोग हुआ। ऐसा लगता है कि आर्यों के इस देश में आने पर इस देश के वासियों से संघर्ष हुआ और उस संघर्ष के फलस्वरूप जिन लोगों को बन्दी बनाया गया उन्हें दास के रूप में ग्रहण किया गया।
वैदिक साहित्य में दास शब्द के साथ-साथ दासी शब्द का भी प्रयोग है अर्थात् पुरुष के साथ-साथ स्त्रियाँ भी दासवृत्ति में थी। इन दास – दासियों पर स्वामी का पूर्ण अधिकार रहता था। वे उन्हें बेच सकते थे, दान दे सकते थे अथवा मुक्त कर सकते थे।
ब्राह्मण काल में दास प्रथा – ब्राह्मण ग्रंथों में भी दास का उल्लेख मिलता है। इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि अनेक राजाओं ने दासों को दान में दिया था। स्त्रियाँ राजकुमारियों के साथ दहेज में दी जाती थीं।
उपनिषद काल में दास प्रथा – उपनिषद काल में भी दास प्रथा थी। इसका उल्लेख उपनिषद ग्रंथों में भी मिलता है। वृहदारण्य कोपनिषद में इस बात का उल्लेख है कि जनक ने याज्ञवल्कय से शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् अपने आपको एवं सम्पूर्ण प्रजा को उनके समक्ष दास रूप में अर्पित कर दिया था। इसी प्रकार सूत्र ग्रंथों में भी दास-दासियों का उल्लेख मिलता है। रामायण, महाभारत आदि महाकाव्यों में भी दास प्रथा का उल्लेख है।
स्मृति में दास प्रथा – मनुस्मृति जो समाजशास्त्र की धारणाओं का प्रतिनिधित्व करती है, दास प्रथा के सम्बन्ध में विषद विवरण प्रस्तुत करती है। इसी प्रकार नारद एवं कात्यायन स्मृतियों में भी इस दास प्रथा का उल्लेख है।
विदेशी यात्रियों ने जो समय-समय पर भारतवर्ष आए अपनी यात्रा संस्मरणों में भारत में प्रचलित दास प्रथा के सम्बन्ध में उल्लेख किया है। बौद्ध ग्रंथों में और जातकों में भी इस बात का उल्लेख मिलता है कि भारत में दास प्रथा प्रचलित थी । राजपूत काल देश में दास प्रथा किसी-न-किसी रूप में प्रचलित थी। अंग्रेजों के शासन काल में इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया।
⇒ आइए विचार करें-
प्रश्न 1. मध्यकाल में भारत में यूरोप में किसानों की दशा में क्या अंतर था ?
उत्तर – मध्यकालीन यूरोपीय समाज में अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित थी। इसमें भूमि को अधिक महत्त्व का माना जाता था। भूमि पर राजा का वर्चस्व होता था। वह अपनी भूमि को सामंतों में बाँट देता था। ये सामंत उसे आगे उपसामंतों में बाँटते थे। ये उपसामंत उस पर कृषकों से खेती करवाते थे। बहुत कम संख्या में किसानों की अपनी भूमि होती थी जिन्हें स्वतंत्र किसान कहा जाता था। अधिकतर किसान सामंतों की भूमि पर ही खेती करते थे। इन किसानों की स्थिति बहुत दयनीय थी । मध्यकालीन यूरोपीय समाज की अर्थव्यवस्था में भू-स्वामी के जीवन की अनिवार्य वस्तुओं के साथ किसान को भी उसकी सम्पत्ति माना जाता था। भूमि से प्राप्त हुई उपज का उसे बहुत कम भाग प्राप्त होता था। उसे अपने भाग में से दसवां हिस्सा चर्च को भी देना होता था। इस प्रकार उसकी स्थिति अत्यंत जीर्ण-शीर्ण थी । भू-स्वामी की भूमि पर खेती करने के अलावा उसे स्वामी के घर में कार्य करना होता था जिसके लिए उसे कोई मेहनताना नहीं दिया जाता था। इस प्रकार के किए गए कार्यों को ‘बेगार’ कहा जाता था।
मध्यकालीन भारतीय समाज में कृषकों की स्थिति यूरोपीय किसान की तरह दयनीय ही थी। भारत के विभिन्न भागों में इनके अनेक वर्ग थे। इस वर्ग की एक श्रेणी अपनी भूमि पर खुद खेती करती थी । अपनी भूमि पर स्वयं खेती करने वाले किसान 16वीं तथा 17वीं शताब्दी में ‘खुदकाश्त किसान’ कहलाते थे। यह राजा को निर्धारित किया गया कर देते थे। इस वर्ग में दूसरी श्रेणी ‘पाहीकाश्त’ किसानों की थी। इससे अभिप्राय वे किसान हैं जो दूसरे गाँवों में जाकर खेती करते थे। किसानों का तीसरा वर्ग वह था जिसकी अपनी कोई जमीन नहीं थी। वे किसी अन्य भू-स्वामी की भूमि पर खेती करते थे और उपज का मात्र एक भाग ही प्राप्त करते थे । इन्हें ‘रैय्यती’ या ‘ मुज़ारियन’ कहा जाता था ।
इस प्रकार मध्यकाल में भारत व यूरोप दोनों समाजों में किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी ।
प्रश्न 2. मध्यकाल में भारत व यूरोप में शासकीय वर्ग की स्थिति में क्या कोई भिन्नता थी ?
उत्तर – मध्यकाल में यूरोप में शासकीय वर्ग को बड़े भू-स्वामी काउंट या लार्ड कहा जाता था । इन्हें युद्ध विद्या, आखेट, उचित भूखान-पान, घुड़सवारी आदि की शिक्षा दी जाती थी । इनका मुख्य कार्य न्याय व रक्षा करना होता था। इनके पास सैनिकों का एक समूह होता था जिसका प्रमुख कार्य युद्ध में भाग लेना होता था ।
मध्यकाल में भारत में शासकीय वर्ग दो वर्गों में बंटा था, जिसमें से पहला वर्ग शाही शक्ति या केन्द्रीय सत्ता का प्रतिनिधित्व करता था। दूसरा वर्ग स्थानीय शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता था जो भू-स्वामियों का था। शासकीय वर्ग में विभिन्न राज्यों के बड़े पदाधिकारी और जमींदार सम्मिलित थे। इनकी आय का साधन राज्य द्वारा निर्धारित होता जो नगद वेतन या किसी बड़े क्षेत्र की भूमि से कर एकत्र करने के रूप में होता था ।
प्रश्न 3. मवासात से क्या अभिप्राय है?
उत्तर — अनेक किसान सरकार को कोई भी कर नहीं देते थे और सरकार का कोई भी आदेश नहीं मानते थे। ये किसान सेना द्वारा आक्रमण करने की स्थिति में, पहाड़ी प्रदेशों, मरुभूमि इत्यादि दुर्गम स्थानों पर पलायन करते थे। ऐसे क्षेत्र समकालीन विवरणों में मवास अथवा मवासात के नाम द्वारा जाने जाते थे।
प्रश्न 4. मध्यकालीन भारत में धर्मांतरण पर चर्चा करें ।
उत्तर – मध्यकालीन भारत में इस्लाम का आगमन व्यापारियों, सूफियों तथा आक्रमणकारियों के द्वारा हुआ। 636 ई० से 1761 ई० तक भारत पर विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा लगातार आक्रमण हुए जो साम्राज्य विस्तार, इस्लाम के प्रसार, धन की लूट आदि उद्देश्य से प्रेरित थे। परन्तु उन्हें भारत की जनता के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। धर्मांतरण के लिए तलवार एवं अग्नि की नीति सफल नहीं रही तो लालच एवं लोभ द्वारा जजिया लगाकर धर्मांतरण का प्रयास किया गया परन्तु उन्हें आंशिक सफलता ही मिली।
⇒ आइए करके देखें –
प्रश्न 1. यूरोप के किसी भी देश की सामाजिक संरचना की जानकारी जुटाएं?
उत्तर – विद्यार्थी स्वयं करें ।
प्रश्न 2. मध्यकाल में स्त्रियों की दशा आज स्त्रियों की दशा से कैसे भिन्न हैं? कक्षा में दो समूह बनाकर चर्चा कर बिन्दू लिखें।
उत्तर – विद्यार्थी स्वयं करें ।
परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न [LONG-ANSWER TYPE QUESTIONS]
प्रश्न 1. मध्यकालीन भारतीय समाज में व्याप्त कुप्रथाएँ कौन-सी थीं जिन्होंने स्त्रियों की स्थिति को प्रभावित किया? 
उत्तर – मध्यकालीन भारतीय समाज में व्याप्त कुप्रथाएँ निम्नलिखित थी जिन्होंने स्त्रियों की स्थिति को प्रभावित किया –
1. बाल विवाह – मध्यकालीन भारतीय समाज अनेक कुप्रथाओं से ग्रस्त था। इनमें सर्वप्रथम स्थान बाल विवाह का था। बाल्यावस्था – में ही लड़की का विवाह कर दिया जाता था जिससे उनका पूरा जीवन घर की चारदीवारी में ही बीत जाता था।
2. सती प्रथा-  बाल्यावस्था में लड़की का विवाह उससे बहुत बड़ी आयु के व्यक्ति से कर दिया जाता था। इसका एक दुष्प्रभाव यह होता था कि युवा अवस्था तक आते-आते वह विधवा हो जाती थी । धन संपत्ति के अधिकार की मांग न कर सके इसलिए पति की चिता के साथ ही जिंदा जलाने की प्रथा मध्यकालीन भारतीय समाज पर एक कलंक के समान थी ।
3. बहुविवाह – शासक वर्ग या मुस्लिम वर्ग में अनेक विवाह का प्रावधान था। पत्नी की छोटी सी गलती पर उसे छोड़कर अन्य किसी से विवाह करने से समाज में नारी के सम्मान में गिरावट आ रही थी । शासक अपने हरम में अनेक पत्नियों को रखते थे।
4. पर्दा प्रथा – स्त्रियों को पर्दे या बुर्के में रखा जाना एक सामान्य बात समझी जाती थी। उसे किसी अनजान व्यक्ति के समक्ष जाने का अधिकार नहीं था। घर की चारदिवारी तथा चेहरे पर घूँघट ही उसका संसार माना जाता था। उच्च या कुलीन वर्ग व सामान्य दोनों वर्ग की स्त्रियाँ पर्दा करती थी । मीराबाई तथा रजिया सुल्तान जैसी महान नारियों ने इस प्रथा का विरोध करने का साहस किया।
5. विधवा समरूप – युद्ध, बीमारी तथा बेमेल विवाह आदि के कारण स्त्रियाँ विधवा हो जाती थी। उन पर कठोर नियम लागू कर दिए जाते थे –
(1) सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं देना।
(2) उसके सुबह दिखने पर अपशगुन मानना ।
(3) विवाह या अन्य मंगल कार्यों से दूर रखना ।
(4) केशों को काट देना ।
(5) सफेद वस्त्र की अनिवार्यता करना ।
(6) उसे अपशब्द बोलना ।
6. जौहर प्रथा – मुस्लिम शासकों की कुदृष्टि से अपने सम्मान की रक्षा करने के लिए उस समय महिलाएं अग्नि कुंड में कूदकर सामूहिक रूप से जौहर करती थी । शत्रु के हाथों अपमानित होने से बेहतर अपने जीवन का त्याग उनके लिए महत्त्वपूर्ण होता था। रानी पदमावती का जौहर आज भी राजस्थानी इतिहास का सुन्दर उदाहरण है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि मध्यकालीन भारत में व्याप्त बाल विवाह, बहुविवाह, बेमेल विवाह, सती प्रथा, विधवा समस्या जौहर आदि प्रथाएं स्त्रियों की स्थिति को प्रभावित कर रही थीं। आज भी नारियों पर अनेक प्रकार से अन्याय किए जाते हैं।
प्रश्न 2. दासों के प्रकार तथा उनके द्वारा किए गए कार्यों और व्यवहारों का वर्णन करें। 
उत्तर – दासों के प्रकार – प्राचीन भारत में दास-दासियों के विविध प्रकार माने गए हैं। प्राचीन वैदिक एवं धार्मिक ग्रंथों के आधार – पर यह कहा जाता है कि उस समय दो प्रकार के दास होते थे यथा – कृतदास और युद्धदास । कृतदास उसे कहा जाता था जिनको आर्य ने आर्यत्तर जातियों को विजित कर अपने अधिकार में कर लिया था। युद्धदास वे होते थे जिनको विजित कर उपहार रूप में प्राप्त किया जाता था । समय और परिस्थितियों के साथ-साथ अनेक प्रकारों के दासों का जन्म हुआ।
कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में विविध प्रकार के दासों का उल्लेख किया है यथा ध्वजाहत दास, आत्मविक्राइन दास, उदार दास एवं दंडदास आदि ।
जिन लोगों को युद्ध में जीत लिया जाता था। उन्हें ध्वजाहत दास कहा जाता था जो लोग अर्थाभाव के कारण अथवा अकाल के समय अपने को दूसरे के हाथ बेच देते थे उन्हें आत्मविक्राइन दास कहा जाता था। जिनका जन्म दासी से होता था उन्हें उदर दास कहा जाता था। ऐसे लोगों को जो कोई अपराध करने के कारण पकड़ लिए जाते थे उन्हें दंडदास कहा जाता था।
मनुस्मृति में भी दास के चार प्रकार बताए गए हैं –
(1) युद्ध में विजित व्यक्ति ।
(2) दासी से उत्पन्न व्यक्ति ।
(3) अपना पेट भरने के लिए दूसरे की दासता को स्वीकार करने वाला व्यक्ति ।
(4) दान देकर खरीदे गए अथवा दंड के लिए सौंपे गए व्यक्ति |
नारद स्मृति में 10 प्रकार के दासों का उल्लेख किया गया है जो इस प्रकार हैं –
(1) दास ग्रह में जन्म लेने वाला व्यक्ति ।
(2) लभृत अर्थात जिनको प्राप्त किया गया है।
(3) उत्तराधिकार में प्राप्त ।
(4) अकाल में रक्षित।
(5) मालिक के वचनबद्ध ।
(6) ऋण के भुगतान के बदले दिए गए व्यक्ति ।
(7) युद्ध में बंदी बनाए गए व्यक्ति ।
(8) अपने को बेचने वाले व्यक्ति ।
(9) दास की परम्पराओं में बँधे व्यक्ति ।
(10) भोजन के लिए दासता स्वीकार करने वाले व्यक्ति ।
समय के बीतने के साथ तथा सभ्यता के विकास के फलस्वरूप दासों की संख्या में वृद्धि होती ही गयी।
दासों के कार्य तथा उनके द्वारा किये जाने वाले व्यवहार – सामान्यत: दासों से निम्नलिखित कार्य लिए जाते थे—
(1) खेती के कार्य,
(2) शारीरिक श्रम,
(3) दास को दान रूप में भी दिया जाता था दास से अतिथियों की सेवा करायी जाती थी। घर की सफाई आदि का काम भी दास ही करते थे।
सामान्यतया अन्य देशों में दासों के प्रति बहुत अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था। किन्तु भारत में विभिन्न ग्रंथों में वैदिक साहित्य, धर्मसूत्र, जातकग्रंथों, अशोक के अभिलखों आदि में दासों के प्रति व्यवहार का वर्णन मिलता है। इस विवरण से यह अस्पष्ट हो जाता है कि भारत में दासों के प्रति व्यवहार अधिक उदार और सदृश्यता पूर्ण होता था। दासों को बिना भोजन का रखना पाप समझा जाता था । दासों को मृत्युदंड भी नहीं दिया जाता था। मनुस्मृति में इन बातों का स्पष्ट निषेध है। वास्तव में यहाँ दासों को पुत्रवत रखने का आदेश दिया गया था। कुछ स्थानों पर दासों के प्रति-निर्दयतापूर्ण व्यवहार का भी उल्लेख मिलता है। परन्तु उसकी सराहना नहीं की गयी है। यह कहा जा सकता है कि भारत में अन्य देशों की अपेक्षा दासों के प्रति व्यवहार अधिक उदार और सहिष्णु था ।
प्राचीन भारत में दास प्रथा यद्यपि थी किन्तु उससे मुक्ति का भी विधान था तथा उसे सम्पत्ति का भी अधिकार था । इन्हीं सब कारणों से यहाँ के दासों ने कभी भी रक्त-रंजित क्रांति का आह्वान नहीं किया।
प्रश्न 3. मध्यकालीन भारत में भक्ति आंदोलन के प्रचार-प्रसार के कारण क्या थे?
उत्तर—मध्यकालीन भारत में भक्ति आंदोलन के प्रचार-प्रसार के निम्नलिखित कारण थे—
1. समाज में व्याप्त अंधविश्वास व भेदभाव – मध्यकालीन भारत में समाज अनेक प्रकार के अंधविश्वास व भेदभावपूर्ण वातावरण से ग्रस्त था। उच्च व निम्न वर्ग में, ब्राह्मण व शूद्र, हिंदू तथा मुस्लिम में आपस में खींचतान चल रही थी । भक्ति आंदोलन के द्वारा कबीर, गुरु नानक, रविदास आदि की वाणी ने समाज में व्याप्त अंधविश्वास, आडंबर तथा भेदभाव के विरुद्ध जागरूकता फैलाने का कार्य किया।
2. धर्म में व्याप्त आडंबर – मध्यकालीन समाज में धर्म अपने वास्तविक स्वरूप को खो चुका था। धर्म के नाम पर पंडित, मौलवी आदि सामान्य लोगों को मूर्ख बनाते थे। लोग धर्म के नाम पर बलि देना, अग्नि पर चलकर दुखों से दूर हो जाने, व्रत, रोजे आदि करना आदि को कबीर ने अपनी खण्डनात्मक वाणी द्वारा समाज को नई दिशा प्रदान की। दीनदयाल, तुकाराम आदि संत कवियों ने भक्ति आंदोलन के द्वारा समाज को नवीन दिशा दी। ।
3. नारी पर बढ़ते अत्याचार – मध्यकालीन भारतीय समाज में नारी का जीवन कष्ट में आ चुका था। बाल-1 -विवाह, सती प्रथा, पर्दा प्रथा आदि प्रथाएं नारी के जीवन को नरक बना चुकी थी। रानी पदमावती ने आत्म सम्मान की रक्षा के लिए जौहर किया। संत रविदास, कबीर दास, नामदेव आदि संतों ने अपनी वाणी के प्रकाश से समाज में व्याप्त अंधकार को दूर करने का प्रयास किया।
4. हिंदुओं में बढ़ती निराशा – मध्यकालीन भारतीय समाज में हिंदुओं में निराशा व अवसाद बढ़ता जा रहा था। लगातार हो रहे मुस्लिम आक्रमणों से हिंदुओं का मनोबल चकनाचूर हो रहा था। उनके मंदिर व मूर्तियों को तोड़ा जा रहा था। उन्हें जबरदस्ती मुस्लिम बनाया जा रहा था ।
इस प्रकार समाज में व्याप्त अंधविश्वास व भेदभाव, धर्म में व्याप्त आडंबर, प्रथाओं के नाम पर नारी पर हो रहे अत्याचार तथा हिंदुओं में बढ़ती निराशा के वातावरण में भक्ति आंदोलन के संत कवियों की वाणी ने जीवन को अमृत बनाने का कार्य किया।‘रामचरितमानस’, ‘सूरसागर’, ‘कबीर की साखियाँ’, ‘सूरदास के पद’, ‘मीरा के पद’, ‘रसखान के सवैये’ आदि समाज के मार्गदर्शन का कार्य कर रहे थे।
प्रश्न 4. मध्यकालीन यूरोपीय समाज की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – मध्यकालीन यूरोपीय समाज की विशेषताएं निम्नलिखित हैं –
(1) मध्यकालीन यूरोपीय समाज पादरी, सामंत तथा साधारण जन तीन वर्गों में विभाजित था।
(2) पादरी धार्मिक कार्य (जन्म, मृत्यु, विवाह आदि) करते थे ।
(3) पादरी सुन्दर महलों में रहते, भड़कीले वस्त्र तथा रत्न पहनते थे ।
(4) पादरी बनने से पूर्व बिशप द्वारा नाममात्र की परीक्षा ली जाती थी ।
(5) कुछ पादरी गिरजाघर के सोने-चाँदी के पूजा पात्रों को बेच देते थे। कुछ जुआ खेलते, लड़ते-झगड़ते भी थे।
(6) सामंत वर्ग का कार्य न्याय व सुरक्षा करना था।
(7) सामंतों के पास सैनिकों की टुकड़ी होती थी जिसका प्रमुख कार्य युद्ध करना होता था ।
(8) सामंत ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीते थे। क्रोधित होकर पत्नी या नौकर को पीटना इनकी आदत होता था ।
(9) सामान्य जन कृषि कार्य करके पादरी वर्ग व सामंत वर्ग का भरण-पोषण करता था ।
(10) घास-फूस की झोंपड़ी में कष्टदायक जीवनयापन करता था।
(11) मध्यकालीन समाज अंधविश्वास से ग्रस्त था ।
(12) मध्यकालीन समाज में उच्च वर्ग की स्त्रियाँ ऐश्वर्यपूर्ण जीवनयापन करती थीं जबकि सामान्य जन की स्त्रियाँ कठोर श्रम तथा शारीरिक यातनाओं का जीवन जीती थीं ।
(13) बड़े दिन (25 दिन) का उत्सव, मेले, मछली पकड़ना, स्केटिंग इनके मनोरंजन के साधन थे ।
(14) शिक्षा धर्म केंद्रित थी ।
(15) मध्यकालीन यूरोप का समाज अंधकार युग का था ।
लघुत्तरात्मक प्रश्न [SHORT-ANSWER TYPE QUESTIONS]
प्रश्न 1. मध्यकालीन यूरोप में स्त्रियों की स्थिति पर नोट लिखें ।
उत्तर – मध्यकालीन यूरोप में स्त्रियों की स्थिति इस बात पर निर्भर करती थी कि वे किस वर्ग से संबंधित हैं। सामंत वर्ग की स्त्रियाँ एश्वर्यपूर्ण जीवनयापन करती थीं । स्वयं को सजाना, खेल खेलना, नौकरों से काम लेना, रसोईघर, पशुओं की देखभाल आदि कार्य करती थीं, उच्च वर्ग की स्त्रियाँ घुड़सवारी, आखेट, शिकार, शस्त्र चलाने में निपुण होती थीं ।
सामान्य जन की स्त्रियों का जीवन बहुत संघर्ष से भरा होता था। वह घर, परिवार तथा भूमि की सेवा करती थीं। पिता, पति, पुत्र के दबाव में रहती थीं। वह पति के स्वामी की दासी होती थी। सामंत की पत्नी उस पर कठोर नियंत्रण रखती थी।
प्रश्न 2. नाईट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – मध्यकाल में घुड़सवार योद्धा को दी जाने वाली एक उपाधि को नाईट कहा जाता था। यह उपाधि नाईट अपने किसी शिष्य को उसकी वीरता, पराक्रम व युद्ध कौशल को देखकर देता था । नाईट बनने के लिए किसी युवक को किसी अन्य नाईट के सान्निध्य में रहकर युद्ध कला, घुड़सवारी आदि सीखना पड़ता था। वृद्धों का सम्मान करना, नारी का सम्मान व सुरक्षा करना, शौर्य तथा वीरता का भाव जागृत करना प्रशिक्षण का उद्देश्य होता था। इस प्रशिक्षण में पूरी तरह सफलता प्राप्त करने वाले घुड़सवार ही नाईट उपाधि का सही हकदार होता था । नाईट भाला, बर्धी, चाकू, मुगदर व ढाल आदि रखता था।
प्रश्न 3. ‘उलेमा’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – धार्मिक क्रियाकलाप द्वारा अपनी आजीविका चलाने वाले मुस्लिम वर्ग को उलेमा वर्ग के नाम से जाना जाता था। उलेमा फारसी भाषा का शब्द है जोकि आलिम शब्द का बहुवचन है। आलिम शब्द मूल रूप से ‘इल्म’ से बना है इल्म अर्थात् ज्ञान। इस प्रकार इल्म (ज्ञान) रखने वाला वर्ग उलेमा वर्ग कहलाता था। मध्यकालीन मुस्लिम समाज में विद्वान लोगों का प्रमुख वर्ग मौलवी, न्यायाधीश, मदरसे या मकतब के शिक्षक आदि उलेमा कहलाते थे। जिस तरह ब्राह्मण विवाह सम्पन्न करवाते थे उसी प्रकार उलेमा ‘निकाह’ करवाते थे ।
प्रश्न 4. धर्मांतरण का अर्थ तथा उद्देश्य स्पष्ट करें।
उत्तर – सरल शब्दों में, धर्मांतरण शब्द का अर्थ ‘ धर्म का परिवर्तन’ है। मध्यकालीन भारत में अनेक आक्रमणकारियों, व्यापारी वर्ग, सूफी संत आदि के द्वारा इस्लाम का प्रवेश हुआ।
उद्देश्य — धर्मांतरण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) इस्लाम का प्रचार-प्रसार करना ।
(2) जनता के मन पर अपना रौब जमाना ।
(3) साम्राज्य विस्तार की इच्छा ।
(4) स्थायी सत्ता बनाने की इच्छा ।
जब तलवार के बल पर धर्मांतरण नहीं किए गए तो लोभ तथा लालच के बहकावे में लोगों को जबरदस्ती धर्मांतरण के प्रयास किए गए।
प्रश्न 5. साहित्य के क्षेत्र में मध्यकाल की क्या उपलब्धियाँ रहीं?
उत्तर – साहित्य के क्षेत्र में मध्यकाल को साहित्य का स्वर्ण युग कहा जा सकता है। जितने सुन्दर काव्य ग्रंथ मध्यकाल में लिखे गए उतने सुंदर काव्य ग्रंथ न तो इसके पूर्व कभी लिखे गए न ही लिखे जाने की संभावना है। इस काल की प्रमुख रचनाएँ हैं- राजतरंगिनी (कल्हण), रामचरितमानस (तुलसीदास), पदमावत् (मलिक मोहम्मद जायसी), सूरसागर (सूरदास), अबुल फजल की अकबरनामा आदि।
रामचरितमानस जैसे महाकाव्य की महत्ता इतनी अधिक है कि प्रत्येक मंदिर व हिंदू घर में ‘रामचरितमानस’ प्राप्त हो सकता है।
अति-लघुत्तरात्मक प्रश्न [VERY SHORT-ANSWER TYPE QUESTIONS]
प्रश्न 1. मध्यकालीन यूरोपीय समाज प्रमुख रूप से कितने वर्गों में बंटा था?
उत्तर – मध्यकालीन यूरोपीय समाज प्रमुख रूप से तीन वर्गों में बंटा था। प्रथम वर्ग पादरियों का वर्ग था जो ईश्वर की सेवा करते और चर्च की व्यवस्था देखते थे। दूसरा वर्ग सामन्तों का वर्ग था जो समाज की रक्षा करते थे। तीसरा वर्ग जन सामान्य का वर्ग था जो प्रथम वर्ग और दूसरे वर्ग के लिए जीवनयापन के साधन जुटाता था।
प्रश्न 2. पादरी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – पादरी वर्ग का समाज में सबसे ऊँचा स्थान था तथा इनका यूरोपीय समाज पर बहुत अधिक प्रभाव था। पादरी वर्ग गिरजाघर से संबंधित था जो ईसाइयों की उपासना का घर होता था। पादरी एक प्रकार के भू-स्वामी होते थे जो भूमि से प्राप्त आय का उपयोग अपने निजी हितों के लिए करते थे ।
प्रश्न 3. बिशप किसे कहा जाता था?
उत्तर – गिरजाघर की व्यवस्था देखने वाले तथा नेतृत्व करने वाले पादरियों को बिशप कहा जाता था। दरबार तथा सामन्तों के अपने-अपने गिरजाघर होते थे, जहाँ पर अलग-अलग बिशप अपनी गतिविधियाँ चलाते थे । बिशप का जीवन शानो-शौकत से पूर्ण था। ये बड़े-बड़े शानदार महलों में रहते थे ।
प्रश्न 4. मेनर से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – मेनर छोटे सामन्तों की भू-सम्पदा होती थी जिसमें एक किला व सैकड़ों एकड़ भूमि होती थी । मेनर के किलों की रचना व सजावट साधारण होती थी | मेनर का भू-स्वामी अपनी भूमि पर दास कृषकों अर्थात् किसानों से कृषि / खेती करवाता था।
प्रश्न 5. सामन्त वर्ग पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर – सामन्त वर्ग का प्रमुख कार्य न्याय व रक्षा करना था। सामन्त वर्ग यूरोपीय समाज का शासकीय वर्ग था। सामन्त न्यायालय में बैठकर न्याय किया करते थे। सामन्त वर्ग के पास सैनिकों का एक मुख्य भाग होता था जिसका प्रमुख कार्य युद्ध में भाग लेना होता था। सामन्त भी बड़े महलों में रहते थे तथा वैभवशाली जीवन व्यतीत करते थे ।
प्रश्न 6. सामान्य जन मध्यकालीन समाज का कौन-सा वर्ग था ?
उत्तर – सामान्य जन मध्यकालीन समाज का तीसरा वर्ग था। इस वर्ग का मुख्य कार्य पादरी वर्ग और सामन्त वर्ग के लिए उत्पादन करना था। मध्यकालीन व्यवस्था कृषि पर आधारित होने के कारण इस वर्ग में बहुत अधिक मात्रा में किसान सम्मिलित थे। सामन्त वर्ग दो प्रकार के थे। एक स्वतन्त्र तथा दूसरा कृषि-दास, इनकी स्थिति व जीवन-शैली में बहुत अंतर था।
प्रश्न 7. बेगार किसे कहा जाता था?
उत्तर – दासों का जीवन व्यतीत करने वाले लोग स्वामी की अनुमति के बिना कोई भी कार्य नहीं कर सकते थे। उन्हें स्वामी की भूमि पर खेती के साथ-साथ स्वामी के घर के अनेक काम/कार्य करने पड़ते थे जिसके बदले में उनको कोई मजदूरी नहीं मिलती थी। इस प्रकार किए गए कार्यों को बेगार कहा जाता है।
प्रश्न 8. बपतिस्मा क्या है?
उत्तर – बपतिस्मा एक प्रकार की धार्मिक क्रिया है जो ईसाई धर्म में प्रक्षालन करने अर्थात् किसी व्यक्ति को चर्च की सदस्यता देने के लिए की जाती है। किसान अंधविश्वास के कारण बपतिस्मा का जल फसलों पर छिड़कने तथा पशुओं को पिलाने के लिए उपयोग करते थे ।
प्रश्न 9. ईसाई मठों में जीवन किस प्रकार का था?
उत्तर – मठ का संचालन मठाधीश करता था । मठाधीश के अंतर्गत सहायक मठाधीशों की नियुक्ति की जाती थी जो सामान्यतया सामन्त ही होते थे। सामन्त का जीवन वैभवशाली होता था परन्तु मठ की आचार संहिताओं पर आधारित होता था।
प्रश्न 10. मध्यकालीन यूरोप में स्त्रियों का जीवन किस प्रकार का था ?
उत्तर—मध्यकालीन यूरोप में सामन्त वर्ग की स्त्रियाँ वैभवशाली जीवन व्यतीत करती थीं। उन्हें सजना-सँवरना पसन्द था । विभिन्न प्रकार के खेल खेलने की भी शौकीन थी। पति की अनुपस्थिति में उन्हें स्वामी की भूमिका निभानी पड़ती थी। ये स्त्रियां दूध देने वाले पशुओं की देखभाल, बगीचों और रसोईघर की देखभाल के साथ-साथ कढ़ाई-बुनाई इत्यादि का काम भी करती थीं। परंतु सामान्य जन अर्थात् किसानों की स्त्रियों का जीवन बड़ा कष्टपूर्ण था।
प्रश्न 11. मध्यकालीन यूरोप में मनोरंजन के साधन क्या-क्या थे?
उत्तर – मध्यकालीन यूरोप में मनोरंजन के साधन में सम्मिलित थे- मध्यकालीन मेले, बाजीगर व जादूगर द्वारा खेल दिखाना, गीत-संगीत, सर्दियों में स्केटिंग का खेल, मछली पकड़ना इत्यादि ।
प्रश्न 12. सामन्ती व्यवस्था में नाईट का क्या स्थान था ?
उत्तर – नाईट का यूरोपीय समाज में बहुत अधिक सम्मान था। मध्यकालीन यूरोप में योद्धा वर्ग के लोगों को नाईट कहा जाता था। नाईट बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता था। मध्यकालीन यूरोप में सामन्तों के बीच संघर्ष एक साधारण बात होती थी जिसमें ‘नाईट’ सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। नाईट अपने पास भाला, चाकू, शिरास्त्राण इत्यादि रखता था।
प्रश्न 13. मध्यकालीन यूरोप के सामन्त की शिक्षा पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर – मध्यकालीन यूरोप के अधिकांश सामन्त को अपना नाम तक भी लिखना नहीं आता था क्योंकि उनकी रुचि शिक्षा में न होकर युद्ध विद्या में थी । वे लिखने के काम को अपनी शान के विरुद्ध मानते थे। प्राथमिक शिक्षा पर गिरजाघर या चर्च का आधिपत्य होता था जिनके साथ एक विद्यालय भी होता था जिसमें वही बालक पढ़ने आते थे जिन्होंने अपना जीवन पादरी या भिक्षु बनकर व्यतीत करने का निर्णय कर लिया था ।
प्रश्न 14. मध्यकालीन यूरोप के विश्वविद्यालय कौन-कौन से थे ?
उत्तर – बोलाग्ना विश्वविद्यालय (इटली), पेरिस विश्वविद्यालय (फ्रांस), ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (इंग्लैंड), कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (इंग्लैंड), विटेनबर्ग विश्वविद्यालय (जर्मनी) ।
प्रश्न 15. भारतीय समाज की संरचना कैसी थी?
उत्तर – मध्यकाल में भारतीय समाज की संरचना बहुत जटिल थी। अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित थी इसलिए किसान का सामाजिक संरचना में महत्त्वपूर्ण स्थान था। भारतीय समाज ग्रामीण था जिसमें जमींदार के अतिरिक्त किसानों की अनेक श्रेणियां थीं।
प्रश्न 16. भारतीय समाज के शासकीय वर्ग में कौन-से दो वर्ग सम्मिलित थे?
उत्तर – भारतीय समाज का शासकीय वर्ग शासकीय कार्यों में संलग्न था। शासकीय वर्ग में दो वर्ग सम्मिलित थे। पहला वर्ग शाही शक्ति या केन्द्रीय सत्ता का प्रतिनिधित्व करता था । दूसरा वर्ग स्थानीय शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता था जिसमें स्थानीय शासक, सरदार तथा भू-स्वामी सम्मिलितं थे ।
प्रश्न 17. उलेमा तथा मकतब से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – उलेमा फारसी भाषा के शब्द आलिम का बहुवचन है जो मूल रूप से ‘इल्म’ से बना है जिसका अर्थ ज्ञान होता है। दूसरे शब्दों में, इल्म रखने वाला आलिम होता है। मकतब एक प्रकार का विद्यालय होता था जिसमें विद्यार्थी अक्षर ज्ञान और धार्मिक शिक्षा प्राप्त करता था ।
प्रश्न 18. खुदकाश्त कौन थे?
उत्तर – कृषक श्रेणी में यह शब्द ऊँचे दर्जे के किसानों के लिए प्रयोग होता है। खुदकाश्त दो शब्दों के मेल से बना है खुद एवं काश्त जिसका अर्थ है वह व्यक्ति जो अपनी भूमि को स्वयं जोतता हो अर्थात् अपनी भूमि पर स्वयं खेती करने वाला। इस व्याख्या के अनुसार कृषक अपनी भूमि का मालिक होता था । वह अपने गाँव में ही परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर खेती करता था । वह अपनी भूमि को बेचने, गिरवी रखने या हस्तान्तरित करने का अधिकार रखता था । उसे ज़मीन से बेदखल नहीं किया जा सकता था ।
प्रश्न 19. पाहीकाश्त कौन थे?
उत्तर – पाही का अर्थ होता है – पड़ोसी या ऊपरी / बाहरी अर्थात् वह व्यक्ति जो पड़ोस के गाँव या दूसरे गाँव की ज़मीन पर खेती करता था। वह दूसरे गाँव की ज़मीन ठेके पर लेता था या खरीद लेता था। इसका कारण दूसरे गाँव की भूमि का अच्छा होना था। अकाल इत्यादि के समय मजबूरी में कृषि करता था । कुछ स्रोतों में पाही शब्द की व्याख्या अपने ही गाँव में पड़ोसी की खेती जोतने के रूप में भी की गई है। इस कृषक को शर्तों के अनुरूप खेती करनी होती थी ।
प्रश्न 20. मुजरियान या मुँजारा कौन थे?
उत्तर – यह कृषकों की श्रेणी में सबसे निचले दर्जे पर था। उसके पास हल व बैल तो अपने थे लेकिन वह ज़मीन का मालिक नहीं था। उसके पास भूमि खरीदने व ठेके पर लेने की क्षमता भी नहीं थी । अतः वह किसी भी किसान के साथ हिस्सेदार व बँटाईदार के रूप में खेती करता था । उत्पादन को बाद में एक निश्चित मात्रा में बाँट लिया जाता था। इस वर्ग की संख्या काफी थी व इसकी स्थिति हमेशा दयनीय थी। ज़मीन का मालिक उसे प्रतिवर्ष अपनी शर्तों के अनुरूप खेती करने को देता था ।
प्रश्न 21. कारीगर पर एक संक्षिप्त नोट लिखें ।
उत्तर – मध्यकालीन भारत में कारीगरों का वर्ग अपने कार्य में बड़ा दक्ष था । कारीगर भवन निर्माण, वस्तु निर्माण, कपड़ा उद्योग इत्यादि कार्यों में अपनी भूमिका निभाते थे। ग्रामीण कारीगर मुख्यत: अपने घर में ही काम करते थे; जैसे स्त्रियां व बच्चे कपास से बिनौले अलग करने का, सूत कातने का, पुरुष कपड़ा बुनने का काम करते थे ।
प्रश्न 22. मध्यकाल में भारत की प्राचीन शिक्षा के प्रमुख केन्द्र किस ओर अग्रसर हो गए? 
उत्तर – मध्यकाल में भारत की प्राचीन शिक्षा के प्रमुख केन्द्र नालन्दा, तक्षशिला, मथुरा, गया, विक्रमशीला, उज्जैन आदि अवनति की ओर अग्रसर हो गए। आक्रमणकारी वख्तियार खिलजी ने नालन्दा विश्वविद्यालय को आग के हवाले कर दिया। अनेक मंदिरों को तोड़ा गया और उनके मिलने वाले अनुदान भी बंद हो गए थे।
प्रश्न 23. भक्ति आंदोलन का उदय क्यों हुआ?
उत्तर – भक्ति आंदोलन मध्यकालीन भारतीय समाज की एक प्रमुख विशेषता है। मध्य युग में भारतीय समाज को अंधविश्वास, भेदभाव तथा कर्मकाण्डों से मुक्त कराने के साथ आत्मविश्वास एवं आत्मसम्मान की भावना को जागृत करने के लिए भक्ति आंदोलन का उदय हुआ।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न [OBJECTIVE TYPE QUESTIONS]
I. एक शब्द या एक वाक्य में उत्तर दीजिए
प्रश्न 1. यूरोप में मध्यकाल को क्या कहा गया ? 
उत्तर – यूरोप में मध्यकाल को अंधयुग कहा गया ।
प्रश्न 2. पादरियों का मुख्य कार्य था? 
उत्तर – ईश्वर की सेवा करना और चर्च की व्यवस्था की देखभाल करना ।
प्रश्न 3. मध्यकालीन यूरोपीय समाज मुख्य रूप से कितने वर्गों में बँटा हुआ था? 
उत्तर—मध्यकालीन यूरोपीय समाज मुख्य रूप से तीन वर्गों में बँटा हुआ था।
प्रश्न 4. ईसाइयों का उपासना घर किसे कहा जाता था? 
उत्तर – गिरजाघर को।
प्रश्न 5. बड़े गिरजाघर के पादरियों का रहन-सहन किस प्रकार का था?
उत्तर – बड़े गिरजाघर के पादरी सुन्दर महलों में रहते थे। वे भड़कीले रेशमी वस्त्र तथा रत्न पहनते थे ।
प्रश्न 6. ग्रामवासी अपनी आय का कितना भाग चर्च को देते थे?
उत्तर – ग्रामवासी अपनी आय का दसवां भार्ग चर्च को देते थे।
प्रश्न 7. छोटे पादरी प्रार्थना के लिए कौन-सी भाषा का प्रयोग करते थे?
उत्तर – छोटे पादरी प्रार्थना के लिए स्थानीय भाषा का प्रयोग करते थे।
प्रश्न 8. मध्यकालीन यूरोप में सामन्त वर्ग का प्रमुख कार्य कौन-सा था ? 
उत्तर – मध्यकालीन यूरोप में सामन्त वर्ग का प्रमुख कार्य न्याय व रक्षा करना था।
प्रश्न 9. सामन्त वर्ग के बड़े भू-स्वामी क्या कहलाते थे?
उत्तर – सामन्त वर्ग के बड़े भू-स्वामी काउंट या लार्ड कहलाते थे ।
प्रश्न 10. छोटे सामन्तों की भू-सम्पदा को क्या कहा जाता था? 
उत्तर – छोटे सामन्तों की भू-सम्पदा को जागीर या मेनर कहा जाता था।
प्रश्न 11. मेनर का भूस्वामी अपनी भूमि पर किनसे कृषि करवाता था? 
उत्तर – मेनर का भूस्वामी अपनी भूमि पर दास किसानों से कृषि करवाता था।
प्रश्न 12. मध्यकालीन समाज के तीसरे वर्ग का प्रमुख कार्य न-सा था ? 
उत्तर – मध्यकालीन समाज के तीसरे वर्ग का प्रमुख कार्य दोनों वर्ग पादरी वर्ग और सामन्त वर्ग के लिए खाद्य सामग्री जुटाना था।
प्रश्न 13. मध्यकालीन समाज में किसानों की दशा कैसी थी? 
उत्तर – मध्यकालीन समाज में किसानों की दशा अत्यंत दयनीय थी ।
प्रश्न 14. यूरोपीय समाज में सर्वत्र किसका बोलबाला था ?
उत्तर – यूरोपीय समाज में सर्वत्र अंधविश्वास का बोलबाला था।
प्रश्न 15. ईसाई धर्म में प्रक्षालन करने या किसी व्यक्ति की चर्च की सहायता देने के लिए की जाने वाली धार्मिक क्रिया क्या कहलाती थी?
उत्तर- बपतिस्मा ।
प्रश्न 16. यूरोप में अर्थव्यवस्था किस पर आधारित थी?
उत्तर – यूरोप में अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित थी ।
प्रश्न 17. यूरोप में तीसरी से छठी शताब्दी के बीच किसका विकास हुआ?
उत्तर — यूरोप में तीसरी से छठी शताब्दी के बीच मठवाद विकास हुआ।
प्रश्न 18. मध्यकालीन यूरोप में सामन्त वर्ग की स्त्रियाँ किस प्रकार का जीवन व्यतीत करती थीं?
उत्तर – वैभवपूर्ण जीवन व्यतीत करती थीं ।
प्रश्न 19. मध्यकाल में सफलतापूर्वक प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले घुड़सवार योद्धा को कौन-सी उपाधि प्राप्त थी? 
उत्तर – मध्यकाल में सफलतापूर्वक प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले घुड़सवार योद्धा को नाईट की उपाधि प्राप्त थी ।
प्रश्न 20. उलेमा किस भाषा का शब्द है? 
उत्तर – उलेमा फारसी भाषा के शब्द आलिम का बहुवचन है।
प्रश्न 21. जहाँ विद्यार्थी अक्षर ज्ञान के साथ-साथ धार्मिक शिक्षा प्राप्त करते थे क्या कहलाता था? 
उत्तर – मकतब
प्रश्न 22. 13वीं से 15वीं सदी के बीच भूमिकर का अधिकार प्राप्त करने वाले शासकीय वर्ग की इकाई क्या कहलाती थी? 
उत्तर – इक्ता ।
प्रश्न 23. मध्यकाल में भारत में धार्मिक क्रियाकलापों से अपनी जीविका कमाने वाले वर्ग को क्या कहा जाता था? 
उत्तर – उलेमा वर्ग।
प्रश्न 24. मध्यकाल में ग्रामीण सेवादारों का एक ऐसा वर्ग जो काम के बदले फसल का एक भाग प्राप्त करते थे, क्या कहलाता था?
उत्तर – बलुतेदार ।
प्रश्न 25. ‘पाही’ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर – ऊपरी अथवा बाहरी ।
प्रश्न 26. मध्यकालीन भारतीय समाज में अपनी भूमि पर स्वयं खेती करने वाली श्रेणी क्या कहलाती थी?
उत्तर – खुदकाश्त किसान।
प्रश्न 27. किसी बड़े जमींदार की भूमि पर खेती करने वाले कृषक, जिन्हें उपज का एक हिस्सा प्राप्त होता था, क्या कहलाते थे? 
उत्तर – मुजारियाँ ।
प्रश्न 28. मध्यकालीन भारतीय समाज में किस महिला ने पर्दा प्रथा को त्याग कर अपना जीवन ईश्वर भक्ति में समर्पित कर दिया था?
उत्तर – मीराबाई ।
प्रश्न 29. किस विश्वविद्यालय को आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने आग के हवाले कर दिया था?
उत्तर – नालन्दा विश्वविद्यालय ।
प्रश्न 30. कल्हण की रचना का नाम बताइए।
उत्तर – राजतरंगिनी ।
II. बहुविकल्पीय प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर दीजिए
1. मध्यकालीन यूरोपीय समाज मुख्य रूप से कितने वर्गों में बँटा हुआ था ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) पाँच
उत्तर – (C)
2. मध्यकालीन यूरोपीय समाज में कौन-सा वर्ग सर्वोच्च था?
(A) कृषक
(B) शासकीय
(C) भू-स्वामी
(D) पादरी
उत्तर – (D)
3. गिरजाघर की घंटी किसके लिए लोगों का आह्वान करती थी ?
(A) प्रार्थना के लिए
(B) खतरे के लिए
(C) फरियाद के लिए
(D) प्रचार के लिए
उत्तर – (A)
4. मध्यकालीन यूरोपीय समाज में दूसरा वर्ग क्या कहलाता था?
(A) पादरी
(B) कृषक
(C) सामन्त
(D) लार्ड
उत्तर – (C)
5. सामन्त कहाँ बैठकर न्याय करते थे?
(A) विद्यालय में
(B) न्यायालय में
(C) गिरजाघर में
(D) पंचायत में
उत्तर – (B)
6. एक किला व सैकड़ों एकड़ भूमि किसमें होती थी ?
(A) मेनर में
(B) काउंट में
(C) लार्ड में
(D) विशप में
उत्तर – (A)
7. किसान किसका जल फसलों पर छिड़कते थे?
(A) कुओं का
(B) नदियों का
(C) ट्यूबवेल का
(D) बपतिस्मा का
उत्तर – (D)
8. मध्यकालीन यूरोपीय समाज में जिन किसानों की अपनी जमीन होती थी, वह क्या कहलाते थे?
(A) स्वतंत्र किसान
(B) परतंत्र किसान
(C) दास
(D) भू-स्वामी
उत्तर – (A)
9. बुद्धिमान पादरी किसके विरोधी थे?
(A) प्रार्थना सभाओं के
(B) गिरजाघरों के
(C) अंधविश्वासों के
(D) परंपराओं के
उत्तर – (C)
10. मठ का संचालन कौन करता था?
(A) मठासीन
(B) मठाधीश
(C) सामन्त
(D) पादरी
उत्तर – (B)
11. मध्यकालीन यूरोपीय समाज में उच्च वर्ग की स्त्रियाँ किसमें दक्ष होती थीं?
(A) घुड़सवारी
(B) आखेट
(C) शस्त्र संचालन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D)
12. मध्यकालीन यूरोप में योद्धा वर्ग के लोग क्या कहलाते थे?
(A) नाईट
(B) डे
(C) रेड
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (A)
13. विटेनबर्ग विश्वविद्यालय कहाँ स्थित है?
(A) इंग्लैंड
(B) जर्मनी
(C) फ्रांस
(D) इटली
उत्तर – (B)
14. मध्यकालीन भारतीय समाज में अर्थव्यवस्था किस पर आधारित थी?
(A) व्यापारी
(B) बुद्धिजीवी
(C) कृषि
(D) व्यवसाय
उत्तर- (C)
15. तीसरी से छठी शताब्दी के बीच यूरोप मे मठों में कौन रहते थे?
(A) एकांतवासी
(B) सामूहिक लोग
(C) कृषक
(D) शासक
उत्तर – (A)
16. मेनर या जागीर में स्त्रियों को पति की अनुपस्थिति में किस प्रकार की भूमिका निभानी पड़ती थी?
(A) दासी
(B) रानी
(C) नौकरानी
(D) स्वामी
उत्तर-(D)
17. मध्यकालीन यूरोप में किस अवसर पर विशेष प्रकार के व्यंजन बनाए जाते थे?
(A) योद्धाओं की विजय पर
(B) ईस्टर
(C) न्यू ईअर
(D) गुड फ्राइडे
उत्तर- (B)
18. आलिम शब्द मूल रूप से ‘इल्म’ से बना है, जिसका अर्थ है –
(A) विज्ञान
(B) विश्वास
(C) ज्ञान
(D) व्यवहार
उत्तर – (C)
19. मध्यकालीन यूरोपीय समाज पर किस धर्म का अत्यधिक प्रभाव था?
(A) वैदिक
(B) मुस्लिम
(C) हिन्दू
(D) ईसाई
उत्तर – (D)
20. यूरोप में किसान के मस्तिष्क के बारे में कौन-सी कहावत प्रचलित थी?
(A) उसका मस्तिष्क चर्म का होता है
(B) उसका मस्तिष्क मोम का होता है
(C) उसका मस्तिष्क वज्र का होता है
(D) उसका मस्तिष्क नाड़ियों का होता है
उत्तर – (C)
III. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. मध्यकालीन यूरोपीय समाज में छोटे पादरी गिरजाघर के ……………….. होते थे I
2. ग्रामवासी अपनी आय का ……………….. भाग चर्च को देते थे।
3. सामन्त वर्ग का मुख्य कार्य …………….. व रक्षा करना था।
4. बड़े भू-स्वामी ……………. कहलाते थे ।
5. मध्यकालीन यूरोपीय समाज का तीसरा वर्ग ……………… था।
6. यूरोपीय समाज में सर्वत्र …………….. का बोलबाला था ।
7. इंग्लैण्ड में ………………. में भी लोगों की रुचि होती थी ।
8. मध्यकालीन समाज में ……………….. तथा ……………….. का प्रचलन था ।
9. हिन्दुओं में ब्राह्मण तथा मुसलमानों में …………………….. रीति-रिवाज़ों के अनुसार विवाह सम्पन्न करवाते थे ।
10. ……………… में विद्यार्थी अक्षर ज्ञान के साथ-साथ धार्मिक शिक्षा प्राप्त करता था।
उत्तर – 1. संरक्षक, 2. दसवाँ, 3. न्याय, 4. काउंट, 5. सामान्य जन, 6. अंधविश्वास, 7. धनुर्विद्या, 8. कर्मकांड, जादू-टोने, 9. उलेमा, 10. मकतब ।
IV. सही या गलत की पहचान करें
1. यूरोप के सभी भागों में असंख्य गिरजाघर थे।
2. यूरोपीय समाज में लोगों का यह विश्वास था कि गिरजाघर की घंटी की ध्वनि में तूफान व भूत प्रेत से रक्षा करने की शक्ति है।
3. मध्यकालीन यूरोप में समाज में सामन्तों को युद्ध विद्या, आखेट व घुड़सवारी की शिक्षा नहीं दी जाती थी ।
4. किसान बपतिस्मा का जल दुधारू पशुओं के दूध में मिलाते थे।
5. नाईट ढाल, भाला, बर्धी, चाकू तथा शिरास्त्राण इत्यादि रखता था तथा जिरहबख्तर भी धारण करता था ।
6. उलेमा संस्कृत भाषा के शब्द इल्म का बहुवचन है।
7. मध्यकाल में ग्रामीण सेवादारों का एक वर्ग जो काम के बदले फसल का एक भाग प्राप्त करते थे, बलूतेदार कहलाते थे।
8. अपनी भूमि पर स्वयं काश्त या खेती करने वाले किसान को पाहीकाश्त कहा जाता था ।
9. मध्यकाल में ढाका की मलमल यूरोपीय बाजारों में आकर्षण का केंद्र थी ।
10. भक्ति आंदोलन की शुरुआत अंधविश्वास तथा भेदभाव को जागृत करने के लिए की गई है।
उत्तर – 1. सही, 2. सही, 3. गलत, 4. गलत, 5. सही, 6 गलत, 7. सही, 8 गलत, 9. सही, 10 गलत ।
V. उचित मिलान करें
1. पेरिस विश्वविद्यालय                           (क) इंग्लैण्ड
2. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय                        (ख) दक्षिण भारत
3. बोलाग्ना विश्वविद्यालय                         (ग) फ्रांस
4. विटेनबर्ग विश्वविद्यालय                       (घ) इटली
5. राय                                                (ङ) जर्मनी
उत्तर – 1. (ग), 2. (क), 3. (घ), 4. (ङ), 5. (ख)।

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