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Haryana Board 10th Class Social Science Solutions History Chapter 7 उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद

Haryana Board 10th Class Social Science Solutions History Chapter 7 उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद

HBSE 10th Class History उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद Textbook Questions and Answers

अध्याय का संक्षिप्त परिचय
◆ उपनिवेशवाद – उपनिवेशवाद से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें कोई राष्ट्र अपनी राजनीतिक शक्ति का विस्तार अन्य राष्ट्रों पर नियंत्रण स्थापित कर वहाँ के संसाधनों का प्रयोग अपने हित के लिए करता है।
◆ साम्राज्यवाद – किसी शक्तिशाली देश द्वारा अपनी शक्ति, नियन्त्रण और शासन को उसकी अपनी सीमाओं से बाहर के क्षेत्रों एवं अन्य देशों के राजनीतिक और आर्थिक जीवन पर लादना या थोपना साम्राज्यवाद कहलाता है ।
◆ साम्राज्यवाद के प्रसार में सहायक परिस्थितियाँ- (1) यूरोपीय देशों में औद्योगिक क्रांति, (2) अतिरिक्त पूँजी का निर्यात, (3) यातायात व संचार के साधनों का विकास, (4) उग्र-राष्ट्रवाद की भावना, (5) ईसाई पादरियों या धर्म प्रचारकों की भूमिका, (6) असभ्य को सभ्य बनाना, (7) खोजकर्त्ताओं का योगदान, (8) एशिया और अफ्रीका में अनुकूल परिस्थितियाँ, (9) यूरोप की जनसंख्या में वृद्धि आदि ।
◆ साम्राज्यवाद का विकास- (1) एशिया में साम्राज्यवाद, (2) इंग्लैंड के उपनिवेश, (3) पुर्तगाल के उपनिवेश, (4) हॉलैंड के उपनिवेश, (5) फ्रांस के उपनिवेश, (6) जर्मनी के उपनिवेश, (7) चीन में उपनिवेश, (8) अफ्रीका में साम्राज्यवाद ।
◆ औद्योगिक क्रांति- वे तीव्र परिवर्तन, जिन्होंने उत्पादन की तकनीक और संगठन को नया और क्रांतिकारी मोड़ दिया तथा जिनके कारण घरेलू उद्योग-धन्धों के स्थान पर बड़े-बड़े कारखानों का जन्म हुआ।
◆ शोषण- किसी शक्तिशाली देश द्वारा किसी अन्य कमज़ोर देश पर अपना अधिकार करके उसके समस्त संसाधनों को अपने हितों एवं स्वार्थों की पूर्ति के लिए प्रयोग करना ही कमजोर देश का शक्तिशाली देश द्वारा किया जाने वाला ‘शोषण’ कहलाता है।
अभ्यास के प्रश्न-उत्तर
⇒ आओ जानें-
प्रश्न 1. साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का अर्थ व साम्राज्यवाद के प्रसार में कौन-कौन-सी परिस्थितियाँ सहायक रहीं? 
उत्तर – साम्राज्यवाद का अर्थ – साम्राज्यवाद का शाब्दिक अर्थ किसी शक्तिशाली राज्य द्वारा अपनी सीमा से बाहर किसी अन्य राज्य पर अधिकार जमाने से लिया जाता है । अतः साम्राज्यवाद तब होता है जब कोई देश या एक साम्राज्य अपनी शक्ति का उपयोग करके अन्य देशों को प्रभावित करता है ।
उपनिवेशवाद का अर्थ – उपनिवेशवाद से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें कोई राष्ट्र अपनी राजनीतिक शक्ति का विस्तार अन्य राष्ट्रों पर नियंत्रण स्थापित कर वहाँ के संसाधनों का प्रयोग अपने हित के लिए करता है । वह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उस देश के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक गतिविधियों पर भी अपना नियंत्रण स्थापित करता है।
साम्राज्यवाद के प्रसार में सहायक परिस्थितियाँ – साम्राज्यवाद के प्रसार में सहायक परिस्थितियाँ निम्नलिखित थीं –
(1) यूरोपीय देशों में औद्योगिक क्रांति ।
(2) अतिरिक्त पूँजी का निर्यात ।
(3) यातायात व संचार के साधनों का विकास ।
(4) उग्र – राष्ट्रवाद की भावना ।
(5) ईसाई पादरियों या धर्म प्रचारकों की भूमिका ।
(6) असभ्य को सभ्य बनाना ।
(7) खोजकर्ताओं का योगदान ।
(8) एशिया और अफ्रीका में अनुकूल परिस्थितियाँ ।
(9) यूरोप की जनसंख्या में वृद्धि आदि ।
प्रश्न 2. भारत के सन्दर्भ में इंग्लैंड व फ्रांस के उपनिवेशिक विकास के बारे में लिखें । 
उत्तर – भारत के साथ व्यापार करने के उद्देश्य से पुर्तगाली, डच, अंग्रेज और फ्रांसीसी लोग भारत आए। कुछ समय तक पुर्तगाली एवं डच व्यक्तियों ने भारत में व्यापार किया परंतु 18वीं शताब्दी के आरंभ में उनकी शक्ति भारत में लगभग समाप्त हो गई। केवल अंग्रेज एवं फ्रांसीसी ही भारत में रहे ।
इंग्लैण्ड– भारत एशिया में इंग्लैण्ड का सबसे विस्तृत, लाभकारी और सुरक्षित उपनिवेश था । ‘ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी’ ने वाणिज्यवादी युग में ही भारत के काफी बड़े क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था । 1857 ई० के जन-विद्रोह के पश्चात् कम्पनी-राज खत्म कर दिया गया और सीधा इंग्लैण्ड का राज भारत में लागू कर दिया गया । वस्तुतः 19वीं सदी के मध्य से भारत में ब्रिटिश पूँजी निवेश बढ़ रहा था। इसीलिए भारत में उन्हें और भी सुरक्षित औपनिवेशिक व्यवस्था की जरूरत थी । कम्पनी की व्यवस्था पर भरोसा नहीं किया जा सकता था। ब्रिटिश पूँजीपतियों ने साम्राज्यवाद के इस दौर में, भारत में ब्रिटिश सरकार को कर्ज तथा रेलवे के निर्माण में पूँजी निवेश कर खूब मुनाफा बटोरा ।
फ्रांस – यूरोप के अन्य साम्राज्यवादी देशों की भान्ति फ्रांस ने भी एशिया पर अपना अस्तित्व कायम करने में हिस्सा लिया। उन्होंने अपना पहला निशाना भारत को बनाया । इस कड़ी में वे पाण्डिचेरी (1674 ई०), चन्द्रनगर (1690 ई०) में अपनी बस्तियाँ बना पाए। 1725 ई० में उन्होंने मालाबार पर भी कब्जा कर लिया तथा 1739 ई० में कारीकल उनका व्यापारिक केन्द्र बन गया । 1720 ई० में फ्रांसीसियों ने अपनी कम्पनी का पुनर्गठन किया जिसके आधार पर ये काफी शक्तिशाली हो गए। फिर फ्रांसीसियों ने दक्षिण भारत की राजनीति में हस्तक्षेप करना शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप उनका अंग्रेज़ों से सम्पर्क हुआ। 1746-1763 ई० के बीच तीन कर्नाटक के युद्ध हुए जिसके अन्तिम दौर में फ्रांसीसियों की हार हुई उनका प्रभाव क्षेत्र सीमित रह गया ।
प्रश्न 3. अफ्रीका में साम्राज्यवाद के विकास में किन-किन देशों ने भाग लिया, इनके बारे में लिखें?
उत्तर – अफ्रीका में साम्राज्यवाद शक्तियाँ 1875 ई० तक मुख्यत: तटवर्ती क्षेत्रों तक ही सीमित थी । 1875 ई० के बाद यूरोपीय शक्तियों में अफ्रीका में अधिक-से-अधिक उपनिवेश प्राप्त करने के लिए आपसी संघर्ष आरंभ हो गया। अफ्रीका के कुछ देशों को छोड़कर समस्त अफ्रीका में यूरोपीय शक्तियों के उपनिवेश स्थापित हो गए। अफ्रीका के साम्राज्यवाद विकास में बेल्जियम, पुर्तगाल, इंग्लैंड, जर्मनी और फ्रांस ने भाग लिया।
1. बेल्जियम – 19वीं शताब्दी में बेल्जियम यूरोप के सामान्य देशों की गिनती में आता था, लेकिन अफ्रीका के बँटवारे व लूटमार में यह अन्य देशों की तुलना में तेजी से आगे बढ़ा । बेल्जियम सही अर्थों में वह पहला देश था जिसने अफ्रीका के आन्तरिक हिस्सों पर नियन्त्रण जमाया। बेल्जियम का शासक लियोपोल्ड द्वितीय (Leopold-II) था। उसने मध्य अफ्रीका के कांगो क्षेत्र को अपने लिए चुना और उसके लिए कार्रवाई करनी शुरू कर दी । कांगे नदी के आसपास के क्षेत्रों को मिलाकर 1908 ई० में इसे कांगो फ्री स्टेट का नाम दिया गया। 1875-76 ई० में हेनरी मार्टिन स्टेनली ने इस क्षेत्र की खोज कर इसकी महत्ता के बारे में लियोपोल्ड को बताया । इसी आधार पर लियोपोल्ड ने फैसला कर लिया कि यहाँ किसी अन्य देश को नहीं आने दिया जाएगा ।
2. इंग्लैंड – अफ्रीका में साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा स्थापित किए गए उपनिवेशों में सर्वाधिक सफलता इंग्लैंड को मिली। इंग्लैंड ने अफ्रीका के केप ऑफ गुड होप, नटाल, मिस्र, ट्रांसवाल रोडेशिया, टंगानिका, गोल्डकोस्ट, सूडान, जांबिया, नाइजीरिया आदि में अपने उपनिवेश स्थापित किए। अफ्रीका में उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक के अधिकांश क्षेत्रों में इंग्लैंड का साम्राज्य था। अफ्रीका में मिस्र और सूडान इंग्लैंड के महत्त्वपूर्ण उपनिवेश थे ।
3. फ्रांस के उपनिवेश – भौगोलिक दृष्टि से फ्रांस ने अफ्रीका के उत्तरी क्षेत्रों को अपने निवेश के रूप में चुना। फ्रांस ने अफ्रीका में अल्जीरिया, टयूनीशिया, मोरक्को, पश्चिमी गिनी तथा मेडागास्कर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। फ्रांस ने उत्तरी क्षेत्र के इन देशों/ क्षेत्रों के बाद पूर्वी तथा पश्चिमी अफ्रीका के क्षेत्रों पर अपना ध्यान केंद्रित किया । फ्रांस अपना प्रभाव मिस्र और सूडान में भी बढ़ाना चाहता था परंतु अंग्रेजों के कड़े विरोध के कारण सफल नहीं हो सका।
4. जर्मनी – कुछ समय तक जर्मनी साम्राज्यवादी होड़ में शामिल नहीं हुआ, क्योंकि बिस्मार्क साम्राज्यवाद को ठीक नहीं मानता था। बिस्मार्क न तो अन्य यूरोपीय देशों से उलझना चाहता था, दूसरा वह आन्तरिक विकास को ज्यादा आवश्यक समझता था। परन्तु 1882 ई० के बाद उसकी सोच में बदलाव आया एवं एक औपनिवेशिक परिषद् की स्थापना की गई, जिसके माध्यम से उपनिवेश स्थापित करना समय की मांग बताते हुए बिस्मार्क इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ा ।
जर्मनी ने 1883 ई० में अफ्रीका के पश्चिमी तट को अपने प्रभाव में लिया। जिसके आधार पर एंग्रा पेक्वेना ( Angra Pequena) के क्षेत्र जर्मनी के अधिकार में आए ।
1884 ई० में एक जर्मन डॉ० नाक्टिगाल (Nachtigall) ने अफ्रीका के टोगोलैण्ड व कैमरून क्षेत्रों का पता लगाया, जिन पर बिना किसी विरोध के जर्मनी ने अधिकार कर लिया ।
5. पुर्तगाल – पुर्तगाल 19वीं शताब्दी में सैनिक दृष्टि से पहले जितना विकसित नहीं रहा था, लेकिन इस लूट-खसोट से वह भी अपने को रोक नहीं पाया । पुर्तगाल ने प्रारम्भिक दिनों में अंगोला क्षेत्र को चुन लिया था । उसने बेल्जियम की राह चलते हुए क्षेत्र कांगो के पास स्थित इस क्षेत्र को कब्जे में ले लिया । पुर्तगाल ने मोजाम्बिक क्षेत्र को एशिया के साथ व्यापार का केन्द्र मानते हुए शुरुआती दिनों में ही इस पर अधिकार कर लिया । प्रारम्भ में इसे पुर्तगाली पूर्वी अफ्रीका कहा गया।
प्रश्न 4. साम्राज्यवाद में यूरोप, एशिया, अफ्रीका के देशों पर सकारात्मक व विनाशकारी प्रभावों का उल्लेख करें। 
उत्तर – साम्राज्यवाद में यूरोप, एशिया, अफ्रीका के देशों पर सकारात्मक प्रभाव – साम्राज्यवाद में यूरोप, एशिया, अफ्रीका के देशों पर सकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित हैं –
1. राष्ट्रीय एकता – साम्राज्यवादी देशों ने अपने अधीन देशों में एक प्रशासनिक प्रणाली लागू की, जिससे पराधीन देशों के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना पैदा हुई ।
2. औद्योगिक विकास – साम्राज्यवादी देशों ने अपने लाभ के लिए अपने उपनिवेशों में भी कुछ उद्योग स्थापित किए, जिससे औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिला ।
3. वैज्ञानिक दृष्टिकोण – पश्चिमी शिक्षा के माध्यम से पराधीन राष्ट्रों के लोगों का लोकतन्त्र, समानता के विचारों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिचय हुआ ।
4. धार्मिक व सामाजिक जीवन में परिवर्तन – साम्राज्यवादी देशों के धार्मिक और सामाजिक जीवन से प्रभावित होकर एशिया, अफ्रीका के देशों के लोग अपने कठोर व जटिल धार्मिक सामाजिक जीवन में परिवर्तन ले आए।
साम्राज्यवाद में यूरोप, एशिया, अफ्रीका के देशों पर विनाशकारी या नकारात्मक प्रभावए – साम्राज्यवाद में यूरोप, शिया, अफ्रीका के देशों पर विनाशकारी या नकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित हैं-
1. आर्थिक शोषण – साम्राज्यवादी देशों ने अपने अधीन देशों का भरपूर आर्थिक शोषण किया। उन्होंने इन लोगों पर बहुत अत्याचार किए। ये देश 100 सालों से अपने अधीन देशों को आर्थिक तौर पर लूटते रहे, जिसके कारण पराधीन देश बिल्कुल निर्धन हो गए । भारत की धन संपदा का बहुत निष्कासन हुआ ।
2. जातीय भेदभाव – साम्राज्यवादी देशों के लोग रंग-भेद की नीति अपनाते थे । वे अपने आपको श्रेष्ठ और उच्च जाति का समझते थे। अपने अधीन देशों के लोगों को अपने से हीन समझते थे जिसके कारण जातीय भेदभाव को बढ़ावा मिला ।
3. युद्धों की भरमार –  साम्राज्यवादी देशों ने अपने अधीन देशों को युद्धों की आग में धकेल दिया। प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध इसके ही उदाहरण थे ।
4. औद्योगिक हास- साम्राज्यवादी देशों ने अपने अधीन देशों के उद्योगों पर कब्ज़ा जमा लिया, जिसके कारण इन देशों का औद्योगिक ह्रास हुआ। इससे बड़े उद्योगों व हस्तशिल्प उद्योगों का पतन हुआ ।
⇒ आइए विचार करें –
प्रश्न 1. साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर – प्राय: साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद दोनों ही शब्दों का प्रयोग एक-दूसरे के स्थान पर किया जाता है। इन दोनों में मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं –
साम्राज्यवाद उपनिवेशवाद
(1) साम्राज्यवाद का स्वरूप मुख्यतः राजनीतिक होता है । (1) उपनिवेशवाद का स्वरूप मुख्यतः आर्थिक होता है।
(2) जब कोई शक्तिशाली राष्ट्र या देश किसी अन्य कमजोर देश पर अपना राजनीतिक नियंत्रण स्थापित कर उसका शोषण करता है तो उसे साम्राज्यवाद कहते हैं । (2) उपनिवेशवाद के अंतर्गत औपनिवेशिक राष्ट्र/ देश उपनिवेश देश के आर्थिक, प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों का प्रयोग अपने हितों के लिए करता है ।
प्रश्न 2. साम्राज्यवादी राष्ट्रों ने शोषण के कौन-कौन से तरीके अपनाये ?
उत्तर – साम्राज्यवादी राष्ट्रों ने शोषण के निम्नलिखित तरीके अपनाएँ –
(1) उपनिवेशों के निजी एवं हस्तशिल्प उद्योगों पर अनेक प्रतिबंध लगाना अर्थात् औद्योगिक ह्रास ।
(2) उपनिवेशों के किसानों का अधिक-से-अधिक शोषण करना ।
(3) उपनिवेश के लोगों के साथ जातीय भेदभाव करना ।
(4) पश्चिमी शिक्षा लागू करना ।
(5) युद्ध।
(6) ईसाई धर्म अपनाने के लिए बाध्य करना आदि ।
प्रश्न 3. भारतीय कृषि और किसानों पर उपनिवेशवादी व्यवस्था के क्या दुष्परिणाम रहे, स्पष्ट करें? 
उत्तर – भारतीय कृषि और किसानों पर उपनिवेशवादी व्यवस्था के निम्नलिखित दुष्परिणाम रहे –
(1) उपनिवेशवाद ने भारतीय कृषि संरचना को परिवर्तित करके इसे निष्ठुर लगान की व्यवस्था में परिवर्तित कर दिया था। लगान एकत्र करने के लिए जितने भी भूमि प्रबंध लागू किए, वे सभी किसानों के शोषण पर आधारित थे।
(2) उपनिवेशवादी व्यवस्था के दौरान भूमि के स्वामी भारतीय किसान, ज़मीदारों/महाजनों के जाल में फसते चले गए और अपनी भूमि पर से उनका नियंत्रण जाता रहा।
(3) उपनिवेशवादी व्यवस्था के दौरान कर इकट्ठा करने के नियम इतने कठिन थे कि किसानों को हर परिस्थिति में, चाहे उपज हो या न हो, उन्हें ब्रिटिश सरकार को कर देना पड़ता था ।
(4) भारतीय किसानों पर लगान का बोझ अधिक हो जाने पर वे सूदखोरों/महाजनों से ऋण लेने पर बाध्य हो जाते थे। सूदखोर उन्हें अपने अनाज को निम्न दरों पर बेचने के लिए मजबूर करते थे ।
इस प्रकार उपनिवेशवादी व्यवस्था के दौरान भारतीय कृषि एवं किसानों के ऊपर ब्रिटिश सरकार, जमींदार एवं सूदखोंरो का तिहरा बोझ होता था । अकाल एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं के समय कृषि व किसानों की समस्याएँ और भी बढ़ जाती थीं। अतः उपनिवेशवादी व्यवस्था या ब्रिटिश शासन की नीतियों से भारतीय कृषि एवं किसानों पर अत्यंत नकारात्मक प्रभाव पड़े।
प्रश्न 4. भारतीय धन अथवा सम्पदा का निष्कासन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – धन अथवा संपदा के निष्कासन से अभिप्राय एक देश, दूसरे देश का धन या अन्य संपदा अपने देश में ले जाता है। इससे धन ले जाने वाला देश सर्व-संपन्न हो जाता है और जिस देश से वह धन जाता है वह कंगाल या खोखला हो जाता है। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान, सोने की चिड़िया कहलाने वाला देश आर्थिक रूप से बहुत कमज़ोर हो गया था। भारतीय धन अथवा संपदा का बहुत बड़ा भाग निंरतर इंग्लैंड की ओर जाता रहा, जिसके बदले में भारत को कोई लाभ प्राप्त नहीं होता था। इसे ही भारतीय धन अथवा संपदा का निष्कासन कहा जाता है।
⇒ आओ करके देखें –
प्रश्न 1. मानचित्र पर साम्राज्यवादी देशों द्वारा भारत में जो बस्तियां स्थापित की गई उनकी स्थिति को दर्शाओ । 
उत्तर –
प्रश्न 2. शिक्षक की सहायता से कक्षा में चर्चा करो कि अगर हमारा देश उपनिवेश नहीं रहा होता तो आज हमारा राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक जीवन कैसा होता ।
संकेत: शिक्षक की सहायता से विद्यार्थी स्वयं करें ।
प्रश्न 3. आज के भारत में कौन-कौन से औपनिवेशिक चिह्न नजर आते हैं? 
संकेत : शिक्षक की सहायता से विद्यार्थी स्वयं करें ।
परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न [LONG-ANSWER TYPE QUESTIONS] 
प्रश्न 1. साम्राज्यवाद क्या है ? इसके उदय के प्रमुख कारणों का वर्णन करें।
अथवा
साम्राज्यवाद को परिभाषित कीजिए। इसके उदय व प्रचार के क्या कारण थे? वर्णन करें। 
उत्तर – साम्राज्यवाद का अर्थ एवं परिभाषाएँ – एक देश द्वारा दूसरे देश पर अथवा दूसरे देश के किसी क्षेत्र पर अधिकार करने को साम्राज्यवाद का नाम दिया जाता है।
1. लेनिन (रूसी क्रांति के अग्रणी नेता) के अनुसार, “साम्राज्यवाद एक निश्चित आर्थिक व्यवस्था है जो पूँजीवाद के चरम विकास के समय उत्पन्न होती है । “
2. लैंगर के शब्दों में, “साम्राज्यवाद का भावार्थ एक राज्य, राष्ट्र अथवा लोगों के ऐसे अन्य समूह पर शासन अथवा अधिकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, राजनीतिक व आर्थिक स्थापित करने की तीव्र इच्छा है ।”
साम्राज्यवाद के उदय व प्रसार के कारण – साम्राज्यवाद के उदय व प्रसार के कारण निम्नलिखित हैं—
1. औद्योगिक क्रांति– औद्योगिक क्रांति की कुछ बुनियादी जरूरतों ने साम्राज्यवाद के विकास को प्रोत्साहित किया। पहली जरूरत बाजार थी। औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप बड़े स्तर पर कारखानों में उत्पादन होने लगा। उत्पादन इतना अधिक था कि कोई भी औद्योगिक राष्ट्र का बाजार इसे खपा नहीं सकता था। यूरोप के अन्य देशों में भी इसकी माँग नहीं थी क्योंकि इन सभी देशों में औद्योगिकीकरण हो चुका था । अतः औद्योगिक देशों को उपनिवेशों की जरूरत अपने औद्योगिक माल को बेचने के लिए पड़ी। वस्तुतः बाजार साम्राज्यवाद का एक मुख्य प्रेरक तत्त्व सिद्ध हुआ । दूसरी जरूरत कच्चा माल थी । कपास, नील, रबड़, जूट, लोहा, टीन इत्यादि कच्चे माल की आपूर्ति कारखानों की मूल आवश्यकता थी । यह प्रचुर मात्रा में कम दामों पर गुलाम ( उपनिवेश) देशों से ही मिलना सम्भव था ।
2. अतिरिक्त पूँजी का निर्यात – सन् 1870 के आस-पास यूरोप के विकसित राष्ट्रों में ‘पूँजी’ की मात्रा में अत्यधिक वृद्धि हो चुकी थी। विशेषतः बैंकिंग पूँजी और औद्योगिक पूँजी के मिलन से यह वृद्धि हुई । बैंकों और उद्योग दोनों के मालिक कुछ बड़े औद्योगिक घराने थे। यह बैंकों में जमा सामान्य लोगों की बचत का उपयोग भी अपने व्यवसायों में कर रहे थे। लेकिन यूरोप के देशों में निवेश की गई पूँजी पर अपेक्षाकृत मुनाफा कम मिल रहा था जबकि उपनिवेशों में पूँजी लगाने से 10 से 20 प्रतिशत तक का मुनाफा मिलने की सम्भावना थी। अतः अधिक मुनाफे के लिए अतिरिक्त पूँजी निर्यात ने साम्राज्यवाद के प्रसार में मुख्य भूमिका निभाई।
3. यातायात व संचार के साधनों का विकास – 19वीं सदी के मध्य तक यातायात व संचार के साधनों में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हो चुका था। समुद्री जहाजों का विकास तो कई शताब्दी पहले से हो रहा था। उपनिवेशवाद के वाणिज्यचादी युग में समुद्री जहाज व जल सेना ने बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । लेकिन 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में नवीन साम्राज्यवाद के विस्तार में तार, रेल, और टेलीफोन ने भी अहम् योगदान दिया । इन साधनों से उपनिवेशों पर राजनीतिक और सैनिक नियन्त्रण साम्राज्यवादी ताकतों के लिए आसान हो गया ।
4. उग्र राष्ट्रवाद की भावना – 19वीं शताब्दी में यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ। इस राष्ट्रीयता की भावना का अर्थ मात्र यह नहीं था कि वे अपने राष्ट्र का विकास करना चाहते थे, बल्कि इस राष्ट्रीयता का अभिप्राय विश्व के विभिन्न हिस्सों में अपने प्रभुत्व को जमाने से था । यूरोप में इस बात की चर्चा होने लगी कि किसी देश का विकास तथा पहचान इस बात पर निर्भर रहे कि उसके एशिया व अफ्रीका में कितने उपनिवेश हैं। यूरोप में दूसरे देशों पर कब्जा करने का फैशन सा बन गया था। इस फैशन की होड़ में यूरोप के विभिन्न देश प्रतियोगी बन गए। इसके चलते उन्होंने एशिया व अफ्रीका में अधिकाधिक प्रचार करके अपने राज्य का गौरव बढ़ाना उचित समझा।
5. ईसाई पादरियों की भूमिका – साम्राज्यवाद के प्रचार-प्रसार में धर्म की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही । यूरोप के एशिया व अफ्रीका के साथ सम्बन्ध बनते ही विभिन्न वर्गों के लोगों के साथ पादरी भी आए। इन पादरियों ने एक मिशन के रूप में धर्म प्रचार का कार्य शुरू किया। धर्म प्रचार के कार्य में ये लोग एशिया व अफ्रीका के लोगों से लगातार सम्पर्क में आए। इन्होंने ईसाई मत व बाईबल के सिद्धान्त आम जनता के सामने रखे। अफ्रीका में कुछ स्थानों पर धर्म सम्बन्धी विचार लोगों के पास थे ही नहीं । अतः वे लोग आसानी से इनके प्रभाव में आ गए। इस तरह पादरी वर्ग ने साम्राज्यवाद के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। विशेषतः ईसाई धर्म-प्रचारकों ने पाश्चात्य संस्कृति का प्रभुत्व बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। साम्राज्यवाद के प्रसार के लिए सामाजिक आधार इसी सांस्कृतिक आन्दोलन से पैदा होता था ।
6. असभ्य को सभ्य बनाना – यूरोपवासियों ने साम्राज्यवाद को लाने में इस बात का लाभ भी उठाया कि उनकी जीवन-शैली श्रेष्ठ है। अफ्रीका के मध्य क्षेत्रों और पूर्वी पश्चिमी तटों पर बहुत से आदिवासी रहते थे, जिनमें से अधिकतर भद्र व खानाबदोश थे। उनकी जीवन-शैली परम्परागत थी, जिसको यूरोपीयों ने पिछड़ा हुआ घोषित कर दिया तथा उन लोगों को अपनी संस्कृति के रंग में रंग लिया। । जिसका परिणाम यह हुआ कि वे लोग इनका अनुसरण करने लग गए। अफ्रीका में 1830 ई० तक कुछ क्षेत्र तो ऐसे भी थे, जहाँ कपड़ा प्रयोग नहीं होता था। इन यूरोपवासियों ने इन क्षेत्रों के इस पिछड़ेपन का लाभ उठाकर उन्हें ज्ञान देना शुरू किया। इस ज्ञान के सहारे यूरोपवासी यह साबित करने में कामयाब रहे कि हमारी सभ्यता व संस्कृति बहुत श्रेष्ठ है जिसका अनुसरण करने की होड़ अफ्रीका में लग गई । एशिया में भी लाओस, कम्बोडिया, सुमात्रा व फिलिपाइन्स द्वीप तथा समुद्र के कुछ क्षेत्रों में ये लोग अपना दबाव बनाने में कामयाब रहे। इस दिशा में जापान ही एशिया का एकमात्र ऐसा देश था जहाँ पिछड़ापन तो था लेकिन उन्होंने यूरोपवासियों को अधिक महत्त्व नहीं दिया, अन्य सभी स्थानों पर ये धीरे-धीरे अपनी संस्कृति सभ्यता के सहारे छा गए ।
7. यूरोप की जनसंख्या में वृद्धि – यूरोप जहाँ कई प्रकार के परिवर्तनों के दौर से गुजर रहा था । वहीं 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में उसकी जनसंख्या तेजी से बढ़ रही थी । इन 50 वर्षों में ब्रिटेन की जनसंख्या लगभग दुगुनी, फ्रांस की जनसंख्या में 80% वृद्धि, इटली, जर्मनी, पुर्तगाल की जनसंख्या में 75% तथा अन्य देशों में 55% से 65% तक वृद्धि दर्ज की गई। इस जनसंख्या के बढ़ते दबाव के कारण लोगों की समस्याएँ भी बढ़ीं । शहरों में बढ़ते मध्य वर्ग की समस्या रोजगार की थी । इस प्रकार रोजगार व धन कमाने की लालसा ने मध्यवर्गीय लोगों को भी उपनिवेश आकर्षित करने लगे। यूरोप के विभिन्न देशों के लोग अपने-अपने उपनिवेशों में सैनिक अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी, व्यवसायी तथा अन्य सेवाओं के लिए पहुँचे। इससे जनसंख्या में कुछ संतुलन कायम हुआ ।
प्रश्न 2. दो महायुद्धों के बीच के वर्षों में एशिया तथा अफ्रीका के उपनिवेशों के लोगों में राष्ट्रीय जागृति के कारणों का वर्णन करें ।
उत्तर–दो महायुद्धों के बीच के वर्षों में एशिया और अफ्रीका के उपनिवेशों के लोगों में राष्ट्रीय जागृति के कारण निम्नलिखित थे –
1. सामाजिक अन्याय – साम्राज्यवादी देशों ने अपने उपनिवेशों की जनता के साथ सामाजिक भेदभाव किया। उन्होंने रंग-भेद की नीति अपनाई, परन्तु 20वीं सदी के शुरू में ही विजित देशों के लोग अपने अधिकारों के लिए संगठित हो गए। इस प्रकार राष्ट्रीय भावना का जन्म हुआ।
2. आर्थिक शोषण – साम्राज्यवादी शक्तियों ने एशिया और अफ्रीका में अपने उपनिवेश इसलिए स्थापित किए थे ताकि वे वहाँ के धन-दौलत को लूट सकें। उन्होंने अपने अधीन देशों के उद्योग-धन्धों को नष्ट कर दिया। उन्होंने वहाँ के उद्योग-धन्धों पर अपना अधिकार जमा लिया। वे यहाँ से कच्चा माल सस्ते दामों पर खरीद लेते थे । दूसरी ओर अपने कारखानों में बने तैयार माल को अधिक मूल्य पर बेचते थे। इसके परिणाम स्वरूप इन महाद्वीपों में आर्थिक शोषण के विरुद्ध जन आन्दोलन उठ खड़े हुए।
3. पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव – यूरोपीय साम्राज्यवाद के कारण ही एशिया के विभिन्न देशों के लोग पाश्चात्य सभ्यता, साहित्य और विज्ञान तथा लोकतान्त्रिक विचारों से प्रभावित हुए । अमेरिका के स्वाधीनता संग्राम ने उन्हें विदेशी सत्ता से स्वाधीन होने तथा फ्रांस की क्रांति ने स्वतन्त्रता, समानता तथा बन्धुत्व का पाठ सिखाया ।
4. महान् नेताओं की भूमिका – कुछ नेताओं ने अपने भाषणों द्वारा कमज़ोर जातियों को उनकी गहरी नींद से जगाया। उन्हें आर्थिक शोषण के विरुद्ध एकजुट होकर संघर्ष करने की प्रेरणा दी । उन्होंने आम लोगों में आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास की भावनाओं का संचार किया। उन्होंने लोगों को गुलाम से आजाद बनने के लिए तैयार किया ।
5. साहित्य की भूमिका – 19वीं शताब्दी में एशिया और अफ्रीका के विभिन्न देशों में बहुत-सा राष्ट्रीय साहित्य लिखा गया | इस साहित्य ने अनेक देशों में देश भक्ति और राष्ट्रीय चेतना की भावना को उभारा ।
6. जापान की रूस पर विजय – 1904-05 ई० में जापान जैसे छोटे-से देश ने रूस जैसे विशाल देश को युद्ध में बुरी तरह हराया । इससे लोगों के मन में यूरोपीय शक्तियों का भय दूर हो गया । इसके कारण इन देशों में राष्ट्रीय आन्दोलन और भी तेज हो गए ।
प्रश्न 3. एशिया में साम्राज्यवादी शक्तियों के उपनिवेशों या प्रभाव क्षेत्रों का वर्णन करें। 
उत्तर – एशिया में साम्राज्यवादी शक्तियों के उपनिवेशों का विवरण इस प्रकार है –
1. भारत पर साम्राज्यवादी प्रभुत्व – भारत में पुर्तगाली, डच, फ्रांसीसी और अंग्रेज़ व्यापार करने के उद्देश्य से आए। भारत पर विजय पाने के लिए इनमें भयंकर युद्ध हुए। इनमें अंग्रेज़ों को सफलता मिली। 1763 ई० में अंग्रेज़ों की फ्रांसीसियों पर विजय के बाद, अंग्रेज भारत में सबसे शक्तिशाली हो गए। प्लासी, बक्सर और मराठों के साथ युद्धों में विजय पाने के बाद धीरे-धीरे अंग्रेज़ों ने सारे भारत पर अधिकार कर लिया ।
2. चीन पर साम्राज्यवादी प्रभुत्व – चीन में साम्राज्यवादी प्रभुत्व का आरम्भ, ‘अफीम के युद्धों’ से हुआ। इन युद्धों में चीन की हार से अंग्रेज़ों का हांगकांग पर अधिकार हो गया । जापान ने चीन से हर्जाना माँगा, जो चीन न दे सका। इसलिए उसे ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और जर्मनी से कर्ज लेना पड़ा । इस राशि को चारों देशों ने अपने प्रभाव क्षेत्रों में बाँट लिया। इस घटना को ‘चीनी खरबूज़े का काटा जाना’ कहा जाता है ।
3. बर्मा– 1852 ई० के एक युद्ध में अंग्रेज़ों ने बर्मा के रंगून, अधीन पीगू और प्रोम आदि स्थानों पर अधिकार कर लिया। 1886 ई० में समस्त बर्मा को ब्रिटेन के अधीन भारतीय साम्राज्य का अंग बना दिया गया ।
4. श्रीलंका – पुर्तगालियों और डचों के बाद श्रीलंका पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया ।
5. हॉलैण्ड– पूर्वी द्वीप समूह में जावा, सुमात्रा और बोर्नियो पर पुर्तगालियों और स्पेन के बाद हॉलैण्ड का अधिकार हो गया।
6. हिंद – चीन – हिंद- चीन में लाओस, कम्बोडिया और वियतनाम आते हैं । इंग्लैण्ड अफीम के व्यापार को लेकर चीन से उलझा रहा और फ्रांस ने अवसर का लाभ उठाकर हिंद – चीन पर अपना अधिकार जमा लिया ।
7. मलाया और सिंगापुर – मलाया और सिंगापुर पर भी अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया ।
8. संयुक्त राज्य अमेरिका- फिलीपाइन और क्यूबा के लोगों ने स्पेनी शासन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। इस पर संयुक्त राज्य अमेरिका ने अवसर का लाभ उठाकर क्यूबा और फिलीपाइन पर अपना अधिकार जमा लिया ।
9. पश्चिमी एशिया – ईरान, अरब, इराक – प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी और तुर्की की हार से स्थिति बदल गई । ईरान, इराक, सीरिया और अरब पर इंग्लैण्ड और फ्रांस का अधिकार हो गया। बाद में संयुक्त राज्य अमेरिका भी फ्रांस और ब्रिटेन का भागीदार बन गया।
प्रश्न 4. बताइए कि औद्योगिक क्रान्ति के कारण साम्राज्यवाद का उदय क्यों हुआ ?
उत्तर – औद्योगिक क्रान्ति के कारण साम्राज्यवाद का उदय साम्राज्यवाद के उदय के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
1. नई मंडियों की खोज – औद्योगिक क्रान्ति के कारण यूरोप के देशों में वस्तुओं का उत्पादन बड़ी तेजी से होने लगा । अतिरिक्त उत्पादन के लिए यूरोपीय देशों ने एशिया और अफ्रीका के उन देशों के बाज़ारों की खोज की, जहाँ अभी तक औद्योगिक क्रान्ति की लहर नहीं पहुंची थी, ताकि इन देशों में अतिरिक्त माल बेचा जा सके ।
2. अधिक उत्पादन – औद्योगिक क्रान्ति के कारण उत्पादन मशीनों के द्वारा होने लगा । अतः हाथों की अपेक्षा मशीनों से माल अधिक बनता था। इस बढ़ते हुए उत्पादन को खपाने के लिए मंडियों की जरूरत पड़ी।
3. कच्चे माल की आवश्यकता – जिन यूरोपीय देशों में औद्योगिक क्रान्ति पूरे यौवन पर थी वहाँ कच्चे माल की खोज में नए देशों की तलाश हुई। इनके लिए अफ्रीका और एशिया के देश उपयुक्त थे । इसलिए उन्हें एशिया और अफ्रीका के देशों पर नियन्त्रण करने की आवश्यकता हुई ।
4. यातायात और संचार के साधन – यातायात तथा संचार के साधनों द्वारा आवागमन तथा संदेश भेजने के क्षेत्र में अद्भुत प्रगति हुई। इसलिए इन साधनों द्वारा दूर-दूर के देशों में अपना तैयार किया हुआ माल भेजा जाने लगा और वहाँ से कच्चा माल अपने देश में लाया जाने लगा ।
5. पूँजीवादी व्यवस्था – यूरोप के पूँजीपतियों ने अधिक-से-अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से अपनी-अपनी सरकारों पर दबाव डाला, जिससे वे नए-नए देशों की खोज करके उनके लिए पूँजी निवेश के द्वार खोलें । पूँजीपति चाहते थे कि उन्हें कच्चे माल के भण्डार मिलें, तैयार माल के लिए मण्डियाँ मिलें और सस्ते मजदूर भी मिल सकें ।
6. सामरिक महत्त्व के क्षेत्र – इंग्लैण्ड ने हांगकांग, पोर्ट सईद और साइप्रस पर अपना प्रभुत्व इसलिए जमा लिया था, ताकि उसका व्यापार सुरक्षित रहे । इस कारण एशिया और अफ्रीका के कई महत्त्वपूर्ण सामरिक क्षेत्रों पर अधिकार करने के लिए साम्राज्यवादी देशों में होड़ लग गई ।
7. उग्र राष्ट्रवाद की भावना पर बल – 19वीं शताब्दी के अन्त में यूरोप में उग्र-राष्ट्रवाद का प्रभाव इतना बढ़ा कि उसकी पूर्ति के लिए यूरोपियन शक्तियों ने विस्तारवादी नीति का सहारा लिया, क्योंकि वे देश अपने राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा देने के लिए सब कुछ करने को तैयार थे।
लघुत्तरात्मक प्रश्न [SHORT ANSWER TYPE QUESTIONS]
प्रश्न 1. साम्राज्यवाद की कोई पाँच विशेषताएँ बताएँ ।
उत्तर – साम्राज्यवाद की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(1) साम्राज्यवाद में समुद्र पार के देशों की विजय पर बल दिया जाता है।
(2) साम्राज्यवादी शक्तियाँ अपने लाभ के लिए औपनिवेशिक देशों के मूल साधनों का भी शोषण करती हैं।
(3) साम्राज्यवाद की तीसरी प्रमुख विशेषता व्यापार पर एकाधिकार स्थापित करना है ।
(4) साम्राज्यवादी शक्तियाँ अपने उपनिवेशों के लोगों के साथ वर्ण-भेद नीति का अनुसरण करती हैं ।
(5) साम्राज्यवादी शक्तियाँ औपनिवेशिक लोगों को सभ्य बनाने का प्रयास करती हैं ।
प्रश्न 2. एशिया पर साम्राज्यवाद के सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभावों का उल्लेख करें। 
उत्तर-
सकारात्मक प्रभाव – 
(1) राष्ट्रीय भावना का विकास ।
(2) नए उद्योगों की स्थापना ।
(3) सड़क परिवहन एवं रेल परिवहन का विकास।
(4) पश्चिमी शिक्षा लागू होना । इससे अन्य देशों की राजनीतिक गतिविधियों की जानकारी होना ।
नकारात्मक प्रभाव – 
(1) अपने देश के उद्योगों के लिए कच्चा माल सस्ते दामों में खरीदना और अपने देश में निर्मित माल को मँहगे/अधिक दामों में बेचना ।
(2) निजी उद्योगों पर अनेक प्रतिबंध लगाना ।
(3) किसानों का अधिक-से-अधिक आर्थिक शोषण करना ।
(4) एशिया के लोगों से भेदभाव करना; जैसे उनको उच्च पदों पर न रखना आदि ।
प्रश्न 3. अफ्रीका में साम्राज्यवाद आरम्भ होने के कारणों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – अफ्रीका में साम्राज्यवाद आरम्भ होने के कारण निम्नलिखित थे –
(1) अफ्रीका में कच्चे माल की बहुतायत थी जिसे साम्राज्यवादी देश प्राप्त करना चाहते थे ।
(2) इस महाद्वीप में अभी औद्योगिक क्रांति नहीं हुई थी ।
(3) अफ्रीकी देश सैन्य दृष्टि से शक्तिहीन थे ।
(4) यहाँ के लोगों में राष्ट्रीय भावना का अभाव था ।
प्रश्न 4. किन्हीं चार साम्राज्यवादी शक्तियों के नाम उनके उपनिवेशों सहित बताओ ।
उत्तर–चार प्रमुख साम्राज्यवादी शक्तियाँ – ब्रिटेन, फ्रांस, जापान तथा इटली थीं।
(1) ब्रिटेन के एशिया में मुख्य उपनिवेश भारत, बर्मा, श्रीलंका, मलाया और सिंगापुर थे । अफ्रीका में उसकी । नाइजीरिया, नटाल, रोडेशिया, ट्रांसवाल, केप ऑफ गुडं होप, जांबिया आदि थीं । मुख्य बस्तियाँ,
(2) फ्रांस के मुख्य उपनिवेश, ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, पश्चिमी गिनी, सेनेगल और कांगो थे । ये सभी अफ्रीकी प्रदेश थे। ।
(3) जापान के मुख्य उपनिवेश फारमोसा और एशिया में कोरिया तथा मन्चूरिया थे ।
(4) इटली के मुख्य उपनिवेश सोमालीलैंड, लीबिया, एरिट्रीया आदि थे ।
प्रश्न 5. साम्राज्यवाद के उदय में सहायक आर्थिक तत्त्वों का वर्णन करें ।
उत्तर – साम्राज्यवाद के उदय के सहायक आर्थिक तत्त्व निम्नलिखित हैं –
(1) औद्योगिक क्रांति के कारण यूरोपीय देशों का उत्पादन बहुत बढ़ गया था। इसे बेचने के लिए नई मंडियाँ एशिया व अफ्रीका के देशों में ही प्राप्त हो सकती थीं ।
(2) एशिया और अफ्रीका के देश अपने धन और सोने के लिए प्रसिद्ध थे । धन और सोने की प्राप्ति की लालसा ने साम्राज्यवादी भावना को बढ़ाया ।
(3) यूरोपीय देशों को कच्चा माल एशियाई तथा अफ्रीकी देशों से मिल सकता था, जिससे कच्चे माल की लालसा ने साम्राज्यवाद को बढ़ावा दिया।
(4) यूरोपीय देश अपने उपनिवेशों में अपनी अतिरिक्त पूँजी लगाकर अपने देश की अपेक्षा अधिक लाभ कमा सकते थे ।
प्रश्न 6. चीन में साम्राज्यवादी प्रभुत्व का आरम्भ कौन-से युद्ध से हुआ ? इस युद्ध के दो कारण लिखें । 
उत्तर- चीन में साम्राज्यवादी प्रभुत्व का आरम्भ ‘अफीम के युद्ध’ से हुआ।
कारण – (1) अंग्रेज़ व्यापारी चीन में बड़ी मात्रा में चोरी से अफीम ला रहे थे, जिससे चीनियों का शारीरिक और नैतिक पतन हो रहा था ।
(2) 1839 ई० में चीन के एक सरकारी अफसर ने ब्रिटिश जहाज़ों पर लदी अफीम को पकड़कर उसे नष्ट कर दिया ।
प्रश्न 7. भारत किस यूरोपीय देश की साम्राज्यवादी नीति का शिकार हुआ? भारत पर पड़े इसके कोई दो प्रभाव बताएँ । 
उत्तर – भारत मुख्यतः ब्रिटेन की साम्राज्यवादी नीति का शिकार हुआ ।
भारत पर पड़े इसके दो प्रभाव – 
(1) भारत में ब्रिटेन की वस्तुओं की बिक्री बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर रेलों का जाल बिछाया गया।
(2) भारतीयों को शासन के उच्च और महत्वपूर्ण पदों से वंचित रखा गया।
प्रश्न 8. उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोपियनों के अफीम के व्यापार ने चीन को क्या हानि पहुँचाई?
उत्तर–उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोपियनों के अफीम के व्यापार ने चीन को निम्नलिखित हानि पहुँचाई –
(1) यह व्यापार अवैध था और चोरी-छिपे चलता था ।
(2) चीनी लोगों को अफीम खाने की गंदी आदत पड़ गई, जिसके कारण वे आलसी और कमज़ोर हो गए। इस कारण ही चीन को अंग्रेज़ों के विरुद्ध हार का सामना करना पड़ा ।
(3) युद्ध में हारने के बाद उसे इंग्लैण्ड को क्षतिपूर्ति के रूप में भारी धनराशि देनी पड़ी।
प्रश्न 9. अफ्रीका में इंग्लैण्ड के साम्राज्यवाद पर नोट लिखें ।
उत्तर- इंग्लैण्ड विश्व की सबसे बड़ी साम्राज्यवादी शक्ति थी । उसने दक्षिणी अफ्रीका में नटाल, आशा अन्तरीप, ट्रांसवाल तथा औरंज फ्री स्टेट में उपनिवेश स्थापित किए । इन सबको 1910 ई० में मिलाकर दक्षिणी अफ्रीका संघ बना दिया गया। बर्तानिया ने टांगानिका, रोडेशिया, गोल्डकोस्ट, सियरा लियोन, जाम्बिया, नाइजीरिया, सोमालीलैण्ड आदि में भी उपनिवेश स्थापित किए, परन्तु उनके साम्राज्य का सबसे महत्वपूर्ण भाग मिस्र तथा सूडान थे । स्वेज़ नहर के निकलने से इस क्षेत्र का महत्व काफी बढ़ गया । इस पर इंग्लैण्ड के अधिकार का फ्रांस ने विरोध किया ।
प्रश्न 10. चीन में साम्राज्यवाद आरम्भ होने के कारणों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – चीन में साम्राज्यवाद के आरम्भ होने के कारण निम्नलिखित थे –
(1) यूरोपीय देशों में चीनी चाय तथा रेशम की बहुत माँग थी।
(2) अफीम के युद्धों में चीन की पराजय से वहाँ साम्राज्यवाद प्रारम्भ हुआ।
(3) कच्चे माल की प्राप्ति तथा मण्डियों की सुविधा के लिए जापान ने चीन पर आक्रमण कर वहाँ साम्राज्यवाद स्थापित किया ।
(4) जापानी ऋण चुकाने के लिए चीन ने ब्रिटेन, फ्राँस, रूस तथा जर्मनी से कर्ज लिया । इस राशि के बदले चारों देशों ने चीन को अपने-अपने प्रभाव क्षेत्रों में बाँट दिया ।
(5) चीन की निर्बल सरकार साम्राज्यवादियों का मुकाबला न कर सकी ।
प्रश्न 11. साम्राज्यवाद के भारत पर पड़ने वाले विनाशकारी प्रभाव या दुष्प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – साम्राज्यवाद के भारत पर पड़ने वाले विनाशकारी प्रभाव या दुष्प्रभाव इस प्रकार है थे –
(1) भारतीय कृषि की संरचना पर बुरा प्रभाव पड़ना ।
(2) भारतीय किसानों का अधिक-से-अधिक शोषण होना ।
(3) भारत में पश्चिमी शिक्षा लागू करना ।
(4) ईसाई धर्म का प्रचार करना और भारतीयों को बलपूर्वक ईसाई बनाना।
(5) भारतीय धन या संपदा का निष्कासन ।
(6) भारत के बड़े-छोटे और हस्तशिल्प उद्योगों का पतन।
(7) गाँव की स्वावलंबी अर्थव्यवस्था का छिन्न-भिन्न होना आदि।
प्रश्न 12. भारत को ब्रिटिश साम्राज्य की सर्वश्रेष्ठ मणि क्यों कहा जाता था? 
उत्तर- निम्नलिखित कारणों से भारत को ब्रिटिश साम्राज्य की सर्वश्रेष्ठ मणि कहा जाता था –
(1) ब्रिटेन ने भारत पर विजय प्राप्त करके यहां अपार धन अर्जित किया ।
(2) ब्रिटेन के अधिकारी और व्यापारी भारतीय धन से मालामाल हो गए ।
(3) भारत ब्रिटेन के लिए कच्चे माल की प्राप्ति और तैयार माल की खपत का एक प्रमुख केन्द्र था। इसलिए भारत को ब्रिटिश साम्राज्य की सर्वश्रेष्ठ मणि कहा जाता था।
प्रश्न 13. समुचित उदाहरण देते हुए उन उपायों का वर्णन कीजिए जिनके द्वारा साम्राज्यवादी देशों ने अफ्रीका के अधिकांश भागों का अधिग्रहण किया।
उत्तर – साम्राज्यवादी देशों ने निम्नलिखित उपायों द्वारा अफ्रीका के अधिकांश भागों का अधिग्रहण किया –
1. लूट द्वारा – आरम्भ में साम्राज्यवादी शक्तियों ने अफ्रीका के तटीय भागों में लूट का बाज़ार गर्म रखा और वे यहाँ से सोना-चाँदी लूटकर स्वदेश भेजते रहे ।
2. सेनाएँ भेजकर – पादरियों तथा व्यापारियों की सहायता के लिए साम्राज्यवादी शक्तियों ने अपनी सेनाएँ भेजीं। इन सेनाओं ने विजय की भूमिका तैयार की ।
3. दास व्यापार – आरम्भ में साम्राज्यवादी देश दास व्यापार के माध्यम से अफ्रीका में अपना प्रभाव बढ़ाते रहे। वे यूरोपीय माल के बदले अपने जहाजों में दास भर लेते और उन्हें अमेरिकी देशों में बेच देते ।
4. पादरियों का योगदान – इसाई पादरियों ने अफ्रीका को इसाई धर्म के प्रचार के लिए उचित स्थान समझा। पादरियों के प्रभाव का व्यापारियों ने प्रयोग किया ।
प्रश्न 14. एशिया और अफ्रीका के देशों पर पश्चिमी शक्तियों का प्रभुत्त्व इतनी आसानी से कैसे स्थापित हुआ ? 
उत्तर – एशिया और अफ्रीका के विभिन्न देशों में पश्चिमी देश अपने साम्राज्य का विस्तार बड़ी आसानी से कर सके। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
1. औद्योगीकरण का प्रभाव – एशिया और अफ्रीका के देश औद्योगिक क्रांति के प्रभाव से बहुत दूर थे । यूरोपीय देशों के लिए अपने उत्पादन को इन देशों में भेजकर लाभ कमाने का अच्छा अवसर था ।
2. सैनिक दुर्बलता– सैनिक दृष्टि से एशिया और अफ्रीका के देश बहुत पिछड़े हुए थे । वे यूरोपीय सशस्त्र सेनाओं का सामना नहीं कर सकते थे। इसलिए पश्चिमी राष्ट्रों ने एशिया और अफ्रीका के देशों पर आसानी से अपना प्रभुत्त्व जमा लिया। 3. राष्ट्रीय राज्यों का न होना- एशिया और अफ्रीका के देशों में राष्ट्रीय राज्य नाममात्र भी न थे । यहाँ छोटे-बड़े राज्य थे जो आपस में लड़ते रहते थे । वे पश्चिमी राष्ट्रों की शक्तिशाली सेनाओं का सामना न कर सके ।
4. राष्ट्रवाद का अभाव – एशिया और अफ्रीका के देशों की जनता में राष्ट्रवाद का अभाव था, जिससे वे यूरोपीय देशों की उग्र राष्ट्रीय भावना का मुकाबला नहीं कर सकते थे ।
5. कल्याणकारी शासन का अभाव – एशिया और अफ्रीका में लोग स्थानीय राजाओं और सरदारों के अधीन थे । यहाँ लोकतन्त्र का अभाव था । शासक वर्ग उनका शोषण करता था । अतः विदेशी आक्रमणों के समय जनता ने ऐसे शासकों को बचाने में कोई मदद नहीं की।
प्रश्न 15. राष्ट्रवाद ने यूरोप में साम्राज्यवाद को ‘लोकप्रिय’ बनाने में कैसे सहायता की ? 
उत्तर – राष्ट्रवाद ने यूरोप में साम्राज्यवाद को ‘लोकप्रिय’ बनाने में निम्नलिखित प्रकार से सहायता की –
(1) औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप यूरोपियन राष्ट्रों का उत्पादन बढ़ने लगा, फलस्वरूप उन्होंने अपने प्रभाव क्षेत्र ढूँढने शुरू कर दिए।
(2) यूरोप के बहुत से लोगों में जातिगत श्रेष्ठता की भावना प्रबल थी । वे साम्राज्यवाद को संसार के पिछड़े लोगों को सभ्य बनाने का उत्तम साधन मानते थे ।
(3) जर्मनी और इटली के एकीकरण के बाद इन देशों ने उग्र राष्ट्रवाद का रूप धारण कर लिया ।
(4) यूरोप के देशों ने अपने उपनिवेशों के निवासियों को सेना में भर्ती किया ।
अति लघुत्तरात्मक प्रश्न [VERYSHORT-ANSWER TYPE QUESTIONS]
प्रश्न 1. यूरोप में उपनिवेशवाद के आरंभ के मुख्य कारण क्या थे? 
उत्तर – (1) अधिक स्वर्ण, अधिक समृद्धि और अधिक कीर्ति का नारा ।
(2) कच्चे माल की प्राप्ति ।
(3) यूरोप में जनसंख्या में वृद्धि |
(4) समृद्धि की लालसा आदि ।
प्रश्न 2. उपनिवेशवाद की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-(1) औपनिवेशिक शक्तियों की राजनीतिक व्यवस्थाएँ अलोकतांत्रिक थीं ।
(2) औपनिवेशिक सरकारें ‘बाँटो और राज करो’ की नीति का अनुसरण करती थीं। ।
प्रश्न 3. साम्राज्यवाद के भारत पर पड़ने वाले कोई दो सकारात्मक प्रभाव बताएँ । 
उत्तर-(1) यातायात एवं संचार के साधनों का विकास ।
(2) भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न होना ।
प्रश्न 4. एशिया में उपनिवेश स्थापित करने वाले यूरोप के किन्हीं पाँच देशों के नाम बताएँ । 
उत्तर-(1) इंग्लैंड, (2) फ्रांस, (3) जर्मनी, (4) पुर्तगाल, (5) रूस I
प्रश्न 5. एशिया के किन्हीं पाँच देशों के नाम बताएँ जो इंग्लैंड के उपनिवेश थे ।
उत्तर – (1) भारत, (2) श्रीलंका, (3) तिब्बत, (4) बर्मा, (5) मलाया ।
प्रश्न 6. साम्राज्यवाद क्या है ?
उत्तर – जब कोई शक्तिशाली देश, दूसरे पिछड़े देशों पर अपना अधिकार जमाने की नीति बना लेता है, तो उसे साम्राज्यवाद कहते हैं अर्थात् दूसरे देशों पर अधिकार करने की नीति साम्राज्यवाद कहलाती है ।
प्रश्न 7. उपनिवेशवाद क्या है ?
उत्तर–उपनिवेशवाद से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें कोई राष्ट्र अपनी राजनीतिक शक्ति का विस्तार अन्य राष्ट्रों पर नियंत्रण स्थापित कर वहाँ के संसाधनों का प्रयोग अपने हित के लिए करता है । वह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उस देश के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक गतिविधियों पर भी अपना नियंत्रण स्थापित करता है। ।
प्रश्न 8. ‘नव-उपनिवेशवाद’ किसे कहते हैं ?
उत्तर – स्वतन्त्र होने पर आर्थिक दृष्टि से कम विकसित देशों के आर्थिक शोषण और उन पर वर्चस्व स्थापित करने की प्रक्रिया को ‘नव-उपनिवेशवाद’ कहा जाता है ।
प्रश्न 9. ‘नव-साम्राज्यवाद’ किसे कहते हैं?
उत्तर–1875-1914 के काल में उभरने वाले नए साम्राज्यवादी देशों द्वारा औपनिवेशिक प्रभुत्व की दौड़ में शामिल होने की प्रक्रिया को ‘नव-साम्राज्यवाद’ कहते हैं ।
प्रश्न 10. ‘गोरों का बोझ’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – साम्राज्यवादी राष्ट्र अपने आप को सभ्यता का संदेशवाहक कहते थे । वे कहते थे कि उपनिवेशों की असभ्य जातियों को सभ्य बनाना उनका बोझ (जिम्मेदारी) है । इस बात को ही ‘गोरों का बोझ’ कहा गया है ।
प्रश्न 11. साम्राज्यवाद के प्रसार में मुख्य रूप से किस महाद्वीप के देशों ने भाग लिया ? इस लहर का शिकार होने वाले दो महाद्वीपों के नाम बताएँ ।
उत्तर–साम्राज्यवाद के प्रसार में मुख्यतः यूरोप महाद्वीप के देशों ने भाग लिया । इस लहर का शिकार होने वाले दो महाद्वीप एशिया और अफ्रीका थे ।
प्रश्न 12. ‘चीनी खरबूज़े का काटा जाना’ कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर- अफीम के युद्ध में चीन की हार से अंग्रेज़ों का हांगकांग पर अधिकार हो गया। जापान ने चीन से हर्जाना माँगा, जो चीन न दे सका। इसलिए उसे फ्रांस, ब्रिटेन, रूस और जर्मनी से कर्ज लेना पड़ा । इस राशि के बदले चारों देशों ने चीन को अपने अपने प्रभाव क्षेत्रों में बाँट लिया । इसे ही ‘चीनी खरबूज़े का काटा जाना’ कहा जाता है ।
प्रश्न 13. ‘खुले दरवाज़े की ‘नीतिसे क्या अभिप्राय है?
उत्तर – खुले दरवाज़े की नीति को ‘मुझे भी’ की नीति भी कहा जाता है । इसके अनुसार सभी देशों को चीन में कहीं भी व्यापार करने के समान अधिकार होने चाहिएं। इस नीति का सुझाव अमेरिका ने रखा था ।
प्रश्न 14. ‘प्रभाव क्षेत्र’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- यदि कोई शक्तिशाली देश किसी दूसरे देश पर पूरी तरह से या आंशिक रूप से अपना अधिकार करके, उसके मानवीय संसाधनों का शोषण करे, तो उस अधीन देश को ‘प्रभाव क्षेत्र’ कहा जाता है ।
प्रश्न 15. ‘शोषण’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – जब कोई शक्तिशाली देश किसी अन्य देश पर अधिकार जमाकर, उसके हितों को आघात पहुँचाए, तो उसे ‘शोषण’ कहते हैं। जैसे स्वतन्त्रता से पहले अंग्रेज़ भारत का शोषण करते थे ।
प्रश्न 16. ‘अफीम युद्ध’ कौन-कौन-से दो देशों के बीच हुए? इनके कोई दो परिणाम लिखें ।
उत्तर- ‘अफीम युद्ध’ ब्रिटेन और चीन के बीच हुए। इन युद्धों में चीन की पराजय हुई।
परिणाम– (1) चीनियों ने हर्ज़ाने के रूप में अंग्रेज़ों को बहुत-सी धनराशि और पाँच बन्दरगाहों में व्यापार का अधिकार दिया।
(2) चीन सरकार को इस बात के लिए सहमत होना पड़ा कि इन बन्दरगाहों में यदि कोई अंग्रेज़ अपराध करेगा तो उस अपराध की सुनवाई अंग्रेज़ अधिकारी करेंगे ।
प्रश्न 17. यूरोप में साम्राज्यवाद के उत्थान के लिए कौन-कौन-से दो आर्थिक कारण उत्तरदायी थे ?
उत्तर-(1) औद्योगिक क्रांति साम्राज्यवाद की उन्नति का सबसे बड़ा कारण थी । इससे उत्पादन बढ़ गया । अतः कच्चे माल की आवश्यकता बढ़ गई । उत्पादित माल को बेचने के लिए बाज़ार की आवश्यकता भी बढ़ गई और साम्राज्यवाद को बल मिला ।
(2) यूरोपीय पूँजीपतियों के पास अतिरिक्त पूँजी थी । उस पूँजी से और अधिक लाभ कमाने के लिए उन्होंने वह पूँजी उपनिवेशों में कारखाने लगाने में खर्च कर दी। इससे साम्राज्यवाद को बढ़ावा मिला ।
प्रश्न 18. साम्राज्यवाद का पतन कौन-सी घटना के बाद हुआ ? साम्राज्यवाद को कमज़ोर करने वाले दो कारकों के नाम बताएँ ।
उत्तर–साम्राज्यवाद का पतन दूसरे विश्व युद्ध के बाद हुआ । इसे कमजोर करने वाले दो कारक निम्नलिखित थे –
(1) उपनिवेश के निवासियों ने विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए सशक्त आन्दोलन चलाए ।
(2) दूसरे विश्व युद्ध ने भी विदेशी शक्तियों को कमज़ोर बना दिया ।
प्रश्न 19. अफ्रीका की विजय में खोजकर्ताओं तथा मिशनरियों के योगदान का वर्णन कीजिए । 
उत्तर- (1) खोजियों ने अफ्रीका के बारे में यूरोपियनों की दिलचस्पी जगाई । खोजकर्त्ताओं तथा धर्म प्रचारकों द्वारा पैदा किए गए प्रभाव का व्यापारियों ने जल्द ही उपयोग किया ।
(2) मिशनरियों ( धर्म प्रचारकों) ने इस महाद्वीप को ईसाई मत के संदेश के प्रचार के लिए उपयुक्त स्थान समझा ।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न [OBJECTIVE TYPE QUESTIONS]
I. एक शब्द या एक वाक्य में उत्तर दीजिए
प्रश्न 1. उपनिवेशवाद ने किस व्यवस्था को जन्म दिया ? 
उत्तर – उपनिवेशवाद ने साम्राज्यवाद को जन्म दिया ।
प्रश्न 2. किस क्रांति के कारण उपनिवेशवाद का जन्म हुआ ? 
उत्तर-औद्योगिक क्रांति के कारण उपनिवेशवाद का जन्म हुआ।
प्रश्न 3. उपनिवेशों की दौड़ के परिणामस्वरूप कौन-सा युद्ध हुआ था?
उत्तर – उपनिवेशों की दौड़ के परिणामस्वरूप प्रथम विश्व युद्ध हुआ था।
प्रश्न 4. ब्रिटेन की साम्राज्ञी ने ‘भारत की साम्राज्ञी’ की उपाधि कब धारण की? 
उत्तर- 1877 ई० में ।
प्रश्न 5. ‘खुले द्वार की नीति’ का आरम्भ किस देश ने किया? 
उत्तर- अमेरिका ने ।
प्रश्न 6. एशिया में कौन-सा देश विश्व-शक्ति के रूप में उभरा ? 
उत्तर- जापान ।
प्रश्न 7. साम्राज्यवाद का प्रमुख उद्देश्य क्या था? 
उत्तर – आर्थिक शोषण ।
प्रश्न 8. 1947 ई० से पूर्व भारत किसका उपनिवेश था? 
उत्तर-इंग्लैंड ।
प्रश्न 9. सर्वप्रथम औद्योगिक क्रांति का आरंभ किस देश में हुआ? 
उत्तर-इंग्लैंड |
प्रश्न 10. बक्सर का युद्ध कब हुआ? 
उत्तर- 1764 ई० में ।
प्रश्न 11. प्लासी का युद्ध कब हुआ? 
उत्तर- 1757 ई० में ।
प्रश्न 12. अंग्रेजों ने मैसूर पर कब अधिकार किया? 
उत्तर-1799 ई० में ।
प्रश्न 13. सबसे पहले धन के निष्कासन का सिद्धान्त किसने दिया? 
उत्तर–दादाभाई नौरोजी ने।
प्रश्न 14. औद्योगिक क्रांति का सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम क्या था ? 
उत्तर – साम्राज्यवाद की स्थापना ।
प्रश्न 15. 1757 ई० में अंग्रेजों ने प्लासी के युद्ध में किसे पराजित किया? 
उत्तर – नवाब सिराजुद्दौला ।
प्रश्न 16. अन्तर्राष्ट्रीय अफ्रीकी संघ की स्थापना कब हुई?
उत्तर- 1876 ई० में ।
प्रश्न 17. प्रथम विश्व युद्ध कब से कब तक चला?
उत्तर- 1914 ई० से 1918 ई० तक ।
प्रश्न 18. अमेरिका में ‘दास व्यापार’ को समाप्त करने वाले राष्ट्रपति का नाम बताएँ । 
उत्तर- इब्राहिम लिंकन ।
प्रश्न 19. ‘अफीम युद्ध’ कौन-से देशों के बीच हुआ?
उत्तर- ब्रिटेन और चीन के बीच |
प्रश्न 20. अफ्रीका में इंग्लैंड के कोई दो उपनिवेश देश बताएँ ।
उत्तर – रोडेशिया और नाइजीरिया ।
प्रश्न 21. अफ्रीका में फ्रांस के कोई दो उपनिवेश देश बताएँ । 
उत्तर- अल्जीरिया और मेडागास्कर ।
प्रश्न 22. एशिया में फ्रांस के कोई दो उपनिवेश देश बताएँ । 
उत्तर- भारत और मॉरीशस ।
II. बहुविकल्पीय प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर दीजिए
1. साम्राज्यवाद का प्रमुख उद्देश्य क्या था?
(A) कानून का राज्य
(B) धर्म का प्रचार
(C) आर्थिक शोषण
(D) समाज सुधार
उत्तर – (C)
2. साम्राज्यवाद का विकास हुआ –
(A) एशिया में
(B) इंग्लैंड व फ्रांस के उपनिवेश में
(C) अफ्रीका में
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D)
3. साम्राज्यवाद के उदय के क्या कारण थे ?
(A) निर्मित माल को मण्डियों की आवश्यकता
(B) कच्चे माल की आवश्यकता
(C) भौगोलिक खोजें
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D)
4. ‘खुले द्वार की नीति’ का आरम्भ किस देश ने किया ?
(A) इंग्लैण्ड ने
(B) फ्राँस ने
(C) जर्मनी ने
(D) अमेरिका ने
उत्तर – (D)
5. 1498 ई० में भारत पहुँचा –
(A) कोलम्बस
(B) स्पेक
(C) वास्कोडिगामा
(D) स्टेन्ले
उत्तर – (C)
6. साम्राज्यवाद के उत्थान में प्रमुख भूमिका निभाने वाला शासक लियोपोल्ड द्वितीय किस देश का था ?
(A) इंग्लैण्ड
(B) अमेरिका
(C) बेल्जियम
(D) पुर्तगाल
उत्तर – (C)
7. 19वीं शताब्दी से पूर्व अफ्रीका महाद्वीप किस नाम से प्रसिद्ध था ?
(A) विस्तृत महाद्वीप
(B) विकसित महाद्वीप
(C) अविकसित महाद्वीप
(D) अन्ध महाद्वीप
उत्तर – (D)
8. कांगो संघ की स्थापना कब हुई ?
(A) 1882 ई० में
(B) 1879 ई० में
(C) 1876 ई० में
(D) 1878 ई० में
उत्तर (D)
9. साम्राज्यवाद के प्रसार में सहायक परिस्थितियाँ थीं –
(A) सभ्य बनाने का अभियान
(B) यूरोपीय देशों में औद्योगिक क्रांति
(C) यातायात और संचार के साधन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D)
10. एशिया में कौन-सा देश विश्व शक्ति के रूप में उभरा ?
(A) भारत
(B) चीन
(C) इण्डोनेशिया
(D) जापान
उत्तर – (D)
11. ‘अन्तर्राष्ट्रीय अफ्रीका संघ’ की स्थापना कब और किस सम्मेलन में हुई?
(A) कांगो सम्मेलन (1869 ) में
(B) न्यूयार्क सम्मेलन (1896 ) में
(C) पेरिस सम्मेलन (1889 ) में
(D) ब्रुसेल्ज सम्मेलन (1876 ) में
उत्तर – (D)
12. ट्रांसवाल पर किसने अधिकार किया ?
(A) इंग्लैण्ड ने
(B) जर्मनी ने
(C) इटली ने
(D) फ्रांस ने
उत्तर – (A)
13. किस साम्राज्यवादी शक्ति ने पांडिचेरी को अपनी भारतीय बस्तियों की राजधानी बनाया था ?
(A) इंग्लैंड ने
(B) फ्रांस ने
(C) इटली ने
(D) जर्मनी ने
उत्तर – (B)
14. साम्राज्यवाद का भारत पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा –
(A) उद्योगों का पतन
(B) हस्तशिल्प उद्योगों का पतन
(C) ईसाई धर्म का प्रचार
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(D)
15. उपनिवेशवाद में विश्वास के मुख्य कारण थे –
(A) लाभ कमाने की लालसा
(B) मातृदेश की शक्ति बढ़ाना
(C) मातृदेश में सजा से बचना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D)
16. इंग्लैंड के उपनिवेश थे –
(A) भारत
(B) श्रीलंका
(C) बर्मा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D)
17. फ्रांस के उपनिवेश थे –
(A) अल्जीरिया
(B) टयूनीशिया
(C) मोरक्को
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D)
18. कुछ समय तक बेल्जियम के सम्राट लियोपोल्ड द्वितीय की निजी सम्पत्ति रही –
(A) मिस्र
(B) अल्जीरिया
(C) कांगो
(D) नेटाल
उत्तर – (C)
19. इंग्लैंड का बर्मा पर अधिकार कब हुआ?
(A) 1882 ई० में
(B) 1885 ई० में
(C) 1876 ई० में
(D) 1900 ई० में
उत्तर – (B)
20. कांगो क्षेत्र बेल्जियम का उपनिवेश बना –
(A) 1902 ई० में
(B) 1895 ई० में
(C) 1899 ई० में
(D) 1908 ई० में
उत्तर – (D)
21. एशिया का कौन-सा देश यूरोपीय देशों के साम्राज्यवाद का शिकार नहीं हुआ ?
(A) बर्मा
(B) चीन
(C) जापान
(D) भारत
उत्तर – (C)
22. उपनिवेशों की स्थापना के कारण थे –
(A) कच्चे माल की प्राप्ति
(B) निर्मित माल की खपत
(C) जनसंख्या में वृद्धि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D)
23. ‘Through the Dark Continent’ का रचयिता कौन था ?
(A) हेनरी स्टेन्ले
(B) ग्राण्ट
(C) बेकर
(D) डॉ० डेविड लिविगस्टोन
उत्तर – (A)
24. साम्राज्यवाद का प्रमुख परिणाम क्या निकला ?
(A) सर्वशांति
(B) प्रथम विश्व युद्ध
(C) आपसी सद्भाव
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (B)
25. एशिया में उपनिवेश स्थापित करने वाले प्रमुख यूरोपीय देश थे –
(A) इंग्लैंड
(B) फ्रांस
(C) पुर्तगाल
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D)
III. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. ‘खुले द्वार की नीति’ का आरम्भ …………….. ने किया ।
2. साम्राज्यवाद का प्रमुख परिणाम ……………. निकला ।
3. भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना …………… में हुई।
4. प्रथम विश्व-युद्ध ………………… में आरम्भ हुआ।
5. अंग्रेजों ने भारत में …………… में पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली लागू की ।
6. दादाभाई नौरोजी ने धन के निष्कासन का सिद्धान्त ……………… पुस्तक में दिया।
7. पुर्तगाली नाविक वास्कोडीगामा ………………. में भारत पहुँचा।
8. उपनिवेशवाद ने ……………… व्यवस्था को जन्म दिया।
9. ………………….. क्रांति के कारण उपनिवेशवाद का जन्म हुआ।
10. ‘अफीम युद्ध’ …………………… के मध्य हुआ ।
11. इंग्लैंड का श्रीलंका पर अधिकार ………………. तक कायम रहा।
12. ईसाई पादरियों के लिए साम्राज्य विस्तार ………………… का एक अच्छा साधन बन जाता था।
उत्तर – 1. अमेरिका, 2. प्रथम विश्व-युद्ध, 3. 1600 ई०, 4. 1914 ई०, 5. 1835 ई०, 6. पावर्टी एंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया, 7. 1498 ई०, 8. साम्राज्यवादी, 9. औद्योगिक, 10. इंग्लैंड और चीन, 11. 1948 ई०, 12. धर्म प्रसार ।
IV. सही या गलत की पहचान करें
1. चीन पर साम्राज्यवादी प्रभुत्व का आरम्भ ‘ अफीम के युद्धों’ से हुआ था ।
2. अमेरिका के राष्ट्रपति इब्राहिम लिंकन ने ‘दास व्यापार’ को समाप्त किया था ।
3. भारत में उपनिवेशवाद की मुक्त व्यापार अवस्था के दौरान आयात कर बढ़ा दिए गए थे।
4. ब्रिटेनवासियों ने दावा किया कि ‘ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता’ ।
5. ब्रिटिश औद्योगिक सर्वोच्चता को नई चुनौतियों के कारण इसकी औपनिवेशिक नीति बदल गई।
6. ब्रिटिश शासन में भारत पूंजीवादी ब्रिटेन के समान था ।
7. उपनिवेशवाद उपनिवेश के आर्थिक विकास में बाधा डालता है।
8. इंग्लैंड का श्रीलंका पर अधिकार 1950 ई० तक कायम रहा ।
9. अंग्रेजों ने मैसूर पर टीपू सुल्तान को हराने के पश्चात् अधिकार कर लिया ।
10. अंग्रेजों ने भारत में 1840 ई० में पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली लागू की ।
उत्तर – 1. सही, 2. सही, 3. गलत, 4. सही, 5. सही, 6. गलत, 7. सही, 8 गलत, 9. सही, 10 गलत ।
V. उचित मिलान करें
1. भारत में आने वाली सबसे पहली यूरोपीय जाति (क) दादाभाई नौरोजी
2. भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना (ख) 1764 ई०
3. प्रथम विश्व युद्ध आरम्भ हुआ (ग) पुर्तगाली
4. बक्सर का युद्ध हुआ (घ) 1600 ई०
5. धन के निष्कासन का सिद्धान्त (ङ) 1914 ई०
उत्तर – 1. (ग), 2. (घ), 3. (ङ), 4. (ख), 5. (क) ।

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