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Haryana Board 10th Class Social Science Solutions History Chapter 8 भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन

Haryana Board 10th Class Social Science Solutions History Chapter 8 भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन

HBSE 10th Class History ईसाइयत एवं इस्लाम : उदय व टकराव Textbook Questions and Answers

अध्याय का संक्षिप्त परिचय
◆ 1857 का विद्रोह – 10 मई, 1857 को भारत के अनेक देशी राजाओं जैसे झांसी की रानी, तांत्या टोपे, बहादुर शाह ज़फर और नाना साहेब ने उत्तर भारत में विद्रोह किया और कई स्थानों पर अंग्रेजों को पराजित भी किया।
◆ कूका आंदोलन– नामधारी अथवा कूका आंदोलन सिक्खों में दूसरा सुधार आंदोलन था । नामधारी परमात्मा के नाम का ऊँची आवाज में ‘कूके’ मार-मार कर पूरी श्रद्धा के साथ जाप करते थे। इसलिए ही इस आंदोलन का नाम ‘नामधारी’ अथवा ‘कूका आंदोलन’ पड़ गया ।
◆ गदर पार्टी – अंग्रेज़ सरकार को शक्ति के प्रयोग द्वारा देश से बाहर निकालकर पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त करने के उद्देश्य से गदर पार्टी की स्थापना की गई । अमेरिका और कनाडा में बसे भारतीय क्रांतिकारियों ने 1913 ई० में इस पार्टी की स्थापना की ।
◆ अभिनव भारत – विनायक दामोदर सावरकर ने ‘अभिनव भारत’ नामक एक संस्था का गठन किया ।
◆ बंगाल विभाजन – सन् 1905 में लॉर्ड कर्ज़न ने प्रशासनिक सुविधा का बहाना लेकर बंगाल का विभाजन कर दिया, जबकि इसके पीछे मुख्य उद्देश्य बंगाली जनता की एकता को तोड़ना था।
◆ होमरूल लीग – 1915-16 ई० में दो होमरूल लीग स्थापित की गई । एक होमरूल लीग पूना में तिलक जी ने और दूसरी मद्रास में श्रीमती एनी बेसेंट तथा ए० सुब्रह्मण्य ने स्थापित की ।
◆ आजाद हिंद फौज का गठन – आजाद हिंद फौज की स्थापना जापान (टोक्यो) में सन् 1942 में रास बिहारी बोस ने की थी। इस संगठन के निर्माण में जापान ने काफी सहयोग दिया था। इस फौज की स्थापना का विचार सर्वप्रथम मोहन सिंह के मन में आया था। 4 जुलाई, 1943 को रास बिहारी बोस ने इस फौज का नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस को सौंपा था। इन्होंने आजाद हिंद फौज की सेना को पाँच भागों में बाँटा –
(1) गाँधी ब्रिगेड, (2) नेहरू ब्रिगेड, (3) आजाद ब्रिगेड, (4) सुभाष ब्रिगेड, (5) झाँसी की रानी रेजीमेंट ( महिलाओं के लिए)।
◆ काकोरी की घटना – अपनी योजनाओं को सफल बनाने के लिए क्रान्तिकारियों को धन की आवश्यकता थी । अतः क्रान्तिकारियों ने सरकारी खजाने को लूटने का निश्चय किया । इसी उद्देश्य से हरदोई से लखनऊ जाने वाली गाड़ी में दस हथियारबन्द नवयुवक सवार हुए। उन्होंने 9 अगस्त 1925 ई० को बड़ी तेजी के साथ गाड़ी में रखा सारा सरकारी खजाना लूटा तथा फरार हो गए । यह सारा काम पंडित रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में हुआ था। अगले दिन समाचार-पत्रों में मोटे अक्षरों में छपा, “काकोरी में सरकारी खजाना लूट लिया गया ।” पं० रामप्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लाहड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खाँ को काकोरी केस में फाँसी की सजा दी गई ।
◆ नौसेना का संघर्ष – सन् 1946 को भारतीय सैनिकों द्वारा ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध किए गए विद्रोह को नौसैना का संघर्ष के नाम से जाना जाता है।
अभ्यास के प्रश्न-उत्तर
⇒ फिर से याद करें-
प्रश्न 1. 1857 से पहले कौन-कौन से आंदोलन हुए थे ? 
उत्तर – 1857 से पहले निम्नलिखित आंदोलन हुए थे
1. संन्यासी आंदोलन – 1770 ई० में बंगाल में संन्यासी आंदोलन हुआ। इसका नेतृत्व गिरी सम्प्रदाय नामक नेता ने किया।
2. पॉलीगरों आंदोलन – यह आंदोलन 1801 ई० में तमिलनाडु में हुआ। इसका नेतृत्व काट्टावाम्मन नामक नेता ने किया ।
3. भील आंदोलन – यह आंदोलन 1820 से 1825 ई० में राजस्थान में हुआ। इसका नेतृत्व दशरथ नामक नेता ने किया।
4. अहोम आंदोलन – यह आंदोलन 1828 ई० में असम में गोमधर कुँवर के नेतृत्व में हुआ।
5. खासी आंदोलन – यह आंदोलन 1828 ई० से 1833 ई० में असम में राजा तीरथ सिंह के नेतृत्व में हुआ।
6. कौल आंदोलन – यह आंदोलन 1831 ई० में झारखण्ड में बुद्धो भगत द्वारा चलाया गया।
7. खोंड आंदोलन – यह आंदोलन 1837 ई० में उड़ीसा में चक्र बिसोई के नेतृत्व में चलाया गया।
8. पागलपंथी आंदोलन – यह आंदोलन 1840 ई० से 1850 ई० में हुआ । यह तमिलनाडु में करमशाह व टीपू के नेतृत्व में हुआ।
प्रश्न 2. 1857 की क्रांति किन कारणों से हुई थी ?
उत्तर – 1857 की क्रांति निम्नलिखित कारणों से हुई थी –
1. राजनीतिक कारण – (i) लॉर्ड वेलेज़्ली की ‘सहायक संधि’ और लॉर्ड डलहौज़ी की ‘लैप्स नीति’ इस विद्रोह का मुख्य कारण थीं, क्योंकि इनके अनुसार, अंग्रेज़ों ने अवध, सतारा, नागपुर और झाँसी आदि अनेक देशी राज्यों को हड़प लिया था। इससे भारतीय शासकों और नवाबों में असंतोष की लहर फैल गई ।
(ii) लॉर्ड डलहौज़ी ने नाना साहेब को मिलने वाली पेंशन बंद कर दी, इसलिए वे अंग्रेज़ों के विरुद्ध हो गए ।
(iii) अंग्रेज़ों ने भारत में ग्राम स्वराज को नष्ट कर दिया। इससे भी भारतीयों में असंतोष पैदा हो गया ।
2. आर्थिक कारण – (i) अंग्रेज़ों ने भारत से कच्चे माल की प्राप्ति और तैयार माल की बिक्री के लिए इसे अपनी मंडी बनाया। . इस प्रकार भारतीय उद्योग और व्यापार नष्ट हो गए, जिसके फलस्वरूप लाखों की संख्या में कारीगर व मज़दूर बेरोज़गार हो गए ।
(ii) अंग्रेज़ों ने भारी कर लगाकर किसानों को ज़मींदारों की दया पर छोड़ दिया तथा उन्हें कंगाल बना दिया ।
(iii) अंग्रेज़ों ने भारत के संपूर्ण विदेशी व्यापार को अपने हाथों में ले लिया ।
3. धार्मिक कारण – (i) ईसाई प्रचारकों ने भारत के निम्न वर्ग को तरह-तरह के लालच देकर ईसाई बनाना शुरू कर दिया । इससे बहुत से हिंदू ईसाई बन गए । फलस्वरूप लोगों में असंतोष फैल गया।
(ii) लॉर्ड डलहौज़ी ने एक ऐसा कानून पास किया, जिसके अनुसार यदि कोई धर्म परिवर्तन कर लेता था, तो उसे पैतृक संपत्ति से वंचित नहीं होना पड़ता था । इससे हिंदू धर्म को खतरा पैदा हो गया ।
(iii) अंग्रेज़ पादरी सरेआम हिंदू-मुसलमानों के धर्म ग्रंथों का मजाक उड़ाते थे । इससे भी हिंदू-मुसलमान दोनों तिलमिला उठे ।
4. सामाजिक कारण – (i) अंग्रेज़ों ने भारतीय भाषाओं और साहित्य को घटिया बतलाकर उनके स्थान पर अंग्रेज़ी भाषा और साहित्य को बढ़ावा दिया। इससे लोग अंग्रेज़ों के विरोधी बन गए ।
(ii) अंग्रेज़ी पढ़े भारतीयों को छोटी-मोटी नौकरियाँ दे दी जाती थीं । इस भेदभाव के कारण भारतीयों में बहुत रोष पैदा हो गया।
(iii) भारतीय समाज की अनेक कुरीतियों; जैसे सती प्रथा, बाल विवाह आदि का अंत करने के लिए अंग्रेज़ों ने अनेक कानून बनाए, परंतु हिंदुओं ने इसे अपने धर्म के खिलाफ समझा, जिससे उनमें अंग्रेज़ों के प्रति रोष फैल गया ।
5. सैनिक कारण – (i) अंग्रेज़ अफ़सर भारतीय सैनिकों से दुर्व्यवहार करते थे।
(ii) भारतीय सैनिकों को हीन समझा जाता था और परेड के समय उन्हें भद्दे नामों से पुकारा जाता था ।
(iii) उनके वेतन भी अंग्रेज़ सिपाहियों से कम थे।
(iv) भारतीय सैनिकों के पदोन्नति के अवसर भी बहुत कम थे।
6. तात्कालिक कारण – इसका तात्कालिक कारण चर्बी युक्त कारतूस थे । इन कारतूसों में गाय व सूअर की चर्बी लगी होती थी। इन्हें प्रयोग करने से पहले मुँह से काटना पड़ता था। बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे नामक सैनिक ने चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने से इंकार कर दिया । अतः भारतीय सैनिक उनसे क्रोधित हो गए और यह विद्रोह का तात्कालिक कारण बना।
प्रश्न 3. क्रांतिकारियों की गतिविधियों के मुख्य केन्द्र कौन-कौन से थे ?
उत्तर – क्रांतिकारियों की गतिविधियों के मुख्य केन्द्र निम्नलिखित थे –
1. महाराष्ट्र – क्रान्तिकारी आन्दोलन का प्रारम्भ महाराष्ट्र से हुआ । उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में चापेकर बन्धुओं ने पूना में क्रान्तिकारी गतिविधियाँ प्रारम्भ कीं। महाराष्ट्र के अन्य क्रान्तिकारियों के नाम थे – श्यामजी कृष्ण वर्मा और सावरकर बन्धु । ये महाराष्ट्र के प्रमुख क्रान्तिकारी थे । चापेकर बन्धुओं ने ‘व्यायाम मण्डल’ गठित किया और युवकों को शस्त्र चलाने की शिक्षा देकर उन्हें अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए तैयार किया। विनायक दामोदर सावरकर ने ‘अभिनव भारत’ की स्थापना नासिक में की। विनायक दामोदर के बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर ने देशभक्ति के गीत लिखे जिसके कारण अंग्रेज़ों ने उन्हें काला पानी की सज़ा दी । गणेश दामोदर सावरकर को सजा दिलाने वाले अंग्रेज़ अधिकारियों की ‘अभिनव भारत’ के सदस्यों ने गोली मारकर हत्या कर दी। इसी समिति के एक अन्य सदस्य मदनलाल ढींगड़ा ने लन्दन जाकर कर्नल वायली की हत्या की । अंग्रेज़ों ने विनायक दामोदर सावरकर को आजीवन कारावास की सजा दी ।
2. बंगाल — अंग्रेज़ों की दमनकारी नीति से तंग आकर बंगाल के नवयुवकों ने क्रान्ति का मार्ग अपनाया। उन्होंने बंगाल में एक क्रान्तिकारी दल ‘अनुशीलन समिति’ की स्थापना की । क्रान्तिकारियों ने अपनी समितियों का गठन पाश्चात्य देशों की क्रान्तिकारी समितियों के आधार पर किया । क्रान्तिकारी दल के नेता बारिंद्र घोष और अरविंद कोष थे। इस दल के सदस्य अपने क्रान्तिकारी विचारों का प्रचार ‘सन्ध्या’ तथा ‘युगान्तर’ नामक पत्रिकाओं द्वारा किया करते थे | बंगाल के क्रान्तिकारियों ने क्रूर अंग्रेज़ अधिकारियों को मौत के घाट उतार देने की विस्तृत योजनाएँ बनाईं। बंगाल के क्रान्तिकारियों में खुदीराम बोस, बारिंद्र घोष, भूपेन्द्रनाथ दत्त आदि प्रमुख थे । क्रान्तिकारियों ने अपना कार्य अत्याचारी अंग्रेज़ अधिकारियों की हत्या से शुरु किया । 1908 ई० में मुज़फ्फरपुर के अत्याचारी जज फोर्ड की हत्या के लिए खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने उसकी बग्घी पर बम फेंका क्योंकि उसने स्वदेशी आन्दोलनकारियों को सजाएँ दी थीं किन्तु फोर्ड के स्थान पर गलती से दो अंग्रेज़ महिलाएँ मारी गईं। इससे दुःखी होकर प्रफुल्ल चाकी ने तो आत्महत्या कर ली लेकिन खुदीराम बोस को फाँसी दे दी गई । इससे क्रान्तिकारी आन्दोलन की धारा और अधिक तेज हो गई । खुदीराम बोस बंगाल के क्रान्तिकारियों के लिए राष्ट्रीय वीर तथा शहादत का प्रतीक बन गया ।
3. पंजाब तथा दिल्ली में – पंजाब में भगत सिंह तथा उसके चाचा सरदार अजीत सिंह प्रमुख क्रान्तिकारी थे जिनके प्रयासों से वहाँ ‘अंजुमन-ए-मुहिब्बाने वतन’ नामक संस्था स्थापित हुई । लाला लाजपत राय पंजाब के क्रान्तिकारियों के निकट सहयोगी थे। पंजाब सरकार की भूमि सम्बन्धी नीति के कारण किसानों में असन्तोष फैल गया । इस नीति के विरोध में पंजाब में एक आन्दोलन आरम्भ हुआ, जिसका नेतृत्व सरदार अजीत सिंह ने किया। सरकार ने 1907 ई० में लाला लाजपत राय को क्रान्तिकारी होने के अपराध में देश निकाला दे दिया । लाला पिण्डीदास ने अपने समाचार पत्र द्वारा लोगों में विशेष जोश पैदा कर दिया। सरकार ने इसके लिए लाला पिण्डी दास को पाँच वर्ष की कैद की सज़ा दी ।
दिल्ली में भी क्रान्तिकारियों की गतिविधियाँ तीव्र हो गईं। 1912 ई० में वायसराय लॉर्ड हार्डिंग के जुलूस पर चाँदनी चौंक में बम फेंका गया। अनेक लोगों पर मुकद्दमा चलाया गया तथा मास्टर अमीरचन्द, अवध बिहारी, बालमुकुन्द गुप्त और बसन्त कुमार को फाँसी दी गई। 1914 ई० में आरम्भ हुए प्रथम विश्वयुद्ध के प्रति कांग्रेस ने तो ‘विपत्ति के समय ब्रिटिश सरकार का पूरा साथ देने’ का प्रस्ताव पारित किया किन्तु क्रान्तिकारियों ने अमूल्य समय का सदुपयोग अपनी गतिविधियों को बढ़ाने में किया । वे इस अवसर का प्रयोग ब्रिटिश साम्राज्य को जड़ से उखाड़ फेंक देने के लिए करना चाहते थे । इसलिए उन्होंने सशस्त्र विद्रोह की तैयारी आरम्भ कर दी तथा अनेक षड्यन्त्र रचे ।
4. राजस्थान- दूसरे प्रान्तों की भाँति राजस्थान में भी क्रान्तिकारी आन्दोलन हुए। यहाँ क्रान्तिकारी आन्दोलन के नेता अर्जुनलाल सेठ, केसरी सिंह, राव गोपाल आदि थे, लेकिन राजस्थान में क्रान्तिकारी आन्दोलन अधिक सफल नहीं हुआ।
5. बिहार और उड़ीसा – उड़ीसा में पटना, देवधर एवं दुमका आदि स्थानों पर क्रान्तिकारी गतिविधियों का प्रसार हुआ। कामाख्यानाथ मिश्र ने बिहार के युवकों में देश-प्रेम की भावना उत्पन्न करने में सराहनीय योगदान दिया ।
6. अन्य प्रान्त- महाराष्ट्र, बंगाल, पंजाब और दिल्ली के अतिरिक्त देश के अन्य भागों में भी क्रान्तिकारी आन्दोलन का प्रसार हुआ । संयुक्त प्रान्त आगरा और अवध में बनारस क्रान्तिकारियों का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था | सुन्दर लाल इस क्षेत्र के प्रमुख क्रान्तिकारी नेता थे, जिन पर लाला लाजपतराय, लोकमान्य तिलक और अरविन्द घोष के विचारों का अत्यधिक प्रभाव था। सन् 1913 के अन्त में सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी रासबिहारी भी बनारस आ गए और एक वर्ष तक यहीं रहे। भारत के प्रांतों के साथ-साथ विदेशों में भी क्रान्तिकारी केन्द्र स्थापित किए गए।
प्रश्न 4. आजाद हिन्द फौज की स्वतंत्रता आंदोलन की क्या भूमिका थी ?
उत्तर – आज़ाद हिन्द फौज की स्वतंत्रता आंदोलन की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी, जिसका वर्णन इस प्रकार है-
1. आज़ाद हिन्द फौज का निर्माण – सुभाषचन्द्र बोस ने गाँधीजी तथा सी०आर०दास को पूर्ण सहयोग दिया, यहाँ तक कि आई०सी०एस० की नौकरी को राष्ट्र के हित के लिए त्याग दिया । गाँधीजी से मतभेद होने के कारण उन्होंने काँग्रेस को छोड़कर अग्रगामी दल (Forward Block) की स्थापना की । 22 जून, 1940 को सुभाषचन्द्र बोस वीर सावरकर से मिले । उन्होंने सावरकर से सलाह माँगी कि मैं कलकत्ता में अंग्रेज़ों की सार्वजनिक स्थानों से मूर्तियाँ हटाने के लिए आन्दोलन शुरू करने वाला हूँ, लेकिन सावरकर ने सुभाष को समझाया । सुभाष सावरकर की अमूल्य बातों से बड़े प्रभावित हुए ।
2. टोकियो सम्मेलन – इन दिनों भारत के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस जापान में क्रान्तिकारी गतिविधियों में लगे हुए थे। उन्होंने 28 मार्च, 1942 को टोकियो में मलाया से बर्मा तक रहने वाले सभी भारतीए नेताओं का एक सम्मेलन बुलाया । इस सम्मेलन में उन्होंने ‘भारतीय स्वतन्त्रता लीग’ तथा ‘आज़ाद हिन्द फौज’ बनाने की घोषणा की ।
3. बैंकाक सम्मेलन – टोकियो सम्मेलन के बाद 14 जून से 23 जून, 1942 तक बैंकाक में रासबिहारी की अध्यक्षता में एक सम्मेलन हुआ। इसमें यह प्रस्ताव पास किया गया कि आज़ाद हिन्द फौज भारत की स्वतन्त्रता के अतिरिक्त और किसी उद्देश्य के लिए प्रयोग में नहीं लाई जाएगी । इस तरह आजाद हिन्द फौज में 50,000 व्यक्ति भर्ती हो गए। इस कान्फ्रेंस में यह भी फैसला किया गया कि सुभाषचन्द्र बोस को टोकियो आने का निमन्त्रण दिया जाए। इस निमन्त्रण को प्राप्त करके नेता सुभाषचन्द्र बोस अनेक कठिनाइयों को सहन करते हुए 20 जून, 1943 को टोकियो पहुँच गए।
4. सुभाषचन्द्र बोस द्वारा आज़ाद हिन्द फौज की कमान संभालना- रासबिहारी बोस ने सुभाषचन्द्र बोस को आज़ाद हिन्द फौज का सेनापति बनाकर सारे संगठन का भार सौंप दिया। सुभाषचन्द्र बोस ने 20 जून, 1943 को टोकियो पहुँचते ही घोषणा की तथा 21 जून को बोस ने फिर टोकियो रेडियो से घोषणा की । 2 जुलाई, 1943 को बोस सिंगापुर पहुँचे जहाँ पर उनका हार्दिक स्वागत किया गया। उन्होंने वहाँ अपने भाषण में कहा, “भारत के सिपाहियो ! हमारी लड़ाई प्रत्येक प्रकार से साम्राज्यवाद के विरुद्ध है। चाहे यह अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद हो अथवा जापानी । हमें देशद्रोहियों से बचना चाहिए । वहाँ दूर नदियों, जंगलों और पहाड़ों के पास हमारा देश है। जहाँ की मिट्टी से हम बने हैं, जहाँ हम जा रहे हैं, सुनो, भारतवर्ष पुकार रहा है, हथियार उठाओ, चलो दिल्ली। दिल्ली का रास्ता आज़ादी का रास्ता है। जो भी तुम्हें प्राप्त होगा वह तुम्हारा होगा, परन्तु इस समय मैं तुम्हें भूख, प्यास, कठिनाइयों और यहाँ तक की मृत्यु के अतिरिक्त और कुछ नहीं दे सकता । हमें अपना सब कुछ बलिदान कर देना चाहिए ताकि भारत स्वतन्त्र हो जाए ।”
5 जुलाई, 1943 को रासबिहारी बोस ने ‘भारतीय स्वतन्त्रता लीग’ की प्रधानता सुभाष को दे दी तथा उन्हें ‘नेताजी’ कहकर सम्बोधित किया गया। उन्होंने तुरन्त ही सिंगापुर, मलाया, जावा, सुमात्रा, बर्मा आदि स्थानों पर आज़ाद हिन्द फौज के दफ्तर खोल दिए । नेताजी सुभाषचन्द्र बोस आज़ाद हिन्द फौज में तीन लाख सैनिक भर्ती करना चाहते थे, लेकिन इतने सैनिकों को जुटाना कोई आसान कार्य नहीं था ।
आज़ाद हिन्द फौज के संगठन में सुभाष ने अपने देश-प्रेम एवं अपनी मौलिकता का सुन्दर परिचय दिया। ‘जय हिन्द’ का नारा उन्हीं का दिया हुआ नारा है। आज़ाद हिन्द फौज को पाँच भागों में बाँटा गया – आज़ाद ब्रिगेड, गाँधी ब्रिगेड, नेहरू ब्रिगेड, सुभाष ब्रिगेड और झाँसी की रानी रेजिमेण्ट । झाँसी की रानी रेजिमेण्ट में स्त्रियों को भर्ती किया जाता था। आज़ाद हिन्द फौज का ‘राष्ट्रीय गान’ टेगौर की कविता थी । आज़ाद हिन्द फौज का मूल उद्देश्य ताकत, त्याग और बलिदान के बल पर भारत को स्वतन्त्र करना था ।
5. अन्तरिम सरकार की स्थापना – 21 अक्तूबर, 1943 को सुभाषचन्द्र बोस ने आज़ाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति के रूप में सिंगापुर में स्वतन्त्र भारत की अन्तरिम सरकार की स्थापना की ।
6. युद्ध की घोषणा – 23 अक्तूबर, 1943 को अन्तरिम सरकार के मन्त्रिमण्डल की एक विशेष बैठक बुलाई गई। इस बैठक में अमेरिका तथा ब्रिटेन के विरुद्ध युद्ध आरम्भ करने का निर्णय किया गया । नेताजी ने यह निर्णय स्वयं रेडियो से प्रसारित किया और इसके तुरन्त बाद आज़ाद हिन्द फौज ने भारत की ओर प्रस्थान करना आरम्भ कर दिया ।
7. आज़ादी के लिए संघर्ष – आज़ाद हिन्द फौज ने फरवरी, 1944 तक रामू, कोहिमा, पलेल, तिद्दिम आदि भारतीय प्रदेशों को अंग्रेज़ों के प्रभुत्व से मुक्त करा लिया । मार्च, 1944 में यह सेना इम्फाल तक पहुँच गई थी और इसने लगभग 250 वर्ग मील भारत-भूमि को स्वतन्त्र करा लिया था । नेफा में म्याम्यो नामक स्थान पर स्वतन्त्र भारत की राजधानी बनाई गई । 22 सितम्बर, 1944 को सुभाषचन्द्र ने शहीदी दिवस मनाया । आज़ाद हिन्द फौज के सैनिकों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा, “हमारी मातृ-भूमि स्वतन्त्रता की खोज में है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा । यह स्वतन्त्रता की देवी की माँग है ।” इम्फाल पर आज़ाद हिन्द फौज का आक्रमण सफल नहीं रहा । यह घेरा लम्बा होता चला गया । भारी वर्षा, रसद की कमी तथा जापान के संचार – भंग होने के कारण आज़ाद हिन्द फौज को पीछे हटना पड़ा । अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी स्थिति बदल गई । जर्मनी तथा जापान के आत्म-समर्पण कर देने के बाद आज़ाद हिन्द फौज को भी हार का मुँह देखना पड़ा ।
प्रश्न 5. महात्मा गाँधी के आंदोलनों का वर्णन करें।
उत्तर — गाँधी जी ने 1920 से 1945 के मध्य तीन बड़े आंदोलन अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ चलाए । इन आंदोलनों में भारतीय जनता के सभी वर्गों ने भाग लिया । इन जन-आंदोलनों ने ही राष्ट्रीय आंदोलन को सही मायने में राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया । इन आंदोलनों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित प्रकार से है –
1. असहयोग आंदोलन – अगस्त, 1920 में आंदोलन शुरू करते हुए गाँधी जी ने स्वयं ‘केसरी – ए हिंद’ की उपाधि तथा अन्य पदों का परित्याग कर दिया। विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया। वकीलों ने अदालतों में जाना छोड़कर आंदोलन में भाग लिया। इनमें प्रमुख थे- सी०आर०दास, मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, पटेल राजा जी, राजेन्द्र प्रसाद, आसफ अली आदि ।
सरकारी कोर्ट के स्थान पर राष्ट्रीय पंचायती अदालतों की स्थापना हुई । राष्ट्रीय शिक्षण संस्थान जैसे काशी विद्यापीठ, तिलक विद्यापीठ, अलीगढ़ विद्यापीठ, जामिया मिलिया आदि स्थापित हुए। कई कस्बों और नगरों में मज़दूरों ने हड़तालें कीं । विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार काफी उत्साहवर्धक रहा । हिंदू-मुस्लिम एकता का व्यापक प्रदर्शन हुआ । चुनावों का बहिष्कार हुआ । देहातों में आंदोलन फैलने लगा। आंध्र प्रदेश में जनजातियों ने वन कानून की अवहेलना कर दी। राजस्थान में किसानों और जनजातियों ने आंदोलन किया। अवध में किसानों ने कर नहीं चुकाया। आसाम-बंगाल रेलवे के कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी। पंजाब में गुरुद्वारा आंदोलन चला। नवंबर, 1921 में बंबई में प्रिंस ऑफ वेल्स का बहिष्कार हुआ, परंतु 1922 में चौरी-चौरा की घटना के बाद आंदोलन स्थगित कर दिया गया ।
इस आंदोलन ने 1857 के बाद पहली बार अंग्रेज़ी राज की नींव को हिलाया ।
2. सविनय अवज्ञा आंदोलन – 12 मार्च, 1930 को आंदोलन की शुरूआत गाँधी जी ने दांडी मार्च से की। उनके द्वारा नमक कानून तोड़ने के साथ ही यह आंदोलन सारे देश में फैल गया । राजगोपालाचारी ने त्रिचिनापल्ली से तंजौर तक यात्रा करके नमक सत्याग्रह किया। सरोजिनी नायडू ने 2000 सत्याग्रहियों के साथ धरासान में आंदोलन किया । मालाबार व सिलहट में भी ऐसे आंदोलन हुए। उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत में खान अब्दुल गफ्फार खान ने इस आंदोलन की अगुवाई की। पेशावर में सत्याग्रहियों पर गढ़वाल सैनिकों ने गोली चलाने से मना कर दिया । मध्य प्रांत, कर्नाटक व महाराष्ट्र में लोगों ने ‘जंगल कानून’ का उल्लंघन किया। उत्तर प्रदेश में किसानों ने लगान देने से मना किया। शोलापुर में मज़दूरों ने जोरदार हड़ताल की। वकीलों ने अदालतों का बहिष्कार किया। विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में सरकारी शिक्षा संस्थाओं का बहिष्कार किया। बड़े पैमाने पर विदेशी वस्त्रों के खिलाफ धरना-प्रदर्शन आयोजित हुए। महिलाओं ने आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया ।
3. भारत छोड़ो आंदोलन – दूसरे विश्वयुद्ध के मुद्दे पर सरकार व काँग्रेस में गतिरोध पैदा हो गया था । अंग्रेज़ सरकार युद्ध के बाद भी भारत को स्वतंत्रता नहीं देना चाहती थी । अंततः 8 अगस्त, 1942 को गाँधी जी ने अंग्रेज़ों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया। उन्होंने ‘करो या मरो’ का नारा दिया। सरकार ने गाँधी जी व अन्य बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। 9 अगस्त से 13 अगस्त तक सारे देश में प्रमुख नगरों; जैसे बंबई, अहमदाबाद, दिल्ली, पुणे, इलाहाबाद, लखनऊ, वाराणसी, पटना आदि पर व्यापक उपद्रव हुए, हड़तालें हुईं एवं प्रदर्शन हुए । सरकारी प्रतीकों पर हमले हुए । संचार साधनों, सेना और पुलिस के खिलाफ तोड़-फोड़ और विध्वंस किए गए। छात्रों ने शहरों से आकर कृषक विद्रोहों को नेतृत्व प्रदान किया। इस दौर में अनेक स्थानों पर अंग्रेज़ी राज समाप्त हो गया तथा उन स्थानों पर समानांतर राष्ट्रीय सरकारों की स्थापना हुई। इनमें तमलुक (मिदनापुर), तलचर (उड़ीसा), सतारा (महाराष्ट्र), बलिया ( पूर्वी संयुक्त प्रांत) की राष्ट्रीय सरकारें प्रमुख थीं।
⇒ आइए विचार करें-
प्रश्न 1. बिरसा मुंडा के नेतृत्व में वनवासी आंदोलन किन कारणों से हुआ ?
उत्तर – बिरसा मुंडा के नेतृत्व में वनवासी आंदोलन निम्नलिखित कारणों से हुआ –
(1) बिरसा ने ईसाई मिशनरियों और जमींदारों का भी लगातार विरोध किया । वे उन्हें बाहर का मानते थे जो मुंडा जीवन-शैली को नष्ट कर रहे थे ।
(2) 1895 ई० में बिरसा ने अपने अनुयायियों से आह्वान किया कि वे अपने गौरवपूर्ण अतीत को पुनर्जीवित करने के लिए संकल्प लें।
(3) बिरसा अतीत के एक ऐसे स्वर्ण युग की चर्चा करते थे जब मुंडा लोग अच्छा जीवन जीते थे, तटबंध बनाते थे, कुदरती झरनों को नियंत्रित करते थे, वृक्ष और बाग लगाते थे तथा पेट पालने के लिए खेती करते थे।
(4) बिरसा चाहते थे कि मुंडा लोग एक बार फिर अपनी जमीन पर खेती करें, वे एक स्थान पर टिककर रहें और अपने खेतों में काम करें ।
(5) बिरसा आंदोलन मिशनरियों, महाजनों, हिंदू भू-स्वामियों और सरकार को बाहर निकालकर बिरसा के नेतृत्व में मुंडा राज स्थापित करना चाहता था ।
(6). 1895 ई० में बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया और दंगे-फसाद के आरोप में दो साल की सजा सुनाई गई। जेल से लौटने बाद बिरसा ने गाँव-गाँव घूमकर दीकु और यूरोपियों को तबाह करने का आह्वान किया ।
(7) सन् 1900 में बिरसा की हैजे से मृत्यु हो गई और आंदोलन ठंडा पड़ गया ।
प्रश्न 2. स्वतंत्रता आंदोलन में भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव का क्या योगदान था ?
उत्तर—स्वतंत्रता आंदोलन में भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव का महत्त्वपूर्ण योगदान था। इस आंदोलन में बलिदान के लिए पूरा देश उनका ऋणी है। इनके बलिदान से न केवल देश के स्वतंत्रता संग्राम को गति मिली बल्कि नवयुवकों के लिए भी वे प्रेरणा स्त्रोत सिद्ध हुए। वे देश के समस्त शहीदों के सिरमौर थे। उन्होंने अपना समस्त जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया। स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका के साथ-साथ उनकी शहादत को भी नहीं भुलाया जा सकता था। 10 सितम्बर, 1928 को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला नामक स्थान पर देश के विभिन्न प्रान्तों के क्रांतिकारियों की एक सभा बुलाई गई। सभा में संयुक्त प्रान्त, पंजाब, राजपूताना, बिहार तथा बंगाल के क्रांतिकारी समूहों के प्रतिनिधि शामिल हुए जिनमें से प्रसिद्ध थे— भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद, सुखदेव । इस सम्मेलन के मन्त्री भगत सिंह थे। इस सम्मेलन में बहुत विचार विमर्श के बाद भगत सिंह के सुझाव पर ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (HRA) नाम में समाजवाद (सोशलिस्ट) शब्द और जोड़ दिया गया। अब इस क्रांतिकारी संगठन का नाम ‘ हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन’ (HSRA) रखा गया। इसका अभिप्राय था कि पार्टी ने समाजवादी गणतन्त्रीय राज्य का आदर्श अपनाया।
साइमन कमीशन का विरोध करते हुए लाला जी को सिर पर चोटें आई जिसकी वजह से 17 नवम्बर, 1928 को उनकी मृत्यु हो गई। इस पर भगत सिंह तथा उसके साथियों ने इसे राष्ट्रीय अपमान माना तथा लाला जी की मौत का बदला लेने के लिए 17 दिसम्बर को स्कॉट की हत्या करने का निर्णय लिया गया। स्कॉट पुलिस अध्यक्ष था जिसने लाठी चार्ज करवाया था। जे०पी० सांडर्स (पुलिस का सहायक अधीक्षक) को दफ्तर से बाहर आता देख साथी जयगोपाल ने उसे स्कॉट समझकर भगत सिंह को इशारा किया। भगत सिंह ने सांडर्स की हत्या कर दी तथा डी०ए०वी० कॉलेज के रास्ते छिपकर भागने में सफल हुए।
प्रश्न 3. कामागाटामारू घटना क्यों हुई ?
उत्तर -1914 ई० में एक महत्त्वपूर्ण घटना घटी, जिसे कामागाटामारू घटना कहा जाता है। कनाडा की सरकार ने भारतीयों के कनाडा प्रवेश पर अनेक पाबन्दियाँ लगाई हुई थीं। इन भारतीयों की सहायता के लिए सिंगापुर के एक धनी व्यापारी बाबा गुरदित्त सिंह ने एक जापानी जहाज कामागाटामारू किराए पर लिया और उसमें लगभग 350 भारतीयों को लेकर कनाडा की ओर चल पड़ा। 23 मई, 1914 ई० को जब यह जहाज कनाडा की वैंकूवर बन्दरगाह पर पहुँचा तो कनाडाई अधिकारियों ने उन यात्रियों को कनाडाई ज़मीन पर उतरने की अनुमति नहीं दी । दो महीने बाद यह जहाज भारत की ओर चल दिया तथा 27 सितम्बर, 1914 को कलकत्ता की बन्दरगाह पर पहुँचा । भारतीय सरकार को सन्देह था कि इस जहाज के यात्रियों का गदर पार्टी से सम्बन्ध है। अतः पुलिस ने इन यात्रियों को ज़बरदस्ती ट्रेन में बैठाकर पंजाब भेजना चाहा। कुछ यात्रियों ने पुलिस से बचकर कलकत्ता नगर में घुसने का प्रयत्न किया तो पुलिस ने गोली चला दी । इस गोलीकांड में 19 यात्री मारे गए तथा कई भागने में सफल हो गए। इस जहाज के निर्दोष यात्रियों पर गोली चलाए जाने की घटना ने भारतीय क्रांतिकारियों में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध बदले की भावना और तेज़ कर दी ।
प्रश्न 4. स्वतंत्रता आंदोलन में स्वदेशी व बहिष्कार क्यों महत्वपूर्ण थे ?
उत्तर – स्वतंत्रता आंदोलन में स्वदेशी व बहिष्कार निम्नलिखित कारणों से महत्त्वपूर्ण थे –
(1) देश में बनी वस्तुओं के प्रति लोगों के मन में लगाव पैदा हुआ ।
(2) देश में लगे उद्योगों का भी विकास हुआ ।
(3) साहित्य और शिक्षा का विषय भी ‘राष्ट्रीयता’ बन गया।
(4) महिलाएँ और छात्र भी देश के लिए खुलेआम सामने आए ।
(5) इस आन्दोलन से राष्ट्रीय एकता को बल मिला ।
(6) इस आन्दोलन से विदेशी व्यापार को धक्का लगा ।
⇒ आइए करके देखें-
प्रश्न 1. क्रांतिकारियों की गतिविधियों की सूची बनाएं।
उत्तर – विद्यार्थी स्वयं करें ।
प्रश्न 2. सुभाष चन्द्र बोस के चित्रों को एकत्रित करके कोलाज बनाएं। 
उत्तर – विद्यार्थी स्वयं करें ।
परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न [LONG-ANSWER TYPE QUESTIONS]
प्रश्न 1. कूका आंदोलन पर विस्तारपूर्वक नोट लिखें।
उत्तर – नामधारी अथवा कूका आंदोलन सिक्खों में दूसरा सुधार आंदोलन था । नामधारी परमात्मा के नाम का ऊँची आवाज में ‘कूके’ मार-मार कर पूरी श्रद्धा के साथ जाप करते थे । इसलिए ही इस आंदोलन का नाम नामधारी (परमात्मा का नाम धारण करने वाले) अथवा कूका (कूके मारकर नाम जपने वाले) पड़ गया । इस आंदोलन की नींव भक्त जवाहर मल ने रखी जो साईं साहब के नाम से जाने जाते थे। उनका मुख्य उद्देश्य घृणित रस्मों, गूढ़ विश्वासों, मकबरों, मूर्तियों और संन्यासियों की पूजा आदि को समाप्त कर सिक्ख धर्म को शुद्ध करना था।
बाबा रामसिंह (1815-1885 ई०) इस आंदोलन के महान् नेता थे। इनका जन्म 8 फरवरी, 1815 में भैणी साहिब नामक गाँव में एक बढ़ई परिवार में हुआ। 21-22 साल की आयु में आप महाराजा रणजीत सिंह के पोते राजकुमार नौनिहाल सिंह के सैनिक दस्ते में भर्ती हो गए। हजरो यात्रा के समय आपका सम्पर्क भाई बालक सिंह जी से हुआ। उनके सुधारवादी विचारों का आप पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। 1845 ई० में आपने नौकरी छोड़ दी तथा 1857 ई० आप नामधारी सम्प्रदाय के प्रचार-प्रसार में लग गए। अपने धर्मोपदेशों के प्रचार के लिए आपने 22 केन्द्रों की स्थापना की। इन केन्द्रों पर काम करने वाले प्रतिनिधि सूबा कहलाते थे ।
नामधारी ईश्वर की भक्ति करने पर अधिक बल देते थे। वे मूर्ति पूजा, बाल-विवाह, कन्या वध तथा दास प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध थे तथा जाति-पाति के भेदभाव को नहीं मानते थे। वे सफेद रंग के वस्त्र तथा सफेद ऊन के मनकों की माला पहनते थे तथा आदि ग्रन्थ को पवित्र ग्रन्थ मानते थे। वे औरतों को पुरुषों के बराबर दर्जा देते थे। राजनीतिक क्षेत्र में नामधारियों ने ब्रिटिश सरकार के प्रति असहयोग का व्यवहार अपनाया। बाबा रामसिंह जी ने अपने अनुयायियों को आदेश दिया कि वे सरकारी  नौकरियों, स्कूलों, अदालतों, डाकघरों तथा विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करें। उन्होंने गौ-हत्या के विरुद्ध हिंसक आंदोलन भी चलाया।
1872 ई० में मलेरकोटला में जैसे ही कूकाओं को गौ-हत्या की खबर लगी, उन्होंने वहाँ के नवाब के महल को घेर लिया । नवाब के सैनिकों तथा पटियाला के अधिकारियों ने उन्हें बड़ी संख्या में बन्दी बना लिया। लुधियाना के डिप्टी कमिश्नर ने इस विद्रोह के लिए रामसिंह जी को उत्तरदायी मानकर उन्हें रंगून भेज दिया तथा 40 कूकों को तोप से उड़वा दिया। 1885 ई० में बाबा रामसिंह जी की मृत्यु हो गई। उसके बाद कूकों की राजनीतिक गतिविधियाँ भी शान्त हो गई। बाबा रामसिंह जी के बाद बाबा हरि सिंह एवं उनके बाद बाबा प्रताप सिंह ने कूका आंदोलन का नेतृत्व किया । नामधारी राष्ट्रीय एकता तथा सामाजिक सद्भावना प्रचार में सदैव अग्रणी रहे हैं ।
प्रश्न 2. गदर आंदोलन पर विस्तार चर्चा करते हुए इसके महत्त्व पर विचार कीजिए ।
उत्तर – भारत की अंग्रेज़ सरकार को शक्ति के प्रयोग द्वारा देश से बाहर निकालकर पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त करने के उद्देश्य से गदर पार्टी की स्थापना की गई । अमेरिका और कनाडा में बसे भारतीय क्रांतिकारियों ने 21 अप्रैल, 1918 ई0 में इस पार्टी की स्थापना की ।
इस पार्टी के अधिकाँश सदस्य पंजाब के वे सिक्ख किसान और भूतपूर्व सैनिक थे जो वहाँ रोजी-रोटी की तलाश में गए और जिन्हें वहाँ खुले नस्ली और आर्थिक भेदभाव का सामना करना पड़ा था । इस पार्टी के नेता शिक्षित हिन्दू तथा मुसलमान थे । लाला हरदयाल, मुहम्मद बरकतुल्लाह, भगवान सिंह, रामचन्द्र, करतार सिंह सराभा, भाई परमानन्द, रहमत अली शाह तथा सोहन सिंह भकना गदर पार्टी के कुछ प्रमुख नेता थे ।
इस पार्टी का आधार उसका साप्ताहिक पत्र ‘गदर’ था जिसके सिरे पर ‘अंग्रेज़ी राज का दुश्मन’ लिखा होता था। इस पत्र ने एक विज्ञापन छापा – “भारत में विद्रोह फैलाने के लिए बहादुर सिपाहियों की आवश्यकता है। तन्ख्वाह मौत, इनाम- शहादत, पेंशन- आज़ादी, लड़ाई का मैदान भारत है ।” यह विज्ञापन इस पार्टी के उद्देश्यों और कार्यक्रमों का परिचय देने के लिए पर्याप्त था ।
1914 ई० में विश्व युद्ध शुरू होने पर गदर पार्टी के नेताओं ने भारत में शस्त्र तथा प्रचारक भेजे ताकि स्थानीय क्रांतिकारियों तथा सैनिकों का अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह तैयार किया जाए । क्रांति को सफल बनाने के लिए गदर पार्टी के सदस्यों ने लाखों डॉलर चन्दा इकट्ठा किया । सुदूर पूर्व, दक्षिण-पूर्व एशिया तथा सारे भारतीय सैनिकों से सम्पर्क स्थापित किया गया । 21 फरवरी, 1915 को पंजाब में सशस्त्र क्रांति की योजना बनाई गई, लेकिन दुर्भाग्यवश किसी प्रकार सरकार को समय से पहले इसकी सूचना मिल गई। अतः विद्रोही रेजिमेन्टों को तोड़ दिया गया, नेताओं को फाँसी दे दी गई और अनेक भारतीय जेलों में बन्द कर दिए गए। 23वें रिसाले के 12 व्यक्तियों को मृत्यु दण्ड दिया गया। पंजाब में गदर पार्टी के 42 सदस्यों को फाँसी दी गई, 114 को आजन्म काले पानी तथा 93 को लम्बे समय के लिए जेलों में बन्द कर दिया गया । गदर पार्टी से प्रेरणा पाकर सिंगापुर के 700 सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने विद्रोह का दमन कर दिया। कई सैनिक लड़ते हुए मारे गए, 37 सैनिकों को फाँसी तथा 41 को आजन्म काले पानी की सजा दी गई ।
इस प्रकार सशस्त्र क्रांति द्वारा भारत को स्वतन्त्र कराने का प्रयास असफल हो गया। लेकिन हमारे राष्ट्र को धरोहर शहीदों की एक परम्परा प्राप्त हुई, जो निःसन्देह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण थी । क्रांतिकारियों के बलिदानों ने देशवासियों के हृदय में स्वतन्त्रता की ज्योति जलाने में चकमक पत्थर का काम दिया। अंग्रेज़ भी यह जान गए कि वे बारूद के ढेर पर बैठे हैं।
प्रश्न 3. आजाद हिंद फौज के पुनर्गठन पर विस्तृत नोट लिखें।
उत्तर – भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन के इतिहास में आजाद हिन्द फौज तथा सुभाष चंद्र बोस एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। भारतीय स्वतन्त्रता के आदर्श में उनकी गम्भीर निष्ठा थी जिसको पूर्ण करने के लिए उन्होंने आजाद हिन्द फौज तैयार करके देश की दासता की बेड़ियों को काटने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी ।
रास बिहारी बोस ने सुभाष चंद्र बोस को आज़ाद हिन्द फौज का सेनापति बनाकर सारे संगठन का भार सौंप दिया । सुभाष चंद्र बोस ने 20 जून, 1948 को टोकियो पहुँचते ही यह घोषणा की, “जो अवसर दूसरे महायुद्ध ने दिया है ऐसा मौका शायद भविष्य में 100 वर्षों में भी नहीं आएगा। इसलिए हमारा यह पक्का विश्वास है कि भारत की स्वतन्त्रता के लिए इस अवसर का लाभ उठाया जाए। हमारा यह प्रथम कर्त्तव्य है कि हम स्वतन्त्रता का मूल्य चुकाने के लिए अपना खून दें । जिन्होंने हमारे विरुद्ध शस्त्र उठाए हैं, उनका जवाब शस्त्रों से दिया जाए, यह हमारा कर्त्तव्य है । “
2 जुलाई, 1948 को बोस सिंगापुर पहुँचे जहाँ पर उनका हार्दिक स्वागत किया गया । उन्होंने वहाँ अपने भाषण में कहा, “भारत के सिपाहियो ! हमारी लड़ाई प्रत्येक प्रकार से साम्राज्यवाद के विरुद्ध है। चाहे यह अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद हो अथवा जापानी। हमें देशद्रोहियों से बचना चाहिए। वहाँ दूर नदियों, जंगलों और पहाड़ों के पास हमारा देश है । जहाँ की मिट्टी से हम बने हैं, जहाँ हम जा रहे हैं, सुनो, भारतवर्ष पुकार रहा है, हथियार उठाओ, चलो दिल्ली। दिल्ली का रास्ता आज़ादी का रास्ता है। जो भी तुम्हें प्राप्त होगा वह तुम्हारा होगा, परन्तु इस समय मैं तुम्हें भूख, प्यास, कठिनाइयों और यहाँ तक की मृत्यु के अतिरिक्त और कुछ नहीं दे सकता। हमें अपना सब कुछ बलिदान कर देना चाहिए ताकि भारत स्वतन्त्र हो जाए ।”
आज़ाद हिन्द फौज के संगठन में सुभाष ने अपने देश-प्रेम एवं अपनी मौलिकता का सुन्दर परिचय दिया | ‘जय हिन्द’ का नारा उन्हीं का दिया हुआ नारा है। उन्होंने सेना के कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए आज़ाद हिन्द फौज को पाँच भागों में बाँटा गया – आज़ाद ब्रिगेड, गाँधी ब्रिगेड, नेहरू ब्रिगेड, सुभाष ब्रिगेड और झाँसी की रानी रेजिमेण्ट । झाँसी की रानी रेजिमेण्ट में स्त्रियों को भर्ती किया जाता था | आज़ाद हिन्द फौज का मूल उद्देश्य ताकत, त्याग और बलिदान के बल पर भारत को स्वतन्त्र करना था।
21 अक्तूबर, 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति के रूप में सिंगापुर में स्वतन्त्र भारत की अन्तरिम सरकार की स्थापना की। सुभाष चंद्र बोस ने शपथ ग्रहण की, “ईश्वर के नाम पर मैं यह पवित्र शपथ ग्रहण करता हूँ कि मैं भारत को आज़ाद कराऊँगा और मैं इस पवित्र युद्ध को अपने जीवन के अन्तिम क्षणों तक जारी रखूँगा । मैं सदा भारत का सेवक रहूँगा। स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद भी स्वतन्त्रता को कायम रखने के लिए मैं अपने रक्त की अन्तिम बूँद भी बहाने को तैयार रहूँगा।”
आज़ाद हिन्द फौज ने फरवरी, 1944 तक रामू, कोहिमा, पलेल, तिद्दिम आदि भारतीय प्रदेशों को अंग्रेज़ों के प्रभुत्व से मुक्त करा लिया। मार्च, 1944 में यह सेना इम्फाल तक पहुँच गई थी और इसने लगभग 250 वर्ग मील भारत-भूमि को स्वतन्त्र करा लिया था। नेफा में म्याम्यो नामक स्थान पर स्वतन्त्र भारत की राजधानी बनाई गई। 22 सितम्बर, 1944 को सुभाष चंद्र ने शहीदी दिवस मनाया। जर्मनी तथा जापान के आत्म-समर्पण कर देने के बाद आज़ाद हिन्द फौज को भी हार का मुँह देखना पड़ा।
निःसंदेह दूसरे विश्व-युद्ध के बाद आज़ाद हिन्द फौज भंग कर दी गई, किन्तु इसने जनता में राजनीतिक जागृति उत्पन्न कर दी। इसने आज़ादी के संघर्ष की गति को कई गुना बढ़ा दिया तथा ब्रिटिश साम्राज्य के पतन को गर्त में धकेल दिया। माइकल ब्रेचर के शब्दों में, “इस ऐतिहासिक घटना से अंग्रेज़ पदाधिकारियों की प्रतिष्ठा कम हो गई । सेना का उत्साह ढीला पड़ गया और भारतीय सैनिकों की राजभक्ति से ब्रिटिश सरकार का विश्वास उठ गया।”
संक्षेप में, नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी नेता थे। उनकी अथाह देशभक्ति के कारण गाँधीजी ने उन्हें ‘देशभक्तों का देशभक्त’ कहा था ।
प्रश्न 4. राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका का वर्णन कीजिए। 
उत्तर – राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी ने बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1915 ई० से 1922 ई० तक राष्ट्रीय आन्दोलन में उनकी भूमिका का विस्तृत वर्णन निम्नलिखित है –
1. भारतीय राजनीति का अध्ययन- गाँधीजी 1915 ई० में दक्षिणी अफ्रीका से भारत लौट आए। उन्होंने राष्ट्रीय काँग्रेस के नेताओं से मिलकर विचार-विमर्श किया। उन्होंने श्री गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु बनाया और भारतीय राजनीति के अध्ययन के लिए सारे देश का भ्रमण किया और साधारण जनता के कष्टों को जानने की कोशिश की। देश में फैली गरीबी, बेकारी, अज्ञानता, अशिक्षा, साम्प्रदायिकता तथा छुआछूत से उन्हें बड़ा दुःख हुआ। अतः उन्होंने अपने आपको राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित कर दिया।
2. चम्पारन सत्याग्रह, 1917 ई०- गाँधीजी ने सत्याग्रह का सबसे पहला प्रयोग चम्पारन में किया। बिहार के चम्पारन ज़िले में यूरोपियन बागान मालिक नील की खेती करने वाले किसानों पर बड़े अत्याचार करते थे। वे किसानों को नील की खेती करने और उपज को सस्ती दर पर बेचने के लिए विवश करते थे । किसानों की दयनीय दशा की जाँच-पड़ताल करने के लिए गाँधीजी 1917 ई० में चम्पारन गए, लेकिन जिला अधिकारी ने उन्हें चम्पारन छोड़ने का आदेश दिया। गाँधीजी ने इस आदेश को मानने से इन्कार कर दिया और सत्याग्रह शुरू कर दिया । अंत में सरकारी अधिकारियों को उनकी माँगों के सामने झुकना पड़ा। बाद में सरकार ने किसानों की समस्याओं की जाँच-पड़ताल के लिए एक कमेटी गठित कि, जिसके नेता महात्मा गाँधी थे । यह भारत में सत्याग्रह की पहली जीत थी ।
3. अहमदाबाद के मिल मज़दूरों की हड़ताल में हस्तक्षेप – अहमदाबाद के कपड़ा मिल मज़दूरों ने वेतन बढ़ाने के लिए हड़ताल कर दी थी लेकिन मिल मालिक समझौते के लिए तैयार नहीं हुए। इस पर गाँधीजी ने 1917 ई० में इस झगड़े में हस्तक्षेप किया। उन्होंने आमरण अनशन शुरू कर दिया । चौथे दिन ही मिल मालिक मज़दूरों के वेतन में 35% वृद्धि करने के लिए मान गए ।
4. खेड़ा के किसानों के हितों की रक्षा- फसल खराब हो जाने पर गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों ने सरकार को लगान देने से इन्कार कर दिया। गाँधीजी ने उनके आन्दोलन का समर्थन किया तथा उन्हें राय दी कि जब तक लगान में छूट नहीं मिलती वे लगान देना बन्द कर दें । मज़बूर होकर सरकार को आन्दोलनकारियों की बात माननी पड़ी। सरदार वल्लभ भाई पटेल उन्हीं अनेक नौज़वानों में से एक थे, जो खेड़ा के संघर्ष के दौरान गाँधीजी के अनुयायी बने । ‘खेड़ा का संघर्ष’ भारत की जनता में जागृति लाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
5. राजभक्त से राजद्रोही- यद्यपि गाँधीजी ने किसानों और मज़दूरों के हक में आवाज़ उठाई किन्तु वे सरकार के विरुद्ध नहीं हुए। उनके हृदय में अंग्रेज़ों की न्यायप्रियता व उदारता का विश्वास बना रहा, किन्तु रौलट एक्ट और जलियाँवाला बाग नरसंहार ने राजभक्त गाँधी को राजद्रोही बना दिया |
6. रौलट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह – राष्ट्रवादियों का दमन करने के लिए अंग्रेज़ी सरकार ने 1919 ई० में रौलट एक्ट पारित किया, जिसके अनुसार राष्ट्रवादियों को बिना मुकद्दमा चलाए, केवल सन्देह के आधार पर ही बन्दी बनाया जा सकता था। सबसे बुरी बात यह थी कि अपराधियों को ‘अपील, वकील या दलील’ का अधिकार प्राप्त नहीं था । बहुत से समाचार-पत्रों ने इस अधिनियम को पारित करने की कड़े शब्दों में निन्दा की । यह भारतीय स्वतन्त्रता पर प्रबल प्रहार था । गाँधीजी ने इसके विरुद्ध सत्याग्रह शुरू कर दिया। इस कानून को काला कानून तथा अपराध अधिनियम कहा गया ।
7. जलियाँवाला बाग नरसंहार – 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के दिन लगभग 20,000 शान्तिप्रिय लोग अमृतसर के जलियाँवाला बाग में सरकार की क्रूर नीतियों की निन्दा करने के उद्देश्य से एकत्रित हुए। जनरल डायर ने इस सभा को रोकने का कोई उपाय नहीं किया तथा 150 सिपाहियों को हथियारबन्द गाड़ियों के साथ लेकर जलियाँवाला बाग पहुँच गया। उसने बाग के एकमात्र गेट पर मशीनगन लगा दी तथा बाग को चारों ओर से सिपाहियों से घिरवाकर बिना चेतावनी दिए गोलियाँ चलवा दीं । इस गोली वर्षा में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 379 व्यक्ति मारे गए तथा 1,200 ज़ख्मी हुए परन्तु गैर-सरकारी आंकड़ों के अनुसार मृतकों की संख्या 1,000 तथा घायलों की संख्या 3,000 से भी अधिक थी।
सरकार की अत्याचारी दमन नीति तथा भारतीय हितों की अवहेलना से गाँधीजी बहुत नाराज़ हुए। उन्होंने कहा, “यह क्रूरता का ऐसा कार्य था जिसका अन्य कोई उदाहरण नहीं मिलता।” कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ टैगोर ने वायसराय को एक पत्र लिखकर इस घटना की निन्दा की तथा ‘नाइट’ की उपाधि वापस कर दी। गाँधीजी ने भी सरकार को अपना ‘केसर-ए-हिन्द’ तथा ‘जुहू वार-मैडल’ वापस कर दिए। उन्होंने सरकार के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन चलाने का निश्चय किया। सारे देश में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध राष्ट्रवादियों की भावनाएँ प्रबल हो गईं।
इस प्रकार गाँधीजी ने राष्ट्रीय आन्दोलन को एक प्रबल जन आन्दोलन बनाया। हिन्दू मुस्लिम एकता इस आन्दोलन की रीढ़ की हड्डी बनी। देश में एक अभूतपूर्व राजनीतिक जागरण का वातावरण बना जिसने सरकारी दमन को अपने जीवन के सामने बौना करके रख दिया।
8. भारत की स्वतन्त्रता – ब्रिटिश सरकार ने 1944 ई० में गाँधीजी को जेल से रिहा कर दिया। गाँधीजी ने मुस्लिम लीग से समझौते की बड़ी कोशिश की, किन्तु वे असफल रहे । भारत की समस्या के निदान के लिए वेवल योजना तथा शिमला सम्मेलन का आयोजन किया गया, जो असफल रहा। उसके बाद केबिनेट मिशन ने भारत विभाजन का प्रस्ताव रखा, जिसे गाँधीजी ने अस्वीकार कर दिया किन्तु परिस्थितियों को देखते हुए गाँधीजी ने देश विभाजन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और 15 अगस्त, 1947 को देश आजाद हो गया ।
30 जनवरी, 1948 को शांति का यह मसीहा, नाथूराम गोडसे की हिंसा का शिकार होकर सदा के लिए हमसे विदा हो गया। राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी जी द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन एवं भारत छोड़ो आन्दोलन की मुख्य भूमिका रही।
लघुत्तरात्मक प्रश्न [SHORT-ANSWER TYPE QUESTIONS]
प्रश्न 1. 1857 ई० से पूर्व के साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर – 1757 ई० के प्लासी के युद्ध और 1764-1765 ई० के बक्सर के युद्ध में विजय प्राप्ति के पश्चात् अंग्रेज व्यापारी से राजनीतिक सत्ता में परिवर्तित हो गए। अंग्रेजी साम्राज्यवाद का लगातार विस्तार होता रहा। इस समय भारत का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं था जहाँ अंग्रेजी सत्ता का विरोध न किया गया हो। 1757 से 1857 ई० तक अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध अनेकों विद्रोह हुए। 1763 ई० से 1800 ई० के मध्य ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध संन्यासियों ने विद्रोह किया। इसके पश्चात् तो आक्रमणकारियों से अपने देश को मुक्त कराने के लिए आदिवासियों, बुनकरों, देशी राजाओं आदि ने इस साम्राज्यवाद के विरूद्ध एक लंबा संघर्ष किया । जिसका उग्र रूप 1857 ई० के महान् राष्ट्रीय संघर्ष के समय दिखाई देता है।
प्रश्न 2. 1857 ई० को महान स्वतंत्रता संघर्ष क्यों कहा गया है ?
उत्तर – 1857 ई० की क्रान्ति भारतीय इतिहास की एक युगान्तरकारी घटना थी । वास्तव में यह विदेशी शासन से देश को मुक्त कराने का एक महाप्रयास था । ऐसे अनेक कारण थे जिन्होंने भारतीयों को अंग्रेजों के विरुद्ध भड़का दिया था । 100 साल की ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध भारतीय जनता में घृणा और असन्तोष का बारूद इकट्ठा हो गया था और चर्बी वाले कारतूसों ने उसमें भयानक विस्फोट कर दिया। अंग्रेज़ी शासन को समाप्त करने के लिए इससे पूर्व इतना बलशाली तथा संगठित प्रयास पहले कभी नहीं किया गया था । इसीलिए ही वीर सावरकर तथा अशोक मेहता जैसे विद्वानों ने इसे ‘भारतीय स्वतन्त्रता का पहला संग्राम’ कहकर पुकारा । दूसरी ओर सर जॉन लारेन्स तथा जॉन सीले जैसे विद्वानों ने इसे ‘सैनिक विद्रोह’ (Sepoy Revolt) का नाम दिया है। कुछ अन्य इतिहासकारों ने इसे असन्तुष्ट शासकों तथा जमींदारों का आक्रोश अथवा हिन्दू-मुस्लिम संगठित एवं सुनियोजित षड्यन्त्र की संज्ञा दी है। वास्तव में यह विद्रोह राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा धार्मिक असन्तोष की मिश्रित उपज का ही परिणाम था ।
प्रश्न 3. किन परिस्थितियों में बंगाल में नील का उत्पादन धराशायी हो गया?
उत्तर – यूरोप में नील की माँग अत्याधिक थी । अतः बंगाल में ब्रिटिश व्यापारी व जमींदार किसानों व उनके परिवार वालों से जबदस्ती नील की खेती करवाते थे । 1859 ई० में बंगाल के हजारों रैयतों ने नील की खेती करने से मना कर दिया । जैसे-जैसे विद्रोह फैला, रैयतों ने बागान मालिकों को लगान देने से भी मना कर दिया। वे तलवार, भाले और तीर-कमान लेकर नील की फैक्ट्रियों पर हमला करने लगे। औरतें अपने बर्तन लेकर लड़ाई में कूद पड़ीं। बागान मालिकों के लिए काम करने वालों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया। बागान मालिकों की तरफ से लगान वसूली के लिए आने वाले एजेंटों की पिटाई की गई। रैयतों ने कसम खा ली कि न तो वे नील की खेती के लिए कर्जा लेंगे और न ही बागान मालिकों के लाठीधारियों से डरेंगे।
नील के किसानों को यह भी लग रहा था कि अंग्रेजी सरकार भी संघर्ष में उनका साथ देगी। 1857 ई० की बगावत के बाद ब्रिटिश सरकार एक और बड़े विद्रोह के खतरे से डरी हुई थी। जब नील की खेती वाले जिलों में एक और बगावत की खबर फैली तो लेफ्टिनेंट गवर्नर ने 1859 ई० की सर्दियों में इन जिलों का दौरा किया। रैयतों को लगा कि सरकार उनकी बुरी दशा से परेशान है। बरसात में मजिस्ट्रेट ऐशले ईडन ने एक नोटिस जारी किया जिसमें कहा गया था कि रैयतों को नील के समझौते मानने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। इस नोटिस के आधार पर लोगों में यह खबर फैल गई कि रानी विक्टोरिया ने नील की खेती न करने का आदेश दे दिया है। ईडन किसानों को शांत करने और भयंकर स्थितियों को काबू करने का प्रयत्न कर रहे थे । उसकी कार्रवाई को किसानों ने अपने विद्रोह का समर्थन मान लिया ।
इस बगावत से परेशान सरकार को बागान मालिकों की रक्षा के लिए सेना बुलानी पड़ी । नील उत्पादन व्यवस्था की जाँच करने के लिए एक नील आयोग भी बना दिया गया। इस आयोग ने बागान मालिकों को दोषी पाया, जोर-जबरदस्ती के लिए उनकी आलोचना की। आयोग ने कहा कि नील की खेती रैयतों के लिए लाभ का कार्य नहीं है। आयोग ने रैयतों से कहा कि वे मौजूदा समझौतों को पूरा करें परन्तु आगे से वे चाहें तो नील की खेती बंद कर सकते हैं ।
प्रश्न 4. बाल गंगाधर तिलक पर संक्षिप्त नोट लिखें ।
उत्तर – बाल गंगाधर तिलक ने अपने साथियों के साथ देशवासियों में राजनीतिक चेतना फैलाने के लिए सन् 1880 में दो समाचार-पत्रों ‘केसरी’ एवं ‘मराठा’ को प्रकाशित करने का निर्णय लिया। बाल गंगाधर तिलक जी के ‘गणपति उत्सव’ का उद्देश्य हिन्दुओं में धार्मिक जागृति पैदा करना और उनमें एकता की भावना पैदा करना था तथापि ‘शिवाजी उत्सव’ का उद्देश्य जनता में स्वाभिमान तथा आत्म-सम्मान की भावना को स्थापित करना था । तिलक जी ने नशाबन्दी का अभियान चलाया । तिलक जी ने अपने लेखों और उग्रवादी विचारों से जनता को बहुत उत्तेजित कर दिया था । क्रान्तिकारियों पर सूरत फूट का कोई प्रभाव न था । उनका बंगाल विभाजन को रद्द कराने का आन्दोलन और अधिक जोर पकड़ता जा रहा था । सरकार ने इस आन्दोलन को शक्ति से दबाने का प्रयत्न किया और इसके फलस्वरूप आतंकवादी आन्दोलन (Terrorist Movement) का उदय हुआ। 30 अप्रैल, 1908 को क्रान्तिकारियों ने सैशन जज किंग्सफोर्ड पर बम फैंका, जिससे दो निर्दोष महिलाओं की मृत्यु हो गई । ब्रिटिश सरकार को यह सुअवसर प्राप्त हुआ और उसने तिलक जी पर राजद्रोह का आरोप लगा दिया । तिलक ने इस केस में अपनी पैरवी स्वयं करते हुए भाषण दिया, जो 21 घन्टे तक चला। फैसला तिलक के विरुद्ध हुआ। उन्हें 1908 ई० में छह वर्ष के लिए काले पानी का दण्ड मिला । तिलक का देश – निर्वासन भारत-व्यापी प्रदर्शन एवं विरोध का कारण बना । जनता की दृष्टि में तिलक ‘शहीद’ बन चुके थे। अपने निर्वासन काल में तिलक जी ने ‘गीता रहस्य’ तथा ‘आर्कटिक होम ऑफ दी वेदाज़’ (Arctic Home of the Vedas) नामक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखें ।
प्रश्न 5. बंग-भंग विरोधी आंदोलन क्या था ?
उत्तर – बंगाल के राष्ट्रवादियों ने बंगाल विभाजन को ‘राष्ट्र को बाँटने’, ‘लोगों में फूट डालने का कुप्रयास’, ‘बंगालियों की परम्परा, इतिहास एवं भाषा पर निन्दनीय आक्रमण’ आदि की संज्ञा दी । इस कार्य पर रोष प्रकट करने के उद्देश्य से 7 अक्तूबर, 1905 को कलकत्ता के टाऊन हाल में प्रदर्शन किया गया। 16 अक्टूबर, 1905 को जिस दिन बंग-भंग कानून लागू किया गया, उस दिन लोगों ने उपवास रखे, कलकत्ता में हड़ताल हुई। इस दिन को ‘शोक दिवस’ घोषित किया गया। लोग नंगे पैर चलकर गंगा में स्नान के लिए पहुँचे। कवीन्द्र रवीन्द्र नाथ ने इस अवसर के लिए अपना प्रसिद्ध गीत ‘आमार सोनार बांगला’ लिखा । कलकत्ता की सड़कें वन्दे मातरम् की आवाज़ से गूंज उठीं । यह गीत पूरे राष्ट्रीय आंदोलन का गीत बन गया ।
देश भर में राजनीतिक हलचल शुरू हो गई । स्थान-स्थान पर उपद्रव होने लगे। भारतीय नेताओं ने प्रस्तावों और प्रार्थनाओं द्वारा सरकार से इस विभाजन को रद्द करने की माँग की, लेकिन लॉर्ड कर्ज़न ने इसकी कोई परवाह न की । इस पर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने बंगाल विभाजन के विरुद्ध एक जोरदार आंदोलन चलाया। इस आंदोलन को सारे देश का समर्थन मिला। आंदोलनकारियों ने जनता से विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार करने और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने की अपील की। विद्यार्थियों ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। स्कूल और कॉलेज स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के केन्द्र बन गए। सरकार ने इस आंदोलन का बड़ी कठोरता से दमन किया। लेकिन अन्त में जनता के प्रबल विरोध के कारण 1911 ई० में सरकार ने बंगाल विभाजन रद्द कर दिया ।
प्रश्न 6. होमरूल आंदोलन क्या था? इस आंदोलन की प्रगति एवं महत्त्व का वर्णन करें। 
उत्तर- जून, 1914 ई० में प्रथम विश्व युद्ध आरम्भ हो गया । ब्रिटेन ने इसमें भारत को भी अपने पक्ष में शामिल कर लिया । इसके लिए भारतीयों से सहमति नहीं ली गई । इससे सम्पूर्ण राष्ट्र में असन्तोष फैल गया। इस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध के समय में राष्ट्रवादी राजनीतिक आंदोलन में तीव्रता आई । अनेक भारतीय राजनेता जान गए थे कि जन-दबाव के बिना ब्रिटिश सरकार भारतीयों को कोई वास्तविक सुविधाएँ नहीं देगी । इसके अतिरिक्त प्रथम विश्व युद्ध में वस्तुओं के दाम बहुत बढ़ गए थे जिससे जनसाधारण की स्थिति बड़ी शोचनीय हो गई थी । अतः जनता में सरकार के प्रति भारी असन्तोष था। लेकिन भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस नरमपन्थियों के नेतृत्व में एक निर्बल संस्था बन चुकी थी। उनके नेतृत्व में जन-आंदोलन नहीं चलाया जा सकता था। अतः 1915-16 ई० में स्वराज्य पाने के लिए दो होमरूल लीग स्थापित की गईं। एक होमरूल लीग पूना में तिलक जी ने और दूसरी मद्रास में श्रीमती एनी बेसेन्ट तथा ए० सुब्रह्मण्य ने स्थापित की । श्रीमती एनी बेसेन्ट ने कहा- “भारत कुछ स्वतन्त्रता या अधिकारों के लिए अपने पुत्रों के रक्त और पुत्रियों के आँसुओं से अंग्रेज़ों के साथ सौदेबाजी नहीं कर सकता । स्वराज्य की माँग न्याय के आधार पर ही की जा रही है और यह स्वराज्य भारत को युद्ध से पहले मिल जाए तो अच्छा है।” इन नेताओं ने औपनिवेशिक स्वराज्य के लिए सरकार से माँग की । होमरूल आंदोलन को प्रभावशाली बनाने के लिए देश में प्रबल प्रचार किया। इसी आंदोलन में तिलक जी ने अपना प्रसिद्ध नारा–“स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा” दिया । शीघ्र ही ‘होमरूल आंदोलन’ भारतीय राजनीति में एक प्राणवान् आंदोलन बन गया।
प्रश्न 7. काकोरी की घटना पर विस्तार से चर्चा करें ।
उत्तर- अक्तूबर, 1924 में कानपुर में शचीन्द्रनाथ सान्याल, योगेश चटर्जी और रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में ‘हिन्दुस्तान प्रजातंत्र संघ’ (Hindustan Republican Association – HRA) की स्थापना की गई। इस संघ का उद्देश्य ‘संगठित और शस्त्रबद्ध’ अर्थात् सशस्त्र क्रान्ति द्वारा ‘संयुक्त राज्य भारत’ की स्थापना करना था । इस संघ को प्रचार करने, युवाओं को प्रशिक्षण • देने और हथियार जुटाने के लिए उन्हें धन की आवश्यकता थी । अतः उन्होंने सरकारी खजाने लूटने का निर्णय किया। इनमें सबसे मुख्य काकोरी केस था । 9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के समीप काकोरी के रेलवे स्टेशन पर ट्रेन को रोककर अंग्रेजों का सरकारी खजाना लूट लिया गया। सरकार ने त्वरित कार्रवाई करते हुए बड़ी संख्या में युवाओं को गिरफ्तार कर लिया। उन पर ‘काकोरी षड्यन्त्र केस’ के नाम से मुकद्दमा चलाया गया । इसमें 17 लोगों को लम्बी जेल, 4 को काले पानी अर्थात् आजीवन कारावास की सजा तथा अश्फाक उल्लाह खां, पं० रामप्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह व राजेंद्र लाहड़ी को फांसी दी गई । चन्द्रशेखर आज़ाद ही पुलिस की पकड़ से बचने में सफल रहे ।
प्रश्न 8. शाही नौसेना के आंदोलन पर संक्षिप्त चर्चा करें।
उत्तर – 18 फरवरी, 1946 को भारतीय सैनिकों द्वारा ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध किए गए विद्रोह को नौसैनिक विद्रोह के नाम से जाना जाता है। आजाद हिंद फौज के युद्ध बंदियों से संबंधित मुकद्दमा और उसके विरोध में होने वाला जन आंदोलन समाप्त होने के कुछ ही समय पश्चात् फरवरी 1946 में भारतीय नौसेना में विद्रोह हो गया । नाविकों द्वारा खराब खाने की शिकायत करने पर अंग्रेज़ अफसरों ने नस्ली भेदभाव तथा दुर्व्यवहार का रवैया अपनाया, जिसके कारण नाविकों ने भूख हड़ताल कर दी। अगले दिन ही हड़ताल बम्बई बन्दरगाह के 22 जहाजों तक फैल गई । इस प्रकार यह आंदोलन बम्बई में आरम्भ हुआ लेकिन कराची से लेकर कलकत्ता तक पूरे ब्रिटिश भारत में इसे पूरा समर्थन मिला । क्रांतिकारी नाविकों ने जहाज से यूनियन जैक के झण्डों को हटाकर वहाँ पर तिरंगा फहरा दिया। वह हर क्षेत्र में समान सुविधाओं की माँग कर रहे थे । अब ब्रिटिश साम्राज्य सुरक्षित नहीं रह गया था । इस प्रकार आजाद हिंद फौज व नौसेना के आंदोलन ने देश को आजादी दिलवाई।
प्रश्न 9. साइमन कमीशन के विरोध पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर – 1928 को साइमन कमीशन भारत पहुँचा तो उसके विरुद्ध अनेक प्रदर्शन किए गए। जहाँ भी साइमन कमीशन गया वहाँ काले झण्डों, हड़तालों, प्रदर्शनों और ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ के नारे लगाए गए। 30 अक्तूबर 1928 में लाहौर में साइमन कमीशन का विरोध करने वाले जुलूस का नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे, उन पर पुलिस ने लाठियाँ बरसाईं, जिससे लालाजी को अत्यधिक चोटें आईं और कुछ दिन के बाद उनकी मृत्यु हो गई । इस पर भगत सिंह तथा उसके साथियों ने इसे राष्ट्रीय अपमान समझा और लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए सांडर्स को गोली मारकर उसकी हत्या कर दी ।
प्रश्न 10. महाराष्ट्र में क्रांतिकारी आंदोलन पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर – क्रांतिकारी आंदोलन का प्रारम्भ महाराष्ट्र से हुआ । उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में चापेकर बन्धुओं ने पूना में क्रांतिकारी गतिविधियाँ प्रारम्भ कीं। महाराष्ट्र के अन्य क्रांतिकारियों के नाम थे – श्यामजी कृष्ण वर्मा और सावरकर बन्धु । ये महाराष्ट्र के प्रमुख क्रांतिकारी थे । चापेकर बन्धुओं ने ‘व्यायाम मण्डल’ गठित किया और युवकों को शस्त्र चलाने की शिक्षा देकर उन्हें अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए तैयार किया । विनायक दामोदर सावरकर ने ‘अभिनव भारत’ की स्थापना नासिक में की। विनायक दामोदर के बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर ने देशभक्ति के गीत लिखे जिसके कारण अंग्रेज़ों ने उन्हें काला पानी की सज़ा दी । गणेश दामोदर सावरकर को सजा दिलाने वाले अंग्रेज़ अधिकारियों की ‘अभिनव भारत’ के सदस्यों ने गोली मारकर हत्या कर दी । इसी समिति के एक अन्य सदस्य मदनलाल ढींगरा ने लन्दन जाकर कर्नल वाइली की हत्या की । अंग्रेज़ों ने विनायक दामोदर सावरकर को आजीवन कारावास की सजा दी ।
प्रश्न 11. बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – अंग्रेज़ों की दमनकारी नीति से तंग आकर बंगाल के नवयुवकों ने क्रांति का मार्ग अपनाया । उन्होंने बंगाल में एक क्रांतिकारी दल ‘अनुशीलन समिति’ की स्थापना की । क्रांतिकारियों ने अपनी समितियों का गठन पाश्चात्य देशों की क्रांतिकारी समितियों के आधार पर किया । क्रांतिकारी दल के नेता बारिंद्र कुमार घोष और विवेकानन्द के छोटे भाई भूपेन्द्रनाथ दत्त थे। इस दल के सदस्य अपने क्रांतिकारी विचारों का प्रचार ‘संध्या’ तथा ‘युगान्तर’ नामक पत्रिकाओं द्वारा किया करते थे। जनसामान्य की भावनाओं को झकझोरते हुए ‘युगान्तर’ ने लिखा, “क्या शक्ति के उपासक बंग- वासी रक्त बहाने से घबरा जाएँगे? देश की स्वतन्त्रता के लिए अपना जीवन अर्पण कर दो, किन्तु उससे पूर्व कम-से-कम एक अंग्रेज़ का जीवन समाप्त कर दो ।” बंगाल के क्रांतिकारियों ने क्रूर अंग्रेज़ अधिकारियों को मौत के घाट उतार देने की विस्तृत योजनाएँ बनाईं। बंगाल के क्रांतिकारियों में खुदीराम बोस, बारिंद्र घोष, भूपेन्द्रनाथ दत्त आदि प्रमुख थे । क्रांतिकारियों ने अपना कार्य अत्याचारी अंग्रेज़ अधिकारियों की हत्या से शुरू किया ।
अति-लघुत्तरात्मक प्रश्न [VERYSHORT-ANSWER TYPE QUESTIONS]
प्रश्न 1. ब्रिटेन के व्यापारियों द्वारा भारत से व्यापार की शुरुआत कैसे की गई ?
उत्तर – विश्व का समृद्ध देश होने के कारण भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। भारत की समृद्धि से लालयित होकर अनेक विदेशी भारत आए, जिसमें अंग्रेज भी शामिल थे। 1600 ई० में ब्रिटेन के लालची व्यापारियों द्वारा संयुक्त रूप से एक कंपनी बनाकर भारत से व्यापार की शुरुआत की गई। 18वीं सदी में, ये लालची व्यापारी भारत की राजनीति अस्थिरता का लाभ उठाकर, व्यापारिक सत्ता से राजनीतिक सत्ता में परिवर्तित हो गए।
प्रश्न 2. 1857 ई० से पूर्व के साम्राज्यवादी विरोधी संघर्ष पर संक्षिप्त नोट लिखें ।
उत्तर – 1757 ई० में प्लासी के युद्ध तथा 1764-65 ई० बक्सर के युद्ध में विजय के पश्चात् अंग्रेज व्यापारिक सत्ता से राजनीतिक सत्ता में परिवर्तित हो गई। इसके पश्चात् अंग्रेजी साम्राज्यवाद का निरंतर विकास होता रहा परंतु भारत में कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं था ब्रिटिश अर्थात् अंग्रेजी साम्राज्यवाद का विरोध न हुआ हो। 1757 ई० से 1857 ई० के मध्य लगभग सैकड़ों विद्रोह हुए। 1763 ई० से 1800 ई० के मध्य ‘वंदे मातरम्’ का रणनाद् करते हुए संन्यासियों द्वारा अंग्रेजी ब्रिटिश सत्ता के विरोध में संघर्ष किया गया। इस संघर्ष के पश्चात् अपनी मातृभूमि को आक्रमणकारियों से आजादी दिलाने के लिए बुनकरों, किसानों, आदिवासियों आदि ने साम्राज्यवाद के विरोध में संघर्ष किया जो निरंतर चलता रहा, जिसकी चरम परिणति 1857 ई० के महान् राष्ट्रीय संघर्ष / संग्राम में हुई।
प्रश्न 3. 1857 ई० का विद्रोह पहले के सारे विद्रोहों से किस प्रकार भिन्न था?
उत्तर- 1857 ई० से पहले भी भारत में अनेक विद्रोह हुए, परंतु उन सभी विद्रोहों का संबंध एक निश्चित क्षेत्र और जाति विशेष से था। परंतु 1857 का विद्रोह भारत में व्यापक रूप से फैला। इसका प्रसार लगभग सारे उत्तरी भारत में हुआ। इसमें कंपनी के सिपाही, ज़मींदार, नवाब, किसान और बुद्धिजीवी शामिल हुए थे। इस विद्रोह ने भारत में अंग्रेज़ी शासन को कड़ी चुनौती प्रस्तुत की।
प्रश्न 4. ‘नील विद्रोह’ क्या था ?
उत्तर — यूरोप में नील की विशेष मांग होने के कारण ब्रिटिश व्यापारियों द्वारा बंगाल में किसानों तथा उनके परिवारों पर घोर अत्याचार करके नील की खेती करवाई गई। जिसके कारण बंगाल के गांव के किसानों ने एकजुट होकर नीलहो के विरोध में संघर्ष का बिगुल बजा दिया, जिसे ‘नील विद्रोह’ कहा जाता है ।
प्रश्न 5. कूका आंदोलन का नाम ‘कूका’ किस कारण पड़ा ?
उत्तर – नामधारी अथवा कूका आंदोलन सिक्खों में दूसरा सुधार आंदोलन था। नामधारी परमात्मा के नाम का ऊँची आवाज में ‘कूके’ मार-मार कर पूरी श्रद्धा के साथ जाप करते थे। इसलिए ही इस आंदोलन का नाम नामधारी अथवा ‘कूका आंदोलन’ पड़ गया।
प्रश्न 6. बिरसा मुंडा आंदोलन के बारे में संक्षिप्त नोट लिखें ।
उत्तर – बिरसा रांची जिले के छोटे से गांव चलकद के मुंडा थे। मुंडा विरोध का नेतृत्व बिरसा ने किया। बिरसा मुंडा ने आह्वान करते हुए कहा कि वे शराब पीना छोड़ दें, गाँव को साफ रखें और जादू-टोने में विश्वास न करें।
प्रश्न 7. बाल गंगाधर तिलक ने अपने साथियों के साथ मिलकर सन् 1880 में किन दो समाचार पत्रों को प्रकाशित करने का निर्णय लिया ?
उत्तर – बाल गंगाधर तिलक ने अपने साथियों के साथ देशवासियों में राजनीतिक चेतना फैलाने के लिए सन् 1880 में दो समाचार-पत्रों ‘केसरी’ एवं ‘मराठा’ को प्रकाशित करने का निर्णय लिया ।
प्रश्न 8. बाल गंगाधर तिलक के ‘गणपति उत्सव’ एवं ‘शिवाजी उत्सव’ मनाने के पीछे क्या उद्देश्य थे ? 
उत्तर – बाल गंगाधर तिलक जी के ‘गणपति उत्सव’ का उद्देश्य हिन्दुओं में धार्मिक जागृति पैदा करना और उनमें एकता की भावना पैदा करना था तथापि ‘शिवाजी उत्सव’ का उद्देश्य जनता में स्वाभिमान तथा आत्म-सम्मान की भावना को स्थापित करना था ।
प्रश्न 9. बंग-भंग विरोधी आंदोलन क्या था ?
उत्तर – बंगाल के राष्ट्रवादियों ने बंगाल विभाजन को ‘राष्ट्र को बाँटने’, ‘लोगों में फूट डालने’, ‘बंगालियों की परम्परा’, ‘इतिहास एवं भाषा पर निन्दनीय आक्रमण’ आदि की संज्ञा दी । इस कार्य पर रोष प्रकट करने के उद्देश्य से 7 अक्तूबर, 1905 को कलकत्ता के टाऊन हाल में प्रदर्शन किया गया । 16 अक्टूबर, 1905 को जिस दिन बंग-भंग कानून लागू किया गया, उस दिन लोगों ने उपवास रखे, कलकत्ता में हड़ताल हुई । इस दिन को ‘शोक दिवस’ घोषित किया गया।
प्रश्न 10. होमरूल आंदोलन का क्या महत्त्व है ?
उत्तर – होमरूल आंदोलन का महत्त्व इस प्रकार है –
(1) इससे भारतीय राजनीति में नरमपन्थियों का प्रभाव समाप्त हो गया।
(2) इस आन्दोलन से स्वराज्य प्राप्त करने का सही मार्ग बताया गया ।
(3) यह आन्दोलन विदेशों में भी सहानुभूति हासिल करने में कामयाब रहा।
(4) इससे 1919 का अधिनियम पास हुआ।
प्रश्न 11. क्रांतिकारी आंदोलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर—देश की युवा पीढ़ी उदारवादियों की नीतियों से खुश नहीं थी । उसके मन में क्रांतिकारी भावनाएँ प्रबल होती जा रही थीं। युवा पीढ़ी की यह धारणा थी कि बल प्रयोग के बिना विदेशी शासन का अन्त असम्भव है । उग्र राष्ट्रवादियों के स्वदेशी आंदोलन को कुचलने के लिए सरकार की दमनपूर्ण तथा प्रतिक्रियावादी नीति के विरोध में देश में क्रांतिकारी (Revolutionary) आंदोलन का उदय हुआ।
प्रश्न 12. गदर आंदोलन के भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन पर क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर- यद्यपि गदर आंदोलन को सरकार ने कठोरता के साथ दबा दिया, परन्तु इसका प्रभाव हमारे राष्ट्रीय आंदोलन पर अधिक पड़ा। गदर आंदोलन के कारण काँग्रेस के दोनों दलों में एकता आई। काँग्रेस-मुस्लिम लीग समझौता हुआ। इसके अतिरिक्त इस आंदोलन ने सरकार को अन्ततः भारतीय समस्या के विषय में सहानुभूतिपूर्वक सोचने के लिए विवश कर दिया। 1917 ई० में बर्तानवी शासन के भारत-मन्त्री लॉर्ड मान्टेग्यू ने इंग्लैंड की भारत सम्बन्धी नीति की घोषणा की, जिसमें उन्होंने प्रशासन में भारतीयों की भागीदारी पर बल दिया।
प्रश्न 13. गाँधी-इरविन समझौता क्या था?
उत्तर – 5 मार्च, 1931 को गाँधी-इरविन समझौता हुआ जिसके द्वारा गाँधी जी ने लंदन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने पर सहमति दी क्योंकि कांग्रेस ने इससे पूर्व इस सम्मेलन के बहिष्कार की घोषणा की हुई थी।
प्रश्न 14. ब्रिटिश प्रधानमन्त्री द्वारा ‘साम्प्रदायिक निर्णय’ की मुख्य बातें क्या थीं?
उत्तर- (1) मुसलमानों, यूरोपियों तथा सिक्खों को पृथक् निर्वाचन मण्डलों का लाभ दिया गया ।
(2) दलित वर्गों को पृथक् निर्वाचन मण्डल का लाभ देने के लिए एक विशेष प्रणाली का सुझाव दिया गया। (3) मुसलमानों को प्रान्तीय विधानमण्डलों में, जिन प्रान्तों में वे अल्पसंख्या में थे, प्रतिनिधित्व में विशेष रियायतें दी गईं।
प्रश्न 15 सविनय अवज्ञा आंदोलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930 से 1934 के बीच दो चरणों में चला । यह आंदोलन स्वयं में एक व्यापक जन आंदोलन था। इस आंदोलन के दौरान गाँधी-इर्विन समझौता हुआ । गाँधी जी दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए लंदन गए और वहाँ से खाली हाथ लौटे। इस दौरान ब्रिटिश प्रशासक ने भारत में आंदोलन के प्रति सख्त नीति अपना ली थी । फिर भी दूसरे चरण में बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया ।
प्रश्न 16. असहयोग आंदोलन को स्थगित क्यों किया गया ?
उत्तर- यह एक अहिंसात्मक आंदोलन था परंतु 5 फरवरी, 1922 को चौरी-चौरा नामक स्थान पर भीड़ ने थाने में आग लगा दी, जिससे 22 पुलिसकर्मी मारे गए। गाँधी जी को लगा कि आंदोलन में हिंसा प्रवेश कर चुकी है । अतः उन्होंने तत्काल आंदोलन स्थगित कर दिया ।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न [OBJECTIVE TYPE QUESTIONS]
I. एक शब्द या एक वाक्य में उत्तर दीजिए
प्रश्न 1. भारत किस प्रकार का देश कहलाता था ?
उत्तर – भारत सोने की चिड़िया कहलाता था ।
प्रश्न 2. 1857 का विद्रोह कब और कहाँ से शुरु हुआ था ?
उत्तर – 10 मई, 1857 को मेरठ से शुरु हुआ था।
प्रश्न 3. नील की मांग विशेष रूप से किस देश की थी ?
उत्तर – यूरोप ।
प्रश्न 4. किन समूहों ने नीलह जमींदारों के लठैतों का जमकर मुकाबला किया ?
उत्तर – तीर-धनुष वालों का समूह, ढेले मारने वालों का समूह, ईंट वालों का समूह इत्यादि ।
प्रश्न 5. नामधारी लहर के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर – नामधारी लहर के संस्थापक बाबा रामसिंह जी थे ।
प्रश्न 6. लोग नामधारियों को ‘कूका’ क्यों कहने लग गए ?
उत्तर – ईश्वर का नाम स्मरण करते समय ऊँची आवाज़ कूकने के कारण इन्हें ‘कूका’ कहा जाता था ।
प्रश्न 7. बाबा रामसिंह को रंगून कब भेजा गया ? 
उत्तर – 1872 ई० में ।
प्रश्न 8. 49 कूकों (नामधारियों ) को तोपों से कब उड़ाया गया ? 
उत्तर – 17 जनवरी, 1872 को ।
प्रश्न 9. मुंडा कौन थे ? 
उत्तर – मुंडा रांची के छोटे से गांव चलकद में रहने वाले आदिवासी लोग थे ।
प्रश्न 10. मुंडा नेता बिरसा ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष का बिगुल कब बजाया ? 
उत्तर – 1899 ई० में ।
प्रश्न 11. बिरसा की मृत्यु कब और किस बीमारी के कारण हुई ? 
उत्तर – बिरसा की मृत्यु 9 जून, 1900 ई० में हैजे की बीमारी के कारण हुई ।
प्रश्न 12. बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित उपन्यास कौन-सा है ? 
उत्तर – आनंदमठ ।
प्रश्न 13. बांल गंगाधर तिलक का स्वराज सम्बन्धी प्रसिद्ध नारा क्या था ?
उत्तर-  बाल गंगाधर तिलक जी ने स्वराज्य सम्बन्धी अपना प्रसिद्ध नारा दिया था –  “स्वतन्त्रता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे प्राप्त करके रहूँगा।”
प्रश्न 14. बाल गंगाधर तिलक ने स्वराज्य प्राप्ति के लिए किन साधनों का उल्लेख किया है ? 
उत्तर – बाल गंगाधर तिलक ने स्वराज्य प्राप्ति के लिए निम्नलिखित साधनों की चर्चा की है –
(i) राष्ट्रीय शिक्षा, (ii) स्वदेशी प्राप्ति, (iii) बहिष्कार, (iv) निष्क्रिय विरोध।
प्रश्न 15. बंगाल का विभाजन कब और किसने किया? 
उत्तर – बंगाल का विभाजन 1905 ई० में लॉर्ड कर्ज़न ने किया ।
प्रश्न 16. होमरूल आंदोलन किन-किन प्रदेशों में तेजी से फैला ? 
उत्तर – होमरूल आंदोलन कर्नाटक, महाराष्ट्र, मद्रास, मुबंई, उत्तर भारत आदि प्रदेशों में तेजी से फैला ।
प्रश्न 17. वी० शैरोल ने तिलक के लिए क्या कहा ? 
उत्तर – वी० शैरोल ने तिलक को ‘भारतीय अशांति का जनक’ करार दिया ।
प्रश्न 18. ‘इंडिया हाउस’ किसे कहा जाता है ?
उत्तर — 1905 ई० में वर्मा जी ने ‘भारत स्वशासन समिति’ का गठन किया । जिसे प्राय: ‘इंडिया हाउस’ कहा जाता है।
प्रश्न 19. विनायक दामोदर वीर सावरकर ने किस संस्था की स्थापना की ? 
उत्तर – 1904 ई० में ‘अभिनव भारत’ नामक गुप्त संस्था की स्थापना की।
प्रश्न 20. हिन्दुस्तान गदर पार्टी की स्थापना कब तथा कहाँ हुई ? 
उत्तर – हिन्दुस्तान गदर पार्टी की स्थापना 1913 ई० में अमेरिका में हुई।
प्रश्न 21. ‘गदर’ नामक साप्ताहिक – पत्र कहाँ से तथा किस भाषा में निकलना शुरू हुआ था ? 
उत्तर – ‘गदर’ नामक साप्ताहिक-पत्र सॉन फ्रांसिस्को से उर्दू में निकलना शुरू हुआ था ।
प्रश्न 22. धनी भारतीय बाबा गुरुदत्त सिंह ने कामागाटामारू जहाज में कितने भारतीयों को लेकर कनाडा के लिए प्रस्थान किया ?
उत्तर- 350
II. बहुविकल्पीय प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर दीजिए
1. भील आंदोलन के नेता का क्या नाम था?
(A) गोमधर कुंवर
(B) गिरी सम्प्रदाय
(C) बुद्धो भगत
(D) दशरथ
उत्तर – (D)
2. पागलपंथी आंदोलन किस क्षेत्र में हुआ ?
(A) बंगाल
(B) उड़ीसा
(C) पंजाब
(D) तमिलनाडु
उत्तर – (D)
3. स्वतंत्रता के लिए भारत में पहला विद्रोह कब हुआ ?
(A) 1854 ई० में
(B) 1855 ई० में
(C) 1856 ई० में
(D) 1857 ई० में
उत्तर – (D)
4. नील का विरोध कब हुआ ?
(A) 1849 ई० से 1851 तक
(B) 1859 ई० से 1861 तक
(C) 1869 ई० से 1872 तक
(D) 1899 ई० से 1900 तक
उत्तर- (B)
5. कूकों का पहला संघर्ष अंग्रेजों के साथ कहाँ पर हुआ ?
(A) फिरोजपुर
(B) मलोध
(C) पटियाला
(D) कोटला
उत्तर – (A)
6. बाबा राम सिंह की मृत्यु कब हुई ?
(A) 1685 ई०
(B) 1785 ई०
(C) 1885 ई०
(D) 1888 ई०
उत्तर – (C)
7. बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था –
(A) रांची
(B) महाराष्ट्र में
(C) पंजाब में
(D) कश्मीर में
उत्तर – (A)
8. बिरसा मुंडा के बारे में सत्य है –
(A) उसके पास चमत्कारी शक्तियाँ थीं
(B) वह गुप्त रूप से तीर-धनुष का अभ्यास करते थे
(C) वह स्वयं को ईश्वर का अवतार समझता था
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D)
9. बिरसा मुंडा की मृत्यु किस बीमारी के कारण हुई ?
(A) प्लेग
(B) मलेरिया
(C) चेचक
(D) हैजा
उत्तर – (D)
10. ‘क्रांतिकारियों की गीता’ किसे कहा जाता है ?
(A) आनंदमठ
(B) गीता रहस्य
(C) कौमुदी
(D) राजतरंगिनी
उत्तर- (A)
11. बाल गंगाधर तिलक ने ‘केसरी’ नामक अखबार को किस भाषा में प्रकाशित किया ?
(A) मराठी
(B) हिन्दी
(C) अंग्रेजी
(D) बंगाली
उत्तर – (A)
12. चापेकर बंधुओं ने पूना के प्लेग कमिश्नर रैंड की हत्या कब की ?
(A) 16 जून, 1868 ई०
(B) 27 जून, 1878 ई०
(C) 20 जून, 1888 ई०
(D) 27 जून, 1898 ई०
उत्तर – (D)
13. बंगाल का विभाजन कब रद्द किया गया ?
(A) 1910 ई० में
(B) 1911 ई० में
(C) 1908 ई० में
(D) 1909 ई० में
उत्तर – (B)
14. भारत में होमरूल आंदोलन किसने चलाया ?
(A) महात्मा गांधी व दादाभाई नौरोजी ने
(B) बाल गंगाधर तिलक व ऐनी बेसेंट ने
(C) लाला लाजपत राय ने
(D) बिपिन चन्द्रपाल ने
उत्तर – (B)
15. बाल गंगाधर तिलक ने ‘होमरूल लीग का विधिवत् उद्घाटन’ कब किया ?
(A) 28 अप्रैल, 1916 को
(B) 28 अप्रैल, 1917 को
(C) 3 सितम्बर, 1916 को
(D) 3 सितम्बर, 1917 को
उत्तर – (A)
16. ‘कॉमनवील’ (साप्ताहिक) और ‘न्यू इण्डिया’ (दैनिक) पत्रिका और समाचार-पत्र का प्रकाशन ऐनी बेसेंट ने कब शुरू किया ?
(A) 1912 ई० में
(B) 1914ई० में
(C) 1916 ई० में
(D) 1917 ई० में
उत्तर – (B)
17. कर्जन वाइली को गोली कब मारी गई ?
(A) 1899 ई०
(B) 1909 ई०
(C) 1929 ई०
(D) 1904 ई०
उत्तर – (B)
18. फर्ग्यूसन के नव स्नातक विनायक दामोदर सावरकर लंदन कब पहुँचे ?
(A) 1903 ई०
(B) 1904 ई०
(C) 1905 ई०
(D) 1906 ई०
उत्तर – (D)
19. जो जापानी जहाज किराए पर लेकर कनाडा भेजा गया, उसका नाम रखा गया –
(A) कामागाटामारू
(B) विक्रान्त
(C) अशोक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (A)
20. ‘इण्डियन सोशलॉजिस्ट’ समाचार पत्र की स्थापना किसने की ?
(A) मैडम भीकाजी कामा ने
(B) वीरेन्द्र चट्टोपाध्याय ने
(C) श्यामजी कृष्ण वर्मा ने
(D) रासबिहारी बोस ने
उत्तर – (C)
21. ‘गदर पार्टी’ के संस्थापक सचिव कौन थे ?
(A) लाला हरदयाल
(B) सोहन सिंह भकना
(C) करतार सिंह सराभा
(D) जगत सिंह
उत्तर (A)
22. गांधी- इर्विन समझौता कब हुआ ?
(A) 3 मार्च, 1930 ई०
(B) 5 मार्च, 1931 ई०
(C) 6 अप्रैल, 1931 ई०
(D) 16 मई, 1941 ई०
उत्तर – (B)
III. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. ………………… में ब्रिटेन के लालची व्यापारियों ने संयुक्त रूप से एक कंपनी बनाकर भारत से व्यापार की शुरुआत की।
2. ……………….. के बीच ‘वंदे मातरम्’ का रणनाद् करते हुए संन्यासियों ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध संघर्ष किया।
3. नील विद्रोह की भयंकरता का अंदाजा ………………… के शब्दों से लगाया जा सकता है ‘नील के किसानों के वर्तमान विद्रोह बारे में प्राय: एक सप्ताह तक मुझे इतनी चिंता रही, जितनी दिल्ली की घटना के समय भी नहीं हुई थी ।
4. कूकों का पहला संघर्ष अंग्रेजों से 1869 ई० में …………………. में हुआ।
5. बिरसा मुंडा के तीन साथियों को मृत्युदंड, …………………….. को काला पानी और …………….. को कारावास की सजा दी गई।
6. महर्षि ………………..  ने भारत को ‘जीता जागता सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक राष्ट्र’ कहा।
7. ………………… को चापेकर बंधुओं ने पूना के प्लेग कमिश्नर रैंड की हत्या कर दी।
8. ……………….. ने नारा लगाया ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।’
9. सर्वप्रथम 1913 ई० में अमेरिका व कनाड़ा के भारतीयों को संगठित करके एक …………. बना ली, जिसे ‘गदर पार्टी’ कहा जाता है
10. सुभाष चंद्र बोस ने रास बिहारी बोस से मिलकर …………….. का पुनर्गठन किया ।
उत्तर – 1. 1600 ई०, 2. 1763 ई०-1800 ई०, 3. लॉर्ड कैनिंग, 4. फिरोजपुर, 5. 44, 47, 6. अरविंद घोष, 7. 27 जून, 1898 ई०, 8. बाल गंगाधर तिलक, 9. हिंदुस्तानी एसोसिएशन, 10. आजाद हिंद फौंज ।
IV. सही या गलत की पहचान करें
1. वनवासी, संन्यासी, राजा, प्रजा, कारीगर, किसान सभी अंग्रेजी शासन व उनकी शोषणकारी नीतियों से परेशान थे।
2. 1757 ई० से 1857 ई० के बीच लगभग दो विद्रोह हुए ।
3. नीलह जमींदारों के लठैतों का मुकाबला करने के लिए गाँवों के किसानों ने विभिन्न समूह जैसे तीर-धनुष वालों का समूह, ईंट वालों का समूह, थाली वालों का समूह इत्यादि बनाए ।
4. नामधारी संप्रदाय के लोग जोर-जोर से हंसते गाते थे’ इसलिए इसका नाम नामधारी पड़ा।
5. लाल – बाल-पाल जैसे जुझारू राष्ट्रवादियों ने संपूर्ण भारत में राष्ट्रीयता, देश प्रेम एवं स्वराज्य की एक विशाल लहर उत्पन्न की ।
6. 1896 ई० में तिलक ने विदेशी वस्तुओं की होली जलाकर विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करके आंदोलन के अस्त्र का व्यापक प्रयोग शुरु किया ।
7. साम्राज्यवादी गवर्नर जनरल लॉर्ड कर्जन ने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को अपनाकर भारत की आधी आबादी के प्रदेश बंगाल को साम्प्रादायिकता के आधार पर पूर्वी व दक्षिणी दो प्रांतों में बांट दिया ।
8. दो भाई दामोदर चापेकर व बालकृष्ण चापेकर ने 22 जून को बदनाम रैंड की गोली मारकर हत्या कर दी।
उत्तर – 1. सही, 2. गलत, 3. सही, 4. गलत, 5. सही, 6. सही, 7. गलत, 8. सही ।
V. उचित मिलान करें
1. संन्यासी आंदोलन                             (क) 1859 ई०-60 ई०
2. अहोम आंदोलन                               (ख) 1905 ई०
3. नील विरोध                                      (ग) 1925 ई०
4. भारत स्वशासन समिति                      (घ) 1770 ई०
5. काकोरी की घटना                            (ङ) 1828 ई०
उत्तर – 1. (घ), 2. (ङ), 3. (क), 4. (ख), 5. (ग) ।

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