HR 9 Hindi

Haryana Board 9th Class Hindi Vyakaran अलंकार

Haryana Board 9th Class Hindi Vyakaran अलंकार

HBSE 9th Class Hindi Vyakaran अलंकार

अलंकार

प्रश्न 1. अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अलंकार शब्द का अर्थ है-आभूषण या गहना। जिस प्रकार स्त्री की सौंदर्य-वृद्धि में आभूषण सहायक होते हैं, उसी प्रकार काव्य में प्रयुक्त होने वाले अलंकार शब्दों एवं अर्थों में चमत्कार उत्पन्न करके काव्य-सौंदर्य में वृद्धि करते हैं; जैसे
“खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा।
किसलय का आँचल डोल रहा।”
साहित्य में अलंकारों का विशेष महत्त्व है। अलंकार प्रयोग से कविता सज-धजकर सुंदर लगती है। अलंकारों का प्रयोग गद्य और पद्य दोनों में होता है। अलंकारों का प्रयोग सहज एवं स्वाभाविक रूप में होना चाहिए। अलंकारों को जान-बूझकर लादना नहीं चाहिए।

प्रश्न 2. अलंकार के कितने भेद होते हैं ? सबका एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
साहित्य में शब्द और अर्थ दोनों का महत्त्व होता है। कहीं शब्द-प्रयोग से तो कहीं अर्थ-प्रयोग के चमत्कार से और कहीं-कहीं दोनों के एक साथ प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि होती है। इस आधार पर अलंकार के तीन भेद माने जाते हैं
1. शब्दालंकार।
2. अर्थालंकार।
3. उभयालंकार।

1. शब्दालंकार:
जहाँ शब्दों के प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि होती है, वहाँ शब्दालंकार होता है; जैसे
“चारु चंद्र की चंचल किरणें,
खेल रही हैं जल-थल में।”

2. अर्थालंकार:
जहाँ शब्दों के अर्थों के कारण काव्य में चमत्कार एवं सौंदर्य उत्पन्न हो, वहाँ अर्थालंकार होता है; जैसे-
“चरण-कमल बंदौं हरि राई।”

3. उभयालंकार:
जिन अलंकारों का चमत्कार शब्द और अर्थ दोनों पर आश्रित होता है, उन्हें उभयालंकार कहते हैं; जैसे-
“नर की अरु नल-नीर की, गति एकै कर जोइ।
जेतौ नीचौ है चले, तेतौ ऊँचौ होइ ॥”

प्रमुख अलंकार

1. अनुप्रास

प्रश्न 3. अनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जहाँ व्यंजनों की बार-बार आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है; यथा-
(1) मुदित महीपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत बुलाए।
यहाँ ‘मुदित’, ‘महीपति’ तथा ‘मंदिर’ शब्दों में ‘म’ व्यंजन की और ‘सेवक’, ‘सचिव’ तथा ‘सुमंत’ शब्दों में ‘स’ व्यंजन की आवृत्ति है। अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

(2) भगवान भक्तों की भूरि भीति भगाइए।
यहाँ ‘भगवान’, ‘भक्तों’, ‘भूरि’, ‘भीति’ तथा ‘भगाइए’ में ‘भ’ व्यंजन की आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हुआ है।

(3) कल कानन कुंडल मोरपखा उर पै बिराजति है।

(4) जौं खग हौं तो बसेरो करौं मिलिकालिंदी कूल कदंब की डारनि।
यहाँ दोनों उदाहरणों में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति होने के कारण शब्द-सौंदर्य में वृद्धि हुई, अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

(5) “कंकन किंकन नूपुर धुनि सुनि।
कहत लखन सन राम हृदय गुनि ॥” यहाँ ‘क’ तथा ‘न’ वर्गों की आवृत्ति के कारण शब्द-सौंदर्य में वृद्धि हुई है, अतः अनुप्रास अलंकार है।

(6) तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
इसमें ‘त’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।

(7) बंदऊँ गुरुपद पदुम परागा।
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा ॥
(‘प’ तथा ‘स’ की आवृत्ति है।)

(8) मैया मैं नहिं माखन खायो।
(‘म’ की आवृत्ति है।)

(9) सत्य सनेह सील सागर।
(‘स’ की आवृत्ति)। ”

(10) रघुपति राघव राजा राम।”
(‘र’ की आवृत्ति)।

2. यमक

प्रश्न 4. यमक अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
जहाँ किसी शब्द या शब्दांश का एक से अधिक बार भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग हो, वहाँ यमक अलंकार होता है; जैसे-
(1) कनक कनक तैं सौ गुनी, मादकता अधिकाइ।
उहिं खायें बौरातु है, इहिं पाएँ बौराई ॥
इस दोहे में ‘कनक’ शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है। एक ‘कनक’ का अर्थ है-सोना और दूसरे ‘कनक’ का अर्थ है-धतूरा। एक ही शब्द का भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग होने के कारण यहाँ यमक अलंकार है।

(2) माला फेरत युग गया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर ॥
इस दोहे में ‘फेर’ और ‘मनका’ शब्दों का भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग हुआ है। ‘फेर’ का पहला अर्थ है-माला फेरना और दूसरा अर्थ है-भ्रम। इसी प्रकार से ‘मनका’ का अर्थ है-हृदय और माला का दाना। अतः यमक अलंकार का सुंदर प्रयोग है।

(3) काली घटा का घमंड घटा।
यहाँ ‘घटा’ शब्द की आवृत्ति भिन्न-भिन्न अर्थ में हुई है।
घटा = वर्षा काल में आकाश में उमड़ने वाली मेघमाला
घटा = कम हुआ।

(4) कहैं कवि बेनी बेनी व्याल की चुराई लीनी।
इस पंक्ति में ‘बेनी’ शब्द का भिन्न-भिन्न अर्थों में आवृत्तिपूर्वक प्रयोग हुआ है। प्रथम ‘बेनी’ शब्द कवि का नाम है और दूसरा ‘बेनी’ (बेणी) चोटी के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।

(5) गुनी गुनी सबके कहे, निगुनी गुनी न होतु।
सुन्यो कहुँ तरु अरक तें, अरक समानु उदोतु ॥ ‘अरक’ शब्द यहाँ भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। एक बार अरक के पौधे के रूप में तथा दूसरी बार सूर्य के अर्थ के रूप में प्रयुक्त हुआ है, अतः यहाँ यमक अलंकार सिद्ध होता है।

(6) ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी,
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहाती है।
यहाँ ‘मंदर’ शब्द के दो अर्थ हैं। पहला अर्थ है- भवन तथा दूसरा अर्थ है पर्वत, इसलिए यहाँ यमक अलंकार है।

3. श्लेष

प्रश्न 5. श्लेष अलंकार का लक्षण लिखकर उसके उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
जहाँ एक शब्द के एक ही बार प्रयुक्त होने पर दो अर्थ निकलें, उसे श्लेष अलंकार कहते हैं; जैसे-
(1) नर की अरु नल-नीर की, गति एकै कर जोय।
जेते नीचो है चले, तेतो ऊँचो होय ॥

मनुष्य और नल के पानी की समान ही स्थिति है, जितने नीचे होकर चलेंगे, उतने ही ऊँचे होंगे। अंतिम पंक्ति में बताया गया सिद्धांत नर और नल-नीर दोनों पर समान रूप से लागू होता है, अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।

(2) मधुवन की छाती को देखो,
सूखी कितनी इसकी कलियाँ।
यहाँ ‘कलियाँ’ शब्द का प्रयोग एक बार हुआ है किंतु इसमें अर्थ की भिन्नता है।

(क) खिलने से पूर्व फूल की दशा।
(ख) यौवन पूर्व की अवस्था।

(3) रहिमन जो गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढे अँधेरो होय ॥ इस दोहे में ‘बारे’ और ‘बढ़े’ शब्दों में श्लेष अलंकार है।

(4) गाधिसूनु कह हृदय हँसि, मुनिहिं हरेरिय सूझ।
अयमय खाँड न ऊखमय, अजहुँ न बूझ अबूझ ॥

(5) मेरी भव-बाधा हरो, राधा नागरि सोइ।
जा तन की झाँईं परै, स्यामु हरित-दुति होइ ॥

(6) बड़े न हूजे गुननु बिनु, बिरद बड़ाई पाइ।।
कहत धतूरे सौं कनकु, गहनौ, गढ्यौ न जाइ ॥
कनकु शब्द के यहाँ दो अर्थ हैं सोना और धतूरा।

4. उपमा

प्रश्न 6. उपमा अलंकार की परिभाषा देते हुए उसके उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
जहाँ किसी वस्तु, पदार्थ या व्यक्ति के गुण, रूप, दशा आदि का उत्कर्ष बताने के लिए किसी. लोक-प्रचलित या लोक-प्रसिद्ध व्यक्ति से तुलना की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है।
(1) ‘उसका हृदय नवनीत सा कोमल है।’
इस वाक्य में ‘हृदय’ उपमेय ‘नवनीत’ उपमान, ‘कोमल’ साधारण धर्म तथा ‘सा’ उपमावाचक शब्द है।

(2) लघु तरण हंसिनी-सी सुंदर,
तिर रही खोल पालों के पर ॥
यहाँ छोटी नौका की तुलना हंसिनी के साथ की गई है। अतः ‘तरण’ उपमेय, ‘हंसिनी’ उपमान, ‘सुंदर’ गुण और ‘सी’ उपमावाचक शब्द चारों अंग हैं।

(3) हाय फूल-सी कोमल बच्ची।
हुई राख की थी ढेरी ॥
यहाँ ‘फूल’ उपमान, ‘बच्ची’ उपमेय और ‘कोमल’ साधारण धर्म है। ‘सी’ उपमावाचक शब्द है, अतः यहाँ पूर्णोपमा अलंकार है।

(4) यह देखिए, अरविंद से शिशुवृंद कैसे सो रहे।
इस पंक्ति में ‘अरविंद से शिशुवृंद’ में साधारण धर्म नहीं है, इसलिए यहाँ लुप्तोपमा अलंकार है।

(5) नदियाँ जिनकी यशधारा-सी
बहती हैं अब भी निशि-वासर ॥
यहाँ ‘नदियाँ’ उपमेय, ‘यशधारा’ उपमान, ‘बहना’ साधारण धर्म और ‘सी’ उपमावाचक शब्द है, अतः यहाँ उपमा अलंकार है।

(6) मखमल के झूल पड़े हाथी-सा टीला।
यहाँ हाथी और टीला में उपमान, उपमेय का संबंध है, दोनों में ऊँचाई सामान्य धर्म है। ‘सा’ उपमावाचक शब्द है, अतः यहाँ उपमा अलंकार है।

(7) वेदना बोझ वाली-सी

5.रूपक

प्रश्न 7. रूपक अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जहाँ अत्यंत समानता दिखाने के लिए उपमेय और उपमान में अभेद बताया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है; जैसे-
(1) चरण कमल बंदौं हरि राई। उपर्युक्त पंक्ति में ‘चरण’ और ‘कमल’ में अभेद बताया गया है, अतः यहाँ रूपक अलंकार का प्रयोग है।

(2) मैया मैं तो चंद-खिलौना लैहों।
यहाँ भी ‘चंद’ और ‘खिलौना’ में अभेद की स्थापना की गई है।

(3) बीती विभावरी जाग री।
अंबर पनघट में डुबो रही।
तारा-घट ऊषा नागरी।
इन पंक्तियों में नागरी में ऊषा का, अंबर में पनघट का और तारों में घट का आरोप हुआ है, अतः रूपक अलंकार है।

(4) मेखलाकार पर्वत अपार;
अपने सहस्र दृग सुमन फाड़,
अवलोक रहा था बार-बार,
नीचे जल में निज महाकार।
यहाँ दृग (आँखों) उपमेय पर फूल उपमान का आरोप है, अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

(5) बढ़त बढ़त संपति-सलिलु, मन-सरोजु बढ़ि जाइ।
घटत घटत सु न फिरि घटै, बरु समूल कुम्हिलाइ ॥
इस दोहे में संपत्ति में सलिल का एवं मन में सरोज का आरोप किया गया है, अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

प्रश्न 8. उपमा और रूपक अलंकार का अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपमा अलंकार में उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है, जबकि ‘रूपक’ में उपमेय में उपमान का आरोप करके दोनों में अभेद स्थापित किया जाता है।
उदाहरण-
पीपर पात सरिस मन डोला (उपमा)
यहाँ ‘मन’ उपमेय तथा ‘पीपर पात’ उपमान में समानता बताई गई है। अतः उपमा अलंकार है।
उदाहरण-
‘चरण कमल बंदी हरि राई।” (रूपक)
यहाँ उपमेय ‘चरण’ में उपमान ‘कमल’ का आरोप है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

6. अतिशयोक्ति

प्रश्न 9. अतिशयोक्ति अलंकार किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब किसी वस्तु अथवा घटना का इतना अधिक बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन किया जाता है कि वह लोक-सीमा को लांघ जाए, तो उसे अतिशयोक्ति अलंकार कहते हैं; अतिशय + उक्ति अर्थात् बढ़ा-चढ़ा कर कहना (कथन)। अर्थात् किसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना। जैसे-
राघव की चतुरंग-चमू चय को गने केसव राज समाजनि।
सूर-तुरंगनि के उलझे पग तुंग पताकनि की पटसाजनि।।
यहाँ रामचन्द्र जी की सेना के झण्डों को इतना अधिक ऊँचा बताया गया है कि वे सूर्य के रथ के घोड़ों से उलझ गए हैं। इस प्रकार लोक सीमा को लांघ जाने के कारण यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।

अतिशयोक्ति अलंकार के कुछ अन्य उदाहरण-
(1) यह शर इधर गांडीव गुण से भिन्न जैसे ही हुआ।
धड़ से जयद्रथ का उधर सिर छिन्न वैसे ही हुआ।।

(2) प्राण छूटे प्रथम रिपु के रघुनायक सायक छूटि न पाये।

(3) केकई के कहत ही राम-गमन की बात।
नृप दशरथ के ताहि छिन सूखि गये सब गात।

(4) हनुमान की पूंछ को लगन न पाई आग।
लंका सिगरी जल गई, गये निशाचर भाग।।।

(5) बांधा था विधु को किसने, इन काली जंजीरों से,
मणि वाले फणियों का मुख, क्यों भरा हुआ हीरों से।

(6) तब सिव तीसरे नैन उघारा ।
चितवत काम भयेहु जरि छारा ।।

7. अन्योक्ति

प्रश्न 10. अन्योक्ति अलंकार किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। .
उत्तर:
जहाँ अप्रस्तुत वर्णन (उपमान) के माध्यम से प्रस्तुत (उपमेय) अर्थ की प्रतीति कराई जाए, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है। इस अलंकार की विशेषता यह है कि इसमें किसी के नाम पर बाण चलाकर किसी दूसरे को घायल किया जाता है। इस अलंकार में अप्रस्तुत का वर्णन किया जाता है अतः इसे अप्रस्तुत प्रशंसा अलंकार भी कहते हैं; जैसे
“स्वारथ सुकृत न श्रम वृथा, देखि विहंग विचारि।
बाज पराये पानि पर, तू पच्छीनु न मारि।”

ऊपर के दोहे में प्रस्तुत में बाज का वर्णन किया जा रहा है लेकिन अप्रस्तुत में यह उक्ति राजा जयसिंह के प्रति है जो औरंगजेब की तरफ से शिवाजी को पकड़ने के लिए जा रहे थे। इस प्रकार यहाँ बाज के बहाने से राजा जयसिंह पर निशाना किया गया है अतः यहाँ अन्योक्ति अलंकार है।

अन्योक्ति अलंकार के अन्य उदाहरण-
(1) नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल।
अली कली ही सों विंध्यौ, आनें कौन हवाल।।

(2) जिन दिन देखे वे सुमन गई सुबीति बहार।
अब तो अली गुलाब में, अपत कंटीली डार ।।

(3) अरे हंस ! या नगर में जइयो आप विचारि।
कागन सों जिन प्रीति करो, कोयल दीन्हीं विडारि ।।

(4) को छूट्यो यह जाल पड़ी, कत कुरंग अकुलाय।।
ज्यों-ज्यों सुरझि भज्यौ चहै, त्यों-त्यों उरझत जाय।।

8. उत्प्रेक्षा

प्रश्न 11. उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जहाँ समानता के कारण उपमेय में उपमान की संभावना या कल्पना की जाती है; जैसे
(1) सोहत ओ पीतु पटु, स्याम सलौनै गात।
मनौ नीलमणि सैल पर, आतपु पर्यो प्रभात ॥
यहाँ श्रीकृष्ण के साँवले रूप तथा उनके पीले वस्त्रों में प्रातःकालीन सूर्य की धूप से सुशोभित नीलमणि पर्वत की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।

(2) उस काल मारे क्रोध के, तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के जोर से, सोता हुआ सागर जगा ॥
यहाँ क्रोध से काँपता हुआ अर्जुन का शरीर उपमेय है तथा इसमें सोए हुए सागर को जगाने की संभावना की गई है।

(3) लंबा होता ताड़ का वृक्ष जाता।
मानो नभ छूना चाहता वह तुरंत ही ॥
यहाँ ताड़ का वृक्ष उपमेय है जिसमें आकाश को छूने की संभावना की गई है।

(4) कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो, हो गए पंकज नए ॥
यहाँ आँसुओं से पूर्ण उत्तरा के नेत्र उपमेय है जिनमें कमल की पंखड़ियों पर पड़े हुए ओस के कणों की कल्पना की गई है, अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।

9. मानवीकरण

प्रश्न 12. मानवीकरण अलंकार की सोदाहरण परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
जहाँ जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं तथा क्रियाओं का आरोप हो, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है; जैसे-
लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।

यहाँ लतिका में मानवीय क्रियाओं का आरोप है, अतः लतिका में मानवीय अलंकार सिद्ध है। मानवीकरण अलंकार के कुछ अन्य उदाहरण हैं
(1) दिवावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही
संध्या सुंदरी परी-सी धीरे-धीरे,

(2) मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

(3) आए महंत बसंत

The Complete Educational Website

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *