MP Board Class 10th Sanskrit व्याकरण प्रत्यय-प्रकरण
MP Board Class 10th Sanskrit व्याकरण प्रत्यय-प्रकरण
MP Board Class 10th Sanskrit व्याकरण प्रत्यय-प्रकरण
प्रत्यय की परिभाषा-यः शब्दः धातोः प्रातिपदिकस्य वा अन्ते संयुज्य विशेषार्थस्य बोधं कारयति सः प्रत्ययः।
अथवा
धातूनां प्रातिपदिकानां च अन्ते ये प्रयुज्यन्ते ते प्रत्ययाः।
अर्थात् किसी धातु अथवा शब्द के बाद में किसी विशेष अर्थ को प्रकट करने के लिए जो शब्दांश जोड़ा जाता है, उसे प्रत्यय कहते हैं।
जैसे-
बालकः गच्छति।
बालकः पठति।
उपरोक्त दो वाक्यों को प्रत्यय के प्रयोग से एक वाक्य बना सकते हैं।
बालकः गत्वा पठति।
प्रत्यय के भेद-प्रत्ययों से बनने वाले शब्दों को निम्नलिखित छ: वर्गों में विभक्त किया जाता है
१. सुबन्त
सुप् आदि २१ प्रत्ययों के योग से संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि के शब्द रूप बनते हैं। जैसे-रामः, सीता आदि।
२. तिङन्त
तिङ आदि १८ प्रत्ययों के योग से क्रिया पदों (धातु रूपों) का निर्माण होता है। जैसे-पठति, गच्छति आदि।
३. समासान्त –
समास करने के बाद समस्त पद के अन्त में कप, टच आदि प्रत्यय जुड़ते हैं। समास के अन्त में जुड़ने के कारण इन प्रत्ययों को समासान्त कहते हैं।
जैसे-
महाराजः,,सपत्नीकः आदि।
४. कृदन्त
जो प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि बनाने के लिए धातुओं के साथ जोड़े जाते हैं, वे कृत् प्रत्यय कहे जाते हैं और कृत् प्रत्यय से बने हुए शब्दों को कृदन्त कहते हैं।
जैसे-
क्त, क्तवतु, तव्यत्, अनीयर्, क्त्वा, ल्यप्, तुमुन्, शतृ, शानच्, क्तिन् इत्यादि।
❖ क्त
- पठ् + क्तः = पठितः – (पढ़ा हुआ)
- गम् + क्तः = गतः – (गया हुआ)
- हस् + क्तः = हसितः – (हँसा हुआ)
- दृश + क्तः = दृष्टः – (देखा हुआ)
❖ क्तवतु
- पठ् + क्तवतु = पठितवान् – (पढ़ा)
- गम् + क्तवतु = गतवान् – (गया)
- कृ + क्तवतु = कृतवान् – (करा)
- क्रीड् + क्तवतु = क्रीडितवान् – (खेला)
❖ तव्यत्
- पठ् + तव्यत् = पठितव्यम् – (पढ़ने योग्य)
- खाद् + तव्यत् = खादितव्यम् – (खाने योग्य)
- गम् + तव्यत् = गन्तव्यम् – (जाने योग्य)
- लिख् + तव्यत् = लेखितव्यम् – (लिखने योग्य)
- अनीयर । पठ् + अनीयर् = पठनीयम् – (पढ़ने योग्य)
- चल् + अनीयर् = चलनीयम् – (चलने योग्य)
- कृ + अनीयर् = करणीयम् – (करने योग्य)
- क्रीड् + अनीयर् = क्रीडनीयम् – (खेलने योग्य)
- क्त्वा पठ् + क्त्वा = पठित्वा – (पढ़कर)
- क्रीड् + क्त्वा = क्रीडित्वा
❖ (खेलकर)
- गम् + क्त्वा = गत्वा – (जाकर)
- पा + क्त्वा = पीत्वा – (पीकर)
- ल्यप् प्र + दा + ल्यप् = प्रदाय – (देकर)
- आ + गम् + ल्यप् = आगम्य/आगत्य – (आकर)
- प्र + नम् + ल्यप् = प्रणम्य – (प्रणाम करके)
- वि + हस् + ल्यप् = विहस्य – (हँसकर)
❖ तुमुन्
- पठ् + तुमुन् = पठितुम् – (पढ़ने के लिए)
- गम् + तुमुन् = गन्तुम् – (जाने के लिए)
- श्रु + तुमुन् = श्रोतुम् – (सुनेन के लिए)
- हस् + तुमुन् = हसितुम् – (हँसने के लिए)
❖ शतृ
- पठ् + शतृ = पठन् – (पढ़ते हुए)
- गम् + शतृ = गच्छन् – (जाते हुए)
- कृ + शतृ = कुर्वन् – (करते हुए)
- क्रीड् + शतृ = क्रीडन् – (खेलते हुए)
❖ शानच
- सेव् + शानच् = सेवमानः – (सेवा करता हुआ)
- लभ् + शानच् = लभमानः – (प्राप्त करता हुआ)
- वृध् + शानच् = वर्धमानः – (बढ़ता हुआ)
- कम्प, + शानच् = कम्पमानः – (काँपता हुआ)
❖ क्तिन्
- भू + क्तिन् = भूतिः – (ऐश्वर्य)
- गम् + क्तिन् = गतिः – (गति)
- स्तु + क्तिन् = स्तुतिः – (स्तुति)
५. तद्धितान्त
जो प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण शब्दों में जोड़े जाते हैं, उन्हें तद्धित प्रत्यय कहते हैं और तद्धित प्रत्ययों के बने हुए शब्दों को तद्धितान्त कहते हैं। जैसे-मतुप्, इनि इत्यादि।
❖ मतुप
- विद्या + मतुप् = विद्यावान् – (विद्या वाला)
- शक्ति + मतुप् = शक्तिवान् – (शक्ति वाला)
- गुण + मतुप् = गुणवान् – (गुण वाला)
- धन + मतुप् = धनवान् – (धन वाला)
❖ इनि (इन्)
- मान + इनि = मानी (मानिन्) – (मान वाला)
- धन + ‘इनि = धनी (धनिन्) – (धन वाला)
- ज्ञान + इनि = ज्ञानी (ज्ञानिन्) – (ज्ञान वाला)
- गुण + इनि = गुणी (गुणिन्) – (गुण वाला)
❖ ठक (इक)
- समाज + ठक् = सामाजिकः – (समाज से सम्बन्धित)
- इतिहास + ठक् = ऐतिहासिक: – (इतिहास से सम्बन्धित)
- धर्म + ठक् = धार्मिकः – (धर्म से सम्बन्धित)
❖ त्व
- मनुष्य + त्व = मनुष्यत्वम् – (मुनष्यपन या मनुष्य का कर्म)
- विद्वस् + त्व = विद्वत्त्वम् – (विद्वान का भाव या कर्म)
- लघु + त्व = लघुत्वम् – (छोटापन)
- गुरु + त्व = गुरुत्वम् – (बड़प्पन)
❖ त्रल
- बहु + ल् = बहुत्र – (बहुत जगह)
- सर्व + त्रल् = सर्वत्र – (बहुत जगह)
- यद् + त्रल् = यत्र – (जहाँ)
- तद् + त्रल् = तत्र – (वहाँ)
६. स्त्री-प्रत्ययान्त
शब्दों को स्त्रीलिंग वाची बनाने के लिए टाप, ङीष्, ङीप्, आदि प्रत्ययों का प्रयोग होता है। इन प्रत्ययों से बनने वाले शब्दों E को स्त्री-प्रत्ययान्त कहते हैं। जैसे-रमा, उमा, अजा आदि।
❖ टाप
- बालक + टाप् = बालिका – (लड़की)
- अज + टाप् = अजा – (बकरी)
- कोकिल+ टाप् = कोकिला – (कोयल)
- अश्व + टाप् = अश्वा – (घोड़ी)
❖ ङीप्
- स्वामिन्+ ङीप् = स्वामिनी – (मालकिन)
- देव + ङीप् = देवी – (देवी)
- कुमार + ङीप् = कुमारी – (कुमारी)
- किशोर + ङीप् = किशोरी – (किशोरी)
- ङीष गौर + ङीष् = गौरी – (गौरी)
- सुन्दर + ङीष् = सुन्दरी – (सुन्दरी)
- नर्तक + ङीष् = नर्तकी – (नर्तकी)
❖ डीन्
- नर + ङीन् = नारी – (नारी)
- ब्राह्मण + ङीन् = ब्राह्मणी – (ब्राह्मणी)
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय
प्रश्न १.
पठ् + तव्यत्: ” ……………………… ” होता है।
(अ) पठनीयम्,
(ब) पठिव्य,
(स) पठित्वा,
(द) पठितव्यम्।
उत्तर-
(द) पठितव्यम्।
२. हस + शत = ………………………” होगा।
(अ) हसन्,
(ब) हसमान्,
(स) हसथ,
(द) हसामि।
उत्तर-
(अ) हसन्,
३. ‘कथितः’ को पृथक करने पर होगा
(अ) कथ् + तव्यत्,
(ब) कथ् + क्त,
(स) कथ् + क्त्वा,
(द) कथ् + शतृ।
उत्तर-
(ब) कथ् + क्त,
४. ‘कृ + तुमुन्’ को मिलाने पर होगा
(अ) कर्तुम्,
(ब) कर्तम्,
(स) कुर्तुम्,
(द) कतुम्।
उत्तर-
(अ) कर्तुम्,
५. ‘आगम्य’ में प्रकृति-प्रत्यय हैं
(अ) आ + गम्य + ल्यपु,
(ब) आ + गम् + ल्यप्,
(स) आ + गय + ल्यप्,
(द) आ + ल्यप् + गम्।
उत्तर-
(ब) आ + गम् + ल्यप्,
रिक्त स्थान पूर्ति-
१. बाल + टाप् = ………………………………
२. जि + तुमुन् = ………………………………।
३. वध् + शानच् = ………………………………।
४. गम् + क्त = ………………………………।
५. दृश् + अनीयर् = ………………………………
उत्तर-
१. बालिका,
२. जेतुम्,
३. वर्धमानः,
४. गतः,
५. दर्शनीयम्।
सत्य/असत्य-
१. पठितव्यम्’ में शानच् प्रत्यय है।
२. ‘गत्वा’ में क्त्वा प्रत्यय है।
३. विद्यवान्’ में शानच् प्रत्यय है।
४. ‘श्रीमान्’ में मतुप् प्रत्यय है।
५. ‘सर्वत्र’ में त्रल् प्रत्यय है।
उत्तर-
१. असत्य,
२. सत्य,
३. असत्य,
४. सत्य,
५. सत्य।
जोड़ी मिलाइए-
उत्तर-
१. → (iv)
२. → (i)
३. → (v)
४. → (ii)
५. → (iii)