MP Board Class 10th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 गीता का मर्म
MP Board Class 10th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 गीता का मर्म (संकलित)
गीता का मर्म पाठ का सारांश
‘गीता का मर्म’ सही शिक्षा की प्रेरणा देने वाली कथा है। पुराने समय में एक आनन्दपाल नामक राजा थे। उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान प्राप्त करना चाहा। इसके लिए उन्होंने घोषणा करा दी कि जो महाराज को गीता का पूर्ण ज्ञान करा देगा उसे वे आधा राज्य देंगे। ग्राम, नगर, विदेश से अनेक विद्वान आये किन्तु राजा को गीता नहीं समझा पाये। तभी गौवर्ण नाम के एक प्रकाण्ड विद्वान आये। उन्होंने राजा को समस्त गीता कण्ठस्थ करा दी तथा समझा दी। राजा के मन में कुटिलता आ गई और अपना आधा राज्य बचाने के लिए गौवर्ण से उन्होंने झूठ बोल दिया कि ‘मेरी समझ में कुछ नहीं आया’ । दोनों में विवाद बढ़ा तो उसकी मध्यस्थता के लिए महायोगी विशाख से प्रार्थना की। उन्होंने दोनों को समझाया कि गीता निष्काम कर्म करने की शिक्षा देती है और तुम दोनों राज्य के लालच में फँसे हो। तुमने गीता पढ़ ली है किन्तु उसके मर्म को नहीं पहचाना है। विद्या हमें सत्मार्ग बताते हुए शालीनता, विनम्रता, एकाग्रता और इच्छाओं के शमन करने की प्रेरणा देती है। यह सुनकर राजा आनन्दपाल तथा गौवर्ण दोनों को ही राज्य से विरक्ति हो गयी । तब महायोगी विशाख ने दोनों को आशीर्वाद दिया और कहा कि आप दोनों ने अब गीता के मर्म को समझा है ।
गीता का मर्म संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या
(1) बहुत पुरानी बात है। आनन्दपाल नाम के एक राजा थे। उनका राज्य बहुत विशाल था। वे विद्वानों का भी बहुत आदर करते थे। उनके राज्य में बड़े-बड़े विद्वान एवं शास्त्र मर्मज्ञ थे तथा दूर-दूर के देशों से भी विद्वान उनके दरबार में आते रहते थे। राजा भी उनका यथोचित स्वागत सम्मान करते थे और भेंट भी देते थे। उनके यहाँ से कोई भी विद्वान निराश होकर नहीं लौटता था ।
शब्दार्थ – विशाल = बहुत बड़ा । शास्त्र मर्मज्ञ = शास्त्रों को समझने वाला । यथोचित = जैसा उचित हो। स्वागत = आदर ।
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘वासन्ती’ के ‘गीता का मर्म’ नामक पाठ से लिया गया है । –
प्रसंग–इसमें राजा आनन्दपाल के विषय में बताया गया है।
व्याख्या— बहुत पुराने समय में आनन्दपाल नामक एक राजा थे । वे बहुत बड़े राज्य पर शासन करते थे । ज्ञानी तथा विद्वानों के प्रति उनके मन में अति आदर – भाव था । वे अपने राज्य से तथा बाहर से आने वाले शास्त्र मर्मज्ञ पंडितों का पूरी निष्ठा से स्वागत करते थे। वे उन्हें वस्त्र, भेंट आदि प्रदान करके भेजते थे। उनके दरबार में आने वाला प्रत्येक विद्वान प्रसन्न होकर जाता था । वे किसी को निराश नहीं लौटाते थे ।
विशेष—(1) यहाँ पर राजा आनन्दपाल के गुणों का उल्लेख किया गया है। (2) सरल, सुबोध भाषा तथा वर्णनात्मक शैली में विषय को प्रस्तुत किया गया है।
(2) ज्ञान हमें रास्ता बताता है। इससे हमारी विचार शक्ति बढ़ती है और देखने की शक्ति व्यापक हो जाती है तथा मनन करने की शक्ति में वृद्धि हो जाती है। हम किसी परिणाम पर युक्तियुक्त ढंग से पहुँचने का प्रयत्न करते हैं। विद्या से विनम्रता आती है और व्यक्ति शालीन बन जाता है। मन शान्त हो जाता है, चित्त एकाग्र हो जाता है और तृष्णाओं का शमन होता है। मात्र विषयों को जानना ही सच्चा ज्ञान नहीं है पढ़े हुए को चरित्र में ढालना ही सच्चा ज्ञान है।
शब्दार्थ – ग्रहण = प्राप्त । व्यापक = विस्तृत, विशाल । वृद्धि = बढ़ोत्तरी । युक्तियुक्त = तर्कसंगत । प्रयत्न = प्रयास । एकाग्र = स्थिर । तृष्णाओं = इच्छाओं। शमन = शान्त, नियन्त्रण ।
सन्दर्भ पूर्ववत् ।
प्रसंग-इस गद्यांश में सच्चे ज्ञान के विषय में समझाया गया है।
व्याख्या–विद्या प्राप्त करने से व्यक्ति को अनेक लाभ होते हैं। ज्ञान मनुष्य को सही मार्ग पर ले जाता है। विद्वान भटकता नहीं है। विद्या प्राप्ति से मनुष्य की विचार क्षमता बढ़ जाती है। उसका दृष्टिकोण विस्तृत हो जाता है। ज्ञानी व्यक्ति में चिंतन-मनन की बढ़ोत्तरी होती है। ज्ञान के सहारे मनुष्य तर्कसंगत तरीके से जीवन के उद्देश्य को प्राप्त करने का प्रयास करता है। विद्या उद्दण्डता से दूर कर विनम्र बनाती हैं। इसमें शालीनता आती है। मन की चंचलता समाप्त हो जाती है वह शान्त एवं एकाग्र हो जाता है। मन में निरन्तर जाग्रत होते रहने वाली इच्छाएँ शान्त हो जाती हैं। विभिन्न प्रकार के विषयों की जानकारी प्राप्त कर लेना मात्र वास्तविक ज्ञान नहीं कहलाता है। जो पढ़ा है उसे अपने नित्य प्रति के जीवन में उतार लेना ही सच्चा ज्ञान है। ज्ञान अन्तर-बाह्य समान होना चाहिए ।
विशेष (1) ज्ञान से मनुष्य के अन्दर आने वाले रचनात्मक गुणों को बताया गया है। (2) सरल, शुद्ध, खड़ी बोली को अपनाया है। (3) विवेचनात्मक शैली में विषय को स्पष्ट किया गया है।
गीता का मर्म पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
गीता का मर्म लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. राजा ने मंत्रियों के समक्ष कौन-सी इच्छा प्रकट की ?
उत्तर – राजा ने मंत्रियों के समक्ष इच्छा प्रकट की है कि मुझे श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान प्राप्त करना है। जो व्यक्ति मुझको पूर्ण रूप से गीता समझा देगा उसे मैं अपना आधा राज्य दे दूँगा ।
प्रश्न 2. राजा की घोषणा सुनकर उनके पास कौन-कौन आने लगे ?
उत्तर – राजा की घोषणा सुनकर दूर-दूर से विद्वान, पण्डित और ज्ञानीजन राजा के पास गीता समझाने आने लगे । वे राजा को गीता का महात्म्य, श्लोकों की व्याख्या आदि उदाहरण देकर समझाते ।
प्रश्न 3. गौवर्ण राजा के पास क्यों आया था ?
उत्तर -गौवर्ण राजा के पास गीता समझाने आया था। उसने राजा को सम्पूर्ण गीता कंठस्थ करा दी तथा सब कुछ समझा दिया।
प्रश्न 4. गीता में कुल कितने श्लोक हैं ?
उत्तर- गीता में कुल सात सौ श्लोक हैं।
प्रश्न 5. राजा के मन में कौन-सी कुटिलता समाई हुई थी ?
उत्तर- राजा के मन में आधा राज्य न देने की कुटिलता समाई हुई थी ।
प्रश्न 6. दूसरों को उपदेश देने का अधिकारी कौन हो सकता है ?
उत्तर – दूसरों को उपदेश देने का वही अधिकारी है जो स्वयं उस पर आचरण करता हो ।
प्रश्न 7. विद्या से हम में कौन-कौनसे गुण आते हैं ?
उत्तर–विद्या से हमारी विचार शक्ति, देखने की शक्ति और मनन करने की शक्ति में बढ़ोत्तरी होती है। इससे विनम्रता, शालीनता, एकाग्रता तथा निष्काम आदि गुण आते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. राजा आनन्दपाल ने अपने मंत्रियों से क्या कहा और क्यों ?
उत्तर – राजा आनन्दपाल ने अपने मंत्रियों से कहा कि आप समस्त राज्य में घोषणा करा दें कि मुझे पूर्ण रूप से गीता समझा देने वाले को मैं अपना आधा राज्य दे दूँगा। वे श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने मंत्रियों से गीता का मर्म समझाने वाला बुलाने के लिए कहा ।
प्रश्न 2. गौवर्ण ने राजा को गीता का मर्म समझाने के लिए क्या प्रयास किया ?
उत्तर – गौवर्ण ने राजा को गीता का मर्म समझाने के लिए पूरा प्रयास किया। उसने गीता के प्रत्येक श्लोक के एक-एक शब्द, पद तथा अक्षर की व्याख्या करते हुए उसका अर्थ समझाया। गौवर्ण ने राजा आनन्दपाल को गीता के सम्पूर्ण सात सौ श्लोकों को कंठस्थ कराके उनका मर्म बता दिया ।
प्रश्न 3. महायोगी विशाख ने दोनों की मध्यस्थता करते हुए क्या कहा ?
उत्तर – महायोगी विशाख ने गौवर्ण तथा राजा आनन्दपाल की मध्यस्थता करते हुए गौवर्ण से कहा कि आपने स्वयं गीता के मर्म को नहीं समझा है। यदि समझ लिया होता तो आप राज्य के लालच में आकर इस तरह के झंझट में नहीं फँसते । गीता फल प्राप्त करने की इच्छा से कर्म करने की शिक्षा नहीं देती है, वह निष्काम कर्म करने की शिक्षा देती है। राजा से कहा कि आप भी कुछ नहीं समझे नहीं तो विद्वानों का स्वागत सम्मान करने वाले आप इस तरह का व्यवहार न करते ।
प्रश्न 4. अर्जुन ने इन्द्र से अपनी विद्या का उपयोग किन-किन के लिए करने को कहा था ?
उत्तर- अर्जुन ने इन्द्र से अपनी विद्या का उपयोग सत्य और न्याय की रक्षा के लिए कहा था। उन्होंने धनुर्विद्या दुष्टजनों को दबाने, असहायों की सहायता करने, नारी की रक्षा करने, कमजोरों को सबल बनाने और धर्म की रक्षा के लिये प्राप्त की थी। उन्होंने विजय, यश और राज्य का भोग करने के लिए धनुर्विद्या का ज्ञान प्राप्त नहीं किया था ।
प्रश्न 5. राजा आनन्दपाल के मन में किस प्रसंग को सुनकर हलचल मची और क्यों ?
उत्तर- अर्जुन और इन्द्र के प्रसंग को सुनकर राजा आनन्दपाल के मन में हलचल मच गई थी। अर्जुन को धनुर्विद्या प्रदान कर इन्द्र ने अर्जुन से पृथ्वी विजय कर चक्रवर्ती राजा बनने की इच्छा व्यक्त की। अर्जुन ने कहा कि मैंने यह विद्या विजय, यश या राजभोग के लिए प्राप्त नहीं की है। मैं तो इसके द्वारा सत्य, न्याय की रक्षा, दुष्टों का दमन, असहायों की सहायता, नारी तथा धर्म की रक्षा करूँगा। इसी प्रसंग से राजा आनन्दपाल विचलित हो उठे थे। उनके मन में जन कल्याण का भाव जाग उठा था।
प्रश्न 6. इस ‘गीता का मर्म’ इस कहानी से आज का विद्यार्थी क्या सीख ले सकता है ? अपने विचार प्रकट कीजिए ।
उत्तर – इस कहानी से आज का विद्यार्थी यह शिक्षा ले सकता है कि आदमी को लोभ-लालच जैसी बुराइयों से बचना चाहिए। वह सीख सकता है कि दुष्टों का दमन करना, असहायों की सहायता करना, नारी, सत्य, न्याय तथा धर्म की रक्षा करने को तत्पर रहना चाहिए। यह कहानी विद्यार्थी में भोगवादी वृत्ति के प्रति विराग तथा जन कल्याण के प्रति राग जाग्रत करती है।
किसने किससे कहा
प्रश्न 1. “मुझे गीता का ज्ञान प्राप्त करना है।”
उत्तर – यह राजा आनन्दपाल ने मंत्रियों से कहा है। “
प्रश्न 2. “राजन आप लोभवश ऐसा कह रहे हैं। “
उत्तर – यह गौवर्ण ने राजा आनन्दपाल से कहा है।
प्रश्न 3. “आप अपने दिए हुए वचन से पीछे हट रहे हैं। “
उत्तर- यह गौवर्ण ने राजा आनन्दपाल से कहा है।
प्रश्न 4. ‘भ्रष्टता क्षमा करें देव! विजय, यश और राज्य भोगने के लिए मैंने धनुर्विद्या प्राप्त नहीं की है।”
उत्तर – यह कथन अर्जुन का, इन्द्र के प्रति है।
प्रश्न 5. आप दोनों ही गीता के मर्म को भली-भाँति समझ गए हैं। “
उत्तर – यह कथन महायोगी विशाख का, गौवर्ण तथा राजा आनन्दपाल के प्रति है।
भाषा अनुशीलन
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध उच्चारण कीजिए और इन्हें अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
मर्मज्ञ, ढिंढोरा, महात्म्य, प्रकाण्ड, धनुर्विद्या, स्वाध्याय, तृष्णा ।
उत्तर –
(i) मर्मज्ञ – बाल गंगाधर तिलक गीता के मर्मज्ञ थे।
(ii) ढिंढोरा – किसी खबर फैलाने को ढिंढोरा पिटवाया जाता है।
(iii) महात्म्य – गीता का महात्म्य अत्यन्त लाभकारी है।
(iv) प्रकाण्ड–महायोगी विशाख प्रकाण्ड विद्वान थे।
(v) धनुर्विद्या–अर्जुन धनुर्विद्या में प्रवीण थे।
(vi) स्वाध्याय – विद्यार्थियों के लिए स्वाध्याय परम आवश्यक है।
(vii) तृष्णा—मनुष्य को तृष्णाओं का शमन करना चाहिए।
प्रश्न 2. ‘वाचाल’ शब्द में ‘ता’ प्रत्यय लगाकर नया शब्द वाचालता और ‘सत्य’ शब्द में ‘अ’ उपसर्ग लगाकर ‘असत्य’ नया शब्द बना है। इसी प्रकार ‘ता’ प्रत्यय और ‘अ’ उपसर्ग लगाकार चार-चार शब्द लिखिए |
उत्तर – शब्द ‘ता’ प्रत्यय से बने शब्द
समान समानता
शालीन शालीनता
एकाग्र एकाग्रता
कुशल कुशलता
शब्द ‘अ’ उपसर्ग से बने शब्द
पवित्र अपवित्र
गम अगम
बोध अबोध
पूर्ण। अपूर्ण
प्रश्न 3. निम्नलिखित सामासिक पदों का समास विग्रह करते हुए उनमें निहित समास पहचानकर लिखिए –
उत्तर – राजा – नृप, भूपति, भूपाल ।
इन्द्र- देवराज, सुरपति, सुरेन्द्र ।
नारी – औरत, महिला, वनिता ।
धनुष–धनु, चाप, शरासन ।
प्रश्न 6. उदाहरण के अनुसार ‘नहीं’, ‘मत’ और ‘न’ का प्रयोग करते हुए निषेधवाचक वाक्य (दो-दो) लिखिए – (क) ‘नहीं का प्रयोग –
उदाहरण— मेरी समझ में कुछ नहीं आया।
उत्तर – (i) वहाँ कुछ नहीं है ।
(ii) तुम कभी नहीं सुधरोगे ।
(ख) ‘मत’ का प्रयोग –
उदाहरण– कक्षा में शोर मत करो।
उत्तर – (i) वहाँ मत जाओ ।
(ii) अधिक ठण्डा पानी मत पिओ ।
(ग) ‘न’ का प्रयोग –
उदाहरण—आप इधर न बैठें ।
उत्तर (i) आप दीवारों पर न थूकें ।
(ii) आप अपनी गलती को न छिपाएँ ।
प्रश्न 7. अर्थ के आधार पर निम्नलिखित वाक्यों के भेद उनके सामने लिखिए –
उत्तर –
(क) अरे ! रात भूकम्प आया था । -विस्मयवाचक
(ख) कल कौन आ रहा है ? – प्रश्नवाचक
(ग) आपकी यात्रा शुभ हो । – इच्छावाचक
(घ) वह पुस्तक पढ़ो । – आज्ञावाचक
(ङ) शायद आज वर्षा हो । – सन्देहवाचक
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
रिक्त स्थान पूर्ति
1. विनयपत्रिका ………….. की रचना है।
2. संस्कृति की प्रवृत्ति ……….. देने वाली होती है ।
3. मीरा ने ……………. रूपी धन पा लिया है ।
4. मेरी जीवन रेखा ………… निबन्ध है ।
5. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ………….. पत्रिका का सम्पादन किया था ।
6. जिसका चरण निरन्तर………… धो रहा है।
7. पीड़ा को दुलारने वाला………….. है।
8. दुष्यन्त कुमार की प्रसिद्ध रचना ……….. है।
9. फागुन के दिन में ………… उड़ाते हैं।
10. योगी अरविन्द की पत्नी का नाम ……….. था।
11. गीता में कुल ……………. श्लोक हैं ।
उत्तर – 1. तुलसीदास, 2. महाफल, 3. रामरतन, 4. आत्मकथात्मक, 5. सरस्वती, 6. रत्नेश, 7 घनश्याम, 8. गजल, 9. रंग-गुलाल, 10. मृणालिनी, 11. सात सौ ।
बहु-विकल्पीय प्रश्न
1. मीराबाई की रचना है –
(अ) सबद
(ब) रमैनी
(स) गीत गोविन्द की टीका
(द) नीति के दोहे ।
2. तुलसीदास के गुरु का नाम था –
(अ) शिवानन्द दास
(ब) नरहरिदास
(स) कृष्ण दास
(द) गोपाल दास ।
3. पूर्व और नूतन का मेल होता है, वही –
(अ) अग्नि की उपासना है,
(ब) बाबा वाक्यं प्रमाण है,
(स) ऋग्वेद का आधार है,
(द) संस्कृति की उपजाऊ भूमि है।
4. दादा कर्मचन्द का पोता परेश उसी कस्बे में नियुक्त हो गया था –
(अ) शिक्षक,
(ब) हवलदार,
(स) नायब तहसीलदार,
(द) जमादार |
5. कवि रामनरेश त्रिपाठी ने देश का मुकुट कहा है –
(अ) हिमालय को,
(ब) धूपगढ़ को,
(स) कश्मीर को,
(द) कन्याकुमारी को ।
6. ‘अशोक का हृदय परिवर्तन’ किस प्रकार का उपन्यास है ?
(अ) राजनीतिक,
(ब) ऐतिहासिक,
(स) सामाजिक
(द) मनोवैज्ञानिक ।
7. मनुष्यों के चरित्र निश्चित किये जाते हैं—
(अ) देवताओं द्वारा,
(ब) राजाओं द्वारा,
(स) सन्तों द्वारा,
(द) स्वयं मनुष्यों द्वारा ।
8. ‘तुम वही दीपक बनोगे’ नामक कविता समर्पित है—
(अ) बच्चों को
(ब) नेताओं को
(स) युवा पीढ़ी को
(द) बुजुर्गों को ।
9. ‘सूखी डाली’ एक है –
(अ) एकांकी
(ब) कहानी
(स) नाटक
(द) आत्मकथा ।
10. श्रीनगर का सबसे ऊंचा स्थान है –
(अ) श्रीनगर पहाड़ी
(ब) जम्मू पहाड़ी
(स) शंकराचार्य पहाड़ी
(द) इनमें से कोई नहीं ।
11. मीराबाई के आराध्य हैं –
(अ) श्रीकृष्ण
(ब) राम
(स) गणेश
(द) शिव ।
उत्तर – 1. (स), 2. (ब), 3. (द), 4. (स), 5. (अ), 6. (ब), 7. (द), 8. (स), 9. (अ) 10. (स), 11. ( अ ) ।
सत्य/असत्य
1. तुलसीदास रामजी के चरणों में बसना चाहते हैं।
2. हमारे जीवन का ढंग हमारी संस्कृति है।
3. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ‘हंस’ पत्रिका का सम्पादन किया।
4. ‘कर्मवीर’ कविता में ओज गुण है ?
5. ‘बरखा गीत’ कविता में षड्ऋतु वर्णन मिलता है। 6. गोपाल मगध का सेनापति था ।
7. कवि ने भारत को संसार का शिरोमणि कहा है ?
8. हँसने से जल्दी थकान हो जाती है।
9. खिलखिलाहटों की खनकती गूँज इन दिनों दिखाई देती है।
10. ‘शबरी’ कविता पौराणिक प्रसंग पर आधारित है।
11. योगी अरविन्द नर्मदा किनारे स्वामी ब्रह्मानन्द के दर्शन करने गये।
उत्तर – 1. सत्य, 2. सत्य, 3. असत्य, 4. सत्य, 5. असत्य, 6. सत्य, 7. सत्य, 8. असत्य, 9. असत्य, 10. सत्य, 11. सत्य ।
जोड़ी बनाइए
(अ)
1. विनय के पद (क) महावीर प्रसाद द्विवेदी
2. मेरी जीवन रेखा (ख) श्रीकृष्ण
3. मीरा के आराध्य (ग) तुलसीदास
4. जंगल में महामंगल (घ) उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’
5. सूखी डाली (ङ) कर्मवीर
6. हमारा देश। (च) सुख स्वर्ग सा ।
उत्तर – 1. →(ग), 2. →(क), 3. →(ख), –
4.→ (ङ), 5. →(घ), 6.→(च) ।
(ब)
1. कलिंग की रानी (क) आदमी की पीर
2. दुष्यन्त कुमार। (ख) अमिता
3. खण्डहर के हृदय सी। (ग) गजल
4. वायुमण्डल है विषैला (घ) कश्मीर
5. पृथ्वी का स्वर्ग (ङ) सरदार पूर्णसिंह
6. मजदूरी और प्रेम। (च) तुम वही दीपक बनोगे।
उत्तर—1. → (ख), 2. → (ग), 3. →(क), 4.→(च), 5.→(घ), 6.→ (ङ) ।
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
1. तुलसी के आराध्य देव कौन हैं ?
2. धर्म, दर्शन, साहित्य, कला किसके अंग हैं ?
3. ‘सम्पत्ति शास्त्र’ पुस्तक के लेखक का नाम बताइए। 4. ‘सूखी डाली’ एकांकी में दादा का नाम क्या है ?
5. सम्राट अशोक के सेनापति का नाम क्या था ?
6. स्वभाव से साधु कौन होते हैं ?
7. ‘शबरी’ के रचयिता कौन हैं ?
8. ‘समय नहीं मिलता’ पाठ के लेखक कौन हैं ?
9. सच्चा आनन्द किसमें छिपा होता है ।
10. ‘सच्ची वीरता’ निबन्ध के लेखक कौन हैं ?
11. कोचीन किस प्रदेश में है ?
उत्तर – 1. श्रीराम, 2. संस्कृति के, 3. महावीर प्रसाद द्विवेदी, 4. मूलराज, 5. गोपाल, 6. किसान, गड़रिये, 7. डॉ. प्रेम भारती, 8. श्रीमन्नारायण अग्रवाल, 9. कर्म में, 10. सरदार पूर्ण सिंह, 11. केरल ।