MP 9th Sanskrit

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 1 भारतीवसंतगीति:

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 1 भारतीवसंतगीति:

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 1 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

पद्यांशों के हिन्दी में अनुवाद

पाठ परिचय- अयं पाठः आधुनिकसंस्कृतकवेः पण्डितजानकीवल्लभशास्त्रिण: “काकली” इति गीतसंग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति । प्रकृतेः सौन्दर्यम् अवलोक्य एव सरस्वत्यः वीणायाः मधुरझङ्कृतयः प्रभवितुं शक्यन्ते इति भावनापुरस्सरं कविः प्रकृतेः सौन्दर्यं वर्णयन् सरस्वतीं वीणावादनाय सम्प्रार्थयते ।
अनुवाद – यह पाठ आधुनिक संस्कृत कवि पण्डित जानकी वल्लभ शास्त्री के ‘काकली’ गीत संग्रह से संकलित है। प्रकृति के सौन्दर्य को देखकर ही सरस्वती की वीणा की मधुर झंकार उत्पन्न हो सकती हैं, इस भावना को सामने रखकर कवि प्रकृति के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए सरस्वती को वीणा बजाने के लिए प्रार्थना करता है।
पद्यांश – 1.
निनादय नवीनामये वाणि! वीणाम् मृदुं गाय गीतिं ललित-नीति- लीनाम् । मधुर-मञ्जरी- पिञ्जरी – भूत – मालाः वसन्ते लसन्तीह सरसा रसाला: कलापा: ललित-कोकिला-काकलीनाम् ॥ 1 ॥
अनुवाद – हे देवी सरस्वती ! नवीन वीणा बजाओ, सुन्दर नीतियों से परिपूर्ण गीत का मधुर गान करो। इस बसन्त ऋतु में मधुर मंजरियों से पीली हो गयी सरस आम के वृक्षों की माला सुशोभित हो रही है। मनोहर कूक वाली कोकिलों के समूह सुन्दर लग रहे हैं। हे देवी सरस्वती ! नवीन वीणा बजाओ।
पद्यांश – 2.
वहति मन्दमन्दं सनीरे समीरे कलिन्दात्मजायास्सवानीरतीरे,
नतां पङ्किमालोक्य मधुमाधवीनाम् ॥ 2 ॥
अनुवाद – हे देवी सरस्वती ! यमुना के वेतस लताओं से घिरे तट पर जल बिन्दुओं से पूर्ण वायु के मन्द-मन्द बहने पर फूलों से झुकी हुई मधुमाधवी लता को देखकर नवीन वीणा बजाओ।
पद्यांश- 3.
पुष्पपुञ्जे मञ्जुकुञ्जे,
ललित-पल्लवे मलयमारुतोच्चुम्बिते पादपे
स्वनन्तीन्ततिम्प्रेक्ष्य मलिनामलीनाम् ॥ 3 ॥
अनुवाद – हे देवी सरस्वती! मलय पवन से स्पर्शित ललित पल्लवों वाले वृक्षों, पुष्पपुञ्जों तथा सुन्दर कुञ्जों पर काले भौरों की गुञ्जार करती हुई पंक्ति को देखकर नवीन वीणा बजाओ।
पद्यांश – 4.
लतानां नितान्तं सुमं शान्तिशीलम् चलेदुच्छलेत्कान्तसलिलं सलीलम्, तवाकर्ण्य वीणामदीनां नदीनाम् ॥ 4 ॥
अनुवाद – हे देवी सरस्वती ! तुम्हारी ओजपूर्ण वीणा को सुनकर लताओं के नितान्त शान्त सुमन हिल उठें, नदियों का मनोहर जल क्रीड़ा करता हुआ उछल पड़े। हे देवी सरस्वती! नवीन वीणा बजाओ।
अभ्यासस्य प्रश्नोत्तराणि
प्रश्न 1. एक पदेन उत्तरं लिखत- (एक पद/शब्द में उत्तर दो ) –
(क) कविः कां सम्बोधयति ?
( कवि किसे सम्बोधित करता है?)
(ख) कविः वाणीं कां वादयितुं प्रार्थयति?
( कवि सरस्वती को किसे बजाने को कहता है ? )
(ग) कीदृशीं वीणां निनादयितुं प्रार्थयति?
(कैसी वीणा बजाने को कहता है ? )
(घ) गीतिं कथं गातुं कथयति?
(गीति को कैसे गाने को कहता है?)
(ङ) सरसा: रसालाः कदा लसन्ति ?
(सरस रसाल कब पकते हैं?)
उत्तर- (क) वाणि, (ख) वीणां, (ग) नवीनां, (घ) ललितनीतिलीनां, (ङ) वसन्ते ।
प्रश्न 2. पूर्ण वाक्येन उत्तरं लिखत- (पूर्ण वाक्य में उत्तर लिखो ) –
(क) कवि: वाणीं किं कथयति ?
( कवि सरस्वती को क्या कहता है ? )
(ख) वसन्ते किं भवति?
(वसन्त में क्या होता है ? )
(ग) सलिलं तव वीणामाकर्ण्य कथम् उच्चलेत्?
( तुम्हारी सुंदर वाणी को सुनकर जल कैसे उछलता है? )
(घ) कविः भगवतीं भारती कस्याः तीरे मधुमाधवीनां नतां पङ्क्तिम अवलोक्य वीणां वादयितुं कथयति ?
( कवि सरस्वती को किसके किनारे वीणा बजाने को कहता है?)
उत्तर- (क) कविः वाणी नवीनां वीणां निनादितुं कथयति ।
(कवि सरस्वती को नवीन वीणा बजाने के लिए कहता है । )
(ख) वसन्ते मधुर मञ्जरी पिञ्जरी भूत माला: सरसा: रसाला: लसन्ति ।
(वसन्त में आम की मञ्जरी पर पके फल शोभा दे रहे हैं।
(ग) सलिलं तव वीणां आर्कण्य चलेत् उच्छलेत्।
( तुम्हारी सुन्दर वीणा को सुनकर जल गति करता हुआ उछलता है।)
(घ) कवि: भगवतीं भारती कालिन्दी तीरे मधु माधवीनां नतां पङ्क्तिम अवलोक्य वीणां वादमितुं कथयति ।
(कवि सरस्वती को यमुना के किनारे माधवी की झुकी हुई पंक्ति को देखकर वीणा बजाने के लिए कहता है।
प्रश्न 3. ‘क’ स्तम्भे पदानि ‘ख’ स्तम्भे तेषां पर्यायपदानि दत्तानि । तानि चित्वा पदानां समक्षे लिखत
(‘क; स्तम्भ में पद, (ख ) स्तम्भ में उनके पर्यायवाची दिए हैं। उन्हें चुनकर पद के सामने लिखो ) –
( क ) स्तम्भ।                 (ख) स्तम्भ
(क) सरस्वती।               (1) तीरे
(ख) आम्रम्।                 (2) अलीनाम्
(ग) पवन:।                   (3) समीर:
(घ) तटे।                      (4) वाणी
(ङ) भ्रमराणाम्             (5) रसाल:
उत्तर- (क) – (4), (ख) – (5), (ग)–(3), (घ) (1), (ङ)−(2)।
प्रश्न 4. अधोलिखितानि पदानि प्रयुज्य संस्कृत भाषया वाक्य रचनां कुरुत- (निम्नलिखित पदों का प्रयोग कर संस्कृत भाषा में वाक्य बनाओ )
उत्तर –
(क) निनादय।              – वीणां निनादय ।
(ख) मन्दमन्दम्            – मन्दमन्दम् समीरं वहति ।
(ग) मारुत:                  – मलयात् मारुतः प्रचलति ।
(घ) सलिलम्               – नर्मदायाः सलिलम् निर्मलं पेयं च वर्तते ।
(ङ) सुमनः                  – सुमनः सुरभि प्रसारयति।
प्रश्न 5. प्रथम श्लोकस्य आशयं हिन्दीभाषया लिखत
( प्रथम श्लोक का आशय हिन्दी भाषा में लिखो )
उत्तर- प्रथम श्लोक का हिन्दी में आशय –
“हे सरस्वती! नवीन वीणा बजाओ । सुन्दर नीतियों से युक्त मधुर गीत गाओ। “
प्रश्न 6. अधोलिखित पदानां विलोमपदानि लिखत(अधोलिखित पदों के विलोमार्थी पद लिखो ) –
(क) कठोरम् -………….
(ख) कटु -………….
(ग) शीघ्रम् -………….
(घ) प्राचीनम् -………….
(ङ) नीरस: -………….
उत्तर-
दत्तपदानि।             विलोम पदानि
(क) कठोरम्।       – कोमलम्
(ख) कटु।            – मिष्ठ:
(ग) शीघ्रम्           – मन्दम्
(घ) प्राचीनम्       – अर्वाचीनम्
(ङ) नीरस:         – सरस:
योग्यताविस्तार:
अन्वय और हिंदी भावार्थ
अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय। ललितनीतिलीनां गीतिं मृदुं गाय |
हे वाणी! नवीन वीणा को बजाओ, सुंदर नीतिओं से परिपूर्ण गीत का मधुर गान करो।
इह वसन्ते मधुरमञ्जरीपिञ्जरीभूतमाला: सरसा: रसाला: लसन्ति । ललित-कोकिलाकाकलीनां कलापाः ( विलसन्ति ) | अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।
इस वसंत में मधुर मञ्जरियों से पीली हो गई सरस आम के वृक्षों की माला सुशोभित हो रही है। मनोहर काकली (बोली, कूक) वाली कोकिलों के समूह सुंदर लग रहे हैं। हे वाणी! नवीन वीणा को बजाओ।
कलिन्दात्मजायाः सवानीरतीरे सनीरे समीरे मन्दमन्दं वहति (सति ) माधुमाधवीनां नतां पंक्तिम् अवलोक्य अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।
यमुना के वेतस लताओं से घिरे तट पर जल बिंदुओं से पूरित वायु के मंद-मंद बहने पर फूलों से झुकी हुई मधुमाधवी लता को देखकर, हे वाणी ! नवीन वीणा को बजाओ।
ललितपल्लवे पादपे पुष्पपुञ्जे मञ्जुकुञ्जे मलयमारुतोच्चुम्बिते स्वनन्तीम् अलीनां मलिनां ततिं प्रेक्ष्य अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।
मलयपवन से स्पष्ट ललित पल्लवों वाले वृक्षों, पुष्पपुंजों तथा सुंदर कुंजों पर काले भौंरों की गुंजार करती हुई पंक्ति को देखकर, हे वाणी नवीन वीणा को बजाओ ।
तव अदीनां वीणाम् आकर्ण्य लतानां नितान्तं शान्तिशीलं सुमं चलेत् नदीनां कान्तसलिलं सलीलम् उच्छलेत् । अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय ।
तुम्हारी ओजस्विनी वीणा को सुनकर लताओं के नितांत शांत सुमन हिल उठे, नदियों का मनोहर जल क्रीड़ा करता हुआ उछल पड़े। हे वाणी! नवीन वीणा को बजाओ।
प्रस्तुत गीत के समानांतर गीत –
वीणावादिनि वर दे।
प्रिय स्वतन्त्र रव अमृत मन्त्र नव,
भारत में भर दे।
वीणावादिनि वर दे।
हिंदी के प्रसिद्ध कवि पं. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के गीत की कुछ पंक्तियाँ यहाँ दी गई हैं, जिनमें सरस्वती से भारत के उत्कर्ष के लिए प्रार्थना की गई है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरणगुप्त की रचना ‘भारतवर्ष में गूँजे हमारा भारती’ भी ऐसे ही भावों से ओतप्रोत है।
पं० जानकी वल्लभ शास्त्री
. पं० जानकी वल्लभ शास्त्री हिंदी के छायावादी युग के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। ये संस्कृत के रचनाकार एवं उत्कृष्ट अध्येता रहे। बाल्यकाल में ही शास्त्री जी की काव्य रचना में प्रवृत्ति बन गई थी। अपनी किशोरावस्था में ही इन्हें संस्कृत कवि के रूप में मान्यता प्राप्त हो चुकी थी। उन्नीस वर्ष की उम्र में इनकी संस्कृत कविताओं का संग्रह ‘काकली’ का प्रकाशन हुआ।
शास्त्री जी ने संस्कृत साहित्य में आधुनिक विधा की रचनाओं का प्रारंभ किया। इनके द्वारा गीत, गजल, श्लोक आदि विधाओं में लिखी गई संस्कृत कविताएँ बहुत लोकप्रिय हुईं। इनकी संस्कृत कविताओं में संगीतात्मकता और लय की विशेषता ने लोगों पर अप्रतिम प्रभाव डाला।

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