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MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 6 भ्रांतो बाल:

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 6 भ्रांतो बाल:

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 1 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

गद्यांशों के हिन्दी में अनुवाद

पाठ परिचय – प्रस्तुतोऽयं पाठ: “संस्कृत-प्रौढपाठावलिः ” इति कथाग्रन्थात् सम्पादनं कृत्वा सङ्गृहीतोऽस्ति । अस्यां कथायाम् एक: तादृशः बालः चित्रितोऽस्ति, यस्य रुचिः स्वाध्यायापेक्षया क्रीडने अधिका भवति । सः सर्वदा क्रीडनार्थमेव अभिलषति परञ्च तस्य सखायः स्वस्व – कर्मणि संलग्नाः भवन्ति । अस्मात् कारणात् ते अनेन सह न क्रीडन्ति । अतः एकाकी सः नैराश्यं प्राप्य विचिन्तयति यत् स एव रिक्तः सन् इतस्तत: भ्रमति। कालान्तरे बोधो भवति यत् सर्वेऽपि स्व-स्वकार्यं कुर्वन्तः सन्ति अतो मयापि तदेव कर्त्तव्यं येन मम कालः सार्थकः स्यात् ।
अनुवाद- यह पाठ ‘संस्कृत- प्रौढ़पाठावलिः” कहानीसंग्रह से सम्पादित करके संग्रहीत किया गया है। इस कहानी में एक ऐसे बालक का चित्रण किया गया है जिसकी रुचि स्वाध्याय की अपेक्षा खेलने में अधिक होती है। वह हमेशा खेलने की इच्छा करता है, परन्तु उसके मित्र अपने कार्य में लगे रहते है। इसलिए वे इसके साथ नहीं खेलते हैं। इसलिए वह अकेला रहकर निराश होकर सोचता है कि वहीं अकेला है और इधर- उधर भटकता रहता है। समय बीतने पर उसे बोध होता है कि सभी अपने-अपने कार्य करते रहते हैं, इसलिए मुझे भी वही कार्य करना चाहिए, जिससे मेरा समय सार्थक हो सके।
गद्यांश 1. भ्रान्तः कश्चन बाल: पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुम् अगच्छत् । किन्तु तेन सह केलिभिः कालं क्षेप्तुं तदा कोऽपि न वयस्येषु उपलभ्यमान आसीत्। यतः ते सर्वेऽपि पूर्वदिनपाठान् स्मृत्वा विद्यालयगमनाय त्वरमाणाः अभवन् । तन्द्रालुः बाल: लज्जया तेषां दृष्टिपथमपि परिहरन् एकाकी किमपि उद्यानं प्राविशत् ।
अनुवाद – कोई भ्रमित बालक पाठशाला जाने की बेला में खेलने के लिए चला गया। किन्तु उसके साथ खेलने के लिए समय बिताने के लिए मित्रों में से कोई भी उपलब्ध नहीं था। क्योंकि वे सभी पहले दिन के पाठ याद करके विद्यालय जाने की जल्दी में थे। आलसी बालक उनकी निगाह से बचकर अकेला किसी उद्यान में प्रविष्ट हुआ।
गद्यांश 2. सः अचिन्तयत्- “विरमन्तु एते वक्त: पुस्तकदासाः। अहं तु आत्मानं विनोदयिष्यामि। सम्प्रति विद्यालयं गत्वा भूयः क्रुद्रस्य उपाध्यायस्य मुखं द्रष्टुं नैव इच्छामि। एते निष्कुटवासिनः प्राणिन एव मम वयस्याः सन्तु इति ।
अनुवाद – वह सोचने लगा- “इन गरीब पुस्तकों के दासों को छोड़ो। मैं तो अपने में मस्त रहूँगा। अब विद्यालय जाकर पुन: क्रोधित शिक्षक का मुँह देखना भी नहीं चाहता। ये पेड़ों की कोटर में रहने वाले प्राणी ही मेरे साथी बनें।”
गद्यांश 3. अथ सः पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरं दृष्ट्वा तं क्रीडितुम् द्वित्रिवारं आह्वयत् । तथापि, सः मधुकरः अस्य बालस्य आह्वानं तिरस्कृतवान्। ततो भूयो भूयः हठमाचरति बाले सः मधुकर: अगायत्- “वयं हि मधुसंग्रहव्यग्रा” इति।
तदा स बाल: ‘अलं भाषणेन अनेन मिथ्यागर्वितेन कीटेन’ इति विचिन्त्य अन्यत्र दत्तदृष्टिः चञ्च्वा तृणशलाकादिकम् आददानम् एकं चटकम् अपश्यत् अवदत् च- “अयि चटकपोत! मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि । हि क्रीडावः । एतत् शुष्कं तृणं त्यज स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि” इति। स तु “मया वटदुमस्य शाखायां नीडं कार्यम्” इत्युक्त्वा स्वकर्मव्यग्रोः अभवत् ।
अनुवाद – वह फूलों के बगीचे में घूमते-फिरते हुए भँवरे को देखकर उसे खेलने के लिए दो-तीन बार बुलाता। फिर भी वह भंवरा इस बालक के बुलावे को अस्वीकार कर देता था। तब बालक के बार-बार जिद करने पर वह भँवरा गाने लगता- “हम शहद एकत्र करने में व्यस्त है।”
तत्पश्चात् उस बालक ने “इस मिथ्या घमण्डी कीट पतंगे से बात नहीं करना” यह सोचकर अन्यत्र चोंच से एक चिड़े को तिनका अपने मुँह में दबाए हुए देखा और उससे बोला”हे चिंडे! तुम मुझ मनुष्य के मित्र बनोगे। आओ दोनों खेलें। इस सूखे तिनके को छोड़ों। मैं तुम्हें स्वादिष्ट खाने योग्य कौर दूँगा।” लेकिन वह मुझे बड़ के पेड़ की शाखा में घोसला बनाना है। ऐसा कहकर अपने कार्य में लग गया।
गद्यांश 4. तदा खिन्नो बालकः एते पक्षिणो मानुषेषु नोपगच्छन्ति। तद् अन्वेषयामि अपरं मानुषोचितम् विनोदयितारम् इति विचिन्त्य पलायमानं कमपि श्वानम् अवलोकयत्। प्रीतो बालः तम् इत्थं समबोधयत्- रे मानुषाणां मित्र ! किं पर्यटसि अस्मिन् निदाघदिवसे? इदं प्रच्छायशीतलं तरुमूलम् आश्रयस्व । अहमपि क्रीडासहायं त्वामेवानुरूपं पश्यामीति । कुक्कुरः प्रत्यवदत् –
यो मां पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य । रक्षानियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यमीषदपि ॥इति ॥
अनुवाद- तब निराश बालक “ये पक्षी मनुष्यों के पास नहीं जाते हैं, तो मनुष्य के लिए उचित विनोद करने वाले अन्य को खोजता हूँ” ऐसा सोचकर भागते हुए किसी कुत्ते को देखा। प्रेमी बालक ने उसे इस प्रकार सम्बोधित किया”हे मनुष्यों के मित्र! इस गर्मी में कहाँ भटक रहे हो? इस शीतल छायादायी पेड़ के नीचे आश्रय ग्रहण करो। मैं भी खेलने में सहायक के रूप में तुम्हें ही उपयुक्त देखता हूँ।” कुत्ते ने जवाब दिया- “जो मालिक मुझे पुत्रवत् पालता है, मुझे रक्षा के लिए नियुक्त किया गया है, उससे मुझे थोड़ा भी विचलित नहीं होना चाहिए।”
गद्यांश 5. सर्वैः एवं निषिद्धः स बालो भग्नमनोरथः सन्- ‘कथमस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकार्ये निमग्नो भवति। न कोऽपि मामिव वृथा कालक्षेपं सहते। नम एतेभ्यः यैः मे तन्द्रालुतायां कुत्सा समापादिता । अथ स्वोचितम् अहमपि करोमि इति विचार्य त्वरितं पाठशालाम् अगच्छत्। ततः प्रभृति स विद्याव्यसनी भूत्वा महतीं वैदुषीं प्रथां सम्पदं च अलभत।
अनुवाद- सभी के द्वारा मना कर दिए जाने पर वह बालक हताश होकर- “इस संसार में प्रत्येक अपने-अपने कार्यों में दत्तचित्त है। मेरे समान कोई भी व्यर्थ समय नहीं बिताता है। इन्हें नमस्कार है, जिन्होंने मुझे आलस्य से घृणा करना सिखा दिया। मैं भी जो उचित है, वह करता हूँ” – ऐसा विचार कर शीघ्र ही पाठशाला जाने लगा।
तब से वह अनुरागी बनकर महान् विद्वान् बनकर यशस्वी हुआ।
अभ्यासस्य प्रश्नोत्तराणि
प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत-
(एक पद में उत्तर लिखिए )
(क) कः तन्द्रालुः भवति?
(आलसी कौन होता है ? )
(ख) बालकः कुत्र व्रजन्तं मधुकरम् अपश्यत् ?
(बालक ने कहाँ घूमते हुए भँवरे को देखा?)
(ग) के मधुसंग्रहव्यग्राः अवभवन् ?
(कौन शहद संग्रह करने में व्यस्त थे ? )
(घ) चटक: कया तृणशलाकादिकम् आददाति?
(चिड़ा किसे घास, तिनका आदि देता है ? )
(ङ) चटकः कस्य शाखायां नीडं रचयति ?
(चिड़ा किसकी शाखा में घोंसला बनाता है?)
(च) बालकः कीदृशं श्वानं पश्यति ?
(बालक कैसे कुत्ते को देखता है?)
(छ) श्वानः कीदृशे दिवसे पर्यटसि ?
(कुत्ते कैसे दिन में घूमता है? )
उत्तर- (क) निष्कर्मः, (ख) पुष्पोयानं, (ग) मधुकरा:, (घ) चञ्चवा, (ङ) वटद्रुमस्य, (च) पलायमानं, (छ) निदाघदिवसे ।
प्रश्न 2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृत भाषया लिखत-
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए ) –
( क ) बालः कदा क्रीडितुं अगच्छत् ?
(बालक कब खेलने के लिए गया ? )
उत्तर- बाल: पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं अगच्छत् ।
(बालक पाठशाला जाने के समय खेलने के लिए गया।)
(ख) बालस्य मित्राणि किमर्थं त्वरमाणाः अभवन् ?
( बालक के मित्र किसलिए जल्दी में थे ? )
उत्तर- बालस्य मित्राणि विद्यालयगमनाय त्वरमाणाः अभवन् ।
(बालक के मित्र विद्यालय जाने के लिए जल्दी में थे । )
(ग) मधुकर: बालकस्य आह्वानं केन कारणेन तिरस्कृतवान् ?
(भँवरे ने बालक के बुलावे को किस कारण से मना कर दिया? )
उत्तर- मधुकर: बालकस्य आह्वानं मधुसंग्रह व्यग्रता कारणेन तिरस्कृतवान्।
(भँवरे ने बालक के बुलावे को शहद संग्रह में व्यस्त होने से मना कर दिया।)
(घ) बालकः कीदृशं चटकम् अपश्यत् ?
( बालक ने कैसे चिड़े को देखा?)
उत्तर- बालक: चटकं चञ्चवा तृणशलाकादिकंम् अददानम् अपश्यत्।
(बालक ने चिड़े को चोंच से तिनका दबाए हुए देखा।)
(ङ) बालकः चटकाय क्रीडनार्थं कीदृशं लोभं दत्तवान् ?
(बालक ने चिड़े को खेलने के लिए किस प्रकार का लालच दिया?)
उत्तर- बालक: चटकाय क्रीडनार्थं स्वादिष्ट भक्ष्य कवलानां लोभं दत्तवान्।
(बालक ने चिड़े को खेलने के लिए स्वादिष्ट खाने के कौर का लालच दिया।)
(च) खिन्नः बालकः श्वानं किम् अकथयत्? (निराश बालक ने कुत्ते को क्या कहा? )
उत्तर- खिन्न: बालक: श्वानं अकथयत्- “रे मानुषाणां मित्र! किं पर्यटसि अस्मिन् निदाघदिवसे?”
(निराश बालक ने कुत्ते से कहा- “हे मनुष्यों के मित्र ! इस गर्मी के दिन में क्यों भटक रहे हो?”)
(छ) भग्न मनोरथ: बाल; किम् अचिन्तयत् ?
(निराश मन बालक क्या सोचने लगा? )
उत्तर- भग्नमनोरथ: बाल: इदम् अचिन्तयत्- “कथमास्मित् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकार्ये निमग्नो भवति। न कोऽपि मामिव वृथा कालक्षेपं सहते।”
(निराश मन बालक यह सोचने लगा- “इस संसार में प्रत्येक अपने-अपने कार्य में दत्तचित्त है। मेरे समान कोई भी व्यर्थ में समय नहीं बिताता है । “)
प्रश्न 3. निम्नलिखितस्य श्लोकस्य भावार्थं हिन्दीभाषया लिखत-
(निम्नलिखित श्लोक का भावार्थ हिन्दी भाषा में लिखिए ) –
“यो मां पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य ।
रक्षा नियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यमीषदपि ॥”
उत्तर- भावार्थ- प्रस्तुत श्लोक का यही भावार्थ है कि हमें अपने मालिक या उपकार कर्त्ता के प्रति सदैव आभारी रहना चाहिए।
प्रश्न 4. “ भ्रान्तो बालः” इति कथायाः सारांश: हिन्दी भाषया आङ्गूलभाषया वा लिखत –
(‘भ्रमित बालक’ कहानी का सारांश हिन्दी भाषा या अंग्रेजी भाषा में लिखिए ) –
उत्तर- ‘भ्रमित बालक’ कहानी का सारांश –
एक भ्रमित बालक पाठशाला जाने की उम्र में पाठशाला न जाकर खेल-कूद में अपना सारा समय व्यतीत करता है। वह अपनी मौज-मस्ती में रहता है। शिक्षक का मुँह देखना भी पसन्द नहीं करता है।
वह बालक वन के प्राणियों को अपना मित्र बनाता है। एक उद्यान में प्रवेश कर एक भँवरे को अपना मित्र बनाने का प्रयास करता है। वह भँवरा उसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता है। फिर वह एक चिड़े के सम्पर्क में आकर उसे अपना साथी बनाना चाहता है। वह चिड़ा भी उसकी उपेक्षा करता है। वह अपना घोंसला बनाने में लग जाता है। अन्त में वह बालक एक कुत्ते से मिलता है। वह उसे अपना मित्र बनाना चाहता है। वह कुत्ता अपने मालिक के प्रति वफादार रहना चाहता है। वह उस बालक को मित्र बनाने से स्पष्ट मना कर देता है।
सब तरफ से उपेक्षित और निराश होकर वह भ्रमित बालक चिन्तन करता है कि इस संसार में सभी प्राणी अपनेअपने कार्य में संलग्न रहते हैं। कोई भी प्राणी अपने समय को विनष्ट नहीं करता है। उसकी सोई हुई आत्मा जाग उठती हैं। वह अविलम्ब पाठशाला की ओर रुख करता है। मन लगाकर खूब अध्ययन करता है। महान्, विद्वान् बनकर संसार में ख्याति को प्राप्त करता है।
हमें चाहिए कि समय पर अच्छा विद्याध्यन कर महान विद्वान् बनकर संसार में ख्याति अर्जित कर अपने मानव जीवन को सफल बनाएँ ।
प्रश्न 5. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(मोटे अक्षरों के आधार पर प्रश्न बनाइए ) –
(क) स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि ।
(ख) चटके: स्वकर्मणि व्यग्रः आसीत्।
(ग) कुक्कुर: मनुष्याणां मित्रम् आस्ति।
(घ) स महतीं वैदुषी लब्धवान्।
(ङ) रक्षानियोगकरणात् मया न भ्रष्टव्यम् इति।
उत्तर-
(क) कीदृशानि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि ?
(ख) चटक; कस्मिन् कर्माणि व्यग्रः आसीत् ?
(ग) कुक्कुर: केषां मित्रम् अस्ति?
(घ) सः काम् वैदुषीं लब्धवान् ?
(ङ) कस्मात् मया न भ्रष्टव्यम् इति ?
प्रश्न 6. ‘एतेभ्यः नमः’ – इति उदाहरणमनुसृत्य नमः इत्यस्य योगे चतुर्थी विभक्तेः प्रयोगं कृत्वा पञ्चवाक्यानि रचयत –
( ‘एतेभ्य: नम:’- इस उदाहरण के अनुसार ‘नम:’ के योग में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग करके पाँच वाक्य बनाइए ) –
उत्तर- (1) सरस्वत्यै नमः। (2) गुरवे नमः। (3) देवाय नमः। (4) श्रीगणेशाय नमः । (5) शिवाय नमः ।
प्रश्न 7. ( क ) स्तम्भे समस्तपदानि (ख ) स्तम्भे च तेषां विग्रहः दत्तानि, तानि यथा समक्षं लिखत-
( क ) स्तम्भ में समास युक्त पद ( ख ) स्तम्भ में उनका समास- विग्रह दिया गया है। उन्हें उचित रूप में सामने लिखिए ) –
(क)                               (ख)
(क) दृष्टिपथम्                 (1) पुष्पाणाम् उद्यानम्
(ख) पुस्तकदासा:             (2) विद्याया: व्यसनी
(ग) विद्याव्यसनी              (3) दृष्टे: पन्थाः
(घ) पुष्पोद्यानम्               (4) पुस्तकानाम् दासाः
उत्तर- (क)-(3), (ख)-(4), (ग)-(2), (घ)-(1)।
(ख) अधोलिखितेषु पदयुग्मेषु एकं विशेष्यपदम् अपरञ्च विशेषण पदम। विशेषण पदम् विशेष्यपदं च पृथक्-पृथक् चित्वा लिखत –
(निम्नलिखित पदों के जोड़ों में एक विशेष्य पद और दूसरा विशेषण पद है। विशेषण पद और विशेष्य पद को चुनकर अलग-अलग लिखिए )
पदयुग्म                      विशेषणपदम्        विशेष्यपदम्
(क) खिन्न: बाल: –            …………..             ……………
(ख) पलायमान श्वानम् –    ……………            ……………..
(ग) प्रीतः बालकः –            ………….            ……………..
(घ ) स्वादूनि भक्ष्यकवलानि – ……….             …………..
(ङ) त्वरमाणा: वयस्याः –    …………..            ……………
उत्तर- विशेषण पदम्             विशेष्य पदम्
(क) खिन्न:                           बाल:
(ख) पलायमानं                    श्वानम्
(ग) प्रीतः                             बालक:
(घ) स्वादूनि                          भक्ष्यकवलानि
(ङ) त्वरमाणा:                       वयस्याः
भाषिकविस्तार:
1. यस्य च भावेन भावलक्षणम् – जहाँ एक क्रिया के होने से दूसरी क्रिया के होने का ज्ञान हो तो पहली क्रिया के कर्ता में सप्तमी विभक्ति होती है। इसे ‘सति सप्तमी ‘ या ‘भावे सप्तमी’ भी कहते हैं।
यथा- उदिते सवितरि कमलं विकसित।
गर्जति मेधे मयूरः अनृत्यत् ।
नृत्यति शिवे नृत्यन्ति शिवगणा: ।
हठमाचरति बाले भ्रमरः अगायत् ।
उदिते नैषधे काव्ये क्व माघः क्व च भारविः ।
2. अन्यपदार्थ प्रधानो बहुव्रीहिः – जिस समास में पूर्व और उत्तर पदों से भिन्न किसी अन्य पद के अर्थ का प्राधान्य होता है, वह बहुव्रीहि समास कहलाता है।
यथा-
पीताम्बरः   –  पीतम् अम्बरं यस्य सः (विष्णुः) ।
नीलकण्ठः – नीलः कण्ठः यस्य सः (शिवः) ।
अनुचिन्तितपूर्वदिनपाठा: – अनुचिन्तिताः पूर्वदिनस्य पाठा: यैः ते ।
विघ्नितमनोरथः – विघ्नितः मनोरथः यस्य सः ।
दत्तदृष्टि: – दत्ता दृष्टि: येन सः ।

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