MP 9th Sanskrit

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम्

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम्

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 1 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

गद्यांशों के हिन्दी में अनुवाद
पाठ परिचय – प्रस्तुतोऽयं पाठः महाकविभासप्रणीतम् “पञ्चरात्रम्” इति नाटकात् सम्पाद्य सङ्गृहीतोऽस्ति । अत्र नाटकांशे दुर्योधनादिना राज्ञः विराटस्य गाव: अपहृताः, तेषाम् उन्मोचनार्थम् विराटपुत्र: उत्तरः अस्य सारथिरूपेण बृहन्नलावेषधारी अर्जुनश्च उभावपि गतवन्तौ । तत्पक्षतः भीष्मादिना सह अर्जुनपुत्रः अभिमन्युरपि युद्धं कृतवान्, युद्धे कौरवाणां पराजयः अभवत् । अस्मिन्नेव क्षणे राजभवने सूचना सम्प्राप्ता यद् वल्लभ इति वेषधारिणा भीमेन रणभूमौ अभिमन्युः आबद्धः । गृहीतः अभिमन्युः अर्जुनभीमौ न प्रत्यभिजानाति, तेन स उभाभ्यां सह सरोषं वार्तालापं करोति । ततः उभौ अभिमन्युं राजसभायां नयतः, तत्र उपस्थितः राजकुमार: उत्तर: उभयोः रहस्यं बोधयति अनेन छद्मवेषधारिणां पाण्डवानाम् अभिज्ञानं भवति ।
अनुवाद – यह पाठ महाकवि भास द्वारा लिखित ‘पञ्चरात्रम्’ नाटक से सम्पादित करके लिया गया है। इस नाटक के अंश में दुर्योधन आदि ने राजा विराट की गायों को अपहरण कर लिया। उन्हें छुड़ाने के लिए विराट पुत्र उत्तर, इसके सारथी के रूप में बृहन्नला (छद्मवेषी अर्जुन) दोनों गए। उनकी ओर से भीष्म आदि के साथ अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने भी युद्ध किया। युद्ध में कौरवों की पराजय हुई। इसी समय राजभवन में सूचना प्राप्त हुई कि वल्लभ वेषधारी भीम ने युद्ध भूमि में अभिमन्यु को बन्दी बना लिया है। बन्दी अभिमन्यु अर्जुन और भीम को नहीं पहचान पाया। वह उनके साथ आवेश में आकर बातचीत करता है। तब दोनों अभिमन्यु को राज सभा में ले गये। वहाँ उपस्थित राजकुमार उत्तर दोनों के रहस्य को जान जाता है। इससे गुप्त वेष धारी पाण्डवों को पहचान लिया जाता है।
गद्यांश 1. भटः – जयतु महाराजः।
राजा – अपूर्व इव ते हर्षो ब्रूहि केनासि विस्मितः ?
भट:  – अश्रद्धेयं प्रियं प्राप्तं सौभद्रो ग्रहणं गतः ॥
राजा – कथमिदानीं गृहीत: ?
भटः – रथमासाद्य निश्शङ्कं बाहुभ्यामव- तारितः |
राजा – केन?
भटः – यः किल एष नरेन्द्रेण विनियुक्तो महानसे।
( अभिमन्युमुद्दिश्य ) इत इतः कुमारः।
अनुवाद – भट महाराज की जय हो ।
राजा – तुम्हारी खुशी अपूर्व के समान है, बोलों किससे विस्मित (चकित) हो ?
भट – अश्रद्धेय प्रिय अभिमन्यु पकड़ा गया।
राजा – अब कैसे पकड़ा गया?
भट – रथ को पाकर बिना शंका के बाहुओं से उतारा गया।
राजा – किसके द्वारा ?
भट – यह राजा के द्वारा उतारा गया।
(अभिमन्यु को लक्ष्य कर) इधर से, इधर से कुमार ।
गद्यांश 2. अभिमन्युः – भोः को नु खल्वेष : ? येन भुजैकनियन्त्रितो बलाधिकेनापि न पीडितः अस्मि ।
बृहन्नला – इत इतः कुमारः। –
अभिमन्युः – अय ! अयमपरः कः विभात्युमावेषमिवाश्रितो हरः ।
बृहन्नला – आर्य अभिभाषणकौतूहलं मे महत्। वाचालयत्वेनमार्यः ।
वल्लभः – (अपवार्य) बाढम् (प्रकाशम्) अभिमन्यो !
अभिमन्युः – अभिमन्युर्नाम? –
वल्लभः – रुष्यत्येष मया, त्वमेवैनमभि-भाषय।
बृहन्नला – अभिमन्यो !
अभिमन्युः – कथं कथम् । अभिमन्युर्नामाहम्। भोः ! किमत्र विराटनगरे क्षत्रियवंशोद्भूताः नीचैः अपि नामभिः अभिभाष्यन्ते अथवा अहं शत्रुवशं • गतः । अतएव तिरस्क्रियते ।
अनुवाद – अभिमन्यु – अरे! यह कौन है? जिसके द्वारा बल की अधिकता होने पर भी, एक हाथ से नियंत्रित व पीड़ित नहीं हुआ है?
बृहन्नला – इधर से कुमार इधर से।
अभिमन्युः – अरे! यह दूसरा (कौन) है, उमा के वेष में आश्रित शिव के समान सुशोभित है।
बृहन्नला – आर्य, विद्वतापूर्ण भाषण में मेरी बहुत उत्कण्ठा है। यह आर्य बहुत बोलता है।
वल्लभ – (हटाकर) ठीक है (प्रकट होकर) अभिमन्यु !
अभिमन्यु – अभिमन्यु नाम?
वल्लभ – मेरे द्वारा यह क्रोधित होता है, तुम ही इसको बोलने को प्रेरित करो।
बृहन्नला – अभिमन्यु !
अभिमन्यु – कैसे, कैसे! अभिमन्यु नाम वाला मैं । हे ! क्या यहाँ विराटनगर में क्षत्रियकुल में उत्पन्न (लोग) नीचों के द्वारा भी नामों से बोले जाते हैं या मैं शत्रु के वश में पड़ा हुआ (हूँ), इसलिए तिरस्कृत किया जाता हूँ।
गद्यांश 3. बृहन्नला – अभिमन्यो ! सुखमास्ते ते जननी ? अभिमन्युः कथं कथम्? जननी नाम ? किं भवान् मे पिता अथवा पितृव्यः ? कथं मां पितृवदाक्रम्य स्त्रीगतां कथां पृच्छति ?
बृहन्नला – अभिमन्यो ! अपि कुशली देवकीपुत्रः केशव:?
अभिमन्युः – कथं कथम्? तत्रभवन्तमपि नाम्ना । अथ किम् अथ किम् ?
(बृहन्नलावल्लभौ परस्परमवलोकयत: )
अभिमन्युः – कथमिदानीं सावज्ञमिव मां हस्यते?
बृहन्नला – न खलु किञ्चित् |
पार्थं पितरमुद्दिश्य मातुलं च जनार्दनम्।
तरुणस्य कृतास्त्रस्य युक्तो युद्धपराजयः॥
अभिमन्युः – अलं स्वच्छन्दप्रलापेन ! अस्माकं कुले आत्मस्तवं कर्तुमनुचितम् । रणभूमौ हतेषु शरान् पश्य, मदृते अन्यत् नाम न भविष्यति ।
बृहन्नला – एवं वाक्यशौण्डीर्यम् । किमर्थं तेन पदातिना गृहीत: ?
अभिमन्युः – अशस्त्रं मामभिगतः। पितरम् अर्जुनं स्मरन् अहं कथं हन्याम्। अशस्त्रेषु मादृशाः न प्रहरन्ति । अतः अशस्त्रोऽयं मां वञ्चयित्वा गृहीतवान् ।
राजा – त्वर्यतां त्वर्यतामभिमन्यु !
अनुवाद बृहन्नला अभिमन्यु ! तुम्हारी माता सुख से हैं? –
अभिमन्यु – क्यों- क्यों? माता (का) नाम? क्या आप (मेरे) पिता अथवा चाचा (हैं) ? मुझसे क्यूँ पिता के समान स्त्रियों की कथा पूछते हो?
बृहन्नला – अभिमन्यु ! क्या देवकी पुत्र केशव कुशल हैं?
अभिमन्यु – कैसे-कैसे? आदरणीय उनको भी नाम से ! फिर क्या, फिर क्या ?
( दोनों परस्पर देखते हैं।)
अभिमन्यु – अब क्यूँ उपेक्षा करते हुए मुझ पर हँसा जाता है ?
बृहन्नला – निश्चय ही कुछ नहीं।
पार्थ पिता और जनार्दन मामा को उद्दिष्ट करके अस्त्र विद्या से सम्पन्न तरुण का युद्ध में पराजय उचित (है) ।
अभिमन्यु – स्वच्छन्द प्रलाप मत करो। हमारे कुल में अहंकार करना अनुचित है। रणभूमि में घायलों में/मरे हुओं में बाणों को देखो, मेरे सिवा अन्य कोई नहीं होगा।
बृहन्नला – इस प्रकार वाणी की वीरता। किसलिए उस पदाति से पकड़े गए ?
अभिमन्यु – शस्त्रहीन मुझको पकड़ा गया। पिता अर्जुन को याद करता हुआ मैं कैसे मारा जाऊँ। शस्त्रहीनों पर मेरे जैसे प्रहार नहीं करते हैं। अतः शस्त्रहीन इसने मुझको धोखे से पकड़ा।
राजा – जल्दी करो, जल्दी करो अभिमन्यु !
गद्यांश 4. बृहन्नला – इत इत: कुमारः । एष महाराजः । उपसर्पतु कुमारः।
अभिमन्युः आः । कस्य महाराज: ?
राजा – एह्योहि पुत्र ! कथं न मामभिवादयसि ? (आत्मगतम्) अहो ! उत्सिक्तः खल्वय क्षत्रियकुमारः। अहमस्य दर्पप्रशमनं करोमि। (प्रकाशम् ) अथ केनायं गृहीतः ?
भीमसेन – महाराज! मया ।
अभिमन्युः – अशस्त्रेणेत्यभिधीयताम्
भीमसेनः – शान्तं पापम् । धनुस्तु दुर्बलैः एव गृह्यते । मम तु भुजौ एव प्रहरणम्।
अभिमन्युः – मा तावद् भो ! किं भवान् मध्यमः तातः यः तस्य सदृशं वचः वदति।
भगवान् – पुत्र! कोऽयं मध्यमो नाम ?
अभिमन्युः – योक्त्रयित्वा जरासन्धं कण्ठश्लिष्टेन बाहुना । असह्यं कर्म तत् कृत्वा नीतः कृष्णोऽतदर्हताम् ॥
राजा – न ते क्षेपेण रुष्यामि, रुष्यता भवता रमे। किमुक्त्वा नापराद्धोऽहं कथं तिष्ठति यात्विति ॥
अभिमन्युः – यद्यहमनुग्राह्यः-
पादयोः समुदाचारः क्रियतां निग्रहोचितः । बाहुभ्यामाहृतं भीम: बाहुभ्यामेव नेष्यति ॥
(ततः प्रविशत्युत्तरः )
अनुवाद – बृहन्नला यहाँ से कुमार! यह महाराज (हैंकुमार समीप जाओ।
अभिमन्यु – आह! किसके महाराज ?
राजा – आओ आओ पुत्र! मेरा अभिवादन क्यूँ नहीं करते हो? ( स्वयं से) अहो! निश्चय ही यह अहंकारी क्षत्रिय कुमार है। मैं इसके घमण्ड का नाश करता हूँ। (प्रकट) फिर यह किसके द्वारा पकड़ा गया ?
भीमसेन – महाराज! मेरे द्वारा ।
अभिमन्यु – शस्त्रहीन के द्वारा ऐसा कहो।
भीमसेन – शान्त पापी, धनुष तो दुर्बलों के द्वारा ही ग्रहण किया जाता है। मेरी तो भुजाएँ ही हथियार हैं।
अभिमन्यु – हैं! तो नहीं, क्या आप मेरे मध्यम पिता हैं, जो उनके समान वचन बोलते हो ?
 भगवान् – पुत्र! कौन है यह मध्यम नाम वाला?
अभिमन्यु – जरासन्ध को गले से, भुजा से बाँधकर वह असहनीय कर्म करके (भीम के द्वारा) कृष्ण की पात्रता ली गई।
राजा – आपके द्वारा क्रोधित (मैं) प्रसन्न होता हूँ, तुम्हारी निन्दा से क्रोधित नहीं होता हूँ, क्या कहकर मैं अपराध मुक्त कैसे (आप) ठहरते हो या जाते हो।
अभिमन्यु – जो मैं कृपा के योग्य-पैरों से उचित दण्ड शिष्टाचार किया जाए। बाहुओं से पकड़े हुए (मुझको) भीम बाहुओं से ही ले जाएगा। (फिर उत्तर प्रवेश करता है । )
गद्यांश 5. उत्तरः तात! अभिवादये !
राजा – आयुष्मान् भव पुत्र । पूजिताः कृतकर्माणो योधपुरुषाः ।
उत्तरः – पूज्यतमस्य क्रियतां पूजा।
राजा – पुत्र! कस्मै ?
उत्तरः – इहात्रभवते घनञ्जयाय ।
राजा – कथं धनञ्जयायेति ?
उत्तरः – अथ किम्
श्मशानाद्धनुरादाय तूणीराक्षयसायके |
नृपा भीष्मादयो भग्ना वयं च परिरक्षिताः ॥
राजा – एवमेतत् !
उत्तरः – व्यपनयतु भवाञ्छङ्काम्। अयमेव अस्ति धनुर्धरः धनञ्जयः ।
बृहन्नला – यद्यहं अर्जुन तर्हि अयं भीमसेनः अयं च राजा युधिष्ठिरः ।
अभिमन्युः – इहात्रभवन्तो मे पितरः । तेन खलु …
न रुष्यन्ति मया क्षिप्ता हसन्तश्च क्षिपन्ति माम् । दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं पितरो येन दर्शिताः ॥
( इति क्रमेण सर्वान् प्रणमति, सर्वे च तम् आलिङ्गन्ति । )
अनुवाद- उत्तर – तात! अभिवादन करता हूँ।
राजा – पुत्र चिरंजीवी हो । कर्म करने वाले योद्धा पूजित होते हैं।
उत्तर – इस पूजनीय की पूजा की जाए।
राजा – पुत्र! किसलिए?
उत्तर – यहाँ आदरणीय धनञ्जय के लिए।
राजा – कैसे धनञ्जय के लिए?
उत्तर – और क्या ?
श्मशान से तरकस अक्षयबाणों वाला धनुष लेकर राजा भीष्म आदि घायल किए गए और हम रक्षित किए गए।
राजा – ऐसा हैं !
उत्तर – आप शंका दूर करें। यह ही धनुर्धर धनञ्जय है।
बृहन्नला – यदि मैं अर्जुन तो यह भीमसेन और यह राजा युधिष्ठिर ( हैं)।
अभिमन्यु – यहाँ मेरे आदरणीय पितृजन | उससे निश्चय ही… मेरे द्वारा आक्षेप किए जाने पर क्रोधित नहीं होते हैं और हँसते हुए मुझको (हटा) देते हैं। भाग्य से गायों का अपहरण सुखान्त (है), जिससे पितृजन दिखाए गए।
( क्रम से सब को प्रणाम करता है और सब उसका आलिंगन करते हैं )
अभ्यासस्य प्रश्नोत्तराणि
प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत- (एक पद में उत्तर लिखिए ) –
(क) क: उमावेषमिवाश्रितः भवति?
( उमा के वेश में कौन आश्रित है ? )
(ख) कस्याः अभिभाषण कौतूहलं महत् भवति?
(किसका अभिभाषण कौतूहल महान् होता है?)
(ग) अस्माकं कुले किमनुचितम् ?
( हमारे कुल में क्या अनुचित है?)
(घ) कः दर्पप्रशमनं कर्तुमिच्छति?
(कौन अहंकार को शान्त करना चाहता है ? )
(ङ) कः अशस्त्रः आसीत् ?
( शस्त्रहीन कौन था ? )
(च) कया गोग्रहणम् अभवत् ?
(गोग्रहण किसके द्वारा हुआ?)
(छ) कः ग्रहणं गतः आसीत् ? (कौन ग्रहण किया गया ? )
उत्तर- (क) भीम:, (ख) अभिमन्यो:, (ग) स्वच्छन्द प्रलायम्, (घ) राजा, (ङ) भीम: (च) कौरवै: (छ) अभिमन्युः ।
प्रश्न 2. अधोलिखित प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृत भाषया लिखत- (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए ) –
(क) भटः कस्य ग्रहणम् अकरोत् ?
(भट ने किसे पकड़ा ? )
(ख) अभिमन्युः कथं गृहीतः आसीत् ?
( अभिमन्यु कैसे पकड़ा गया ? )
(ग) भीमसेनेन बृहन्नलया च पृष्टः अभिमन्युः किमर्थम् उत्तरं न ददाति ?
(भीमसेन और बृहन्नला ने पूछा कि अभिन्यु उत्तर क्यों नहीं देता है ? )
(घ) अभिमन्युः स्वग्रहणे किमर्थम् वञ्चितः इव अनुभवति?
( अभिमन्यु अपने पकड़े जाने पर क्यों मुक्त के समान अनुभव करता है? )
ङ) कस्मात् कारणात् अभिमन्युः गोग्रहणं सुखान्तं मन्यते ? (किस कारण से अभिमन्यु गोग्रहण को सुखान्त मानता है?)
उत्तर-
(क) भट: अभिमन्योः ग्रहणम् अकरोत्।
(भट ने अभिमन्यु को पकड़ा।)
(ख) अशस्त्रभीमसेनेन रथम् आसाद्य बाहुभ्याम् अभिमन्युः गृहीतः आसीत्।
(शस्त्र हीन भीम ने रथ से उतरकर बाहुओं से अभिमन्यु को पकड़ा।)
(ग) भीमसेनेन बहुन्नलया च पृष्टः अभिमन्युः स्वयं शत्रुवशं तिरस्कृतः वा अवमन्य उत्तरं न ददाति ।
(भीमसेन और बृहन्नला के द्वारा पूछे जाने पर अभिमन्यु ने स्वयं को तिरस्कृत कर दिया या उत्तर नहीं दिया?)
(घ) युद्धक्षेत्रे अशस्त्रभीमं दृष्ट्वा अभिमन्युः तम् प्रहार न करोति भीमसेनः च अभिमन्युं बाहुभ्याम् गृहीतवान् । अतः अभिमन्युः स्वग्रहणे वञ्चितः इव अनुभवति ।
( युद्ध क्षेत्र में शस्त्रविहीन भीम को देखकर अभिमन्यु उस पर प्रहार नहीं करता है। भीमसेन ने अभिमन्यु को बाहुओं से पकड़ लिया। इसलिए अभिमन्यु अपने पकड़े जाने को मुक्ति के समान अनुभव करता है । )
(ङ) अभिमन्युः गोग्रहणं सुखान्तं मन्यते यतः अनेन स्वपितरः दर्शिताः।
(अभिमन्यु गोग्रहण को सुखान्त मानता है, क्योंकि इससे उसे अपने पितरों का दर्शन हुआ।)
प्रश्न 3. अधोलिखितवाक्येषु प्रकटितभावं चिनुतन
( निम्नलिखित वाक्यों में प्रकट भाव चुनिए ) –
(क) भो: को नु खल्वेषः? येन भुजैकनियन्त्रितो बलाधिकेनापि पीड़ितः अस्मि (विस्मय: भयम्, जिज्ञासा)
(ख) कथं कथं! अभिमन्युर्नामाहम्। (आत्मप्रशंसा, स्वाभिमानः, दैन्यम्)
(ग) कथं मां पितृवदाक्रम्य स्त्रीगतां कथां पृच्छसे? (लज्जा, क्रोधः, प्रसन्नता )
(घ) धनुस्तु दुर्बलैः एव गृह्यते मम तु भुजौ एव प्रहरणम्। ( अन्धविश्वास, शौर्यम्, उत्साह )
(ङ) बाहुभ्यामाहृतं भीम: बाहुभ्यामेव नेष्यति। (आत्मविश्वासः, निराशा, वाक्संयमः )
(च) दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं पितरो येन दर्शिता: । (क्षमा, हर्ष:, धैर्यम्)
उत्तर- (क) जिज्ञासा (ख) आत्मप्रशंसा, (ग) क्रोध:, (घ) शौर्यम्, (ङ) निराशा, (च) हर्ष: ।
प्रश्न 4. यथास्थानं रिक्तस्थानपूर्ति कुरुत- ( रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए ) –
(क) खलु + एष: = ……..
(ख) बल + ………..+ अपि = बलाधिकेनापि
(ग) विभाति + …….. = विभात्युमावेषम्
(घ) ………. + एनम् वाचालयत्वेनम्
(ङ) रुष्यति + एष = रुष्यत्येषः
(च) त्वमेव + एनम् = ………….
(छ) यातु + ………. = यात्विति
(ज) ………+ इति = धनञ्जयायेति
उत्तर-
(क) खलु + एष: = खल्वेषः
(ख) बल + अधिकेन + अपि = बलाधिकेनापि
(ग) विभाति + उमावेषम् : = बिभात्युमावेषम्
(घ) वाचालयतु + एनम् = वाचालयत्वेनम्
(ङ) रुष्यति + एष = रुष्यत्येष
(च) त्वमेव + एनम् = त्वमेवैनम्
(छ) यातु + इति = यात्विति
(ज) धनञ्जयाय + इति = धनञ्जयायेति
प्रश्न 5. अधोलिखितानि वचनानि कः कं प्रति कथयति(निम्नलिखित वचन कौन किससे कहता है ? ) –
यथा-                          कः                        कं प्रति
आर्य, अभिभाषणकौतूहलं
मे महत                     बृहन्नला                भीमसेनम्
(क) कथमिदानीं सावज्ञमिव मां हस्यते ……     …….
(ख) अशस्त्रेणेत्यभिधीयताम् ……….    ……..
(ग) पूज्यतमस्य क्रियतां पूजा ………    ……..
(घ) पुत्र! कोऽयं मध्यमो नाम ………    ……..
(ङ) शान्तं पापम् ! ……….      ……….
धनुस्तु दुर्बलैः एव गृह्यते
उत्तर –                            कः                     कं प्रति
(क) कथमिदानीं सावज्ञमिव मां हस्यते।  अभिमन्युः बृहन्नलाम्
(ख) अशस्त्रेणेत्यभिधीयताम् ।   अभिमन्युः  भीमसेनम्
(ग) पूज्यतमस्य क्रियतां पूजा । उत्तरः        नृपम्
(घ) पुत्र! कोऽयं मध्यमो नाम ।  भगवान्    अभिमन्युम्
(ङ) शान्तं पापम् ! धनुस्तु दुर्बलैः एव गृह्यते ।  भीमसेनः      अभिमन्युम्
प्रश्न 6. अधोलिखितानि स्थूलानि सर्वनामपदानि कस्मै प्रयुक्तानि – (निम्न लिखित मोटे सर्वनाम किसके लिए प्रयुक्त हैं? )
(क) वाचालयतु एनम् आर्यः ।
(ख) किमर्थं तेन पदातिना गृहीतः ।
(ग) कथं न माम् अभिवादयसि ।
(घ) मम तु भुजौ एव प्रहरणम् ।
(ङ) अपूर्व इव ते हर्षो ब्रूहि केन विस्मितः असि?
उत्तर – सर्वनामपदानि                 कस्मै प्रयुक्तानि ?
(क) वाचालयतु एनम् आर्यः ।          अभिमन्यवे
(ख) किमर्थं तेन पदातिना गृहीतः।   भीमसेनाय
(ग) कथं न माम् अभिवादयसि ।      नृपाय
(घ) मम तु भुजौ एव प्रहरणम्।        भीमसेनाय
(ङ) अपूर्व इव ते हर्षो ब्रूहि केन
       विस्मितः असि?                   भीमसेनाय/भटाय
प्रश्न 7. ( क ). श्लोकानाम् अपूर्णः अन्वयः अधोदत्तः।
पाठमाधृत्य रिक्तस्थानानि पूरयत –
(क) पार्थं पितरं मातुलं …….. च उद्दिश्य कृतास्त्रस्य तरुणस्य …….. युक्तः ।
(ख) कण्ठश्लिष्टेन…. जरासन्धं योक्त्रयित्वा तत्
असह्यं. ……. कृत्वा । (भीमेन ) कृष्णः अतदर्हतां नीतः। .
(ग) रुष्यता…….. रमे। ते क्षेपेण न रुष्यामि, किं……  अहं नापराद्धः, कथं (भवान्) तिष्ठति, यातु इति ।
(घ) पादयोः निग्रहोचितः समुदाचारः………..।
बाहुभ्याम् आहृतम् (माम् ) ………….. बाहुभ्याम् एव नेष्यति ।
उत्तर- (क) पार्थं पितरम् मातुलं जनार्दनम् च उद्दिश्य कृतास्त्रस्य तरुणस्य युद्धपराजयः युक्तः।
(ख) कण्ठश्लिष्टेन बाहुना जरासन्धं योक्त्रयित्वा तत् असह्यं कर्म कृत्वा (भीमेन) कृष्ण: अतदर्हतां नीतः।
(ग) रुष्यता भवता रमे। ते क्षेपेण न रुष्यामि, किं उक्त्वा अहम् नापराद्धः कथं (भवान्) तिष्ठति, यातु इति ।
(घ) पादयो: निग्रहोचित: समुदाचारः क्रियताम्। बाहुभ्याम् आहृतम् (माम्) भीमः बाहुभ्याम् एव नेष्यति ।
(ख) अधोलिखितेभ्यः पदेभ्यः उपसर्गान विचित्य लिखत – (निम्नलिखित पदों से उपसर्ग चुनकर लिखिए ) –
पदानि                          उपसर्गः
यथा – आसाद्य                आ
(i) अवतारितः          –    ……..
(ii ) विभाति            –    ……..
(iii) अभिभाषय       –     ……..
(iv)उद्भूता:              –     ……..
(v) तिरस्क्रियते        –     …….
(vi) प्रहरन्ति            –    ……..
(vii) उपसर्पतु          –    ……..
(viii) परिरक्षिताः      –    ……..
( ix ) प्रणमति         –     ……..
उत्तर – पदानि                     उपसर्गः
(i) अवतारितः            –        अव
(ii ) विभाति              –          वि
(iii) अभिभाषय         –         अभि
(iv) उद्भूता:               –          उद्
(v) तिरस्क्रियते          –         तिरस्
(vi) प्रहरन्ति              –         प्र
(vii) उपसर्पतु            –         उप
(viii) परिरक्षिताः        –         परि
( ix ) प्रणमति            –         प्र
योग्यताविस्तार:
प्रस्तुत पाठ भासरचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से सम्पादित कर लिया गया है। दुर्योधन आदि कौरव वीरों ने राजा विराट की गायों का अपहरण कर लिया। विराट – पुत्र उत्तर बृहन्नला (छद्मवेषी अर्जुन) को सारथी बनाकर कौरवों से युद्ध करने जाता है। कौरवों की ओर से अभिमन्यु (अर्जुन पुत्र) भी युद्ध करता है। युद्ध में कौरवों की पराजय होती है। इसी बीच विराट को सूचना मिलती है, वल्लभ (छद्मवेषी भीम) ने रणभूमि में अभिमन्यु को पकड़ लिया है। अभिमन्यु भीम तथा अर्जुन को नहीं पहचान पाता और उनसे उग्रतापूर्वक बातचीत करता है। दोनों अभिमन्यु को महाराज विराट के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। वहीं भगवान नाम से कहे जाने वाले पाण्डवाग्रज युधिष्ठिर भी उपस्थित हैं। अभिमन्यु उन्हें प्रणाम नहीं करता। उसी समय राजकुमार उत्तर वहाँ पहुँचता है, जिसके रहस्योद्घाटन से अर्जुन तथा भीम आदि पाण्डवों के छद्मवेष का उद्घाटन हो जाता है।

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