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MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 4 वन्य – समाज और उपनिवेशवाद

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 4 वन्य – समाज और उपनिवेशवाद

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 4 वन्य – समाज और उपनिवेशवाद

महत्वपूर्ण स्मरणीय बिन्दु

सन् 1600 में हिन्दुस्तान के कुल भू-भाग के तकरीबन छठे भाग पर खेती होती थी।
19 वीं शताब्दी की शुरूआत तक इंग्लैण्ड में बलूत (ऑक) के वन लुप्त होने लगे थे। इस कारण शाही नौसेना के लिए लकड़ी की आपूर्ति में बाधाएँ आईं।
1820 में खोजी दस्तों ने वन-संपदा का अन्वेषण किया।
रेल लाइनों के प्रसार ने 1850 में लकड़ी की एक नई माँग उत्पन्न कर दी ।
एक मील लम्बी रेल की पटरी के लिए 1760-2000 स्लीपर की जरूरत थी।
यूरोप की चाय, कॉफी व रबड़ की माँग को पूरा करने के लिए भारत की वन सम्पदा को नष्ट किया गया।
भारत का पहला वन महानिदेशक जर्मन वैज्ञानिक डायट्रिच ब्रैंडिस था।
भारत में व्यवसायिक वानिकी की शुरुआत हुई।
इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट की स्थापना 1906 में देहरादून में हुई।
1878 के अधिनियम में जंगलों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया। आरक्षित वन, सुरक्षित वन व ग्रामीण वन |
वनों की इन श्रेणियों से आम जनता पर विपरीत प्रभाव पड़ा।
1875 से 1925 के मध्य इनाम के लालच में 80,000 से अधिक बाघ, 150,000 तेंदुए और 2,00,000 भेड़िए मार डाले गए।
1905 में औपनिवेशिक सरकार ने जंगल के दो तिहाई हिस्से को आरक्षित कर दिया।
1910 में बस्तर में अंग्रेजों के विरुद्ध वन विद्रोह हुआ।
जावा, इंडोनेशिया के द्वीप के रूप में जाना जाता है।
जावा में कलांग समुदाय के लोग लकड़ी काटने का काम करते थे।
डचों ने जावा में ब्लैन्डॉगडिएन्स्टेन की व्यवस्था लागू की।
डचों के खिलाफ सामिनवादी आंदोलन खड़ा हुआ।
क्रियाकलाप तथा पाठगत प्रश्न
प्रश्न 1. एक मील लंबी रेल की पटरी के लिये 1,760 से 12,000 तक स्लीपर की जरूरत थी। यदि 3 मीटर लंबी बड़ी लाइन की पटरी बिछाने के लिये एक औसत कद के. (पेड़ से 3-5 स्लीपर बन सकते हैं जो हिसाब लगाकर देखें कि एक मील लम्बी पटरी बिछाने के लिए कितने पेड़ काटने होंगे ?
उत्तर – 1 मील लंबी पटरी बिछाने के लिए आवश्यक स्लीपरों की औसत संख्या
प्रश्न 2. यदि 1862 में भारत सरकार की बागडोर आपके हाथ में होती और आप पर इतने व्यापक पैमाने पर रेलों के लिए स्लीपर और ईंधन आपूर्ति की जिम्मेदारी होती तो आप इसके लिए कौन-कौन से कदम उठाते ?
उत्तर- इस संबंध में उठाए जाने वाले महत्वपूर्ण कदम निम्नलिखित है –
(i) ईंधन तथा स्लीपरों के लिए रेलवे को लकड़ी की आपूर्ति तो की जाती किन्तु अवन्यीकरण की कीमत पर कदापि नहीं ।
(ii) विभिन्न वैकल्पिक संसाधनों यथा लोहे अथवा पत्थरों के स्लीपर तथा ईंधन के लिये कोयले का उपयोग किया जाता।
(iii) जितनी संख्या में पेड़ों की कटाई आवश्यक होती उतने ही नये पेड़ भी लगाये जाते ।
प्रश्न 3. वन- प्रदेशों में रहने वाले बच्चे पेड़-पौधों की सैकड़ों प्रजातियों के नाम बता सकते हैं। आप पेड़-पौधों की कितनी प्रजातियों के नाम जानते हैं?
9 उत्तर- कुछ महत्वपूर्ण पेड़ों की प्रजातियाँ निम्नलिखित हैं-
(1) सियादी, ( 2 ) सेमूर (3) साल, (4) टीक, (5) महुआ, (6) पाईन, (7) फर, (8) स्प्रूस, (9) लर्च, (10) बलूत (ओक), (11) मोरदे का पेड़ (elm), (12) बीच, (13) सीप्रेस, (14) चंदन, (15) इबोनी आदि ।
प्रश्न 4. जहाँ आप रहते हैं क्या वहाँ के जंगली इलाकों में कोई बदलाव आए हैं? ये बदलाव क्या हैं और क्यों हुए हैं?
उत्तर- हाँ, हमारे यहाँ के वन क्षेत्रों में परिवर्तन स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। कुछ मुख्य बदलाव निम्नलिखित हैं
(i) इन वन क्षेत्रों में बड़े जानवरों के शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया है किन्तु, मछली तथा छोटे जानवरों के शिकार को विनियमित कर दिया गया है।
(ii) इन क्षेत्रों में पेड़ों की संख्या बढ़ गई है।
(iii) इन क्षेत्रों से होकर बहने वाली नदी को साफ कर दिया गया है।
(iv) वन क्षेत्रों में जगह-जगह पर वन सुरक्षा अधिकारियों द्वारा पोस्ट बनाये गए हैं। चेक —
(v) वन क्षेत्रों में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया है।
(vi) हाथी दाँत एवं जंगली बिल्ली की खालों के अवैध व्यापार को रोका गया है तथा इन जानवरों का पूरा ख्याल रखा जा रहा है।

अभ्यास प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. औपनिवेशिक काल के वन प्रबंधन में आए परिवर्तनों ने इन समूहों को कैसे प्रभावित किया ।
(क) झूम खेती करने वालों को
(ख) घुमंतू और चरवाहा समुदायों को
(ग) लकड़ी और वन उत्पादों का व्यापार करने वाली कंपनियों को
(घ) बागान मालिकों को
(ङ) शिकार खेलने वाले राजाओं और अंग्रेज अफसरों को
उत्तर- (क) झूम खेती करने वालों को बलपूर्वक वनों में उनके घरों से विस्थापित कर दिया गया। उन्हें अपने व्यवसाय बदलने पर मजबूर किया गया जबकि कुछ ने परिवर्तन का विरोध करने . के लिए बड़े और छोटे विद्रोहों में भाग लिया।
(ख) उनके दैनिक जीवन पर नए वन कानूनों का बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। वन प्रबंधन द्वारा लाए गए बदलावों के कारण नोमड एवं चरवाहा समुदाय के लोग वनों में पशु नहीं चरा सकते थे, कंदमूल व फल एकत्र नहीं कर सकते थे और शिकार तथा मछली नहीं पकड़ सकते थे। यह सब गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। इसके फलस्वरूप उन्हें लकड़ी चोरी करने को मजबूर होना पड़ता और यदि पकड़े जाते तो उन्हें वन रक्षकों को घूस देनी पड़ती। इनमें से कुछ समुदायों को अपराधी कबीले भी कहा जाता था।
(ग) उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ तक इंग्लैण्ड में बलूत के वन लुप्त होने लगे थे जिसने शाही नौसेना के लिए लकड़ी की आपूर्ति की किल्लत पैदा कर दी। 1820 तक अंग्रेजी खोजी दस्ते भारत की वन-संपदा का अन्वेषण करने के लिए भेजे गए। एक दशक के अंदर बड़ी संख्या में पेड़ों को काट डाला गया और बहुत अधिक मात्रा में लकड़ी का भारत से निर्यात किया गया।
2. बस्तर और जावा के औपनिवेशिक वन प्रबंधन में प्रश्न क्या समानताएँ हैं?
उत्तर – बस्तर में वन प्रबंधन अंग्रेजों के हाथों में और जावा में डचों के हाथों में था। किन्तु दोनों सरकारों का उद्देश्य एक ही था। दोनों ही सरकारें अपनी जरूरतों के लिए लकड़ी चाहती थीं और उन्होंने अपने एकाधिकार के लिए काम किया। दोनों ने ही ग्रामीणों को घुमंतू खेती करने से रोका। दोनों ही औपनिवेशिक सरकारों ने स्थानीय समुदायों को विस्थापित करके वन्य उत्पादों का पूर्ण उपयोग कर उनको पारंपरिक आजीविका कमाने से रोका। बस्तर के लोगों को आरक्षित वनों में इस शर्त पर रहने दिया गया कि वे लकड़ी का काम करने वाली कंपनियों के लिए काम मुफ्त में किया करेंगे। इसी प्रकार के काम की माँग जावा में ब्लैन्डाँगडिएन्स्टेन प्रणाली के अंतर्गत पेड़ काटने और लकड़ी ढोने के लिए ग्रामीणों से की गई। जब दोनों स्थानों पर जंगली समुदायों को अपनी जमीन छोड़नी पड़ी तो विद्रोह हुआ जिन्हें अततः कुचल दिया गया। जिस प्रकार 1770 में जावा में कलंग विद्रोह को दबा दिया गया उसी प्रकार 1910 में बस्तर का विद्रोह भी अंग्रेजों द्वारा कुचल दिया गया।
प्रश्न 3. सन् 1880 से 1920 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के वनाच्छादित क्षेत्र में 97 लाख हेक्टेयर की गिरावट आयी। पहले के 10.86 करोड़ हेक्टेयर से घटकर यह क्षेत्र 9.89 करोड़ हेक्टेयर रह गया था। इस गिरावट में निम्नलिखित कारकों की भूमिका बताएँ
(क) रेलवे, (ख) जहाज़ निर्माण, (ग) कृषि विस्तार, (घ) व्यावसायिक खेती, (ङ) चाय-कॉफी के बागान, (च) आदिवासी और किसान ।
उत्तर – (क) रेलवे – 1850 में रेलवे के विस्तार ने एक नई माँग को जन्म दिया। औपनिवेशिक व्यापार एवं शाही सैनिक टुकड़ियों के आवागमन के लिए रेलवे आवश्यक था। रेल के इंजन चलाने के लिए ईंधन के तौर पर एवं रेलवे लाइन बिछाने के लिए स्लीपर (लकड़ी के बने हुए) जो कि पटरियों को उनकी जगह पर बनाए रखने के लिए आवश्यक थे, सभी के लिए लकड़ी चाहिए थी। 1860 के दशक के बाद से रेलवे के जाल में तेजी से विस्तार हुआ। जैसे-जैसे रेलवे पटरियों का भारत में विस्तार हुआ, अधिकाधिक मात्रा में पेड़ काटे गए। 1850 के दशक में अकेले मद्रास प्रेसीडेंसी में स्लीपरों के लिए 35,000 पेड़ सालाना काटे जाते थे। आवश्यक संख्या में आपूर्ति के लिए सरकार ने निजी ठेके दिए । इन ठेकेदारों ने बिना सोचे-समझे पेड़ काटना शुरू कर दिया और रेल लाइनों के इर्द-गिर्द जंगल तेजी से गायब होने लगे ।
(ख) जहाज़ निर्माण – उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ तक इंग्लैण्ड में बलूत के जंगल गायब होने लगे थे जिसने अंततः शाही जल सेना के लिए लकड़ी की आपूर्ति में समस्या पैदा कर दी। समुद्री जहाजों के बिना शाही सत्ता को बचाए एवं बनाए रखना कठिन हो गया था। इसलिए 1820 तक अंग्रेजी खोजी दस्ते भारत की वन संपदा का अन्वेषण करने के लिए भेजे गए। एक दशक के अंदर बड़ी संख्या में पेड़ों को काट डाला गया और बहुत अधिक मात्रा में लकड़ी को भारत से निर्यात किया गया।
(ग) कृषि विस्तार – उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में औपनिवेशिक सरकार ने सोचा कि वन अनुत्पादक थे। वनों की भूमि को व्यर्थ समझा जाता था जिसे जुताई के अधीन लाया जाना चाहिए ताकि उस भूमि से राजस्व और कृषि उत्पादों को पैदा किया जा सकता था और इस तरह राज्य की आय में बढ़ोतरी की जा सकती थी। यही कारण था कि 1880 से 1920 के बीच खेती योग्य भूमि के क्षेत्रफल में 67 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई। उन्नीसवीं सदी में बढ़ती शहरी जनसंख्या के लिए वाणिज्यिक फसलों जैसे कि जूट, चीनी, गेहूँ एवं कपास की माँग बढ़ गई और औद्योगिक उत्पादन के लिए कच्चे माल की जरूरत पड़ी। इसलिए अंग्रेजों ने सीधे तौर पर वाणिज्यिक फसलों को बढ़ावा दिया। इस प्रकार भूमि को जुताई के अंतर्गत लाने के लिए वनों को काट दिया गया।
(घ) व्यावसायिक खेती – वाणिज्यिक वानिकी में प्राकृतिक वनों में मौजूद विभिन्न प्रकार के पेड़ों को काट दिया गया। प्राचीन वनों के विभिन्न प्रकार के पेड़ों को उपयोगी नहीं माना गया। उनके स्थान पर एक ही प्रकार के पेड़ सीधी लाइन में लगाए गए। इन्हें बागान कहा जाता है। वन अधिकारियों ने जंगलों का सर्वेक्षण किया, विभिन्न प्रकार के पेड़ों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र का आंकलन किया और वन प्रबंधन के लिए कार्य योजना बनाई। उन्होंने यह भी तय किया कि बागान का कितना क्षेत्र प्रतिवर्ष काटा जाए। इन्हें काटे जाने के बाद इनके स्थान “व्यवस्थित वन लगाए जाने थे। कटाई के बाद खाली जमीन पर पुन: पेड़ लगाए जाने थे ताकि कुछ ही वर्षों में यह क्षेत्र पुनः कटाई के लिए तैयार हो जाए।
(ङ) चाय-कॉफी के बागान – यूरोप में चाय-कॉफी, रबड़ की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए प्राकृतिक वनों के बड़े क्षेत्रों को चाय, कॉफी, रबड़ के बागानों के लिए साफ कर दिया गया। औपनिवेशी सरकार ने वनों पर अधिकार कर लिया और इनके बड़े क्षेत्रों को कम कीमत पर यूरोपीय बाग लगाने वालों को दे दिए। इन क्षेत्रों की बाड़बंदी कर दी गई और वनों को साफ करके चाय व कॉफी के बाग लगा दिए गए। बागान के मालिकों ने मजदूरों को लंबे समय तक और वह भी कम मजदूरी पर काम करवा कर बहुत लाभ कमाया । घुमंतू खेती करने वाले जले हुए वनों की जमीन पर बीज बो देते और पुन: पेड़ उगाते । जब ये चले जाते तो वनों की देखभाल करने के लिए कोई भी नहीं बचता था, एक ऐसी चीज़ जो इन्होंने अपने पैतृक गाँव में प्राकृतिक रूप से की होती थी।
(च) आदिवासी और किसान आदिवासी और किसान सामान्यतः घुमंतू खेती करते थे जिसमें वनों के हिस्सों को बारी-बारी से काटा एवं जलाया जाता है। मानसून की पहली बरसात के बाद राख में बीज बो दिए जाते हैं। यह प्रक्रिया वनों के लिए हानिकारक थी। इसमें हमेशा जंगल की आग का खतरा बना रहता था।
प्रश्न 4. युद्धों से जंगल क्यों प्रभावित होते हैं?
उत्तर- युद्धों से वनों पर कई कारणों से प्रभाव पड़ता है
(क) भारत में वन विभाग ने ब्रिटेन की लड़ाई की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अंधाधुंध वन काटे। इस अंधाधुंध विनाश एवं राष्ट्रीय लड़ाई की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वनों की कटाई वनों को प्रभावित करती है क्योंकि वे बहुत तेजी से खत्म होते हैं जबकि ये दोबारा पैदा होने में बहुत समय लेते हैं।
(ख) जावा में जापानियों के कब्जा करने से पहले, डचों ने ‘भस्म कर भागो” नीति अपनाई जिसके तहत आरा मशीनों और सागौन के विशाल लट्ठों के ढेर जला दिए गए जिससे वे जापानियों के हाथ न लगे। इसके बाद जापानियों ने वन्य ग्रामवासियों को जंगल काटने के लिए बाध्य करके वनों का अपने युद्ध कारखानों के लिए निर्ममता से दोहन किया। बहुत से गाँव वालों ने इस अवसर का लाभ उठा कर जंगल में अपनी खेती का विस्तार किया। युद्ध के बाद इंडोनेशियाई वन सेवा के लिए इन जमीनों को वापस हासिल कर पाना कठिन था।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. सही विकल्प का चयन कीजिए
1. निम्नलिखित में से कौन-सी नदी बस्तर में पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है?
(a) गंगा
(b) सोन
(c) नर्मदा
(d) इन्द्रावती
2. ‘गोंड’ वन समुदाय निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में पाए जाते हैं?
(a) छत्तीसगढ़
(b) झारखंड
(c) जम्मू और कश्मीर
(d) गुजरात
3. धुरवा का सम्बन्ध था –
(a) कांगेर वन से
(b) कांकेर वन से
(c) कोरबा वन से
(d) इसमें से किसी से नहीं
4. जावा पर किसने अपना अधिकार किया?
(a) अंग्रेजों ने
(b) फ्रांसीसियों ने
(c) पुर्तगालियों ने
(d) डचों ने
5. इंडोनेशिया में औपनिवेशिक शक्ति कौन थी?
(a) ब्रिटिश
(b) डच
(c) फ्रांसीसी
(d) पुर्तमाली
6. जावा निम्नलिखित में से किसलिए प्रसिद्ध है?
(a) चावल उत्पादन
(b) खनन उद्योग
(c) वृहत जनसंख्या
(d) बाढ़ एवं अकाल ।
7. 1906 में इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इन्स्टीट्यूट की स्थापना कहाँ की गई थी ?
(a) दिल्ली में
(b) बंगलुरु में
(c) देहरादून में
(d) बस्तर में
8. ब्रैंडिस द्वारा भारतीय वन सेवा कब स्थापित की गई ?
(a) 1863 में
(b) 1864 में
(c) 1865 में
(d) 1866 में
9. निम्नलिखित में कौन भारत का पहला वन महानिदेशक था ?
(a) डायट्रिच ब्रैंडिस
(b) जॉन डासन
(c) नगुरुनदेरी
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
10. 1600 ई. में भारत के कितने हिस्से पर खेती होती थी ?
(a) 1/4
(b) 1/6
(c) 1/5
(d) 1/2
11. उपनिवेश के कानून ने वनं को अनुत्पादक कहा, क्योंकि –
(a) वन प्राकृतिक निवास के लिए उपयुक्त नहीं थे।
(b) वन केवल प्राकृतिक रूप से उगे वृक्षों के लिए थे।
(c) वन प्रदेश की भूमि में आय वृद्धि के साधन नहीं थे।
(d) वन जंगली जानवरों से भरे थे।
12. रेलवे की एक मील लम्बी पटरी के लिए कितने स्लीपरों की जरूरत है ?
(a) 1600 से 2000 स्लीपर
(b) 1500 से 2500 स्लीपर
(c) 1760 से 2000 स्लीपर
(d) 1360 से 1500 स्लीपर
उत्तर (1) (d) इन्द्रावती, (2) (a) छत्तीसगढ़, (3) (a) कांगेर वन से, (4) (d) डचों ने, (5) (b) डच, (6) (a) चावल उत्पादन, (7) (c) देहरादून में, (8) (b) 1864 में, (9) (a) डायट्रिच ब्रैंडिस, (10) (b) 1 /6, (11) (c) वन प्रदेश की भूमि में आय वृद्धि के साधन नहीं थे, ( 12 ) (c) 1760 से 2000 स्लीपर |
प्रश्न 2. एक शब्द / वाक्य में उत्तर दीजि
(1) एवन विनाश किसे कहते हैं ?
(2) ब्रिटिश शासन के दौरान रेल पटरियों के विस्तार ने किस प्रकार लकड़ियों की नई माँग पैदा की ?
(3) 1700 से 1995 के बीच दुनियाँ में वनों का कितने प्रतिशत भाग साफ कर दिया गया ?
( 4 ) भारतीय वन सेवा की स्थापना कब हुई?
(5) बागान किसे कहा जाता है ?
(6)वैज्ञानिक वानिकी क्या है?
(7) देवसारी क्या था ?
(8) ‘वनग्राम’ किसे कहते थे ?
(9) बस्तर विद्रोह से संबंधित एक प्रमुख व्यक्ति का नाम लिखें ।
(10) ‘कालांग’ कौन थे ?
(11) ‘ब्लैन्डॉगडिएस्टेन’ व्यवस्था क्या थी?
( 12 ) सामिनवादी आंदोलन का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर – (1) वनों के लुप्त होने को वन विनाश कहते हैं । ( 2 ) इंजनों को चलाने के लिए ईंधन के रूप में तथा पटरियों को जोड़े रखने के लिए स्लीपरों के रूप में लकड़ी की भारी जरूरत थी। (3) 9.3 प्रतिशत भाग। (4) 1864 में। (5) सीधी पंक्ति में एक ही किस्म के पेड़ लगाने को बागान कहा जाता है। (6) वन विभाग द्वारा पेड़ों की कटाई और उन की जगह नए पेड़ लगाना। (7) बस्तर क्षेत्र में एक गांव द्वारा किसी दूसरे गांव के जंगल से लिए गए उत्पाद (लकड़ी) के बदले में दिया जाने वाला शुल्क। (8) आरक्षित वनों के अंदर कुछ गांवों को इस शर्त पर रहने दिया गया कि वे वन विभाग के लिए पेड़ों की कटाई और ढुलाई का काम मुफ्त में करेंगे तथा जंगल को आग से बचाएंगे। ऐसे गांवों को वन ग्राम कहा गया। (9) गुंडा धुर (10) जावा में कालांग समुदाय के लोग कुशल लकड़हारे और घुमंतू किसान थे। (11) डचों ने कुछ गांवों को लगान इस शर्त पर मुफ्त किया कि वे सामुहिक रूप से पेड़ काटने व लकड़ी ढोने के लिए भैंसे. मुफ्त में उपलब्ध कराएंगे। इस व्यवस्था को ब्लैन्डागडिएन्स्टेन कहा गया। (12) सुरोन्तिको सामिन ने।
प्रश्न 3. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(1) सबसे अच्छे जंगलों को …….. कहते हैं ।
(2) घुंमतू खेती को …. नाम से जाना जाता है।
( 3 ) घुंमतू खेती एक स्थान पर ……. वर्ष तक की जाती है।
(4) बस्तर ………. स्थित है।
(5) भारतीय वन कानून ……. बना।
(6) जावा …….. देश का उपनिवेश था।
(7)  इंडोनेशिया के
………. द्वीप में अधिकांश वन पाए जाते हैं।
(8) जावा में वन कानून ………. लागू किया।
उत्तर – ( 1 ) आरक्षित वन ( 2 ) झूम खेती, (3) 2 वर्ष, (4) छत्तीसगढ़ के दक्षिणतम हिस्से में, ( 5 ) 1865 में (6) हॉलैंड, (7) जावा, (8) डच उपनिवेशकों ने ।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

■ लघु एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. बस्तर के आदिवासी अंग्रेजों के किस कदम से अत्यधिक भयभीत थे?
अथवा
औपनिवेशिक सरकार की कार्यवाहियों ने किस प्रकार बस्तर के विद्रोह का मार्ग प्रशस्त किया? व्याख्या कीजिए।
उत्तर- (1) जब अंग्रेजों ने वनों को आरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया तो बस्तर के वन- निवासियों के लिये जीना हराम हो गया। अब वे वनों से लकड़ी नहीं काट सकते थे; वे अनेक वन्य-उत्पादों से भी वंचित हो गए जिन्हें बेचकर वे अपना निर्वाह कर लेते थे।
(2) वे वनीय भागों में घुमंतू खेती करके अपना पेट भरने के लिए अनाज पैदा कर लेते थे। अब वे इससे भी वंचित हो गए। ऐसे में उनके भूखों मरने की नौबत आ गई।
(3) एक तो वे अंग्रेजों द्वारा लगाए गए करों से तंग आ चुके थे और दूसरे ब्रिटिश अधिकारियों को तोहफे देते-देते तथा बेगार में उनकी नौकरी करते-करते परेशान हो चुके थे। अत: उन्होंने विद्रोह कर दिया।
(4) अंग्रेजों ने इस विद्रोह को दबाने के लिए सेना भेज दी।
(5) बगावत में हिस्सा लेने वालों को मारा गया तथा सजा भी दी गई।
(6) लोग जंगलों में भाग गये तथा तीन महीनों में अंग्रेजों ने बस्तर पर पुनः अधिकार जमा लिया।
( 7 ) लेकिन बाद में आरक्षण का काम कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया और आरक्षित क्षेत्र को भी 1910 से पहले योजना से लगभग आधा कर दिया गया।
प्रश्न 2. वन संरक्षण हेतु वन समुदायों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
अथवा
बस्तर क्षेत्र में स्थानीय लोग वनों की देखभाल एवं रक्षा कैसे करते थे?
उत्तर- (1) वन समुदाय वनों का संरक्षण करना चाहते थे, क्योंकि उनका मानना था कि प्रत्येक गाँव को भूमि धरती देवी द्वारा दी गई है तथा बदले में वे धरती की देखभाल करेंगे ।
( 2 ) वे प्रत्येक कृषि उत्सव के दौरान धरती माता को कुछ चढ़ावा चढ़ाते थे।
(3) उन्होंने जंगलों की देखभाल के लिए चौकीदार रखा था।
( 4 ) इन चौकीदारों की मजदूरी देने के लिए प्रत्येक परिवार द्वारा कुछ अनाज का योगदान किया जाता था।
(5) प्रत्येक वर्ष एक परगना के ग्राम प्रधान आपस में बैठक करते थे तथा इस बैठक में वन की सुरक्षा आदि से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की जाती थी ।
प्रश्न 3. बस्तर में कौन-कौन से जनजातीय समुदाय रहते हैं और उनका जीवन किस प्रकार एक-दूसरे के साथ गुंथा हुआ होता था ?
अथवा
यह कहना कहाँ तक उचित है कि बस्तर के आदिवासी एक अन्योन्याश्रित जीवन व्यतीत करते हैं जो एक-दूसरे के साथ बंधा हुआ है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर – (1) बस्तर के कई समुदायों के लोग साथ रहते थे। जैसे मारिया और मुरिया गोंड, धुरवा, भतरा तथा हलबा आदि ।
(2) वे अलग-अलग भाषा बोलते थे किंतु उनकी रीति-रिवाज तथा आस्थाएँ एक जैसी थी ।
(3) बस्तर के लोगों का मानना था कि प्रत्येक गाँव को धरती माता द्वारा भूमि प्रदान की गई है। इसलिए वे हर कृषि उत्सव के समय धरती माता को कुछ चढ़ावा देते थे तथा सुरक्षा एवं देखभाल करते थे।
(4) चूँकि प्रत्येक ग्रामवासी अपने गाँव की सीमा जानता था, अतः स्थानीय लोग इस सीमा के भीतर प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा करते थे।
(5) यदि एक गाँव के लोग दूसरे गाँव के वन क्षेत्र से लकड़ी आदि लेना चाहते थे तो उन्हें इसके बदले कुछ शुल्क चुकाना पड़ता था जिसे देवसारी या दांड कहते थे।
प्रश्न 4. बस्तर की जनजातियों के आवास तथा रहनसहन का वर्णन कीजिए।
अथवा
1905 से पूर्व बस्तर के लोगों की जीवन-शैली क्या थी ? उनकी परंपराओं और विश्वासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – ( 1 ) बस्तर के लोग 1905 से पूर्व गाँवों में शांति एवं सौहार्द्र का जीवन व्यतीत करते थे। –
(2) अनेक समुदाय जैसे मरिया और मुरिया गोंड, धुरवा, भतरा और हलबा आदि इकट्ठे रहते थे और अलग-अलग भाषाएँ बोलते थे।
(3) वे शिकार करते थे। कंद, मूल, फल, पत्ते आदि वन उत्पादो को एकत्रित करते थे।
(4) उनके लिए नदी, वन और पहाड़ पूजनीय थे।
(5) कुछ गाँव अपने वनों की सुरक्षा के लिए चौकीदार रखते थे जिन्हें वेतन के रूप में हरेक घर से थोड़ा-थोड़ा अनाज मिलता था।
(6) दूसरे गाँव के जंगल से लकड़ी लेने के लिए एक छोटा-सा शुल्क दिया जाता था जिसे देवसारी या दांड़ कहते थे ।
(7) हर वर्ष एक बड़ी सभा का आयोजन किया जाता था जहाँ एक परगने के गाँवों के मुखिया एकत्रित होते थे तथा जंगल समेत अनेक अहम मुद्दों पर चर्चा करते थे।
(8) बस्तर के लोग मानते थे कि हरेक गाँव को उसकी जमीन ‘धरती माँ’ से मिली है। बदले में, प्रत्येक खेतिहर त्यौहार पर धरती को चढ़ावा चढ़ाते थे।
प्रश्न 5 वन विनाश की व्याख्या कीजिए। भारत में औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत वन विनाश के किन्हीं तीन कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
औपनिवेशिक शासन के दौरान भारत में वन विनाश के किन्हीं चार कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- (1) वनों के लुप्त होने को सामान्यत: वन-विनाश कहते हैं।
(2) भारत में औपनिवेशिक शासन के अन्तर्गत वन-विनाश के तीन कारण निम्नलिखित हैं –
(i) उन्नीसवीं सदी में पटसन, गन्ना, गेहूँ व कपास जैसी फसलों की माँग में इजाफा हुआ, क्योंकि यूरोप में बढ़ती शहरी आबादी का पेट भरने के लिए और खाद्यान्न और औद्योगिक उत्पादन के लिए कच्चे माल की जरूरत थी ।
(ii) औपनिवेशिक सरकार ने वनों को अनुत्पादक समझा। उनके हिसाब से इस व्यर्थ के बियाबान वन पर खेती करके उससे राजस्व कृषि उत्पादों को पैदा किया जा सकता था और राज्य की आय में बढ़ोतरी हो सकती थी।
(iii) इंग्लैण्ड में बलूत (ओक) के वन लुप्त होने लगे थे। जिससे शाही नौ सेना के जहाजों के लिए लकड़ी की आपूर्ति में मुश्किल खड़ी हो गई, इसलिए बड़े पैमाने पर पेड़ काटे जाने लगे और भारी मात्रा में हिंदुस्तान से लकड़ियों का निर्यात किया जाने लगा।
(iv) शाही सेना के आवागमन और व्यापार के लिए रेल लाइनें अनिवार्य थीं। रेल की पटरियों को जोड़े रखने के लिए ‘स्लीपरों’ के लिए लकड़ी के लिए पेड़ काटे गए। भारत में रेल लाइनों के प्रसार के साथ-साथ बड़ी तादाद में पेड़ काटे गए।
(v) यूरोप में चाय, कॉफी और रबड़ की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए इन वस्तुओं के बागान बनाए गए और प्राकृतिक वनों का एक भारी हिस्सा साफ किया गया।

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