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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब

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III. पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

(पृष्ठ 63-66)

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

प्रश्न 1.
कथा नायक की रुचि किन कार्यों में थी?
उत्तर
कथा नायक की रुचि खेल-कूद, सैर-सपाटा, गप्पबाजी, पतंगबाजी तथा मटरगश्ती करने में थी।

प्रश्न 2.
बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल क्या पूछते थे? अथवा बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल क्या पूछते थे? उसके बाद क्या करते? [CBSE)
उत्तर
बड़े भाई छोटे भाई से हर समय पहला सवाल यही पूछते थे—’कहाँ थे’?

प्रश्न 3.
दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया? [Imp.]
उत्तर
दूसरी बार पास होने पर छोटा भाई स्वच्छंद हो गया। उसने पढ़ना-लिखना बिल्कुल छोड़ दिया और पतंगबाजी में मन लगा लिया।

प्रश्न 4.
बड़े भाई साहब छोटे भाई से उम्र में कितने बड़े थे और वे कौन-सी कक्षा में पढ़ते थे? |
उत्तर
बड़े भाई साहब लेखक से उम्र में पाँच साल बड़े थे। वे नौवीं कक्षा में पढ़ते थे।

प्रश्न 5.
बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए क्या करते थे? [Imp.]
उत्तर
बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए कापी या किताब पर इधर-उधर की व्यर्थ की बातें बार-बार लिखा करते थे या कोई चित्र बना डालते थे।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1.
छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाते समय क्या-क्या सोचा और फिर उसका पालन क्यों नहीं कर पाया? [Imp.] [CBSE]
उत्तर
छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबल बनाते समय सोचा कि वह नियम बनाकर दिन-रात पढ़ा करेगा तथा खेलकूद बिल्कुल छोड़ देगा। परंतु खेलकूद में गहरी रुचि तथा पुस्तकों में अरुचि होने के कारण वह इसका पालन न कर सका।

प्रश्न 2.
एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटा भाई बड़े भाई साहब के सामने पहुँचा तो उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई? [CBSE] ।
उत्तर
इस पाठ में लेखक ने शिक्षा के अनेक तौर-तरीके पर व्यंग्य किया है; जैसे-

  1. सबसे पहला व्यंग्य शिक्षा द्वारा रटूपन को बढ़ावा देने पर किया गया है। जो छात्र बिना समझे रट्टा लगाते हैं। और पाठ्यक्रम के एक-एक शब्द को रट्टू तोते की भाँति चाट लेते हैं, परंतु एक भी शब्द की समझ उन्हें नहीं हो पाती है।
  2. शिक्षा में पुस्तकीय ज्ञान को इतनी महत्ता दी गई है कि अध्यापक चाहते हैं कि छात्र अपने उत्तर किताबों से ज्यों का त्यों लिखें।
  3. शिक्षा जीवन के लिए प्रायोगिक रूप से अनुपयोगी है। यह सैद्धांतिक ज्ञान को बढ़ावा देती है, परंतु इसका व्यावहारिक पक्ष अत्यंत दुर्बल है।

प्रश्न 3.
बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ क्यों दबानी पड़ती थीं? [CBSE]
उत्तर
बड़े भाई को अपनी इच्छाएँ इसलिए दबानी पड़ती थीं क्योंकि उसे अपने छोटे भाई को सही राह पर चलाना था। वह खुद बेराह चलता तो फिर उसकी रक्षा कैसे करता। यह कर्तव्य-बोध उसके सिर पर था।

प्रश्न 4.
बड़े भाई साहब छोटे भाई को क्या सलाह देते थे और क्यों? [Imp.][CBSE]
उत्तर
छोटे भाई को बड़े भाई की डाँट-फटकार तनिक भी अच्छी न लगती थी। वह सोचता था कि काश! भाई साहब एक साल और फेल हो जाते तो उन्हें डाँटने का हक न रह जाता; परंतु जब भाई साहब ने उसे अनुभव और बड़प्पन का महत्त्व समझाते हुए जीवन की वास्तविकता से अवगत कराया और कहा कि हमारे कम पढ़े-लिखे दादा-अम्मा को अपने सुशिक्षित बालकों को समझाने और सही राह पर ले जाने का अधिकार है। इसके अलावा उसने सुशिक्षित हेडमास्टर के घर का प्रबंध उनकी माँ ही करती है, क्योंकि वे अधिक अनुभवी हैं। यह सुनकर छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई।

प्रश्न 5.
छोटे भाई ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार का क्या फ़ायदा उठाया?
उत्तर
लेखक ने बड़े भाई के नरम व्यवहार का भरपूर फ़ायदा उठाया। उसने पढ़ना-लिखना बिल्कुल छोड़ दिया। मनमानी करना शुरू कर दी तथा पतंगबाजी का चस्का लगा लिया। वह भाई की नजरें बचाकर दिन-रात पतंगें उड़ाने लगा।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1.
बड़े भाई की डाँट-फटकार अगर न मिलती, तो क्या छोटा भाई कक्षा में अव्वल आता? अपने विचार प्रकट कीजिए। [CBSE]
उत्तर
बड़े भाई की डाँट-फटकार से छोटे भाई को कभी सीख नहीं मिली। उसने डाँट खाकर एक बार टाइम-टेबल तो बनाया, किंतु उस पर अमल नहीं किया। वह जब भी कक्षा में अव्वल आया, बिना मेहनत के आया। वह कहता भी है-”मैंने बहुत मेहनत नहीं की, पर न जाने कैसे दरजे में अव्वल आ गया। मुझे खुद अचरज हुआ।” वास्तव में डाँट-डपट से छोटे भाई का आत्मविश्वास कम ही हुआ। अतः हम कह सकते हैं कि अगर बड़े भाई उसे न डाँटते-फटकारते तो भी वह कक्षा में अव्वल आता।।

प्रश्न 2.
इस पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा के किन तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है? क्या आप उनके विचार से सहमत हैं? [CBSE]
उत्तर
‘बड़े भाई साहब’ पाठ में लेखक ने शिक्षा की रटंत-प्रणाली पर तीखा व्यंग्य किया है। कहानी का बड़ा भाई एक बेचारा दीन पात्र है जो पाठ्यक्रम के एक-एक शब्द को तोते की तरह रटता रहती है। वह किसी भी शब्द को दिमाग तक नहीं पहुँचने देता। वह न तो विषय को समझता है और न समझे हुए विषय को अपनी भाषा में कहना जानता है। इस कारण वह चौबीसों घंटे पढ़ते-पढ़ते निस्तेज हो जाता है, फिर भी परीक्षा में पास नहीं हो पाता। मेरे विचार से ऐसी शिक्षा व्यर्थ है।

प्रश्न 3.
बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती है? [Imp.] [CBSE]
                                                अथवा
‘जीवन की समझ व्यावहारिक अनुभव से आती है’-बड़े भाई साहब के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं? उदाहरण सहित बताइए। [CBSE]
उत्तर
बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ पुस्तकें पढ़ने से नहीं, अपितु दुनिया देखने से आती है। जिसे जीवन जीने का अनुभव अधिक है, वही समझदार माना जाता है। इसीलिए माँ-बाप, दादा-दादी, कम पढ़-लिखकर भी अधिक ज्ञाने और समझ रखते हैं। वे घर-खर्च, बीमारी और अन्य प्रबंध करने में पढ़े-लिखों से भी अधिक कुशल होते हैं। हेडमास्टर से भी अधिक कुशल उनकी बूढ़ी माँ थीं जिन्होंने अपने सुशिक्षित पुत्र की अव्यवस्था को सँभाल लिया।

प्रश्न 4.
छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा क्यों उत्पन्न हुई?
                                                अथवा
छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा कब उत्पन्न हुई? क्या वह उचित थी? [CBSE]
उत्तर
बड़े भाई ने छोटे भाई को प्रभावित करने के लिए अनुभव और बड़प्पन का महत्त्व समझाया। उसने बताया कि आदमी को तजुर्बे से समझ आती है, पढ़ने-लिखने से नहीं। इसके लिए उसने अपनी अम्माँ और दादा का उदाहरण दिया। वे कम पढ़-लिखकर भी उम्र के कारण अधिक समझदार हैं। फिर उसने बीमारी के इलाज, घर-खर्च और शेष प्रबंधों का उदाहरण दिया। उसने बताया कि कैसे सुशिक्षित हेडमास्टर के घर का सारा सुप्रबंध उनकी बूढ़ी माँ करती है। इन सब युक्तियों को सुनकर छोटे भाई का हृदय प्रभावित हो गया। उसे बड़ा होने के कारण अपने बड़े भाई पर श्रद्धा हो गई।

प्रश्न 5.
बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए? [Imp.][CBSE]
                                          अथवा
कहानी के आधार पर बड़े भाई साहब के स्वभाव की तीन विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। [CBSE]
अथवा
बड़े भाई साहब की स्वभावगत विशेषताएँ क्या थीं? उनमें से छोटे भाई को किससे सहायता मिली? [CBSE]
उत्तर
बड़ा भाई महत्त्वाकांक्षी है। वह बड़ा होने का सम्मान चाहता है। वह अपने-आपको अपने छोटे भाई का संरक्षक सिद्ध करने के लिए जी-जान लगा देता है। | घोर परिश्रमी और धुनी-बड़ा भाई चाहे पढ़ाई करने की ठीक विधि न जानता हो, किंतु उसके परिश्रम और धुन में कोई कोर-कसर नहीं रहती। वह तीन-तीन बार फेल होकर भी उसी धुन से पढ़ता रहता है। वह दिन-रात पढ़ता है। उसकी तपस्या बड़े-बड़े तपस्वियों को भी मात करती है। | वाक्पटु-बड़ा भाई उपदेश देने और बातें बनाने में बहुत कुशल है। वह अपने-आपको बड़ा सिद्ध करने के लिए हर तर्क जुटा लेता है। कभी वह घमंडियों के नाश की बात कहता है। कभी बड़ी कक्षा की पढ़ाई को कठिन बताता है, कभी परीक्षकों को बुरा कहता है, कभी पढ़ाई-लिखाई को बेकार कहती है, कभी अपनी समझदारी की डींग हाँकता है, और कभी उम्र और अनुभव को महत्त्वपूर्ण कहता है। परंतु वह स्वयं को बड़ा सिद्ध करके ही मानता है।

प्रश्न 6.
बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से किसे और क्यों महत्त्वपूर्ण कहा है? [Imp.][CBSE]
उत्तर
बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से जिंदगी के अनुभव को अधिक महत्त्वपूर्ण माना है। उसके अनुसार, अनुभव से ही जीवन की सही समझ विकसित होती है। उसी से जीवन के सारे महत्त्वपूर्ण काम सधते हैं। बीमारी हो, घर-खर्च चलाना हो या घर के अन्य प्रबंध करने हों, इसमें उम्र और अनुभव काम आता है, पढ़ाई-लिखाई नहीं। लेखक की अम्माँ, दादा और हेडमास्टर साहब की बूढी माँ के उदाहरण सामने हैं। वहाँ उम्र और अनुभव काम आते हैं, पढ़ाई-लिखाई नहीं।

प्रश्न 7.
बताइए पाठ के किन अंशों से पता चलता है कि
(क) छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।
(ख) भाई साहब को जिंदगी का अच्छा अनुभव है।
(ग) भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है।
(घ) भाई साहब छोटे भाई का भला चाहते हैं।
उत्तर
(क) फिर भी मैं भाई साहब का अदब करता था और उनकी नज़र बचाकर कनकौए उड़ाता था। माँझा देना, कन्ने बाँधना, पतंग टूर्नामेंट की तैयारियाँ आदि समस्याएँ सब गुप्त रूप से हल की जाती थीं। मैं भाई साहब को यह संदेह न करने देना चाहता था कि उनका सम्मान और लिहाज़ मेरी नज़रों में कम हो गया है।

(ख) मैं तुमसे पाँच साल बड़ा हूँ और हमेशा रहूँगा। मुझे दुनिया का और जिंदगी का.जो तजुर्बा है, तुम उसकी बराबरी नहीं कर सकते, चाहे तुम एम.ए. और डी.फिल और डी.लिट् ही क्यों न हो जाओ। समझ किताबें पढ़ने से नहीं आती, दुनिया देखने से आती है।

(ग) संयोग से उसी वक्त एक कटा हुआ कनकौआ हमारे ऊपर से गुजरा। उसकी डोर लटक रही थी। लड़कों का एक गोल पीछे-पीछे दौड़ा चला आता था। भाई साहब लंबे हैं ही। उछलकर उसकी डोर पकड़ ली और बेतहाशा होस्टल की तरफ़ दौड़े। मैं पीछे-पीछे दौड़ रहा था।

(घ) तो भाईजाने, यह गरूर दिल से निकाल डालो कि तुम मेरे समीप आ गए हो और अब स्वतंत्र हो। मेरे देखते तुम बेराह न चलने पाओगे। अगर तुम यो न मानोगे तो मैं (थप्पड़ दिखाकर) इसका प्रयोग भी कर सकता हूँ। मैं जानता हूँ, तुम्हें मेरी बातें ज़हर लग रही हैं। :::

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1.
इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज़ नहीं, असल चीज़ है बुद्धि का विकास। [CBSE]
उत्तर
बड़ा भाई छोटे भाई के घमंड को तोड़ने के लिए कहता है-तुम कक्षा में प्रथम आकर यह न सोचो कि इससे तुमने बहुत बड़ी सफलता पा ली है और मैं असफल हो गया हैं। वास्तव में बड़ी चीज है-बुद्धि का विकास। उसमें तुम अभी छोटे हो। तुम्हें मेरे जितनी समझ नहीं है। देखो, मैं रावण और अंग्रेजों की शक्ति के अंतर को भी जानता हूँ। मेरी बुद्धि विकसित है। तुम अबोध हो, घमंडी हो। |

प्रश्न 2.
फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी खेल-कूद का तिरस्कार न कर सकता था। [Imp.]
उत्तर
लेखक का बड़ा भाई चाहता था कि लेखक खेलकूद, मटरगस्ती करना बंद करके अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे। इसके लिए वह लेखक को खूब डाँटता-फटकारता, परंतु लेखक खेलकूद का मोह नहीं त्याग पाता था। वह मौका मिलते ही मैदान में होता था। जैसे मनुष्य संकटों में फंसकर भी मोह-माया नहीं छोड़ पाता वैसे ही डाँट-फटकार खाकर भी लेखक खेलकूद से रिश्ता नहीं तोड़ पाता।

प्रश्न 3.
बुनियाद ही पुख्ता न हो, तो मकान कैसे पायेदार बने?
उत्तर
जिस प्रकार मकान को मजबूत बनाने के लिए नींव को मजबूत बनाया जाता है, उसी प्रकार शायद बड़े भाई साहब हर कक्षा को एक साल में नहीं दो-दो सालों में पास करते थे, ताकि उनकी पढ़ाई बहुत मजबूत हो। यह बड़े भाई साहब की नालायकी पर व्यंग्य है।

प्रश्न 4.
आँखें आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंद गति से झूमता पतन की ओर चला आ रहा था, मानो कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जा रही हो।
उत्तर
लेखक ने देखा कि कोई पतंग कटकर आकाश से धरती की ओर आ रही है। लेखक उसे पकड़ने के लिए दौड़ा जा रहा था, परंतु उसकी आँखें आकाश में चलने वाली पतंग रूपी यात्री पर था। उसे ऐसा लग रहा था- मानो पतंग कोई दिव्य आत्मा हो जो मंद गति से झूमती हुई धरती की ओर आ रही थी अर्थात् दिव्य आत्मा रूपी पतंग स्वर्ग से मिलकर उदास मन से किसी व्यक्ति का सन्निध्य पाने धरती पर उतर रही है।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए-
नसीहत, रोष, आज़ादी, राजा, ताज्जुब
उत्तर
नसीहत-शिक्षा, सीख, उपदेश
रोष-क्रोध, क्षोभ
आज़ादी-स्वतंत्रता, मुक्ति
राजा–महीप, भूप
ताज्जुब-हैरानी, आश्चर्य, अचरज।

प्रश्न 2.
प्रेमचंद की भाषा बहुत पैनी और मुहावरेदार है। इसीलिए इनकी कहानियाँ रोचक और प्रभावपूर्ण होती हैं। इस कहानी में आप देखेंगे कि हर अनुच्छेद में दो-तीन मुहावरों का प्रयोग किया गया है। उदाहरणतः इन वाक्यों को देखिए और ध्यान से पढिए-

  • मेरा जी पढ़ने में बिलकुल न लगता था। एक घंटा भी किताब लेकर बैठना पहाड़ था।
  • भाई साहब उपदेश की कला में निपुण थे। ऐसी-ऐसी लगती बातें कहते, ऐसे-ऐसे सूक्ति बाण चलाते कि मेरे जिगर के टुकड़े-टुकड़े हो जाते और हिम्मत टूट जाती।
  • वह जानलेवा टाइम-टेबिल, वह आँखफोड़ पुस्तकें, किसी की याद न रहती और भाई साहब को नसीहत और फ़जीहत का अवसर मिल जाता।

निम्नलिखित मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
सिर पर नंगी तलवार लटकना, आड़े हाथों लेना, अंधे के हाथ बटेर लगना, लोहे के चने चबाना, दाँतों पसीना आना, ऐरा-गैरा नत्थू खेरा।
उत्तर
सिर पर नंगी तलवार लटकना-सामने मौत दिखाई देना।
वाक्य-उड़न दस्ते को देखकर नकलची छात्र को यों लगा मानो सिर पर नंगी तलवार लटक रही हो।
आड़े हाथों लेना-कठोरता से पेश आना।
वाक्य-यदि उसने इस बार मेरी निंदा की तो मैं उसे आड़े हाथों लूंगा।
अंधे के हाथ बटेर लगना-अयोग्य व्यक्ति को महत्त्वपूर्ण वस्तु मिलना।
वाक्य-उस अनपढ़ को सुशिक्षित दुल्हन क्या मिली मानो अंधे के हाथ बटेर लग गया।
लोहे के चने चबाना-बहुत कठिन काम होना।
वाक्य-हिमालय की बर्फीली चोटियों पर चढ़ना लोहे के चने चबाना है।
दाँतों पसीना आना-बहुत कठिनाई होना।
वाक्य-पैदल तीर्थ-यात्रा करना आसान नहीं है। दाँतों पसीना आ जाएगा।
ऐरा-गैरा नत्थू खैरा-बुद्ध, बेवकूफ।
वाक्य-मैं तेरी हर चाल समझता हूँ। मुझे ऐरा-गैरा नत्थू-खैरा न समझना।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित तत्सम, तद्भव, देशी, आगत शब्दों को दिए गए उदाहरणों के आधार पर छाँटकर लिखिए-

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 1
तालीम, जल्दबाजी, पुख्ता, हाशिया, चेष्टा, जमात, हर्फ, सूक्तिबाण, जानलेवा, आँखफोड़, घुड़कियाँ, आधिपत्य, पन्ना, मेला-तमाशा, मसलन, स्पेशल, स्कीम, फटकार, प्रात:काल, विद्वान, निपुण, भाई साहब, अवहेलना, टाइम-टेबिल
उत्तर
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 2

प्रश्न 4.
क्रियाएँ मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं-सकर्मक और अकर्मक।
कर्मक क्रिया-वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा रहती है, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं; जैसे.
शीला ने सेब खाया।
मोहन पानी पी रहा है।
र्मक क्रिया-वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा नहीं होती, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं; जैसे-
शीला हँसती है।
बच्चा रो रहा है।
नीचे दिए वाक्यों में कौन-सी क्रिया है-सकर्मक या अकर्मक? लिखिए-
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 3
उत्तर
(क) सकर्मक
(ख) सकर्मक
(ग) सकर्मक
(घ) सकर्मक
(ङ) सकर्मक
(च) अकर्मक।

प्रश्न 5.
‘इक’ प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए-
विचार, इतिहास, संसार, दिन, नीति, प्रयोग, अधिकार
उत्तर
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 4

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
प्रेमचंद की कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं। इनमें से कहानियाँ पढ़िए और कक्षा में सुनाइए। कुछ कहानियों का मंचन भी कीजिए।
उत्तर
प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ हैं-ईदगाह, ठाकुर का कुआँ, शतरंज के खिलाड़ी, नमक का दरोगा, दूध का दाम, पूस की रात, कफ़न, गिल्ली डंडा आदि। इन्हें पढ़िए तथा साथियों के साथ मिलकर अभिनय कीजिए।

प्रश्न 2.
शिक्षा रटंत विद्या नहीं है-इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए। |
उत्तर
शिक्षा का अर्थ है-सीख। सीख का संबंध जीवन जीने से है, केवल बोलने, लिखने या पढ़ने से नहीं। इसलिए विद्यार्थी को चाहिए कि वह जो भी सीखे उसे अपने जीवन में अपनाए, आचरण में लाए या समझ ले। रटने वाले छात्र विषय को न तो समझते हैं और न उसे जीवन के लिए उपयोगी मानते हैं। वे केवल उसे थोड़ी देर के लिए अपनी स्मृति में सँजो लेते हैं मानो पत्थर की स्लेट पर चाक से कुछ लिख दिया गया हो। ऐसी रटी हुई बातें जल्दी ही भूल जाती हैं। ऐसा परिश्रम व्यर्थ होता है। इसे विद्या कहना सच्चाई से मुँह मोड़ना है।

प्रश्न 3.
क्या पढ़ाई और खेल-कूद साथ-साथ चल सकते हैं-कक्षा में इस पर वाद-विवाद कार्यक्रम आयोजित कीजिए।
उत्तर
पक्ष-पढ़ाई और खेल-कूद साथ-साथ चलते हैं। पढ़ाई का संबंध मन और बुद्धि से है। खेल-कूद का संबंध शरीर से है। जिस तरह मन, बुद्धि और शरीर तीनों साथ-साथ गति कर सकते हैं, उसी प्रकार पढ़ाई और खेल-कूद साथ-साथ चल सकते हैं। इन तीनों का आपस में विरोध नहीं है। ये परस्पर पूरक हैं। अगर शरीर ठीक न हो तो मन और बुद्धि काम नहीं कर सकते। इसी प्रकार शारीरिक खेलों में भी मन और बुद्धि का पूरा योगदान रहता है। एक अच्छा खिलाड़ी स्वस्थ मन और बुद्धि का स्वामी होता है।
विपक्ष-पढ़ाई और खेल-कूद अलग-अलग हैं। प्रायः खिलाड़ी और पहलवान पढ़ाई में कमजोर होते हैं। सचिन तेंदुलकर को ही लें। उनकी प्रतिभा खेल-कूद में ही थी। यदि वे क्रिकेट छोड़कर सामाजिक-भूगोल रटते रहते तो उन्हें शायद ही इतनी सफलता मिलती। इसी प्रकार विभिन्न कक्षाओं के सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी यदि अपना समय खेल-कूद में बिताने लग जाते तो वे ऊँचाइयाँ न छू पाते। इसलिए इन दोनों के अलग महत्त्व को समझना चाहिए।

प्रश्न 4.
क्या परीक्षा पास कर लेना ही योग्यता का आधार है? इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए। |
उत्तर
पहला छात्र-परीक्षा पास करना मनुष्य की योग्यता की निशानी है।
दूसरा-जरूरी नहीं कि परीक्षा पास करने वाला विद्यार्थी ज्ञानवाने हो। कुछ विद्यार्थी केवल रट्टा मारकर परीक्षाएँ पास कर लेते हैं। उन्हें समझ बिलकुल नहीं होती।
तीसरा-परीक्षा पास करने से केवल इतना पता चलता है कि छात्र चाहे तो किसी क्षेत्र में सफलता पा सकता है।
चौथा-कुछ छात्र परीक्षा में प्रथम आते हैं लेकिन जीवन में बिलकुल असफल होते हैं।
पाँचवाँ-अक्सर पढ़ाकू छात्र जीवन जीने की कला जानते ही नहीं । वे केवल पोथी के विद्वान होते हैं। ऐसे लोग हँसी के पात्र होते हैं।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
कहानी में जिंदगी से प्राप्त अनुभवों को किताबी ज्ञान से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बताया गया है। अपने माता-पिता, बड़े भाई-बहिनों या अन्य बुजुर्ग/बड़े सदस्यों से उनके जीवन के बारे में बातचीत कीजिए और पता लगाइए कि बेहतर ढंग से जिंदगी जीने के लिए क्या काम आया-समझदारी/पुराने अनुभव या किताबी पढ़ाई?
उत्तर
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
आपकी छोटी बहन/छोटा भाई छात्रावास में रहती रहता है। उसकी पढ़ाई-लिखाई के संबंध में उसे एक पत्र लिखिए।
उत्तर
पार्थ 335, रवींद्र नगर
कोलकाता।
2-3-2015
प्रिय स्मिता
स्नेह!
आशा है, तुम सानंद होगी। तुम्हारी पढ़ाई-लिखाई बहुत ठीक चल रही होगी। तुम स्वभाव से ही मेहनती और लगनशील हो। यह बहुत अच्छी बात है।

प्रिय स्मिता! अब तुम दसवीं कक्षा में पहुँच गई हो। नौवीं तक प्रश्नों की संख्या सीमित होती थी। इसलिए प्रश्नोत्तरों का रटना भी चल जाता था। परंतु आगे से ऐसा नहीं होगा। अब प्रश्न पुस्तकों से ही नहीं, बाहर से भी पूछे जाएँगे। अतः जो छात्रा समझ कर पढ़ेगी और अपनी रचना-शक्ति से स्वयं उत्तर दे सकेगी, वही सफलता पा सकेगी। मैं तुम्हें यही कहना चाहता हूँ। कि तुम रटने पर आश्रित न रहना। हर चीज़ समझ कर पढ़ना। वैसे, तुम्हें बचपन से ही यही आदत है, यह अच्छी बात है।

प्रिय स्मिता! मैंने देखा है कि खेलकूद में तुम्हारी बिल्कुल भी रुचि नहीं है। यह बात ठीक नहीं है। खेलकूद का पढ़ाई से सीधा नहीं, अप्रत्यक्ष संबंध है। तुम लगातार पढ़कर ऊबो तो बीच में घूम-फिर आया करो। हो सके तो टी.टी., बैडमिंटन जैसा कोई खेल खेलना शुरू करो। इससे दिमाग तरोताज़ा होगा। उसकी ऊब कम होगी। ग्रहण-शक्ति बढ़ेगी। शरीर स्वस्थ होगा तो मन भी स्वस्थ होगा और बुद्धि भी उपजाऊ बनेगी।
तुम्हारा भाई
पार्थ

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