NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम्
NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम्
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Shemushi Sanskrit Class 10 Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्
अभ्यासः
प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –
(क) रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः कीदृशः आसीत्?
उत्तर:
रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः हद्धयग्राही आसीत्।
(ख) रामः लवकुशौ कुत्र उपवेशयितुम् कथयति?
उत्तर:
रामः लवकुशौ सिंहासनम् उपरि उपवेशयितुम् कथयति।
(ग) बालभावात् हिमकर: कुत्र विराजते?
उत्तर:
बालभावात् हिमकरः पशुपति मस्तके विराजते।
(घ) कुशलवयोः वंशस्य कर्ता कः?
उत्तर:
कुशलवयोः वंशस्य कर्ता भगवान सूर्यः।
(ङ) केन सम्बन्धेन वाल्मीकिः कुशलवयोः गुरुः आसीत्?
उत्तर:
उपनयनोपदेशन्: वाल्मीकिः कुशलवयोः गुरुः आसीत।
(च) कुशलवयोः मातरं वाल्मीकि केन नाम्ना आह्वयति?
उत्तर:
कुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः ‘वधूः’ इति नाम्ना आह्वयति?
प्रश्न 2.
रेखाङ्कितेषु पदेषु विभक्तिं तत्कारणं च उदाहरणानुसार निर्दिशत –
यथा – राजन्! अलम् अतिदाक्षिण्येन।
(क) रामः लवकुशौ आसनार्धम् उपवेशयति।
(ख) धिङ् माम् एवं भूतम्।
(ग) अटव्यवहितम् अध्यास्यतां सिंहासनम्।
(घ) अलम अतिविस्तरेण।
(ङ) रामम् उपसृत्य प्रणभ्य च।
उत्तर:
प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत
(क) ‘जानाम्यहं तस्य नामधेयम्’ अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम्?
उत्तर:
अहं
(ख) ‘किं कुपिता एवं भणति उत प्रकृतिस्था’- अस्मात् वाक्यात् ‘हर्षिता’ इति पदस्य विपरीतार्थकपदं चित्वा लिखत।
उत्तर:
कुपिता
(ग) विदूषकः (उपसृत्य) ‘आज्ञापयतु भवान्!’ अत्र भवान् इति पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
उत्तर:
रामाय
(घ) ‘तस्माद-व्यवहितम् अध्यास्याताम् सिंहासनम्’ – अत्र क्रियापदं किम्?
उत्तर:
अध्यास्याताम्
(ङ) ‘वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम्’-अत्र ‘आयुषः इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम्?
उत्तर:
वयः
प्रश्न 4.
अधोलिखितानि वाक्यानि कः कं प्रति कथयति
(क) सव्यवधानं न चारित्र्यलोपाय।
(ख) किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृतिस्था?
(ग) जानाम्यहं तस्य नामधेयम्।
(घ) तस्या द्वे नाम्नी।
(ङ) वयस्य! अपूर्व खलु नामधेयम्।
उत्तर:
प्रश्न 5.
मञ्जूषातः पर्यायद्वयं चित्वा पदानां समक्षं लिखत –
शिवः शिष्टचारः शशिः चन्द्रशेखरः सुतः इदानीम् अधुना पुत्रः सूर्यः सदाचारः निशाकरः भानुः
उत्तर:
प्रश्न 6.
(अ) उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितेषु पदेषु प्रयुक्त-प्रकृति प्रत्ययञ्च लिखत
उत्तर:
प्रश्न 6.
(आ) विशेषण-विशेष्यपदानि योजयतयथा- विशेषण पदानि विशेष्य पदानि
श्लाघ्या – कथा
(1) उदात्तरम्यः – (क) समुदाचारः
(2) अतिदीर्घः – (ख) स्पर्शः
(3) समरूपः – (ग) कुशलवयोः
(4) हृदयग्राही – (घ) प्रवास:
(5) कुमारयोः – (छ) कुटुम्बवृत्तान्तः
उत्तर:
(1) – क
(2) – घ
(3) – ङ
(4) – ख
(5) – ग
प्रश्न 7.
(क) अधोलिखितपदेषु सन्धिं कुरुत:
(क) द्वयोः + अपि = ……………
(ख) द्वौ + अपि = ………………
(ग) कः + अत्र = ………………….
(घ) अनभिज्ञः + अहम् = ………….
(ङ) इति + आत्मानम् = …………..
उत्तर:
(क) द्वयोः + अपि – दूयोरपि
(ख) द्वौ + अपि – द्वावपि
(ग) कः + अत्र – कोऽत्र
(घ) अनभिज्ञः + अहम् – अनभिज्ञोऽहम्
(ङ) इति + आत्मानम् – इत्यात्मानः
(ख) अधोलिखितपदेषु विच्छेदं कुरुत:
(क) अहमप्येतयोः – ……………..
(ख) वयोऽनुरोधात् – …………….
(ग) समानाभिजनौ – ……………
(घ) खल्वेतत् – ………………..
उत्तर:
(क) अहमप्येतयोः – अहम् + अपि + एतयोः
(ख) वयोऽनुरोधात् – वयः + अनरोधात्
(ग) समानाभिजनौ – समान् + अभिजनौ
(घ) खल्वेतत् – खलु + एतत्
परीक्षा उपयोगी अन्य प्रश्नाः
प्रश्न 1.
प्रस्तुत पाठ पठित्वा अधीलिखित प्रश्नाना उत्तराणि लिखत(प्रस्तुत पाठ को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए)
1. एकपदेन उत्तरत
(क) ‘अम्बा’ इति कः कथयति?
उत्तर:
कुशः
(ख) तयोः गुरोः नाम किम्?
उत्तर:
वाल्मीमिः
(ग) “निरनुक्रोशः’ इति कः भणति?
उत्तर:
अम्बा
(घ) ‘केन सम्बधेन’? इति कः पृच्छति?
उत्तर:
श्रीरामः
(च) ‘उपनयनोपदेशेन’ इति कः कथयति?
उत्तर:
लवः।
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत
(क) रामस्य अन्तिकं कः प्रेष्यताम्?
उत्तर:
रामस्य अन्तिक लक्ष्मणः प्रेष्यातम्।
(ख) सरस्वत्यवतार कीदृशः?
उत्तर:
सरस्वत्यवतारः अपूर्वः।
(ग) पुराण: व्रतनिधिः कः?
उत्तर:
पुराणः व्रतनिधिः वाल्मीकिः।
(घ) सवाष्पं कः अवलोकयति?
उत्तर:
सवाष्पं श्रीरामः अवलोकयति।
(च) अपूर्व खलु किम् आसीसत्?
उत्तर:
अपूर्व खलु नामधेयम् आसीत्।
2. भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद्
गुणमहतामपि लालनीय एव।
व्रजतिध हिमकरोऽपि बालभावात्
पशुपति-मस्तक-केतकच्छत्वम्॥
अन्वय – गुणमहताम् अपि वयोऽनुरोधात् शिशुजन: लालनीयः एव भवति। बालभावात् हि हिमकरः अपि पशुपति-मस्तक-केतच्छदत्वम् व्रजति।
भाव – अत्यधिक गुणी लोगों के लिए भी छोटी उम्र के कारण बालक लालनीय ही होता है। चन्द्रमा बालभाव के कारण ही शटर के मस्तक का आभूषण बनकर केतकी पुष्पों से निर्मित चूड़ा की भाँति शोभित होता हैं।
भवन्तौ गायन्तौ कविरपि पुराणों व्रतनिधिर् गिरा
सन्दर्भेऽयं प्रथमवतीणों वसुमतीम्।
कथा चेयं श्लाघ्या सरसिरुहनाभस्य नियतं,
पुनाति श्रोतार रमयति च सोऽयं परिकरः॥
अन्वय – भवन्ती गायन्तौ, पुराणः व्रतनिधिः कविः अपि, वसुमतीम् प्रथम अवतीर्णः गिराम् अयं सन्दर्भः, सरसिरुिहनाभस्य च इंच श्लाघ्या कथा, सःि च अयं परिकरः नियंत श्रोतारं पुनाति रमयति च।
भाव – भगवान् वाल्मीकि द्वारा निबद्ध पुराणपुरुष की कथा, कुश लव द्वारा श्री राम को सुनायी जानी थी, उसी की सूचना देते हुए नेपथ्य से कुश और लव को बिना समय नष्ट किये अपने कर्तव्य का पालन करने का निर्देश दिया जाता है। दोनों राम से आज्ञा लेकर जाना चाहते हैं तब श्री राम उपर्युक्त श्लोक के माध्यम से उस रचना का सम्मान करते हैं।
आप दोनों (कुश और लव) इस कथा का गान करने वाले हैं, तपोनिधि पुराण मुनि (वाल्मीकि) इस रचना के __ कवि हैं, धरती पर प्रथम बार अवतरित होने वाला स्फुट
वाणी का यह काव्य है और इसकी कथा कमलनाभि विष्णु
से सम्बद्ध है इस प्रकार निश्चय ही यह संयोग श्रोताओं को _पवित्र और आनन्दित करने वाला है।
योग्यताविस्तारः
नाट्य-प्रसङ्गः
कुन्दमाला के लेखक दिङ्नाग ने प्रस्तुत नाटक में रामकथा के करुण अवसाद भरे उत्तरार्ध की नाटकीय सम्भावनाओं को मौलिकता से साकार किया है। इसी कथानक पर प्रसिद्ध नाटककार भवभूति का उत्तररामचरित भी आश्रित है। कुन्दमाला के छहों अटों का दृश्यविधान वाल्मीकि-तपोवन के परिसर में ही केन्द्रित है। प्रस्तुत नाटकांश पञ्चम अट से सम्पादित कर सटलित किया गया है। लव और कुश से मिलने पर राम के हृदय में उनसे आलिंगन की लालसा होती है। उनके स्पर्शसुख से अभिभूत हो राम, उन्हें अपने सिंहासन पर, अपनी गोद में बिठाकर लाड़ करते हैं। इसी भाव की पुष्टि में नाटक में यह श्लोक उद्धृत है
भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद्
गुणमहतामपि लालनीय एव।
व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात्
पशुपति-मस्तक-केतकच्छवत्वम्।।
शिशुस्नेहसमभावश्लोकाः
अनेन कस्यापि कुलाङ्कुरेण
स्पृष्टस्य गात्रेषु सुखं ममैवम् ।
का निर्वृतिं चेतसि तस्य कुर्याद्
यस्यायमकात् कृतिनः प्ररूढः ।। (कालिदासस्य)
अन्त:करणतत्त्वस्य दम्पत्योः स्नेहसंश्रयात् ।
आनन्दग्रन्थिरेकोऽयमपत्यमिति पठ्यते ॥ (भवभूते:)
धूलोधूसरतनवः
क्रीडाराज्ये स्वके च रममाणाः ।
कृतमुखवाद्यविकाराः
क्रीडन्ति सुनिर्भर बालाः ।। (कस्यचित्)
अनियतरुदित स्मित विराजत्
कतिपयकोमलदन्तकुड्मलाग्रम् ।
वदनकमलकं शिशोः स्मरामि
स्खलदसमञ्जसमञ्जुजल्पितं ते ॥
Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम् Summary Translation in Hindi and English
पाठपरिचय – प्रस्तुत पाठ संस्कृतवाङ्मय के प्रसिद्ध नाटक ‘कुन्दमाला’ के पंचम अङ्क से सम्पादित कर लिया गया है। इसके रचयिता प्रसिद्ध नाटककार दिङ्नाग हैं। इस नाटकांश में राम कुश और लव को सिंहासन पर बैठाना चाहते हैं किन्तु वे दोनों अतिशालीनतापूर्वक मना करते हैं। सिंहासनारूढ राम कुश और लव के सौन्दर्य से आकृष्ट होकर उन्हें अपनी गोद में बिठा लेते हैं और आनन्दित होते हैं। रात में शिशु स्नेह का अत्यन्त मनोहारी वर्णन किया गया हैं।
1. विदूषकः-इत इत आयौं! कुशलवी-(रामम् उपसृत्य प्रणम्य च) अपि कुशलं महाराजस्य?
रामः – युष्मद्दर्शनात् कुशलमिव। भवतोः किं वयमत्र
कुशलप्रश्नस्य भाजनम् एव, न पुनरतिथिजन समुचितस्य कण्ठाश्लेषस्य। (परिष्वज्य) अहो हृदयग्राही स्पर्शः।
उभौ – राजासनं खल्वेतत्, न युक्तमध्यासितुम्।
रामः – सव्यवधानं न चारित्रलोपाय। तस्मावङ्क – व्यवहितमध्यास्यतां सिंहासनम्।
(अङ्कमुपवेशयति)
उभौ – (अनिच्छा नाटयतः) राजन्!
अलमतिदाक्षिण्येन।
रामः-अलमतिशालीनतया।
भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद्
गुणमहतामपि लालनीय एव।
व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात्
पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम्।।
रामः – एष भवतोः सौन्दर्यावलोकजनितेन कौतूहलेन
पृच्छामि – क्षत्रियकुल-पितामहयोः सूर्यचन्द्रयोः को वा भवतोवंशस्य कर्ता?
लव: – भगवन् सहस्रदीधितिः।
रामः – कथमस्मत्समानाभिजनौ संवृत्ती?
विदूषकः – किं द्वयोरप्येकमेव प्रतिवचनम्?
लव: – भ्रातरावावां सोदयौं।
रामः – समरूपः शरीरसन्निवेशः। वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम् ।
शब्दार्थ:-
उत्थाय – उत्थितो भूत्वा (उठकर)
अलक्रियते – विभूष्यते (सुशोभित होता है)
पितामहः – पितुः पिता (पिता के पिता)
सहस्रदीधितिः – सूर्यः (सूर्य)
कण्ठाश्लेषस्य – कण्ठे आश्लेषस्य (गले लगाने का)
परिष्वज्य – आलिङ्गनं कृत्वा (आलिङ्गन करके)
विचिन्त्य – विचार्य (विचार करके)
अनभिज्ञः – अपरिचित : (नहीं जानने वाला/अनजान)
अध्यासितुम् – उपवेष्टुम् (बैठने के लिए)
सव्यवधानम् – व्यवधानेन सहितम् (रुकावट सहित)
अध्यास्यताम् – उपविश्यताम् (बैठिये)
अलमतिदाक्षिण्येन – अलमतिकौशलेन (अत्यधिक दक्षता, अधिक कुशलता नहीं करें)
अङ्कमु – क्रोडम् (गोद में)
हिमकरः – चन्द्रः (चन्द्रमा)
पशुपतिः – शिवः (शिव)
केतक-छदत्वम् – केतकस्य छदत्वम् (केतकी (केवड़े) के पुष्प से बना मस्तक का शेखर (जूड़ा)
सरलार्थ: –
सिंहासन पर स्थित राम! इसके बाद प्रवेश करते है विदूषक द्वारा मार्ग दिखाए गए हुए तपस्वी दोनों लव व कुश?
वियूषक – हे आर्य पुत्रों! इधर, इधर कुश व लव-(राम के पास जाकर और प्रणाम करके) क्या महाराज सकुशल है?
राम – आपके दर्शन पाकर कुशल हूँ हम यहाँ आपकी कुशलता पूछने के योग्य है, नहीं तो फिर आप जैसे अतिथियों से उचित रूप से गले लगाने योग्य है। (गले लगाकर के) अरे! यह स्पर्श तो हृद्धय को छुने वाला है।
दोनों – यह राजा का आसन है, इस पर बैठना उचित नहीं है।
राम – व्यवधान के साथ, आचरण लोप न हो इसलिए गोद की रूकावट के साथ सिहांसन पर बैठ जाइए (अर्थात गोद में बैठ जाइए) (गोद में बैठाते है)
दोनों – (इच्छा नहीं होने का नाटक करते है) हे राजन! अत्यधिक कुशलता मत कीजिए।
रामा – अधिक शालीनता मत दिखाइए।
“अधिक गुणों से युक्त लोगों के लिए भी छोटी उम्र के कारण बालक लालनीय ही होता है। क्यों कि चन्द्रमा बालभाव के कारण ही भगवान शङ्कर के मस्तक का आभूषण बनता है एवं केतकी फूलों के समान चूड़ा की तरह सुशोभित होता है।
राम – आप दोनों के सौन्दर्य दर्शन पाकर जिज्ञासावश यह पूछ रहा हूँ कि क्षत्रिय कुल के पितामह सूर्य व चन्द्र में से आपके वंश के (जनक) कौन है?
लव – भगवान सूर्य
राम – क्या हमारे ही वंश के है आप दोनों? विदूषक-क्या दोनों सगे भाई है।
लव – हम दोनों सगे भाई है।
राम – रूप समान है एवं शरीर संरचना भी समान है। आयु का थोड़ा भी अन्तर नहीं है।
2. लव: – आवां यमलौ।
रामः – सम्प्रति युज्यते। किं नामधेयम्?
लवः – आर्यस्य वन्दनायां लव इत्यात्मानं श्रावयामि (कुशं निर्दिश्य) आर्योंऽपि गुरुचरणवन्दनायाम् ………..
कुशः – अहमपि कुश इत्यात्मानं श्रावयामि।
रामः – अहो! उदात्तरम्यः समुदाचारः।
किं नामधेयो भवतोर्गुरुः?
लवः – ननु भगवान् वाल्मीकिः।
रामः – केन सम्बन्धेन?
लव: – उपनयनोपदेशेन।
रामः – अहमत्रभवतोः जनकं नामतो वेदितुमिच्छामि।
लव: – न हि जानाम्यस्य नामधेयम्। न कश्चिदस्मिन् तपोवने तस्य नाम व्यवहरति।
रामः – अहो माहात्म्यम्।
कुश: – जानाम्यहं तस्य नामधेयम्।
रामः – कथ्यताम्।
कुशः – निरनुक्रोशो नाम….
राम: – वयस्य, अपूर्वं खलु नामधेयम्।
विदूषकः – (विचिन्त्य) एवं तावत् पृच्छामि निरनुक्रोश इति क एवं भणति?
कुश: – अम्बा।
विदूषकः – किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृतिस्था?
कुश: – यद्यावयोर्बालभावजनितं किञ्चिदविनयं पश्यति तदा एवम् अधिक्षिपति-निरनुक्रोशस्य पुत्रौ, मा चापलम् इति।
विदूषकः – एतयोर्यदि पितुर्निरनुक्रोश इति नामधेयम् एतयोर्जननी तेनावमानिता निर्वासिता एतेन वचनेन दारको निर्भर्त्सयति।
रामः – (स्वगतम्) धिङ् मामेवंभूतम्। सा तपस्विनी मत्कृतेनापराधेन स्वापत्यमेवं मन्युगभैरक्षरैर्निर्भसंयति।
शब्दार्थ:
यमलौ – युगलौ (जुड़वाँ)
शरीरसन्निवेशः – अङ्ग-रचनाविन्यासः (शरीर की बनावट)
उदात्तरम्यः – अत्यन्तः रमणीयः (अत्यधिक मनोहर)
समुदाचारः – शिष्टाचारः (शिष्टाचार)
उपनयनोपदेशेन – उपनयनस्य उपदेशेन (उपनयन-संस्कारदीक्षया)
(उपनयन की दीक्षा के कारण)
नामधेयम् – नाम (नाम)
निरनुक्रोशः – निर्दयः (दया रहित)
वयस्य – मित्र (मित्र)
भणति – कथयति (कहता है)
अम्बा – जननी (माता)
उत – अथवा (अथवा)
प्रकृतिस्था – सामान्या मनःस्थितिः (स्वाभाविक रूप से)
अधिक्षिपति – अधिक्षेपं करोति (फटकारती है)
चापलम् – चपलताम् (चंचलता)
अवमानिता – तिरस्कृता (अपमानित)
दारको – पुत्रौ (पुत्र)
निर्भद्यति – तर्जयति (धमकाती है)
सरलार्थ:
लव – हम दोनों जुड़वे भाई है।
राम – तब ठीक है नाम क्या है?
लव – आर्य (आप की स्तुति में अपने आपको लव सुना रहा हूँ) (कुशकी तरफ इशारा करते हुए) आर्य भी गुरूचरणों की बंदना में।
कुश – मैं भी अपने आपको कुश बताता हूँ।
राम – अहों! शिष्टाचार अति उत्तम है। आप दोनों के गुरू का क्या नाम है?
लव – भगवन् वाल्मीकि।
राम – किस सम्बन्ध से।
लव – उपनयन संस्कार की दीक्षा देने के कारण।
राम – मैं आप दोनों के पिता को नाम जानना चाहता हूँ।
लव – मैं उनका नाम नहीं जानता हूँ तपोवन में कोई भी उनका नाम नहीं लेता है। राम-अरे! बहुत अच्छा (महान) है।
कुश – मैं जानता हूँ उनका नाम।
राम – कहिए कुश-“निर्दय” नाम है।
राम – मित्र, निश्चत ही अनोखा नाम है।
विदूषक – (सोचकर) यह पूछ रहा हूँ कि उन्हें निर्दय कौन कहता है?
कुश – माँ विदूषक-क्या वे गुस्से मेंऐसा कहती है या वास्तविक रूप में ऐसा कहती है।
कुश – यदि हम दोनों की बालभाव से उत्पन्न उद्दण्डता देखती है, तब ऐसा (कहकर) फटकारती है-‘निर्दय के पुत्रों, चञ्चलता मत करो’ ऐसा।
विदूषक – यदि इनके पिता का नाम निर्दय है तो इनकी माता उससे अपमानित व निस्कासित होने के कारण इन्हें फटकारती है।
राम – (अपने मन में) ऐसे मुझको धिम्कार है वह तपस्विनी मेरे द्वारा किए गए अपराध के कारण अपनी सन्तान की इस प्रकार अहंकार युक्त शब्दों से फटकारती है। (नम आँखों से देखने लगते है)
3. रामः – अतिदीर्घः प्रवासोऽयं दारुणश्च। (विदूषकमवलोक्य जनान्तिकम्) कुतूहलेनाविष्टो मातरमनयोनामतो वेदितुमिच्छामि। न युक्तं च स्त्रीगतमनुयोक्तुम्, विशेषतस्तपोवने। तत् कोऽत्राभ्युपायः?
विदूषकः – (जनान्तिकम्) अहं पुनः पृच्छामि। (प्रकाशम्) किं नामधेया युवयोर्जननी?
लवः – तस्याः द्वे नामनी।
विदूषकः – कथमिव? लव:-तपोवनवासिनो देवीति नाम्नाह्वयन्ति, भगवान् वाल्मीकिर्वधूरिति।
राम: – अपि च इतस्तावद् वयस्य! मुहूर्त्तमात्रम्।
विदूषकः – (उपसृत्य) आज्ञापयतु भवान्।
राम: – अपि कुमारयोरनयोरस्माकं च सर्वथा समरूप: कुटुम्बवृत्तान्तः?
(नेपथ्ये)
इयतो वेला सञ्जाता रामायणगानस्य नियोगः किमर्थ न विधीयते?
उभौ-राजन्! उपाध्यायदूतोऽस्मान् त्वरयति।
रामः-मयापि सम्माननीय एव मुनिनियोगः। तथाहि
भवन्तौ गायन्तौ कविरपि पुराणो व्रतनिधिर्
गिरां सन्दर्भोऽयं प्रथममवतीर्णो वसुमतीम्। कथा
चेयं श्लाघ्या सरसिरुहनाभस्य नियतं,
पुनाति श्रोतारं रमयति च सोऽयं परिकरः।।
वयस्य! अपूर्वोऽयं मानवानां सरस्वत्यवतारः, तदहं
सुहृज्जनसाधारणं श्रोतुमिच्छामि। सन्निधीयन्तां सभासदः,
प्रेष्यतामस्मदन्तिवं सौमित्रिः,
अहमप्येतयोश्चिरासनपरिखेदं विहरणं कृत्वा अपनयामि ।
शब्दार्थः –
प्रवास:-विदेश गमनम् (विदेश को जाना), दारूण-भीषणः (भयंकर), अवलोक्य-दृष्ट्वा (देखकर), आह्वयन्ति-शब्दापयन्ति (पुकारते है). आज्ञायपतु-आदेशयतु (आज्ञा दीजिए). उपाध्यायः-आचार्य शिक्षक: (शिक्षक), शलाह्या-प्रशंसनीया (प्रशंसा योग्य), सरसिरूहनाभस्य-विष्णों (विष्णु का), निःश्वस्य-दीर्ध श्वास, ग्रहीत्वा-लम्बी श्वास लेकर, स्वापत्यम्-स्वसन्ततिम् (अपनी संतान को)
सरलार्थ: –
राम – यह प्रवास बहुत लम्बा व भंयकर हो गया है (विदूषक को देखकर अकेले में) इनकी माता को छुटे हुए नाम से जानना चाहता हूँ अर्थात वास्तविक नाम से जानना चाहता है। स्त्री के बारे में पूछ ताछ उचित नहीं हैं, विशेष रूप से तपोवन में, तो फिर क्या उपाय है।
विदूषक – (अकेले मे) फिर मैं पूछ लेता हूँ। (प्रकाश में) तुम दोनों की माता का नाम क्या है? लव-उसके दो नाम है
विदूषक – कैसे?
लव – तपोवनवासो उसे “देवा” के नाम से पुकारते है एवं भगवान वामीकि ‘वधू’ इस नाम से।
राम – मित्र, इसके अलावा क्या है?
विदूषक – (पास जाकर) आज्ञा दीजिए आप।
राम – क्या इन दोनों कुमारों और हमारे वेश का वृत्तान्त
पूर्णतः समान है? (पर्दे से) इतना समय हो गया है, रामायण के गायन की तैयारी क्यों नहीं की जा रही है?
दोनों – हे राजन्! उपाध्याय का दूत हमें शीघ्रता के लिए कह रहा है।
राम – मुनि की व्यवस्था हमारे लिए भी सम्मानीय है क्योंकि-आप दोनों इस कथा का गान करने वाले हैं, तपोनिधि पुराण मुनि इस रचना के कवि हैं, ध रती पर प्रथम बार अवतरित होने वाला स्फुट वाणी का यह काव्य है और इसकी कथा कमलनाभि विष्णु से सम्बद्ध है इस प्रकार निश्चय ही यह संयोग श्रोताओं को पवित्र और आनन्दित करने वाला है।’ मित्र! सरस्वती का यह अवतार मानवों के लिए अनोखा है, मैं उस जनसाधारण के हृदय (में स्थित) भाव को सुनना चाहता हूँ! सभी सभासद बैठ जाएँ। लक्ष्मण को मेरे पास भेजा जाए। मैं भी उन दोनों के चिरकालजनित कष्ट को विहार करके दूर कर देता हूँ। (इस प्रकार सभी निकल जाते हैं।)