RBSE Solutions for Class 7 Science Chapter 7 जैव विकास
RBSE Solutions for Class 7 Science Chapter 7 जैव विकास
Rajasthan Board RBSE Class 7 Science Chapter 7 जैव विकास
पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर
सही विकल्प का चयन कीजिए
प्रश्न 1.
मछली के हृदय में होते हैं|
(अ) एक आलिन्द एक निलय
(ब) एक आलिन्द दो निलय
(स) दो आलिन्द एक निलय
(द) दो आलिन्द दो निलय
उत्तर:
(अ) एक आलिन्द एक निलय
प्रश्न 2.
आर्कियोप्टेरिक्स योजक कड़ी है
(अ) पीसीज व एम्फिबिया के मध्य
(ब) रेप्टीलिया व ऐवीज के मध्य
(स) ऐवीज व मेमेलिया के मध्य
(द) एम्फिबिया व रेप्टीलिया के मध्य ।
उत्तर:
(ब) रेप्टीलिया व ऐवीज के मध्य
प्रश्न 3.
उत्परिवर्तन का सिद्धान्त किस वैज्ञानिक ने दिया ? |
(अ) लैमार्क
(ब) डार्विन
(स) ह्युगो डी ब्रीज
(द) मेण्डल
उत्तर:
(स) ह्युगो डी ब्रीज
प्रश्न 4.
व्हेल के अग्रपाद क्या कहलाते हैं ?
(अ) फ्लिपर
(ब) हाथ
(स) पंख
(द) पैर ।
उत्तर:
(अ) फ्लिपर
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
प्रश्न 1.
पक्षी व चमगादड़ के पंख ……………. अंग हैं।
प्रश्न 2.
रीढ़ की हड्डी छोटी-छोटी ……….. से बनी होती है।
प्रश्न 3.
प्रत्येक जन्तु का भ्रूणीय विकास उसके ………… के इतिहास को दोहराता है।
प्रश्न 4.
जैव विकास ……….. व………. प्रक्रिया है।
प्रश्न 5.
डार्विन ने ………….. का सिद्धान्त दिया।
उत्तर:
1. समवृत्ति
2. कशेरुकाओं
3. जातीय विकास
4. सतत्, मन्द
5. प्राकृतिक वरण।
लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
समजात व समवर्ती अंगों में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
समजात व समवृत्ति अंगों में अन्तर
प्रश्न 2.
जीवाश्म निर्माण की प्रक्रिया लिखिए।
उत्तर:
जीवधारियों के मृत शरीर चट्टानों विशेषकर अवसादी चट्टानों में दब जाते हैं तो कालान्तर में इनके अवशेष या चिन्ह चट्टानों में बच जाते हैं। यही जीवाश्म कहलाते हैं। कभी-कभी जीवधारियों के सम्पूर्ण शरीर जीवाश्म के रूप में परिरक्षित रहते हैं।
प्रश्न 3.
जैव विकास के क्रम को दर्शाते हुए विभिन्न जन्तुओं के हृदय की संरचनाएँ बनाइए।
उत्तर:
प्रश्न 4.
लैमार्क के विकासवाद सिद्धान्त को उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लैमार्क के अनुसार वातावरण में हुए परिवर्तनों के कारण अधिक प्रयोग में आने वाले अंग अधिक विकसित तथा कम प्रयोग में आने वाले अंग लुप्त हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, अफ्रीकी जिराफ की अगली टाँगों और गर्दन के अधिक प्रयोग होने के कारण इनका लम्बा होना।
प्रश्न 5.
उत्परिवर्तन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
कुछ जीवधारियों में अकस्मात् कुछ भिन्न लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। ये लक्षण वंशागत होकर पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थानान्तरित होते हैं। इन्हीं अकस्मात् वंशागत लक्षणों के विकसित होने की प्रक्रिया को उत्परिवर्तन (Mutation) कहते हैं।
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भ्रूणीय प्रमाण के आधार पर जैव विकास को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भ्रूणीय प्रमाण (Evidences from Embryology) – बहुकोशिकीय जीवों में लैंगिक प्रजनन द्वारा एक कोशिकीय युग्मनज (zygote) बनता है जो कि विभाजन द्वारा भ्रूण बनता है।
जब हम मछली, कछुआ, चूजा तथा मनुष्य के भ्रूणों के चित्रों का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं तो इनकी आरम्भिक अवस्थाएँ लगभग समान दिखाई देती हैं। इससे सिद्ध होता है कि सभी पृष्ठवंशियों के पूर्वज मछली सदृश रहे होंगे तथा इनका विकास निश्चित क्रम में हुआ है। प्रत्येक जन्तु का भ्रूणीय विकास उसके जातीय विकास के इतिहास को दोहराता है। इसे पुनरावर्तन सिद्धान्त कहते हैं। इसे हेकेल नामक जर्मन वैज्ञानिक ने प्रतिपादित किया था।
प्रश्न 2.
डार्विन के सिद्धान्त के विभिन्न चरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
डार्विन का सिद्धान्त- चार्ल्स डार्विन ने जैव विकास हेतु प्राकृतिक वरण का सिद्धान्त दिया। डार्विन के सिद्धान्त के विभिन्न चरण निम्नानुसार हैं
1. सजीवों में सन्तानोत्पादन- प्रत्येक जीव अपनी जाति को बनाए रखने के लिए सन्तानोत्पादन करता है। हाथी अपने जीवनकाल में लगभग 8 सन्तानें उत्पन्न करता है। यह एक धीमा प्रजनक है। एक जोड़ी हाथी नियमित रूप से जनन करने लगे तथा इनसे उत्पन्न सभी सन्ताने नियमित रूप से जनन करती रहें तो 750 वर्ष में इस एक जोड़ी से लगभग 1900000 हाथी उत्पन्न हो जायेंगे और हाथियों की संख्या बहुत अधिक हो जाएगी। परन्तु ऐसा नहीं होता है।
2. जीवन संघर्ष- अधिक जीवों की सन्तानोत्पत्ति से जीवों की संख्या बढ़ने से जीवों में आवास और भोजन के लिए
आपस में संघर्ष होने लगता है। इसे जीवन संघर्ष कहते हैं। | यह संघर्ष अपनी जाति के जन्तुओं व अन्य जाति के जन्तुओं | से भी होता है, जो सक्षम है वही जीएगा। संघर्षों के कारण विनाश होने से प्रकृति में जीवों की संख्या सन्तुलित एवं नियमित रह जाती है।
3. प्राकृतिक वरण- जीवन संघर्ष में वे जन्तु ही जीवित रहते हैं जो अपने आपको प्रकृति अर्थात् वातावरण के अनुसार ढाल लेते हैं। यदि वे इसमें सक्षम नहीं होते हैं, तो वे नष्ट हो जाते हैं।
4. नई जातियों की उत्पत्ति- लाभदायक लक्षणों की वंशागति पीढ़ी-दर-पीढ़ी होती रहती है व हानिकारक एवं अनावश्यक लक्षण धीरे-धीरे विलुप्त या अवशेषित हो जाते हैं। कई बार विभिन्नताएँ इतनी बढ़ जाती हैं कि हजारों-लाखों वर्षों के बाद नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से अत्यधिक भिन्न हो जाती है। और एक नई जाति का विकास हो जाता है। उदाहरण के लिए, आरम्भ में कुत्ता, गीदड़ व भेड़िया तीनों एक ही जाति के सदस्य थे परन्तु वातावरण परिवर्तन के कारण स्वयं को वातावरण के अनुसार बनाने के लिए इनके आकार व शारीरिक लक्षणों में अन्तर आ गया और हजारों वर्षों के बाद अन्त में कुत्ता, गीदड़ व भेड़िया तीन नई जातियाँ विकसित हो गईं।
प्रश्न 3.
जीवाश्म निर्माण प्रक्रिया समझाइए।
उत्तर:
जीवाश्म निर्माण की प्रक्रिया-किसी भी मृत जीवधारी के जीवाश्म का निर्माण तब होता है जबकि उसके
शरीर (या अंग) का क्षय होने से पूर्व मिट्टी, रेत, कीचड़ | आदि में धंस जाता है। धंसने के बावजूद विघटन की प्रक्रिया | जारी रहती है और शरीर के कोमल भाग विघटित हो जाते हैं। परन्तु शरीर के सख्त भाग ज्यों के त्यों बने रहते हैं तथा जीवाश्म कहलाते हैं। जब ये कीचड़ और रेत इत्यादि सूखकर चट्टानों में परिवर्तित होते हैं तो ये विघटित अवशेष जीवाश्मों के रूप में परिरक्षित रहते हैं। सभी जीवधारियों के जीवाश्म नहीं बन पाते हैं। केवल उन्हीं जीवधारियों के जीवाश्म बन | पाते हैं जिनकी मृत्यु उस जगह होती है, जहाँ उनके मृत शरीरों को परिरक्षण हो सके।
क्रियात्मक कार्य
प्रश्न 1.
जन्तुओं के विकास क्रम का चार्ट बनाकर कक्षा में लगाइए।
उत्तर:
प्रश्न 2.
अवशेषी अंगों का कोलाज बनाइए।
उत्तर:
पाठगत प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
जीवन का प्रारम्भ कब और कैसे हुआ ? (पृष्ठ 63)
उत्तर:
पृथ्वी पर जीवन का प्रारम्भ आज से लगभग 3.5 अरब वर्ष पूर्व हुआ माना जाता है। वस्तुतः जीवन की उत्पत्ति एक अत्यन्त मन्द प्रक्रिया के फलस्वरूप हुई। प्रारम्भ में पृथ्वी को वातावरण अपचायक था। उस समय जीवन की उत्पत्ति हेतु परिस्थितियाँ उपलब्ध र्थी जो आज के समय में नहीं हैं। विभिन्न रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप कुछ अमीनो अम्लों का निर्माण हुआ। अमीनो अम्लों के संयोग से प्राथमिक सरल कोशिका बनी जिससे कालान्तर में अनेक प्रकार के जीव-जन्तुओं का विकास हुआ।
प्रश्न 2.
क्या सभी जीव प्रारम्भ से ही ऐसे थे, जैसे आज हैं ? (पृष्ठ63)
उत्तर:
नहीं; सभी जीव प्रारम्भ से ही ऐसे नहीं थे, जैसे कि आज हैं। उस समय से लेकर आज तक जीव-जातियों में तरह-तरह के परिवर्तन आए हैं और इनसे नयी-नयी जातियों का विकास हुआ है।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरे
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सर्वाधिक विकसित वर्ग है
(अ) पिसीज
(ब) ऐवीज
(स) रेप्टीलिया।
(द) मेमेलिया।
उत्तर:
(स) रेप्टीलिया।
प्रश्न 2.
निम्न में समजात अंगों का जोड़ा है
(अ) पक्षी के पंख-मनुष्य का हाथ
(ब) चमगादड़ का पंख-कीट के पंख
(ब) पक्षी के पंख-कीट के पंख
(द) व्हेल का फ्लिपर-मछली का पंख |
उत्तर:
(अ) पक्षी के पंख-मनुष्य का हाथ
प्रश्न 3.
निम्न में समवृत्ति अंगों का जोड़ा है
(अ) कीट के पंख-पक्षी के पंख
(ब) मनुष्य का हाथ-घोड़े को अग्रपाद
(स) व्हेल का फ्लिपर-चमगादड़ का पंख
(द) पक्षी के पंख-व्हेल का फ्लिपर।
उत्तर:
(अ) कीट के पंख-पक्षी के पंख
प्रश्न 4.
विकास का सबसे ठोस प्रमाण है
(अ) अवशेषी अंग
(ब) जीवाश्म
(स) जैव विकास
(द) भौणिकी।
उत्तर:
(ब) जीवाश्म
प्रश्न 5.
पुनरावर्तन सिद्धान्त प्रस्तुत किया था
(अ) लैमार्क ने
(ब) डार्विन ने
(स) ह्यूगो डी ब्रीज ने
(द) हेकेल ने।
उत्तर:
(द) हेकेल ने।
प्रश्न 6.
उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धान्त प्रस्तुत किया था
(अ)डार्विन ने
(ब) लैमार्क ने
(स) बीरबल साहनी ने
(द) ह्यूगो डी ब्रीज ने।
उत्तर:
(ब) लैमार्क ने
रिक्त स्थान
प्रश्न 1.
पिसीज वर्ग के जन्तुओं से ….का विकास हुआ।
प्रश्न 2.
चट्टानों में मिलने वाले मृत जीवधारियों के अवशेष ……….. कहलाते हैं।
प्रश्न 3.
सामान्यतः पृष्ठवंशी जन्तुओं में …… पाया जाता है।
प्रश्न 4.
जिराफ केवल ………… में पाया जाता है।
प्रश्न 5.
……….. नामक वैज्ञानिक ने उत्परिवर्तन का सिद्धान्त दिया।
उत्तर:
1. सरीसृपों
2. जीवाश्म
3. कंकाल
4. अफ्रीका
5. ह्यूगो डी ब्रीज।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पृथ्वी पर प्रारम्भिक प्रोटीनों का निर्माण किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
अमीनो अम्ल तथा कार्बनिक अम्लों के मध्य रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप पृथ्वी पर प्रारम्भिक प्रोटीनों का निर्माण हुआ।
प्रश्न 2.
जैव विकास को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
सरलतम जीवों में परिवर्तनों द्वारा क्रमशः अधिकाधिक जटिले जीवों की उत्पत्ति एवं विकास को जैव विकास कहते
प्रश्न 3.
पृथ्वी पर सर्वप्रथम कैसे जीवों का विकास हुआ ?
उत्तर:
पृथ्वी पर सर्वप्रथम एककोशिकीय जीवों का विकास हुआ।
प्रश्न 4.
एक विलुप्त जन्तु का नाम लिखिए।
उत्तर:
डाइनोसोर।
प्रश्न 5.
मनुष्य के दो अवशेषी अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
1. आँख की निमेषक पटल
2. कृमिरूप परिशेषिका ।
प्रश्न 6.
कंकाल के आधार पर एक मछली और एक मनुष्य में क्या समानता है ?
उत्तर:
दोनों में रीढ़ की हड्डी कशेरुकाओं से बनी होती है।
प्रश्न 7.
मछली और मेढ़क के हृदय में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
मछली के हृदय में दो कौष्ठ होते हैं जबकि मेढ़क के हृदय में तीन कोष्ठ होते हैं।
प्रश्न 8.
जीवों के वर्गीकरण का क्या आधार है ?
उत्तर:
जीवों के वर्गीकरण में समान गुणों वाले जीवों को एक ही वर्ग में रखा जाता है।
प्रश्न 9.
एक जीवाश्म का नाम लिखिए।
उत्तर:
आर्कियोप्टेरिक्स।
प्रश्न 10.
एक भारतीय पुरा-वनस्पतिशास्त्र वैज्ञानिक का नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रो. बीरबल साहनी।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जन्तुओं के विकास क्रम को संक्षिप्त में समझाइए।
उत्तर:
जन्तुओं का विकास क्रम- पृथ्वी पर सर्वप्रथम एक कोशिकीय जीवों का विकास हुआ। इनसे बहुकोशिकीय जीवों की उत्पत्ति हुई। पूर्व में ये जीव सरल थे किन्तु धीरे-धीरे विकास के क्रम में जटिल होते गए। आरम्भ में सभी जन्तु अकशेरुकी (Invertebrates) बिना रीढ़ की हड्डी वाले थे। इनसे मछलियों का विकास हुआ, जिनसे उभयचर जन्तुओं का विकास हुआ। मछलियों से सरीसृपों का, कुछ सरीसृपों से पक्षियों का तथा कुछ सरीसृपों से स्तनी प्राणियों का विकास हुआ। एक वर्ग के जन्तुओं से दूसरे वर्ग के जन्तुओं के विकास में हजारों वर्षों का समय लगा।
प्रश्न 2.
समजात अंग किसे कहते हैं ? ये जैव विकास को कैसे प्रमाणित करते हैं ?
उत्तर:
समजात अंग (Homologous Organs)- ऐसे अंग जो मूल संरचना एवं उत्पत्ति में समान होते हैं किन्तु कार्यों एवं बाह्य संरचना में भिन्न होते हैं, समजात अंग कहलाते हैं। उदाहरण के लिए, मनुष्य के हाथ एवं पक्षी के पंख बाह्य संरचना एवं कार्यों में भिन्न होते हैं, किन्तु इनकी मूल संरचना एवं उत्पत्ति समान होती है। अंगों की समान उत्पत्ति सिद्ध करती है कि इन जन्तुओं के पूर्वज समान थे तथा कालान्तर में इनका क्रमिक विकास हुआ।
प्रश्न 3.
कुछ जन्तुओं के अग्रपाद के कार्य व उनके रूपान्तरण की सारणी बनाइए।
उत्तर:
प्रश्न 4.
समवृत्ति अंग किसे कहते हैं ? समवृत्ति अंग क्या प्रमाणित करते हैं ?
उत्तर:
समवृत्ति अंग (Analogous Organs)- कीट, चमगादड़ एवं पक्षी, तीनों के पंख उड़ने में सहायता करते हैं, परन्तु इनके पंखों की मूल संरचना एवं उत्पत्ति में अन्तर होता है। कीट के पंखों की उत्पत्ति शरीर की भित्ति से निकले प्रवर्थों के रूप में होती है, जबकि पक्षी तथा चमगादड़ के पंख की उत्पत्ति अग्रपाद के रूपान्तरण से होती है और इनमें हड्डियाँ होती हैं। अतः इनके कार्यों में तो समानता होती है, परन्तु उत्पत्ति एवं संरचना में भिन्नता होती है, ऐसे अंगों को समवृत्ति अंग कहते हैं। समवृत्ति अंग वाले जन्तुओं का विकास जन्तुओं के विभिन्न वर्गों में विभिन्न प्रकार से हुआ है।
प्रश्न 5.
विभिन्न जन्तुओं के पाचन तन्त्र से जैव विकास दर्शाने के लिए क्या प्रमाण मिलता है ?
उत्तर:
हम देखते हैं कि मेढ़क, पक्षी, मनुष्य आदि जन्तुओं के पाचन तन्त्र में ग्रसनी, आमाशय, छोटी आँत, बड़ी आँत आदि पाए जाते हैं। इनमें यकृत, अग्न्याशय आदि पाचक ग्रन्थियाँ भी होती हैं। इनमें उत्पन्न पाचक रस (Digestive Enzymes) व उनके कार्य भी समान हैं। अतः इनसे सिद्ध होता है कि इन जन्तुओं का विकास एक निश्चित क्रम में हुआ है।
प्रश्न 6.
जन्तुओं में कंकाल जैव विकास को समझाने के लिए किस प्रकार सहायक है ?
उत्तर:
सामान्यतः पृष्ठवंशी जन्तुओं में कंकाल पाया जाता है। इनमें रीढ़ की हड्डी पायी जाती है जो कि छोटी-छोटी हड़ियों से मिलकर बनी होती है जिन्हें कशेरुकाएँ कहते हैं। इनके हाथ-पैर की हड्डियों व कंकाल तन्त्रों में समानता यह बताती है कि इनके पूर्वज समान रहे होंगे। समय के साथ परिस्थितियों में परिवर्तन होने से इनमें कुछ अन्तर आ गया है।
प्रश्न 7.
हृदय की संरचना विकास क्रम को किस प्रकार प्रदर्शित करती है ?
उत्तर:
मछली, मेढ़क, सर्प तथा मनुष्य के हृदय के तुलनात्मक अध्ययन से ज्ञात होता है कि मछली के हृदय की संरचना सबसे सरल होती है और क्रमश: मनुष्य के हृदय की संरचना जटिल होती है जो कि एक निश्चित विकास क्रम को दर्शाती है। जैसा कि सारणी में प्रदर्शित है
प्रश्न 8.
भ्रूणों का अध्ययन किस प्रकार जैव विकास को प्रमाणित करता है ? इस आधार पर हेकेल का सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर:
जब हम मछली, कछुआ, चूजा तथा मनुष्य के भ्रूणों का अध्ययन करते हैं तो इनकी आरम्भिक अवस्थाएँ लगभग समान दिखाई देती हैं। इससे सिद्ध होता है कि सभी पृष्ठवंशियों के पूर्वज मछली सदृश होंगे तथा इनका विकास निश्चित क्रम में हुआ है। हेकेल का सिद्धान्त-“हेकेल के अनुसार प्रत्येक जन्तु का भ्रूणीय विकास उसके जातीय इतिहास को दोहराता है।” इसे पुनरावर्तन सिद्धान्त कहते हैं।
प्रश्न 9.
योजक कड़ी से आप क्या समझते हैं ? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
ऐसे जन्तु जिनमें दो वर्गों के गुण पाए जाते हैं, उन्हें योजक कड़ी (Connecting link) कहते हैं। उदाहरण के लिए, आर्कियोप्टेरिक्स नामक जीवाश्म में सरीसृप तथा पक्षी दोनों वर्गों के लक्षण थे। चोंच, पंख तथा पैरों की आकृति इसके पक्षी होने का प्रमाण देती है तथा चोंच में दाँत, पूँछ तथा शरीर पर शल्कों की उपस्थिति इसके सरीसृप होने का प्रमाण देती है।
प्रश्न 10.
नवडार्विनवाद से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
नवडार्विनवाद-डार्विन के सिद्धान्त में नए दृष्टिकोण जोड़कर नवडार्विनवाद सिद्धान्त दिया। इसके अनुसार नयी जाति की उत्पत्ति जाति विशेष के सदस्यों में जीन परिवर्तन के कारण होती है। केवल आनुवंशिक विभिन्नताएँ वंशानुगत होती हैं व वातावरणीय विशेषताएँ जन्तु के साथ समाप्त हो जाती हैं।
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति किस प्रकार हुई ?
उत्तर:
जीवन की उत्पत्ति (Origin of life)- पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति एक अत्यन्त मन्द प्रक्रिया के फलस्वरूप हुई। प्रारम्भ में पृथ्वी के वायुमण्डल में नाइट्रोजन एवं जल वाष्प थी। अत्यधिक गर्म वाष्प एवं कार्बन की प्रतिक्रिया से हाइड्रोकार्बन यौगिकों का निर्माण हुआ। नाइट्रोजन एवं धातु की क्रिया से नाइट्राइट बने । नवनिर्मित नाइट्राइट व गर्म वाष्प में अभिक्रिया से अमोनिया गैस का निर्माण हुआ। हाइड्रोकार्बन व अमोनिया के रासायनिक संयोग से शर्कराओं तथा कार्बनिक अम्लों का निर्माण हुआ।
अमीनो अम्ल तथा कार्बनिक अम्लों के मध्य रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप प्रोटीन का । निर्माण हुआ। तीन अरब वर्ष पूर्व इन प्रारम्भिक प्रोटीन से एक वायरस सदृश जीव का विकास हुआ। इससे नीले-हरे शैवाल के सदृश अत्यन्त सूक्ष्म प्राथमिक जीवों का निर्माण हुआ। तत्पश्चात् प्रोटोजोआ नामक एककोशिकीय जीव की उत्पत्ति हुई। सामान्यत: यह क्रमिक परिवर्तन सरलतम जीवों से जटिल जीवों की ओर बढ़ा है।
प्रश्न 2.
वर्गीकरण, जैव विकास का किस प्रकार समर्थन करता है ? वर्गीकरण प्रमाण का विकास वृक्ष बनाइए।
उत्तर:
वर्गीकरण प्रमाण (Evidence from Classification)- सभी जीव-जन्तुओं को उनके लक्षणों के आधार पर समूहों में बाँटा गया है। ये समूह एक क्रम में व्यवस्थित किए गए हैं।
उदाहरण के लिए, जन्तुओं के प्रोटोजोआ संघ को सबसे पहले तथा कॉर्डेटा संघ को सबसे बाद में रखा गया है। यह वर्गीकरण प्रोटोजोआ से लेकर काइनोडर्मेटा तक समस्त जन्तुओं के क्रमिक विकास को दर्शाता है। इसी प्रकार कॉडेटा संघ के पिसीज, रेप्टीलिया, ऐवीज तथा मेमेलिया में कई समानताएँ हैं। जैसे इनमें कशेरुक दण्ड खोखला होता है। पिसीज वर्ग के जन्तुओं का विकास नॉन-कॉर्डेटा से हुआ। विकास का क्रम सरल से जटिल की ओर हुआ। इससे सिद्ध होता है कि सभी जीव एक पूर्वज से विकसित हुए हैं। जैसे एक वृक्ष के तने से अनेक शाखाएँ निकलती हैं।
प्रश्न 3.
अवशेषी अंग किसे कहते हैं ? कुछ जन्तुओं के अवशेषी अंगों के नाम लिखें। अवशेषी अंग जैव विकास का क्या प्रमाण प्रस्तुत करते हैं ?
उत्तर:
अवशेषी अंग (Vestigial Organs)- जन्तुओं में कुछ ऐसे अंग भी पाए जाते हैं, जो कभी उनके पूर्वजों में बहुत विकसित तथा लाभकारी थे। कुछ जन्तुओं के अवशेषी अंग निम्नांकित सारणी में प्रदर्शित किए गए हैं
प्रश्न 4.
जीव जातियों का भौगोलिक वितरण किस प्रकार जैव विकास को समर्थन करता है ?
उत्तर:
भौगोलिक वितरण सम्बन्ध प्रमाण (Evidence from Geographical Distribution)- पादपों और जन्तुओं के भौगोलिक वितरण में विविधताएँ पायी जाती हैं। उदाहरण के लिए, प्लेटिपस, एकिडिना, कंगारू तथा यूकेलिप्टस पादप केवल आस्ट्रेलिया में पाए। जाते हैं। इसी प्रकार जिराफ केवल अफ्रीका में पाया जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार किसी समय ये महाद्वीप एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। बाद में समुद्र द्वारा अलग हो गए जिससे एक महाद्वीप में पाए जाने वाले जन्तु एवं पादप दूसरे महाद्वीप पर नहीं पहुँच सके। परिस्थितियाँ भिन्न होने से अलग-अलग जगह के अनुसार उनकी संरचनाओं में भिन्नता आ गई। अतः भौगोलिक वितरण भी जैव विकास को प्रमाणित करता है।
प्रश्न 5.
लैमार्क के उपार्जित लक्षणों की वंशागति सिद्धान्त का वर्णन कीजिए। इस सिद्धान्त की आलोचना को भी समझाइए।
उत्तर:
लैमार्क का सिद्धान्त- यह सिद्धान्त 1809 ई. में जॉन बेप्टिस्ट डी लैमार्क द्वारा दिया गया था। इसे उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धान्त भी कहते हैं। लैमार्क के अनुसार वातावरण में हुए परिवर्तनों के कारण अधिक प्रयोग में आने वाले अंग अधिक विकसित तथा कम प्रयोग में आने वाले अंग विलुप्त हो जाते हैं। जिराफ अफ्रीका में पाया जाता है। इसकी टाँगें और गर्दन लम्बी होती हैं। यह ऊँचे-ऊँचे पेड़ों की पत्तियाँ खाकर जीवन व्यतीत करता है।
लैमार्क के अनुसार उनके पूर्वज इतने लम्बे नहीं थे। वे आसानी से घास-फूस खा लेते थे। धीरे-धीरे वातावरण में परिवर्तन होने के कारण अफ्रीका में रेगिस्तान बनने लगे। घास-फूस समाप्त हो गई। पेड़ों की पत्तियाँ जो ऊँचाई पर थीं, को प्राप्त करने के लिए जिराफ को अपनी अगली टाँगों और गर्दन का अधिक उपयोग करना पड़ा। फलस्वरूप उनकी टाँगें व गर्दन लम्बी होती गई। ये लक्षण पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंशानुगत हो गए।
इसी प्रकार सर्प भूमि में बने बिलों में रहता है। पैर बिल में घुसने में बाधा उत्पन्न करते थे इसलिए पैरों का उपयोग कम करने के कारण ये छोटे होते गए और अन्त में लुप्त हो गए। लैमार्क की आलोचना-वैज्ञानिकों ने लैमार्क के सिद्धान्त का खण्डन किया। उनके अनुसार अगर चूहों की पूँछ कई पीढ़ियों तक काटी जाती है तो भी कभी पूँछ कटा हुआ चूहा पैदा नहीं होता है। लड़कियों के पीढ़ी-दर-पीढ़ी कान छिदवाये जाते हैं। परन्तु कभी कान छेदी हुई लड़की पैदा नहीं होती है।
प्रश्न 6.
उत्परिवर्तन का सिद्धान्त क्या है ? उत्परिवर्तन के कारण और कारक लिखिए।
उत्तर:
उत्परिवर्तन का सिद्धान्त (Theory of mutation)- ह्यूगो डी ब्रीज नामक वैज्ञानिक ने उत्परिवर्तन का सिद्धान्त दिया। उन्होंने जब पौधों पर परीक्षण किया तो पाया कि कुछ पौधे अकस्मात् अपनी जाति से बिल्कुल भिन्न उत्पन्न हुए। ये लक्षण वंशागत होकर पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थानान्तरित होते हैं। इन्हीं अकस्मात् वंशागत लक्षणों के प्रदर्शित होने की क्रिया को उत्परिवर्तन कहते हैं। जीवों में उत्परिवर्तन निम्नलिखित कारणों से हो सकते हैं
- जीनों की संख्या में परिवर्तन
- जीनों की व्यवस्था में परिवर्तन
- जीनों की संरचना में परिवर्तन।
उत्परिवर्तन के कारक या साधन- मस्टर्ड गैस, नाइट्रस अम्ल, फिनोल, एक्स किरणें, बीटा किरणें आदि उत्परिवर्तन के साधन हैं।
प्रश्न 7.
प्रो. बीरबल साहनी का परिचय देते हुए उनके योगदान को समझाइए।
उत्तर:
बीरबल साहनी- संसार को रोचक जानकारियों से मुग्ध करने वाले पुरा-वनस्पति शास्त्र वैज्ञानिक (Paleobotanist) प्रो. बीरबल साहनी का जन्म 14 नवम्बर, 1891 में | शाहपुर जिले के भेड़ा नामक गाँव में हुआ था। इन्हें भारत 1 में पेलियोबॉटनी अनुसन्धान का जनक माना जाता है। डॉ. साहनी ने बिहार के राजमहल हिल्स के कई जीवाश्मी पौधों के बारे में अध्ययन किया तथा एक नए वर्ग जीवाश्मीजिम्नोस्पर्म की खोज की जिसे पेन्टोजाइली नाम दिया गया।
उनकी आर्कियोलोजी के क्षेत्र में भी बहुत रुचि थी। उनके इस शोध के क्षेत्र में कई शोध पत्र अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की वैज्ञानिक शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। ‘टैक्नीक ऑफ कास्टींग कॉइन इन ऐन्सियन्ट भारत” पर उनके द्वारा किए गए कार्य ने आर्कियोलोजी रिसर्च में नए कीर्तिमान स्थापित किए। उन्होंने लखनऊ में पेलियोबॉटनी संस्थान की स्थापना की जिसे इनकी मृत्यु के पश्चात् बीरबल साहनी पेलियोबॉटनी संस्थान नाम दिया गया।