RBSE Solution for Class 8 Hindi Chapter 15 शक्ति और क्षमा
RBSE Solution for Class 8 Hindi Chapter 15 शक्ति और क्षमा
Rajasthan Board RBSE Class 8 Hindi Chapter 15 शक्ति और क्षमा
RBSE Class 8 Hindi Chapter 15 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
पाठ से
सोचें और बताएँ
प्रश्न 1.
पांडवों को कौरवों ने कब तक कायर समझा ?
उत्तर:
जब तक पांडव क्षमाशील एवं विनम्र बने रहे, तब तक कौरवों ने उन्हें कायर समझा।
प्रश्न 2.
क्षमा किसे शोभा देती है ?
उत्तर:
जिसके पास शक्ति एवं पराक्रम होता है, क्षमा उसे ही शोभा देती है।
RBSE Class 8 Hindi Chapter 15 लिखेंबहुविकल्पी प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि ने ‘नर व्याघ्र’ कहा है-
(क) अर्जुन को
(ख) युधिष्ठिर को
(ग) भीष्म पितामह को
(घ) दुर्योधन को
प्रश्न 2.
इस कविता में कौन किसको समझा रहा है-
(क) श्रीकृष्ण अर्जुन को
(ख) श्रीकृष्ण युधिष्ठिर को
(ग) भीष्म पितामह युधिष्ठिर को
(घ) भीष्म पितामह अर्जुन को।
उत्तर:
1. (ख) 2. (ग)
RBSE Class 8 Hindi Chapter 15 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
विषहीन, विनीत और सरल साँप द्वारा दी गई क्षमा को निरर्थक क्यों कहा गया है?
अथवा
विषहीन, विनीत और सरल साँप द्वारा प्रदत्त क्षमा निरर्थक है।” ‘शक्ति और क्षण’ कविता के आधार पर समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
ऐसी क्षमा पराक्रम से रहित होने से निरर्थक रहती है। जब शत्रु का सामना करने की या उसे दण्डित करने की
शक्ति ही नहीं है, तो फिर उसे क्षमा करना भी केवल दिखावा है। ऐसी क्षमा की कोई कद्र नहीं होती है।
प्रश्न 2. सागर ने राम की दासता कब स्वीकार की ?
अथवा
सागर त्राहि-त्राहि करते हुए राम की शरण में क्यों आया?
उत्तर:
जब राम ने सागर के सामने अपनी शक्ति प्रकट की, भयानक अग्नि-बाण निकाल कर समुद्र को सोखने के लिए तैयार हो गये, तब भयभीत होकर सागर ने उनकी दासता स्वीकार की। तब समुद्र उनकी शक्ति से डर गया और शरण में आ गया।
प्रश्न 3.
सहनशीलता, क्षमा, दया आदि गुणों की कद्र कब होती है?
उत्तर:
सहनशीलता, क्षमा, दया आदि के साथ व्यक्ति में पराक्रम और शक्ति भी होनी चाहिए, तभी इन गुणों की कद्र होती है। पौरुष, पराक्रम एवं शक्ति से ही किसी को दबाया जा सकता है और उसका यश भी फैल जाता है।
RBSE Class 8 Hindi Chapter 15 दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कविता का मुख्य सन्देश क्या है? विस्तार से लिखिए।
उत्तर:
यह कविता रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित ‘कुरुक्षेत्र’ काव्य से ली गई है। इसमें यह सन्देश है कि व्यक्ति को क्षमा, दया, सहनशीलता, त्याग, मनोबल आदि गुण अवश्य अपनाने चाहिए, परन्तु इनके साथ ही उसे शक्तिशाली एवं पराक्रमी भी होना चाहिए। किसी दुष्ट को क्षमा वही कर सकता है, जो स्वयं पराक्रमी हो। क्षमा तब तक ही करना चाहिए जब तक उसकी कद्र हो। श्रीराम ने समुद्र से विनती की कि पार जाने का मार्ग दो, परन्तु समुद्र ने उनकी प्रार्थना नहीं सुनी। तब श्रीराम ने अपना अग्नि बाण निकाला, तो समुद्र सामने आकर गिड़गिड़ाने लगा। इस प्रसंग में यही सन्देश दिया गया है कि क्षमा, दया, विनय के
साथ ही पौरुष और पराक्रम का होना जरूरी है। तभी यश एवं सम्मान मिलता है।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों की व्याख्या कीजिए-
(क) क्षमा शोभती उस भुजंग को……..विनीत, विषहीन, सरल हो।
(ख) सच पूछो………तो शर में ही, जिसमें शक्ति विजय की।
उत्तर:
सप्रसंग व्याख्या पहले दी गई है, उसे देखिए।
भाषा की बात
प्रश्न 1.
विषहीन’, ‘क्षमाशील’ की तरह हीन’ एवं ‘शील’ जोड़कर दो-दो नए शब्द बनाइए।
उत्तर:
- हीन: चरित्रहीन, धनहीन।
- शील: सहनशील, करुणाशील।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत कविता को पढ़ने पर हमारे मन में उत्साह का भाव पैदा होता है। इसी प्रकार जब किसी रचना को पढ़ते हैं, तो हमें आनन्द की अनुभूति होती है। इस प्रकार प्राप्त आनंद को साहित्य में रस कहते हैं।
उत्तर:
रस की उक्त परिभाषा कंठस्थ कीजिए।
पाठ से आगे
प्रश्न 1.
विनयहु न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीति।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होहिं न प्रीति॥
शिक्षक की सहायता से दोहे का अर्थ करते हुए पता कीजिए यह दोहा कहाँ से उद्धृत किया गया है ? इसी भाव की अन्य रचना को ढूँढ़कर लिखिए।
उत्तर:
यह दोहा तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस के ‘लंका-काण्ड’ से लिया गया है। अर्थ-श्रीराम समुद्र से विनती करते रहे, परन्तु मूर्ख समुद्र । नहीं माना । तीन दिन इस तरह बीत गये। तब श्रीराम ने क्रोध में आकर कहा कि भय के बिना कोई स्नेह भाव नहीं रखता है।
इसी भाव को छन्द ‘रामचन्द्रिका’ में इस प्रकार है-
‘जब ही रघुनायक बाण लियो,
सविशेष विशोषित सिन्धु हियो।’
प्रश्न 2.
यदि आप दुर्योधन के स्थान पर होते तो क्या करते ? अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
यदि हम दुर्योधन के स्थान पर होते, तो पाण्डवों से वैर-विरोध और छल-कपट नहीं करते। हम युधिष्ठिर की बात मान लेते और महाभारत का युद्ध नहीं होने देते। हम युधिष्ठिर की तरह सत्य, क्षमा, दया, त्याग आदि गुणों को अपनाते। अन्याय-अनीति से दूर रहकर हम भाईचारे का व्यवहार करते।
यह भी करें
प्रश्न.
सागर द्वारा श्रीराम की सेना को रास्ता देने की कथा अपने अभिभावक अथवा गुरुजनों से जानिए।
उत्तर:
रामायण की कथा के अनुसार लंका पर आक्रमण करने के लिए श्रीराम अपनी सेना के साथ समुद्र-तट पर गये। समुद्र को पार करने के लिए वे सुग्रीव, जामवन्त, लक्ष्मण आदि से मन्त्रणा करते रहे। तब उन्होंने समुद्र से प्रार्थना की, परन्तु तीन दिन तक इन्तजार करने पर जब कोई उपाय नहीं सूझा, तो श्रीराम ने क्रोध में आकर अपना अग्नि बाण निकाला और उससे समुद्र को सोखना चाहा। उस अग्नि बाण से भयभीत होकर समुद्र सशरीर सामने आया और उसने श्रीराम से प्रार्थना की कि आपकी सेना में नल1 नील नामक दो वानर हैं। उन्हें ऐसा वरदान प्राप्त है कि वे जो भी पत्थर पानी में डालेंगे, वे तैरने लगेंगे। उनसे ही आप सेतु का निर्माण कराकर पार जा सकते हैं। तब समुद्र पर सेतु-बन्धन किया गया।
संकलन
प्रश्न.
दिनकर की अन्य कविताओं को भी पढ़कर संकलित कीजिए।
उत्तर:
दिनकर के काव्य-संग्रह पुस्तकालय से लें। ‘रश्मिरथी’, ‘कुरुक्षेत्र’ आदि काव्य तथा हिमालय के प्रति’, ‘बोधिसत्त्व’, ‘किसान’ आदि कविताओं से शिक्षाप्रद पंक्तियाँ लेकर संकलन बनाइये !
RBSE Class 8 Hindi Chapter 15 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
RBSE Class 8 Hindi Chapter 15 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
‘शक्ति और क्षमा’ कवितांश के रचयिता हैं-
(क) रामावतार त्यागी
(ख) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
(ग) नरोत्तम दास
(घ) प्रेमचन्द
प्रश्न 2.
कवितांश में ‘सुयोधन’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
(क) युधिष्ठिर के लिए
(ख) अर्जुन के लिए
(ग) दुर्योधन के लिए
(घ) श्रीकृष्ण के लिए
प्रश्न 3.
सन्धि-वचन उसी का स्वीकार किया जाता है, जिसमें रहती है-
(क) क्षमाशीलता
(ख) बलिदानी भावना
(ग) शक्ति-शूरता
(घ) सरलता
प्रश्न 4.
‘भुजंग’ शब्द का अर्थ है-
(क) दुर्योधन
(ख) सेना
(ग) विष
(घ) सर्प
प्रश्न 5.
समुद्र किससे डरकर शरण में आया?
(क) श्रीराम के अग्नि बाण से
(ख) वानरों की विशाल सेना से
(ग) श्रीराम की प्रार्थनाओं से
(घ) राक्षसों के उत्पात से
उत्तर:
1. (ख) 2. (ग) 3. (ग) 4. (घ) 5. (क)
सुमेलन
प्रश्न 6.
खण्ड ‘अ’ एवं खण्ड ‘ब’ में दी गई पंक्तियों का मिलान कीजिए-
उत्तर:
पंक्तियों का मिलान-
(क) क्षमाशील हो रिपु समझ, तुम हुए विनत जितना ही।
(ख) दुष्ट कौरवों ने तुमको, कायर समझा उतना ही।
(ग) क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो।
(घ) उसको क्या, जो दंतहीन, विषरहित, विनीत, सरल हो।
RBSE Class 8 Hindi Chapter 15 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 7.
क्षमा किसे शोभायमान है?
उत्तर:
क्षमा उसे शोभायमान होती है जिसके पास शक्ति और पराक्रम होता है।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए
(क) क्षमाशील हो रिपुसमझ, तुम हुए विनत जितना ही।
दुष्ट कौरवों ने तुमको, कायर समझा उतना ही।
(ख) सच पूछो तो शर में ही, बसती है दीप्ति विनय की।
उत्तर:
(क) भाव:
भीष्म पितामह युधिष्ठिर से कहते हैं। कि हे युधिष्ठिर, तुम अपने शत्रु दुर्योधन के सामने क्षमाशील बनकर जितना विनम्र आचरण करते रहे, उतना ही दुष्ट कौरवों ने तुम्हें कायर या कमजोर समझा और वे तुम्हें दबाते रहे।
(ख) भाव:
भीष्म पितामह युधिष्ठिर को समझाते हुए कहते हैं कि वास्तव में विनम्रता की चमक हमेशा बाण में ही रहती है। अर्थात् पराक्रम से ही विनय की शोभा होती है।
प्रश्न 9.
‘दुष्ट कौरवों ने तुमको’-इसमें ‘तुमको’ किसे कहा गया है?
उत्तर:
इसमें ‘तुमको’ धर्मराज युधिष्ठिर के लिए कहा गया बँधा।।
प्रश्न 10.
‘बँधा मूढ़ बन्धन में’-कौन किस बन्धन में बँधा ?
उत्तर:
समुद्र श्रीराम की वानर-सेना द्वारा सेतु-बन्धन में बँधा।
प्रश्न 11.
सन्धि या मेलजोल की बात किसकी मानी जाती है?
उत्तर:
जो पराक्रमी एवं शक्तिशाली होता है, जो विजयी होता है, उसी की सन्धि या मेलजोल की बात मानी जाती है।
RBSE Class 8 Hindi Chapter 15 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 12.
‘क्षमा शोभती उस भुजंग को’-इससे कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
इससे कवि का आशय यह है कि किसी को क्षमा करने के साथ ही शक्ति भी रखनी चाहिए। पौरुष रखने से ही क्षमा गुण की शोभा होती है। विषैले सर्प से सभी डरते हैं। पराक्रमी से सभी भयभीत रहते हैं तथा उसका पूरा आदर करते हैं।
प्रश्न 13.
‘बल का दर्प’ कब चमकता है?
उत्तर:
बल का दर्प अर्थात् शक्तिशाली व्यक्ति को अहंकार तब चमकता है, जब वह अपनी शक्ति का उचित उपयोग करे। शक्तिशाली का मुकाबला शक्ति से ही करे, जरूरत पड़ने पर अपनी शक्ति का पूरा उपयोग करे तथा जरा भी कायरता नहीं दिखावे। इसके लिए पूरे जोश, उत्साह एवं पौरुष को प्रदर्शित करे, तभी बल के दर्प का सही परिणाम मिलता है।
प्रश्न 14.
तीन दिन तक श्रीराम समुद्र के किनारे क्या करते रहे?
उत्तर:
श्रीराम तीन दिन तक समुद्र के किनारे बैठकर पार जाने का रास्ता माँगते रहे। वे समुद्र से प्रार्थना और विनती करते रहे कि वह उन्हें सेना-सहित पार जाने का रास्ता दे। इस प्रकार वे अनुनय-विनय करते रहे, अपनी शक्ति का प्रदर्शन न कर सहनशील बने रहे।
प्रश्न 15.
‘शक्ति और क्षमा’ कवितांश में कौन किसे समझा रहा है? और क्यों ?
उत्तर:
महाभारत के युद्ध के बाद भीष्म पितामह शरशय्या पर लेटे हुए थे। तब युधिष्ठिर उनके पास गये, तो भीष्म पितामह ने उन्हें समझाया। इस प्रकार इस कवितांश में भीष्म पितामह युधिष्ठिर को समझा रहे हैं, क्योंकि महाभारत के युद्ध में हुए विनाश के लिए युधिष्ठिर स्वयं को दोषी मान रहे थे। उस समय वे ग्लानि एवं दुःख से ग्रस्त थे।
RBSE Class 8 Hindi Chapter 15 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 16.
‘शक्ति और क्षमा’ कवितांश में किन गुणों को अपनाने की शिक्षा दी गई है?
उत्तर:
इस कवितांश में कवि ने महाभारत की घटनाओं की ओर संकेत करते हुए यह शिक्षा दी है कि व्यक्ति को क्षमा, सहनशीलता, दया, त्याग आदि गुण अवश्य अपनाने चाहिए, परन्तु इनके साथ ही पराक्रम, शक्ति, पौरुष एवं शौर्य को भी अपनाना चाहिए। पराक्रमी अथवा चालबाज अन्यायी व्यक्ति के सामने क्षमा या दया की बात करना कायरता मानी जाती है। जीवन भी एक युद्ध जैसा ही है। इसमें सफल रहने के लिए विनम्रता के साथ शक्तिशाली होना जरूरी है, क्योंकि शक्ति से ही सारे दुष्ट वश में किये जा सकते हैं। अतः |सहनशीलता, दया, क्षमा आदि गुणों के साथ ही पौरुष गुण को अपनाना जरूरी है।
शक्ति और क्षमा पाठ-सार
इस पाठ में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित ‘कुरुक्षेत्र’ काव्य से संकलित कवितांश है। इसमें क्षमा, दया, सहनशीलता आदि गुणों का महत्त्व बताया गया है। परन्तु इन गुणों का आदर तभी होता है, जब उस व्यक्ति में शक्ति एवं साहस हो।
सप्रसंग व्याख्याएँ
(1) क्षमा, दया, तप …………………………………… उतना ही।
कठिन शब्दार्थ-नर व्याघ्र = बाघ के समान शक्तिशाली और चालाक व्यक्ति। सुयोधन = दुर्योधन। रिपु = शत्रु। समक्ष = सामने। विनत = विनम्र।
प्रसंग-यह पद्यांश ‘शक्ति और क्षमा’ पाठ से लिया गया है। यह रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित है। महाभारत के युद्ध के बाद भीष्म पितामह युधिष्ठिर को समझाते हैं। यह. उन्हीं का कथन है।
व्याख्या-भीष्म पितामह ने कहा कि हे युधिष्ठिर! तुमने कौरवों को शान्त करने के लिए क्षमा, दया, तप, त्याग और मनोबल आदि सब का सहारा लिया, अर्थात् हर तरीके से उन्हें शान्त कराना चाहा, परन्तु हे शक्तिशाली युधिष्ठिर! तुमसे दुर्योधन कहाँ हारा, वह कब शान्त हो सका? भाव यह है कि वह तो सदा ही तुमसे चालाकी दिखाकर जीतता रहा। तुम अपने शत्रु दुर्योधन के सामने क्षमाशील बनकर जितना ही विनम्र आचरण करते रहे, दुष्ट कौरवों ने तुमको उतना ही कायर या कमजोर समझा। अर्थात् तुम्हारी विनम्रता को तुम्हारी कमजोरी समझा और वे तुम्हें सदा दबाते रहे।
(2) क्षमा शोभती उस …………………………………… प्यारे-प्यारे।
कठिन शब्दार्थ-शोभती = शोभा देती है। भुजंग = सर्प। गरल = विष। विनीत = विनम्र। पंथ = रास्ता। रघुपति = श्रीराम। सिन्धु = समुद्र। अनुनय = विनती, प्रार्थना या खुशामद।
प्रसंग–यह पद्यांश ‘शक्ति और क्षमा’ पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं। भीष्म पितामह युधिष्ठिर से कहने लगे कि शक्तिशाली व्यक्ति को ही क्षमाशील होना चाहिए।
व्याख्या-शक्तिशाली एवं पराक्रमी व्यक्ति किसी को क्षमा करे, तो उससे उसकी शोभा बढ़ती है, परन्तु जिसके पास शक्ति नहीं है, वह किसी को क्या क्षमा करेगा? जैसे जिस सर्प के पास विष है, यदि वह अपनी शक्ति का अर्थात् विष का प्रयोग नहीं करे, तो उसका महत्त्व बढ़ जाता है। परन्तु जिसके पास न तो दाँत हों, ने विष हो, केवल विनम्र और सरल स्वभाव का हो, उसका क्षमाशील होने से क्या लाभ है?
श्रीराम समुद्र के किनारे तीन दिन तक खड़े रहकर सागर से पार जाने का रास्ता माँगते रहे, वे उसकी खुशामद में प्यारे-प्यारे वचन बोलते रहे, अर्थात् पूरी विनम्रता दिखाते रहे, परन्तु समुद्र ने अनसुनी कर दी।
(3) उत्तर में जब …………………………………… बंधन में।
कठिन शब्दार्थ-नाद = स्वर, आवाज। अधीर = धैर्यरहित, उग्र। धधक = ज्वाला। पौरुष = पराक्रम, शक्ति, मर्दानगी। शर = बाण। त्राहि = बचाओ। दासता = अधीनता। मूढ़ = मूर्ख, बुद्धिहीन।
प्रसंग-यह पद्यांश ‘शक्ति और क्षमा’ पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं। इसमें। समुद्र पर सेतु-बन्धन के प्रसंग से शक्ति का प्रभाव बताया गया है।
व्याख्या-श्रीराम समुद्र से प्रार्थना करते रहे, परन्तु जब समुद्र से उनकी प्रार्थना के उत्तर में कोई आवाज नहीं आयी, तो श्रीराम अधीर होकर पराक्रम दिखाने को तैयार हुए, उनके अग्नि बाण से पौरुष की ज्वाला धधकने लगी। तब समुद्र भयभीत होकर, शरीर धारण कर सामने आया और मेरी रक्षा कीजिए-रक्षा कीजिए ऐसा कहता हुआ शरण में आया। उसने श्रीराम के चरणों की पूजा की, उनकी अधीनता या सेवक बनना स्वीकार किया। वह नासमझ सेतु-बन्धन में बँधा।
(4) सच पूछो तो …………………………………… जगमग है।
कठिन शब्दार्थ-दीप्ति = चमक, कान्ति, तेज। सन्धि-वचन = मेलजोल की बात। संपूज्य = पूजने के योग्य। बल का दर्प = शक्तिशाली का अहंकार। जगमग = तेज या शौर्य की चमक।
प्रसंग-यह पद्यांश ‘शक्ति और क्षमा’ पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं। इसमें शक्ति से ही सब काम सध जाने एवं विजय मिलने का वर्णन किया गया है।
व्याख्या-भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को समझाते हुए कहा कि सचमुच ही विनम्रता की चमक बाण में ही रहती है, अर्थात् पराक्रम से ही विनय की शोभा होती है। जिसमें विजय पाने की शक्ति होती है, सब उसी से सन्धिसुलह या मेलजोल की बातें करते हैं और उसी की पूजा भी की जाती है।
यह संसार सहनशीलता, क्षमा, दया आदि गुणों की पूजा तभी करता है, तभी इन गुणों को आदर देता है, जब उस क्षमाशील व्यक्ति में शक्तिशाली होने का अहंकार स्पष्ट दिखाई देता है। उस शक्तिशाली दर्प से ही उसके तेज एवं शौर्य की चमक सब ओर फैलती है। सब उसके वश में हो जाते हैं।