RB 9 Hindi

RBSE Solutions for Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 6 रहीम

RBSE Solutions for Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 6 रहीम

Rajasthan Board RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 6 रहीम

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 6 पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
रहीम को अकबर ने कौन-सी उपाधि प्रदान की थी?
(क) मीर
(ख) सूबेदार
(ग) मिर्जा खान
(घ) रहीम खान
उत्तर:
(ग) मिर्जा खान

प्रश्न 2.
मुसलमान होकर भी रहीम किसकी भक्ति करते थे ?
(क) बुद्ध की
(ख) ईसामसीह की
(ग) राम की।
(घ) कृष्ण की
उत्तर:
(घ) कृष्ण की

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 3.
रहीम ने ‘विघ्न विनासन’ किसे कहा है ?
उत्तर:
रहीम ने गजानन गणेश को ‘विघ्न विनासन’ कहा है।

प्रश्न 4.
मनुष्य जन्म कब मिलता है ?
उत्तर:
चौरासी लाख देहों में भटकने के पश्चात् मनुष्य जन्म मिलता है।

प्रश्न 5.
रहीम ने बड़ा व्यक्ति किसे माना है ?
उत्तर:
गरीब का हित करने वालों को रहीम ने बड़ा व्यक्ति : माना है।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 6.
रहीम ने काव्य में किन-किन भाषाओं का प्रयोग किया है ?
उत्तर:
रहीम संस्कृत, अरबी, फारसी, ब्रजभाषा आदि के ज्ञाता थे। उन्होंने अपने काव्य में सरल ब्रजभाषा का सुन्दर प्रयोग किया है।

प्रश्न 7.
पेड़ और तालाब के माध्यम से रहीम क्या सीख देते हैं ?
उत्तर:
पेड़ अपने फल स्वयं नहीं खाते और तालाब अपनी पानी स्वयं नहीं पीते। पेड़ और तालाब के माध्यम से रहीम परोपकार की सीख देते हैं। सुजान व्यक्ति अपना धन दूसरों के हित के लिए ही संग्रह करते हैं।

प्रश्न 8.
‘उधो भलो न कहनौ, कछु पर पूठि’ बरवै से रहीम का आशय क्या है ?
उत्तर:
उधो भलो न कहनौ, कछु पर पूठि’ बरवै से रहीम का आशय यह है कि आमने-सामने होकर स्पष्ट बातें करने से भ्रम और संशय की गुंजाइश नहीं होती। पीठ पीछे कुछ भी कहना ठीक नहीं है। इससे सत्य भी झूठ प्रतीत होता है।

प्रश्न 9.
रहीम ने सूरज को चराचरे नायक क्यों कहा है ?
उत्तर:
सूरज के ताप तथा प्रकाश के बिना इस संसार में जीवों की गति सम्भव नहीं है। वही उनका मार्गदर्शक है। उसी के कारण संसार में जीवन है।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 10.
‘ज्यों चौरासी लख में, मानुष देह’ रहीम की इस पंक्ति का आशय क्या है ?
उत्तर:
संसार में अनेक जीव-जन्तु हैं। हिन्दू मान्यता के अनुसार चौरासी लाख जीवों में मनुष्य का शरीर मिलना बहुत मुश्किल है। मनुष्य का शरीर अनेक जन्म लेने और विभिन्न योनियों में भंटकने के पश्चात् ही प्राप्त होता है। जैसे मनुष्य का शरीर बड़े पुण्य से प्राप्त होता है, उसी प्रकार संसार में नि:स्वार्थ प्रेम प्राप्त हो जाना भी बड़ा कठिन है। प्रायः सभी लोग किसी न किसी स्वार्थवश ही प्रेम किया करते हैं।

प्रश्न 11.
‘कृष्ण मिताई जोग’ के आधार पर सुदामा-कृष्ण की मित्रता को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
‘कृष्ण मिताई जोग’ शब्दों के अनुसार रहीम ने द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण और उनके बचपन के साथी सुदामा की मित्रता के स्वरूप पर प्रकाश डाला है। श्रीकृष्ण का जन्म राजसी परिवार में हुआ था। उनके नाना उग्रसेन मथुरा नरेश थे। उनका पालन-पोषण करने वाले नन्द भी सम्पन्न परिवार के थे। इसके विपरीत सुदामा एक गरीब ब्राह्मण के बेटे थे। सुदामा और श्रीकृष्ण दोनों ही संदीपन गुरु के आश्रम में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे। उन दोनों में गहरी मित्रता थी। बाद में श्रीकृष्ण द्वारका के राजा हुए।

सुदामा के दिन गरीबी में कट रहे थे। दोनों के बीच बहुत बड़ा सामाजिक अंतर था। इतने पर भी श्रीकृष्ण ने दरिद्र सुदामी से अपनी मित्रता का पूरा-पूरा मान रखा। कवि ने इसी प्रसंग के आधार पर कहा है कि जो लोग गरीबों का हित करते हैं वास्तव में महान पुरुष होते हैं। कृष्ण से मिलने के बाद अपने नगर पहुँचने पर सुदामा ने आश्चर्यचकित होकर देखा कि उनकी झोंपड़ी के स्थान पर महल खड़ा है। वहाँ बड़े ठाठ-बाट थे। सोने के जेवरों और कीमती वस्त्रों से सजी अपनी पत्नी को भी वह पहचान न सके। श्रीकृष्ण ने अपने मित्र की दरिद्रता दूर कर दी थी और बिना बताए ही उनको अपार सम्पत्ति दे दी थी।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वृक्ष अपने फल क्यों नहीं खाते ?
उत्तर:
वृक्ष परोपकार के लिए फल पैदा करते हैं, अपने खाने के लिए नहीं।

प्रश्न 2.
सरोवर की परोपकारिता किस बात से प्रकट होती है ?
उत्तर:
सरोवर अपने जल को स्वयं नहीं पीता। उसका जल अन्य जीवों के हित में ही काम आता है। उसके परोपकारी होने का यह प्रमाण है।

प्रश्न 3.
रहीम ने क्यों लिखा है-“दुर्लभ जग में सहज सनेह?
उत्तर:
संसार में लोग अपने मतलब के लिए किसी से प्रेम करते हैं। उनका प्रेम सच्चा और स्वाभाविक नहीं होता।

प्रश्न 4.
रहीम के अनुसार हनुमान जी की क्या विशेषता है?
उत्तर:
रहीम के अनुसार राम के प्रिय भक्त हनुमान जी संकटमोचन अर्थात् सभी विपत्तियों से मुक्ति दिलाने वाले हैं।

प्रश्न 5.
रहीम कवि के अनुसार गंगा का प्रभुत्व कब तक रहता है ?
उत्तर:
रहीम कवि के अनुसार सागर में मिलने के पूर्व तक गंगा का प्रभुत्व रहता है, किन्तु सागर में मिलने के पश्चात् उसका प्रभुत्व समाप्त हो जाता है।

प्रश्न 6.
कविवर रहीम को कब लज्जा का अनुभव होता है ?
उत्तर:
कविवर रहीम को तब लज्जा का अनुभव होता है। जब भ्रमवश लोग उन्हें दाता समझ बैठते हैं। वस्तुत: दाता तो ईश्वर है, वही सबको देता है।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन’-पंक्ति में रहीम के किस विश्वास की व्यंजना हुई है ?
उत्तर:
देनदार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन’ -पंक्ति में ईश्वर के प्रति रहीम का अटल विश्वास व्यक्त हुआ है। रहीम मानते हैं कि संसार के सभी जीवों को पालने-पोषने का काम ईश्वर ही करता है। वही देने वाला है। रात-दिन वह लोगों को देने में लगा रहता है। वह सच्ची दानी तथा दाता है।

प्रश्न 2.
‘कहि रहीम परकाज हित संपति सँचहिं सुजान’-पंक्ति में कवि ने किनको ‘सुजान’ बताया है। तथा क्यों?
उत्तर:
रहीम ने कहा है कि सुजान अर्थात् सज्जन मनुष्य दूसरों के काम पूरा करने के लिए अर्थात् परोपकार के लिए सम्पत्ति एकत्र करते थे। अपने भोग-विलास पर धन तो सभी खर्च करते हैं। यह मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। अपने फल स्वयं न खाकर दूसरों को देने वाला वृक्ष तथा अपना पानी स्वयं न पीकर दूसरों को पिलाने वाले तालाब के समान अपनी सम्पत्ति दूसरों के हितार्थ व्यय करने वाले ही कवि की दृष्टि में सुजान हैं।

प्रश्न 3.
रहीम ने किस वस्तु को संसार में दुर्लभ बताया है। तथा क्यों ?
उत्तर:
रहीम ने बताया है कि सच्चा और स्वाभाविक प्रेम संसार में दुर्लभ होता है। स्वाभाविक प्रेम हृदय से उत्पन्न होता है तथा उसमें दिखावट और बनावट का भाव नहीं होता। मनुष्य का व्यवहार स्वार्थ पर आधारित होने के कारण बनावटी होता है। वह सच्चे मन से किसी से प्रेम नहीं करता, अपने मतलब के लिए प्रेम करता है। तुलसी ने लिखा है-स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न:
पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि रहीम के बरबै तथा दोहों के आधार पर उनकी बहुज्ञता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कवि रहीम ने अनेक भाषाओं के साहित्य का तथा विविध धर्मों का गहन अध्ययन किया था। इसी से उनमें एक व्यापक और उदार दृष्टिकोण का विकास हुआ था। उनकी विद्वत्ता से प्रभावित होकर ही बादशाह ने उन्हें अपने नवरत्नों में स्थान दिया था। उनके बरबै, दोहे तथा सोरठे आदि से उनकी बहुज्ञता स्पष्ट प्रमाणित होती है। हिन्दू देवताओं और उनकी ख्याति के कारणों से रहीम भली-भाँति परिचित है। वह गजों के पति गणेश की ऋद्धि-सिद्धि तथा निर्मल बुद्धि प्राप्ति के लिए वंदना करते हैं।

सूर्यदेव के प्रभाव से वह पूर्ण परिचित है। पवन-पुत्र की क्षमता और लोक-प्रसिद्ध कार्यों को वह भली-भाँति जानते हैं। उनके विशद् अनुभव की गहराई उनकी नीति संबंधी उक्तियों से प्रत्यक्ष प्रमाणित है। पीठ पीछे भला या बुरा बोलना उचित नहीं होता। इससे कोई लाभ वक्ता को प्राप्त नहीं होता। सत्यनिष्ठ होते हुए भी वह स्वयं तथा उसकी बात झूठी पड़ जाती है। मानव देह की दुर्लभता, पराश्रय लेने वाले का यश क्षीण होना, मित्रता का आदर्श, संसार और ईश्वर-भक्ति के बीच संतुलन की कठिनाई, अति विनम्रता से दाने और परोपकार की महिमा का गान आदि विषयों पर उनके नीति वाक्य बड़े मूल्यवान हैं।

-भक्तिपरक बरवै, दोहे

पाठ-परिचय

बरवै-प्रस्तुत पाठ में पाँच बरवै संकलित हैं। इनमें कवि रहीम ने विघ्न-बाधाओं को नष्ट करने वाले गणेश, चराचर के नायक सूर्य देवता, वायु-पुत्र तथा राम के प्रिय हनुमान इत्यादि की प्रार्थना की है। पीठ पीछे कुछ भी न बोलने तथा मानव जीवन में स्नेहपूर्ण व्यवहार करने की सीख दी गई है। दोहे-इस पाठ में पाँच दोहे भी संकलित हैं। इनमें कवि ने पराए घर जाने पर सम्मान घटने, गरीबों का हित करने आध्यात्मिक तथा भौतिक जीवन में संतुलन बनाने, विश्व के पालनहार ईश्वर का कृतज्ञ होने, परोपकार करने इत्यादि की प्रेरणा दी है। इस पाठ से रहीम के नीति-ज्ञान और भक्ति का परिचय मिलता है।

प्रश्न 1.
प्रसिद्ध कवि रहीम का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
उत्तर
कवि-परिचय
जीवन-परिचय-रहीम का जन्म सन् 1556 ई. में लाहौर में हुआ था। उनके पिता बैरम खाँ तथा माता सुल्ताना बेगम थीं। बैरम खाँ हुमायूँ के सेनापति थे। बादशाह अकबर के बचपन में वे ही उनको संरक्षण करते हैं। हज यात्रा पर जाते समय बैरम खाँ की हत्या हो गई। उस समय रहीम छः वर्ष के थे। रहीम का पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा अकबर की देख-रेख में हुई। रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम खानखाना था। रहीम की योग्यता से प्रभावित होकर अकबर ने उनको अपने नवरत्नों में स्थान दिया और मिर्जा खान’ की उपाधि प्रदान की। अकबर के बाद जहाँगीर से रहीम की नहीं पटी। उसने इनको जेल में डाल दिया, इनकी सम्पत्ति जब्त कर ली। बाद में रहीम के दिन बड़ी निर्धनता में गुजरे। सन् 1626 में इनका देहावसान हो गया। साहित्यिक परिचय-रहीम की गणना हिन्दी के कृष्ण भक्त कवियों में होती है। रहीम ने नीति, श्रृंगार, प्रेम और भक्ति के दोहे लिखे हैं। रहीम का अरबी, फारसी, संस्कृत और ब्रजभाषा पर पूर्ण अधिकार था।

रचनाएँ-रहीम की प्रसिद्ध रचनाएँ निम्नलिखित हैं

  1. रहीम दोहावली या सतसई (इसके तीन सौ दोहे ही उपलब्ध हैं।)
  2. शृंगार सोरठा (कुल छः छन्द मिलते हैं।)
  3. मदनाष्टक,
  4. बरवै नायिका भेद,
  5. रास पंचाध्यायी,
  6. श्रृंगार सतसई।

इनके अतिरिक्त नगर शोभा, खेट कौतुक जातकम्, सवैये, फुटकर कवित्त आदि प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ हैं।

पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए बरवै।
1. बन्दौ बिघन-बिनासन, ऋधि-सिधि-ईस।
निर्मल बुद्धि-प्रकासन, सिसु ससि सीस॥
भजहु चराचर-नायक, सूरज देव।
दीन जनन सुखदायक, तारेने एव।।

शब्दार्थ-बन्दौ = स्तुति करना, वन्दना करना। बिनासन = नष्ट करने वाला। प्रकासन = प्रकाशित करने वाले, सिसु-शिशु, बच्चा। चराचर = चर और अचर, स्थावर और जंगम, जीव जगत। तारन = उद्धार करने वाला।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी प्रबोधिनी’ में संकलित ‘बरवै उपशीर्षक से अवतरित है। इसकी रचना कविवर रहीम ने की है। कवि ने यहाँ विघ्न विनाशक गणेश तथा समस्त जीवों को जीवन देने वाले सूर्य : की वन्दना की है।

व्याख्या-कवि कहता है कि विघ्न-बाधाओं को नष्ट करने वाले, समस्त ऋद्धियों और सिद्धियों के स्वामी, बुद्धि को. पवित्र तथा निर्मल बनाने वाले गजानन गणेश की मैं वन्दना करता हूँ। कवि कहता है कि स्थावर तथा जंगम प्राणियों के नायक, दीन जनों को सुख देने वाले और उद्धार करने वाले सूर्य देवता का भजन करो।

विशेष-
(1) ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
(2) अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।

2. ध्यावौं विपद-विदारन सुअन-समीर।।
खल दानवे वनजारन प्रिय रघुबीर॥

शब्दार्थ-ध्या = ध्यान करता हूँ। विपद-विदारन = संकट से मुक्ति दिलाने वाला। सुअन-समीर = वायुपुत्र, हनुमान। खल = दुष्ट। रघुबीर = राम।।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी प्रबोधिनी’ में संकलित ‘बरवै उपशीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता कवि रहीम हैं। रहीम ने इसमें वायुपुत्र हनुमान का ध्यान करने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या-कवि कहता है कि विपत्ति से मुक्ति दिलाने वाले वायु के पुत्र दुष्टों और राक्षसों के उपवन को नष्ट करने वाले और रामचन्द्र जी के प्रिय (हनुमान) का ध्यान करना चाहिए।

विशेष-
(1) बरवै छंद है। ब्रजभाषा है। अनुप्रास अलंकार है।
(2) रामायण महाकाव्य के प्रमुख पात्र हनुमान के चरित्र को कवि को पूर्ण ज्ञान है।

3. उधो भलो न कहनौ, कछु पर पूठि।
साँचे ते भे झूठे, साँची झूठि॥
ज्यों चौरासी लख में, मानुष देह।
त्यों ही दुर्लभ जग में, सहज सनेह॥

शब्दार्थ-साँचे = सत्यवादी। पर = पराई। पूठि = पीठ। भलो = उचित। लख = लाख। मानुषे = मनुष्य। देह = शरीर। सहज = स्वाभाविक। सनेह = प्रेम।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी प्रबोधिनी’ में संकलित ‘बरवै उपशीर्षक से लिया गया है। इसके रचयिता कृष्ण भक्त, नीतिज्ञ कवि रहीम हैं। यहाँ पीठ पीछे कुछ भी कहना अनुचित तथा मनुष्य शरीर को दुर्लभ बताया गया है। व्याख्या-कवि रहीम पीठ पीछे कुछ भी कहने का निषेध करते हुए कहते हैं कि दूसरे की पीठ पीछे कुछ भी कहना उचित नहीं होता। इससे बड़ा अनिष्ट होता है। सच्चे व्यक्ति झूठे हो जाते हैं तथा सच्ची बात भी झूठी कहलाने लगती है। कवि कहता है कि जिस तरह संसार में चौरासी लाख शरीरों में मनुष्य शरीर कठिनाई से प्राप्त होता है, उसी प्रकार इस संसार में स्वाभाविक प्रेम दुर्लभ होता है।

विशेष-
(1) बरवै छन्द है। सरल ब्रजभाषा है। अनुप्रास तथा उपमा अलंकार है।
(2) इन छन्दों से रहीम की नीति विशेषज्ञता प्रकट होती है।

4. कौन बड़ाई जलधि मिलि, गंग नाम भो धीम।
केहि की प्रभुता नहिं घटी, पर, घर गए रहीम॥
जे गरीब पर हित करें, ते रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥

शब्दार्थ-जलधि = समुद्र। धीम = कम। नाम = यश। प्रभुता = अधिकार, प्रभाव, बड़प्पन। हित = भला। बापुरो = बेचारा। मिताई = मित्रता।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी प्रबोधिनी’ के ‘दोहे’ उपशीर्षक से लिया गया है। इसके रचयिता रहीम हैं। कवि ने इसमें नीति विषयक कुछ सिद्धान्त बताए हैं।

व्याख्या-कवि रहीम कहते हैं कि समुद्र में मिलने से गंगा नदी को कोई बड़प्पन प्राप्त नहीं होता, उल्टे उसका नाम ‘धीम’ मंद प्रवाह वाली हो जाता है। इसी प्रकार दूसरों के घर जाने पर मनुष्य का प्रभुत्व घट जाता है। महापुरुष की पहचान यह है कि वह गरीब आदमी का हित करने वाला होता है। रहीम कहते हैं कि जो गरीब का भला करते हैं, वह सचमुच बड़े होते हैं। क्या बेचारा सुदामा द्वारिका के राजा कृष्ण की मित्रता के योग्य था ? सुदामा को अपने मित्र बनाने से कृष्ण की महानता ही प्रकट होती है।

विशेष-
(1) दोहा छन्द है।
(2) सरल ब्रजभाषा है।
(3) दृष्टान्त अलंकार है।

5. अब रहीम मुश्किल पड़ी, गाढ़े दोउ काम।
साँचे से तो जग नहिं, झूठे मिलें न राम॥
देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पै धरै, याते नीचे नैन।

शब्दार्थ-मुश्किल = कठिनाई। गाढ़े = गम्भीर। साँचे = सत्याचरण। देनहार = दाता, देने वाला। और = अन्य व्यक्ति। रैन = रात। भरम = भ्रम। याते = इस कारण। सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी प्रबोधिनी’ के दोहे’ उपशीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता कविवर रहीम हैं। यहाँ रहीम ने नीति से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण उपदेश दिए हैं।

व्याख्या-रहीम कहते हैं कि ईश्वर और संसार दोनों को एक साथ प्रसन्न रखना सम्भव नहीं हो सकता। दोनों लक्ष्यों को पाना बड़ा कठिन काम है। सत्याचरण से संसार खुश नहीं होता और झूठ को अपनाने से ईश्वर दूर रहता है। रहीम कहते हैं कि ईश्वर सबका दाता है। वह रात-दिन लोगों को देता रहता है। रहीम को इस कारण बड़ा संकोच होता है कि लोग भ्रम के कारण उनको देने ही वाला समझते हैं जबकि देता ईश्वर है।

विशेष-
(1) सरल ब्रजभाषा है।
(2) दोहा छन्द है।
(3) अनुप्रास और दृष्टान्त अलंकार है।

6. तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पियहिं न पान।
कहि रहीम परकाज हित, संपति सँचहि सुजान॥

शब्दार्थ-तरुवर = वृक्ष। सरवर = सरोवर, तालाब। पान = जल, पानी। परकाज = दूसरों की भलाई। सँचहि = एकत्र करते हैं।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी प्रबोधिनी’ के दोहे’ उपशीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता रहीम है। कवि रहीम ने बताया है कि सज्जनों की सम्पत्ति परोपकार के लिए होती है। व्याख्या-रहीम कहते हैं कि वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते और तालाब अपना पानी स्वयं नहीं पीते। वृक्षों के फल तथा तालाब का पानी दूसरों के काम आता है। सज्जन पुरुष केवल परोपकार के लिए संपत्ति एकत्र किया करते हैं, अपने उपभोग के लिए नहीं।

विशेष-
(1) दोहा छन्द है।
(2) सरल ब्रजभाषा है।
(3) अनुप्रास तथा दृष्टान्त अलंकार है।
(4) सज्जनों की सम्पत्ति परोपकार में व्यय होती है।

The Complete Educational Website

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *