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RBSE Solutions for Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 5 भोलाराम का जीव

RBSE Solutions for Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 5 भोलाराम का जीव

Rajasthan Board RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 5 भोलाराम का जीव

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 2 पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
“तुम्हारी भी रिटायर होने की उम्र आ गई” का क्या अर्थ है?
(क) तुम बूढ़े हो गए हो
(ख) तुम्हारी अक्ल मारी गई है।
(ग) तुम बेसमझी की बातें करते हो
(घ) तुम्हारी श्रम से बचने की आदत हो गई है।
उत्तर:
(ग) तुम बेसमझी की बातें करते हो

प्रश्न 2.
“इन्द्रजाल होना” मुहावरे का क्या अर्थ है?
(क) भयभीत होना
(ख) धोखा होना
(ग) आश्चर्य होना
(घ) गर्व होना।
उत्तर:
(ख) धोखा होना

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 2 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 3.
कमरे में नारद के एकदम चले जाने पर साहब क्यों नाराज हुए?
उत्तर:
नारद बिना चपरासी को सूचित किए और बिना अपना विजिटिंग कार्ड भेजे सीधे कमरे में जा पहुँचे थे। यही साहब की नाराजगी को कारण था।

प्रश्न 4.
भोलाराम के मरने का सही कारण क्या था?
उत्तर:
भोलाराम पेन्शन न मिलने की चिंता में घुलता हुआ और भूखा रहने के कारण मर गया।

प्रश्न 5.
साहब ने बड़े बाबू से भोलाराम के केस की फाइल कब मँगवाई ?
उत्तर:
जब नारद जी ने रिश्वत में अपनी वीणा साहब को सौंप दी, तभी उसने फाइल मँगवाई।

प्रश्न 6.
फाइल में से जो आवाज आई वह किसकी आवाज थी?
उत्तर:
फाइल में से आने वाली आवाज भोलाराम के जीव की थी।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 7.
“भोलाराम ने दरख्वास्तें तो भेजी थीं, पर उन पर वजन नहीं रखा था, इसलिए कहीं उड़ गई होंगी।” बाबू के इस कथन में ‘वजन’ शब्द से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जब नारद सरकारी दफ्तर पहुँचे तो पहले ही कमरे में उनकी एक बाबू से भेंट हुई। उन्होंने उसे भोलाराम के बारे में बताया। बाबू ने कहा कि भोलाराम ने प्रार्थना-पत्र तो भेजे थे लेकिन उनके साथ वजन यानी रिश्वत के पैसे नहीं भेजे। इसी कारण उसकी दरख्वास्तों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

प्रश्न 8.
“भोलाराम का जीव” कहानी के स्थान पर कोई दूसरा उपयुक्त शीर्षक प्रस्तावित कीजिए।
उत्तर:
लेखक ने कहानी का मुख्य पात्र भोलाराम को बनाया है और उसी के आधार पर कहानी को यह शीर्षक दिया है। देखा जाय तो कहानी की मुख्य समस्या पेन्शने निर्धारित करने वाले सरकारी दफ्तरों में व्याप्त रिश्वतखोरी है। इसी के कारण भोलाराम की असमय मृत्यु हो गई। अतः कहानी का दूसरा शीर्षक ‘भोलाराम की पेन्शन’ हो सकता है।

प्रश्न 9.
भोलाराम का जीव कहाँ गया था? वहाँ रहने का क्या कारण था?
उत्तर:
भोलाराम का जीव अपनी पेन्शन की फाइल में जा छिपा था। अपनी पेन्शन का दिन-रात इन्तजार करते हुए ही उसकी मृत्यु हुई थी। अतः मरते समय पेन्शन ही उसके मन पर छाई रही। इसी कारण वह पेन्शन की फाइल के मोह से ग्रस्त होकर उसमें छिप गया और वहाँ से स्वर्ग जाने को भी राजी नहीं हुआ।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 10.
“कहानी का सौन्दर्य कथानक में न होकर उसके सहारे उभारे गए तीखे रिमार्क और चुटीले व्यंग्य में है।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भोलाराम का जीव’ कहानी का कथानक तो बहुत छोटा और साधारण-सा है। भोलाराम नाम का एक सरकारी कर्मचारी पाँच साल तक कोशिश करने पर भी बिना रिश्वत दिए अपनी पेन्शन नहीं पा सका। उसकी मृत्यु हो जाने पर धर्मराज द्वारा भेजा गया यमदूत उसके जीव को लेकर स्वर्ग को चला लेकिन जीव उसे धोखा देकर निकल भागा और अपनी पेन्शन की फाइल में जा छिपी। स्वर्ग में धर्मराज और चित्रगुप्त बड़े चिंतित हो गए। उसी समय नारद वहाँ पहुँचे और पता-ठिकाना लेकर पृथ्वी पर भोलाराम के जीव की खोज करने चल दिए।

वहाँ दफ्तर के साहब को वीणा रिश्वत में देकर भोलाराम की फाइल निकलवाई और उसमें छिपे भोलाराम के जीव से स्वर्ग चलने को कहा। लेकिन उसने जाने से साफ मना कर दिया। बोला कि वह तो यहीं फाइल की दरख्वास्तों में चिपका रहना चाहता है। कथानक साधारण होने पर भी कहानी में एक आकर्षण है। यह विशेषता कथानक के सहारे सरकारी दफ्तरों में व्याप्त भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और संवेदनशून्यता पर किए गए चुटीले आक्षेपों और व्यंग्यों के कारण आई है। रिटायर्ड और साधनविहीन व्यक्ति के प्रति भी इन कार्यालयों में होने वाला निर्दय व्यवहार अत्यन्त निंदनीय है। बेशर्मी से आवेदनों के साथ वजन यानी घूस माँगना आदि ऐसे मार्मिक प्रसंग हैं जो कहानी को रोचक और संदेशप्रद बना रहे हैं।

प्रश्न 11.
भोलाराम के जीव को ढूँढ़ते हुए यदि नारद जी स्वर्ग से न आते तो कहानी के कथानक में क्या अन्तर हो जाता?
उत्तर:
सच कहा जाय तो कहानी में नारद जी के प्रवेश से ही कथानक में गति और रोचकता आती है। धर्मराज, यमदूत और चित्रगुप्त के बीच आरोप और सफाई देने का नाटक ही चलता रहता, यदि नारद प्रकट होकर पृथ्वी पर जाने और जीव की खोज करने का प्रस्ताव न रखते। लेखक कहानी के माध्यम से जो कहना चाहता था वह अनकहो ही रह जाता। वह जो संदेश देना और जन-मन को झकझोरना चाहता था, नहीं हो पाता। आक्षेपों और व्यंग्यों की बौछार और भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबे सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों का निर्लज्ज व्यवहार ऐसे तीखेपन से सामने नहीं आ पाता। भोलाराम का फाइल की दरख्वास्तों से ही चिपके रहने का मार्मिक निर्णय भी पाठक नहीं अनुभव कर पाते। इस प्रकार नारद के बिना कहानी अधूरी ही रह जाती।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 2अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 2 अतिलघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भोलाराम किस चीज के लिए प्रयास कर रहा था ?
उत्तर:
भोलाराम पाँच साल पहले रिटायर हो चुका था, किन्तु बहुत प्रयास करने के बाद भी उसे पेंशन नहीं मिल पाई थी।

प्रश्न 2.
नारदजी चित्रगुप्त जी से पता लेकर कहाँ आए और किससे मिले ?
उत्तर:
नारदजी चित्रगुप्तजी से पता-ठिकाना लेकर पृथ्वी पर आए और भोलाराम के घर पर जाकर उसकी पत्नी से मिले।

प्रश्न 3.
भोलाराम की पत्नी नारदजी की किस बात पर बिगड़ गयी ?
उत्तर:
नारदजी के यह पूछने पर कि क्या भोलाराम के जीवन में कोई अन्य स्त्री थी? इसी बात पर भोलाराम की पत्नी बिगड़ गई।

प्रश्न 4.
साहब ने भोलाराम की दरख्वास्तों पर वजन रखने के लिए नारद से क्या माँगा?
उत्तर:
साहब ने वजन यानी रिश्वत के रूप में नारद से उनकी वीणा माँगी।

प्रश्न 5.
‘भोलाराम का जीव’ कहानी में किसका चित्रण किया गया है ?
उत्तर:
भोलाराम का जीव’ कहानी में भारत की समाज व्यवस्था और प्रशासन तंत्र में व्याप्त रिश्वतखोरी का कुशलता और मार्मिकता के साथ चित्रण किया गया है।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
चित्रगुप्त ने धर्मराज को पृथ्वी पर चल रहे व्यापार (भ्रष्टचार) के बारे में क्या बताया?
उत्तर:
चित्रगुप्त ने कहा कि पृथ्वी पर रेलवे विभाग में बहुत भ्रष्टाचार हो रहा था। लोग फल, हौजरी या अन्य सामान भेजते हैं तो रेलवे कर्मचारी उसे गायब कर देते हैं और अपने काम में लाते हैं। मालगाड़ी के डिब्बे के डिब्बे काट कर माल उड़ा दिया जाता है और उनका माल चोर बाजार में पहुँच जाता है।

प्रश्न 2.
“अगर मकान मालिक वास्तविक मकान मालिक है,” इस वाक्य में नारद ने क्या व्यंग्य किया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चित्रगुप्त ने नारद को बताया कि भोलाराम किराये के मकान में रहता था। उसने एक साल से मकान का किराया नहीं दिया था। मकान मालिक उसे मकान से निकालना चाहता था लेकिन इससे पहले ही भोलाराम की मृत्यु हो गई। अतः अगर वह मकान मालिक कानून के अनुसार मकान का असली मालिक होगा तो उसने भोलाराम के परिवार को निकाल दिया होगा। व्यंग्य यह है कि आजकले पृथ्वी पर भूमाफिया धोखे से दूसरों के मकान पर कब्जा कर लेते हैं।

प्रश्न 3.
“यह भ्रम अच्छी गृहस्थी का आधार है” नारद के इस व्यंग्य का क्या अर्थ था? अगर भोलाराम की पत्नी इसे समझ जाती तो क्या होता? लिखिए।
उत्तर:
भोलाराम की पत्नी को अपने पति के चरित्र पर पूरा भरोसा था। नारद ने पत्नी के इस विश्वास को भ्रम बताया। जब पति-पत्नी को एक-दूसरे पर विश्वास हो तभी गृहस्थी में सुख-शांति रहती है। नारद ने अपने व्यंग्य से इसी संबंध की हँसी उड़ाई थी। मतलब यह कि पत्नी को पता नहीं था कि उसका पति अन्य स्त्री से प्रेम करता था। इसी भ्रम में रहने के कारण वह पति पर पूरा भरोसा जता रही थी और नारद के कथन का भाव समझ आ जाता तो उसके विकट क्रोध की आग में नारद भस्म ही हो जाते।

प्रश्न 4.
‘भोलाराम का जीव’ कहानी का अंत भी मार्मिक व्यंग्य के साथ हुआ है। पेन्शन की फाइल में छिपे भोलाराम के जीव के कथन के आधार पर अपना मत लिखिए।
उत्तर:
नारद के जोर से ‘भोलाराम’ कहने पर फाइल में पेन्शन की दरख्वास्तों में चिपका भोलाराम का जीव चौंका और उसने पूछा कि उसे कौन पुकार रहा था। क्या पोस्टमैन पेन्शन को आदेश लेकर आया था। लेखक ने व्यंग्यमय भाषा में भोलाराम की दशा दिखाई है। जीवित रहते हुए तो वह पेन्शन की दरख्वास्तों में उलझा ही था, मरने के बाद भी वह अभागा स्वर्ग जाने के बजाय उन्हीं दरख्वास्तों से चिपका रहना चाहता था। कैसी विडम्बना है मानव जीवन की !

प्रश्न 5.
‘भोलाराम का जीव’ कहानी का संदेश क्या है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
कहानी के माध्यम से लेखक ने समाज और प्रशासकों को संबोधित किया है। देश के असहाय और गरीब भोलाराम भ्रष्टतंत्र की संवेदना से रहित चक्की में पिस रहे हैं। खुलेआम काम कराने की फीसे वसूली जाती हैं। इस क्रूर और निंदनीय स्थिति से छुटकारा पाने का उपाय यही है कि जनता इसके विरुद्ध उठ खड़ी हो। प्रशासन और जनसहयोग दोनों के सम्मिलित और ईमानदार प्रयास से ही यह कैंसर काबू में आएगा। यही कहानी का संदेश है।

प्रश्न 6.
यदि बड़े साहब नारद की साधुता का लिहाज करते हुए बिना रिश्वत लिए भोलाराम की पेन्शन दिए जाने के आदेश कर देते तो कहानी का अंत कैसा होता? अपना विचार लिखिए।
उत्तर:
यदि ऐसा हो पाता तो कहानी का अंत बहुत सुखद होता। न केवल नारद को प्रसन्नता होती बल्कि बड़े साहब भी धन्यवाद और प्रशंसा के पात्र होते। हो सकता है परिवार को पेन्शन का पैसा मिल जाने से संतुष्ट होकर भोलाराम का जीव भी फाइल छोड़कर नारद के साथ स्वर्ग को चल देता।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 2 निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘भोलाराम का जीव’ कहानी के माध्यम से कहानीकार ने देश की सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था का कैसा चित्र अंकित किया है ? लिखिए।
उत्तर:
भोलाराम का जीव’ कहानी कहानीकार के अपने एक परिचित रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी की दुखपूर्ण यथार्थ घटना पर आधारित है। भोलाराम सरकारी कार्यालय का कर्मचारी था। उसके परिवार की आर्थिक स्थिति दयनीय थी। उसे रिटायर हुए पाँच साल हो गये। अथक प्रयास करने के बाद भी उसे पेंशन नहीं मिली। इसका कारण था कि उसने साहब को घूस नहीं दी थी। इस बीच उसकी मृत्यु हो गयी। कहानी के कथानक में सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था को दर्शाने के लिए स्वर्गलोग के पात्रों का भी प्रवेश कराया गया है। कहानी में चुटीले व्यंग्य के माध्यम से शासकीय ढाँचे की लाल फीताशाही, घूसखोरी और क्रूरता को उजागर किया गया है। कहानी में भारतीय समाज और प्रशासन तंत्र की कुव्यवस्था का मन को झकझोरने वाला शब्द-चित्र अंकित किया गया है।

-हरिशंकर परसाई

पाठ परिचय

‘भोलाराम का जीव’ पाठ में कहानीकार ने अपने जीवन की एक सच्ची घटना के आधार पर कहानी की रचना की है। भोलाराम नाम का एक सरकारी कर्मचारी था। परिवार गरीब था। भोलाराम पाँच साल पहले रिटायर हो चुका था लेकिन बहुत प्रयास करने पर भी उसे पेन्शन नहीं मिल पाई थी। पेंशन पाने से पहले ही भोलाराम की मृत्यु हो गई।

यमदूत भोलाराम के जीव को लेकर स्वर्ग चल दिया लेकिन भोलाराम का जीव यमराज को धोखा देकर अचानक गायब हो गया और अपनी पेन्शन की फाइल में जा छिपा। नारद जी द्वारा आवाज देने पर अचानक फाइल में से भोलाराम का जीव बोल उठा-“कौन है भाई ? क्या मेरी पेन्शन का आदेश आ गया ?”

प्रस्तुत कहानी में चुटीले व्यंग्य के माध्यम से शासकीय ढाँचे की लाल फीताशाही, घूसखोरी और क्रूरता को उजागर किया

शब्दार्थ-अलाट करना = प्रदान करना, निर्धारित करना। रिकॉर्ड = लेखा, विवरण चकमा = धोखा। इन्द्रजाल = जादू। सम्मिलित क्रन्दन = एक साथ रोना। फाके = भूखे रहना। दुनियादारी = रीति-रिवाज, चलन। दरख्वास्ते = प्रार्थना-पत्र। रौब = अकड़। स्टेशनरी = कागज, फाइल आदि। कुटिल = कपटभरी।

प्रश्न 1.
लेखक ‘हरिशंकर परसाई’ का संक्षिप्त जीवनपरिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
लेखक परिचय जीवन-परिचय-प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का जन्म 1934 ई. में हुआ था और उनकी मृत्यु 1995 में हुई थी। साहित्यिक विशेषताएँ-श्री हरिशंकर परसाई हिन्दी में व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाने वाले पहले रचनाकार हैं। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में केवल गुदगुदी ही पैदा नहीं करती, बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं से परिचय भी कराती हैं जिनसे हम अलग नहीं रह सकते। उन्होंने अपनी रचनाओं में माजिक पाखण्ड और रूढ़िवादी जीवन मूल्यों पर व्यंग्य करते हुए विवेक और विज्ञानसम्मत दृष्टि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा शैली में खास तरह का अपनापन है। रचनाएँ-हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव, रानी नागफनी की कहानी, भूत के पाँव पीछे, तट की खोज, वैष्णव की फिसलन, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर।

महत्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ

प्रश्न 2.
निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए

1. चित्रगुप्त ने कहा, “महाराज आजकल पृथ्वी पर इस प्रकार का व्यापार बहुत बना है। लोग दोस्तों को फल भेजते हैं और रास्ते में ही रेल्वे वाले उड़ा लेते हैं। हौजरी के पार्सलों के मोजे रेल्वे अफसर पहनते हैं। मालगाड़ी के डिब्बे के डिब्बे रास्ते में कट जाते हैं। एक बात और हो रही है।

राजनैतिक दलों के नेता विरोधी नेता को उड़ाकर कहीं बन्द कर देते हैं। कहीं भोलाराम के जीव को भी तो किसी विरोधी ने, मरने के बाद भी खराबी करने के लिए नहीं उड़ा लिया?” (पृष्ठ-24)

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ के ‘भोलाराम का जीव’ नामक पाठ से लिया गया है। इस अंश में लेखक ने चित्रगुप्त के कथन के माध्यम से देश में व्याप्त भ्रष्टाचार पर व्यंग्य का तीर चलाया है।

व्याख्या-यमदूत ने जब कहा कि भोलाराम के जीव का गायब हो जाना जादू जैसा लगता है, तो चित्रगुप्त धर्मराज से बोले कि इन दिनों धरती पर इस प्रकार का माल उड़ाने का और अपहरण का धन्धा बहुत चल रहा है। अगर कोई व्यक्ति अपने मित्र को रेलवे द्वारा फल भेजता है तो रेलवे कर्मचारी उन फलों को रास्ते में ही निकाल लेते हैं। हौजरी (मोजे, बनियान आदि) के सामान से भरे पार्सल ठिकाने पर नहीं पहुँच पाते। उनके मोजे, बनियान आदि रेलवे के अधिकारी मुफ्त में काम में लाते हैं। पार्सल तो दूर की बात है रेलगाड़ी के पूरे डिब्बे जिनमें माल भरा हो, रास्ते में ही उनका ताला काटकर पूरा माल साफ कर दिया जाता है और उनका सामान चोर बाजारियों को बेच दिया जाता है। इसके अलावा एक और गंदा धंधा पृथ्वी पर चल रहा है। राजनीतिक नेता लोग अपने विरोधी दलों के नेताओं को अगवा कराके कहीं बन्द कर देते हैं। हो सकता है कि भोलाराम का भी कोई विरोधी रहा हो और उसने भोलाराम से मरने के बाद भी बदला लेने की नीयत से उसका अपहरण करा दिया हो।

विशेष-
(1) भाषा सरल और मिश्रित शब्दावली युक्त है। तथा ‘उड़ा लेना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग हुआ है।
(2) शैली व्यंग्यात्मक, वर्णनात्मक और बरबस हँसा देने वाली है।

2. धर्मराज ने कहा, “वह समस्या तो कभी की हल हो गई मुनिवर! नरक में पिछले सालों में बड़े गुणी कारीगर आ गये हैं। कई इमारत के ठेकेदार, जिन्होंने पूरे पैसे लेकर रद्दी इमारतें बनायीं। बड़े-बड़े इंजीनियर आ गये हैं, जिन्होंने ठेकेदार से मिलकर भारत की पंचवर्षीय योजना को पैसा खाया। ओवरसीयर हैं, जिन्होंने उन मजदूरों की हाजिरी भरकर पैसा हड़पा, जो कभी काम पर गये ही नहीं। (पृष्ठ-25)

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ के ‘भोलाराम का जीव’ नामक पाठ से लिया गया है। इस अंश में लेखक ने भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारी अधिकारियों और ठेकेदारों की हिस्सेदारी का चित्रण किया है।

व्याख्या-धर्मराज और चित्रगुप्त का वार्तालाप चल रहा था कि वहाँ नारदमुनि आ पहुँचे। धर्मराज को चिन्तित देखकर उनसे पूछा कि क्या वह नरक में निवास स्थान की कमी होने की समस्या के कारण उदास थे? धर्मराज ने कहा कि वह समस्या तो बहुत दिन पहले हल हो गई। पृथ्वी लोक से नरक आने वाले भवन निर्माण के होशियार कारीगरों और भागीदारों के सहयोग से काम पूरा हो गया। इन लोगों में सरकारी भवन बनाने वाले ठेकेदार हैं, जिन्होंने पैसे पूरे लिए लेकिन इमारतों में खराब सामान लगाकर खूब धन कमाया। भारत से आए बड़े-बड़े इंजीनियरों की सेवाएँ भी हमें प्राप्त हुईं, जिन्होंने वहाँ की पंचवर्षीय योजनाओं में ठेकेदारों से मिलकर सरकार को चूना लगाया। इनमें कुशल ओवरसीयर भी हैं जिन्होंने कभी काम पर नहीं आए मजदूरों की फर्जी हाजिरी लगाकर उनकी मजदूरी अपनी जेब के हवाले की। इस प्रकार नरक की आवास समस्या बड़ी सरलता से हल हो गई।

विशेष-
(1) भाषा में मिश्रित शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
(2) भाव को व्यक्त करने के लिए सही शब्दों का चुनाव करने में परसाई जी बड़े कुशल हैं। ‘गुणी-कारीगर’ ऐसा ही शब्द है।

3. साहब ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा, “मगर वजन चाहिये। आप समझे नहीं। जैसे, आपकी सुन्दर वीणा है, इसका भी वजन भोलाराम की दरख्वास्त पर रखा जा सकता है। मेरी लड़की गाना-बजाना सीखती है। यह मैं उसे दूंगा। साधुओं की वीणा तो बड़ी पवित्र होती है। लड़की जल्दी संगीत सीख गई, तो उसकी शादी हो जायेगी।” (पृष्ठ-27)

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ के ‘भोलाराम का जीव’ नामक पाठ से लिया गया है। इस अंश में साहब भोलाराम की पेन्शन का पैसा दिलाने के बदले नारद से उनकी वीणा की माँग कर रहा है।

व्याख्या-साहब ने पेन्शन दिए जाने में शीघ्रता का उपाय। बताते हुए एक ‘मगर’ शब्द जोड़ दिया। नारद ने जब मगर या लेकिन शब्द का अर्थ जानना चाहा तो साहब ने बड़ी बेहयाई से उनकी सुन्दर वीणा की माँग कर डाली। धूर्तता भरी मुस्कराहट के साथ बोला कि दरख्वास्त पर वजन चाहिए। यह वजन आपकी इस सुन्दर वीणा का भी हो सकता है। वीणा दे देने से आप बड़ा उपकार का काम भी करेंगे। साहब ने बताया कि उसकी लड़की गाना-बजाना सीख रही है। यह उसके काम आ जाएगी। अगर कन्या ने संगीत जल्दी सीख लिया तो उसका विवाह आसानी से हो जाएगा। आप जैसे साधुओं की तो वीणा भी बड़ी पवित्र होती है। इसके प्रभाव से एक कन्या का उद्धार हो जाएगा।

विशेष-
(1) बोलचाल की भाषा का प्रयोग है।
(2) शैली व्यंग्य से भरपूर है।

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