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RBSE Class 9 Hindi Vyakaran परसर्ग या कारक ‘ने’ का क्रिया पर प्रभाव

RBSE Class 9 Hindi Vyakaran परसर्ग या कारक ‘ने’ का क्रिया पर प्रभाव

RBSE Class 9 Hindi Vyakaran परसर्ग या कारक ‘ने’ का क्रिया पर प्रभाव

परिभाषा – वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम के कारकीय सम्बन्ध को प्रकट करने वाले चिह्नों को परसर्ग कहते हैं। परसर्ग को कारक-चिह्न अथवा विभक्ति भी कहा जाता है। जैसे –

(i) शिक्षक ने छात्रों को पाठ पढ़ाया।
(ii) यह रमा की पुस्तक है।

इन वाक्यों में ‘ने’, ‘को’ तथा ‘की’ के द्वारा वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम का सम्बन्ध दूसरे शब्दों से जोड़ा गया है। इसलिए परसर्ग अर्थात् कारक चिह्न हैं।

कारक :

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप के द्वारा उसका सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्दों (विशेषकर क्रिया) के साथ जाना जाता है, उसे कारक कहते हैं।
कारक – भेद-हिन्दी में कारक आठ माने जाते हैं। प्रत्येक कारक के लिए परसर्ग अर्थात् विभक्ति-चिह्न प्रयुक्त होते हैं। उनका स्वरूप इस प्रकार है –
कारक  परसर्ग (विभक्ति-चिह्न)

  1. कर्ता – ने (या कोई भी चिह्न नहीं)
  2. कर्म – को (या कोई भी चिह्न नहीं)
  3. करण – से, द्वारा, के द्वारा, के साथ
  4. सम्प्रदान – के लिए, को
  5. अपादान – से (अलग होने अर्थ में)
  6. सम्बन्ध – का, की, के
  7. अधिकरण – में, पर
  8. सम्बोधन – हे, अरे, ओ, अजी

परसर्ग ‘ने’ का प्रयोग :

परसर्ग ‘ने’ का प्रयोग कर्ताकारक में होता है। संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया करने वाले का बोध होता है, उसे कर्ता कारक कहते हैं। जैसे –

  1. मोहन ने मीठा फल खाया।
  2. मैंने खाना खा लिया था।
  3. लता दूध पीती है।

इन वाक्यों में ‘मोहन ने’ तथा ‘मैंने’ में ‘ने’ परसर्ग का प्रयोग हुआ है, परन्तु ‘लता दूध’ में परसर्ग ‘ने’ लुप्त है, अर्थात् उसका प्रयोग नहीं हुआ है।
इस तरह परसर्ग ‘ने’ का कभी प्रयोग नहीं होता है, फिर भी उसका कर्त्ताकारक रूप बना रहता है। परसर्ग ‘ने’ का क्रिया पर क्या प्रभाव रहता है, यह क्रिया के स्वरूप से ज्ञात हो जाता है।

क्रिया :

क्रिया की परिभाषा-जिस शब्द से किसी काम का करना अथवा होना पाया जाये, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे लड़का पढ़ता है। रामू सोता है। बच्चा खेल रहा है। इन वाक्यों में पढ़ता है’, ‘सोता है’ और ‘खेल रहा है’ क्रिया के बोधक हैं और इनसे कार्य होने का बोध हो रहा है।

क्रिया का निर्माण-क्रिया का निर्माण ‘धातु’ से होता है। अर्थात् क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं। जैसे खाना, पीना, पढ़ना, बुझना, टूटना आदि। इन क्रिया शब्दों में क्रमशः खा, पी, पढ़, बुझ, टूट आदि धातुएँ हैं। हिन्दी के सभी क्रिया शब्दों के अन्त में ‘ना’ प्रत्यय होता है। जैसे-खाना, पढ़ना, लिखना आदि।

क्रिया के भेद-कर्म के आधार पर क्रिया के मुख्य दो भेद होते हैं –

सकर्मक क्रिया – जिन क्रियाओं के व्यापार या कार्य का फल कर्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़ता है, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। इस तरह की क्रिया में कर्म अवश्य रहता है। जैसे –
(i) रमाकान्त पुस्तक पढ़ता है।
(ii) बालक दूध पीता है।
पहले वाक्य में पढ़ता है’ क्रिया का फल ‘पुस्तक’ पर पड़ रहा है, इसलिए ‘पुस्तक’ कर्म है और ‘पढ़ता है’ सकर्मक ता है’ क्रिया का फल ‘दूध’ पर पड़ रहा है, इसलिए ‘दूध’ कर्म है और ‘पीता है’ सकर्मक क्रिया है। इसी प्रकार देखना, सुनना, खेलना, बुलाना, गाना, आना, जाना, बेचना, लिखना आदि सकर्मक क्रियाएँ हैं।

अकर्मक क्रिया-जिस क्रिया के साथ कर्म प्रयुक्त न हो तथा क्रिया का व्यापार और फल दोनों कर्ता पर ही पड़ें, अर्थात् वे कर्त्ता तक ही सीमित रहें और उनसे केवल कार्य का होना ज्ञात हो, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे

  • सुरेश सोता है।
  • घोड़ा दौड़ता है।
  • वह गिरता है।

इन वाक्यों में ‘सोता है’, ‘दौड़ता है’ तथा ‘गिरता है’ क्रिया का फल कर्म पर नहीं पड़ रहा है, इसलिए ये अकर्मक क्रियाएँ हैं। अर्थात् इनमें कोई कर्म नहीं है। इसी प्रकार लगना, हँसना, रोना, गिरना, टूटना एवं बिछुड़ना आदि अकर्मक क्रियाएँ हैं।

विशेष – सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं को पहचानने का सबसे सरल तरीका यह है कि क्रिया के पहले ‘क्या’ अथवा ‘किसको’ लगाकर देखा जाए। यदि उत्तर में कुछ आये, तो क्रिया सकर्मक होगी और यदि उत्तर में कुछ न आये तो क्रिया अकर्मक होगी। जैसे-गीता रोती है। इस वाक्य में ‘क्या रोती है’ का उत्तर नकारात्मक है। अतः यहाँ ‘रोती है’ अकर्मक क्रिया है। गीता दूध पीती है। इस वाक्य में ‘पीती है’ क्रिया है। क्या पीती है ? ‘दूध’ पीती है। अतः यहाँ ‘दूध’ कर्म या ‘पीती है’ सकर्मक क्रिया है।
क्रिया के अन्य भेद-प्रयोग तथा संरचना की दृष्टि से क्रिया के अन्य पाँच भेद माने जाते हैं –

  1. संयुक्त क्रिया
  2. नामधातु क्रिया
  3. प्रेरणार्थक क्रिया
  4. पूर्वकालिक क्रिया
  5. आज्ञार्थक क्रिया

संयुक्त क्रिया-जो क्रिया दो या दो से अधिक भिन्नार्थ क्रियाओं के मेल से बनती है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं । जैसे-मोहन ने दूध पी लिया होगा। इस वाक्य में ‘पी लिया होगा’ संयुक्त क्रिया है, क्योंकि यह ‘पीना’, ‘लेना’ और ‘होना’ नामक भिन्नार्थक क्रियाओं के योग से बनी है।

नामधातु क्रिया-जो क्रियाएँ संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्दों में धातु की तरह प्रत्यय लगाकर बनायी जाती हैं, उन्हें नामधातु क्रियाएँ कहते हैं। जैसे-हाथ, दुःख, झूठ, लात, फिल्म आदि शब्दों से क्रमशः हथियाना, दुःखाना, झुठलाना, लतियाना, फिल्माना आदि नामधातु क्रियाएँ बनती हैं।

(i) संज्ञा शब्दों से निर्मित नामधातु क्रिया

  • रंग – रंगना, रंगाना
  • बात – बतियाना
  • ठग – ठगना
  • लाज – लजाना
  • खरीद – खरीदना
  • खर्च – खर्चना

(ii) सर्वनाम शब्द से नामधातु क्रिया

अपना – अपनाना

(ii) विशेषण शब्दों से नामधातु क्रिया

  • मोटा – मुटाना
  • गरम – गरमाना
  • दुहरा – दुहराना
  • चिकना – चिकनाना

प्रेरणार्थक क्रिया-जहाँ कर्ता स्वयं कार्य न करके अपनी प्रेरणा द्वारा अन्य किसी से करवाता है, वहाँ प्रयुक्त क्रिया प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती है। जैसे-रमेश अपना पत्र पोस्टमैन से पढ़वाता है । इस वाक्य में ‘पढ़वाता है’ क्रिया यद्यपि पोस्टमैन करता है किन्तु वह ऐसा रमेश की प्रेरणा से करता है, अतः यहाँ ‘पढ़वाता’ प्रेरणार्थक क्रिया है।

विशेष – प्रेरणार्थक क्रिया स्वयं के द्वारा तथा दूसरों को प्रेरणा देने से दो प्रकार होती है। यथा –

पूर्वकालिक क्रिया-जब एक क्रिया के समाप्त होने के बाद फिर एक दूसरी क्रिया का होना पाया जाये तथा जिसका काल दूसरी क्रिया से प्रकट हो उसे पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं। जैसे – मैं पढ़कर उठा हूँ।
इस वाक्य में पढ़ने के बाद उठने की क्रिया हुई है। अत: ‘पढ़कर’ पूर्वकालिक क्रिया है। सामान्यतः पूर्वकालिक क्रिया की धातु के अन्त में ‘के’, ‘कर’ या ‘करके’ लगा दिया जाता है। इसी का एक भेद तात्कालिक क्रिया है। इसमें एक क्रिया की समाप्ति के बाद दूसरी पूर्ण क्रिया प्रयुक्त होती है। जैसे-शेर के आते ही वह बेहोश हो गया। इसमें ‘आते ही’ तात्कालिक क्रिया है।।

आज्ञार्थक क्रिया-जिस क्रिया का प्रयोग आज्ञा, अनुमति और प्रार्थना आदि के लिए किया जाता है, वह आज्ञार्थक क्रिया कहलाती है। जैसे- .

  1. तुम सब घर चले जाओ।
  2. सारे देशवासी, राष्ट्रभाषा का सम्मान करें।
  3. आप खाना खाइए।
  4. जरा चुप बैठो। इन वाक्यों में आज्ञा या निवेदन का भाव व्यक्त हुआ है, इसलिए ये आज्ञार्थक क्रियाएँ हैं।

क्रिया के काल जिस समय जो क्रिया सम्पन्न होती है, वही उसका ‘काल’ कहलाता है। इस प्रकार क्रिया के जिस रूप से उसके होने का समय ज्ञात होता है, उसे काल कहते हैं।
काल के भेद-मुख्यतः क्रिया के तीन काल माने जाते हैं –

  • भूतकाल
  • वर्तमानकाल तथा
  • भविष्यत्काल।

भूतकाल – क्रिया के जिस रूप से बीते हुए समय का बोध होता है, उसे भूतकाल कहते हैं। इसके छः भेद होते हैं –

  1. सामान्य भूत – मैंने पत्र लिखा।
  2. आसन्न भूत – रमेश सुबह आया है।
  3. पूर्ण भूत – रमेश कल आया था।
  4. अपूर्ण भूत – सुरेश पत्र लिख रहा था।
  5. सन्दिग्ध भूत – मोहन आया होगा।
  6. हेतुहेतुमद्भूत – यदि लता आती तो मैं भी उसके साथ जाता।

वर्तमान काल-क्रिया के जिस रूप से उसके व्यापार का वर्तमान समय में होना ज्ञात हो, उसे वर्तमान काल कहते हैं। इसके चार भेद होते हैं –

  1. सामान्य वर्तमान – वह पुस्तक पढ़ता है।
  2. अपूर्ण वर्तमान – कृष्णा लेख लिख रही है।
  3. सन्दिग्ध वर्तमान – कृष्णा लेख लिख रही होगी।
  4. सम्भाव्य वर्तमान – कृष्णा शायद लिख रही हो।

भविष्यत् काल-क्रिया के जिस रूप से उसका व्यापार आने वाले समय में ज्ञात हो, उसे भविष्यत् काल कहते हैं। इसके दो भेद होते हैं…

(i) सामान्य भविष्यत् – कृष्णा खाना पकायेगी।
(ii) सम्भाव्य भविष्यत् – वह कल विद्यालय में पढ़े।

परसर्ग ‘ने’ का क्रिया पर प्रभाव :

परसर्ग ‘ने’ सदा कर्ता के साथ ही आता है। इसके प्रयोग से क्रिया के रूप में अनेक परिवर्तन आ जाते हैं। इसके कुछ नियम इस प्रकार हैं –

कर्ता की क्रिया ‘ने’ के प्रयोग के कारण सदा भूतकाल की होती है। जैसे –

  1. राम ने रावण का संहार किया।
  2. राम ने रावण का संहार किया था।
  3. राम ने रावण का संहार किया होगा।

कर्ता के साथ ‘ने’ आने से क्रिया सदा सकर्मक होती है। जैसे –

  1. बालक ने दूध पिया।
  2. गाँधीजी ने अन्याय का विरोध किया।
  3. रमाकान्त ने पत्र पढ़ा।

परसर्ग ‘ने’ का प्रयोग होने पर क्रिया सदा कर्तृवाच्य में होती है। जैसे –

(i) सुधा से गिलास टूट गया सुधा ने गिलास तोड़ दिया।
(ii) पाकिस्तान से भारत जीत गया। पाकिस्तान को भारत ने जीत लिया।

अकर्मक क्रिया होने पर परसर्ग ‘ने’ का प्रयोग नहीं होता है, अर्थात् ‘ने’ के प्रयोग से क्रिया सकर्मक ही प्रयुक्त होती है। जैसे –

(i) गुरुजी ने आगमन किया – गुरुजी आये।
(ii) भिखारी ने आर्त-प्रार्थना की – भिखारी आर्त-प्रार्थना करने लगा।

(5) परसर्ग ‘ने’ के कारण वाक्य में कर चुका’, ‘कर लिया’ आदि का प्रयोग परिवर्तित हो जाता है। जैसे

  1. मोहन खाना खा चुका है। – मोहन ने खाना खा लिया है।
  2. अतिवृष्टि खेती को नष्ट कर चुकी। – अतिवृष्टि ने खेती को नष्ट कर दिया।
  3. धोबी कपड़ा धो चुका। – धोबी ने कपड़े धो लिये।
  4. रमेश विश्राम कर चुका। – रमेश ने विश्राम कर लिया।

परसर्ग ‘ने’ के प्रयोग या अप्रयोग से वर्तमान काल के क्रिया-रूपों में अन्तर आ जाता है। यथा –

‘ने’ का प्रयोग                             ‘ने’ का अप्रयोग
(i) रामू ने खाना पका लिया है।  – रामू खाना पका चुका।
(ii) हाथी ने पेड़ तोड़ दिया।  – हाथी पेड़ को तोड़ चुका।
(iii) पाश्चात्य सभ्यता ने हमें पतित – पाश्चात्य सभ्यता हमें पतित कर रही कर दिया है।

परसर्ग ‘ने’ के प्रयोग से भविष्यत्कालीन क्रिया-रूप बदल जाते हैं। जैसे –

  1. रमा खाना खा गई होगी। – रमा ने खाना खा लिया होगा।
  2. दिनेश किताब रख गया होगा। – दिनेश ने किताब रख दी होगी।
  3. रमेश धोती पहने हए होगा। – रमेश ने धोती पहनी हुई होगी।

परसर्ग ‘ने’ के प्रयोग से अपूर्णतावाची क्रियाएँ पूर्णतावाची बन जाती हैं। जैसे –

  1. वह बच्चों से मार-पीट करता रहा। – उसने बच्चों से मारपीट की थी।
  2. वह कूड़ा सड़क पर फेंकता रहा। – उसने कूड़ा सड़क पर फेंका।
  3. मैं वह प्राकृतिक दृश्य देखता रहा। – मैंने वह प्राकृतिक दृश्य देखा।

परसर्ग ‘ने’ के कुछ अन्य उदाहरण –

अभ्यास प्रश्न :

प्रश्न 1.
परसर्ग ‘ने’ के कारण क्रिया सदा ………. में होती है –
(क) सामान्य वर्तमान काल
(ख) भूतकाल
(ग) सन्दिग्ध वर्तमान काल
(घ) भविष्यत्काल
उत्तर :
(ख) भूतकाल

प्रश्न 2.
परसर्ग ‘ने’ से युक्त क्रिया में होता है –
(क) पूर्णता का भाव
(ख) निरन्तरता का भाव
(ग) अपूर्णता का भाव
(घ) सम्भाव्यता का भाव
उत्तर :
(क) पूर्णता का भाव

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्य में ‘ने’ परसर्ग के प्रयोग में जो परिवर्तन आया है, उसके परिवर्तित रूप का सही विकल्प बताइए – ‘मोहन खाना खा चुका है।’
(क) मोहन ने खाना खाया।
(ख) मोहन ने खाना खा लिया था।
(ग) मोहन ने खाने को खा लिया।
(घ) मोहन ने खाना खा लिया है।
उत्तर :
(क) मोहन ने खाना खाया।

प्रश्न 4.
‘सुधा से गिलास टूट गया।’ इस वाक्य में परसर्ग ‘ने’ का प्रयोग करने से क्या परिवर्तन आयेगा?
(क) सुधा से गिलास को तोड़ा गया।
(ख) सुधा ने गिलास तोड़ दिया।
(ग) सुधा द्वारा गिलास तोड़ा गया।
(घ) सुधा ने गिलास को तोड़ा।.
उत्तर :
(ख) सुधा ने गिलास तोड़ दिया।

प्रश्न 5.
‘रमेश खाना खा चुका।’ इस वाक्य में ‘ने’ परसर्ग का प्रयोग करने पर बनने वाले विकल्प को चुनिये…
(क) रमेश से खाना खाया गया।
(ख) रमेश ने खाना खाया होगा।
(ग) रमेश ने खाना खा लिया।
(घ) रमेश ने खाने को खाया।
उत्तर :
(ग) रमेश ने खाना खा लिया।

प्रश्न 6.
परसर्ग:’ने’ का अशुद्ध प्रयोग किसमें हुआ है?
(क) गाँधीजी ने सत्याग्रह आन्दोलन किया होगा।
(ख) गाँधीजी ने सत्याग्रह आन्दोलन किया था।
(ग) गाँधीजी ने सत्याग्रह आन्दोलन किया।
(घ) गाँधीजी ने सत्याग्रह आन्दोलन करा था।
उत्तर :
(घ) गाँधीजी ने सत्याग्रह आन्दोलन करा था।

प्रश्न 7.
परसर्ग ‘ने’ के योग से शुद्ध वाक्य-रचना है –
(क) मैं जाने का निश्चय किया।
(ख) मैंने खाने का निश्चय किया।
(ग) पिता ने पुत्र से पत्र लिख दिया।
(घ) दूधिया ने दूध गिराया होगा।
उत्तर :
(ख) मैंने खाने का निश्चय किया।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में कर्ता के साथ परसर्ग ‘ने’ लगाकर वाक्य पुनः लिखिए –

  1. उससे गेंद खो गई।
  2. कोयल गाना गा चुकी है।
  3. उससे यह पाप हो गया।
  4. राम वन को प्रस्थान कर गये।
  5. आखिरकार भारत मैच जीत गया।
  6. राम श्याम को मारता था।

उत्तर :

  1. उसने गेंद खो दी।
  2. कोयल ने गाना गाया।
  3. उसने यह पाप किया।
  4. राम ने वन को प्रस्थान किया।
  5. आखिरकार भारत ने मैच जीत लिया।
  6. राम ने श्याम को मारा था।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित वाक्यों में से परसर्ग ‘ने’ को हटाकर वाक्यों की पुनः रचना कीजिए –

  1. महिला ने उन्हें राजी कर लिया था।
  2. उन्होंने एक घण्टे भाषण दिया।
  3. मोहन ने केले खाये।
  4. मैंने दसवीं कक्षा में प्रवेश लिया।
  5. सैनिक ने अन्त तक हिम्मत नहीं हारी।

उत्तर :

  1. महिला उन्हें राजी कर चुकी थी।
  2. वे एक घण्टे बोलते रहे/भाषण देते रहे।
  3. मोहन केले खाता है।
  4. मैं दसवीं कक्षा में प्रविष्ट हुआ।
  5. सैनिक अन्त तक हिम्मत नहीं हारा।

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