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RBSE Solutions for Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 1 हिन्दी कहानी की विकास यात्रा

RBSE Solutions for Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 1 हिन्दी कहानी की विकास यात्रा

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 1 हिन्दी कहानी की विकास यात्रा

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 1 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 1 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
हिन्दी की प्रथम मौलिक कहानी मानी जाती है –
(क) रानी केतकी की कहानी
(ख) इन्दुमती
(ग) कानों का कंगना
(घ) ग्राम
उत्तर तालिका:
(ख) इन्दुमती

प्रश्न 2.
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की अमर कहानी है –
(क) सुखमय जीवन
(ख) परदेश
(ग) उसने कहा था
(घ) पंच परमेश्वर
उत्तर तालिका:
(ग) उसने कहा था

प्रश्न 3.
कहानी में भावमूलक आदर्शवादी परम्परा की नींव डालने वाले कहानीकार
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) जैनेन्द्र कुमार
(ग) चतुरसेन शास्त्री
(घ) इलाचन्द्र जोशी
उत्तर तालिका:
(क) जयशंकर प्रसाद

प्रश्न 4.
हिन्दी में ‘नयी कहानी’ के कहानीकार माने जाते हैं
(क) जैनेन्द्र कुमार
(ख) अज्ञेय
(ग) रांगेय राघव
(घ) मोहन राकेश
उत्तर तालिका:
(घ) मोहन राकेश

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 1 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आधुनिक हिन्दी कहानी के लेखन का श्रीगणेश किस पत्रिका से माना जाता है?
उत्तर:
आधुनिक हिन्दी कहानी के लेखन का श्रीगणेश ‘सरस्वती’ पत्रिका के प्रकाशन से माना जाता है।

प्रश्न 2.
जयशंकर प्रसाद की प्रथम कहानी का प्रकाशन किस पत्रिका में हुआ?
उत्तर:
जयशंकर प्रसाद की प्रथम कहानी ‘ग्राम’ का प्रकाशन इन्दु’ पत्रिका । में हुआ था।

प्रश्न 3.
हिन्दी कहानी को जन-जीवन से जोड़ने का श्रेय किसे दिया जाता
उत्तर:
हिन्दी कहानी को जन-जीवन से जोड़ने का श्रेय मुंशी प्रेमचन्द को दिया जाता है।

प्रश्न 4.
हिन्दी कहानी का विकास-काल क्या माना जाता है?
उत्तर:
हिन्दी कहानी का विकास-काल सन् 1911 से 1927 ई. तक का समय माना जाता है।

प्रश्न 5.
जयशंकर प्रसाद की उल्लेखनीय कहानियाँ कौनसी हैं?
उत्तर:
‘आकाशदीप’ और ‘पुरस्कार’ जयशंकर प्रसाद की उल्लेखनीय कहानियाँ

प्रश्न 6.
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद के प्रमुख दो कहानीकारों के नाम बताइए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद के दो प्रमुख कहानीकारों के नाम हैं-भीष्म साहनी और विष्णु प्रभाकर।

प्रश्न 7.
नयी कहानी आन्दोलन के बाद कौनसा आन्दोलन चला?
उत्तर:
नयी कहानी आन्दोलन के बाद अचेतन कहानी और अकहानी आदि आन्दोलन चले।

प्रश्न 8.
राजस्थान के किन्हीं दो कहानीकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
राजस्थान के दो कहानीकारों के नाम हैं – यादवेन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’ तथा आलमशाह खान।

प्रश्न 9.
किसी भी कहानी की आत्मा किसे माना जाता है?
उत्तर:
कथानक तत्त्व को किसी भी कहानी की आत्मा माना जाता है।

प्रश्न 10.
नयी कहानियों का उद्देश्य क्या दिखाई देता है?
उत्तर:
सामाजिक जीवन की विसंगतियों तथा जीवन के अभावों, कुण्ठाओं और निराशाओं का सटीक चित्रण में नयी कहानियों का उद्देश्य दिखाई देता है।

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राचीन काल में कहानी का स्वरूप कैसा था? बताइये।
उत्तर:
प्राचीन काल में वैदिक साहित्य एवं संस्कृत साहित्य में जो कहानियाँ लिखी गईं, वे काफी बड़ी थीं। उनमें देवी-देवताओं के अलावा पशु-पक्षी भी पात्र होते थे, महाभारत में अनेक छोटी-छोटी कहानियाँ हैं, जो काफी शिक्षाप्रद हैं। बृहत्कथा, कथासरित्सागर, पंचतन्त्र और हितोपदेश आदि में अनेक रोचक-सरस कहानियाँ संगृहीत हैं। इन ग्रन्थों को कहानी के प्रारम्भिक युग की आधारशिला माना जाता है। इनमें संवादों का प्रयोग प्रवचन या उपदेश रूप में मिलता है तथा कथाशैली की प्रधानता है। प्राचीन कहानियों में वर्णन तत्त्व की प्रधानता दिखाई देती है।

प्रश्न 2.
हिन्दी कहानी के प्रथम चरण का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
हिन्दी कहानी के प्रथम चरण में मुंशी इंशा अल्लाह खाँ द्वारा ‘रानी केतकी की कहानी’ तथा राजा शिवप्रसाद द्वारा ‘राजा भोज का सपना’ नामक कहानी लिखी गई। भारतेन्दु युग में गद्य की अन्य विधाओं के साथ कहानी विधा का विकास हुआ। स्वयं भारतेन्दु ने ‘एक अद्भुत अपूर्व सपना’ कहानी लिखी। इसी क्रम में राधाचरण गोस्वामी की ‘यमलोक की यात्रा’ भी आरम्भिक कहानी मानी जाती है। ‘सरस्वती’ पत्रिका के प्रकाशन से कहानी के मौलिक लेखन का श्रीगणेश माना जाता है। आचार्य शुक्ल ने किशोरीलाल गोस्वामी की ‘इन्दुमती’ को प्रथम मौलिक कहानी माना है। कतिपय विद्वानों ने बंग महिला की ‘दुलाई वाली’ को हिन्दी की प्रथम कहानी स्वीकार किया है।

प्रश्न 3.
हिन्दी कहानी के विकास में जयशंकर प्रसाद का योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सन् 1909 में काशी से ‘इन्दु’ पत्रिका का प्रकाशन हुआ, जिसमें सन् 1911 में जयशंकर प्रसाद की ‘ग्राम’ कहानी प्रकाशित हुई। प्रसाद ने इसके बाद निरन्तर अनेक कलात्मक कहानियाँ लिखीं। उन्होंने कहानी में भावमूलक आदर्शवादी परम्परा की नींव डाली और ऐतिहासिक कथानकों को अपनाकर मानवीय भावनाओं एवं आदर्शों के द्वन्द्व का सुन्दर अंकन किया। प्रसादजी के प्रतिध्वनि’, ‘छाया’, ‘इन्द्रजाल’, ‘आँधी’ तथा ‘आकाशदीप’ नामक पाँच कहानी-संग्रह हैं। उनकी ‘पुरस्कार’ तथा ‘आकाशदीप’ उल्लेखनीय कहानियाँ हैं। प्रेमचन्द के समकालीन कहानीकारों में प्रसाद का योगदान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

प्रश्न 4.
हिन्दी कहानी के विकास में किन कहानीकारों का योगदान रहा? बताइये।
उत्तर:
हिन्दी कहानी का विकास काल सन् 1911 से 1927 तक माना जाता है। प्रसाद की ‘ग्राम’ कहानी सन् 1911 में प्रकाशित हुई। इसके बाद चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘सुखमय जीवन’, विश्वम्भरनाथ की ‘परदेश’, राजा राधिकारमण सिंह की ‘कानों का कंगना’, आचार्य चतुरसेन शास्त्री की ‘गृहलक्ष्मी’, कौशिकजी की ‘रक्षाबन्धन’ तथा गुलेरीजी की उसने कहा था और प्रेमचन्द की ‘पंच परमेश्वर कहानी क्रमशः प्रकाशित हुई । इनके बाद सुदर्शन, वृन्दावनलाल वर्मा, ज्वालादत्त शर्मा, सियारामशरण गुप्त, भगवतीप्रसाद वाजपेयी, उषादेवी मित्रा आदि ने अनेक सामाजिकऐतिहासिक कहानियाँ लिखकर इस विधा को पूर्ण विकास किया।

प्रश्न 5.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी-कहानी में आये परिवर्तनों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी कहानी में जीवन मूल्यों तथा सामाजिक दृष्टिकोण को लेकर परिवर्तन आने लगे। कहानी के शिल्प में नये प्रयोग होने लगे। कहानीकारों की सोच और चिन्तन में परिवर्तन आया। इस कारण ‘नयी कहानी’ आन्दोलन का सूत्रपात हुआ। इस काल में निर्मल वर्मा, भीष्म साहनी, विष्णु प्रभाकरे, राजेन्द्र यादव, कमलेश्वर, मन्नू भण्डारी, ज्ञानरंजन आदि कहानीकार प्रमुख रूप से उभरे। ‘नयी कहानी’ आन्दोलन के साथ ‘समकालीन कहानी’ आन्दोलन चला। फिर ‘सचेतन कहानी’ और ‘अकहानी’ जैसे अन्य आन्दोलन भी चले। इनमें जीवन की अनेक समस्याओं और विविध भावों को सुन्दर निरूपण हुआ है।

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 1 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हिन्दी कहानी-साहित्य के विकास-क्रम का परिचय दीजिए।
उत्तर:
हिन्दी कहानी-साहित्य के विकास-क्रम को निम्नलिखित चार युगों में प्रस्तुत किया जा सकता है –

1. आरम्भिक युग या काल – इस काल में गद्य का विकास हुआ। लल्लूलाल, सदल मिश्र तथा इंशा अल्लाह खाँ ने ‘प्रेमसागर’, ‘नासिकेतोपाख्यान’ तथा ‘रानी केतकी’ की कहानी लिखी। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने कहानी-विधा का प्रवर्तन किया। इस काल की कहानियों में ‘दुलाई वाली’, ‘इन्दुमती’ तथा ‘ग्यारह वर्ष का समय की गणना की जाती है।

2. विकास युग – जयशंकर प्रसाद की ‘ग्राम’ कहानी सन् 1911 में प्रकाशित हुई। इसके बाद ‘सुखमय जीवन’, ‘परदेश’, ‘उसने कहा था’, ‘गृहलक्ष्मी’ आदि कहानियाँ प्रकाशित हुई । सन् 1916 में मुंशी प्रेमचन्द की प्रथम कहानी ‘पंचपरमेश्वर प्रकाशित हुई। इस तरह चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, कौशिक आदि के साथ प्रसाद एवं प्रेमचन्द ने कहानी-साहित्य का चहुंमुखी विकास किया और इस काल में सैकड़ों श्रेष्ठ कहानियाँ लिखी गईं।

3. आधुनिक युग – इस युग के कहानीकारों में जैनेन्द्र, अज्ञेय, यशपाल, अश्क आदि अनेक रचनाकारों का विशिष्ट योगदान रहा। मनोवैज्ञानिक, मार्क्सवादी विचारधारा तथा यथार्थपरक कहानियों का लेखन इंस काल में हुआ। विषय और स्वरूप की दृष्टि से कहानी-कला का सुन्दर विकास हुआ।

4. स्वातन्त्र्योत्तर युग – स्वतन्त्रता – प्राप्ति के बाद नयी कहानी, सचेतन कहानी. समानान्तर कहानी, अकहानी, ठुमरी, आंचलिक कहानी आदि कई शैलियों में कहानीलेखन प्रचलित रहा। चेतनावादी, मार्क्सवादी, मानवतावादी आदि अनेक रूप सामने आये तथा शताधिक कहानीकारों ने कहानी-साहित्य के विकास में योगदान किया। यह प्रक्रिया वर्तमान में अबाध रूप से चल रही है।

प्रश्न 2.
हिन्दी कहानी के विकास में मुंशी प्रेमचन्द का योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हिन्दी कहानी के विकास में प्रेमचन्द युग को कहानी का विकास काल माना जाता है। प्रेमचन्द की ‘पंच परमेश्वर’ कहानी सन् 1916 में प्रकाशित हुई, उसके बाद सन् 1936 तक वे निरन्तर कहानी-लेखन करते रहे। उनके कहानीसंकलन ‘मानसरोवर’, ‘सप्तसरोज’ और ‘प्रेम-पच्चीसी’ हैं। ‘वज्रपात’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘मुक्ति का मार्ग’ आदि कहानियाँ उनके कहानी-लेखक के विकासक्रम का प्रतिनिधित्व करती हैं। मुंशी प्रेमचन्द ने अपनी कहानियों में जन-जीवन को जोड़ने और उसके क्षेत्र को व्यापकता प्रदान करने का श्रेय प्राप्त किया है।

यथार्थ जीवन की अभिव्यक्ति को माध्यम बनाकर प्रेमचन्द ने समाज की रूढ़ियों, धर्म के आडम्बरों, राजनीति के खोखलेपन, उत्कट देश-प्रेम, आर्थिक विषमता, कृषक एवं श्रमिक वर्ग का शोषण आदि का जीवन्त चित्रण किया है। इस तरह उन्होंने आरोपित आदर्श के स्थान पर यथार्थ का अधिक चित्रण कर मानवीय संवेदना की अभिव्यक्ति की है। प्रेमचन्द ने घटना-प्रधान चित्रण से मनोविज्ञान और मनोविज्ञान से आदर्शोन्मुख यथार्थ की ओर जो रचना-दृष्टि विकसित की है, उससे ग्राम्य एवं शहरी-कस्बाती जीवन की विविध झाँकियाँ सुन्दर रूप में उभरी हैं। प्रेमचन्द की इस रचना-शैली से उस समय के अन्य कहानीकार काफी प्रभावित रहे हैं।

वृन्दावनलाल वर्मा, सियारामशरण गुप्त, सुदर्शन, आचार्य चतुरसेन शास्त्री, जयशंकर प्रसाद आदि समकालीन कहानीकार प्रेमचन्द से काफी प्रभावित रहे हैं। इस काल की कहानियों में इतिहास एवं पुरातत्त्व के साथ राष्ट्रीयता, देश-भक्ति, सामाजिक चेतना, वर्गगत समस्याएँ तथा पारिवारिक परिस्थितियाँ आदि का सशक्त एवं कलात्मक निरूपण हुआ है। प्रेमचन्द का सारी कहानी-साहित्य उक्त अनेक विशेषताओं से मण्डित होने से सर्वोत्कृष्ट माना जाता है। इस प्रकार हिन्दी कहानी के विकास में प्रेमचन्द का विशिष्टतम योगदान रहा है।

प्रश्न 3.
कहानी के कितने तत्त्व माने गये हैं? कहानी के शीर्षक और कथानक का स्वरूप बताइये।
उत्तर:
एक श्रेष्ठ कहानी के छः तत्त्व माने जाते हैं – कथानक या विषय-वस्तु, चरित्र-चित्रण, संवाद, भाषा-शैली, वातावरण और उद्देश्य कहानी के शीर्षक को भी एक तत्त्व के रूप में माना जाता है।

शीर्षक – यह कहानी का न केवल प्राथमिक एवं महत्त्वपूर्ण उपकरण है, अपितु कहानी का दर्पण भी है। कहानी अच्छी है अथवा बुरी, इसका बहुत कुछ अंकन शीर्षक पर निर्भर करता है। भाव अथवा अर्थ-सूचकता के आधार पर शीर्षक के अनेक रूप हो सकते हैं। कुछ प्रमुख रूप इस प्रकार हैं – (क) स्थान सूचक (ईदगाह), (ख) घटना-सूचक (पुरस्कार), (ग) कौतूहलजनक (उसने कहा था), (घ) व्यंग्यपूर्ण (आदम की डायरी), (च) नायक-नायिका पर आधारित (ममता, सुजान भगत), (छ) मनोवृत्ति पर आधारित (वज्रपात) आदि।
एक श्रेष्ठ शीर्षक में ये गुण होने चाहिए – (क) संक्षिप्तता, (ख) स्पष्टता, (ग) आकर्षकता, (घ) नवीनता, (च) अर्थपूर्णता एवं, (छ) विषयानुकूलता।

कथानक – यह कहानी का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व या प्राण-तत्त्व माना जाता है। कहानी का कलेवर इस पर आधारित रहता है। अतः कहानी के कथानक का विकास अत्यन्त वैज्ञानिक तरीके से तथा क्रमशः होना चाहिए।
एक अच्छे कथानक के लिए चार प्रमुख गुण अपेक्षित हैं – मौलिकता, सम्भाव्यता, सुगठितता एवं रोचकता। मौलिकता का आशय नवीनता से है तथा विषयवस्तु में यथार्थता एवं सम्प्रेष्यता का समावेश जरूरी है।

किसी भी अच्छे कथानक की पाँच अवस्थाएँ मानी जाती हैं – (1) आरम्भ, (2) विकास, (3) मध्य, (4) चरम सीमा तथा (5) अन्त। कुछ समीक्षक इन तीन अवस्थाओं को ही महत्त्व देते हैं – (1) आरम्भ, (2) विकास एवं (3) अन्त। वस्तुतः कहानी का कलेवर छोय होता है। इसमें कल्पना एवं अनुभूतियों का ऐसा मिश्रण रहता है, जिससे रोचकता आती है तथा कौतूहल या जिज्ञासा की सृष्टि होती है।

हिन्दी कहानी की विकास यात्रा पाठ-सार

कहानी का स्वरूप और परिभाषा-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और कहानी कहना-सुनना उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति रही है। कहानी जहाँ मानव का मनोरंजन करती है वहीं जीवन की जटिलताओं, विद्रूपताओं तथा संघर्षों को व्यक्त करने का सशक्त माध्यम भी है। कहानी जीवनोपयोगी उपदेश देने वाली एक लोकप्रिय विधा मानी जाती है।

भारतवर्ष में कहानी वैदिक काल से चली आ रही है जो गद्य और पद्य दोनों रूपों में मिलती है। महाभारत, नन्दी सूत्र, आचार्य गुणाढ्य की ‘ब्रहत्कथा’ प्राचीन कहानियों के भंडार हैं। संस्कृत साहित्य में कथा सरित्सागर, पंचतन्त्र और हितोपदेश कहानी कला के सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ हैं, जिनका विश्व की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। हिन्दी साहित्य की प्रमुख प्रकाशित कहानियाँ हिन्दी कहानियों में कुछ लोग इन्शा अल्लाह खाँ की ‘रानी केतकी की कहानी’ को हिन्दी की प्रथम कहानी मानते हैं, परन्तु इतिहासकारों ने किशोरीलाल गोस्वामी की ‘इन्दुमती’ सन् 1900 में ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित कहानी को ही हिन्दी की प्रथम मौलिक कहानी माना है। कुछ विद्वानों ने बंग महिला की ‘दुलाई वाली’ (1907) को प्रथम कहानी माना है। सन् 1911 से 1927 तक कहानी का विकास काल रहा जिसमें आचार्य चतुरसेन शास्त्री की ‘गृहलक्ष्मी’, गुलेरीजी की अमर कहानी ‘उसने कहा था’, मुंशी प्रेमचन्द की ‘पंच परमेश्वर’ आदि कहानियाँ प्रकाशित हुईं। इसके साथ ही सियारामशरण गुप्त, वृन्दावनलाल वर्मा तथा जयशंकर प्रसाद ने अनेक महत्त्वपूर्ण कहानियाँ लिखीं।

हिन्दी कहानी के संक्रान्ति काल में कहानियाँ व्यक्तिपरक एवं भावपरक हो गईं। जैनेन्द्र कुमार, अज्ञेय, इलाचन्द्र जोशी आदि ने नैतिक मूल्यों, जीवन में विद्रोह और अहम्, मन का अन्तर्द्वन्द्व आदि विषयों को अपने लेखन में अभिव्यक्ति दी है। मार्क्सवादी विचारधारा के लेखकों ने वर्गसंघर्ष, रूढ़ियों, परम्पराओं, अन्धविश्वासों का विरोध तथा शोषण चक्र का तीव्रता से खण्डन किया है। यशपाल, रांगेय राघव, राहुल सांकृत्यायन आदि इस धारा के प्रमुख कहानीकार हैं।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् की कहानियों में नये दृष्टिकोण सामने आये। जीवन-मूल्यों में अन्तर, शिल्प में नये प्रयोग, नया चिन्तन आदि इन कहानियों की प्रमुख विशेषता है। इनमें निर्मल वर्मा, भीष्म साहनी, विष्णु प्रभाकर, राजेन्द्र यादव, कमलेश्वर, मोहन राकेश, मन्नू भंडारी आदि प्रमुख हैं। इसी युग में नयी कहानी, सचेतन कहानी, अकहानी आदि नये रूप सामने आये।

कहानी के तत्व
कहानी के छ: तत्व माने गये हैं जो निम्नलिखित हैं-

  1. कथानक (विषय-वस्तु)–कहानी में वर्णित घटनाओं को कथानक कहते हैं। कथानक कहानी की आत्मा है। अच्छे कथानक में मौलिकता, रोचकता, कौतूहल, सुसंगठन आदि गुण होते हैं।
  2. पात्र (चरित्र)-पात्र कहानी में महत्त्वपूर्ण तत्व है। प्रेमचन्द के शब्दों में “घटनाओं का कोई स्वतन्त्र महत्त्व नहीं होता। उनका महत्त्व केवल पात्रों के मनोभावों को व्यक्त करने की दृष्टि से ही है।”
  3. संवाद ( कथोपकथन)–कहानी में पात्रों के वार्तालाप को संवाद कहते हैं। संवाद ही कथानक को आगे बढ़ाते हैं तथा पात्रों का चरित्र चित्रण करते हुए कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट करते हैं। संवाद संक्षिप्त, पात्रानुकूल, व्यंग्यपूर्ण, सरल एवं स्पष्ट होने चाहिए।
  4. भाषा-शैली-भाषा-शैली में कहानी की मूल संवेदना को प्रकट करने की क्षमता होनी चाहिए। कहानी की भाषा सरल, स्पष्ट, प्रभावपूर्ण तथा पात्रानुकूल हो। शैली में सजीवता, रोचकता, संकेतात्मकता तथा प्रभावात्मकता होनी चाहिए। कहानी के लिए सरस और संवादात्मक शैली उपयुक्त रहती है।
  5. वातावरण जिस स्थान, समय और परिस्थितियों में कहानी की घटनाएँ घटित हो रही हैं उसे देशकाल और वातावरण कहते हैं। सफल कहानी में पूरे सामाजिक परिवेश का चित्रण आवश्यक होता है।
  6. उद्देश्य-कहानी का उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ जीवन के किसी सत्य को उद्घाटित कर मानव को प्रेरणा देना होता है। लेखक कहानी के माध्यम से किसी आदर्श की स्थापना करके समाज के समक्ष एक श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करता है और अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है।

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