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RBSE Solutions for Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 2 तुलसीदास

RBSE Solutions for Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 2 तुलसीदास

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 2 तुलसीदास

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 2 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
तुलसीदास की प्रतिनिधि रचना जो कोटि जन-मन का कण्ठहार बन गयी –
(क) कवितावली
(ख) रामाज्ञा प्रश्नावली
(ग) रामचरितमानस
(घ) गीतावली
उत्तर:
(ग) रामचरितमानस

प्रश्न 2.
तुलसी के काव्य की भाषा है
(क) ब्रज
(ख) अवधी
(ग) बुन्देली.
(घ) मागधी।
उत्तर:
(ख) अवधी

प्रश्न 3.
सीताजी ने राम से क्या कारण बता कर ठहरने का आग्रह किया?
(क) लक्ष्मणजी जल लेने गये हैं।
(ख) सूर्य-ताप तीव्र हो गया है।
(ग) लक्ष्मणजी पीछे रह गये हैं।
(घ) लक्ष्मणजी नाराज हो गये हैं।
उत्तर:
(क) लक्ष्मणजी जल लेने गये हैं।

प्रश्न 4.
ग्रामवधुएँ सीताजी से राह में क्या पूछ रही हैं?
(क) तुम्हारे साथ जो गौर वर्ण वाले कौन हैं?
(ख) श्याम वर्ण वाले कौन हैं?
(ग) तुम उदास क्यों हो?
(घ) तुम कहाँ से आ रही हो?
उत्तर:
(ख) श्याम वर्ण वाले कौन हैं?

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 2 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘पुर तें निकसी रघुवीर वधू’ में ‘रघुवीर वधू’ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
उत्तर:
इस पंक्ति में ‘रघुवीर वधू’ सीताजी के लिए प्रयुक्त हुआ है।

प्रश्न 2.
‘पबि पाहन हू ते कठोर हियो है।’ पत्थर से भी कठोर हृदय उक्त पंक्ति में किसका बताया है?
उत्तर:
उक्त पंक्ति में ग्रामवधुओं ने रानी कैकेयी के हृदय को पत्थर से भी कठोर बताया है।

प्रश्न 3.
‘सुनि सुन्दर बैन सुधारस साने सयानी है जानकी जानी भली।’ पंक्तियों में कौन-सा अलंकार प्रयुक्त हुआ है?
उत्तर:
इसमें स, र, ज, न आदि वर्गों की मधुर आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार प्रयुक्त हुआ है।

प्रश्न 4.
वनमार्ग में मुनिवेष में कौन प्रस्थान कर रहे हैं?
उत्तर:
वन-मार्ग में मुनिवेष में श्रीराम और लक्ष्मण प्रस्थान कर रहे हैं, अर्थात् वनवास हेतु जा रहे हैं।’

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘अँखियाँ अति चारु चलीं जल च्वै’ राम की आँखों से अश्रु किस कारण छलक पड़े?
उत्तर:
जब श्रीराम, सीता और लक्ष्मण वनवास के लिए अयोध्या के महलों से बाहर आकर चलने लगे, तो कुछ ही दूर चलने पर सीता तो कष्ट का अनुभव होने लगा। उसके कदम डगमगाने लगे, चेहरे पर पसीने के कण झलकने लगे और थकान से मधुर अधरपुट सूखने लगे। उस समय सीता अतिशीघ्र गन्तव्य स्थान पर पहुँचना चाहती थी, वह थोड़ा-सा पैदल चलने से ही व्याकुल हो गई थी। तब उसने अपनी व्याकुलता को व्यक्त करते हुए श्रीराम से पूछा कि अभी और कितना चलना है, पर्णकुटी कहाँ पर बनानी है और यह वन-मार्ग कितना बाकी है। तब प्रिया सीता की आकुलता-आतुरता को देखकर, उसकी सुकुमारता और भाग्य की विपरीतता का चिन्तन कर श्रीराम की आँखों से अश्रु छलक पड़े।

प्रश्न 2.
‘स्त्रम-सीकर साँवरि देह लसै मनो रासि महातम तारक मैं।’ उपर्युक्त पंक्तियों का भाव-सौन्दर्य लिखिए।
उत्तर:
इसमें कवि ने सुन्दर कल्पना उपस्थित की है कि श्रीराम के साँवले शरीर पर पसीने के श्वेत कण इस तरह चमक रहे थे कि मानो गहन अंधकार में तारे चमक रहे हों। अर्थात् कवि ने श्रीराम के साँवले शरीर को अंधकार का पुंज और शरीर पर छलक आये श्रम-कणों को तारे रूप में चित्रित किया है। इस तरह कवि ने उत्प्रेक्षा का सहारा लेकर पसीने के कणों से सराबोर श्रीराम के साँवले शरीर की शोभा का चमत्कारी वर्णन किया है। कवि-कल्पना के चमत्कार से इसमें अलंकृत भाव-सौन्दर्य उभरा है, जो कि अत्यन्त स्पृहणीय है।

प्रश्न 3.
सीताजी को थका हुआ जानकर श्रीराम ने कौन-सा उपक्रम किया?
उत्तर:
वन-मार्ग में चलने पर जब श्रीराम ने सीताजी को थका हुआ जाना, उनके द्वारा जल लेने गये लक्ष्मण की प्रतीक्षा करने का मधुर आग्रह सुना, तो श्रीराम वहीं पर बैठ गये और वे पैर में चुभे हुए काँटे निकालने लगे। इस उपक्रम में पैर में काँटे न चुभने पर भी वे काँटे निकालने का दिखावा करते रहे और काफी देर तक काँटे निकालने की चेष्टा करते रहे। श्रीराम इस तरह प्रिया सीता को एक ही स्थान पर ठहर कर श्रम या थकान मिटाने का मौका देना चाहते थे। परन्तु जब सीता को वास्तविकता का पता चला, तो पति के प्रेम-व्यवहार को देखकर सीता का तन पुलकित हो गया और नेत्रों से प्रेमाश्रु बहने लगे।

प्रश्न 4.
ग्रामवधुओं के पूछने पर कि ‘साँवरे से सखि रावरे को है।’ सुनकर सीताजी की प्रतिक्रिया क्या रही?
उत्तर:
सीताजी से जब ग्रामवधुओं ने बड़ी चतुराई से पूछ लिया कि इन दोनों राजकुमारों में से साँवले शरीर के राजकुमार तुम्हारे क्या लगते हैं? तब सीताजी ने समझ लिया कि ये ग्रामवधुएँ काफी चतुर-चालाक हैं और मीठी बातें करके सारा रहस्य खोलना चाहती हैं। तब सीताजी ने स्पष्ट वाणी से तो कुछ नहीं कहा, परन्तु अपने नेत्र तिरछे करके प्रेमपूर्ण संकेत के द्वारा ही उन्हें समझाया कि ये उसके प्राणवल्लभ हैं। इस प्रकार सीताजी ने भारतीय नारी के आदर्शों का पूरा ध्यान रखा, पति का स्पष्ट नाम नहीं कहा, केवल मधुर संकेत से ही बता दिया। उस समय सीताजी ने चतुराई से अपनी स्नेहपूर्ण प्रतिक्रिया व्यक्त की तथा अपने सांकेतिक उत्तर से ग्रामवधुओं को वांछित उत्तर भी दे दिया।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अयोध्या से बाहर वन-मार्ग में दो कदम चलते ही सीताजी की दशा कैसी हो गयी? वर्णन करो।
उत्तर:
अयोध्या के महलों से बाहर आकर जब श्रीराम-लक्ष्मण के साथ सीताजी वन-मार्ग पर चलने लगीं, तो कुछ कदम चलते ही उनके पैर डगमगाने लगे । कठोर वनभूमि पर पैदल चलने का अभ्यास न होने से तथा शरीर की अतिशय सुकुमारता से सीताजी को तुरन्त थकान लग गई, उनके ललाट पर पसीने के कण झलकने लगे, थकान से अधर-पुट एकदम सूख गये और मन व्यथित-सा हो गया। इस प्रकार वन-मार्ग में कुछ कदम चलते ही सीताजी की दशा दयनीय बन गई।

सीताजी तब अधीरता, आतुरता एवं व्याकुलता से ग्रस्त होकर श्रीराम से पूछने लगीं कि अभी और कितना चलना है, वन-मार्ग में कितनी दूर तक जाना पड़ेगा और पर्णकुटी कहाँ पर बनायी जायेगी तथा कहाँ पर हमें रहना पड़ेगा अथवा कहाँ पर विश्राम करने का अवसर मिलेगा? इस प्रकार सीताजी की दशा, थकान, आतुरता एवं कोमलता को देखकर श्रीराम को काफी दुःख हुआ और भाग्य की विपरीत-दशा का ध्यान कर उनके नेत्रों से अश्रुकण गिरने लगे। अर्थात् सीताजी की दशा को देखकर श्रीराम को काफी दुःख हुआ। उस समय सीताजी को आगे कदम बढ़ाना भारी लगने लगा था। इस कारण वे वहीं पर बैठ जाना एवं विश्राम करना चाहती थीं।

प्रश्न 2.
जल को गये लक्खन हैं लरिका सवैया में सीता-राम के पावनप्रेम की सुन्दर झलक मिलती है। समझाइए।
उत्तर:
उक्त सवैया में सीताजी को वन-मार्ग में थकान का अनुभव होने लगा, तो उन्होंने बहाना बनाते हुए कहा कि लक्ष्मण पानी लेने गया है। लक्ष्मण अभी बालक है, उसे अकेले में इस प्रकार छोड़ना ठीक नहीं है। इसलिए हे प्रिय, कुछ देर लक्ष्मण की प्रतीक्षा कीजिए और छायादार पेड़ के नीचे थोड़ी देर खड़े हो जाइये। तब तक मैं आपको हवा करती हैं और गर्म मिट्टी से सने पैरों को पोंछती हैं। इस प्रकार सीताजी स्वयं थकी हुई होने पर भी पति के हवा करने तथा पैर पोंछने का आग्रह प्रेमपूर्वक करती रहीं। उनका ऐसा आग्रह पावन-प्रेम की झलक से मनोरम था।

श्रीराम भी समझ गये थे कि सीता को थकान लग गई और वे कुछ समय तक विश्राम करना चाहती हैं। लक्ष्मण की प्रतीक्षा करना, पसीना पोंछना और हवा करना या पैर पोंछना तो एक सामान्य बहाना है। इसलिए श्रीराम ने पैर से काँटे निकालने का बहाना किया और काफी देर तक काँटे निकालने का अभिनय-सा करते रहे, अर्थात् पैर में काँटे चुभे न होने पर भी काँटे निकालने का बहाना बनाकर बैठे रहे। उन्होंने यह सब सीता के प्रति प्रेम-भावना के कारण ही किया । उधर सीता भी इस रहस्य को समझ गईं और उसके नेत्रों से अश्रुधारा बहने लगी। इस प्रकार उनके पावन-प्रेम की झलक देखने को मिलती हैं।

प्रश्न 3.
वन-मार्ग में राम-लखन-सीता को मुनिवेष में देखकर ग्रामीण स्त्रियों ने प्रतिक्रिया स्वरूप क्या कहा?
उत्तर:
ग्रामीण स्त्रियों ने जब वन-मार्ग में श्रीराम, लक्ष्मण एवं सीता को मुनिवेष में देखा, तो वे कहने लगीं कि ये दोनों राजकुमार कितने सुन्दर हैं और इनके साथ चन्द्रमुखी सीता कितनी अच्छी लग रही है। इनके पैरों में जूते भी नहीं हैं और नंगे पैर ही वन-मार्ग पर जा रहे हैं। इनके नंगे पैरों का स्पर्श करने से मानो धरती भी संकुचित हो रही है। इसी क्रम में अन्य स्त्रियों ने कहा कि रानी कैकेयी अज्ञानी एवं पत्थर-दिल हैं, जिसने इन्हें वनवास दिया है।

राजा दशरथ भी राज-कार्य में कमजोर लगते हैं, क्योंकि उन्होंने रानी के अविवेकपूर्ण वचनों को माना, अर्थात् अनुचित कार्य का जरा भी विचार नहीं किया। ये तीनों इतने सुन्दर हैं, सदा आँखों में बसाने योग्य रूप-छवि वाले हैं। उस समय इनके वियोग में अयोध्यावासी इनके प्रियजन कैसे रह पा रहे होंगे? इसी क्रम में अन्य चतुर ग्रामीण स्त्री ने सीताजी से पूछ लिया कि ये साँवरे राजकुमार आपके क्या लगते हैं? ये वन-मार्ग में अतीव शोभायमान हो रहे हैं और हमारे मन को मोहित कर रहे हैं। इस प्रकार ग्रामीण स्त्रियों ने प्रतिक्रियास्वरूप उक्त बातें कहीं।

प्रश्न 4.
पठित पाठ के आधार पर श्रीराम के सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तुलसीदास द्वारा रचित ‘कवितावली’ से संकलित प्रस्तुत पाठ में वनवास के लिए मार्ग में जाते हुए श्रीराम आदि का भावपूर्ण वर्णन किया गया है। इससे श्रीराम को सौन्दर्य इस प्रकार व्यक्त हुआ है|

  1. सुन्दर रूप-छवि – श्रीराम का शरीर साँवला है। उन्होंने वनवास हेतु मुनियों का वेष धारण कर रखा है। उनके सिर पर जटा, हाथ में धनुष-बाण एवं पीठ पर तरकस है। उस समय वे सुन्दरता में कामदेव से भी अधिक मनोरम लग रहे हैं। उन्हें देखकर ग्रामवधुएँ भी मोहित हो जाती हैं।
  2. सुकोमल व्यक्तित्व – श्रीराम का शरीर जितना सुन्दर है, उतना ही उनका मन एवं हृदय भी मधुर है। सीताजी को थकी हुई जानकर वे काफी देर तक काँटे निकालने का बहाना करते हैं। उन्हें सीताजी के साथ ही लक्ष्मण की भी चिन्ता रहती है तथा पिता के वचन का पालन करना भी वे अपना दायित्व मानते हैं। उनका व्यक्तित्व इस दृष्टि से प्रशस्य है।
  3. सुन्दर स्वभाव – पठित अंश में श्रीराम को सुन्दर स्वभाव का बताया गया है। वन-मार्ग पर चलते समय वे अपने इस स्वभाव का परिचय देकर बार-बार सीताजी की ओर देखते हैं और वन के कष्टों का चिन्तन करते हैं। उनके ऐसे स्वभाव को देखकर ग्रामवधुएँ भी विमोहित हो जाती हैं।

व्याख्यात्मक प्रश्न –

1. रानी मैं जानी ……………….. वनवास दियो है?
2. पुर ते निकसी रघुवीर ………………. चलीं जल च्वै।
3. वनिता बनी स्यामल ………………… भूप के बालक है।
उत्तर:
उक्त सभी अंशों की व्याख्या पूर्व में दी गई सप्रसंग व्याख्या में देखिए ।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 2 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
तुलसीदास की भक्ति किस भाव से पृरित है?
(क) सख्य भाव
(ख) भ्रातृ भाव
(ग) दास्य भाव
(घ) माधुर्य भाव
उत्तर:
(ग) दास्य भाव

प्रश्न 2.
“साँवरे से सखि, रावरे को है?” ऐसा प्रश्न किसने किनसे किया?
(क) वन-मार्ग में ग्रामीणों ने राम से
(ख) ग्रामवधुओं ने सीताजी से
(ग) वृद्ध ग्रामीण ने सीताजी से।
(घ) पथिकों ने ग्रामवधुओं से।
उत्तर:
(ख) ग्रामवधुओं ने सीताजी से

प्रश्न 3.
“बनिता बनी स्यामल गौर के बीच, बिलोकहु री सखी मोहि सी है।” इस कथन से ग्रामवधू के किस मनोभाव की व्यंजना हुई है?
(क) आश्चर्य
(ख) हर्ष
(ग) मोह
(घ) अधीरता
उत्तर:
(क) आश्चर्य

प्रश्न 4.
“फिरि बूझति है चलनो अब केतिक, पर्णकुटी करिहौं कित है।” इससे सीताजी के मन का भाव व्यक्त हुआ है –
(क) आतुरता
(ख) उत्सुकता
(ग) चिन्ता
(घ) संवेदना
उत्तर:
(क) आतुरता

प्रश्न 5.
संकलित पाठ ‘वन-गमन’ किस रचना से लिया गया है?
(क) ‘रामचरितमानस’ से
(ख) ‘कवितावली’ से
(ग) ‘गीतावली’ से
(घ) “विनयपत्रिका’ से।
उत्तर:
(ख) ‘कवितावली’ से

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 2 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘बनिता बनि स्यामल गौर के बीच’ पंक्ति में ‘स्यामल गौर’ किसके लिये कहा गया है?
उत्तर:
उक्त पंक्ति में ‘स्यामल’ साँवले सलोने श्रीराम के लिए और ‘गौर’ गोरे वर्ण के लक्ष्मण के लिए कहा गया है।

प्रश्न 2.
‘फिरि बूझति है, चलनो अब केतिक, पर्णकुटी करिहौ कित है।’ सीताजी ने श्रीराम से ये प्रश्न क्यों किये?
उत्तर:
सीताजी अति कोमलांगी थीं, थोड़ा-सा चलने पर ही वे थक गई थीं। वे वन से अपरिचित भी थीं। अतः थक जाने से, कितना और चलना है, इस आशय से सीताजी ने श्रीराम से ये प्रश्न किये।

प्रश्न 3.
‘पिय की अँखियाँ अति चारु चली जल च्वै।” श्रीराम के नेत्रों से अश्रुधारा क्यों बहने लगी?
उत्तर:
सीताजी की दशा देखकर श्रीराम के नेत्रों से अश्रुधारा बहने लगी, क्योंकि वन-मार्ग पर थोड़ा-सा चलते ही सीताजी पूछने लगी थीं कि अभी कितना और चलना है।

प्रश्न 4.
”पयोदेहिं क्यों चलिहैं? सकुचात हियो है।” श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मण को देखकर ग्रामवधू का हृदय क्यों सकुचा रहा था?
उत्तर:
श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मण के शरीर की कोमलता, नंगे पैर चलने में अक्षमता तथा वन-मार्ग की कठिनता का विचार कर ग्रामवधू का हृदय सहानुभूति रखने से सकुचा रहा था।

प्रश्न 5.
“अनुराग-तड़ाग में भानु उदै बिगसीं मनो मंजुल कंज-कली।” इस पंक्ति का भाव-सौन्दर्य बताइए।
उत्तर:
अनुराग रूपी तालाब में सूर्य के उगने से मन रूपी कमल-कली खिल गई हो – ऐसा भाव व्यक्त करने के लिए इसमें रूपक अलंकार की योजना की गई है। यह अलंकृत सरस भावात्मक कथन है।

प्रश्न 6.
‘कवितावली’ ग्रन्थ को प्रतिपाद्य एवं इसमें प्रयुक्त भाषा कौनसी है?
उत्तर:
‘कवितावली’ ग्रन्थ का प्रतिपाद्य राम-कथा के केवल मार्मिक प्रसंगों का भावपूर्ण चित्रण करना है। तुलसीदास के इस ग्रन्थ की भाषा ब्रज है।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘कवितावली’ का वर्य-विषय क्या है? बताइये।
उत्तर:
‘कवितावली’ का वर्ण्य-विषय प्रसिद्ध राम-कथा ही है। ‘रामचरितमानस की तरह इसमें सात काण्डों में कथानक का विभाजन किया गया है। इसमें रामकथा के केवल मार्मिक प्रसंगों एवं महत्त्वपूर्ण घटनाओं का भावपूर्ण चित्रण किया गया है। ‘कवितावली’ में तुलसीदास ने विविध रसों एवं शैलियों का समावेश किया है। इसमें ब्रजभाषा का माधुर्य प्रस्फुटित हुआ है। इसके प्रारंम्भिक काण्डों की अपेक्षा उत्तरकाण्ड अधिक बड़ा है, जिसमें श्रीराम के स्वरूप का वर्णन रोचकता से हुआ है। मनोभावों की अभिव्यक्ति की दृष्टि से ‘कवितावली’ सरस रचना है। इसमें सवैया छन्दों का अधिकतर प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 2.
“तिय की लखि आतुरता पिय की अँखियाँ अति चारु चलीं जल च्वै।” इसमें किसकी आतुरता के लिए कहा गया है तथा उसकी क्या प्रतिक्रिया
उत्तर:
‘कवितावली’ से लिये गये इस छन्द में उस घटना का वर्णन है, जब श्रीराम, सीता और लक्ष्मण वन-मार्ग पर चल रहे थे। सीता कोमलांगी होने के कारण कुछ ही कदम चलीं, तो पसीने से सराबोर हो गईं। उस समय वे शीघ्र ही गन्तव्य स्थान पर पहुँचना चाहती थीं, परन्तु उन्हें वनवास की कठिनाइयों का वास्तविक ज्ञान नहीं था। अतएव उनकी व्याकुलता और आतुरता को देखकर श्रीराम की आँखें अश्रुओं से भर गईं। यद्यपि उस समय श्रीराम ने स्वयं कुछ नहीं कहा, परन्तु अपनी मुखमुद्रा एवं अनुपात से उन्होंने अपनी हार्दिक प्रतिक्रिया व्यक्त कर दी कि चौदहं वर्ष तक वनवास का कष्ट कैसे भोगा जायेगा और इनकी क्या दशा होगी?

प्रश्न 3.
‘रानी मैं जानी अजानी महा” कथन से किसे तथा क्यों अज्ञानी कहा गया है?
उत्तर:
वनगमन प्रसंग में जब मार्ग में पड़ने वाले गाँवों की स्त्रियों को पता चला कि ये अयोध्या के राजकुमार हैं और उन्हें रानी कैकेयी ने चौदह वर्ष का वनवास दिया है, तब ग्रामीण स्त्रियाँ परस्पर बातचीत करती हुई कहने लगीं कि जिस रानी ने उन्हें वनवास दिया है, वह रानी अतीव अज्ञानी है। भला इतने सुन्दर-सुशील राजकुमारों को वनवास देना कहाँ, की समझदारी. है। जिसने ऐसी अनुचित एवं निर्दयतापूर्ण आचरण किया है, वह पूरी तरह मूर्ख एवं अज्ञानी ही हो सकता है। हमें तो वह रानी पूरी तरह नासमझ लगती है और उसका हृदय पत्थर के समान कठोर तथा निर्दयी है।

प्रश्न 4.
“बिलोकहु री सखी! मोहि सी है।” इस कथन से ग्रामवधू का विशिष्ट अभिप्राय क्या है?
उत्तर:
प्रत्येक व्यक्ति का किसी चीज को देखने-समझने का, उससे आत्मीय अनुभूति रखने का अपना अलग दृष्टिकोण रहता है। वह अपने दृष्टिकोण या अपनी भावना के अनुसार देखता है और उसके बारे में अपने मन में धारणा बनाता है। इसी कारण एक ग्रामवधू ने जब श्रीराम और लक्ष्मण के मध्य में चल रही सीताजी को देखा, तो उसे अनुभूति हुई कि यह कितनी कोमलांगी है? इसके चरण-कमल वन-मार्ग की कठोरता को सहन नहीं कर पा रहे हैं, फिर भी यह पति का अनुगमन कर रही है। इस तरह की भावना रखने से वह ग्रामवधू सहज संवेदना, करुणा एवं सहानुभूति से भर गई, परन्तु साथ ही सीताजी के सौन्दर्य को देखकर प्रसन्नता से देखती हुई ऐसा कहने लगी।

प्रश्न 5.
सयानी है जानकी जानी भली”-सीताजी ने कैसे समझ लिया कि पूछने वाली ग्रामवधू सयानी है?
उत्तर:
वन-मार्ग पर जब श्रीराम, सीता और लक्ष्मण चल रहे थे, तब ग्रामीण स्त्रियाँ कौतुकवेश उनके साथ-साथ चलने लगीं। उन स्त्रियों में से एक ने देखा कि साँवले राजकुमार बार-बार प्रेमपूर्ण दृष्टि से सीताजी को देख रहे हैं और उनकी दृष्टि अतीव आकर्षक है। इससे उस ग्रामवधू ने अनुमान लगाया कि यह राजकुमार निश्चित ही इनका अपना प्रियतम है। इसी आधार पर उसने सीताजी से प्रश्न किया। सीताजी ने भी समझ लिया कि पूछने वाली ग्रामवधू सयानी या चतुर है। क्योंकि उसने श्रीराम के हाव-भाव देखकर ही पूछ लिया कि ये साँवले राजकुमार आपके क्या हैं?

प्रश्न 6.
‘वन-गमन’ शीर्षक कवितांश के आधार पर श्रीराम के चरित्र की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
‘वन-गमन’ कवितांश में श्रीराम के चरित्र की ये विशेषताएँ व्यक्त हुई हैं –

  1. वे माता-पिता के आज्ञाकारी पुत्र थे।
  2. वे पिता के वचन का पालन करना अपना कर्त्तव्य मानते गये।
  3. श्रीराम अपनी पत्नी सीता से अतिशय प्रेम रखते थे और उसके लिए चिन्तित रहते थे।
  4. श्रीराम अनुज लक्ष्मण से पूरा स्नेह रखते थे।
  5. श्रीराम का स्वभाव सभी गुणों से सम्पन्न था और वे विवेकशील व मर्यादा-पुरुष थे।
  6. वे धीर-वीर एवं शस्त्रास्त्र विद्या में कुशल थे।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
तुलसी की भक्ति-भावना पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
गोस्वामी तुलसीदास की भक्ति दास्य-भाव या सेवा-सेवक भाव की मानी जाती है। उन्होंने अपनी रचनाओं में स्वयं को सेवक तथा दास और अपने आराध्य को स्वामी घोषित किया है। वे अपने आराध्य श्रीराम के साथ अत्यन्त मर्यादापूर्ण व्यवहार करते हैं तथा दास बनकर अपने स्वामी को रिझाते हैं। उनके दास्य-भाव के आदर्श पवनपुत्र हनुमान् हैं, जो केवल सेवा के माध्यम से ही अपने प्रभु को प्रसन्न करने के लिए सदैव उद्यत रहते हैं। ‘रामचरितमानस’ में तुलसी ने इसी सेवा-भाव को भक्ति और मुक्ति हेतु स्वीकार किया है –

“सेवक सेवा-भाव बिनु भव न तरिय उरगारी।” तुलसी की भक्ति-भावना की विशेषताएँ-तुलसी की भक्ति-भावना सगुणात्मक है, जिसमें युगधर्म के अनुसार आदर्शों की प्रतिष्ठा की गई है। तुलसी ने भक्ति को कठिन कार्य माना है। लोक-कल्याण से भक्ति का मार्ग प्रशस्त बताया है। तुलसी के आराध्य शील, शक्ति एवं सौन्दर्य के साथ ही ईश्वरत्व व मानवत्व के सम्मिलित पुंज हैं। तुलसी निर्गुण ब्रह्म ही हैं, रूपाकार रहित हैं, परन्तु सगुण रूप में वे भक्तों का कल्याण करने के लिए तत्पर रहते हैं। इस प्रकार तुलसी की भक्ति में समर्पणशीलता एवं निष्ठा का स्वर प्रमुख है।

प्रश्न 2.
“तुलसी के काव्य में मार्मिक प्रसंगों का सुन्दर चित्रण हुआ है।” पठित अंश के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गोस्वामी तुलसीदास के काव्य में मार्मिक प्रसंगों की कोई कमी नहीं है। उनके ‘रामचरितमानस’ में प्रारम्भ से लेकर अन्त तक मार्मिक स्थलों का सुन्दर चित्रण हुआ है। उदाहरण के लिए पुष्पवटिका प्रसंग, शृंगवेरपुर में नर-नारियों के उद्गार, केवट प्रसंग, चित्रकूट में भरत-मिलाप, लंका में सीता-हनुमान संवाद, लक्ष्मण-शक्ति आदि ऐसे मार्मिक स्थल हैं, जिनका चित्रण करने में तुलसी ने हार्दिक भावों को सहज-स्वाभाविक अभिव्यक्ति दी है। तुलसी की ‘कवितावली’ रचना इस दृष्टि से अधिक उल्लेखनीय है। क्योंकि इसमें तुलसी ने समग्र रामकथा का निरूपण न करके केवल मार्मिक स्थलों या प्रसंगों का ही चित्रण किया है।

उदाहरणार्थ ‘अयोध्याकाण्ड’ के वन-गमन प्रसंग को तुलसी ने ‘कवितावली’ में पूरा भावुकता, तन्मयता एवं मधुरता के साथ चित्रित किया है। ऐसे स्थल पर मानवीय संवेदना, करुणा, कोमलता, वेदना-व्यथा तथा सभी पात्रों की भावावेश की स्थिति का इस तरह चित्रण किया है कि सारा का सारा प्रसंग करुणा-वेदना से व्याप्त प्रतीत होता है। इस तरह स्पष्ट कहा जा सकता है कि ‘कवितावली’ में तुलसी ने मार्मिक स्थलों का सुन्दर विन्यास किया है। भावों की तरलता एवं मधुरता का ध्यान रखकर इसमें ललित ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है। इससे इसका काव्यगत भाव-शिल्प सौन्दर्य पूरी तरह निखरा है।

रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –

प्रश्न 1.
तुलसीदास के व्यक्तित्व-कृतित्व का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
हिन्दी साहित्य के सगुण रामभक्ति काव्यधारा के कवियों में अग्रणी गोस्वामी तुलसीदास का जन्म उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर गाँव में वि.सं. 1554 में हुआ। भले ही इनकी जन्मतिथि को लेकर कुछ विवाद है, परन्तु सर्वसम्मत यही तिथि है। इनके पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी था। बाल्यावस्था में माता-पिता का देहान्त हो जाने के कारण गुरु नरहरिदास ने ही उनका लालन-पालन किया। युवा होने पर इन्होंने विवाह भी किया, परन्तु कुछ काल के बाद इन्होंने वैराग्य अपनाया और चित्रकूट, अयोध्या, काशी आदि स्थानों पर रहकर अपने प्रभु श्रीराम की भक्ति में निमग्न रहे तथा समाजकल्याण के कार्य करते हुए काशी में स्वर्गीय हुए। कृतित्व-परिचय-गोस्वामी तुलसीदास ने अपने आराध्य के चरित्र को लेकर विभिन्न ग्रन्थों की रचना की, जिनमें ‘रामचरितमानस’ को सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य और भारतीय संस्कृति का दिव्य ग्रन्थ माना जाता है।

इनका रचनात्मक कार्य काफी व्यापक है और इनके नाम पर लिखे गये ग्रन्थों की संख्या अधिक है, परन्तु विद्वानों ने इनके ये ही ग्रन्थ प्रामाणिक माने हैं-‘रामचरितमानस’, ‘रामललानहछू’, ‘बरवै रामायण’, ‘वैराग्य सन्दीपनी’, ‘पार्वतीमंगल’, ‘जानकीमंगल’, ‘रामाज्ञा प्रश्न’, ‘गीतावली’, ‘कवितावली’, ‘कृष्ण गीतावली’, ‘विनयपत्रिका’ एवं ‘दोहावली’। तुलसी की रचनाओं में भक्ति का सर्वांग पूर्ण चित्रण हुआ है। लोकमंगल की भावना इनकी कृतियों का प्रमुख प्रतिपाद्य रहा है। इनका कृतित्व अनेक विशेषताओं से मण्डित है।

तुलसीदास  – कवि-परिचय-

हिन्दी साहित्य में सर्वश्रेष्ठ महाकवि तुलसीदास रामभक्ति काव्यधारा के प्रमुख उपासक थे। इनका जन्म वि. संवत् 1554 में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। बचपन में माता-पिता का देहान्त हो जाने से बालक तुलसी को अनेक कष्ट झेलने पड़े तथा भिक्षाटन कर जीवनयापन करना पड़ा। बाबा नरहरिदास ने बालक तुलसी का लालन-पालन किया और शिक्षा-दीक्षा की भी व्यवस्था की। युवा होने पर ये गाँव लौटे, तो इनका विवाह रत्नावली से हुआ। पत्नी के प्रति अत्यधिक आसक्ति और उसकी फटकार से इन्होंने गृह-त्याग किया और विरक्त होकर चित्रकूट, अयोध्या, काशी आदि तीर्थों में रहकर रामकथाश्रित अमर काव्य-ग्रन्थों की रचना की। इनकी प्रमुख रचनाओं के नाम हैं

‘रामचरितमानस’, ‘विनयपत्रिका’, ‘कवितावली’, ‘गीतावली’, ‘दोहावली’, ‘जानकीमंगल’, ‘बरवै रामायण’, ‘रामललानहछू’, ‘रामाज्ञा प्रश्नावली’, ‘पार्वती मंगल’, ‘वैराग्य सन्दीपनी’ तथा ‘कृष्ण गीतावली’।

पाठ-परिचय-

पाठ्यक्रम में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘कवितावली’ के ‘अयोध्याकाण्ड’ का अंश संकलित है। संकलित अंश में सीता व लक्ष्मण सहित श्रीराम के वन-गमन का प्रसंग अत्यन्त रोचक, सहज एवं मार्मिक रूप में चित्रित हुआ है। अयोध्या के महलों से वन-मार्ग पर चलने में सीता की जो दशा हुई, पथ पर महिलाओं ने जो उपालम्भ दिये और जो जिज्ञासा व्यक्त
की, मुनिवेष में कंटकाकीर्ण वन-पथ पर चलने में जो स्थिति बनी, उन सभी प्रसंगों को इसमें चित्रात्मक तथा हृदय-स्पर्शी चित्रण सवैया छन्द में हुआ है।

सप्रसंग व्याख्याएँ

वन-गमन

सवैया (1)
पुर तें निकली रघुबीर-बधू, धरि धीर दये मग में डग है।
झलक भरि भाल कनी जल की, पुट सूखि गए मधुराधर वै॥
फिरि बूझति है ‘चलनो अब केतिक, पर्न-कुटी करिहौ कित है?”।
तिय की लखि आतुरता पिय की अँखियाँ अति चारु चलीं जल च्वै॥

कठिन शब्दार्थ-पुर = नगर, ग्राम। निकसी = निकली। डग = कदम। केतिक = कितना। कित = कहाँ। भाल = मस्तक। बूझति = पूछती है। पिय = पति। तिय = नारी। लखि = देखकर। चारु = सुन्दर। च्चै = चूना, बहना॥

प्रसंग–यह अवतरण तुलसीदास द्वारा रचित ‘कवितावली’ के ‘अयोध्या काण्ड’ के ‘वन-गमन’ शीर्षक से उद्धृत है। वन-मार्ग में चलने से सीता को कितनी व्याकुलता एवं परेशानी हुई, इसका इसमें अतीव भावपूर्ण चित्रण किया गया है।

व्याख्या-गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि वनगमन के लिए सीता श्रीराम के साथ अयोध्या नगर से बाहर निकलीं। यद्यपि वे पैदल चलने में अनुभवहीन और वनमार्ग से अपरिचित थीं, फिर भी उन्होंने धैर्यपूर्वक दोनों कदम आगे बढ़ाये। तब वे कुछ ही कदम आगे चल पायीं कि अत्यधिक कोमलता के कारण अल्प श्रम से ही उनके मुख पर पसीने के कणः झलकने लगे और थकान व ताप के कारण उनके मधुर होंठ भी सूख गये। इस तरह वन-मार्ग में कुछ ही दूर चलने पर सीता अत्यधिक थकान का अनुभव करने लगीं। तब वे व्याकुलता से श्रीराम से पूछने लगीं कि ”अभी कितनी दूर और चलनी है तथा पर्णकुटी का निर्माण कहाँ करना है?” तुलसीदास कहते हैं कि सीता की इस तरह की आकुलता को देखकर श्रीराम के नेत्रों से अश्रुधारा बहने लगी, अर्थात् वन-मार्ग पर थोड़ा-सा चलने से ही जब सीता इतनी व्याकुल हो रही हैं, तो यहं चौदह वर्ष तक वन में कैसे रह पायेंगी—इस विचार से श्रीराम का हृदय करुणाभाव से भर गया और नेत्रों से अश्रुपात होने लगा।

विशेष-
(1) सीता की कोमलता एवं आतुरता का मार्मिक चित्रण हुआ है।
(2) वन-गमन का वर्णन भावुकतापूर्ण है।
(3) कोमल शब्द-चित्र एवं सवैया छन्द है।

(2)
“जल को गए लक्खन हैं लरिका, परिखौ, पिय! छाँह घरीक है ठाढ़े।
पछि पसेउ बयारि करौं, अरु पार्दै पखारिह भूभुरि डाढ़े॥
तुलसी रघुबीर प्रिया स्रम जानि कै बैठि विलंब ल कंटक काढ़े।
जानकी नाह को नेह लख्यौ, पुलको तन, वारि विलोचन बाढ़े॥”

कठिन शब्दार्थ-परिखौ = प्रतीक्षा कीजिए। घरीक = एकाध घड़ी, थोड़ी देर। पसेउ = पसीना। बयारि = हवा। पखारिहौं = पोंगी, साफ करूंगी। भूभुरि = गर्म। धूल या रेत। स्रम = थकान। नाह = स्वामी। लख्यौ = देखा। विलोचन = नेत्र॥

प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण तुलसीदास द्वारा रचित ‘कवितावली’ के ‘अयोध्या काण्ड’ के ‘वन-गमन’ प्रसंग से उद्धृत है। वन मार्ग में लक्ष्मण जल लेने गये, तो थकी हुई सीता ने राम से छाया में खड़े होकर लक्ष्मण की प्रतीक्षा का अनुरोध किया। तब सीता को व्यथित देखकर राम को दुःख हुआ। इसी सन्दर्भ में यह वर्णन है।

व्याख्या-वन-मार्ग पर चलते हुए सीताजी ने कहा कि हे प्रिय ! लक्ष्मण पानी लेने गये हैं, वे अभी बालक हैं, अर्थात् छोटी अवस्था होने से उन्हें वन-मार्ग में अकेला छोड़ना उचित नहीं है, इसलिए छाया में खड़े होकर एकाध घड़ी उनकी प्रतीक्षा कीजिए। तब तक मैं आपका पसीना पोंछ कर हवा कर देंगी और गर्म धूल से सने हुए आपके पैरों को पोंगी या साफ करूंगी। तुलसीदासजी उस स्थिति का वर्णन करते हुए बताते हैं कि श्रीराम ने उस समय यह जान लिया कि सीता थक गई हैं, अतः वे वहीं पर बैठ गये और काफी देर तक पैर से काँटे निकालते रहे। अर्थात् पैर में काँटे न होने पर भी काँटे निकालने के बहाने काफी देर तक बैठे रहे। तब सीता ने स्वामी का अपने प्रति प्रेमपूर्ण व्यवहार देखा तो उनका शरीर पुलकित हो उठा, रोमांचित हो उठा और उनकी आँखों में आँसू उमड़ आये।

विशेष-
(1) लक्ष्मण की प्रतीक्षा करने और पति के पैर पोंछने के कथन से सीता को भारतीय नारी के आदर्शों से मण्डित बताया गया है।
(2) पैर से काँटे निकालने के बहाने श्रीराम का बैठे रहना भी पत्नी-प्रेम का व्यंजक है।

(3) ठाढ़े हैं तो द्रुम डार गहे, धनु कांधे धरे, कर सायक लै।
विकटी भ्रकुटी बड़री अँखियाँ, अनमोल कपोलन की छबि है।
तुलसी असि मूरति आनि हिये जड़ डारिह प्रान निछावरि कै।
स्रम-सीकर साँवरि देह लसै मनो रासि महातम तारक मै॥

कठिन शब्दार्थ-ठाढ़े = खड़े। द्रुम = वृक्ष। डार = डाली। सायक = बाण। कपोलन = गाल। स्रम-सीकर = पसीना। महातम = महा अन्धकार। तारक = तारे।

प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘कवितावली’ के ‘वनगमन’ प्रसंग से उद्धृत है। वन मार्ग में जाते हुए सीता के कहने से राम थोड़ी देर विश्राम करने के लिए रुक गये। वे सब पेड़ के नीचे खड़े कैसे लगते थे, यहाँ उसी का वर्णन है।

व्याख्या-राम कंधे पर धनुष और हाथ में बाण लिए हुए पेड़ की झुकी हुई हरी-भरी डाल को पकड़ कर खड़े हैं। उनकी टेढ़ी भौंहों, बुड़ी आँखों और गालों की अनुपम शोभा है। तुलसीदासजी कहते हैं कि राम की ऐसी मूर्ति हृदय में गड़ जाए तो मैं उस पर अपने प्राण भी न्यौछावर कर दें। राम के साँवले शरीर पर परिश्रम के कारण झलकी पसीने की स्वच्छ बूंदें ऐसी सुन्दर लगती हैं मानो महा अंधकार में सुन्दर तारे चमक रहे हों।

विशेष-
(1) कवि ने अपनी भावना के अनुसार श्रीराम के सौन्दर्य का वर्णन किया है।
(2) कवि-कल्पना का चमत्कार दर्शनीय है।

(4)
बनिता बनी स्यामल गौर के बीच, बिलोकहु, री सखी! मोहिं सी है।
मग जोग न, कोमल, क्यों चलि हैं? सकुचात मही पदपंकज छ्वै॥
तुलसी सुनि ग्रामबधू बिथक, पुलकीं तन औ चले लोचन च्वै।
सब भाँति मनोहर मोहन रूप, अनूप हैं भूप के बालक द्वै॥

कठिन शब्दार्थ-बनिता = महिला, स्त्री। जोग = योग्य। मही = पृथ्वी। अनूप = उपमारहित। भूप राजा। बिथक = रुक गईं, मोहित हो गई। अनूप = अनुपम।

प्रसंग-प्रस्तुत, अवतरण महाकवि तुलसीदास द्वारा रचित ‘कवितावली’ के अयोध्याकाण्ड के ‘वन-गमन’ प्रसंग से उद्धृत है। इसमें वन-मार्ग में नंगे पैर जा रहे श्रीराम, सीता और लक्ष्मण को देखकर कोई ग्रामवधू दूसरी से कह रही है।

व्याख्या-तुलसीदास के वर्णनानुसार कोई ग्रामवधू कहती है कि हे सखी! तुम मेरी तरह अर्थात् मानवीय संवेदना एवं नारी-हृदय की सुकोमल भावना से श्यामल और गौरवर्ण वाले राजकुमारों के बीच चलती हुई उस स्त्री अर्थात् सीता को देखो। ये लोग कंठोर वनमार्ग पर चलने योग्य नहीं हैं, फिर भी पैदल ही क्यों चल रहे हैं? ये कोमल शरीर वाले हैं। धरती भी इनके चरण-कमलों का स्पर्श पाकर संकोच का अनुभव कर रही है। तुलसीदासजी ग्रामवधुओं पर हुई प्रतिक्रिया का वर्णन करते हैं कि एक सखी की ये बातें सुनकर ग्रामवधुएँ चलने वालों को देखकर मोहित हो गईं और रोमांचित हुईं। उनकी आँखों में आँसू आ गये। वे कहने लगीं कि राजा दशरथ के दोनों बालक सब प्रकार से सुन्दर और आकर्षक रूप वाले हैं। इनकी अन्य कोई उपमा नहीं हो सकती।

विशेष-
(1) नारी-हृदय की कोमलता, करुणा तथा मानवीय सहानुभूति की व्यंजना हुई है।
(2) वन-मार्ग में मिली ग्रामवधुओं का शब्द-चित्र आकर्षक है।

(5)
साँवरे गोरे सलोने सुभाय, मनोहरता जिति मैन लियो है।
बान कमान निषंग कसे, सिर सोहैं जटा, मुनिबेष कियो है।
संग लिये विधु-बैनी बधू रति को जेहि रंचक रूप दियो है।
पाँयन तौ पनहीं न, पयोदेहिं क्यों चलिहैं? सकुचात हियो है।

कठिन शब्दार्थ-मैन = कामदेव। निषंग = तरकश, तूणीर। विधु = चन्द्रमा। बैनी। = वचने वाली। रति = कामदेव की पत्नी। रंचक = कुछ कम। पनहीं = जूती। पयोदेहिं = पैदल।

प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘कवितावली’ के ‘वनगमन’ प्रसंग से उद्धत है। इसमें कवि ने वर्णन किया है कि ग्रामवधुएँ वनमार्ग में जाते हुए श्रीराम, लक्ष्मण एवं सीता के सौन्दर्य और उनको पैदल चलते देखकर संकोच को व्यक्त कर रही हैं।

व्याख्या-गोस्वामी तुलसीदास के वर्णनानुसार ग्रामवधुएँ आपस में कहती हैं कि राम साँवले और लक्ष्मण गौर वर्ण के हैं, इनका स्वभाव सुहावना है। अपने सौन्दर्य से इन्होंने मानो कामदेव को भी जीत लिया है। बाण, धनुष और तरकश लिए हुए ये अपनी जटाओं के कारण सुन्दर लगते हैं। इन्होंने मुनियों का-सा वेष बना रखा है। इनके साथ में चन्द्रमा के समान मुख और मधुर बोलने वाली बहू है जो इतनी सुन्दर है मानो कामदेव की पत्नी रति का सौन्दर्य तो उसके सौन्दर्य के एक छोटे से भाग से बना है। वनमार्ग पर चलते हुए इनके पैरों में जूते नहीं हैं। फिर ये कोमल चरणों वाले राजकुमार पैदल ही क्यों चल रहे हैं- यह सोचकर हृदय में संकोच हो रहा है।

विशेष-
(1) वन-मार्ग पर पैदल नंगे पैर चलते हुए राम-लक्ष्मण, सीता को देखकर ग्रामवधुओं की संवेदना का वर्णन किया गया है।
(2) रूप-सौन्दर्य को शब्द-चित्र सुन्दर बन पड़ा है।

(6)
रानी मैं जानी अजानी महा, पवि पाहन हूँ ते कठोर हियो है।
राजहु काज अकाज न जान्यो, कह्यो तिय को जिन कान कियो है।
ऐसी मनोहर मूरति ये, बिछुरे कैसे प्रीतम लोग जियो है?
आँखिन में, सखि! राखिबे जोग, इन्हैं किमि कै बनबास दियो है।

कठिन शब्दार्थ-अजानी = अज्ञानी। पवि = इन्द्र का अस्त्र, वज्र। पाहन =. पत्थर। राजेहु = राजा ने भी। काज अकाज = कार्य-अकार्य। कह्यो = कथन, बात॥ तिय = पत्नी। प्रीतम = प्रियतम्। किमि = कैसे, क्यों।

प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण तुलसीदास द्वारा रचित ‘कवितावली’ के ‘वन-गमन’ प्रसंग से उद्धृत है। श्रीराम को वनमार्ग पर जाते देखकर ग्रामवधुएँ अपनी जो दुःखपूर्ण प्रतिक्रिया व्यक्त करने लगीं, इसमें उसी का वर्णन किया गया है।

व्याख्या-ग्रामवधुओं में से एक कहने लगी कि मुझे तो रानी कैकेयी बहुत अज्ञानी प्रतीत होती है। उसका हृदय तो इन्द्र के अस्त्र वज्र और पत्थर से भी कठोर है। राजा दशरथ ने भी नहीं जाना कि कौन-सा कार्य करने योग्य है और कौनसा करने योग्य नहीं है। उन्होंने भी कमजोर स्वभाव की पत्नी की बात मानकर अर्थात् उसके कहने पर इन्हें वन में भेज दिया है। ऐसी सुन्दर मूर्तियों से बिछुड़ने पर इनके प्रिय लोग भला कैसे जीवित रहेंगे? आशय यह है कि ये बहुत सुन्दर हैं। जिन्हें ये प्रिय हैं वे इनसे अलग होने पर कैसे जीवित रह पाएँगे। वे तो बहुत दु:खी होंगे। हे सखी! ये वन भेजने के नहीं, आँखों में बसा लेने योग्य हैं। इन्हें वनवास जैसा कष्ट क्यों दिया गया है?

विशेष-
(1) रानी कैकेयी के कठोर आचरण और राजा दशरथ के अविवेक का वर्णन सामाजिक दृष्टि से किया गया है।
(2) ग्रामवधुओं की सहृदयता एवं संवेदना व्यक्त हुई है।

(7)
सीस जटा, उर बाहु बिसाल, बिलोचन लाल, तिरीछी सी भौहैं।
तून सरासन बान धरे, तुलसी बन-मारग में सुठि सोहैं॥
सादर बारहिं बार सुभाय चित्तै तुम ल्यो हमरो मन मोहैं।
पूछति ग्रामबधू सिय सों ‘‘कहौ साँवरे से, सखि रावरे को हैं?॥”

कठिन शब्दार्थ-उर = वृक्षस्थल, हृदय। बाहु = भुजा। बिलोचन = नेत्र। तून = तूणीर, तरकश। सुभाय = सुन्दर भाव। सरासन = धनुष। सुठि = सुन्दर। तुम ल्यो = तुम्हारी ओर। रावरे = आपके।

प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण तुलसीदास की ‘कवितावली’ के ‘वन-गमन’ प्रसंग से उद्धृत है। वन को जाते हुए राम, लक्ष्मण और सीता को देखकर मार्ग की ग्रामवधुएँ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती हैं और सीता से परिचय पूछती हैं।

व्याख्या-कोई ग्रामवधू सीता से पूछती है कि जिनके सिर पर जटाएँ हैं, जिनका वक्षस्थल और भुजाएँ विशाल हैं, लाल नेत्र हैं, तिरछी-सी भौहें हैं, जो कमर पर तरकश और हाथों में धनुष-बाण धारण किये हुए, इस वन मार्ग पर चलते हुए शोभायमान लगते हैं और जो बार-बार सुन्दर प्रेमभाव से तुम्हारी ओर देख रहे हैं। तथा तुम्हारी ही तरह हमारे मन को भी मोहित कर रहे हैं, हे सखी! वे साँवले वर्ण के राजकुमार आपके कौन हैं? यह हमें बतलाओ।

विशेष-
(1) ग्रामवधुओं ने नारी-स्वभाव के कारण सीता से ही परिचये जानने का प्रयास किया। इससे इनकी चतुरता एवं जिज्ञासा व्यक्त हुई है।
(2) जिज्ञासा-परिहास युक्त संवाद का शब्द-चित्र मार्मिक है।

(8)
सुनि सुन्दर बैन सुधारस-साने, सयानी हैं जानकी जानी भली।
तिरछे करि नैन दै सैन तिन्हैं समुझाइ कछू मुसुकाइ चली॥
तुलसी तेहि औसर सोहैं सबै अवलोकति लोचन-लाहु अली।
अनुराग-तड़ाग में भानु उदै विगसी मनो मंजुल कंज-कली॥

कठिन शब्दार्थ-सुधारस-साने = अमृत से सराबोर। सयानी = चतुर। सैन = भौंहों द्वारा संकेत करना। औसर = अवसर। अवलोकति = देखते हुए। लोचन-लाहु = नेत्र होने का लाभ। अली = सखी। अनुराग-तड़ाग = प्रेम रूपी सरोवर। भानु = सूर्य। कंज-कली = कमल की कली॥

प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण तुलसीदासजी की कवितावली’ के ‘वन-गमन’ प्रसंग से संकलित है। वन मार्ग में किसी ग्राम-वधू ने सीता से राम का परिचय पूछा और सीता ने जिस ढंग से परिचय दिया, यहाँ उसका वर्णन किया गया है।

व्याख्या-तुलसीदास वर्णन करते हैं कि उस ग्रामवधू के सुन्दर तथा अमृत के रस से भरे हुए मधुरतम वचनों को सुनकर सीता ने समझ लिया कि यह बड़ी चतुर तथा सयानी-समझदार है। इसलिए सीता ने उसके प्रश्न का उत्तर देने के लिए अपनी आँखों को तिरछा करके कुछ इशारा किया और इशारे में ही उसे समझाते हुए कुछ मुस्कराकर आगे बढ़ गयीं। तुलसीदास कहते हैं कि इस अवसर पर उन सभी की शोभा देखने योग्य थी, अर्थात् इस तरह के मुस्कराहटपूर्ण सांकेतिक उत्तर से जहाँ सीता की शोभा हो रही थी, वहीं ग्रामवधू आदि सभी स्त्रियों की भी शोभा हो रही थी और सब प्रसन्नमुख लग रही थीं। उस दृश्य को देखकर कोई कहने लगी कि हे सखी! इनकी मनोरम रूप-छवि देखने से हमें आँखों को धारण करने का लाभ प्राप्त हो गया है। वह दृश्य ऐसा था मानो प्रेम रूपी सरोवर में सूर्य के उदय होने पर सुन्दर मुख रूपी कमल खिल गये हों, अर्थात् सीता तथा ग्रामवधू के मुख-कमल अतीव प्रसन्नता एवं प्रेमातिरेक से एकदम खिल गये थे।

विशेष-
(1) सीता द्वारा सांकेतिक उत्तर देना, पति का नाम न लेकर केवल चतुरता से इशारा करना भारतीय नारी के गुणों को प्रकट करता है।
(2) सीता एवं सभी ग्रामवधुओं की मनोरम छवि का शब्द-चित्र अतीव भावपूर्ण है।

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