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RBSE Solutions for Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 9 श्यामनारायण पाण्डेय

RBSE Solutions for Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 9 श्यामनारायण पाण्डेय

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 9 श्यामनारायण पाण्डेय

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 9 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
श्यामनारायण पाण्डेय कौनसे रस के कवि थे?
(क) श्रृंगार
(ख) शान्त
(ग) वीर
(घ) करुण
उत्तर:
(ग) वीर

प्रश्न 2.
कवि ने एकलिंग का आसन किसे कहा है?
(क) दिल्ली के सिंहासन को
(ख) जयपुर के सिंहासन को
(ग) मालवा के सिंहासन को
(घ) मेवाड़ के सिंहासन को
उत्तर:
(घ) मेवाड़ के सिंहासन को

प्रश्न 3.
जौहर को जन्म देने वाली रानी का नाम है
(क) रानी दुर्गावती
(ख) रानी झाँसी
(ग) रानी पद्मिनी
(घ) रानी दमयंती
उत्तर:
(ग) रानी पद्मिनी

प्रश्न 4.
‘हल्दीघाटी’ नामक प्रसिद्ध काव्य के रचनाकार हैं –
(क) रामधारी सिंह दिनकर
(ख) रामनरेश त्रिपाठी
(ग) रामचन्द्र शुक्ल
(घ) श्यामनारायण पाण्डेय
उत्तर:
(घ) श्यामनारायण पाण्डेय

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 9 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मेवाड़ के सिंहासन के लिए लोगों ने क्या किया?
उत्तर:
मेवाड़ के सिंहासन की रक्षा के लिए वहाँ के लोगों ने कुर्बानी पर। कुर्बानी दी, त्याग और बलिदान का परिचय दिया।

प्रश्न 2.
कवि ने वीर-प्रसविनी और वीर-भूमि किसे कहा है?
उत्तर:
कवि ने मेवाड़ की धरती को, साथ ही मेवाड़ की राजधानी को वीरप्रसविनी और वीर-भूमि कही है।

प्रश्न 3.
वीरों ने जननी के पद का अर्चन किससे किया था?
उत्तर:
वीरों ने जननी अर्थात् जन्मभूमि मेवाड़ के पद का अर्चन अपने जीवनरूपी खिले हुए फूलों को समर्पित कर किया था।

प्रश्न 4.
राणा फतहसिंह की सुन्दर छवि को टकटकी लगाकर किसने देखा?
उत्तर:
अंग्रेज शासक लार्ड कर्जन ने राणा फतहसिंह की सुन्दर छवि को। टेकटकी लगाकर देखा था।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि ने मेवाड़ के सिंहासन का महत्त्व कविता में प्रतिपादित किया है। अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कवि श्यामनारायण पाण्डेय ने मेवाड़ के सिंहासन को लेकर राणाराजवंश की वीरता का इतिहास प्रस्तुत किया है। मेवाड़ के सिंहासन की रक्षा में राणा हम्मीर, राणा सांगा एवं राणा कुम्भा और राणा प्रताप ने अपना सारा जीवन अर्पित किया। सलूम्बर के चूडावत सरदार, जयमल मेड़तिया तथा वीरवर कल्ला ने जो शौर्य एवं उत्सर्ग का परिचय दिया, वह मेवाड़ के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। मेवाड़ के सिंहासन की रक्षा करने में सभी राणाओं ने आन-बान और मान-मर्यादा का पूरा निर्वाह किया। इन सभी ने मेवाड़ के सिंहासन को भगवान् एकलिंग का सिंहासन माना। अतः मेवाड़ के लोगों को इसकी रक्षा करनी चाहिए।

प्रश्न 2.
असिधार की जाँच मेवाड़ के वीर कैसे करते थे?
उत्तर:
मेवाड़ के राजपूत वीर युद्ध-प्रिय थे। वे हमेशा युद्धवेश में तैयार रहते। थे और अपनी तलवारों की धार पैनी रखते थे। उनमें इतना जोश रहता था कि वे अपनी तलवार की धार की जाँच स्वयं अपनी उँगली पर करते थे, अर्थात् उँगली काटकर तलवार की धार जाँचा करते थे। वे हथियारों से खेलते रहते थे और बातबात में तलवारों को लहराते रहते थे।

प्रश्न 3.
हल्दीघाटी का भैरव-पथ खून से क्यों रंग दिया था?
उत्तर:
मेवाड़ के इतिहास में हल्दीघाटी का विशेष महत्त्व है। बादशाह अकबर ने जब मेवाड़ पर आक्रमण किया, तो राणा प्रताप ने हल्दीघाटी के संकरे रास्ते वाले मैदान पर उसका मुकाबला किया। हल्दीघाटी में मेवाड़ी सेना ने पूरे जोश से मुगलों का विरोध किया और हजारों सैनिकों को मार डाला। राणा प्रताप की सेना के प्रबल वेग से मुगल सेना के पाँव उखड़ गये। उस युद्ध में इतना रक्त बही था कि उससे हेल्दीघाटी का भैरव-पथ खून से रंग गया था, अर्थात् वहाँ पर खून की धाराएँ बहने लगी थीं और धरती वीरों के रक्त से गीली हो गई थी।

प्रश्न 4.
चुंडावत ने जिस युवती के सिर से अपना तन भूषित किया, वह कौन थी तथा चुंडावत ने ऐसा क्यों किया?
उत्तर:
सलूम्बर के सरदार राव रतनसिंह चुंडावत का विवाह हाड़ी रानी से हुआ था। विवाह हुए एक सप्ताह ही हुआ था कि औरंगजेब की सेना ने आक्रमण कर दिया। तब युद्ध में जाते समय किले के द्वार से चुंडावत ने अपना सेवक यह कहकर नवविवाहिता रानी के पास भेजा कि वह कोई सुन्दर निशानी दे। हाड़ी रानी ने सोचा कि पति का मन उसी पर लगा रहेगा और वे वीरतापूर्वक नहीं लड़ पायेंगे। इसलिए रानी ने अपना सिर काटकर भेज दिया। उस सिर को गले में माला की तरह लटकाकर चूंडावत सरदार ने युद्ध-क्षेत्र में भयानक मार-काट मचायी और स्वयं वीरगति को प्राप्त हो गये। वह युवती चूंडावत क नवविवाहिता हाड़ी रानी थी। और उसके सिर को निशानी (सैनाणी) रूप में पाकर चूंडावत ने अनोखा पराक्रम दिखाया।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘मेवाड़ का सिंहासन’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘मेवाड़ का सिंहासन’ कविता में कवि श्यामनारायण पाण्डेय ने ऐतिहासिक सूत्रों के सहारे मेवाड़ के वीरों के शौर्य-उत्सर्ग का उल्लेख किया है। इस कविता को सार यह है –
मेवाड़ का सिंहासन भगवान् एकलिंग का आसन है और मेवाड़ के राणा इसके दीवान हैं। इस सिंहासन की रक्षा के लिए अनेक कुर्बानियाँ हुई हैं। इसकी रक्षा के लिए राजा रत्नसिंह ने अलाउद्दीन खिलजी का मुकाबला किया और वीरगति पायी। उसकी रानी पद्मावती ने अन्य क्षत्राणियों के साथ चित्तौड़ में जौहर किया। राणा हम्मीर ने मुँजा नामक शत्रु का संहार किया तो वीरवर चुंडावत और राणा कुम्भा ने अपने शौर्य एवं बलिदान का परिचय दिया।

इसी क्रम में जयमल एवं कल्ला ने इस सिंहासन की रक्षा करते हुए अपने प्राण अर्पित किये। राणा सांगा को खानवा के युद्ध में अस्सी घाव लगे थे, फिर भी वह वीर शिरोमणि शत्रुओं से लड़ता रहा। मेवाड़ के सिंहासन की रक्षा के लिए राणा प्रताप ने मुगल बादशाह का सामना किया। इस कार्य में भीलों ने भी उनका साथ दिया। राणा प्रताप जावरमाला की गुफाओं में रहे, वहीं से उन्होंने मेवाड़ का शासन चलाया था। औरंगजेब ने जब आक्रमण किया तो राणा राजसिंह (प्रथम) ने चुंडावत सरदारों के साथ उसे पराजित किया। इस प्रकार मेवाड़ के सिंहासन की रक्षार्थ वहाँ के सभी वीरों ने शौर्य एवं बलिदान का परिचय दिया।

प्रश्न 2.
मेवाड़ का सिंहासन’ कविता की वर्तमान में प्रासंगिकता सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
कवि श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ‘मेवाड़ का सिंहासन’ कविता में यद्यपि मेवाड़ के राजपूतों के त्याग-बलिदान एवं देश-प्रेम की भावना का निरूपण हुआ है, परन्तु इसमें जिस तरह से ओजस्वी इतिहास की झलक दिखाई गई है, उससे इस कविता की वर्तमान में प्रासंगिकता सिद्ध हो जाती है। इन बातों में इसकी प्रासंगिकता दिखाई देती है

  1. देश-प्रेम की भावना – वर्तमान में जनता में देश-प्रेम की भावना कमजोर पंड़ गई है। इस कारण देश व समाज के लिए त्याग-बलिदान एवं उत्सर्ग कमजोर हो गया है। प्रस्तुत कविता में अनेक क्षत्रिय वीरों का उल्लेख कर उनसे देश-प्रेम तथा मातृभूमि की रक्षा की प्रेरणा दी गई है।
  2. स्वाभिमान की प्रेरणा – प्रस्तुत कविता में भारतीयों के स्वाभिमान और आन-बान आदि का जिस तरह उल्लेख हुआ है, वह अतीव प्रेरणादायी है। वर्तमान में सारे भारत में इस तरह की प्रेरणा आवश्यक प्रतीत हो रही है।
  3. अतीत की गरिमा – वर्तमान में हम सभी नयी पीढ़ी के भारतीय अतीत की गरिमा को भूल गये हैं। हम अपनी संस्कृति तथा ऐतिहासिक गौरव को भूलते जा रहे हैं। इस दृष्टि से प्रस्तुत कविता की उपयोगिता सिद्ध हो जाती है।
  4. सामाजिक एकता – मेवाड़ के सिंहासन की रक्षा के लिए उस समय के सभी राजपूतों एवं जनजातियों का पूरा सहयोग रहा। आज भी हमारे देश की रक्षा के लिए ऐसी सामाजिक एकता नितान्त प्रासंगिक है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वीरों के वीरता एवं बलिदानी प्रसंगों का वर्णन कीजिए| सांगा, कुम्भा, हम्मीर, पद्मिनी, कल्ला, चामती रानी, हाड़ी रानी, जयमल।
उत्तर:
उक्त सभी वीरों का संक्षिप्त उल्लेख इस प्रकार है –
सांगा – मेवाड़ के इतिहास में इन्हें राणा संग्रामसिंह के रूप में जाना जाता है। इन्होंने मुगलों के विरुद्ध खानवा का युद्ध लड़ा था। इनकी रानी का नाम कर्णावती था। राणा सांगा को युद्ध में अस्सी घाव लगे थे। इनको वीरगति मिलने पर रानी कर्णावती ने चित्तौड़ के किले में जौहर किया था।

कुम्भा –
 राणा कुम्भा या कुम्भकर्ण महाराणा मोकल के पुत्र और सांगा के पूर्वज थे। इन्होंने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी को हराकर आबू पर अधिकार किया। इन्होंने ही चित्तौड़ में विजय का स्मारक कीर्तिस्तम्भ’ बनवाया।

हम्मीर – ये चौदहवीं शती में मेवाड़ के राजा थे। इन्हें सिसौदिया राजपूत वंश का मेवाड़ का प्रथम शासक माना जाता है। इन्होंने ही ‘राणा’ पदवी की शुरुआत की और चित्तौड़गढ़ के किले को व्यवस्थित कर वहाँ पर अन्नपूर्णा का मन्दिर बनवाया।

पमिनी – चित्तौड़ के राजा रत्नसिंह की छोटी रानी थी। इसके कारण ही दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। राजा रत्नसिंह को बन्दी बनाया। गोरा-बादल ने वीरता दिखाकर राजा को मुक्त कराया, परन्तु फिर युद्ध में राजा रत्नसिंह को वीरगति प्राप्त हुई। तब रानी पद्मिनी या पद्मावती ने अन्य रानियों के साथ चित्तौड़ में जौहर किया था।

कल्ला – बादशाह अकबर के आक्रमण का सामना करने में मेड़तिया राठौड़ जयमल और कल्ला ने वीरता का प्रदर्शन किया। ऐसा कहा जाता है कि कल्ला का धड़ सिर कटने के बाद भी लड़ता रहा और घोड़े पर उसी तरह अपनी पत्नी के पास पहुँच गया था। तब रानी ने गंगाजल के छींट दिये, इससे कल्ला का धड़ शान्त हुआ, अर्थात् उसने प्राण त्याग दिये।

चामती रानी – किशनगढ़ की राजकुमारी चामती (चारुमती) से औरंगजेब शादी करना चाहता था, परन्तु राजकुमारी ने उसका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। उसने मेवाड़ के राणा राजसिंह (प्रथम) से सहायता माँगी और उसी से विवाह किया। चामती (चारुमती) मेवाड़ की रानी बनी तथा उसकी समझदारी से औरंगजेब पराजित हुआ।

हाड़ी रानी – यह सलूम्बर के सरदार राव रतनसिंह चुंडावत की पत्नी थी। विवाह के एक सप्ताह बाद ही मुगल बादशाह की सेना का आक्रमण हुआ। युद्ध में जाते समय राव रतनसिंह ने दुर्ग के द्वार से सेवक को कोई निशानी माँगकर लाने के लिए भेजा, तो हाड़ी रानी ने अपना सिर काटकर निशानी के रूप में भेज दिया था।

जयमल – मेड़तिया राठौड़ जयमल को महाराणा उदयसिंह ने चित्तौड़ का सेनापति बनाया और स्वयं महाराणा कुम्भलगढ़ चले गये। तब मुगल बादशाह की सेना ने आक्रमण किया। युद्ध करते समय जयमल की टाँग खराब हो गई थी, फिर भी वह वीर कल्ला के कन्धे पर बैठकर युद्ध करता रहा और वीरगति को प्राप्त हुआ।

प्रश्न 4.
‘मेवाड़ का सिंहासन’ कविता का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
उत्तर:
कवि श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ‘मेवाड़ का सिंहासन’ कविता मेवाड़ के गौरवमय इतिहास पर आधारित है। इस कविता के काव्य-सौन्दर्य को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है –

भावगत सौन्दर्य –
 प्रस्तुत कविता में मेवाड़ के सभी सुप्रसिद्ध वीरों तथा रानियों का उल्लेख उनके वीरतापूर्ण एवं बलिदानी कार्यों के साथ किया गया है। मेवाड़ का सिंहासन सिसौदिया राजपूत वंश की प्रतिष्ठा का प्रतीक रहा है और इसकी रक्षा एवं गरिमा की खातिर अनेकानेक वीरों ने आत्मोत्सर्ग किया तथा आन-बान को निभाया। कवि ने ऐसे वीरों के ओजस्वी व्यक्तित्व, उनके शौर्यपूर्ण कर्त्तव्य तथा देश-प्रेम की खातिर सर्वस्व समर्पण का चित्रण कर बताया है कि मेवाड़ के सिंहासन को सभी राणा भगवान् एकलिंग का आसन मानते थे और वे स्वयं को उसका दीवान समझते थे। इस प्रकार प्रस्तुत कविता में ओजस्वी भावों की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है।

कलागत सौन्दर्य – प्रस्तुत कविता की भाषा तत्सम-तद्भव तथा सरल है। भाषा में भावाभिव्यक्ति का प्रखर प्रवाह है। इसमें प्रयुक्त छन्द की गति-यति उचित, भावानुरूप और प्रवाहमय है। अलंकारों का प्रयोग सहज रूप में हुआ है। लक्षणा एवं व्यंजना शब्द-शक्तियों से अर्थाभिव्यक्ति सुन्दर ढंग से हुई है। इस प्रकार भावपक्ष एवं कलापक्ष की दृष्टि से प्रस्तुत कविता प्रशस्य है।

व्याख्यात्मक प्रश्न –

1. खिलजी तलवारों से ………….. इतिहासों के।
2. चूंडावत ने तन …………… हारे हुई।
उत्तर:
व्याख्या के लिए पहले ही दी गई सप्रसंग व्याख्याएँ देखिए।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 9 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
मेवाड़ का सिंहासन’ कविता में किस रस की प्रधानता है?
(क) शान्त रसे
(ख) रौद्र रस
(ग) वीर रस
(घ) अद्भुत रस
उत्तर:
(ग) वीर रस

प्रश्न 2.
खिलजी की तलवार से भयभीत जनता को किसने निर्भय बनाया?
(क) राणा प्रताप ने
(ख) राजा रत्नसिंह ने
(ग) राणा कुम्भा ने
(घ) राणा राजसिंह ने
उत्तर:
(ख) राजा रत्नसिंह ने

प्रश्न 3.
मँजा नामक शत्रु का विनाश किसने किया था?
(क) राणा हम्मीर ने
(ख) राणा कुम्भा’ ने
(ग) राणा सांगा ने
(घ) जयमल राठौड़ ने
उत्तर:
(क) राणा हम्मीर ने

प्रश्न 4.
“हल्दीघाटी की भैरव-पथ रंग दिया था”
हल्दीघाटी को किसने रंग दिया था?
(क) राणा उदयसिंह ने
(ख) राणा हम्मीर ने
(ग) राणा सांगा ने
(घ) राणा प्रताप ने
उत्तर:
(घ) राणा प्रताप ने

प्रश्न 5.
“सुनता हूँ उस मर्दाने की दिल्ली की अजब कहानी है। इसमें किस मर्दाने का उल्लेख हुआ है?
(क) राणा फतहसिंह
(ख) राणा राजसिंह
(ग) राणा संग्रामसिंह
(घ) सरदार चूंडावत
उत्तर:
(क) राणा फतहसिंह

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 9 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गोरा-बादल कौन थे?
उत्तर:
गोरा-बादल राजा रत्नसिंह के वीर सेनानी थे, इन्होंने ही रत्नसिंह को खिलजी की कैद से छुड़ाने में अद्भुत शौर्य का परिचय दिया था।

प्रश्न 2.
राणा हम्मीर ने किस शत्रु का संहार किया था?
उत्तर:
राणा हम्मीर ने मुँजानामक मेवाड़ के शत्रु का संहार किया था।

प्रश्न 3.
”वह वीर पमिनी रानी है।” कवि ने रानी पदमिनी की किस वीरता का उल्लेख किया है?
उत्तर:
कवि ने बताया कि चित्तौड़ में क्षत्राणियों के जौहर करने की परम्परा को रानी पद्मनी ने ही प्रारम्भ कर वीरतापूर्वक उत्सर्ग करने का परिचय दिया था।

प्रश्न 4.
कवि ने राणा सांगा की क्या विशेषताएँ बतायीं?
उत्तर:
कवि ने बताया कि राणा सांगा को अस्सी घाव लगे थे, उसकी आँखों पर पट्टी बंधी थी, फिर भी वह छपाछप तलवार चलाकर शत्रुओं को काटता रहा।

प्रश्न 5.
“अब तक उस भीषण घाटी के कण-कण की चढ़ी जवानी है।” इस कथन से क्या आशय है?
उत्तर:
इससे यह आशय है कि हल्दीघाटी के कण-कण में आज भी वही शौर्य और बलिदानी जोश दिखाई देता है। उसका नाम इतिहास में अमर है।

प्रश्न 6.
कवि श्यामनारायण पाण्डेय ने ‘जौहर’ काव्य में किसका वर्णन किया है?
उत्तर:
कवि श्यामनारायण पाण्डेय ने ‘जौहर’ काव्य में रानी पदमिनी की। जौहर-गाथा का ओजस्वी वर्णन किया है।

प्रश्न 7.
कवि श्यामनारायण पाण्डेय की काव्य-भाषा की क्या विशेषता है?
उत्तर:
कवि श्यामनारायण पाण्डेय की काव्य-भाषा की यह विशेषता है कि इसमें खड़ी बोली हिन्दी के तत्सम तद्भव शब्दों का प्रयोग वेग, प्रवाह एवं ओज। के साथ हुआ है।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि ने मेवाड़ के सिंहासन को कैसा बताया है?
उत्तर:
कवि ने मेवाड़ के सिंहासन के महत्त्व एवं गौरव का वर्णन करते हुए बताया है कि यह सिंहासन भगवान् एकलिंग का आसन है। ब्रह्मा भी ऐसे सिंहासन को देखकर लालायित रहते हैं। सारे राजा-महाराजा इस सिंहासन का सम्मान करते हैं और इसके सामने नतमस्तक होते हैं। अधीनस्थ राजाओं के मुकुटों से इसके चरण पोंछे जाते हैं। मेवाड़ के सिंहासन की रक्षा के लिए अनेक कुर्बानियाँ हुई हैं, अनेक वीरों ने आत्म-बलिदान किया है। मेवाड़ का यह सिंहासन राणा राजवंश का गौरव है और वे इसके स्वाभिमान का पूरा ध्यान रखते हैं।

प्रश्न 2.
“भीलों में रण-झंकार अभी …………….. ” ललकार अभी।” इससे कवि ने क्या भाव व्यक्त किया है?
उत्तर:
इससे कवि ने यह भाव व्यक्त किया है कि मेवाड़ प्रान्त की आदिवासी प्रजा, भील आदि लोग आज भी राणा प्रताप की प्रतिज्ञा का पालन कर रहे हैं। वहाँ । के भील अब भी अपनी कमर में तलवार बाँधकर रहते हैं। देश भले ही आजाद हो गया, परन्तु वे भील इतने भोले हैं कि अभी भी वे मेवाड़ के शत्रुओं को ललकारने की भावना रखते हैं। वे अभी भी जावरमाला के पर्वतीय भागों में रहते हैं और जंगली फलों को खाकर जीवन निर्वाह करते हैं। भील जाति के ये लोग अब भी राणा प्रताप के द्वारा बनाये गये नियमों का पालन करते हैं तथा मातृभूमि-रक्षा की। वैसी ही भावना रखते हैं।

प्रश्न 3.
“हल्दीघाटी का भैरव-पथ’ हल्दीघाटी कहाँ स्थित है और वह क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर:
हल्दीघाटी मेवाड़ में उदयपुर-चित्तौड़ के समीप है। यह अरावली पर्वत-माला की तलहटी में स्थित घाटीनुमा भू-भाग है। मुगल बादशाह की अधीनता स्वीकार कराने की दृष्टि से मुगल सेना ने राणा प्रताप पर अनेक बार आक्रमण किये। अन्ततः राणा प्रताप ने चतुराई से हल्दीघाटी का मैदान रण-क्षेत्र के रूप में चुना। क्योंकि मेवाड़ की सेना संख्यात्मक दृष्टि से मुगल-सेना की अपेक्षा कम थी। अतः राणा प्रताप ने छापामार शैली में व्यूह-रचना के लिए हल्दीघाटी के संकरे मार्ग वाले स्थान को चुना था और वहाँ पर युद्ध करते हुए मुगल-सेना के छक्के छुड़ा दिये थे। इसी कारण हल्दीघाटी मेवाड़ के इतिहास में प्रसिद्ध है।

प्रश्न 4.
इसकी रक्षा के लिए शिखर थे राणा के दरबार बने।” कवि ने इससे किस ऐतिहासिक सत्य का उल्लेख किया है?
उत्तर:
मेवाड़ के इतिहास में राणा प्रताप के त्याग एवं शौर्य का उल्लेख अनेक प्रकार से मिलता है। मुगल बादशाह द्वारा बार-बार मेवाड़ पर आक्रमण किये गये, – परन्तु राणा प्रताप ने हर बार उसका सामना किया। इस कारण उन्होंने महलों के सुखमय जीवन को त्यागा तथा उन्हें जावरमाला की गुफाओं और वनों में रहना पड़ा। और वहीं पर रहकर सैन्य-संगठन करते रहे। उन्होंने मातृभूमि मेवाड़ की स्वाधीनता का जो प्रण किया था, उसकी खातिर वे वन-वन में भटके, अनेक कष्ट सहे और मेवाड़ की पर्वतीय भूमि में रहकर वहीं से शासन का संचालन किया । कवि ने इससे उसी ऐतिहासिक सत्य का उल्लेख किया है।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मेवाड़ का सिंहासन’ कविता की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कवि श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ‘मेवाड़ का सिंहासन’ वीर रस की श्रेष्ठ कविता है। इसमें मेवाड़ के शौर्यपूर्ण इतिहास को आधार बनाकर कवि ने राणा राजवंश के राजाओं के शौर्य, त्याग, आत्म-बलिदान, मातृभूमि प्रेम, जातीय गौरव और स्वातन्त्र्य भावना का ओजस्वी चित्रण किया है। इस कविता की विशेषताओं को इस प्रकार रेखांकित किया जा सकता है –

  1. इसमें कवि ने मेवाड़ के राजपूतों के अथवा मध्यकालीन राजपूतों के जातीय गौरव एवं मूल्यों का वर्णन अत्यन्त श्रद्धा, सम्मान एवं आदर के साथ निरूपित किया है ।
  2. प्रस्तुत कविता में यद्यपि जितने भी नाम आये हैं, वे इतिहास के क्रम से नहीं दिये गये हैं, परन्तु मेवाड़ के सभी प्रमुख राणाओं के बलिदानी जीवन का ओजस्वी चित्रण किया गया है।
  3. प्रस्तुत कविता में ‘राणा ! तू इसकी रक्षा कर’ वाक्यांश से जो संबोधन किया गया है, वह किसी एक राणा के लिए नहीं, अपितु समस्त मेवाड़ी राजपूतों के लिए किया गया है, जो देशभक्ति के आह्वान का सूचक है।
  4. प्रस्तुत कविता की भाषा भावानुकूल है। इसमें व्यक्त भाव रोमांच तथा जोश उत्पन्न करने वाले हैं और वीर योद्धाओं के शौर्य को जीवन्त करने वाले हैं।

इस प्रकार ‘मेवाड़ का सिंहासन’ कविता अनेक विशेषताओं से मण्डिते है।

रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –

प्रश्न 1.
श्यामनारायण पाण्डेय के साहित्यिक व्यक्तित्व का परिचय दीजिए।
उत्तर:
कवि श्यामनारायण पाण्डेय की गणना खड़ी बोली में वीर रस के श्रेष्ठ कवियों में की जाती है। प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रति विशेष अनुराग इनकी कृतियों से परिलक्षित होता है। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के ‘हुमराव’ गाँव में सन् 1907 में हुआ। ये प्रारम्भ से ही वीर-भावों के ओजस्वी गायक रहे तथा शौर्य-चित्रण को इन्होंने पर्याप्त प्रखरता प्रदान की। राजस्थान के राजपूती शौर्य और उसमें भी विशेषतः मेवाड़ की शौर्य-परम्परा ने इन्हें विशेष रूप से प्रभावित किया। ऐसा माना जाता है कि श्यामनारायण पाण्डेय के साहित्यिक व्यक्तित्व में राष्ट्रीयता की जो प्राचीन धारा है, वह हिन्दुत्व से प्रभावित है। परन्तु इनमें साम्प्रदायिकता की अपेक्षा स्वातन्त्र्य-भावना और साम्राज्यवाद से मुक्ति पाने की इच्छा अधिक है। इनके काव्य की भाषा में ओज, प्रवाह और प्रखरता है तथा उसमें गतिशील भड़कीले चित्र जीवन्त हो जाते हैं। अपने साहित्यिक व्यक्तित्व के कारण कवि पाण्डेय दशकों तक हिन्दी कवि-सम्मेलनों के मंचों में अतीव समादृत रहे हैं।

रचना परिचय – कवि पाण्डेय की प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं-‘हल्दीघाटी’, ‘जौहर’, ‘तुमुल’, ‘रूपान्तर’, ‘आरती’, ‘आँसू के कण’, ‘गोरा-वध’, ‘जय हनुमान्’, ‘रिमझिम’ तथा ‘त्रेता के दो वीर’ आदि। हल्दीघाटी’ सत्रह सर्गों को महाकाव्य है जिसमें महाराणा प्रताप के शौर्य का वर्णन है। ‘जौहर’ में रानी पदमिनी के जौहर | का चित्रण है। ‘माधव’ और ‘शिवाजी’ इनकी अन्य रचनाएँ मानी जाती हैं।

श्यामनारायण पाण्डेय कवि-परिचय-

आधुनिक काल में वीररस के श्रेष्ठ कवियों में अग्रणी श्यामनारायण पाण्डेय का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के हुमराव, मऊ गाँव में सन् 1907 ई. में हुआ। ये स्वभाव से सात्विक, हृदय से विनोदी और आत्मा से निर्भीक थे। इनके व्यक्तित्व में सत्त्व, शौर्य एवं सरलता का अद्भुत मिश्रण था। इन्होंने अपनी कृतियों में प्राचीन संस्कृति के प्रतीक महापुरुषों के वीर-कर्मों को आधार बनाया। इन्होंने वीर-प्रसूता मेवाड़-धरा से सम्बन्धित वीरों एवं वीरांगनाओं का ओजस्वी चित्रण किया। पमिनी की गाथा को लेकर ‘जौहर’ काव्य तथा महाराणा प्रताप के शौर्य को लेकर ‘हल्दीघाटी’ काव्य की रचना की। इन काव्यों में इन्होंने युद्धों का सजीव एवं चित्रोपम वर्णन किया है। खड़ी बोली
में ओज, प्रवाह एवं सांस्कृतिक गरिमा की अभिव्यक्ति उनकी अन्यतम विशेषता है। इनका निधन सन् 1991 ई. में हुआ।

पाठ-परिचय-

प्रस्तुत पाठ में श्यामनारायण पाण्डेय की ‘मेवाड़ का सिंहासन’। कविता संकलित है। इसमें मेवाड़ के सिंहासन को भगवान् एकलिंग का आसन तथा राणा प्रताप को उसका दीवान बताया गया है। पाण्डेयजी के ‘हल्दीघाटी’ नामक सत्रह सर्गों के वीर रसात्मक महाकाव्य से प्रस्तुत काव्यांश संकलित है। इसमें मेवाड़ के इतिहास का, वहाँ के देशभक्त वीरों के बलिदान एवं मरणमहोत्सव का ओजस्वी चित्रण किया गया है। इसमें मेवाड़ की जनजातियों तथा अन्य ऐतिहासिक घटनाओं का भी उचित समावेश कर कथानक को सुसंगत बनाया गया है।

सप्रसंग व्याख्याएँ मेवाड़ का सिंहासन

(1)
यह एकलिंग का आसन है, इस पर न किसी का शासन है।
नित सिहर रहा कमलासन है, यह सिंहासन, सिंहासन है।
यह सम्मानित अधिराजों से, अर्चित है राज समाजों से।
इसके पद-रज पोंछे जाते, भूपों के सिर के ताजों से।
इसकी रक्षा के लिए हुई कुर्बानी पर कुर्बानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर, यह सिंहासन अभिमानी है।

कठिन शब्दार्थ-अधिराजों = अधीनस्थ राजाओं। अर्चित = पूजा गया। भूपों = राजाओं। पद-रज = पैरों की धूल।

प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण कवि श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ‘मेवाड़ का सिंहासन’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसमें मेवाड़ के सिंहासन के गौरव और सम्मान का ओजस्वी चित्रण हुआ है।

व्याख्या-कवि वर्णन करता है कि मेवाड़ का सिंहासन वस्तुतः भगवान् एकलिंग का आसन है, इस पर किसी अन्य का शासन नहीं है। मेवाड़ के इस सिंहासन को देखकर कमलासन ब्रह्मा भी रोजाना सिहर जाते हैं। यह सिंहासन कोई सामान्य आसन न होकर नरवीरों का आसन है। यह सिंहासन समस्त अधीनस्थ बड़े राजाओं द्वारा सम्मानित है तथा समस्त राजाओं के समूहों से पूजित है। इस सिंहासन के चरणों की धूल बड़े-बड़े राजाओं के सिरों के मुकुटों से पोंछी जाती है। अर्थात् बड़े-बड़े राजा इस सिंहासन पर बैठने वाले के चरणों में नतमस्तक रहते हैं। इस सिंहासन की रक्षा के लिए कुर्बानी-पर-कुर्बानी हुई, अर्थात् अनेक वीरों को बलिदान होना पड़ा है। इसलिए हे राणा ! तुम इस मेवाड़ के सिंहासन की रक्षा करो, यह सिंहासन बड़ा अभिमानी है। अर्थात् यह सामान्य आसन न होकर अतीव गौरवगरिमा वाला है।

विशेष-
(1) उदयपुर या मेवाड़ के राणा भगवान् एकलिंग को ही वहाँ का राजा मानते थे तथा स्वयं को उसका दीवान मानकर शासन चलाते थे। इस तरह मेवाड़ का सिंहासन सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।
(2) वर्णावृत्ति एवं शब्दावृत्ति से अनुप्रास, यमक एवं पुनरुक्तिप्रकाश अलंकारों का प्रयोग हुआ है। भावाभिव्यक्ति ओजस्वी है।

(2) खिलजी तलवारों के नीचे थरथरा रहा था अवनी-तल।
वह रत्नसिंह था रत्नसिंह जिसने कर दिया उसे शीतल।
मेवाड़-भूमि बलिवेदी पर होते बलि शिशु रनिवासों के।
गोरा-बादल रण-कौशल से उज्ज्वल पन्ने इतिहासों के।
जिसने जौहर को जन्म दिया वह वीर पद्मिनी रानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर यह सिंहासन अभिमानी है।

कठिन शब्दार्थ-अवनी-तल = भूतल, धरती। शिशु = बालक। जौहर = जीवित अग्नि-कुण्ड में कूदना।

प्रसंग-यह अवतरण कवि श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ‘मेवाड़ की सिंहासन’ कविता से लिया गया है। इसमें मेवाड़ के सिंहासन की रक्षा करने का ओजस्वी स्वर व्यक्त हुआ है।

व्याख्या-कवि वर्णन करते हुए कहता है कि पहले जब सारा भूतल अर्थात् भारतीय भू-भाग अलाउद्दीन खिलजी की तलवारों के प्रहार से भयभीत होकर काँप रहा था, तब मेवाड़ का राणा रत्नसिंह ही ऐसा महान् सिंह था, जिसने उस खिलजी के आतंक को शान्त कर दिया था। वस्तुतः यह मेवाड़ भूमि ऐसी है कि यहाँ युद्ध रूपी बलिवेदी पर रनिवासों के बालक भी बलि हो जाते हैं, सहर्ष अपने जीवन का बलिदान करते हैं। यहाँ पर गोरा और बादल नामक ऐसे वीर युवक हुए, जिनके युद्धकौशल के वर्णन से इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ भरे हुए हैं, अर्थात् जो अपने रण-कौशल से इतिहास में उज्ज्वल यश अर्जित कर चुके हैं। जिसने नारियों के सतीत्व की रक्षा हेतु जौहर व्रत को प्रारम्भ किया था, वह रानी पमिनी या पद्मावती भी इसी मेवाड़ की महारानी थी। इसलिए हे राणा! तुम इस सिंहासन की रक्षा करो, क्योंकि यह सिंहासन बड़ा स्वाभिमानी है, आन-बान का प्रबल निर्वाहक एवं सरताज है।

विशेष-
(1) राणा रत्नसिंह ने खिलजी से युद्ध किया और वीरगति प्राप्त की। उसी अवसर पर रानी पद्मिनी ने महल की सभी रानियों एवं क्षत्राणियों के साथ जौहर किया। चित्तौड़गढ़ के इतिहास की वह घटना अतीव प्रसिद्ध है।
(2) गोरा-बादल भी उसी समय युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे।
(3) अनुप्रास, यमक एवं रूपक अलंकार प्रयुक्त हैं। भाषा ओजस्वी है।

(3) मँजा के सिर के शोणित से जिसके भाले की प्यास बुझी।
हम्मीर वीर वह था जिसकी असि वैरी-उर कर पार जुझी।
प्रण किया वीरवर चूंडा ने जननी-पद सेवा करने का।
कुम्भा ने भी व्रत ठान लिया रनों से अंचल भरने का।
वह वीर-प्रसविनी वीर-भूमि, रजपूती की रजधानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर, यह सिंहासन अभिमानी है।

कठिन शब्दार्थ-शोणित = रक्त। असि = तलवार। वैरी-उर = शत्रु का हृदय। प्रसविनी = जन्म देनी वाली। रजपूती = राजपूतों, क्षत्रियों की।

प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण वीर रस के कवि श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ‘मेवाड़ का सिंहासन’ कविता से लिया गया है। इसमें मेवाड़ के सिंहासन की रक्षार्थ अटल बलिदानी वीरों का उल्लेख किया गया है।

व्याख्या-कवि इतिहास की एक घटना की ओर संकेत करते हुए कहता है। कि जिस वीर राणा हम्मीर के भाले की प्यास मँजा नामक शत्रु के सिर का शोणित पीने से बुझी, अर्थात् जिससे मँजा नामक शत्रु को मार गिराया, उसकी तलवार सदैव शत्रुओं के हृदय को पार करने में ही संघर्षरत रही। मेवाड़ के वीरश्रेष्ठ चूंडावत ने मातृभूमि मेवाड़ के चरणों की सेवा करने का प्रण किया था तथा राणा कुम्भा ने भी रत्नों से अर्थात् अपार धन-दौलत से मातृभूमि मेवाड़ का अंचल भरने का व्रत लिया था। आशय यह है कि इन वीरों ने मातृभूमि की खातिर जो प्रण किये या व्रत लिये, वे पूरे किये और इसका गौरव बढ़ाया। अतएव यह वीरों को पैदा करने वाली चीर-भूमि है, यह वीरता प्रदर्शित करने वाले राजपूतों की राजधानी है। इसलिए हे राणा! तुम इस भूमि की और मेवाड़ के सिंहासन की रक्षा करो। यह मेवाड़ का सिंहासन बड़ा स्वाभिमानी एवं गौरव-गरिमा से सम्पन्न है।

विशेष-
(1) राणा हम्मीर, राणा कुम्भा के साथ राजपूत सरदार चूंडावत का उल्लेख कर उनके शौर्य एवं मातृभूमि-प्रेम की प्रशंसा की गई है।
(2) मेवाड़ की धरती को वीर-प्रसूता, वीरभूमि, राजपूती रजधानी कहकर उसके ऐतिहासिक गौरव की व्यंजना की गई है।
(3) भावाभिव्यक्ति ओजस्वी एवं अलंकृत है।

(4)
जयमल ने जीवन दान दिया, पत्ता ने अर्पण प्राण किया।
कल्ला ने इसकी रक्षा में अपना सब कुछ कुर्बान किया।
साँगा को अस्सी घाव लगे, मरहम-पट्टी थी आँखों पर।
तो भी उसकी असि बिजली-सी फिर गई छपाछप लाखों पर।
अब भी करुणा की करुण कथा हम सब को याद जबानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर, यह सिंहासन अभिमानी है।

कठिन शब्दार्थ-अर्पण = सौंपना। असि = तलवार।

प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण कवि श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ‘मेवाड़ का सिंहासन’ शीर्षक कविता से उद्धत है। इसमें कवि ने इतिहास-प्रसिद्ध मेवाड़ी वीरों के शौर्य का उल्लेख किया है।

व्याख्या-कवि वर्णन करता है कि मातृभूमि मेवाड़ के सिंहासन की रक्षा के लिए वीर-शिरोमणि जयमल ने अपना जीवन समर्पित किया और वीर पत्ता या प्रताप ने अपने प्राण अर्पित किये। इसकी रक्षा में वीर कल्ला ने भी अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया था। राणा सांगा को युद्ध में अस्सी घाव लगे थे, उनकी आँखों पर मरहमपट्टी लगी हुई थी, फिर भी उनकी तलवार शत्रुओं पर बिजली की तरह तेजी से छपाछप चलती रही और उन्होंने लाखों शत्रुओं को मार-काटकर रणभूमि में पाट दिया था। उस वीर राणा सांगा की कष्टमय जीवन-गाथा और वीरगति पाने की करुण-कथा हम सबको जबानी याद है। अतएव हे राणा! तुम इस मेवाड़ की और इसके सिंहासन की रक्षा करो, प्राणों की बाजी लगाकर भी इसका गौरव सुरक्षित रखो। यह मेवाड़ का सिंहासन सदैव स्वाभिमानी रहा है।

विशेष-
(1) ‘राणा’ सम्बोधन से मेवाड़ के उत्तराधिकारी राजा से है। ‘पत्ता’ शब्द से इसे नाम का वीर है, जिसका शुद्ध रूप ‘प्रताप’ माना जाता है।
(2) जयमल, पत्ता, कल्ला, सांगा–ये नाम ऐतिहासिक क्रम से नहीं लगते। कवि ने छन्द की तुकान्तता का ध्यान रखकर ये नाम जोड़े हैं। (3) शब्दावली ओजस्वी भावों की व्यंजक है।

(5) क्रीड़ा होती हथियारों से, होती थी केलि कटारों से।
असि-धार देखने को उँगली, कट जाती थी तलवारों से।
हल्दी-घाटी का भैरव-पथ रंग दिया गया था खूनों से।
जननी-पद-अर्चन किया गया जीवन के विकच प्रसूनों से।
अब तक उस भीषण घाटी के कण-कण की चढ़ी जवानी है।
राणा! तु इसकी रक्षा कर, यह सिंहासन अभिमानी है।

कठिन शब्दार्थ-केलि = क्रीड़ा, खेल। असि-धार = तलवार की धार। भैरवपथ = भयानक रास्ता। अर्चन = पूजन। विकच = खिले हुए, विकसित। प्रसूनों = पुष्पों। चढ़ी जवानी = जवानी के जोश से व्याप्त।

प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ‘मेवाड़ का सिंहासन’ कविता से उद्धत है। इसमें मेवाड़ के वीरों के शस्त्र-कौशल एवं शौर्य आदि का परम्परागत वर्णन किया गया है।

व्याख्या-कवि वर्णन करते हुए कहता है कि मेवाड़ भूमि ऐसी है, जहाँ पर वीर हथियारों से खेल खेलते थे और कटारों को चलाने की क्रीडा या खेल होते थे। वहाँ पर तलवार की धार के पैनेपन को जाँचने के लिए उँगली कट जाती थी, अर्थात् उँगली से तलवार की धार परखी जाती थी। मेवाड़ के योद्धाओं एवं राणा प्रताप ने हल्दीघाटी के संकरे-भयानक पथ,को शत्रुओं के रक्त से रंग दिया था और मातृभूमि मेवाड़ के चरणों की पूजा जीवन रूपी खिले हुए पुष्पों को समर्पित कर की थी। अर्थात् अपने जीवन का बलिदान कर मातृभूमि की अर्चना की थी, त्यागबलिदान का उत्सव मनाया था। कवि कहता है कि अब तक भी उस भीषण हल्दीघाटी के कण-कण में बलिदानी वीरों की जवानी चढ़ी हुई या उमंगित है।
आज भी वहाँ पर आत्म-बलिदान एवं देशप्रेम की खातिर प्राणार्पण का जोश दिखाई देता है। इसलिए हे राणा ! तुम मेवाड़ के सिंहासन की रक्षा करो, यह सिंहासन सदैव ही स्वाभिमानी रहा है।

विशेष-
(1) वीरों की चेष्टाओं तथा हल्दीघाटी के ऐतिहासिक युद्ध का ओजस्वी वर्णन हुआ है।
(2) मातृभूमि की सुरक्षा एवं स्वतन्त्रता की खातिर प्राणोत्सर्ग करने वाले वीरों का स्तवन किया गया है।
(3) अनुप्रास एवं पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार प्रयुक्त हैं।

(6) भीलों में रण झंकार अभी, लटकी कटि में तलवार अभी।
भोलेपन में ललकार अभी, आँखों में है ललकार अभी।
गिरिवर के उन्नत-शृंगों पर तरु के मेवे आहार बने।
इसकी रक्षा के लिए शिखर थे राणा के दरबार बने।
जावरमाला के गहूवर में अब भी तो निर्मल पानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर, यह सिंहासन अभिमानी है।

कठिन शब्दार्थ-कटि = कमर। गिरिवर = श्रेष्ठ पर्वत। श्रृंगों = शिखरों। आहार = भोजन। गह्वर = गुफा, खाई जैसा दुर्गम स्थान, खोह।

प्रसंग-यह अवतरण श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ‘मेवाड़ का सिंहासन’ कविता से उद्धत है। इसमें कवि ने मेवाड़ की जनजातियों एवं प्रमुख स्थानों का उल्लेख ऐतिहासिक दृष्टि से किया है।

व्याख्या-कवि वर्णन करता है कि मेवाड़ के भीलों की सेना की वह रणझंकार अभी भी दिखाई-सुनाई देती है, उन भीलों की कमर में अभी भी तलवार लटकी रहती है। साथ ही उनके भोलेपन की ललकार तथा आँखों की ओजस्वी ललकार अभी भी विद्यमान है। वे भील राणा प्रताप के साथ अरावली पर्वतमाला के ऊँचे शिखरों पर रहे तथा वहाँ के वन्य-फल उनके आहार बने। मेवाड़ की रक्षा के लिए राणा प्रताप ने पर्वत-शिखरों में अपना दरबार लगाया। इससे वे पर्वत शिखर उनके दरबार बने थे। राणा प्रताप सपरिवार जावरमाला की गुफाओं एवं खोहों में रहे थे, उन स्थानों पर अब भी वैसा ही निर्मल पानी बहता रहता है। मेवाड़ का इस तरह का ओजस्वी इतिहास रहा है। अतएव हे राणा ! तुम मेवाड़ के इस स्वाभिमानी सिंहासन की रक्षा करते रहो।

विशेष-
(1) हल्दीघाटी के युद्ध के बाद राणा प्रताप जावरमाला के पर्वतीय भाग में रहे और सैन्य संगठन कर मुगलों पर आक्रमण करने में तत्पर रहे। कवि ने उसी ऐतिहासिक घटना का सांकेतिक उल्लेख किया है।
(2) ‘अब भी तो निर्मल पानी है’–कथन से अब भी मेवाड़ के लोगों में वैसा ही जोश और देशभक्ति का भाव है-यह व्यंजित हुआ है।

(7)
चुंडावत ने तन भूषित कर युवती के सिर की माला से।
खलबली मचा दी मुगलों में, अपने भीषणतम भाला से।
घोड़े को गज पर चढ़ा दिया, ‘मत मारो’ मुगल पुकार हुई।
फिर राजसिंह-चुंडावत से अवरंगजेब की हार हुई।
वह चामती रानी थी, जिसकी चेरि बनी मुगलानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर, यह सिंहासन अभिमानी है।

कठिन शब्दार्थ-भूषित = अलंकृत, श्रृंगार किया गया। गज = हाथी। चामती = चारुमती। चेरि = सेविका, दासी।

प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ‘मेवाड़ का सिंहासन’ कविता से उद्धृत है। इसमें मेवाड़ के यशस्वी योद्धा चूंडावत के पराक्रम का वर्णन किया गया है।

व्याख्या-कवि वर्णन करता है कि मेवाड़ की सेना के प्रमुख सरदार राव रत्नसिंह चुंडावत ने गले में अपनी नवविवाहिता पत्नी के सुसज्जित सिर को मुण्डमाला की तरह धारण कर जब युद्ध-क्षेत्र में प्रवेश किया और अपने भीषण भाले से मार-काट मचायी, तो उससे मुगलों की सेना में खलबली मच गयी। उसने अपना घोड़ा मुगल बादशाह के हाथी पर चढ़ा दिया, तब मुगलों ने हाहाकार करते हुए पुकारा कि ‘बादशाह को मत मारो।’ राणा राजसिंह और सरदार चूंडावत से युद्ध करते हुए मुगल बादशाह औरंगजेब की हार हुई थी। मेवाड़ की वह चारुमती रानी ऐसी थी कि मुगल-रानी भी उसकी सेविका बनी थी, अर्थात् उसकी अधीनता स्वीकार की थी। मेवाड़ का ऐसा गौरवमय इतिहास रहा है। अतएव हे राणा ! तुम इस मेवाड़ के स्वाभिमानी सिंहासन की रक्षा करो, इसका गौरव बनाये रखो।

विशेष—
(1) ऐसी प्रसिद्ध घटना है कि युद्ध में जाते समय मुख्य द्वार से सलूम्बर के सरादर चूंडावतजी ने सेवक को महल में अपनी नवविवाहिता हाड़ी रानी के पास भेजा कि कोई स्मृति-चिह्न माँग लाओ। तब उस हाड़ी रानी ने सोचा कि पति का मन उसी पर लगा रहेगा और वे युद्ध में पूरे जोश से नहीं लड़ पायेंगे। इसलिए उसने अपना मस्तक काटकर सेवक के द्वारा चुंडावत के पास स्मृति चिह्न (सैनाणी) रूप में भेजा। उस कटे हुए सिर को माला की तरह धारण कर चूंडावत ने युद्धक्षेत्र में घमासान मारकाट मचायी।
(2) बादशाह औरंगजेब की पराजय एवं चारुमती रानी की दासी रूप में। मुगलानी का उल्लेख भी इतिहास-प्रसिद्ध घटना है।

(8) कुछ ही दिन बीते फतहसिंह मेवाड़-देश का शासक था।
वह राणा तेज-उपासक था तेजस्वी था अरि-नाशक था।
उसके चरणों को चूम लिया कर लिया समर्चन लाखों ने।
टकटकी लगा उसकी छवि को देखा कर्जन की आँखों ने।
सुनता हूँ उस मर्दाने की दिल्ली की अजब कहानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर, यह सिंहासन अभिमानी है।

कठिन शब्दार्थ-अरि-नाशक = शत्रुओं का संहार करने वाला। समर्चन = पूजन। कर्जन = अंग्रेज शासक लार्ड कर्जन। अजब = अनोखी।

प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण कविवर श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ‘मेवाड़ का सिंहासन’ कविता से उद्धृत है। इसमें कवि ने मेवाड़ के राणा फतहसिंह के तेज एवं प्रताप का वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि वर्णन करते हुए कहता है कि अभी कुछ ही दिन बीते, अर्थात् स्वतन्त्रता-प्राप्ति से पहले अंग्रेजों के शासनकाल की बात है। उस समय राणा फतेहसिंह मेवाड़ राज्य का शासक था। वह राणा फतहसिंह तेज-प्रताप का उपासक था, प्रखर तेजस्वी और शत्रुओं का संहार करने वाला था। उसके प्रतापी व्यक्तित्व को देखकर लाखों लोगों ने उसके चरणों की पूजा करके चूम लिया था। जब दिल्ली दरबार में राणा फतहसिंह आया, तो उसकी तेजस्वी व स्वाभिमानी छवि को लार्ड कर्जन टकटकी लगाकर देखता रहा, लार्ड कर्जन की आँखों में आश्चर्य का भाव था। उस पराक्रमी राणा फतहसिंह की दिल्ली प्रवास में जो अनोखी कहानी लोगों में प्रचलित रही, मैं उसे सुनकर गौरव का अनुभव करता हूँ। अतएव हे राणा ! तुम मेवाड़ के सिंहासन की रक्षा करो, यह सिंहासन अतीव अभिमानी एवं गौरवमय परम्परा का पोषक रहा है।

विशेष-
(1) अंग्रेज सरकार द्वारा दिल्ली दरबार में सभी देशी रियासतों के राजा बुलाये गये थे। उन राजाओं में राणा फतहसिंह ने मेवाड़ की प्रतिज्ञा का ध्यान रखकर ऐसा आचरण किया, जिससे लार्ड कर्जन भी प्रभावित हुआ।
(2) मेवाड़ के गौरवपूर्ण इतिहास का सुन्दर निरूपण किया गया है। भावाभिव्यक्ति ओजस्वी एवं छन्द-योजना सुगेय है।

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