RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 जैव प्रौद्योगिकी-सामान्य परिचय
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 जैव प्रौद्योगिकी-सामान्य परिचय
Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Chapter 14 जैव प्रौद्योगिकी-सामान्य परिचय
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सी प्रक्रिया परंपरागत जैव-प्रौद्योगिकी का उदाहरण नहीं है?
(अ) दुग्ध से दही व पनीर का निर्माण
(ब) गन्ने के रस से सिरके का निर्माण
(स) पुनर्योगज DNA तकनीक द्वारा औषधि–निर्माण
(द) शर्करा द्वारा बीयर का निर्माण
प्रश्न 2.
जैव प्रौद्योगिकी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किसके द्वारा किया गया था?
(अ) एलेक्जेण्डर फ्लेमिंग के द्वारा
(ब) कार्ल एरेकी के द्वारा
(स) हेबरलैण्ड के द्वारा
(द) शिप्रा गुहा मुखर्जी के द्वारा
प्रश्न 3.
भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी बोर्ड की स्थापना किस वर्ष में की गई थी?
(अ) 1982
(ब) 1978
(स) 1986
(द) 1990
प्रश्न 4.
भारत में कोशिका एवं आण्विक जीवविज्ञान केन्द्र स्थित है –
(अ) नई दिल्ली में
(ब) हैदराबाद में
(स) पूणे में
(द) चण्डीगढ़ में
प्रश्न 5.
ICGEB किस संगठन से संबद्ध है?
(अ) NBTB
(a) UNIDO
(स) IARI
(द) ICFRE
प्रश्न 6.
इयान विल्मुट द्वारा प्रथम भेड़ के क्लोन का नाम है –
(अ) मौली
(ब) डौली
(स) पौली
(द) जोली
प्रश्न 7.
जीवाणुभोजी की खोज निम्नलिखित में से किसके द्वारा की गई?
(अ) थियोडोर इश्चेरिच ने
(ब) एन्टोनी वान ल्यूवेनहॉक ने
(स) के. एफ. बुर्डक ने
(द) फ्रेडरिक डब्लू वॉर्ट ने
उत्तरमाला
1. (स)
2. (ब)
3. (अ)
4. (ब)
5. (ब)
6. (ब)
7. (द)।
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
जैव प्रौद्योगिकी को परिभाषित कीजिए।
उत्तर
सजीवों मुख्यतः सूक्ष्मजीवों जैसे-जीवाणुओं, एककोशिकीय जन्तुओं, पादपों, इनकी कोशिकाओं, इनके घटकों तथा इनमें सम्पन्न होने वाले प्रक्रमों का उपयोग कर मानव कल्याण हेतु उपयोगी उत्पादों के निर्माण का प्रक्रम जैव प्रौद्योगिकी कहलाता है।
प्रश्न 2.
परंपरागत जैव प्रौद्योगिकी से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर
परंपरागत जैव प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत जैविक नियन्त्रण (Biological control) तथा खाद्य पदार्थ किण्वन से सम्बन्धित क्षेत्र आते हैं। परम्परागत जैव प्रौद्योगिकी का यह तात्पर्य है कि इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग मानव द्वारा प्राचीनकाल से किया जा रहा है।
प्रश्न 3.
परम्परागत तथा आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी में क्या अन्तर है?
उत्तर
परम्परागत तथा आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी में मुख्य अन्तर निम्न है –
- परम्परागत जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग मानव द्वारा प्राचीनकाल से ही किया जा रहा है। वहीं जैव प्रौद्योगिकी, प्रौद्योगिकी की नवीनतम प्रक्रिया है।
- आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी परम्परागत जैव प्रौद्योगिकी की अपेक्षा जटिल तथा खचली हैं।
प्रश्न 4.
जैव रूपान्तरण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर
जैव रूपान्तरण (Biotransformation) – जैव रूपान्तरण कोशिका संवर्धन की वह तकनीक है, जिसके द्वारा उपयोगी उत्पादों को अधिक उपयोगी उत्पादों में बदला जाता है। जैसे-ऐल्कोहल, ऐसीटोन, ग्लिसरॉल, विभिन्न प्रकार के कार्बनिक अम्लों, विटामिन, एन्जाइम, एकल कोशिका संवर्धन द्वारा प्रतिजैविक, बायोगैस आदि का उत्पादन किया जाता है।
प्रश्न 5.
जैव-प्रौद्योगिकी उद्याने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
जैव प्रौद्योगिकी उद्यान (Biotechnology Parks) – जैव प्रौद्योगिकी पर आधारित उद्योगों को लगाने के इच्छुक व्यक्तियों को जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र से संबंधित जानकारी देने के लिए जैव प्रौद्योगिकी उद्यान स्थापित किए जाते हैं। भारत में अब तक 15 जैव प्रौद्योगिकी उद्यान स्थापित किए जा चुके हैं।
प्रश्न 6.
जीन चिप क्या है?
उत्तर
जीन चिप (Gene chips) – यह एक प्रकार की सूक्ष्म चिप है, जिस पर द्विकुण्डलित DNA का आधा हिस्सा बनाने वाले अन्वेषी डी०एन०ए० के बिन्दु चिपके रहते हैं जो परीक्षण हेतु प्रयुक्त नमूनों की पहचान करने में सक्षम होते हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
टिप्पणी कीजिए –
(अ) अन्तर्राष्ट्रीय आनुवंशिक अभियान्त्रिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी केन्द्र (ICGEB)
(ब) बायोचिप्स
(स) बायोसेन्सर
(द) बायोफिल्म
(ये) सूक्ष्म व्यूह
(र) जैव प्रौद्योगिकी विभाग,
(ल) जैव प्रौद्योगिकी उद्यान
(व) भारत में स्थित जैव प्रौद्योगिकी संस्थान
(श) चिकित्सा के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग,
(घ) भारत में स्थित महत्त्वपूर्ण जैव प्रौद्योगिकी उद्यान,
(ह) जैव प्रौद्योगिकी विभाग की महत्त्वपूर्ण योजनाएँ।
उत्तर
(अ) अन्तर्राष्ट्रीय आनुवंशिक अभियान्त्रिकी प्रौद्योगिकी केन्द्र (IGGEB) संयुक्त राष्ट्र संघ के औद्योगिक विकास संगठन (UNIDO) द्वारा वर्ष 1983 में नई दिल्ली में अन्तर्राष्ट्रीय आनुवंशिकी अभियांत्रिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी केन्द्र (International Centre of Geritic Engineering and Biotechnolgy, IGGEB) की स्थापना की गयी। यह संस्था अनेक शोध संस्थानों के साथ मिलकर तथा स्वतन्त्र रूप से जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य कर रही है।
(ब) बायोचिप्स (Biochips) बायोचिप्स को DNA चिप अथवा डी०एन०ए० सूक्ष्म व्यूह (DNA Microarray) के नाम से भी जाना जाती है। जैविक चिप्स एक प्रकार का सूक्ष्म डी०एन०ए० अणुओं को संग्रह है जो ठोस सतह से जुड़ा रहता है। इस तकनीक का उपयोग एक साथ तथा एक ही समय में अनेक जीनों के अभिव्यक्ति स्तर के मापन में किया जाता है। प्रथम बायोचिप का निर्माण स्टीफन पी०ए० फोडोर द्वारा वर्ष 1991 में किया गया था। बायोचिप्स में प्रयुक्त अवस्तर (Substrate) सिलिको संयुग्मित क्वाट्र्ज सोडा ग्लास व प्लास्टिक आदि के बने होते हैं जिनकी चयन प्रायोगिक आवश्यकताओं के अनुसार इनकी रासायनिक संरचना व भौतिक गुणों के आधार पर किया जाता है।
(स) बायोसेन्सर (Biosensors) जैव संवेदक एक प्रकार से जैविक पदार्थों का सम्मिश्रण है जो रासायनिक एवं प्राण संवेदनाओं को वैद्युत संकेतों में बदल देते हैं। रासायनिक एवं प्राण संवेदनाओं का वैद्युत संकेतों में परिवर्तन ट्रान्सड्यूसर की सहायता से होता है। जैव संवेदकों के अन्तर्गत ऊतक, सूक्ष्मजीव, कोशिकाओं के विभिन्न अंगक, कोशिका ग्राही एन्जाइम, प्रतिरक्षी न्यूक्लिक अम्ल आदि आते हैं। कार्य एवं प्रकृति के आधार पर जैव संवेदक अनेक प्रकार के होते हैं। जैसे- फ्लूरोसेंट ग्लूकोज जैव संवेदक, डी०एन०ए० जैव संवेदक, ओजोन जैव संवेदक, सूक्ष्मजीव जैव संवेदक, मेटास्टेटिक कैंसर कोशिका जैव संवेदक, नैनो संवेदक आदि।
(द) बायोफिल्म (Biofilm) – बायोफिल्म सूक्ष्म जैविक कोशिकाओं का समुच्चय होता है जो स्थिर रूप से सतह से आसंजित या संलग्न रहता है। यह समुच्चय सामान्यत: पॉलीसैकेराइड्स द्वारा निर्मित आधात्री से ढका रहता है। ये बायोफिल्म सूक्ष्मजैविक कोशिकाओं व बाह्यकोशिक बहुलक पदार्थों (EPS. Extracellular Polymer Substances) द्वारा निर्मित होती है तथा इसका निर्माण प्राकृतिक तथा रूपान्तरित वातावरण में देखा जा सकता है। अपशिष्ट जल उपचार, जल की गुणवत्ता में अचानक परिवर्तन आदि प्रक्रियाओं में यह मूलभूत इकाई के रूप में कार्य कर सकती है।
(य) सूक्ष्म व्यूह (Microarray) – सूक्ष्म व्यूह (Microarray) निम्नलिखित प्रकार की होती हैं –
- DNA सूक्ष्म व्यूह (DNA microarray) – इसका आकार डाक टिकट से भी छोटा होता है जिसमें काँच के अवस्तर पर लगभग 4 लाख छोटे-छोटे कोष्ठ (Cells) छपे रहते हैं। प्रत्येक कोष्ठ में DNA का सूक्ष्म बिन्दु पाया जाता है। प्रत्येक सूक्ष्म बिन्दु में विभिन्न जीनों की एकल रज्जुक DNA अनुक्रम उपस्थित होते हैं।
- प्रोटीन सूक्ष्म व्यूह (Protein microarray) – प्रोटीन सूक्ष्म व्यूह संलग्नी आबंधन आमापन पर आधारित तकनीक है जो विलयन में उपस्थित लक्ष्य अणुओं व स्थिर अणुओं के साथ बनने वाले उत्पादों पर निर्भर होती है। प्रोटीन सूक्ष्म व्यूह के उपयोग न्यूक्लिक अम्ल प्रोटीन, प्रोटीन-प्रोटीन, संलग्नी-ग्राही, औषध-प्रोटीन लक्ष्य तथा एन्जाइम-अवस्तर अन्योन्य क्रियाओं के अध्ययन में किया जाता है। प्रोटीन सूक्ष्म व्यूह का सामान्य उदाहरण प्रतिकाय सूक्ष्म व्यूह (Antibody microarray) का है।
(र) जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology) – जैव प्रौद्योगिकी विभाग की स्थापना वर्ष 1986 में की गयी। इस विभाग द्वारा जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधानरत राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों, विश्वविद्यालयों में मूलभूत सुविधाओं का विकास, विशेष अनुसंधान केन्द्रों की स्थापना तथा स्थापित विशेष केन्द्रों के सुदृढ़ीकरण हेतु अनुदान प्रदान किया जाता है।
(ल) जैव प्रौद्योगिकी उद्यान (Biotechnology park) – जैव प्रौद्योगिकी आधारित उद्योग लगाने के इच्छुक व्यक्तियों को इस क्षेत्र की जानकारी उपलब्ध कराने के लिए भारत में अब तक 19 जैव प्रौद्योगिकी उद्यान स्थापित किए जा चुके हैं। वर्तमान समय में जैव प्रौद्योगिकी का महत्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है। इस कारण भारत सरकार द्वारा जैव प्रौद्योगिकी उद्यान पूरे देश में स्थापित किए जा रहे हैं। स्थापित जैव प्रौद्योगिकी संस्थानों में से कुछ निम्नवत् हैं –
- जैव प्रौद्योगिकी उद्यान लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
- हैदराबाद जैव प्रौद्योगिकी उद्यान (आन्ध्रप्रदेश)
- गोल्डन जुबली बायोटेक पार्क (जैव प्रौद्योगिकी उद्यान) फोर वूमन सिरूसेरी, कांचीपुरम (तमिलनाडु)।
- गुवाहाटी जैव प्रौद्योगिकी उद्यान (आसाम)
- बायोफार्मा-आई टी पार्क अन्धारूआ, भुवनेश्वर।
- TICL अन्तर्राष्ट्रिीय जैव प्रौद्योगिकी पार्क ‘Hinjawadi’, पुणे
- KINFRA जैव प्रौद्योगिकी पार्क, केरल आदि।
(व) भारत में स्थित जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (Biotechnology Institutes in India)
भारत में स्थापित जैव प्रौद्योगिकी संस्थान निम्नलिखित हैं –
- भारत विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science), बंगलुरु
- मदुरई कामराज विश्वविद्यालय, मदुरई
- बोस ‘सस्थान, कोलकाता
- जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली।
- दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
- जन्तु कोशिका संवर्धन एवं विषाणु विज्ञान, पूना विश्वविद्यालय, पूना।
- राष्ट्रीय रसायन प्रयोगशाला, पूना
- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली
- कोशिका व आण्विक जीव विज्ञान केन्द्र, हैदराबाद
- राष्ट्रीय रोध क्षमता विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली
(श) चिकित्सा के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी संस्थान
चिकित्सा के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी संस्थान निम्नलिखित हैं –
क्र०सं० | नाम | कार्य-क्षेत्र |
1. | कोशिका व आण्विक जीव विज्ञान केन्द्र हैदराबाद | ओन्कोजीन, कोशिका रूपान्तरण, प्रोटीन संरचना व न्यूक्लिक अम्ल |
2. | राष्ट्रीय रोधक्षमता विज्ञान संस्थान नई दिल्ली | रोध क्षमता सम्बन्धित शोध कार्य |
(घ) भारत में स्थित महत्त्वपूर्ण जैव प्रौद्योगिकी उद्यान
भारत में स्थापित जैव प्रौद्योगिकी उद्यान निम्नलिखित हैं –
- जैव प्रौद्योगिकी उद्यान लखनऊ, उत्तर प्रदेश
- हैदराबाद जैव प्रौद्योगिकी उद्यान, आन्ध्र प्रदेश
- गोल्डन जुबली बायोटेक पार्क फॉर वूमन सिरूसेरी, काँचीपुरम् (तमिलनाडु)
- गुवाहाटी जैव प्रौद्योगिकी उद्यान (आसाम)
- बायोफार्मा आई टी पार्क अन्धारुआ, भुवनेश्वर
- TICL अन्तर्राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी पार्क, पुणे
- KINRA जैव प्रौद्योगिकी पार्क, केरल।
(ह) जैव-प्रौद्योगिकी विभाग की महत्त्वपूर्ण योजनाएँ
जैव प्रौद्योगिकी विभाग की महत्त्वपूर्ण योजनाएँ निम्नलिखित हैं –
- क्लोनीय फसलों का जनन द्रव्य संग्रहण
- औषधीय व ऐरोमैटिक पादपों का जनन द्रव्य संरक्षण
- जीन बैंकों की स्थापना।
- जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधानरत राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों में मूलभूत सुविधाओं की स्थापना करना।
- जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधानरत राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों, विश्वविद्यालय में मूलभूत सुविधाओं का विकास करना।
- विशेष अनुसंधान केन्द्रों की स्थापना करना।
- जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में स्थापित विशेष केन्द्रों के सुदृढ़ीकरण हेतु अनुदान प्रदान करना।
प्रश्न 2.
जैव प्रौद्योगिकी की विभिन्न शाखाओं के नाम लिखिए।
उत्तर
जैव प्रौद्योगिकी की विभिन्न शाखाएँ निम्नलिखित हैं –
- पादप जैव प्रौद्योगिकी
- भोजन व पोषण जैव प्रौद्योगिकी
- जन्तु जैव प्रौद्योगिकी
- चिकित्सा जैव प्रौद्योगिकी
- जैव संसाधन व पर्यावरण जैव प्रौद्योगिकी
- समुद्री जैव प्रौद्योगिकी
- जैव सूचना विज्ञान जैव प्रौद्योगिकी
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में जैव प्रौद्योगिकी के विकास पर लेख लिखिए।
उत्तर
हमारे देश में राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों द्वारा जैव प्रौद्योगिकी के विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया जा रहा है। अनेक विश्वविद्यालयों में भी जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण अनुसंधान कार्य हो रहे हैं। जैव प्रौद्योगिकी एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें भविष्य की अनेक सम्भावनाएँ अन्तर्निहित हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए तथा जैव प्रौद्योगिकी के व्यापक महत्त्व को देखते हुए भारत सरकार द्वारा वर्ष 1962 में सर्वप्रथम राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी बोर्ड की स्थापना की गयी। इस बोर्ड की स्थापना का उद्देश्य जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देना था। प्रारम्भ में इस बोर्ड को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन रखा गया।
जैव प्रौद्योगिकी के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार द्वारा 1986 में स्वतन्त्र रूप से जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology, DBT) की स्थापना हुयी।
इस विभाग द्वारा जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधानरत राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों, विश्वविद्यालयों में आधारभूत सुविधाओं का विकास, विशेष अनुसंधान केन्द्रों की स्थापना तथा स्थापित केन्द्रों के विकास एवं अनुसंधान हेतु अनुदान दिया जाता है। भारतवर्ष में जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में स्थापित विशेष केन्द्र अग्रलिखित हैं –
- भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science), बंगलुरू-आनुवंशिकी अभियांत्रिकी
- मदुरई कामराज विश्वविद्यालय, मदुरई
- बोस संस्थान, कोलकाता
- जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
- दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
- पूना विश्वविद्यालय पूना (जन्तु कोशिका संवर्धन एवं विषाणु विज्ञान)
- राष्ट्रीय रसायन प्रयोगशाला (National Chemical Laboratory, Pune) पुणे (पादप ऊतक संवर्धन)
- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली (पादप ऊतक संवर्धन, प्रकाश संश्लेषण, पादप अणु जीव विज्ञान व कृषि सूचना विज्ञान)
- कोशिका व आण्विक जीवविज्ञान केन्द्र, हैदराबाद-ओन्कोजीन, कोशिका रूपान्तरण, न्यूक्लिक अम्ल व प्रोटीन संरचना।)
- राष्ट्रीय रोधक्षमता विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली-रोधक्षमता सम्बन्धित शोध कार्य।
- सूक्ष्म जैव प्रौद्योगिकी संस्थान–एन्जाइम अभियांत्रिकी जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा विभिन्न संस्थानों व विश्वविद्यालयों में ग्यारह वितरण सूचना केन्द्रों व पचास उप वितरण सूचना केन्द्रों की स्थापना की गयी है।
जिनका मुख्य उद्देश्य विज्ञान के क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्थाओं, समूहों व वैज्ञानिकों को सहायता प्रदान करना है।
भारतवर्ष में जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा जननद्रव्य संरक्षण एवं संग्रहण हेतु अनेक योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है। जो निम्न हैं –
- राष्ट्रीय पादप आनुवंशिकी सम्पदा ब्यूरो (NBPGR; National Bureau of Plant Genetic Resources)
- नई दिल्ली में क्लोनीय फसलों के जनन द्रव्य संरक्षण हेतु राष्ट्रीय पादप ऊतक संवर्धन आधान सुविधा (National Facility for Plant Tissue Culture Repository)
- औषधीय व ऐरोमेटिक पादपों के जननद्रव्य संरक्षण हेतु केन्द्रीय औषधीय एवं ऐरोमेटिक पादप संस्थान (CIMAP; Central Insitute of Medicinal and Aromatic Plants) लखनऊ
- उष्णकटिबंधीय वानस्पतिक उद्यान एवं अनुसंधान संस्थान
- (TBGRI ; Tropical Botanical Gradens and Research Institute)
- त्रिवेन्द्रम व राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संपदा ब्यूरो, नई दिल्ली में जीन बैंकों की स्थापना की गई है।
इन केन्द्रों पर बीज व प्रक्षेत्र (Field) बैंकों के अतिरिक्त पादप ऊतक संवर्धनों के आधान (Repository) व निम्नताप परिरक्षण की सुविधाएँ भी अपेक्षित हैं। जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा अनुदानित, दृढ़ीकृत व स्थापित विश्वविद्यालयों, केन्द्रों व संस्थानों द्वारा आधारभूत शोध, मेडिकल जैवप्रौद्योगिकी, भोजन एवं पोषण, जैव ऊर्जा, जैव संसाधन व पर्यावरण, जल जैव प्रौद्योगिकी, एक्वाकल्चर व समुद्र-जैव प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में शोधकार्य किए जा रहे हैं।
जैव प्रौद्योगिकी के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए थिरूवनन्तपुरम्, केरल में राजीव गाँधी जैव प्रौद्योगिकी केन्द्र तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के औद्योगिक विकास संगठन (UNIDO) द्वारा 1983 में नई दिल्ली में अन्तर्राष्ट्रीय आनुवंशिकी अभियांत्रिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी केन्द्र की स्थापना की गयी है।
प्रश्न 2.
जैव प्रौद्योगिकी के विभिन्न अनुप्रयोग अर्थात युक्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
जैव प्रौद्योगिकी की युक्तियाँ (Techniques of Biotechnology) : जैव प्रौद्योगिकी के विभिन्न अनुप्रयोग अर्थात युक्तियाँ निम्नलिखित हैं –
- पादप ऊतक संवर्धन (Plant Tissue Culture)
- जन्तु ऊतक संवर्धन (Animal Tissue Culture)
- पादप आनुवंशिक अभियांत्रिकी (Plant Genetic Engineering)
- जन्तु आनुवंशिक अभियांत्रिकी (Animal Genetic Engineering)
- एकलक्लोनी प्रतिरक्षी उत्पादन (Production of Monoclonal Antibody)
- पुनर्योगज डी०एन०ए० तकनीक (Recombinant DNA Technology)
- जन्तुओं में भ्रूण हस्तान्तरण (Embryo transfer in animals)
- डी०एन०ए० नेनोटेक्नोलॉजी (DNA Nanotechnology)
उपर्युक्त युक्तियों के अतिरिक्त जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग निम्नलिखित क्षेत्रों में भी किया जा रहा है :
वर्तमान समय में जैव प्रौद्योगिकी को परम्परागत जैव प्रौद्योगिकी (Traditional biotechnology) तथा आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी (Modern biotechnology) नामक दो भागों में वर्गीकृत किया गया है। जैविक नियन्त्रण (Biological control) तथा खाद्य पदार्थ किण्वन से सम्बन्धित जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में परम्परागत जैव प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत आते हैं, जबकि पुनर्योगज डी०एन०ए० (Recombinant DNA), एकलक्लोनी प्रतिरक्षी (Monoclonal antibodies) तकनीक, आनुवंशिकी अभियान्त्रिकी से सम्बन्धित क्षेत्रों का अध्ययन आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के अंग माने जाते हैं। ये तकनीकें जटिल एवं अपेक्षाकृत अधिक खर्चीली हैं। आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत आने वाली प्रमुख तकनीकें निम्नलिखित हैं –
जैव संवेदक (Biosensor)
जैव संवेदक जैव व्युत्पन्न पदार्थ हैं, (जैसे ऊतक, सूक्ष्मजीव, कोशिकांग, कोशिका ग्राही, एन्जाइम, प्रतिरक्षी, न्यूक्लिक अम्ल आदि) जो विश्लेष्यों से अन्योन्य क्रिया करते हैं। अर्थात जैव संवेदक एक प्रकार से जैविक पदार्थों का सम्मिश्रण है जो रासायनिक एवं घ्राण संवेदनाओं को वैद्युत संकेतों में परिवर्तित कर देते हैं। रासायनिक एवं घ्राण संवेदनाओं का वैद्युत संकेतों में परिवर्तन ट्रान्सड्यूसर के माध्यम से होता है। रक्त ग्लूकोज जैव संवेदक, एक व्यावसायिक जैव संवेदक का सामान्य उदाहरण है जो ग्लूकोज ऑक्सिडेज एन्जाइम के द्वारा रक्त ग्लूकोज को अपघटित करता है।
जैव संवेदकों के अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं :
- मधुमेह रोगियों में ग्लूकोज मानीटरिंग व अन्य चिकित्सकीय उपयोग।
- पर्यावरण के क्षेत्र में अनुप्रयोग, जैसे- पेस्टिसाइड्स व नदी के जल में प्रदूषकों का पता लगाने में।
- वायुजनित जीवाणुओं के सुदूर संवेदन (Remote sensing) में जैव आतंकवाद गतिविधियों को रोकने में।
- प्रोटीन अभियान्त्रिकी के क्षेत्र में।
- रोग कारकों की पहचान में।
जैविक चिप्स (Biochips)
इन्हें डी०एन०ए० (DNA) चिप अथवा डी०एन०ए० सूक्ष्म व्यूह (DNA Microarray) के नाम से भी जाना जाता है। जैविक चिप्स एक प्रकार का सूक्ष्म डी०एन०ए० अणुओं का संग्रह है जो ठोस सतह से जुड़ा रहता है तथा इस तकनीक का उपयोग वैज्ञानिकों द्वारा एक साथ एक ही समय में अनेक जीनों की अभिव्यक्ति के स्तरों के मापन में किया जाता है।
स्टीफन पी०ए० फोडोर एवं साथियों ने 1991 पहली डी.एन.ए जीन चिप को विकसित किया था। बायोचिप्स में प्रयुक्त अवस्तर सिलिको संयुग्मित क्वार्ज, सोडा ग्लास व प्लास्टिक आदि के बने होते हैं। जिनका चयन प्रायोगिक आवश्यकताओं के अनुसार इनकी रासायनिक संरचना व भौतिक गुणों के आधार पर किया जाता है।
जीन चिप (Gene chips)
यह एक प्रकार की सूक्ष्म चिप है जिस पर द्विकुण्डलित DNA का आधा हिस्सा बनाने वाले अन्वेषी डी.एन.ए. के बिन्दु चिपके रहते हैं जो परीक्षण हेतु प्रयुक्त नमूनों की पहचान करने में सक्षम होते हैं। इन युक्तियों के माध्यम से जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न उपयोगी कार्य किए जा रहे हैं।
प्रश्न 3.
भारत में जैव प्रौद्योगिकी संस्थान एवं उनके कार्यों पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर
जैव प्रौद्योगिकी के महत्व को भारत सरकार द्वारा बहुत पहले ही समझ लिया गया था। यही कारण था कि भारत में जैव प्रौद्योगिकी के विकास हेतु सर्वप्रथम 1982 में राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी बोर्ड की स्थापना की गयी। राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी बोर्ड का प्रमुख कार्य भारत में जैव प्रौद्योगिकी के विकास में योगदान देना था। प्रारम्भ में बोर्ड को विज्ञान एवं तकनीकी विभाग के अधीन रखा गया था। पुनः 4 वर्ष पश्चात् वर्ष 1986 में जैव प्रौद्योगिकी के महत्त्व को स्वीकार करते हुए भारत सरकार द्वारा जैव प्रौद्योगिकी विभाग की स्थापना स्वतन्त्र इकाई के रूप में की गयी। जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा (Department of biotechnology) द्वारा जैव प्रौद्योगिकी विकास में अनेक उल्लेखनीय कार्य किए गए। जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के अनुसंधान संस्थानों का विकास किया गया। इसके अलावा अनेक विश्वविद्यालयों में जैव प्रौद्योगिकी के विकास एवं अनुसंधान हेतु अनुदान प्रदान किया गया इसके पश्चात् भारत में जैव प्रौद्योगिकी के विकास हेतु अनेक संस्थानों की स्थापना की गयी जिनका विवरण निम्नलिखित है –
- वास संस्थान कोलकाता
- दिल्ली विश्वविद्यालय नई दिल्ली
- मदुरई कामरान विश्वविद्यालय, मदुरई
- भारतीय विज्ञान कान, बंगलुरू
- पूना विश्वविद्य. पुना राष्ट्रीय रसायन प्रयोगशाला, पुणे।
- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली
- सूक्ष्म जैव प्रौद्योगिकी संस्थान।
भारतीय विज्ञान संस्थान बंगलुरू में आनुवंशिक अभियान्त्रिकी पर शोध कार्य कराया जाता है। पूना विश्वविद्यालय पूना द्वारा जन्तु कोशिका संवर्धन एवं विषाणु विज्ञान से सम्बन्धित शोधकार्य कराया जा रहा है। पादप ऊतक पंवर्धन पर कार्य राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, पुणे में चल रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली में पादप ऊतक संवर्धन, प्रकाश संश्लेषण, पादप अणु जीव-विज्ञान व कृषि सूचना विज्ञान पर कार्य चल रहा है। कोशिका व आण्विक जीवविज्ञान केन्द्र हैदराबाद में ओंकोलॉजी कोशिका रूपान्तरण, न्यूक्लिक अम्ल व प्रोटीन संरचना पर कार्य चल रहा है। राष्ट्रीय रोधक्षमता विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा रोध क्षमता सम्बन्धित शोधकार्य चल रहे हैं।
भारत में जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा जनन द्रव्य संग्रहण, संरक्षण हेतु अनेक योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है। यह कार्य पादप आनुवंशिकी संपदा ब्यूरो द्वारा किया जा रहा है। क्लोनीय फसलों के जनन द्रव्य संरक्षण हेतु राष्ट्रीय पादप ऊतक संवर्धन आधान सुविधा द्वारा प्रयास किए जाते हैं। केन्द्रीय औषधीय एवं ऐरोमैटिक पादप संस्थान में जीन बैंकों की स्थापना की गयी है।
उपर्युक्त संस्थाएँ जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनेक उल्लेखनीय कार्य कर रही हैं। इन संस्थाओं द्वारा किए गए शोध कार्य निश्चित ही भविष्य में जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नवीन आयाम स्थापित करेंगे।
प्रश्न 4.
जैव प्रौद्योगिकी के विभिन्न कार्यक्षेत्र एवं उनके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर
जैव प्रौद्योगिकी के कार्यक्षेत्र एवं महत्त्व (Scope and Importance of Biotechnology)
मानव जीवन के अनेक क्षेत्र अन्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से जैव द्योगिकी द्वारा प्रभावित है। जैव प्रोटोगिकी का कार्यक्षेत्र सूक्ष्मजीवों में लेकर पर्यावरण व मानवकल्याण तक विस्तृत है। मानव कल्याण व पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित जैव प्रौद्योगिकी के कुछ महत्वपूर्ण कार्यक्षेत्र निम्नानुसार हैं –
1. चिकित्सा के क्षेत्र में – वर्तमान युग में जैव प्रौद्योगिकी का । उपयोग चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत महत्त्वपूर्ण है। चिकित्सा के क्षेत्र में किए गए प्रयासों व अनुप्रयोगों को निम्न सारणी में प्रस्तुत किया गया है –
सारणी
क्र.सं. | उत्पादन | महत्त्व |
1. | आनुवंशिकी अभियांत्रिकी द्वारा रूपान्तरित जीवाणुओं से प्राप्त बहुमूल्य औषधियाँ जैसे ह्यूम्युलिन, मानव वृद्धि हॉर्मोन आदि। | औषधियों की सर्व सुलभता से सम्बन्धित रोगों का उपचार। |
2. | आनुवंशिक अभियान्त्रिक जीवाणुओं से प्राप्त टीके। | सामान्य टीकों की तुलना में अधिक सुरक्षित व सस्ते |
3. | आनुवंशिक रूपान्तरित जीवाणुओं द्वारा DNA अन्वेषी का उत्पादन। | रोग निदान में |
4. | हाइब्रिडोमा तकनीक द्वारा एकक्लोनी प्रतिरक्षियों का उत्पादन। | प्रतिरक्षा तंत्र को प्रभावी बनाना। |
5. | जीन उपचार की तकनीकें | आनुवंशिक रोगों के उपचार में |
6. | खाद्य टीकों का विकास | रोगों में रक्षा। |
2. कृषि क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी – जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान द्वारा पौधों की नई प्रजातियाँ तैयार करके पौधों की पोषण क्षमता और उत्पादन में वृद्धि की गयी है। कृषि क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी की उपलब्धियाँ निम्न हैं –
- रोग प्रतिरोधक प्रजातियों का उत्पादन एवं विकास
- कीट, कवक, प्रतिरोधक प्रजातियों का उत्पादन एवं विकास
- वातावरणीय परिस्थितियों जैसे-सूखा, मृदा अवस्था के लिए प्रतिरोधक प्रजातियों का विकास
- पौधों की पोषण क्षमता में वृद्धि
- परागकोश संवर्धन द्वारा अगुणित पौधे तैयार करना
- पौधों में और मृदा में नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्रिया को बढ़ाना।
- जैव उर्वरकों की खोज
- पौधों से प्राप्त रासायनिक उत्पादों को बढ़ाना
3. पादप जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में – जैव प्रौद्योगिकी तकनीक की । सहायता से पादपों के गुणन, संरक्षण, फसल सुधार तथा वांछित उपापचयों के उत्पादन हेतु अनेकों विधियाँ विकसित की गयी हैं जिनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण विधियाँ व उनके उपयोग निम्नलिखित सारणी में दर्शाये गए हैं।
सारणी
क्र.सं | विधि | उपयोग |
1. | सूक्ष्म प्रवर्धन | वांछित पादप के क्लोन विकसित करने, दुर्लभ पादप जातियों का संरक्षण करने व व्यावसायिक महत्त्व के पौधों का वृहत् स्तर पर गुणन करने हेतु। |
2. | कायिक भ्रूण उत्पादन | दुर्लभ पादप जातियों का संरक्षण करने में |
3. | कायिक क्लोनीय | द्वितीयक उपापचयजों के उत्पादन हेतु। |
4. | अगुणित पादप संवर्धन | फसल सुधार हेतु शुद्ध वंशक्रम विकसित करना। |
5. | प्ररोह शीर्ष संवर्धन | रोग मुक्त पादप विकसित करना। |
6. | कृत्रिम बीज उत्पादन करना। | कायिक भ्रूणों के सम्पुटिकरण हेतु। |
4. जन्तु जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में – रोजलिन संस्थान, स्कॉटलैण्ड के वैज्ञानिक इआन विल्मुट (lan wilmut) को एक छः वर्ष आयु की फिन्न डोरगेट भेड़ की स्तन कोशिका से पृथक केन्द्रक का स्कॉटिस ब्लेक फेस भेड़ की अण्ड कोशिका (केन्द्रक रहित) से संयुग्मन द्वारा 5 जुलाई 1996 में स्तनधारी के प्रथम क्लोन विकसित करने में सफलता प्राप्त हुयी। विल्मुट द्वारा समाचार माध्यमों में इसकी घोषण 22 फरवरी 1997 में की गई थी तथा भेड़ के इस क्लोन का नाम डॉली रखा गया था। ईआन विल्मुट की इस सफलता ने जन्तु क्लोनिग के क्षेत्र में अनेकों नई संभावनाओं को खोल दिया। अब तक लगभग 20 से अधिक जन्तु जातियों के वांछित लक्षणों वाले उपयोगी जन्तुओं के क्लोन विकसित करने में वैज्ञानिकों को सफलता प्राप्त हो चुकी है।
5. व्यावसायिक महत्त्व की सामग्री के उत्पादन में – ऊतक संवर्धन तकनीक द्वारा अनेक प्रकार के व्यावसायिक रूप से महत्त्वपूर्ण पदार्थों जैसे-ऐल्कोहल, ऐसीटोन, ग्लिसरॉल, विभिन्न प्रकार के कार्बनिक अम्लों, विटामिन्स, एन्जाइम्स, एकल कोशिका संवर्धन द्वारा प्रतिजैविक, बायोगैस आदि का उत्पादन किया जाता है। कोशिका संवर्धन की बायोरूपान्तरण तकनीक द्वारा कम उपयोगी उत्पादों को अधिक उपयोगी उत्पादों में परिवर्तित किया जा सकता है।
6. पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में – जीवाणुओं के चुने हुए व रूपान्तरित प्रभेदों का उपयोग वाहितमल (Sewage) उपचार, औद्योगिक ईकाइयों के बहिस्रावों में उपस्थित विषैले (Toxic) पदार्थों के निराविषन (Detoxification), खनिज तेलों के विघटन आदि के लिये किया जाता है। आनन्द मोहन चक्रवर्ती द्वारा खोजा गया स्यूडोमोनास प्यूटिडा का प्रभेद, जिसे सुपर बग कहते हैं, के द्वारा तीन चौथायी तेल-प्रदूषण का नियन्त्रण सम्भव है।
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
जैव प्रौद्योगिकी से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर
जैव प्रौद्योगिकी में उन तकनीकों का वर्णन मिलता है जिसमें जीवधारियों या उनसे प्राप्त एन्जाइम्स का प्रयोग करते हुए मनुष्य के लिए उपयोगी उत्पाद या प्रक्रमों का विकास किया जाता है।
प्रश्न 2.
क्लोनिंग (Cloning) से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर
एक विजातीय डी०एन०ए० प्रतिकृति के मूल (Origin of replication) से जुड़ जाता है, ताकि डी०एन०ए० का विजातीय खण्ड परपोषी जीव में स्वयं प्रतिकृति व गुणित हो सके। इसे क्लोनिंग (Cloning) या किसी टेम्पलेट डी०एन०ए० की समान गुणित संरचना का निर्माण कहते हैं।
प्रश्न 3.
जैव प्रौद्योगिकी के तीन विवेचनात्मक अनुसंधान क्षेत्रों के नाम बताइए।
उत्तर
- उत्प्रेरक के कार्य हेतु अभियांत्रिकी द्वारा सर्वोत्तम परिस्थितियों का निर्माण करना।
- उन्नत जीवों के रूप में सर्वोत्तम उत्प्रेरक का निर्माण करना।
- अनुप्रवाह प्रक्रमण तकनीक का प्रोटीन (कार्बनिक यौगिकों) के शुद्धीकरण में उपयोग करना।
प्रश्न 4.
जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग वर्तमान में किन-किन क्षेत्रों में किया जा रहा है?
उत्तर
वर्तमान में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग चिकित्सा विज्ञान, कृषि में आनुवंशिकत: रूपान्तरित फसलें, संसाधित खाद्य, जैव सुधार, अपशिष्ट प्रतिपादन (disposal of waste) व ऊर्जा उत्पादन में किया जा रहा है।
प्रश्न 5.
कृषि में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग करके खाद्य उत्पादन में वृद्धि के लिए हम कौन-सी तीन सम्भावनाओं के बारे में सोच सकते हैं ?
उत्तर
- आनुवंशिकतः निर्मित फसल आधारित कृषि ;
- कृषि रसायन आधारित कृषि ;
- कार्बनिक कृषि।
प्रश्न 6.
स्टेम कोशिका क्या है ?
उत्तर
स्टेम कोशिकाएँ विशिष्ट प्रकार की कोशिकाएँ हैं जो बार-बारविभाजित होकर नई स्टेम कोशिकाओं तथा ऐसी वंशज कोशिकाएँ बनाती हैं जो विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं में विकसित होने की क्षमता रखती हैं जैसे-जन्तु की भ्रूणीय कोशिकाएँ।
प्रश्न 7.
पहला पुनर्योगज मानव इन्सुलिन किस कम्पनी द्वारा बनाया गया?
उत्तर-
अमेरिका की एली लिली (Eli Lily) कम्पनी द्वारा।
प्रश्न 8.
कौन-सी आण्विक जाँच एन्टीजन एंटीबाडी पारस्परिक क्रिया पर आधारित है?
उत्तर
एलिसा (ELISA)
प्रश्न 9.
आनुवंशिकत: रूपान्तरित जीव (जन्तु) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
ऐसे पौधे, जीवाणु, कवक व जन्तु जिनके जीन्स जैव प्रौद्योगिकी द्वारा परिवर्तित किए जा चुके हैं, आनुवंशिकत: रूपान्तरित जीव (जी०एम०ओ०) कहलाते हैं। पारजीनी प्राणी जैसे- भेड़, सूअर, चूहे, गाय आदि में बाह्य जीन का स्थानान्तरण किया जा चुका है।
प्रश्न 10.
ट्रांसजेनिक टमाटर की क्या विशेषता है ?
उत्तर
यह टमाटर संचयन के समय जल्दी नहीं पकता। सर्वप्रथम फ्लेवर सेवर (Flavour Saver) टमाटरों का उत्पादन सन् 1995 में अमेरिका में हुआ। इनमें उत्पादन भी अधिक होता है।
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अमेरिकी कम्पनी एली लिली ने DNA प्रौद्योगिकी की जानकारी को मानव इंसुलिन उत्पादन में किस प्रकार प्रयुक्त किया ?
उत्तर
अमेरिकी एली लिली कम्पनी ने सन् 1983 में इंसुलिन की A व B श्रृंखलाओं को कोड करने वाले डी०एन०ए० खण्ड तैयार किए तथा इनको जीवाणु ईश्चेरिचिया कोलाई (E. coli) के प्लाज्मिड में प्रविष्ट करा दिया। इस प्रकार जीवाणु द्वारा A व B श्रृंखलाओं का अलग-अलग उत्पादन हुआ।
इनको प्राप्त कर बाद में डाईसल्फाइड (disulfide) बंधों द्वारा जोड़कर सक्रिय इंसुलिन प्राप्त कर ली गई।
प्रश्न 2.
आनुवंशिक रूप से रूपान्तरित पादपों के किन्हीं तीन सम्भावित अनुप्रयोगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
- पौधों में पीड़क प्रतिरोधकता (Pest resistance) का विकास जिसमें रासायनिक पीड़कनाशियों पर निर्भरता में कमी आती है, जैसे- बीटी कपास।
- बेहतर गुणवत्ता, बढ़ा पोषक मान जैसे विटामिन A समृद्ध चावल।
- फसल कटाई के बाद ही हानि में कमी जैसे अधिक शैल्फ अवधि वाले टमाटर।
प्रश्न 3.
जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग अपने देश की किन-किन समस्याओं के समाधान हेतु किया जा सकता है ? पाँच क्षेत्र बताइए।
उत्तर
भारतवर्ष में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग देश की निम्नलिखित ज्वलन्त समस्याओं के समाधान हेतु किया जाना चाहिए –
- अधिक फसल उत्पादन और रोग प्रतिरोधक प्रजातियाँ।
- जैविक उर्वरक, जैविक कीटनाशी।
- कृषि आधारित उद्योगों के विकास के तरीके।
- ऊतक संवर्धन
- देश में फैली सामान्य बीमारियों के सस्ते और सुरक्षित टीके आदि।।
प्रश्न 4.
“जैव प्रौद्योगिकी के गलत उपयोग से बचाव” पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर
आधुनिक युग में वैज्ञानिक जीन अभियान्त्रिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी के द्वारा हरित क्रान्ति से जीन क्रान्ति की ओर अग्रसर हो रहे हैं। अनेक प्रकर के ट्रांसजेनिक प्राणी और पादप उत्पन्न कर लिए गए हैं। बीज, भ्रूण, शुक्राणु, अण्डाणुओं आदि को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने के तरीके ज्ञात किए जा चुके हैं। वह दिन दूर नहीं है। जब किसान पूर्ण रूप से आनुवंशिकीय अभियान्त्रिक बीजों पर निर्भर हो जाएगा। लेकिन विचारणीय बिन्दु यह है कि क्या इस प्रकार के बीजों से हमारे कृषि उत्पाद रासायनिक विषों से सुरक्षित रह पाएँगे। क्या आनुवंशिकीय अभियान्त्रिक जीवों (Genetically engineered organisms) से पर्यावरण को कोई खतरा नहीं है। क्या इस प्रकार के जीवों से सामाजिक आचार संहिता तो प्रभावित नहीं होगी। वैज्ञानिकों को आनुवंशिकीय जीवों एवं उनके उत्पादों के सुप्रभाव और कुप्रभावों की जानकारी देनी चाहिए। ब्रिटेन, अमेरिका जहाँ इन पर अधिक अनुसन्धान हो रहे हैं, वहीं समाज के अनेक संगठन इनका विरोध भी कर रहे हैं, क्योंकि यह स्पष्ट नहीं है कि ये किस प्रकार हमारे पर्यावरण को प्रभावित करेंगे।
प्रश्न 5.
‘स्वास्थ्य की देखभाल में जैव प्रौद्योगिकी की उपयोगिता पर टिप्पणी लिखिए।
अथवा
मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी की उपयोगिता के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर
लक्षणों के आधार पर रोग निदान एवं रोगों के उपचार में जैव प्रौद्योगिकी का विशेष योगदान प्राप्त हो रहा है जिससे हम सामाजिक स्वास्थ्य को बनाए रख सकते हैं; जैसे –
- टीका उत्पादन (Production of vaccines)
- स्टेरॉयड हॉमोंन उत्पादन (Production of steroid hormone)
- गर्भावस्था में रोग की जानकारी (Diagnosis of disceases during pregnancy)
- जीन अदला-बदली द्वारा चिकित्सा (Gene therapy)
- फिनाइल कीटोन्यूरिया (Phenyl ketonuria), बीटा-थैलेसीमिया (β-Thalcemia), सिकल सेल एनीमिया (Sickle celled anaemia), एड्स (AIDS) आदि रोगों को पहचानने में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है।
प्रश्न 6.
कृषि क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी की उपयोगिता लिखिए।
उत्तर
कृषि क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology in griculture) जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान द्वारा पौधों की नई प्रजातियाँ तैयार करके पौधों की पोषक क्षमता और उत्पादन में वृद्धि की गई है। कृषि क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी की कुछ उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं –
- रोग प्रतिरोधक प्रजातियों का उत्पादन।
- पौधों की पोषण क्षमता में वृद्धि।
- कीट, कवक प्रतिरोधक प्रजातियों का उत्पादन।
- वातावरणीय परिस्थितियों जैसे- सूखा, मृदा अवस्था के लिए प्रतिरोधक प्रजातियों का विकास।
- पौधों में और मृदा में नाइट्रोजन स्थिरीकरण क्रिया को बढ़ाना।
- पौधों से प्राप्त रासायनिक उत्पादों को बढ़ाना आदि।
- जैव उर्वरकों (Biofertilizers) की खोज।
- परागकोश संवर्धन द्वारा अंगुणित पौधे तैयार करना।
प्रश्न 7.
मधुमेह रोगियों को यदि असंसाधित प्राक इंसुलिन दिया जाय। तो क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर
असंसाधित प्राक इंसुलिन एक असक्रिय अणु होता है। इसमें परिपक्वन होने पर C पेप्टाइड हट जाता है जिससे यह सक्रिय हो जाता है। मधुमेह रोगी को प्राक इंसुलिन देने पर रोगी के रक्त में शर्करा का स्तर कम नहीं होगा अर्थात् प्राक इंसुलिन निष्प्रभावी रहेगा।