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RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 26 मानव का तंत्रिका तंत्र

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 26 मानव का तंत्रिका तंत्र

Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Chapter 26 मानव का तंत्रिका तंत्र

RBSE Class 12 Biology Chapter 26 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर

RBSE Class 12 Biology Chapter 26 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तन्त्रिका तन्त्र इकाई क्या होती है?
(अ) नेफ्रॉन
(ब) न्यूरॉन
(स) मस्तिष्क
(द) स्पाइनल कोर्ड
उत्तर:
(ब) न्यूरॉन

प्रश्न 2.
मनुष्य के मस्तिष्क में ताप नियन्त्रक केन्द्र होता है-
(अ) पीयूष ग्रन्थि
(ब) डाइऐनसेफलॉन
(स) हाइपोथैलेमस
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) हाइपोथैलेमस

 

प्रश्न 3.
परानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र का एक कार्य है-
(अ) नेत्रों की पुतली का फैलना
(ब) यकृत में शर्करा का स्राव
(स) हृदय की धड़कन को तेज करना
(द) लार स्रावण का उत्तेजन
उत्तर:
(द) लार स्रावण का उत्तेजन

प्रश्न 4.
प्रतिबन्धित प्रतिवर्ती पर कार्य करने वाले वैज्ञानिक हैं-
(अ) मेण्डल
(ब) पावलोव
(स) डार्विन
(द) इयान विल्मट
उत्तर:
(ब) पावलोव

प्रश्न 5.
कपाल तन्त्रिकाओं की संख्या मनुष्य में होती है-
(अ) 10 जोड़ी
(ब) 10
(स) 12 जोड़ी
(द) 12
उत्तर:
(स) 12 जोड़ी

RBSE Class 12 Biology Chapter 26 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मस्तिष्क की गुहायें क्या कहलाती हैं?
उत्तर:

  • सबड्यूरल गुहा (Subdural cavity)
  • सब ऐरेक्नॉइड गुहा (Sub arachnoid cavity)।

प्रश्न 2.
कपाल तन्त्रिकाओं की संख्या स्तनधारियों में कितनी होती है?
उत्तर:
स्तनधारियों में 12 जोड़ी कपाल तन्त्रिकाएँ पायी जाती हैं।

प्रश्न 3.
सबसे लम्बी कोशिका कौन-सी होती है?
उत्तर:
तन्त्रिका कोशिका या न्यूरॉन (Nerve Cell or Neuron)।

RBSE Class 12 Biology Chapter 26 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र के दो भाग कौन-से होते हैं?
उत्तर:
स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र के दो भाग निम्न हैं-

  • अनुकंपी तन्त्रिका तन्त्र (Sympathatic Nervous System)
  • परानुकंपी तन्त्रिका तन्त्र (Parasympathatic Nervous System) ।

 

प्रश्न 2.
परिधीय तन्त्रिका तन्त्र को यह नाम क्यों दिया जाता है?
उत्तर:
परिधीय तन्त्रिका तन्त्र के अन्तर्गत मस्तिष्क से निकलने वाली कपालीय तन्त्रिकाएँ (Cranial Nerves) तथा मेरुरज्जु से निकलने वाली मेरुरज्जु तन्त्रिकाएँ (Spinal Nerves) आती हैं, जो शरीर के परिधीय भागों में व्यवस्थित रहती हैं। इसलिए इस तन्त्र को परिधीय तन्त्रिका तन्त्र (Peripheral Nervous System) कहते हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से प्रत्येक का एक कार्य बताइए-

  • प्रमस्तिष्क
  • अनुमस्तिष्क
  • मेडुला ओब्लोंटा
  • हाइपोथैलेमस।

उत्तर:

  • प्रमस्तिष्क (Cerebrum)-बुद्धिमत्ता, स्मरण शक्ति, अनुभव, चेतना, वाणी आदि उच्चतम क्रियाओं का नियन्त्रण।
  • अनुमस्तिष्क (Cerebellum)-ऐच्छिक पेशियों पर नियन्त्रण।
  • मेड्यूला ओब्लोंगेटा (Medula Oblongata)-अनैच्छिक क्रियाओं का नियन्त्रण ।
  • हाइपोथैलेमस (Hypothalammus)-शरीर में समस्थापन (Homeostasis) बनाए रखता है।

प्रश्न 4.
मस्तिष्क के मुख्य भाग के नाम बताइए।
उत्तर:
मस्तिष्क के मुख्य भाग-

  • अग्रमस्तिष्क-
    • प्रयस्तिष्क
    • अग्रमस्तिष्क पश्च
  • मध्य मस्तिष्क-
    • पिण्ड चतुष्टि
    • प्रमस्तक वृन्तक
  • पश्च मस्तिष्क-
    • अनुमस्तिष्क
    • पोन्स वेरोलाई
    • मेड्यूला ओग्लोंगेटा।

 

प्रश्न 5.
मस्तिष्क की गुहाओं में भरे तरल का नाम बताइए।
उत्तर:
सेरिब्रोस्पाइनल द्रव (Cerebrospinal Fluid)

RBSE Class 12 Biology Chapter 26 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मेरुरज्जु की अनुप्रस्थ काट का और उससे सम्बन्धित सरल प्रतिवर्ती के तन्त्रिकीय परिपथ का नामांकित चित्र बनाते हुए समझाइए।
उत्तर:
प्रतिवर्ती क्रिया की क्रियाविधि (Mechanism of Reflex Action)
मेरुरज्जु के तन्तु तथा आधार मूल के चालक तन्तु (Motor fibre) इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका का निवर्हन करते हैं। जैसे त्वचा पर पिन चुभाने पर इसमें उपस्थित संवेदनाओं को उत्तेजित करता है। ये संवेदना को सम्बन्धित सम्वेदी तन्तुओं के डेण्ड्राइट्स (Dendrites) में प्रसारित कर देते हैं जहाँ से ये तन्तु संवेदी आवेग को पास की मेरुरज्जु तन्त्रिका के मूल के पृष्ठ गॅग्लिया में उपस्थित तन्त्रिका कोशाओं में ले जाते हैं। इन कोशिकाओं में एक्सॉन (Axon) की अन्तिम नोड अर्थात् साइनेप्टिक घुण्डियों से ये आवेग निकट की चालक तन्त्रिकाओं के डेण्ड्राइट्स में जाती है। यहाँ संवेदी प्रेरणा चालक आवेग बन जाती है। चालक कोशिकाओं के एक्सॉन (Axon) अधर मूल के तन्तु होते हैं। वे इस आवेश को पादों तक ले जाते हैं। अब पेशियाँ सिकुड़ती हैं तथा पादों को गति प्रदान करती हैं।

ये प्रतिक्रियाएँ अत्यधिक तीव्र गति से होती हैं। संवेदी अंगों से चलकर मोटर (चालक) से होता हुआ, आवेश पंथ तक का भाग प्रतिवर्ती चाप (Reflex arch) कहलाता है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में भाग लेने वाली तन्त्रिकाओं (संवेदी एवं प्रेरक, चालक) को एवं उनके द्वारा दी गयी प्रतिक्रिया को प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex action) कहते हैं।

प्रतिवर्ती चाप (Reflex Arch)-प्रतिवर्ती क्रिया के समय आवेग द्वारा तय किया गया पथ या मार्ग जिसे तन्त्रिका कोशिका बनाती है। प्रतिवर्ती चाप (Reflex arch) कहते हैं। इस मार्ग के प्रमुख अंग निम्नवत् हैं-

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(a) संवेदी अंग (Sensory organs)-ये जन्तु शरीर पर स्थित ग्राही संरचनाएँ होती हैं, जो बाह्य अथवा आन्तरिक वातावरण से उद्दीपन प्राप्त कर उद्दीपित हो जाती हैं। इसमें पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ आँख, नाक, कान, त्वचा तथा जीभ है।
(b) संवेदी कोशिका (Sensory cell)-इसमें मेरुरज्जु संवेदी अंगों से लाने वाले उद्दीपन होते हैं, जो संवेदी कोशिकाओं द्वारा आते हैं।
(c) मेरुरज्जु का तन्त्रिका केन्द्र (क्रियाएँ होने का केन्द्र)
(d) चालक तन्त्रिका (Motor nerve)-आवेग को लाने ले जाने का कार्य करती हैं।
(e) प्रभावी अंग (Effective organs)-ये अंग चालक तन्त्रिका द्वारा प्राप्त हुए आवेगों के अनुसार अनुक्रिया सम्पन्न करते हैं। ये प्रायः पेशी (Muscle) या ग्रन्थि (Gland) होते हैं।

उदाहरण-प्रतिवर्ती क्रियाओं के अनेक उदाहरण हैं। जैसे हम अपना हाथ उबलते पानी में डालते हैं, तो बिना यह जाने कि यह गर्म है हाथ शीघ्रता से हट जाता है। यह बाद में मालूम होता है कि पानी गर्म था। इस क्रिया में दर्द की संवेदनाएँ त्वचा में उपस्थित कई संवेदांगों द्वारा ग्रहण की जाती हैं। जो कि पृष्ठ संवेदी मूल द्वारा मेरुरज्जु को आवेश प्रेषित करते हैं। संवेदी सायनेप्स एक इण्टर न्यूरॉन के साथ मेरुरज्जु में तथा अन्त में आवेश पेशी को चालक न्यूरॉन में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। इस क्रिया में उपरान्त पेशी संकुचित हो जाती है तथा इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में सेकण्ड से भी सूक्ष्म भाग में के बराबर समय लगता है। एक तन्त्रिका तन्तु मेरुरज्जु से इस उद्दीपन को मस्तिष्क में ले जाता है। यह वह समय होता है जब हम दर्द का अनुभव करते हैं।

प्रश्न 2.
मनुष्य की मस्तिष्क की संरचना का चित्र सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र (Central Nervous System)
इसके प्रमुख भाग निम्नवत् हैं-
(A) मस्तिष्क (Brain)-यह मनुष्य के शरीर का सबसे कोमल अंग होता है। जो करोटि (Skull) के कपाल (Cranium) के अन्दर सुरक्षित रहता है। मस्तिष्क के ऊपर तीन मस्तिष्कावरण, तानिकाएँ अथवा झिल्लियाँ (Meninges, Mennix) पायी जाती हैं, जो मस्तिष्क को सुरक्षा प्रदान करती हैं
(i) दृढ़तानिका (Duramater)।
(ii) मध्य की झिल्ली या जालतनिका (Arachnoid)
(iii) मृदुतानिका (Piamater)

(i) दृढ़तानिका (Duramater)-यह सबसे बड़ी बाहरी, कड़ी, मोटी झिल्ली होती है। यह तन्तुमय संयोजी ऊतक (Fibrous Connective Tissue) तथा कोलेजन तन्तुओं (Collagen fibres) से निर्मित होती है। यह क्रेनियम अस्थियों (Cranial bones) से जुड़ी रहती है तथा अप्रत्यास्थ (Non-elastic) होती है।

(ii) जालतानिका (Arachnoid)-यह मध्य की झिल्ली होती है। इसका निर्माण कोलेजन तन्तुओं (Collagen fibres) तथा इलास्टिन तन्तुओं (Elastin fibres) से होता है।

(iii) मृदुतानिका (Piamater)-यह आन्तरिक झिल्ली पतली, मुलायम तथा पारदर्शी होती है। यह झिल्ली मस्तिष्क से ‘चिपकी हुई अवस्था में पायी जाती है। इसमें रुधिर केशिकाओं (Blood Capillaries) का जाल फैला रहता है, जिससे मस्तिष्क तथा मेरूरज्जु को ऑक्सीजन तथा पोषण प्राप्त होता है। मृदुतानिका दो स्थानों पर सूक्ष्म उभारों के रूप में मस्तिष्क गुहा में लटकी रहती है इन्हें रक्तक जालक (Choroid plexus) कहते हैं।

सबड्यूरल गुहा (Subdural Cavity)-यह गुहा दृढ़तानिका तथा जालतानिका के मध्य पायी जाती है।

सब ऐरेक्नोइड गुहा (Subarchnoid Cavity)-यह जालतानिका (Arachnoid) तथा मृदुतानिका (Piamater) के बीच स्थित होती है। इन गुहाओं में प्रमस्तिष्क मेरुद्रव्य (Cerebrospinal fluid) भरा रहता है। यह क्षारीय द्रव होता है तथा मस्तिष्क की बाह्य आघातों से रक्षा करता है।

प्रमस्तिष्क मेरुद्रव (Carebrospinal Fluid)-मृदुतानिका में स्थित रक्तक जालक (Choroid plexus) से लसिका के समान द्रव स्रावित होकर तथा छनकर बाहर निकलता रहता है। इसे प्रमस्तिष्क मेरुद्रव (Cerebrosphinal fluid) कहते हैं। इस द्रव में प्रोटीन, ग्लूकोस, यूरिया तथा क्लोराइड्स के अतिरिक्त पोटैशियम, सोडियम, कैल्शियम के बाइकार्बोनेट्स, सल्फेट, फॉस्फेट, क्रिएटिनिन तथा यूरिक अम्ल सूक्ष्म मात्रा में उपस्थित होते हैं। एक स्वस्थ मनुष्य में 150 ml प्रमस्तिष्क मेरुद्रव पाया जाता है। यह द्रव आगे से पीछे की ओर प्रवाहित होता है तथा यहाँ से यह सब-एरेक्नोयइड गुहा (Sub-arachnoid Cavity) से होता हुआ अन्त में दृढ़तानिका (Duramater) की रुधिर वाहिनियों के माध्यम से वापस रुधि र में मिल जाता है।

 

प्रमस्तिष्क मेरुद्रव के कार्य (Functions of Cerebrospinal Fluid)
प्रमस्तिष्क मेरुद्रव के प्रमुख कार्य निम्नवत् हैं-

  • यह मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु की बाह्य आघातों से सुरक्षा करता है। तथा इन्हें नमी प्रदान करता है।
  • यह मस्तिष्क तथा रुधिर के मध्य विभिन्न पोषक पदार्थों के आदान-प्रदान के लिए माध्यम प्रदान करता है। इसके साथ-साथ यह ऑक्सीजन (O2) तथा कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के विनिमय में भाग लेता है।
  • यह हानिकारक रोगाणुओं से मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु को सुरक्षा प्रदान करता है तथा मस्तिष्क की बीमारियों के निदान में सहायता प्रदान करता है। प्रमस्तिष्क मेरुद्रव की मात्रा बढ़ जाने पर मस्तिष्कावरण शोथ (Meningitis) रोग हो जाता है।

मस्तिष्क की संरचना (Structure of Brain)
मस्तिष्क के तीन प्रमुख भाग होते हैं-
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1. अग्रमस्तिष्क (Fore brain)-यह मुख्यत: दो भागों, (i) प्रमस्तिष्क (Cerebrum) एवं अग्र मस्तिष्क पश्च (Diencephalon) से बना होता है। यह मस्तिष्क का महत्त्वपूर्ण भाग बनाता है। जो सम्पूर्ण मस्तिष्क का लगभग 2/3 भाग का निर्माण करता है।

2. प्रमस्तिष्क (Cerebrum)-यह अग्रमस्तिष्क (Fore Brain) का सर्वाधिक विकसित तथा सबसे बड़ा भाग होता है। यह दो भागों (दायें तथा बायें) में बँटा रहता है। जिन्हें प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध (Cerebral hemispheres) कहते हैं। इन दोनों गोलार्थों को महासंयोजक पिण्ड (Corpus calosum), जोकि आड़े-तिरछे तन्त्रिका तन्तुओं की चादर सदृश्य संरचना होती है, जोड़े रखती है। इसकी बाह्य सतह कटकों (Ridges) तथा खाँचों (Grooves) की उपस्थिति के कारण अत्यधिक संबलित दिखाई देती है। प्रमस्तिष्क का बायाँ गोलार्द्ध शरीर में दायें भाग का नियन्त्रण करता है। प्रमस्तिष्क को ऊपर से देखने पर यह अण्डाकार दिखायी देता है।

इस पर एक रेखा के समान दरार (Fissure) पायी जाती है, जो दोनों गोलार्थों को अलग रखती है। प्रत्येक गोलार्द्ध की आन्तरिक संरचना खोखली होती है तथा उसकी भित्तियों में दो (एक भीतरी तथा एक बाहरी) क्षेत्र पाये जाते हैं। बाहरी क्षेत्र (प्रमस्तिष्क बल्कुट) में तन्त्रिका कोशिकाओं (Neurons) की कोशिका काय (Cytons) स्थित रहती हैं और यह क्षेत्र धूसर रंग का होने के कारण धूसर द्रव्य (Grey Matter) कहलाता है। भीतरी क्षेत्र तन्त्रिकाओं (Axons) से बना होता है। इसे श्वेत द्रव्य (White matter) कहते हैं।

घ्राण पिण्ड (Olfactory lobes)-प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध के आगे की ओर दो अन्य पिण्ड पाये जाते हैं। जिन्हें घ्राण पिण्ड (Olfactory lobes) कहते हैं। ये पिण्ड गंध का उद्दीपन (Stimulus) करते हैं, अर्थात् गंधज्ञान कराते हैं।

प्रश्न 3.
स्तनधारियों की कपाल तन्त्रिकाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
परिधीय तन्त्रिका तन्त्र (Peripheral Nervous System)
परिधीय तन्त्रिका तन्त्र में वे सभी तन्त्रिकाएँ सम्मिलित हैं, जो मस्तिष्क (Brain) तथा मेरुरज्जु (Spinal Chord) से निकलती हैं। मस्तिष्क से निकलने वाली तन्त्रिकाएँ कपालीय तन्त्रिकाएँ (Cranial nerves) कहलाती हैं तथा मेरुरज्जु से निकलने वाले तन्त्रिकाएँ मेरु तन्त्रिकाएँ (Spinal nerves) कहलाती हैं।

(a) कपाल तन्त्रिकाएँ (Cranial Nerves)-मनुष्य में 12 जोड़ी कपाल तन्त्रिकाएँ पायी जाती हैं। ये करोटि (खोपड़ी) से निकलती हैं। तन्त्रिकाओं के प्रकार तथा उनके कार्य अलग-अलग होते हैं। ये तन्त्रिकाएँ संवेदी (Sensory) मोटर या प्रेरक (Motor) एवं मिश्रित (Mixed) प्रकार की होती हैं। इनके नाम, कार्य तथा प्रवृत्ति को सारणी में प्रदर्शित किया गया है।
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(b) रीढ़ या मेरु तन्त्रिकाएँ (Spinal Nerves)-ये तन्त्रिकाएँ मेरुरज्जु (Spinal cord) से निकलती हैं। मनुष्य में इनके 31 जोड़े पाये जाते हैं। ये तन्त्रिकाएँ मेड्यूला ऑब्लोंगेटा के पीछे के हिस्से से लेकर कटि भाग तक फैली रहती हैं। कटि भाग से ये तन्त्रिकाएँ फूलकर हाथ तथा पैरों के लिए तन्त्रिकाएँ निकालती हैं। मनुष्य में कशेरुक दण्ड के प्रत्येक दो कशेरुक से एक रीढ़ तन्त्रिका अन्त: कशेरुक अवकाशों से निकलती है। ये रीढ़ तन्त्रिका पृष्ठ मूल से निकलकर आगे जाकर एक तन्त्रिका गुच्छ (Ganglion) बनाती है। पृष्ठ मूल वाली तन्त्रिका संवेदी प्रकार की तथा अधरमूल से निकलने वाली तन्त्रिका प्रेरक प्रकार की होती है। इन दोनों गुणों के परिणामस्वरूप मेरु तन्त्रिकाएँ मिश्रित (Mixed) प्रकार की होती हैं।

 

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प्रश्न 4.
प्रतिवर्ती क्रियाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex Action)
शरीर में किसी बाह्य उद्दीपन के कारण होने वाली स्वतः तथा तीव्र अनैच्छिक क्रिया प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex action) कहलाती है। उदाहरणार्थ

  • किसी गर्म तवे अथवा नुकीले काँटे से आपका हाथ छूने पर तुरन्त अपने हाथ को हटा लेते हैं।
  • किसी जाने-पहचाने स्वादिष्ट भोजन को केवल देखने अथवा पूँघने भर से मुँह में लार आ जाती है।

प्रतिवर्ती क्रियाओं के प्रकार (Types of Reflex Actions)
प्रतिवर्ती क्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं-
(i) सरल/अप्रतिबन्धित प्रतिवर्ती क्रियाएँ (Simple/Unconditional | Reflex actions)
(ii) प्रानुकूली/उपार्जित प्रतिवर्ती क्रियाएँ (Acquired Reflexaction)

(i) सरल/अप्रतिबन्धित प्रतिवर्ती क्रियाएँ (Simple/ Unconditional Reflex Action)-कुछ प्रतिवर्ती क्रियाएँ जन्मजात अथवा प्राकृतिक (Inborn or natural) होती है। जिनके लिए पहले से किसी जानकारी की आवश्यकता नहीं होती है एवं इन पर मस्तिष्क का कोई नियन्त्रण नहीं होता है। इस प्रकार की प्रतिवर्ती क्रियाएँ सरल/अप्रतिबन्धित प्रतिवर्ती क्रियाएँ (Simple/Unconditional reflex actions) कहलाती हैं। उदाहरणार्थ-

(a) पलक तुरन्त बन्द कर लेना-किसी भी वस्तु को अचानक आँख की तरफ आते देखकर।
(b) खाँसी आना-निगले गए भोजन का कुछ भाग श्वांस नली में प्रवेश कर जाने पर।
(c) तेज प्रकाश में नेत्र की पुतली सिकुड़ जाना।
(d) सोते हुए व्यक्ति का पैर गुदगुदाने पर, पैर को झटका मार देना।

(ii) प्रानुकूली/उपार्जित प्रतिवर्ती क्रियाएँ
(Acquired Reflex Actions)
इन्हें प्रतिबन्धित प्रतिवर्ती क्रियाएँ (Conditional Reflex Actions) भी कहते हैं। इन्हें प्राणी अनुभव तथा प्रशिक्षण द्वारा सीखता है। इसको सर्वप्रथम रूसी जैव कार्यिकी वैज्ञानिक इवान पेट्रोविच पावलोव ने भूखे कुत्ते में प्रदर्शित किया था। अपने प्रयोग में इन्होंने कुत्ते को घण्टी बजाते ही रोटी दी एवं उसके बाद लार का स्रावण देखा। यह क्रिया उन्होंने लगातार कई दिनों तक की। इसके बाद इन्होंने प्रेक्षित किया कि रोटी नहीं देने पर भी केवल घण्टी बजाने से ही कुत्ते के मुँह से लार आने लगी थी। इस उदाहरण में मस्तिष्क वास्तव में उस भोजन के स्वाद को याद रखता है और उसी के अनुरूप अचेतन अवस्था में कार्य करने लगता है। इसका कारण कुत्ते में प्रतिबन्धित प्रतिवर्ती क्रिया का विकसित होना था। इन प्रतिवर्ती क्रियाओं के अन्य उदाहरण निम्नवत् हैं-

  • अचानक किसी को अपनी कार अथवा साइकिल आगे आते हुए देखकर ब्रेक लगा देना।
  • किसी से बातें करते हुए भी जूते में फीते बाँध लेना।
  • आपको झुकते हुए देखने पर, मानों आप मारने के लिए कोई पत्थर उठाने जा रहे हों, कुत्ते का भाग जाना।
  • कक्षा में अध्यापक या अध्यापिका को प्रवेश करते हुए देखकर आपका खड़े हो जाना।

 

प्रश्न 5.
स्पाइनल तन्त्रिकाओं का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
परिधीय तन्त्रिका तन्त्र (Peripheral Nervous System)
परिधीय तन्त्रिका तन्त्र में वे सभी तन्त्रिकाएँ सम्मिलित हैं, जो मस्तिष्क (Brain) तथा मेरुरज्जु (Spinal Chord) से निकलती हैं। मस्तिष्क से निकलने वाली तन्त्रिकाएँ कपालीय तन्त्रिकाएँ (Cranial nerves) कहलाती हैं तथा मेरुरज्जु से निकलने वाले तन्त्रिकाएँ मेरु तन्त्रिकाएँ (Spinal nerves) कहलाती हैं।

(a) कपाल तन्त्रिकाएँ (Cranial Nerves)-मनुष्य में 12 जोड़ी कपाल तन्त्रिकाएँ पायी जाती हैं। ये करोटि (खोपड़ी) से निकलती हैं। तन्त्रिकाओं के प्रकार तथा उनके कार्य अलग-अलग होते हैं। ये तन्त्रिकाएँ संवेदी (Sensory) मोटर या प्रेरक (Motor) एवं मिश्रित (Mixed) प्रकार की होती हैं। इनके नाम, कार्य तथा प्रवृत्ति को सारणी में प्रदर्शित किया गया है।
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(b) रीढ़ या मेरु तन्त्रिकाएँ (Spinal Nerves)-ये तन्त्रिकाएँ मेरुरज्जु (Spinal cord) से निकलती हैं। मनुष्य में इनके 31 जोड़े पाये जाते हैं। ये तन्त्रिकाएँ मेड्यूला ऑब्लोंगेटा के पीछे के हिस्से से लेकर कटि भाग तक फैली रहती हैं। कटि भाग से ये तन्त्रिकाएँ फूलकर हाथ तथा पैरों के लिए तन्त्रिकाएँ निकालती हैं। मनुष्य में कशेरुक दण्ड के प्रत्येक दो कशेरुक से एक रीढ़ तन्त्रिका अन्त: कशेरुक अवकाशों से निकलती है। ये रीढ़ तन्त्रिका पृष्ठ मूल से निकलकर आगे जाकर एक तन्त्रिका गुच्छ (Ganglion) बनाती है। पृष्ठ मूल वाली तन्त्रिका संवेदी प्रकार की तथा अधरमूल से निकलने वाली तन्त्रिका प्रेरक प्रकार की होती है। इन दोनों गुणों के परिणामस्वरूप मेरु तन्त्रिकाएँ मिश्रित (Mixed) प्रकार की होती हैं।

 

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