RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 परागण, निषेचन तथा भ्रूणपोष व भ्रूण का परिवर्धन
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 परागण, निषेचन तथा भ्रूणपोष व भ्रूण का परिवर्धन
Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Chapter 3 परागण, निषेचन तथा भ्रूणपोष व भ्रूण का परिवर्धन
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 बहुविकल्पीय प्रश्न
RBSE Solutions For Class 12 Biology प्रश्न 1.
अनुन्मील्य परागण पाया जाता है –
(अ) बायोला
(ब) पपीता
(स) जामुन
(द) केसिया
जीव विज्ञान कक्षा 12 नोट्स Pdf RBSE प्रश्न 2.
कदम्ब में परागण किसके द्वारा होता है?
(अ) पक्षी
(ब) कीट
(स) चमगादड़
(द) हाथी
RBSE Class 12 Biology Notes Pdf Download प्रश्न 3.
त्रिक संलयन के परिणामस्वरूप विकसित होता है –
(अ) भ्रूणकोष
(ब) भ्रूण
(स) भ्रूणपोष
(द) बीज
RBSE Biology Book Class 12 प्रश्न 4.
बीजावरण का विकास होता है –
(अ) अध्यावरण से
(ब) बीजाण्डकाय से
(स) बीजाण्ड वृन्त से
(द) नाभिका से
12 वीं जीव विज्ञान पुस्तक RBSE Pdf प्रश्न 5.
द्विनिषेचन की खोज किसने की थी?
(अ) रार्बट हुक
(ब) स्ट्रासबर्जर
(स) नावाश्चिन
(द) ल्यूवेनहॉक
उत्तरमाला
1. (अ)
2. (स)
3. (स)
4. (अ)
5. (अ)
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
12 वीं जीव विज्ञान पुस्तक RBSE प्रश्न 1.
विषम वर्तिकात्व से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
कुछ पौधों के पुष्पों में या तो वर्तिका, पुंकेसरों से लम्बी होती है या वर्तिका से पुंकेसर अत्यधिक लम्बे होते हैं, जो स्वपरागण को रोकते हैं, इस व्यवस्था को विषम वर्तिकात्व (Heterostyly) कहते हैं।
RBSE Biology Class 12 Pdf In Hindi प्रश्न 2.
समकाल पक्वता एवं विषमकाल पक्वता में विभेद कीजिए।
उत्तर
जब पुंकेसर के परागकोष एवं जायांग में वर्तिकाग्र समान समय पर परिपक्व होते हैं तो इसे समकालपक्वता कहते हैं, इसके विपरीत जब परागकोष एवं वर्तिकाग्र भिन्न समय पर परिपक्व होते हैं तो इसे विषमकाल पक्वता कहते हैं।
RBSE Class 12 Biology Book Pdf Download प्रश्न 3.
असंगतता को परिभाषित कीजिए।
उत्तर
असंगतता (Incompatibility) – पूर्णकार्यक्षम एवं जननक्षम नरे एवं मादा युग्मकों के मध्य निषेचने में विफलता को असंगतता कहते हैं।
RBSE Solution Class 12 Biology प्रश्न 4.
पादपों में निषेचन को सर्वप्रथम किसने खोजा?
उत्तर
स्ट्रासबर्गर (Strasburger) ने 1884 में।
RBSE Class 12th Biology Solution प्रश्न 5.
बीजपत्रोपरिक व बीजपत्राधार में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
बीजपत्राधार (Hypocotyl) व बीजपत्रोपरिक (Epicotyl) भ्रूणीय अक्ष के भाग हैं। भ्रूणीय अक्ष का बीजपत्र से जुड़ाव से नीचे का भाग बीजपत्राधार कहलाता है व इसके नीचे मूलांकुर स्थित होता है। दूसरी ओर भ्रूणीय अक्ष का बीजपत्र से जुड़ाव से ऊपर का हिस्सा बीजपत्रोपरिक कहलाता है जिसके ऊपर प्रांकुर स्थित होता है।
Rajasthan Board 12th Biology Book प्रश्न 6.
एरिल एवं कैरन्कल में अन्तर बताइए।
उत्तर
एरिल (Aril) – कुछ पौधों में बीजाण्ड के चारों ओर पाया जाने वाला एक मांसल आवरण है। जैसे-लीची में। कैरन्कल (Caruncle), यूफोर्बिएसी कुल के कुछ पादपों में बीजाणुद्वार वाले छोर पर पायी जाने वाली सफेद रंग की संरचना है; जैसे- अरण्ड में।
RBSE Class 12 Biology Solutions प्रश्न 7.
अनिषेकफलन प्रेरित करने वाले दो हार्मोन के नाम लिखिए।
उत्तर
अनिषेक फलन को प्रेरित करने वाले हार्मोन हैं- ऑक्सिन तथा जिबरेलिन।
Agriculture Biology Class 12 RBSE Pdf प्रश्न 8.
बीज अंकुरण के समय प्रांकुर किसका निर्माण करता है?
उत्तर
बीज अंकुरण के समय प्रांकुर प्ररोह तंत्र (Shoot system) का निर्माण करता है।
Biology Class 12 RBSE Book Pdf प्रश्न 9.
विकासशील भ्रूण अपना पोषण किससे प्राप्त करता है?
उत्तर
विकासशील भ्रूण अपना पोषण भ्रूणपोष से प्राप्त करता है।
Biology 12th RBSE Book प्रश्न 10.
परागकण लम्बे समय तक संरक्षित क्यों रहते हैं?
उत्तर
परागकण की बाह्य भित्ति में स्पोरोपोलेनिन उपस्थित होने के कारण इसका आसानी से भौतिक एवं जैविक क्षरण नहीं होता है, इसलिए परागकण लम्बे समय तक संरक्षित रहते हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न
RBSE Biology Book Class 12 Pdf प्रश्न 1.
परपरागण हेतु पुष्यों में पाये जाने वाले दो अनुकूलन बताइए।
उत्तर
परपरागण हेतु पुष्यों में पाए जाने वाले अनुकूलन –
- स्वबंध्यता (Self sterility) – कुछ पौधों के पुष्पों में स्वयं के द्वारा विकसित परागकणों का उसी पुष्प की वर्तिकाग्र पर अनुकूलता होने पर भी अंकुरण नहीं होता है। उदाहरण – राखीबेल, अंगूर, पिटूनिया आदि।
- एकलिंगता (Unisexuality or Dicliny) – पादप के सभी पुष्पों ें एकलिगता होने पर केवल पर-परागण ही सम्भव होता हैं, क्योंकि उनमें पुष्प में नर अथवा मादा में से एक प्रकार के जनन अंग ही पाए जाते हैं। उदाहरण- पपीता, पाम आदि।
12th Biology RBSE Book Pdf प्रश्न 2.
स्वबन्ध्यता किसे कहते हैं?
उत्तर
स्वबन्ध्यता (Self sterility) – कुछ पौधों में यदि पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँच जाते हैं तो वे अंकुरित नहीं होते हैं, कभी-कभी तो ऐसा होने पर पुष्प ही सूख जाती है। कभी-कभी तो उस विभेद के अन्य पौधों से परागकण आने पर भी यही लक्षण प्रकट होते हैं। कुछ पौधों के पुष्पों में स्वयं के द्वारा विकसित परागकणों का उसी पुष्प की वर्तिकाग्र पर अनुकूलती होने के बावजूद भी अंकुरण नहीं होता है। इसे स्वबन्ध्यता कहते हैं।
उदाहरण– अंगूर, पिटूनिया आदि।
12 Class Biology Book RBSE प्रश्न 3.
द्विनिषेचन किसे कहते हैं?
उत्तर
द्विनिषेचन (Double fertilization) – परागनलिका द्वारा बीजाण्ड में पहुँचाए गए दोनों नर युग्मकों में से एक नर युग्मक अण्ड कोशिका में प्रवेश करके मादा युग्मक से संलयन (Fusion) करता है; जिससे द्विगुणित युग्मनज (Zygote) का निर्माण होता है। यह क्रिया वास्तविक युग्मक संलयन है। दूसरा नर युग्मक दो ध्रुवीय केन्द्रकों द्वारा बने द्वितीयक केन्द्रक (Secondary nucleus) से संयुजन करता है। यह क्रिया त्रिसंयोजन कहलाती है। यह प्राथमिक भ्रूणपोष का निर्माण करता है। यहाँ एक ही भ्रूणपोष में दो संलयन होते हैं, अतः यह क्रिया द्विनिषेचन कहलाती है।
RBSE 12th Biology Book In Hindi प्रश्न 4.
त्रिक संलयन का महत्व बताइए।
उत्तर
त्रिक संलयन का महत्व (Importance of triple fusion) – परागनलिका द्वारा भ्रूणकोष में पहुँचाए गए दोनों नर युग्मकों में से एक नर युग्मक अण्ड कोशिका से तथा दूसरा नर युग्मक द्वितीयक केन्द्रक से संलयन करता है। द्वितीयक केन्द्रक का निर्माण दो ध्रुवीय केन्द्रकों के संयोजन द्वारा होता है। नर युग्मक तथा द्वितीय केन्द्रक के संलयन से प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक बेनती है। इस प्रक्रिया में तीन अगुणित केन्द्रकों को संलयन होता है, इसलिए इसे त्रिक संलयन कहते हैं। प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक विकसित होकर त्रिगुणित भ्रूणपोष का निर्माण करता है जोकि परिवर्धनशील भ्रूण के लिए पोषण उपलब्ध कराता है।
प्रश्न 5.
भ्रूण में निलम्बक का क्या कार्य है?
उत्तर
भ्रूण में निलम्बक (Suspensor) का कार्य – निलम्बके बढ़ते हुए भ्रूण को भ्रूणपोष के अन्दर धकेलकर बीचोबीच पहुँचा देता है। जिससे भ्रूणपोष से इसे पर्याप्त तथा आवश्यक पोषक प्राप्त हो जाए। निलम्बक की बीजाण्डद्वार की ओर वाली कोशिका फूलकर बड़ी हो जाती है तथा चूषकांग (Haustorium) का कार्य करने लगती है, अतः यह पुटिका या चूषक कोशिका कहलाती है। निलम्बक के दूसरे सिरे (भ्रूण की ओर) की कोशिका अधःस्फीतिका या हाइपोफाइसिस (Hypophysis) कही जाती है। यह भ्रूण के साथ सम्मिलित होकर मूलांकुर शीर्ष का निर्माण करती है।
प्रश्न 6.
बीजाण्ड से बीज किस प्रकार बनता है?
उत्तर
बीजाण्ड से बीज का निर्माण (Development of Beed from ovule) – निषेचन के पश्चात् बीजाण्ड (Ovule), बीज (Seed) में विकसित होता है। बीजाण्ड में उपस्थित दोनों अध्यावरणों से बीजावरण (Sea coats) बन जाते हैं। बाह्य अध्यावरण से बाह्य बीज चोल या टेस्टा (Testa) एवं अन्तः अध्यावरण से अन्तः बीजचोल या टेगमेन (Tegmen) बनता है। बीजाण्डवृन्त से बीजवृन्त (Stalk) बनता है। नाभिका (Hilum), बीजाण्डद्वार (Micropyle), रैफी (Raphe) एवं निभाग (Chalaza) कोई विशेष परिवर्तन प्रदर्शित नहीं करते हैं।
इनमें ऊतकों में परिपक्वता आ जाती है। बीजाण्डकाय प्रायः भ्रूणकोष परिवर्धन के समय उपयोग में आ जाता है परन्तु कुछ पादपों जैसे—काली मिर्च में यह भ्रूण पोष के चारों ओर एक पतली झिल्ली के रूप में दिखाई देता है, जिसे परिभ्रूणपोष (Perisperm) कहते हैं। कुछ पौधों में बीजाण्ड के परितः एक मांसल संरचना एरिल (Aril) बनती है। भ्रूणपोष का उपयोग प्रायः अभ्रूणपोषी बीजों में भ्रूण परिवर्धन में उपयोग कर लिया जाता है। भ्रूणपोषी बीजों में भ्रूणपोष बीजों में बचा रहता है। युग्मनज भ्रूण में विकसित हो जाता है। सहायक कोशिकाएँ तथा प्रतिमुखी कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं।
प्रश्न 7.
बीजाण्ड में पराग नलिका कितने प्रकार से प्रवेश करती है?
उत्तर
पराग नलिका का बीजाण्ड में प्रवेश (Entry of pollon tube in the ovule) – बीजाण्ड में परागनलिका का प्रवेश निम्नलिखित तीन प्रकार से हो सकता है –
- बीजाण्डद्वारी प्रवेश (Porogamy) – जब परागनलिका का बीजाण्ड में प्रवेश बीजाण्ड द्वार (Micropyle) से होकर होता है। तब इसे बीजाण्डद्वारी प्रवेश कहते हैं। यह विधि अधिकांश पौधों में सामान्य होती है।
- निभागी प्रवेश (Chalazogamy) – जब पराग नलिका, बीजाण्ड में निभागीय छोर से होकर प्रवेश करती है तो इसे निभागी प्रवेश या छलेजोगेमी कहते हैं। जैसे-कैजुराइना, जुगलैन्स, बेटुला आदि।
- अध्यावरणी प्रवेश (Mesogamy) – जब पराग नलिका बीजाण्ड में इसके अध्यावरणों को भेदती हुई प्रवेश करती है तो इसे अध्यावरणी प्रवेश या मीजोगेमी कहते हैं। उदाहरण – कुकुरबिटा, पोपुलस आदि।
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
परागण कितने प्रकार का होता है? परागण हेतु पुष्पों में पाए जाने वाले अनुकूलनों को संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर
परागण (Pollination) – किसी पुष्प के परागकोषों से निकले हुए परागकणों का उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर अथवा उसी जाति के किसी दूसरे पौधे के पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानान्तरण परागण कहलाता है।
परागण के प्रकार (Types of pollination) – परागण दो प्रकार का होता है-स्वपरागण तथा पर-परागण।
परागण हेतु पुष्यों में पाए जाने वाले अनुकूलन – पुष्पों में स्व परागण एवं पर परागण हेतु अनुकूलन पाए जाते हैं जो निम्न प्रकार है –
1. स्वपरागण के लिए अनुकूलन (Adaptation for self pollination) – स्वपरागण प्रदर्शित करने वाले पादपों में पाये जाने वाले प्रमुख अनुकूलन निम्नलिखित हैं –
- उभयलिंगता (Bisexuality) – ऐसे पौधे सामान्यत: उभयलिंगी या पुष्प द्विलिंगी होते हैं; जैसे- मटर।
- समकालपक्वता (Homogamy) – ऐसे पौधों में पुष्प के पुमंग एवं जायांग एक साथ परिपक्व होते हैं और परागकोष के स्फुटन के समय वर्तिकाग्र ग्राही होती है। उदाहरण-सदाबहार।
- अनुन्मील्यता (Cleistagamy) – कुछ पौधों के पुष्प कभी भी नहीं खुलते हैं वरन् सदैव बन्द ही रहते हैं अतः उनमें केवल स्वपरागण ही सम्भव होता है। उदाहरण- कनकौआ।
2. परपरागण के लिए अनुकूलन (Adaptation for cross – pollination) -पौधों में निम्नलिखित अनुकूलन पर-परागण को प्रेरित करते हैं-
- स्वबन्ध्यता (Self sterility) – कुछ पौधों के पुष्पों में स्वयं के द्वारा विकसित परागकणों का उसी पुष्प की वर्तिकाग्र पर अनुकूलता होने पर भी अंकुरण नहीं होता है। इसे स्वबन्ध्यता कहते हैं। उदाहरण– पिटूनिया।
- एकलिंगता (Unisexuality) – पादप के समस्त पुष्पों में समलिंगता होने पर केवल पर-परागण ही हो सकता है। जैसे- पपीता।
- भिन्नकाल पक्वता (Dichogamy) – जब पौधों में पुमंग एवं जायांग के परिपक्व होने का समय अलग-अलग होता है तो उन पौधों में केवल पर-परागण ही सम्भव हो पाता है। उदाहरण- गुड़हल, बरगद आदि।
- हरकोगेमी (Herkogamy) – जब एक ही पुष्प के वर्तिकाग्र एवं परागकोष के मध्य किसी भी प्रकार का संरचनात्मक अवरोध पाया जाता है जिससे स्वपरागण नहीं हो पाता है।
- विषम वर्तिकात्व (Heterostyly) – जब पुष्प के पुंकेसरों अथवा वर्तिका की लम्बाई में अधिक अन्तर होता है तो स्वपरागण नहीं हो पाता। उस स्थिति में परपरागण ही सम्भव होता है।
प्रश्न 2.
आवृतबीजी पादप में निषेचन का संक्षेप में वर्णन कीजिए। निषेचन के बाद भ्रूणकोष में उपस्थित कोशिकाओं में होने वाले परिवर्तनों को समझाइए।
उत्तर
निषेचन (Fertilization) – नर एवं मादा युग्मकों के संलयन (Fusion) को निषेचन कहा जाता है। निषेचन क्रिया का अध्ययन सर्वप्रथम स्ट्रासबर्गर (Strasburger; 1884) ने लिलियम (Lilium) पादप में किया था।
परागण की क्रिया द्वारा परागकण वर्तिकाग्र (Stigma) पर पहुँच जाते हैं और वर्तिकाग्र से कुछ पदार्थों का अवशोषण करके फूल जाते हैं। परागकण की अन्तश्चोल (Intine) परागनलिका के रूप में जनन छिद्र से निकलकर वर्तिका के ऊतकों में प्रवेश कर जाती है। परागनलिका वर्तिका के ऊतकों के भेदती हुई बीजाण्ड की ओर वृद्धि करती है। इस समय परागनलिका में दो नर युग्मक तथा एक कायिक केन्द्रक होता है।
परागनलिका बीजाण्ड में बीजाण्डद्वार, निभागीय छोर अथवा अध्यावरणों से होकर प्रवेश कर जाती है और भ्रूणकोष में किसी एक सहायक कोशिका को नष्ट करती हुई प्रवेश करके दोनों नर युग्मकों को छोड़ देती है।
भ्रूणकोष (Embryo sac) में पहुँचे दोनों नर युग्मकों में से एक नर युग्मक (Male gamete) अण्डकोशिका (Egg cell) में प्रवेश करता है। अण्ड कोशिका का अगुणित केन्द्रक तथा नर युग्मक आपस में संलयन करते हैं फलस्वरूप द्विगुणित युग्मनज (Zygote) बनता है। इस प्रक्रिया को सत्य निषेचन (True fertilization) कहते हैं। दूसरा नर युग्मक द्वितीयक केन्द्रक के पास पहुँचकर इससे संलयन करता है जिससे त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक (Triploid primary endosperm nucleus) का निर्माण होता है। इसमें तीन केन्द्रकों का संलयन होता है, इसे त्रिक संलयन (Triple fusion) कहते हैं। चूंकि भ्रूणकोष में निषेचन की क्रिया दो बार होती है एक अण्ड कोशिका से तथा दूसरी द्वितीयक केन्द्रक से, इसलिए इसे द्विनिषेचन कहते हैं।
निषेचन के पश्चात भ्रूणकोष कोशिकाओं में होने वाले परिवर्तन – निषेचन के पश्चात् दोनों सहायक कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं। अण्ड । कोशिका निषेचन के फलस्वरूप द्विगुणित युग्मनज बनाती है जो कि परिवर्धन करके भ्रूण (Embryo) में विकसित होता है। प्रतिमुखी कोशिकाएँ (Antipodal cells) भी नष्ट हो जाती हैं। केन्द्रीय कोशिका में त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक विभिन्न विभाजनों एवं प्रावस्थाओं द्वारा भ्रूणपोष का निर्माण करता है जो वृद्धिशील भ्रूण के पोषण में काम आता है।
प्रश्न 3.
पुष्पी पादपों में विभिन्न प्रकार के भ्रूणपोषों के परिवर्धन को समझाइए।
उत्तर
आवृतबीजी पौधों में भ्रूणपोष का परिवर्धन (Development of Endosperm in Angiospermic plants) – पुष्पी पौधों में त्रिकसंलयन (Triple fusion) के फलस्वरूप त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक (Primary endosperm nucleus) बनता है। यह भ्रूणपोष का निर्माण करता है। भ्रूणपोष भ्रूण में विकास के लिए आवश्यक पोषण प्रदान करता है। विकास की प्रक्रिया के आधार पर भ्रूणपोष तीन प्रकार का होता है –
(i) केन्द्रकीय भ्रूणपोष
(ii) कोशिकीय भ्रूणपोष
(iii) हेलोबियल प्रणपोष।
(i) केन्द्रकीय भ्रूणपोष (Nuclear endosperm) – इस प्रकार के भ्रूणपोष परिवर्धन में प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक स्वतन्त्र केन्द्रकीय विभाजनों (Free central divisions) द्वारा अनेक केन्द्रकों का निर्माण करता है। इन केन्द्रकों के बीच में भित्ति का निर्माण नहीं होता है। ये केन्द्रक परधि पर विन्यसित हो जाते हैं तथा मध्य में एक बड़ी रिक्तिका बन जाती है। कुछ समय पश्चात् केन्द्रकों के चारों ओर भित्ति निर्माण हो जाने से यह कोशिकीय हो जाता है। आवृत्तबीजियों के लगभग 56% कुलों में केन्द्रकीय भ्रूणपोष पाया जाता है। नारियल का पानी भी केन्द्रकीय भ्रूणपोष का उदाहरण है।
(ii) कोशिकीय भ्रूणपोष (Cellular endosperm) – इस प्रकार के भ्रूणपोष परिवर्धन में प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक में प्रथम तथा उसके बाद के सभी विभाजनों के साथ-साथ ही कोशिका भित्ति (Cell wall) का निर्माण हो जाता है। अतः यह प्रारम्भ से अन्त तक कोशिकीय ही रहता है। सामान्यतया इस प्रकार के भ्रूणपोष में चूषकांग (Haustpaia) विकसित हो जाते हैं। उदाहरण- पिटूनिया (Pitunid), बालसम (Balsam) आदि।
(iii) माध्यमिक भ्रूणपोष (Helobial endosperm) – इस प्रकार का भ्रूणपोष, केन्द्रकीय तथा कोशिकीय दोनों प्रकार के भ्रूणपोषों का मध्यवर्ती रूप है। यह दोनों प्रकार के भ्रूणपोषों का मिश्रण होता है। इसमें प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक में प्रथम विभाजन के पश्चात् भित्ति निर्माण होता है जिससे एक बड़ी तथा एक छोटी कोशिका बनती है। निभागी छोर वाली छोटी कोशिका के केन्द्रक में मुक्तकेन्द्रकीय विभाजन होते हैं जिनके बीच कोशिका भित्ति का निर्माण नहीं होता है। अण्डद्वार की ओर स्थित बड़ी कोशिका में केन्द्रक विभाजन व भित्ति निर्माण साथ-साथ होते हैं। इस प्रकार यह केन्द्रकीय एवं कोशिकीय दोनों प्रकार के भ्रूणपोषों का मिला-जुला रूप होता है। उदाहरण–एक बीजपत्री पौधों के हेलोबियल गण के सदस्य।
प्रश्न 4.
आवृत्तबीजी पादपों में भ्रूण परिवर्धन का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर
आवृत्तबीजी पादपों में भ्रूण का परिवर्धन (Embryo development in Angiospermic plants) – भ्रूण विकास की प्रारम्भिक अवस्थाएँ द्विबीजपत्री तथा एकबीजपत्री पौधों में समान होती हैं। दोनों प्रकार के पौधों में युग्मनज (Zygote) अनुप्रस्थ विभाजन द्वारा दो कोशिकीय प्राक्भ्रूण (Proembryo) बनाते हैं। इसकी बीजाण्डद्वारी कोशिका आधारीय कोशिका (Basal cell) तथा भ्रूणपोष की ओर की कोशिका शीर्ष कोशिका (Terminal cell) या भ्रूणीय कोशिका कहलाती है।
द्विबीजपत्री भ्रूण का विकास (Development of dicot embryo)-भ्रूण परिवर्धन का अध्ययन सर्वप्रथम हेन्सटीन (Honstein; 1840) ने द्विबीजपत्री पौधे कैप्सेला बर्सा पेस्टोरिस (Capsella bursd pestoris) में किया था। सामान्यतः निषेचन के समय भ्रूणकोष में एक नर युग्मक अण्डकोशिका से संयोजित होकर द्विगुणित युग्मनज का निर्माण करता है। युग्मनज में प्रथम विभाजन अनुप्रस्थ होता है जिसके फलस्वरूप एक शीर्षस्थ कोशिका (Apical cell) तथा एक आधारीय कोशिका (Basal cell) बनती हैं। शीर्षस्थ कोशिका निभाग (Chalaza) की ओर तथा आधारीय कोशिका बीजाण्डद्वार (Mciropyle) की ओर स्थित होती है। शीर्षस्थ कोशिका में अनुदैर्ध्य तथा आधारीय कोशिका में अनुप्रस्थ विभाजन लगभग साथ-साथ होते हैं। अनुदैर्घ्य विभाजन से निर्मित दोनों शीर्ष कोशिकाओं में पुनः पूर्व विभाजन के लम्बवत् अनुदैर्घ्य विभाजन होता है। जिससे चार कोशिकाओं का चतुष्टांश (Quadrant) बनती है। इस चतुष्टांश में पुन: एक अनुप्रस्थ विभाजन होने से एक अष्ट्रांशक (Octant) बनता है।
अष्टांशक की प्रत्येक कोशिका में परिनतिक विभाजन होने से एक आठकोशिकीय बाह्य परत बाह्यत्वचाजन (Dermatogen) तथा एक आठ कोशिकीय आन्तरिक परत बनती है। बाह्यत्वचाजन अनेक अपनतिक विभाजनों द्वारा भ्रूण की बाह्यत्वचा (Epidermis) बनाती हैं। आन्तरिक कोशिकाओं से बीजपत्राधार (Hypocotyl), बीजपत्र के भरण विभज्योतक (Ground meristem) तथा प्राक्एधा तन्त्र (Procambial system) बनते हैं। आधारीय कोशिका अनेक अनुप्रस्थ विभाजनों के फलस्वरूप सात से दस कोशिकीय लम्बा निलम्बक (Suspensor) बनाती है। निलम्बक की अन्तिम कोशिका फूलकर चूषकांग कोशिका (Haustarial cell) बनाती है, जो भ्रूणपोष से पोषक पदार्थों के अवशोषण का कार्य करती है। निलम्बक के भ्रूणीय सिरे की ओर स्थित कोशिका अधःस्फीतिका (Hypophysis) कहलाती है जो मूलांकुर (Radicle) के साथ मूलांकुर शीर्ष बनाती है।
शीर्ष कोशिका के विभाजन के फलस्वरूप बनी कोशिकाओं में निरन्तर विभाजनों के बाद भ्रूण पहले गोलाकार व बाद में हृदयाकार हो जाता है। इसमें दो पालियों का निर्माण होने लगता है। जो बीजपत्रों (Cotyledons) में विकसित हो जाता है। पालियों के बीच स्थित खाँच के आधारीय भाग से प्रांकुर (Plumule) का विकास होता है। इसलिए भ्रूण में प्रांकुर की स्थिति शीर्षस्थ एवं बीजपत्रों की स्थिति पाश्र्वीय होती है।
परिपक्व भ्रूण को दो बीजपत्रों तथा भ्रूणीय अक्ष में विभेदित किया जा सकता है। भ्रूण अक्ष का बीजपत्रों के स्तर से ऊपर का भाग बीजपत्रोपरिक (Epicotyl) तथा नीचे का भाग बीजपत्राधार (Hypocotyl) कहलाता हैं। बीजपत्रोपरिक के शीर्ष पर प्रांकुर (Plumule) स्थित होता है। बीजपत्रों में भोजन संचित रहता है जो बीजांकुरण के समय नवोद्भिद् को स्थापित करने के लिए प्रयुक्त होता है।
प्रश्न 5.
निम्न पर टिप्पणी लिखिए –
(अ) असंगतता
(ब) बीज का विकास
(स) फल का विकास
(द) पीढी एकान्तरण।
उत्तर
(अ) असंगतता या अनिषेच्यता (Incompatibility) – पूर्णतया कार्यक्षम (Functional) एवं जननक्षम (Fertile) नर एवं मादा युग्मकों के मध्य निषेचन (Fertilization) में विफलता को असंगतता अथवा अनिषेच्यता कहते हैं। यह दो प्रकार की होती है –
- अन्तरजातीय अनिषेच्यता (Interspecific incompatibility) – जब अनिषेच्यता एक ही वंश की विभिन्न जातियों के बीच होती है तब इसे अन्तरजातीय अनिषेच्यता कहते हैं।
- आन्तरजातीय अनिषेच्यता (Interespecific incompatibility) – जब अनिषेच्यता एक ही जाति के सदस्यों के बीच होती है तो इसे आन्तरजातीय अनिषेच्यता अथवा स्वअनिषेच्यता अथवा स्वबन्धता कहते हैं। उदाहरण– प्रिमुला (Primula)।
(ब) बीज का विकास (Development of seed) – पुष्पीय पादपों में द्विनिषेचन के पश्चात् भ्रूणकोष में भ्रूण तथा भ्रूणपोष का परिवर्धन होता है। इसके साथ-साथ ही अण्डाशय एवं बीजाण्ड में कुछ परिवर्तन होते हैं जिससे बीजाण्ड, बीज के रूप में विकसित होता है। बीजाण्ड के दोनों अध्यावरणों से बीजावरण बनते हैं। बाह्य बीजावरण से बाह्य बीज चोल या टेस्टा (Testa) तथा अन्तः अध्यावरण से अन्तः बीजचोल टेगमेन (Tegmen) बनता है। बीजाण्डवृन्त, बीजवृन्त में परिवर्तित हो जाता है। नाभिका, बीजाण्डद्वार, रैफी एवं निभाग में विशेष परिवर्तन प्रदर्शित नहीं होते हैं। इनके ऊतकों में परिपक्वता आ जाती है। बीजाण्डकाय प्रायः भ्रूणपोष परिवर्धन के समय उपयोग में आ जाता है। कुछ पादपों में यह भ्रूणपोष के परित: एक पतली परत परिभ्रूणपोष (Perisperm) के रूप में पाया जाता है। यूफोर्बिएसी कुल के कुछ पौधों जैसे अरण्ड के बीजाण्डद्वार वाले छोर पर सफेद रंग की संरचना कैरंकल (Caruncle) पायी जाती है। अधिकांश एकबीजपत्री पादपों में बीजाण्डद्वार वाले सिरे पर एक प्लगनुमा संरचना पायी जाती है जिसे ऑपरकुलम कहते हैं।
(स) फल का विकास (Development of Fruit) – पुष्पी पादपों में निषेचन के पश्चात् अण्डाशय का विकास फल (Fruit) के रूप में होता है। बीजाण्ड एवं अण्डाशय में हार्मोन संश्लेषण होता है। जिसके प्रभाव से अण्डाशय भित्ति (Ovary wall), फलभित्ति (Pericarp) में परिवर्तित हो जाती है। ऐसे फल जो केवल अण्डाशय से विकसित होते हैं, सत्य फल (True fruits) कहलाते हैं। जैसे-आम, अमरूद आदि। कुछ फलों के विकास में अण्डाशय के साथ-साथ, पुष्पासन एवं अन्य पुष्पीय भाग भी। सम्मिलित होते हैं, ऐसे फलों को आभासी फल (असत्य फल; False fruit) कहते हैं। जैसे- सेब, नाशपाती आदि। कभी-कभी अण्डाशय बिना निषेचन के ही फल में विकसित हो जाता है, जिसे अनिषेकफल (Parthenocarpic fruit) कहते हैं। इन फलों में बीजों का निर्माण नहीं होता है। जैसे-पपीता, केला, अंगूर आदि।
(द) पीढ़ी एकान्तरण (Alternation of Generation) – आवृतबीजी पौधों के जीवन चक्र में दो स्पष्ट प्रावस्थाएँ, बीजाणुभिद् (Sporophyte) तथा युग्मकोभिद् (Gametophyte) एक-दूसरे के एकान्तर क्रम में आती हैं। बीजाणुभिद् अवस्था लम्बी अवधि की मुख्य अवस्था है जो युग्मनज (Zygote) से विकसित होती है। यह द्विगुणित (2n) होती है और मूल, स्तम्भ एवं पत्तियों में विभेदित की जा सकती है। कायिक वृद्धि के पश्चात् इसमें जनन प्रवस्था आती है। बीजाणुभिदी पादप पुष्प धारण करता है जो लैगिक जनन में भाग लेते हैं। नर जननांग, पुंकेसर के पराग कोश में अर्धसूत्री विभाजन द्वारा लघुबीजाणुओं का निर्माण होता है जो अंकुरित होकर नर युग्मकोभिद् का विकास करते हैं।
इसी प्रकार मादा जननांग, जायांग के अण्डाशय में उपस्थित बीजाण्ड में अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा गुरुबीजाणुओं का निर्माण होता है जिनमें से एक गुरुबीजाणु द्वारा मादा युग्मकोभिद् बनता है। नर और मादा युग्मकोभिद् अगुणित (Haploid, n) प्रावस्थाएँ हैं, जो पूर्णत: बीजाणुभिद् पर आश्रित होती हैं। ये बीजाणुभिद् की तुलना में अल्प अवधि की तथा अनाकर्षक होती हैं। भ्रूणपोष में अण्डकोशिका बनती है जोकि मादा युग्मक होता है। नर और मादा युग्मकों के संलयन से द्विगुणित युग्मनज (2n, zygote) बनता है, जो बीजाणुभिद् की प्रथम कोशिका है, इसी से पुनः बीजाणुभिद् का विकास प्रारम्भ होता है। इस प्रकार आवृतबीजी पादपों के जीवन चक्र में द्विगुणित (बीजाणुभिद्) व अगुणित (युग्मकोभिद्) प्रावस्थाएँ एक के बाद एक एकान्तर क्रम में आती हैं, जिसे पीढ़ी एकान्तरण कहते हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
स्वपरागण का एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर
मटर में स्वपरागण पाया जाता है।
प्रश्न 2.
पर परागण का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर
पिटूनिया।
प्रश्न 3.
स्वकयुग्मन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
जब एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचते हैं अर्थात् पुष्प अपने ही परागकणों द्वारा परागित होता है तो इसे स्वकयुग्मन (Autogamy) कहते हैं।
प्रश्न 4.
उभयलिंगता किसे कहते हैं?
उत्तर
जब एक ही पौधा नर और मादा पुष्प अलग-अलग धारण करता है तो इसे उभयलिंगता (Bisexuality) कहते हैं।
प्रश्न 5.
एकलिंगता किसे कहते हैं?
उत्तर
जब एक पौधे पर एक ही प्रकार के पुष्प या तो नर अथवा मादा, पाए जाते हैं, तब इसे एकलिंगता (Unisexuality) कहते हैं।
प्रश्न 6.
अनुन्मील्यता क्या है?
उत्तर
जिन पौधों के पुष्प कभी नहीं खुलते उन्हें अनुन्मील्य पुष्प तथा इस घटना को अनुन्मील्यता कहते हैं।
प्रश्न 7.
अनुन्मील्यता के दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर
- वायोला
- कनकौआ।
प्रश्न 8.
अनिषेक फल क्या है?
उत्तर
बिना निषेचन के विकसित हुए बीजरहित फल अनिषेकफल कहलाते हैं।
प्रश्न 9.
किसी एक द्विबीजपत्री भ्रूणपोषी बीज का उदाहरण दीजिए।
उत्तर
अरण्ड़ (Ricinus)।
प्रश्न 10.
कूट फल किसे कहते हैं?
उत्तर
ऐसे फल जिनके निर्माण में अण्डाशय के साथ-साथ पुष्प के अन्य भाग जैसे बाह्यदल, दल, पुष्पासन आदि भी भाग लेते हैं, कूट फल (False fruits) कहलाते हैं।
प्रश्न 11.
कूट या आभासी फल के दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर
- सेब
- कटहल।
प्रश्न 12.
लघु बीजाणु चतुष्क की गुणिता (Ploidy) क्या होगी?
उत्तर
अगुणित (Haploid)।
प्रश्न 13.
परागकण की कौन-सी कोशिका बड़ी, प्रचुर पोषक युक्त व अनियमित आकार के केन्द्रक वाली होती है?
उत्तर
वर्धा (कायिक) कोशिका।
प्रश्न 14.
बीजाणु का वह स्थान जहाँ बीजाण्डवृन्त जुड़ा होता है, क्या कहलाता है?
उत्तर
हाइलम (Hilum)।
प्रश्न 15.
एकलिंगी पुष्यों को धारण करने वाले एक ऐसे पौधे का नाम लिखिए जो ऑटोगेमी तो रोक सकता है। किन्तु गिटॉनोगैमी नहीं, क्यों?
उत्तर
मक्का। क्योंकि मक्का का पौधा उभयलिंगाश्रयी (Monoecious) होता है। चूंकि नर व मादा एकलिंगी पुष्प एक ही पौधे पर होते हैं। अतः इनमें गिटोनोगैमी नहीं रोकी जा सकती है।
प्रश्न 16.
केले को अनिषेक फलन का एक अच्छा उदाहरण क्यों माना जाता है?
उत्तर
केले को अनिषेक फलन का एक अच्छा उदाहरण माना जा सकता है क्योंकि यह बिना निषेचन के विकसित होता है तथा बीजरहित फल होता है।
प्रश्न 17.
आप जब नारियल पानी पीते हैं तो इस पौधे के लैंगिक जनन में बनने वाली किस रचना का सेवन करते हैं?
उत्तर
मुक्त केन्द्रकीय भ्रूणपोष (Free central endosperm)।
प्रश्न 18.
भ्रूणीय अक्ष का मूलांकुर से ऊपर का भाग क्या कहलाता है?
उत्तर
बीजपत्राधार (Hypocotyl)।
प्रश्न 19.
पुष्पी पादपों और अनावृत्तबीजी पादपों के भ्रूणपोष की गुणिता बताइए।
उत्तर
पुष्पी पादपों का भ्रूणपोष त्रिगुणित (3n) तथा अनावृतबीजी पौधों का भ्रूणपोष अगुणित (n) होता है।
प्रश्न 20.
मक्का के भुट्टे के लम्बे रेशमी बाल पुष्प के किस भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं?
उत्तर
वर्तिकाग्र (Stigma) का।
प्रश्न 21.
पुंपूर्वता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
जब परागकोष, वर्तिकाग्र से पहले परिपक्व होता है तो इसे पुंपूर्वता (Protandry) कहते हैं।
प्रश्न 22.
स्त्रीपूर्वता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
जब वर्तिकाग्र, परागकोष से पहले परिपक्व हो जाता है तब इसे स्त्रीपूर्वता (Protogyny) कहते हैं।
प्रश्न 23.
वायु परागित पुष्पों के दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर
- मक्का
- घास।
प्रश्न 24.
साल्विया में किस प्रकार का परागण पाया जाता है?
उत्तर
कीट परागण (Insect pollination)
प्रश्न 25.
दो पक्षी परागित पुष्यों के नाम लिखिए।
उत्तर
- बिगोनिया तथा
- पलाश।
प्रश्न 26.
कचनार में मुख्य परागणकर्ता का नाम लिखिए।
उत्तर
चमगादड़।
प्रश्न 27.
घोंघों द्वारा परागण किन पौधों में पाया जाता है?
उत्तर
आर्किड्स (Orchids) में।
प्रश्न 28.
सर्वप्रथम स्ट्रासबर्गर ने किस पादप में निषेचन की खोज की?
उत्तर
लिलियम (Lilitum) में।
प्रश्न 29.
बहुनलिकीय परागकण के दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर
कद्दू एवं कपास।
प्रश्न 30.
पराग नलिका की वृद्धि किस प्रकार की होती है?
उत्तर
एकदिशीय, रसायन अनुवर्ती (Chemotropic)।
प्रश्न 31.
पराग नलिका की वर्तिका में वृद्धि, वर्तिका के ऊतकों के नष्ट होने से भी होती है। उस एन्जाइम का नाम बताइए जो वर्तिका के ऊतकों का विघटन करती है।
उत्तर
पैक्टिनेज (Pactinase) नामक एन्जाइम।
प्रश्न 32.
प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक का निर्माण किसके द्वारा होता है?
उत्तर
एक नर युग्मक तथा द्वितीयक केन्द्रक के संलयन से।
प्रश्न 33.
द्वि निषेचन की खोज सर्वप्रथम किसने और किस पौधे में की थी?
उत्तर
नावाश्चिन ने फ्रिटिलेरिया तथा लिलियम पौधों में।
प्रश्न 34.
भ्रूण परिवर्धन का अध्ययन सर्वप्रथम किसने किया?
उत्तर
हेन्सटीन (Henstein) ने।
प्रश्न 35.
क्रूसीफेरी कुल के किस पौधे में सर्वप्रथम द्विबीजपत्री भ्रूण परिवर्धन का अध्ययन किया गया?
उत्तर
कैप्सेला बर्सा पैस्टोरिस (Capsetta bursd pestoris) में।
प्रश्न 36.
निलम्बक के भ्रूणीय सिरे की ओर स्थित कोशिका अधःस्फीतिका क्या कार्य करती है?
उत्तर
मूलांकुर के साथ मिलकर मूलांकुर शीर्ष बनाती है।
प्रश्न 37.
परिभ्रूणपोष किसे कहते हैं?
उत्तर
कुछ पौधों में बीजाण्ड के चारों ओर भ्रूणपोष की एक पतली परत पायी जाती है जिसे परिभ्रूणपोष (Perisperm) कहते हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दावली को सही विकासीय क्रम में व्यवस्थित कीजिए –
परागकण, बीजाणुजन ऊतक, लघुबीजाणु चतुष्क, परागमातृ कोशिका, नर युग्मक
उत्तर
उपरोक्त शब्दों का सही विकासीय क्रम होगा –
- बीजाणुजन ऊतक
- पराग मातृकोशिका
- लघुबीजाणु चतुष्क
- परागकण
- नर युग्मक।
प्रश्न 2.
स्वपरागण एवं पर-परागण को एक-एक उदाहरण देकर परिभाषित कीजिए।
उत्तर
- स्वपरागण (Self pollination) – जब किसी पौधे के पुष्प के परागकण, उसी पुष्प या उसी पौधे के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानानतरित होते हैं तो इसे स्वपरागण कहते हैं। उदाहरण– मटर (Pea)।
- पर-परागण (Cross-pollination) – जब एक पौधे के पुष्प के परागकण उसी जाति के किसी अन्य पौधे के पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानान्तरित होते हैं, तो इसे पर-परागण कहते हैं। उदाहरण– ग्लोरिओसा।
प्रश्न 3.
(1) नारियल में भ्रूणपोष के बनने का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
(2) नरम नारियल को एक स्वास्थ्यवर्धक पोषण स्रोत क्यों माना जाता है?
(3) एण्डोस्पर्म के संदर्भ में अरण्ड के बीजों की तुलना में मटर के बीज किस प्रकार भिन्न होते हैं?
उत्तर
- नारियल में मुक्तकेन्द्रकीय भ्रूणपोष (Free nuclear endosperm) बनता है। इसका अर्थ है, त्रिसंलयन से बना प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक अनेक बार विभाजित होकर बहुत से केन्द्रक बनाता है जो परधि की ओर व्यवस्थित हो जाते हैं। नारियल का पानी यही मुक्त केन्द्रकीय भ्रूणपोष होता है।
- नरम नारियल, नारियल के फल/बीज के पोषक भाग अर्थात् भ्रूणपोष का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें भ्रूण की वृद्धि के लिए अनेक प्रकार के पोषक तत्वों का संग्रह रहता है। अतः मनुष्य के लिए भी यह पोषक पदार्थों का स्रोत माना जाता है। इसमें कोशिकीय अवयवों, केन्द्रकों के साथ-साथ प्रोटीन, वसा, खनिज, विटामिन आदि भी प्रचुरता में होते हैं।
- अरण्ड के बीज भ्रूणपोषी (Endospermic) होते हैं जिसमें पोषक पदार्थ भ्रूणपोष में संचित रहते हैं। मटर एक अभ्रूणपोषी बीज है। जिसमें खाद्य पदार्थ बीजों में संचित रहते हैं।
प्रश्न 4.
परागकण-अण्डप पारस्परिक क्रिया का अध्ययन प्रजनन विज्ञानियों हेतु क्यों आवश्यक है?
उत्तर
परागकण-अण्डप पारस्परिक क्रिया (Pollen pistil interaction) में वर्तिकाग्र द्वारा परागकण की पहचान वे इसके फलस्वरूप होने वाले परागकण के अंकुरण के प्रेरण व पराग नलिका वृद्धि अथवा परागकण अंकुरण की रोक व वृद्धि के अवरोधन शामिल हैं।
इसके अध्ययन से प्राप्त ज्ञान पादप प्रजनन विज्ञानी को परागकण-अण्ड़प पारस्परिक क्रिया में वांछित फेरबदल (Manipulation) करने में सफल बना सकता है। अतः असंगतता (Incompatibility) प्रदर्शित करने वाले परागकणों द्वारा भी वांछित गुणों वाले जनकों का संकरण करा कर उन्नत किस्म वाले संकर (Hybrid) प्राप्त किए जा सकते हैं।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित में अन्तर लिखिए –
(अ) प्रांकुर चोल व मूलांकुर चोल
(ब) अध्यावरण व वीजचोल
उत्तर
(अ) प्रांकुरचोल व मूलांकुर चोल (Coleoptile and coleorrhiza) – एकबीजपत्री पौधों के बीजों में प्रांकुर (Plumule) व मूलांकुर (Radicle) सुरक्षात्मक आच्छद (Protective sheath) से ढके रहते हैं। जैसा कि नाम से स्पष्ट है। प्रांकुर का यह आच्छद प्रांकुर चोल कहलाता है जबकि मूलांकर की आच्छद मूलांकर चोल (Coleorrhiza) कहलाता है। प्रांकुर चोल घास के नवांकुरों (Seedlings) में प्रथम पत्ती की भाँति निकलता है। भूमि से ऊपर यह एक प्रांकुर के ऊपर एक सुरक्षात्मक आवरण बनाता है।
(ब) अध्यावरण व बीज चोल (Integument and Testa) – बीजाण्ड के चारों ओर पाये जाने वाले एक या दो स्तरीय आवरण को अध्यावरण कहते हैं। निषेचन के पश्चात् जब बीजाण्ड परिपक्व होकर बीज के रूप में परिवर्तित हो जाता है तब यह अध्यावरण बीज चोल (Testa) कहलाता है। यदि बीजाण्ड में केवल एक ही अध्यावरण है तो इससे केवल बीज चोल का निर्माण होता है। अध्यावरण के द्विस्तरीय होने पर बीज में बीजकवच के दो स्तर होते हैं—बाह्य टेस्टा (Testa) तथा आन्तरिक टेगमेन (Tegmen)।
प्रश्न 6.
स्वपरागण के लाभ एवं हानियाँ लिखिए।
उत्तर
स्वपरागण के लाभ (Advantages of self pollination)
- इसमें अधिक संख्या में परागकणों की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि परागकणों का व्यर्थ व्यय अधिक नहीं होता है।
- स्वपरागण की क्रिया सरल व सुलभ होती है।
- स्वपरागण से उत्पन्न बीज शुद्ध नस्ली (Pure variety) होते हैं।
- पुष्पों को रंग, सुगंध तथा मकरन्द स्रावित करने की आवश्यकता नहीं होती है।
- स्वपरागण के अवसर अधिक होते हैं।
स्वपरागण की हानियाँ (Disadvantage of Self Pollination)
- स्वपरागण से उत्पन्न बीजों में संकर ओज (Hybrid vigoun) कम होता है।
- स्वपरागित पुष्पों से उत्पन्न बीज संख्या में कम, हल्के व छोटे होते हैं।
- परागण के बाद उत्पन्न पौधों में अच्छे वे स्वस्थ पौधों के गुणों का सम्मिश्रण नहीं हो पाता है।
- इस परागण से उत्पन्न पौधे दुर्बल व अस्वस्थ होते हैं।
- पादप विकास की सम्भावनाएँ कम हो जाती हैं।
प्रश्न 7.
वायु परागित पुष्पों में इस प्रकार के परागण के लिए अनुकूलन बताइए।
अथवा
वायुपरागित पुष्यों की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
वायु परागित पुष्यों की विशेषताएँ (Characteristics of air Pollinated Flowers) –
- वायु परागित पुष्प आकार में छोटे, रंगहीन, गंधहीन एवं आकर्षणहीन होते हैं।
- इनमें परिदल (Perianth) अनुपस्थित अथवा अत्यन्त समानीत होते हैं।
- परागकण छोटे, हल्के तथा प्राय: चिकने होते हैं।
- वायु परागण के लिए पुष्पों में अनेक अनुकूलन होते हैं। अनेक घासों में पुष्पक्रम पत्तियों से ऊँचा उठा रहता है जिससे पुष्प वायु के सम्पर्क में रहें। इन पौधों के पुष्पों के पुंकेसर प्रायः लम्बे तथा परागकोष मुक्तहोली (Varsatile) होते हैं।
- वायु परागित पुष्पों में वर्तिकाग्र प्रायः बड़ी तथा पिच्छाकार (Feathery) होती है जो पुष्प से बाहर निकली रहती है।
- परागकणों का निर्माण भारी संख्या में होता है।
प्रश्न 8.
जल परागित पुष्यों की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
जल परागित पुष्पयों की विशेषताएँ (Characteristics of water pollinated flowers)
- जल परागित पौधों के पुष्प छोटे, रंगहीन, गंधहीन होते हैं। इनमें मकरन्द नहीं बनता है।
- परागकण हल्के होते हैं जो मोम जैसे पदार्थ से ढके होते हैं।
- वर्तिकाग्र लम्बी, रोमयुक्त एवं चिपकी हुई होती है किन्तु अनआर्द्र (Unwettable) होती है।
- नर पुष्प अवृन्ती, जलमग्न तथा मादा पुष्प लम्बे, कुण्डलित वृन्त वाले होते हैं।
- बाह्यदल पुंज, दलपुंज एवं अन्य पुष्पीय भाग अनआर्द्र होते हैं।
प्रश्न 9.
पर परागण के लाभ तथा हानियाँ लिखिए।
उत्तर
पर-परागण के लाभ (Advantages of cross-pollination)
- पर-परागण द्वारा जातियों में नये लक्षणों का विकास होता है।
- पर-परागण से उत्पन्न बीज संकर ओज (Hybrid vigaur) वाले होते हैं जिनसे उत्पन्न पौधे सुन्दर, मजबूत व स्वस्थ होते हैं।
- अनेक प्रकार के फसली पौधों जैसे- सरसों, सूर्यमुखी, कुकरबिट्स में अधिक उत्पादन प्राप्त होता है।
- विकास एवं अनुकूलन की अधिक सम्भावना होती है।
पर-परागण की हानियाँ (Disadvantages of Cross-pollination)
- पर-परागण के लिए पौधों को अनेक माध्यमों जैसे-जल, वायु, कीट, पक्षी आदि पर निर्भर रहना पड़ता है। अतः इसमें अनिश्चितता रहती है।
- पर-परागण के लिए भारी संख्या में परागकण उत्पन्न करने पड़ते हैं।
- पर-परागण से पौधों की शुद्धता पूर्णतः समाप्त हो जाती है।
- पौधों को पर-परागण के लिए बहुत से अनुकूलन करने पड़ते हैं जिसमें काफी मात्रा में खाद्य पदार्थों का व्यय करना पड़ता है।
प्रश्न 10.
एक सेब को आभासी फल क्यों कहते हैं? पुष्प का कौन-सा भाग फल की रचना करता है? आभासी फलों के दो अन्य उदाहरण लिखिए।
उत्तर
निषेचन के बाद पुष्प का अण्डाशय (Ovary) फल के रूप में विकसित हो जाता है। अर्थात् परिपक्व अण्डाशय ही फल (Fruit) है। सेब में अण्डाशय के अतिरिक्त पुष्पासन (Thalamus) भी फल के निर्माण में भाग लेता है। वास्तव में सेब तथा नाशपाती में पुष्पासन गूदेदार (Fleshy) होकर फल का मुख्य खाद्य भाग बनाता है। जबकि बीज धारण करने वाले कड़ी परत वाले अण्डाशय को खाने में उपयोग नहीं किया जाता है। ऐसे फल जिनमें अण्डाशय के अतिरक्ति अन्य भाग जैसे, पुष्पासन, पुष्पक्रम आदि फल निर्माण में भाग लेते हैं कूट या आभासी फल (False fruits) कहलाते हैं। अन्य उदाहरण– कटहल, नाशपाती।
प्रश्न 11.
यदि कोई व्यक्ति वृद्धि कारकों का प्रयोग करते हुए अनिषेक जनन को प्रेरित करता है तब आप प्रेरित अनिषेक जनन के लिए कौन-सा फल चुनते हैं और क्यों?
उत्तर
अनिषेक जनन (Parthenogenesis) द्वारा उत्पन्न फल चूंकि बिना निषेचन के ही बनते हैं। अत: ये बीज रहित होते हैं। वृद्धि हार्मोन्स के प्रयोग द्वारा अनिषेकफलन को प्रेरित किया जा सकता है। ऐसे फल जिनके बीज अधिक आर्थिक महत्व के नहीं होते हैं व फलों । को खाते समय बाधा बन जाते हैं, उनमें अनिषेक फलन उपयोगी रहता हैं।
तरबूज (Watermelon), सन्तरा आदि के बीज उनके खाने का । मजा कम कर देते हैं। अत: इनके अनिषेकफल । (Parthenocarpic fruits) बीजरहित होंगे व फल की गुणवत्ता बढ़ा देंगे।
प्रश्न 12.
कृत्रिम परागण एवं इमैस्कुलेशन से आप क्या समझते हैं? इसके विभिन्न चरणों को बताइए।
उत्तर
कृत्रिम परागण एवं इमैस्कुलेशन (Artificial Pollination and Emasculation) – किसी पुष्प के परागकणों को इच्छानुसार किसी दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र (Stigma) पर पहुँचाना कृत्रिम परागण कहलाता है। कृत्रिम परागण के निम्न तीन चरण होते हैं –
- सर्वप्रथम दो उपयुक्त नर एवं मादा पौधों का चयन किया जाता है। मादा पौधे की पुष्प कलिका को खोलकर उसके शिशु परागकोषों (Developing anthers) को काटकर निकाल दिया जाता है तथा पुष्प को पॉलीथीन की थैली से ढक दिया जाता है। पुंकेसरों को काटकर निकालना विपुंसन या इमैस्कुलेशन (Emasculation) कहलाता है तथा थैली से पुष्प को ढकना केपिंग (Capping) या बैगिंग (Bagging) कहलाता है।
- इच्छित पौधे से परागकण प्राप्त करके दूसरे पौधे के पुष्प से पॉलीथीन बैग हटाकर वर्तिकाग्र पर ब्रुश की सहायता से परागकणों को झाड़ दिया जाता है और पुष्प को पुनः थैली से ढक दिया जाता है जिससे किसी अन्य पुष्प का परागकण उस वर्तिकाग्र पर न आ सके।
- परागकणों द्वारा निषेचन से बने बीजों को फल के परिपक्व होने पर एकत्र कर लिया जाता है। ये बीज पूर्णरूप से संकर (Hybrid) होते हैं। ये पौधे अपने जनकों से गुणों में श्रेष्ठ होते हैं क्योंकि इनमें दो जनकों के वांछित एवं उत्तम गुणों का मिश्रण होता है।
प्रश्न 13.
स्वपरागण तथा पर परागण में अन्तर लिखिए।
उत्तर
स्वपरागण तथा पर-परागण में अन्तर (Difference between self pollination and cross-pollination)
स्वपरागण (Self pollination) |
पर-परागण (Cross-pollination) |
|
1. | यह एक ही पुष्प के नर व मादा जननांगों के बीच होता है अथवा उसी पौधे के अन्य पुष्यों के साथ होता है। | यह एक जाति के दो अलग-अलग पौधों के पुष्पों के बीच होता है। |
2. | इसके लिए उभयलिंगी पुष्प या द्विलिंगी पौधों का होना आवश्यक है। | इसके लिए पुष्पों का उभयलिंगी या पौधों का द्विलिंगी होना आवश्यक नहीं है। |
3. | स्व परागण के लिए पुष्यों का रंगीन, चमकदार, बड़ा व आकर्षित होना आवश्यक नहीं है। | पर-परागण के लिए प्रायः पुष्पों का आकर्षक, बड़ा एवं चमकदार होना आवश्यक है। |
4. | इसमें परागकणों का व्यर्थ व्यय कम होता है अतः अधिक संख्या में परागकण उत्पन्न करने की आवश्यकता नहीं होती है। | इसमें परागकणों का व्यर्थ व्यय अधिक होता है। अतः पुष्पों को बड़ी संख्या में परागकण उत्पन्न करने पड़ते हैं। |
5. | स्व परागण के लिए बाह्य कर्मकों (Pollinatory agents) की आवश्यकता नहीं होती है। | पर-परागण में बाह्य कर्मकों की आवश्यकता होती है। |
6. | स्व परागण के फलस्वरूप बने बीज हल्के एवं संख्या में कम होते हैं। | इसके द्वारा बने बीज भारी व बड़े होते हैं। |
7. | इससे पौधों की शुद्धता बनी रहती है। | इसमें दो पौधों का मिश्रण होता है। |
8. | विभिन्नता एवं विकास की सम्भावना कम रहती हैं। | विभिन्नता एवं विकास की सम्भावना अधिक रहती है। |
प्रश्न 14.
निम्नलिखित में अन्तर लिखिए –
(अ) पेरीस्पर्म (Perisperm) एवं पेरीकॉर्प (Pericarp)
(ब) भूणपोष (Embryosac) एवं भूणपोष (Endosperm)
उत्तर
(अ) पेरीस्पर्म एवं पेरीकार्प में अन्तर
पेरीस्पर्म (Perisperm) |
पेरीकार्प (Pericarp) |
|
1. | यह बीज का अंश है जो बीज के ऊपर एक पतली पर्त के रूप में पाया जाता है। | यह फल का अंग है जो फल का बाह्य हिस्सा बनाती है। |
2. | यह बीजाण्डकाय (Nucellus) अपशिष्टों को प्रस्तुत करता है और सूखा होता है। | इसके लिए पुष्पों का उभयलिंगी या पौधों का द्विलिंगी होना आवश्यक नहीं है। |
3. | इसका कोई महत्व नहीं होता है। | यह सुरक्षा, प्रकीर्णन एवं पोषक महत्व का होता है। |
(ब) भ्रणकोष एवं भ्रूणपोष में अन्तर
भूणकोष (Embryosac) |
भूणपोष (Endosperm) |
|
1. | यह बीजाण्ड में बीजाण्ड काय के ऊतक में धंसा एक कक्ष होता है। | यह भ्रूणकोष के अन्दर स्थित होता है। |
2. | इसका विकास गुरुबीजाणु जनन के फलस्वरूप होता है। | इसका विकास त्रिसंलयन के फलस्वरूप बने प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक से होता है। |
3. | यह अण्ड उपकरण, प्रतिमुखी एवं सहायक कोशिकाओं तथा द्वितीयक केन्द्रक को धारित करता है। | यह परिवर्धनशील भ्रूण को पोषण उपलब्ध कराता है। |
प्रश्न 15.
निम्नलिखित की गुणिता बताइए –
(i) अनिषेचित अण्ड कोशिका
(ii) निषेचित अण्ड
(iii) सहायक कोशिका
(iv) प्रतिमुखी कोशिका
(v) प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक
(vi) प्रांकुर की कोशिका
उत्तर
(i) अनिषेचित अण्ड कोशिका – अगुणित (n)
(ii) निषेचित अण्ड – द्विगुणित (2n)
(iii) सहायक कोशिका – अगुणित (n)
(iv) प्रतिमुखी कोशिका – अगुणित (n)
(v) प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक – त्रिगुणित (3n)
(vi) प्रांकुरे की कोशिका – द्विगुणित (2n)
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पर-परागण से आप क्या समझते हैं? पर-परागण के लिए युक्तियाँ एवं अनुकूलन बताइए।
उत्तर
परपरागण की युक्तियाँ एवं अनुकूलन (Contrivances or Adaptations for cross-pollination) – अनेक पादपों में ऐसी विभिन्न युक्तियाँ एवं अनुकूलन पाए जाते हैं जो परपरागण को प्रेरित करते हैं। प्रमुख युक्तियाँ एवं अनुकूलन निम्नलिखित हैं –
(i) स्वबंध्यता (Self sterility) – कुछ पौधों के पुष्पों में स्वयं के द्वारा विकसित परागकणों का उसी पुष्प के वर्तिकाग्र (Stigma) पर अनुकूलता होने के बावजूद भी अंकुरण नहीं होता है। इसे स्वबंध्यता कहते हैं। उदाहरण- राखीबेल (Passiflord), अंगूर (Vitis), पिटूनिया (Pitunia), आलू (Solanum tuberosum), तम्बाकू (Tobacco), चाय (Tea) आदि।
(ii) एकलिंगता (Unisexuality or Dicliny) – पौधे के समस्त पुष्पों में एकलिंगता होने पर केवल पर-परागण ही सम्भव होता है, क्योंकि उनमें एक पुष्प में नर (Male) अथवा मादा (Female) में से एक प्रकार के जनन अंग ही पाए जाते हैं। उदाहरण-पपीता (Papaya), ताड़ (Palm) आदि।
ऐसे पौधों में जिनमें उभय लिंगाश्रयीता (Monoeciousness) पायी जाती है, एक ही पौधे पर उपस्थित इन एकलिंगी पुष्पों के बीच परागण क्रिया हो सकती है, इसको गिटॉनोगैमी (Geitonogamy) कहते हैं और यह स्वपरागण की ही तरह क्रिया है। यह भी अत्यन्त सामान्य है कि इन उभयलिंगाश्रयी पौधों में, जिनमें नर व मादा पुष्प एक ही पौधे पर लगते हैं, अन्य प्रयुक्तियाँ प्रयोग में लाकर गिटॉनोगैमी को असफल बनाया जाता है। उदाहरण के लिए लौकी एवं तुरई में एक ही पौधे पर दोनों प्रकार के एकलिंगी पुष्प उत्पन्न होते हैं। इनमें सजातपुष्पी परागण (Geitonogamy) होता है, जिसे स्वपरागण का प्रकार माना जाता है।
(iii) भिन्नकालपक्वता (Dichogamy) – कुछ पौधों के पुष्पों में पुमंग (Androecium) एवं जायांग (Gynoecium) अलग-अलग समय पर परिपक्व होते हैं। इसे भिन्नकालपक्वता कहते हैं। यह दो प्रकार की होती है –
- पुंपूर्वता (Protandry) – जब परागकोष वर्तिकाग्र से पूर्व परिपक्व होता है तो इसे पुंपूर्वता कहते हैं। उदाहरण- गुड़हल (China rose), कपास (Gossypium), सूरजमुखी (Sunflower),
अरण्डी आदि। - स्त्रीपूर्वता (Protogyny) – जब वर्तिकाग्र परागकोष से पहले परिपक्व हो जाता है, तो इसे स्त्रीपूर्वता कहते हैं। उदाहरण- बैंसिकेसी (Brassicaceae) तथा रोजेसी (Rosaceae) कुल के अधिकांश पादप, चम्पा (Champa), बरगद (Banyan) आदि।
(iv) अवरुद्ध परागणता या हरकोगेमी (Herkogamy) – अनेक पौधों के पुष्पों में वर्तिकाग्र के ग्राह्यतल तथा परागकोषों की स्थिति इस प्रकार की होती है कि उसी पुष्प के परागकण वर्तिकाग्र पर नहीं पहुँच पाते हैं। अर्थात वर्तिकाग्र एवं परागकोष के मध्य किसी प्रकार का अवरोध पाया जाता है जिससे स्वपरागण सम्भव नहीं होता है, इसे अवरुद्ध परागणता कहते हैं। उदाहरण के लिए कैरियोफिल्लेसी (Caryophyllaceace) कुल के पौधों में वर्तिका की लम्बाई पुंकेसरों से काफी अधिक होने के कारण इनके मध्य स्वपरागण सम्भव नहीं हो पाता है। कलिहारी (Gloriosa) के पुष्पों में परागकोषों का स्फुटन इस प्रकार का होता है कि परागकण दूर-दूर जाकर गिरते हैं। कुछ पौधों के पुष्पों में परागकोष पुष्प से बाहर निकले रहते हैं और वर्तिकाग्र पुष्प के अन्दर गहराई में स्थित होते हैं।
(v) विषम वर्तिकात्व (Heterostyly) – अनेक पौधों में पुष्पों का . स्वरूप दो या तीन या अधिक प्रकार का होता है, जैसे इनमें द्विरूपता (Dimorphism), त्रिरूपता (Trimorphism) आदि प्रकार की विषमरूपता पायी जाती है। एक ओर पुष्प लम्बी वर्तिका (Long style) व छोटे पुंकेसर (Short stamen) युक्त होते हैं। जबकि दूसरी ओर पुष्प छोटी वर्तिका (Short style) व लम्बे पुंकेसर (Long Stamen) वाले होते हैं। अतः इनमें स्वपरागण सम्भव नहीं होता है। क्योंकि लंबे वर्तिकाग्र, लम्बे पुंकेसर के परागकणों से तथा छोटी वर्तिकाग्र, छोटे पुंकेसर वाले परागकणों से ही परागित हो सकती है।
प्रश्न 2.
पर-परागण की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
पर-परागण की विधियाँ (Methods of Cross-Pollination) – पर-परागण दो पौधों पर उपस्थित पुष्पों के बीच होता है; अतः इसे सम्पन्न करने के लिए अर्थात परागकणों को एक पुष्प से दूसरे पौधे पर उपस्थित पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुँचाने के लिए किसी न किसी साधन की आवश्यकता होती है। परपरागण के ये साधन कर्मक (Agents) कहलाते हैं। ये बाहृय साधन अजैविक (जैसे- वायु, जल) अथवा जैविक (जैसे-कीट, पक्षी, जन्तु) हो सकते हैं। इन बाह्य साधनों के आधार पर परपरागण निम्न प्रकार का हो सकता है –
1. वायुपरागण (Anemophily) – जब परागकोष से परागकणों का वर्तिकाग्र पर स्थानान्तरण वायु द्वारा होता है, तो इसे वायु परागण कहते हैं। वायु परागित होने वाले पौधों के परागकण छोटे, हल्के, चिकने एवं शुष्क होते हैं। इनका उत्पादन अत्यधिक संख्या में होता है। वायु द्वारा परागित होने वाले वर्तिकाग्र में भी अनेक अनुकूलन पाए जाते हैं। जैसे-घास में रोमिल वर्तिकाग्र (Hairy stigma), या पक्ष्माभी वर्तिकाग्र (Feathery stigma) टाइफा में ब्रुश जैसी वर्तिकाग्र का पाया जाना।
वायु परागित पौधों के उदाहरण-गेहूं, चावल, मक्का, बाजरा, चीड़ (Pine), ताड़ (Palm), अनेक घासे (Grasses), गन्ना आदि।
2. जल परागण (Hydrophily) – जब परागकोष से परागकणों का वर्तिकाग्र पर स्थानान्तरण जल द्वारा होता है तो इसे जल परागण कहते हैं। सामान्यतया सभी जलीय पौधे जल परागित नहीं होते हैं। उदाहरणार्थ-पोटेमोजीटोन (Potamogeton), मिरियोफिल्लम (Myriophyllum) वायु परागित एवं निम्फिया (Nymphaea) कीट परागित होता है जबकि ये जलीय पौधे हैं। जल परागित पौधों के उदाहरण- हाइड्रिला (Hydrilla), इलोडिया (Elodea), सिरेटोफिलम (Ceratophyllum) वैलिस्नेरिया (Vallisneria) आदि।
जल परागण प्रायः दो प्रकार के होते हैं –
(i) अधोजल परागण या जलाधः परागण (Hyphydrophily) – जब परागण जल के अन्दर होता है, तब इसे अधोजल परागण कहते हैं। उदाहरण-नाजास (Najas), सिरेटोफिल्लम (Ceratophyllum), जोस्टेरा (Zostera) आदि जल नियमन (Merged) पौधों में केवल अधोजल परागण पाया जाता है।
(ii) अधिजल-परागण या जलपृष्ठ परागण (Ephydrophily) – जब जलीय पौधों के पुष्पों का परागण जल की सतह पर होता है, तो इसे अधिजल परागण कहते हैं। उदाहरण वेलिस्नेरिया (Vattisneria)। इन पौधों में पुष्प जल की सतह पर पहुँच जाते हैं।
(iii) कीट परागण (Entomophily) – अनेक प्रकार के कीट जैसे- मधुमक्खियाँ (Bees), पतंगा (Moth), तितली, टांटियां, बीटल आदि कीट परागण में सहायता करते हैं। एक अनुमान के अनुसार लगभग 80% कीट परागण मधुमक्खियों द्वारा होता है। कीट-परागित पादपों के पुष्प प्राय: रंगीन, चमकदार, मकरंदयुक्त एवं गंधयुक्त तथा आकर्षक होते हैं। सरसों (Brussica), तुखमलंगा (Saluta), आक (Calotropis) आर्किड्स (Orchids) आदि कीट परागित पुष्प हैं।
(iv) पक्षी परागण (Ornithophily) – अनेक उष्णकटिबन्धीय पौधे पक्षियों द्वारा परागित होते हैं। इनके पुष्प विशेष संरचना वाले होते हैं। जैसे- नलिकाकार-तम्बाकू, (Nicotiana), प्यालेनुमा-बोतल ब्रुश (Calistimone) अथवा कुम्भाकार-ऐरिकेसी कुल के पौधे। ये पुष्प चमकदार, आकर्षक एवं मकरन्द युक्त होते हैं। मकरंद से आकर्षित होकर आये पक्षियों की चोंच एवं शरीर से परागकण चिपक जाते हैं। प्रमुख परागणकर्ता पक्षी हैं-गुंजनपक्षी (Humming bird), शकरखोरा (Sun bird), नेक्टेरीना (Nectarina)। कुछ पक्षी परागित पौधों के उदाहरण हैं- सेमल (Bombbx), बिग्नोनिया (Bignonia), पलाश (Butea), रक्तमदार (Erythrina) आदि।
(v) चमगादड़ परागण (Cheiropterophily) – चमगादड़ एक रात्रिचर स्तनपायी (Nocturnal mammale), उड़ने वाला जन्तु है। तथा मकरंद एवं कीट-पतंगों की खोज में पुष्पों पर जाता है। कुछ पादपों में पुष्प रात्रि में खिलते हैं और अधिक मात्रा में मकरंद स्रावित करते हैं। चमगादड़ इन पुष्पों पर पहुँचकर परागकणों के स्थानान्तरण में सहायता करते हैं। चमगादड़ द्वारा परागित पुष्पों के उदाहरण हैं- कदम्ब (Anthocephalus), कचनार (Bauhinia), बालमखीरा (Kigellia), गोरख इमली (Adansonia) आदि।
(vi) अन्य (Others) – कुछ पौधों जैसे- सर्पवृक्ष (Arisdeuma) एवं कुछ आर्किड्स में घोंघों (Snails) द्वारा जबकि गुलमोहर तथा सेमल में पक्षी परागण के साथ-साथ गिलहरी द्वारा परागण भी होता है।
प्रश्न 3.
(a) असंगतता या अनिषेच्यता से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों को समझाइए।
(b) पराग-स्त्रीकेसर पारस्परिक क्रिया का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर
(a) असंगतता या अनिषेच्यता (Incompatibility) – पूर्णतया कार्यक्षम (Functional) एवं जननक्षम (Fertile) नर एवं मादा युग्मकों के मध्य निषेचन (Fertilization) में विफलता असंगतता अथवा अनिषेच्यता कहलाती है। यह दो प्रकार की होती है –
- अन्तरजातीय अनिषेच्यता (Interspecific incompatibility) – जब अनिषेच्यता एक ही वंश (Genus) की विभिन्न जातियों (Species) के मध्य होती है तब इसे अन्तरजातीय अनिषेच्यता कहते हैं, जैसे-जैसिका कैम्पेस्ट्रिस x बेसिका रापा।
- आन्तरजातीय अनिषेच्यता (Intraspecific incompatibility) – जब अनिषेच्यता एक ही जाति के सदस्यों के बीच होती है तो इसे आन्तरजातीय अनिषेच्यता अथवा स्व-अनिषेच्यता अथवा स्वबंध्यता (Self incompatibility or self sterility) कहते हैं। उदाहरण-प्रिमुला (Primula)।
(b) पराग-स्त्रीकेसर पारस्परिक क्रिया (Pollen pistil interaction) – के परिणामस्वरूप पौधों में असंगतता पायी जाती है। इसके लिए उत्तरदायी कारक कार्यिकीय (Physiological) अथवा आकारिकीय (Morphological) हो सकते हैं। यह एक जीन (Gene) के बहुयुग्म विकल्पियों (Multiple alleles) द्वारा नियंत्रित होती है। सामान्यत: यह अन्त:क्रिया वर्तिकाग्र (Stigma) के परिपक्व होने तथा परागकणों (Pollen grains) की भित्ति निर्माण के समय विकसित होती है। स्व-अनिषेच्यता का निर्धारण एवं नियंत्रण यदि नर युग्मकोभिद् (Male gametophyte) अर्थात परागकण के जीन प्रारूप (Genotype) द्वारा होता है तो उसे युग्मकोभिदी स्व-अनिषेच्यता (Gametophytic incompatibility) कहते हैं। इसके विपरीत बीजाणुभिद् ऊतक (जिससे परागकण उत्पन्न होते हैं के तीन प्रारूप द्वारा निर्धारित होने पर इसे बीजाणुभिदी स्व-अनिषेच्यता (Sporophytic incompatibility) कहते हैं।
पादपों में स्वअनिषेच्यता के निम्नांकित परिणाम दिखाई देते हैं –
- परागकणों में अंकुरण का अभाव
- परागनली की वृद्धि न हो पाना
- परागनली का सही स्थान पर न पहुँच पाना
- परागनली का वर्तिका में ही फट जाना
- केन्द्रकों में संलयन का न हो पाना।
प्रश्न 4.
पराग नलिका का भ्रूणकोष में प्रवेश किस प्रकार होता है? समझाइए।
उत्तर
पराग नलिका का भूणकोष में प्रवेश (Entry of Pollentube in the embryo sac) – भूणकोष में परागनलिका सदैव बीजाण्डद्वारे वाले छोर से ही प्रवेश करती है, चाहे बीजाण्ड में यह किसी भी विधि से प्रवेश की हो। भ्रूणकोष में परागनलिका निम्नलिखित किसी एक मार्ग द्वारा प्रवेश करती है –
- अण्ड कोशिका (Egg cell) तथा एक सहायक कोशिका (Synergid) के मध्य से।
- भूणकोष की भित्ति तथा एक सहायक कोशिका के मध्य से।
- एक सहायक कोशिका को भेदते हुए।
परागनलिका को भ्रूणकोष में प्रवेश निम्नलिखित चरणों में होता है –
- दो सहायक कोशिकाओं (Synergids) में से एक कोशिका परागनलिका के भ्रूणकोष में प्रवेश होने से पूर्व ही अपह्वासित (Degenerate) हो जाती है।
- परागनलिका प्रायः दो सहायक कोशिकाओं के बीच से भ्रूणकोष में प्रवेश करती है और कुछ दूर प्रवेश करने के बाद प्रायः अपहासित कोशिका के तन्तुरूपी समुच्चय (Filiform apparatus) द्वारा उसमें प्रवेश करती है।
- सहायक कोशिका के कोशिका द्रव्य में पहुँचने के पश्चात परागनलिका के शीर्ष भाग अथवा शीर्ष से नीचे एक छिद्र विकसित होती है जिससे दोनों नर युग्मक (Male gametes) तथा कोशिकाद्रव्य का कुछ भाग भी अपह्लासित सहायक कोशिका में विमुक्त हो जाता है।
- दो नरयुग्मकों में से एक नर युग्मक अण्डकोशिका तक सहजता से पहुँच जाता है तथा दूसरा नर युग्मक अमीबीय अथवा अन्य गति द्वारा द्वितीय केन्द्रक तक पहुँचता है।
प्रश्न 5.
द्विनिषेचन एवं त्रिक संलयन से आप क्या समझते हैं? द्विनिषेचन का महत्व बताइए।
उत्तर
द्विनिषेचन एवं त्रिक संलयन (Double Fertilization and Triple Fusion) – भ्रूणकोष में अण्डकोशिको तथा एक नरयुग्मक को संलयन युग्मक संलयन (Gametic fusion or” syngamy) अथवा सत्य निषेचन (True Fertilization) अथवा प्रथम निषेचन (First fertilization) कहलाती है। इसके फलस्वरूप द्विगुणित Diploid; 2n) युग्मनज (Zygote) का निर्माण होता है। दूसरा नरयुग्मक द्वितीयक केन्द्रक (जो कि दो ध्रुवीय केन्द्रकों के संयोजन से बनता है) से संयोजित होकर त्रिगुणित (Triploid, 3n) प्राथमिक भूणपोष केन्द्रक (Primary endosperm nucleus) बनाता है। इस प्रक्रिया को त्रिक संलयन (Triple fusion) कहते हैं क्योंकि इसमें तीन अगुणित (Haploid; ॥) केन्द्रकों में संलयन होता है। युग्मक संलयन एवं त्रिक संलयन की घटना को सम्मिलित रूप से द्विनिषेचन (Double fertilization) कहते हैं।
द्वि-निषेचन का अध्ययन सर्वप्रथम नावाश्चिन (Nawaschin, 1898) द्वारा फ्रिटिलेरिया (Fretitlaria) तथा लिलियम (Lilium) नामक पादपों में किया गया था। द्विनिषेचन आवृतबीजी पादपों को लाक्षणिक गुण है। आवृतबीजी वर्ग के अलावा अन्य किसी पादप वर्ग में द्विनिषेचन नहीं पाया जाता है। द्वितीयक केन्द्रक तथा एक नर युग्मक के संलयन को कभी-कभी द्वितीयक निषेचन (Second fertilization) भी कहते हैं।
विभिन्न पौधों में परागण एवं निषेचन के मध्य 2 से 25 घंटे का अन्तराल होता है एवं त्रिक संलयन, युग्मक संलयन से सामान्यतया पहले होता है।
द्विनिषेचन का महत्व (Significance of Double Fertilization) – एक नर युग्मक (Male gamete) तथा अण्डकोशिका (Egg cell) में । संयोजन से द्विगुणित (2n) युग्मनज (Zygote) का निर्माण होता है जो परिवर्धन करके भ्रूण (Embryo) का निर्माण करता है। दूसरा नर युग्मक द्वितीय केन्द्रक से संयोजन करके त्रिगुणित (3) भ्रूणपोष केन्द्रक (Endosperm nucleus) बनाता है। इससे भ्रूणपोष का परिवर्धन होता है। जो विकासशील भ्रूण (Developing embryo) के पोषण के लिए प्रारम्भिक स्रोत होता है। भ्रूणपोष में भ्रूण के पोषण हेतु आवश्यक पोषक तत्व (Nutrients) उपलब्ध होते हैं। अनेक पादप भ्रूण वैज्ञानिकों का मत है कि भ्रूणपोष में पैतृक एवं मातृक गुणसूत्र होने के कारण यह संकर ओज (Hybrid Vigour) प्रदर्शित करता है। बीजों की जीवन क्षमता (Viability) के लिए युग्मक संलयन एवं त्रिक संयोजन दोनों ही आवश्यक हैं। इससे जीवद्रव्य का पुनर्विन्यास एवं नवीनीकरण होता है। अतः ये दोनों ही प्रक्रियाएँ महत्त्वपूर्ण हैं।
प्रश्न 6.
एक बीजपत्री पादपों में भ्रूण का विकास किस प्रकार होता है? सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर
द्विबीजपत्री भ्रूण का विकास (Development of Dicot Embryo) – भ्रूण परिवर्धन का अध्ययन सर्वप्रथम हैन्सटीन (Hanstein; 1840) ने द्विबीजपत्री पौधे कैप्सेला बस पैस्टोरिस (Capsella bursa Pastoris) में किया था। सामान्यतः निषेचन के समय भ्रूणकोष में एक नर युग्मक अण्डकोशिका से संयोजित होकर द्विगुणित युग्मनज (Zygote) का निर्माण करता है। युग्मनज में प्रथम विभाजन अनुप्रस्थ (Transverse) होता है, जिसके फलस्वरूप एक शीर्षस्थ कोशिका (Apical cell) तथा एक आधारीय कोशिका (Bagal cell) बनती है। शीर्षस्थ कोशिका निभाग (Chalaza) की ओर तथा आधारीय कोशिका बीजाण्डद्वार (Micropyle) की ओर स्थित होती है। शीर्षस्थ कोशिका में अनुदैर्ध्य एवं आधारीय कोशिका में अनुप्रस्थ विभाजन लगभग साथ-साथ होते हैं। अनुदैर्घ्य विभाजन से निर्मित दोनों शीर्ष कोशिकाओं में पुनः पूर्व विभाजन के लम्बवत् अनुदैर्घ्य विभाजन होता है जिससे चार कोशिकाएँ अथवा चतुष्टांशक (Quadrant) बनता है। इस चतुष्टांशक में पुन: एक अनुप्रस्थ विभाजन होने से एक अष्टांशक (Octant) बनता है।
अष्टांशक की प्रत्येक कोशिका में परनतिक विभाजन (Perclinal divisions) होने से एक आठ कोशिकीय बाह्य परत बाह्यत्वचाजन (Dematogen) तथा एक आठ कोशिकीय आन्तरिक परत (Inner layer) बनती है। बाह्य त्वचाजन अनेक अपनतिक (Anticlinal), विभाजनों द्वारा भ्रूण की बाह्यत्वचा (Epidermis) बनाती है। आन्तरिक कोशिकाओं से बीजपत्राधार (Hypocotyl), बीजपत्र के भरण विभज्योतक (Ground meristem) तथा प्राकएधा तंत्र (Procombial system) बनते हैं। आधारीय कोशिका अनेक अनुप्रस्थ विभाजनों के फलस्वरूप सात से दस कोशिकीय लम्बा निलम्बक (Suspensor) बनाती है। निलम्बक की अन्तिम कोशिका फूलकर चूषकांग कोशिका (Haustorial cell) बनाती है, जो भूणपोष से खाद्य पदार्थों के अवशोषण का कार्य करती है। निलम्बक के भ्रूणीय सिरे की ओर स्थित कोशिका अध:स्फीतिका (Hypophysis) कहलाती है जो मूलांकुर (Radicle) के साथ मूलांकुर शीर्ष बनाती है।
शीर्षस्थ कोशिका के विभाजन के फलस्वरूप बनी कोशिकाओं में निरन्तर विभाजनों के बाद भ्रूण पहले गोलाकार व बाद में हृदयाकार (Caudate) हो जाता है। इसमें दो पालियों का निर्माण होने लगता है जो बीजपत्रों में विकसित हो जाती है। पालियों के बीच स्थित खाँच के आधारीय |भाग से प्रांकुर (Plumule) का विकास होता है। इसलिए भ्रूण में प्रांकुर की स्थिति शीर्षस्थ एवं बीजपत्रों (Cotyledens) की स्थिति पाश्र्वीय होती है। परंतु एक बीजपत्रीय पादपों में प्रांकुर पाश्र्वीय होता है।
परिपक्व भ्रूण को दो बीजपत्रों (Cotyledons) तथा भ्रूणीय अक्ष (Embryonal axis) में विभेदित किया जा सकता है। भ्रूण अक्ष का बीजपत्रों के स्तर से ऊपर का भाग बीजपत्रोपरिक या एपीकोटाइल (Epicotyl) तथा नीचे का भाग बीजपत्राधार या हाइपोकोटाइल (Hypocotyl) कहलाता है। बीजपत्रोपरिक के शीर्ष पर प्रांकुर (Plumule) स्थित होता है। बीज के अंकुरण के समय प्रांकुर से प्ररोह तंत्र (Shoot system) तथा मूलांकुर से मूल तंत्र (Root. system) विकसित होता है। बीजपत्रों में भोजन संचित रहता है जो बीजांकुरण के समय नवोद्भिद् (Seedling) को स्थापित करने के लिए प्रयुक्त होता है।
प्रश्न 7.
कीट परागित पुष्यों की विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
कीट परागित पुष्पों में कीट परागण के लिए पाए जाने वाले अनुकूलन बताइए।
उत्तर
कीटपरागित पुष्यों की विशेषताएँ एवं अनुकूलन
- पुष्प, कीटों को आकर्षित करने के लिए रंगीन होते हैं। शलभ (Moth) सफेद पुष्पों की ओर आकर्षित होते हैं। लाल पुष्पों द्वारा तितलियाँ (Butterflies) एवं बरं (Wasp) को आकर्षित किया जाता है। नीले, बैंगनी, पीले पुष्प मधुमक्खियों को आकर्षित करते हैं। मधुमक्खियाँ कभी-कभी लाल पुष्पों पर भी जाती हैं।
- कीट परागित पुष्पों के बाह्यदल (Sepals) तथा दल (Petals) पूर्ण विकसित होते हैं।
- दल प्रायः रंगीन एवं चमकीले होते हैं। जिन पुष्पों में रंग आकर्षण नहीं होता उनमें पुष्प के अन्य भाग रंगीन एवं आकर्षक होते हैं। जैसे बोगेनविलिया के रंगीन सहपत्र (Bracts), यूफोर्बिया एवं पोइनसेटिया में इनवोल्यूकर (Invalucre) यूफोर्बिया फ्ल्चेराइमा की रंगीन पत्तियाँ, केले और कचालू में स्पेथ (Spathe), मुसैण्डा में एक बाह्यदल बड़ा और आकर्षक होता है एवं अकेसिया और मिमोसा के पुंकेसर रंगीन होते हैं।
- पुष्प प्रायः बड़े आकार के होते हैं जिससे ये कीटों को दूर से ही दिखाई दे जाते हैं। जहाँ पुष्प छोटे होते हैं वहाँ ये आकर्षक गुच्छों के रूप में पाए जाते हैं।
- पुष्प प्रायः विभिन्न प्रकार की गंध उत्पन्न करते हैं, जो कीटों को अपनी ओर लुभाती हैं; जैसे- बेला, गुलाब, गैंदा, चम्पा, रात की रानी, चमेली, हर सिंगार आदि। कुछ पौधों के पुष्पों से विशेष प्रकार की दुर्गन्ध आती है जो विशेष कीटों को अपनी ओर लुभाती है जैसे-एरिस्टोलोकिया, एरम, रैफ्लेशिया आदि। रेफ्लेशिया के पुष्प में से सड़ते मांस जैसी दुर्गन्ध आती है जो कैरियन मक्खियों को परागण के लिए आकर्षित करता है।
- आने वाले कीट को या तो मकरन्द (Nacter) जैसे-अधाटोडा, बटरकप, बेला, लार्कस्पर आदि या खाने वाले परागकण जैसे- मैग्नोलिया, पैपावर, गुलाब, क्लीमेटिस आदि प्राप्त होते हैं। मधुमक्खियाँ पुष्पों पर मकरन्द एवं परागकण दोनों के लिए आती।
- अधिकतर पुष्पों में कीटों को बैठने के लिए उचित स्थान होता है। कुछ पुष्पों में दलों पर विशेष चिन्ह होते हैं जो कीटों को मकरन्द तक पहुँचने के लिए पथ प्रदर्शक का कार्य करते हैं; जैसे- वायोला में
- कीट परागित पुष्पों के परागकण पीले रंग के चिपचिपे पदार्थ से ढके होते हैं जिसे पौलिन किट (Pollen kit) कहते हैं जिसकी सहायता से ये कीटों से आसानी से चिपक जाते हैं।
- प्रायः पुंकेसर और वर्तिकाग्र अन्दर की ओर होते हैं। वर्तिकाग्र चिपचिपे होते हैं।
- पुष्प एवं उसके दल इतने मजबूत होते हैं कि वे कीट का भार वहन कर सकें। कुछ पुष्प कीटों को रहने का स्थान भी प्रदान करते हैं।