RBSE Solutions for Class 12 Hindi सरयू Chapter 17 पाजेब (कहानी)
RBSE Solutions for Class 12 Hindi सरयू Chapter 17 पाजेब (कहानी)
Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 17 पाजेब (कहानी)(निबंध)
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 17 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 17 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
पाजेब कहानी के प्रश्न उत्तर प्रश्न 1.
जैनेन्द्र किस प्रकार के कथाकार के रूप में प्रसिद्ध हैं
(क) मनोवैज्ञानिक कथाकार।
(ख) आँचलिक कथाकार
(ग) प्रगतिवादी कथाकार
(ग) ऐतिहासिक कथाकार
उत्तर:
(क) मनोवैज्ञानिक कथाकार।
पाजेब कहानी की समीक्षा प्रश्न 2.
‘पाजेब’ कहानी किस पृष्ठभूमि पर लिखी गई है
(क) बाल-मनोविज्ञान
(ख) पौराणिक
(ग) हास्य व्यंजक
(घ) मनोविश्लेषण
उत्तर:
(क) बाल-मनोविज्ञान
पाजेब कहानी की समीक्षा pdf प्रश्न 3.
आशुतोष को उसकी बुआ ने जन्मदिन पर क्या देने का वादा किया?
(क) पतंग
(ख) बाईसिकल
(ग) पाजेब
(घ) मिठाई
उत्तर:
(ख) बाईसिकल
पाजेब कहानी का सारांश प्रश्न 4.
‘पाजेब’ कहानी किस शैली में लिखी गई है
(क) डायरी शैली
(ख) आत्मकथात्मक शैली
(ग) व्यास शैली
(घ) व्यंग्य शैली
उत्तर:
(ख) आत्मकथात्मक शैली
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 17 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
RBSE Hindi Solution Class 12 प्रश्न 1.
श्रीमती जी पाजेब चुराने का संदेह किस पर करती हैं ?
उत्तर:
श्रीमती जी को संदेह होता है नौकर बंसी ने पाजेब चुराई है।
Pajeb Jainendra Kumar Ki Kahani प्रश्न 2.
छुन्नू की माँ छुन्नू को क्यों पीटती है?
उत्तर:
आशुतोष ने जोर देकर कहा कि उसने पायल छुन्नू को दी थी। यह सुनकर उसने छुन्नू को पीटा।
Pajeb Story Summary In Hindi प्रश्न 3.
मुन्नी को पाजेब किसने किस दिन लाकर दी है?
उत्तर:
बुआ ने मुन्नी को इतवार को पाजेब लाकर दी।
RBSE Hindi Sahitya प्रश्न 4.
पूछताछ में आशुतोष ने पाजेब किसको बेचने की बात स्वीकार की?
उत्तर:
पूछने पर आशुतोष ने पाजेब पतंग वाले को बेचने की बात स्वीकार की।
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 17 लघूत्तरात्मक प्रश्न
RBSE Solutions For Class 12 Hindi Sahitya प्रश्न 1.
आशुतोष निरपराध होते हुए भी पाजेब चुराने बात को क्यों स्वीकार कर लेता है?
उत्तर:
आशुतोष ने पायल नहीं चुराई है, किन्तु वह उसकी चोरी करना स्वीकार कर लेता है। वह बच्चा है। उसकी बुद्धि अविकसित है। वह तर्कपूर्ण ढंग से अपनी बात नहीं कह पाता। पिता के प्रभाव, स्नेह, भय, प्रलोभन आदि के कारण वह सही बात नहीं कह पाता। वह जो कुछ उसके पिता कहलवाना चाहते हैं। वही कह देता है वह दृढ़तापूर्वक नहीं कह पाता कि उसने चोरी नहीं की।
हिंदी अनिवार्य 12वीं क्लास प्रश्न 2.
लेखक ने आशुतोष को कोठरी में क्यों बंद कर दिया?
उत्तर:
लेखक चाहता था कि आशुतोष पतंग वाले के पास जाकर उससे पाजेब वापस ले आए। यद्यपि उसने पाजेब पतंग वाले को देने की बात मान ली थी किन्तु वह जानता था कि पाजेब उसके पास नहीं थी। डरकर अपनी बात मनवाने के लिए लेखक ने उसको कोठरी में बंद करवा दिया। वह सोच रहा था कि डरकर आशुतोष उसकी बात मान लेगा।
संजीव पास बुक क्लास 12 हिंदी प्रश्न 3.
बातों-बातों में लेखक को क्या पता लगा जिससे वह आशुतोष पर पायल चुराने का संदेह करने लगता है?
उत्तर:
बातों-बातों में लेखक को पता लगा कि उस शाम आशुतोष नई पतंग और डोर का पिन्ना लेकर आया था। यह जानकर लेखक को संदेह हुआ कि आशुतोष ने ही पायल चुराई है और पतंग वाले को दी है।
कक्षा 12 हिंदी साहित्य प्रश्न 4.
पाजेब कैसे मिलती है? पाजेब पर लेखक की प्रतिक्रिया को व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
बुआ आई तो उन्होंने अपनी वास्कट की जेब से पायल निकाली और बताया कि पिछले रोज भूल से वह उनके साथ चली गई थी। पाजेब को देखकर लेखक इस तरह भयभीत हुआ जैसे कि वह पायल न होकर कोई बिच्छू है। उसके मुँह से निकला यह क्या ?
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 17 निबंधात्मक प्रश्न
Hindi Sahitya Class 12 प्रश्न 1.
कहानी के संवाद स्वाभाविक, रोचक, सशक्त, नाटकीय और संक्षिप्त हैं। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कहानी में संवाद, कथोपकथन अथवा वार्तालाप का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान होता है। इनका प्रयोग कहानीकार कथानक के विकास तथा पात्रों की चरित्रगत विशेषताओं को स्पष्ट करने के लिए करता है। संवाद यद्यपि नाटक को मूल तत्व है। किन्तु किसी कथा-साहित्य को रोचक बनाने में भी वह अत्यन्त उपयोगी और आवश्यक होते हैं। जैनेन्द्र कुमार की ‘पाजेब’ में संवाद को विशेष स्थान प्राप्त है। कथानक को आगे बढ़ाने के लिए लेखक ने अपनी ओर से कम कहा है, पात्रों से अधिक कहलवाया है। ये संवाद प्राय: छोटे हैं। यद्यपि कुछ लम्बे संवाद भी हैं किन्तु एक तो वे अधिक लम्बे नहीं हैं तथा उनकी संख्या भी कम ही है। ये छोटे-छोटे संवाद लेखक (आशुतोष के पिता) तथा आशुतोष के माध्यम से बोले गए हैं तथा कहानी की संवेदना की व्यंजना में भी सहायक हैं।
“अच्छा तुमने कहाँ से उठाई थी ?” ‘पड़ी मिली थी ?” “और फिर नीचे जाकर वह तुमने छुन्नू को दिखाई?” “हाँ।” ”फिर उसी ने कहा कि इसे बेचेंगे?” हाँ!” “कहाँ बेचने को कहा?” इत्यादि। ‘पाजेब’ कहानी में पाजेब का मुख्य स्थान है। कहानी का आरम्भ इसी से हुआ है तथा पूरा ताना-बाना इसी से बुना गया है। अंत भी पाजेब से ही हुआ है। कहानी के आरम्भ के कुछ संवाद इस कार्य में सहायक हैं। इनमें संक्षिप्तता, रोचकता और नाटकीयता है। हमारी मुन्नी ने भी कहा कि बाबू जी, हम पाजेब पहनेंगे। बोलिए भला कठिनाई से चार बरस की उम्र और पाजेब पहनेगी। मैंने कहा कि कैसी पाजेब ? बोली कि हाँ, वही जैसी रुक्मिन पहनती है, शीला पहनती है। मैंने कहा कि अच्छा-अच्छा। बोली कि मैं तो आज ही मँगा लूंगी। पूरी कहानी में जिस पायल के तलाश का प्रयास हो रहा है। अंत में वह बुआ के वास्कट की जेब से निकलती है तो उसे देखकर भयभीत लेखक के मुँह से ”क्या” यह शब्द ही निकलते हैं। संवाद रोचक हैं। लेखक और उसकी पत्नी के मध्य हुए निम्नलिखित संवाद में उनके बीच के प्रेममाधुर्य तथा हास-परिहास का चित्रण हुआ है। श्रीमती जी ने हमसे कहा कि क्यों जी, लगती तो अच्छी है, मैं भी एक बनवा लू? मैंने कहा कि क्यों न बनवाओ ! तुम कौन चार बरस की नहीं हो। इस प्रकार हम देखते हैं कि पाजेब कहानी के संवाद रोचक, स्वाभाविक, सशक्त, नाटकीय तथा संक्षिप्त हैं।
Hindi Anivarya Class 12 प्रश्न 2.
‘पाजेब’ कहानी कलात्मक दृष्टि से सफल है। अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘पाजेब’ जैनेन्द्र कुमार की एक प्रसिद्ध तथा कलात्मक दृष्टि से सफल कहानी है। लेखक ने पाजेब को लेकर इस कहानी में बाल मनोविज्ञान का उद्घाटन किया है। मुन्नी की पाजेब खो जाती है। इसकी चोरी का आरोपी आशुतोष को समझा जाता है। अपने पिता के बार-बार पूछने तथा दबाव देने पर वह निरपराध होते हुए भी पायल चुराने का आरोप स्वीकार कर लेता है। बच्चे अबोध होते हैं। वह तर्क-वितर्क करना नहीं जानते। स्नेह, भय तथा प्रलोभन के कारण आशुतोष भी अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं कर पाता। अंत में बुआ के आने पर पता चलता है कि पायल भूल से उनके साथ चली गई थी। तब आशुतोष निपराध सिद्ध होता है। जैनेन्द्र जी की कहानी का कथानक व्यवस्थित है तथा उसका विकास नियमानुसार हुआ है। इसमें पायल वह वस्तु है जिसको लेकर पूरा कथानक बुना गया है। कहानी का आरम्भ तथा अन्त पाजेब से ही हुआ है। आरम्भ से धीरे-धीरे विकास की ओर बढ़ती कथावस्तु चरम बिन्दु पर पहुँचती है तो वहीं उसका अन्त भी हो जाता है।
‘पाजेब’ में मुख्य पात्र आशुतोष ही है। उसका चरित्र-चित्रण मनोविज्ञान के अनुरूप है। अन्य पात्रों में उसके पिता, माता छुन्नू की माँ, बंसी तथा प्रकाश आदि हैं। सभी का चरित्रांकन सफलतापूर्वक हुआ है। कहानी के संवाद छोटे, सजीव तथा नाटकीय हैं। वे पात्रों के चरित्र तथा कथानक के अनुकूल हैं। ‘पाजेब’ एक उद्देश्यपूर्ण रचना है। कहानीकार यह कहना चाहता है कि बालक कोमल बुद्धि के होते हैं। वे तर्क-वितर्क करना नहीं जानते। झूठ बोलना तथा गलतियों को छुपाना भी वे नहीं जानते। यदि वे किसी अपराध की ओर प्रवृत्त होते हैं तो इसके दोषी वे नहीं घर-परिवार के लोग तथा कुछ पारिवारिक स्थितियाँ होती हैं। उनके साथ बातचीत व्यवहार में बड़ों को सावधान तथा सतर्क रहना चाहिए। तथा उनके साथ कोमलता, सहानुभूति और स्नेह का व्यवहार करना चाहिए। उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर हम ‘पाजेब’ को जैनेन्द्र कुमार की एक सफल कलात्मक कहानी कह सकते हैं।
Hindi Sahitya 12th Class RBSE प्रश्न 3.
‘पाजेब’ कहानी में बाल-मनोविज्ञान का सजीव परिचय मिलता है। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कहानीकार जैनेन्द्र कुमार ने बाल-मनोविज्ञान को आधार बनाकर पाजेब’ शीर्षक कहानी की रचना की है। इस कहानी में प्रमुख पात्र आशुतोष है। मुन्नी की पाजेब खो जाती है। इसकी चोरी का संदेह उसके बड़े भाई आशुतोष पर होता है। आशुतोष आठ वर्ष का है, बालक है, उसको पतंग उड़ाने का शौक है। उसके पिता को संदेह होता है कि उसने पायल पतंग वाले को बेचकर पतंग-डोर आदि खरीदी है। आशुतोष ने चोरी नहीं की है परन्तु अपने पिता के तर्क प्रश्नों में उलझकर वह उनकी हाँ में हाँ मिलाता है। चोरी न करने पर भी वह पाजेब चुराने की बात स्वीकार कर लेता है। स्नेह, भय, प्रलोभन आदि से भ्रमित होकर वह सच बात कह ही नहीं पाता और जो कुछ उसके पिता उससे पूछते हैं, वह उनको स्वीकार कर लेता है। उसने न तो पाजेब ली है, न छुन्नू को दी है और न पतंग वाले से उसके बदले पैसे लिए हैं। ये बातें उसके पिता ने कही हैं और उनको विरोध न करने आशुतोष ने उनको मान लिया है। चोरी के आरोप से उसकी मुक्ति तब होती है जब बुआ बताती है कि पायल भूल से उनके साथ चली गई थी। उसके पिता पायल को देखकर भयभीत हो जाते हैं। आशुतोष के चरित्र-चित्रण में कहानीकार ने बच्चों के मनोविज्ञान पूरा ध्यान रखा है। बच्चे की बुद्धि विकसित नहीं होती। वह कोमल होते हैं।
उनमें तर्क-वितर्क करने की क्षमता नहीं होती। वह घुमा-फिराकर पूछे गए टेढ़े-मेढ़े प्रश्नों के उत्तर देने में असमर्थ होते हैं। आशुतोष के पिता ने उससे किसी वकील की तरह जिद की है। आठ वर्ष के बच्चे से यह आशा नहीं की जा सकती कि वह इस तरह के प्रश्नों का सामना कर पायेगा। यही कारण है कि वह वास्तविकता बता नहीं पाता अथवा प्रश्नों से उसे इतना घेर दिया जाता है कि अपना अपराध स्वीकार करने के अलावा कुछ भी सोच ही नहीं पाता। उसके पिता कभी उससे स्नेह प्रकट करते हैं, कभी उसे डराते हैं तो कभी इनाम आदि का प्रलोभन देते हैं। वह इन भावों में उलझकर रह जाता है। इस कहानी को दूसरा बालचरित्र मुन्नी है। वह चार वर्ष की है। सभी को पाजेब पहने देखकर वह भी पहनना चाहती हैं। वह अपने पिता से पायल लेने की जिद करती है। उसकी बुआ उसको पाजेब दिलाती है। पाजेब पहनकर वह प्रसन्न होती है तथा पास-पड़ोस में सभी को दिखाती फिरती है। आशुतोष भी पहले तो उसके साथ जाता है किन्तु बाद में वह भी लेने के लिए जिद करता है। इस तरह पाजेब’ कहानी बाल मनोविज्ञान का जीता-जागता चित्र है।
कक्षा 12 हिंदी साहित्य सरयू प्रश्न 4.
‘पाजेब’ कहानी की मूल संवेदना पर अपने विचार प्रगट कीजिए।
उत्तर:
‘पाजेब’ कहानी में कहानीकार ने इस सत्य की स्थापना की है कि बालकों की कोमल बुद्धि टेढ़े-मेढ़े और तर्कपूर्ण प्रश्नों का सामना नहीं कर पाती। बालक स्वभाव तथा बुद्धि से कोमल होते हैं। वे असल नहीं बोलते तथा अपने अपराध को छिपाने की तर्कपूर्ण क्षमता भी उनमें नहीं होती। उनकी भावनाओं और बौद्धिक जाल में उलझाकर उनसे सत्य का पता करना उचित प्रक्रिया नहीं है। इससे वे असत्य को भी सत्य मान बैठते हैं और अर्थ का अनर्थ हो जाता है। आशुतोष अपराधी नहीं है किन्तु वह अपराधी बन जाती है। ‘पाजेब’ कहानी का प्रमुख पात्र आशुतोष एक आठ वर्ष का बालक है। मुन्नी की पायल गुम होने पर उस परं पायल की चोरी का सन्देह किया जाता है, फिर उससे इस प्रकार बातचीत-व्यवहार किया जाता है कि उसे वह चोरी स्वीकार करनी पड़ती है। जो उसने की नहीं नहीं। ‘पाजेब’ कहानी में कहानीकार बताना चाहता है कि बालकों को केवल शंका के आधार पर ही दोषी नहीं मान लेना चाहिए। इसके लिए पुष्ट प्रमाणों की तलाश करनी चाहिए। यह बच्चों के प्रति अन्याय है तथा इस प्रकार व्यवहार उनको अपराध की ओर धकेलने का उत्तरदायी होता है। प्रस्तुत कहानी की मूल संवेदना यही है कि बच्चों के साथ हमको स्नेहपूर्ण तथा कोमलता का व्यवहार करना चाहिए।
RBSE Class 12 Hindi प्रश्न 5.
पाठ में आए निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) मेरे मन में उस समय ……… दबाना ठीक नहीं है।
(ख) मुझे यह एक भारी ………. भयावह हो सकती है।
(ग) बच्चे में चोरी की ……… नहीं हो सकते।
(घ) राजनीति राष्ट्र ……… रंग फैलाती है।
उत्तर:
इन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ पहले से दी जा चुकी हैं। इनके लिए महत्वपूर्ण गद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित। व्याख्याएँ शीर्षक देखिए।
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 17 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 17 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
RBSE Class 12 Hindi Book Solution प्रश्न 1.
आशुतोष की बहन का नाम है –
(क) मुन्नी
(ख) शीला
(ग) रुक्मिन
(घ) चुन्नी
उत्तर:
(क) मुन्नी
RBSE Class 12th Hindi Solution प्रश्न 2.
रुक्मिन को पाजेब किसने कब दी?
(क) चाचा ने सोमवार को
(ख) पिता ने बुधवार को
(ग) बुआ ने इतवार को
(घ) माता ने गुरुवार को
उत्तर:
(ग) बुआ ने इतवार को
हिंदी साहित्य कक्षा 12 सरयू प्रश्न 3.
आशुतोष बाबू ने कहा- हम तो अभी लेंगे’- से प्रगट होने वाला भाव है
(क) निवेदन
(ख) हठ
(ग) धमकी
(घ) आग्रह
उत्तर:
(ख) हठ
12th Hindi Sahitya Book प्रश्न 4.
“श्रीमती जी ने हम से कहा कि क्यों जी, लगती तो अच्छी है, मैं भी एक बनवा लँ?
मैंने कहा कि क्यों न बनवाओ! तुम कौन चार बरस की नहीं हो।” उपर्युक्त संवाद में निहित है
(क) लेखक की पत्नी की पाजेब पहनने की इच्छा
(ख) लेखक से पाजेब बनवाने की अनुमति माँगना
(ग) लेखक का मना करना
(घ) दाम्पत्य जीवन का मधुर हास्य-विनोद
उत्तर:
(घ) दाम्पत्य जीवन का मधुर हास्य-विनोद
RBSE Class 12 Hindi Sahitya प्रश्न 5.
“मैंने कसकर उसे दो चाँटे दिए।” लेखक ने चाँटे किसको मारे?
(क) नौकर बंसी को
(ख) पुत्र आशुतोष को
(ग) पतंग वाले को
(घ) छुन्नू को।
उत्तर:
(ख) पुत्र आशुतोष को
Hindi 12th RBSE प्रश्न 6.
“चलकर वह इस कमरे में कैसे आ जाएगी”- में ‘वह’ सर्वनाम किस संज्ञा के लिए प्रयुक्त हुआ है?
(क) बुआ
(ख) शीला
(ग) मुन्नी
(घ) पाजेब
उत्तर:
(घ) पाजेब
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 17 लघूत्तरात्मक प्रश्न
RBSE 12th Hindi Sahitya Book प्रश्न 1.
‘पाजेब’ कहानी की रचना का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
‘पाजेब’ कहानी की रचना का उद्देश्य बालकों के मनोविज्ञान का चित्रण करना है।
प्रश्न 2.
आशुतोष पर उसके पिता की क्या शंका थी?
उत्तर:
आशुतोष के पिता को शंका थी कि मुन्नी की एक पैर की पाजेब उसी ने ली है।
प्रश्न 3.
आशुतोष ने चोरी न करने पर भी चोरी करना क्यों स्वीकार किया?
उत्तर:
अपने पिता के तर्कपूर्ण गहन प्रश्नों से घबराकर आशुतोष ने चोरी करना स्वीकार किया। यद्यपि वह चोर नहीं था।
प्रश्न 4.
आशुतोष निरपराध कब सिद्ध हुआ?
उत्तर:
आशुतोष की बुआ ने बताया कि पाजेब भूल से पिछले रोज उसके साथ चली गई थी तो वह निर्दोष सिद्ध हुआ।
प्रश्न 5.
बालकों की बुद्धि कैसी होती है?
उत्तर:
बालकों की बुद्धि कोमल तथा तर्कहीन होती है।
प्रश्न 6.
वह कौन-सी वस्तु है जिसका उल्लेख ‘पाजेब’ कहानी में आरम्भ से अंत तक मिलता है?
उत्तर:
‘पाजेब’ कहानी में आरम्भ से अंत तक पाजेब का उल्लेख मिलता है।
प्रश्न 7.
पाजेब चुराने का संदेह श्रीमती जी को नौकर बंसी पर क्यों था?
उत्तर:
श्रीमती जी ने जब पाजेब सँभाल कर बक्से में रखी थी तो नौकर बंसी वहाँ मौजूद था।
प्रश्न 8.
‘पड़ोस की स्त्रियों में पवन पड़ने वाली”- का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
तात्पर्य यह है कि पायल चोरी की बात पड़ोस की स्त्रियों को भी पता चल गई।
प्रश्न 9.
लेखक ने प्रकाश से क्यों कहा कि तुमसे कोई काम नहीं हो सकता?
उत्तर:
प्रकाश के बताने पर कि पतंग वालों के पास पायल नहीं है, लेखक को लगा कि उसने ठीक तरह पता नहीं किया।
प्रश्न 10.
आशुतोष की बुआ उसके लिए क्या लाई थी?
उत्तर:
आशुतोष की बुआ उसके लिए मिठाई और केले लाई थी।
प्रश्न 11.
मुहल्ले की राजनीति का भार किन पर होता है?
उत्तर:
मुहल्ले की राजनीति का भार स्त्रियों पर होता है।
प्रश्न 12.
मैं भयभीत भाव से कह उठा कि यह क्या?’ से लेखक की मन:स्थिति के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर:
इससे पता चलता है कि अचानक पायल को सामने देखकर लेखक भयभीत हो उठा। पायल किसी बिच्छू के समान भयावनी लगी।
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 17 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘पाजेब’ को आप बाल मनोविज्ञान पर आधारित कहानी कैसे कह सकते हैं? समझाकर लिखिए।
उत्तर:
‘पाजेब’ नामक कहानी को हम बाल-मनोविज्ञान पर आधारित कह सकते हैं। इसमें मुन्नी और उसके भाई आशुतोष का चरित्र है। दोनों बालक हैं। मुन्नी चार तथा आशुतोष आठ साल का है। इसमें बालकों के स्वभाव का सफल चित्रण हुआ है। लेखक ने बताया है कि बालकों की बुद्धि कोमल होती है तथा तर्क-वितर्क नहीं जानते। आशुतोष अपने पिता के स्नेह, प्रलोभन तथा भय दिखाने से प्रभावित होकर उनकी हाँ में हाँ मिलाता है और निरपराध होने पर भी पायल की चोरी स्वीकार कर लेता है।
प्रश्न 2.
‘पाजेब’ कहानी का शीर्षक कैसा है? उसकी विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
‘पाजेब’ कहानी का शीर्षक सर्वथा उपयुक्त है। इस कहानी में पाजेब ही वह वस्तु है जिसको वर्णन आदि से अन्त तक मिलता है। कथावस्तु का पूरा ताना-बाना पाजेब के चारों ओर ही बुना गया है। मुन्नी की पाजेब की लालसा से कहानी शुरू हुई है। पाजेब चोरी का आरोप आशुतोष पर लगा है। अंत में बुआ के पास पाजेब मिलने पर ही वह इस आरोप से मुक्त हो पाता है। कहानी का शीर्षक पाजेब आकर्षक, जिज्ञासापूर्ण, कथावस्तु तथा पात्रों के चरित्र का आधार तथा मूल भाव का सूचक है।
प्रश्न 3.
‘पाजेब’ कहानी के पात्रों का परिचय दीजिए।
उत्तर:
‘पाजेब’ कहानी का प्रमुख पात्र आशुतोष है। वह आठ वर्ष का बालक है। उस पर पाजेब चुराने का शक है। उसकी छोटी बहन मुन्नी चार वर्ष की है। वह पायल पर मुग्ध है। पाजेब के गुम होने पर उसके बारे में पूछ-ताछ करने वाले आशुतोष के पिता हैं। पाजेब की चोरी की नौकर बंसी पर शंका करने तथा पाजेब के गायब होने की सूचना अपने पति (लेखक) को देने वाली आशुतोष की माँ है। इसके अतिरिक्त नौकर बंसी, आशुतोष का साथी तथा पड़ोसी छुन्नू, उसकी माँ, लेखक का भाई प्रकाश, लेखक की बहन बुआ, मुन्नी की सहेली रुक्मिन तथा शीला आदि अन्य पात्र हैं।
प्रश्न 4.
‘पाजेब’ कहानी का प्रतिपाद्य क्या है? लिखिए।
उत्तर:
‘पाजेब’ कहानी का प्रतिपाद्य है कि बच्चों की बुद्धि कोमल होती है। वे तर्क-वितर्क करना नहीं जानते। वकीलों जैसे टेढ़े-मेढ़े तर्कपूर्ण प्रश्नों का सामना वे नहीं कर पाते तथा भय, प्रलोभन, स्नेह आदि भावनाओं से प्रभावित होकर वे सच बात नहीं कह पाते। वे अपनी सचाई को स्पष्ट तथा दृढ़ शब्दों में दूसरों को नहीं बता पाते तथा निरपराध होने पर भी अपराधी मान लिए जाते हैं तथा प्रताड़ित होते हैं। बच्चों का मन कोमल होने के कारण दूसरों की भावनाओं से प्रभावित हो जाता है। यह मनोवैज्ञानिक सत्य ही पाजेब कहानी का प्रतिपाद्य है।।
प्रश्न 5.
‘पाजेब’ कहानी के संवादों की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
‘पाजेब’ कहानी में संवादों का बड़ा महत्व है। इसके संवादों की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- ‘पाजेब’ कहानी के संवाद संक्षिप्त, मार्मिक तथा प्रभावशाली हैं। संवाद नाटकीय तथा आकर्षक हैं।
- कहानीकार ने संवादों की सहायता से कथावस्तु का विकास सफलतापूर्वक किया है।
प्रश्न 6.
‘पाजेब’ कहानी की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
‘पाजेब’ कहानी को दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- ‘पाजेब’ बाल मनोविज्ञान पर आधारित कहानी है। इसमें बताया गया है कि बच्चों की बुद्धि कोमल होती है तथा उनके साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार होना चाहिए।
- ‘पाजेब’ की कथावस्तु भाषित है तथा उसके पात्रों का चरित्र-चित्रण कथाबस्तु के अनुकूल है।’पाजेब’ एक सोद्देश्य कहानी है।
प्रश्न 7.
पाजेब’ कहानी के मुख्य पात्र आशुतोष के चरित्र की दो विशेषताएँ लिखिए?
उत्तार:
आशुतोष आठ साल का एक बालक है। वह ‘पाजेब’ कहानी का प्रमुख पात्र है। उसके चरित्र की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- आशुतोष कोमल बुद्धि तथा सरल मन का बालक है। आयु कम होने के कारण उसमें तर्क-बुद्धि का विकास नहीं हुआ है।
- आशुतोष ने पायल नहीं चुराई है किन्तु अपने पिता के तर्क-पूर्ण पैने प्रश्नों से आत्मरक्षा करने में वह असमर्थ है। चोर न होते हुए भी वह चोरी करना स्वीकार कर लेता है।
प्रश्न 8.
आशुतोष के पिता ने उसके प्रति भय, स्नेह तथा प्रलोभन का प्रदर्शन क्यों किया? इसका क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:
आशुतोष के पिता मानते हैं कि पायल उसने चुराई है। उसके मुँह से यह सुनने के लिए कि “हाँ मैंने पाजेब चुराई, पतंग वाले को छुन्नू के साथ मिलकर दी है। वह उसको मानसिक रूप से तैयार करना चाहते हैं। वह उसके कान खींचते हैं, कोठरी में बंद कराते हैं। और चाँटे मारते हैं। कभी वह उसको गोद में उठाते और प्यार करते हैं। कभी उसको इनाम का लालच देते हैं। इस भावनाओं को प्रभावित करने वाले प्रयासों का परिणाम उनकी इच्छा के अनुकूल होता है। आशुतोष पाजेब चुराना स्वीकार कर लेता है।
प्रश्न 9.
यदि आप लेखक के स्थान पर होते तो खोई हुए पाजेब का पता किस तरह लगाते?
उत्तर:
यदि लेखक के स्थान पर मुझे खोई हुई पाजेब का पता करने को कहा जाता तो सबसे पहले तो बिना किसी ठोस प्रमाण के मैं आशुतोष को चोर नहीं मान लेता। मैं यह देखता कि उसके पास पाजेब की बिक्री से मिले पैसे हैं या नहीं ? मैं उसकी गतिविधियों पर नजर रखता तथा पतंग वाले से स्वयं सबसे पहले पूछता। मैं उससे वकील की तरह जिरह न करके उसके क्रियाकलापों पर ध्यान देकर पायल का पती करता।
प्रश्न 10.
‘पाजेब’ कहानी के अंत में यदि बुआ आकर पाजेब के बारे में न बताती तो आशुतोष का क्या होता? कल्पना पर आधारित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
‘पाजेब’ कहानी का अंत बुआ के आने और यह बताने पर होता है कि पिछले रोज पाजेब भूल से उसके साथ चली गई थी। यदि बुआ न आती और यह बात न बताती तो आशुतोष को चोरी के आरोप से मुक्ति न मिलती। संभव है, उसको और अधिक दण्ड मिलता। आशुतोष को यह घटना अपराध जगत में धकेल सकती थी और वह छोटी-मोटी चोरियाँ कर सकता था। ज्यादा संख्ती से पूछने पर पड़ोसियों तथा पतंग वालों से झगड़ा भी हो सकता था।
प्रश्न 11.
पाजेब पाकर मुन्नी की को कैसा लगा? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
इतवार को बुआ आई और मुन्नी को पाजेब दी! पाजेब पाकर मुन्नी बहुत खुश हुई। पहनकर वह खुशी के मारे इधरउधर छमकती फिरी वह रुक्मिन के पास गई और उसे अपनी पाजेब दिखाई, फिर शीला के पास जाकर उसको भी पाजेब दिखाई। सबने उसे पाजेब पहने देखकर उसकी तारीफ की और प्यार किया। अपने पैरों में चाँदी की पाजेब देखकर मुन्नी की खुशी का ठिकाना न था।
प्रश्न 12.
बाइसिकल के बारे में बुआ और आशुतोष के बीच हुई बातचीत को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
मुन्नी को पाजेब मिलीं तो आशुतोष भी बाइसिकल लेने पर अड़ गया। तब बुआ ने उसको समझाया कि उसके जन्मदिन पर उसे बाइसिकल मिलेगी। उसने कहा हम तो अभी लेंगे। बुआ ने कहा तू कोई लड़की है। लड़कियाँ रोती हैं और जिद करती हैं। लड़के ऐसा नहीं करते। तब आशुतोष ने कहा कि वह अपने जन्मदिन पर बाइसिकल जरूर लेगा। बुआ ने उसको आश्वस्त किया तब वह शांत हुआ।
प्रश्न 13.
नौकर बंसी के बारे में श्रीमती जी का क्या विचार था? उन्होंने अपने पतिदेव से क्या करने को कहा?
उत्तर:
श्रीमती जी का विचार था कि पाजेब नौकर बंसी ने ही चुराई है। जब वह पाजेब संदूक में रख रही थी तो वह वहाँ पर ही था। उनको उस पर सोलह में पन्द्रह आना शक है। उन्होंने अपने पतिदेव से कहा कि वह उससे कड़ाई से पूछताछ करें। उन्होंने उसको शहजोर बना रखा है। उससे कठोरता करने पर ही पाजेब मिलेगी।
प्रश्न 14.
लेखक के अनुसार अपराध प्रवृति को किस प्रकार जीता जा सकता है?
उत्तर:
लेखक का मानना है कि अपराध की प्रवृत्ति को दण्ड से नहीं बदला जा सकता। अपराध के प्रति करुणा होनी चाहिए, रोष नहीं होना चाहिए। अपराध की प्रवृत्ति अपराधी के साथ प्रेम का व्यवहार करने से ही दूर हो सकती है। उसको आतंक से दबाना ठीक बात नहीं है। बालक का स्वभाव कोमल होता है, उसके साथ स्नेह का व्यवहार होना चाहिए।
प्रश्न 15.
लेखक का मानना है- ”अगर आशुतोष ने चोरी की है तो उसका इतना दोष नहीं है”- तो किसका दोष है तथा क्यों?
उत्तर:
लेखक मानता है कि यदि आशुतोष ने चोरी की है तो वह इतना दोषी नहीं है। इसका दोषी वह स्वयं है तथा परिवार वाले हैं। चोरी के लिए आशुतोष को प्रेरित करने वाली परिस्थितियाँ उसके (लेखक के कारण ही बनीं। परिवार में बच्चे के पोषण में कुछ कमी रही, जिससे वह चोरी की ओर प्रवृत्त हुआ। परिवार में उसकी ओर ध्यान नहीं दिया गया, उसकी आवश्यकता और इच्छा का ख्याल नहीं रखा गया। इन कारणों से उसने चोरी की।
प्रश्न 16.
“देखो, हमारे बेटे ने सच कबूल किया है,” आशुतोष ने क्या सच कबूल किया? क्या आप भी उसको सच मानते हैं?
उत्तर:
लेखक ने अपनी पत्नी से कहा- “देखो, हमारे बेटे ने सच कबूल किया है। लेखक के बार-बार पूछने पर आशुतोष ने कह दिया था कि उसको पाजेब पड़ी मिली थी। यह सच नहीं है। आशुतोष ने अपने पिता के प्रश्नों से घबराकर उनसे बचने के लिए कह दिया कि पाजेब उसे पड़ी मिली थी। उसे पाजेब पड़ी हुई नहीं मिली थी और न उसने पतंगवाले को बेची ही थी।
प्रश्न 17.
‘यह कुलच्छिनी औलाद जाने कब मिटेगी?’ यह कथन किसका है तथा किस कारण कहा गया है?
उत्तर:
‘यह कुलच्छिनी औलाद न जाने कब मिटेगी?’ यह कथन छुन्नू की माँ का है। आशुतोष ने कहा कि उसने पाजेब छुन्नू को दी थी। इसकी माँ ने कहा कि तुम्हारा छुन्नू झूठ बोलता है। इससे छुन्नू की माँ आहत हुई। उसको बुरा लगा कि उसके बेटे को चोर समझा गया। उसने उसको पकड़कर खूब पीटा और स्वयं भी रोने लगी।
प्रश्न 18.
“पाजेब से बढ़कर शांति है” यह किसने कहा है तथा किस अवसर पर कहा है?
उत्तर:
लेखक ने अपनी पत्नी से कहा कि उसने तेज आवाज में बात करके ठीक नहीं किया। इस पर वह नाराज हो गई और कहा कि वह तेज बोलती है। लेखक छुन्नू और उसकी माँ से पाजेब निकलवाकर दिखाये। लेखक ने उससे कहा कि उसको शांति से काम लेना चाहिए। शांति पाजेब से बड़ी चीज है। लड़ने -झगड़ने और चिल्लाने से पाजेब नहीं मिलेगी, शांति अवश्य नष्ट हो जायेगी।
प्रश्न 19.
वह शहीद की भाँति पिटता रहा था- इस कंथन को आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
छुन्नू पर पाजेब चोरी का आरोप जानकर उसकी माँ ने उसको पीटना शुरू कर दिया। वह रोया बिलकुल नहीं। जिस प्रकार कोई शहीद दण्ड का विरोध नहीं करता, उसे साहस के साथ सहन करता है उसी तरह उसको अपनी पिटाई का विरोध नहीं किया। आशुतोष एक कोने में खड़ा था। छुन्नू वह उसकी ओर न जाने किस भाव से देखती रहा।
प्रश्न 20.
दफ्तर जाते समय लेखक श्रीमती जी से क्या करने को कह गया तथा क्यों?
उत्तर:
दफ्तर जाते समय लेखक ने श्रीमती से कहा कि वह आशुतोष को डराये-धमकाये नहीं। उससे प्यार से पाजेब के बारे में पूछताछ करे। धमकाने से बच्चे बिगड़ जाते हैं। उससे कोई लाभ नहीं होता। प्यार से पूछने पर ही आशुतोष सही-सही बता सकता है कि उसने पाजेब का क्या किया।
प्रश्न 21.
‘पाजेब उसके पास नहीं हुई तो कहाँ से देगा।’ आशुतोष का बार-बार यह कहना क्या प्रगट करता है?
उत्तर:
जब आशुतोष से उसके पिता ने कहा कि वह पतंगवाले से पाजेब वापस ले आए तो बार-बार वह एक ही बात कहता था कि पाजेब उसके पास नहीं हुई तो कहाँ से देगा। उसका बार-बार यह कहना प्रगट करता है कि वह जानता था कि उसने पाजेब पतंग वाले को दी ही नहीं थी। उसने तो पिता की हाँ में हाँ मिलाई थी। उसने पाजेब न तो छुन्नू को दी थी और न छुन्नू ने पतंगवाले को दी थी।
प्रश्न 22.
‘पाजेब’ कहानी के अंत पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
‘पाजेब’ कहानी का अन्त बुआ के यह बताने से होता है कि पिछले रोज पाजेब भूल से उसके साथ चली गई थी। वह जेब से निकालकर पाजेब देती है तो लेखक इस तरह भयभीत हो जाता है, जैसे पाजेब कोई बिच्छू हो। इसके साथ ही आशुतोष पाजेब की चोरी से मुक्त हो जाता है। कहानी का अंत नाटकीय तथा मार्मिक है। कहानी चरम बिन्दु पर पहुँचने पर ही समाप्त हो जाती है।
प्रश्न 23.
मैंने बड़े प्यार से पूछ-पूछकर यह सब उसके पेट से निकाला है। दो-तीन घंटे मैं मगज मारती रही।” आशुतोष की माँ ने यह किससे तथा क्यों कहा?
उत्तर:
दफ्तर जाने से पूर्व लेखक ने अपनी पत्नी से कहा था कि वह शांति के साथ आशुतोष से पाजेब के बारे में पूछे, उसे धमकाये नहीं। दफ्तर से लौटने पर उनकी पत्नी ने उनको बताया कि उसने आशुतोष से प्यार से ही पूछताछ की है तथा आशुतोष ने स्वीकार किया है कि उसने पाजेब ली है तथा पतंग वाले को ग्यारह आने पैसे में बेच दी है। उसके दिए पाँच आने आशुतोष के पास हैं तथा बाकी पैसे उसने धीरे-धीरे देने की बात कही है।
प्रश्न 24.
लेखक के बहुत प्रयास करने पर भी आशुतोष पतंग वाले के पास जाने को तैयार नहीं होता, इसका प्रभाव लेखक के प्रकाश के साथ व्यवहार में किस तरह परिलक्षित होता है?
उत्तर:
आशुतोष पतंग वाले के पास नहीं जाता। लेखक के प्रयास असफल रहते हैं। इसका प्रभाव लेखक के व्यवहार पर पड़ता है। वह संयम खो देता है और अपने भाई प्रकाश के साथ कठोरता तथा रूखेपन से पेश आता है। प्रकाश उसके आदेश पर पतंगवालों से पूछकर बताता है कि पाजेब उसके पास नहीं है। तुमसे कुछ काम नहीं हो सकता, जरा-सी बात नहीं हुई, तुमसे क्या उम्मीद रखी जाएगी? वह प्रकाश की सफाई सुने बिना ही कड़ाई से कह देता है- ‘बस तुम जाओ।’
प्रश्न 25.
यदि मुन्नी की पाजेब बुआ के साथ भूल से नहीं चली जाती तो इसका ‘पाजेब’ कहानी पर क्या प्रभाव पड़ता? सोचकर उत्तर दीजिए।
उत्तर:
यदि मुन्नी की पाजेब बुआ के साथ नहीं चली जाती तो ‘पाजेब’ कहानी पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ता। कहानी के कथानक में विकास दिखाई ही नहीं देता। वह अधूरी ही रह जाती अथवा लेखक इसको कोई अन्य मोड़ दे देता तब इसमें आशुतोष, लेखक, लेखक की पत्नी, मुन्नू, छुन्नू की माँ आदि पात्र नहीं होते। यदि होते हो उनकी क्या भूमिका होती, यह कहा नहीं जा सकता।
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 17 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘पाजेब’ कहानी के मुख्य पात्र आशुतोष का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
‘पाजेब’ कहानी का मुख्य पात्र बालक आशुतोष है। उसके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –
कोमल बुद्धि – आशुतोष आठ वर्ष का बालक है। उसकी बुद्धि कोमल तथा अपरिपक्व है। वह दूसरों की बातों तथा भावनाओं से शीघ्र प्रभावित हो जाता है। वह अपने पिता के स्नेह, प्रलोभन व्यंग्य आदि भावों से प्रभावित होकर वह काम करना स्वीकार कर लेता है, जो उसने किया ही नहीं।
तर्क-कुतर्क से दूर – आशुतोष तर्क कुतर्क से दूर है। वह अपनी बात कहने के लिए तर्क-कुतर्क का सहारा नहीं लेता। वह तर्कपूर्ण प्रश्नों को समझता भी नहीं है। अपने पिता के तर्कपूर्ण प्रश्नों का सामना वह नहीं कर पाता। वह निरपराध होते हुए भी पाजेब की चोरी करना स्वीकार लेता है।
बाल-हठ – आशुतोष बालक होने के कारण हठ भी करता है। अपनी छोटी बहन को पाजेब पहने देखकर वह बाइसिकल लेना चाहता है। वह बुआ से हठपूर्वक कहता है- हम तो अभी लेंगे। वह समझदार भी है। प्यार से समझाने पर वह अपने जन्मदिन पर बाइसिकल लेने की बात मान लेता है। अकारण संदेह का पात्र- आशुतोष ने पाजेब नहीं ली है। उसके ऊपर पाजेब की चोरी का अकारण संदेह किया जाता है। उसे अपना अपराध स्वीकार करने के लिए बाध्य किया जाता है तथा प्रताड़ित भी किया जाता है। बुआ के आने पर वह निरपराध सिद्ध होता है।
सरल एवं खिलाड़ी – आशुतोष सरल स्वभाव का है। वह खेलकूद में मस्त तथा खुश रहता है। वह पतंग उड़ाने का शौकीन है। छुन्नू के साथ वह गुल्ली-डंडी ही खेलता है। उसका चरित्र बाल-मनोविज्ञान के अनुरूप, सशक्त तथा सजीव है।
प्रश्न 2.
‘पाजेब’ कहानी जैनेन्द्र कुमार की एक उद्देश्यपूर्ण रचना है।” विचारपूर्ण टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
‘पोजेब’ कहानी जैनेन्द्र कुमार की एक उद्देश्यपूर्ण रचना है। कहानी का उद्देश्य बाल-मनोविज्ञान का चित्रण करना है। कहानी का मुख्य पात्र आशुतोष है। वह आठ वर्ष का बच्चा है। उसके ऊपर पाजेब की चोरी का अकारण संदेह किया जाता है। जो चोरी उसने की ही नहीं है, उसको स्वीकार कराने के लिए उसके सामने तर्कपूर्ण कठोर प्रश्न रखे जाते हैं। उसे भयभीत किया जाता है, प्रलोभन दिया जाता है तथा स्नेह देकर प्रभावित किया जाता है। अन्त में वह मान लेता है कि उसने पाजेब ली थी।
कहानीकार यह बताना चाहता है कि बच्चे कोमल बुद्धि के होते हैं। वे तर्कपूर्ण प्रश्नों का सामना नहीं कर पाते। वे डरकर, लालच में पड़कर, स्नेह से वशीभूत होकर दूसरों की बातें मान लेते हैं। आशुतोष ने न पाजेब ली न छुन्नू को दी न पतंग वाले को बेची किन्तु पिता के प्रश्नों में उलझकर वह अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं कर पाता तथा अपराधी मान लिया जाता है। बुआ के आने तथा उनके पास पाजेब मिलने पर ही वह अपराध मुक्त होता है। लेखक कहना चाहता है कि बच्चों के साथ सहायता तथा स्नेह का व्यवहार होना चाहिए। उनका मन अत्यन्त नाजुक होता है। कहानी में आशुतोष तथा मुन्नी के चरित्र द्वारा बालकों के मनोविज्ञान का परिचय सफलतापूर्वक दिया गया है। यही ‘पाजेब’ कहानी का उद्देश्य है।
प्रश्न 3.
‘पाजेब’ कहानी की कथावस्तु की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
‘पाजेब’ कहानी की कथावस्तु में पाजेब ही उसके केन्द्र में है। कहानी का आरम्भ पाजेब के उल्लेख के साथ ही होता है। मुन्नी पाजेब पहनना चाहती है और अपने पिता से उसके लिए हठ करती है। यह देखकर आशुतोष भी बाइसिकल लेने का हठ करता है। बालहठ से प्रारम्भ होने वाली यह एक मनोविज्ञान पर आधारित कहानी है। कथावस्तु का विकास और विस्तार हमको पाजेब के खोजने के बाद दिखाई देता है। मुन्नी की माँ उसके पिता को बताती है कि एक पैर की पाजेब नहीं मिल रही। उसको संदेह नौकर बंसी पर है किन्तु पिता को अपने आठ वर्ष के पुत्र आशुतोष पर संदेह है।
आशुतोष अपना पतंग का शौक पूरा करने के लिए पाजेब चुरा सकता है। इसके बाद पाजेब की तलाश शुरू होती है। पिता पैने तर्कपूर्ण प्रश्न पूछकर बालक आशुतोष को उस चोरी को स्वीकार करने को बाध्य कर देते हैं जो उसने की ही नहीं है। इसके बाद आशुतोष को बलात पतंग वाले के पास भेजने का प्रबन्ध होता है तभी बुआ आकर बताती है कि पाजेब पिछली बार भूल से उसके साथ चली गई थी। इस तरह कथावस्तु विकसित होकर मध्य से चरम बिन्दु तक पहुँचती है। कहानी का अन्त चरमबिन्दु पर ही हो जाता है। पाजेब का पता चलते ही आशुतोष दोष मुक्त हो जाता है। ‘पाजेब’ कहानी की कथावस्तु मनोविज्ञान पर आधारित है। कोमल बुद्धि के बालक तर्कपूर्ण प्रश्नों का उत्तर ठीक से नहीं दे पाते और अपना अपराध स्वीकार कर लेते हैं। इस तरह वे अकारण अपराधी बन जाते हैं। इसी पृष्ठभूमि पर ‘पाजेब’ कहानी की कथावस्तु सृजित हुई है।
प्रश्न 4.
कहानी कला की दृष्टि से ‘पाजेब’ कहानी आपको कैसी लगती है? विचारपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
कहानी-कला की दृष्टि से ‘पाजेब’ एक सफल कहानी है। कहानीकार ने बाल-मनोविज्ञान को लेकर इसकी कथावस्तु का आरम्भ मुन्नी की पाजेब लेने की लालसा के साथ होता है। उसकी पाजेब खोने का आरोप उसके आठ वर्ष के भाई आशुतोष पर लगता है। आशुतोष ने पाजेब नहीं चुराई है किन्तु अपने पिता के तर्को से परास्त होकर वह आरोप स्वीकार कर लेता है। अंत में बुआ द्वारा बताने पर कि पाजेब उनके साथ भूल से चली गई थी, वह निरपराध सिद्ध होता है। कथावस्तु का विकास नियमानुसार तथा क्रमबद्ध तरीके से हुआ है।
कहानी का मुख्य पात्र आशुतोष है। अन्य पात्रों में आशुतोष के पिता, माता, बुआ, चाचा, पड़ोसी छुन्नू तथा उसकी माँ आदि हैं। कहानीकार ने इनके चरित्र कथानक की माँग के अनुरूप ही चित्रित किए है। चरित्र चित्रण सजीव तथा आकर्षक है। कहानी के संवाद छोटे, सजीव, नाटकीय तथा मार्मिक हैं। लेखक ने देश-काल का पूरा ध्यान रखा है। कहानी की भाषा प्रवाहपूर्ण तथा पात्रानुकूल है। शैली मनोविश्लेषणात्मक है। कहानी का शीर्षक पाजेब अत्यंत सटीक है। ‘पाजेब’ एक सोद्देश्य रचना है। कहानीकार ने बताया है कि बालक की बुद्धि कोमल होती है। वह तर्क-वितर्क नहीं समझता। उसके साथ कोमलता, स्नेह तथा सहानुभूति का व्यवहार होना चाहिए।
प्रश्न 5.
बाल-मनोविज्ञान किसको कहते हैं? ‘पाजेब’ कहानी को प्रभावशाली रचना बनाने में उसका क्या योगदान है?
उत्तर:
बालकों के मन का ज्ञान कराने वाले ज्ञान को बाल-मनोविज्ञान कहते हैं। बच्चे मन के भोले तथा सरल होते हैं। उनकी बुद्धि अविकसित तथा कोमल होती है। वे टेढ़े-मेढ़े तर्को को नहीं समझते। उनकी बुद्धि तर्कपूर्ण भी नहीं होती। घुमा फिराकर पूछे गए टेढ़े-मेढ़े प्रश्नों से वे भ्रमित हो जाते हैं तथा सत्य क्या है यह ठीक तरह नहीं जान पाते। इस तरह से निरपराध होने पर भी अपराधी बना दिए जाते हैं, जो उनके लिए एक भयानक त्रासदी होती है।
‘पाजेब’ कहानी की कथावस्तु तथा पात्रों का चरित्रे बाल-मनोविज्ञान पर आधारित है। आरम्भ से हम मुन्नी तथा उसके भाई आशुतोष को पाजेब तथा बाइसिकल लेने के लिए बालहठ करते देखते हैं। बाद में कथानक का विकास पाजेब के खोने तथा उसके बारे में आशुतोष के साथ पूछताछ करने से ही हुआ है। आशुतोष बालक है। उसकी बुद्धि कोमल है। वह अपने पिता के तर्कपूर्ण तथा घुमा-फिराकर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाता, उसने पाजेब नहीं चुराई है किन्तु प्रश्नों से आतंकित होकर वह चोरी करना स्वीकार कर लेता है। कहानी के पात्रों का चरित्र-चित्रण भी मनोविज्ञान के अनुरूप ही हुआ है। आशुतोष का चरित्र बाल-मनोविज्ञान का सजीव चित्र है। इसे प्रभावशाली बनाने में बाल मनोविज्ञान का गहरा योगदान है।
प्रश्न 6.
‘पाजेब’ क्या है? कहानी में इसका क्या महत्व है?
उत्तर:
पाजेब एक आभूषण है जो पैरों में पहना जाता है। यह अधिकांशत: चाँदी से बना होता है। इसमें अनेक लड़ियाँ होती हैं। जो पहनने वाली के पैरों के अनुसार अपना स्वरूप बना लेती है। पाजेब का पाजेब शीर्षक कहानी में बहुत महत्व है। कहानी की कथावस्तु का आधार तथा केन्द्र पाजेब ही है। कथानक का आरम्भ पाजेब के उल्लेख के साथ होता है। मुन्नी अपने पिता से पाजेब लेने के लिए हठ करती हुई दिखाई देती है। कथानक का विकास भी पाजेब पर ही निर्भर है। पाजेब खो जाती है और इसकी तलाश शुरू होती है। इसी के साथ कथानक विस्तार पाता है।
पाजेब चुराने का शक बालक आशुतोष पर होता है। कोमल बुद्धि तथा सरल मन के बच्चे को अपने पिता के पैने, तर्कपूर्ण प्रश्नों का सामना करना पड़ता है। वह चोर नहीं है किन्तु प्रश्नों से आतंकित होकर वह चोरी करने की बात मान लेता है। कहानी पाजेब के मिलने पर ही समाप्त होती है और तभी आशुतोष को पाजेब चुराने के आरोप से मुक्ति मिलती है। बुआ आकर बताती है कि पिछली बार पाजेब भूल से उसके साथ चली गई थी। उसके साथ ही आशुतोष दोषमुक्त हो जाता है तथा आशुतोष पर चोरी का शक करने वाला उसका पिता भयभीत हो उठता है। इस प्रकार ‘पाजेब’ इस कहानी में आरम्भ से लेकर अंत तक रहती है। उसके बिना कहानी के विकसित होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
लेखक – परिचय :
प्रश्न 1.
जैनेन्द्र कुमार को जीवन-परिचय देकर उनकी साहित्य-सेवा का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय – जैनेन्द्र कुमार का जन्म सन् 1905 में अलीगढ़ (उ.प्र.) के कौड़ियागंज नामक कस्बे में हुआ था। आपके पिता प्यारेलाल तथा माता श्रीमती रामदेवी थी। आपकी पूरा नाम आनन्दीलाल था। आपके पिता का देहावसान होने के कारण आपकी शिक्षा की व्यवस्था ठीक से नहीं हो पाई। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा हस्तिनापुर के जैन गुरुकुल ऋषि ब्रह्मचर्याश्रम में हुई। मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् आप काशी विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा के लिए प्रविष्ट हुए, किन्तु महात्मा गाँधी के स्वतंत्रता आन्दोलन से प्रभावित होकर आपने अध्ययन छोड़ दिया तथा आन्दोलन में कार्य करने लगे। आपको अनेक बार जेलयात्रा भी करनी पड़ी। स्वाध्याय तथा लेखने-कार्य भी साथ-साथ चलता रहा। सन् 1988 में आपका देहावसान हो गया।
साहित्यिक परिचय – जैनेन्द्र कुमार एक उपन्यासकार, कहानीकार, निबन्धकार तथा प्रसिद्ध विचारक थे। उनका यह रूप उनके निबन्धों में दिखाई देता है। साहित्य, दर्शन, संस्कृति, राजनीति, समाजधर्म आदि से सम्बन्धित विषयों का गम्भीर विवेचन आपके निबन्धों में मिलता है। आपने ‘खेल’ कहानी तथा ‘परख’ उपन्यास लिखकर हिन्दी साहित्यकारों में अपना नाम लिखाया। जैनेन्द्र की भाषा व्यावहारिक तत्सम शब्द प्रधान तथा विषयानुकूल है। उसमें यथावश्यक मुहावरों का प्रयोग हुआ है। चिन्तक होने के कारण कहीं-कहीं वाक्यों में गंभीरता दिखाई देती है। आपकी शैली विचारात्मक, मनोविश्लेषणात्मक तथा व्यंग्यात्मक है। नाटकीय तथा संवाद शैली को भी अपने अपनाया है। साहित्य सेवा के लिए हिन्दुस्तान अकादमी से आप पुरस्कृत हुए हैं। आपको ‘भारत भारती सम्मान’ तथा ‘पद्म भूषण’ से भूषित किया जा चुका है।
- कृतियाँ – जैनेन्द्र जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं:
- उपन्यास – परख, सुनीता, सुखदा, त्यागपत्रे, कल्याणी, बिवर्त, जयवर्धन, मुक्तिबोध इत्यादि।
- कहानी-संग्रह – फाँसी, जयसन्धि, नीलम देश की राजकन्या, वातायन, एक रात, दो चिड़ियाँ, पाजेब इत्यादि। आपकी कहानियाँ ‘जैनेन्द्र की श्रेष्ठ कहानियाँ’, नाम से आठ राज्यों में प्रकाशित हो चुकी हैं।
- निबन्ध-संग्रह – प्रस्तुत प्रश्न, पूर्वोदय, जड़ की बात, साहित्य का श्रेय और प्रेय, मन्थन, राष्ट्र और राज्य, सोच-विचार, प्रश्न और प्रश्न, ‘काम, प्रेम और परिवार’, अकाल पुरुष गाँधी इत्यादि।
- संस्मरण – ये और वे।
- अनुवाद – मन्दाकिनी, पाप और प्रकाश, प्रेम में भगवान आदि।
पाठ – सार :
प्रश्न 1.
‘पाजेब’ शीर्षक कहानी का सारांश लिखिए।
उत्तर:
परिचय – ‘पाजेब’ जैनेन्द्र कुमार की एक रोचक और मार्मिक कहानी है। वह उनके पाजेब’ शीर्षक कहानी-संग्रह में संकलित है। इसमें बाल-मनोविज्ञान को आधार बनाकर आशुतोष का सजीव चित्रण किया गया है। मुन्नी और आशुतोष- मुन्नी और आशुतोष बहन-भाई हैं। मुन्नी चार साल और आशुतोष आठ वर्ष का है। उन दिनों पायल पहनने का बड़ा चलन था। छोटी बड़ी सभी पाजेब पहनती थीं। चाँदी की बनी सफेद चमकीली पाजेब थी ही ऐसी कि जिसके पैर में होती उसी के अनुकूल होती थी। उसका निज का कोई आकार कोई महत्त्वपूर्ण नहीं था। एक दिन मुन्नी ने अपने पिता से जिद की कि उसे पाजेब चाहिए। दोपहर को उसकी बुआ आई तो उसने उससे भी पाजेब की माँग की। अगले इतवार को बुआ पाजेब ले आई। मुन्नी उसे पहनकर रुक्मिन और शीला को दिखाती फिरी। वह बहुत खुश थी। आशुतोष ने मुन्नी को पाजेब पहने देखा तो वह भी खुश हुआ। फिर उसने कहा कि मुन्नी को पाजेब दिलाई तो हमें बाइसिकल दिलाओ। बुआ ने आशुतेष को समझा दिया कि उसके जन्म दिवस पर बाइसिकल उसको मिल जायेगी।
पाजेब का खो जाना – रात को लेखक मेज पर था कि उसकी पत्नी ने कहा- तुमने पाजेब तो नहीं देखी? एक पैर की पाजेब कहीं मिल नहीं रही है। उनकी पत्नी ने किताब-कापियाँ सब उलट-पलटकर देखना चाहा तो लेखक ने रोका- यहाँ कहाँ से आई। पूछने पर उन्होंने बताया कि दोपहर को नीचे वाले बक्से में सँभालकर रखी थी। अब देखा तो वहाँ एक है, दूसरी नहीं है।.शायद नौकर बंसी ने ले ली होगी। रखते समय वह वहीं खड़ा था, उससे डाँटकर पूछो। लेखक ने कहा कि यह नौकर का काम नहीं है, वह ऐसा नहीं कर सकता। उसने आशुतोष से पूछने को कहा। शायद उसने ली हो। उसे पतंग का शौक है। पत्नी ने बताया कि आशुतोष तो पायल खोजने में उसकी मदद कर रहा था। वह नहीं ले सकता।
आशुतोष से पूछ-ताछ – बातों-बातों में पता चला कि उस समय आशुतोष पतंग और एक डोर की पिन्ना नया लाया था। संवेरे उससे पूछा तो उसने सिर हिलाकर इन्कार किया, मुँह से कुछ नहीं कहा। लेखक ने पुन: पूछा कि यदि उसने पाजेब ली हो तो कोई बात नहीं। सच बता देना चाहिए। पर वह चुप रहा। लेखक ने सोचा कि अपराध के प्रति करुणा होनी चाहिए, रोष नहीं। प्रेम से ही अपराध की वृत्ति को जीता जा सकता है। बालक का स्वभाव कोमल होता है। उससे स्नेह से व्यवहार करना चाहिए। लेखक ने कहा आशुतोष, डरो नहीं, सच बोल दो। सच बोलने पर सजा नहीं इनाम मिलता है। वह चुप ही रहा। लेखक ने पूछा- क्यों बेटे, तुमने ली तो नहीं ? इस बार आशुतोष ने सिर हिलाकर तीन बार जोर से कहा- मैंने नहीं ली। लेखक को उसकी यह उग्रता दोष का लक्षण प्रतीत हुई। किन्तु लेखक ने कहा जाओ, पायल को ढूँढ़ो। ढूँढ़कर लाने पर इनाम मिलेगा। वह चला गया। लेखक ने सोचा कि यदि आशुतोष ने चोरी की है तो इसके लिए वह इतना दोषी नहीं है। जितना वह स्वयं हैं। इस चोरी से वे भी बरी नहीं हो सकते। उसने उसे पुन: बुलाकर पूछा, तुमने पाजेब छुन्नू को दी है न? बड़ी कठिनाई के बाद उसने अपना सिर हिलाया और कहा- हाँ हाँ।
आशुतोष की स्वीकृति – लेखक ने उससे कहा कि वह छुन्नू से पाजेब ले आए। आशुतोष ने कहा- छुन्नू के पास नहीं होगी तो कहाँ से देगा? उसने कहा कि उसे पाजेब पड़ी मिली थी। लेखक ने कहा कि उसने छुन्नू को दी। उसने कहा कि इसको बेचेंगे। बेचकर पतंग लाएँगे। लेखक ये सब कह रहा था आशुतोष मान रहा था परन्तु छुन्नू के पास जाने को तैयार नहीं था। लेखक ने उसे डाँटा-डपटा, उसके कान खींचे। लेखक ने आशुतोष की माँ को बताया। उसने छुन्नू की माँ को, उसने छुन्नू से पूछा। छुन्नू ने कहा उसने पाजेब नहीं ली। इस पर दोनों में कुछ तकरार भी हुई। बाद में छुन्नू की माँ शांत हो गई। उसने लेखक से कहा कि छुन्नु मना करता है परन्तु वह पाजेब
का दाम भर सकती है। लेखक ने छुन्नू से पूछा तो उसने बताया कि उसने पाजेब आशुतोष के हाथ में देखी थी, छुन्नू की माँ उसे पीट-पी पीटकर बेहाल कर देती। लेखक ने समझाकर उसे किसी तरह उसके घर भेजा। दफ्तर जाने से पहले उसने अपनी पत्नी से कहा कि वह आशुतोष से प्यार से पूछे। शाम को पत्नी ने बताया कि आशुतोष ने सब कुछ बता दिया है। उसने पाजेब पतंग वाले को ग्यारह आने में बेची है। पाँच आने दे दिए हैं, बाकी धीरे-धीरे देने को कहा है। लेखक ने कहा ठीक है, पाँच आने देकर पतंग वाले से पाजेब ले लेंगे। फिर उसने आशुतोष को बुलाया, उसे गोद में लेकर प्यार किया परन्तु वह खुश नहीं था। पूछने पर कभी वह हाँ तो कभी ना कहता। वह छुन्नू को साथ लेकर पतंग वाले को पाँच आने देकर पायल वापस लाने को भी तैयार न था।
लेखक का क्रोध – लेखक को आशुतोष का व्यवहार समझ नहीं आ रहा था। सब कुछ स्वीकार करने के बाद भी वह पतंग वाले के पास जाने को तैयार न था। लेखक ने उसको कान पकड़कर उठाया, दो बार कोठरी में भी बन्द कराया और दो चाँटे भी मारे। उसने नौकर बंशी तथा अपने छोटे भाई को बुलाया और आशुतोष को पतंग वाले के पास ले जाने को कहा। वह कहता रहा, उसके पास नहीं हुई तो कहाँ से देगा।
बुआ का आगमन – तभी बुआ की गई। उसने आशुतोष से कहा कि वह उसके लिए केले और मिठाई लाई है। उसने पूछा-इसे इस तरह कहाँ ले जा रहे हो? क्यों परेशान कर रहे हो? लेखक ने उत्तर नहीं दिया। वह इधर-उधर की बाते करता रही। बुआ एक छोटा-सा बक्सा सरकाकर बोली इसमें वे कागज हैं जो तुमने माँगे थे। फिर उसने अपनी वास्कट की जेब में हाथ डाला और पाजेब निकालकर दी। उसको देखकर लेखक भयभीत हुआ। बुआ ने कहा- उस दिन भूल से यह पाजेब मेरे साथ चली गई थी।
कठिन शब्दों के अर्थ
(पृष्ठ 88) पाजेब = पायल, तोड़िया। सहज = आसानी से। सुघड़ = सुन्दर। ठिकाना = सीमा। ठुमकना = जिद करना।
(पृष्ठ 89) रोज = दिन। घड़ी-भर = थोड़ा समय। बारीक = पतला। सुबुक = सुन्दर। दाम = कीमत। मनसूबा = इरादा। मौजूद = हाजिर। इन्कार = मना।
(पृष्ठ90) फिकर = चिन्ता। झल्ला कर = गुस्सा होकर। शहजोर = बलवान। सोलह में पन्द्रह आने = ज्यादा शंकास्पद। छैटे = चालाक। फरिश्ते = देवदूत्। ट्रंक = बड़ा सन्दूक। बरजना = रोकना। शह = प्रोत्साहन। पिन्ना = चरखी। इजाजत = अनुमति। सबक = पाठ। गुम = चुप। करुणा = दया।
(पृष्ठ91) रोष = क्रोध। आतंक = डर, भय। स्नेह = प्रेम। इनाम = पुरस्कार। सूजा हुआ = फूला हुआ। अस्थिर = काँपती। उग्रता = प्रबलता, तीव्रता। वंचित = अलग। इलजाम = दोष। लाचारी = मजबूरी। बरी = मुक्त। छाया = परछाई, मनोभाव। ताड़ना = चुपचाप पता करना।
(पृष्ठ 92) उल्लास = प्रसन्नता। कबूल = स्वीकार। बलैया लेना = किसी का संकट अपने ऊपर लेने की कामना करना। अगरचे = किन्तु।
(पृष्ठ93) जिद = किसी बात पर अड़े रहना। गाड़ देना = जमीन में दबा देना। क्षोभ = क्रोध। कुलच्छिनी = बुरे लक्षणों वाली। औलाद = संतान। पवन पड़ना = हवा फैलना, बात पता चल जाना। तेजा-तेजी = तेज आवाज में बोलना। बुदबुदाना = मुँह ही मुँह में बोलना। गरमी = तेजी, गुस्सा।
(पृष्ठ94) सहूलियत = सुविधा। आकार = बनावट। चमड़ी उधेड़ना = बहुत पीटना। बीच-बिचाव = मध्यस्थता। कसूरबार = अपराधी। बे बात = निरर्थक। फायदा = लाभ। दिलासा = सान्त्वना। प्रण = प्रतिज्ञा। बखेड़ा = झगड़ा-झंझट। टला = दूर हुआ। धमकाना = डाँटना, पाटना। रती-रती = छोटी से छोटी।
(पृष्ठ95) पेट में से निकलना = स्वीकार कराना। मगज मारना = तरह-तरह से पूछना, दिमाग लड़ाना। जी = मन। उचक्का = ठग। टिकना = रुकना। हजरत = एक व्यंग्यपूर्ण सम्बोधन।।
(पृष्ठ 96) इकन्नी = एक आने का सिक्का। दुअन्नी = दो आने का सिक्का।
(पृष्ठ97) पीला होना = भयभीत होना। कोठरी = छोटा कमरा। पूँदना = बन्द करना। अक्ल = बुद्धि। बड़बड़ाना = धीरे-धीरे कुछ कहना। भुगतना = देख लेना, समझ लेना। अव्वल = पहला। सुपुर्द करना = सौंपना। नरमी = उदारता। टस से मस न होना = कोई प्रभाव न पड़ना। सरोकार = सम्बन्ध, मतलब। गुस्ताखी = मक्कारी। प्रतिकार = प्रतिरोध।
(पृष्ठ98) सब्र = धैर्य। शंरित = शैतानी। बाज आना = छोड़ना। उम्मीद = आशी। सफाई देना = अपना पक्ष स्पष्ट करना। लिहाज = आदर।
(पृष्ठ99) सिलसिला = घटनाक्रम । उद्यत = तैयार । आनाकानी = ना-नुकर। मचलना = जिद करना, मना करना । वास्कट = एक वस्त्र, जाकिट।
महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ
1. बाजार में एक नई तरह की पाजेब चली है। पैरों में पड़कर वे बड़ी अच्छी मालूम होती हैं। उनकी कड़ियाँ आपस में लचक के साथ जुड़ी रहती हैं कि पाजेब का मानो निज का आकार कुछ नहीं है, जिस पाँव में पड़े उसी से अनुकूल ही रहती है। पास-पड़ोस में तो सब नन्हीं-बड़ी के पैरों में आप वही पाजेब देख लीजिए। एक ने पहनी तो दूसरी ने भी पहनी। देखा-देखी में इस तरह उनका न पहनना मुश्किल हो गया। (पृष्ठ 88)
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘पाजेब’ शीर्षक कहानी से लिया गया है। इसके लेखक जैनेन्द्र कुमार हैं।
प्रसंग – पाजेब बाल मनोविज्ञान पर आधारित एक सजीव तथा रोचक कहानी है। ‘पाजेब’ चाँदी से बनने वाला एक सुन्दर आभूषण है जिसको स्त्रियाँ अपने पैरों में पहनी करती हैं।
व्यख्या – लेखक बता रहे हैं कि उन दिन एक नई तरह की पाजेब बाजार में बिक रही थी। किसी के पैरों में पहने जाने के बाद वे बहुत सुन्दर लगती थीं। उनमें बहुत सी लड़ियाँ थीं, जो एक दूसरे के साथ लचक के साथ जुड़ी हुई थीं। पाजेब के आकार-प्रकार का अपना कोई महत्व नहीं था। वे जिसके भी पैरों में पहनी जातीं, उसी के पैरों के अनुसार उनका रूप बन जाता था। इनका उस समय बेड़ी भारी प्रचलन था। बच्चियों से लेकर युवती स्त्रियाँ तक उनको पहनती थीं। पहनने वालियों में बड़ी भारी होड़ रहती थी। पहले एक स्त्री पाजेब पहनती थी फिर उसको देखकर दूसरी भी वैसी ही पाजेब पहनती थी। इतनी जबरदस्त होड़ कि एक ही पाजेब पहने और दूसरी न पहने-ऐसा हो ही नहीं सकता था।
विशेष –
- आभूषणों के प्रति महिलाओं के प्रबल आकर्षण का चित्रण है।
- पायल एक ऐसा आभूषण है जिसको सामान्यत: सभी महिलाएँ पहनती हैं।
- लेखक की भाषा विषायानुरूप, प्रवाहपूर्ण है।
- शैली वर्णनात्मक है।
2. मेरे मन में उस समय तरह-तरह के सिद्धान्त आए। मैंने स्थिर किया कि अपराध के प्रति करुणा ही होनी चाहिए, रोष का अधिकार नहीं है। प्रेम से ही अपराध-वृत्ति को जीता जा सकता है। आतंक से उसे दबाना ठीक नहीं है। बालक का स्वभाव कोमल होता है और सदा ही उससे स्नेह से व्यवहार करना चाहिए। मैंने कहा कि बेटा आशुतोष, तुम घबराओ नहीं। सच कहने में घबराना नहीं चाहिए। ली हो तो खुलकर कह दो, बेटा! हम कोई सच कहने की सजा थोड़े ही दे सकते हैं! बल्कि सच बोलने पर इनाम मिला करता है। (पृष्ठ 90-91)
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘पाजेब’ शीर्षक कहानी से लिया गया है। इसके लेखक जैनेन्द्र कुमार हैं।
प्रसंग – मुन्नी के पाजेबों से एक पैर की पाजेब खो गई थी। आशुतोष के पिता को संदेह था कि पाजेब उसने ली है। उसकी माँ का कहना था कि वह पाजेब नहीं ले सकता। आशुतोष को पतंग उड़ाने का शौक था। अत: उसके पिता सोचते थे कि पाजेब आशुतोष ने ली होगी। उन्होंने उससे इस बारे में धैर्यपूर्वक पूछताछ की किन्तु आशुतोष चुप ही रहा, कुछ बोला नहीं।
व्याख्या – लेखक के मन में अनेक सिद्धान्त उभर रहे थे। उस समय वह तरह-तरह के सिद्धान्तों के बारे में सोच रहा था। अंत में वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि अपराध के प्रति क्रोध नहीं दयों की भावना होनी चाहिए। अपराधी किन्हीं परिस्थितियों का शिकार होकर अपराध करता है अत: वह दया का पात्र है। उस पर क्रोध करना उचित नहीं। अपराध की आदत को प्रेमपूर्ण व्यवहार के द्वारा ही दूर किया जा सकता है। अपराधी को डरा-धमकाकर उसे दबाना अच्छी बात नहीं है। बच्चे का स्वभाव वैसे भी कोमल होता है। उसके साथ हमेशा प्रेम का ही व्यवहार करना चाहिए। उसको धमकाना ठीक नहीं होता। यह सोचकर लेखक आशुतोष को समझाया कि उसको घबराना नहीं चाहिए। सच बोलने में कैसा घबराना ? यदि उसने पाजेब ली है तो साफ-साफ बता देना चाहिए। उसको वह सच बोलने की सजा नहीं देंगे। सच बोलने पर सजा नहीं बल्कि इनाम दिया जाता है।
विशेष-
- अपराधी के साथ प्रेम और स्नेह के व्यवहार के द्वारा ही उसको अपराध करने से रोका जा सकता है।
- अपराध और अपराधी के प्रति इन पंक्तियों में चिन्तनपूर्ण विचारों को प्रस्तुत किया गया है।
- भाषा सरल, विषयानुरूप तथा प्रवाहपूर्ण है।
- शैली विचारात्मक तथा संवादात्मक है।
3. मैं कुछ बोला नहीं। मेरा मन जाने कैसा गंभीर प्रेम के भाव से आशुतोष के प्रति उमड़ रहा था। मुझे मालूम होता था कि ठीक इस समय आशुतोष को हमें अपनी सहानुभूति से वंचित नहीं करना चाहिए, बल्कि कुछ अतिरिक्त स्नेह इस समय बालक को मिलना चाहिए। मुझे यह एक भारी दुर्घटना मालूम होती थी। मालूम होता था कि अगर आशुतोष ने चोरी की है। तो उसका इतना दोष नहीं है, बल्कि यह हमारे ऊपर बड़ा भारी इलजाम है। बच्चे में चोरी की आदत भयावह हो सकती है। लेकिन बच्चे के लिए वैसी लाचारी उपस्थित हो आई, यह और भी कहीं भयावह है। यह हमारी आलोचना है। हम उस चोरी से बरी नहीं हो सकते। (पृष्ठ91)
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘पाजेब’ शीर्षक कहानी से अवतरित है। इसके लेखक जैनेन्द्र कुमार हैं।
प्रसंग – मुन्नी की एक पैर की पाजेब खो गई थी। लेखक को आशुतोष पर संदेह था। उसकी पत्नी नौकर बंसी पर संदेह प्रकट कर रही थी । लेखक की पत्नी ने कहा कि आशुतोष पाजेब क्यों लेगा?
व्याख्या – पत्नी के कहने पर लेखक ने कोई उत्तर नहीं दिया। वह चुप बना रहा। उसके मन में अपने पुत्र बालक आशुतोष प्रति प्रेम का गम्भीर भाव उमड़ रहा था। वह सोच रहा था कि केवल संदेह के आधार पर आशुतोष के प्रति सहानुभूति की भावना नहीं छोड़नी चाहिए। इसके विपरीत होना तो यह चाहिए कि बच्चे को कुछ ज्यादा प्रेम दिया जाय । लेखक को लगता था कि पायल की चोरी एक बुरी घटना थी। यदि आशुतोष ने पायल चुराई थी तो इसका उतना दोषी वह नहीं था जितना उसके परिवार के लोग थे। यह उसके परिवारीजनों पर एक बड़ा आरोप था । बच्चे में चोरी की आदत पैदा होनी भयानक बात है। इससे भी ज्यादा भयानक बात यह है कि बच्चे को चोरी करने को मजबूर होना पड़ा। बालक को चोरी का दोषी बताने से उसके घर के लोगों की दुर्बलता प्रकट होती है। उसके परिवार के लोग इस चोरी के अपराध से मुक्त नहीं हो सकते।
विशेष –
- लेखक के मन में बालक आशुतोष के प्रति स्नेह उमड़ रहा था। वह बालक को चोरी का दोषी नहीं मान रहा था। चोरी का दोषी तो वह स्वयं तथा उसका परिवार था।
- आशुतोष पर चोरी का संदेह तो लेखक को था किन्तु वह उसको दोषी नहीं मान रहा था।
- भाषा सरल तथा प्रवाहपूर्ण है। तत्सम शब्दावली के साथ उर्दू के शब्द भी भाषा में प्रयुक्त हुए हैं।
- शैली मनोविश्लेषणात्मक है।
4. पर उसका मुँह फूला हुआ था। जैसे-तैसे बहुत समझाने पर वह प्रकाश के साथ चला। ऐसे चला मानों पैर उठाना उसे भारी हो रहा हो। आठ बरस का लड़का होने आया फिर भी देखो न किसी भी बात की उसमें समझ नहीं है। मुझे जो गुस्सा आया तो क्या बतलाऊँ। लेकिन यह याद करके कि गुस्से से बच्चे संभलने की जगह बिगड़ते हैं, मैं अपने को दबाता चला गया। खैर, वह गया तो मैंने चैम की साँस ली।
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘पाजेब’ शीर्षक कहानी से उद्धृत है। इसके लेखक जैनेन्द्र कुमार हैं।
प्रसंग – बार-बार पूछने पर आशुतोष ने मान लिया कि उसे पाजेब पड़ी मिली थी, उसने छुन्नू को दी और उससे पतंगें खरीदीं । दरअसल ये बातें आशुतोष से मनवायी गई थीं। जो-जो लेखक ने कहा, उन पर आशुतोष ने कभी हाँ तो कभी ना कहा। अब लेखक चाहता था कि वह पतंग वाले को पाँच आने देकर अपनी पायल उससे वापस ले आये। परन्तु आशुतोष राजी नहीं था।
व्याख्या – लेखक कहता है कि आशुतोष पतंग वाले के पास जाने को तैयार नहीं था। लेखक ने उसे बार-बार समझाया तो वह किसी तरह लेखक के भाई प्रकाश के साथ चला किन्तु बेमन से उसके पैर इस तरह उठे रहे थे जैसे वे बहुत भारी हों और उनको उठाने में उसे कठिनाई हो रही हो। लेखक ने सोचा कि आशुतोष की उम्र आठ साल हो चुकी थी किन्तु उसमें किसी बात को समझ नहीं थी। आशुतोष के व्यवहार पर लेखक को बहुत क्रोध आया। वह अपने गुस्से को पी गया उसने सोचा कि क्रोध करने का बच्चों पर अच्छा प्रभाव नहीं होता। इससे वे बिगड़े जाते हैं। किसी प्रकार जब वह प्रकाश के साथ पतंग वाले के पास चला गया तो लेखक ने आराम की साँस ली।
विशेष –
- आशुतोष पतंगवाले के पास जाना नहीं चाहता, क्योंकि उसने पायल उसको दी ही नहीं थी।
- बार-बार जोर देने पर आशुतोष ने पायल लेना स्वीकार कर लिया था।
- भाषा सरल तथा प्रवाहपूर्ण है।
- शैली आत्मकथात्मक है।
5. प्रकाश मेरा बहुत लिहाज मानता था। वह मुँह डालकर चला गया। कोठरी खुलवाने पर आशुतोष को फर्श पर सोते पाया। उसके चेहरे पर अब भी आँसू नहीं थे। सच पूछो तो मुझे उस समय बालक पर करुणा हुई। लेकिन आदमी में एक ही साथ जाने क्या-क्या विरोधी भाव उठते हैं। मैंने उसे जगाया। वह हड़बड़ाकर उठा मैंने कहा, “कहाँ, क्या हालत हैं?” थोड़ी देर तक वह समझा ही नहीं। फिर, शायद पिछला सिलसिला याद आया। झट उसके चेहरे पर वही जिद, अकड़ और प्रतिरोध के भाव दिखाई देने लगे। (पृष्ठ 98-99)
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्त्क में संकलित ‘पाजेब’ शीर्षक कहानी से अवतरित है। इसके लेखक जैनेन्द्र कुमार हैं।
प्रसंग – आशुतोष पतंग वाले के पास नहीं जाता। लेखक ने उसे पकड़कर मँगवाया तथा कोठरी में बन्द करा दिया फिर उसने प्रकाश से कहा कि दोनों पतंग वालों से पूछकर पायल के बारे में पता करे। प्रकाश ने पता करके बताया कि दोनों पतंग वाले कहते हैं। कि पायल उनके पास नहीं है। झल्लाकर लेखक ने कहा कि उससे कोई काम नहीं हो सकता । प्रकाश ने सफाई देने की कोशिश की मगर लेखक ने उसे जाने को कह दिया।
व्याख्या – लेखक का भाई प्रकाश उसका बहुत आदर करता था। वह कुछ न बोला और मुँह नीचा करके चुपचाप वहाँ से चला गया। लेखक ने कोठरी खुलवाकर देखा तो आशुतोष फर्श पर पड़ा सो रहा था। इसके चेहरे पर आँसू नहीं थे। यह देखकर लेखक को उस पर बहुत दया आई। आदमी के मन में एक साथ अनेक विचार उठते हैं। वो एक दूसरे के विरोधी होते हैं। आशुतोष को देखकर लेखक के मन में दया के साथ संशय आदि अनेक भाव उठ रहे थे, उसने आशुतोष को जगाया। वह हड़बड़ाहट के साथ उठा तो लेखक ने उससे पूछा कि उसका हाल कैसा है। कुछ देर तक वह कुछ भी समझ न सका फिर उसको बीता हुआ घटनाक्रम याद आ गया। तुरन्त उसके चेहरे पर जिद, अकड़ और विरोध के पहले जैसे भाव दिखाई देने लगे।
विशेष –
- लेखक आशुतोष पर पायल चुराने का संदेह था। वह चाहता था कि आशुतोष भी उसकी बातें ज्यों की त्यों मान ले।
- बच्चा निपराध था। अत: वह उसकी बातों को मानने को तैयार न था।
- लेखक तथा आशुतोष दोनों के मन का चित्रण मनोविज्ञान के आधार पर किया गया है।
- भाषा सरल तथा विषयानुकूल है। शैली आत्मकथात्मक है।
6. मैंने पुकारा ”बंसी-तू भी साथ जा। बीच से लौटने न पावे।” सो मेरे आदेश पर दोनों आशुतोष को जबरदस्ती उठाकर सामने से ले गए।
बूआ ने कहा, “क्यों उसे सता रहे हो?’
मैंने कहा कि कुछ नहीं, जरा यों ही….
फिर मैं उनके साथ इधर-उधर की बातें ले बैठा। राजनीति राष्ट्र की ही नहीं होती, मुहल्ले में भी राजनीति होती है। यह भार स्त्रियों पर टिकता है। कहाँ क्या हुआ, क्या होना चाहिए, इत्यादि चर्चा स्त्रियों को लेकर रंग फैलाती है। इसी प्रकार की कुछ बातें हुईं, फिर छोटा-सा बक्सा सरकाकर बोलीं, इसमें वे कागज हैं जो तुमने माँगे थे और यहाँ..”
यह कहकर उन्होंने अपनी बास्कट की जेब से हाथ डालकर पाजेब निकालकर सामने की, जैसे सामने बिच्छु हो। मैं भयभीत भाव से कह उठा कि यह क्या?
बोली कि उस रोज भूल से यह पाजेब मेरे साथ चली गई थी। (पृष्ठ 99)
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘पाजेब’ शीर्षक कहानी से उद्धृत है। इसके लेखक जैनेन्द्र कुमार हैं।
प्रसंग – लेखक के आदेश पर बंसी तथा प्रकाश आशुतोष को बलात् पकड़कर पतंग वाले के पास ले जाने लगे। तभी बुआ वहाँ आई। उसने रोकना चाहा, मगर लेखक ने मना किया।
व्याख्या – लेखक ने नौकर बंसी को आदेश दिया कि वह भी प्रकाश के साथ जाए और आशुतोष के पतंगवाले तक ले जाने में उसकी मदद करे। आशुतोष बीच में भागने न पाये। दोनों उसकी आज्ञा पर आशुतोष को बलात् सामने से उठाकर ले गए। बुआ ने पूछा कि उसे क्यों परेशान कर रहे हो? लेखक ने बात टालने के लिए कहा कोई बात नहीं है। यों ही उसे ले जा रहे हैं। उसके बाद लेखक उससे इधर-उधर की बातें करने लगा उसने कहा कि राजनीति राष्ट्र के बारे में ही नहीं होती। मुहल्ले की राजनीति भी होती है। मुहल्ले की राजनीति का भार स्त्रियाँ उठाती हैं। वे आपस में बातें करती रहती हैं कि किस स्थान पर क्या घटना हुई, अथवा क्या चाहिए। लेखक की बुओं के साथ कुछ इसी तरह की बातें हुईं। फिर बुआ ने एक छोटा-सा सन्दूक आगे खिसकाया। उन्होंने लेखक से कहा कि उस सन्दूक में वे कागज थे जो लेखक ने उनसे माँगे थे और यहाँ यह कहते हुए उन्होंने अपनी जाकिट की जेब में हाथ डालकर पाजेब निकाली और लेखक के सामने रखी। लेखक को लगा जैसे वह पायल नहीं कोई बिच्छू था। वह भयभीत होकर इतना ही कह सका यह क्यो बुआ ने बताया कि उस दिन भूल से यह पाजेब उनके साथ चली गई थी।
विशेष –
- प्रस्तुत गद्यांश में कहानी का रोमांचक अंत प्रस्तुत किया गया है।
- लेखक जिस पायल की चोरी का निरर्थक आरोप आशुतोष पर लगा रहा था, वह तो भूलवश बुआ अपने साथ ले गई थी।
- भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है।
- शैली आत्मकथात्मक, संवादात्मक तथा नाटकीय है।