RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 13 प्रकाश विद्युत प्रभाव एवं द्रव्य तरंगें
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 13 प्रकाश विद्युत प्रभाव एवं द्रव्य तरंगें
Rajasthan Board RBSE Class 12 Physics Chapter 13 प्रकाश विद्युत प्रभाव एवं द्रव्य तरंगें
RBSE Class 12 Physics Chapter 13 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
RBSE Class 12 Physics Chapter 13 बहुचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
40ev ऊर्जा का एक फोटॉन धातु के पृष्ठ पर आपतित होता है इसके कारण 37.5 eV गतिज ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन होता है। धातु के पृष्ठ का कार्यफलन होगा-
(अ) 2.5 ev
(ब) 57.5 ev
(स) 5.0 ev
(द) शून्य।
उत्तर:
(अ) 2.5 ev
प्रश्न 2.
देहली आवृत्ति से अधिक आवृत्ति के प्रकाश के लिए प्रकाश विद्युत प्रभाव के प्रयोग में उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की संख्या समानुपाती है-
(अ) इनकी गतिज ऊर्जा के
(ब) इनकी स्थितिज ऊर्जा के
(स) आपतित प्रकाश की आवृत्ति के
(द) धातु पर आपतित फोटॉनों की संख्या के।
उत्तर:
(द) धातु पर आपतित फोटॉनों की संख्या के।
प्रश्न 3.
किसी प्रकाश पुंज A के फोटॉन की ऊर्जा एक अन्य प्रकाश पुंज B के फोटॉन की ऊर्जा से दुगनी है। इनके संवेगों का अनुपात PA/PB है-
(अ) 1/2
(ब) 1/4
(स) 4
(द) 2.
उत्तर:
(द) 2.
प्रश्न 4.
एक धातु से हरे रंग के प्रकाश के आपतन पर इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन प्रारम्भ होता है। निम्न रंगों के समूह में से किस समूह के प्रकाश के कारण इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन सम्भव होगा?
(अ) पीला, नीला, लाल
(ब) बैंगनी, लाल, पीला
(स) बैंगनी, नीला, पीला
(द) बैंगनी, नीला, आसमानी।
उत्तर:
(द) बैंगनी, नीला, आसमानी।
प्रश्न 5.
इलेक्ट्रॉन गन से निर्गत इलेक्ट्रॉन से सम्बद्ध दे-ब्राग्ली तरंगदैर्घ्य 0.1227A है। गन पर आरोपित त्वरक वोल्टता का मान होगा-
(अ) 20kV
(ब) 10kV
(स) 30kV
(द) 40kV.
उत्तर:
(ब) 10kV
प्रश्न 6.
यदि किसी अनापेक्षकीय मुक्त इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा दुगनी कर दी जाती है तो इससे सम्बद्ध द्रव्य तरंग की आवृत्ति किस गुणक से परिवर्तित होती है ?
(अ) 1/√2
(ब) 1/2
(स) √2
(द) 2.
उत्तर:
(ब) 1/2
प्रश्न 7.
अनिश्चितता सिद्धान्त के अनुसार यदि किसी कण की स्थिति का शत प्रतिशत शुद्धता से मापन कर लिया जाये तो उसके संवेग में अनिश्चितता होगी-
(अ) शून्य ।
(ब) ∞
(स) ~h
(द) कुछ भी कहा नहीं जा सकता।
उत्तर:
(ब) ∞
प्रश्न 8.
इलेक्ट्रॉनों का तरंगों से सम्बद्ध कौन-सा गुण डेविसन एवं जर्मर के प्रयोग द्वारा प्रदर्शित किया गया-
(अ) अपवर्तन
(ब) ध्रुवण ।
(स) व्यतिकरण
(द) विवर्तन।
उत्तर:
(द) विवर्तन।
प्रश्न 9.
10 ev गतिज ऊर्जा के एक इलेक्ट्रॉन से सम्बद्ध दे-ब्रॉंगली तरंगदैर्घ्य है।
(अ) 10A
(ब) 12.27A
(स) 0.10A
(द) 3.9A.
उत्तर:
(द) 3.9A.
प्रश्न 10.
एक इलेक्ट्रॉन तथा एक प्रोटॉन 10A विमा के एक रेखीय बॉक्स में रहने हेतु बाध्य हैं। तब इनके संवेगों में अनिश्चितताओं को अनुपात है-
(अ) 1 : 1
(ब) 1 : 1836
(स) 1836 : 1
(द) अपर्याप्त सूचना ।
उत्तर:
(अ) 1 : 1
RBSE Class 12 Physics Chapter 13 अति लघूत्तरात्गक प्रश्न
प्रश्न 1.
आइन्सटीन की प्रकाश-विद्युत समीकरण लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 2.
निरोधी विभव को मान किस पर निर्भर करता है ?
उत्तर:
आपतित प्रकाश की आवृत्ति पर निरोधी विभव मान निर्भर करता है अर्थात् v > vo।
प्रश्न 3.
प्रकाश-विद्युत प्रभाव को प्रेक्षित करने के लिये आपतित प्रकाश की आवृत्ति किस आवृत्ति से अधिक होनी चाहिए ?
उत्तर:
प्रकाश सुग्राही पदार्थ की देहली आवृत्ति से अधिक होनी चाहिए।
प्रश्न 4.
विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा के क्वांटा को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
फोटॉन ।
प्रश्न 5.
दे-ब्रॉंगली परिकल्पना के अनुसार द्रव्य तरंग के तरंगदैर्ध्य का सूत्र लिखिए।
उत्तर
λ = hp
h = प्लॉक नियतांक
p = संवेग
प्रश्न 6.
कण की स्थिति एवं सम्बन्धित संवेग में अनिश्चितताओं के लिये ह्मइजेनबर्ग का सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 7.
किसी एक प्रयोग का नाम लिखिये जिससे दे-बॉग्ली के तरंग सिद्धान्त की पुष्टि ह्येती से।
उत्तर:
डेविसन तथा जर्मर प्रयोग द्वारा तरंग सिद्धान्त की पुष्टि होती है।
RBSE Class 12 Physics Chapter 13 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रकाश-विद्युत प्रभाव क्या होता है ?
उत्तर:
प्रकाश विद्युत प्रभाव (Photo-Electric Effect)
“जब किसी धात्विक प्लेट अथवा प्रकाश संवेदी सतह पर किसी विशिष्ट आवृत्ति या इससे उच्च आवृत्ति को प्रकाश आपतित किया जाता है तो उससे इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं। इस परिघटना को प्रकाश विद्युत प्रभाव कहते हैं।”
उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों को प्रकाश इलेक्ट्रॉन (photo electron) कहते हैं |
धात्विक प्लेट पर एक नियत न्यूनतम मान से कम आवृत्ति का प्रकाश डाला जाए तो इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन नहीं होता। आवृत्ति का यह नियत न्यूनतम मान देहली आवृत्ति (Threshold Frequency) कहलाता है। तथा इसका मान उत्सर्जक प्लेट के पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है। देहली आवृत्ति के संगत तरंगदैर्ध्य का उच्चतम मान देहली तरंगदैर्ध्य कहलाता (Threshold Wavelength) है।
यदि उत्सर्जित फोटो इलेक्ट्रॉनों को पुनः कैथोड तक पहुँचा दिया जाए तो परिपथ में प्रवाहित धारा प्रकाश विद्युत धारा (photoelectric Current) कहलाती है।
प्रयोगों से यह प्रेक्षित है कि क्षार धातुओं तथा लीथियम, सोडियम पौटेशियम, सीजियम आदि पर दृश्य प्रकाश डालने से फोटो इलेक्ट्रानों का उत्सर्जन होता है। जबकि कुछ अन्य धातुएँ, जैसे-जस्ता, कैडमियम, मैग्नीशियम आदि पराबैंगनी किरणें डालने पर इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन करती हैं। ये पदार्थ प्रकाश सुग्राही पदार्थ कहलाते हैं।
प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के सम्बन्ध में हर्ट्ज, हालवॉक्स एवं लेनार्ड के प्रेक्षण (Hertz, Hallwachs and Lenard’s Observations on Photoelectric Effect)-सन् 1887 में हर्ट्ज (Hertz) ने यह देखा कि जब विद्युत
विसर्जन नलिका (electric discharge tube) की ऋण प्लेट पर पराबैंगनी किरणें आपतित होती हैं तो विद्युत विसर्जन अधिक आसानी से होता है। ऐसा क्यों होता है? इसकी स्पष्ट व्याख्या हालवॉक्स न कर सके। सन् 1888 में हालवॉक्स (Hallwachs) ने एक प्रयोग में इस तथ्य की पुष्टि की। इस प्रयोग की व्यवस्था चित्र 13.5 में दिखाई गई है। उन्होंने एक निर्वातित बल्ब (vacuum bulb) में जस्ते (zinc) की दो प्लेटें रख। इन प्लेटों से सम्बन्धित तारों को बल्ब से बाहर निकालकर, एक बैटरी तथा धारामापी के द्वारा श्रेणीक्रम में सम्बन्धित कर दिया। हालवॉक्स ने देखा कि जब पराबैंगनी किरणें ऋण प्लेट पर आपतित होती हैं तो परिपथ में तुरन्त विद्युत धारा बहने लगती है और जैसे ही पराबैंगनी किरणों का ऋण | प्लेट पर आपतन बन्द हो जाता है धारा प्रवाह भी रुक जाता है, परन्तु जब पराबैंगनी किरणें धन प्लेट पर डालते हैं तो परिपथ में अत्यन्त क्षीण धारा (weak current) बहने लगती है। हालवॉक्स स्वयं इस घटना की व्याख्या नहीं कर सके।
सन् 1898 में जे. जे. थॉमसन ने यह सिद्ध किया कि जिंक की प्लेट पर प्रकाश आपतित होने पर प्लेट से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होने लगता है। सन् 1900 में लेनार्ड (Lenard) ने हालवॉक्स के प्रयोग की व्याख्या की और बताया कि जब पराबैंगनी किरणें ऋण प्लेट पर आपतित होती हैं तो उससे इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होने लगता है और ये इलेक्ट्रॉन धन प्लेट द्वारा आकर्षित होते हैं तथा उसके द्वारा एकत्रित होकर पुन: ऋण प्लेट पर पहुँच जाते हैं। इसीलिए परिपथ में धारा बहने लगती है। जब पराबैंगनी किरणें धन प्लेट पर डाली जाती हैं तो | भी इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं, लेकिन ये इलेक्ट्रॉन ऋण प्लेट द्वारा प्रतिकर्षित (repel) होने के कारण उस तक नहीं पहुँच पाते हैं और फलस्वरूप विद्युत परिपथ पूरा न हो पाने के कारण एरिपथ में धारा नहीं बहती है।
इस प्रकार किसी धातु के तल पर प्रकाश किरणें आपतित होने के कारण इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जित होने की घटना को प्रकाश-वैद्युत प्रभाव कहते हैं। प्रकाश द्वारा धातु के तल से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों को प्रकाश इलेक्ट्रॉन (Photo-electrons) कहते हैं तथा परिपथ में उत्पन्न धारा को प्रकाश-वैद्युत धारा (Photo-electric current) कहते हैं। स्पष्ट है कि प्रकाश-वैद्युत प्रभाव में प्रकाश ऊर्जा का परिवर्तन वैद्युत ऊर्जा में होता है। इस घटना के लिए लघु तरंगदैर्घ्य (अर्थात् उच्च आवृत्ति) का प्रकाश दीर्घ तरंगदैर्घ्य (अर्थात् निम्न आवृत्ति) के प्रकाश की अपेक्षा अधिक प्रभावी होता है।
प्रश्न 2.
देहली आवृत्ति से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
किसी प्रकाश ऊर्जा की वह आवृत्ति जो किसी प्रकाश सुग्राही पदार्थ से इलेक्ट्रॉन को केवल निकालने के लिये पर्याप्त होती है।
प्रश्न 3.
कार्यफलन की परिभाषा लिखिये।
उत्तर:
किसी प्रकाश सुग्राही पदार्थ से किसी इलेक्ट्रॉन को निकालने के लिये जितनी न्यूनतम ऊर्जा की आवश्यकता होती है उसे कार्यफलन कहते हैं।
प्रश्न 4.
डेविसन एवं जर्मर के प्रयोग का उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
प्रयोग का उद्देश्य इलेक्ट्रॉन के तरंग रूप की पुष्टि करना होता है।
प्रश्न 5.
द्रव्य तरंगों की द्वैत प्रकृति से सम्बन्धित दे-बॉग्ली की परिकल्पना लिखिए।
उत्तर:
डी ब्रॉंगली परिकल्पना तथाय तों का तमर्थ्य
(De-Broglie Hypothesis and Wave Length of Matter Waves)
वैज्ञानिक लुईस डी-ब्रॉग्ली (Louis De-Broglie) ने सन् 1924 में प्रकाश की द्वैत प्रकृति के सिद्धान्त के आधार पर एक परिकल्पना प्रस्तुत की। इस परिकल्पना के अनुसार, “जिस प्रकार तरंगों के रूप में विकिरण ऊर्जा से कणों के लाक्षणिक गुणों (characteristics property) का सम्बद्ध (associated) होना पाया जाता है, ठीक उसी प्रकार गतिशील द्रव्य कणों के साथ तरंगों के लाक्षणिक गुण सम्बद्ध होने चाहिए। अर्थात् गतिशील द्रव्य कणों को तरंगों की भाँति व्यवहार करना चाहिए।” इस परिकल्पना को डी-ब्रॉग्ली परिकल्पना (de-Broglie hypothesis) कहते हैं और गतिशील द्रव्य कण से सम्बद्ध तरंगों को ‘द्रव्य तरंगें’ (matter waves) कहते हैं। द्रव्य तरंगें प्रायिकता तरंगें (Probability waves) होती हैं और इन्ह तरंगों को डी-ब्रॉग्ली तरंगें (De-Broglie waves) भी कहते हैं। इस प्रकार प्रकाश व गतिशील द्रव्य कणों दोनों में द्वैत प्रकृति होती है। इस परिकल्पना के साथ ही डी-ब्रॉग्ली ने एक अन्य महत्त्वपूर्ण विचार भी प्रस्तुत किया कि प्रकृति के मूलभूत नियम (fundamental laws of nature) विकिरण तथा द्रव्य कणों पर समान रूप से प्रयुक्त होने चाहिए।
समी० (iv) फोटॉन से सम्बद्ध तरंग की तरंगदैर्घ्य के मान को प्रदर्शित करता है तथा इससे ज्ञात होता है कि फोटॉन के तरंग स्वरूप (waveform) से सम्बद्ध गुण तरंगदैर्ध्य λ उसके कणं स्वरूप से सम्बद्ध गुण संवेग p से सम्बन्धित होता है और λ का मान p के व्युत्क्रमानुपाती होता है अर्थात्
इसी प्रकार गतिमान द्रव्य कण से सम्बद्ध तरंग की तरंगदैर्ध्य का मान ज्ञात किया जा सकता है। यदि कण का द्रव्यमान m व वेग v है तो उसका संवेग
p = mv
अतः समी० (iv) के अनुसार द्रव्य कण से सम्बद्ध तरंग की तरंगदैर्घ्य
साधारणतः गतिमान द्रव्य कण से सम्बन्ध द्रव्य तरंगें प्रेक्षित नहीं होती हैं अर्थात् गतिमान द्रव्य कण का तरंग स्वरूप परिलक्षित नहीं होता है, क्योंकि इस तरंगदैर्घ्य का मान उपकरण की मापन क्षमता से कम होता है।
प्रश्न 6.
अनिश्चितता सिद्धान्त की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
हाइजेनबर्ग अनिश्चितता सिद्धान्त(Heisenberg’s Uncertainty Principle)
वैज्ञानिक हाइजेनबर्ग ने अनिश्चितता सिद्धान्त का प्रतिपादन सन् 1927 में किया। इस सिद्धान्त के अनुसार, “किसी भी क्षण (समय पर) पर एक कण की स्थिति तथा संवेग का एक साथ एक ही दिशा में पूर्ण रूप से यथार्थता पूर्वक निर्धारण नहीं किया जा सकता है।” कण की स्थिति में अनिश्चितता ∆x तथा संवेग के x-घटक में अनिश्चितता ∆px, का गुणनफल कभी भी h/2 से कम नहीं हो सकता है।” गणितीय रूप में इस सिद्धान्त के अनुसार-
यहाँ ध्यान रखने योग्य यह बात है कि ∆x तथा ∆px, क्रमशः स्थिति तथा संवेग को त्रुटि के रूप प्रयोग नहीं करना है।
x-दिशा में स्थिति (x) तथा संवेग px दो विदित संयुग्मी (Canonical conjugate) चर राशियाँ हैं। व्यापक रूप में अनिश्चितता सिद्धान्त विदित संयुग्मी राशियों के लिये ही होता है। समी० (i) की भाँति अन्य निम्न अनिश्चितता सम्बन्ध लिखे जा सकते हैं-
इनके लिये अनिश्चितता सम्बन्ध निम्न प्रकार लिखा जा सकता है।
इसके अनुसार किसी कण की ऊर्जा तथा उसके समय निर्देशांक दोनों का असीमित परिशुद्धता के साथ मापन करना सम्भव नहीं है।
RBSE Class 12 Physics Chapter 13 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रकाश-विद्युत प्रभाव को समझाते हुए इससे सम्बन्धित प्रायोगिक प्रेक्षणों का विवरण दीजिये।
उत्तर:
प्रकाश विद्युत प्रभाव के प्रायोगिक परिणाम एवं उनकी व्याख्या (Experimental Results of Photo-electric Effect and their Interpretation)
लेनार्ड तथा मिलीकॉन ने प्रकाश-वैद्युत प्रभाव का अध्ययन करने के लिए अनेक प्रयोग किये। उन्होंने भिन्न-भिन्न धातुओं की प्लेटों पर | भिन्न-भिन्न आवृत्तियों तथा भिन्न-भिन्न तीव्रताओं का प्रकाश आपतित (incident) करके प्रत्येक दशा में उत्सर्जित प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा एवं प्रकाश-वैद्युत धारा की प्रबलता को मापा। इसके लिए प्रयुक्त
उपकरण चित्र 13.6 में प्रदर्शित है। इस उपकरण में एक निर्वातित बल्ब में धातु की दो प्लेटें C व P एक-दूसरे से कुछ दूरी पर स्थित होती हैं। क्वार्ट्ज की एक खिड़की (window) W से होकर प्रकाश प्लेट C पर आपतित होता है, इसे ‘कैथोड प्लेट’ भी कहते हैं। इन प्लेटों का सम्बन्ध एक माइक्रोअमीटर μA, कुंजी K’ तथा विभव विभाजक (potential divider) द्वारा बैटरी से किया जाता है। विभव विभाजक द्वारा प्लेट के बीच विभवान्तर को परिवर्तित किया जा सकता है। दिक्परिवर्तक (alternator) K के द्वारा विभवान्तर की दिशा परिवर्तित की जा सकती है। प्लेटों के बीच विभवान्तर की माप वोल्टमीटर द्वारा एवं धारा की माप माइक्रोअमीटर द्वारा की जाती है।
प्रश्न 2.
प्रकाश-विद्युत प्रभाव की व्याख्या चिरसम्मत तरंग सिद्धान्त के आधार पर सम्भव क्यों नहीं है ? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या करने में तरंग सिद्धान्तकी असमर्थता (Failure ofWave Theory to Explain Photoelectric Effect)
प्रकाश के तरंग सिद्धान्त के अनुसार स्रोत से ऊर्जा का उत्सर्जन एवं किसी पृष्ठ द्वारा इसका अवशोषण (absorption) दोनों ही लगातार होने वाली क्रियाएँ हैं और ऊर्जा की हर सम्भव मात्रा का उत्सर्जन एवं अवशोषण दोनों ही सम्भव हैं। संसार का कोई भी वैज्ञानिक इस सिद्धान्त के आधार पर प्रकाश-वैद्युत प्रभाव की व्याख्या न कर सका। प्रकाश-वैद्युत प्रभाव की व्याख्या करने में तरंग सिद्धान्त निम्न कारणों से असफल रहा’
(1) तरंग सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक आवृत्ति के प्रकाश से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होना चाहिए, क्योंकि आपतित प्रकाश से इलेक्ट्रॉन ऊर्जा का अवशोषण करता रहे और जब उत्सर्जन के लिए आवश्यक ऊर्जा एकत्र हो जाये तो उसका उत्सर्जन हो जाना चाहिए। वास्तविकता इससे भिन्न है। वास्तव में आपतित प्रकाश की आवृत्ति जब देहली आवृत्ति (v) से अधिक होती है, तभी इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होता है।
(2) तरंग सिद्धान्त के अनुसार प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर करनी चाहिए। तीव्रता बढ़ाने पर प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा बढ़नी चाहिए, क्योंकि तीव्रता बढ़ाने पर पृष्ठ पर आपतित ऊर्जा बढ़ जाती है, अतः इलेक्ट्रॉन अधिक ऊर्जा का उत्सर्जन करे तो उसकी गतिज ऊर्जा बढ़ जानी चाहिए, जबकि वास्तविकता यह है कि प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती है।
(3) तरंग सिद्धान्त के अनुसार पृष्ठ पर प्रकाश के आपतन एवं इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन के मध्य कुछ-न-कुछ समय अवश्य लगना चाहिए, क्योंकि इलेक्ट्रॉन को उत्सर्जन के लिए आवश्यक ऊर्जा का अवशोषण करने में भी समय लगता है। इसके अतिरिक्त प्रकाश तरंगों द्वारा संचरित ऊर्जा धातु के किसी एक इलेक्ट्रॉन को न मिलकर, प्रकाशित क्षेत्रफल में उपस्थित सभी इलेक्ट्रॉनों में वितरित होगी। वास्तविकता इसके भी भिन्न है। वास्तव में प्रकाश के आपतन एवं इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन के मध्य कोई समय-पश्चता नहीं होती है।
प्रश्न 3.
आइन्सटाइन ने प्रकाश-विद्युत प्रभाव का क्या स्पष्टीकरण दिया समझाइये। देहली आवृत्ति से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
सटीन प्रकाश विघुत समीकरण तथा इसके द्वारा प्रकाश विद्युत प्रशव के प्रायोगिक परिणामों का स्पष्टीकरण (Einstein’s Photoelectric Equation and Explanation of Experimental Results of Photoelectric Effect on the Basis of this Equation)
जब प्रकाश-वैद्युत प्रभाव की व्याख्या तरंग सिद्धान्त के आधार पर सम्भव न हो सकी तब सन् 1905 में आइन्स्टीन (Einstein) ने प्लांक के क्वाण्टम सिद्धान्त के आधार पर प्रकाश-वैद्युत प्रभाव की व्याख्या की। इस सिद्धान्त के अनुसार, स्रोत से विकिरण ऊर्जा का उत्सर्जन या अवशोषण ऊर्जा के छोटे-छोटे बण्डलों अथवा पैकेटों के रूप में होता है, जिन्हें ‘फोटॉन’ (Photon) कहते हैं। किसी फोटॉन की ऊर्जा (E) संगत आवृत्ति (v) के अनुक्रमानुपाती होती है अर्थात्
E ∝ v
या E = hv …. (1)
जहाँ h, प्लांक का सार्वत्रिक नियतांक (Planck’s Universal Constant) है।
आइन्स्टीन के अनुसार जब hv ऊर्जा का कोई फोटॉन किसी धातु की सतह पर आपतित (incident) होता है तो यह अपनी समस्त ऊर्जा धातु में स्थित किसी एक इलेक्ट्रॉन को दे देता है। इलेक्ट्रॉन को प्राप्त यह ऊर्जा निम्न दो रूपों में व्यय (used up) होती है-
(3) आपतित प्रकाश की तीव्रता बढ़ाने पर पृष्ठ पर आपतित फोटॉनों की संख्या बढ़ेगी अर्थात् पृष्ठ से इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की दर (rate of emission of electrons) आपतित प्रकाश की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होगी।
(4) आपतित प्रकाश की तीव्रता बढ़ाने पर फोटॉनों की संख्या बढ़ेगी | लेकिन फोटॉनों की ऊर्जा नहीं बढ़ेगी। अतः प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करेगी।
(5) प्रकाश फोटॉन की इलेक्ट्रॉन के साथ टक्कर (collision) दो कठोर गोलों (hard spheres) की टक्कर की भाँति होती है, अतः जैसे ही फोटॉन इलेक्ट्रॉन से टकराता है, अपनी समस्त ऊर्जा इलेक्ट्रॉन को दे देता है और इलेक्ट्रॉन तुरन्त निकल जाता है। इस प्रकार प्रकाश के आपतन एवं इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन के मध्य कोई समय-पश्चता (Time-lag) नहीं होती है।
आपतित प्रकाश की आवृत्ति बदलकर निरोधी विभव (V0) के प्राप्त प्रेक्षणों को यदि ग्राफ पर खींचा जाये तो ग्राफ चित्र 13.14 की तरह प्राप्त होता है।
इस वक्र का ढलान (slope),
समी० (1) से ढलान tan θ का मान ज्ञात करके समी० (4) की सहायता से प्लांक नियतांक h का मान ज्ञात कर सकते हैं। 1906 से 1916 के मध्य मिलिकन (Millikan) ने प्रकाश विद्युत प्रभार्यों पर प्रायोगिक अध्ययन में सोडियम धातु के लिए प्राप्त प्रायोगिक सरल रेखा की प्रवणता नाप कर प्लांक नियतांक h का मान निर्धारित किया। इस प्रकार मिलिकन व आइंसटीन ने प्रकाश विद्युत समीकरण को सत्यापित किया।
पुनः समी० (2) व (3) से,
प्रश्न 4.
फोटॉन की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए इसके विभिन्न गुण लिखिये।
उत्तर:
फोटॉन की अवधारणा (Concept of Photon)
सन् 1905 में वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने प्रकाश-विद्युत प्रभाव की व्याख्या के लिए विद्युत चुम्बकीय विकिरण के लिए दिये गये प्लांक के क्वाण्टम सिद्धान्त का उपयोग किया। इनके अनुसार किसी पिंड द्वारा विकिरण का उत्सर्जन अथवा अवशोषण सतत न होकर विविक्त बन्डल के रूप में होता है। ऊर्जा के इन बण्डल को क्वांटा (Quanta) या फोटॉन (Photon) कहते हैं। किसी फोटॉन की ऊर्जा संगत आवृत्ति के अनुक्रमानुपाती होती है अर्थात्
जहाँ h प्लांक नियतांक है। प्रकाश की तीव्रता इन फोटॉनों की संख्या पर निर्भर करती है।
यदि प्रकाश की तरंगदैर्घ्य 2 हो और प्रकाश की चाल c हो तो ।
फोटॉन का द्रव्यमान एवं संवेग (Mass and Momentum of Photon)
(i) विराम द्रव्यमान (Rest Mass)-फोटॉन का विराम द्रव्यमान शून्य (zero) होता है, क्योंकि रुक जाने पर फोटॉन का अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
(ii) गतिक द्रव्यमान (Kinetic Mass)-यदि फोटॉन का गतिक द्रव्यमान m मान लें तो आइन्स्टीन के द्रव्यमान- ऊर्जा सम्बन्ध से फोटॉन की ऊर्जा
प्रश्न 5.
दे-बॉग्ली की परिकल्पना का उल्लेख कीजिये एवं इसके प्रायोगिक सत्यापन के लिये डेविसन एवं जर्मर के प्रयोग का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये।
उत्तर:
डी ब्रॉंगली परिकल्पना तथाय तों का तमर्थ्य
(De-Broglie Hypothesis and Wave Length of Matter Waves)
वैज्ञानिक लुईस डी-ब्रॉग्ली (Louis De-Broglie) ने सन् 1924 में प्रकाश की द्वैत प्रकृति के सिद्धान्त के आधार पर एक परिकल्पना प्रस्तुत की। इस परिकल्पना के अनुसार, “जिस प्रकार तरंगों के रूप में विकिरण ऊर्जा से कणों के लाक्षणिक गुणों (characteristics property) का सम्बद्ध (associated) होना पाया जाता है, ठीक उसी प्रकार गतिशील द्रव्य कणों के साथ तरंगों के लाक्षणिक गुण सम्बद्ध होने चाहिए। अर्थात् गतिशील द्रव्य कणों को तरंगों की भाँति व्यवहार करना चाहिए।” इस परिकल्पना को डी-ब्रॉग्ली परिकल्पना (de-Broglie hypothesis) कहते हैं और गतिशील द्रव्य कण से सम्बद्ध तरंगों को ‘द्रव्य तरंगें’ (matter waves) कहते हैं। द्रव्य तरंगें प्रायिकता तरंगें (Probability waves) होती हैं और इन्ह तरंगों को डी-ब्रॉग्ली तरंगें (De-Broglie waves) भी कहते हैं। इस प्रकार प्रकाश व गतिशील द्रव्य कणों दोनों में द्वैत प्रकृति होती है। इस परिकल्पना के साथ ही डी-ब्रॉग्ली ने एक अन्य महत्त्वपूर्ण विचार भी प्रस्तुत किया कि प्रकृति के मूलभूत नियम (fundamental laws of nature) विकिरण तथा द्रव्य कणों पर समान रूप से प्रयुक्त होने चाहिए।
समी० (iv) फोटॉन से सम्बद्ध तरंग की तरंगदैर्घ्य के मान को प्रदर्शित करता है तथा इससे ज्ञात होता है कि फोटॉन के तरंग स्वरूप (waveform) से सम्बद्ध गुण तरंगदैर्ध्य λ उसके कणं स्वरूप से सम्बद्ध गुण संवेग p से सम्बन्धित होता है और λ का मान p के व्युत्क्रमानुपाती होता है अर्थात्
इसी प्रकार गतिमान द्रव्य कण से सम्बद्ध तरंग की तरंगदैर्ध्य का मान ज्ञात किया जा सकता है। यदि कण का द्रव्यमान m व वेग v है तो उसका संवेग
p = mv
अतः समी० (iv) के अनुसार द्रव्य कण से सम्बद्ध तरंग की तरंगदैर्घ्य
साधारणतः गतिमान द्रव्य कण से सम्बन्ध द्रव्य तरंगें प्रेक्षित नहीं होती हैं अर्थात् गतिमान द्रव्य कण का तरंग स्वरूप परिलक्षित नहीं होता है, क्योंकि इस तरंगदैर्घ्य का मान उपकरण की मापन क्षमता से कम होता है।
प्रश्न 6.
इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन एवं 0-कण के दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य ज्ञात करने के लिये सूत्र स्थापित कीजिये।
उत्तर:
विभिन्न प्रकार के द्रव्य कणों से द्रव्य तरंगों का
तरंगदैर्य (Wavelength of Matter Waves Associated with Different of Particles)
p संवेग वाले इलेक्ट्रॉनों से सम्बद्ध डी-ब्रॉग्ली तरंगों की तरंगदैर्घ्य
डी-ब्रॉग्ली परिकल्पना के अनुप्रयोग
(1) इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी-डी-ब्रॉग्ली की परिकल्पना के अनुसार तरंग को एक चलने वाले पदार्थ के कण के साथ सम्बद्ध करके तथा एक तेज चलने वाले इलेक्ट्रॉनों के पुंज (beam) की प्रयोग करके, इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की रचना की जा सकती है। यह सूक्ष्मदर्शी अधिक आवर्धन (magnification) उत्पन्न करने के कारण परमाणु संरचना के अध्ययन के लिए उच्च सुविधाजनक होती है।
(2) कक्षों का क्वाण्टीकरण (Quantisation of Orbits)-कक्षा के क्वाण्टीकरण के लिए बोहर के विचार को निम्न परिकल्पना (hypothesis) के आधार पर स्थापित किया जा सकता है-
माना नाभिक के चारों ओर (r) त्रिज्या की कक्षा में चक्कर लगाते हुए एक इलेक्ट्रॉन से सम्बद्ध (associated) तरंग की तरंगदैर्घ्य (λ) है। इलेक्ट्रॉन की कक्षा अपने अन्दर तरंगदैर्यों के (n) पूर्ण गुणज (whole integer) की समावेश गति हैं।
RBSE Class 12 Physics Chapter 13 आंकिक प्रश्न
प्रश्न 1.
ताँबे के लिये देहली आवृत्ति का मान 1.12 × 1015 Hz है इसके पृष्ठ पर 2537A तरंगदैर्ध्य का प्रकाश आपतित किया जाता है। ताँबे के कार्य फलन एवं निरोधी विभव की गणना कीजिये। h = 6.63 × 10-34Js.
हल :
प्रश्न 2.
एक धातु के लिये देहली तरंगदैर्ध्य का मान 5675A है। धातु के कार्यफलन की गणना कीजिये।
h = 6.63 × 10-34Js
हल :
प्रश्न 3.
3000A एवं 6000A तरंगदैर्घ्य के विकिरणों से उत्सर्जित फोटो-इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जाओं में अन्तर की गणना कीजिये।
हल :
प्रश्न 4.
100v के समान विभवान्तर से त्वरित एक इलेक्ट्रॉन तथा α-कण से सम्बन्धित दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य की गणना कीजिये।
हल :
प्रश्न 5.
20 वॉट के एक बल्ब से 5 × 1014Hz आवृत्ति का प्रकाश उत्सर्जित से रह्म है। बल्ब से एक सेकण्ड में उत्सर्जित लेने वाले फोटॉनों की संख्या ज्ञात कीजिये।
हल :
प्रश्न 6.
डेविसन एवं जरमर के प्रयोग में प्रथम कोटि का विवर्तन प्रेक्षित किया जाता है। त्वरक वोल्टता का मान 54 वोल्ट है। यदि प्रयुक्त Ni क्रिस्टल के परावर्तक तलों के मध्य दूरी 0.92A हो तो विवर्तन कोण का मान ज्ञात कीजिये।
हल :
प्रश्न 7.
एक गतिशील इलेक्ट्रॉन के संवेग के x-घटक में अनिश्चितता 13.18 × 10-30 kg m/s है। स्थिति तथा वेग के X-घटक में अनिश्चितताओं की गणना कीजिये।
हल :
प्रश्न 8.
समान ऊर्जा के प्रोटॉन एवं α-कणों के दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्यों के अनुपात की गणना कीजिये।
हलः
प्रश्न 9.
विद्युत चुम्बकीय स्पंद का काल 0.30ms है। फोटॉन की ऊर्जा में अनिश्चितता ज्ञात कीजिए।
हल:
प्रश्न 10.
सोडियम के लिए कार्यफलन 2.3 ev है। प्रकाश की वह अधिकतम तरंगदैर्घ्य ज्ञात करो जो सोडियम से प्रकाशिक इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन कर सकती है?
हल:
प्रश्न 11.
एक धात्विक सतह को 8.5 × 1014Hz के प्रकाश से प्रदीपन करने पर इससे सर्जित इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा 0.52 ev है। इसी सतह को 12.0 × 1014Hz के प्रकाश से प्रदीपन करने पर उत्सर्जित प्रकाशित इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा 1.97 ev है। धातु का कार्यफलन ज्ञात करो।
हल :
प्रश्न 12.
कक्ष ताप (T = 300K) पर न्यूट्रॉन तापीय साम्य में है। इनकी दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य ज्ञात कीजिए।
हल :
ताप (T) = 300K