UK Board 10th Class Social Science – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 7 अग्रिम योजना निर्माण : लोगों द्वारा, लोगों के लिए
UK Board 10th Class Social Science – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 7 अग्रिम योजना निर्माण : लोगों द्वारा, लोगों के लिए
UK Board Solutions for Class 10th Social Science – सामाजिक विज्ञान – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 7 अग्रिम योजना निर्माण : लोगों द्वारा, लोगों के लिए
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
• I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
प्रश्न 1 -आपदा प्रबन्धन का उद्देश्य समझाइए।
उत्तर- आपदा प्रबन्धन का उद्देश्य
प्राकृतिक आपदाओं को रोकना मानव के वश में नहीं है किन्तु आपदाओं से जीवन और सम्पदा को होने वाली क्षति को मनुष्य अपने कौशल, ज्ञान, संसाधन क्षमता और योजनाबद्ध विधियों से न्यून से न्यूनतम कर सकता है। आपदा प्रबन्धन का यही उद्देश्य है कि मानव अपनी तकनीकी एवं संसाधन क्षमता के आधार पर आपदा से होने वाली क्षति को न्यूनतम स्तर तक ले आए।
प्रश्न 2 – सामुदायिक परियोजना के दो प्रकार कौन-से हैं और वे क्या हैं?
उत्तर – सामुदायिक परियोजना के दो प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं—
- आकस्मिक सामुदायिक परियोजना – जिसमें काम चलाऊ तरीकों से आपातकालीन स्थिति का मुकाबला करने के लिए उपाय ढूंढे जाते हैं।
- विशेष सामुदायिक परियोजना- इसके अन्तर्गत समुदाय के लोगों के अतिरिक्त विषय विशेषज्ञ भी सम्मिलित होते हैं। यह परियोजना आधुनिक तरीकों और संसाधनों के आधार पर तैयार की जाती है।
प्रश्न 3 – समुदाय के स्तर पर आपदा की तैयारी के लिए कौन-से चार आवश्यक कदम उठाने चाहिए?
उत्तर – समुदाय स्तर पर आपदा की तैयारी करने के लिए निम्नलिखित चार कदम उठाने आवश्यक हैं-
- स्थानीय क्षेत्रों की प्रारम्भिक जानकारी, जागरूकता और सम्पर्क क्षमता का उपयोग।
- समुदाय की भागीदारी एवं भागीदारी के आधार पर स्थिति का विश्लेषण |
- कार्यबलों का उनकी क्षमताओं के आधार पर उत्तरदायित्व का निर्धारण ।
- आपदाओं का मुकाबला करने के लिए नकली अभ्यास करना ।
प्रश्न 4 – सामुदायिक परियोजना की पाँच प्रमुख विशेषताओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर – सामुदायिक परियोजना की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित
- सामुदायिक परियोजना का निर्माण समुदाय के लोगों द्वारा समुदाय के लोगों के लिए आपात काल में होने वाली क्षति को न्यूनतम स्तर तक रोकने के लिए किया जाता है।
- सामुदायिक योजना का उद्देश्य सभी लोगों को संकट का मुकाबला करने के योग्य बनाना है।
- इस परियोजना में अपनी क्षमतानुसार समुदाय के सभी लोगों की भागीदारी एवं दायित्व को सुनिश्चित किया जाता है ।
- यह परियोजना लोक केन्द्रित होती है, जिसमें यह आवश्यक नहीं कि वह बिल्कुल ठीक-ठीक वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हो बल्कि इसमें बुनियादी सूचना, संकट की जानकारी और उसे दूर करने के उपाय होना आवश्यक समझा जाता है।
- इस परियोजना में समस्त समुदाय का अनुबोधन या स्वीकृति अवश्य होनी चाहिए और इसमें लोक कल्याण का तत्त्व होना चाहिए।
प्रश्न 5 – साझा ग्रामीण मूल्य निर्धारण तकनीक’ क्या है? और वे महत्त्वपूर्ण क्यों हैं?
उत्तर – ‘साझा ग्रामीण मूल्य निर्धारण तकनीक’ ग्राम स्तर पर उपलब्ध मानवीय संसाधन एवं आपदा प्रबन्धन उपायों का मूल्यांकन या विश्लेषण करने की तकनीक है। इसके आधार पर यह निर्धारण किया जाता है कि गाँव या समुदाय आपातकाल के समय सामूहिक रूप से उसका मुकाबला करने में कितना सक्षम है। इस तकनीक का आपातकाल की दृष्टि से विशिष्ट महत्त्व है क्योंकि यदि कोई गाँव या समुदाय अपनी शक्ति, क्षमताओं और संसाधनों का स्वतः मूल्यांकन नहीं करेगा तब आपदा के समय अपर्याप्त क्षमता या संसाधनों के कारण उसे अधिक हानि का सामना करना पड़ सकता है। अतः साझा ग्रामीण मूल्य-निर्धारण के आधार पर समय रहते आने वाली आपदा के सम्बन्ध में जो प्रबन्धात्मक आवश्यकताएँ उपलब्ध नहीं हैं उन्हें पूरा करने के लिए प्रयास किए जा सकते हैं।
प्रश्न 6–सामाजिक मानचित्रण (Social Mapping) और संसाधन मानचित्रण (Resource Mapping) में क्या अन्तर है?
उत्तर : सामाजिक मानचित्रण — इस प्रकार के मानचित्रों में सामाजिक दशाओं अर्थात् कच्चे एवं पक्के मकानों की स्थिति एवं संख्या, धार्मिक स्थलों की अवस्थिति, स्कूल, जलाशय, सड़कें आदि को दर्शाया है।
संसाधन मानचित्र — संसाधन मानचित्र किसी क्षेत्र विशेष में उपलब्ध संसाधनों के वितरण को प्रदर्शित करते हैं। इस मानचित्र में दर्शाए गए संसाधनों का प्रयोग आपदा के दौरान या बाद में किया जाता है। ऐसे मानचित्रों में विभिन्न व्यवसाय में लगे लोग जो आपदा प्रबन्धन के लिए उपयोगी सेवा दे सकते हैं; जैसे- डॉक्टर, अध्यापक, इन्जीनियर, लौहार आदि के विषय में भी जानकारी दी जाती है।
अतः सामाजिक मानचित्र एवं संसाधन मानचित्र दोनों ही आपदा प्रबन्धन के लिए उपयोगी हैं किन्तु दोनों में मूलभूत अन्तर यह है कि सामाजिक मानचित्र से आपदा प्रबन्धन के लिए यह जानकारी मिलती है कि समाज में कौन-सा क्षेत्र या वर्ग आपदा से प्रभावित हो सकता है और उसे कैसे सुरक्षित किया जा सकता है। जबकि संसाधन मानचित्र आपदा प्रबन्धन के लिए आवश्यक संसाधनों की पूर्ति करने में सहायक होते हैं। इसके आधार पर आपदा के दौरान व बाद में संसाधनों जैसे आवश्यकता को पूरा करने में सहयोग प्राप्त होता है।
प्रश्न 7 – निम्नलिखित विषयों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-
(अ) संवेदनशीलता मानचित्रण
(ब) पूर्व अभ्यास
(स) किसी एक दल की भूमिका आपदा के दौरान, आपदा से पूर्व अथवा आपदा पश्चात् ।
उत्तर- (अ) संवेदनशीलता मानचित्रण
इस प्रकार के मानचित्रों में किसी क्षेत्र के संवेदनशील स्थलों को प्रदर्शित किया जाता है। इन मानचित्रों को बनाने का यह उद्देश्य यह होता है कि समुदाय के लोगों को यह पता चल जाए के उन्हें आपदा के समय कौन-से संकटों का सामना करना पड़ सकता है। इन मानचित्र में ऐसे स्थलों को प्रदर्शित ही नहीं किया जाता बल्कि इनकी सूची भी बनाई जाती है। इन संवेदनशील क्षेत्रों में निम्नलिखित उल्लेखनीय होते हैं—
(1) कच्चे व कमजोर भवन, (2) खतरनाक उद्योग और बिजली के संस्थान, (3) सँकरी गलियाँ जहाँ वाहनों की आवा-जाही कठिन हो। (4) निचले क्षेत्र जहाँ भूस्खलन का खतरा हो । (5) समाज के ऐसे वर्ग जिन्हें संकट का सबसे अधिक खतरा हो जैसे महिलाएँ बच्चे, विकलांग आदि।
(ब) पूर्व अभ्यास
वास्तविक आपदा का मुकाबला करने के लिए आपदा से सुरक्षा उपायों में नकली अभ्यास या ड्रिल का विशेष महत्त्व है। इस नकली अभ्यास द्वारा समुदाय में वास्तविक आपदा की स्थिति का सामना करने की क्षमता में वृद्धि होती है। इसलिए स्थानीय लोगों को सतर्क रखने के लिए इसे सामुदायिक योजना तैयारी का अभिन्न अंग माना जाता है।
पूर्व अभ्यास या ड्रिल योजना के अनुसार किए जाने वाले ऐसे कार्य हैं जिन्हें वास्तविक आपदा का मुकाबला करने का पूर्व अभ्यास कहा जाता है। इस अभ्यास कार्य द्वारा समुदाय स्थिति के अनुसार कार्यवाही करने के लिए भली-भाँति तैयार हो जाता है। नकली अभ्यास को सामान्यतः वास्तविक स्थिति को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जाता है; जैसे― चक्रवात या बाढ़ की सम्भावना वाले क्षेत्रों में यह ड्रिल साल में दो बार, बाढ़ के मौसम से ठीक पहले तथा अगले छह महीने के बाद अवश्य किया जाना चाहिए। इन अभ्यासों द्वारा बनाई गई योजना को वास्तविक रूप से लागू करने में विशेष सहयोग मिलता है। इसलिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि योजना में हर छह महीने या साल में कम-से-कम एक बार समुदाय के लोगों को वास्तविक आपदा का मुकाबला करने का पूर्व अभ्यास अवश्य कराया जाए।
(स) किसी एक दल की भूमिका आपदा के दौरान, आपदा के पूर्व अथवा आपदा-पश्चात्
आपदा प्रबन्धन के विभिन्न कार्यों में सदस्यों दलों का निर्धारण होता है। इस प्रकार के दल आपदा के दौरान, आपदा के पूर्व अथवा आपदा-पश्चात् महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसे दलों की विभिन्न समयों पर निम्नलिखित भूमिका होती है-
आपदा के दौरान – आपदा के दौरान प्रशिक्षित कार्य दल की निम्नलिखित भूमिका होती है-
- चेतावनी देने और संचार कार्य को सँभालना।
- निकासी और अस्थायी आश्रय स्थापित करने का कार्य देखना ।
- खोज और सहायता का कार्य करना ।
- स्वास्थ्य और प्राथमिक सहायता प्रदान करना।
आपदा के पूर्व – आपदा के पूर्व छोटे-छोटे कार्य दलों की मुख्य भूमिका विभिन्न प्रकार का प्रशिक्षण प्राप्त करना है। इन दलों को अग्रलिखित प्रशिक्षण आवश्यक रूप से दिया जाता है-
- प्राथमिक उपचार प्रशिक्षण ।
- बचाव और राहत क्षेत्र में प्रशिक्षण ।
- जल आपूर्ति व स्वच्छता के क्षेत्र में प्रशिक्षण ।
- सदमे से प्रभावित लोगों को सहारा देने का प्रशिक्षण ।
आपदा के पश्चात् — आपदा के पश्चात् कार्यदल की भूमिका प्रभावित लोगों को पुनर्वास में सहयोग प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण होती है। इस समय कार्यदल लोगों को सलाह देते हैं उनका साहस बढ़ाते हैं और ऐसे संस्थाओं से समन्वय में सहायता करते हैं जो वित्तीय सहयोग प्रदान कर सकें।
प्रश्न 8 – समुदाय से क्या तात्पर्य हैं? समझाइए।
उत्तर – व्यक्तियों का ऐसा समूह जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निवास करता है समुदाय कहलाता है। समुदाय के सभी सदस्य ‘हम’ की भावना से प्रेरित होते हैं। समुदाय लोक केन्द्रित होता है जिसमें लोक कल्याण को विशेष महत्त्व दिया जाता है, जो भी निर्णय लिया जाता है उसमें सभी की स्वीकृति आवश्यक होती है। इसीलिए संकट के समय समुदाय का अपना विशेष महत्त्व होता है। क्योंकि संकट के समय स्थानीय प्रबन्धन व्यवस्था समुदाय के लोगों द्वारा ही अच्छी तरह की जा सकती है। इसीलिए समुदाय को आपदा प्रबन्धन कार्यों का केन्द्र बिन्दु कहा जाता है।