UK Board 10th Class Social Science – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 8 विद्यालय : आपदा प्रबन्धन नियोजन
UK Board 10th Class Social Science – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 8 विद्यालय : आपदा प्रबन्धन नियोजन
UK Board Solutions for Class 10th Social Science – सामाजिक विज्ञान – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 8 विद्यालय : आपदा प्रबन्धन नियोजन
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
• I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
प्रश्न 1 – विद्यालय आपदा प्रबन्ध नियोजन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – एक समुदाय में विद्यालय भवनों या प्राय: बहु-उद्देशीय भवनों का उपयोग किया जाता है। विद्यालयों द्वारा देश का अमूल्य संसाधन ही तैयार नहीं होता बल्कि ये सामुदायिक कार्यक्रमों के केन्द्र, आपातकाल के शरण स्थल तथा पुस्तकों, तकनीकी उपकरणों के भण्डार होते हैं। इसीलिए इनको प्राकृतिक जोखिम के लिए संवेदनशील भी माना जाता है। पाठ्यक्रम अतः विद्यालय को असंवेदनशील बनाया या जोखिम से सुरक्षित रखना के अत्यन्त आवश्यक हैं। इसके लिए विद्यालय केन्द्रित आपदा प्रबन्धन समाज नियोजन किया जाना महत्त्वपूर्ण पहल हो सकती है। जिसमें स्कूल के छात्रों को आपदा पाठ्यक्रम के द्वारा आपातकाल के प्रति जानकारी प्रदान करके विभिन्न नीतियों व प्रक्रियाओं द्वारा योजना में भागीदारी बनाया जा सकता है। अतः आपदा प्रबन्धन के लिए विद्यालयों के भवन, बच्चे, अध्यापक और विभिन्न संवेदनशील पक्षों को सम्मिलित कर किया जाने वाला प्रबन्धन नियोजन विद्यालय आपदा प्रबन्धन नियोजन कहलाता है।
प्रश्न 2 – आपदा प्रबन्धन को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर — वर्तमान में आपदा प्रबन्धन पाठ्यक्रम को सभी राज्यों एवं केन्द्रीय शिक्षा बोर्ड ने विद्यालय शिक्षा में सम्मिलित किया है जिसके दो प्रमुख कारण हैं—
(1) विद्यालय छात्रों एवं विद्यालयों को संवेदनशील माना जाता है।
(2) बाल्यावस्था में आपदा प्रबन्धन के प्रति छात्र छात्राओं को जागरूक करके आपदा प्रबन्धन के लिए समाज के प्रति उत्तरदायी बनाया जा सकता है।
उपर्युक्त कारणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि आपदा को में सम्मिलित करने का मुख्य उद्देश्य यह है कि छात्रों द्वारा समाज प्रत्येक वर्ग को आपदा प्रबन्धन के प्रति जागरूक किया जाए जिससे आपदाओं से होने वाली हानि को न्यूनतम करने के लिए तैयार रहें।
प्रश्न 3 – विद्यालय भवन की प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशीलता कम करने के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – विद्यालय महत्त्वपूर्ण उपयोगी स्थल ही नहीं बल्कि देश के भावी संसाधनों के जन्मस्थल भी हैं। अतः प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से इनकी सुरक्षा अत्यन्त आवश्यक मानी जाती है। प्राकृतिक जोखिमों के प्रति विद्यालय भवनों की संवेदनशीलता में कमी लाने के लिए अग्रलिखित उपायों को अपनाया जा सकता है-
- प्राकृतिक जोखिमों के प्रति विद्यालय भवनों की संवेदनशीलता में कमी लाने के लिए राज्य योजना का विकास किया जाए जिसमें सभी सम्बन्धित संस्थानों का सहयोग एवं समन्वय से आपसी समझ में वृद्धि की जा सकती है।
- वर्तमान विद्यालय भवनों का एक डाटाबेस या रूपरेखा तैयार की जाए जिससे अगली कार्यनीति विकसित की जा सकती है।
- ऐसी विद्यालय संरचना जिसका समुचित रखरखाव नहीं किया गया है, प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अधिक संवेदनशीलता होती है। अतः ऐसे भवनों का रखरखाव एक नियमित कार्यकलाप के रूप में होना चाहिए।
- विद्यालय के प्रति जोखिम का न्यूनीकरण केवल सरकारी अभिकरणों का उत्तरदायित्व नहीं है। शिक्षा के क्षेत्र में संवेदनशीलता को हटाने के लिए अध्यापकों, छात्रों अभिभावकों आदि सभी को प्रभावशाली पहल करनी चाहिए।
प्रश्न 4 – विद्यालय आपदा प्रबन्धन नियोजन के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – एक विद्यालय आपदा प्रबन्धन योजना विकसित करते समय निम्नलिखित नियोजन सिद्धान्तों का अवलोकन, आपातस्थिति के दौरान कार्य करने योग्य व्यवस्थाओं व प्रक्रियाओं को विकसित करने में सहायक होगा –
- सरलता — योजना सरल एवं संक्षिप्त होनी चाहिए । योजना में प्रत्येक की भूमि का उत्तरदायित्व सुस्पष्ट होना चाहिए।
- लचीलापन — योजना में लचीलापन होना चाहिए। यदि किसी दिन मुख्य कर्मचारी उपलब्ध न हो या निष्क्रमण जमाव क्षेत्र का यह पूर्व नियोजित मार्ग जोखिम के कारण कट चुका हो तब भी आपात प्रक्रियाओं को कारगर होना चाहिए।
- व्यापकता — विद्यालय आपदा प्रबन्धन की योजना व्यापक होनी चाहिए। इसमें आपातस्थिति के प्रभाव को रोकने, उसके लिए तैयार रहने और उस पर कार्यवाही के लिए सभी पक्षों का समावेश होना चाहिए ।
- निर्णय लेने की प्रक्रिया – योजना में निर्णय लेने की उस प्रक्रिया का विवरण होना चाहिए जो कि आपातस्थिति होने पर अपनाई जाएगी।
- परामर्श – विभिन्न स्तरों पर विद्यालय समुदाय के साथ परामर्श के उपरान्त ही योजना को अन्तिम रूप दिया जाए। वास्तव में यदि योजना में सभी लोगों या पक्षों का परामर्श ले लिया जाए तो उसकी प्रतिबद्धता बढ़ जाती है।
- प्रसार—योजना का व्यापक रूप से प्रसार किया जाना चाहिए। इससे विद्यालय एवं अन्य समुदाय योजना से परिचित हो जाते हैं ।
- समीक्षा – समय – समय पर योजना की समीक्षा की जानी चाहिए।
- समन्वय – विद्यालय आपदा प्रबन्धन नियोजन का अन्य अभिकरणों के साथ समन्वय किया जाना चाहिए; जैसे आपात सेवाओं से सम्बन्धित संस्थाएँ, स्थानीय नगरपालिकाएँ जिनकी स्वयं अपनी योजनाएँ जुड़ने योग्य हैं।
- नीति-नीति का निर्धारण नियोजन प्रक्रिया के दौरान किया जाएगा। फिर भी स्थानीय नीति सम्बन्धी मामलों पर पहले ही विचार किया जाना महत्त्वपूर्ण होगा।
- एकरूपता – सुसंगतशिक्षा प्राधिकारियों की स्थानीय नीतियों के साथ योजना में एकरूपता आवश्यक है।
- उत्तरदायित्वों की परिधि — योजना में सभी के लिए निश्चित उत्तरदायित्व का निर्धारण अत्यन्त जरूरी है तभी योजना क्रियान्वयन सफलतापूर्वक सम्भव है।
उपर्युक्त नियोजन सिद्धान्तों को अंगीकार करते हुए बनाई गई आपदा प्रबन्धन योजना वास्तव में सफल हो सकती है तथा आपातकाल के समय उपयोगी सिद्ध होगी।
प्रश्न 5 – विद्यालय आपदा प्रबन्ध के विभिन्न चरणों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर- विद्यालय आपदा प्रबन्धन के मुख्य चरण निम्नलिखित हैं-
- अध्यापकों/विद्यालय प्रबन्धन के मध्य जागरूकता हेतु संवेदनशीलता पैदा करने के लिए बैठक करना ।
- विद्यालय आपदा प्रबन्धन समिति (एस०डी०एम०सी०) का गठन।
- जोखिम की पहचान व सुरक्षा आकलन ।
- विद्यालय आपदा प्रबन्धन योजना (एस०डी०एम०पी०) प्रलेख की तैयारी।
- विद्यालय में आपदा योजना के लिए जागरूकता कार्य-कलाप व उनका प्रसार ।
- नियमित अभ्यास संचालन व एस०डी०एम०पी० की रिपोर्ट ।
- प्रभावोत्पादकता बढ़ाने के लिए योजना का मूल्यांकन ।
प्रश्न 6 – विद्यालय आपदा प्रबन्धन समिति के समूहों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – विद्यालय आपदा प्रबन्धन समिति के समान्यतः तीन समूह गठित किए जाने चाहिए – (1) समन्वय समूह, (2) आपदा जागरूकता समूह, तथा (3) आपदा कार्यवाही समूह ।
- समन्वय समूह – विद्यालय आपदा प्रबन्धन समिति के समूह की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है, क्योंकि यह समिति आपदा प्रबन्धन के लिए विभिन्न अभिकरणों; जैसे—अग्निशमन दल, स्वास्थ्य विभाग, संचार विभाग एवं परिवहन विभाग आदि से समन्वय स्थापित करती है। यह सभी विभाग आपदा के दौरान एवं आपदा के पश्चात् महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- आपदा जागरूकता समूह – यह समूह विद्यालय समुदाय तथा अपने समीपवर्ती समुदाय को आपदाओं के प्रति जागरूक करने का कार्य करता है। इसके द्वारा पोस्टर, नुक्कड़नाटक, आदि प्रयासों से लोग आपदा के प्रति जागरूक होकर आपदा प्रबन्धन के उपायों के लिए प्रयासरत हो जाते हैं।
- आपदा कार्यवाही समूह — यह समूह विभिन्न प्रकार के खोज, बचाव और राहत कार्यों के कौशल से परिचित होना चाहिए तभी यह अपनी भूमिका का निर्वाह भली प्रकार कर सकता है।
प्रश्न 7 – आपदा प्रबन्धन योजना प्रलेख (रिपोर्ट) का वर्णन कीजिए।
उत्तर — आपदा प्रबन्धन योजना को तैयार करने से पूर्व कुछ विशेष तथ्यों की एक रूपरेखा तैयार की जाती है जिसमें अग्रलिखित विवरण आवश्यक होता है-
- विद्यालय भवन व इसके आस-पास की भौतिक स्थिति एवं जनसंख्या—आपदा प्रबन्धन योजना के लिए यह जानकारी होना जरूरी है कि क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति कैसी है इस सम्बन्ध में यदि विद्यालय आपदा योजना प्रलेख तैयार करना है तब विद्यालय की भौतिक स्थिति का विश्लेषण हेतु उसका मानचित्रण किया जाएगा जिसमें निम्नलिखित स्थानों की स्थिति को दर्शाया गया हो –
- विद्यालय में कक्षा के कमरों की संख्या एवं उनकी भौतिक स्थिति।
- विद्यालय में स्टाफ के कमरों की अवस्थिति।
- विद्यालय में प्रयोगशालाओं की स्थिति ।
- विद्यालय में खेल का मैदान एवं खुले स्थानों की स्थिति ।
- संसाधन मानचित्रीकरण – इस मानचित्र में बाह्य संसाधनों के अतिरिक्त विद्यालय के भीतर उपलब्ध संसाधनों को भी दर्शाया जाना चाहिए। इस मानचित्र में दर्शाने योग्य मुख्य संसाधन निम्नलिखित हैं-
- कक्षाओं में उपस्थित (छात्र – अध्यापक) मानव संसाधन ।
- विद्यालय में उपलब्ध भौतिक संसाधन; जैसे—स्ट्रैचर, अग्निशमन यन्त्र, सीढ़ियाँ, मोटी रस्सी, टार्च, संचार प्रणाली, प्राथमिक उपचार पेटी, अस्थायी शरणस्थल सामग्री ( तम्बू) ; खुला स्थान आदि ।
- समीपस्थ उपलब्ध संसाधन मानचित्र — इसमें समीप स्थित उपलब्ध संसाधनों की दिशा व दूरी दर्शाई जाती है। इनमें मुख्य हैं— अग्नि-शमन केन्द्र, चिकित्सालय, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, औषधालय, निजी क्लीनिक, दवा की दुकान, पुलिस स्टेशन, रेडक्रॉस, जिला मजिस्ट्रेट का कार्यालय, जिला आपात शल्य कर्म केन्द्र, एम०सी०सी० व एन०वाई० के० एस० कार्यालय आदि ।
- विद्यालय भवन की संवेदन अवस्थिति प्रदर्शित करते हुए संवेदनशीलता मानचित्रीकरण – इस मानचित्र में निम्नलिखित संवेदनशीलता तत्त्वों को दर्शाया जाता है—
★ प्रत्येक कक्षा में बच्चों की संख्या ( बालक, बालिकाएँ, विकलांग, बीमार) को प्रत्येक कक्षा में मानचित्र पर अंकित किया जाए।★ विद्यालय में संवेदनशील कक्षों की अवस्थिति ।★ विद्यालय के अहाते में संवेदनशील स्थानों जैसे पेयजल आदि की अवस्थिति।★ मुख्य स्विच बोर्ड तथा बिजली के तार आदि जो संवेदनशील हों।★ यदि विद्यालय पर्वत के ढलान पर है तो मिट्टी की परिस्थिति पर आधारित संवेदनशीलता की अवस्थिति।★ चिह्नित किए गए जोखिमों से निपटने के तरीकों की सूची ।
- विद्यालय के सुरक्षित व निष्क्रमण मार्ग का मानचित्र – इस मानचित्र में सुरक्षित स्थानों को चिह्नित करना चाहिए तथा निष्क्रमण मार्गों को दर्शाना चाहिए।
इस प्रकार उपर्युक्त रूपरेखाओं को आधार मानकर आपदा प्रबन्धन के लिए योजना को तैयार किया जाता है तभी वह उपयोगी होती है।
प्रश्न 8 – कृत्रिम अभ्यास से क्या तात्पर्य है तथा उसकी उपयोगिता लिखिए।
उत्तर— कृत्रिम अभ्यास नकली आपदाएँ उत्पन्न करके उन्हें रोकने या उनके द्वारा होने वाली क्षति को न्यूनतम करने का अभ्यास है। विद्यालयों में कृत्रिम अभ्यास का संचालन अध्यापकों व छात्रों को प्रशिक्षित करने तथा इसकी जवाबी योजना के विभिन्न पहलुओं की जाँच के लिए किया जाता है, ताकि इसका मूल्यांकन कर इसमें संशोधन किया जा सके। इस प्रकार के अभ्यास वास्तविक आपदाओं का मुकाबला करने के लिए अत्यन्त उपयोगी होते हैं। इनसे छात्रों व अध्यापकों को यह सीखने का अवसर प्राप्त होता है कि वास्तविक आपदाओं के समय क्या-क्या जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं तथा उन्हें किस प्रकार दूर किया जा सकता है। दूसरे यह अभ्यास स्वत: मूल्यांकन करने में सहायक होते हैं तथा इनसे प्रशिक्षित स्टाफ की क्षमताओं का आकलन करना सरल हो जाता है।