UK Board 10th Class Social Science – (राजनीति विज्ञान) – Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले
UK Board 10th Class Social Science – (राजनीति विज्ञान) – Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले
UK Board Solutions for Class 10th Social Science – सामाजिक विज्ञान – (राजनीति विज्ञान) – Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – जीवन के उन विभिन्न पहलुओं का जिक्र करें, जिनमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव होता है या वे कमजोर स्थिति में होती हैं।
उत्तर- स्त्रियों के साथ भेदभाव के विभिन्न क्षेत्र
साधारणतया पर यह देखा गया है कि भारतीय समाज में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं तथा पुरुषों के बीच भेदभाव किया जाता है । स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त इस स्थिति में काफी बदलाव आया है, परन्तु फिर भी स्थिति दयनीय बनी हुई है। भारत में निम्नलिखित क्षेत्रों में लैंगिक असमानताएँ देखने को मिलती हैं-
- भारतीय समाज में बच्चों के पालन-पोषण में असमानता दिखाई देती है। बच्चों के पालन-पोषण करने तथा गृहस्थी चलाने का सम्पूर्ण दायित्व महिलाओं का होता है। पुरुष इस दायित्व से मुक्त होते हैं क्योंकि वे घर से बाहर जाकर कार्य करते हैं।
- महिलाएँ घर का सम्पूर्ण कार्य करती हैं, पुरुष इस कार्य में सहयोग प्रदान नहीं करते हैं जबकि पुरुष भी इन कार्यों को आसानी से कर सकते हैं।
- आय के लिए सार्वजनिक विभाजन में भी असमानता दिखाई देती है। पुरुष यद्यपि घर-गृहस्थी के कार्यों में रुचि नहीं लेते हैं, परन्तु आय के लिए उन्हें वही कार्य घर की दहलीज के बाहर करने पड़ते हैं तो खुशी-खुशी उन कार्यों को करने के लिए तैयार हो जाते हैं— जैसे सिलाई करना, होटलों में खाना बनाना, सफाई का कार्य करना आदि ।
- वर्तमान में स्त्रियाँ भी पुरुषों के समान घर के बाहर निकलकर हैविभिन्न प्रकार के कार्य करती हैं, परन्तु उन्हें अपनी नौकरी के साथ घर-गृहस्थी के कार्यों को भी पूर्ण करना होता है । उनके कार्यों को अधिक मूल्यवान नहीं समझा जाता है तथा उन्हें रात-दिन कार्य करने के उपरान्त भी उसका श्रेय नहीं मिलता है।
- भारतीय समाज में लैंगिक असमानता विकास से सम्बद्ध क्षेत्रों में भी देखने को मिलती है। अधिकांश महिलाएँ घर-परिवार, खेतों अथवा कार्यालयों आदि में देखे गए विभाजन तथा भेदभाव के कारण घर की चहारदीवारी में सिमटकर रह गई हैं। बाहर के सार्वजनिक जीवन पर पुरुषों का अधिकार स्थापित हो गया है । यद्यपि जनसंख्या का आधा भाग स्त्रियों का है परन्तु सार्वजनिक जीवन तथा राजनीति में उनकी आंशिक भूमिका ही है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में परम्परागत मान्यताओं के आधार पर लड़कियों की तुलना में लड़कों को अधिक महत्त्व प्रदान किया जाता है। लड़कों के लिए शिक्षा की व्यवस्था की जाती है जबकि लड़कियों को उच्च शिक्षा के लिए घर से बाहर नहीं भेजा जाता। इसलिए हमारे देश में महिलाओं का साक्षरता प्रतिशत कम है।
- राजनीतिक क्षेत्र में भी महिलाओं की भूमिका सन्तोषजनक नहीं है। महिलाएँ राजनीति में इसलिए भाग नहीं लेती हैं क्योंकि राजनीति में पुरुषों का दबदबा बना रहता है। भारत की विधायिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व भी बहुत कम है। राजनीतिक क्षेत्र में भी लैंगिक असमानता दिखाई देती है। भारत की महिलाओं की राजनीति में भागीदारी अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिका के अनेक विकासशील देशों से भी कम है । परन्तु वर्तमान में अनेक महिलाएँ मुख्यमन्त्री के पद पर विराजमान हैं।
- उच्च वेतन तथा उच्च पदों में भी पुरुषों तथा महिलाओं में असमानता दिखाई देती है। भारत में वर्तमान में भी उच्च वेतन वाले पदों पर पहुँचने वाली महिलाओं की संख्या बहुत कम है।
- यह भी देखा गया है कि पुरुष तथा महिलाओं को समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं दिया जाता, महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है।
- भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज है। अतः परिवार में पुत्री के स्थान पर पुत्र की चाहत होती है। लड़कियों की भ्रूण हत्या इसका परिणाम । भारत में लिंग अनुपात 1000 लड़कों पर गिरकर 927 लड़कियों का रह गया है।
प्रश्न 2 – विभिन्न तरह की साम्प्रदायिक राजनीति का ब्यौरा दें और सब के साथ एक-एक उदाहरण भी दें।
उत्तर- विभिन्न प्रकार की साम्प्रदायिक राजनीति
यद्यपि भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्ष अथवा पंथनिरपेक्ष समाज की स्थापना की गई है। परन्तु समाज में विभिन्न प्रकार की साम्प्रदायिक राजनीति भी देखने को मिलती है। इसके विभिन्न रूपों को अग्र प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-
- धार्मिक श्रेष्ठता का अन्धविश्वास – भारत में धार्मिक आधार पर श्रेष्ठता को अभिव्यक्त करने की प्रतिस्पर्द्धा निरन्तर बढ़ती जा रही है। इनमें धार्मिक पूर्वाग्रह, धार्मिक समुदायों के सम्बन्ध में बनी – बनाई धारणाएँ तथा एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ मानने की मान्यताएँ सम्मिलित हैं। इन बातों पर हम अधिक ध्यान नहीं देते हैं।
- बहुसंख्यकवादी प्रधानता – धर्म के पालन करने वालों की संख्या के आधार पर समाज का विभाजन बहुसंख्यक तथा अल्पसंख्यक समुदाय में हो जाता है। बहुसंख्यक समुदाय का राजनीति में भी वर्चस्व स्थापित हो जाता है। अतः अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति भी पृथक् राजनीतिक इकाई बनाने का प्रयास करने लगते हैं।
- साम्प्रदायिक आधार पर राजनीतिक गोलबन्दी — साम्प्रदायिक आधार पर राजनीतिक गोलबन्दी भी साम्प्रदायिकता का दूसरा रूप है। इसमें धर्म के पवित्र प्रतीकों, मान्यताओं, धर्मगुरुओं का सम्मान, भावनात्मक अपील तथा अपने ही लोगों के मन में डर बैठाने जैसे उपायों का प्रयोग किया जाता है। स्वार्थी राजनेता अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए धार्मिक भावनाओं का शोषण करते हैं तथा साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काते हैं।
- साम्प्रदायिक हिंसा— संकीर्ण धार्मिक विचारों पर आधारित साम्प्रदायिकता समाज का धर्मों के आधार पर विभाजन कर देती है। यह विभिन्न समुदायों में घृणा, द्वेष तथा तनाव का वातावरण उत्पन्न कर देती है। भारत में समय-समय पर साम्प्रदायिक दंगे तथा हिंसा होती रही है। पाकिस्तान के निर्माण के लिए भारत में भयावह साम्प्रदायिक दंगे हुए।
प्रश्न 3 – बताइए कि भारत में किस तरह अभी भी जातिगत असमानताएँ जारी हैं?
उत्तर – जातिगत असमानताओं के जारी रहने के कारण भारत में जातिगत असमानताओं के जारी रहने के कारण निम्नलिखित हैं-
- यद्यपि स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् संविधान के भाग 3 में वर्णित मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत समानता के अधिकार की व्यवस्था की गई हैं। समानता के अधिकार के अनुच्छेद 17 में छुआछूत को समाप्त करने का प्रावधान किया गया है, परन्तु व्यवहार में अभी भी भारत में अनेक भागों में छुआछूत का प्रचलन है।
- जातिप्रथा भारतीय समाज के लिए वरदान के स्थान पर अभिशाप अधिक सिद्ध हुई है। जाति -प्रथा अन्य जाति समूहों में भेदभाव तथा उन्हें अपने से पृथक् मानने की धारणा पर आधारित है। छुआछूत की भावना इसी धारणा का परिणाम है।
- भारत के अनेक समाज-सुधारकों ने जाति के आधार पर व्यक्तियों के शोषण तथा उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज उठाई थी परन्तु उन्हें इस विषय में आंशिक सफलता ही प्राप्त हुई। वे जातिगत असमानता से मुक्त समाज की स्थापना नहीं करा सके।
- समकालीन भारत से जाति प्रथा समाप्त नहीं हुई है। जाति – प्रथा के कुछ पुराने पहलू अभी भी जीवित हैं। वर्तमान में भी अधिकांश व्यक्ति अपनी जाति अथवा कबीले में ही विवाह करते हैं। सवर्ण जाति के व्यक्ति दलितों को धार्मिक अथवा वैवाहिक कार्यक्रमों में बहुत कम आमन्त्रित करते हैं।
- शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में वर्तमान में भी जातिगत विषमताएँ अधिक देखने को मिलती हैं। समाज में जिस जाति की प्रधानता होती हैं, वह अन्य जातियों को उपेक्षा के भाव देखती है।
- जिन जातियों को पहले शिक्षा से वंचित रखा गया था, उनके सदस्य वर्तमान में भी शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े हुए हैं। शिक्षित लोगों की धार्मिक स्थिति अच्छी होती है। जाति तथा आर्थिक स्थिति में काफी निकट का सम्बन्ध है।
- जाति व्यवस्था के अन्तर्गत सदियों से कुछ जातियों को लाभ की स्थिति में तथा कुछ जातियों को दबाकर रखा गया है। अतः उच्च जातियों का विकास होता गया तथा निम्न जाति के लोग विकास के लाभों से वंचित रहे।
- आर्थिक असमानता के लिए भी सामान्यतया जाति व्यवस्था ही उत्तरदायी है क्योंकि जाति-व्यवस्था से ही विभिन्न संसाधनों तक व्यक्तियों की पहुँच सुनिश्चित होती है। यह देखा गया है कि भूमि, व्यापार अथवा आर्थिक संसाधनों पर उच्च जातियों का ही अधिकार है। दलित वर्ग इनसे काफी दूर है।
- वर्तमान में जाति पर आधारित इस प्रकार की औपचारिक तथा अनौपचारिक असमानताएँ तो गैर-कानूनी हो गई हैं परन्तु सदियों से जो जाति घाटे की स्थिति में रही है, उसे अपनी स्थिति को सुधारने में काफी समय लगेगा।
- नौकरियों, पदों तथा सेवाओं में आरक्षण प्रदान करके दलितों तथा पिछड़ी जातियों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है परन्तु उनकी परम्परागत सोच अथवा चिन्तन शैली उनके विकास में बाधक बनी हुई है।
प्रश्न 4 – दो कारण बताएँ कि क्यों सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते?
उत्तर- चुनावी परिणामों की स्थिति
भारत में संसदीय लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था को अपनाया गया है। अतः केन्द्र, राज्य तथा स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के नियत समय पर निर्वाचन होते हैं। भारत तथा विदेश के अनेक विद्वानों का मत है कि भारत में राजनीति जाति पर आधारित है। इन विद्वानों का यह मत उचित प्रतीत होता है क्योंकि निर्वाचनों में जातिगत समीकरणों का विशेष ध्यान रखा जाता है। परन्तु मात्र जाति – प्रथा ही चुनाव के परिणामों का निर्धारण करे, इस बात को पूर्ण रूप से नहीं माना जा सकता है। इस स्थिति को स्पष्ट करने के लिए हम निम्न दो कारणों की विवेचना कर सकते हैं—
- सामाजिक विविधताएँ – भारत में जाति के आधार पर सामाजिक विविधताएँ देखने को मिलती हैं। भारत में अनेक जातियों तथा जनजातियों का अस्तित्व है। अतः एक ही जाति के आधार पर राजनीतिक दलों का निर्माण नहीं किया जा सकता। यद्यपि ‘वोट बैंक’ की राजनीति के निर्धारण, उम्मीदवारों को टिकट प्रदान करने तथा राजनीतिक दलों के निर्माण में जाति की महत्त्वपूर्ण भूमिका है परन्तु उसकी एकमात्र भूमिका को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। राजनीतिक दलों में विभिन्न जातियों, धर्मों तथा वर्गों के लोग सम्मिलित होते हैं। निर्वाचन क्षेत्र बहुत बड़े-बड़े होते हैं, अत: उसमें सभी जातियों का अस्तित्व होता है। एक ही जाति चुनावी परिणामों को प्रभावित नहीं कर सकती है। उम्मीदवार को निर्वाचन क्षेत्र की सभी जातियों तथा वर्गों के समर्थन की आवश्यकता होती है। यह भी देखा गया है कि कोई भी एक राजनीतिक पार्टी एक जाति अथवा समुदाय के सभी लोगों के मत प्राप्त नहीं कर सकती है।
- असमान आर्थिक स्थिति — एक ही जाति के अन्तर्गत भी अमीर तथा गरीब लोगों के हित अथवा स्वार्थ अलग-अलग होते हैं। यह देखा गया है कि एक ही जाति के अमीर तथा गरीब लोग प्रायः अलग-अलग पार्टियों के पक्ष में मतदान करते हैं।
यह भी अनुभव किया है कि अनेक बार जातिगत समीकरणों के आधार पर खड़े किए गए प्रत्याशियों को पराजय का मुँह देखना पड़ता है क्योंकि सरकार के काम-काज के विषय में लोगों की राय तथा नेताओं की लोकप्रियता का भी निर्वाचनों के परिणामों पर निर्णायक प्रभाव पड़ता है।
जिन उम्मीदवारों की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है तथा वे चुनावों में काफी धन व्यय करते हैं, वे आमतौर पर चुनावों में विजय प्राप्त करते हैं क्योंकि उन्हें एक जाति का नहीं, वरन् विभिन्न जातियों का समर्थन प्राप्त होता है।
प्रश्न 5 – भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की क्या स्थिति है?
उत्तर- विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति
भारत की विधायिका (लोकसभा) में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत ही कम रहा है। लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या अभी कुल सदस्यों की दस प्रतिशत तक भी नहीं पहुँची है । स्वतन्त्रता प्राप्ति महिला सांसदों की संख्या में निरन्तर गिरावट आती रही है। उपरान्त
राज्यों के विधानमण्डलों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व पाँच प्रतिशत से भी कम है। महिला प्रतिनिधियों के सम्बन्ध में भारत का स्थान विश्व के अन्य देशों की तुलना में काफी नीचे है। भारत महिला प्रतिनिधित्व के मामले में अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिका के अनेक विकासशील देशों से भी पीछे है। बहुत कम संख्या में महिलाएँ प्रधानमन्त्री तथा मुख्यमन्त्री के पदों पर आसीन हुई हैं।
स्थानीय स्वशासन की इकाइयों में महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व प्रदान करने के उद्देश्य से उनके लिए एक-तिहाई स्थानों का आरक्षण किया गया है। वर्तमान में भारत के ग्रामीण तथा शहरी स्थानीय निकायों में निर्वाचित महिलाओं की संख्या हजारों में है।
महिला संगठनों की यह भी माँग है कि संसद तथा राज्य विधानमण्डलों में भी महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थान आरक्षित किए जाएँ। संसद में इस सम्बन्ध में एक विधेयक भी प्रस्तुत किया था परन्तु उस पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है क्योंकि सभी राजनीतिक दल इस विधेयक को लेकर एकमत नहीं हैं।
प्रश्न 6 – किन्हीं दो प्रावधानों का जिक्र करें जो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाते हैं।
उत्तर- धर्मनिरपेक्ष देश बनाने सम्बन्धी प्रावधान
संविधान द्वारा भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाया गया है। भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने सम्बन्धी दो प्रावधान निम्नलिखित हैं-
- राज्य का कोई धर्म नहीं — भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने के कारण, इसका अपना कोई निजी धर्म नहीं है। धर्मनिरपेक्ष होना, विधर्मी अथवा धर्म-विरोधी राष्ट्र होना नहीं है। धर्मनिरपेक्ष देश में अनेक प्रकार के धर्मों तथा पंथों का अस्तित्व होता है। भारत में किसी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है; जैसे अनेक मुस्लिम देशों ने इस्लाम को राजकीय धर्म के रूप में मान्यता प्रदान की है।
- धार्मिक स्वतन्त्रता – हमारा संविधान भारत के प्रत्येक नागरिक को अन्त:करण की स्वतन्त्रता के आधार पर किसी भी धर्म को पालन करने, धर्म को परिवर्तित करने तथा धर्म के प्रचार करने की पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान करता है। संविधान में मौलिक अधिकारों के अध्याय में अनुच्छेद 25 से 28 तक धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार का वर्णन मिलता है। राज्य धार्मिक समभाव तथा धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहित करता है। राज्य किसी भी धार्मिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करता है। संविधान धर्म के आधार पर किए जाने वाले किसी भी प्रकार के भेदभाव को अवैधानिक घोषित करता है।
प्रश्न 7 – जब हम लैंगिक विभाजन की बात करते हैं तो हमारा अभिप्राय होता है—
(क) स्त्री तथा पुरुष के बीच जैविक अन्तर ।
(ख) समाज द्वारा स्त्री तथा पुरुष को दी गई असमान भूमिकाएँ ।
(ग) बालक और बालिकाओं की संख्या का अनुपात।
(घ) लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में महिलाओं को मतदान का अधिकार न मिलना।
उत्तर- (ख) समाज द्वारा स्त्री तथा पुरुष को दी गई असमान भूमिकाएँ ।
प्रश्न 8 – भारत में यहाँ औरतों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है—
(क) लोकसभा,
(ख) विधानसभा,
(ग) मन्त्रिमण्डल,
(घ) पंचायती राज की संस्थाएँ ।
उत्तर- (घ) पंचायती राज की संस्थाएँ |
प्रश्न 9 – साम्प्रदायिक राजनीति के अर्थ सम्बन्धी निम्नलिखित कथनों पर गौर करें। साम्प्रदायिक राजनीति इस धारणा पर आधारित है कि-
(अ) एक धर्म दूसरों से श्रेष्ठ है।
(ब) विभिन्न धर्मों के लोग समान नागरिक के रूप में खुशी-खुशी साथ रह सकते हैं।
(स) एक धर्म के अनुयायी एक समुदाय बनाते हैं।
(द) एक धार्मिक समूह का प्रभुत्व बाकी सभी धर्मों पर कायम करने में शासन की शक्ति का उपयोग नहीं किया जा सकता।
इनमें से कौन या कौन-कौन सा कथन सही है-
(क) अ, ब, स और द
(ख) अ, ब और द
(ग) अ और स
(घ) ब और द
उत्तर — (ग) अ और स।
प्रश्न 10 – भारतीय संविधान के बारे में इनमें से कौन-सा कथन गलत है-
(क) यह धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है।
(ख) यह एक धर्म को राजकीय धर्म बताता है।
(ग) सभी लोगों को कोई भी धर्म मानने की आजादी देता है।
(घ) किसी धार्मिक समुदाय में सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार देता है।
उत्तर- (ख) यह एक धर्म को राजकीय धर्म बताता है।
प्रश्न 11 – ¨¨¨¨¨ पर आधारित सामाजिक विभाजन सिर्फ भारत में ही है।
उत्तर – जाति पर आधारित सामाजिक विभाजन सिर्फ भारत में ही है ।
प्रश्न 12 – सूची I तथा सूची II का मेल कराएँ तथा नीचे दिए कोड के आधार पर सही जवाब खोजें-
सूची I | सूची II |
1. अधिकारों और अवसरों के मामले में स्त्री तथा पुरुष की बराबरी मानने वाला व्यक्ति । | (क) साम्प्रदायिक |
2. धर्म को समुदाय का मुख्य आधार मानने वाला व्यक्ति । | (ख) नारीवादी |
3. जाति को समुदाय का मुख्य आधार मानने वाला व्यक्ति । | (ग) धर्मनिरपेक्ष |
4. व्यक्तियों के बीच धार्मिक आस्था के आधार पर भेदभाव न करने वाला व्यक्ति । | (घ) जातिवादी |
1 | 2 | 3 | 4 | |
(सा) | ख | ग | क | घ |
(रे) | ख | क | घ | ग |
(गा) | घ | ग | क | ख |
(मा) | ग | क | ख | घ |
उत्तर – उपर्युक्त सारणी I तथा सारणी II का सही मिलान निम्न प्रकार है-
(रे) | ख | क | घ | ग |
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – ” भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है, परन्तु अभी भी वे पुरुषों से काफी पीछे हैं। ” इस कथन की विवेचना कीजिए ।
उत्तर- महिलाओं की स्थिति
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पूर्व मुगलों तथा अंग्रेजों के शासनकाल में महिलाओं की अत्यन्त दयनीय स्थिति थी। उन्हें सामाजिक तथा नागरिक अधिकारों से वंचित किया गया था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त औपचारिक तथा अनौपचारिक रूप से महिलाओं की स्थिति में सुधार करने का प्रयास किया गया है। यह कार्य सरकार तथा महिलाओं के संगठनों के प्रयासों से सम्भव हुआ है । परन्तु अभी भी उन्हें पुरुषों के समान सम्मान तथा अधिकार प्राप्त नहीं हैं। उनकी स्थिति वर्तमान में पुरुषों से काफी कमजोर है। इसे निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है-
- साक्षरता की दर के आधार पर — स्वैच्छिक संस्थाओं तथा सरकार के प्रयासों के बावजूद भारत में महिलाओं की शिक्षा एवं साक्षरता सन्तोषजनक नहीं है। महिलाओं में साक्षरता की दर अब भी मात्र 54 प्रतिशत है जबकि पुरुषों में यह 76 प्रतिशत है। उच्च शिक्षा तथा प्राविधिक शिक्षा प्राप्त करने में भी महिलाएँ पुरुषों में काफी पीछे हैं। इसका कारण यह है कि माता-पिता लड़कियों की अपेक्षा लड़कों पर अधिक धन व्यय करना चाहते हैं।
- वेतन तथा उच्च पदों के आधार पर – यह भी देखा गया है कि उच्च वेतन वाले पदों पर पहुँचने वाली महिलाओं की संख्या बहुत कम है। महिला के कार्य को पुरुषों की तुलना में कम मूल्यवान माना जाता है। जबकि महिला पुरुषों से अधिक कार्य करती हैं।
- सामाजिक मान्यताएँ तथा परम्पराएँ – पुरुष – प्रधान समाज होने के कारण माता-पिता की यही इच्छा रहती है कि उन्हें पुत्र की प्राप्ति हो। पुत्र के जन्म पर परिवार में खुशियाँ मनाई जाती हैं, जबकि पुत्री जन्म पर परिवार में सामान्य स्थिति बनी रहती है। पुत्री को जन्म लेने से पहले ही नष्ट कर देने के तरीके इसी मानसिकता का परिणाम है। इससे देश का लिंग अनुपात (प्रति हजार लड़कों पर लड़कियों की संख्या) गिरकर 927 रह गया है।
- असमान मजदूरी — यद्यपि विभिन्न अधिनियमों के द्वारा स्त्री-पुरुषों को समान मजदूरी की व्यवस्था की गई है परन्तु व्यवहार में खेत-खलिहानों तथा कल-कारखानों में काम करने वाली महिलाओं को पुरुषों से कम वेतन दिया जाता है।
- राजनीति में आंशिक सहभागिता – राजनीति पर पुरुषों का ही वर्चस्व स्थापित है। महिलाएँ राजनीति में बहुत कम भाग लेती हैं। अत: संसद तथा राज्य के विधानमण्डलों में महिलाओं की संख्या बहुत कम है।
प्रश्न 2 – जाति प्रथा भारतीय लोकतन्त्र के लिए किस प्रकार खतरा है? विवेचना कीजिए।
उत्तर- जाति-व्यवस्था लोकतन्त्र के लिए खतरा
जाति-व्यवस्था भारतीय लोकतन्त्र के लिए खतरा बन गई है। इसे निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है-
- जातिवाद ने छुआछूत जैसी सामाजिक असमानताओं को जन्म दिया है जिन्होंने भारतीय राजनीति को गम्भीर रूप से प्रभावित किया है।
- लोकतन्त्र इस बात पर आधारित है कि शासन सत्ता उन व्यक्तियों के हाथ में हो जो शिक्षित, ईमानदार, चरित्रवान, विवेकशील, परिश्रमी, दूरदर्शी तथा समाज में विशिष्ट सम्मान प्राप्त करने के सुपात्र हों। परन्तु जातिवाद ने लोकतन्त्र के इस स्वरूप को विकृत कर दिया है। वर्तमान में राजनीतिक दलों का निर्माण जाति के आधार पर होने लगा है अथवा राजनीतिक दलों पर जाति- विशेष की छाप लगनी प्रारम्भ हो गई है। अतः राजनीतिक दल, मतदाता तथा उम्मीदवार सभी जातिवाद की जंजीरों में जकड़ गए हैं। अब प्रायः मतदाता अपनी जाति के उम्मीदवार को ही मत देते हैं। इसका यह परिणाम होता है कि योग्य उम्मीदवारों के स्थान पर अयोग्य उम्मीदवार चुनावों में विजयी हो जाते हैं।
- जातिवाद किसी सीमा तक राजनीति के अपराधीकरण के लिए भी उत्तरदायी है क्योंकि जाति के आधार पर मतदाता अपराधी किस्म के उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करते हैं और वे चुनाव में जीत जाते हैं। अनेक अपराधी जो जेलों में बन्द हैं, वे जेल के अन्दर से ही चुनाव जीत गए क्योंकि इनकी जाति के मतदाताओं ने इनके पक्ष में मतदान किया। यह स्वस्थ लोकतन्त्र की मान्यताओं तथा परम्पराओं के विरुद्ध है।
- चुनाव प्रचार में जाति की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। उम्मीदवार की हार-जीत प्रायः जाति पर आधारित प्रचार पर निर्भर करती है।
- मन्त्रिमण्डलों का गठन तथा शासकीय पदों का वितरण सामान्यतया जाति के आधार पर किया जाता है । मन्त्रिमण्डल में जाति के आधार पर ऐसे सदस्यों को सम्मिलित कर लिया जाता है जो इसके लिए अयोग्य होते हैं।
- जातिवाद से प्रेरित राजनीति ने, भारत की राजनीति में उग्रता तथा हिंसा का स्थान ग्रहण कर लिया है।
प्रश्न 3 – भारतीय समाज से छुआछूत को समाप्त करने के लिए कौन-से प्रयास किए गए हैं? विवेचना कीजिए।
उत्तर- छुआछूत को समाप्त करने के प्रयास
भारतीय समाज में जाति प्रथा तथा वर्णव्यवस्था ने समाज का विभाजन किया है। इस विभाजन के कारण उच्च जातियों तथा निम्न जातियों की भावना प्रबल होती गयी तथा समाज में छुआछूत जैसी बुराई व्याप्त हो गयी । छुआछूत को समाप्त करने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए—
- सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं द्वारा — समाज के समाज-सुधारकों तथा महापुरुषों ने छुआछूत जैसी बुराई के विरुद्ध आवाज उठाई तथा इस बुराई के विरुद्ध सामान्य जनता को जाग्रत किया। विभिन्न संस्थाओं; जैसे – ब्रह्मसमाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन आदि के द्वारा इस दिशा में महान प्रयास किए। गांधी जी ने छुआछूत को समाप्त करने के लिए जीवन भर संघर्ष किया। इसके अतिरिक्त डॉ० अम्बेडकर, ज्योतिबा फुले तथा पेरियार जैसे महापुरुषों ने छुआछूत अथवा जातीय विभेद के विरुद्ध आवाज उठाई तथा इसे समाप्त करने के प्रयास किए।
- संवैधानिक व्यवस्थाओं द्वारा – संविधान में ऐसे प्रावधान किए गए हैं कि छुआछूत जैसी बुराइयों को समाप्त करने के साथ इन्हें व्यवहार में परिणत करने वाले व्यक्तियों के लिए दण्ड की भी व्यवस्था की गई है। संविधान के अनुच्छेद 17 द्वारा छुआछूत को समाप्त कर दिया गया। तथा उसे दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है। किसी भी व्यक्ति के साथ तथा अछूतों जैसा व्यवहार करना अथवा उसे अछूत समझकर सार्वजनिक स्थलों, गर्भ तालाबों, होटलों, पार्कों अथवा मनोरंजन के स्थानों के प्रयोग से रोकना तथा कानूनी अपराध है। मौलिक अधिकारों के अध्याय में यह स्पष्ट उल्लेख है कि राज्य किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, रंग, नस्ल, तथा लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।
- सरकार द्वारा – शासन द्वारा सन् 1955 में छुआछूत अपराध अधिनियम पारित किया गया तथा 1976 में एक अन्य कानून पारित किया गया जिसे नागरिक अधिकार सुरक्षा अधिनियम के नाम से जाना जाता है। इसके अन्तर्गत छुआछूत को मानने अथवा प्रचार करने वाले व्यक्ति के लिए दो वर्ष तक का कारावास तथा 1000 रु० तक का जुर्माना हो सकता है तथा उस व्यक्ति को संसद अथवा राज्य विधानमण्डलों के लिए चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य माना जाएगा।
प्रश्न 4 – भारत में महिलाओं की निम्न तथा दयनीय स्थिति के लिए कौन-से कारक उत्तरदायी हैं? विवेचना कीजिए ।
उत्तर- महिलाओं की निम्न तथा दयनीय स्थिति के लिए उत्तरदायी कारक
महिलाओं की निम्न तथा दयनीय स्थिति के लिए उत्तरदायी कारकों को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-
- दहेज प्रथा—भारतीय समाज की वर्तमान में सबसे बड़ी बुराई दहेज प्रथा है। दहेज प्रथा के कारण ही लड़कियों को परिवार में हीन भावना से देखा जाता है। दहेज के कारण वधुओं की हत्या कर दी जाती है अथवा उन पर अमानुषिक अत्याचारं किए जाते हैं, उनका उत्पीड़न किया जाता है। इस प्रथा के कारण कन्या का जन्म अभिशाप बन गया है।
- पर्दा-प्रथा – पर्दा-प्रथा ने महिलाओं के व्यक्तित्व को कुण्ठित कर दिया। उन्हें घर की चहारदीवारी तक सीमित कर दिया। शिक्षा प्राप्त करने के अवसर समाप्त कर दिए। उससे महिलाओं की स्थिति खराब होती चली गई।
- विधवापन – समाज में विधवाओं को असम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। उन्हें अनेक प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों तथा सामाजिक क्रियाकलापों से दूर रखा जाता है जैसे विधवा होना कोई अभिशाप अथवा अपराध हो। अनेक समुदायों में विधवा-विवाह को मान्यता प्रदान नहीं की जाती है।
- सती-प्रथा – सती प्रथा में विधवा को उसके पति के साथ बलपूर्वक जीवित जला दिया जाता था । यह स्त्री जाति पर घोर अन्याय तथा अत्याचार था। परन्तु अब इसे कानून द्वारा समाप्त कर दिया गया है।
- बाल-विवाह – बाल-विवाह भी महिलाओं के विकास के सभी मार्गों को अवरुद्ध कर देता है। पिछड़े तथा अशिक्षित क्षेत्रों में कम उम्र की लड़कियों का विवाह कर दिया जाता है। कुछ रूढ़िवादी लोग बाल-विवाह को कन्याओं संरक्षण के लिए कवच के रूप मानते हैं। अब कानून द्वारा बाल-विवाह को भी प्रतिबन्धित कर दिया गया है।
- बलात्कार तथा शारीरिक शोषण – यह भी देखा गया है कि कम उम्र की लड़कियों के साथ बलात्कार की घटनाएँ निरन्तर बढ़ रही हैं। महिलाओं का शारीरिक शोषण एक आम बात हो गई है। बलात्कार के बाद कन्याओं की हत्या भी कर दी जाती है ।
- भ्रूण हत्या – अनेक स्वार्थी डॉक्टर धन कमाने की लालसा में संकीर्ण मानसिकता वाली महिलाएँ लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही में हत्या करा देती हैं। ये महिलाएँ गर्भ में ही लिंग परीक्षण करा लेती हैं कन्या होने पर भ्रूण हत्या करा देती हैं। यह बहुत ही निन्दनीय अपराध है।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – भारत में लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए क्या उपाय किए गए हैं?
अथवा सरकार द्वारा महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में क्या कदम उठाए गए हैं?
उत्तर- भारत में लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए गए हैं—
- गर्भावस्था में लिंग परीक्षण पर रोक लगाई गई है। लिंग परीक्षण करने पर कठोर कारावास और जुर्माने का प्रावधान है।
- स्थानीय स्वशासन में महिलाओं के आरक्षण की पर्याप्त व्यवस्था की गई है।
- 1954 का विशेष विवाह अधिनियम, 1955 का हिन्दू विवाह अधिनियम तथा 1956 का हिन्दू गोद ग्रहण करने तथा रख-रखाव भत्ता अधिनियम पारित किया गया है।
- 1961 का दहेज निषेध अधिनियम, 1971 का चिकित्सा प्रसव को समाप्त करना अधिनियम तथा समान वेतन और भत्ता अधिनियम 1976 में बनाया गया ।
- 1978 में बाल-विवाह निषेध (संशोधित) अधिनियम पारित करने के उपरान्त 1985 में फौजदारी कानून (दूसरा संशोधन अधिनियम) निर्मित किया गया। 1984 में दहेज निषेध (संशोधन) अधिनियम भी पारित किया गया। 2006 में घरेलू हिंसा के विरुद्ध नारी अधिनियम भी पारित किया गया है।
प्रश्न 2 – भारतीय लोकतन्त्र के विकास में जाति, धर्म एवं लैंगिक मसले किस प्रकार अवरोध हैं?
उत्तर – लोकतन्त्र शासन कला होने के साथ-साथ जीवन की कला तथा दर्शन दोनों ही है। लोकतान्त्रिक परम्पराएँ एवं मान्यताएँ समाज तथा व्यक्ति के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक हैं। परन्तु भारतीय समाज में कुछ ऐसे तत्त्वों का भी अस्तित्व है जो लोकतन्त्र की जड़ों को काट रहे हैं। विधिवेत्ताओं, विषय विशेषज्ञों तथा राजनेताओं ने इसे देखते हुए यह आशंका अभिव्यक्त की है कि यह स्थिति बनी रहती है तो एक दिन लोकतन्त्र का वृक्ष धराशायी हो सकता है। लोकतन्त्र के सफल संचालन में अलिखित तत्त्व बाधक हैं-
- जातिवाद – जाति पर आधारित राजनीति लोकतन्त्र के किले को ध्वस्त कर सकती है। क्योंकि जातिवाद की राजनीति ने लोगों की आँखों पर पट्टी बाँध दी है। उन्हें योग्य तथा चरित्रवान व्यक्ति दिखाई नहीं देता है। बस, अपनी जाति का अयोग्य उम्मीदवार ही दिखाई देता है। भारत के सम्पूर्ण राज्यों की राजनीति जातिवाद के कुप्रभाव से प्रभावित है। जातिवाद के आधार पर ही राजनीतिक दल प्रत्याशी को टिकट देते हैं तथा मतदाता भी जाति के आधार पर ही उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करते हैं। जातिवाद के कारण चुनाव में हिंसा भी उत्पन्न हो जाती है। अतः लोकतन्त्र को सफल बनाने के लिए जाति प्रथा को देश की राजनीति तथा निर्वाचन प्रक्रिया से पूर्णतया दूर रखा जाना चाहिए ।
- साम्प्रदायिकता – साम्प्रदायिकता लोकतन्त्र के लिए बहुत बड़ा खतरा है। लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। निर्वाचन के समय साम्प्रदायिकता अथवा धार्मिक कट्टरता महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। राजनीतिक दल इस स्थिति का लाभ उठाकर धर्म के आधार पर प्रत्याशियों का चयन करते हैं। राजनीति अथवा चुनाव के समय मतदाताओं का ‘सम्प्रदाय’ के आधार पर विभाजन लोकतन्त्र के लिए अच्छा नहीं है।
- लैंगिक असमानता – भारतीय राजनीतिक परिवेश में यह देखा गया है कि महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता नगण्य है। वे राजनीति में कम भाग लेती हैं। मतदान भी वे स्वेच्छा से नहीं करती हैं। वे परिवार के पुरुषों की इच्छाओं के अनुरूप ही मतदान करती हैं, लोकतन्त्र सभी नागरिकों के लिए समानता के सिद्धान्त पर आधारित है, परन्तु भारतीय समाज में स्त्रियों को पुरुषों के समान नहीं समझा जाता है। महिलाओं को पुरुषों के समान स्वतन्त्रता भी प्राप्त नहीं है ।
प्रश्न 3 – भारतीय संविधान द्वारा अल्पसंख्यकों को दिए गए अधिकारों की विवेचना कीजिए ।
उत्तर – लोकतन्त्र बहुमत का शासन है; अतः लोकतन्त्र में बहुसंख्यकों द्वारा निर्णय लिया जाता है । परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि लोकतन्त्र में अल्पसंख्यकों के हितों की उपेक्षा की जाए। भारत के संविधान निर्माताओं ने संविधान में निम्नलिखित प्रकार की व्यवस्था की है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों को भी पूर्ण सुरक्षित रखा जा सके-
- भारतीय संविधान ने बहुत सावधानी से अल्पसंख्यकों से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया है।
- संविधान द्वारा उन्हें समान मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं। परन्तु कुछ मौलिक अधिकार सीधे अनेक हितों से सम्बन्धित हैं।
- अल्पसंख्यकों को धर्म, शिक्षा तथा संस्कृति का अधिकार प्रदान किया गया है। उन्हें अपने धर्म के अनुसार शिक्षण संस्थाएँ खोलने का अधिकार है। इन संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा भी प्रदान की जा सकती है। अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थाओं में राज्य द्वारा किसी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।
- अल्पसंख्यकों को प्रदत्त अधिकार बहुसंख्यक निर्णय से कभी भी छीने नहीं जा सकते हैं।
प्रश्न 4 – भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त महिलाओं के कल्याण के लिए बनाए गए कानूनों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – महिलाओं के कल्याण के लिए बनाए गए प्रमुख कानून निम्नलिखित हैं—’
- 1954 का विशेष विवाह अधिनियम, 1955 का हिन्दू विवाह अधिनियम तथा 1956 का हिन्दू गोद ग्रहण करने तथा रख-रखाव भत्ता अधिनियम पारित किया गया है।
- 1961 का दहेज – निषेध अधिनियम, 1971 का चिकित्सा प्रसव को समाप्त करना अधिनियम तथा समान वेतन और भत्ता अधिनियम 1976 में बनाया गया।
- 1978 में बाल विवाह निषेध (संशोधित) अधिनियम पारित करने के उपरान्त 1985 में फौजदारी कानून ( दूसरा संशोधन अधिनियम) निर्मित किया गया। 1984 में दहेज निषेध (संशोधन) अधिनियम भी पारित किया गया। 2006 में घरेलू हिंसा के विरुद्ध नारी अधिनियम भी पारित किया गया है।
प्रश्न 5 – नारीवादी आन्दोलन किसे कहा जाता है ? उदाहरण के साथ इसकी विशेषताओं तथा प्रभाव की विवेचना कीजिए ।
उत्तर— नारीवादी आन्दोलन
यह आन्दोलन अमेरिका के महिला संगठनों ने आरम्भ किया था जो बाद में विश्व के अनेक राष्ट्रों में फैल गया। इस आन्दोलन में महिलाओं के राजनीतिक तथा वैधानिक स्तर को ऊँचा उठाने तथा उनके लिए शिक्षा एवं रोजगार के अवसर बढ़ाने की माँग की गई। सामाजिक तथा पारिवारिक ढाँचे में परिवर्तन लाने के लिए महिला संगठनों ने महिलाओं के व्यक्तिगत तथा पारिवारिक जीवन में भी समानता की माँग की। इन आन्दोलनों को नारीवादी आन्दोलन की संज्ञा प्रदान की गई।
विशेषताओं तथा प्रभाव के उदाहरण – लैंगिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति तथा इस प्रश्न पर राजनीतिक गोलबन्दी ने सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भूमिका में वृद्धि करने में सहायता की।
- वर्तमान में महिलाओं को सभी व्यवसायों (पेशे); जैसे— वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रबन्धक, प्रशासनिक अधिकारी, प्रोफेस आदि में देखते हैं जबकि पहले इन कार्यों को महिलाओं के लायक नहीं माना जाता था ।
- विश्व के अनेक देशों; जैसे- स्वीडन, नावें । फिनलैण्ड आदि में सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी का स्तर काफी ऊँचा है।
प्रश्न 6- हमारे संविधान-निर्माताओं ने देश के लिए धर्मनिरपेक्ष राज्य का रूप क्यों चुना था ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – संविधान निर्माताओं द्वारा देश के लिए धर्मनिरपेक्ष राज्य का रूप चुनने के निम्नलिखित कारण हैं-
- 19वीं तथा 20वीं शताब्दी में विश्व के अधिकांश राष्ट्रों ने धर्मनिरपेक्ष राज्य का रूप ग्रहण कर लिया था। संविधान निर्माताओं ने उन देशों से प्रेरणा प्राप्त की थी।
- भारत में अनेक धर्मों का अस्तित्व है। अतः संविधान निर्माताओं के समक्ष यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि वे किस धर्म को राज्य के धर्म के रूप में स्वीकार करें। वे उसका सन्तोषजनक उत्तर खोजने में असफल रहे।
- यदि संविधान निर्माता किसी एक धर्म को राज्य का स्तर प्रदान कर देते तो उसी धर्म के मानने वाले व्यक्ति राज्य के प्रति निष्ठा तथा भक्ति रखते तथा दूसरे धर्मों को मानने वाले राज्य को घृणा तथा असम्मान से देखते । अतः संविधान निर्माताओं ने भारत के सभी नागरिकों की भावनाओं का सम्मान करते हुए तथा सभी की निष्ठा तथा सम्मान को प्राप्त करने के उद्देश्य से धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का मॉडल अपनाया।
- साम्प्रदायिकता हमारे देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती रही है। अतः इसे निष्क्रिय करने के उद्देश्य से संविधान निर्माताओं ने धर्मनिरपेक्षता को अपनाया था।
- सभी नागरिकों को समान धार्मिक अधिकार केवल धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में ही संम्भव है। संविधान निर्माता सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समान अधिकार प्रदान करना चाहते थे।
• अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – नगरीकरण से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर – ग्रामीण क्षेत्रों से बाहर आकर लोगों का नगरों से बसना नगरीकरण कहलाता है।
प्रश्न 2 – पेशागत बदलाव से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – पेशागत बदलाव का तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जहाँ लोग परम्परागत पेशों को छोड़कर नया पेशा अपना लेते हैं।
प्रश्न 3 – लैंगिक असमानता से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर – जिस समाज से महिलाओं तथा पुरुषों में असमानता देखने को मिलती है, उस असमानता को लैंगिक असमानता के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 4 – प्राचीन समय में लागू की गई वर्ण-व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- प्राचीन समय में वर्णों के आधार पर समाज को चार भागों में विभाजित किया गया था – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र । वर्ण व्यवस्था में शूद्र को अधिकार प्राप्त नहीं थे। उनकी स्थिति दासों के समान थी ।
प्रश्न 5 – वर्तमान में महिलाओं को पंचायती राज व्यवस्था में कितना आरक्षण प्रदान किया गया है?
उत्तर – वर्तमान में पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थानों को आरक्षित किया गया है।
प्रश्न 6 – वर्तमान में भी महिलाएँ राजनीति में प्रवेश करना क्यों नहीं चाहती हैं?
उत्तर – वर्तमान में भी महिलाएँ राजनीति में इसलिए प्रवेश करना नहीं चाहती हैं क्योंकि राजनीति निरन्तर सिद्धान्तविहीन होती जा रही है तथा दिनों-दिन अनैतिकता बढ़ती जा रही है। महिलाएँ राजनीति में अपने आपको असुरक्षित महसूस करने लगी हैं।
प्रश्न 7 – क्या भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है ?
उत्तर – हाँ, भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है क्योंकि यहाँ सभी नागिरकों को धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार प्रदान किया गया है।
प्रश्न 8- भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं का अनुपात क्या है?
उत्तर – भारत में 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 940 रह गई है।
प्रश्न 9. -भारत में अल्पसंख्यकों की क्या स्थिति है?
उत्तर — भारत में अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों के समान अधिकार प्रदान किए गए हैं तथा उनके हितों की सुरक्षा संविधान करता है।
• बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1 – वर्तमान में भारत में महिलाओं की साक्षरता दर है-
(अ) 50 प्रतिशत
(ब) 65.46 प्रतिशत
(स) 60 प्रतिशत
(द) 65 प्रतिशत ।
उत्तर – ( ब ) 65.46 प्रतिशत ।
प्रश्न 2- भारत के संविधान के किस अनुच्छेद द्वारा छुआछूत को समाप्त किया गया है-
(अ) अनु० 14
(ब) अनु० 17
(स) अनु० 22
(द) अनु० 25.
उत्तर – (ब) अनु० 17.
प्रश्न 3 – महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई-
(अ) सन् 1980 में
(ब) सन् 1990 में
(स) सन् 1992 में
(द) सन् 1995 में।
उत्तर- (स) सन् 1992 में।
प्रश्न 4 – सर्वप्रथम नारीवादी आन्दोलन किसने प्रारम्भ किया था-
(अ) ब्रिटेन
(ब) अमेरिका
(स) भारत
(द) फ्रांस ।
उत्तर – (ब) अमेरिका ।
प्रश्न – 5 भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति-
(अ) श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल
(ब) श्रीमंती शीला दीक्षित
(स) सुषमा स्वराज
(द) सुश्री जयललिता ।
उत्तर- (अ) श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ।