UK 10th Social Science

UK Board 10th Class Social Science – (भूगोल) – Chapter 3 जल संसाधन

UK Board 10th Class Social Science – (भूगोल) – Chapter 3 जल संसाधन

UK Board Solutions for Class 10th Social Science – सामाजिक विज्ञान – (भूगोल) – Chapter 3 जल संसाधन

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न-
(i) नीचे दी गई सूचना के आधार पर स्थितियों को ‘जल की कमी से प्रभावित ‘ या ‘ जल की कमी से अप्रभावित’ में वर्गीकृत कीजिए—
(क) अधिक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र
(ख) अधिक वर्षा और अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र
(ग) अधिक वर्षा वाले परन्तु अत्यधिक प्रदूषित जल क्षेत्र
(घ) कम वर्षा और कम जनसंख्या वाले क्षेत्र ।
उत्तर— (क) अधिक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र – जल की कमी से अप्रभावित ।
(ख) अधिक वर्षा और अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र – जल की कमी से अप्रभावित ।
(ग) अधिक वर्षा वाले परन्तु अत्यधिक प्रदूषित जल क्षेत्र – जल की कमी से अप्रभावित ।
(घ) कम वर्षा और कम जनसंख्या वाले क्षेत्र – जल की कमी से प्रभावित।
(ii) निम्नलिखित में से कौन-सा वक्तव्य बहुउद्देशीय परियोजनाओं के पक्ष में दिया गया तर्क नहीं है-
(क) बहुउद्देशीय परियोजनाएँ उन क्षेत्रों में जल लाती हैं जहाँ जल की कमी होती है
(ख) बहुउद्देशीय परियोजनाएँ जल बहाव को नियन्त्रित करके पर काबू पाती हैं
(ग) बहुउद्देशीय परियोजनाओं से वृहत् स्तर पर विस्थापन होता और आजीविका खत्म होती है
(घ) बहुउद्देशीय परियोजनाएँ हमारे उद्योग और घरों के लिए विद्युत पैदा करती हैं।
उत्तर— (ग) बहुउद्देशीय परियोजनाओं से वृहत् स्तर पर विस्थापन होता है और आजीविका खत्म होती है।
(iii) यहाँ कुछ गलत वक्तव्य दिए गए हैं। इनमें गलती पहचानें और दोबारा लिखें-
(क) शहरों की बढ़ती संख्या, उनकी विशालता और सघन जनसंख्या तथा शहरी जीवन ने जल संसाधनों के सही उपयोग में मदद की है।
(ख) नदियों पर बाँध बनाने और उनको नियन्त्रित करने से उनका प्राकृतिक बहाव और तलछट बहाव प्रभावित नहीं होता ।
(ग) गुजरात में साबरमती बेसिन में सूखे के दौरान शहरी क्षेत्रों में अधिक जल आपूर्ति करने पर भी किसान नहीं भड़के ।
(घ) आज राजस्थान में इन्दिरा गांधी नहर से उपलब्ध पेयजल के बावजूद छत वर्षा जल संग्रहण लोकप्रिय हो रहा है।
उत्तर- (क) शहरों की बढ़ती संख्या, उनकी विशालता और सघन जनसंख्या तथा शहरी जीवन-शैली ने जल संसाधनों के सही उपयोग में अवरोध उत्पन्न किया है। |
(ख) नदियों पर बाँध बनाने और उनको नियन्त्रित करने से उनका प्राकृतिक बहाव और तलछट बहाव प्रभावित होता है।
(ग) गुजरात में साबरमती बेसिन में सूखे के दौरान शहरी क्षेत्रों में अधिक जल आपूर्ति करने पर किसान भड़के ।
(घ) आज राजस्थान में इन्दिरा गांधी नहर से उपलब्ध पेयजल के बावजूद छत वर्षा जल संग्रहण लोकप्रिय नहीं हो रहा है।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
(i) व्याख्या करें कि जल किस प्रकार नवीकरण योग्य संसाधन है ?
उत्तर – जल नवीकरणीय संसाधन है। सतही अपवाह और भौमजल स्रोत से प्राप्त जल का लगातार नवीकरण और पुनर्भरण जलीय चक्र द्वारा होता रहता है। वास्तव में जल जलीय चक्र में गतिशील रहता है जिससे जल नवीकरण सुनिश्चित होता है।
(ii) जल दुर्लभता क्या है और इसके मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर— यह आश्चर्यजनक है कि पृथ्वी का तीन-चौथाई भाग जल से घिरा है और जल नवीकरण योग्य संसाधन होते हुए भी वर्तमान में जल के नदी उचित प्रबन्धन, वितरण तथा जनसंख्या वृद्धि कारण बढ़ती माँग के कारणों से दुर्लभ है। स्वीडन के एक विशेषज्ञ फाल्कन मार्क के अनुसार जल जल दुर्लभता तब होती है जब प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन 1,000 घन मीटर से कम जल उपलब्ध होता है। सामान्यतः जल प्राप्त करने के लिए कठिन बाढ़ परिस्थितियों का सामना करने की दशा को जल दुर्लभता कहा जाता है। महानगरों एवं राजस्थान के मरुस्थल में जल दुर्लभता का अधिक सामना करना पड़ता है। है। |
(iii) बहुउद्देशीय परियोजनाओं से होने वाले लाभ और हानियों की तुलना करें।
उत्तर – भारत में स्वतन्त्रता के बाद शुरू की गई समन्वित जल संसाधन प्रबन्धन उपागम पर आधारित बहुउद्देशीय परियोजनाओं को जवाहरलाल नेहरू गर्व से ‘आधुनिक भारत के तीर्थ और मन्दिर’ थे। उनका मानना था इन परियोजनाओं से कृषि, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, औद्योगीकरण, मनोरंजन और नगरीय अर्थव्यवस्था को समन्वित रूप से विकसित किया जा सकता है।
पिछले कुछ वर्षों में बहुउद्देशीय परियोजनाएँ और बड़े बाँध कई कारणों से हानि और विरोध के विषय भी बन गए हैं। इन परियोजनाओं और बाँधों से नदियों का प्राकृतिक बहाव अवरुद्ध होता है, बाढ़ के कारण मैदानों इनसे वहाँ उपलब्ध वनस्पति व मिट्टी की उपजाऊ परत जल में डूबकर नष्ट हो जाती हैं। स्थानीय समुदाय को विस्थापन का कष्ट उठाना पड़ता है।
अतएव बहुउद्देशीय परियोजनाएँ जहाँ एक ओर अनेक लाभ प्रदान करती हैं वहीं इनसे उपर्युक्त हानियाँ भी उठानी पड़ती हैं।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए-
(i) राजस्थान के अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल संग्रहण किस प्रकार किया जाता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर- राजस्थान के अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में जल का संग्रहण
राजस्थान के अर्द्ध-शुष्क और शुष्क क्षेत्रों में विशेषकर बीकानेर, फलौदी और बाड़मेर में लगभग सभी घरों में पीने के लिए वर्षा के जल को संगृहीत करने की व्यवस्था होती है। यहाँ घरों में भूमिगत टैंक अथवा टाँका’ बनाया जाता है। इसका आकार एक कमरे के बराबर होता है। सामान्यत: यह टाँका 6-1 मीटर गहरा 4-27 मीटर लम्बा और 2-44 मीटर चौड़ा होता है। इस टैंक को मुख्य घर या आँगन में बनाया जाता है तथा घरों की ढलवाँ छतों से पाइप द्वारा जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार छतों से वर्षा का जल टैंक में एकत्र हो जाता है। यह जल अगली वर्षा ऋतु तक संगृहीत किया जाता है तथा जल की कमी वाले दिनों में इस जल का उपयोग किया जाता है। कुछ घरों में तो टाँकों के साथ भूमिगत कमरे भी बनाए जाते हैं क्योंकि जल का यह स्रोत इन कमरों को भी ठण्डा रखता था जिससे ग्रीष्म ऋतु में गर्मी से राहत मिलती है।
(ii) परम्परागत वर्षा जल संग्रहण की पद्धतियों को आधुनिक काल में अपनाकर जल संरक्षण एवं भण्डारण किस प्रकार किया जा रहा है?
उत्तर — वर्षा जल संग्रहण व्यापक रूप से सामाजिक-आर्थिक और पारिस्थितिक स्तर पर उपयोगी है। प्राचीन भारत में उत्कृष्ट जलीय निर्माण के साथ-साथ जल-संग्रहण ढाँचे भी पाए जाते थे। लोगों को वर्षा पद्धति और मृदा के गुणों के बारे में गहरा ज्ञान था। पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों ने ‘गुल’ अथवा ‘कुल’ (पश्चिम बंगाल) जैसी वाहिकाएँ, नदी की धारा का रास्ता बदलकर खेतों में सिंचाई के लिए बनाई हैं। पश्चिमी भारत विशेषकर राजस्थान में पीने का जल एकत्रित करने के लिए ‘छत वर्षा जल संग्रहण’ का आम तरीका था।
वर्तमान में जबकि जल का अभाव जनसंख्या वृद्धि के कारण अधिक होता जा रहा है और यह भी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि भारत में 2025 तक बड़ी मात्रा में जल की कमी अनुभव की जाएगी तब परम्परागत जल संग्रहण पद्धतियों को अपनाकर जल संरक्षण और भण्डारण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। विशेष रूप से छत जल का संग्रह प्रत्येक परिवार के लिए कानून बनाकर अनिवार्य कर देना चाहिए, इसी प्रकार भौमजल स्तर का नवीकरण करने के उद्देश्य से परम्परागत तरीके जिनमें ग्रामों में तालाब, झील, कुओं का विकास किया जाना चाहिए। जिससे जल संरक्षण और संग्रह द्वारा वर्तमान एवं भविष्य के जल संकट पर नियन्त्रण किया जा सके।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – प्राकृतिक संसाधन के रूप में जल का क्या महत्त्व है? इसके उपयोग का वर्णन कीजिए।
उत्तर— जल का महत्त्व
यह जल एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। ऐसा माना जाता है कि जीवन की उत्पत्ति सबसे पहले जल में ही हुई थी। ‘जल ही जीवन है’, कथन बिल्कुल सत्य है। भारत का यह एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है जो वर्तमानकाल में जलस्तर कम हो जाने व प्रदूषित हो जाने के कारण संकटग्रस्त अवस्था में पहुँच चुका है। मानसूनी वर्षा की प्रवृत्तियों ने इसकी प्रकृति को और अधिक संकटपूर्ण बना दिया है। इसका उपयोग पीने एवं घरेलू कार्यों में सर्वाधिक होता है। विभिन्न औद्योगिक उद्देश्यों की पूर्ति में इसका उपयोग किया जाता है। तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए कृषि में जल का उपयोग सिंचाई के लिए दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। तेजी से हो रहा विकास और आधुनिक जीवन जीने के ढंग के कारण नगरों में जल की माँग प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। केवल इतना ही नहीं जल-मल की निरन्तर बढ़ती निकासी और सभी प्रकार की गन्दगी व कूड़े-कचरे के निपटान के लिए जल अपरिहार्य है। जल ही जीवन का आधार है, क्योंकि सिंचाई, जल परिवहन, पनविद्युत उत्पादन, मत्स्य पालन और अनेक दैनिक घरेलू तथा औद्योगिक क्रियाकलापों को पूरा करने के लिए जल की आवश्यकता होती है। जल संसाधनों का शोषण बहुत सोच-समझकर करना चाहिए जिससे जल की सभी क्षेत्रों में आपूर्ति सुनिश्चित हो सके और भविष्य में भी जल संकट का सामना न करना पड़े।
जल संसाधन का उपयोग
जल के विविध उपयोग हैं जिनमें सिंचाई का प्रथम स्थान है। कुल उपयोग किए गए जल का 84% भाग सिंचाई में उपयोग होता है। जल की माँग अन्य कार्यों में भी बढ़ती जा रही है। इससे भविष्य में सिंचाई के लिए जल का प्रतिशत घट जाएगा। प्राचीन काल से ही जल का उपयोग सिंचाई के लिए होता आ रहा है। कावेरी नदी से ग्राण्ड ऐनीकट का दूसरी शताब्दी में निर्माण किया गया था। सन् 1882 में उत्तर प्रदेश की पूर्वी यमुना नहर का निर्माण किया गया। कृषि के अतिरिक्त जल का उपयोग, घरेलू कार्यों और उद्योगों में भी किया जाता है।
प्रश्न 2 – जल संरक्षण क्यों आवश्यक है? जल संरक्षण की चार विधियों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर— जल संसाधनों का संरक्षण
जल एक अमूल्य प्राकृतिक संसाधन है जिसका संरक्षण किया जाना नितान्त आवश्यक है। भारत एक कृषिप्रधान देश है तथा कृषि ही भारत की अर्थव्यवस्था का मूल आधार है। कृषि उत्पादन में वृद्धि तथा उसमें स्थायित्व लाया जाना बहुत ही आवश्यक है। सौभाग्यवश हमारे देश में वर्ष भर फसलें उगाने के लिए अनुकूल जलवायु तो है, परन्तु मानसूनी वर्षा का वितरण बड़ा ही अनियमित, अनिश्चित और असमान है। अतः सूखी-प्यासी धरती को सिंचाई द्वारा ही हरा-भरा बनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त घरेलू कार्यों के लिए भी जल संसाधनों के विकास की अधिक आवश्यकता है। यदि खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि का प्रयास किया जाता है तो उसके साथ-साथ जल संसाधनों में भी वृद्धि करना अपरिहार्य है, क्योंकि सिंचन साधनों में वृद्धि करने से ही खाद्यान्न उत्पादन में अपेक्षित सफलता प्राप्त की जा सकती है। इन सभी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए जल संसाधनों का संरक्षण किया जाना अति आवश्यक है। जल के कुशल प्रबन्धन के लिए उसके संरक्षण की चार विधियाँ निम्नलिखित हो सकती हैं-
  1. जन-जागरण पैदा करना और जल के संरक्षण एवं उसके कुशल प्रबन्धन से सम्बन्धित सभी क्रियाकलापों में जन-सामान्य को सम्मिलित करना।
  2. बागवानी, वाहनों की धुलाई, शौचालयों और वाश बेसिनों में उपचारित जल के उपयोग में कमी लाना ।
  3. जलाशयों को प्रदूषण से बचाना। एक बार प्रदूषित होने पर जलाशय वर्षों बाद पुन: उपयोगी हो पाते हैं।
  4. जल की बरबादी तथा जल प्रदूषण को रोकने के लिए जल की पाइप लाइनों की तत्काल मरम्मत करना।
इस प्रकार जल को किसी भी प्रकार नष्ट होने से बचाना ही जल संरक्षण है। परन्तु जल संरक्षण के लिए सभी क्षेत्रों में एक जैसे उपाय लागू नहीं किए जा सकते हैं। क्षेत्र – विशेष के जल संसाधनों के विकास और प्रबन्धन के लिए क्षेत्र से सम्बन्धित स्थानीय जन सामान्य की भागीदारी सुनिश्चित करना अति आवश्यक है।
प्रश्न 3 – जल संभर विकास क्या है?
उत्तर – नदी एक द्रोणी क्षेत्र है, जिसके जल को नदी और उसकी सहायक नदियाँ बहाकर ले जाती हैं। जल संभर सहायक नदी की द्रोणी है, इसमें एक छोटी नदी भी हो सकती है अथवा नहीं भी, परन्तु जब कभी वर्षा होती है तो वहाँ से होकर जल बहता है और अन्ततः किसी-न-किसी नदी में मिल जाता है। इस प्रकार जल संभर एक भू-आकृतिक इकाई है और इसका उपयोग सुविधानुसार छोटे प्राकृतिक इकाई क्षेत्रों में समन्वित विकास के लिए किया जा सकता है। जल संभर विकास एक समग्र विकास की सोच है। इसमें मृदा और आर्द्रता का संरक्षण, जल संग्रहण, वृक्षारोपण, उद्यान कृषि, चरागाह विकास और सामुदायिक भूमि संसाधनों का तलोच्चन सम्बन्धी कार्यक्रम सम्मिलित हैं। इन सभी कार्यक्रमों में भूमि की क्षमता तथा स्थानीय लोगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखना होता है। इसमें स्थानीय लोगों की सहभागिता की आवश्यकता होती है। इसके लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने आशाजनक परिणाम प्राप्त करने के लिए कई योजनाएँ अपने हाथ में ली हैं।
वास्तव में, उपलब्ध जल सीमित है। यह समुदाय की सम्पदा है। अतः इसका संरक्षण करना प्रत्येक देशवासी का परम कर्त्तव्य है। जल संभर भी जल के संरक्षण की एक तकनीक है। किसी प्रमुख नदी के द्रोणी क्षेत्र में अनेक सहायक नदियाँ होती हैं परिभ्रमण उपरान्त सहायक नदियों का जल प्रमुख नदी में मिल जाता है। इन सहायक नदियों का द्रोणी क्षेत्र जल संभर कहलाता है। यह क्षेत्र पर्याप्त नमी वाला होता है तथा इसका समन्वित विकास किया जा सकता है। यहाँ मृदा एवं आर्द्रता का संरक्षण, जल का संग्रहण, वृक्षारोपण, उद्यान, कृषि, चरागाहों का विकास और अन्य फसलों का उत्पादन किया जा सकता है। इस प्रकार यह समन्वित क्षेत्रीय विकास की आयोजना है। इससे भूमि की क्षमता में वृद्धि होती है तथा स्थानीय लोगों की आवश्यकताओं की सम्पूर्ति होती है।
प्रश्न 4 – वर्षाजल संग्रहण क्या है?
उत्तर— जल एक राष्ट्रीय सम्पदा है। जल संरक्षण की विभिन्न तकनीकों में वर्षाजल का संग्रहण सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तकनीक है। इस प्रकार वर्षाजल संग्रहण भूमिगत जल क्षमता को बढ़ाने की एक तकनीक है। इसमें वर्षा के जल को रोकने और एकत्रण के लिए विशेष ढाँचों; जैसे—कुएँ, गड्ढे, बंधिका आदि का निर्माण करना सम्मिलित है। इस विधि द्वारा न केवल जल का संग्रहण होता है, अपितु जल को भूमिगत होने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा हो जाती हैं। भूमिगत जलाशयों में कृत्रिम पुनर्भरण तकनीक को अपनाकर वर्षाजल को एकत्र किया जाता है। इससे घर-परिवार की घरेलू जल आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है। वर्षाजल संग्रहण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं—
  1. जल की बढ़ती माँग को पूरा करना,
  2. भू-पृष्ठ पर बहते जल की मात्रा को कम करना,
  3. सड़कों एवं गलियों तथा सार्वजनिक रास्तों को जल भराव से रोकना,
  4. भौम जल को एकत्र करने की क्षमता तथा जल स्तर को बढ़ाना,
  5. भौम जल प्रदूषण को घटाना,
  6. भौम जल की गुणवत्ता में वृद्धि करना तथा
  7. ग्रीष्म ऋतु और लम्बी शुष्क अवधि में जल की घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करना ।
भौम जल के पुनर्भरण के लिए कम लागत वाली कई तकनीकें हैं। इनमें जल को रिसने में सहायक गड्ढों का निर्माण, खेतों के चारों ओर गहरी नालियाँ खोदना, गड्ढों को पुनः भरना और छोटी-छोटी नदिकाओं पर बंधिकाएँ बनाना सम्मिलित हैं। छत के पानी को टंकियों अथवा भूमि के नीचे आसानी से एकत्र किया जा सकता है ( देखिए चित्र)।
प्रश्न 5 – लोगों को जल संचय करने की आवश्यकता क्यों पड़ी? जल संचय के किन्हीं तीन प्रकारों की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – भारत में वर्षा कुछ ही महीनों तक सीमित है (वर्षा ऋतु 15 जून से 15 सितम्बर तक)। वर्षा की यह मात्रा अनिश्चित, अनियमित एवं असमान वितरित होती है। मानसूनी वर्षा की विशेषता होती है कि कभी वह शीघ्र (समय से पहले) आरम्भ हो जाती है तथा कभी देर से और कभी रुक-रुक कर अर्थात् वर्षा होने की अवधि में कभी-कभी अन्तराल अधिक हो जाता है। भारत के कई क्षेत्रों में भीषण गर्मी पड़ती है तथा ऐसे गर्म क्षेत्रों में जल का प्रायः अभाव हो जाता है। इसी कारण इन क्षेत्रों में जल का विभिन्न तरीकों से संचय किया जाना आवश्यक होता है। तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या के लिए भोजन की बढ़ती माँग, व्यापारिक व नकदी फसलों का उगाना, बढ़ते हुए नगरीकरण और लोगों के बढ़ते जीवन-स्तर के फलस्वरूप जल की कमी निरन्तर बढ़ती जा रही है। भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन के कारण भौम जल का स्तर बहुत नीचे पहुँच गया है। इन सभी कारणों से जल संचय करने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है तथा इस ओर लोगों का ध्यान गया है।
जल संचय के तीन प्रकार निम्नलिखित हैं-
  1. जल संचय भारत में तालाबों, झीलों, बाँधों तथा कुओं आदि के माध्यम से किया जा सकता है। तालाब, कुएँ, झीलों और बाँधों के माध्यम से जल को संग्रह करके इस जल को कई प्रकार से उपयोग में लाया जाता है।
  2. वर्षा-जल का भी संचय किया जा सकता है। यह जल गड्ढे खोदकर और तालाब एवं झीलों में संगृहीत किया जा सकता है।
  3. नदियों का अधिकांश जल व्यर्थ में ही बह जाता है। इन नदियों पर बाँध बनाकर उसके जल को विभिन्न प्रकार के उपयोग में लाया जा सकता है।
प्रश्न 6 – हमारे देश में जल का अभाव प्रतिदिन क्यों बढ़ता जा रहा है? चार कारण दीजिए।
अथवा भारत में घटते जल स्तर के मुख्य कारण बताइए ।
उत्तर— यद्यपि भारत में पर्याप्त जल संसाधन विद्यमान हैं, परन्तु उनकी उचित देखभाल न हो पाने के कारण जल का अधिकांश भाग प्रदूषित होता जा रहा है। अधिकांश नदियाँ प्रदूषित हो चुकी हैं तथा प्रदूषण की यह मात्रा दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। इसके साथ ही मानसूनी वर्षा तीव्र एवं मूसलाधार रूप में होती है जिससे बाढ़ आ जाती है तथा वर्षा का जल बेकार ही नष्ट हो जाता है। कभी-कभी वर्षा न होने से सूखे की स्थिति आ जाती है। इस प्रकार जल का अभाव निरन्तर बढ़ता ही जा रहा जिसके लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी रहे हैं-
  1. भारत में जल का अधिकांश भाग (विशेष रूप से नदियाँ) प्रदूषित हो चुका है।
  2. भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा अनियमित एवं अनिश्चित होती है तथा इसका वितरण भी असमान है। यह वर्षा भी मात्र तीन महीनों में ही होती है। किसी वर्ष वर्षा अधिक होने से बाढ़ आ जाती है तथा वर्षा की कमी से सूखा (अकाल ) पड़ जाता है। अतः दोनों ही स्थितियों में जल का अभाव बना रहता है।
  3. यद्यपि देश में वर्षा पर्याप्त मात्रा में होती है, परन्तु वर्षाजल का संग्रह नहीं किया जाता है। वर्षा का जल नालों के माध्यम से नदियों में तथा नदियाँ सागरों में मिल जाती हैं तथा यह जल व्यर्थ ही बह जाता है। इस जल का मात्र 8.5% भाग ही उपयोग में लाया जा सका है।
  4. देश में भूमिगत जल का स्तर सर्वत्र समान नहीं है तथा न ही यह जल सभी स्थानों पर पीने योग्य है। इसके साथ इस जल का स्तर भी नीचे गिरता जा रहा है जिस कारण इस जल को प्राप्त करने में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अत: जनसंख्या के बड़े भाग को शुद्ध पेयजल उपलब्ध ही नहीं हो पाता है ।
  5. भारत में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ती जा रही है जिसके लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करने में अनेक कठिनाइयाँ उपस्थित हो रही हैं।
  6. भारत की लगभग 70% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। अनेक प्रयासों के उपरान्त भी सभी नागरिकों को शुद्ध पेयजल सुलभ नहीं हो सका है। आज भी बहुत-से ग्रामवासियों को पेयजल प्राप्ति हेतु कई किमी पैदल चलना पड़ता है। लम्बी शुष्कता के चलते अधिकांश जल स्रोत सूख जाते हैं तथा जल का अभाव बना रहता है।
प्रश्न 7 – जल प्रदूषण के कारण क्या हैं? इसे दूर करने के उपाय सुझाइए । 
अथवा जल प्रदूषण क्या है? इसे दूर करने के उपाय सुझाइए । 
उत्तर- जल प्रदूषण
जल प्रदूषण का अर्थ – जल में अनेक प्रकार के खनिज, कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थ तथा हानिकारक पदार्थ घुले होने से जल प्रदूषित हो जाता है। यह प्रदूषित जल जीवों में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न कर सकता है। जल प्रदूषक विभिन्न रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु, वाइरस, . कीटाणुनाशक पदार्थ, अपतृणनाशक पदार्थ, वाहित मल, रासायनिक खादें, अन्य कार्बनिक पदार्थ आदि अनेक पदार्थ हो सकते हैं।
जल प्रदूषण के स्रोत – जल प्रदूषण के निम्नलिखित विभिन्न हो सकते हैं-
  1. कृषि में प्रयोग किए गए कीटाणुनाशक, अपतृणनाशक, विभिन्न रासायनिक खादें ।
  2. सीसा, पारा आदि के अकार्बनिक तथा कार्बनिक पदार्थ, जो औद्योगिक संस्थानों से निकलते हैं।
  3. भूमि पर गिरने वाला या तेल वाहकों द्वारा ले जाया जाने वाला तेल तथा अनेक प्रकार के वाष्पीकृत होने वाले पदार्थ जैसे पेट्रोल, एथिलीन आदि वायुमण्डल से द्रवित होकर जल में आ जाते हैं।
  4. रेडियोधर्मी पदार्थ जो परमाणु विस्फोटों आदि से उत्पन्न होते हैं और जल-प्रवाह में पहुँचते हैं।
  5. वाहित मल जो मनुष्यों द्वारा जल प्रवाह में मिला दिया जाता है।
जल प्रदूषण के प्रभाव-
  1. जल प्रदूषण के कारण अनेक प्रकार की बीमारियाँ महामारी के रूप में फैल सकती हैं। हैजा, टाइफॉइड, पेचिश, पोलियो आदि रोगों के रोगाणु प्रदूषित जल द्वारा ही शरीरों में पहुँचते हैं।
  2. नदी, तालाब आदि का प्रदूषित जल पशुओं, मवेशी आदि में भयंकर बीमारियाँ उत्पन्न करता है।
  3. जल में रहने वाले जन्तु व पौधे प्रदूषित जल से नष्ट हो जाते हैं या उनमें अनेक प्रकार के रोग लग जाते हैं। विषैले पदार्थों के कण जल में नीचे बैठ जाते हैं।
  4. प्रदूषित जल पौधों में भी अनेक प्रकार के कीट तथा जीवाणु रोग उत्पन्न कर सकता है। कुछ विषैले पदार्थ पौधे के माध्यम से मनुष्य तथा अन्य जीवों के शरीर में पहुँचकर हानि पहुँचाते हैं।
  5. जलीय जीवों के नष्ट होने से खाद्य-पदार्थों की हानि होती है। ऑक्सीजन की कमी के कारण मछलियाँ बड़ी संख्या में मर जाती हैं।
जल प्रदूषण की रोकथाम के उपाय – जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं—
  1. कूड़ा-करकट, सड़े-गले पदार्थ एवं मल-मूत्र को शहर से बाहर गड्ढा खोदकर दबा देना चाहिए।
  2. सीवर का जल पहले नगर से बाहर ले जाकर दोषरहित करना चाहिए। बाद में इसे नदियों में छोड़ना चाहिए।
  3. विभिन्न कारखानों आदि से निकले जल तथा अपशिष्ट पदार्थों आदि का शुद्धीकरण आवश्यक है।
  4. विभिन्न प्रदूषकों को समुद्री जल में मिलने से रोका जाना चाहिए।
  5. समुद्र के जल में परमाणु विस्फोट नहीं किया जाना चाहिए।
  6. झीलों, तालाबों आदि में शैवाल जैसे जलीय पौधे उगाए जाने चाहिए, ताकि जल को शुद्ध रखा जा सके।
  7. मृत जीवों, जले हुए जीवों की राख आदि को नदियों में नहीं फेंकना चाहिए।
  8. खेतों में तथा जल में कीटाणुनाशक दवाओं का कम-से-कम प्रयोग किया जाना चाहिए ।
  9. स्वच्छ जल के दुरुपयोग को रोका जाना चाहिए।
  10. ग्राम स्तर से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक समितियों का गठन किया जाना चाहिए।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – बहुउद्देशीय नदी-परियोजनाएँ क्या हैं? इनके क्या लाभ हैं?
उत्तर— देश के चहुँमुखी एवं सर्वांगीण विकास में बहुउद्देशीय नदी-घाटी परियोजनाओं का सर्वोपरि योगदान होने के कारण भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने इन्हें आधुनिक भारत के तीर्थ और मन्दिर कहा था। बहु उद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ भारत के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास की मानदण्ड हैं। इन परियोजनाओं से एक साथ कई उद्देश्यों की पूर्ति होती है, जिसका विवरण निम्नलिखित है-
(1) पनबिजली का उत्पादन करना,
(2) बाढ़ पर नियन्त्रण करना,
(3) सिंचन कार्यों हेतु नहरों का निर्माण एवं विकास करना,
(4) मत्स्य पालन का विकास करना,
(5) भूमि-क्षरण पर प्रभावी नियन्त्रण करना,
(6) उद्योग-धन्धों का विकास करना,
(7) जल परिवहन का विकास करना,
(8) दलदली भूमि को सुखाना तथा उसको मानव उपयोग हेतु तैयार करना,
(9) शुद्ध पेयजल की उत्तम व्यवस्था करना।
प्रश्न 2 – भारत में मानवीय उपयोग के लिए जल की उपलब्धता अपर्याप्त क्यों है?
उत्तर— भारत में मानवीय उपयोग के लिए जल की उपलब्धता अपर्याप्त होने के निम्नलिखित कारण उत्तरदायी रहे हैं-
  1. भारत में मानसूनी वर्षा अनियमित एवं अनिश्चित होती है। किसी वर्ष वर्षा अधिक होने से बाढ़ आ जाती है तथा वर्षा की कमी से सूखा (अकाल ) पड़ जाता है।
  2. भूमिगत जल की उपलब्धता वर्षा के ऊपर निर्भर करती है। देश में वर्षा की उपलब्धता तथा उसका वितरण असमान है। वर्षा की अवधि भी 15 जून से 15 सितम्बर तक अर्थात् वर्ष के तीन महीनों तक ही सीमित है। इस प्रकार दोनों ही परिस्थितियों में देश में जल का संकट बना रहता है।
  3. वर्षा का बहुत-सा जल नदियों और नालों के द्वारा बहकर व्यर्थ ही समुद्रों में चला जाता है, जो मानव के किसी काम में नहीं आता है।
  4. भारत में उपलब्ध जल प्रबन्धन की स्पष्ट नीति नहीं है और न ही जल प्रबन्धन के प्रति गम्भीर प्रयास किए गए हैं।
प्रश्न 3 – भारत में घटते जल स्तर के मुख्य कारण बताइए।
उत्तर— यद्यपि भारत में पर्याप्त जल संसाधन विद्यमान हैं, परन्तु उनकी उचित देखभाल न हो पाने के कारण जल का अधिकांश भाग प्रदूषित होता जा रहा है। अधिकांश नदियाँ प्रदूषित चुकी हैं तथा प्रदूषण की यह मात्रा दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। इसके साथ ही मानसूनी वर्षा तीव्र एवं मूसलाधार रूप में होती है जिससे बाढ़ आ जाती है तथा वर्षा का जल बेकार ही नष्ट हो जाता है। कभी-कभी वर्षा न होने से सूखे की स्थिति आ जाती है। इस प्रकार जल का अभाव निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है जिसके लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी रहे हैं-
  1. भारत में जल का अधिकांश भाग (विशेष रूप से नदियाँ) प्रदूषित हो चुका है।
  2. भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा अनियमित एवं अनिश्चित होती है तथा इसका वितरण भी असमान है। यह वर्षा भी मात्र तीन महीनों में ही होती है। किसी वर्ष वर्षा अधिक होने से बाढ़ आ जाती है तथा किसी वर्ष वर्षा की कमी से सूखा (अकाल) पड़ जाता है। अतः दोनों ही स्थितियों में जल का अभाव बना रहता है।
  3. यद्यपि देश में वर्षा पर्याप्त मात्रा में होती है, परन्तु वर्षाजल का संग्रह नहीं किया जाता है। वर्षा का जल नालों के माध्यम से नदियों में तथा नदियाँ सागरों में मिल जाती हैं तथा यह जल व्यर्थ ही बह जाता है। इस जल का मात्र 8.5% भाग ही उपयोग में लाया जा सका है।
  4. देश में भूमिगत जल का स्तर सर्वत्र समान नहीं है तथा न ही यह जल सभी स्थानों पर पीने योग्य है। इसके साथ इस जल का स्तर भी नीचे गिरता जा रहा है जिस कारण इस जल को प्राप्त करने में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अतः जनसंख्या के बड़े भाग को शुद्ध पेयजल उपलब्ध ही नहीं हो पाता है।
  5. भारत में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ती जा रही है जिसके लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करने में अनेक कठिनाइयाँ उपस्थित हो रही हैं।
  6. भारत की लगभग 70% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। अनेक प्रयासों के उपरान्त भी सभी नागरिकों को शुद्ध पेयजल सुलभ नहीं हो सका है। आज भी बहुत-से ग्रामवासियों को पेयजल प्राप्ति हेतु कई किमी पैदल चलना पड़ता है। लम्बी शुष्कता के चलते अधिकांश जल स्रोत सूख जाते हैं तथा जल का अभाव बना रहता है।
• अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – वर्षाजल संग्रहण का अर्थ बताइए । जल के कुशल प्रबन्धन के लिए ध्यान में रखे जाने वाले किन्हीं दो बिन्दुओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर — वर्षाजल संग्रहण भूमिगत जल की क्षमता को बढ़ाने की एक तकनीक है। इसमें वर्षाजल को रोकने और एकत्र करने के लिए विशेष ढाँचों; जैसे—कुएँ, गड्ढे, बाँध आदि का निर्माण किया जाता है। इससे न केवल जल का संग्रहण होता है बल्कि जल को भूमिगत होने के लिए . अनुकूल परिस्थितियाँ भी प्राप्त होती हैं। जल के कुशल प्रबन्धन के लिए दो बिन्दु निम्नलिखित हैं—
(1) जल का विनाश नहीं होना चाहिए ।
(2) जल, प्रदूषण से मुक्त रहे ।
प्रश्न 2 – जल संसाधन संरक्षण के कोई दो उपाय बताइए ।
उत्तर – उपलब्ध जल संसाधन सीमित है तथा उसका वितरण भी असमान है। अत: उसका संरक्षण किया जाना नितान्त आवश्यक है। जल संरक्षण के दो उपाय निम्नलिखित हो सकते हैं-
(1) जल संग्रहण के लिए जलाशयों, पोखरों व तालाबों का अधिकाधिक निर्माण किया जाना चाहिए।
(2) अधिक जल वाले नदी बेसिन से कमी वाले नदी बेसिन में जल का स्थानान्तरण किया जाना चाहिए।
प्रश्न 3 – वर्षाजल संग्रहण के किन्हीं दो उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर — वर्षाजल संग्रहण के दो उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) जल की बढ़ती माँग को पूरा करना, तथा
(2) भूतल पर अनावश्यक बहते जल की मात्रा को कम करना ।
प्रश्न 4 – देश के किस राज्य में वर्षाजल संग्रहण को अनिवार्य किया गया है?
उत्तर – भारत के तमिलनाडु राज्य के प्रत्येक घर में छत वर्षाजल संग्रहण ढाँचों का बनाना आवश्यक कर दिया गया है। इस सन्दर्भ में दोषी व्यक्तियों पर कानूनी कार्यवाही भी की जाती है।
प्रश्न 5 – टाँका से क्या अभिप्राय है? –
उत्तर- टाँका अथवा टैंक वर्षाजल संग्रहण का एक पात्र है जो राजस्थान के अर्द्ध-शुष्क और शुष्क क्षेत्रों में विशेषकर फलौदी, बीकानेर और बाड़मेर जिलों में घर के अन्दर या आँगन में बड़े कमरे के आकार में बनाया जाता है।
प्रश्न 6 – नर्मदा एवं टिहरी बाँध आन्दोलन का क्या कारण है?
उत्तर— नर्मदा एवं टिहरी बाँध आन्दोलन का मुख्य कारण इन परियोजनाओं के निर्माण से स्थानीय लोगों के विस्थापन से होने वाली कठिनाई तथा क्षेत्रीय वनस्पति और जीव-जन्तुओं का नष्ट होना है।
प्रश्न 7 – जल पुनर्भरण के दो माध्यमों के नाम लिखिए।
उत्तर – (1) हैण्डपम्प द्वारा पुनर्भरण, (2) परित्यक्त कुओं द्वारा पुनर्भरण।
प्रश्न 8 – हिमालय से निकलने वाली नदियाँ सदानीरा क्यों हैं?
उत्तर – हिमालय से पिघलने वाली बर्फ के कारण इन नदियों में सदा नीर (जल) का प्रवाह बना रहता है; अत: इन्हें सदानीरा नदियाँ कहा जाता है।
प्रश्न 9 – सरदार सरोवर बाँध किस राज्य में है?
उत्तर— गुजरात।
प्रश्न 10 – गुजरात राज्य में सरदार सरोवर बाँध किस नदी पर बना है?
उत्तर – गुजरात राज्य में सरदार सरोवर बाँध नर्मदा नदी पर बना है।
प्रश्न 11—’गुल’ अथवा ‘कुल’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर— ‘गुल’ अथवा ‘कुल’ जल वाहिकाएँ हैं जो नदी की धारा बदलकर खेतों में सिंचाई के लिए बनाई जाती हैं। ये पश्चिमी हिमालय प्रदेश में मिलती हैं।
प्रश्न 12 – भारत में सिंचाई के प्रमुख साधन कौन-कौन से हैं? अथवा भारत में सिंचाई के दो मुख्य साधनों का नामोल्लेख कीजिए ।
उत्तर— भारत में सिंचाई के प्रमुख साधन हैं— कुएँ, नहरें, तालाब आदि ।
प्रश्न 13 – किसने बाँधों को ‘आधुनिक भारत के मन्दिर’ कहा था? 
उत्तर— पं० जवाहरलाल नेहरू ने।
• बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1 – उत्तराखण्ड राज्य में ‘टिहरी बाँध परियोजना’ किस नदी पर बनी है—
(अ) गंगा
(ब) अलकनन्दा
(स) मन्दाकिनी
(द) भागीरथी ।
उत्तर- (द) भागीरथी ।
प्रश्न 2 – निम्नलिखित में से कौन-सी नदी बंगाल की खाड़ी में गिरती है-
(अ) नर्मदा
(ब) कावेरी
(स) ताप्ती
(द) लूनी ।
उत्तर- (ब) कावेरी ।
प्रश्न 3 – राणा प्रताप सागर बाँध निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित है-
(अ) सौर ऊर्जा
(ब) जलविद्युत
(स) पवन ऊर्जा
(द) परमाणु ऊर्जा ।
उत्तर- (ब) जलविद्युत ।
प्रश्न 4 – सतलज नदी पर कौन-सा बाँध बनाया गया है-
(अ) तुंगभद्रा बाँध
(ब) कालागढ़ बाँध
(स) भाखड़ा नांगल बाँध
(द) रिहन्द बाँध |
उत्तर- (स) भाखड़ा नांगल बाँध ।
प्रश्न 5 – महानदी पर हीराकुड बाँध किस राज्य में स्थित है-
(अ) आन्ध्र प्रदेश
(ब) झारखण्ड
(स) बिहार
(द) ओडिशा।
उत्तर- (द) ओडिशा ।
प्रश्न 6 – हिमालय पर्वतीय प्रदेश के निम्नलिखित बाँधों में से कौन-सा पाकिस्तान में है-
(अ) मांगला बाँध
(ब) सलाल बाँध
(स) कालागढ़ बाँध
(द) उकाई बाँध ।
उत्तर- (ब) सलाल बाँध ।
प्रश्न 7 – रिहन्द बाँध परियोजना का सम्बन्ध निम्नलिखित में से किस राज्य से है-
(अ) उत्तराखण्ड से
(ब) छत्तीसगढ़ से
(स) उत्तर प्रदेश से
(द) झारखण्ड से।
उत्तर- (स) उत्तर प्रदेश से ।
प्रश्न 8 – जल संभर विकास क्या है-
(अ) विस्तृत नदी द्रोणी क्षेत्र
(ब) दोआब क्षेत्र
(स) डेल्टा क्षेत्र
(द) बेसिन क्षेत्र ।
उत्तर- (अ) विस्तृत नदी द्रोणी क्षेत्र ।

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