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UK Board 9 Class Hindi Chapter 7 – मेरे बचपन के दिन (गद्य-खण्ड)

UK Board 9 Class Hindi Chapter 7 – मेरे बचपन के दिन (गद्य-खण्ड)

UK Board Solutions for Class 9th Hindi Chapter 7 – मेरे बचपन के दिन (क्षितिज : गद्य-खण्ड)

I. लेखिका – परिचय
प्रश्न – महादेवी वर्मा का परिचय निम्नलिखित शीर्षकों में दीजिए-
जीवन-परिचय, उपलब्धियाँ, रचनाएँ, साहित्यिक विशेषताएँ और भाषा-शैली |
उत्तर- महादेवी वर्मा
हिन्दी – साहित्य के छायावादी युग के साहित्यकर्मियों में महादेवी वर्मा का स्थान अविस्मरणीय है। उनकी वेदना भरी कविताओं के कारण • उन्हें ‘आधुनिक युग की मीरा’ कहा जाता है ।
जीवन-परिचय- महादेवी वर्मा का जन्म सन् 1907 ई० में उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद नगर में हुआ था। प्रयाग विश्वविद्यालय से उन्होंने संस्कृत में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। बाद में वे ‘प्रयाग महिला विद्यापीठ’ की प्राचार्या नियुक्त हुईं। उन्होंने बाद में वहीं पर कुलपति पद को भी सुशोभित किया।
महादेवीजी सन् 1929 ई० में बौद्ध-धर्म में दीक्षा लेकर बौद्ध-भिक्षुणी बनना चाहती थीं, किन्तु गांधीजी के सम्पर्क में आने के बाद उनकी प्रेरणा से वे समाज-सेवा के कार्य में लग गईं। शिक्षा तथा साहित्य के क्षेत्र में उनकी सेवाएँ अभूतपूर्व थीं। सन् 1956 ई० में उन्होंने ‘साहित्य अकादमी’ की स्थापना के प्रयास में अकथनीय योगदान दिया। सन् 1987 ई० में उनका देहावसान हो गया।
उपलब्धियाँ- महादेवी वर्मा को विक्रम, दिल्ली तथा कुमाऊँ विश्वविद्यालय ने डी० लिट्० की मानद उपाधि से सम्मानित किया । भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया। उनके ‘यामा’ काव्य के लिए उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी साहित्यिक सेवाओं को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें विधान परिषद् का सदस्य भी मनोनीत किया था।
रचनाएँ – महादेवीजी की प्रमुख काव्य रचनाएँ इस प्रकार हैं-
(1) काव्य-कृतियाँ- नीरजा, रश्मि, नीहार, सान्ध्यगीत, दीपशिखा, यामा।
(2) गद्य रचनाएँ – अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, मेरा परिवार, पथ के साथी, श्रृंखला की कड़ियाँ ।
साहित्यिक विशेषताएँ – महादेवीजी के काव्य और गद्यपरक साहित्य में मानवतावादी धारा का प्रवाह सर्वत्र दृष्टिगोचर है। वे करुणा और भावना की देवी हैं। उनके साहित्य में जहाँ दीन-हीन मानवता का भावनामय अंकन है, वहीं निरीह पशु-पक्षियों का भी हृदयस्पर्शी एवं रोचक चित्रण हुआ है। पशु-पक्षियों के साथ मानवीय सम्बन्धों की अभिव्यक्ति अतुलनीय है। रेखाचित्रों में उनका गद्य-कौशल देखते ही बनता है। उनके ‘नीलकण्ठ मोर’, ‘गौरा गाय’, ‘सोना हिरनी’ आदि रेखाचित्र अपने में अनोखे हैं। ये पशु-पक्षी भी अपने सजीव व्यक्तित्व से पाठकों को मोहित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। महादेवीजी की कोमल लेखनी का संस्पर्श प्राप्त करके ये प्राणी भी मनुष्यों की तरह बोलने लगते हैं, रोते हैं, हँसते हैं। उनका गद्य वैचारिक गम्भीरता से युक्त है, फिर भी उसमें काव्य-सा लालित्य है। यह विशेषता महादेवीजी को अपने समकालीन साहित्यकारों में एक विशेष स्थान दिलाती है।
भाषा-शैली – महादेवीजी की गद्य-भाषा अपने आप में अनूठी है। यह कहना सही है कि हजारों लेखों में महादेवीजी का गद्य अलग से पहचाना जा सकता है। उनकी भाषा में संस्कृतनिष्ठता सर्वत्र विद्यमान है । वाक्य-रचना लम्बी और घुमावदार है। पाठक उनकी शैली में मधुरता, अनुभूति की तरलता, मार्मिकता और सुन्दरता के एक-साथ दर्शन करता है। भावमयता के स्तर पर महादेवीजी के गद्य की भाषा-शैली का कोई जोड़ नहीं ।
II. अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न – निम्नलिखित गद्यावतरणों से सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर दीजिए—
1. अपने परिवार ………….. वातावरण नहीं था।
मेरी माता जबलपुर से आईं, तब वे अपने साथ हिन्दी लाईं। वे पूजा-पाठ भी बहुत करती थीं। पहले-पहल उन्होंने मुझको ‘पंचतंत्र’ पढ़ना सिखाया।
प्रश्न –
(क) पाठ तथा लेखिका का नाम लिखिए।
(ख) ‘अपने परिवार में मैं कई पीढ़ियों के बाद उत्पन्न हुई।’ इस कथन से लेखिका का क्या अभिप्राय है?
(ग) महादेवी वर्मा के जन्म के समय समाज में लड़कियों की दशा कैसी थी ?
(घ) महादेवी वर्मा का पालन-पोषण अन्य लड़कियों से भिन्न कैसे और क्यों हुआ?
(ङ) महादेवी वर्मा के हिन्दी सीखने के पीछे किसकी प्रेरणा थी?
उत्तर :
(क) पाठ—मेरे बचपन के दिन। लेखिका – महादेवी वर्मा।
(ख) महादेवी वर्मा अपने परिवार में कई पीढ़ियों के बाद किसी लड़की के रूप में उत्पन्न हुई थीं। ऐसा कहा जाता है कि इससे पूर्व परिवार में लड़कियों को जन्म लेते ही मार दिया जाता था। इस प्रकार अपने कुल-परिवार में दो सौ वर्षों बाद महादेवी वर्मा के रूप में कन्या का विधिवत् पालन-पोषण हुआ। यह सब उनके बाबा के दृढ़-निश्चय से सम्भव हुआ। कई पीढ़ियों के बाद महादेवी वर्मा के बाबा ने अपनी कुल देवी दुर्गा देवी की बहुत आराधना की, तब कहीं जाकर कन्या के रूप में महादेवी वर्मा ने जन्म लिया।
(ग) महादेवी वर्मा के जन्म के समय लड़कियों के प्रति समाज का दृष्टिकोण अच्छा न था। उन्हें परिवार के लिए एक बोझ समझा जाता था। यहाँ तक कि जन्म लेते ही उन्हें मौत की नींद सुला दिया जाता था। यदि कोई कन्या जीवित भी बच जाती तो उसके साथ भेदभाव का व्यवहार किया जाता था। लड़कों के सामने लड़कियों को किसी प्रकार का कोई सुख उपलब्ध नहीं था । कष्टमय जीवन व्यतीत करने के लिए अभिशप्त थीं। उनकी दशा चिन्तनीय थी।
(घ) महादेवी वर्मा के जन्म के समय समाज में लड़कियों की दशा अच्छी नहीं थी। उनका तिरस्कार होता था। सम्मानजनक जीवन – सुविधाएँ भी उनको उपलब्ध नहीं कराई जाती थीं, न ही उन्हें पढ़ाया-लिखाया जाता था। महादेवी वर्मा को इसके विपरीत खूब लाड़-प्यार मिला। उनके बाबा ने उनके विदुषी बनने की कामना की थी और वह पूरी हुई। महादेवी को वे अपनी कुलदेवी दुर्गा का प्रसाद मानते थे। उन्हें किसी प्रकार का कष्ट उनके घरवालों ने न होने दिया; क्योंकि महादेवी वर्मा के बाबा ने महादेवी के जन्म के लिए अपनी कुलदेवी दुर्गा की आग्रहपूर्वक आराधना की थी।
(ङ) महादेवी वर्मा के हिन्दी सीखने के पीछे उनकी माता की प्रेरणा थी।
2. हिन्दी का ………………. होंगे उसमें।
प्रश्न –
(क) पाठ तथा लेखिका का नाम लिखिए।
(ख) सन् 1917 ई० में हिन्दी की स्थिति पर प्रकाश डालिए ।
(ग) सन् 1917 ई० में स्वतन्त्रता संग्राम का क्या स्वरूप था?
(घ) सन् 1917 ई० के आस-पास होनेवाले कवि सम्मेलनों का परिचय दीजिए।
(ङ) गद्यांश में किसको किसमें पदक मिलने की बात कही गई है?
(च) ‘मुझको प्राय: प्रथम पुरस्कार मिलता था’ – यह कहनेवाली कवयित्री कौन हैं?
(छ) आनन्द भवन और क्रास्थवेट का सम्बन्ध किस नगर से है?
उत्तर :
(क) पाठ— मेरे बचपन के दिन। लेखिका – महादेवी वर्मा।
(ख) सन् 1917 ई० में हिन्दी का प्रचार-प्रसार तेजी से हो रहा था। हिन्दी का प्रचार स्वतन्त्रता आन्दोलन का ही एक अंग था। स्वतन्त्रता के लिए स्वभाषा के रूप में हिन्दी, जनता के हृदयों में प्रवेश कर चुकी थी। जगह-जगह कवि सम्मेलन होते थे। उन दिनों अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, श्रीधर पाठक, जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ आदि काव्य-रचना के क्षेत्र में प्रतिष्ठित कवि थे तथा प्रायः कवि-सम्मेलनों की अध्यक्षता किया करते थे। सुभद्राकुमारी चौहान प्रतिष्ठित कवयित्री हो चुकी थीं व महादेवी वर्मा ने लिखना आरम्भ कर दिया था। सुभद्राजी को कवि-सम्मेलनों में जाने में उतनी रुचि नहीं थी, जितनी कि महादेवी वर्मा को थी।
(ग) सन् 1917 ई० में स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष जोर पकड़ चुका था। गांधीजी के नेतृत्व में सत्याग्रह आन्दोलन आरम्भ हो गया था। हिन्दी के विकास एवं प्रचार-प्रसार के लिए कवि-सम्मेलनों का जनजागरण के लिए हिन्दी की आवश्यकता एवं महत्त्व को समझते हुए, आयोजन किया जाने लगा था। इलाहाबाद में आनन्द भवन स्वतन्त्रता के लिए चल रहे संघर्ष का केन्द्र बन चुका था।
(घ) सन् 1917 ई० के आस-पास हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए कवि-सम्मेलनों का आयोजन किया जाने लगा था। कवि-सम्मेलनों की अध्यक्षता हरिऔधजी, श्रीधर पाठक, जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ जैसे महान् कवि किया करते थे। लेखिकाओं में सुभद्राकुमारी चौहान प्रतिष्ठित कवयित्री हो गई थीं तो महादेवी वर्मा प्रतिष्ठां की सीढ़ियाँ चढ़ रही थीं।
(ङ) गद्यांश में महादेवी वर्मा कवि सम्मेलनों में पदक मिलने की बात की गई है।
(च) महादेवी वर्मा ।
(छ) आनन्द भवन और क्रास्थवेट (गर्ल्स कॉलेज) का सम्बन्ध इलाहाबाद नगर से है।
3. हम लोग …………. जाओ दिखाने !’
प्रश्न –
(क) पाठ तथा लेखिका का नाम लिखिए।
(ख) स्वतन्त्रता-संग्राम में छात्राएँ किस प्रकार योगदान देती थीं?
(ग) महादेवी वर्मा ने गांधीजी को कटोरा क्यों दिखाया? इस पर गांधीजी की क्या प्रतिक्रिया हुई?
(घ) महादेवी वर्मा कटोरा देकर भी क्यों प्रसन्न थीं?
(ङ) महादेवी वर्मा का कटोरा चले जाने पर सुभद्रा कुमारी चौहान ने क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की?
उत्तर :
(क) पाठ — मेरे बचपन के दिन। लेखिका – महादेवी वर्मा ।
(ख) स्वतन्त्रता-संग्राम में छात्राएँ भी योगदान देती थीं। इलाहाबाद के क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में पढ़नेवाली छात्राएँ अपने जेबखर्च में से कुछ-न-कुछ पैसा बचातीं और गांधीजी के आने पर वह पैसा उन्हें भेंट कर दिया करती थीं।
(ग) महादेवी वर्मा ने एक कवि सम्मेलन में अपनी एक कविता पर पुरस्कारस्वरूप चाँदी का नक्काशीदार कटोरा प्राप्त किया था। गांधीजी के इलाहाबाद आने पर उनसे प्रशंसा पाने के उद्देश्य से महादेवी वर्मा उन्हें वह कटोरा दिखाने गईं, परन्तु गांधीजी को कविता से कोई लेना-देना नहीं था। उन्होंने महादेवी वर्मा की न तो पुरस्कृत कविता सुनी, न ही उनकी कोई प्रशंसा की। उल्टे उन्होंने वह कटोरा ‘भेंट’ मानकर अपने पास रख लिया। इस प्रकार वह कटोरा देश को समर्पित हो गया।
(घ) महादेवी वर्मा को पुरस्कारस्वरूप प्राप्त चाँदी के कटोरे से प्रेम था, किन्तु जब वह कटोरा देखने के बाद गांधीजी ने अपने पास रख लिया तो कुछ क्षणों के लिए महादेवी वर्मा को दुःख अवश्य हुआ, परन्तु बाद में उन्हें उससे प्रसन्नता ही हुई। वह सोचने लगीं कि यह बड़ा अच्छा हुआ कि कटोरा गांधीजी के हाथों देशहित में काम आएगा। स्वतन्त्रता आन्दोलन हेतु अपना पुरस्कारस्वरूप प्राप्त कटोरा देकर भी महादेवी प्रसन्न थीं।
(ङ) जब वरिष्ठ सहपाठिनी सुभद्राकुमारी चौहान को पता चला कि महादेवी वर्मा का कटोरा बापू ने अपने पास रख लिया है, तब उनकी प्रतिक्रिया बड़ी सन्तुलित थी। उन्होंने न खेद जताया न प्रसन्नता । महादेवी वर्मा का मन हल्का करने के लिए मनोविनोदस्वरूप उन्होंने बस इतना ही कहा – “और जाओ दिखाने!”
4. बचपन का …………… रखती हूँ।’ 
प्रश्न –
(क) पाठ तथा लेखिका का नाम लिखिए।
(ख) बेगम साहिबा कौन थीं?
(ग) बेगम साहिबा ने महादेवी वर्मा के परिवार से कैसे सम्बन्ध बनाए रखे?
(घ) बेगम साहिबा ने अपने और महादेवी वर्मा के परिवार के बच्चों को किस प्रकार के संस्कार दिए?
(ङ) महादेवी वर्मा के भाई का नाम ‘मनमोहन’ किसने रखा? और क्यों? .
(च) ‘बेगम साहिबा खुले दिल की औरत थीं।’ सिद्ध कीजिए।
(छ) ‘बेगम साहिबा के मन में हिन्दू-मुसलमान का भेदभाव नहीं था।’ इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
(क) पाठ— मेरे बचपन के दिन। लेखिका-महादेवा वर्मा।
(ख) बेगम साहिबा जवारा के नवाब की बीवी थीं। अब उनकी नवाबी छिन चुकी थी; अतः नवाब साहब अब उसी कम्पाउण्ड में एक बँगले में रहते थे, जिसमें महादेवी वर्मा का परिवार रहता था ।
(ग) बेगम साहिबा ने प्रेम और आत्मीयता का अद्भुत उदाहरणं पेश किया। इसी अपनेपन के बल पर उन्होंने कहा कि महादेवी वर्मा व उनके भाई-बहन उन्हें ‘ताई’ कहें और अपने बच्चों को कहा कि वह . महादेवी वर्मा की माँ को ‘चची जान’ कहें। इसी प्रकार बेगम साहिबा ने महादेवी के पिता को अपना ‘देवर’ कहकर सम्बोधित किया। यहाँ तक कि महादेवी वर्मा के यहाँ भाई के जन्म पर उनसे ‘नेग’ भी माँगा। बच्चों के ‘जन्मदिन’ तथा पर्वों-त्योहारों पर उन्होंने महादेवी वर्मा के परिवार से आत्मीय सम्बन्धियों का-सा व्यवहार किया। रक्षाबन्धन पर अपने लड़के को महादेवी वर्मा से राखी बँधवाकर उन्होंने बच्चों में प्रेम और अपनत्व की भावना पैदा की।
(घ) बेगम साहिबा ने अपने बेटे पर महादेवी वर्मा की माँ को ‘चची जान’ कहने के लिए जोर डाला। रक्षाबन्धन के अवसर पर महादेवी वर्मा से उसे राखी बंधवाने का सिलसिला उन्होंने गम्भीरता से अपनाया। राखी बँधवाने से पहले वे अपने बेटे को पानी तक नहीं देती थीं। इसी प्रकार महादेवी वर्मा के मन में भी उन्होंने अपने बेटे के लिए भाई की भावना पनपाई, यह कहकर कि ‘भाई भूखा बैठा है, राखी बँधवाने के लिए।’ इस प्रकार बेगम साहिबा ने अपने तथा महादेवी वर्मा के परिवार के बच्चों को मिल-जुलकर रहने के संस्कार दिए ।
(ङ) महादेवी वर्मा के भाई का नाम ‘मनमोहन’ बेगम साहिबा ने ही रखा था। वह स्वयं को महादेवी वर्मा से ‘ताई’ कहलवाती थीं; न केवल कहलवाती थीं, वरन् समझती भी थीं। महादेवी वर्मा के छोटे भाई के जन्म पर वे उनके घर उसके लिए वस्त्रादि भी लेकर गईं। महादेवी वर्मा के परिवार के हर दुःख-सुख में वे शामिल रहती थीं। वह उन सबको भरपूर प्यार देती थीं और उन पर अपना अधिकार भी समझती थीं। इसी अधिकार के बल पर ही उन्होंने महादेवी वर्मा के भाई का नाम ‘मनमोहन’ रखा था।
(च) बेगम साहिबा खुले दिल की महिला थीं। उन्होंने सम्बन्ध बनाने में उदारता दिखाई तो उसे निभाने में भी कभी पीछे न रहीं। वह राखी, मुहर्रम आदि त्योहारों पर उपहारस्वरूप सबको कपड़े देतीं थीं। ‘मनमोहन’ के जन्म के समय उन्होंने महादेवी वर्मा की माँ से बड़ी आत्मीयता से कहा था कि छह महीने तक तो चाची – ताई ही कपड़ेपहनाती हैं, और वह महादेवी वर्मा के नवजात भाई के लिए छह महीने तक कपड़े लाती भी रहीं।
(छ) ‘बेगम साहिबा के मन में हिन्दू-मुसलमान का भेदभाव नहीं था।’ यह कथन बेगम साहिबा के व्यवहार को देखते हुए पूर्णत: सत्य सिद्ध होता है। मुस्लिम होते हुए भी उन्होंने एक हिन्दू परिवार अर्थात् महादेवी वर्मा के परिवार से सम्बन्ध जोड़े। वे मुस्लिम पर्व मुहर्रम को जिस निष्ठा और समर्पण के साथ मनाती थीं, उसी निष्ठा और समर्पण के साथ वे हिन्दू पर्व रक्षाबन्धन आदि को भी मनाती थीं। उन्होंने महादेवी के भाई का नाम ‘मनमोहन’ भारतीय हिन्दू संस्कृति के अनुरूप ही रखा, कोई मुस्लिम नाम न सुझाया- ये सभी उनकी हिन्दू-मुसलमान भेदभाव हीनता के अकाट्य प्रमाण हैं।
5. वही प्रोफेसर …………….. कुछ और होती।
प्रश्न –
(क) पाठ तथा लेखिका का नाम लिखिए।
(ख) प्रोफेसर मनमोहन वर्मा कौन थे? उनका नाम किसने रखा था?
(ग) बेगम साहिबा के घर में कौन-सी भाषा बोली जाती थी?
(घ) महादेवी वर्मा के बचपन के समय की और आज की स्थिति में क्या अन्तर आ गया है?
(ङ) महादेवी वर्मा का कौन-सा सपना सच होने पर भारत की कथा कुछ और होती? वह कथा किस प्रकार से भिन्न होती?
उत्तर :
(क) पाठ— मेरे बचपन के दिन। लेखिका – महादेवी वर्मा।
(ख) प्रोफेसर मनमोहन वर्मा; महादेवी वर्मा के छोटे भाई थे। उन्होंने जम्मू विश्वविद्यालय के तथा गोरखपुर विश्वविद्यालय के वाइस चान्सलर पद को सुशोभित किया था। उनका ‘मनमोहन’ नाम, महादेवी वर्मा के पड़ोस में रहनेवाली जवारा के नवाब साहब को बेगम साहिबा ने रखा था !
(ग) बेगम साहिबा के घर-परिवार में हिन्दी और उर्दू दोनों चलती थीं। वैसे परिवार के लोग परस्पर बातचीत में अवधी भाषा का प्रयोग करते थे।
(घ) महादेवी वर्मा के बचपन के समय में साम्प्रदायिक सद्भाव का वातावरण था। हिन्दू-मुसलमान आपस में मेल-मिलाप से, बिना किसी भेदभाव के प्रेम से रहते थे। बेगम साहिबा और महादेवी वर्मा के परिवारों में ऐसी ही घनिष्ठता थी। लेकिन आज साम्प्रदायिक सद्भाव लगभग समाप्त हो गया है। देश के वातावरण में एक-दूसरे के प्रति हीनता और विरोध की भावनाएँ पनपती जा रही हैं। आपसी कटुता दिन-पर-दिन बढ़ती जा रही है, जो कि चिन्ता का विषय है।
(ङ) महादेवी वर्मा का सपना था कि जो मेलजोल, . साम्प्रदायिक सद्भाव उन्होंने बाल्यावस्था में देखा-पाया है, वही स्वतन्त्र भारत में भी उन्हें दिखाई देता रहे। उसी सपने को आँखों में सँजोए वे बड़ी हुईं, परन्तु बड़े होने पर उन्होंने पाया कि वह सपना टूट चुका है। यह देखकर उन्हें बड़ा दुःख हुआ। वे सोचती हैं कि काश, हिन्दू-मुसलमान एकता का सपना सच हो जाता तो आज भारत का रूप- गौरव कुछ और होता। तब शायद देश का विभाजन भी न हुआ होता और भारत बृहत्तर भारत के रूप में विश्व में अपना विशेष स्थान रखता। आज देश की कथा साम्प्रदायिक सद्भाव, शान्ति, प्रेम, विकास और आनन्द के वातावरण से भरी होती ।
III. पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1—’मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा, जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है।’ इस कथन के आलोक में आप यह पता लगाएँ कि-
(क) उस समय लड़कियों की दशा कैसी थी ?
उत्तर— उस समय अर्थात् सन् 1900 ई० के आस-पास भारत में लड़कियों की दशा अच्छी नहीं थी । प्रायः उन्हें जन्म लेते ही मौत की नींद सुला दिया जाता था। उन्हें परिवार पर एक बोझ समझा जाता था । यदि किसी के यहाँ लड़की का जन्म हो भी जाता था तो पूरे घर में मातम की स्थिति बन जाती थी। महादेवी वर्मा ने अपने एक संस्मरण में लिखा है—“बैण्डवाले, नौकर-चाकर, सब लड़का होने की प्रतीक्षा में खुश बैठे रहते थे। जैसे ही लड़की होने का समाचार मिलता, सब चुपचाप विदा हो जाते।”
ऐसे वातावरण में लड़कियों के स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखना, उन्हें लड़कों के समान भोजन देना, उनकी पढ़ाई-लिखाई की चिन्ता करना आदि बातें निरर्थक समझी जाती थीं। उनके लिए तो प्रारम्भ से ही कम भोजन देना, घर के कामों में सदा उलझाए रखना, शिक्षा से दूर रखना आदि बातें ही स्वाभाविक रूप से अपनाई जाती थीं ।
(ख) लड़कियों के जन्म के सम्बन्ध में आज कैसी परिस्थितियाँ हैं?
उत्तर- आज लड़कियों के जन्म से सम्बन्धित परिस्थितियों में काफी सुधार आया है। यद्यपि यह सुधार यथेष्ट सुधार नहीं है, परन्तु परिवर्तन के शुभ लक्षण स्पष्ट दिखाई देते हैं। शिक्षित लोगों में सन्तान के रूप में लड़के-लड़की का भेदभाव काफी कम हुआ है। बहुत-से घरों में जागरूक माता-पिता कन्या के जन्म से भी उतने ही प्रसन्न होते हैं, जितने कि लड़कों के जन्म से। शहरों में लड़कों की तरह लड़कियों को भी स्तरीय शिक्षा दी जा रही है। यद्यपि लड़कों की तरह ही उनके खान-पान, स्वास्थ्य, वस्त्र आदि पर भी अभिभावक ध्यान दे रहे हैं, परन्तु यह भेदभाव अभी पूरी तरह से समाप्त नहीं हो सका है। बहुत-से रूढ़िवादी लोग विज्ञान का लाभ उठाकर, कन्या-भ्रूण की हत्या करवाकर उन्हें जन्म से पहले ही मार देते हैं। ऐसे कारनामों का परिणाम यह होता है कि स्त्री-पुरुष का संख्यात्मक अनुपात बिगड़ता जा रहा है। चण्डीगढ़ भारत का उन्नत शहर है, परन्तु वहाँ लड़कियों की संख्या सबसे कम है। यहाँ न पैसे की कमी है, न सुविधाओं की। कुछ लोग भविष्य में दहेज की समस्या से बचने के लिए भी कन्याओं को मारे दे रहे हैं, जबकि यह इस समस्या का कोई मानवीय हल नहीं है। वास्तव में देखा जाए तो कन्याओं की स्थिति में सुधार; शिक्षा के प्रचार-प्रसार और उदार दृष्टिकोण अपनाने से ही सम्भव है।
प्रश्न 2 – लेखिका उर्दू-फारसी क्यों नहीं सीख पाई ?
उत्तर – लेखिका के पिता अंग्रेजी जानते थे व बाबा उर्दू-फारसी। माँ हिन्दी की जानकार थीं। लेखिका के सामने तीनों भाषाओं के विकल्प थे। बाबा उन्हें विदुषी बनाना चाहते थे। दूसरी ओर लेखिका को उर्दू-फारसी में जरा भी रुचि नहीं थी; अतः जब मौलवी साहब उर्दू पढ़ाने उनके घर आते तो वे चारपाई के नीचे छिप जातीं। इस प्रकार लेखिका उर्दू-फारसी नहीं सीख पाईं।
प्रश्न 3 – लेखिका ने अपनी माँ के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर – लेखिका ने अपनी माँ के हिन्दी ज्ञान तथा गायन-वादन में रुचि का उल्लेख किया है। वे हिन्दी तथा संस्कृत की ज्ञाता थीं। इसलिए महादेवी पर दोनों भाषाओं का संस्कारगत प्रभाव पड़ा। महादेवी की माता धार्मिक स्वभाव की महिला थीं। वे सुबह-सवेरे व सन्ध्या समय पूजा-पाठ करतीं। वे सवेरे ‘जागिए कृपानिधान पंछी बन बोले ‘ प्रभाती गाती थीं एवं सायंकाल मीरा के पद गाती थीं। वे भक्ति गीत लिखती भी थीं।
प्रश्न 4- जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक सम्बन्ध को लेखिका ने आज के सन्दर्भ में स्वप्न जैसा क्यों कहा है?
उत्तर – जवारा के नवाब के परिवार के साथ महादेवी वर्मा के पारिवारिक सम्बन्ध सगे-सम्बन्धियों से भी बढ़कर थे। जवारा नवाब की बेगम ने ही महादेवी के छोटे भाई का नाम ‘मनमोहन’ रखा था। वे हर त्योहार या खुशी के मौके पर उन लोगों के साथ घुल-मिल जाती थीं। ऐसे आत्मीयता – भरे सम्बन्धों की, उस पर भी विजातीय सम्बन्धों की आज के समय में कल्पना भी नहीं की जा सकती। आजकल का माहौल कुछ इस प्रकार का हो गया है कि हिन्दू-मुसलमान एक-दूसरे को शंका की दृष्टि से देखते हैं और जरा-जरा-सी बात खून-खराबा करने को उतारू हो जाते हैं।
IV. अन्य महत्त्वपूर्ण परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – महादेवी वर्मा से पहले उनके परिवार में लड़कियों के साथ कैसा व्यवहार होता था? उनके बाबा ने उनके साथ कैस व्यवहार किया?
उत्तर – महादेवी वर्मा के परिवार में उनके जन्म से पहले लड़कियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं होता था। पिछले 200 वर्षों से तो उनके परिवार में कोई लड़की थी ही नहीं; क्योंकि उनके पहले यह कुप्रथा थी कि जन्म के समय ही कन्याओं को मार दिया जाता था ।
महादेवी वर्मा के बाबा ने उनके साथ बहुत अच्छा व्यवहार महादेवी को उसके प्रसादस्वरूप प्राप्त किया था। बाबा के इस व्यवहार किया; क्योंकि उन्होंने अपनी कुलदेवी दुर्गा की आराधना के बाद से प्रभावित होकर उनके माता-पिता ने भी महादेवी को खूब लाड़-प्यार दिया। बाबा उन्हें विदुषी बनाना चाहते थे। फलस्वरूप माता-पिता ने उन्हें खूब पढ़ाया-लिखाया व अच्छे संस्कार दिए ।
प्रश्न 2 – महादेवी वर्मा को काव्य-प्रेरणा किससे मिली?
उत्तर – महादेवी वर्मा को काव्य-प्रेरणा संस्कारगत रूप में माँ से हिन्दी का ज्ञान भी था और वे लिखती भी थीं। बाद में जब वे प्राप्त हुई थी। महादेवी की माँ सुबह-शाम भजन गाया करती थीं। उन्हें इलाहाबाद के क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में उच्चशिक्षा प्राप्ति के लिए आई, तब छात्रावास में उनकी भेंट वरिष्ठ सहपाठिन सुभद्राकुमारी चौहान से हुई। सुभद्राजी उस समय तक काव्य-क्षेत्र में प्रतिष्ठित हो चुकी थीं। सुभद्राजी के साथ रहने से महादेवी वर्मा की काव्य के प्रति अभिरुचि और भी उद्दीप्त होती गई। महादेवी वर्मा का उत्साह बढ़ने लगा। वे कविताएँ लिखने लगीं व कवि-सम्मेलनों में भी जाने लगीं। उनकी रचनाएँ ‘स्त्री- दर्पण’ नामक पत्रिका में छपती थीं।
प्रश्न 3 – महादेवी वर्मा की काव्य-प्रतिभा निखारने में सुभद्राकुमारी चौहान के योगदान पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर – महादेवी वर्मा की काव्य-प्रतिभा निखारने में सुभद्राकुमारी चौहान का योगदान कम नहीं था। क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में अध्ययनकाल में ही सुभद्राजी काव्य-क्षेत्र में पर्याप्त ख्याति प्राप्त कर चुकी थीं। जब उन्हें पता चला कि महादेवी वर्मा भी कविता लिखती हैं तो वे उनके कमरे में पहुँचीं। महादेवी वर्मा ने उनके पूछने पर संकोचवश इनकार कर दिया कि वे कविता नहीं लिखतीं, परन्तु सुभद्राजी ने उनकी सारी कापियाँ छान मारी। आखिरकार उन्हें महादेवी वर्मा द्वारा लिखी गई कविताएँ मिल ही गईं। वे उनका हाथ पकड़कर पूरे छात्रावास में सबको बताती फिरीं कि यह महादेवी तो कविताएँ लिखती है। इस प्रकार उन्होंने महादेवी वर्मा का सारा संकोच एक झटके में दूर कर दिया। फिर तो दोनों साथ-साथ तुकबन्दी करने लगीं और अपनी कविताएँ ‘स्त्री- दर्पण’ नामक पत्रिका में छपने के लिए भेजने लगीं। महादेवी वर्मा तब कवि सम्मेलनों में भी जाने लगीं।
प्रश्न 4 – जेबुन कौन थी? “हम मराठी हूँ तो मराठी बोलेंगे !” उसके इस कथन में उसके व्यक्तित्व की कौन-सी विशेषता प्रकट होती है?
उत्तर – जेबुन का पूरा नाम था— जेबुन्निसा । वह एक सीधी-सादी मराठी मुसलमान कन्या थी । उसके “हम मराठी हूँ तो मराठी बोलेंगे!” कथन में उसका स्वभाषा – प्रेम, मातृभूमि-प्रेम तथा स्वाभिमान झलकता है। वह विभिन्न भाषा-भाषियों के बीच रहकर भी किसी हीनभावना से ग्रस्त नहीं थी, वरन् उसमें अपनी भाषा को बोलने के प्रति आत्मगौरव की भावना थी। उसका यही आत्मगौरव उसका सम्बल और आत्मविश्वास था, जो निश्चय ही अनुकरणीय है।

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