UK 9th Hindi

UK Board Class 9 Hindi – संवाद-लेखन

UK Board Class 9 Hindi – संवाद-लेखन

UK Board Solutions for Class 9 Hindi – संवाद-लेखन

संवाद-लेखन : परिचय
‘संवाद’ शब्द ‘सम्’ उपसर्गपूर्वक ‘वाद’ शब्द के योग से बना जिसका अर्थ है- ‘सम्यक् बोलना’। दो लोगों की आपसी बातों को हम ‘संवाद’ कहते हैं। शाब्दिक अर्थ में ‘संवाद’ को ‘बातचीत’ या ‘वार्तालाप’ भी कह सकते हैं।
संवाद का सर्वप्रथम गुण है— स्वाभाविकता । स्वाभाविकता से आशय है – प्रत्येक पात्र अपनी स्थिति, मनोदशा तथा संस्कार के अनुरूप ही बोले। क्रोध और प्रेम की भाषा एक जैसी नहीं हो सकती। ग्रामीण और भहानगरीय पात्रों की भाषा में भी अन्तर होता है। शिष्ट और अशिष्ट पात्रों की भाषा में भी स्पष्ट अन्तर होता है। इस प्रकार सभी स्थितियों का ध्यान रखते हुए पात्रों की आपसी बातचीत को लिखना, ‘संवाद-लेखन’ कहलाता है।
संवाद-लेखन द्वारा प्रभाव उत्पन्न करना भी लेखक का लक्ष्य होता है; अतः संवाद – कथन की शैली प्रभावशाली तथा सटीक होनी चाहिए।
संवाद-लेखन के उदाहरण
(1)
शिक्षक और छात्र के मध्य संवाद
छात्र- (कक्षा में प्रवेशकर) गुरुजी ! प्रणाम ।
शिक्षक – खुश रहो; तुम कल विद्यालय क्यों नहीं आए?
छात्र – गुरुजी ! कल मेरे पिताजी की तबीयत खराब थी। मुझे उनके साथ डॉक्टर के पास जाना पड़ा।
शिक्षक – यह तो तुमने अच्छा किया राजेश, माता-पिता की सेवा जरूर करनी चाहिए।
छात्र – गुरुजी ! कल आपने कक्षा में गरीबों की सहायता – योजना के विषय में बताया था। क्या मुझे भी उसके बारे में कुछ बताएँगे।
है
शिक्षक – हाँ! तुम भोजनावकाश में मुझसे मिल लेना ।
छात्र – गुरुजी ! मेरा नाम छात्रवृत्ति की सूची में नहीं लिखा गया है।
शिक्षक – तुम कक्षा के मॉनीटर को अपना नाम नोट करा दो।
छात्र – आपकी इस कृपा के लिए मैं आपका आभारी हूँ। मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। मैं मॉनीटर को अपना नाम लिखा दूँगा और समय-समय पर जानकारी भी लेता रहूँगा ।
(2)
रोगी और डॉक्टर के मध्य संवाद
रोगी — डॉक्टर साहब! मेरे दाँत में बहुत दर्द है।
डॉक्टर — दाँत में कब से दर्द है?
रोगी – पिछले कई दिन से है, मगर रात से अधिक है। मसूड़ा भी सूज गया है।
डॉक्टर – उधर कुर्सी पर बैठो, मैं अभी देखता हूँ।
रोगी – ( कुर्सी पर बैठता है) डॉक्टर साहब, मेरा मन कुछ घबरा रहा हैं।
डॉक्टर—घबराओ नहीं, मैं अभी तुम्हारे दर्द का निदान करता हूँ।
( डॉक्टर रोगी के पास पहुँचता है।)
मुँह खोलो! (देखकर) भई, तुम्हारे दाँत में तो कीड़ा लगा है। इस दाँत को उखाड़ना पड़ेगा ।
रोगी — डॉक्टर साहब, इसे उखाड़ दो, मगर मुझे ज्यादा तकलीफ न हो।
डॉक्टर – नहीं ! मैं तुम्हें पहले सुन्न करने का इंजेक्शन दूँगा ।
रोगी – ठीक है।
(डॉक्टर रोगी को सुन्न करने का इंजेक्शन लगाता है और उसका दाँत उखाड़ देता है)
डॉक्टर- भई, कोई तकलीफ तो नहीं हुई ।
रोगी- नहीं डॉक्टर साहब। बहुत-बहुत धन्यवाद, जो आपने मुझे इस तकलीफ से छुटकारा दिलाया।
(3)
मित्र को बधाई देते हुए दो मित्रों के मध्य संवाद
रवि – अरे राकेश ! बधाई हो ।
राकेश – धन्यवाद !
रवि – यार, मैरिट लिस्ट में आकर तो तुमने कमाल कर दिया।
राकेश – कमाल की क्या बात है यार। मैंने मेहनत की थी, फिर तुम लोगों की दुआ भी मेरे साथ थी ।
रवि – अच्छा यार! बताओ पार्टी कब दे रहे हो ?
राकेश – यार ! छोटी बात मत करो। घर चलो, पापा भी तुम्हारे बारे में पूछ रहे थे।
रवि – अच्छा, कल रविवार का अवकाश है, मैं तुम्हारे घर अवश्य आऊँगा। बताओ, क्या खिलाओगे ?
राकेश – जो तुम चाहो ।
रवि – अच्छा! मम्मी से कहकर मेरे लिए हलुआ बनवाकर रखना।
राकेश- अच्छा, मैं चलता हूँ। कल तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा ।
(4)
पिता, पुत्र एवं एक अन्य महिला के मध्य संवाद
पिण्टू – अब तो सब मेहमान आ चुके पापा। आइए, चलें। मुझे अपना बर्थडे केक काटना है।
पापा- अभी तुम्हारी मम्मी की सहेली शारदा कहाँ आई हैं?
पिण्टू – मम्मी की सहेली तो बहुत देर लगाती हैं पापा। वह बहुत आलसी हैं ना।
पापा- आलसी नहीं बेटे, लेटलतीफ हैं। वैसे भी महिलाओं का तैयार होना कोई आसान काम नहीं है।
पिण्टू — पर मेरी दोस्त तो सब आ चुकीं पापा ?
पापा- वे अभी लड़कियाँ हैं ना, महिला कहाँ हुई हैं अभी !
पिण्टू – महिला होते ही लेटलतीफ हो जाएँगी वे भी ?
पापा- हाँ बेटे
(सामने से बनी-सँवरी, बढ़िया साड़ी पहने एक महिला आती दिखाई देती है। यही शारदा है। उसके हाथ में उपहार का एक पैकेट है।)
पिण्टू – नमस्ते आण्टी ।
शारदा – नमस्ते ……… नमस्ते पिण्टूजी । इतने बड़े, इतने बड़े, जितना ताड़ |
पापा- तिल का ताड़ मत बनाइए बहनजी। अभी तो पिण्टू तिल है, नन्हा सा तिल |
शारदा – (हँसते हुए) पर भाई साहब, यह आँखवाला तिल है या लड्डूवाला ?
पापा- (ठहाका लगाते हुए) जो भी तुम समझो, बहनजी ।
पिण्टू – ( आग्रह करता हुआ) अच्छा आण्टी, जल्दी चलो अब। सारा कार्यक्रम लेट हो रहा है।
शारदा – हाँ-हाँ पिण्टू साहब। आपको तो एक-एक मिनट भारी लग रहा होगा ना।
पिण्टू – बिल्कुल आण्टी ।
शारदा – (पिण्टू के गाल पर हल्का-सा चपत लगाते हुए) लेकिन शादी के समय ऐसी जल्दी मत करना ।
प्रश्न- कुछ ग्रामीणों की आपसी बोलचाल को संवाद रूप में लिखिए ।
उत्तर- ग्रामीणों के मध्य संवाद
घिस्सू – चौधरी ! राम-राम ।
चौधरी – राम-राम भाई, राम-राम ।
घिस्सू — और क्या हो रिया है?
चौधरी – अरे भैया ! होना हुआना क्या है, बस दिन काट रिया हूँ ज्यों-त्यों करके ।
मक्खन – दिन तो सभी काट रये हैं चौधरी, कोई ऐसे तो कोई वैसे।
चौधरी – मगर बुढ़ापे में अब खाली बैठे टाइम तो नहीं कटता ।
चोखेराम — बात तो ठीक कहते हो, चौधरी ।
घिस्सू – पर चौधरी, यह तो बोल कि अब भी कुछ करने को बचा है क्या?
चौधरी — बात कुछ ऐसी है घिस्सू, मैं सोच रिया हूँ कि अबके गाँव में एक धर्मशाला बन जाए ।
मक्खन – हाँ चौधरी, तुम ठीक सोचे हो। गाँव में एक धर्मशाला तक नहीं है। बेटी का शादी-ब्याह हो, कोई और काम हो, पंचायत बैठे- कोई जगह है ही नहीं ऐसी ।
चोखेराम – फिर क्या सोचे हो चौधरी, कैसे होवेगा ?
चौधरी – अरे चुनाव आनेवाला है। फँसने दे कोई तगड़ा-सा कण्डीडेट । एक दाँव में धर्मशाला बनी रक्खी है।
मक्खन — मगर इस शुभ काम के लिए, चुनाव की बाट काहे को जोह रिये हो ? चुनाव का क्या है, टल भी जावे है। मैं तुम्हारे को एक बढ़िया जुगत बताऊँ हूँ।
सब एक-साथ- हाँ-हाँ, बता चोखेराम ।
चोखेराम – अरे वह शहर का सबसे मोटा सेठ छदम्मीलाल ना, सुना है बड़ा दानी है वह ।
चौधरी – चर्चा तो हमारे तक भी आई है चोखेराम |
मक्खन – हाँ चौधरी उसने कई सारी धर्मशालाएँ, मठ-मन्दिर, स्कूल और अस्पताल बनवाए हैं।
घिस्सू – बनवाए तो बतावैं हैं ।
चोखेराम – तो चलो, उसी से बात करे हैं। शायद उसके मन में आ ही जाए।

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