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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 16

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 16 सामान्य घरेलू दुर्घटनाएँ और उनसे बचाव

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 16 सामान्य घरेलू दुर्घटनाएँ और उनसे बचाव.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
सामान्य घरेलू दुर्घटनाओं से क्या आशय है? उनसे बचाव एवं उपचार के मुख्य उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सामान्य घरेलू दुर्घटनाओं का अर्थ

सामान्य घरेलू दुर्घटनाओं में उन दुर्घटनाओं को सम्मिलित किया जाता है जो घर, पास-पड़ोस या कार्य-स्थल पर कभी भी घटित हो सकती हैं तथा उनके परिणामस्वरूप सम्बन्धित व्यक्ति शारीरिक अथवा मानसिक रूप से क्षतिग्रस्त हो जाता है। ये दुर्घटनाएँ मुख्य रूप से लापरवाही, असावधानी अथवा अज्ञानता के कारण घटित हुआ करती हैं। वास्तव में व्यक्ति का जीवन आज के युग में अत्यधिक व्यस्त है। इस स्थिति में हर व्यक्ति को सदैव शीघ्रता एवं जल्दबाजी रहती है। जल्दबाजी में लापरवाही या त्रुटि हो जाना स्वाभाविक ही है। जनसंख्या-वृद्धि, भीड़-भाड़, विभिन्न प्रकार के मानसिक दबाव एवं तनाव, निराशा, कुण्ठा, सामाजिक दबाव आदि कारणों से दुर्घटनाओं की दर में वृद्धि हो रही है। इसी प्रकार व्यक्ति के अशिक्षित होने के कारण अथवा भावनात्मक असन्तुलन के कारण कुछ विशेष प्रकार की दुर्घटनाओं में वृद्धि हो रही है। कुछ दुर्घटनाएँ शरारतवश अथवा शत्रुता के कारण भी घटित हो जाया करती हैं। इस प्रकार की मुख्य दुर्घटनाएँ हैं-चोट लगना, फिसल कर गिरना, किसी वाहन से टकरा जाना, विषपान, पानी में डूबना तथा आग लगना आदि। कुछ दुर्घटनाएँ विभिन्न पशु-पक्षियों एवं कीट-पतंगों के कारण भी घटित हो जाया करती हैं। इन सभी दुर्घटनाओं को सामान्य घरेलू दुर्घटनाओं की श्रेणी में रखा जाता है।

मुख्य सामान्य घरेलू दुर्घटनाएँ

दैनिक जीवन में किसी भी प्रकार की साधारण अथवा गम्भीर दुर्घटना घटित हो सकती है; अतः व्यक्ति को हर प्रकार की दुर्घटना का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। परन्तु कुछ दुर्घटनाएँ ऐसी होती हैं जो सामान्य रूप से घटित होती रहती हैं। इस प्रकार की दुर्घटनाओं को सामान्य घरेलू दुर्घटना माना जाता है। प्रत्येक व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि उसे सामान्य घरेलु दुर्घटनाओं की समुचित जानकारी हो। मुख्य सामान्य घरेलू दुर्घटनाएँ हैं-जलना या झुलसना, चोट लगना तथा रक्तस्राव होना, लू या गर्मी लग जाना, पानी में डूब जाना, साँप, बिच्छू या बर्से द्वारा डंक मार देना, कुत्ते, बन्दर आदि पशुओं द्वारा काटा जाना, बच्चों द्वारा आँख, नाक या कोन आदि में कोई वस्तु हँसा लेना, दम घुटना, बेहोशी या दौरा पड़ जाना या आकस्मिक हृदय का दौरा पड़ना आदि।

सामान्य दुर्घटनाओं से बचाव एवं उपचार

दुर्घटनाएँ आकस्मिक होती हैं तथा उनसे बचने के लिए व्यक्ति को अधिक-से-अधिक ध्यानपूर्वक कार्य करने चाहिए। लापरवाही नहीं करनी चाहिए तथा हर प्रकार की आवश्यक जानकारी प्राप्त करते रहना चाहिए। इन समस्त उपायों के बाद भी दुर्घटनाएँ घट सकती हैं। यदि कोई दुर्घटना  घटित हो जाती है । तो उसे देखकर घबराना नहीं चाहिए। घबराने या हाथ-पैर फुलाने से दुर्घटना की गम्भीरता बढ़ सकती है; अतः दुर्घटना का सामना धैर्यपूर्वक करना चाहिए तथा निम्नलिखित सामान्य उपाय किए जाने चाहिए

  1.  किसी भी दुर्घटना के घटित होते ही सर्वप्रथम उसके कारण को ज्ञात करना चाहिए तथा तुरन्त उस कारण का उन्मूलन करने का उपाय करना चाहिए।
  2.  दुर्घटना की गम्भीरता को बढ़ने से रोकने के उपाय किए जाने चाहिए।
  3.  दुर्घटना की प्रकृति को जानने का प्रयास करना चाहिए तथा उसकी प्रकृति के अनुसार निम्नलिखित उपायों में से आवश्यक उपाय किया जाना चाहिए

(क) यदि शरीर से रक्त बह रहा हो, तो सर्वप्रथम रक्त-स्राव को रोकने का हर सम्भव उपाय किया जाना चाहिए, क्योंकि अधिक रक्तस्राव हो जाना घातक सिद्ध हो सकता है।
(ख) यदि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति पानी में डूबा हो, तो सम्बन्धित व्यक्ति के फेफड़ों तथा पेट में से पानी को निकालने के उपाय किए जाने चाहिए।
(ग) यदि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को श्वसन में कठिनाई हो रही हो, तो सर्वप्रथम कृत्रिम श्वसन के उपाय किए जाने चाहिए।
(घ) यदि व्यक्ति ने विष-पान कर लिया हो, तो सर्वप्रथम विष को शरीर में से निकालने अथवा उसके प्रभाव को घटाने के उपाय किए जाने चाहिए।
(ङ) यदि साँप या बिच्छ आदि ने डंक मार दिया हो तो सर्वप्रथम विष को शरीर में फैलने से रोकने । के उपाय किए जाने चाहिए।
(च) यदि व्यक्ति मूर्छित हो गया हो, तो सर्वप्रथम उसे होश में लाने के उपाय किए जाने चाहिए।
उपर्युक्त सामान्य उपायों के अतिरिक्त दुर्घटना की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए सूझ-बू द्वार यथाआवश्यक उपाय किए जाने चाहिए। यदि दुर्घटना गम्भीर प्रतीत हो, तो प्राथमिक उपचार के साथ-साथ किसी योग्य चिकित्सक से भी यथाशीघ्र सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।

 

प्रश्न 2:
जलने व झुलसने में क्या अन्तर है?जलने के विभिन्न प्रकार एवं उनके उपचार बताइए।
उत्तर:
जलना एवं झुलसना-जलना एवं झुलसना प्राय: शरीर पर अधिक ताप का प्रभाव होते हैं। झुलसना; तरल पदार्थों; जैसे-गरम दूध, पानी, घी, तेल व चाय आदि के त्वचा पर गिर जाने से होता है। जलना; भाप, गरम तवा तथा अन्य प्रकार की शुष्क आग के सम्पर्क में त्वचा के आने पर होता है। जलने एवं अधिक झुलस जाने के गम्भीर परिणाम होते हैं। शरीर के 50 प्रतिशत अथवा अधिक जल जाने पर पीड़ित व्यक्ति  पर मृत्यु का संकट हो सकता है। गम्भीर रूप से जलने से शरीर में द्रव पदार्थों की कमी उत्पन्न हो जाती है, शरीर के आन्तरिक अवयव बुरी तरह से कुप्रभावित होते हैं तथा पीड़ित व्यक्ति मानसिक आघात का शिकार हो सकता है।

जलने के प्रकार

जलने के विभिन्न प्रकारों को वर्गीकृत करने के दो आधार हैं
(क) शारीरिक लक्षणों को आधार तथा
(ख) जलने के स्रोतों का आधार।।

(क) शारीरिक लक्षणों के आधार पर जलने के प्रकार:
जलने पर मुख्यत: निम्नलिखित लक्षण दिखाई पड़ते हैं

  1.  त्वचा लाल रंग की हो जाती है, परन्तु नष्ट नहीं होती।
  2.  लालिमा के साथ-साथ शरीर पर फफोले भी पड़ जाते हैं।
  3.  प्रभावित भाग कम हो अथवा अधिक उसके स्नायु तन्तु नष्ट हो जाते हैं।

(ख) विभिन्न स्रोतों से जलना:
यह निम्न प्रकार से हो सकता है

  1.  वस्त्रों में आग लग जाने से जलना।
  2. अम्लों से जलना।
  3. क्षार से जलना।
  4.  बिजली से जलना।

जल जाने पर उपचार

जल जाने की विभिन्न अवस्थाओं में विभिन्न प्रकार से प्राथमिक उपचार किए जाते हैं। इनका क्रमशः विवरण निम्नलिखित है

(1) वस्त्र में आग लग जाने पर उपचार:
यह एक सामान्य दुर्घटना है जो कि घरों में प्रायः खाना आदि पकाते समय घटित हुआ करती है। साधारणत: इसके उपचार निम्न प्रकार से करने चाहिए|

  1. रोगी को तुरन्त भूमि पर लिटाकर लुढ़काना चाहिए। रोगी का मुंह खुला छोड़कर उसकी शेष शरीर किसी कम्बल जैसे कपड़े से ढक देना चाहिए।
  2. जलते हुए व्यक्ति पर पानी नहीं डालना चाहिए, क्योंकि इससे घावों के और अधिक गम्भीर होने का भय रहता है।
  3. रोगी के कपड़े व जूते किसी प्रकार से उतार देने चाहिए।
  4. रोगी को पीने के लिए गरम पानी, दूध, चाय अथवा कॉफी देनी चाहिए।
  5. रोगी के बिस्तर पर गरम पानी की बोतलें भी रख देनी चाहिए।
  6.  यदि त्वचा पर फफोले पड़ गए हों, तो उन्हें फोड़ना नहीं चाहिए।
  7.  एक भाग अलसी का तेल व एक भाग चूने का पानी मिलाकर स्वच्छ रूई अथवा कपड़े के फाये द्वारा जले हुए भाग पर लगाना लाभप्रद रहता है।
  8. जले हुए स्थान पर से सावधानीपूर्वक वस्त्र हटाने का प्रयास करना चाहिए। यदि वस्त्र चिपक गए हैं, तो उस स्थान पर जैतून अथवा नारियल का तेल लगाना चाहिए।
  9.  जले हुए स्थान पर हल्के-हल्के बरनॉल या इसी प्रकार का कोई अन्य मरहम लगाना चाहिए।
  10.  मरहम उपलब्ध न होने पर नारियल का तेल प्रयोग में लाया जा सकता है।
  11.  यदि रोगी होश में है तो उसे सांत्वना एवं धैर्य बँधाना चाहिए।
  12. रोगी को शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल ले जाना चाहिए।

(2) अम्लों से जल जाने पर उपचार:
गन्धक, नमक व शोरे के सान्द्र अम्ल मानव त्वचा के लिए अत्यन्त घातक होते हैं। ये जिस स्थान पर गिरते हैं, उसे तत्काल अन्दर तक जला देते हैं। अम्लों से जलने पर निम्नलिखित उपाय तुरन्त करने चाहिए

  1.  प्रभावित स्थान पर तुरन्त पानी की धार डालें।
  2.  रोगी के वस्त्र उतारते समय पानी डालते रहें।
  3.  जले स्थान को स्वच्छ कपड़े से ढक दें।
  4. जले स्थान पर खाने का सोड़ा पानी में घोलकर लगाएँ। इससे अम्ल का प्रभाव घटने लगता है।
  5.  अधिक जल जाने पर रोगी को इस प्रकार लिटाएँ कि उसका सिर शरीर के अन्य भागों से कुछ ऊँचा रहे।
  6.  यदि रोगी होश में है तो उसे ऐल्कोहॉल रहित पेय पदार्थ पीने के लिए दें।
  7.  शीघ्रातिशीघ्र चिकित्सक को बुलाएँ।

(3) क्षार से जलने पर उपचार:
चूना, कास्टिक सोड़ा तथा पोटाश आदि क्षार मानव त्वचा को गम्भीर रूप से जला देते हैं। इस प्रकारे जले रोगियों का उपचार निम्न प्रकार से करना चाहिए

  1. प्रभावित स्थान को पानी के तीव्र प्रवाह से धोना चाहिए।
  2. जले हुए भाग पर नींबू के रस अथवा सिरके में पानी मिलाकर लगाने से क्षार के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
  3.  जले हुए स्थान पर ऐल्कोहॉल लगाने से रोगी को आराम होता है।
  4. रोगी को मद्यरहित पेय पदार्थ पर्याप्त मात्रा में पीने के लिए देने चाहिए।
  5. यदि अधिक भाग जला हो, तो तुरन्त चिकित्सक से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।

(4) बिजली से जलने पर उपचार:
बिजली के सम्पर्क में आने पर व्यक्ति को घातक झटका लगता है तथा कभी-कभी वह बिजली से चिपक भी जाता है। इस प्रकार का पीड़ित व्यक्ति सदमे के साथ-साथ जलने का शिकार भी हो जाता है। उपयुक्त उपचार के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए

  1.  सर्वप्रथम बिजली का मुख्य स्विच बन्द कर देना चाहिए।
  2.  एक लम्बी लकड़ी अथवा लकड़ी के तख्ते का उपयोग कर पीड़ित व्यक्ति को विद्युत तारों से मुक्त करना चाहिए।
  3. जिन स्थानों पर तार से चिपकने के कारण घाव हो गए हों, वहाँ पर बरनॉल या कोई अन्य ऐसा ही मरहम लगाना चाहिए।
  4. घावों को स्वच्छ कपड़े से ढक देना चाहिए।
  5. श्वास रुकने की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति को कृत्रिम श्वास देना चाहिए।
  6.  रोगी को पीने के लिए गरम पानी, दूध, चाय अथवा कॉफी देनी चाहिए।
  7. पीड़ित व्यक्ति के लिए दुर्घटना का सदमा घातक हो सकता है; अतः उसे धैर्य बँधाते रहना चाहिए।
  8.  तत्काल चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए।

प्रश्न 3:
रक्त-स्राव कितने प्रकार का होता है? रक्त-स्राव रोकने के लिए आप क्या प्राथमिक उपचार करेंगी?
उत्तर:
रक्त-साव के कारण एवं प्रकार

तीव्र धार वाले औजारों (चाकू, ब्लेड, आरी आदि) से कट जाना अथवा खरोंच लग जाना रक्त-स्राव के सामान्य कारण हैं।
दुर्घटनाओं के कारण होने वाले गहरे घाव तीव्र, एवं अधिक  रक्तस्राव के कारण होते हैं। मानव शरीर में रक्त प्रवाह रक्त-वाहिनियों द्वारा होता है; अतः रक्त-प्रवाह का मूल कारण उपर्युक्त वर्णित दुर्घटनाओं के कारण रक्तवाहिनियों को फट या कट जाना होता है। रक्त-स्राव प्रायः दो प्रकार का होता है

(क) बाह्य अंगों से रक्तस्रावं,
(ख) आन्तरिक अंगों से रक्त-स्राव।

(क) बाह्य अंगों से रक्त-स्राव:

दुर्घटना के फलस्वरूप कई बार बाह्य अंगों में घाव बन जाते हैं। इन स्थानों पर धमनी अथवा शिरा के कट जाने से तीव्र रक्तस्राव होने लगता है। इसे भली प्रकार से समझने के लिए धमनी व शिरा के फटने से होने वाले रक्त-स्राव का अन्तर जानना आवश्यक है।

धमनी से होने वाला रक्तस्त्राव:
धमनी के कटने अथवा फटने पर अत्यन्त चमकीले लाल रंग का रक्त निकलता है। यदि प्रभावित धमनी हृदय के पास है, तो रक्त रुक-रुक कर हृदय के स्पन्दन के साथ-साथ झटके से बाहर निकलता है। अतः धमनी से होने वाला रक्तस्राव हृदय की ओर से होता है।

दबाव बिन्दु:
रक्त-स्राव को रोकने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को मानव शरीर में स्थित रक्त के अधिक दबाव के बिन्दुओं की जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है। ये संख्या में 6 होते हैं। पहला दबाव बिन्दु श्वास नलिका की बगल में तथा दूसरा कान के ठीक सामने की ओर होता है। तीसरा दबाव बिन्दु जबड़े से  लगभग 2.5 सेन्टीमीटर की दूरी पर होता है। चौथा बिन्दु हँसली की हड्डी के भीतरी भाग के पीछे की ओर, पाँचवाँ भुजाओं के अन्दर की ओर तथा छठा जाँध में मूत्राशय के निकट होता है। जब कभी धमनी अथवा शिरा से अधिक रक्तस्राव हो रहा हो, तो रक्तस्राव के निकट के दबाव बिन्दु पर उचित दबाव डालकर रक्तस्राव को कम किया जाता है।

धमनी से होने वाले रक्त-स्राव को रोकने के उपाय

  1. घायल व्यक्ति को ठीक प्रकार से लिटा देने पर रक्तस्राव कम हो जाता है।
  2. यदि हड्डी नहीं टूटी है, तो घायल अंगों को ऊपर उठा देने से भी रक्तस्राव में कमी आ जाती है।
  3. घाव में जिस धमनी से रक्तस्राव हो रहा हो उसके दबाव बिन्दु को भली प्रकार से दबा देना चाहिए।
  4. यदि घाव छोटा है तो स्वच्छ अंगूठे से उसे दबाना चाहिए।
  5.  घाव को दबाने के तुरन्त बाद रुई रखकर पट्टी बाँध देनी चाहिए।
  6.  यदि घाव में गन्दगी हो, तो उसे चारों ओर से एन्टीसेप्टिक घोल (डिटॉल, सैवलोन व स्प्रिट आदि) द्वारा साफ कर देना चाहिए।
  7. रक्त-स्राव रोकने के लिए टिंचर आयोडीन अथवा फैरिक क्लोराइड का घोल घाव पर छिड़कना चाहिए। फिटकरी को बारीक पीसकर घाव पर लगाने से भी रक्तस्राव को रोका जा सकता है।
  8.  घाव को स्वच्छ रुई, फलालेन अथवा अन्य कोमल वस्त्र से ढक देना चाहिए।
  9.  टूर्नाकेट का प्रयोग: यदि रक्तस्राव हाथ या टाँग जैसे अंगों से हो रहा है तो रक्तस्राव रोकने एवं प्रभावपूर्ण ढंग से धमनियों पर दबाव डालने के लिए टूर्नीकेट का प्रयोग किया जाता है। टूर्नीकेट बाँधने के लिए कई मोटी तह वाला कपड़ा अधिक उपयुक्त रहता है। कपड़े की लम्बी परन्तु कम चौड़ी पट्टियों की तह कर लेनी चाहिए। एक मुलायम कपड़े के पैड को दबाव बिन्दु के ऊपर रखकर  पट्टी कसकर बाँध देनी चाहिए। टूर्नीकेट को प्रभावित अंग पर दो बार लपेटना चाहिए तथा गाँठ लगा देनी चाहिए। अब लकड़ी का एक छोटा टुकड़ा गाँठ पर रखकर दोबारा बाँध दें। लकड़ी के टुकड़े को घुमाकर टूर्नीकेट को कसा जा सकता है जिससे धमनी पर दबाव बढ़ जाता है। टूर्नीकेट को बाँधने के लिए रबर की ट्यूब सर्वोत्तम रहती है।

सावधानियाँ:
टूर्नीकेट प्रयोग करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. टूर्नीकेट को आवश्यकतानुसार ही कसना चाहिए।
  2.  इसे प्रत्येक पन्द्रह मिनट के बाद ढीला करते रहना चाहिए, परन्तु पूर्णरूप से हटाना नहीं चाहिए।
  3. टूर्नीकेट ढीला करने पर रक्त-स्राव के कम होने का पता लगता है। यदि रक्त-स्राव कम न हो, तो टूर्नीकेट को फिर से कस देना चाहिए।
  4. इस बीच रोगी को अस्पताल ले जाने की व्यवस्था का प्रयास करना चाहिए।

शिरा का रक्त-स्राव:
शिरा के कटने अथवा फटने पर रक्त-स्राव समान गति से होता है। शिराओं से बहने वाला रक्त अशुद्ध एवं नीलापन लिए हुए गहरे रंग का होता है।

शिराओं से होने वाले रक्तस्राव को रोकने के उपाय

  1.  घायल अंग को नीचे की ओर झुका देने से रक्त-स्राव में कमी आती है।
  2.  यदि हड्डी नहीं टूटी है तो घाव को अँगूठे से दबाना चाहिए।
  3.  घाव की गन्दगी को ऐन्टीसेप्टिक घोल की सहायता से साफ कर घाव को किसी स्वच्छ कपड़े से ढक दें।
  4.  घाव वाले भाग के ऊपर बर्फ की थैली अथवा ठण्डे पानी से भीगा कपड़ा रखने से रक्तस्राव में कमी आती है।
  5.  टिंचर आयोडीन एवं फैरिक क्लोराइड प्रयोग करके रक्त-स्राव को कम किया जा सकता है।
  6.  टूर्नीकेट को सावधानीपूर्वक उपयोग करें।
  7.  रक्तस्राव बन्द हो जाने के पश्चात् घायल व्यक्ति का कई घण्टे तक ध्यान रखें, क्योंकि थोड़े से झटके से पुन: रक्तस्राव हो सकता है।

(ख) आन्तरिक अंगों से रक्त-स्राव

दुर्घटना के फलस्वरूप कई बार पीड़ित व्यक्तियों के आन्तरिक अंग (हड्डियों, फेफड़े, आँत, आमाशय व गुर्दे आदि) घायल हो जाते हैं। इस प्रकार के रोगियों के घाव बाहर से नहीं दिखाई पड़ते हैं। तथा रक्तस्राव प्राय: शरीर के अन्दर ही होता रहता है। ऐसे रोगियों के थूक व मलमूत्र के  साथ रक्त शरीर के बाहर निकलता है। इस प्रकार के रोगियों में निम्नलिखित लक्षण दिखाई पड़ते हैं

  1. घायल व्यक्ति श्वास लेने में कठिनाई होने के कारण तड़पता रहता है।
  2. रोगी के होंठ व मुँह का रंग पीला अथवा नीला पड़ जाता है।
  3. पीड़ित व्यक्ति दुर्बलता का अनुभव करता है।
  4.  पीड़ित व्यक्ति बेहोश हो सकता है।
  5.  नाड़ी की गति धीमी होने लगती है।
  6.  रोगी को रक्तस्राव के कारण सदमा पहुँच सकता है।

आन्तरिक अंगों से होने वाले रक्तस्राव का उपचार

  1.  रोगी को तत्काल लिटा देना चाहिए तथा उसे पूर्ण विश्राम देना चाहिए।
  2. रोगी को खाने-पीने को कुछ नहीं देना चाहिए।
  3. प्यास लगने पर रोगी को चूसने के लिए बर्फ का टुकड़ा देना चाहिए।
  4.  रक्त निकलने वाले स्थान पर बर्फ की थैली रखनी चाहिए।
  5.  रोगी को उसके वस्त्र ढीले कर हवादार स्थान पर लिटाना चाहिए।
  6. यदि फ़ैक्चर है तो रोगी के रक्त-स्राव को रोकने का तो प्रयास करना चाहिए, परन्तु उसे हिलाना-डुलाना नहीं चाहिए।
  7.  घायल व्यक्ति को सांत्वना एवं धैर्य बँधाना एक अति महत्त्वपूर्ण कार्य है।
  8.  निकट के अस्पताल तक तत्काल सूचना भेजनी अथवा भिजवानी चाहिए।

 

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
हिस्टीरिया एवं मिरगी रोगों के लक्षणों में क्या अन्तर है? इनके उपचार के उपाय सुझाइए।
उत्तर:

प्रश्न 2:
दम घुटने से क्या अभिप्राय है?इस अवस्था में क्या प्राथमिक चिकित्सा करनी चाहिए?
उत्तर:
दम घुटना-बन्द स्थान तथा दूषित वायु में प्रायः व्यक्ति का दम घुटने लगता है तथा वह बेचैनी का अनुभव करता है। दम घुटने पर मरणान्तक स्थिति प्रायः धुएँ में उपस्थित कार्बन मोनोऑक्साइड गैस के कारण होती है। दम घुटने की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति सामान्यतः सिर दर्द, जी मिचलाना, धुंधला दिखाई देना तथा दुर्बलता का अनुभव करता है। समय पर उपयुक्त चिकित्सा सहायतान मिलने पर पीड़ित व्यक्ति मूर्च्छित होकर मर भी सकता है। प्राथमिक उपचार-निम्नलिखित उपायों को अपनाकर दम घुटने जैसी घातक स्थिति पर एक सीमा तक नियन्त्रण किया जा सकता है

  1.  दम घुटने की स्थिति से बचने के लिए सोते समय कमरे की खिड़कियाँ व रोशनदान खुले रखें तथा कभी भी बन्द कमरे में अँगीठी अथवा धुआँ उत्पन्न करने वाली अन्य किसी सामग्री का उपयोग नकरें।
  2. पीड़ित व्यक्ति को तुरन्त हवादार स्थान पर ले जाना चाहिए।
  3. यदि पीड़ित व्यक्ति की श्वास गति अवरुद्ध हो रही हो, तो तत्काल उसे कृत्रिम श्वास दें। शीघ्रातिशीघ्र पीड़ित व्यक्ति के लिए ऑक्सीजन गैस की व्यवस्था करें।
  4.  यदि पीड़ित व्यक्ति की हृदय गति रुक गइ हो, तो उसकी वक्ष अस्थि के मध्य भाग के ऊपर प्रति मिनट लगभग 60 बार कृत्रिम हृदय स्पन्दन की क्रिया करें।

प्रश्न 3:
नाक से रक्त-स्राव किन परिस्थितियों में हो सकता है? नाक से रक्त-स्राव रोकने के कुछ कारगर उपाय सुझाइए।
या
नाक के रक्त-स्राव को रोकने के लिए आप क्या उपाय करेंगी?
उत्तर:
नाक से रक्त-स्राव:
नाक अथवा खोपड़ी पर आघात लगने से अथवा अधिक गर्मी से नसीर फूट जाने पर नाक से रक्तस्राव हुआ करता है। कई बार उपयुक्त उपचार देर से उपलब्ध होने पर नाक से होने वाला रक्तस्रावे घातक सिद्ध होता है।

प्राथमिक उपचार:

  1.  रोगी को सीधा बैठाकर मुँह से श्वास दिलाना चाहिए।
  2. रोगी की नाक व गर्दन के पीछे बर्फ की थैली धीरे-धीरे फिराएँ तथा बर्फ चूसने को दें।
  3. रोगी के पैरों को कुछ समय तक गरम पानी में रखने से शरीर के निचले भागों में रक्त प्रवाह अधिक होता है, जिससे नाक से होने वाले रक्तस्राव में कुछ कमी आती है।
  4.  रोगी की नाक को अँगूठे एवं उँगली के बीच में दबा लें। इस प्रकार लगभग पाँच मिनट तक दबाए रखने से रक्त-स्राव प्रायः रुक जाता है।
  5.  यदि खोपड़ी के पास चोट हो अथवा रक्तस्राव न रुक रहा हो तो रोगी को तत्काल अस्पताल पहुँचाने की व्यवस्था करें।

प्रश्न 4:
घाव कितने प्रकार के होते हैं? इनका उपचार आप किस प्रकार करेंगी?
उत्तर:
घाव के प्रकार
साधारणत: घाव निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं

(क) कुचले हुए घावे:
हथौड़े, ईंट, पत्थर आदि वस्तुओं की चोट के कारण उँगलियाँ आदि कुचलकर नीली पड़ जाती हैं। इस प्रकार के घावों से रक्तस्राव कम, परन्तु पीड़ा अधिक होती है।

(ख) कटे धाव:
तेज धार वाले औजारों (चाकू, ब्लेड, छुरी व काँच आदि) से कई बार शरीर के विभिन्न भागों के कटने से इस प्रकार के घाव बनते हैं। अधिक गहरे होने पर धमनी अथवा शिरा के कट जाने से इस प्रकार के घावों से रक्तस्राव अधिक हुआ करता है।

(ग) फटे हुएघाव:
ये घाव सामान्यतः मशीनों, जानवरों के सींगों तथा पंजों आदि के द्वारा होते हैं। इनके किनारे कटे-फटे तथा टेढ़े-मेढ़े होते हैं। इनसे रक्त-स्राव अधिक नहीं होता, परन्तु शरीर में विष फैलने का भय अधिक रहता है।

(घ) गोली का घाव:
इस प्रकार के घाव प्रायः नुकीली वस्तुओं (सुई, काँटे, बल्लम व गोली आदि) के लगने से होते हैं। ऐसे घावों में टिटेनस होने की अधिक आशंका रहती है।

घावों के सामान्य उपचार
उपर्युक्त वर्णित घावों के प्राथमिक उपचार के लिए निम्नलिखित उपाय उपयोगी सिद्ध होते हैं

  1. कुचले हुए घाव को नि:संक्रामक घोल से धोकर बर्फ के पानी में भीगी हुई पट्टी बाँधने से लाभ होता है। पीने के लिए ग्लूकोज देने पर पीड़ित व्यक्ति राहत अनुभव करता है।
  2. कटे हुए घाव को नि:संक्रामक घोल से साफ कर रक्तस्राव रोकने के प्रयास करने चाहिए। इसके लिए टिंचर आयोडीन, पिसी हुई फिटकरी अथवा टूर्नीकेट का प्रयोग करना चाहिए।
  3.  फटे हुए घावों को नि:संक्रामक घोल से साफ करना चाहिए। अब इस पर सल्फोनेमाइड पाउडर छिड़क कर पट्टी बाँधनी चाहिए। रक्तस्राव होने की स्थिति में उसे रोकने के उपर्युक्त वर्णित उपाय करने चाहिए।
  4. गोली के घाव वाले व्यक्ति के घाव को नि:संक्रामक द्वारा साफ कर रक्तस्राव रोकने के उपाय करने चाहिए तथा रोगी को तत्काल अस्पताल भिजवाने की व्यवस्था करनी चाहिए।

 

प्रश्न 5:
विष खा लेने पर क्या उपचार करेंगी?
उत्तर:
विष खाए व्यक्ति की प्राथमिक चिकित्सा-विष का सेवन किए व्यक्ति को तत्काल निम्नलिखित प्राथमिक चिकित्सा मिलनी चाहिए.

  1.  रोगी के आस-पास विष की शीशी अथवा पुड़िया की खोज करें जिससे कि विष के प्रकार का पता चल सके तथा उसके अनुसार उपचार प्रारम्भ किया जा सके।
  2.  रोगी को वमन कराना चाहिए, परन्तु क्षारक विष के रोगी को वमन कराना हानिकारक होता है, उसे क्षार प्रतिरोधक का सेवन कराना चाहिए।
  3.  यदि विष अम्लीय है तो रोगी को चूने का पानी, खड़िया मिट्टी अथवा मैग्नीशियम का घोल देना चाहिए।
  4. निद्राकारी विष के उपचार में रोगी को सोने नहीं देना चाहिए। इसके लिए उसे तेज चाय अथवा कॉफी पिलानी चाहिए।
  5.  रोगी को गुदा द्वारा नमक का पानी चढ़ाना चाहिए।
  6.  रोगी को तत्काल चिकित्सालय पहुँचाना चाहिए। चिकित्सालय ले जाते समय विष की खाली शीशी अथवा रोगी के वमन को शीशी में रखकर अवश्य ले जाना चाहिए ताकि विष की शीघ्र पहचान हो । सके तथा उपयुक्त विष प्रतिरोधक रोगी को दिया जा सके।
  7. विष से बचने के लिए घर में कभी भी अनावश्यक औषधियाँ एवं रासायनिक पदार्थ नहीं रखने चाहिए तथा सभी औषधियों एवं रासायनिक पदार्थों को सावधानीपूर्वक नामांकित करके रखना चाहिए।
  8.  सभी औषधियाँ एवं रासायनिक पदार्थ बच्चों की पहुँच से सदैव दूर रहने चाहिए।

प्रश्न 6:
धमनी व शिरा के रक्त-स्राव में क्या अन्तर है? या धमनी एवं शिरा में क्या अन्तर है? समझाइए।
उत्तर:

प्रश्न 7:
लू लगने के लक्षण एवं उपचार बताइए।
उत्तर:
लक्षण-ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की तेज किरणों से गरम होकर बहने वाली वायु लू कहलाती है। इसके अधिक समय तक निरन्तर सम्पर्क में आने पर प्रायः व्यक्ति रोगी हो जाते हैं। इस स्थिति को ‘लू लगना’ कहा जाता है। लू से पीड़ित व्यक्तियों में सामान्यत: रोग के निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं

  1. सिर में दर्द होता है तथा चक्कर आते हैं।
  2.  प्यास बहुत लगती है तथा सारे शरीर में खुश्की आ जाती है।
  3.  चेहरा लाल हो जाता है तथा नाड़ी की गति तीव्र हो जाती है।
  4.  श्वास गति बढ़ जाती है।
  5. रक्तचाप कम हो जाता है।
  6.  तेज ज्वर हो जाता है तथा रोगी को मूच्र्छा आने लगती है।

उपचार:
यदि रोगी को समय पर निम्नलिखित उपचार उपलब्ध हो जाएँ तो उसे रोग के घातक परिणामों से बचाया जा सकता है

  1.  रोगी को तत्काल छायादार ठण्डे स्थान पर ले जाना चाहिए।
  2. रोगी को बार-बार ठण्डे पानी से नहलाना चाहिए।
  3. रोगी के सिर पर बर्फ की टोपी रखनी चाहिए।
  4. यदि ज्वर पुनः चढ़ता है, तो ठण्डे पानी से स्पन्ज करना चाहिए।
  5.  रोगी के हाथ-पैर पर मेंहदी अथवा प्याज पीसकर लगाने से लाभ होता है।
  6. रोगी को बार-बार कच्चे आम का पन्ना पिलाने से अत्यधिक लाभ होता है।
  7.  गम्भीर अवस्था में रोगी को तत्काल किसी योग्य चिकित्सक को दिखाना चाहिए।

प्रश्न 8:
सदमा पहुँचने से आप क्या समझती हैं? सदमे के लक्षणों एवं प्राथमिक उपचार का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
सदमा पहुँचना (shock) भी एक ऐसी दुर्घटना है जो आकस्मिक रूप से घटित हो सकती है। गम्भीर रूप से घायल हो जाने अथवा कोई शोक समाचार सुनते ही व्यक्ति सदमे का शिकार हो सकता है। सदमे की स्थिति में व्यक्ति अत्यधिक शिथिल हो जाता है तथा कभी-कभी मूर्च्छित भी हो, जाता है। व्यक्ति के शरीर की सामान्य क्रियाएँ या तो रुक जाती हैं या धीमी पड़ जाती हैं। ऐसा शरीर में रक्त-संचार के अनियमित हो जाने के कारण होता है।

सदमे के लक्षण:
सदमे के मुख्य सामान्य लक्षण निम्नलिखित होते हैं

  1. सदमाग्रस्त व्यक्ति के मुख पर भय, दुःख अथवा आश्चर्य के भाव स्पष्ट रूप से देखे जा सकते
  2.  रोगी का चेहरा पीला पड़ जाता है तथा आँखों की पतलियाँ फैल जाती हैं।
  3. रोगी का शरीर निष्क्रिय या शिथिल हो जाता है। इसके साथ ही शरीर कुछ ठण्डा भी हो जाती है।
  4.  सदमाग्रस्त व्यक्ति के माथे पर ठण्डा पसीना आने लगता है।
  5.  रोगी की नब्ज की गति कभी तेज तथा कभी मन्द होने लगती है अर्थात् नब्ज अनियमित हो जाती
  6.  व्यक्ति का जी मिचलाने लगता है, उल्टियाँ भी हो सकती हैं। प्यास अधिक लगती है।

उपचार:
सदमाग्रस्त व्यक्ति के निम्नलिखित प्राथमिक उपचार किए जाने चाहिए

  1.  सदमाग्रस्त व्यक्ति को बिना तकिया दिए आराम से लिटा दें ताकि मस्तिष्क की ओर रक्त का उचित संचार हो सके।
  2. यदि ठण्ड का मौसम हो, तो रोगी को अधिक ठण्ड से बचाना आवश्यक होता है। यदि मौसम गर्म हो, तो अधिक गर्मी से भी बचाने का उपाय करना चाहिए।
  3.  यदि व्यक्ति मूच्छित हो गया हो, तो उसकी मूच्र्छा को दूर करने के उपाय करने चाहिए। इसके लिए अमोनिया भी सुंघाया जा सकता है।
  4.  रोगी के कुछ सामान्य होने पर गर्म चाय या कॉफी पिलाई जा सकती है।
  5. यदि डॉक्टर की सुविधा उपलब्ध हो तो उसे तुरन्त बुला लेना चाहिए।

 

प्रश्न 9:
आँख में तिनका पड़ जाने पर आप क्या प्राथमिक चिकित्सा करेंगी?
उत्तर:
नेत्र हमारे सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनकी नियमित देखभाल एवं सुरक्षा बहुत आवश्यक है। आँख में यदि धूल के कण अथवा तिनका आदि गिर जाएँ तो निम्नलिखित उपचार करने चाहिए

  1. प्रभावित आँख को कभी नहीं मलना चाहिए, क्योंकि इससे आँख घायल हो सकती है।
  2. अप्रभावित अथवा दूसरी आँख को हल्के से मलने से लाभ होता है।
  3. नाक को जोर से साफ करने से आँसुओं के साथ धूल के कण बाहर निकल जाते हैं।
  4. साफ एवं उबालकर ठण्डा किए हुए पानी को आँख धोने के गिलास में डालकर आँख साफ करें।
  5.  आँखों में एक बूंद रेंडी अथवा जैतून का तेल डालने से आँसुओं के साथ तिनका अथवा धूल के कण बाहर निकल जाते हैं।
  6. यदि इतना करने पर आँख साफ न हो सके और पीड़ा बढ़ रही हो, तो तुरन्त नेत्र-चिकित्सक से सम्पर्क करें।

प्रश्न 10:
डूबे मनुष्य को क्या प्राथमिक चिकित्सा देनी चाहिए? या किसी व्यक्ति के पानी में डूबने पर आप क्या उपचार करेंगी? .
उत्तर:
प्रायः मनुष्य या तो तैरते समय अथवा आत्महत्या का प्रयास करने की स्थिति में पानी में डूबते हैं। डूबते हुए व्यक्ति को तत्काल पानी से बाहर निकालकर निम्नलिखित प्राथमिक चिकित्सा सहायता देनी चाहिए

  1. पीड़ित व्यक्ति की नाक, कान, गले तथा मुँह इत्यादि से कीचड़ एवं बालू तत्काल साफ करें।
  2.  वस्त्र उतार कर रोगी को उल्टा लटकाएँ। ऐसा करने से उसके मुंह से कुछ पानी बाहर निकल जाएगा।
  3. अब रोगी को पेट के बल अपनी जाँघ पर लिटाओ। इस प्रकार पेट पर दबाव पड़ने से रोगी का । अधिकांश पानी बाहर निकल जाएगा।
  4. पानी बाहर निकलने के बाद रोगी को कृत्रिम श्वसन प्रदान करें।
  5. होश में आने पर रोगी को सांत्वना एवं धैर्य बँधाएँ।
  6. यदि रोगी की अवस्था अधिक गम्भीर है तो रोगी को तुरन्त अस्पताल स्थानान्तरित करें।

प्रश्न 11:
साँप के काटने पर आप क्या प्राथमिक चिकित्सा करेंगी? या साँप के काटने पर आप क्या उपचार करेंगी?
उत्तर:
साँप के काटने पर प्राथमिक चिकित्सा-यह निश्चित होने पर कि साँप ने काटा है, निम्नलिखित उपचार तुरन्त करने चाहिए

  1.  काटे हुए स्थान से विष निकालने के लिए किसी तेज धार वाले ब्लेड या चाकू से घाव को और काटना चाहिए और रक्तस्राव होने देना चाहिए।
  2. सर्पदंश वाले व्यक्ति को सोने नहीं देना चाहिए।
  3. कटे हुए भाग के ऊपर यदि सम्भव हो तो दो या तीन स्थानों पर टूर्नाकेट, कपड़े, सुतली अथवा अन्य किसी डोरी या टाई से कसकर बन्ध लगा देना चाहिए ताकि रुधिर का प्रवाह रुक जाए और विष शरीर में न फैल सके।
  4. दबाकर भी विष निकाला जा सकता है अथवा मुंह से चूसकर अथवा एक छोटे मुँह की बोतल को गर्म करके उस स्थान पर मुँह की ओर से दबाने और बोतल को ठण्डा होने देने से रक्त बोतल में आएगा।
  5.  कोई सर्प विष-रोधक दवा डॉक्टर की सलाह से देनी चाहिए। टिटेनस प्रतिरोधक इन्जेक्शन भी लगवाना चाहिए।

प्रश्न 12:
टिप्पणी लिखिए-बिच्छू द्वारा डंक मारना।
उत्तर:
बिच्छू द्वारा डंक मारना एक सामान्य घरेलू दुर्घटना है। बिच्छू एक विषैला जन्तु है। वास्तव में बिच्छू काटता नहीं है, बल्कि उसकी पूँछ के सिरे पर डंक रहता है। पूँछ के इसी स्थान में एक थैली के अन्दर विष रहता है। जब किसी व्यक्ति के शरीर में यह अपने डंक को चुभोता है, तो साथ-ही-साथ शरीर में विष को भी प्रवेश करा देता है। बिच्छू के डंक मारने से व्यक्ति को बहुत अधिक पीड़ा होती है, परन्तु कुछ असामान्य दशाओं को छोड़कर सामान्य रूप से बिच्छू का डंक मारना घातक सिद्ध नहीं होता। बिच्छू के डंक मारने के कारण उत्पन्न होने वाले मुख्य लक्षण हैं–तीव्र पीड़ा होना, जी मिचलाना तथा उल्टी होना तथा शरीर में एक प्रकार की  झनझनाहट होना। विष के अधिक फैल जाने की स्थिति में रक्त परिसंचरण धीमा हो जाता है तथा श्वास-गति तेज हो जाती है। शरीर के जिस भाग में बिच्छू द्वारा डंक मारा जाता है, उसके आस-पास अत्यधिक जलन होती है। बिच्छू के डंक मारने की दशा में प्राथमिक उपचार के लिए विष को पूरे शरीर में फैलने से रोकने के लिए टूर्नीकेट बाँध देना चाहिए। डंक के स्थान पर बर्फ लगाने से पीड़ा कम हो सकती है। इसके साथ-साथ डॉक्टर के परामर्श से दवाओं एवं इंजेक्शन का भी प्रयोग करनी चाहिए।

 

प्रश्न 13:
टिप्पणी लिखिए-पागल कुत्ते द्वारा काटना।
उत्तर:
कभी-कभी कुत्ते पागल हो जाते हैं। यह पागलपन रेबीज नामक विषाणु के संक्रमण के परिणामस्वरूप होता है। पागल कुत्ते अकारण ही राह चलते व्यक्ति को काट लेते हैं। पागल कुत्ते द्वारा काटा जाना बहुत हानिकारक होता है। पागल कुत्ते की पहचान बड़ी सरलता से की जा सकती है। उसकी पूँछ हमेशा टाँगों के बीच में झुकी रहती है और उसके मुख की आकृति भयानक हो जाती है। पागल कुत्ते के मुँह से सफेद रंग की झाग निकलती रहती है तथा वह अकारण ही भौंकता रहता है। पागल कुत्ते की । लार में रेबीज नामक विषाणु  व्याप्त हो जाते हैं। जब यह कुत्ता किसी व्यक्ति को काट लेता है, तब कुत्ते की लार के माध्यम से ये विषाणु व्यक्ति के रक्त में मिल जाते हैं। ये विषाणु व्यक्ति के मस्तिष्क में पहुँचकर व्यक्ति को रोगग्रस्त कर देते हैं। रेबीज के संक्रमण के परिणामस्वरूप होने वाले रोग को हाइड्रोफोबिया कहते हैं। एक बार हाइड्रोफोबिया हो जाने पर उसका कोई उपचार नहीं है तथा रोगी की शीघ्र ही अनिवार्य रूप से मृत्यु हो जाती है।

प्रश्न 14:
पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर आप क्या प्राथमिक उपचार करेंगी? हाइड्रोफोबिया के लक्षण भी लिखिए।
उत्तर:
पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर प्राथमिक चिकित्सा-यदि किसी व्यक्ति को पागल कुत्ता, बन्दर, गीदड़ या लोमड़ी आदि कोई भी पशु काट लेता है, तो उस दशा में हाइड्रोफोबिया नामक रोग के हो जाने की आशंका रहती है। इस स्थिति में निम्नलिखित प्राथमिक उपचार अवश्य किया जाना चाहिए.

  1.  पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर घाव को साबुन से पानी द्वारा खूब अच्छी तरह धोना चाहिए। भली-भाँति धोने के उपरान्त घाव पर कार्बोलिक एसिड लगाना चाहिए। इस घाव को खुला रखना चाहिए। अर्थात् पट्टी नहीं बाँधनी चाहिए।
  2.  कुत्ते द्वारा काटे गए व्यक्ति को टिटेनस से बचाव का टीका अवश्य लगवा देना चाहिए।
  3.  उपर्युक्त प्राथमिक उपचार के उपरान्त चिकित्सक के परामर्श के अनुसार व्यक्ति को हाइड्रोफोबिया से बचाव के टीके भी अवश्य लगाए जाने चाहिए। पारम्परिक रूप से हाइड्रोफोबिया से बचाव के 14 टीके लगते थे, जो कि व्यक्ति के पेट में लगाए जाते थे तथा काफी कष्टदायक होते थे। अब हाइड्रोफोबिया से बचाव के कुछ आधुनिक टीके तैयार कर लिए गए हैं जो बाँह में लगते हैं तथा कम कष्टकारी होते हैं। ये केवल पाँच टीके ही लगाए जाते हैं।

हाइड्रोफोबिया के लक्षण:
रेबीज विषाणु के संक्रमण के परिणामस्वरूप होने वाले हाइड्रोफोबिया नामक रोग के मुख्य लक्षण निम्नलिखित होते हैं

(i) हाइड्रोफोबिया की दशा में रोगी के गले में तीव्र पीड़ा होती है, गले की मांसपेशियाँ निष्क्रिय होने लगती हैं, कुछ भी खाने-पीने में कठिनाई होती है तथा किसी वस्तु को निगलना असम्भव हो जाता है।
(ii) रोगी व्यक्ति पानी भी नहीं पी पाता तथा कभी-कभी इस दशा में उसे पानी से भय भी लगने लगता है।

प्रश्न 15:
टिप्पणी लिखिए-कीट ( ब ) द्वारा डंक मारना।
उत्तर:
शहद की मक्खी, बरें अथवा कुछ अन्य कीटों द्वारा डंक मारने पर व्यक्ति को असहनीय पीड़ा होती है। इन कीटों के शरीर के पिछले भाग में डंक तथा उससे पहले विष की थैली होती है। ये कीट जब व्यक्ति को डंक मारते हैं, तो प्रायः उनका डंक टूट कर व्यक्ति के शरीर में ही रह जाता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए डंक मारने के उपचार के लिए सर्वप्रथम डंक को निकालने का कार्य किया जाना चाहिए। इसके लिए  किसी खोखली नली या चाबी से उस स्थान को दबाने अथवा रगड़ने पर डंक निकल जाता है। काटे गए स्थान पर स्प्रिट लगानी चाहिए। इसके उपरान्त खाने का सोडा गीला करके डंक के स्थान पर मलना चाहिए। इससे बरों का विष निष्क्रिय हो जाता है। यदि कीट अधिक विषैला हो तथा विष के फैलने के लक्षण दिखाई दें तो रक्त प्रवाह को बन्ध लगा कर रोकना चाहिए। यदि स्थिति गम्भीर प्रतीत हो तो तुरन्त चिकित्सक से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न:

प्रश्न 1:
सामान्य रूप से घटित होने वाली दुर्घटनाओं के मुख्य कारण क्या होते हैं?
उत्तर:
सामान्य रूप से घटित होने वाली दुर्घटनाओं के मुख्य कारण लापरवाही या असावधानी तथा अज्ञानता होते हैं।

प्रश्न 2:
सामान्य रूप से घटित होने वाली मुख्य घरेलू दुर्घटनाएँ कौन-कौन सी होती हैं?
उत्तर:
सामान्य रूप से घटित होने वाली मुख्य घरेलू दुर्घटनाएँ हैं – जलना या झुलसना, चोट लगना तथा रक्तस्राव होना, लू या गर्मी लग जाना, पानी में डूब ज रा, साँप, बिच्छू या बरों द्वारा डंक मार देना, कुत्ते/बन्दर आदि पशुओं द्वारा काटा जाना, बच्चों द्वारा आँख, नाक या कान में कोई वस्तु हँसा लेना, दम घुटना, बेहोशी या दौरा पड़ना या आकस्मिक हृदय का दौरा पड़ना आदि।

 

प्रश्न 3:
लू के रोगी को पीने के लिए क्या देना हितकर रहता है?
उत्तर:
लु के रोगी को कच्चे आम का पन्ना पीने के लिए देना लाभप्रद रहता है।

प्रश्न 4:
लू लगने पर तुरन्त क्या उपचार किया जाना चाहिए?
उत्तर:
रोगी को ठण्डे पानी से नहलाकर प्याज का रस अथवा कच्चे आम का पन्ना पीने को देना चाहिए।

प्रश्न 5:
डबने वाले व्यक्ति को सर्वप्रथम क्या सहायता देनी चाहिए?
उत्तर:
सर्वप्रथम डूबने वाले व्यक्ति के पेट में भरी अतिरिक्त पानी बाहर निकालना चाहिए तथा फिर यदि आवश्यक हो, तो उसे कृत्रिम श्वसन दिलाना चाहिए।

प्रश्न 6:
बच्चे की नाक में कोई वस्तु फैंसने पर आप क्या करेंगी?
उत्तर:
नसवार, मिर्च व तम्बाकू आदि सुंघाने पर छींक के साथ प्रायः नाक में फैंसी वस्तु बाहर निकल जाती है। ऐसा न होने पर चिकित्सक से सहायता प्राप्त करनी चाहिए।

प्रश्न 7:
कटे हुए घावों का क्या प्राथमिक उपचार करोगी?
उत्तर:
कटे हुए घावों को स्वच्छ रुई की सहायता से किसी नि:संक्रामक (एन्टीसेप्टिक) घोल द्वारा साफ कर पट्टी बाँध देनी चाहिए।

प्रश्न 8:
मूच्र्छा दूर करने के प्राथमिक उपाय क्या हैं?
उत्तर:
मूर्च्छित व्यक्ति को हवादार स्थान पर लिटाकर उसके मुंह पर ठण्डे पानी के छींटे लगाने चाहिए अथवा उसे अमोनिया हुँघानी चाहिए।

प्रश्न 9:
रक्त-स्राव होने पर आप क्या प्राथमिक चिकित्सा करेंगी?
उत्तर:
प्रभावित धमनी के दबाव बिन्दु को भली प्रकार दबाना चाहिए। घाव पर पिसी हुई फिटकरी बुकने, टिंचर आयोडीन अथवा फैरिक-क्लोराइड का घोल छिड़कने से रक्त-स्राव को रोका जा सकता है।

प्रश्न 10:
पागल कुत्ते की क्या पहचान है?
उत्तर:
पागल कुत्ते के लक्षण निम्नलिखित हैं

  1.  यह अकारण भौंकती रहता है।
  2. उसके मुंह से झाग निकलते रहते हैं।
  3. उसकी पूँछ दोनों टाँगों के बीच झुकी होती है।

 

प्रश्न 11:
पागल कुत्ते द्वारा काटे गए रोगी के क्या लक्षण हैं?
उत्तर:
पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर हाइड्रोफोबिया नामक रोग हो जाता है। इस रोग की स्थिति में

  1. रोगी को पानी से डर लगता है,
  2. भोजन अथवा पेय पदार्थ नहीं निगला जाता तथा
  3.  गले में दर्द होता है।

प्रश्न 12:
पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर प्राथमिक उपचार क्या हैं?
उत्तर:
पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर-

  1.  घाव को स्प्रिट से धोकर तथा कार्बोलिक अम्ल से जलाकर विष समाप्त कर देना चाहिए,
  2. तत्काल अस्पताल जाकर विष निरोधक सुई लगवाएँ तथा
  3.  पागल कुत्ते की सूचना तुरन्त नगर के स्वास्थ्य अधिकारी को दें।

प्रश्न 13:
साँप के काटने पर बन्ध क्यों लगाया जाता है?
उत्तर:
साँप के काटने के स्थान से थोड़ा ऊपर कसकर बन्ध लगाया जाता है ताकि रक्त-प्रवाह रुक जाए तथा विष शरीर के अन्य अंगों तक न पहुंचे।

प्रश्न 14:
किन अम्लों से शरीर जल जाता है?
उत्तर:
गन्धक, नमक व शोरे के सान्द्र अम्लों से शरीर जल जाता है।

प्रश्न 15:
खपच्चियों का प्रयोग कब किया जाना चाहिए?
उत्तर:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के अस्थि-भंग वाले अंग के दोनों ओर खपच्चियाँ बाँधना लाभप्रद रहता है, परन्तु कोमल अंगों (पसलियाँ, गर्दन आदि) की अस्थि भंग होने पर खपच्चियाँ प्रयोग में नहीं
लाइ जाती हैं।

 

प्रश्न 16:
टूर्नीकेट क्या है? इसका क्या काम है? या टूर्नीकेट से आप क्या समझती हैं?
उत्तर:
निरन्तर हो रहे रक्त-स्राव को रोकने के लिए कपड़ों की पट्टियों से बने पैड द्वारा सम्बन्धित धमनियों पर दबाव डाला जाता है। मुलायम कपड़े का यह पैड टूर्नीकट कहलाता है तथा इसे बाँधकर रक्त-स्राव को रोका जाता है।

प्रश्न 17:
जले हुए स्थान पर लगाने के लिए किन्हीं दो औषधियों के नाम बताओ जो घर पर उपलब्ध हों।
उत्तर:
ये औषधियाँ हैं-बरनॉल तथा नारियल का तेल।

प्रश्न 18:
बिजली का झटका लगने पर तुरन्त उपचार बताइए।
उत्तर:
बिजली की लाइन काटकर रोगी को लकड़ी की मेज या तख्ते पर लिटाना चाहिए।

प्रश्न 19:
एको गृहिणी के पैर में असावधानी के कारण एक सुई घुसकरटूट गइ हो, तो आप क्या व्यवस्था करेंगी?
उत्तर:
चोट लगे स्थान के ऊपर रुधिर प्रवाह रोकने के लिए पानी या बर्फ का भीगा कपड़ा कसकर बाँध देंगे तथा डॉक्टर को बुलाएँगे।

 

प्रश्न 20:
यदि किसी व्यक्ति के कान में कीट घुस गया हो, तो उसे आप कैसे निकालेंगी?
उत्तर:
कान में किसी कीट के घुसे जाने पर हाइड्रोजन परॉक्साइड डालने से कीट निकल जाता है। तथा हल्का गर्म सरसों का तेल डालकर उल्टा करने से भी कीट निकल जाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) सामान्य दुर्घटनाएँ घटित होती हैं
(क) दैवी कृपा से,
(ख) भाग्यवश,
(ग) लापरवाही तथा अज्ञानतावश,
(घ) अज्ञात कारणों से।

(2) पागल कुत्ते के काटने से होने वाला रोग है
(क) हिस्टीरिया,
(ख) मिरगी,
(ग) रक्तस्राव,
(घ) हाइड्रोफोबिया।

(3) क्षार से जल जाने पर ज़ले हुए भाग पर लगाना चाहिए
(क) बरनॉल,
(ख) डिटॉल,
(ग) प्याज का रस,
(घ) नीबू का रस

(4) अम्ल से जल जाने पर लगाना चाहिए
(क) नींबू का रस,
(ख) सिरका,
(ग) खाने का सोडा,
(घ) कुछ भी नहीं।

(5) जले हुए व्यक्ति को पीने के लिए देना चाहिए
(क) मद्य,
(ख) मद्यरहित पेय,
(ग) दोनों ही,
(घ) दोनों ही नहीं।

(6) हाथ या टाँग के घाव से होने वाले रक्त-स्राव को रोकने का सर्वोत्तम उपाय है
(क) टूर्नीकेट का प्रयोग,
(ख) स्प्रिट का प्रयोग,
(ग) खपच्चियों का प्रयोग,
(घ) इनमें से कोई नहीं।

 

(7) आन्तरिक रक्तस्राव को कम करने के लिए क्या प्राथमिक उपचार किया जाता है?
(क) बर्फ की थैली रखना,
(ख) गीले कपड़े में लपेटना,
(ग) टूर्नीकेट का प्रयोग करना।
(घ) कोई उपचार नहीं।

(8) जलने पर रोगी का उपचार है
(क) डिटॉल लगाना,
(ख) पिसी आलू लगाना,
(ग) पिसा नमक लगाना,
(घ) गर्म तेल।

(9) किस रक्त-नलिका के कट जाने से लगातार रक्त बहता है?
(क) शिरा,
(ख) नाड़ी,
(ग) तन्तु,
(घ) धमनी।

(10) सर्प के काटने पर काटे हुए स्थान पर लगाते हैं
(क) बरनॉल,
(ख) लाल मिर्च,
(ग) पोटैशियम परमैंगनेट,
(घ) नौसादर।

(11) डिटॉल का मुख्य कार्य है
(क) जलन को दूर करना,
(ख) घाव को कीटाणु रहित करना,
(ग) मूच्र्छा दूर करना,
(घ) रक्त-स्राव बन्द करना।

(12) मिरगी या हिस्टीरिया के कारण मूच्र्छा आने पर प्रथम उपचार है
(क) रोगी के मानसिक कष्ट को दूर करना,
(ख) पुराना जूता सुंघाना,
(ग) रोगी को शुद्ध वायु में लिटा देना,
(घ) पीली मिट्टी हुँघाना।

 

(13) नाक से रक्त-स्त्राव होने पर
(क) जूता सुंघाना चाहिए,
(ख) पीली मिट्टी सुंघा देनी चाहिए,
(ग) कुर्सी पर बैठाकर सिर पीछे की ओर झुका देना चाहिए,
(घ) घायल को उल्टा लिटा देना चाहिए।

उत्तर:

(1) (ग) लापरवाही तथा अज्ञानतावश,
(2) (घ) हाइड्रोफोबिया,
(3) (घ) नीबू का रस,
(4) (ग) खाने : का सोडा
(5) (ख) मद्यरहित पेय,
(6) (क) टूर्नीकेट का प्रयोग,
(7) (क) बर्फ की थैली रखना,
(8) (ख) पिसा आलू लगाना,
(9) (क) शिरा,
(10) (ग) पोटैशियम परमैंगनेट,
(11) (ख) घाव को कीटाणु रहित करना,
(12) (ग) रोगी को शुद्ध वायु में लिटा देना,
(13) (ग) कुर्सी पर बैठाकर सिर पीछे की ओर झुका देना चाहिए।

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