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अंधकार युग की अवधारणा

अंधकार युग की अवधारणा

अंधकार युग की अवधारणा

पवित्र रोमन साम्राज्य-पश्चिमी रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात यूरोप में अराजक स्थिति व्याप्त गई। प्राचीन सभ्यता-संस्कृति
पतन के कगार पर पहुँच गई। बर्बर आक्रमणों के परिणामस्वरूप राजनीतिक एवं प्रशासनिक-व्यवस्था नष्टप्राय हो गई। फ्रांक जाति के वीर विजेता और शासक शार्लमाँ (Charlemagne-742-814 ई.) ने इस अव्यवस्था का लाभ उठाकर 9वीं शताब्दी में एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की। इस साम्राज्य के अंतर्गत फ्रांस, जर्मनी, रोम और इटली के बड़े भाग सम्मिलित थे। शार्लमाँ का यह साम्राज्य कैरोलिंगियन साम्राज्य (Carolingian Empire) के नाम से विख्यात है। शार्लमाँ ने उस समय के ईसाई जगत के धर्मगुरु पोप की अधिसत्ता स्वीकार कर ली। इससे प्रसन्न होकर पोप लियो तृतीय (Leo III) ने क्रिसमस दिवस 800 ई. को शार्लमाँ को सम्राट के रूप में मान्यता देकर उसे राजमुकुट प्रदान किया। इस घटना के पश्चात कैरोलिंगियन
साम्राज्य पवित्र रोमन साम्राज्य (Holy Roman Empire) के रूप में विख्यात हुआ।
814 ई. में शार्लमाँ की मृत्यु के पश्चात उसका साम्राज्य छिन्न-भिन्न होने लगा। बर्बर आक्रमणकारियों ने यूरोपीय राज्य-व्यवस्था नष्ट कर दी। यूरोप में पुनः राजनीतिक अराजकता फैल गई। बर्बर जातियों के आक्रमणों से केंद्रीय व्यवस्था नष्ट हो गई। लोगों का जीवन संकटमय बन गया। शांति-व्यवस्था और जान-माल की सुरक्षा अहम आवश्यकता बन गई। ऐसी परिस्थिति में एक नई व्यवस्था का उदय हुआ, जिसे सामंतवाद (Feudalism) कहा जाता है।
सामंतवाद-सामंतवाद कृषि और भूमि पर आधृत मध्ययुगीन व्यवस्था थी। इस व्यवस्था में समस्त भूमि का मालिक राजा होता
था। उसके नीचे पदानुक्रम से अनेक सामंत होते थे, जैसे- ड्यूक या अर्ल, वैरन, नाइट इत्यादि। सामंत सुरक्षित मेनर (गढी) में रहते थे। सबसे निचले पायदान पर कृषक और कम्मी थे। कम्मी अर्द्धदास के समान थे। इन सबके अधिकार और कर्तव्य
निर्दिष्ट थे। कृषि के अतिरिक्त राजनीतिक व्यवस्था में भी यही पद्धति अपनाई गई। यूरोप में यह व्यवस्था पुनर्जागरण के पूर्व
तक चलती रही। पुनर्जागरण के पूर्व के काल को यूरोप में मध्ययुग कहा जाता है। मध्य युग में सामंती व्यवस्था में वर्ग-विभेद बढ़ा, शोषण की प्रक्रिया बढ़ी, आर्थिक अवनति हुई, व्यापार-वाणिज्य का ह्रास हुआ तथा राजशक्ति (केंद्रीय शक्ति) कमजोर पड़ गई। यद्यपि सामंतवाद ने तत्कालीन अराजकता की स्थिति में सुरक्षा प्रदान की एवं कला और साहित्य के विकास को
प्रश्रय दिया तथापि कुल मिलाकर इसने प्रगतिशील विचारों को कुंद कर दिया तथा ‘अंधकार युग’ को जन्म दिया।
रोमन कैथोलिक चर्च-यूरोपीय राजनीति और धर्म को ईसाई धर्म और रोमन कैथोलिक चर्च ने लंबे समय तक प्रभावित किया।
लगभग दो हजार वर्ष पूर्व रोम के सम्राट ऑगस्टस सीजर के शासनकाल में जुडिया के बेथलहेम नामक नगर में जीसस
क्राइस्ट ने एक नए धर्म का उपदेश दिया। कालांतर में यह धर्म ईसाई धर्म के नाम से विख्यात हुआ। अपने उदार और सर्वग्राह्य उपदेशों के कारण यह धर्म शीघ्र ही व्यापक बन गया। समस्त यूरोप इसके प्रभाव में आ गया। रोमन सम्राट कॉन्सटैनटाइन ने 324 ई. में ईसाई धर्म को रोम का राजधर्म घोषित किया। इस समय से ईसाई धर्म का तेजी से विस्तार हुआ। धर्म के प्रसार के साथ ही इसकी संगठनात्मक व्यवस्था भी मजबूत हुई। रोम में रोमन कैथोलिक चर्च का केंद्र स्थापित हुआ और वहाँ का पोप समस्त ईसाई जगत का धर्मगुरु बन गया। धीरे-धीरे पोप की सत्ता बढ़ती गई और उसकी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ हो गई। यूरोपीय राजनीति पर भी उसका प्रभाव बढ़ गया। यद्यपि ईसाई धर्म ने सामाजिक-धार्मिक सुधार कार्यक्रम चलाए तथा शिक्षा को प्रोत्साहन दिया तथापि कालांतर में चर्च शोषण और विलासिता का केंद्र बन गया। पादरियों और पोप का नैतिक पतन हो गया। सच्चाई और सादगी के स्थान पर रोमन चर्च कट्टरपंथियों, दकियानूसी विचारवाले व्यक्तियों और रूढ़िवादियों का केंद्र बन गया। तर्क और नई विचारधारा को पनपने से रोककर, सामंतवाद के ही समान, रोमन कैथोलिक चर्च ने भी मध्ययुगीन यूरोप को अंधकार के गर्त में ढकेल दिया।
इस ‘अंधकार युग’ में व्यापार-वाणिज्य की प्रगति अवरुद्ध हो गई। यद्यपि एशिया और यूरोप में व्यापार होता था तथापि विश्व
का एक बड़ा भाग–अमेरिका, अफ्रीका इत्यादि अज्ञात था। भौगोलिक जानकारी की कमी के कारण व्यापार सीमित था।
समुद्री यात्रा खतरनाक और कष्टप्रद थी। कंपास का आविष्कार नहीं हुआ था। अतः, समुद्र में भटक जाने का भय बना रहता
था। पृथ्वी को चपटी माना जाता था। यात्रियों को यह भय सताता था कि समुद्र में अधिक दूर जाने पर वे पृथ्वी के किनारों से
गिरकर अनंत में विलीन हो जाएँगे। राज्य समुद्री यात्रियों की सहायता भी नहीं करता था। इस कठिन परिस्थिति में नाविकों
और व्यापारियों के लिए अटलांटिक अथवा ‘अंधमहासागर’ की यात्रा करना अत्यंत कठिन था। अतः, इस समय व्यापार-
वाणिज्य और आर्थिक विकास की गति थम-सी गई। ‘आधुनिक युग’ के आगमन के साथ ही परिस्थितियाँ बदल गई।

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