द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम
द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम
द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम
(i) धन-जन का भीषण संहार
(ii) औपनिवेशिक युग का अंत
(iii) फासीवादी शक्तियों का सफाया
(iv) इंगलैड की स्थिति का कमजोर पड़ना
(v) सोवियत संघ और अमेरिका की शक्ति में वृद्धि
(vi) साम्यवाद का तेजी से प्रसार
(vii) विश्व का दो खेमों में विभाजन
(viii) गुटनिरपेक्षता की नीति
(ix) जर्मनी का विघटन
(x) वैज्ञानिक प्रगति
(xi) संयुक्त राष्ट्र की स्थापना
(xii) अन्य परिणाम
द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम प्रथम विश्वयुद्ध से अधिक निर्णायक हुए। इसके सिर्फ विनाशकारी प्रभाव ही नहीं हुए, बल्कि
कुछ प्रभाव ऐसे भी हुए जिससे विश्व इतिहास की धारा बदल गई तथा एक नए विश्व का उदय और विकास हुआ। द्वितीय
विश्वयुद्ध के निम्नलिखित परिणाम हुए-
(i) धन-जन का भीषण संहार-द्वितीय विश्वयुद्ध में प्रथम विश्वयुद्ध की तुलना में धन-जन की अधिक क्षति हुई। एक अनुमान के अनुसार, इस युद्ध में दोनों पक्षों के पाँच करोड़ से अधिक लोग मारे गए जिनमें सर्वाधिक संख्या सोवियतों की थी। लाखों बेघर हो गए। इससे पुनर्वास की समस्या उठ खड़ी हुई। लाखों यहूदियों की हत्या कर दी गई। घायलों की गिनती ही नहीं की जा सकती थी। परमाणुबम से हिरोशिमा और नागासाकी पूरी तरह नष्ट हो गए। इसी प्रकार, युद्ध में बेहिसाब संपत्ति भी नष्ट हुई। अनुमानतः, सिर्फ इंगलैंड में करीब दो हजार करोड़ रुपये मूल्य की संपत्ति नष्ट हुई। सोवियत संघ की संपूर्ण राष्ट्रीय संपत्ति का चौथा भाग युद्ध की भेंट चढ़ गया। इतना विनाशकारी युद्ध पहले कभी नहीं हुआ था।
(ii) औपनिवेशिक युग का अंत-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सभी साम्राज्यवादी राज्यों को एक-एक कर अपने उपनिवेशों से
हाथ धोना पड़ा। उपनिवेशों में राष्ट्रीयता की लहर तेज हो गई। स्वतंत्रता आंदोलन तेज हो गए। फलतः, एशिया के अनेक देश
यूरोपीय दासता से मुक्त हो गए। यूरोपीय राष्ट्रों की शक्ति और साधन इतने कमजोर हो गए कि वे उपनिवेशों पर अपना कब्जा
जमाए रखने में सक्षम नहीं रहे। इसलिए, बर्मा, मलाया इत्यादि स्वतंत्र हो गए। 1947 में भारत भी अंगरेजी दासता से मुक्त
हो गया।
(ii) फासीवादी शक्तियों का सफाया-युद्ध में पराजित होने के बाद धुरी राष्ट्रों के दुर्दिन आ गए। जर्मन साम्राज्य का बड़ा भाग
उससे छीन गया। इटली को अपने सभी अफ्रीकी उपनिवेश खोने पड़े। जापान को भी उन क्षेत्रों को वापस करना पड़ा जिन पर वह अधिकार जमाए हुए था। इन राष्ट्रों की आर्थिक-सैनिक स्थिति भी दयनीय हो गई।
(iv) इंगलैंड की स्थिति का कमजोर पड़ना-अब तक विश्व राजनीति में इंगलैंड (ब्रिटेन) की प्रमुख भूमिका थी। वह एक
शक्तिशाली राष्ट्र था, परंतु द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उसकी स्थिति दुर्बल हो गई। भारतसहित उसके सभी उपनिवेश स्वतंत्र
हो गए तथा विश्व राजनीति में उसका दबदबा घट गया।
(v) सोवियत संघ और अमेरिका की शक्ति में वृद्धि-द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात जर्मनी, इटली, इंगलैंड और फ्रांस के स्थान पर सोवियत संघ और अमेरिका का प्रभाव विश्व राजनीति में बढ़ गया। इन्हीं दोनों देशों के इर्द-गिर्द युद्धोत्तर राजनीति घूमने
लगी।
(vi) साम्यवाद का तेजी से प्रसार-द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवाद का तेजी से प्रसार हुआ। पूर्वी यूरोप के अनेक देशों, एशियाई देशों, चीन, उत्तर कोरिया इत्यादि देशों में साम्यवाद का प्रसार हुआ। साम्यवाद के प्रसार से फासीवादी और साम्राज्यवादी शक्तियों की कमर टूट गई। वे पुनः सिर उठाने लायक नहीं रहे।
(vii) विश्व का दो खेमों में विभाजन-द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात अमेरिका और सोवियत संघ विश्व के दो महान शक्तिशाली देश बन गए। अमेरिका पूँजीवाद और सोवियत संघ साम्यवाद का समर्थक था। यद्यपि सोवियत संघ को युद्ध में अपार क्षति हुई थी तथापि उसने शीघ्र ही अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ कर ली। अमेरिका की स्थिति पहले से ही मजबूत थी, अतः यूरोपीय और एशियाई देश सहायता के लिए सोवियत संघ एवं अमेरिका की ओर आकृष्ट हुए। दोनों ने अविकसित और विकासशील देशों को अपने प्रभाव में लेना आरंभ कर दिया। फलतः, विश्व के राष्ट्र दो खेमों में बँट गए। पूर्वी यूरोप, चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया के राष्ट्र सोवियत संघ के प्रभाव में आए। इसी प्रकार, पश्चिमी यूरोप और एशिया के कुछ राष्ट्र पूँजीवादी व्यवस्था के समर्थक बनकर अमेरिका के प्रभाव में चले गए। सोवियत संघ और अमेरिका दोनों अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने में लग गए। इससे शीत युद्ध (cold war) आरंभ हुआ। इसकी समाप्ति सोवियत संघ के विघटन के बाद ही हुई।
(viii) गुटनिरपेक्षता की नीति–इन दो खेमों में जाने की अपेक्षा कुछ एशियाई, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों ने अपनी
स्वतंत्र स्थिति बनाए रखने का प्रयास किया। इस प्रकार, विश्व राजनीति में एक तीसरी शक्ति के रूप में असंलग्न राष्ट्रों का उदय हुआ। गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement) का तेजी से प्रसार हुआ। इस आंदोलन में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
(ix) जर्मनी का विघटन-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी को दो भागों में विभक्त कर दिया गया-पश्चिमी जर्मनी और पूर्वी जर्मनी। पश्चिमी जर्मनी को इंगलैंड, अमेरिका और फ्रांस तथा पूर्वी जर्मनी को सोवियत संघ के संरक्षण में रखा गया। बर्लिन की दीवार बनाकर इसका विभाजन किया गया। विगत वर्षों में जर्मनी का पुनः एकीकरण कर बर्लिन की दीवार तोड़ दी गई है तथा जर्मनी पर से विदेशी आधिपत्य समाप्त कर दिया गया है।
(x) वैज्ञानिक प्रगति-द्वितीय विश्वयुद्ध में वैज्ञानिक खोजों में प्रगति हुई। कुछ वैज्ञानिक आविष्कार तो मानव सभ्यता के लिए
लाभदायक थे, परंतु कुछ के घातक परिणाम भी हुए। प्राकृतिक रबर के स्थान पर कृत्रिम रबर का विकास किया गया। संक्रामक बीमारियों से रक्षा के नए उपाय खोजे गए। अमेरिका में पेनिसिलिन का उत्पादन बड़े पैमाने पर हुआ। रक्त से प्लाज्मा निकालने की विधि खोजी गई जिससे घाव से होनेवाली मृत्यु की संख्या में कमी आई। इसी प्रकार, युद्ध के लिए बमवर्षक विमानों, जेट इंजन एवं रॉकेट का निर्माण किया गया। रेडार का भी विकास किया गया। सबसे महत्त्वपूर्ण था परमाणुबम का निर्माण, जिसका उपयोग अमेरिका ने जापान के विरुद्ध किया। युद्ध की समाप्ति के बाद परमाणविक हथियारों के निर्माण की दौड़ विश्व में आरंभ हो गई है। इससे विश्वयुद्ध का खतरा पुनः बढ़ गया है।
(xi) संयुक्त राष्ट्र की स्थापना-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एक अंतरराष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता पुनः प्रतीत हुई जिससे
कि विश्वशांति बनाई रखी जा सके एवं विश्वयुद्ध की पुनरावृत्ति को रोका जा सके। अमेरिका की पहल पर 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र (United Nations—UN) नामक संस्था की स्थापना की गई। प्रत्येक वर्ष 24 अक्टूबर को ‘संयुक्त राष्ट्र दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यह संस्था अभी भी कार्यरत है।
(xii) अन्य परिणाम-द्वितीय विश्वयुद्ध ने मानवजीवन के प्रत्येक क्षेत्र और गतिविधि को प्रभावित किया। इसके दूरगामी
परिणाम हुए। युद्ध के बाद पेरिस शांति सम्मेलन जैसा कोई सम्मेलन अथवा संधियाँ नहीं हुई। इटली और जापान ने स्वेच्छा
से अपने अधीनस्थ अनेक क्षेत्र त्याग दिए। सोवियत संघ ने अनेक स्थानों पर अधिकार कर लिया। द्वितीय विश्वयुद्ध ने विश्व
राजनीति पर से यूरोपियन प्रभुत्व को समाप्त कर दिया। अब अमेरिका, सोवियत संघ, चीन, जापान का महत्त्व बढ़ गया।
मानव चिंतन और परिवेश को विश्वयुद्ध ने गहरे रूप से प्रभावित किया। चित्रकार, कवि, स्थापत्यकार, मूर्तिकार, दार्शनिक, इतिहासकार सभी बदलते सामाजिक माहौल के प्रति संवेदनशील होकर उसका चित्रण करने लगे। सरकार और जनता
के बीच सीधा संपर्क हुआ एवं कल्याणकारी राज्य की भावना विकसित हुई। पश्चिम एशिया के राज्यों में राष्ट्रवाद की भावना
का चरम विकास हुआ। जनतंत्र की भावना भी बलवती हुई। इस प्रकार, प्रथम विश्वयुद्ध के समान द्वितीय विश्वयुद्ध के भी महत्त्वपूर्ण और दूरगामी परिणाम हुए।
स्मरणीय
⊗ प्रथम विश्वयुद्ध- प्रथम विश्वयुद्ध 1914-18 तथा द्वितीय विश्वयुद्ध 1939-45 में हुआ। प्रथम विश्वयुद्ध मित्र राष्ट्रों (इंगलैंड, फ्रांस, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका) और केंद्रीय शक्तियों (जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, तुर्की, बुल्गेरिया) के बीच हुआ।
⊗ प्रथम विश्वयुद्ध के कारण-(i) यूरोपीय शक्ति-संतुलन का बिगड़ना (ii) गुप्त संधियाँ एवं गुटों का निर्माण (iii) जर्मनी और फ्रांस की शत्रुता (iv) साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा (v) सैन्यवाद (vi) उग्र राष्ट्रवाद (vii) अंतरराष्ट्रीय संस्था का अभाव (viii) जनमत एवं समाचारपत्र (ix) तात्कालिक कारण (सेराजेवो हत्याकांड)
⊗ प्रथम विश्वयुद्ध का उत्तरदायित्व-वर्साय की संधि के अनुसार जर्मनी और उसके सहयोगी राष्ट्र उत्तरदायी, वास्तव में सभी राष्ट्र प्रथम विश्वयुद्ध के लिए जवाबदेह, अकेले जर्मनी युद्ध के लिए उत्तरदायी नहीं
⊗ प्रथम विश्वयुद्ध की प्रमुख घटनाएँ-युद्ध का आरंभिक चरण-28 जुलाई 1914 को ऑस्ट्रिया द्वारा सर्बिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा के साथ प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ; 1917 में संयुक्त राज्य अमेरिका युद्ध में सम्मिलित; 1917 में रूस का युद्ध से अलग होना
⊗ युद्ध का निर्णायक चरण-1918 में तुर्की, ऑस्ट्रिया-हंगरी का आत्मसमर्पण; जर्मनी में सम्राट कैजर विलियम द्वितीय द्वारा गद्दी छोड़ना; वेमर गणतंत्र की स्थापना; 11 नवंबर 1918 को जर्मनी द्वारा युद्धविराम घोषणापत्र पर हस्ताक्षर; प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त
⊗ प्रथम विश्वयुद्ध की विशेषताएँ-(i) इस युद्ध में विश्व के सभी शक्तिशाली राष्ट्रों का भाग लेना (ii) जमीन के अतिरिक्त आकाश एवं समुद्र में भी युद्ध (iii) नए मारक और विध्वंसक अस्त्र-शस्त्रों का युद्ध में व्यवहार (iv) सेना के अतिरिक्त सामान्य जनता की भी युद्ध में हिस्सेदारी (v) अपूर्व नरसंहार (vi) वैज्ञानिक आविष्कारों का दुरुपयोग
⊗ पेरिस शांति सम्मेलन-जनवरी 1919 में आयोजित; पाँच संधियाँ-सेंट जर्मेन की संधि ऑस्ट्रिया के साथ, त्रियानो की संधि हंगरी के साथ, निऊली की संधि बुल्गेरिया के साथ, वर्साय की संधि जर्मनी के साथ और सेवर्स की संधि तुर्की के साथ
⊗ वर्साय की संधि जर्मनी के लिए कठोर और अपमानजनक थी। जर्मनी को राजनीतिक, सैनिक और आर्थिक रूप से पंगु बना दिया गया। इस ढंग के आरोपित संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए जर्मनी को बाध्य किया गया। वर्साय की संधि में द्वितीय विश्वयुद्ध के बीज निहित थे।
⊗ प्रथम विश्वयुद्ध के परिणाम-राजनीतिक परिणाम-(i) साम्राज्यों का अंत (ii) विश्व मानचित्र में परिवर्तन (iii) सोवियत संघ का उदय (iv) उपनिवेशों में जागरण (v) विश्व राजनीति पर से यूरोप का प्रभाव कमजोर पड़ना (vi) अधिनायकवाद का
उदय (vii) विचार-अभिव्यक्ति पर नियंत्रण का प्रयास (viii) द्वितीय विश्वयुद्ध का बीजारोपण (ix) विश्वशांति की स्थापना का प्रयास
⊗ सैन्य परिणाम-निरस्त्रीकरण का प्रयास, हथियारबंदी की होड़ आरंभ आर्थिक परिणाम-(i) धन-जन की अपार क्षति (ii) आर्थिक संकट (iii) सरकारी आर्थिक नीतियों में परिवर्तन
⊗ सामाजिक परिवर्तन-(i) नस्लों की समानता (ii) जनसंख्या की क्षति (iii) स्त्रियों की स्थिति में सुधार (iv) मजदूरों की स्थिति में सुधार (v) सामाजिक मान्यताओं में बदलाव
⊗ वैज्ञानिक प्रगति-वैज्ञानिक खोजों को गति, विशाल जलयानों, पनडुब्बियों एवं वायुयानों का निर्माण
⊗ द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-45), प्रतिशोधात्मक युद्ध, मित्र राष्ट्रों और धुरी राष्ट्रों के बीच युद्ध द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण-(i) वर्साय की अपमानजनक संधि (ii) तानाशाही शक्तियों का उदय (iii) साम्राज्यवादी प्रवृत्ति (iv) यूरोपीय गुटबंदी (v) हथियारबंदी की होड़ (vi) विश्व आर्थिक मंदी का प्रभाव (vii) तुष्टीकरण की नीति (viii) म्यूनिख समझौता (ix) सामूहिक
कार्रवाई तथा जनमोर्चा की विफलता (x) राष्ट्रसंघ की विफलता (xi) तात्कालिक कारण (जर्मनी द्वारा पोलैंड पर आक्रमण)
⊗ द्वितीय विश्वयुद्ध का उत्तरदायित्व-जर्मनी द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी माना जाता है। अप्रत्यक्ष रूप से इंगलैंड, फ्रांस और सोवियत संघ भी इसके लिए उत्तरदायी थे। वास्तव में, राष्ट्रों की संकुचित सोच के परिणामस्वरूप लिए गए निर्णयों के चलते द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभरा।
⊗ द्वितीय विश्वयुद्ध की प्रमुख घटनाएँ-1 सितंबर 1939 को पोलैंड पर जर्मन आक्रमण से युद्ध का आरंभ; 1 सितंबर 1939 से 9 अप्रैल 1940 तक का काल फोनी वार का काल; 1940 तक जर्मनी की विजय, फ्रांस का आत्मसमर्पण; इंगलैंड की लड़ाई में जर्मनी की असफलता; 1942 में स्तालिनग्राद के युद्ध में जर्मनी की पराजय; 1944 में इटली का आत्मसमर्पण; 7 मई 1945 को हिटलर का आत्मसमर्पण; अगस्त 1945 में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका द्वारा परमाणुबम का गिराना; जापान का आत्मसमर्पण: द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति
⊗ द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम-(i) धन-जन का भीषण संहार (ii) औपनिवेशिक युग का अंत (iii) फासीवादी शक्तियों का सफाया (iv) इंगलैंड की स्थिति का कमजोर पड़ना (v) सोवियत संघ और अमेरिका की शक्ति में वृद्धि (vi) साम्यवाद का तेजी से प्रसार (vii) विश्व का दो खेमों में विभाजन (viii) गुटनिरपेक्षता की नीति (ix) जर्मनी का विघटन (x) वैज्ञानिक प्रगति (xi) संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना (xii) अन्य परिणाम