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ध्वनि तरंगे किसे कहते हैं | ध्वनि का माध्यम किसे कहते हैं | ध्वनि तरंग क्या है

ध्वनि तरंगे किसे कहते हैं | ध्वनि का माध्यम किसे कहते हैं | ध्वनि तरंग क्या है

ध्वनि तरंग
◆ ध्वनि तरंगें अनुदैर्ध्य यांत्रिक तरंगें होती हैं। जिन तरंगों की आवृत्ति (Frequency) 20Hz से
20,000Hz के बीच होती है, उनकी अनुभूति हमें अपने कानों द्वारा होती है और उन्हें हम
ध्वनि के नाम से पुकारते हैं।
◆ ध्वनि तरंगों का आवृत्ति परिसर (Frequency Rang of Sound Waves) : यांत्रिक तरंगों को उनके आवृत्ति परिसर के आधार पर मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(i) श्रव्य तरंगें (Audible Waves) : श्रव्य तरंगें वे यांत्रिक तरंगें हैं जिनकी आवृत्ति परिसर 20Hz से लेकर 20,000Hz तक होता है। इन तरंगों को हमारा कान सुन सकता है।
(ii) अवश्रव्य तरंगें (Infrasonic Waves) : जिन तरंगों की आवृत्ति परिसर 20Hz से कम  होती है उन्हें अवश्रव्य तरंगें कहा जाता है। ये तरंगें हमें सुनायी नहीं देती हैं। ये तरंगें भूकंप के समय पृथ्वी के अंदर उत्पन्न होती है। हमारे हृदय के धड़कन की आवृत्ति अवश्रव्य तरंगों के समान होती है। इस प्रकार की तरंगों को बहुत बड़े आकार के स्रोतों से उत्पन्न किया जा सकता है।
(iii) पराश्रव्य तरंगें (Ultrasonic Waves) : 20,000Hz से ऊपर की तरंगों को पराश्रव्य तरंगे कहा जाता है। मनुष्य के कान इसे नहीं सुन सकते हैं, परन्तु कुछ जानवर जैसे- कुत्ता, बिल्ली, चमगादड़ आदि इस ध्वनि को सुन सकते हैं। इन तरंगों को सबसे पहले गाल्टन (Galton) ने एक सीटी द्वारा उत्पन्न किया था। पराश्रव्य तरंगों को गाल्टन की सीटी के द्वारा तथा दाब वैद्युत प्रभाव की विधि द्वारा क्वार्ट्स के क्रिस्टल के कंपनों से उत्पन्न करते हैं। तरंगों की आवृत्ति बहुत ऊँची होने के कारण इसमें बहुत अधिक ऊर्जा होती है। साथ ही इनका तरंगदैर्ध्य छोटी होने के कारण इन्हें एक पतले किरण-पुंज के रूप में बहुत दूर तक भेजा जा सकता है।
पराश्रव्य तरंगों के उपयोग
(i) चिकित्सा जगत् में रुधिर रहित ऑपरेशन, गठिया व तंत्रिका सम्बन्धी रोगों, मस्तिष्क के ट्यूमर का पता लगाने तथा दाँतों को निकालने में किया जाता है।
(ii) कीमती कपड़ों, वायुयान तथा घड़ियों के पुों को साफ करने में किया जाता है।
(iii) फैक्ट्रियों की चिमनियों से कालिख हटाने में।
(iv) दूध के अंदर के हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करने में किया जाता है।
(v) धुंध व कुहरा वाले दिनों में हवाई अड्डों पर धुंध को समाप्त करने में प्रयोग किया जाता है।
(vi) समुद्र की गहराई, समुद्र के अंदर की बड़ी-बड़ी चट्टानों, हिमशैलों, विशाल मछलियों का पता लगाने में। सोनार (SONAR- Sound Navigation Ranging) एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा समुद्र में डुबी हुई वस्तुओं का पता लगाया जाता है।
(vii) संकेत भेजने में।
ध्वनि की चाल (Speed of Sound)
◆ ध्वनि तरंगें अनुदैर्ध्य यांत्रिक तरंगें होती हैं। अतः इनके संचरण के लिए किसी न किसी माध्यम की आवश्यकता पड़ती है। निर्वात (Sapce) में ध्वनि तरंगों का संचरण नहीं होता है।
◆ किसी माध्यम में ध्वनि की चाल मुख्यतः माध्यम की प्रत्यास्थता (Elasticity) तथा घनत्व पर निर्भर करती है। कोई माध्यम जितना अधिक प्रत्यास्थ होगा उसमें ध्वनि की चाल उतनी ही अधिक होगी। इसके विपरीत अधिक घनत्व वाले माध्यमों में ध्वनि की चाल कम होती है।
◆ ध्वनि की चाल ठोस में सबसे अधिक, द्रव में उससे कम तथा गैस में सबसे कम होती है।
◆ जल में ध्वनि की चाल 1483 मीटर/सेकंड, लोहे में 5130 मीटर/सेकंड, वायु में 332 मीटर/ सेकंड होती है।
◆ जब ध्वनि एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है, तो ध्वनि की चाल एवं तरंगदैर्ध्य बदल जाती है, जबकि आवृत्ति नहीं बदलती है।
◆ किसी माध्यम में ध्वनि की चाल आवत्ति पर निर्भर नहीं करती है।
◆ ध्वनि की चाल पर दाब का प्रभाव : ध्वनि की चाल पर दाब का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अर्थात् दाब घटाने या बढ़ाने पर ध्वनि की चाल अपरिवर्तित रहती है।
◆ ध्वनि की चाल पर ताप का प्रभाव : माध्यम का ताप बढ़ाने पर उसमें ध्वनि की चाल बढ़ जाती है। वायु में प्रति 1°C ताप बढ़ने पर ध्वनि की चाल 0.61 मीटर/सेकंड बढ़ जाती है।
◆ ध्वनि की चाल पर आत्रता का प्रभाव : नमीयुक्त वायु का घनत्व, शुष्क वायु के घनत्व से कम होता है। अतः शुष्क वायु की अपेक्षा नमीयुक्त वायु में ध्वनि की चाल अधिक होती है। यही कारण है कि बरसात के दिनों में रेल के इंजन, सायरन आदि की आवाज गर्मी के दिन की अपेक्षा अधिक दूर तक सुनायी देती है।
विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल
S.R माध्यम ध्वनि की चाल (मीटर/सेकंड 0°C पर)
1. वायु 332
2. लोहा 5130
3. जल 1483
4. हाइड्रोजन 1269
5. कार्बन डाई ऑक्साइड 260 
6. भाप 100°C 405
7. अल्कोहल 1213
8. समुद्री जल 1533
9. पारा 1450
10. काँच 5640
11. एल्युमिनियम 6420
◆ ध्वनि के लक्षण (Characteristics of Sound) :ध्वनि के मुख्यतः तीन लक्षण होते हैं- (i) तीव्रता (ii) तारत्व तथा (iii) गुणता।
(i) तीव्रता (Intensity) : तीव्रता ध्वनि का वह लक्षण है, जिसके कारण हमें कोई ध्वनि धीमी अथवा तेज सुनाई देती है। तीव्रता, ध्वनि उत्पन्न करने वाली कंपनशील वस्तु के कंपन के आयाम पर निर्भर करती है। कंपन का आयाम जितना अधिक होगा, ध्वनि की तीव्रता उतनी ही अधिक होगी तथा वह ध्वनि हमें उतनी ही तेज सुनायी देगी। ध्वनि की तीव्रता व्यक्त करने का मात्रक बेल (Bel) है। ध्वनि की निरपेक्ष तीव्रता (Absolute Intensity) को वाट मीटर’ (Wm-‘) में व्यक्त किया जाता है। बेल एक बड़ा मात्रक है, अतः व्यवहार में इससे छोटा मात्रक डेसीबल (dB) प्रयुक्त होता है।

स्रोत के आधार पर ध्वनि की तीव्रता

क्र. सं.  ध्वनि के स्रोत तीव्रता (डेसीबल में)
1. साधारण बातचीत 40-30 डेसीबल
2. जोर से बातचीत 50-60 डेसीबल
3. ट्रक-ट्रैक्टर 90-100 डेसीबल
4. आरकेस्ट्रा 100 डेसीबल
5. मोटर साइकिल, विद्युत मोटर 110 डेसीबल
6. साइरन 110-120 डेसीबल
7. जेट विमान 140-150 डेसीबल
8. मशीनगन 170 डेसीबल
9. मिसाइल 180 डेसीबल
(ii) तारत्व (Pitch) :तारत्व ध्वनि का वह लक्षण है, जिसके कारण हम ध्वनि को मोटी (Grave) या पतली (Shrill) कहते हैं। यदि तारत्व अधिक होता हैं तो ध्वनि को पतली या तीक्ष्ण ध्वनि कहते हैं तथा यदि तारत्व कम होता है तो ध्वनि को मोटी या सपाट (Flat) ध्वनि कहा जाता है। ध्वनि का तारत्व उसकी आवृत्ति पर निर्भर करता है।
(iii) गुणता (Quality) :गुणता ध्वनि का वह लक्षण है जो समान तीव्रता व समान आवृत्तियों की ध्वनियों में अंतर स्पष्ट करता है। गुणता के कारण ही हम अपने विभिन्न परिचितों को बगैर देखे उनकी आवाज सुनकर पहचान लेते हैं।
◆ ध्वनि का परावर्तन (Reflection of Sound) : जब ध्वनि तरंगें एक माध्यम से चलकर दूसरे माध्यम के पृष्ठ से टकराती हैं तो टकराने के पश्चात् पहले माध्यम में लौट आती हैं। इसे ध्वनि का परावर्तन कहते हैं। उदाहरणार्थ- यदि कुँए में झाँककर बोलें तो हमें अपनी आवाज पानी से परावर्तित होकर पुनः सुनायी देती है।
◆ प्रतिध्वनि (Echo) :जब ध्वनि तरंगें दूर स्थित किसी दृढ़ टॉवर या पहाड़ से टकराकर परावर्तित होती है तो इस परावर्तित ध्वनि को प्रतिध्वनि कहते हैं। प्रतिध्वनि सुनने के लिए श्रोता व परावर्तक सतह के बीच की दूरी कम-से-कम 17 मीटर (16.6 मीटर) होनी चाहिए।
◆ ध्वनि का अपवर्तन (Refraction of Sound) : ध्वनि तरंगें जब एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती हैं तो वे अपने पथ से विचलित हो जाती हैं। ध्वनि तरंगों का अपने पथ से विचलन ही ध्वनि अपवर्तन कहलाता है। ध्वनि तरंगों का अपवर्तन वायु की भिन्न-भिन्न पर्तों का ताप भिन्न-भिन्न होने के कारण होता है। ध्वनि के अपवर्तन के कारण ध्वनि दिन की अपेक्षा रात में अधिक दूरी तक सुनायी पड़ती है।
◆ ध्वनि का विवर्तन (Diffraction of Sound) : ध्वनि का तरंगदैर्ध्य 1 मीटर की कोटि का होता है। अतः जब इसी कोटि का कोई अवरोध ध्वनि के मार्ग में आता है, तो ध्वनि अवरोध के किनारे से मुड़कर आगे बढ़ जाती है। इस घटना को ध्वनि का विवर्तन कहते हैं। दूसरे शब्दों में विवर्तन के लिए जरूरी है कि अवरोधों का आकार (Shape) ध्वनि की तरंगदैर्ध्य के तुलनीय
होना चाहिए। चूँकि ध्वनि की तरंगदैर्ध्य 1 मीटर होती है।
◆ ध्वनि का व्यतिकरण (Interference of Sound) : जब समान आवृत्ति व आयाम की दो ध्वनि तरंगें एक साथ किसी बिन्दु पर पहुँचती हैं तो उस बिन्दु पर ध्वनि ऊर्जा का पुनर्वितरण (Re-distribution) हो जाता है। इसे ही ध्वनि का व्यतिकरण कहते हैं।
◆ अनुनाद (Resonance) : जब किसी वस्तु के कंपनों की स्वाभाविक आवृत्ति किसी चालक बल के कंपनों की आवृत्ति के बराबर होती है, तो वह वस्तु बहुत अधिक आयाम से कंपन करने लगती है। इस घटना को अनुनाद कहते हैं।
◆ अनुरणन (Rever beration) : किसी हॉल में ध्वनि स्रोतों को बंद करने के बाद भी ध्वनि का कुछ देर तक सुनायी देना अनुरणन कहलाता है तथा वह समय जिसके दौरान वह ध्वनि सुनायी देती है। अनुरणन काल (Reverberation Time) कहलाता है।
◆ मैक संख्या (Mach-Number) : किसी माध्यम में किसी पिंड की चाल तथा उसी माध्यम में ताप एवं दाब की उन्हीं परिस्थितियों में ध्वनि की चाल के अनुपात को उस वस्तु की उस माध्यम में मैक संख्या कहते हैं।
◆ यदि मैक संख्या 1 से अधिक है, तो पिंड की चाल पराध्वनिक (Supersonic) कहलाती है। यदि मैक संख्या 5 से अधिक है, तो ध्वनि की चाल अति-पराध्वनिक (Hypersonic) कहलाती है।
◆ डॉप्लर का प्रभाव (Doppler’s Effect) : जब किसी ध्वनि स्रोत (Source) व श्रोता (Observer) के बीच आपेक्षिक गति (Relative Motion) होती है तो श्रोता को ध्वनि की आवृत्ति उसकी वास्तविक आवृत्ति से अलग (Defferent) सुनायी देती है। ध्वनि में आवृत्ति परिवर्तन के इस प्रभाव को सर्वप्रथम जॉन डॉपलर ने 1842 में प्रतिपादित किया था, जिसके कारण उन्हीं के नाम पर इसे डॉप्लर प्रभाव कहते हैं।
◆ पराध्वनिक तरंगें (Supersonic Waves) : जब किसी पिंड की किसी गैस में चाल, उसी गैस में ध्वनि की चाल से अधिक हो जाती है, तो पिंड की चाल को पराध्वनिक (Supersonic) कहते हैं। इसका वेग 1200 किमी/घंटा से अधिक होता है।
◆ प्रघाती तरंगें (Shock Waves) : जब पिंड की वायु में चाल ध्वनि की चाल से अधिक हो जाती है, तो वह अपने पीछे वायु में एक शंक्वाकार (Conical) हलचल छोड़ता जाता है। जैसे-जैसे पिंड दूर जाता है, ये हलचल आकार में फैलती जाती हैं। इस प्रकार की हलचल को प्रघाती तरंग कहते हैं।

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