विद्युत क्या है कितने प्रकार के होते हैं? | विद्युत का आविष्कार कब हुआ था?
विद्युत क्या है कितने प्रकार के होते हैं? | विद्युत का आविष्कार कब हुआ था?
विद्युत की उत्पत्ति कैसे हुई? विद्युत उत्पादन के मूलभूत सिद्धान्त की खोज अंग्रेज वैज्ञानिक माइकेल फैराडे ने 1820 के दशक के दौरान एवं 1830 के दशक के आरम्भिक काल में किया था।
विद्युत
◆ पदार्थों को परस्पर रगड़ने से उस पर जो आवेश की मात्रा संचित रहती है, उसे स्थिर विद्युत (Static-electricity) कहते हैं। स्थिर विद्युत में आवेश स्थिर रहता है। जब आवेश किसी तार
या चालक पदार्थ में बहता है तो उसे धारा विद्युत (Current-Electricity) कहते हैं।
◆ आवेश (Charge): द्रव्य का एक मूल गुण है, इसे द्रव्य से अलग करना असंभव है। बेंजामिन फ्रैंकलिन (Benjamin Franklin) ने दो प्रकार के आवेशों को धनात्मक आवेश (+) व ऋणात्मक आवेश (-) नाम दिया है।
◆ वस्तुओं का निर्माण अनेक छोटी-छोटी इकाइयों से होता है, जिन्हें परमाणु (Atom) कहा जाता है। परमाणु के केन्द्र में एक नाभिक (Nucles) होता है जिसमें धनात्मक कण प्रोटॉन (Proton) व उदासीन कण न्यूट्रॉन (Neutron) होते हैं तथा नाभिक के बाहर ऋणात्मक कण इलेक्ट्रॉन (Electron) नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। एक प्रोट्रॉन पर जितना धनात्मक आवेश
होता है उतना ही ऋणात्मक आवेश एक पर होता है तथा इस आवेश का मान 1.6X10-19 कूलॉम होता है।
◆ वस्तुओं का आवेशन इलेक्ट्रॉनों के स्थानांतरण के फलस्वरूप होता है। इस प्रक्रिया में प्रोट्रॉन भाग नहीं लेता है। जब किसी वस्तु पर इलेक्ट्रॉनों की कमी होती है तो उस पर धनात्मक आवेश होता है तथा यदि इलेक्ट्रॉनों की अधिकता होती है तो उस पर ऋणात्मक आवेश होता है।
◆ चालक (Conductor) : जिन पदार्थों से होकर विद्युत आवेश सरलता से प्रवाहित होता है, उन्हें चालक कहते हैं। जैसे- सभी धातुएँ, अम्ल, क्षार, लवणों के जलीय विलयन मानव शरीर आदि।
◆ चाँदी विद्युत का सबसे अच्छा चालक है जबकि दूसरा स्थान ताँबा का है।
◆ अचालक (Non-Conductor) : जिन पदार्थों से होकर आवेश का प्रवाह नहीं होता है, उन्हें अचालक कहते हैं। जैसे- लकड़ी, रबर, कागज, अभ्रक, शुद्ध आसुत जल आदि।
◆ शुद्ध आसुत जल विद्युत का अचालक होता है, परन्तु इसमें थोड़ा-सा अम्ल, क्षार या लवण मिलाने पर यह विद्युत चालक की भाँति कार्य करता है।
◆ अर्द्ध-चालक (Semi-Conductor) : चालक तथा अचालक पदार्थों के अतिरिक्त कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जिनकी विद्युत चालकता चालक एवं अचालक पदार्थों के बीच होती है, उन्हें अर्द्ध-चालक कहते हैं। अर्द्ध-चालक पदार्थों के उदाहरण हैं- कार्बन, सिलिकॉन, जर्मेनियम, सेलीनियम, गैलियम-आरसेनाइट आदि।
◆ आवेश का पृष्ठ घनत्व (Surface Density of Charge) : किसी चालक के इकाई क्षेत्रफल पर आवेश की मात्रा को आवेश का पृष्ठ घनत्व कहते हैं। चालक का पृष्ठ घनत्व चालक के आकार व चालक के समीप स्थित अन्य चालक या विद्युत-रोधी पदार्थों पर निर्भर करता है। किसी चालक के पृष्ठ के विभिन्न स्थानों पर आवेश का वितरण उन स्थानों के आकार पर
निर्भर करता है। चालक के नुकीले भाग पर आवेश का पृष्ठ घनत्व सबसे अधिक होता है, क्योंकि नुकीले भाग का क्षेत्रफल सबसे कम होता है।
◆ तड़ित चालक (Lightning Conductor) : तड़ित के द्वारा अत्यधिक विद्युत-आवेशन होता है। यह दो आवेशित बादलों के बीच या आवेशित बादलों व पृथ्वी के बीच होता है। तड़ित चालक का प्रयोग तड़ित के दौरान भवनों की सुरक्षा के लिए किया जाता है। तड़ित चालक एक मोटी तत्वे की पट्टी है, जिसके ऊपरी सिरे पर कई नुकीले सिरे बने होते हैं। इस नुकीले
सिरे को भवनों के सबसे ऊपर लगा दिया जाता है तथा दूसरे सिरे को ताँबे की पट्टी के साथ जमीन में दबा दिया जाता है। जब आवेशित बादल भवन के ऊपर से गुजरते हैं तो उनका आवेश तड़ित चालक के द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है तथा यह आवेश बिना किसी नुकसान के जमीन में स्थानांतरित हो जाता है। इस प्रकार भवनों की सुरक्षा हो जाती है।
◆ विद्युत-धारा (Electric Current) : आवेश के प्रवाह को विद्युत धारा कहते हैं। ठोस चालकों में आवेश का प्रवाह इलेक्ट्रॉनों के एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरण के कारण होता है। जबकि द्रवों जैसे- अम्लों, क्षारों व लवणों के जलीय विलयनों तथा गैसों में यह प्रवाह आयनों की गति के कारण होता है। साधारणतः विद्युत-धारा की दिशा धन आवेश के गति की दिशा की ओर तथा ऋण आवेश के गति की विपरीत दिशा में मानी जाती है।
◆ यदि किसी परिपथ में धारा एक ही दिशा में बहती है तो उसे विष्ट धारा (Direct Current-DC) कहते हैं तथा यदि धारा की दिशा लगातार बदलती रहती है, तो उसे प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current-AC) कहते हैं।
◆ विद्युत धारा का SI पद्धति में मात्रक एम्पीयर होता है।
◆ विद्युत विभव (Electric Potential) : किसी धनात्मक आवेश को अनंत से विद्युत क्षेत्र के किसी बिन्दु तक लाने में किये गये कार्य (W) एवं आवेश के मान (40) के अनुपात (Ratio) को उस बिन्दु का विद्युत विभव कहा जाता है।
◆ विद्युत विभव का SI मात्रक वोल्ट (Volt) होता है। यह एक अदिश राशि है।
◆ विभवांतर (Potential Difference) : एक कूलॉम (Coulomb) धनात्मक आवेश को विद्युत क्षेत्र में एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में किये गये कार्य को उन बिन्दुओं के मध्य विभवांतर कहते हैं। इसका मात्रक भी वोल्ट (Volt) होता है। यह एक अदिश राशि है।
◆ विद्युत सेल (Electric Cell) : विद्युत सेल में विभिन्न रासायनिक क्रियाओं से रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। विद्युत सेल में धातु की दो छड़ें होती हैं जिन्हें इलेक्ट्रोड (Electrod) कहते हैं। इन छड़ों पर विपरीत प्रकार के आवेश होते हैं। वह छड़ जो धनावेशित (+) होती है एनोड (Anode) कहलाती है तथा ऋणावेशित-छड़ कैथोड (Cathode) कहलाती है। ये छड़ें विभिन्न प्रकार के विलयनों में पड़ी रहती है। इन विलयनों को विद्युत अपघट्य (Electrolyle) कहते हैं। विद्युत सेल मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं- (i) प्राथमिक सेल (ii) द्वितीयक सेल।
(i) प्राथमिक सेल (Primary Cell) : इसमें रासायनिक ऊर्जा को सीधे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। एक बार प्रयुक्त कर लेने के बाद प्राथमिक सेल बेकार हो जाते हैं। टार्च में भी प्राथमिक सेल प्रयुक्त किया जाता है। वोल्टीय सेल (Voltaic Cell), लेकलांशे सेल (Leclanche Cell), डेनियल सेल (Deniell Cell) आदि प्राथमिक सेलों के उदाहरण हैं।
(ii) द्वितीयक सेल (Secondary Cell) : इसमें पहले विद्युत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा फिर रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परावर्तित किया जाता है। द्वितीयक सेल में रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने के साथ-साथ इसमें व्यय हुई रासायनिक ऊर्जा को किसी बाह्य विद्युत स्रोत से प्राप्त किया जाता है। इसे सेलों का आवेशन (Charging) कहते हैं।
आवेशन द्वारा द्वितीयक सेल को बार-बार प्रयोग में लाया जा सकता है। द्वितीयक सेलों का उपयोग मोटरकारों, ट्रकों, ट्रैक्टरों आदि में इंजनों को स्टार्ट करने में किया जाता है।
◆ वोल्टीय सेल (Voltaic Cell) : इसका आविष्कार 1799 ई. में प्रो. एलिजाण्डों वोल्टा ने किया था। इस सेल में एक जस्ते की छड़ कैथोड (Cathode) के रूप में एवं ताँबे की छड़ एनोड (Anode) के रूप में प्रयोग की जाती है। इन छड़ों को काँच के बर्तन में रखे सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4 ) में रखा जाता है।
◆ लेकलांशे सेल में एनोड के रूप में कार्बन की छड़ एवं कैथोड के रूप में जस्ते की छड़ का प्रयोग किया जाता है। इन छड़ों को काँच के बर्तन में रखे अमोनिया क्लोराइड (नौसादर) में रखा जाता है।
◆ लेकलांशे सेल में एनोड के रूप में प्रयुक्त कार्बन की छड़ मैगनीज डाइऑक्साइड व कार्बन के मिश्रण के बीच रखी जाती है।
◆ लेकलांशे सेल का प्रयोग वहाँ किया जाता है जहाँ रुक-रुक कर थोड़े समय के लिए विद्युत धारा की आवश्यकता होती है। जैसे विद्युत घंटी एवं टेलीफोन आदि। लेकलांशे सेल का वाहक बल 1.5 वोल्ट होता है।
◆ शुष्क सेल (Dry Cell) में जस्ते के बर्तन में मैंगजीन डाइऑक्साइड, अमोनिया क्लोराइड (नौसादर) एवं कार्बन की एक छड़ रखी रहती है। इसमें कार्बन की छड़ एनोड के रूप में एवं जस्ते की बर्तन कैथोड के रूप में कार्य करती है। इस सेल का विद्युत वाहक बल यानी विभव लगभग 1.5 होता है। इसका प्रयोग टार्च, ट्रांजिस्टर एवं रेडियो आदि उपकरणों में किया जाता है।
◆ विद्युत धारा के प्रभाव (Effect of Electric Current) : सामान्यतः विद्युत धारा के तीन प्रभाव देखने को मिलते हैं- (i) ऊष्मीय प्रभाव (ii) रासायनिक प्रभाव और (iii) चुम्बकीय प्रभाव।
(i) ऊष्मीय प्रभाव (Thermal Effect) : जब किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो उसमें गतिशील इलेक्ट्रॉन निरंतर चालक के परमाणुओं से टकराते रहते हैं तथा इस प्रक्रिया में अपनी ऊर्जा चालक के परमाणुओं को स्थानांतरित करते हैं। इससे चालक का ताप बढ़ जाता है। चालक के ताप के बढ़ने की घटना को ही विद्युत धारा का ऊष्मीय
प्रभाव (Thermal Effect of Electric Current) कहते हैं। विद्युत धारा का ऊष्मीय प्रभाव घरेलू उपकरणों जैसे- विद्युत हीटर, विद्युत प्रेस, बल्ब, ट्यूब लाइट आदि में देखने को मिलता है।
(ii) रासायनिक प्रभाव (Chemical Effect) : जब किसी लवण के जलीय विलयन में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो उसका विद्युत अपघटन (Electrolysis) होता है। इस घटना को विद्युत धारा का रासायनिक प्रभाव (Chemical Effect of Electric Current) कहते हैं। जिस उपकरण में लवणों के जलीय विलयनों का विद्युत अपघटन होता है उसे वोल्टमीटर कहते
हैं। जब किसी विद्युत अपघट्य लवण का जलीय विलयन बनाते हैं तो लवण दो प्रकार के आयनों में टूट जाता है। इन आयनों पर विपरीत प्रकार के आवेश होते हैं। जिन आयनों पर धन आवेश होता है, उन्हें धनायन (calion) कहते हैं तथा ऋणावेश वाले आयनों को ऋणायन (anion) कहते हैं। जब इस आयन युक्त विलयन में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो ध नायन कैथोड की ओर एवं ऋणायन एनोड की ओर चलने लगते हैं और उन पर जाकर जमा हो जाते हैं। विद्युत अपघटन के अनुप्रयोग- विद्युत लेपन (Electroplating) में विद्युत मुद्रण (Electrotyping) में एवं धातु का वैद्युत परिष्करण (Electro-Refining of Metal) में।
(iii) चुम्बकीय प्रभाव (Magnetic Effect) : जब किसी उपकरण में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो उसके चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इस घटना को विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव (Magnetic Effect of Electric Current) कहते हैं। विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव पर आधारित उपकरण हैं- टेलीफोन, टेलीग्राफ, विद्युत घंटी, पंखा एवं मोटर आदि।
◆ कूलॉम का नियम (Coulomb’s Law) : दो स्थिर आवेशों के बीच लगने वाला बल, उनकी मात्राओं के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती व उनकी बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
◆ प्रतिरोध (Resistence) : जब किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो चालक में गतिशील इलेक्ट्रॉन अपने मार्ग में आने वाले परमाणुओं से निरंतर टकराते रहते है, जिससे उनकी ऊर्जा में हास होता है। परमाणुओं व अन्य कारकों द्वारा उत्पन्न किये गये इस व्यवधान को ही चालक का प्रतिरोध कहते हैं। इसका मात्रक ओम होता है।
◆ ओम का नियम (Ohm’s Law) : यदि किसी चालक की भौतिक अवस्था जैसे- ताप आदि में कोई परिवर्तन न हो तो चालक के सिरों पर लगाया गया विभवांतर उसमें प्रवाहित धारा के अनुक्रमानुपाती होता है। यदि किसी चालक के दो बिन्दुओं के बीच विभवांतर v बोल्ट हो तथा उसमें प्रवाहित धारा । एम्पियर हो तो ओम के अनुसार- V α I या V = IR, जहाँ R एक नियतांक है, जिसे चालक का प्रतिरोध कहते है।
◆ ओमीय प्रतिरोध (Ohmic Resistance) : जो चालक ओम के नियम का पालन करते हैं, उसके प्रतिरोध को ओमीय प्रतिरोध कहते हैं। जैसे- मैंगनीज का तार।
◆ विशिष्ट प्रतिरोध (Specific Resistence) : किसी चालक का प्रतिरोध उसकी कुल लंबाई के अनुक्रमानुपाती तथा उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है, अर्थात् यदि चालक की लंबाई I है और उसकी अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल A है, तो
R α 1 / A
या R = p ι/A
जहाँ p एक नियतांक है, जिसे चालक का विशिष्ट प्रतिरोध कहते हैं। अत: एक ही पदार्थ के बने मोटे तार का प्रतिरोध कम तथा पतले तार का प्रतिरोध अधिक होता है। विशिष्ट प्रतिरोध का मात्रक ओम मीटर होता है।
◆ प्रतिरोधों का संयोजन (Combination of Resistence) : सामान्यतः प्रतिरोधों को परिपथ में दो प्रकार से संयोजित किया जा सकता है- (i) श्रेणी क्रम (Series Combination) में, (ii) समानांतर क्रम (Parallel Combination) में।
◆ श्रेणी क्रम में संयोजित प्रतिरोधों का तुल्य प्रतिरोध समस्त प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है।
◆ समानांतर क्रम में संयोजित प्रतिरोधों के समतुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम (Inverse) उनके प्रतिरोधों
के व्युत्क्रमों के योग के बराबर होता है।
◆ विद्युत सामार्थ्य (Electric Power) : कार्य करने की दर को सामर्थ्य कहते हैं। किसी चालक में विद्युत ऊर्जा के व्यय की दर किये गये कार्य के बराबर होती है।
विद्युत सामर्थ्य = व्यय ऊर्जा / लगा समय
◆ विद्युत सामर्थ्य का मात्रक वाट होता है। इसके अन्य बड़े मात्रक किलोवाट (KW) व मेगावाट (MW) होते हैं।
◆ घरों में प्रयुक्त विद्युत उपकरणों द्वारा खर्च की गयी कुल ऊर्जा के मापन की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए किलोवाट-घंटा-मीटर या मीटर नामक यंत्र प्रयोग लाया जाता है।
◆ व्यय ऊर्जा को वाट-घंटा या किलोवाट घंटा में मापते हैं।
◆ अमीटर (Ammeter) : विद्युत धारा को एम्पियर में मापने के लिए अमीटर नामक यंत्र का प्रयोग किया जाता है। अमीटर को परिपथ में सदैव श्रेणी क्रम (Series Combination) में लगाया जाता है।
◆ वोल्ट पीटर (Voltmeter) : वोल्ट मीटर का प्रयोग परिपथ के किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभवांतर मापने में किया जाता है। इसे परिपथ में सदैव समानांतर क्रम (Parallel Combination) में लगाते हैं। एक आदर्श वोल्टमीटर का प्रतिरोध अनंत होना चाहिए।
◆ घरेलू विद्युत का वितरण : घरों में विद्युत का वितरण एक मीटर के द्वारा किया जाता है, जो कि विद्युत ऊर्जा को किलोवाट घंटा में मापता है।
◆ घरों में पंखा, बल्ब आदि उपकरण समानांतर क्रम (Parallel Combination) में लगे रहते हर उपकरण के साथ एक-एक स्विच श्रेणी क्रम (Series Combination) में जुड़े होते हैं।
◆ रेगुलेटर (Regulator): रेगुलेटर परिपथ में सामान्यतः एक धारा नियंत्रक (Current Controller) का कार्य करता है।
◆ विद्युत फ्यूज (Electric Fuse) : विद्युत फ्यूज का प्रयोग परिपथ में लगे उपकरणों की सुरक्षा के लिए किया जाता है। यह ताँबा, टिन एवं सीसा की मिश्र धातु से बना होता है एवं इसका गलनांक (Melting Point) कम होता है। यह परिपथ के साथ श्रेणी क्रम (Series Combination) में जोड़ा जाता है।
◆ गैल्वेनोमीटर (Galvanometer) : विद्युत परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति बनाने वाला एक यंत्र है। इसकी सहायता से 10 ऐम्पियर तक की विद्युत धारा को मापा जा सकता है।
◆ ट्रांसफॉर्मर (Transformer) : यह एक ऐसा विद्युत उपकरण है जिसकी सहायता से प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current-AC) को कम या अधिक किया जाता है। इसका प्रयोग केवल प्रत्यावर्ती धारा (AC) के लिए किया जाता है। ट्रांसफॉर्मर विद्युत चुम्बकीय प्रेरण सिद्धान्त (Electro Magnetic Induction Theory) पर कार्य करता है।
◆ माइक्रोफोन (Mrcrophone) : इसके द्वारा ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। इससे ध्वनि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जाता है। यह भी विद्युत चुम्बकीय प्रेरण सिद्धान्त (Electro Magnetic Induction Theroy) पर कार्य करता है।
◆ विद्युत जनरेटर (Electric Generator) : इसके द्वारा यांत्रिक ऊर्जा (Mechanical Energy) को विद्युत ऊर्जा (Electric Energy) में परिवर्तित किया जाता है। यह भी विद्युत चुम्बकीय प्रेरण सिद्धान्त (Electro Magnetic Induction Therory) पर कार्य करता है।