जर्मनी का एकीकरण
जर्मनी का एकीकरण
1870 के पूर्व नॉर्डिक-ट्युटन प्रजातियों का देश जर्मनी अनेक छोटे-बड़े राज्यों, रजवाड़ों में विभक्त था। यह सही मायने में
एक राष्ट्र नहीं, बल्कि जर्मनभाषी राज्यों का एक समूह था। इसमें 300 राज्य और प्रशासनिक इकाइयाँ थीं। मोटे तौर पर जर्मनी
तीन भागों में विभाजित था-उत्तरी, मध्य और दक्षिणी। उत्तरी भाग में प्रशा और सैक्सनी, मध्य में राइनलैंड और दक्षिण में
बवेरिया जैसे राज्य प्रमुख थे। इन राज्यों में राजनीतिक, सामाजिक अथवा धार्मिक एकता नहीं थी। उत्तरी राज्यों में प्रोटेस्टेंटों और दक्षिणी राज्यों में कैथोलिक संप्रदायवाले बहुसंख्यक थे। राजनीतिक दृष्टि से विखंडित होते हुए भी 1806 के पूर्व तक ये सभी राज्य पवित्र रोमन साम्राज्य (Holy Roman Empire) के प्रति समान श्रद्धा की भावना से जुड़े हुए थे। डायट (Diet) अथवा संसद के द्वारा भी ये राज्य एक-दूसरे से संबद्ध थे। संसद में 300 राज्यों के प्रतिनिधि भाग लेते थे, परंतु इनमें राष्ट्रवाद की भावना नहीं थी। जर्मन राज्यों पर फ्रांसीसी सभ्यता-संस्कृति का गहरा प्रभाव था।
जर्मन राष्ट्रवाद का उदय-जर्मनी में राष्ट्रवाद का उदय 18वी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ। इस समय जर्मनी में अनेक
राजनीतिक चिंतक और बुद्धिजीवियों का प्रादुर्भाव हुआ जिन्होंने जर्मनों में राष्ट्रीय चेतना की भावना जगाई। ऐसे लोगों में स्टीन,
गॉटफ्रीड, कांट, फिक्टे, हीगेल, अंडर्ट, हम्बोल्ट और ग्रिमबंधुओं (जैकॉब ग्रिम और विल्हेल्म ग्रिम) के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। स्टीन संवैधानिक राजतंत्र में विश्वास करते थे। गॉटफ्रीड का मानना था कि सच्ची जर्मन संस्कृति उसके आम
लोगों में निहित थी। यह राष्ट्र की आत्मा थी। उन्होंने इसे वोल्कजिस्ट (Volkgeist) नाम दिया। हरडर के दार्शनिक चिंतन ने
जर्मनी में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की नींव डाली। इसका तेजी से प्रसार हुआ। गॉटफ्रीड से प्रेरणा लेकर ग्रिमबंधुओं ने जर्मन लोककथाओं का संग्रह (ग्रिम्स फेयरी टेल्स) प्रकाशित किया। साथ ही, 33 खंडों में जर्मन भाषा का शब्दकोश भी प्रकाशित किया गया। कांट ने स्वतंत्रता का आदर्श प्रस्तुत किया। फिक्टे उग्र राष्ट्रवाद का समर्थक था। उसने फ्रांस-विरोधी जर्मन राष्ट्रवाद पर बल दिया। हीगेल ने ऐतिहासिक द्वंद्ववाद की व्याख्या की तथा राज्य में सर्वोच्च सत्ता की कल्पना की। हीगेल ने इतिहास की प्रक्रिया का उद्देश्य स्वतंत्रता की उपलब्धि बताया। हीगेल के विचारों से प्रभावित होकर जर्मनी में इतिहास के अध्ययन पर विशेष बल दिया गया। बिस्मार्क हीगेल से गहरे रूप से प्रभावित था। अंडर्ट ने अपनी कविताओं के माध्यम से राष्ट्रीयता की भावना जागृत की। हर्डेनबर्ग तथा नोवोलिस ने जर्मनी के गौरवमय अतीत को उजागर कर राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया। राष्ट्रवाद के प्रसार में शिक्षण संस्थाओं एवं विद्यार्थियों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान था। वाइमर राज्य का येना विश्वविद्यालय राष्ट्रीय आंदोलन का गढ़ था। चित्रकारों ने अपने चित्रों द्वारा राष्ट्रवादी भावना का प्रसार किया।
राष्ट्रवादी भावना से प्रेरित होकर फादर जॉन ने तरुण आंदोलन आरंभ किया। उसने अनेक राजनीतिक व्यायामशालाएँ स्थापित की। इनके माध्यम से नवयुवकों में राष्ट्रवादी चेतना जागृत की गई। इसी प्रकार नैतिक संघ, वैज्ञानिक संघ जैसी संस्थाओं के माध्यम युवकों के चरित्र-निर्माण एवं उनमें राष्ट्रवादी भावना का प्रसार किया गया। धीरे-धीरे जर्मन राष्ट्रवाद की भावना बलवती होती गई। 1815 के बाद छात्रों ने वशेन शैफ्ट नामक समिति का गठन कर राष्ट्रीय एकता आंदोलन चलाया।
नेपोलियन और जर्मन राष्ट्रवाद का विकास- फ्रांसीसी क्रांति के बाद नेपोलियन बोनापार्ट के युद्धों ने जर्मनी में एकीकरण की प्रक्रिया का सूत्रपात किया। नेपोलियन ने पवित्र रोमन साम्राज्य को समाप्त कर जर्मनी के छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर 1806 में 39 राज्यों का राइन राज्यसंघ स्थापित किया। उसने प्रशासकीय, सामाजिक और आर्थिक सुधार भी किए। इससे जर्मन राज्यों में एकता की भावना बढ़ी। साथ ही, नेपोलियन के आक्रमणों से हुई आर्थिक क्षति और प्रतिष्ठा को जो ठेस जर्मनों को लगी उससे उनमें फ्रांस-विरोधी भावना जागृत हुई। इस प्रकार, नेपोलियन ने चाहे-अनचाहे जर्मन राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया।
मेटरनिक का प्रतिक्रियावाद- वियना काँग्रेस में मेटरनिक ने जर्मनी को ऑस्ट्रिया के अंतर्गत शक्तिहीन संघ राज्य के रूप में रखा। जर्मनी में रूढ़िवादी व्यवस्था स्थापित की गई। 1819 में कार्ल्सबाद के आदेशों द्वारा प्रेस और प्रकाशन पर कठोर नियंत्रण लगाया गया। विश्वविद्यालयों पर नियंत्रण रखने के लिए पर्यवेक्षक बहाल किए गए। पाठ्यक्रमों और धार्मिक संस्थाओं पर नियंत्रण लगाया गया। कक्षाओं और गिरजाघरों में गुप्तचर बहाल किए गए। इन सबका उद्देश्य उदारवादी विचारधारा और राष्ट्रवाद को बढ़ने से रोकना था। मेटरनिक के प्रयासों से 1848 तक जर्मन राष्ट्रवादी विशेष प्रगति नहीं कर सके। 1848 में मेटरनिक के पतन के पश्चात जर्मन एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हो गया।
जर्मनी के एकीकरण में सहायक आर्थिक तत्त्व-1815-48 के मध्य जर्मनी में औद्योगिकीकरण की पृष्ठभूमि तैयार हो गई। कोयला और खनिज उद्योग का विकास हुआ। रेल लाइनों का प्रसार हुआ। इसके द्वारा विभिन्न स्थानों से संपर्क स्थापित करने का साधन मिला। 1834 में प्रशा की पहल पर जॉल्वेराइन शुल्क संघ की स्थापना हुई। इससे अबाध गति से व्यापार का विकास हुआ। ऑस्ट्रिया के अतिरिक्त अन्य जर्मन राज्य भी 1844 तक इस शुल्क संघ के सदस्य बन चुके थे। इस प्रकार, राजनीतिक एकीकरण के पहले आर्थिक एकीकरण हुआ।
फ्रैंकफर्ट संसद-1848 की फ्रांसीसी क्रांति का जर्मनी पर व्यापक प्रभाव पड़ा। जर्मनी में राजनीतिक उथल-पुथल मच गई। उदारवादियों ने विभिन्न राज्यों को एकीकृत कर जर्मन राष्ट्र के निर्माण की योजना बनाई। निर्वाचन के बाद एक सर्व-जर्मन नेशनल असेंबली का गठन फ्रैंकफर्ट में हुआ। 18 मई 1848 को फ्रैंकफर्ट के सेंट पॉल के चर्च में इस असेंबली (फ्रैंकफर्ट संसद) की बैठक हुई। इसकी अध्यक्षता वान गोगेर्न ने की। संसद में 831 निर्वाचित प्रतिनिधि थे। असेंबली ने एक संविधान की रूपरेखा बनाई। इसके अनुसार,जर्मन राष्ट्र का प्रधान एक राजा को बनना था जिसे संसद के नियंत्रण में काम करना था। जर्मनी का एकीकरण उसी के नेतृत्व में होना था। असेंबली ने जब प्रशा के राजा फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ के समक्ष यह प्रस्ताव रखा तो
उसने इसे स्वीकार नहीं किया; क्योंकि वह ऑस्ट्रिया से खुला संघर्ष नहीं करना चाहता था। कुछ दक्षिणी राज्यों ने भी प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया। फलतः, असेंबली भंग हो गई, जर्मनी का एकीकरण नहीं हो सका। 1849-60 के मध्य एकीकरण के प्रयासों को सफलता नहीं मिली। इस अवधि में रूढ़िवादियों और प्रगतिवादियों के बीच आपसी प्रतिद्वंद्विता चलती रही। राष्ट्रवादी आंदोलनों को ऑस्ट्रिया और प्रशा ने मिलकर दबा दिया। एकीकरण का मार्ग बाधित हो गया।
एकीकरण में विस्मार्क का योगदान
फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ की मृत्यु के बाद प्रशा का राजा विलियम प्रथम बना। वह राष्ट्रवादी था तथा प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण करना चाहता था। विलियम जानता था कि ऑस्ट्रिया और फ्रांस को पराजित किए बिना जर्मनी का एकीकरण संभव नहीं है। अत:, उसने प्रशा को सैनिक रूप से सशक्त करने का प्रयास किया। उसकी इस नीति का संसद में विरोध हुआ और राजनीतिक गतिरोध उत्पन्न हो गया। इसे दूर करने के लिए उसने 1862 में ऑटो वॉन बिस्मार्क (1815-98) को अपना चांसलर (प्रधानमंत्री) नियुक्त किया।
बिस्मार्क का जन्म 1815 में ब्रेनडेनबर्ग में हुआ था। वह प्रख्यात राष्ट्रवादी और कूटनीतिज्ञ था। जर्मनी के एकीकरण के लिए वह किसी भी कदम को अनुचित नहीं मानता था। उसने जर्मन राष्ट्रवादियों के सभी समूहों से, चाहे वे उदारवादी राष्ट्रवादी हों अथवा कट्टरवादी राष्ट्रवादी, संपर्क स्थापित कर उन्हें अपने प्रभाव में लाने का प्रयास किया। 1830 के ऑस्ट्रो-प्रशा संधि का भी विरोध उसने किया। 1848 की फ्रैंकफर्ट संसद में उसने भाग लिया। बाद में वह सेंट पीटर्सबर्ग (रूस) और पेरिस (फ्रांस) में राजदूत बना। 1862 में वह प्रशा का प्रधानमंत्री बना। बिस्मार्क का मानना था कि जर्मनी की समस्या का समाधान बौद्धिक भाषणों से नहीं, आदर्शवाद से नहीं, बहुमत के निर्णयों से नहीं, वरन प्रशा के नेतृत्व में रक्त और लौह (Blood and Iron) की नीति से होगा। सबसे पहले बिस्मार्क ने आर्थिक सुधारों के द्वारा प्रशा की स्थिति मजबूत की। इससे सैनिक शक्ति भी सुदृढ़ हुई। प्रशा के एकीकरण के लिए बिस्मार्क ने तीन युद्ध किए।
(i) डेनमार्क से युद्ध-1864 में शेल्सविग और हॉल्सटीन के प्रश्न पर प्रशा और डेनमार्क में युद्ध हुआ। इन दोनों क्षेत्रों में जर्मन निवास करते थे, परंतु डेनमार्क इसे अपने आधिपत्य में रखना चाहता था। युद्ध आरंभ करने के पूर्व बिस्मार्क ने कूटनीति का सहारा लेकर ऑस्ट्रिया से समझौता कर लिया। ऑस्ट्रिया की सहायता से उसने डेनमार्क को पराजित कर शेल्सविग पर अधिकार कर लिया। हॉल्सटीन ऑस्ट्रिया को मिला।
(ii) प्रशा और ऑस्ट्रिया युद्ध-1865 की गैस्टीन की संधि द्वारा हॉल्सटीन पर ऑस्ट्रिया का आधिपत्य स्वीकार किया गया था,
परंतु यह संधि अस्थायी थी। हॉल्सटीन प्रशा से घिरा हुआ था और ऑस्ट्रिया से दूर होने के कारण ऑस्ट्रिया के प्रभावशाली
नियंत्रण में नहीं था। इसलिए, बिस्मार्क ने इसे प्रशा में मिलाने की योजना बनाई। ऑस्ट्रिया के साथ युद्ध करने के पूर्व उसने
फ्रांस, रूस और इंगलैंड को अपने पक्ष में मिला लिया। अत:, वे युद्ध में तटस्थ रहे। 1866 में ऑस्ट्रिया-प्रशा युद्ध अथवा सेडोवा
का युद्ध हुआ जिसमें ऑस्ट्रिया पराजित हुआ। 1866 में प्राग की संधि द्वारा जर्मन महासंघ भंग कर दिया गया। फलतः, 22 उत्तरी जर्मन राज्यों का उत्तरी जर्मन महासंघ बना जिसका प्रधान प्रशा था। हॉल्सटीन भी प्रशा को मिल गया। इस प्रकार,
जर्मनी से ऑस्ट्रिया का प्रभाव समाप्त हो गया। अब सिर्फ दक्षिण के चार राज्य ही बाहर थे। बिस्मार्क ने अब इन्हें जीतने की
योजना बनाई।
(iii) फ्रांस के साथ युद्ध-जर्मनी की बढ़ती शक्ति से फ्रांस भयाक्रांत हो गया। वह दक्षिणी राज्यों (बाडेन, वुर्टेम्बर्ग, बवेरिया और हेस डासराड) को प्रशा के साथ मिलने नहीं देना चाहता था। बिस्मार्क जानता था कि इन राज्यों में राष्ट्रवादी भावना उफान पर थी और युद्ध के भय से ये राज्य प्रशा में मिल जाएँगे। जर्मन एकीकरण के लिए फ्रांस से युद्ध आवश्यक था। इसी समय स्पेन में उत्तराधिकार का प्रश्न सामने आया। स्पेन की गद्दी पर प्रशा के राजकुमार की दावेदारी थी, परंतु फ्रांस इसका विरोध कर रहा था। इसलिए, बिस्मार्क ने स्पेन की गद्दी के उत्तराधिकार के प्रश्न को लेकर फ्रांस को एम्स टेलीग्राम’ द्वारा युद्ध के लिए भड़काया। सभी जर्मन राष्ट्रवादियों ने बिस्मार्क का समर्थन किया। जुलाई 1870 में फ्रांस के शासक नेपोलियन तृतीय ने प्रशा के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। सीडान के युद्ध में फ्रांस बुरी तरह पराजित हुआ। 10 मई 1871 को फ्रैंकफर्ट की संधि द्वारा दक्षिणी राज्य उत्तरी जर्मन महासंघ में मिल गए। इस प्रकार, जर्मनी का एकीकरण पूरा हुआ।
इसी बीच 18 जनवरी 1871 को वर्साय के शीशमहल (हॉल ऑफ मिरर्स) में बिस्मार्क, प्रमुख मंत्रियों और सैन्य अधिकारियों की उपस्थिति में विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट (काइजर) घोषित किया गया। यूरोप के नक्शे पर एकीकृत जर्मन राष्ट्र का उदय हुआ। जर्मनी का एकीकरण सैनिक शक्ति के बल पर हुआ, यद्यपि इस एकीकरण में उदारवादी और राष्ट्रवादी तत्त्व भी सम्मिलित थे।
स्मरणीय
• राष्ट्रवाद की अवधारणा-फ्रांसीसी दार्शनिक अर्स्ट रेनन और फ्रांसीसी कलाकार सॉरयू ने राष्ट्रवाद की नई व्याख्या की। रेनन के अनुसार, राष्ट्र एक बड़ी और व्यापक एकता है। सॉरयू ने अपने चित्रों द्वारा कल्पनादर्श की रचना की।
• फ्रांस में राष्ट्रवाद-1789 की क्रांति के बाद नेशनल असेंबली ने मानव एवं नागरिक अधिकारों की घोषणा की, कन्वेंशन ने राजशाही को समाप्त कर दिया, फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने यूरोप में राष्ट्रवाद का प्रसार किया।
• राष्ट्रवाद के प्रसार में नेपोलियन का योगदान-नेपोलियन ने विजित राज्यों में 1804 में नेपोलियन संहिता लागू कर, विशेषाधिकार समाप्त कर कानून के समक्ष सबको बराबरी का अधिकार दिया, समान प्रशासनिक और आर्थिक व्यवस्था लागू की गई। इससे तानाशाही के विरुद्ध आवाजे उठने लगीं। फ्रांसीसी आधिपत्य के विरुद्ध भी देशभक्ति की भावना बलवती हुई।
• राष्ट्रवाद के विकास में सहायक तत्त्व-कुलीनों की क्षेत्रातीत जीवन-शैली का प्रभाव, शिक्षित मध्यम वर्ग का उदय और विकास
• रूमानीवाद-इसके अंतर्गत संस्कृति द्वारा राष्ट्रवाद की भावना का विकास करने का प्रयास रूमानीवादियों ने भावनाओं, अंतर्दृष्टि और रहस्यवादी भावनाओं पर बल दिया-लोककथाओं, भाषा और संगीत द्वारा राष्ट्रवाद का विकास-चित्रकला में नारी को राष्ट्रवाद का प्रतीक बनाया गया-फ्रांस में मारीआन और जर्मनी में जर्मेनिया की छवि
• उदारवादी राष्ट्रवाद-व्यक्ति की स्वतंत्रता, कानून के समक्ष सबकी बराबरी, निरंकुशवाद के स्थान पर संविधान और प्रतिनिधि सरकार की स्थापना पर बल, आर्थिक क्षेत्र में मुक्त व्यापार का समर्थन
• रूढ़िवाद की पुनर्स्थापना-वियना काँग्रेस, यूरोपीय कन्सर्ट, पवित्र संघ की योजना, चतुर्राष्ट्र मैत्री और मेटरनिक-व्यवस्था द्वारा निरंकुशवाद को बढ़ावा तथा राष्ट्रवाद और संसदीय प्रणाली के विकास को रोकने का प्रयास
• क्रांतियों का दौर-1830 की क्रांतियाँ-फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, स्विट्जरलैंड, बेल्जियम, पोलैंड, ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के अंतर्गत जर्मनी और इटली तथा इंगलैंड में क्रांतियाँ हुई—इन क्रांतियों ने उदारवाद और राष्ट्रवाद के विकास का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
• यूनान का स्वतंत्रता संग्राम-यूरोप का मरीज ऑटोमन साम्राज्य की दुर्बलता का लाभ उठाकर राष्ट्रवादी तत्त्व सक्रिय-यूनान ऑटोमन साम्राज्य के अंतर्गत-1821 में यूनान में विद्रोह–1829 में तुर्की युद्ध में पराजित-एड्रियानोपुल की संधि द्वारा यूनान में वंशानुगत राजशाही की स्थापना-1832 में कुस्तुनतुनिया की संधि द्वारा स्वतंत्र यूनान राष्ट्र की स्थापना
• 1848 की क्रांतियाँ-फ्रांस, इटली, जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और बोहेमिया तथा पोलैंड में क्रांतियाँ-अनेक राष्ट्रों में उदारवादी प्रयास-फ्रांस में द्वितीय गणराज्य की स्थापना
• राष्ट्रवाद का प्रभाव-(i) नए राष्ट्रों का उदय, (ii) एशिया-अफ्रीका के उपनिवेशों पर प्रभाव, (iii) भारत पर प्रभाव, (iv) भारतीय धर्मसुधार आंदोलन के नेताओं पर प्रभाव, (v) निरंकुश और प्रतिक्रियावादी शक्तियों का प्रभाव कमजोर होना, (vi) संकीर्ण राष्ट्रवाद का उदय, (vii) साम्राज्यवादी प्रवृत्ति को बढ़ावा
• इटली का एकीकरण-इटली का एकीकरण मेजिनी, कावूर और गैरीबाल्डी तथा विक्टर इमैनुएल के प्रयासों से तीन चरणों में
पूरा हुआ-इटली का एकीकरण सार्डिनिया-पिडमौंट राज्य के नेतृत्व में-1870 में एकीकृत इटली का जन्म-विक्टर इमैनुएल इटली का राजा बना।
• जर्मनी का एकीकरण-जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की प्रमुख भूमिका-1862 में प्रशा के राजा विलियम प्रथम का चांसलर बनना-बिस्मार्क ने एकीकरण के लिए ‘रक्त और लौह’ की नीति अपनाई-तीन युद्धों (1864 में डेनमार्क से, 1866 में ऑस्ट्रिया से, तथा 1870 में फ्रांस से) द्वारा प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण-जनवरी 1871 में विलियम प्रथम जर्मन सम्राट बना।