पृथ्वी की गतियाँ
पृथ्वी की गतियाँ
पृथ्वी की गतियाँ
पृथ्वी की गतियाँ
◆ पृथ्वी सौरमंडल का एक ग्रह है। इसकी दो गतियाँ हैं- 1. घूर्णन गति (दैनिक गति) और 2. परिक्रमण गति (वार्षिक गति) । दोनों गतियाँ साथ-साथ होती हैं।
1. घूर्णन गति (Rotation)
◆ पृथ्वी सदैव अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर लट्टू की भाँति घूमती रहती है, जिसे पृथ्वी का घूर्णन या परिभ्रमण कहते हैं। इसके कारण ही दिन व रात होते हैं। अतः इस गति को दैनिक गति भी कहते हैं।
◆ इस गति के कारण ही पवन एवं समुद्री धाराओं की दिशा में परिवर्तन होता है एवं समुद्र में ज्वार-भाटा आता है।
◆ पृथ्वी का जो हिस्सा सूर्य के सामने होता है, वहाँ दिन होता है और दूसरी ओर रात होती है।
◆ पृथ्वी को अपने अक्ष पर चक्कर पूरा करने मे 23 घंटे, 56 मिनट 40.91 सेकंड लगते हैं।
◆ भूमध्य रेखा पर घूर्णन गति लगभग 1667 किमी / घंटा होती है। यह ध्रुवों की ओर कम होती जाती है।
◆ एम मध्याह्न रेखा के ऊपर किसी निश्चित नक्षत्र के उत्तरोत्तर दो बार गुजरने के बीच की अवधि को नक्षत्र दिवस (Sideral Day) कहते हैं । यह 23 घंटे व 56 मिनट की अवधि का होता है।
◆ जब सूर्य को गतिहीन मानकर पृथ्वी द्वारा उसके परिक्रमण की गणना दिवसों के रूप में की जाती है तब सौरदिवस (Solar Day) ज्ञात होता है। इसकी अवधि पूरे 24 घंटे होती है।
2. परिक्रमण गति ( Revolution)
◆ पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमने के साथ-साथ सूर्य के चारों ओर एक अंडाकार मार्ग (Geoid) पर 365 दिन तथा 6 घंटे में एक चक्कर पूरा करती है । पृथ्वी के इस अंडाकार मार्ग को परिक्रमण या वार्षिक गति कहते हैं।
◆ पृथ्वी जब सूर्य के अत्यधिक पास होती है तो उसे उपसौर (Perihelion ) कहते हैं। ऐसी स्थिति 3 जनवरी को होती है।
◆ पृथ्वी जब सूर्य से अधिकतम दूरी पर होती है तो इसे अपसौर (Aphelion ) कहते हैं। ऐसी स्थिति 4 जुलाई को होती है।
◆ दिन-रात का छोटा व बड़ा होना : यदि पृथ्वी अपनी धुरी पर झुकी हुई न होती तो सर्वत्र दिन-रात बराबर होते। इसी प्रकार यदि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा न करती तो एक गोलार्द्ध में रातें बड़ी और दिन छोटे होते, परन्तु विषुवतीरेखीय भाग को छोड़कर विश्व के अन्य सभी भागों में विभिन्न ऋतुओं में दिन रात की लंबाई में अंतर पाया जाता है। विषुवत रेखा पर सदैव दिन-रात बराबर होते हैं क्योंकि इसे प्रकाश वृत्त हमेशा दो बराबर भागों में बाँटता है। अतः विषुवत रेखा का आधा भाग प्रत्येक स्थिति में प्रकाश प्राप्त करता है।
ऋतु परिवर्तन
◆ चूँकि पृथ्वी न सिर्फ अपने अक्ष पर घूमती है बल्कि सूर्य की परिक्रमा भी करती है। अतः पृथ्वी की सूर्य से सापेक्ष स्थितियाँ बदलती रहती है। पृथ्वी के परिभ्रमण में चार प्रमुख अवस्थाएँ आती हैं एवं इन अवस्थाओं में ऋतु परिवर्तन होते हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
1. 21 जून की स्थिति : इस समय सूर्य कर्क रेखा पर लंबवत् चमकता है। इस स्थिति को ग्रीष्म अयनांत (Summer Solistice) कहते हैं। वस्तुत: 21 मार्च के बाद सूर्य उत्तरायण होने लगता है एवं उत्तरी गोलार्द्ध में दिन की अवधि बढ़ने लगती है जिससे वहाँ ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है। 21 जून को उत्तरी गोलार्द्ध में दिन की लंबाई सबसे अधिक रहती है। दक्षिणी गोलार्द्ध में इस समय शीत ऋतु होती है। 21 जून के बाद 23 सितंबर तक सूर्य पुनः विषुवत रेखा की ओर उन्मुख होता है। परिणामस्वरूप धीरे-धीरे उत्तरी गोलार्द्ध में गर्मी कम होने लगती है।
2. 22 दिसंबर की स्थिति : इस समय सूर्य मकर रेखा पर लंबवत् चमकता है। इस स्थिति को शीत अयनांत (Winter Solistice) कहते हैं। इस समय दक्षिणी गोलार्द्ध में दिन की अवधि लंबी तथा रात छोटी होती है। वस्तुतः सूर्य के दक्षिणायण होने अर्थात् दक्षिणी गोलार्द्ध में उन्मुख होने की प्रक्रिया 23 सितंबर के बाद प्रारंभ हो जाती है जिससे दक्षिणी गोलार्द्ध में दिन बड़े व रातें छोटी होने लगती है। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में ठीक विपरीत स्थिति देखी जाती है। 22 दिसंबर के उपरांत 21 मार्च तक सूर्य पुनः विषुवत रेखा की ओर उन्मुख होता है एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में धीरे-धीरे ग्रीष्म ऋतु की समाप्ति हो जाती है।
3. 21 मार्च व 23 सितंबर की स्थितियाँ : इन दोनों स्थितियों में सूर्य विषुवत रेखा पर लम्बवत चमकता है। अतः इस समय समस्त अक्षांश रेखाओं का आधा भाग सूर्य का प्रकाश प्राप्त करता है। अतः सर्वत्र दिन व रात की अवधि बराबर होती है। इस समय दिन व रात की अवधि के बराबर रहने एवं ऋतु की समानता के कारण इन दोनों स्थितियों को विषुव अथवा सम रात-दिन (Equinox) कहा जाता है। 21 मार्च की स्थिति को बसंत विषुव ( Spring Equinox) एवं 23 सितंबर वाली स्थिति को शरद विषुव (Antum Equinox) कहा जाता है।
ग्रहण
◆ किसी खगोलीय पिण्ड का अंधकारमय हो जाना ग्रहण (Eclipse) कहलाता है। ग्रहण दो प्रकार के होते हैं- चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण |
चन्द्रग्रहण
◆ जब पृथ्वी, सूर्य व चन्द्रमा के बीच में आ जाती है तो पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर पड़ती है, इस प्रकार चन्द्रग्रहण (Lunar Eclipse) होता है।
◆ यह पूर्णिमा के दिन होता है।
◆ चन्द्रग्रहण प्रत्येक पूर्णिमा को नहीं होता क्योंकि चन्द्रमा पृथ्वी एवं सूर्य प्रत्येक पूर्णिमा को एक सीधी रेखा में नहीं आते हैं।
◆ चन्द्रग्रहण अधिकतम एक घंटे 40 मिनट तक होता है।
सूर्यग्रहण
◆ चन्द्रमा के पृथ्वी और सूर्य के बीच में आने पर सूर्यग्रहण (Solar Eclipse) होता है।
◆ सूर्यग्रहण केवल अमावस्या के दिन होता है।
◆ सूर्यग्रहण प्रत्येक अमावस्या को नहीं होता, क्योंकि चन्द्रमा की कक्षा में पृथ्वी की सूर्य की ओर कक्षा के सापेक्ष 5° का झुकाव है, इसी कारण चन्द्रमा की छाया प्रतिमाह पृथ्वी पर नहीं पड़ती और सूर्यग्रहण नहीं होता है।
◆ पूर्ण सूर्यग्रहण अधिकतम 7 मिनट 40 सेकंड तक हो सकता है।
ज्वार भाटा
◆ समुद्री जल में दिन में दो बार निश्चित अंतराल पर ऊपर उठता तथा नीचे गिरता है। यह प्रक्रिया ज्वारभाटा (Tides) कहलाती है।
◆ ज्वारभाटा की उत्पत्ति सूर्य एवं चन्द्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण होती है। चन्द्रमा की ज्वारोत्पादक शक्ति सूर्य से दो गुना ज्यादा होती है, क्योंकि सूर्य पृथ्वी से चन्द्रमा के मुकाबले अत्यधिक दूरी पर है।
◆ दो ज्वारभाटा के बीच का अंतराल 12 घंटे 26 मिनट होता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर 24 घंटे में घूमती है। अतः प्रत्येक स्थान पर ज्वार 12 घंटे बाद उत्पन्न होना चाहिए, परंतु ऐसा नहीं होता है। इसका कारण पृथ्वी और चन्द्रमा की गतियाँ हैं। वस्तुतः पृथ्वी एक घुर्णन (Roatation) पूरा होने तक चन्द्रमा भी अपने पथ पर आगे बढ़ जाता है। चन्द्रमा 21½ दिन में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करता है। 24 घंटे में यह पृथ्वी का 1/28 भाग तय कर पाता है, इसलिए पृथ्वी के उस स्थान को चन्द्रमा के समक्ष पहुँचने में 52 मिनट का अतिरिक्त समय लग जाता है। अतः प्रत्येक स्थान पर 12 घंटे 26 मिनट बाद दूसरा ज्वार आता है।
◆ ज्वारभाटा दो प्रकार के होते हैं –
1. दीर्घ ज्वार ( Spring Tides )
◆ पूर्णिमा एवं अमावस्या के दिन दीर्घ ज्वार की उत्पत्ति होती है क्योंकि इस दिन सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी तीनों एक सीध में होते हैं ।
2. लघु ज्वार (Neap Tides )
◆ कृष्ण शुक्लपक्ष की अष्टमी को लघु ज्वार की उत्पत्ति होती है क्योंकि इस दिन सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी तीनों कोण की स्थिति में होते हैं।