UP Board Class 8 Hindi | सहसा विदधीत न क्रियाम् (अनिवार्य संस्कृत)
UP Board Class 8 Hindi | सहसा विदधीत न क्रियाम् (अनिवार्य संस्कृत)
UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 5 सहसा विदधीत न क्रियाम् (अनिवार्य संस्कृत)
ईस्वीवर्षस्य ……………………………………………………….. प्रसिद्धर्वते।
हिन्दी अनुवाद – सातवीं शताब्दी में महाराष्ट्र प्रान्त में विष्णुवर्धन राजा था। उसकी राज्यसभा में.. महाकवि भारवि राजकवि था। उसको महाकाव्य ‘किरातार्जुनीय’ प्राचीनकाल से ही अत्यन्त प्रसिद्ध है।
भारविः भारविः ……………………………………………………….. चतुर्दिक्षु प्रासरत्।
हिन्दी अनुवाद – भारवि ने बाल्यकाल में बहुत परिश्रम से विद्या प्राप्त की। उसकी विलक्षण बुद्धि काव्य रचना में भी प्रवृत्त थी। वह हमेशा विद्वानों की सभाओं में उपस्थित होता था। वहाँ पण्डितों के साथ अनेक बार चतुराई से शास्त्रार्थ करता था। वह कवि सम्मेलनों में निरन्तर कविता सुनाता था। श्रोता लोग उसकी सुन्दर कविता सुनकर बहुत प्रशंसा करते थे। इस प्रकार काव्यकला में उसका यश अल्पकाल में ही चारों दिशाओं में फैल गया।
भारवेः पिता ……………………………………………………….. सम्पदः।
हिन्दी अनुवाद – भारवि का पिता पुत्र के काव्य यश से मन में अत्यन्त प्रसन्न और सन्तुष्ट था। तब भी वाणी से भारवि की प्रशंसा नहीं करता था। बल्कि वह कभी-कभी उसके पाण्डित्य की आलोचना करता था। इससे भारवि चिन्तित और खिन्न होता था। एक बार उसके पिता ने कविता सुनकर राज्यसभा में ही आलोचना की और तिरस्कार किया। उस अपमान से भारवि पिता से अत्यधिक नाराज और उद्विग्न हुआ। उसे चिन्ता से रात्रि भर नींद नहीं आई (अर्थात् सोया नहीं)। घर से इधर-उधर घूमते हुए वह रात्रि में कुछ समय, तक पिता के कमरे से बाहर रहा। तब अपने विषय में माता-पिता का वार्तालाप सुना। “हमारा पुत्र महाकवि और महापण्डित है। उसका यश निरन्तर बढ़ रहा है। वह समाज में हमारा गौरव स्थापित करता है। किन्तु वह और अधिक कवित्व और यश प्राप्त करे, ऐसा विचार करके सभा में आज मेरे द्वारा उसका तिरस्कार किया गया।”
ऐसा सुनकर भारवि गुस्से से निवृत्त हुए। पिता के प्रति झूठे रोष से उसके हृदय में अत्यधिक ग्लानि उत्पन्न हुई। उसने रात्रि में पश्चात्ताप करके इस पद्य की रचना की
कोई कार्य अचानक नहीं करना चाहिए क्योंकि विचार को अभाव बड़ी आपत्ति का स्थान है। सम्पदा गुणों से मिलती है। वह विचारपूर्वक कार्य करने वालों को अपने आप वरण कर लेती है।
अभ्यास
प्रश्न 1.
उच्चारण करें
नोट- विद्यार्थी स्वयं उच्चारण करें।
प्रश्न 2.
एक पद में उत्तर दें
(क) भारवेः महाकाव्यस्य किं नाम?
उत्तर : किरातार्जुनीय।
(ख) भारविं वचसा कः न प्राशंसत्?
उत्तर : भारवैः पिता।
(ग) से कविसम्मेलनेषु किम् अकरोत्?
उत्तर : काव्यम् अश्रावयत्।
(घ) भारविः पित्रे कथं रुष्टः?
उत्तर : अपमानेन।
(ङ) तस्यान्तःकरणे का उत्पन्ना?
उत्तर : महती ग्लानि।
प्रश्न 3.
प्रश्न 4.
अधोलिखित पदों में लगे उपसर्गों को लिखें
उत्तर :
पद उपसर्गों
परिश्रमेण परिः
विलक्षणा विः
प्रतिनिवृन्तः प्रतिः
नियोजितवान निः
प्रश्न 5.
मजूषा से उचित पदों को चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति करें (पूर्ति करके)
(क) महाकविः भारविः राजकविः
आसीत्।
(ख) स सर्वदा विद्वत्सभासु सोत्साहम्
उपतिष्ठत्।
(ग) स्वविषये मातापित्रोः वार्तालापं
अशृणोत्।
(घ) अपमानेन भारविः पित्रेः
अत्यधिकं रुष्टः।
प्रश्न 6.
संस्कृत में अनुवाद करेंप्रश्न
(क) वह नियम से विद्यालय में जाता है।
अनुवाद : सः नियमेन् विद्यालयं गच्छति।।
(ख) मैं अपने अध्यापक की प्रशंसा करता हूँ।
अनुवाद : अहं स्वः अध्यापकं प्रशंसाम् करिष्यामि।
(ग) तुम घर के बाहर खड़े रहो।
अनुवाद : त्वं गृहात् बहिः स्थितः भवसि।
(घ) करीम कक्षा में प्रथम है।
अनुवाद : करीम: कक्षायाम् प्रथमं अस्ति।
प्रश्न 7.
जिसके प्रति कोप किया जाता है उसमें चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है, जैसे-पित्रे रुष्टः। कोष्ठक में दिए शब्दों में विभक्ति लगाकर रिक्त स्थान भरें (रिक्त स्थान भरकर)
(क) त्वं राक्षसे क्रुध्यसि।
(ख) अहं हरयै नैव कुप्यामि।