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CTET Notes in HIndi | भाषा शिक्षण के सिद्धान्त | Principles of Language Teaching

CTET Notes in HIndi | भाषा शिक्षण के सिद्धान्त | Principles of Language Teaching

भाषा शिक्षण के सिद्धान्त
                         Principles of Language Teaching
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने
से यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में 2 प्रश्न,
वर्ष 2012 में 3 प्रश्न, वर्ष 2013 में 2 प्रश्न, वर्ष 2014 में 6
प्रश्न, वर्ष 2015 में 5 प्रश्न, वर्ष 2016 में 2 प्रश्न पूछे गए हैं।
CTET परीक्षा में मुख्यतया भाषा शिक्षण के उद्देश्य एवं
विधियों से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं।
2.1 भाषा का अर्थ एवं महत्त्व
भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त करते हैं और
इसके लिए हम वाचिक ध्वनियों (Verbal sounds) का उपयोग करते हैं।
यही नहीं यह हमारे व्यक्तित्व के निर्माण, विकास, हमारी अस्मिता
(Identity), सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का भी साधन है। भाषा के
बिना मनुष्य सर्वथा अपूर्ण है और अपने इतिहास तथा परम्परा से विच्छिन्न
है। भाषा की इन्हीं विशेषताओं के कारण यह मनुष्य के व्यक्तिगत एवं
सामाजिक जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साथ ही व्यक्ति के
भाषायी विकास के लिए एक समृद्ध भाषिक परिवेश का होना भी अति
आवश्यक है। मनुष्य के जीवन में भाषा के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं
के द्वारा भली-भांति समझा जा सकता है।
सम्प्रेषण का माध्यम (Medium of Communication) मनुष्य एक
सामाजिक प्राणी है। समाज में प्रत्येक मनुष्य किसी-न-किसी रूप में
एक-दूसरे पर आश्रित है, इसी कारण उन्हें परस्पर आपस में संवाद स्थापित
करने की आवश्यकता पड़ती है। भाषा इसी संवाद को स्थापित करने का
माध्यम है।
ज्ञानार्जन का साधन (Medium of Learning) मनुष्य के विकास का आधार
उसका ज्ञान है और भाषा ज्ञानार्जन का साधन है। बिना भाषा के मनुष्य
सांसारिक या आध्यात्मिक किसी भी प्रकार के ज्ञान का अर्जन नहीं कर सकता।
संस्कृति एवं सभ्यता के विकास के सहायक (Instrumental in the
Development of Culture and Civilisation) भाषा सम्प्रेषण एवं ज्ञानार्जन
का साधन होने के साथ ही संस्कृति एवं सभ्यता के विकास में भी सहायक है।
भाषा के माध्यम से ही व्यक्ति भिन्न-भिन्न प्रान्तों की परम्पराओं एवं
रीति-रिवाजों से परिचित होता है।
22 भाषा शिक्षण का अर्थ एवं महत्त्व
भाषा शिक्षण (Language Teaching) वह प्रक्रिया अथवा वह माध्यम है,
जिसमें इस बात पर बल दिया जाता है कि बच्चा पढ़ना-लिखना कैसे सीखता
है, किसी बच्चे को पढ़ना-लिखना किस प्रकार से सिखाया जाए ताकि वह
भाषा का समझ के साथ प्रयोग कर सके। साथ ही बच्चे की भाषा को समाज
की व्यवस्था के अनुरूप ढालने के लिए भी भाषा शिक्षण की आवश्यकता
होती है।
वाइगोत्स्की के अनुसार, “बालकों के भाषा सीखने में समाज तथा
परिवार एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।” भाषा, बाल विकास में
सहायक होती है तथा शिक्षक द्वारा बालक की इसी प्रवृत्ति का ध्यान
रखते हुए शिक्षण नीति अपनाई जानी चाहिए।
2.2.1 भाषा शिक्षण के उद्देश्य
भाषा शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य निम्न है
1. वक्ता के कथन को समझने की योग्यता
वक्ता द्वारा शाब्दिक (Verbal) और गैर-शाब्दिक (Non-verbal) रूपों में
प्रकट किए गए अपने विचारों को समझने एवं उन्हें समझकर उनसे सम्बन्ध
जोड़ने तथा अनुमान लगाने की क्षमता का विकास करना भाषा शिक्षण के
प्रमुख उद्देश्यों में से एक है।
2. समझ के साथ पठन की योग्यता का विकास
वक्ता को विभिन्न व्याकरण सम्मत, अर्थगत और लिपि संकेतों के प्रयोग द्वारा
आरेखित तरीके से सम्बन्धित विषय-वस्तु के पठन की आदत विकसित करनी
चाहिए तथा उसे अपने पिछले ज्ञान के साथ जोड़कर निष्कर्षों द्वारा अर्थ निर्माण
की योग्यता का विकास करना चाहिए। उसे पठन के लिए आत्मविश्वास
विकसित करना चाहिए तथा विवेचनात्मक दृष्टिकोण के साथ पढ़ते समय प्रश्न
भी सामने रखने चाहिए।
3. सहज अभिव्यक्ति की क्षमता
उसे विभिन्न परिस्थितियों में अपने सम्प्रेषणात्मक कौशलों को प्रयोग में लाने में
समर्थ होना चाहिए। उसके खजाने में अभिव्यक्ति के कई तरीके होने चाहिए,
जिन्हें वह चुन सके। उसे इस योग्य भी होना चाहिए कि वह तार्किक,
विश्लेषणात्मक तथा रचनात्मक ढंग से परिचर्चा में शामिल हो सके।
4. सुसंगत लेखन
लेखन एक यान्त्रिक कौशल नहीं है। इसमें विभिन्न सम्बद्ध युक्तियाँ अर्थात्
तत्सम्बन्धी विषयों के द्वारा उस विषय को संयोजित करने, पर्यायवाची शब्दों
इत्यादि के प्रयोग द्वारा अपने विचारों को सुसंगत (Coherent) ढंग से
अभिव्यक्त करने की योग्यता के साथ-साथ व्याकरण, शब्द-ज्ञान, विषय,
विराम-चिह्नों इत्यादि पर पर्याप्त नियन्त्रण अर्जित करने के कौशल
सम्मिलित हैं।
शिक्षार्थी को अपने विचार सहज एवं व्यवस्थित ढंग से प्रकट करने का
आत्मविश्वास विकसित करना चाहिए। विद्यार्थी को अपने लिए विषय का
चयन करने, विचारों को व्यवस्थित करने और श्रोता-बोध की दृष्टि से
लिखने के लिए प्रोत्साहित एवं प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। यह केवल
तभी सम्भव है यदि उसका लेखन एक प्रक्रिया के रूप में दिखाई दे न कि
एक उत्पाद के रूप में। उसे विभिन्न उद्देश्यों से और विभिन्न परिस्थितियों
में अनौपचारिक से पूर्णतः भौपचारिक रूप तक लेखन का प्रयोग करना
आना चाहिए।
5. विभिन्न विषयों की भाषा को समझने की योग्यता का विकास
विद्यालय के विषयों के अतिरिक्त विद्यार्थी को विभिन्न प्रयोजनों; जैसे―
संगीत, खेल-कूद, फिल्म, बागवानी, निर्माण कार्य, पाककला इत्यादि में
प्रयोग की जाने वाली विभिन्न भाषाओं को समझने और उनके प्रयोग में भी
दक्ष होना चाहिए।
6. भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन
भाषा की कक्षा में विभिन्न शिक्षण तकनीकियाँ अपनाई जानी चाहिए। बच्चों
को दिए जाने वाले कार्य इस प्रकार से होने चाहिए कि उससे बच्चा
वैज्ञानिक प्रक्रिया के तमाम अवयवों; जैसे― आँकड़ों का संकलन, आँकड़ों
का अवलोकन और उनकी समानताओं और विभिन्नताओं के आधार पर
उनका वर्गीकरण एवं परिकल्पना इत्यादि करने में निपुण हो सके। इस
प्रकार बच्चे की संज्ञानात्मक योग्यताओं को विकसित करने में भाषा विज्ञान
के ये उपकरण महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। इससे व्याकरण के मानक
नियमों को बेहतर ढंग से सीखा जा सकेगा। तथापि यह प्रक्रिया बहुभाषीय
कक्षाओं में विशेष रूप से प्रभावी है।
7. सृजनात्मकता का विकास
भाषा की कक्षा में एक विद्यार्थी को अपनी कल्पना और सृजनात्मकता
विकसित करने के लिए पर्याप्त स्थान मिलना चाहिए। कक्षा का लोकाचार
और शिक्षक-विद्यार्थी सम्बन्ध बच्चे में आत्मविश्वास विकसित करता है,
जिससे पाठ्य-सामग्री के आदान-प्रदान और गतिविधियों में बिना अवरोध
के दोनों ही सृजनात्मकता का प्रयोग करते हैं।
2.2.2 भाषा शिक्षण के सिद्धान्त
भाषा शिक्षण के लिए मनोवैज्ञानिकों ने अनेक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त दिए हैं,
जिनका उपयोग करके विद्यार्थियों के भाषायी कौशलों को समृद्ध किया जा
सकता है। भाषा शिक्षण के सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
1. अनुबन्धन के सिद्धान्त (Theory of Conditioning) भाषा
विकास में अनुबन्धन या साहचर्य का बहुत योगदान है। शैशवावस्था
में जब बच्चे शब्द सीखते हैं, तो सीखना अमूर्त नहीं होता, बल्कि
किसी मूर्त वस्तु से जोड़कर उन्हें शब्दों की जानकारी दी जाती है।
उदाहरण के लिए कलम कहने के साथ उन्हें कलम दिया जाता है,
पानी या दूध कहने पर उन्हें पानी या दूध दिखाया जाता है। इसी
तरह बच्चे विशिष्ट वस्तु या व्यक्ति से साहचर्य स्थापित करते हैं
और अभ्यास हो जाने पर सम्बद्ध वस्तु या व्यक्ति की उपस्थिति पर
सम्बन्धित शब्द से सम्बोधित करते हैं।
2. अनुकरण का सिद्धान्त (Theory of Imitation) चैपिनीज, शर्ली,
कर्टी तथा वैलेण्टाइन आदि मनोवैज्ञानिकों ने अनुकरण के द्वारा भाषा
सीखने पर अध्ययन किया है। इनका मत है कि बालक अपने
परिवारजनों तथा साथियो की भाषा का अनुकरण करके सीखते हैं
अर्थात् जैसी भाषा जिस समाज या परिवार में बोली जाती है बच्चे उसी
भाषा को सीखते हैं। यदि बालक के समाज या परिवार में प्रयुक्त भाषा
में कोई दोष हो तो उस बालक की भाषा में भी दोष परिलक्षित होता
है।
3. अभिप्रेरणा एवं रुचि का सिद्धान्त (Theory of Motivation and
Interest) हिन्दी पाठ्य सामग्री और उसकी शिक्षण प्रणालियों का
चयन बच्चों की रुचि एवं आवश्यकताओं के अनुरूप किया जाना
चाहिए, क्योंकि बिना रुचि के विद्यार्थी को भाषा नहीं सिखाई जा
सकती। साथ ही भाषा सीखने के दौरान उन्हें निरन्तर अभिप्रेरित करने
की आवश्यकता होती है, ताकि भाषा सीखने के प्रति उनमें उत्साह एवं
रुचि बनी रहे।
4. क्रियाशीलता का सिद्धान्त (Theory of Creativity) क्रियाशीलता
बालकों में सीखने के क्रम में रुचि एवं उत्साह को बनाए रखती है,
इसलिए अधिकतर शिक्षा-शास्त्रियों ने भाषा-शिक्षण में इस सिद्धान्त को
अपनाए जाने की सिफारिश की है। क्रियाशीलता के लिए छात्रों से प्रश्न
पूछना, स्कूल के साहित्यिक कार्यक्रमों में उन्हें भागीदारी के लिए कहना,
पाठों का अभ्यास कराना, मौखिक व लिखित कार्य कराना आदि कार्य
किए जा सकते हैं।
5. अभ्यास का सिद्धान्त (Theory of Exercise) थॉर्नडाइक ने कहा है,
“भाषा एक कौशल है और इसका विकास अभ्यास पर ही निर्भर है।”
भाषा के कलात्मक एवं भावात्मक दोनों पक्षों के लिए अभ्यास सर्वथा
आवश्यक है। अभ्यास के द्वारा विद्यार्थियों के भाषायी कौशलों को निरन्तर
बेहतर बनाया जा सकता है, इसलिए एक शिक्षक के लिए आवश्यक है
कि वह प्राथमिक कक्षा के विद्यार्थियों को अभ्यास हेतु अनुलेख, श्रुतलेख,
कविता पाठ इत्यादि कोई न कोई कार्य अवश्य दें।
6. आवृत्ति का सिद्धान्त (Theory of Repetition) मनोवैज्ञानिक प्रयोगों
से यह सिद्ध हो चुका है कि भाषा सीखने में आवृत्ति का बहुत महत्त्व
है। सीखी हुई बात को जितना अधिक दोहराया जाएगा वह उतने ही
अधिक देर तक याद रहेगी, इसलिए भाषा-शिक्षण में पुनरावृत्ति पर भी
विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता होती है।
7. साहचर्य का सिद्धान्त (Theory of Association) बच्चे दूसरों को
सुनकर बोलना तो सीखते ही रहते हैं, किन्तु इस प्रकार के अधिगम के
लिए पर्याप्त संख्या में उसे इस भाषा के बोलने वालों का साहचर्य
मिलना आवश्यक है। बच्चा माँ को माँ या मम्मी कहने के साथ
पहचानना तभी सीख सकेगा जब माँ के उच्चारण के साथ स्वयं माँ को
और पिताजी या पापा के उच्चारण के साथ स्वयं पिता को भी देखेगा।
जब तक शब्दों व वस्तु के बीच वह सम्बन्ध स्थापित नहीं कर पाएगा
तब तक उसका समग्र रूप से भाषायी विकास होना कठिन है।
8. अनुपात एवं क्रम का सिद्धान्त (Theory of Ratio and Series)
भाषा-शिक्षण का मूल उद्देश्य भाषा-कौशलों में छात्रों को निपुण करना
होता है। भाषा-कौशल मुख्य रूप से चार प्रकार के होते हैं। श्रवण,
वाचन, पठन एवं लेखन एवं कौशल। ये सभी भाषा-कौशल आपस में
परस्पर सम्बन्धित हैं। अतः इन सभी का समुचित ज्ञान आवश्यक है।
यदि बालक किसी एक भाषा-कौशल के प्रयोग में निपुण और अन्य के
प्रयोग में असमर्थ होगा तो इसे शिक्षण की असफलता ही माना
जाएगा। इन सभी कौशलों में निपुणता का अनुपात सही होना चाहिए।
9. चयन का सिद्धान्त (Theory of Selection) हिन्दी भाषा शिक्षण के
लिए कब किस सिद्धान्त या पद्धति का सहारा लिया जाए, इसका
उपयुक्त ज्ञान अध्यापक को होना चाहिए। किसी पाठ को किस रूप
में प्रस्तुत करके छात्रों के लिए सरल एवं सहज बनाया जाए, ताकि वे
सरलतापूर्वक विषय-वस्तु को समझ सकें। इसके लिए अध्यापक को
बहुमुखी प्रयास करना चाहिए और जो पद्धति अधिक प्रभावकारी हो,
उसका चयन करना चाहिए, जिससे छात्र लाभान्वित हो सकें।
10. बाल-केन्द्रिता का सिद्धान्त (Theory of Child-Centered)
भाषा-शिक्षण के समय इस बात पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए कि
शिक्षण का केन्द्र बालक है। अध्यापक को अध्यापन के समय इतना
आत्मविभोर नहीं होना चाहिए कि बालक विस्मृत हो जाए, बल्कि उसके
शिक्षण का केन्द्र बालक होना चाहिए। भाषा-शिक्षण में बालक के
स्वभाव, क्षमता, रुचि, स्तर आदि का ध्यान रखा जाना सर्वाधिक
आवश्यक है।
11. मातृभाषा शिक्षण का सिद्धान्त (Theory of Mother Tongue)
भाषा-शिक्षण के मनोवैज्ञानिकों ने अपने अनुसन्धानों के द्वारा यह
सिद्ध किया है कि विद्यार्थी को शिक्षित करते समय उसकी मातृभाषा
का उपयोग करने से वह शीघ्रतापूर्वक अपने ज्ञान में वृद्धि करता है।
इस मत के पीछे उनका तर्क है कि मातृभाषा में शिक्षण कार्य करने से
विद्यार्थी शब्दों के साथ वस्तुओं का सम्बन्ध स्थापित कर पाता है,
जिससे उसके विचार स्थायी रूप से निर्मित होते हैं।
12. पुनर्बलन का सिद्धान्त (Theory of Reinforcement) अमेरिकी
मनोवैज्ञानिक बी एफ स्किनर ने इस सिद्धान्त को प्रतिपादित करते हुए
स्पष्ट करने का प्रयास किया कि जब तक अधिगम प्रक्रिया के दौरान
अधिगमकर्ता को सफलता मिलती रहती है, तब तक वह उत्साहित
होकर सीखता रहता है। उसकी सफलताएँ ही उसके मनोबल में वृद्धि
कर उसे उसके लक्ष्य की ओर अग्रसर करती रहती हैं।
13. वैयक्तिक विभिन्नता का सिद्धान्त (Theory of Individual
Difference) कक्षा एक के छात्रों में वैयक्तिक विभिन्नताएँ होती हैं।
कोई छात्र अशुद्ध उच्चारण करता है, तो किसी का लेख स्पष्ट नहीं
होता, किसी का वाचन ठीक नहीं है; तो किसी का लेख अशुद्ध होता
है, कोई मौन पाठ नहीं कर पाता तो कोई कई बार याद करने पर भी
तथ्य भूल जाता है। इसलिए अध्यापक को इन सबकी वैयक्तिक
विभिन्नता एवं कठिनाइयों को ध्यान में रखकर शिक्षण कार्य सम्पन्न
करना चाहिए।
14. जीवन समन्वय का सिद्धान्त (Theory of Life Coordination)
मनोवैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि बच्चे उन विषयों एवं
क्रियाओं में अधिक रुचि लेते हैं, जो उनके वास्तविक जीवन से
सम्बन्धित होती हैं। अत: अध्यापक को चाहिए कि वह बच्चों को पढ़ाने
के लिए जिस सामग्री का चयन करे, उसका सम्बन्ध बच्चों के जीवन से
अवश्य हो।
15. निश्चित उद्देश्य एवं पाठ्य सामग्री का सिद्धान्त (Theory of
Fixed Objectives and Text Material) हिन्दी भाषा शिक्षण के एक
नहीं अनेक उद्देश्य होते हैं। हमें बच्चों के ज्ञान, कौशल, रुचि एवं
अभिवृत्ति का विकास करना होता है। प्रत्येक उद्देश्य की प्राप्ति, एक
निश्चित अनुपात में होनी चाहिए। इसलिए विषय-वस्तु से संबंधित विशेष
नियमों से छात्रों को परिचित कराकर, तत्पश्चात् उसके सामान्य नियमों से
विद्यार्थियों को परिचित कराना चाहिए। अध्यापक को शिक्षण से पूर्व पाठ के
उद्देश्य और उन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विषय-सामग्री का चयन
बच्चों के स्तर के अनुकूल करना चाहिए।
2.2.3 भाषा शिक्षण के नियम
बच्चों द्वारा भाषा सीखने की प्रक्रिया का विश्लेषण करते हुए मनोवैज्ञानिकों ने
भाषा शिक्षण के कुछ सामान्य नियमों का उल्लेख किया है। जिनका संक्षिप्त
वर्णन निम्नलिखित है
1. मूर्त से अमूर्त की ओर (Concrete to Abstract) मनोवैज्ञानिकों का मत
है कि बच्चों का मानसिक विकास इतना नहीं होता कि वे अमूर्त
(Abstract) अवधारणाओं को समझ सकें अर्थात् जब तक विद्यार्थियों के
समक्ष कोई वस्तु स्थूल रूप से प्रस्तुत नहीं की जाती तब तक वे उसके
विषय में सूक्ष्म या अमूर्त रूप में विचार-विमर्श नहीं कर सकते।
2. ज्ञात से अज्ञात की ओर (Known to Unknown) इस नियम से
अभिप्राय है कि बालकों को जो ज्ञान प्राप्त होता है वे उसी ज्ञान पर नए
ज्ञान की नींव रख कर ज्ञात से अज्ञात ज्ञान की ओर अग्रसर होते हैं।
3. अनिश्चित से निश्चित की ओर (Uncertain to Certain) विद्यार्थी के
मस्तिष्क में दैनिक जीवन के अनुभवों से कुछ अनिश्चित धारणाएँ निर्मित
होती हैं, इन्हीं अनिश्चित धारणाओं पर विचार-विमर्श करने के उपरान्त
उसके विचार किसी एक पर निश्चित रूप धारण कर लेते हैं, जिसके
पश्चात् उसका ज्ञान अनिश्चित से निश्चित रूप धारण करता है।
4. विश्लेषण से संश्लेषण की ओर (Analysis to Synthesis) विद्यार्थियों
के मत को पुष्ट करने के लिए अथवा शंकाओं को दूर करने के लिए
अध्यापक को विषय-वस्तु को विश्लेषित अर्थात् अलग-अलग करते हुए
उन्हें स्पष्ट करना चाहिए तथा इसके उपरान्त विद्यार्थियों को स्पष्ट एवं
सामान्य विचार बनाने के लिए उन्हें विषय-वस्तु को एक साथ मिलाकर
स्पष्ट करना चाहिए।
5. आगमन से निगमन की ओर (Inductive to Deductive) इस नियम के
अनुसार विद्यार्थियों को शिक्षित करते समय उदाहरण देकर नियमों का
निर्धारण किया जाता है। इस पद्धति का प्रयोग व्याकरण के नियमों को
समझाने के लिए किया जाता है।
6. मनोवैज्ञानिक से तार्किक की ओर (Phsychological to Logical) इस
नियम के अनुसार विद्यार्थियों को पहले उन विषयों को पढ़ाना चाहिए,
जिनमें उनकी रुचि हो एवं जिन्हें पढ़ने में वे समर्थ हों, तत्पश्चात्
विषय-सामग्री के तार्किक पक्षों का अध्ययन किया जाना चाहिए।
7.विशेष से सामान्य की ओर (Specific to General) इस नियम में
बालक को विशेष ज्ञान से सामान्य ज्ञान की ओर ले जाना चाहिए अर्थात्
पहले क्रियाओं को प्रस्तुत किया जाए, तत्पश्चात् सामान्य निष्कर्षों पर पहुँचा
जाए।
8. सरल से जटिल की ओर (Specific to Complex) इस नियम के अनुसार
विद्यार्थियों को पहले सरल शब्दों, वाक्यांशों, मुहावरों गीतों आदि का ज्ञान
कराना चाहिए, उसके पश्चात् उसे विषय के कठिन भागों से अवगत कराना
चाहिए।
                                        अभ्यास प्रश्न
1. भाषा के सन्दर्भ में कौन-सा कथन
असत्य है?
(1) भाषा मनुष्यों के बीच परस्पर संवाद स्थापित
करने का कार्य नहीं करती।
(2) भाषा ज्ञानार्जन का साधन है।
(3) भाषा सामाजिक अस्मिता का साधन है।
(4) भाषा नियमबद्ध व्यवस्था है।
2. भाषा-शिक्षण है
(1) यह जानना कि बच्चा पढ़ना-लिखना कैसे
सीखता है?
(2) यह जानना कि बच्चे को पढ़ना-लिखना कैसे
सिखाया जाए?
(3) 1 और 2 दोनों
(4) इनमें से कोई नहीं
3. भाषा शिक्षण आवश्यक है
(1) भाषायी कौशलों से परिचित कराने के लिए
(2) बच्चों की कल्पनाशीलता को बढ़ाने के लिए
(3) सृजनात्मकता का विकास करने के लिए
(4) उपर्युक्त सभी
4. भाषा शिक्षण का उद्देश्य है
(1) वक्ता के विचारों को समझ पाने की योग्यता
का विकास
(2) केवल पठन कौशल का विकास
(3) पाठ्य-पुस्तकों से इतर पुस्तकों को पढ़ने की
क्षमता का विकास
(4) 1 और 3
5. भाषा शिक्षण के सन्दर्भ में कौन-सा कथन
सही नहीं है?
(1) भाषा- शिक्षण में समृद्ध भाषिक परिवेश उपलब्ध
कराना जरुरी है
(2) भाषा की नियमबद्ध व्यवस्था को केवल
व्याकरण के माध्यम से ही जाना जा सकता है
(3) भाषागत शुद्धता के प्रति अत्यधिक कठोर
व्यवहार नहीं अपनाना चाहिए
(4) समृद्ध भाषिक परिवेश में बच्चे स्वयं नियमों का
निर्माण करते हैं
6. भाषा-शिक्षण के सन्दर्भ मे कौन-सा कथन
सही नहीं है?
(1) भाषा-अर्जन और भाषा-अधिगम में अन्तर होता है
(2) भाषा-शिक्षण में केवल भाषायी शुद्धता पर ही
अधिक बल रहता है
(3) भाषा सीखने में अन्य विषयों का
अध्ययन अध्यापन सहायक होता है
(4) समृद्ध भाषा-परिवेश भाषा अर्जित करने में
सहायक होता है
7. इनमें से प्राथमिक स्तर पर भाषा-शिक्षण का
कौन-सा उद्देश्य अनिवार्यतः नहीं है?
(1) विभिन्न सन्दर्भो में प्रयुक्त शब्दों के सही अर्थ
ग्रहण करना
(2) विभिन्न सन्दर्भो और स्थितियों में अपनी बात
व्यक्त करने की कुशलता का विकास
(3) भाषा के आलंकारिक प्रयोग की क्षमता का विकास
(4) मानवीय मूल्यों का विकास
8. भाषा शिक्षण की विधियाँ मुख्यतः …” पर
निर्भर करनी चाहिए।
(1) परीक्षा पद्धति
(2) बच्चों का स्तर, आयु और प्रकरण
(3) समय अवधि
(4) लक्ष्य भाषा
9. भाषा-शिक्षण में व्याकरण पढ़ाने के लिए
प्रयुक्त किया जाना वाला सिद्धान्त या
नियम है
(1) आवृत्ति का सिद्धान्त
(2) अनुकरण का सिद्धान्त
(3) आगमन एवं निगमन नियम
(4) अनुबन्धन का सिद्धान्त
10. अभिप्रेरणा का सिद्धान्त
(1) विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने पर बल देता
(2) विद्यार्थियों को अभ्यास करने के लिए कहता है
(3) सीखी हुई बातों की पुनरावृत्ति करने के लिए
कहता है
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
11. विद्यार्थी की भाषा पर उसके सामाजिक
परिवेश का प्रभाव पड़ता है, यह सिद्धान्त है
(1) अनुबन्धन का
(2) अनुकरण का
(3) साहचर्य का
(4) जीवन समन्वय का
12. मातृभाषा शिक्षण
(1) विद्यार्थी के भाषा-शिक्षण में व्यवधान उत्पन्न
करता है
(2) शिक्षण को सरल बनाता है
(3) अध्यापक के शैक्षिक कार्य में बाधक बनता है
(4) शिक्षण सिद्धान्तों के विपरीत है
13. कौन-सा नियम स्थूल ज्ञान से सूक्ष्म ज्ञान
की ओर अग्रसर होने की बात कहता है?
(1) ज्ञात से अज्ञात की ओर का
(2) अनिश्चित से निश्चित की ओर का
(3) पूर्ण से अंश की ओर का
(4) मूर्त से अमूर्त की ओर का
14. गणित के शिक्षक ने राहुल को वाक्य सही
करने के लिए कहा। उनके द्वारा ऐसा करना
भाषा-शिक्षण के किस सिद्धान्त के अन्तर्गत
आएगा?
(1) मनोरंजन
(2) अनुकरण
(3) मौखिक एवं लेखन कार्य का सिद्धान्त
(4) बहुमुखी प्रयास
15. कविता-पाठ करवाना किस सिद्धान्त के
अन्तर्गत आता है?
(1) जीवन समन्वय का सिद्धान्त
(2) शिक्षण सूत्रों का सिद्धान्त
(3) क्रियाशीलता का सिद्धान्त
(4) बाल-केन्द्रिता का सिद्धान्त
16. आरम्भ में इनमें से किस सिद्धान्त के आधार
पर बालक भाषा सीखता है?
(1) बहुमुखी प्रसास के सिद्धान्त पर
(2) मनोरंजन के सिद्धान्त पर
(3) अनुकरण के सिद्धान्त पर
(4) अभ्यास के सिद्धान्त पर
17. भाषा-शिक्षण की अनुवाद-विधि
(1) मातृभाषा को मध्यस्थ नहीं बनाती
(2) मातृभाषा की उपेक्षा करती है
(3) मातृभाषा को मध्यस्थ बनाती है
(4) लक्ष्य भाषा को ही श्रेष्ठ सिद्ध करती है
18. भाषा की कक्षा में कौन-सी शिक्षण-युक्ति
सबसे कम प्रभावी है?
(1) उचित गति एवं प्रवाह के साथ पढ़ने पर बल
देना
(2) शुद्ध उच्चारण पर अत्यधिक बल देना
(3) बच्चों की रुचि के अनुसार परिचित विषय या
प्रसंग पर चर्चा
(4) दूसरों की हस्तलिखित सामग्री, पत्र आदि
पढ़वाना
19. कहानियाँ बच्चों के भाषा-विकास में किस
प्रकार सहायक हैं?
(1) ये भाषिक नियम ही सिखाती हैं
(2) बच्चों के खाली समय का सदुपयोग करने में
मदद करती हैं
(3) ये पाठ्य-पुस्तक का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है
(4) ये बच्चों की कल्पनाशक्ति, सृजनात्मकता और
चिन्तन को बढ़ावा देती हैं
20. “गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान की
कक्षाएँ एक तरह से भाषा की ही कक्षाएँ
हैं।” इस कथन के समर्थन में कौन-सा तर्क
सबसे कमजोर है?
(1) विभिन्न विषयों के शिक्षण में भाषा शिक्षण एक
मुख्य उद्देश्य होता है
(2) विभिन्न विषयों की अवधारणात्मक समझ की
अभिव्यक्ति भी भाषा-विशेष में होती है
(3) विभिन्न विषयों की अवधारणाएँ किसी भाषा-
विशेष से बनती हैं
(4) विभिन्न विषयों के अध्ययन-अध्यापन में भाषा
साधन का कार्य करती है
21.भाषा-शिक्षण का सिद्धान्त या नियम नहीं है
(1) निश्चित उद्देश्य एवं पाठ्य-सामग्री का
सिद्धान्त
(2) वैयक्तिक भिन्नता का सिद्धान्त
(3) निश्चित से अनिश्चित की ओर का नियम
(4) विश्लेषण से संश्लेषण की ओर का नियम
22. उदाहरण देकर नियमों का निर्धारण किया
जाता है
(1) विशेष से सामान्य की ओर नियम में
(2) सरल से जटिल की ओर नियम में
(3) मनोवैज्ञानिक से तार्किक की ओर नियम से
(4) आगमन से निगमन की ओर नियम में
विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
23. प्राथमिक स्तर पर कौन-सा भाषा-शिक्षण का
उद्देश्य नहीं है? [CTET June 2011]
(1) विभिन्न सन्दर्भो में भाषा का प्रभावी प्रयोग करना
(2) स्पष्टता एवं आत्मविश्वास के साथ अपनी बात
कहना
(3) वर्णमाला को क्रम से कण्ठस्थ करना
(4) ध्वनि चिह्नों का सम्बन्ध बनाना
24. एक समावेशी कक्षा में कौन-सा कथन भाषा
शिक्षण के सिद्धान्तों के प्रतिकूल है?
                                                 [CTET June 2011]
(1) व्याकरण के नियम सिखाने से बच्चों का भाषा
विकास शीघ्रता से होगा
(2) बच्चे परिवेश से प्राप्त भाषा को ग्रहण करते हुए
भाषा-प्रयोग के नियम बना सकते हैं
(3) भाषा परिवेश में रहकर अर्जित की जाती है
(4) प्रिण्ट-समृद्ध माहौल भाषा सीखने में सहायक
होता है
25. एक भाषा शिक्षक के लिए सर्वाधिक
महत्त्वपूर्ण है                             [CTET Nov 2012]
(1) बच्चों को भाषा-प्रयोग के अवसर उपलब्ध
कराना
(2) भाषा की त्रुटियों के प्रति कठोर रवैया अपनाना
(3) भाषा की पाठ्य पुस्तक
(4) भाषा का आकलन
26. निम्नलिखित में से कौन-सा भाषा-शिक्षण का
उद्देश्य है?                             [CTET Nov 2012]
(1) भाषा सीखते समय त्रुटियाँ बिल्कुल न करना
(2) भाषा की बारीकी और सौन्दर्यबोध को सही रूप में
समझने की क्षमता को हतोत्साहित करना
(3) भाषा का व्याकरण सीखने पर बल देना
(4) निजी अनुभवों के आधार पर भाषा का सृजनशील
प्रयोग करना
27. भाषा सीखने-सिखाने का उद्देश्य है
                                            [CTET Nov 2012]
(1) अपनी बात की पुष्टि के लिए तर्क देना
(2) विभिन्न स्थितियों में भाषा का प्रभावी प्रयोग करना
(3) अपनी बात कहना सीखना
(4) दूसरों की बात समझना सीखना
28. प्राथमिक स्तर पर हिन्दी ‘भाषा-शिक्षण के
लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है
                                             [CTET July 2013]
(1) भाषा प्रयोग के अवसर
(2) पाठ्य-पुस्तक
(3) उच्चस्तरीय तकनीकी यन्त्र
(4) व्याकरणिक नियमों का स्मरण
29. प्राथमिक स्तर पर भाषा-शिक्षण की
प्राथमिकता होनी चाहिए [CTET July 2013]
(1) केवल बोलकर पढ़ने की क्षमता विकसित करना
(2) कविता और कहानी द्वारा केवल श्रवण कौशल
का विकास करना
(3) बच्चों की रचनात्मकता और मौलिकता को
पोषित करना
(4) बच्चों की चित्रांकन क्षमता का विकास करना
30. इनमें से कौन-सा प्राथमिक स्तर पर हिन्दी
भाषा-शिक्षण का उद्देश्य नहीं है?
                                           [CTET Feb 2014]
(1) सन्दर्भ के अनुसार लगाकर पढ़ने का प्रयास
करना
(2) चित्रकारी को स्वयं की अभिव्यक्ति का माध्यम
बनाना
(3) बच्चों की भाषा और स्कूल की भाषा में
सम्बन्ध बनाते हुए उसे विस्तार देना
(4) सुनी गई बातों को ज्यों-का-त्यों दोहराना
31. प्राथमिक स्तर पर बच्चों को भाषा सिखाने
का सर्वोपरि उद्देश्य है
                               [CTET Feb 2014]
(1) मुहावरे-लोकोक्तियों का ज्ञान प्राप्त करना
(2) कहानी-कविताओं को दोहराने की कुशलता का
विकास करना
(3) तेज प्रवाह के साथ पढ़ने की योग्यता का
विकास करना
(4) अपनी बात को दूसरों के समक्ष अभिव्यक्त
करने की कुशलता का विकास करना
32. पाठ के अन्त में अभ्यास और गतिविधियाँ
देने का उद्देश्य है।                  [CTET Sept 2014]
(1) बच्चों को अभिव्यक्ति के अवसर देना
(2) बच्चों को व्यस्त रखने हेतु गतिविधियाँ बनाना
(3) बच्चों को याद करने हेतु सामग्री उपलब्ध
करने में सहायता करना
(4) गृहकार्य की सामग्री जुटाना
33. प्राथमिक स्तर पर भाषा सिखाने की
सर्वश्रेष्ठ विधि है
                         [CTET Sept 2014]
(1) बच्चों के साथ कविता गाना
(2) बच्चों को कहानी सुनाना
(3) बच्चों को पाठ्य-पुस्तक पर आधारित वीडियो
कार्यक्रम दिखाना
(4) बच्चों को भाषा का प्रयोग करने के विविध
अवसर देना
34. प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम
                                        [CTET Sept 2014]
(1) हिन्दी होना चाहिए
(2) अंग्रेजी होना चाहिए
(3) उर्दू होना चाहिए
(4) बच्चे की मातृभाषा होना चाहिए।
35. प्राथमिक स्तर पर भाषा-शिक्षण का
उद्देश्य यह है कि                [CTET Sept 2014]
(1) बच्चे मानक भाषा का प्रयोग करना जल्दी
सीख जाएँ
(2) बच्चे भाषा-परीक्षा में सदैव अच्छे अंक लाएँ
(3) बच्चे विभिन्न स्थितियों में भाषा का प्रभावी
प्रयोग कर सकें
(4) बच्चे भाषा के व्याकरण को जान सकें
36. पठन-पाठन के अन्त में ऐसे अभ्यास एवं
गतिविधियाँ हों, जो
                                [CTET Feb 2015]
(1) सरल भाषा वाले हों
(2) बच्चों को स्वयं कुछ करने और सीखने का
अवसर प्रदान करें
(3) केवल पाठ से ही सम्बन्धित हों
(4) पाठ पर बिल्कुल आधारित न हों
37. पहली और दूसरी कक्षा में भाषा-शिक्षण के
साथ ही कला शिक्षा को समेकित करने का
उद्देश्य नहीं है
                         [CTET Feb 2015]
(1) चित्रों के माध्यम से अभिव्यक्ति का विकास
(2) बच्चों द्वारा आनन्द की प्राप्ति
(3) बच्चों के लेखन में परिपक्वता लाना
(4) बच्चों की रचनात्मकता का विकास
38. भाषा सीखने की कौन-सी विधि मातृभाषा
को मध्यस्थ बनाए बिना दूसरी भाषा को
सीखने में सहायक होती है?
                                    [CTET Feb 2015]
(1) अनुवाद विधि
(3) अप्रत्यक्ष विधि
(2) द्विभाषी विधि
(4) प्रत्यक्ष विधि
39. पाठ के अन्त में अभ्यास और गतिविधियों
का उद्देश्य ……….. नहीं है।
                                     [CTET Feb 2015]
(1) भाषा का विस्तार करना
(2) सृजनात्मकता का विस्तार करना
(3) बच्चों को अभिव्यक्ति के अवसर प्रदान करना
(4) प्रश्नों के उत्तर सरलता से याद करवाना
40. भाषा की कक्षा में यह जरूरी है कि
                                            [CTET Sept 2015]
(1) भाषा-शिक्षक भाषा का पूर्ण ज्ञाता हो
(2) भाषा-शिक्षक बच्चों की उच्चारणगत शुद्धता पर
विशेष ध्यान दे
(3) भाषा-शिक्षक बच्चों की वर्तनी को बहुत
कठोरता से ले
(4) स्वयं भाषा-शिक्षक की भाषा प्रभावी हो
41. भाषा सीखने का उद्देश्य है
                                        [CTET Feb 2016]
(1) प्रत्येक स्थिति में भाषा का प्रयोग कर पाना
(2) आदेश-निर्देश दे पाना और सुन पाना
(3) दूसरों की बातों को समझ पाना
(4) अपने मन की बात कह पाना
42. किसी समावेशी कक्षा में कौन-सा कथन
भाषा-शिक्षण के सिद्धान्तों के अनुकूल है?
                                           [CTET Feb 2016]
(1) प्रिण्ट-समृद्ध माहौल भाषा सीखने में मदद
करता है
(2) बच्चे अपने अनुभवों के आधार पर भाषा के
नियम नहीं बना पाते
(3) भाषा विद्यालय में रहकर अर्जित की जाती है।
(4) व्याकरण के नियमों का ज्ञान भाषा-विकास की
गति त्वरित करता है
                                                उत्तरमाला
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