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CTET Notes In Hindi | अधिगम के सिद्धान्त

CTET Notes In Hindi | अधिगम के सिद्धान्त

अधिगम के सिद्धान्त
                             Principles of Learning
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने
से यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में 1 प्रश्न,
2012 में 5 प्रश्न, 2013 में 4 प्रश्न, 2014 में 3 प्रश्न, 2015 में
2 प्रश्न तथा वर्ष 2016 में 1 प्रश्न पूछे गए हैं। CTET परीक्षा में
पूछे गए प्रश्न मुख्यत: अधिगम, शिक्षण एवं अधिगम पर्यावरण,
के सन्दर्भ में शिक्षण अधिगम एवं अधिगम के सिद्धान्त आदि
प्रकरणों से सम्बन्धित हैं।
2.1 अधिगम
अनुभव द्वारा व्यवहार में होने वाले परिवर्तन को सीखना या अधिगम
(Learning) कहते हैं। यह एक व्यापक सतत् एवं जीवन पर्यन्त चलने वाली
प्रक्रिया है। बालक अपने अनुभव एवं विभिन्न क्रिया-कलापों के जरिए
विभिन्न प्रकार के ज्ञान अर्जित करता है। इसके लिए वह अपनी आदत में
परिवर्तन लाता है या अभ्यास एवं प्रशिक्षण के जरिए किसी कार्य में निपुणता
प्राप्त करता है।
अधिगम जन्मजात नहीं होता। यह वंशक्रम की देन के रूप में उसे विरासत में
नहीं प्राप्त होता, बल्कि वातावरण में निहित कारकों के प्रभाव से प्रत्यक्ष और
अप्रत्यक्ष अनुभवों के माध्यम से उसके द्वारा स्वयं ही अर्जित किया जाता है।
धीरे-धीरे वह अपने वातावरण से समायोजित करने का प्रयल करता है। इस
कार्य में उसे अपने माता-पिता, भाई-बहन, शिक्षक, मित्र इत्यादि का सहयोग,
निर्देश एवं सलाह प्राप्त होती हैं; जैसे-प्रारम्भ में बच्चे को यह पता नहीं
होता कि जल हमारे लिए कितना उपयोगी है, इसलिए इसका दुरुपयोग नहीं
करना चाहिए। धीरे-धीरे वह जल की उपयोगिता से परिचित होता है और
इसके दुरुपयोग से बचने के लिए अपनी आदतों में सुधार लाता है।
प्रारम्भ में बालक यह नहीं समझता है कि गन्दगी फैलाने के क्या दुष्परिणाम
हो सकते हैं। जब उसे इसकी समझ हो जाती है, तो वह गन्दगी फैलाने से
बचता है एवं दूसरों को भी ऐसा करने से रोकता है अर्थात् ज्ञान की प्राप्ति के
बाद वह स्वयं ही स्वच्छ रहने की आदत विकसित कर लेता है।
अधिगम को परिभाषित करने का कार्य विभिन्न विद्वानों ने किया है, जिसमें से
कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं
जे.पी. गिलफोर्ड के अनुसार “व्यवहार के कारण, व्यवहार में परिवर्तन
ही सीखना कहलाता है।”
जी. मर्फी के अनुसार “सीखना, व्यवहार और दृष्टिकोण दोनों का
परिमार्जन है।”
बुडवर्थ के अनुसार “सीखना विकास की एक प्रक्रिया है।”
2.1.1 अधिगम की विशेषताएँ
सामान्य: अधिगम की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
• सीखना जीवन-पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है।
• सीखना सार्वभौमिकता का परिचायक है।
• सीखना विकास का प्रतीक माना जाता है।
• सीखना निरन्तर परिवर्तन है।
• सीखना एक अनुकूलन प्रक्रिया है।
• सीखना एक विवेकपूर्ण कार्य है।
• सीखना व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों होते है।
• सीखना एक प्रकार की खोज करना है।
2.1.2 अधिगम के प्रकार
अधिगम अन्तत: व्यवहार में परिवर्तन का प्रतिरूप समझा जाता है। इसमें
व्यावहारिक परिवर्तन तब तक सम्भव नहीं है जब तक कि भावनात्मक
परिवर्तन न हो जाए और भावनात्मक परिवर्तन का सीधा सम्बन्ध ज्ञान अर्जित
करने से है। इस दृष्टिकोण से अधिगम के तीन प्रकार होते है, जो
निम्नलिखित है
1. संज्ञानी अथवा संज्ञानात्मक अधिगम
2. भावात्मक अथवा मनोवृत्यात्मक अधिगम
3. कौशलात्मक अथवा क्रियात्मक अधिगम
2.1.3 अधिगम के नियम
थॉर्नडाइक ने अधिगम के नियमों का प्रतिपादन किया है, जो निम्नलिखित हैं
1. अभ्यास के नियम (Law of Exercise) इस नियम के तहत सीखी हुई
बातों को व्यवहार में लाने की अनिवार्यता होती है, क्योकि अगर सीखी
हुई बातों को व्यवहार में नही लाते हैं, तो उन्हें भूल जाने की सम्भावना
रहती है।
2. तत्परता के नियम (Law of Readiness) इस नियम के तहत
शिक्षार्थियों को किसी बात को सीखने हेतु मानसिक रूप से तैयार किया
जाना अनिवार्य है, क्योकि जब तक उन्हें मानसिक रूप से तैयार नहीं कर
लिया जाता है, उन्हें कोई चीज सिखाना सम्भव नहीं है।
3. प्रभाव का नियम (Law of Effect) इस नियम के तहत विद्यार्थी वैसी
बातों को जल्दी सीखते हैं, जिनकी जीवन में उपयोगिता अधिक होती है।
नई बातों को भी शिक्षार्थी जल्दी सिखते हैं।
2.1.4 अधिगम के सिद्धान्त
विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने स्तर पर अधिगम के अन्य सिद्धान्तों को
प्रतिपादित किया है, जो निम्नलिखित है
1. प्रयास एवं भूल का सिद्धान्त (Theory of Trial and Error) इसे
प्रयास एवं भूल का सिद्धान्त भी कहा जाता है। इस सिद्धान्त के प्रतिपादक
थॉर्नडाइक हैं, जिन्होंने बताया कि अगर हम किसी की उत्तेजना बढ़ा दें तो
वह उसके प्रति अनुक्रिया कहता है।
जब वह बार-बार उस अनुक्रिया को दोहराता है, तो उसमें सीखने की
क्षमता भी बढ़ती है।
2. शास्त्रीय अनुबन्धन का सिद्धान्त (Classical Conditioning
Theory) इसे उत्तेजना, अनुक्रिया एवं अनुबन्धन का सिद्धान्त भी कहा
जाता है। इस सिद्धान्त के प्रतिपादक ‘पावलॉव’ थे। इनके अनुसार, यदि
हम किसी की उत्तेजना के समान्तर अगर कोई संकेत निर्धारित कर देते
है, तो वह समान प्रतिक्रिया करता है जितना कि वह उत्तेजना बढ़ाने पर
करता था।
3. क्रियाप्रसूत अनुबन्धन सिद्धान्त (Operant Conditioning Theory)
इसे नैमित्तिक अनुबन्धन सिद्धान्त भी कहा जाता है। इस सिद्धान्त के
प्रतिपादक ‘स्किनर’ हैं। इनके अनुसार, वे अनुक्रियाएँ जो जानवरों और
मानवों द्वारा अपने ऐच्छिक रूप से की जाती है क्रियाप्रसूत कहलाती हैं।
इसमें प्राणी पर्यावरण में सक्रिय होकर स्वयं कार्य करता है।
4. अन्तर्दृष्टि/सूझ का सिद्धान्त (Insight Theory) इसे गेस्टाल्ट
वादियों का सिद्धान्त भी कहा जाता है। इस सिद्धान्त के प्रतिपादक जर्मन
मनोवैज्ञानिक कोहर, कोफ्का और वर्दीमर हैं। गेस्टाल्ट एक नियमित
आकृति अथवा स्वरूप को कहा जाता है। इन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार
हम विभिन्न उद्दीपकों को छोटे-छोटे अंशों में नहीं देखते हैं, बल्कि एक
संगठित अथवा समग्र स्वरूप से देखते हैं।
5. पदानुक्रमिक अधिगम सिद्धान्त (Hierarchical Theory) इस
सिद्धान्त में गैने ने सीखने को मानवीय क्षमता के सकारात्मक परिवर्तन के
रूप में बताया है, जिसे कोई भी व्यक्ति विशेष अपने भीतर आत्मसात
करता है। इनके अनुसार, सीखना व्यक्ति के मस्तिष्क के अन्दर घटित
होने वाली एक प्रक्रिया है। जिसकी तुलना गैने ने जैविक प्रक्रिया से की
है। इसके अन्तर्गत सीखने के कई प्रकार बताए गए हैं।
2.1.5 शिक्षण/अधिगम सिद्धान्त के कुछ अन्य प्रमुख प्रकार
अधिगम अथवा शिक्षण के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन निम्नलिखित है
1. क्रियाशीलता का सिद्धान्त (Principle of Self Activity) इस
सिद्धान्त का मुख्य उद्देश्य ‘करके सीखना’ है। शिक्षा ग्रहण करने वाला
जब वह स्वयं करके सीखता है, तो वह उसके स्थायी ज्ञान में शामिल हो
जाता है। यह सिद्धान्त विद्यार्थियों के वास्तविक अवलोकन को प्रोत्साहित
करता है। इस सिद्धान्त में शिक्षार्थी जितना अधिक क्रिया-कलापों में
शामिल होता है, उसका ज्ञान उतना ही व्यापक होता है। यह शिक्षार्थियों में
आलोचनात्मक चिन्तन और समस्या समाधान के लिए क्षमता विकास का
कार्य भी करता है। यह सिद्धान्त शिक्षार्थियों को कई प्रकार की
गतिविधियों के लिए भी प्रेरित करता है। उदाहरणस्वरूप किसी पौधे के
विषय में जानकारी देना है या उसके विभिन्न भागों के विषय में बताना है,
तो उससे कहा जा सकता है कि वह अधिक-से-अधिक पौधों और
उसके विभिन्न भागों का अवलोकन करें।
2. अभिप्रेरणा/प्रेरणा का सिद्धान्त (Principle of Motivation) किसी
भी शिक्षण का मुख्य केन्द्र बिन्दु प्रेरणा/अभिप्रेरणा है। अभिप्रेरणा का
सिद्धान्त शिक्षण के लक्ष्य को निर्धारित/निर्देशित करता है। नैतिक,
चारित्रिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का विकास भी इनमें होता है। अभिप्रेरणा
शिक्षार्थी को आन्तरिक बल प्रदान करती है, जिससे वह निरन्तर
क्रियाशील बना रहता है, उसमें अधिगम के प्रति रुचि उत्पन्न होती है।
3. रुचि का सिद्धान्त (Principle of Interest) यह सिद्धान्त शिक्षार्थियों
में शिक्षण के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न करने एवं रुचि पैदा करने का कार्य भी
करता है। इस सिद्धान्त के अनुसार, पर्यावरण की विषय-वस्तु ऐसी हो
ताकि शिक्षार्थियों को उसमें विशेष रुचि आए। पर्यावरण अध्ययन की
विषय-वस्तु को रोचक बनाने के लिए उसमें किस्से-कहानियाँ, कविताएँ
एवं पहेलियाँ आदि को शामिल करना चाहिए। इससे शिक्षार्थियों का
मनोरंजन होता है और उसमें सृजनात्मक एवं कल्पनाशीलता का विकास
होता है।
4. नियोजन का सिद्धान्त (Principle of Implementation) इस
सिद्धान्त के अन्तर्गत शिक्षण की एक विशेष योजना क्रियान्वित की जाती
है, जिसके अन्तर्गत शिक्षार्थियों को शिक्षण करवाया जाता है। इस सिद्धान्त
के अन्तर्गत शिक्षा प्राप्त करने वाले की योग्यताओं एवं क्षमताओं आदि
का विशेष ख्याल रखा जाता है। इस सिद्धान्त में कुछ बातों पर विशेष
ध्यान दिया जाता है जैसे अधिगम उद्देश्यों का निर्धारण, अधिगम
उद्देश्यों की पहचान, कार्य विश्लेषण
5. निश्चित उद्देश्यों का सिद्धान्त (Principle of Specific Aims) इस
सिद्धान्त के अन्तर्गत शिक्षण/अधिगम सम्बन्धित कार्य लक्ष्य निर्धारित
करके करवाया जाता है, ताकि सभी शिक्षार्थियों को यह मालूम हो कि
लक्ष्य क्या है तभी उनमें अधिगम के प्रति रुचि आएगी।
6. आवृत्ति का सिद्धान्त (Principle of Occurrence) यह सिद्धान्त
शिक्षण/अधिगम को स्थायी एवं सार्थक बनाने में अति महत्त्वपूर्ण होता है।
ऐसा इसलिए क्योकि विषय-वस्तु की एक निश्चित अन्तराल पर आवृत्ति
होने से शिक्षार्थी उसके सम्पर्क में रहते हैं, तो उनका ज्ञान लगातार समृद्ध
होता रहता है।
7. वैयक्तिक भिन्नताओं का सिद्धान्त (Principle of Individual
Difference) सभी शिक्षार्थियों में सीखने का स्तर एवं क्षमता एक जैसा
नहीं होता है। इनके सीखने की क्षमता, स्तर को वातावरणीय कारक और
जन्मजात कारक प्रभावित करते हैं। कुछ शिक्षार्थी जल्दी सीखते हैं तो
कुछ देरी से ऐसे में हम पाते हैं कि शिक्षार्थी बहुबुद्धि प्रवृत्ति वाले होते हैं।
8. लोकतान्त्रिक/प्रजातान्त्रिक मूल्यों का सिद्धान्त (Principle of
Democratic Values) शिक्षण के समय इस बात पर विशेष ध्यान देना
चाहिए कि पाठ्यक्रम इस प्रकार का होना चाहिए जिससे शिक्षार्थियों में
प्रजातान्त्रिक मूल्यों का विकास हो सके। उनमें सामाजिक मूल्यों का
विकास हो; जैसे-शिक्षार्थियों से अपेक्षित होता है कि वह समूह में
रहकर कार्य करें वे एक-दूसरे से विचार-विमर्श करें तथा एक-दूसरे के
विचारों आदि को सम्मान दें।
                          राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005
एन.सी.एफ. 2005 के तहत कक्षा 3 से 5 तक के पर्यावरण अध्ययन की
विषय- वस्तु को 6 भागों में विभक्त किया गया है, जिसका विवरण
निम्नलिखित है
1. परिवार एवं मित्र
2 भोजन
3. पानी/जल
4. आवास
5. यात्रा
6. चीजें हम जो करते हैं व बनाते हैं।
इस प्रकार विषय-वस्तु की विस्तृत व्याख्या पर्यावरण आययन के पहले भाग में
गई है।
2.2 पर्यावरण के विषय में बच्चों की समझ
उम्र बढ़ने के साथ-साथ बालक की समझ भी निरन्तर बढ़ती रहती है और
5 वर्ष की आयु तक आते-आते उसकी सोच में विकास की झलक देखने को
मिलने लगती है। धीरे-धीरे उसे अपने आस-पास की वस्तुओं के विषय में
जानने की जिज्ञासा पैदा होती है और वह इससे सम्बन्धित प्रश्न पूछना
प्रारम्भ कर देता है। फिर जब उसे रंगों की पहचान हो जाती है, तो वह
रंगों से सम्बन्धित विभिन्न बातों को समझने लगता है, जैसे कि पत्ते हरे रंग
के होते हैं, भैस काले रंग की होती है इत्यादि।
ऐसी स्थिति में लाल रंग के पत्ते एवं काले रंग की गाय उसे सोचने के
लिए विवश कर देती है और या तो वह काले रंग की गाय को भी भैंस
मानता है या लाल रंग के पत्ते के बारे में प्रश्न पूछता है कि यह पत्ता लाल
क्यों है? इसी तरह वह अपने परिवेश के बारे में गहराई से सोचना प्रारम्भ
कर देता है।
2.2.1 कैसे पता करें कि बच्चे पर्यावरण के विषय में क्या-क्या जानते हैं?
बच्चों के पर्यावरण सम्बन्धी ज्ञान की जाँच के लिए सैद्धान्तिक तरीके का
उपयोग सम्भव नहीं है। उनसे यदि हम पर्यावरण की विभिन्न अवधारणाओं
के बारे में पूछेगे तो निश्चय ही वह यह बताने में असमर्थ होंगे। बच्चों के
इस ज्ञान के परीक्षण के लिए पर्यावरण अध्ययन के शिक्षक को कुछ
अनिवार्य क्रिया-कलापों का सहारा लेना चाहिए। कुछ ऐसे क्रिया-कलापों
का विवरण इस प्रकार है
• बच्चे से यह पूछा जा सकता है कि वह किस प्रकार का भोजन करता
है? उसके माता-पिता उसके लिए भोजन कैसे बनाते है? वह जो सब्जी,
फल, इत्यादि खाता है वह कहाँ से आते है? बाजार में जो सब्जी, फल
इत्यादि उपलब्ध है, वह कहाँ से आते हैं?
• इन प्रश्नों के पूछने के बाद यह पता लगाया जा सकता है कि बच्चे को
यह पता है कि नहीं हमें अपने पर्यावरण से ही भोजन प्राप्त होते हैं।
• बच्चों से विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों के बीच विभेद करने तथा उनके
अलग-अलग लाभ के बारे में भी पूछना चाहिए। बच्चों से यह पूछना
चाहिए कि जल उनके लिए किस प्रकार उपयोगी है? जल के क्या क्या
फायदे है? जल का उपयोग वह किस प्रकार से करता है?
• जंगल किसके लिए लाभकारी है? जंगल एवं खेतों से हमें क्या प्राप्त
होते हैं? इन प्रश्नों के जरिए बालक के पर्यावरण सम्बन्धी ज्ञान की परख
की जा सकती है।
• इस तरह बालक के सामान्य दैनिक क्रिया-कलापों, उसकी आयु एवं
अनुभव को ध्यान में रखते हुए उससे विभिन्न प्रकार के प्रश्न कर एवं
विभिन्न प्रकार की गतिविधियों को शामिल कर यह पता लगाया जा
सकता है कि बालक पर्यावरण के विषय में कितना ज्ञान रखता है।
2.2.2 पर्यावरण के विषय में 5 से 7 वर्ष के बच्चों की समझ
• 5 से 7 वर्ष की आयु में बालक में अच्छी तरह सोचने, समझने तथा
तर्क करने की शक्ति का पूरी तरह अभाव पाया जाता है। वे कल्पनाशील
तो होते हैं, परन्तु वह अपनी कल्पना शक्ति से कुछ सृजन या निर्माण
करने की क्षमता उनमें विकसित नहीं होती है। इस आयु के बच्चों में
विपरीत या पलट करके सोचने की शक्ति तथा वस्तुओं को उनकी संख्या
व परिणाम के सन्दर्भ में सही रूप से समझने की शक्ति जैसी महत्त्वपूर्ण
मानसिक क्षमताओं का अभाव पाया जाता है।
• पहली योग्यता के अभाव में वह यह समझने में असफल रहता है कि उसके
घर से स्कूल उतनी ही दूर है, जितना कि स्कूल से उसका घर अथवा उसकी
एक बहन है, तो उसकी बहन का भी एक भाई अवश्य होना चाहिए आदि।
• दूसरी योग्यता के अभाव में वह प्राय: यह गलती करता है कि उसी के
सामने अगर दो काँच के बर्तन लिए जाएँ, जिनमें एक पतला लम्बा हो तथा
दूसरा छोटा और चौड़ा तथा अगर चौड़े आकार के बर्तन में से दूध पतले
लम्बे बर्तन में डाल दिया जाए, तो वह कहेगा कि इस लम्बे बर्तन का दूध
पहले वाले से ज्यादा है। जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है वही दूध दूसरे बर्तन
में उसी के सामने डाला गया है।
• इस आयु में बालक पर्यावरण की विभिन्न परिघटनाओं; जैसे- वर्षा,
भूकम्प, तूफान, ऋतु-परिवर्तन, इत्यादि की अवधारणाओं को समझ पाने में
असमर्थ होता है।
• वह प्रदूषण की अवधारणाओं को समझने भी में असमर्थ होता है। उसे इस
बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पर्यावरण उसके कारण से ही प्रदूषित हो
रहा है या नहीं। पर्यावरण संरक्षण क्या है? वह यह भी नहीं समझ पाता।
2.2.3 पर्यावरण के विषय में 8 से 14 वर्ष के बच्चों की समझ
• 8 से 14 वर्ष की आयु के बालकों में वस्तुओं को पहचानने, उनका
विभेदीकरण करने, वर्गीकरण करने तथा उपयुक्त नाम या वर्गीकरण द्वारा
समझने और व्यक्त करने की क्षमता विकसित हो जाती है। उसमें विभिन्न
प्रकार के सम्प्रत्ययों का निर्माण हो जाता है।
• इसके आधार पर वह पर्यावरण की विभिन्न परिघटनाओं; जैसे-वर्षा,
भूकम्प, ऋतु-परिवर्तन इत्यादि की अवधारणाओं को समझने लगते हैं।
• वे वस्तुओं के बीच समानता, सम्बन्ध, असमानता, दूरी एवं विसंगतता को
समझने लगते हैं। शुरू में इस प्रकार की उनकी समझ केवल मूर्त या स्थूल
रूप तक ही सीमित होती है; जैसे-कुत्ते या बिल्ली अगर उनके सामने हों,
तो वह उनमें विभेद कर सकता है।
• उसे गाय एवं भैस में अन्तर का भी पता चल जाता है। उसमें यह समझ आ
जाती है कि कोई वस्तु किसी से जितनी अधिक या कम दूर या भारी हल्की
होती है दूसरी भी उसी के हिसाब से दूरी या वजन रखती है। अत: अब वह
वजन या दूरी के मापों को अच्छी तरह समझने लगता है।
• 11 वर्ष की आयु के बाद बालक में सभी प्रकार के सम्प्रत्ययों का समुचित
विकास होने लगता है। उसमें सोचने विचारने, तर्क करने, कल्पना करने तथा
निरीक्षण, अवलोकन, परीक्षण, प्रयोग आदि के द्वारा उचित निष्कर्ष निकालने
की पर्याप्त क्षमता विकसित हो जाती है। उदाहरणस्वरूप कल्पना करो कि
ए.बी.सी. एक त्रिभुज है, तार में विद्युत प्रवाहित हो रही है आदि जैसी बातों
को वह आसानी से समझ लेता है।
• इस उम्र में बालक में अपने परिवेश के महत्त्व की समझ विकसित हो जाती
है। वह समझने लगता है कि उसके पास के खेत की मिट्टी उपजाऊ है या
नहीं और यदि है तो क्यों है या नहीं है तो क्यों नहीं है? उसमें तर्क-वितर्क
करने की क्षमता विकसित हो जाती है।
• इस आयु में वह समझने लगता है कि पानी कहाँ से आता है? इसके क्या
उपयोग हो सकते हैं। इसके दुरुपयोग से कैसे बचा जाए। इसका संरक्षण
किस प्रकार किया जाए। वह समझने लगता है कि प्रदूषण मानव के लिए
हानिकारक है इसलिए वह पर्यावरण संरक्षण के बारे में मन्थन करने
लगता है।
                                        अभ्यास प्रश्न
1. अनुभव द्वारा व्यवहार में होने वाले परिवर्तन
को ……. कहते है?
(1) सीखना
(2) अधिगम
(3) 1 और 2 दोनों
(4) इनमें से कोई नहीं
2. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(1) अधिगम जन्मजात होता है
(2) अभ्यास एवं प्रशिक्षण के जरिए किसी कार्य में
निपुणता प्राप्त की जाती है
(3) सीखने के द्वारा बालकों के व्यवहार में परिवर्तन
नहीं होता है
(4) उपरोक्त सभी
3. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
A. सीखने के द्वारा बालक के व्यवहार में
जो परिवर्तन होता है, वह पूरी तरह से
उसके द्वारा ही अर्जित होता है।
B. बच्चा शैशवावस्था में ही वस्तुओं की
पहचान और उनमें विभेद भी कर
लेता है।
उपरोक्त में से कौन-सा कथन सही है?
(1) केवल A
(2) केवल B
(3) A और B दोनों
(4) न तो A और न ही B
4. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
A. सीखना व्यवहारजन्य, व्यवहारगत
परिवर्तन है।
B. सीखना, व्यवहार और दृष्टिकोण दोनों
का परिमार्जन है।
उपरोक्त में से कौन-सा कथन सही है?
(1) केवल A
(2) केवल B
(3) A और B दोनों
(4) न तो A और न ही B
5. निम्नलिखित में से कौन-सा नियम
थॉर्नडाइक के द्वारा दिए गए अधिगम के
नियम से सम्बन्धित है?
A. अभ्यास के नियम
B. प्रभाव के नियम
C. तत्परता के नियम
(1)A और B
(2) A और
(3) B और C
(4) A, B और C
6. निम्नलिखित में से कौन-सा अधिगम की
विशेषता में शामिल नहीं होता है?
(1) सीखना हमेशा विवेकपूर्ण नहीं है
(2) सीखना एक अनुकूलन प्रक्रिया है
(3) सीखना एक प्रकार की खोज करना है
(4) सीखना जीवन-पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है
7. अधिगम के प्रकार में क्या-क्या शामिल
होता है?
(1) संज्ञानी अथवा संज्ञानात्मक अधिगम
(2) भावात्मक अथवा मनोवृत्यात्मक अधिगम
(3) कौशलात्मक अथवा क्रियात्मक अधिगम
(4) उपरोक्त सभी
8. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
A. थॉर्नडाइक का सम्बन्धवाद सिद्धान्त,
प्रयास एवं भूल का सिद्धान्त भी कहा
जाता है।
B. क्रियाप्रसूत अनुबन्धन सिद्धान्त में प्राणी
पर्यावरण में सक्रिय होकर कार्य करता
है।
उपरोक्त में से कौन-सा कथन सत्य है?
(1) केवल A
(2) केवल B
(3) A और B दोनों
(4) न तो A और न ही B
9. सुमेलित कीजिए
A. प्रयास एवं भूल             (i) थॉर्नडाइक
       का सिद्धान्त
B. उत्तेजना अनुक्रिया         (ii) पावलोव
       का सिद्धान्त
C. नैमित्तिक                     (iii) स्किनर
अनुबन्धन का
सिद्धान्त
D. सूत्र का सिद्धान्त            (iv) कोह्वर,
                                            कोफ्का और
                                             वर्दीमर
       A       B        C      D
(1)   i        ii        iii      iv
(2)   ii       iii       iv      i
(3)   iii      iv       i        ii
(4)   iv      i         ii       iii
10. शिक्षा ग्रहण करने वाला जब करके सीखता
है तो वह उसके स्थायी ज्ञान में शामिल हो
जाता है। यह सिद्धान्त कौन-सा है?
(1) क्रियाशीलता का सिद्धान्त
(2) प्रेरणा का सिद्धान्त
(3) रुचि का सिद्धान्त
(4) नियोजन का सिद्धान्त
11. निम्नलिखित में से किसका सम्बन्ध
अभिप्रेरणा के सिद्धान्त से है?
A. नैतिक, चारित्रिक एवं सांस्कृतिक मूल्यो
का विकास
B. शिक्षार्थी को आन्तरिक बल प्रदान
करती है।
C. अधिगम के प्रति रुचि
(1) A और B
(2) A और C
(3) B और C
(4) A, B और C
12. नियोजन के सिद्धान्त में किन बातों पर
विशेष ध्यान दिया जाता है?
A. अधिगम उद्देश्यों का निर्धारण
B. अधिगम उद्देश्यों की पहचान
C. कार्य विश्लेषण
(1) A और B
(2) A और
(3) B और
(4) A, B और B
13. रुचि के सिद्धान्त में क्या-क्या शामिल होता
है?
A. कहानियाँ
B. कविताएँ
C. पहेलियाँ
(1) A और B
(2) A और C
(3) B और C
(4) A, B और C
14. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
A. निश्चित उद्देश्यों के सिद्धान्त के
अन्तर्गत शिक्षण/अधिगम लक्ष्य निर्धारित
करके कराया जाता है।
B. जब शिक्षार्थियों को यह मालूम होता है
कि क्या लक्ष्य है तब उन्हें अधिगम में
रुचि आएगी।
उपरोक्त में से कौन-सा कथन सही
(1) केवल A
(2) केवल B
(3) A और B
(4) न तो A और न ही B
15. निम्नलिखित में से किसका सम्बन्ध आवृत्ति
का सिद्धान्त से है?
A. यह शिक्षण को स्थायी बनाने में
लाभकारी होता है।
B. विषय-वस्तु की एक निश्चित अन्तराल
का आवृत्ति होना चाहिए।
(1) केवल A
(2) केवल B
(3) A और B
(4) न तो A और न ही B
16. वैयक्तिक भिन्नताओं का सिद्धान्त किन
कारकों से प्रभावित होता है?
(1) सीखने की क्षमता
(2) स्तर के वातावरणीय कारक
(3) जन्मजात कारक
(4) उपरोक्त सभी
17. एन.सी.एफ. 2005 के तहत कक्षा 3 से 5
तक के पर्यावरण अध्ययन की विषय-वस्तु
को 6 भागों में विभक्त किया गया है, इनमें
क्या-क्या शामिल किया गया है?
A. परिवार
B.मित्र
C. भोजन
D. जल
E. आवास
F. यात्रा
(1) A,B,C और E
(2) A, C, D, E और F
(3) B,C,D,E और F
(4) A,B,C,D,E और F
18. शिक्षार्थियों का पाठ्यक्रम इस प्रकार का
हो कि उसमें प्रजातान्त्रिक मूल्यों का
विकास हो और उनमें सामाजिक मूल्यों
को भी बढ़ावा मिले। यह कथन
शिक्षण/अधिगम के किस सिद्धान्त को
बताता है?
(1) लोकतान्त्रिक मूल्यों का सिद्धान्त
(2) आवृत्ति का सिद्धान्त
(3) वैयक्तिक भिन्नताओं का सिद्धान्त
(4) नियोजन का सिद्धान्त
19. पर्यावरण की कक्षा में बच्चों के पर्यावरण
सम्बन्धी ज्ञान की परख के
लिए निम्नलिखित में से क्या करना बेहतर
होगा?
(1) बच्चों को पर्यावरण पर एक निबन्ध लिखने के
लिए कहना
(2) जल, भूमि, हवा इत्यादि तथा इनकी उपयोगिता के
बारे में सामान्य प्रश्न पूछना
(3) पर्यावरण प्रदूषण की अवधारणाओं के बारे में
पूछना
(4) बच्चों को पर्यावरण की समझ नहीं होती
इसलिए उनसे इसके बारे में कुछ भी नहीं
पूछा जाना चाहिए
20. पर्यावरण बालक के भाषायी विकास में
किस प्रकार सहायक होता है?
(1) बालक में अनुकरण द्वारा भाषायी विकास होता
है और अनुकरण के लिए विभिन्न क्रिया-कलाप
एवं सामग्रियाँ उसे पर्यावरण ही उपलब्ध
कराता है
(2) पर्यावरण की बालक के भाषायी विकास में
कोई भूमिका नहीं होती
(3) बालक के भाषायी विकास में केवल उसके
परिवार एवं शिक्षकों की भूमिका होती है
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
21. पर्यावरण अध्ययन कक्षा-कक्ष में सीखने की
प्रक्रियाओं में विद्यार्थियों को
(1) पूरी पाठ्य-पुस्तक को ध्यान से पढ़ने और
महत्त्वपूर्ण पक्तियों को चिह्नित करने के लिए
कहना चाहिए
(2) कक्षा में होने वाली चर्चाओं पर नोट्स बनाने के
लिए कहना चाहिए
(3) अभ्यास में दिए गए सभी प्रश्नों को करने के
लिए कहना चाहिए
(4) सीखने और उनसे अपेक्षित प्रतिक्रियाओं पर
मनन करवाना चाहिए
22. प्रश्न-उत्तर तकनीक पर्यावरण अध्ययन के
शिक्षण में काफी प्रभावी हो सकती है
क्योकि यह …….. को सुनिश्चित करती है।
(1) अधिक अनुशासित कक्षा
(2) शिक्षार्थियों द्वारा सक्रिय सहभागिता
(3) परीक्षा को बेहतर तरीके से करने सम्बन्धी
विद्यार्थियों की योग्यता
(4) विद्यार्थियों द्वारा अच्छी तैयारी के साथ क्सा में
आना
23. अधिगम की जटिलता की प्रतिक्रिया के रूप
में निम्नलिखित में से कौन-सी विधि के
उपयोग की सलाह पर्यावरण अध्ययन के
शिक्षकों को नहीं दी जानी चाहिए?
(1) गूद प्रक्रियाओं को समझाने हेतु हस्त-प्रचालित
सामग्री का उपयोग
(2) शिक्षण स्तर को अलग-अलग विद्यार्थियों के
स्तर से थोड़ा अधिक परन्तु यक्षा के स्तर की
सीमा के भीतर रखना
(3) जटिल संकल्पनाओं को आरम्भ करते समय,
विद्यार्थियों के चिन्तन को प्रोत्साहित करने के
लिए केवल मुक्त उत्तर वाले प्रश्नों का पूछना
(4) विद्यार्थियों के पूर्ववर्ती ज्ञान का पता लगाने हेतु
पूर्व-परीक्षण लेना
24. बच्चों के व्यक्तिगत अनुभवों को महत्त्व देने
से पर्यावरण अध्ययन की कक्षा में शिक्षकों
को क्या लाभ मिलता है?
(1) बच्चों के विशिष्ट अनुभवों को जानने में
(2) बच्चों की भाषा और सम्प्रेषण कुशलताओं को
सुधारने और परिमार्जित करने में
(3) उसकी ऊर्जा बचाने में क्योंकि बच्चे बातचीत
करना पसन्द करते हैं
(4) विषय को बच्चों के अनुभव-संसार से जोड़ने
और विमर्श व सीखने को बढ़ावा देने में
25. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
A. बच्चों के पर्यावरण सम्बन्धी ज्ञान की
जाँच के लिए सैद्धान्तिक तरीके का
उपयोग सम्भव नहीं है।
B. अनुभव द्वारा व्यवहार में होने वाले
परिवर्तन को सीखना या अधिगम कहते
हैं।
उपरोक्त में से कौन-सा कथन सही है?
(1) केवल A
(2) केवल B
(3) A और B दोनों
(4) न तो A और न ही B
26. किन प्रश्नों के द्वारा बालक के पर्यावरण
सम्बन्धी ज्ञान को परखा जा सकता है?
A. जंगल किसके लिए लाभकारी है?
B. जंगल से हमें क्या प्राप्त होता है?
C. खेता से हमें क्या प्राप्त होता है?
(1) A और B
(2) A और C
(3) B और C
(4) A, B और C
27. इस उम्र में बालक पर्यावरण की विभिन्न
घटनाओं; जैसे-वर्षा, भूकम्प, तूफान,
ऋतु-परिवर्तन इत्यादि की अवधारणाओं को
समझ पाने में असमर्थ होता है। दिया गया
उदाहरण किस आयु वर्ग के बच्चो के बारे
में बताता है?
(1) 3-5 वर्ष
(2) 5-7 वर्ष
(3) 7-10 वर्ष
(4) 8-14 वर्ष
28. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
A. 8 से 14 वर्ष के बच्चों में अपने परिवेश
के महत्त्व की समझ विकसित हो
जाती है।
B. इस आयु वर्ग में बच्चों में वर्गीकरण व
विभेदीकरण सम्बन्धी ज्ञान का भी
विकास होता है।
उपरोक्त में से कौन-सा कथन 8 से 14 वर्ष
आयु वर्ग के बच्चों के सम्बन्ध में सही है?
(1) केवल A
(2) केवल B
(3) A और B दोनों
(4) न तो 1 और न ही 2
                                 विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
29. पर्यावरण अध्ययन की कक्षा में बच्चों के
व्यक्तिगत अनुभवों को महत्त्व देना शिक्षक
को लाभ पहुंचाता है।           [CTET June 2011]
(1) विषय में बच्चों के अनुभव-संसार से जोड़ने
और विमर्श व सीखने को बढ़ावा देने
(2) उसकी ऊर्जा बचाने में क्योंकि बच्चे बातचीत
करना पसन्द करते हैं
(3) बच्चों के विशिष्ट अनुभवों को जानने में
(4) बच्चों की भाषा और सम्प्रेषण कुशलताओं को
सुधारने और परिमार्जित करने में
30. भारत में समृद्ध वनस्पतिजात और प्राणीजात
(Flora-fauna) के बारे में पढ़ाने के बाद,
विद्यालय द्वारा प्राथमिक कक्षाओं के
विद्यार्थियों को रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान ले
जाया जाता है। यह ……. में विद्यार्थियों की
सहायता करेगा।                  [CTET Jan 2012]
(1) प्रकृति के प्रति सम्मान विकसित करने
(2) क्लीय अधिगम को वास्तविक जीवन-स्थितियों
के साथ जोड़ने
(3) पर्यावरण संरक्षण के लिए कौशलों के विकास
(4) बाहरी भ्रमण में दोस्तों के साथ मजा लेने
31. एक कक्षा में औसत से कम वाले चार
विद्यार्थी हैं। उन्हें अन्य विद्यार्थियों के समान
लाने के लिए निम्नलिखित में से कौन-सी
व्यूह-रचना सबसे प्रभावी होगी?
                                        [CTET Jan 2012]
(1) उन्हें अगली पंक्ति में बैठाना और उनके काम
का लगातार पर्यवेक्षण करना
(2) उनके अधिगम के कमजोर क्षेत्रों की पहचान
करना और उसके अनुसार सुधारात्मक उपाय
उपलब्ध कराना
(3) यह सुनिश्चित करना कि वे नियमित रूप से
विद्यालय आएँ
(4) उन्हें घर पर करने के लिए अतिरिक्त
दत्त-कार्य देना
32. डिस्लेक्सिया मुख्यत ………. की समस्या के
साथ सम्बन्धित है।               [CTET Nov 2012]
(1) बोलने और सुनने
(2) पढ़ने
(3) सुनने
(4) बोलने
33. सीमा प्रत्येक पाठ को रटकर तुरन्त सीख
लेती है जबकि लीना चर्चा एवं बेनस्टॉमिंग
(मस्तिष्क आलोडन) के बाद प्रत्येक पाठ
को समझती है। यह ……… विकासात्मक
सिद्धान्त की ओर संकेत करता है।
                                 [CTET Nov 2012]
(1) सामान्य से विशिष्ट की ओर
(2) निरन्तरता
(3) अन्तःसम्बन्ध
(4) वैयक्तिक भिन्नताओं
34. कक्षा में एक प्रभावी शिक्षण-अधिगम
प्रक्रिया होती है जब शिक्षक बच्चों के ज्ञान
को पढ़ाई जानी वाली नई संकल्पना के
साथ जोड़ने में सहायता करता है। इसके
पार्श्व में निहित उद्देश्य है….. को बढ़ावा
देना।                         [CTET Nov 2012]
(1) शिक्षार्थी-स्वायत्तता
(2) पुनर्बलन
(3) ज्ञान का सहसम्बन्ध एवं स्थानान्तरण
(4) वैयक्तिक भिन्नताओं
35. पर्यावरण अध्ययन में एक अच्छे दत्तकार्य
का मुख्य लक्ष्य होना चाहिए
                                    [CTETJuly 2013]
(1) अधिगम-विस्तार के अवसर उपलब्ध कराना
(2) प्रभावी अधिगम के लिए पाठ को दोहराना
(3) समय का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करना ।
(4) शिक्षार्थियों को अनुशासन में बनाए रखना
36. कक्षा V की एन.सी.ई.आर.टी. की पर्यावरण
अध्ययन की पाठ्य-पुस्तक में प्रत्येक पाठ
के अन्त में एक खण्ड को शामिल किया
गया है ‘हम क्या समझे’ यह सुझाव दिया
गया है कि इस खण्ड में शामिल प्रश्नो के
उत्तर का सही या गलत के रूप में
आकलन नहीं किया जाएगा। यह परिवर्तन
इसलिए किया गया है, क्योकि
                               [CTET July 2013]
(1) यह आकलन में विषय निष्ठता को कम
करता है
(2) इस स्तर पर बच्चे सही उत्तर नहीं लिख
सकते
(3) यह आकलन में शिक्षकों की सुविधा बढ़ाता है
(4) यह जानने में शिक्षक की सहायता करता है
कि बच्चे कैसे सीख रहे हैं?
37. पर्यावरण अध्ययन की पाठ्य-पुस्तकों में
विभिन्न प्रकरणों में एक खण्ड ‘करके
देखो’ को शामिल किया गया है, जिसका
उद्देश्य है।                      [CTET July 2013]
(1) घर में शिक्षार्थियों को व्यस्त रखना
(2) प्रत्यक्ष हस्तपरक अनुभव उपलब्ध कराना
(3) परीक्षा में निष्पादन को सुधारना
(4) वैज्ञानिक शब्दावली की परिभाषाएँ सीखना
38. सामाजिक विज्ञान के सन्दर्भ में पर्यावरण
अध्ययन पढ़ने का निम्नलिखित में से
कौन-सा उद्देश्य नहीं है?
                             [CTET July 2013]
(1) इसे बच्चों को मुख्य शब्दावली की सही
परिभाषा याद करने योग्य बनाना चाहिए
(2) इसे शिक्षार्थियों को विद्यमान विचारों और
अभ्यासों पर प्रश्न करने के योग्य बनाना चाहिए
(3) इसे बच्चों को समाज के एक जिम्मेदार सदस्य
के रूप में बदने के योग्य बनाना चाहिए
(4) इसे बच्चों को संस्कृति अभ्यासों में विविधता
का सम्मान करने योग्य बनाना चाहिए
39. EVS कक्षा में सामाजिक असमानताओं पर
अधिक बल देने के लिए निम्नलिखित में से
कौन-सा अधिक प्रभावी अधिगम अनुभव
होगा?                             [CTET Feb 2014]
(1) सम्बन्धित मामलों (समस्याओं) पर वीडियो
फिल्म दिखाना
(2) सम्बन्धित मामलों (समस्याओं) पर विशिष्ट
भाषण आयोजित करना
(3) सम्बन्धित मामलों पर क्विज प्रतियोगिता
(प्रश्नोतर प्रतियोगिता) का संचालन
(4) विद्यार्थियों से समूह परियोजनाओं का भार
अपने ऊपर लेने के लिए कहना
40. कक्षा V की पर्यावरण अध्ययन की
पाठ्य-पुस्तक के एक पाठ में ‘सर्वेक्षण
और लेखन’ पर एक भाग का मुख्य
उद्देश्य है।                      [CTET Sept 2014]
(1) शिक्षार्थियों की सामान्य जानकारी का आकलन
करना
(2) शिक्षार्थियों को अवसर उपलब्ध कराना कि वे
चीजों को खोजें और सीखें
(3) विषय की आधारभूत अवधारणाओं को सीखने
में शिक्षार्थियों की मदद करना
(4) शिक्षार्थियों के व्यावहारिक कौशलों में सुधार करना
41. ‘खेल जो हम खेलते हैं’ प्रकरण के शिक्षण
में शिक्षार्थियों की अधिकतम भागीदारिता के
लिए निम्न में से कौन-सी शिक्षण युक्ति
अधिक प्रभावी होगी?             [CTET Sept 2014]
(1) शिक्षार्थियों को खेल के मैदान में ले जाना और
उन्हें अलग-अलग दिनों में अलग-अलग खेल
खिलाना
(2) विभिन्न खेलों के खेल-कार्ड बनाना और उन्हें
शिक्षार्थियों को दिखाना
(3) शिक्षार्थियों को भीतर और बाहर खेले जाने वाले
विभिन्न खेलों के नाम याद करने के लिए कहना
(4) शिक्षार्थियों को टेलीविजन पर खेल सम्बन्धी
कार्यक्रमों को देखने और उस पर आधारित
सामान्य परियोजना कार्य बनाने के लिए कहना
42. कक्षा V की अध्यापिका माहिका चाहती है
कि उसके विद्यार्थी आस-पास के पौधों का
अवलोकन करें। सार्थक अधिगम (सीखने)
के लिए उसे बच्चों को क्या करने के लिए
प्रोत्साहित करना चाहिए?             [CTET Feb 2015]
(1) यह समझना कि पौधे भी सजीव होते हैं
(2) यह समझना कि पौधे हमारे लिए उपयोगी होते हैं
(3) अधिकतम पौधों के नाम लिखना
(4) उनकी ऊँचाई, पत्तियों, गन्ध और उगने के
स्थानों में अन्तर का अवलोकन करना
43. पर्यावरण अध्ययन शिक्षण के सन्दर्भ में
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF,
2005) निम्नलिखित में से किसे प्रस्तावित
नहीं करती?                 [CTET Sept 2015]
(1) बच्चों के अनुभवों और सन्दर्भो से जोड़ना
(2) हस्तपरक क्रियाकलाप
(3) तकनीकी शब्दावली से परिचित कराना
(4) विषयानुसार उपागम
44. पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण-अधिगम में
‘सर्वेक्षण’ का उद्देश्य है।              [CTET Sept 2016]
A. समुदाय के साथ अन्योन्यक्रिया का
अवसर प्रदान करना
B. बच्चों को विभिन्न लोगो के प्रति
संवेदनशील बनाना
C. सूचना को प्रत्यक्ष प्राप्त करने का
अवसर प्रदान करना
D. आकलन के एक अवसर के रूप में
इसका उपयोग करना
उपरोक्त में से कौन-से सही है?
(1) A.Cऔर D
(2) A,B,C और D
(3) A, B और C
(4) A, B और D
                                          उत्तरमाला
1. (3) 2. (2) 3. (3) 4. (3) 5. (4) 6. (1) 7. (4) 8. (3) 9. (1) 10. (1)
11. (4) 12. (4) 13. (4) 14. (3) 15. (3) 16. (4) 17. (4) 18. (1)
19. (2) 20. (1) 21. (4) 22. (2) 23. (2) 24. (4)  25. (3) 26. (4)
27. (2) 28. (3) 29. (1) 30. (2) 31. (2) 32. (2) 33. (4) 34. (3)
35. (1) 36. (4) 37. (2) 38. (1) 39. (4) 40. (2) 41. (1) 42. (4)
43 (3) 44. (3)

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