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Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 11 पर्यावरणम्

Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 11 पर्यावरणम्

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 11 पर्यावरणम्

HBSE 9th Class Sanskrit पर्यावरणम् Textbook Questions and Answers

पर्यावरणम् (पर्यावरण) पाठ-परिचय

प्रस्तुत पाठ पर्यावरण को ध्यान में रखकर लिखा गया एक लघु निबन्ध है। वर्तमान युग में प्रदूषित वातावरण मानव-जीवन के लिए भयङ्कर अभिशाप बन गया है।
इस पाठ में बताया गया है कि प्रकृति सभी प्राणियों की रक्षा के लिए प्रयास करती है। यह विभिन्न प्रकारों से सबको पुष्ट करती है तथा सुख-साधनों से तृप्त करती है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश रूपी पञ्चमहाभूत प्रकृति के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं।

इन्हीं से पर्यावरण का निर्माण होता है। संसार जिसके द्वारा सब ओर से आच्छादित किया जाता है, उसे ही ‘पर्यावरण’ कहते हैं। परन्तु स्वार्थ में अन्धा हुआ मनुष्य उसी पर्यावरण को आज नष्ट कर रहा है। नदियों का जल कलुषित हो रहा है। वन वृक्षों से रहित हो रहे हैं। मिट्टी का कटाव बढ़ने से बाढ़ की समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। कल-कारखानों और वाहनों के धुएँ से वायु विषैली हो रही है। वन्य-प्राणियों की जातियाँ भी नष्ट हो रही हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार वृक्षों एवं वनस्पतियों के अभाव में मनुष्यों के लिए जीवित रहना असम्भव प्रतीत हो रहा है। पत्र, पुष्प, फल, काष्ठ, छाया एवं औषधि प्रदान करने वाले पदार्थ एवं वृक्षों की उपयोगिता वर्तमान समय में पहले की अपेक्षा अधिक है। ऐसी परिस्थिति में हमारा कर्त्तव्य है कि हम पर्यावरण के संरक्षणार्थ उपाय करें। हम वृक्षों के रोपण, नदी-जल की स्वच्छता, ऊर्जा के संरक्षण, वापी, कूप, तड़ाग, बाग-बगीचे आदि के निर्माण और उसको स्वच्छ रखने में प्रयत्नशील हों, ताकि हमारा जीवन सुखमय एवं उपद्रव रहित हो सके।

HBSE 9th Class Sanskrit पर्यावरणम् Textbook Questions and Answers

I. अधोलिखितानां सूक्तिानां भावं हिन्दीभाषायां लिखत
(निम्नलिखित सूक्तियों के भाव हिन्दी भाषा में लिखिए)
(क) “आवियते परितः समन्तात् लोकोऽनेनति पर्यावरणम्।”
(ख) प्रकृतिरेव तेषां विनाशकी सजाता।
(ग) धर्मो रक्षति रक्षितः इत्यार्षवचनम्।
(घ) “प्रकृतिरक्षयैव सम्भवति लोकरक्षेति न संशयः।”
उत्तराणि:
(क) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘पर्यावरणम्’ में से उद्धृत है। ‘पर्यावरण’ शब्द के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि संसार जिसके द्वारा सब ओर से आच्छादित किया जाता है, वह पर्यावरण कहलाता है। इस पर्यावरण का निर्माण पृथ्वी, जल, तेज, वायु एवं आकाश इन पाँच तत्त्वों से होता है। दार्शनिक ग्रन्थों में इन्हें ही ‘पञ्चमहाभूत’ कहा गया है। पर्यावरण में ये पाँचों तत्त्व समाहित हैं। इन पाँचों तत्त्वों के माध्यम से पर्यावरण हमारी उसी प्रकार सुरक्षा करता है जिस प्रकार अजन्मे बच्चे की रक्षा माता की कोख करती है।

(ख) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘पर्यावरणम्’ में से उद्धृत है। प्रकृति सभी प्राणियों की रक्षा के लिए प्रयास करती है। अन्न, जल, वायु, फल, फूल, ईंधन ये सभी जीवन की मूलभूत सुविधाएँ हैं। इन सबकी प्राप्ति हमें प्रकृति के माध्यम से ही होती है। परन्तु स्वार्थ में अन्धा हुआ मनुष्य इन्हीं के विनाश में लगा हुआ है। नदियों का जल विषैला बन गया है। बिना सोचे-समझे वृक्षों की कटाई की जा रही है। इस कारण प्रकृति विकारयुक्त होकर मनुष्यों के विनाश का कारण बन गई है।

(ग) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘पर्यावरणम्’ में से उद्धृत है। हमें प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए। इससे पर्यावरण अपने-आप सुरक्षित हो जाएगा। हमारे ऋषियों ने कहा है कि “रक्षा किया गया धर्म ही रक्षा करता है।” अतः पर्यावरण की रक्षा करना भी धर्म का ही अंग है। समाजसेवी लोग समय-समय पर कुएँ, बावड़ी, तालाब, प्याऊ आदि का निर्माण करवाते हैं। इसके साथ ही धर्मशालाओं का निर्माण करवाते हैं। ये सभी कार्य धर्म-सिद्धि के साधन के रूप में माने गए हैं। इनके निर्माण से हमारा पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा।

(घ) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘पर्यावरणम्’ में से उद्धृत है। प्रकृति सभी प्राणियों की रक्षा के लिए प्रयास करती है। यह विभिन्न प्रकारों से सबको पुष्ट करती है तथा सुख-साधनों से तृप्त करती है। अतः हमारा यह दायित्व है कि इस प्रकृति की हम सभी रक्षा करें। इसके लिए समय-समय पर वृक्षारोपण करें। नदियों के जल को कलुषित न होने दें, वनों को उजड़ने न दें। इसके साथ ही कुत्ते, सूअर, साँप, नेवले आदि स्थलचरों तथा मछली, कछुए एवं मगरमच्छ आदि जलचरों की रक्षा करनी चाहिए; क्योंकि ये सभी पृथ्वी तथा जल की मलिनता को दूर करने वाले हैं। ऐसा करने से हम प्रकृति को सुरक्षित रख सकते हैं। प्रकृति को सुरक्षित रखने पर संसार की सुरक्षा हो सकती है। इसमें कोई सन्देह नहीं है।

II. अधोलिखितान गद्यांशान पठित्वा प्रदत्त प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत
(निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर संस्कृत के पूर्ण वाक्यों में लिखिए)
(1) प्रकृतिः समेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते। इयं सर्वान् पुष्णाति विविधैः प्रकारैः, सुखसाधनैः च तर्पयति। पृथिवी, जलम्, तेजः, वायुः, आकाशः च अस्याः प्रमुखानि तत्त्वानि। तान्येव मिलित्वा पृथक्तया वाऽस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति। आवियते परितः समन्तात् लोकः अनेन इति पर्यावरणम् ।
(क) प्रकृतिः केषां संरक्षणाय यतते?
(ख) प्रकृतिः सर्वान् कैः तर्पयति?
(ग) अत्र ‘गगनः’ इति पदस्य किं पर्यायपदं प्रयुक्तम्?
(घ) किं पर्यावरणम्?
(ङ) प्रकृतेः प्रमुख तत्त्वानि कानि सन्ति?
उत्तराणि:
(क) प्रकृतिः समेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते।
(ख) इयं प्रकृतिः सर्वान् विविधैः प्रकारैः पुष्णाति तर्पयति च।
(ग) अत्र ‘गगनः’ इति पदस्य पर्यायपदम् ‘आकाशः’ प्रयुक्तम्।
(घ) आवियते परितः समन्तात् लोकः अनेन इति पर्यावरणम्।
(ङ) पृथिवी, जलम्, तेजो, वायुः, आकाशश्चेति प्रकृत्याः प्रमुख तत्त्वानि सन्ति।

2. अत एव अस्माभिः प्रकृतिः रक्षणीया। तेन च पर्यावरणं रक्षितं भविष्यति। प्राचीनकाले लोकमङ्गलाशंसिन ऋषयो वने निवसन्ति स्म। यतो हि वने सुरक्षितं पर्यावरणमुपलभ्यते स्म। तत्र विविधा विहगाः कलकूजिश्रोत्ररसायनं : गति।
(क) अस्माभिः किं करणीयाः?
(ख) वने के निवसन्ति स्म?
(ग) “खगाः’ इति पदस्य अत्र किं पर्यायपदं प्रयुक्तम् ?
(घ) तत्र श्रोत्ररसायनं के ददति?
(ङ) वने किम् उपलभ्यते स्म?
उत्तराणि:
(क) अस्माभिः प्रकृतिः रक्षणीयाः।
(ख) लोकमंगलाशंसिनः ऋषयः वने निवसन्ति स्म।
(ग) अत्र ‘खगाः’ इति पदस्य पर्यायपदं ‘विहगाः’ प्रयुक्तम्।
(घ) तत्र कलकूजितैः विविधाः विहगाः श्रोत्ररसायनं ददति।
(ङ) वने सुरक्षितं पर्यावरणम् उपलभ्यते स्म।

2. स्वल्पलाभाय जना बहुमूल्यानि वस्तूनि नाशयन्ति। जनाः यन्त्रागाराणां विषाक्तं जलं नद्यां निपातयन्ति। तेन मत्स्यादीनां जलचराणां च क्षणेनैव नाशो भवति। नदीजलमपि तत्सर्वथाऽपेयं जायते। मानवाः व्यापारवर्धनाय वनवृक्षान् निर्विवेकं छिन्दन्ति। तस्मात् अवृष्टिः प्रवर्धते, वनपशवश्च शरणरहिता ग्रामेषु उपद्रवं विदधति। शुद्धवायुरपि वृक्षकर्तनात् सङ्कटापन्नो जायते।
(क) जनाः स्वल्पलाभाय किं कुर्वन्ति?
(ख) नद्यां किं निपात्यते?
(ग) ‘अवृष्टिः’ इति पदस्य किं विलोमपदम् ?
(घ) शरणरहिताः के उपद्रवं कुर्वन्ति?
(ङ) वनवृक्षाः किमर्थं छिद्यन्ते?
उत्तराणि:
(क) जनाः स्वल्पलाभाय बहुमूल्यानि वस्तूनि नाशयन्ति।
(ख) नद्यां यन्त्रागाराणां विषाक्तं जलं निपात्यते।
(ग) ‘अवृष्टिः’ इति पदस्य ‘वृष्टिः’ विलोमपदं प्रयुक्तम्।
(घ) शरणरहिताः वनपशवः ग्रामेषु उपद्रवं कुर्वन्ति।

4. धर्मो रक्षति रक्षितः इत्यार्षवचनम्। पर्यावरणरक्षणमपि धर्मस्यैवाङ्गमिति ऋषयः प्रतिपादितवन्तः। अत एव. वापीकूपतडागादिनिर्माणं देवायतन-विश्रामगृहादिस्थापनञ्च धर्मसिद्धेः स्रोतो रूपेण अङ्गीकृतम्। कुक्कुर-सूकर-सर्प-नकुलादि-स्थलचराः, मत्स्य-कच्छप-मकरप्रभृतयः जलचराश्च अपि रक्षणीयाः, यत ते स्थलमलानाम् अपनोदिनः जलमलानाम् अपहारिणश्च । प्रकृतिरक्षया एव लोकरक्षा सम्भवति इत्यत्र नास्ति संशयः।
(क) कीदृशः धर्मः रक्षति?
(ख) धर्मस्य अङ्गं किमस्ति?
(ग) के प्राणिनः जलचराः कथिताः?
(घ) कुक्कुरसूकरसर्पनकुलादयः कीदृशाः प्राणिनः कथिताः?
(ङ) कया लोकरक्षा सम्भवति?
उत्तराणि:
(क) रक्षतिः धर्मः रक्षति।
(ख) पर्यावरणरक्षणम् धर्मस्य अङ्गं अस्ति।
(ग) मत्स्यकच्छप प्रभृतयो प्राणिनः जलचराः कथिताः।
(घ) कुक्कुरसूकरसर्पनकुलादयः स्थलचराः प्राणिनः कथिताः ।
(ङ) प्रकृतिरक्षयैव लोकरक्षा सम्भवति।

III. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) स्वार्थान्धः मानवः पर्यावरणम् नाशयति।
(ख) वनपशवः ग्रामेषु उपद्रवं विदधति।
(ग) प्रकृतिः एव तेषां विनाशकी सजाता।
(घ) पर्यावरणरक्षणम् अपि धर्मस्य एव अङ्गम्।
(ङ) विहगाः कलकूजितैः श्रोत्ररसायनं ददति।
उत्तराणि:
(क) स्वार्थान्धः कः पर्यावरणम् नाशयति?
(ख) के ग्रामेषु उपद्रवं विदधति?
(ग) प्रकृतिः एव तेषां का सञ्जाता?
(घ) पर्यावरणरक्षणम् अपि कस्य एव अङ्गम् ?
(ङ) के कलकूजितैः श्रोत्ररसायनं ददति?

IV. अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमानुसारं पुनः लिखत
(निम्नलिखित वाक्यों को घटनाक्रम के अनुसार दोबारा लिखिए)
(अ)
(क) पृथिवी, जलम्, तेजः, वायुः, आकाशः च अस्याः प्रमुखानि तत्त्वानि।
(ख) यथा अजातश्शिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति तथैव मानवः पर्यावरणकुक्षौ ।
(ग) प्रकृतिः समेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते।
(घ) आवियते परितः समन्तात् लोकः अनेन इति पर्यावरणम् ।
(ङ) प्रकृतिः सर्वान् पुष्णाति विविधैः प्रकारैः, तर्पयति।
उत्तराणि:
(ग) प्रकृतिः समेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते।
(ङ) प्रकृतिः सर्वान् पुष्णाति विविधैः प्रकारैः, तर्पयति।
(क) पृथिवी, जलम्, तेजः, वायुः, आकाशः च अस्याः प्रमुखानि तत्त्वानि।
(घ) आवियते परितः समन्तात् लोकः अनेन इति पर्यावरणम्।।
(ख) यथा अजातश्शिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति तथैव मानवः पर्यावरणकुक्षौ।

(ब)
(क) सरितो गिरिनिर्झराश्च अमृतस्वादु निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति।
(ख) प्राचीनकाले लोकमङ्गलाशंसिन ऋषयो वने निवसन्ति स्म।
(ग) शीतलमन्दसुगन्धवनपवना औषधकल्पं प्राणवायुं वितरन्ति।
(घ) विविधा विहगाः कलकूजिश्रोत्ररसायनं ददति।
(ङ) अस्माभिः प्रकृतिः रक्षणीया।
उत्तराणि:
(ङ) अस्माभिः प्रकृतिः रक्षणीया।
(ख) प्राचीनकाले लोकमङ्गलाशंसिन ऋषयो वने निवसन्ति स्म।
(घ) विविधा विहगाः कलकूजिश्रोत्ररसायनं ददति।।
(क) सरितो गिरिनिर्झराश्च अमृतस्वादु निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति।
(ग) शीतलमन्दसुगन्धवनपवना औषधकल्पं प्राणवायुं वितरन्ति।

V. अधोलिखित प्रश्नानाम् चतुषु वैकल्पिक उत्तरेषु उचितमुत्तरं चित्वा लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए चार विकल्पों में से उचित उत्तर का चयन कीजिए)
1. स्वार्थान्धः मानवः कं नाशयति?
(i) धनं
(ii) पर्यावरणं
(iii) जनं
(iv) धर्म
उत्तरम्
(ii) पर्यावरणं

2. प्रकृतिः समेषां केषां रक्षणाय यतते?
(i) वनानां
(ii) वृक्षाणां
(iii) प्राणिनां
(iv) लतानां
उत्तरम्:
(ii) प्राणिनां

3. अस्माभिः का रक्षणीया?
(i) प्रकृतिः
(ii) सुकृतिः
(iii) विकृतिः
(iv) आकृतिः
उत्तरम्
(i) प्रकृतिः

4. शीतलमन्दसुगन्धपवना किं वितरन्ति?
(i) जलवायु
(ii) प्राणवायु
(iii) वनवायु
(iv) शीतलवायु
उत्तरम्:
(ii) प्राणवायुं

5. मत्स्यकच्छपमकर प्रभृतयो के रक्षणीयाः?
(i) स्थलचराः
(ii) वायुचराः
(ii) जलचराः
(iv) गगनचराः
उत्तरम्:
(ii) जलचराः

6. ‘प्रकृतिः + एव’ अत्र सन्धियुक्तपदम् अस्ति
(i) प्रकृतिएंव
(ii) प्रकृतिः एव
(iii) प्रकृतिरेव
(iv) प्रकृतिरैव
उत्तरम्:
(iii) प्रकृतिरेव

7. ‘इत्यार्ष’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदः अस्ति
(i) इत्या + र्ष
(ii) इति + आर्ष
(iii) इत् + यार्ष
(iv) इती + आर्ष
उत्तरम्:
(ii) इति + आर्ष

8. ‘प्रकृतिः’ इति पदे कः प्रत्ययः अस्ति?
(i) शतृ
(ii) क्त
(iii) यत्
(iv) क्तिन्
उत्तरम्:

(iv) क्तिन् ‘खगाः’ इति पदस्य किं पर्यायपदम् ?
(i) गगनः
(ii) पशवः
(iii) आकाशः
(iv) विहगाः
उत्तरम्:
(iv) विहगाः

10. “धर्मो रक्षति रक्षितः इति आर्षवचनम्।” इति वाक्ये अव्ययपदम् अस्ति
(i) इति
(ii) रक्षति
(iii) आर्ष
(iv) रक्षितः
उत्तरम्:
(i) इति

योग्यताविस्तारः

यह पाठ पर्यावरण को ध्यान में रखकर लिखा गया एक लघु निबन्ध है। वर्तमान युग में प्रदूषित वातावरण मानव-जीवन के लिए भयङ्कर अभिशाप बन गया है। नदियों का जल कलुषित हो रहा है, वन वृक्षों से रहित हो रहे हैं, मिट्टी का कटाव बढ़ने से बाढ़ की समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। कल-कारखानों और वाहनों के धुएँ से वायु विषैली हो रही है। वन्य-प्राणियों की जातियाँ भी नष्ट हो रही हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार वृक्षों एवं वनस्पतियों के अभाव में मनुष्यों के लिए जीवित रहना असम्भव प्रतीत होता है। पत्र, पुष्प, फल, काष्ठ, छाया एवं औषधि प्रदान करने वाले पादपों एवं वृक्षों की उपयोगिता वर्तमान समय में पूर्वापेक्षया अधिक है।

(क) निम्नलिखित शब्दयुग्मों के भेद देखने योग्य हैं
सङ्कल्पः-सत्सङ्कल्पः
आचारः-सदाचारः
जनः-सज्जनः
सङ्गतिः-सत्सङ्गतिः
मतिः-सन्मतिः
(ख) आर्षवचन-ऋषि के द्वारा कहा गया वचन ‘आर्षवचन’ कहलाता है।
(ग) पञ्चतत्त्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। इन पाँच तत्त्वों से ही यह शरीर बनता है।
समानान्तर श्लोक व सूक्तियाँ
पर्यावरण से सम्बन्धित निम्न उक्तियाँ एवं श्लोक पढ़ने योग्य तथा याद करने योग्य हैं
हमारी संस्कृति में वृक्ष वन्दनीय हैं इसलिए वृक्षों को काटना, उखाड़ना वर्जित है।

दशकूपसमा वापी दशवापीसमो हृदः।
दशहदसमः पुत्रो दशपुत्रसमो द्रुमः ॥ (मत्स्यपुराणम्)

तुलसी का पौधा भारतीय संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण अङ्ग है। न केवल धार्मिक अपितु चिकित्सा की दृष्टि से भी यह रक्षा करने योग्य है। इसीलिए घर के आँगन में इसके रोपण का महत्त्व है। पुराण और वैद्यक ग्रन्थों के अनुसार तुलसी का पौधा वायु प्रदूषण को दूर करता है। कहा गया है

‘तुलसी’ कानने चैव गृहे यस्यावतिष्ठते।
तद्गृहं तीर्थमित्याहुः नायान्ति यमकिङ्कराः ॥
तुलसीगन्धमादाय यत्र गच्छति मारुतः।
दिशो दश पुनात्याशु भूतग्रामांश्चतुर्विधान् ॥ (पद्योत्तरखण्डम्)

तुलसी का रस तीव्रज्वर को नष्ट करता है। कहा गया है
पीतो मरीचिचूर्णेन तुलसीपत्रजो रसः ।
द्रोणपुष्परसोप्येवं निहन्ति विषम ज्वरम् ॥ (शार्ङ्गधर)

वृक्षारोपण का महत्त्व
तारयेद् वृक्षरोपी तु तस्माद् वृक्षान् प्ररोपयेत् ।
तस्य पुत्रा भवन्त्येव पादपा नात्र शंसयः॥

HBSE 9th Class Sanskrit 11 पर्यावरणम् Important Questions and Answers

(क) विद्यालयप्राङ्गणे स्थितस्य उद्यानस्य वृक्षाः पादपाश्च कथं सुरक्षिताः स्युः तदर्थं प्रयत्नः करणीय इति सप्तवाक्येषु लिखत।
उत्तरम्:
(1) सर्वप्रथमं वृक्षान् पादपान् वा प्रति रक्षाजालस्य व्यवस्था भवितव्या।
(2) वृक्षपादपानां संरक्षणाय मालाकाराणामपि व्यवस्था भवितव्या।
(3) तेषां जलसिञ्चनस्य पूर्णः प्रबन्धः स्यात्।
(4) वृक्षाणां पादपानां च स्पर्शस्य निषेधः स्यात्।
(5) तेषां पुष्पाणामपि स्पर्शस्य निषेधः भवितव्यः ।
(6) वृक्षलतापुष्पविनाशकं प्रति दण्डस्य व्यवस्था स्यात् ।
(7) वृक्षाणां फलानाम् अपि हानिः न भवितव्या।

(ख) अभिभावकस्य शिक्षकस्य वा सहयोगेन एकस्य वृक्षस्य आरोपणं करणीयम्। (यदि स्थानम् अस्ति।) तर्हि विद्यालय प्राङ्गणे, नास्ति चेत् स्वस्मिन् प्रतिवेशे, गृहे वा। कृतं सर्वं दैनन्दिन्यां लिखित्वा शिक्षकं दर्शयत।

उत्तरम्- छात्र अपने-अपने कक्षा अध्यापक के सहयोग से अपने-अपने विद्यालय के प्राङ्गण में वृक्ष लगाएँ तथा अपनी डायरी में लिखें कि वे उसकी रक्षा के लिए प्रतिदिन क्या-क्या करते हैं। यह सब वे अपने अध्यापक को भी लिखकर दिखाएँ।

पर्यावरणम् गद्यांशों के सप्रसंग हिन्दी सरलार्थ एवं भावार्थ

1. प्रकृतिः समेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते। इयं सर्वान् पुष्णाति विविधैः प्रकारैः, सुखसाधनैः च तर्पयति। पृथिवी, जलम्, तेजः, वायुः, आकाशः च अस्याः प्रमुखानि तत्त्वानि। तान्येव मिलित्वा पृथक्तया वाऽस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति। आवियते परितः समन्तात् लोकः अनेन इति पर्यावरणम्। यथा अजातश्शिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति तथैव मानवः पर्यावरणकुक्षौ। परिष्कृतं प्रदूषणरहितं च पर्यावरणम् अस्मभ्यं सांसारिक जीवनसुखं, सद्विचारं, संत्यसङ्कल्पं माङ्गलिकसामग्रीञ्च प्रददाति। प्रकृतिकोपैः आतङ्कितो जनः किं कर्तुं प्रभवति? जलप्लावनैः, अग्निभयैः, भूकम्पैः, वात्याचक्रः, उल्कापातादिभिश्च सन्तप्तस्य मानवस्य क्व मङ्गलम्?

शब्दार्थ-समेषां = सभी का। प्राणिनां = प्राणियों की। संरक्षणाय = रक्षा के लिए। यतते = प्रयत्न करती है। पुष्णाति = पुष्ट करती है। तर्पयति = संतुष्ट करती है। सुखसाधनैः = सुख-साधनों के द्वारा । तत्त्वानि = तत्त्व । रचयन्ति = बनाते हैं। आवियते = आच्छादित किया जाता है। समन्तात् = अच्छी प्रकार से। लोकः = संसार। अजातश्शिशः = पैदा न हुआ शिशु । मातृगर्भे = माता के गर्भ में। पर्यावरणकुक्षौ = पर्यावरण की कोख में। परिष्कृतं = स्वच्छ, साफ-सुथरा। सद्विचारं (सद् + विचारम्) = अच्छे विचार। सङ्कल्पं = अच्छे संकल्प। माङ्गलिक सामग्री = शुभ कार्यों के लिए सामग्री। आतङ्किताः = व्याकुल। प्रभवति = समर्थ है। जलप्लावनैः = बाढ़। भूकम्पैः = भूचालों से। वात्याचक्रैः = आँधी-तूफान आदि से। उल्कापातादिभिः = उल्का आदि के गिरने से। सन्तप्तस्य = पीड़ित, दुःखी। क्व = कहाँ।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘पर्यावरणम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ में पर्यावरण के संरक्षण के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी गई है।

सन्दर्भ-निर्देश-प्रस्तुत गद्यांश में प्रकृति एवं पर्यावरण के प्रमुख तत्त्वों एव उनके महत्त्व के विषय में बताया गया है।

सरलार्थ प्रकृति सभी प्राणियों की रक्षा के लिए प्रयास करती है। यह विभिन्न प्रकारों से सबको पुष्ट करती है तथा सुख-साधनों से सन्तुष्ट करती है। पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ये इसके प्रमुख तत्त्व हैं। वे ही मिलकर अथवा भिन्न-भिन्न हमारे पर्यावरण को बनाते हैं। संसार जिसके द्वारा सब ओर से आच्छादित किया जाता है, वह पर्यावरण कहलाता है। जिस प्रकार पैदा न हुआ शिशु अपनी माता के गर्भ में सुरक्षित रहता है, उसी प्रकार मनुष्य पर्यावरण की कोख में (सुरक्षित रहता है)। साफ-सुथरा तथा प्रदूषण से रहित पर्यावरण हमें सांसारिक जीवन-सुख, अच्छे विचार, अच्छे संकल्प तथा मांगलिक सामग्री (पूजा-पाठ की सामग्री) देता है। प्रकृति के क्रोधों से व्याकुल मनुष्य क्या कर सकता है? बाढ़, अग्नि-भय, भूकम्पों, आँधी-तूफानों से तथा उल्का आदि के गिरने से दुःखी मनुष्य का कहाँ कल्याण है? अर्थात् कहीं नहीं।

भावार्थ-पृथ्वी, जल, तेज, वायु एवं आकाश ये पर्यावरण के पाँच प्रमुख तत्त्व हैं। इनसे ही पर्यावरण का निर्माण होता है, जिसने संसार को चारों तरफ से आच्छादित कर रखा है, वही पर्यावरण है। इसके द्वारा ही हमारा जीवन सुरक्षित है।

2. अत एव अस्माभिः प्रकृतिः रक्षणीया। तेन च पर्यावरणं रक्षितं भविष्यति। प्राचीनकाले लोकमङ्गलाशंसिन ऋषयो वने निवसन्ति स्म । यतो हि वने सुरक्षितं पर्यावरणमुपलभ्यते स्म । तत्र विविधा विहगाः कलकूजिश्रोत्ररसायनं ददति। सरितो गिरिनिर्झराश्च अमृतस्वादु निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। वृक्षा लताश्च फलानि पुष्पाणि इन्धनकाष्ठानि च बाहुल्येन समुपहरन्ति। शीतलमन्दसुगन्धवनपवना औषधकल्पं प्राणवायु वितरन्ति।

शब्दार्थ-रक्षणीया = रक्षा करनी चाहिए। लोकमङ्गलाशंसिन = जनता का कल्याण करने वाले। निवसन्ति स्म = रहते थे। विहगाः = पक्षी। कलकूजितैः = मधुर दूंजन से। श्रोत्ररसायनम् = कानों को अच्छा लगने वाला। ददति = देते हैं। सरितः = नदियाँ। गिरिनिर्झराः = पर्वतीय झरने। अमृतस्वादु = अमृत के समान स्वादिष्ट। इन्धनकाष्ठानि = जलाने के लिए लकड़ियाँ। औषधकल्पं = औषधि के समान। प्राणवायुं = ऑक्सीजन।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘पर्यावरणम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ में पर्यावरण के संरक्षण के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी गई है।

सन्दर्भ-निर्देश प्रस्तुत गद्यांश में वनों के महत्त्व के विषय में बताया गया है।

सरलार्थ इसलिए हमें प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए। इससे पर्यावरण अपने-आप सुरक्षित हो जाएगा। प्राचीनकाल में लोक-कल्याण चाहने वाले ऋषि वन में ही रहते थे। क्योंकि वन में ही सुरक्षित पर्यावरण उपलब्ध था। विभिन्न प्रकार के पक्षी अपने मधुर पूजन से वहाँ कानों को अमृत प्रदान करते थे।

नदियाँ तथा पर्वतीय झरने अमृत के समान स्वादिष्ट एवं पवित्र जल देते हैं। वृक्ष तथा लताएँ फल, फूल तथा ईंधन की लकड़ी बहुत मात्रा में देते हैं। शीतल, मन्द तथा सुगन्धित वन-वायु औषधि के समान ऑक्सीजन वितरित करती है।

भावार्थ-प्रकृति के संरक्षण एवं संवर्धन से हमारा जीवन खुशहाल बन सकता है। फल, फूल, ईंधन, सुगन्धित वायु तथा स्वादिष्ट जल हमें प्रकृति के माध्यम से ही प्राप्त होते हैं।

3. परन्तु स्वार्थान्धो मानवः तदेव पर्यावरणम् अद्य नाशयति। स्वल्पलाभाय जना बहुमूल्यानि वस्तूनि नाशयन्ति। जनाः यन्त्रागाराणां विषाक्तं जलं नद्यां निपातयन्ति। तेन मत्स्यादीनां जलचराणां च क्षणेनैव नाशो भवति। नदीजलमपि तत्सर्वथाऽपेयं जायते। मानवाः व्यापारवर्धनाय वनवृक्षान् निर्विवेकं छिन्दन्ति। तस्मात् अवृष्टिः प्रवर्धते, वनपशवश्च शरणरहिता ग्रामेषु उपद्रवं विदधति। शुद्धवायुरपि वृक्षकर्तनात् सङ्कटापन्नो जायते। एवं हि स्वार्थान्धमानवैः विकृतिम् उपगता प्रकृतिः एव सर्वेषां विनाशक: भवति। विकृतिमुपगते पर्यावरणे विविधाः रोगाः भीषणसमस्याश्च सम्भवन्ति। तत्सर्वमिदानी चिन्तनीयं प्रतिभाति।

शब्दार्थ-स्वार्थान्धः = स्वार्थ में अन्धा। नाशयति = नष्ट कर रहा है। स्वल्पलाभाय = थोड़े-से लाभ के लिए। यन्त्रागाराणां = कारखानों के। विषाक्तं = विषैला। निपातयन्ति = फेंका जाता है। अपेयम् = न पीने योग्य। निर्विवेकं = बिना विचार किए। छिन्दन्ति = काटे जा रहे हैं। अवृष्टिः = वर्षा की कमी। प्रवर्धते = बढ़ती जा रही है। शरणरहिता = आश्रय से रहित होकर। उपद्रवं = भय तथा अशान्ति। विदधति = करते हैं। सङ्कटापन्नः = संकटयुक्त। विकृतिम् उपगता = विकारयुक्त। प्रकृतिः एव (प्रकृतिः + एव) = प्रकृति ही। विनाशकी = विनाश करने वाली। प्रतिभाति = प्रतीत हो रहा है।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘पर्यावरणम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ में पर्यावरण के संरक्षण के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी गई है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस गद्यांश में बताया गया है कि स्वार्थ में अन्धा बना हुआ मनुष्य पर्यावरण को नष्ट कर रहा है, जिससे उसका जीवन संकटापन्न हो गया है।
सरलार्थ-परन्तु स्वार्थ में अन्धा हुआ मनुष्य उसी पर्यावरण को आज नष्ट कर रहा है। थोड़े-से लाभ के लिए मनुष्य बहुमूल्य वस्तुओं को नष्ट कर रहा है। कारखानों का विषैला जल नदियों में गिराया जा रहा है, जिससे मछली आदि जलचरों का पल भर में ही नाश हो जाता है। नदियों का जल भी सर्वथा न पीने योग्य हो जाता है। व्यापार बढ़ाने के लिए वन के वृक्ष बिना विचार किए (अंधाधुंध) काटे जा रहे हैं, जिससे वर्षा की कमी बढ़ती जा रही है तथा वन के पशु आश्रय से रहित होकर गाँवों में भय तथा अशान्ति उत्पन्न कर रहे हैं।

वृक्षों के कट जाने से शुद्ध वायु भी दुर्लभ हो गई है। इस प्रकार स्वार्थ में अन्धे मनुष्यों के द्वारा विकारयुक्त की गई प्रकृति ही उनकी विनाशिनी हो गई है। पर्यावरण में विकार आ जाने से विभिन्न रोग तथा भीषण समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इसलिए अब सब कुछ चिन्तायुक्त प्रतीत हो रहा है। . भावार्थ मनुष्य अपने लाभ के लिए पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है। कारखानों से छोड़े गए विषैले जल से नदियों का जल प्रदूषित हो रहा है। वनों के वृक्षों की कटाई से वर्षा की कमी हो रही है, जिससे मनुष्य का जीवन संकटों से घिरता जा रहा है।

4. धर्मो रक्षति रक्षितः इत्यार्षवचनम्। पर्यावरणरक्षणमपि धर्मस्यैवाङ्गमिति ऋषयः प्रतिपादितवन्तः। अत एव वापीकूपतडागादिनिर्माणं देवायतन-विश्रामगृहादिस्थापनञ्च धर्मसिद्धेः स्रोतो रूपेण अङ्गीकृतम्। कुक्कुर-सूकर-सर्प-नकुलादि-स्थलचराः, मत्स्य-कच्छप-मकरप्रभृतयः जलचराश्च अपि रक्षणीयाः, यत ते स्थलमलानाम् अपनोदिनः जलमलानाम् अपहारिणश्च । प्रकृतिरक्षया एव लोकरक्षा सम्भवति इत्यत्र नास्ति संशयः।

शब्दार्थ-रक्षति = रक्षा करता है। रक्षितः = रक्षा किया गया। वापी = बावड़ी। कूपः = कुएँ। तडागादिनिर्माणं = तालाब आदि बनवाना। देवायतन = मन्दिर। विश्रामगृहस्थापनम् = विश्रामगृह बनवाना। धर्मसिद्धेः = धर्म की सिद्धि। अङ्गीकृतम् = माने गए हैं। कुक्कुरः = कुत्ता। सूकरः = सूअर । नकुलः = नेवला। स्थलचराः = पृथ्वी पर चलने वाले जीव। कच्छप = कछुए। मकरः = मगरमच्छ। स्थलमलानाम् अपनोदिनः = पृथ्वी की गन्दगी को दूर करने वाले। सम्भवति = संभव है। संशयः = सन्देह।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘पर्यावरणम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ में पर्यावरण के संरक्षण के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी गई है।

सन्दर्भ-निर्देश इस गद्यांश में बताया गया है कि पर्यावरण की रक्षा करना भी धर्म की रक्षा करने के समान है।

सरलार्थ-रक्षा किया गया धर्म ही रक्षा करता है, यह ऋषियों का कथन है। पर्यावरण की रक्षा करना भी धर्म का ही अंग हैऐसा ऋषियों ने प्रतिपादित किया। इसीलिए कुएँ, बावड़ी, तालाब आदि बनवाना, मन्दिर, विश्रामगृह (धर्मशाला) आदि की स्थापना धर्मसिद्धि के साधन के रूप में माने गए हैं। कुत्ते, सूअर, साँप, नेवले आदि स्थलचरों तथा मछली, कछुए, मगरमच्छ आदि जलचरों की भी रक्षा करनी चाहिए; क्योंकि वे पृथ्वी तथा जल की मलिनता को दूर करने वाले हैं। प्रकृति की रक्षा के द्वारा ही संसार की रक्षा हो सकती है-इसमें सन्देह नहीं है।

भावार्थ-पर्यावरण की रक्षा करना भी धर्म का भाग है। धर्म की रक्षा करने वाले मनुष्य की धर्म रक्षा करता है। अर्थात् जो मनुष्य धर्म की रक्षा करता है, उस मनुष्य की रक्षा धर्म के द्वारा अवश्य की जाती है। अतः मनुष्य को पर्यावरण की रक्षा धर्म समझकर करनी चाहिए। पर्यावरण की रक्षा से प्रकृति की रक्षा होगी जिससे संसार की रक्षा हो सकती है।

अभ्यासः

1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(एक पद में उत्तर लिखिए)
(क) मानवः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति?
(ख) सुरक्षितं पर्यावरणं कुत्र उपलभ्यते स्म?
(ग) आर्षवचनं किमस्ति? ।
(घ) पर्यावरणमपि कस्य अङ्गमिति ऋषयः प्रतिपादितवन्तः?
(ङ) लोकरक्षा कया सम्भवति?
(च) अजातशिशुः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति?
(छ) प्रकृतिः केषां संरक्षणाय यतते?
उत्तराणि:
(क) पर्यावरणकुक्षौ,
(ख) वने,
(ग) “धर्मो रक्षति रक्षितः” इति,
(घ) धर्मस्य,
(ङ) प्रकृतिरक्षया,
(च) मातृगर्भे,
(छ) समेषां प्राणिनां।

2. अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि कानि सन्ति?
(ख) स्वार्थान्धः मानवः किं करोति?
(ग) पर्यावरणे विकृते जाते किं भवति?
(घ) अस्माभिः पर्यावरणस्य रक्षा कथं करणीया?
(ङ) लोकरक्षा कथं संभवति?
(च) परिष्कृतं पर्यावरणम् अस्मभ्यं किं किं ददाति?
उत्तराणि:
(क) पृथिवी-जलं-तेजो वायुकाशश्चेति प्रकृत्याः प्रमुखतत्त्वानि सन्ति।
(ख) स्वार्थान्धः मानवः पर्यावरणं नाशयति।
(ग) पर्यावरणे विकृते जाते विविधाः रोगाः भीषण-समस्याश्च जायन्ते।
(घ) अस्माभिः वापीकूपतडागादिनिर्माणं कृत्वा, कुक्कुरसूकरसर्पनकुलादिस्थलचराणां, मत्स्यकच्छपमकरप्रभृतीनां जलचराणां रक्षणेन पर्यावरणस्य रक्षा करणीया।
(ङ) प्रकृतिरक्षया एव लोकरक्षा सम्भवति।
(च) परिष्कृतं पर्यावरणम् अस्मभ्यं सांसारिक जीवनसुखं, सद्विचारं, सत्यसङ्कल्पं, माङ्गलिकसामग्रीञ्च ददाति।

3. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते।
(ख) वृक्षकर्तनात् शुद्धवायुः न प्राप्यते।
(ग) प्रकृतिः जीवनसुखं प्रददाति।
(घ) अजातश्शिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति।
(ङ). पर्यावरणरक्षणं धर्मस्य अङ्गम् अस्ति।
उत्तराणि:
(क) के निर्विवेकं छिद्यन्ते?
(ख) कस्मात् शुद्धवायुः न प्राप्यते?
(ग) प्रकृतिः किं प्रददाति?
(घ) अजातश्शिशुः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति?
(ङ) पर्यावरणरक्षणं कस्य अङ्गम् अस्ति? .

4. उदाहरणमनुसृत्य पदरचनां कुरुत-
(उदाहरण का अनुसरण करके पद रचना कीजिए)
(क) यथा- जले चरन्ति इति – जलचरा:
स्थले चरन्ति इति – ………………..
निशायां चरन्ति इति – ………………..
व्योम्नि चरन्ति इति – ………………..
गिरौ चरन्ति इति – ………………..
भूमौ चरन्ति इति – ………………..
उत्तराणि:
(क) स्थले चरन्ति इति – स्थलचराः
(ख) निशायां चरन्ति इति – निशाचराः
(ग) व्योम्नि चरन्ति इति – व्योमचराः
(घ) गिरौ चरन्ति इति – गिरिचराः
(ङ) भूमौ चरन्ति इति – भूमिचराः

(ख) यथा- न पेयम् इति – अपेयम्
न वृष्टि इति – ………………….
न सुखम् इति – ………………….
न भावः इति – ………………….
न पूर्णः इति – ………………….
उत्तराणि:
(क) न वृष्टि इति – अवृष्टिः
(ख) न सुखम् इति – असुखम्
(ग) न भावः इति – अभावः
(घ) न पूर्णः इति – अपूर्णः

5. उदाहरणमनुसृत्य पदनिर्माणं कुरुत
(उदाहरण का अनुसरण करते हुए पद निर्माण कीजिए)
यथा- वि + कृ + क्तिन् = विकृतिः
(क) प्र + गम् + क्तिन् = …………………….
(ख) दृश् + क्तिन् = …………………….
(ग) गम् + क्तिन् = …………………….
(घ) मन् + क्तिन् = …………………….
(ङ) शम् + क्तिन् = …………………….
(च) भी + क्तिन् = …………………….
(छ) जन् + क्तिन् = …………………….
(ज) भज् + क्तिन् = …………………….
(झ) नी + क्तिन् = …………………….
उत्तराणि:
(क) प्र + गम् + क्तिन् = प्रगतिः
(ख) दृश् + क्तिन् = दृष्टिः
(ग) गम् + क्तिन् = गतिः
(घ) मन् + क्तिन् = मतिः
(ङ) शम् + क्तिन = शान्तिः
(च) भी + क्तिन = भीतिः
(छ) जन् + क्तिन् = जातिः
(ज) भज् + क्तिन् = भक्तिः
(झ) नी + क्तिन् = नीतिः

6. निर्देशानुसारं परिवर्तयत
(निर्देश अनुसार बदलाव कीजिए)
यथा- स्वार्थान्धो मानवः अद्य पर्यावरणं नाशयति (बहुवचने)।
स्वार्थान्धाः मानवाः अद्य पर्यावरणं नाशयन्ति।
(क) सन्तप्तस्य मानवस्य मङ्गलं कुतः? (बहुवचने)
(ख) मानवाः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षिताः भवन्ति। (एकवचने)
(ग) वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते। (एकवचने)
(घ) गिरिनिर्झराः निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। (द्विवचने)
(ङ) सरित् निर्मलं जलं प्रयच्छति। (बहुवचने)
उत्तराणि:
(क) सन्तप्तानां मानवानां मङ्गलं कुतः?
(ख) मानवः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षितः भवति।
(ग) वनवृक्षः निर्विवेकं छिद्यते।
(घ) गिरिनिर्झरौ निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति।
(ङ) सरितः निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति।

(अ) पर्यावरणरक्षणाय भवन्तः किं करिष्यन्ति इति विषये पञ्च वाक्यानि लिखत।
(पर्यावरण बचाने के लिए आप क्या करेंगे इस विषय पर पाँच वाक्य लिखिए)
यथा- अहं विषाक्तम् अवकरं नदीषु न पातयिष्यामि।
(क) …………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
(ख) …………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
(ग) …………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
(घ) …………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
(ङ) …………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
उत्तराणि:
(क) अहं निर्विवेकं वृक्षच्छेदनं न करिष्यामि।
(ख) अहं समय-समये वृक्षारोपणं करिष्यामि।
(ग) अहं कुक्कुरसूकरनकुलादिस्थलचराणां संरक्षणं करिष्यामि।
(घ) अहं पशु-पक्षिणाम् आखेटं न करिष्यामि।
(ङ) अहं वापीकूपतडागादिनिर्माणं करिष्यामि।

7. उदाहरणमनुसृत्य उपसर्गान् पृथक्कृत्वा लिखत
(उदाहरण के अनुसार उपसर्ग अलग-अलग करके लिखिए)
यथा- संरक्षणाय – सम्
(i) प्रभवति – ……………………
(ii) उपलभ्यते – ……………………
(ii) निवसन्ति – ……………………
(iv) समुपहरन्ति – ……………………
(v) वितरन्ति – ……………………
(vi) प्रयच्छन्ति – ……………………
(vii) उपगता – ……………………
(vii) प्रतिभाति – ……………………
उत्तराणि:
(i) प्रभवति – प्र
(ii) उपलभ्यते – उप
(iii) निवसन्ति – नि
(iv) समुपहरन्ति – सम् + उप
(v) वितरन्ति – वि
(vi) प्रयच्छन्ति – प्र
(vii) उपगता – उप
(viii) प्रतिभाति – प्रति

(अ) उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितानां समस्तपदानां विग्रहं लिखत
(उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित समस्त पदों का विग्रह लिखिए)
यथा – तेजोवायुः – तेजः वायुः च।
गिरिनिर्झराः – गिरयः निर्झराः च।
(i) पत्रपुष्पे – ………………..
(ii) लतावृक्षौ – ………………..
(iii) पशुपक्षी – ………………..
(iv) कीटपतङ्गौ – ………………..
उत्तराणि:
(i) समस्तपद – विग्रहपद
(ii) पत्रपुष्पे – पत्रं पुष्पं च
(iii) लतावृक्षौ – लता वृक्षः च
(iv) पशुपक्षी – पशुः पक्षी च
(v) कीटपतङ्गौ – कीटः पतंगः च

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