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Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

HBSE 9th Class Sanskrit स्वर्णकाकः Textbook Questions and Answers

स्वर्णकाकः (सोने का कौआ) पाठ-परिचय

प्रस्तुत पाठ श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ नामक कथा संग्रह से लिया गया है। पद्मशास्त्री साहित्यायुर्वेदाचार्य, काव्यतीर्थ, साहित्य रत्न, शिक्षा शास्त्री और रसियन डिप्लोमा आदि उपाधियों से भूषित हैं। इन्हें सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार समिति
और राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा स्वर्ण पदक प्राप्त है।

इन्होंने स्वराज्यम् खण्डकाव्यम्, सिनेमा शतकम्, पद्यपञ्चतन्त्रम् तथा विश्वकथाशतकम् आदि अनेक रचनाओं को लिखा है। ‘विश्वकथाशतकम्’ विभिन्न देशों की सौ लोक कथाओं का संग्रह है। प्रस्तुत कथा वर्मा देश की एक श्रेष्ठ कथा है, जिसमें सच्चाई, त्याग और ईमानदारी के साथ-साथ लोभ और उसके दुष्परिणाम का वर्णन एक सुनहले पंखों वाले कौवे के माध्यम से किया गया है।

प्रस्तुत कथा के अनुसार एक वृद्ध स्त्री ने अपनी पुत्री को आदेश दिया कि धूप में रखे चावलों की पक्षियों से रक्षा करो। कुछ समय पश्चात् सोने के पंख एवं चाँदी की चोंच वाला एक कौआ उस बालिका के पास आकर चावलों को खाने लगा। बालिका ने कहा कि मेरी माता बहुत गरीब है, इसलिए तुम इन चावलों को मत खाओ। कौवे ने कहा कि तुम चिन्ता मत करो। तुम कल प्रातः गाँव के बाहर पीपल के वृक्ष के पीछे आना, मैं तुम्हें चावलों का मूल्य दे दूंगा।

अगले दिन बालिका वहाँ गई तो कौवे ने कहा कि मैं अपने महल में आने के लिए तुम्हारे लिए सीढ़ी उतारता हूँ। तुम बताओ कि सोने, चाँदी अथवा ताँबे की सीढ़ी में से कौन-सी सीढ़ी उतारूँ। बालिका ने कहा कि मैं गरीब हूँ इसलिए ताँबे की सीढ़ी उतार दो। परन्तु कौवे ने उसके लिए सोने की सीढ़ी भेजी। बालिका के कहने के बावजूद कौवे ने उसे सोने की थाली में खाना खिलाया। कौवे के पास सोने, ताँबे एवं चाँदी के संदूक थे। जब लड़की अपने घर आने लगी तौ कौवे ने बालिका से कहा कि तुम अपनी इच्छानुसार कोई एक सन्दूक ले लो। बालिका ने ताँबे के . संदूक को उठाया। जब वह घर आई तो देखा कि वह संदूक बहुमूल्य हीरों से भरा हुआ है।

उसी गाँव में एक लोभी वृद्ध स्त्री ने सारी बात जानने के पश्चात् अपनी पुत्री से वैसा करने के लिए कहा। कौवे ने लोभी स्त्री की लड़की को अपने पास बुलाया और पूछा कि तीनों संदूकों में तुम कौन-सा संदूक चाहती हो । लोभी लड़की ने लालचवश सबसे बड़ा सन्दूक उठाया। घर आकर उत्सुकतावश जैसे ही उसने उसे खोला उसमें से भयंकर काला साँप दिखाई पड़ा। लालची लड़की को लालच का फल मिल गया।

HBSE 9th Class Sanskrit स्वर्णकाकः Textbook Questions and Answers

I. अधोलिखितानां सूक्तिानां भावं हिन्दी भाषायां लिखत
(निम्नलिखित सूक्तियों के भाव हिन्दी भाषा में लिखिए)
(क) प्रहर्षिता बालिका निद्रामपि न लेभे।
(ख) ताम्रस्थाल्यामेवाहं निर्धना भोजनं करिष्यामि।
(ग) कथितमियदेव मदीयतण्डुलानां मूल्यम्।
(घ) लुब्धया लोभस्य फलं प्राप्तम्।
उत्तराणि:
(क) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ से संकलित पाठ ‘स्वर्णकाकः’ में से उद्धृत है। रोती हुई निर्धन बालिका से कौए ने कहा कि तुम कल प्रातःकाल पीपल के वृक्ष के पास आना। मैं तुम्हें चावलों का मूल्य दे दूंगा। कौए की इस बात को सुनकर बालिका के मन में अपार खुशी हुई। उस खुशी के परिणामस्वरूप बालिका सारी रात सो न सकी। क्योंकि अधिक खुशी अथवा गम से मनुष्य अपने स्वाभाविक कार्य को भी नहीं कर पाते हैं। इसी के चलते बालिका सो न सकी।

(ख) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ से संकलित पाठ ‘स्वर्णकाकः’ में से उद्धृत है। जब निर्धन बालिका कौए के बुलाने पर उसके महल में गई तो उसने उससे पूछा कि तुम सोने, चाँदी तथा ताँबे की थालियों में से किस थाली में भोजन करोगी तो बालिका ने कहा कि मैं निर्धन वृद्धा की बेटी हूँ इसलिए मैं ताँबे की थाली में ही भोजन करूँगी। इस कथन के माध्यम से बालिका ने अपने परिवेश एवं स्वभाव का परिचय दिया है। वह बालिका निर्धन परिवार की रहने वाली है। इसलिए उसके घर में सोने, चाँदी का प्रयोग ही नहीं होता इसलिए वह ताँबे की थाली में खाना खाने के लिए कहती है।

(ग) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ से संकलित पाठ ‘स्वर्णकाकः’ में से उद्धृत है। कौआ निर्धन बालिका का आदर-सत्कार करके उसे घर भेजने लगा तो उस बालिका के सामने उसने तीन सन्दूक रख दिए। बालिका ने तीनों सन्दूकों में से जो सबसे छोटी सन्दूक थी उसको ही उठाया और कहा कि-इतना ही है मेरे चावलों का मूल्य! इस कथन के माध्यम से कवि ने बालिका की सन्तोषी प्रवृत्ति का परिचय दिया है।

(घ) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ से संकलित पाठ ‘स्वर्णकाकः’ में से उद्धृत है। जब लोभी वृद्ध स्त्री की पुत्री स्वर्ण कौए के पास से आने लगी तो उसने सबसे बड़ा सन्दूक उठाया। यहीं पर उसके लोभी व्यक्तित्व का पता चल गया। घर आकर उत्सुकतावश जैसे ही उस सन्दूक को खोला उसमें से भयंकर साँप निकला। इस प्रकार उस लालची लड़की को लालच का फल मिल गया। कहाँ तो वह इस उम्मीद से गई थी कि निर्धन बालिका की तरह मुझे भी बहुमूल्य हीरे मिल जाएँगे। परन्तु उसके मन से लोभ की भावना नहीं गई। इसलिए उसे हीरों के स्थान पर भयंकर साँप मिला।

II. अधोलिखितान् गद्यांशान् पठित्वा प्रदत्त प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत
(निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर संस्कृत के पूर्ण वाक्यों में लिखिए)
(1) पुरा कस्मिंश्चिद् ग्रामे एका निर्धना वृद्धा स्त्री न्यवसत्। तस्याः च एका दुहिता विनम्रा मनोहरा चासीत्। एकदा माता स्थाल्यां तण्डुलान् निक्षिप्य पुत्रीम् आदिशत्-“सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष।” किञ्चित् कालादनन्तरम् एको विचित्रः काकः समुड्डीय तस्याः समीपम् अगच्छत्।
(क) माता स्थाल्यां कान् निक्षिप्य आदिदेश?
(ख) वृद्धा कुत्र न्यवसत्?
(ग) ‘आक्षिप्य’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः?
(घ) तस्याः दुहिता कीदृशी आसीत्?
(ङ) माता पुत्रीम् किम् आदिदेश?
उत्तराणि:
(क) माता स्थाल्यां तण्डुलान् निक्षिप्य आदिदेश।
(ख) वृद्धा कस्मिंश्चिद् ग्रामे न्यवसत्।
(ग) अत्र ‘ल्यप्’ प्रत्ययः प्रयुक्तः।
(घ) तस्याः दुहिता विनम्रा मनोहरा चासीत्।
(ङ) माता पुत्रीम् आदिदेश-सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष।

(2) नैतादृशः स्वर्णपक्षो रजतचञ्चुः स्वर्णकाकस्तया पूर्वं दृष्टः। तं तण्डुलान् खादन्तं हसन्तञ्च विलोक्य बालिका रोदितुमारब्धा। तं निवारयन्ती सा प्रार्थयत्-“तण्डुलान् मा भक्षय। मदीया माता अतीव निर्धना वर्तते।” स्वर्णपक्षः काकः प्रोवाच, मा शुचः।
(क) काकः कीदृशः अस्ति?
(ख) तं हसन्तं विलोक्य का रोदितुमारब्धाः?
(ग) सा किं प्रार्थयत्?
(घ) तया पूर्व कं न दृष्टः?
(ङ) मा शुचः इति कः उवाच?
उत्तराणि:
(क) काकः स्वर्णपक्षः रजतचञ्चुः अस्ति।
(ख) तं हसन्तं विलोक्य बालिका रोदितुमारब्धा।
(ग) सा प्रार्थयत् यत्-‘तण्डुलान् मा भक्षय’ ।
(घ) तया पूर्वं एतादृशः स्वर्णपक्षः रजतचञ्चुः काकं न दृष्टः।
(ङ) मा शुचः इति स्वर्णपक्षः काकः उवाच।

3. चिरकालं भवने चित्रविचित्रवस्तूनि सज्जितानि दृष्ट्वा सा विस्मयं गता। श्रान्तां तां विलोक्य काकः अवदत्- “पूर्वं लघुप्रातराशः क्रियताम्-वद त्वं स्वर्णस्थाल्यां भोजनं करिष्यसि किं वा रजतस्थाल्याम् उत ताम्रस्थाल्याम्”? बालिका अवदत्-ताम्रस्थाल्याम् एव अब-“निर्धना भोजनं करिष्यामि।”
(क) चित्रविचित्रवस्तूनि कुत्र सज्जितानि?
(ख) सज्जितानि कानि दृष्ट्वा सा विस्मयं गता?
(ग) ‘दृष्ट्वा’ इति पदे कः प्रत्ययः प्रयुक्तः?
(घ) श्रान्तां तां विलोक्य काकः किम् उवाच?
(ङ) बालिका किं अवदत्?
उत्तराणि:
(क) चित्रविचित्रवस्तूनि भवने सज्जितानि।
(ख) चित्रविचित्रवस्तूनि दृष्ट्वा सा विस्मयं गता।
(ग) ‘दृष्ट्वा’ अत्र क्त्वा प्रत्ययः प्रयुक्तः।
(घ) श्रान्तां तां विलोक्य काकः प्राह-पूर्वं लघुप्रातराशः क्रियताम्।
(ङ) बालिका अवदत्-अहं निर्धना ताम्रस्थाल्याम् एवं भोजनं करिष्यामि।

4. तस्मिन्नेव ग्रामे एका अपरा लुब्धा वृद्धा न्यवसत्। तस्या अपि एका पुत्री आसीत्। ईjया सा तस्य स्वर्णकाकस्य रहस्यम् ज्ञातवती। सूर्यातपे तण्डुलान् निक्षिप्य तयापि स्वसुता रक्षार्थं नियुक्ता। तथैव स्वर्णपक्षः काकः तण्डुलान् भक्षयन् तामपि तत्रैवाकारयत्।
(क) स्वर्णकाकस्य रहस्य का ज्ञातवती?
(ख) अपरा लुब्धा वृद्धा कुत्र न्यवसत्?
(ग) ‘सूर्यातपे’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरु।
(घ) ईर्ष्णया सा किम् अभिज्ञातवती?
(ङ) लुब्धा वृद्धा स्वसुतां कस्मिन् कार्ये नियुक्ता?
उत्तराणि:
(क) स्वर्णकाकस्य रहस्यं लुब्धायाः वृद्धायाः पुत्री ज्ञातवती।
(ख) तस्मिन्न एव ग्रामे अपरा लुब्धा वृद्धा न्यवसत् ।
(ग) सूर्य + आतपे।
(घ) ईjया सा स्वर्णकाकस्य रहस्यम् अभिज्ञातवती।
(ङ) लुब्धा वृद्धा स्वसुतां सूर्यातपे तण्डुलान् निक्षिप्य रक्षार्थं नियुक्ता।

5. लोभाविष्टा सा बृहत्तमा मञ्जूषां गृहीतवती। गृहमागत्य सा तर्षिता यावद् मञ्जूषामुद्घाटयति तावत् तस्यां भीषणः कृष्णसर्पो विलोकितः। लुब्धया बालिकया लोभस्य फलं प्राप्तम्। तदनन्तर सा लोभं पर्यत्यजत्।
(क) सा मञ्जूषायां कः विलोकितः?
(ख) लोभाविष्टा सा किं गृहीतवती?
(ग) ‘बृहत्तमां’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः?
(घ) मञ्जूषायां कः आसीत्?
(ङ) लुब्धया बालिकया किं प्राप्तम्?
उत्तराणि:
(क) सा मञ्जूषायां भीषणः कृष्णसर्पः विलोकितः।
(ख) लोभाविष्टा सां बृहत्तमा मञ्जूषां गृहीतवती।
(ग) अत्र ‘तमप्’ प्रत्ययः प्रयुक्तः।
(घ) मञ्जूषायां कृष्णसर्पः आसीत्।
(ङ) लुब्धया बालिकया लोभस्य फलं प्राप्तम्।

III. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) तस्याः दुहिता विनम्रा आसीत्।
(ख) अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि।
(ग) बालिका स्वर्णसोपानेन भवनम् आससाद।
(घ) बालिकया लोभस्य फलं प्राप्तम्।
(ङ) तस्यां कृष्णसर्पः विलोकितः।
उत्तराणि:
(क) तस्याः दुहिता कीदृशी आसीत् ?
(ख) अहं तुभ्यं किं दास्यामि?
(ग) बालिका केन भवनम् आससाद?
(घ) बालिकया कस्य फलं प्राप्तम्?
(ङ) तस्यां कः विलोकितः?

IV. अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमानुसारं पुनः लिखत
(निम्नलिखित वाक्यों को घटनाक्रम के अनुसार दोबारा लिखिए)
(अ)
(क) प्रहर्षिता बालिका निद्राम् अपि न लेभे।
(ख) सा पुत्रीम् आदिदेशयत् सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष।
(ग) काकः प्रोवाच मा शुचः अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि।
(घ) कस्मिंश्चिद् ग्रामे एका निर्धना वृद्धा न्यवसत्।
(ङ) स्वर्णकाकं निवारयन्ती सा प्रार्थयत्-तण्डुलान् मा भक्षय।
उत्तराणि:
(घ) कस्मिंश्चिद् ग्रामे एका निर्धना वृद्धा न्यवसत् ।
(ख) सा पुत्रीम् आदिदेशयत् सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष।
(ङ) स्वर्णकाकं निवारयन्ती सा प्रार्थयत्-तण्डुलान् मा भक्षय।
(ग) काकः प्रोवाच मा शुचः अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि।
(क) प्रहर्षिता बालिका निद्राम् अपि न लेभे।

(ब)
(क) प्रबुद्धः काकः तेन स्वर्णगवाक्षात् कथितं हहो बाले! त्वमागता।
(ख) स्वर्णकाकेन स्वर्णस्थाल्यां भोजनं परिवेषितम्।
(ग) वृक्षस्योपरि स्वर्णमयं प्रासादं विलोक्य सा आश्चर्यचकिता सजाता।
(घ) बालिका अवदत्-ताम्रस्थाल्याम् एवं निर्धना भोजनं करिष्यामि।
(ङ) श्रान्तां तां विलोक्य काकः प्राह-पूर्वं लघुप्रातराशः क्रियताम्।
उत्तराणि:
(ग) वृक्षस्योपरि स्वर्णमयं प्रासादं विलोक्य सा आश्चर्यचकिता सञ्जाता।
(क) प्रबुद्धः काकः तेन स्वर्णगवाक्षात् कथितं हंहो बाले! त्वमागता।
(ङ) श्रान्तां तां विलोक्य काकः प्राह-पूर्वं लघुप्रातराशः क्रियताम्।
(घ) बालिका अवदत्-ताम्रस्थाल्याम् एवं निर्धना भोजनं करिष्यामि।
(ख) स्वर्णकाकेन स्वर्णस्थाल्यां भोजनं परिवेषितम्।

(स)
(क) यावत् सा मञ्जूषाम् उद्घाटयति तावत् तस्यां कृष्ण सर्पः विलोकितः ।
(ख) तस्मिन् ग्रामे एका अपरा लुब्धा वृद्धाः न्यवसत् ।
(ग) भोजनानन्तरं स्वर्णकाके तत्पुरः तिस्रः मञ्जूषाः समुक्षिप्ता।
(घ) स्वर्णकाकस्य रहस्यं ज्ञात्वा तयापि स्वसुतां तण्डुलानां रक्षार्थं नियुक्ता।
(ङ) स्वर्णकाकः तण्डुलान् भक्षयन् तामपि तत्रैवाकारयत।
उत्तराणि:
(ख) तस्मिन् ग्रामे एका अपरा लुब्धा वृद्धाः न्यवसतु।
(घ) स्वर्णकाकस्य रहस्यं ज्ञात्वा तयापि स्वसुतां तण्डुलानां रक्षार्थं नियुक्ता।
(ङ) स्वर्णकाकः तण्डुलान् भक्षयन् तामपि तत्रैवाकारयत।
(ग) भोजनानन्तरं स्वर्णकाके तत्पुरः तिस्रः मञ्जूषाः समुक्षिप्ता।
(क) यावत् सा मञ्जूषाम् उद्घाटयति तावत् तस्यां कृष्ण सर्पः विलोकितः।

v. अधोलिखित प्रश्नानाम् चतुषु वैकल्पिक-उत्तरेषु उचितमुत्तरं चित्वा लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए चार विकल्पों में से उचित उत्तर का चयन कीजिए)
1. माता कान् स्थाल्यां निक्षिप्य पुत्रीम् आदिदेश?
(i) तण्डुलान्
(ii) फलान्
(iii) धनान्
(iv) अन्नान्
उत्तरम्
(i) तण्डुलान्

2. स्वर्णकाकस्य प्रासादः कुत्र आसीत?
(i) वृक्षस्यमध्ये
(ii) वृक्षस्योऽधः
(iii) वृक्षस्यऽन्ते
(iv) वृक्षस्योपरि
उत्तरम्:
(iv) वृक्षस्योपरि

3. स्वर्णकाकेन कस्यां भोजनं परिवेषितम्?
(i) रजतस्थाल्याम्
(ii) लौहस्थाल्याम्
(iii) स्वर्णस्थाल्याम्
(iv) धातु स्थाल्याम्
उत्तरम्:
(iii) स्वर्णस्थाल्याम्
(ii) द्विगुः
4. मञ्जूषायां महार्हाणि कानि विलोक्य सा प्रहर्षिता?
(i) रजतानि
(ii) धनानि
(iii) स्व र्णानि
(iv) हीरकाणि
उत्तरम्:
(iv) हीरकाणि

5. लुब्धया बालिका कस्य फलं प्राप्तम्?
(i) परिश्रमस्य
(ii) तण्डुलस्य
(iii) लोभस्य
(iv) काकस्य
उत्तरम्
(iii) लोभस्य

6. ‘इत्युक्त्वा’ पदे कः सन्धिविच्छेदः अस्ति?
(i) इती + उक्त्वा
(ii) इति + उक्त्वा
(iii) इति + क्त्वा
(iv) इति + त्वा
उत्तरम्:
(ii) इति + उक्त्वा

7. ‘वृक्षस्य + उपरि’ अत्र किं सन्धिपदम्?
(i) वृक्षस्योपरि
(ii) वृक्षोपरि
(iii) वृक्षउपरि
(iv) वक्षस्योपरि
उत्तरम्:
(i) वृक्षस्योपरि

8. ‘स्वर्णकाकः’ इति पदे कः समासः?
(i) कर्मधारयः
(iii) तत्पुरुषः
(iv) द्वन्द्वः
उत्तरम्:
(iii) तत्पुरुषः

9. ‘सूर्यास्तः’ इति पदस्य विलोम पदं लिखत
(i) सुर्योदयः
(ii) सूर्योदयः
(iii) सर्वोदयः
(iv) सूयोदयः
उत्तरम्:
(ii) सूर्योदयः

10. ‘हसन्’ इति पदस्य प्रकृति-प्रत्ययम् अस्ति
(i) हस् + शतृ
(ii) हन् + शतृ
(iii) हस् + क्त
(iv) हन् + ठक्
उत्तरम्:
(i) हस् + शतृ

11. ‘पर्वत’ शब्दस्य पञ्चमी एकवचने किं रूपं स्यात्?
(i) पर्वतस्य
(ii) पर्वतात्
(iii) पर्वते
(iv) पर्वतः
उत्तरम्:
(i) पर्वतात्

12. ‘अधः’ इति पदस्य विलोमपदं किम्?
(i) उपरि
(ii) ऊपरि
(iii) अपरि
(iv) ओपरि
उत्तरम्:
(i) उपरि

योग्यताविस्तारः

स्वर्णकाकः पाठ श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम’ नामक कथा-संग्रह से लिया गया है जिसमें विभिन्न देशों की सौ लोक कथाओं का संग्रह है। यह वर्मा देश की एक श्रेष्ठ कथा है जिसमें लोभ और उसके दुष्परिणाम के साथ-साथ त्याग और उसके सुपरिणाम का वर्णन एक सुनहले पंखों वाले कौवे के माध्यम से किया गया है।

लेखक परिचय इस कथा के लेखक पद्म शास्त्री हैं। ये साहित्यायुर्वेदाचार्य, काव्यतीर्थ, साहित्यरत्न, शिक्षाशास्त्री और रसियन डिप्लोमा आदि उपाधियों से भूषित हैं। इन्हें विद्याभूषण व आशुकवि मानद उपाधियाँ भी प्राप्त हैं। इन्हें सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार समिति और राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा स्वर्णपदक प्राप्त है। इनकी अनेक रचनाएँ हैं, जिनमें कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं
1. सिनेमाशतकम्
2. स्वराज्यम् खण्डकाव्यम्
3. लेनिनामृतम् महाकाव्यम्
4. मदीया सोवियत यात्रा
5. पद्यपञ्चतन्त्रम्
6. बङ्गलादेशविजयः
7. लोकतन्त्रविजयः
8. विश्वकथाशतकम्
9. चायशतकम्
10. महावीरचरितामृतम्

1. भाषिक-विस्तार-“किसी भी काम को करके” इस अर्थ में ‘क्त्वा’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।
यथा- पठित्वा पठ् + क्त्वा = पढ़कर
गत्वा-गम् + क्त्वा = जाकर
ख़ादित्वा खाद् + क्त्वा = खाकर

इसी अर्थ में यदि धातु (क्रिया) से पहले उपसर्ग होता है तो ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग होता है। धातु से पूर्व उपसर्ग होने की स्थिति में कभी भी ‘क्त्वा’ प्रत्यय का प्रयोग नहीं हो सकता और उपसर्ग न होने की स्थिति में कभी भी ‘ल्यप् प्रत्यय नहीं हो सकता है।

यथा- उप + गम् + ल्यप् = उपगम्य
सम् + पूज् + ल्यप् = सम्पूज्य
वि + लोकृ (लोक) + ल्यप् = विलोक्य
आ + दा + ल्यप् = आदाय .
निर् + गम् + ल्यप् = निर्गत्य

2. प्रश्नवाचक शब्दों को अनिश्चयवाचक बनाने के लिए चित् और चन निपातों का प्रयोग किया जाता है। ये निपात जब सर्वनाम पदों के साथ लगते हैं तो सर्वनाम पद होते हैं और जब अव्यय पदों के साथ प्रयुक्त होते हैं तो अव्यय होते हैं।

यथा- कः = कौन
कः + चन + कश्चन = कोई
कः + चित् + कश्चित् = कोई
के + चन + केचन कोई (बहवचन में)
के + चित् + केचित् (बहुवचन में)
का + चन + काचन (कोई स्त्री)
का + चित् + काचित् ( कोई स्त्री)
काः + चन + काश्चन (कुछ स्त्रियाँ बहुवचन)
काः + चित् + काश्चित् (कुछ स्त्रियाँ बहुवचन में)

किम् शब्द के सभी वचनों, लिंगों व सभी विभक्तियों में चित् और चन का प्रयोग किया जा सकता है और उसे अनिश्चयवाचक बनाया जा सकता है।
जैसे
1. किज्चित् – प्रथमा में
2. केनचित् – तृतीया में
3. केषाज्चित् (केषाम् + चित) – षष्ठी में
4. कस्मिंश्चित् – सप्तमी में
5. कस्याज्चित् – सप्तमी (स्त्रीलिङ्ग में)

इसी तरह चित् के स्थान पर चन का प्रयोग होता है। चित् और चन जब अव्ययपदों में लग जाते हैं तो वे अव्यय हो जाते हैं। जैसे-
क्वचित् – क्वचन
कदाचित् – कदाचन

3. संस्कृत में एक से चतुर (चार) तक संख्यावाची शब्द पुंल्लिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग तथा नपुंसकलिङ्ग में अलग-अलग रूपों में होते हैं पर पञ्च (पाँच) से उनका रूप सभी लिड्रों में एक-सा होता है।

पुंलिख्ण स्थीलिक्र नपुंसकलिड्न
एक: एका एकम्
द्वै द्वे द्वे
त्रयः तिस्र: त्रीणि
चत्वारः चतस्र: चत्वारि

पुंल्लिड्

एकबचन द्विवचन बहुबचन
गच्ठन गच्छन्तौ गच्छन्तः
गच्छन्तम् गच्छन्तौ गच्छतः
गच्छता गच्छद्भ्याम् गच्दिः
गच्छते गच्छद्भ्याम् गच्ठदूभ्य:
गच्छतः गच्छद्भ्याम् गच्छदूभ्य:
गच्छतः गच्छतो: गच्छताम्
गच्छति गच्छतो: गच्छत्सु

स्त्रीलिङ्

गच्छन्ती गच्छन्त्यौ गच्छन्त्यः
गच्छन्तीम् गच्छन्त्यौ गच्छन्ती:
गच्छन्त्या गच्छन्तीभ्याम् गच्छन्तीभिः
गच्छन्तयै गच्छन्तीभ्याम् गच्छन्तीभ्यः
गच्छन्त्या: गच्छन्तीभ्याम् गच्छन्तीभ्यः
गच्छन्त्या: गच्छन्त्यो: गच्छन्तीनाम्
गच्छन्त्याम् गच्छन्त्यो: गन्छन्तीषु

नपुंसक लिक्ग में

गच्छत् गच्छती गच्छन्ती
गच्छत् गच्छती गच्छन्ती

शेष पुंल्लिङ्गवत्
4. तरप् और तमप् प्रत्ययों में तर और तम शेष बचता है।
यथा- बलवत् + तरप् – बलवत्तरं
लघु + तमप् – लघुतम
ये तुलनावाची प्रत्यय हैं। इनके उदाहरण देखें

लघु लघुतर लघुतम
महत महत्तर महत्तम
श्रेष्ठ श्रेष्ठतर श्रेष्ठतम
मधुर मधुरतर मधुरतम
गुरु गुरुतर गुरुतम
तीव्र तीव्रतर तीव्रतम
प्रिय प्रियतर प्रियतम

अध्येतव्यः ग्रन्थः-विश्वकथाशतकम् (भागद्वयम्, 1987, 1988 पद्म शास्त्री, देवनागर प्रकाशन, जयपुर)

HBSE 9th Class Sanskrit स्वर्णकाकः Important Questions and Answers

स्वर्णकाकः गद्यांशों के सप्रसंग हिन्दी सरलार्थ एवं भावार्थ

1. पुरा कस्मिंश्चिद् ग्रामे एका निर्धना वृद्धा स्त्री न्यवसत्। तस्याः च एका दुहिता विनम्रा मनोहरा चासीत्। एकदा माता स्थाल्यां तण्डुलान् निक्षिप्य पुत्रीम् आदिशत्-“सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो . रक्ष।” किञ्चित् कालादनन्तरम् एको विचित्रः काकः समुड्डीय तस्याः समीपम् अगच्छत।

नैतादृशः स्वर्णपक्षो रजतचञ्चु स्वर्णकाकस्तया पूर्वं दृष्टः। तं तण्डुलान् खादन्तं हसन्तञ्च विलोक्य बालिका रोदितुमारब्धा। तं निवारयन्ती सा प्रार्थयत्- “तण्डुलान् मा भक्षय। मदीया माता अतीव निर्धना वर्तते।” स्वर्णपक्षः काकः प्रोवाच, “मा शुचः। सूर्योदयात्याग ग्रामाबहिः पिप्पलवृक्षमनु त्वया आगन्तव्यम्। अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि।” प्रहर्षिता बालिका निद्रामपि न लेभे।

शब्दार्थ निर्धना = गरीब। न्यवसत् (नि + अवसत्) = निवास करती थी। तस्याः च एका दुहिता = उसकी एक पुत्री। विनम्रा = विनम्र। मनोहरा = सुन्दर, आकर्षक। स्थाल्यां = थाली में। तण्डुलान् = चावलों की। आदिशत् = आज्ञा दी। खगेभ्यो = पक्षियों से। किञ्चित् कालादनन्तरम् (किञ्चिद् + कालात् + अनन्तर) = थोड़ी देर के बाद। विचित्रः = अनोखा। समुड्डीय = उड़कर। नैतादृशः = ऐसा। स्वर्णपक्षो = सोने के पंख वाला। रजतचञ्चुः = चाँदी की चोंच वाला। स्वर्णकाकस्तया = सोने का कौआ। खादन्तं = खाता हुआ। हसन्तञ्च = हँसता हुआ। विलोक्य = देखकर। रोदितमारब्धा = रोना। निवारयन्ती = रोकती हुई। प्रार्थयत् = प्रार्थना की। मा भक्षय = मत खाओ। मदीया = मेरी। प्रोवाच = कहा। मा शुचः = दुःख मत करो। सूर्योदयात् = सूर्योदय से। बहिः = बाहर। पिप्पलवृक्षमनु = पीपल का पेड़। प्रहर्षिता = प्रसन्न। निद्रामपि न लेभे = नींद भी नहीं आई।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘स्वर्णकाकः’ से उद्धृत है। यह पाठ श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ कथा-संग्रह से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश इस गद्यांश में बालिका द्वारा सूखते हुए चावल की रक्षा एवं कौवे द्वारा बालिका को अपने निवास स्थान पर बुलाने की कथा का वर्णन किया गया है।

सरलार्थ प्राचीन काल में किसी गाँव में एक निर्धन वृद्ध स्त्री रहती थी। उसकी एक बहुत विनम्र तथा सुन्दर पुत्री थी। एक बार उसकी माता ने थाली में चावल रखकर अपनी पुत्री को आदेश दिया-“सूर्य की धूप में चावलों की पक्षियों से रक्षा करो।” कुछ . समय पश्चात् एक अनोखा कौआ उड़कर उसके पास आ गया।

उसने (बालिका ने) सोने के पंख वाला तथा चाँदी की चोंच वाला ऐसा सोने का कौआ पहले नहीं देखा था। उस पक्षी को चावल खाते हुए तथा हँसते हुए देखकर बालिका रोने लगी। उसे रोकती हुई वह प्रार्थना करने लगी-“चावल मत खाओ। मेरी माता बहुत गरीब है।” सोने के पंख वाला कौआ बोला-“दुःखी मत हो। तुम सूर्योदय से पहले गाँव के बाहर पीपल के वृक्ष के पीछे आना। मैं तुम्हें चावलों का मूल्य दे दूंगा।” प्रसन्न बालिका को नींद भी नहीं आई।

भावार्थ कौवे ने रोती हुई बालिका से कहा कि मैंने जितना भी चावल खाया है, उसका मूल्य तुम्हें चुका दूँगा। इसके लिए तुम्हें पीपल के वृक्ष के पीछे आना पड़ेगा।

2. सूर्योदयात्पूर्वमेव सा तत्रोपस्थिता। वृक्षस्योपरि विलोक्य सा च आश्चर्यचकिता सञ्जाता यत् तत्र स्वर्णमयः प्रासादो वर्तते। यदा काकः शयित्वा प्रबुद्धस्तदा तेन स्वर्णगवाक्षात्कथितं “हहो बाले! त्वमागता, तिष्ठ, अहं त्वत्कृते सोपानमवतारयामि, तत्कथय स्वर्णमयं रजतमयम् ताम्रमयं वा”? कन्या अवदत् “अहं निर्धनमातुः दुहिता अस्मि। ताम्रसोपानेनैव आगमिष्यामि।” परं स्वर्णसोपानेन सा स्वर्ण भवनम् आरोहत।

चिरकालं भवने चित्रविचित्रवस्तूनि सज्जितानि दृष्ट्वा सा विस्मयं गता। श्रान्तां तां विलोक्य काकः अवदत्- “पूर्वं लघुप्रातराशः क्रियताम्-वद त्वं स्वर्णस्थाल्यां भोजनं करिष्यसि किं वा रजतस्थाल्याम उत ताम्रस्थाल्याम्”? बालिका अवदत्-ताम्रस्थाल्याम् एव अहं “निर्धना भोजनं करिष्यामि।” तदा सा आश्चर्यचकिता सजाता यदा स्वर्णकाकेन स्वर्णस्थाल्यां भोजनं “परिवेषितम्” । न एतादृशम् स्वादु भोजनमद्यावधि बालिका खादितवती। काकोऽवदत्-बालिके! अहमिच्छामि यत् त्वम् सर्वदा अत्रैव तिष्ठ परं तव माता तु एकाकिनी वर्तते। अतः “त्वं शीघ्रमेव स्वगृहं गच्छ।” ।

शब्दार्थ-तत्रोपस्थिता (तत्र + उपस्थिता) = वहाँ पहुँच गई। आश्चर्यचकिता = हैरान, आश्चर्य से चकित। सजाता = हो गई। स्वर्णमयः = सोने का। प्रासादो = महल। स्वर्णगवाक्षात्कथितं = सोने की खिड़की से। प्रबुद्ध = जगा। हहो बाले! = हे बालिके। सोपानमवतारयामि = सीढ़ी मैं उतारता हूँ। तत्कथ्य = तुम्हारे लिए। अवदत् = कहा। चित्रविचित्रवस्तूनि = विभिन्न रंगों की वस्तुएँ। सज्जितानि = तैयार, सजी हुई। विस्मयं गता = हैरान हो गई। श्रान्तां तां = थकी हुई। लघुप्रातराशः = हल्का नाश्ता। परिवेषितम् = परोसा। न एतादृक् = न ऐसा देखा। स्वादु = स्वादिष्ट। भोजनमद्यावधि = आज तक। खादितवती = खाया। अवदत् = बोला। सर्वदा = हमेशा। अत्रैव = यहीं पर। एकाकिनी = अकेली।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘स्वर्णकाकः’ से उद्धृत है। यह पाठ श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ कथा-संग्रह से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश इस गद्यांश में बताया गया है कि वह बालिका कौवे के पास गई जहाँ उसने उसका आदर-सत्कार किया।

सरलार्थ-वह (बालिका) सूर्योदय से पूर्व ही वहाँ पहुँच गई। वृक्ष के ऊपर देखकर वह हैरान हो गई कि वहाँ सोने का महल है। जब कौआ सोकर जागा तो उसने सोने की खिड़की में से कहा हे बालिके! तुम आ गई, ठहरो, मैं तुम्हारे लिए सीढ़ी उतारता हूँ। बताओ सोने की, चाँदी की या ताँबे की? बालिका बोली-“मैं निर्धन माता की बेटी हूँ। मैं ताँबे की सीढ़ी से ही आऊँगी।” किन्तु वह सोने की सीढ़ी से महल में पहुंची।

वह बालिका महल में भिन्न-भिन्न रंगों से सजी हुई वस्तुओं को बहुत समय तक देखकर हैरान हो गई। थकी हुई उस बालिका को देखकर कौवे ने कहा-“पहले तुम थोड़ा नाश्ता कर लो” बोलो तुम सोने की थाली में भोजन करोगी, चाँदी की थाली में या फिर ताँबे की थाली में?” बालिका ने कहा-मैं निर्धना ताँबे की थाली में ही भोजन करूँगी। वह बालिका तब आश्चर्यचकित रह गई जब सोने के कौवे ने सोने की थाली में भोजन परोसा। उस बालिका ने ऐसा स्वादिष्ट भोजन पहले कभी नहीं खाया था। कौआ कहने लगा हे बालिके! मैं चाहता हूँ कि तुम हमेशा यहीं रहो, परन्तु तुम्हारी माता अकेली है, अतः तुम शीघ्र अपने घर चले जाओ।

भावार्थ-बालिका एवं कौवे के आपसी बातचीत में यहाँ बताया गया है कि व्यक्ति को अपने खान-पान, परिवेश एवं वातावरण के अनुसार ही आचरण करना चाहिए। जैसा उस बालिका ने निर्धन होने के कारण सोने-चाँदी की सीढ़ी एवं थाली की जगह ताँबे की ही सीढ़ी एवं थाली माँगी। जबकि कौवे ने उसके आचरण से प्रसन्न होकर सोने की सीढ़ी एवं थाली दी।

3. इत्युक्त्वा काकः कक्षाभ्यन्तरात् तिस्रः मञ्जूषाः निस्सार्य तां प्रत्यवदत्-“बालिके! यथेच्छं गृहाण
मञ्जूषामेकाम्।” लघुतमा मञ्जूषां प्रगृह्य बालिकया कथितम् इयत् एव मदीयतण्डुलानां मूल्यम्। गृहमागत्य तया मञ्जूषा समुद्घाटिता, तस्यां महार्हाणि हीरकाणि विलोक्य सा प्रहर्षिता तद्दिनाद्धनिका च सजाता।

तस्मिन्नेव ग्रामे एका अपरा लुब्धा वृद्धा न्यवसत् । तस्या अपि एका पुत्री आसीत् । ईर्ष्णया सा तस्य स्वर्णकाकस्य रहस्यम् ज्ञातवती। सूर्यातपे तण्डुलान् निक्षिप्य तयापि स्वसुता रक्षार्थं नियुक्ता। तथैव स्वर्णपक्षः काकः तण्डुलान् भक्षयन् तामपि तत्रैवाकारयत्। प्रातस्तत्र गत्वा सा काकं निर्भर्त्सयन्ती प्रावोचत्-“भो नीचकाक! अहमागता, मह्यं तण्डुलमूल्यं प्रयच्छ।”

शब्दार्थ-इत्युक्त्वा (इति + उक्त्वा) = ऐसा कहकर। कक्षाभ्यन्तरात् तिम्रः = कमरे के अन्दर से तीन। मञ्जूषाः = बक्से। निस्सार्य = निकालकर । यथेच्छं (यथा + इच्छ) = इच्छानुसार । प्रगृह्य = लेकर । कथितम् = कहा इतना ही है। समुद्घाटिता = खोला। महार्हाणि (महा + अाणि) = बहुमूल्य । हीरकाणि = हीरों को। तद्दिनाद्धनिका (तद् + दिनात्) = उस दिन से। सजाता = बन गई। एका अपरा = एक दूसरी । लुब्धा = लालची। ईjया = ईर्ष्या से। रहस्यम् = रहस्य। ज्ञातवती = जान लिया। स्वर्णपक्षः = सोने के पंखों वाला। भक्षयन् = खाते हुए। तत्रैवाकारयत् = बुलाया। निर्भर्त्सयन्ती = निन्दा करती हुई। भो नीचकाकः = हे नीच कौवे। अहमागता (अहम् + आगता) = मैं आ गई।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘स्वर्णकाकः’ से उद्धृत है। यह पाठ श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ कथा-संग्रह से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश-प्रस्तुत गद्यांश में बताया गया है कि उस निर्धन बालिका की कहानी किसी अन्य लोभी वृद्धा को पता चल गई। उसकी लड़की भी उसी कौवे के पास सहायता के लिए गई।

सरलार्थ ऐसा कहकर कौआ कमरे के अन्दर से तीन बक्से निकालकर बोला-“हे बालिके! इच्छानुसार एक सन्दूक ले लो।” सबसे छोटा सन्दूक लेकर बालिका ने कहा-इतना ही है मेरे चावलों का मूल्य।

घर आकर उसने सन्दूक खोला। उसमें बहुमूल्य हीरों को देखकर वह बहुत प्रसन्न हुई तथा उस दिन से वह धनवान बन गई।
उसी गाँव में एक दूसरी लोभी वृद्ध स्त्री रहती थी। उसकी भी एक बेटी थी। ईर्ष्या के कारण उसने उस स्वर्ण कौए का रहस्य जान लिया। सूर्य की धूप में चावल रखकर उसने भी अपनी पुत्री को उनकी रक्षा का आदेश दिया। उसी प्रकार सोने के पंख वाले . कौए ने चावल खाते हुए उसे वहीं बुलाया। प्रातःकाल वहाँ जाकर कौवे की निन्दा करते हुए उसने कहा-“हे नीच कौए! मैं आ गई हूँ, मुझे भी चावलों का मूल्य दो।”

भावार्थ “बिन माँगे मोती मिले माँगे मिले न भीख” वाली कहावत इस गद्यांश में चरितार्थ हुई है। निर्धन बालिका ने उस सोने के कौए से कुछ भी नहीं माँगा। उसने अपने परिवार की स्थिति के अनुसार आचरण किया जिससे वह धनवान हो गई। दूसरी तरफ लोभ एवं लालच का परिणाम बुरा होता है।

4. काकोऽब्रवीत्-“अहं त्वत्कृते सोपानम् अवतारयामि। तत्कथय स्वर्णमयं रजतमयं ताम्रमयं वा।” गर्वितया बालिकया प्रोक्तम्-“स्वर्णमयेन सोपानेन अहम् आगच्छामि।” परं स्वर्णकाकस्तत्कृते ताम्रमयं सोपानमेव प्रायच्छत् । स्वर्णकाकस्तां भोजनमपि ताम्रभाजने एवं अकारयत्। प्रतिनिवृत्तिकाले स्वर्णकाकेन कक्षाभ्यन्तरात् त्तिस्रः मञ्जूषाः तत्पुरः समुस्लिप्ताः। लोभाविष्टा सा बृहत्तमा मञ्जूषां गृहीतवती। गृहमागत्य सा तर्षिता यावद् मञ्जूषामुद्घाटयति तावत् तस्यां भीषणः कृष्णसर्पो विलोकितः। लुब्धया बालिकया लोभस्य फलं प्राप्तम् । तदनन्तर सा लोभं पर्यत्यजत्।

शब्दार्थ सोपानम् अवतारयामि = सीढ़ी उतारता हूँ। गर्वितया = घमण्ड से। प्रायच्छत् = दिया। प्रतिनिवृत्तिकाले = वापिस लौटते समय। तत्पुरः = उसके सामने। बृहत्तमां = सबसे बड़ी। गृहीतवती = ग्रहण की। तर्षिता = उत्सुक। भीषणः = भयङ्कर। विलोकितः = देखा गया। पर्यत्यजत् = त्याग दिया।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘स्वर्णकाकः’ से उद्धृत है। यह .. पाठ श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ कथा-संग्रह से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस गद्यांश में बताया गया है कि लोभ एवं लालच का परिणाम बुरा होता है।

सरलार्थ कौए ने कहा-“मैं तुम्हारे लिए सीढ़ी उतारता हूँ। तो बोलो सोने की, चाँदी की या ताँबे की कौन-सी उतारूँ?” घमण्डी बालिका ने कहा-“मैं सोने की सीढ़ी से आऊँगी, परन्तु सोने के कौए ने उसे ताँबे की सीढ़ी ही दी। सोने के कौवे ने उसे भोजन भी ताँबे के बर्तन में ही करवाया। वापिस लौटते समय सोने के कौए ने कमरे के अन्दर से तीन पेटियाँ लाकर उसके सामने रखीं। उस लोभी लड़की ने सबसे बड़ी पेटी ली। घर आकर उत्सुकतावश जैसे ही उसने उस पेटी को खोला, वैसे ही उसमें भयंकर काला साँप देखा। लोभी लड़की को लालच का फल मिल गया। उसके बाद उसने लोभ का परित्याग कर दिया।

भावार्थ-उस लोभी लड़की ने अपने पारिवारिक परिस्थिति के विपरीत सोने की सीढ़ी तथा बड़ी पेटी की इच्छा की। परन्तु कौए ने उसे ताँबे की सीढ़ी एवं पेटी में भयङ्कर साँप दिया। अतः यह कहना उचित ही है कि लोभ का परिणाम बुरा होता है।

अभ्यासः
1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(एक पद में उत्तर लिखिए)
(क) माता काम् आदिशत्?
(ख) स्वर्णकाकः कान् अखादत् ?
(ग) प्रासादः कीदृशः वर्तते?
(घ) गृहमागत्य तया का समुद्घाटिता?
(ङ) लोभविष्टा बालिका कीदृशी मञ्जूषां नयति?
उत्तराणि:
(क) पुत्रीम्,
(ख) तण्डुलान्,
(ग) स्वर्णमयः,
(घ) मञ्जूषाः,
(ङ) बृहत्तमां।

(अ) अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) निर्धनायाः वृद्धायाः दुहिता कीदृशी आसीत्?
(ख) बालिकया पूर्व कीदृशः काकः न दृष्टः आसीत्?
(ग) निर्धनायाः दुहिता मञ्जूषायां कानि अपश्यत्?
(घ) बालिका किं दृष्ट्वा आश्चर्यचकिता जाता?
(ङ) गर्विता बालिका कीदृशं सोपानम् अयाचत् कीदृशं च प्राप्नोत् ?
उत्तराणि
(क) निर्धनायाः वृद्धायाः दुहिता विनम्रा मनोहरा आसीत्।
(ख) बालिकया पूर्वं स्वर्णपक्षः रजतचञ्चुः स्वर्णकाकः न दृष्टम् आसीत्।
(ग) निर्धनायाः दुहिता मञ्जूषायां महार्हाणि हीरकाणि अपश्यत्।
(घ) बालिका वृक्षस्योपरि स्वर्णमयं प्रासादं दृष्ट्वा आश्चर्यचकिता जाता।
(ङ) गर्विता बालिका स्वर्णमयं सोपानम् अयाचत् परं सा ताम्रमयं सोपानमेव प्राप्नोत् ।

2. (क) अधोलिखितानां शब्दानां विलोमपदं पाठात् चित्वा लिखत
(निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द पाठ से चुनकर लिखिए)
(i) पश्चात् ……………………….
(ii) हसितुम् ……………………….
(iii) अधः ……………………….
(iv) श्वेतः ……………………….
(v) सूर्यास्तः ……………………….
(vi) सुप्तः ……………………….
उत्तराणि:
(i) पश्चात् – पूर्वम्
(ii) हसितुम् – रोदितुम्
(iii) अधः – उपरि
(iv) श्वेतः – कृष्णः
(v) सूर्यास्तः – सूर्योदयः
(vi) सुप्तः – प्रबुद्धः

(ख) सन्धिं – कुरुत
(सन्धि कीजिए)
(i) नि + अवसत् ……………………….
(ii) सूर्य + उदयः ……………………….
(iii) वृक्षस्य + उपरि ……………………….
(iv) हि + अकारयत् ……………………….
(v) च + एकाकिनी ……………………….
(vi) इति + उक्त्वा ……………………….
(vii) प्रति + अवदत् ……………………….
(vii) प्र + उक्तम् ……………………….
(ix) अत्र + एव ……………………….
(x) तत्र + उपस्थिता ……………………….
(xi) यथा + इच्छम् ……………………….
उत्तराणि:
(i) नि + अवसत् – न्यवसत्
(ii) सूर्य + उदयः – सूर्योदयः
(iii) वृक्षस्य + उपरि – वृक्षस्योपरि
(iv) हि + अकारयत् – ह्यकारयत्
(v) च + एकाकिनी – चैकाकिनी
(vi) इति + उक्त्वा – इत्युक्त्वा
(vii) प्रति + अवदत् – प्रत्यवदत्
(viii) प्र + उक्तम् – प्रोक्तम्
(ix) अत्र + एव – अत्रैव
(x) तत्र + उपस्थिता – तत्रोपस्थित
(xi) यथा + इच्छम् – यथेच्छम्

3. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) ग्रामे निर्धना स्त्री अवसत्।
(ख) स्वर्णकाकं निवारयन्ती बालिका प्रार्थयत्।
(ग) सूर्योदयात् पूर्वमेव बालिका तत्रोपस्थिता।
(घ) बालिका निर्धनमातुः दुहिता आसीत्।
(ङ) लुब्धा वृद्धा स्वर्णकाकस्य रहस्यमभिज्ञातवती।
उत्तराणि:
(क) ग्रामे का अवसत्?
(ख) कं निवारयन्ती बालिका प्रार्थयत्?
(ग) कस्मात् पूर्वमेव बालिका तत्रोपस्थिता?
(घ) बालिका कस्याः दुहिता आसीत् ? ।
(ङ) लुब्धा वृद्धा कस्य रहस्यमभिज्ञातवती?

4. प्रकृति-प्रत्यय-संयोगं कुरुत-(पाठात् चित्वा वा लिखत)
(प्रकृति-प्रत्यय-संयोग-कीजिए)
(क) वि + लो + ल्यप् ……………………….
(ख) नि + क्षिप् + ल्यप् ……………………….
(ग) आ + गम् + ल्यप् ……………………….
(घ) दृश् + क्त्वा ……………………….
(ङ) शी + क्त्वा ……………………….
(च) लघु + तमप् ……………………….
उत्तराणि:
(क) वि + लोकृ + ल्यप् – विलोक्य
(ख) नि + क्षिप् + ल्यप् – निक्षिप्य
(ग) आ + गम् + ल्यप् – आगम्य
(घ) दृश् + क्त्वा – दृष्ट्वा
(ङ) शी + क्त्वा – शयित्वा
(च) लघु + तमप् – लघुतमम्

5. प्रकृतिप्रत्यय-विभागं कुरुत
(प्रकृति-प्रत्यय का विभाजन कीजिए)
(क) रोदितुम् ……………………….
(ख) दृष्ट्वा ……………………….
(ग) विलोक्य ……………………….
(घ) निक्षिप्य ……………………….
(ङ) आगत्य ……………………….
(च) शयित्वा ……………………….
(छ) लघुतमम् ……………………….
उत्तराणि:
(क) रोदितुम् – रुद् + तुमुन्
(ख) दृष्ट्वा – दृश् + क्त्वा
(ग) विलोक्य – वि + लोक + ल्यप्
(घ) निक्षिप्य – नि + क्षिप् + ल्यप्
(ङ) आगत्य – आ + गम् + ल्यप्
(च) शयित्वा – शी + क्त्वा
(छ) लघुतमम् – लघु + तमप्

6. अधोलिखितानि कथनानि कः/का, कं/कां च कथयति
(निम्नलिखित कथनों को कौन व किसे कहता है)
कथनानि                                    कः/का     क/काम्
(क) पूर्वं प्रातराशः क्रियताम्। ………………………., ……………………….
(ख) सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष। ………………………., ……………………….
(ग) तण्डुलान् मा भक्षय। ………………………., ……………………….
(घ) अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि। ………………………., ……………………….
(ङ) भो नीचकाक! अहमागता, मह्यं ………………………., ……………………….
तण्डुलमूल्यं प्रयच्छ।
उत्तराणि:

7. उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकगतेषु पदेषु पञ्चमीविभक्तेः प्रयोगं कृत्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
(उदाहरण का अनुसरण करते हुए कोष्ठक में दिए गए शब्दों की पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग करके रिक्त स्थान पूर्ण कीजिए)
यथा-मूषकः बिलाद् बहिः निर्गच्छति। (बिल)
(क) जनः …………. बहिः आगच्छति। (ग्राम)
(ख) नद्यः ………….. निस्सरन्ति। (पर्वत)
(ग). …………… पत्राणि पतन्ति। (वृक्ष)
(घ) बालकः ………….. विभेति। (सिंह)
(ङ) ईश्वरः ………….. त्रायते। (क्लेश)
(च) प्रभुः भक्तं ………… निवारयति। (पाप)
उत्तराणि:
(क) जनः ग्रामाद् बहिः आगच्छति।
(ख) नद्यः पर्वतात् निस्सरन्ति।
(ग) वृक्षात् पत्राणि पतन्ति।
(घ) बालकः सिंहात् विभेति।
(ङ) ईश्वरः क्लेशात् त्रायते।
(च) प्रभुः भक्तं पापात् निवारयति।
(ग) दीपक संस्कृत-नवम

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