HR 9 Sanskrit

Haryana Board 9th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

Haryana Board 9th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

प्रत्यय एवं उपसर्ग
(क)  प्रत्यय
जो शब्दों एवं धातुओं के आगे जुड़कर उनके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। संस्कृत भाषा में संज्ञा एवं विशेषण बनाने के लिए दो प्रकारों के प्रत्ययों का प्रयोग होता है-कृत् प्रत्यय एवं तद्धित प्रत्यय। धातुओं से जुड़ने वाले प्रत्ययों को कृत् प्रत्यय कहते हैं। प्रातिपदिक (संज्ञा शब्दों) से जुड़ने वाले प्रत्ययों को तद्धित प्रत्यय कहते हैं। इन्हीं प्रत्ययों का विवेचन प्रस्तुत है

1. कृत् प्रत्यय

कृत् प्रत्यय से निष्पन्न होने वाले शब्दों को ‘कृदंत’ शब्द कहते हैं। कृत् प्रत्यय में कुछ प्रत्यय भूतकालिक हैं, कुछ वर्तमानकालिक हैं तथा कुछ विधिवाचक प्रत्यय हैं

(क) भूतकालिक कृत् प्रत्यय
क्त, क्तवतु, क्त्वा, तुमुन्, ल्यप् आदि प्रत्ययों का प्रयोग भूतकालिक कृत् प्रत्ययों के रूप में होता

क्त – क्त प्रत्यय का प्रयोग कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य एवं भाववाच्य में किया जाता है। इस प्रत्यय का केवल ‘त’ शेष रहता है; जैसेसः गतः। यहाँ पर गम् धातु + क्त प्रत्यय = गम् + त (क्त) = गम् के मकार का लोप होकर ग + त = गतः बनता है।

क्तवतु क्तवतु प्रत्यय का प्रयोग केवल कर्तृवाच्य में होता है। इस प्रत्यय के लगने से क्रिया की समाप्ति का बोध होता है। क्तवतु प्रत्यय का ‘त्वत्’ शेष रहता है; जैसे-रामः पाठं पठितवान्। यहाँ पठ् धातु + क्तवतु = पठ् + त्वत् = पठितवान् बना। क्त तथा क्तवतु प्रत्ययों के रूप स्त्रीलिङ्ग, पुंल्लिङ्ग एवं नपुंसकलिङ्ग, तीनों लिङ्गों में चलते हैं एवं विशेषण के अनुसार सातों विभक्तियों में इन प्रत्ययों के रूप चलते हैं। इन दोनों प्रत्ययों के उदाहरण तीनों लिङ्गों में नीचे दिखाए जा रहे हैं

क्त प्रत्यय

धातु पुंल्लिड्ग नपुंसकलिडून्य स्त्रीलिडूग
गम् गतः गतम् गता
पठ् पठितः पठितम् पठिता
धाव् धावितः धावितम् धाविता
हस् हसितः हसितम् हसिता
पत् पतितः पतितम् पतिता
क्रीड क्रीडितः क्रीडितम् क्रीडिता
चल् चलितः चलितम् चलिता
खाद् खादितः खादितम् खादिता
पच् पक्वः पक्वम् पक्वा
नम् नतः नतम् नता

क्तवतु प्रत्यय

धातु पुंल्लिड्ग नपुंसकलिडून्य स्त्रीलिडूग
गम् गतवान् गतवत् गतवत्री
पठ् पठितवान् पठितवत् पठितवती
धाव् धावितवान् धावितवत् धावितवती
हस् हसितवान् हसिवत् हसितवती
पत् पतितवान् पतितवत् पतितवती
क्रीड क्रीडितवानू कीडिवत् क्रीडितवती
चल् चलितवान् चलितवत् चलितवती
खाद् खादितवान् खदितवत् खादितवती
पच् पक्ववान् पक्ववत् पक्ववती
नम् नतवान् नतवत् नतवती

क्त्वा तथा तमन् प्रत्यय

क्त्वा तथा तुमुन् दोनों प्रत्ययों का प्रयोग पूर्वकालिक क्रिया के रूप में होता है तथा इनसे निर्मित शब्द अव्यय के समान प्रयुक्त होते हैं। दोनों प्रत्ययों में अंतर यह है कि जहाँ ‘क्त्वा’ का अर्थ ‘करके’ है, वहीं तुमुन् का अर्थ ‘के लिए’ है। क्त्वा में ‘त्वा’ शेष रहता है। तुमुन् में ‘तुम्’ शेष रहता है।
क्त्वा प्रत्यय

धातु प्रत्ययान्त शब्द धातु प्रत्ययान्त शब्द
पठ् पठित्वा कथू कथयित्वा
चल् चलित्वा गण् गणयित्वा
हस् हसित्वा चुर चोरयित्वा
रक्ष रक्षित्वा पा पीत्वा
रच् रचयित्वा ज्ञा ज्ञात्वा
भक्ष् भक्षयित्वा छिद् छित्वा
दा दत्वा यज इष्ट्वा
जि जित्वा प्रच्छ् प्रष्ट्वा
नी नीत्वा ट्टश् दृष्ट्वा
भी भीत्वा नश् नष्ट्वा
शी शयित्वा स्पृश् स्पृष्ट्वा
भू भूत्वा

तुमुन् प्रत्यय

धातु प्रत्ययान्त शब्द धातु प्रत्ययान्त शब्द
अर्च् अर्चयितुम् नश नष्टुम्
कुज कूजयितुम् भ्रम् भ्रमितुम्
भू भवितुम् तुष् तोष्टुम्
पठ् पठितुम् चुर् चोरयितुम्
स्था स्थातुम् कथ् कथयितुम्
गम् गन्तुम् भक्ष् भक्षयितुम्
ब्रू वक्तुम् क्षाल् क्षालयितुम्
नी नेतुम् चल् चलितुम्

ल्यप् प्रत्यय
किसी धातु के आरंभ में उपसर्ग (प्र, परा, अप, सम आदि) लगा हो तो क्त्वा के स्थान पर ल्यप् हो जाता है। ल्यप् प्रत्यय का केवल ‘य’ शेष रहता है।

उपसर्ग धातु प्रत्ययान्त शब्द उत्
उत् + स्था उत्थाय
उत् + प्लु उत्प्लुत्य
प्र + हृ प्रहत्य
सम् + हृ सहत्य
परि + हृ परिहत्य
वि + ज्ञा विज्ञाय
+ दा आदाय
प्र + नश् प्रणश्य
वि + स्मृ विस्मृत्य
+ वृत् आवृत्य
वि + कृ विकीर्य
अव + तृ अवतीर्य
अनु + भू अनुभूय

(ख) वर्तमानकालिक कृत् प्रत्यय
वर्तमानकालिक कृत् प्रत्यय के अन्तर्गत शतृ तथा शानच् प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है। परस्मैपदी धातुओं से शतृ प्रत्यय तथा आत्मनेपदी धातुओं से शानच् जोड़ा जाता है। ‘करता हुआ’ अर्थ को बताने के लिए इन दोनों प्रत्ययों का प्रयोग होता है।
शतृ प्रत्यय
‘शतृ’ प्रत्यय का ‘अत्’ शेष बचता है।

धातु प्रत्ययान्त शब्द धातु प्रत्ययान्त शब्द
भू भवत् स्था तिष्ठत्
पा पिबत् पठ् पठत्
घ्रा जिघ्रत् इश पश्यत्
गै गायत् गम् गच्छत्
तुष् तुष्यत् हस् हसत्
दा यच्छत् क्रीड् क्रीडत्
खाद् खादत् वद् वदत्
सद् सीदत् स्मृ स्मरत्
नम् नमत् त्यज् त्यजत्
रक्ष रक्षत् नृत् नृत्यत्
पत् पतत् पच् पचत्
चल् चलत् श्रु श्रुण्वत्
चुर् चोरयत् इष् इच्छत्

शानच् प्रत्यय
शानच् प्रत्यय में ‘आन’ तथा ‘मान’ शेष बचता है। इनमें भ्वादिगण, दिवादिगण, तुदादिगण तथा चुरादिगण की धातुओं के साथ शानच् प्रत्यय के स्थान पर ‘मान’ जुड़ता है। शेष गणों में धातु के साथ ‘आन’ जुड़ता है।
1. भ्वादिगण

धातु प्रत्ययान्त शब्द धातु प्रत्ययान्त शब्द
सेव् सेवमानः भाष् भाषमाण:
लभू लभमानः वृत् वर्तमानः
ईक्ष् ईक्षमाण: वृध् वर्धमानः

2. दिवादिगण

धातु प्रत्ययान्त शब्द धातु प्रत्ययान्त शब्द
मन् मन्यमानः खिद्द् खिद्यमानः
जनू जायमानः युध् युध्यमानः
विद् विद्यमानः युजू युज्यमानः

3. तुदादिगण

धातु प्रत्ययान्त शब्द धातु प्रत्ययान्त शब्द
मुच् मुल्चमानः मृ म्रियमाणः
विद् विन्दमानः सिच् सिज्चमानः
तुद् तुदमानः

4. चुरादिगण

धातु प्रत्ययान्त शब्द धातु प्रत्ययान्त शब्द
चुर् चोरयमाण: कथ् कथयमानः
भक्ष भक्षयमाण: रच् रचयमाणः
दण्ड् दण्डयमानः तुल् तोलयमान:

5. तनादिगण

धातु प्रत्ययान्त शब्द धातु प्रत्ययान्त शब्द
कृ कुर्वाणः तन् तन्वानः
मन् मन्वातः

6. अदादिगण

धातु प्रत्ययान्त शब्द धातु प्रत्ययान्त शब्द
दुह् दुहान: शी शयानः
अस आसीनः

7. जुहोत्यादिगण

धातु प्रत्ययान्त शब्द धातु प्रत्ययान्त शब्द
धा दधानः दा ददानः

8. रुधादिगण

धातु प्रत्ययान्त शब्द धातु प्रत्ययान्त शब्द
रुध् रुन्धानः भुज् भुज्जानः

9. क्रयादिगण

धातु प्रत्ययान्त शब्द धातु प्रत्ययान्त शब्द
क्री क्रीणानः ज्ञा ज्ञानान:
गृह् गृह्णानः

विधि कृदन्त प्रत्यय

चाहिए एवं योग्य अर्थ को प्रकट करने के लिए विधि कृदन्त प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है। इनमें दो प्रत्यय मुख्य हैं-तव्यत् प्रत्यय व अनीयर प्रत्यय। क्रिया-रूप में इनका प्रयोग कर्मवाच्य तथा भाववाच्य में होता है। तव्यत् में ‘तव्य’ एवं अनीयर में ‘अनीय’ शेष बचता है।

धातु तव्यत् प्रत्ययान्त रूप अनीयर् प्रत्ययान्त रूप
अर्च अर्चितव्यः अर्चनीयः
कूजू कूजितव्य: कूजनीय:
भू भवितव्यः भवनीयः
पठ् पठितव्य: पठनीय:
स्था स्थातव्यः स्थानीयः
पा पातव्य: पानीयः
गम् गन्तव्यः गमनीयः
ब्रू (वच्) वक्तव्यः वचनीय:
नी नेतव्य: नयनीयः
टृश् द्रष्टव्य: दर्शनीयः
समृ स्मर्तव्य: स्मरणीयः
दा दातव्य: दानीयः
सह् सोढव्यः सहनीयः
इष् एष्ट्व्यः एषणीयः
स्पृश् स्प्रष्टव्यः स्पर्शनीयः
पृच्छ् प्रष्टव्यः प्रश्नीय:
दिव् देवितव्यः देवनीय:
नृत् नर्तितव्यः नर्तनीय:
कृ कर्तव्य करणीयः

2. तद्धित प्रत्यय

संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया-विशेषण तथा अव्यय में प्रत्यय लगाकर जो नए शब्द बनते हैं, वे तद्धित प्रत्ययान्त शब्द कहलाते हैं तथा उन प्रत्ययों को तद्धित प्रत्यय कहते हैं। तद्धित प्रत्यय लगने पर नए शब्दों के अर्थ भी मूल शब्दों से भिन्न हो जाते हैं। इनमें त्व, तल्, मतुप तथा ठक् प्रत्यय प्रमुख हैं।

त्व प्रत्यय

शब्द के अन्त में ‘त्व’ जुड़ जाने पर वह शब्द नपुंसकलिंग में प्रयुक्त होता है। भाववाचक संज्ञा बनाने के लिए त्व प्रत्यय लगाया जाता है।

शब्द प्रत्ययान्त शब्द शब्द प्रत्ययान्त शब्द
पशु पशुत्वम् महत् महत्चम्
नारी नारीत्वम् लघु लघुत्वम्
गुरु गुरुत्वम् जन जनत्वम्
मृदु मुदुत्वम् बन्धु बन्धुत्वम्
मित्र मित्रत्वम् मानव मानवत्वम्
सज्जन सज्जनत्वम् सुर सुरत्वम्

तल प्रत्यय

स्त्रीलिंग में भाववाचक संज्ञा बनाने के लिए ‘तल्’ प्रत्यय भी लगाया जाता है। तल के स्थान पर ‘ता’ हो जाता है। प्रत्ययान्त शब्द शब्द

शब्द प्रत्ययान्त शब्द शब्द प्रत्ययान्त शब्द
शत्रु शत्तुता प्रिय प्रियता
मधुर मधुरता हास्य हास्यता
बन्धु बन्धुता खिन्र खिन्नता
मुग्ध मुग्धता शूद्र शूद्रता
गुरु गुरुता पृथु पृथुता

मतुप् प्रत्यय
इस प्रत्यय का प्रयोग ‘वाला’ अर्थ प्रकट करने के लिए किया जाता है। प्रत्यय का केवल ‘मत्’ ही शेष रह जाता है। यह अधिकतर इकारान्त, ईकारान्त, उकारान्त, ऊकारान्त और ओकारान्त आदि शब्दों में जुड़ता है।

इकारान्त शब्द

शब्द प्रत्ययान्त शब्द शब्द प्रत्ययान्त शब्द
अगिन अग्निमत् गति गतिमत्
शक्ति शक्तिमत् बुद्धि बुद्धिमत्

ईकारान्त शब्द

शब्द प्रत्ययान्त शब्द शब्द प्रत्ययान्त शब्द
धी धीमत् श्री श्रीमत्
हृी ह्रीमत्

उकारान्त शब्द

शब्द प्रत्ययान्त शब्द शब्द प्रत्ययान्त शब्द
भनी भानुमत् अंशु अंशुमत्
मधु मधुमत्

ऊकारान्त शब्द
शब्द – प्रत्ययान्त शब्द
वधू – वधूमत्

ओकारान्त शब्द
शब्द – प्रत्ययान्त शब्द
गो – गोमत्

हलन्त शब्द

शब्द प्रत्ययान्त शब्द शब्द प्रत्ययान्त शब्द
धनुष् धनुष्मत् गुरुत् गुरुत्मत्
ककुद् ककुमत्

ठक् प्रत्यय

शब्द में ठक् के स्थान पर ‘अक्’ जुड़ जाता है। ठक् प्रत्यय का प्रयोग भाववाचक संज्ञा के अर्थ के रूप में होता है।

शब्द प्रत्ययान्त शब्द शब्द प्रत्ययान्त शब्द
धर्म धार्मिक: अस्ति आस्तिकः
समाज सामाजिक: पक्षि पाक्षिक:
अधर्म अधार्मिकः वर्ष वार्षिक:
न्याय नैयायिक: सप्ताह साप्ताहिक:
वेद वैदिक: हरिण हारिणिकः
इतिहास ऐतिहासिकः मयूर मायूरिकः
भूत भौतिक: मास मासिक:

स्त्री प्रत्यय

संस्कृत में कुछ शब्द तो मौलिक रूप से ही पुंल्लिङ्ग या स्त्रीलिङ्ग होते हैं और कुछ शब्द प्रत्यय जोड़कर पुंल्लिङ्ग से स्त्रीलिङ्ग बनाए जाते हैं; जैसे

मूलतः स्त्रीलिङ्ग शब्द-लता, प्रजा, मति, बुद्धिः, गति, नदी, स्त्री, धेनू, वधु, नौ इत्यादि। जिन प्रत्ययों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बना है, उन्हें स्त्री प्रत्यय कहते हैं। टाप् तथा ङीप् मुख्य स्त्री प्रत्यय हैं।

टाप् प्रत्यय

शब्द प्रत्ययान्त शब्द शब्द प्रत्ययान्त शब्द
सुत सुता अज अजा
अश्व अश्वा चटक चटका
क्षत्रिय क्षत्रिया कृपण कृपण
सरल सरला प्रथम पृथपण
चतुर चतुरा दक्ष दक्ष
अनुकूल अनुकूला मध्यम मध्यम

ङीप प्रत्यय

ऋकारान्त और नकारान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए ङीप् (ई) प्रत्यय जोड़ देते हैं। ङीप् प्रत्यय का ‘ई’ शेष रह जाता है ‘ङ’ और ‘प्’ का लोप हो जाता है।

ऋकारान्त पुंल्लिङ्ग स्त्री प्रत्ययान्त नकारान्त पुंल्लिङ्ग स्त्री प्रत्ययान्त
धातृ धात्री दण्डिन् दण्डिनी
हन्तृ हन्त्री पयस्विन् पयस्विनी
नेतृ नेत्री यामिन् यामिनी
अभिनेत्री अभिनेत्री दामिन् दामिनी
कवयितृ कवयित्री भामिन् भामिनी
धातृ धात्री दण्डिन् दण्डिनी

मतुप, वतुप, ईयसुन, वस, क्तवतु प्रत्ययान्त शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए ङीप् (ई) प्रत्यय जोड़ देते हैं।

ऋकारान्त पुंल्लिङ्ग स्त्री प्रत्ययान्त नकारान्त पुंल्लिङ्ग स्त्री प्रत्ययान्त
श्रीमत् श्रीमती विद्वस् विदुषी
भवत् भवती भगवत् भगवती
रूपवत् रूपवती गतवत् गतवती
प्रेयस् प्रेयसी गरीयस् गरीयसी

डीप से पूर्व ‘आनुक’ का भी आगम होता है। ‘आनुक’ के ‘आन’ में ‘ई’ प्रत्यय जोड़ देते हैं।

ऋकारान्त पुंल्लिङ्ग स्त्री प्रत्ययान्त नकारान्त पुंल्लिङ्ग स्त्री प्रत्ययान्त
शिव शिवानी इन्द्र इन्द्रानी
मातुल मातुलानी हिम हिमानी
आचार्य आचार्याणी अरण्य अरण्यानी

कुछ शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए अन्त में ‘ऊ’ प्रत्यय भी जोड़ते हैं।

ऋकारान्त पुंल्लिङ्ग स्त्री प्रत्ययान्त नकारान्त पुंल्लिङ्ग स्त्री प्रत्ययान्त
श्वसुर श्वश्रू कुरू कुरु
पंगू पंगू ब्रह्मबन्धु ब्रह्मबन्धू

अकारान्त शब्दों के पीछे ‘ई’ प्रत्यय जोड़कर ‘स्त्रीलिङ्ग’ शब्द बनते हैं।

ऋकारान्त पुंल्लिङ्ग स्त्री प्रत्ययान्त नकारान्त पुंल्लिङ्ग स्त्री प्रत्ययान्त
काक काकी सिंह सिंही
मृग मृगी हय हयी
शूकर शूकरी व्याघ्र व्याघ्री
सूरी शुक शुकी शुकी

प्रथम (आयु) के वाचक अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिङ्ग में डीप् (ई) प्रत्यय का प्रयोग होता है।

ऋकारान्त पुंल्लिङ्ग स्त्री प्रत्ययान्त नकारान्त पुंल्लिङ्ग स्त्री प्रत्ययान्त
कुमार कुमारी तरुण तरुणी
किशोर किशोरी वधूट वधूटी

विशेषणवाचक उकारान्त शब्दों के ‘उ’ का ‘व’ हो जाता है तथा बाद में ‘ई’ प्रत्यय लगता है।

ऋकारान्त पुंल्लिङ्ग स्त्री प्रत्ययान्त नकारान्त पुंल्लिङ्ग स्त्री प्रत्ययान्त
लघु लघ्वी गुरु गुर्वी
पट् पट्वी मधु मधवी

शतृ प्रत्ययान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए भ्वादिगण, दिवादिगण और चुरादिगण की धातुओं से तथा णिजन्त धातुओं से ‘शतृ’ प्रत्यय करने पर ‘ई’ प्रत्यय लगाकर ‘त’ में ‘न’ जोड़ दिया जाता है।

ऋकारान्त पुंल्लिङ्ग स्त्री प्रत्ययान्त नकारान्त पुंल्लिङ्ग स्त्री प्रत्ययान्त
भवत् भवन्ती पश्यत् पश्यन्ती
गच्छत् गच्छन्ती सीदत् सीदन्ती
कथयत् कथयन्ती हसत् हसन्ती
पति पत्नी श्वन् शुनी
नट नटी सूर्य सूया
गौर गौरी सुन्दर सुन्दरी

3. अन्य प्रत्यय

(क) णिनि प्रत्यय
तुल्य वृद्धि या गुण के अर्थ में, अच्छा करने के अर्थ में तथा अपने को समझने के अर्थ में णिनि प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है। इस प्रत्यय का ‘इन्’ शेष बचता है; जैसे
नि + वस् + णिनि = निवासी
गुण + णिनि = गुणिन्
प्र + वस् + णिनि = प्रवासी
दान + णिनि = दानिन्
उप + कृ + णिनि = उपकारी
कवच + णिनि = कवचिन्
अधि + कृ + णिनि = अधिकारी
कुशल + णिनि = कुशलिन्
पण्डित + मन् + णिनि = पण्डितमानी
धन + णिनि = धनिन्
ग्रह् + णिनि = ग्राही
दण्ड + णिनि = दण्डिन्
स्था + णिनि = स्थायी
मन्त्र + णिनि = मन्त्री

(ख) तरप एवं तमप्
दो की तुलना में विशेषण शब्द से तरप् (तर) और ईयसुन् (ईयस्) प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार ज्यादा में से एक की विशेषता बताने के अर्थ में तमप् (तम) और इष्ठन् (इष्ठ) प्रत्यय प्रयुक्त होते हैं। उदाहरणार्थ
पटु + तरप् = पटुतरः
पटु + ईयसुन् = पटीयान्
पटु + तमप् = पटुतमः
पटु + इष्ठन् = पटिष्ठः
श्रेष्ठ + ईयसुन् = श्रेयान्
श्रेष्ठ + इष्ठन् = श्रेष्ठः
गुरु + ईयसुन् = गरीयान्
गुरू + इष्ठन् = गरिष्ठः

(ग) तसिल् प्रत्यय
संज्ञा आदि शब्दों से पञ्चमी विभक्ति के अर्थ को प्रकट करने के लिए ‘तसिल्’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है; जैसे
ग्राम + तसिल = ग्रामतः (गाँव से)
आदि + तसिल् = आदितः (प्रारम्भ से)
विद्यालय + तसिल = विद्यालयतः (विद्यालय से)
गृह + तसिल् = गृहतः (घर से)
तन्त्र + तसिल = तन्त्रतः (तन्त्र से)
प्रथम + तसिल = प्रथमतः (प्रारम्भ से)
आरम्भ + तसित् = आरम्भतः (आरम्भ से)

(घ) च्चि प्रत्यय
च्चि प्रत्यय का प्रयोग केवल भू तथा कृ धातुओं के साथ होता है। जो वस्तु पहले न हो, उसके हो जाने में ‘च्चि’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है; जैसे
अङ्ग + च्चि + कृतम् = अङ्गीकृतम्
कृष्णः + च्चि + क्रियते = कृष्णीक्रियते
ब्रह्मः + च्वि + भवति = ब्रह्मी भवति
द्रवः + च्चि + क्रियते = द्रवीक्रियते

(ङ) मयट् प्रत्यय
प्राचुर्य अथवा आधिक्य के अर्थ को प्रकट करने के लिए शब्दों में मयट् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है; जैसे
पुल्लिङ्ग – स्त्रीलिङ्ग
शान्ति + मयट् = शान्तिमयः – शान्तिमयी
आनन्द + मयट् = आनन्दमयः – आनन्दमयी
सुख + मयट् = सुखमयः – सुखमयी
तेजः + मयट् = तेजोमयः – तेजोमयी

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