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MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायो: शौर्यम्

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 10 जटायो: शौर्यम्

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 10 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

पद्याशों के हिन्दी में अर्थ

पाठ परिचय – प्रस्तुतोऽयं पाठ्यांशः महर्षिवाल्मीकिविरचितम् “रामायणम्” इत्यस्य ग्रन्थस्य अरण्यकाण्डात् समुद्धतोऽस्ति । अत्र जटायु – रावणयोः युद्धस्य वर्णनम् अस्ति। पक्षिराजजटायुः पञ्चवटीकानने विलपन्त्याः सीतायाः करुणक्रन्दनं श्रुत्वा तत्र गच्छति । सः सीतापहरणे निरतं रावणं तस्मात् निन्द्यकर्मणः निवृत्यर्थं प्रबोधयति । परञ्च अपरिवर्तितमतिः रावण: तमेव अपसारयति । ततः पक्षिराज: तुण्डेन पादभ्याञ्च प्रहरति, स्वनखै: रावणस्य गात्राणि विदारयति, एवञ्च बहुविधा-क्रमणेन रावणः भग्नधन्वा हतसारथिः हताश्वः व्रणी विरथश्च सञ्जातः । खगाधिपस्य पुनः पुनः अतिशयप्रहारै: व्रणी महाबली रावणः मूच्छितो भवति ।
अनुवाद- यह पाठ्यांश महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित ‘रामायण’ ग्रन्थ के अरण्यकाण्ड से उद्धृत किया गया है। यहाँ जटायु और रावण के युद्ध का वर्णन है। पक्षियों का राजा जटायु पंचवटी के जंगल में विलाप कर रही सीता के करुणक्रन्दन को सुनकर वहाँ जाता है। वह सीता के अपहरण में निरत रावण को उस निन्दनीय कार्य से बचने के लिए समझाता है। परन्तु निश्चल मति रावण उसे ही दूर भगा देता है। तब पक्षियों का राजा (जटायु) अपनी चोंच और पैरों से प्रहार करता है, अपने नाखूनों से रावण के शरीर के अंगों को चीर देता है। इस प्रकार अनेक प्रकार के आक्रमण से रावण टूटे हुए धनुष वाला, मारे गए सारथि वाला, मारे गए घोड़ों वाला, घायल और रथहीन हो जाता है। पक्षिराज (जटायु) के बार-बार अतिशय प्रहारों से घायल महाबली रावण मूर्च्छित हो जाता है।
प्रश्न 1. निम्नलिखित पद्यांशों का हिन्दी में अर्थ लिखिए-
1. सा तदा करुणा वाचो विलपन्ती सुदुःखिता।
     वनस्पतिगतं गृधं ददर्शायतलोचना॥
अर्थ- तब अत्यन्त दुःखित, करुण स्वर से विलाप करती हुई, विशाल नेत्रों वाली सीता ने वृक्ष पर बैठे जटायु को देखा।
2. जटायो पश्य मामार्य ह्रियमाणामनाथवत्।
    अनेन राक्षसेन्द्रेण करुणं पापकर्मणा ॥
अर्थ- हे आर्य जटायु! देखिए, यह पापी रावण मुझे अबला के समान निर्दयतापूर्वक अपहरण किए ले जा रहा है।
3. तं शब्दमवसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे ।
    निरैक्षद रावणं क्षिप्रं वैदेहीं च ददर्श सः ॥
अर्थ- उस समय अवसुप्त अवस्था में जटायु ने उस करुण आवाज को सुना, रावण को देखकर उन्होंने सीता को देखा।
4. ततः पर्वतशृङ्गाभस्तीक्ष्णतुण्डः खगोत्तमः।               वनस्पतिगतः श्रीमान्व्याजहार शुभां गिरम्॥
अर्थ- तब पर्वत के शिखर के समान ऊँचे, तीखीं चोंच वाले जटायु, वृक्ष पर बैठे हुए जटायु ने रावण को शुभ वचन कहे।
5. निवर्तय मतिं नीचां परदाराभिमर्शनात्।
    त तत्समाचरेद्धीरो यत्परोऽस्य विगर्हयेत्॥
अर्थ- (हे रावण!) पराई स्त्री के स्पर्श से जो नीच गति प्राप्त होने वाली है उसका त्याग कर देना चाहिए, क्योंकि यह निन्द्य कर्म है।
6. वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथः कवची शरी।
    न चाप्यादाय कुशली वैदेहीं मे गमिष्यसि ॥
अर्थ- मैं (जटायु) वृद्ध हूँ, तुम तो युवां रथवाले, कवच धारण किए हुए हो। मेरे पास युद्ध का कोई साधन नहीं है फिर भी मेरे ( जीवित रहते हुए) सीता को लेकर कुशल पूर्वक नहीं जा सकोगे।
7. तस्य तीक्ष्णनखाभ्यां तु चरणाभ्यां महाबलः ।
     चकार बहुधा गात्रे व्रणान्पतगसत्तमः ||
अर्थ- महाबलशाली जटायु ने अपने तीखे नाखूनों और पंजों से उसके शरीर पर अनेक प्रकार के प्रहार कर उसके शरीर को घायल कर दिया।
8. तोऽस्य सशरं चापं मुक्तामणिविभूषितम् ।
    चरणाभ्यां महातेजा बभञ्ज पतगोत्तमम ॥
अर्थ- तब महा तेजस्वी जटायु ने रावण के मोतियों और मणियों से विभूषित धनुष-बाणों को पंजों के प्रहार से नष्ट कर दिया।
9. स भग्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः ।
    तलेनाभिजघानार्तो जटायुं क्रोधमूच्छितः ॥
अर्थ- वह टूटे हुए धनुष वाला, मारे गए घोड़ों वाला, मारे गए सारथी वाला, रथविहीन और क्रोध में मूर्च्छित रावण ने जटायु पर तमाचे का प्रहार किया।
10. जटायुस्तमतिक्रम्य तुण्डेनास्य खगाधिपः ।
      वामबाहून्दश तदा व्यपाहरदरिन्दमः ॥
अर्थ- उस वार को बचाकर शत्रु का दमन करने वाले पक्षीराज जटायु ने उस रावण पर आक्रमण करके उसकी दस बायीं भुजाओं को उखाड़ दिया।
अभ्यासस्य प्रश्नोत्तराणि
प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत- (एक पद में उत्तर लिखिए) –
(क) आयतलोचना का अस्ति?
(विशाल लोचन वाली कौन है?)
(ख) सा कं ददर्श ?
(उसने किसे देखा?)
(ग) खगोत्तमः कीदृशीं गिरं व्याजहार ?
(जटायु ने कैसे वचन कहे?)
(घ) जटायु: काभ्यां रावणस्य गात्रे व्रणं चकार
?
(जटायु ने किसके द्वारा रावण के शरीर पर घाव कर दिया?)
(ङ) अरिन्दमः खगाधिपः कति बाहून् व्यपाहरत्?
(शत्रुओं को नष्ट करने वाले जटायु ने कितनी भुजाएँ उखाड़ दीं? )
उत्तर- (क) सीता, (ख) ग्रंध्रं, (ग) शुभां, (घ) तीक्ष्ण नखाभ्यां चरणाभ्यां, (ङ) दशवामबाहून् ।
प्रश्न 2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत- (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए ) –
(क) ‘जटायो ! पश्य’ इति का वदति ?
(‘जटायु ! देखो’- कौन कहती है?)
उत्तर- ‘जटायो! पश्य’ इति सीता वदति।
(‘जटायु ! देखो’- सीता कहती है।)
(ख) जटायु: रावणं किं कथयति ?
(जटायु रावण को क्या कहता है? )
उत्तर- जटायु: रावणं कथयति- ‘नीचां मति’ परदाराभिमर्शनत् निवर्तय?
(जटायु रावण को कहता है- “नीच बुद्धि पराई स्त्री के स्पर्श से बचो।”)
(ग) क्रोधवशात् रावणः किं कर्त्तुम् उद्यतः अभवत् ?
(क्रोध में आकर रावण क्या करने के लिए तत्पर हो गया?)
उत्तर- क्रोधवशात् रावण: जटायुम् अभिजघान्।
(क्रोध में आकर रावण ने जटायु पर आक्रमण कर दिया।)
(घ) पतगेश्वर: रावणस्य कीदृशं चापं सशरं बभञ्ज?
(जटायु ने रावण के कैसे धनुष-बाण को तोड़ दिया?)
उत्तर- पतगेश्वर: रावणस्य मुक्तामणि विभूषितं सशरं चापं बभञ्ज।
(जटायु ने रावण के मोतियों और मणियों से विभूषित धनुष-बाण को तोड़ दिया।)
(ङ) जटायु: केन वामबाहुं दंशति ?
(जटायु ने किससे दायी भुजा को आहत कर दिया? )
उत्तर- जटायुः तीक्ष्णनखाभ्यां चरणाभ्यां च बामबाहुं दंशति ।
(जटायु ने तीखे नाखूनों और पैरों से बायीं भुजा को आहत कर दिया।)
प्रश्न 3. उदाहरणमनुसृत्य णिनि-प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा पदानि रचयत –
यथा- गुण + णिनि         –       गुणिन् (गुणी)
        दान + णिनि         –       दानिन् (दानी )
(क) कवच + णिनि        –     ………………
(ख) शर + णिनि           –     ………………
(ग) कुशल + णिनि        –     ………………
(घ) धन + णिनि            –     ………………
(ङ) दण्ड + णिनि          –     ………………
उत्तर- (क) कवचिन्, (ख) शरिन्, (ग) कुशलिन्, (घ) धनिन्, (ङ) दण्डिन्।
(अ) रावणस्य जटायोश्च विशेषणानि सम्मिलित रूपेण लिखितानि । तानि पृथक्-पृथक् कृत्वा लिखत
(रावण और जटायु के विशेषण एक साथ लिखे हैं। उन्हें अलग-अलग लिखिए)
युवा, सशरः, वृद्धः, हताश्वः, महाबलः, पतगसत्तमः, भग्नधन्वा, महागृध्रः, खगाधिपः, क्रोधमूच्छितः, पतगेश्वरः, सरथः कवची. शरी
यथा – रावणः             जटायुः
         युवा                वृद्धः
उत्तर – रावणः              जटायुः
          युवा                 वृद्धः
          सरथ:               महाबलः
          हताश्व;              पतगसत्तमः
          भग्नधन्वा          महागृध्रः
          क्रोधमूच्छितः      खगाधिपः
          सशरः               पतगेश्वर:
          कवची               शरी
प्रश्न 4. (क) स्तम्भे लिखितानां पदानां पर्यायाः (ख) स्तम्भे लिखिताः। तान् यथासमक्षं योजयत –
(क) स्तम्भ में लिखित पदों के पर्यायवाची (ख) स्तम्भ में लिखे हैं। उन्हें सामने उचित रूप में मिलाइए)
(क)।                        (ख)
कवची         –           अपतत
आशुः          –           पक्षिश्रेष्ठः
विरथ:          –           पृथिव्याम्
पपात           –           कवचधारी
भुवि             –           शीघ्रम
पतगसत्तमः    –          रथविहीनः
उत्तर –
(क)                       (ख)
कवची           –        कवचधारी
आशुः            –         शीघ्रम
विरथ:            –        रथविहीनः
पपात             –        अपतत्
भुवि               –        पृथिव्याम्
पतगसत्तमः      –        पक्षिश्रेष्ठः
प्रश्न 5. अधोलिखितानां पदानां विलोम पदानि मञ्जूषायां दत्तेषु पदेषु चित्वा यथा समक्षं लिखत- (निम्नलिखित पदों के विलोम पद मञ्जूषा में दिए गये हैं। उन्हें चुनकर उचित रूप में सामने दर्शाइए ) –
मन्दम्, पुण्यकर्मणा, हसन्ती, अनार्य, अनतिक्रम्य, देवेन्द्रेण, प्रशंसेत्, दक्षिणेन, युवा
पदानि                              विलोम पदाः
(क) विलपन्ती                 …………….
(ख) आर्य                        …………….
(ग) राक्षसेन्द्रेण                 …………….
(घ) पापकर्मणा                …………….
(ङ) क्षिप्रम्                      …………….
(च) विगर्हयेत्                   …………….
(छ) वृद्धः                        …………….
(ज) वामेन                      …………….
(झ) अतिक्रम्य                 …………….
(ञ) आदाय                     …………….
उत्तर –
(क) हसन्ती
(ख) अनार्य
(ग) देवेन्द्रेण
(घ) पुण्य कर्मणा
(ङ) मन्दम्
(च) प्रशंसेत्
(छ) युवा
(ज) दक्षिणेन
(झ) अनतिक्रम्य
(ञ) प्रदाय
प्रश्न 6. ( अ ) अधोलिखितानि विशेषण पदानि प्रयुज्य संस्कृतवाक्यानि रचयत –
( निम्नलिखित विशेषण पदों का प्रयोग कर संस्कृत में वाक्य बनाइए) –
(क) शुभाम्,
(ख) खगाधिपः,
(ग) हतसारथिः,
(घ ) वामेन,
(ङ) कवची।
उत्तर-
(क) शुभाम् जटायुः रावणं शुभाम् गिरम् अकथयत् ।
(ख) खगाधिपः – खगाधिप: जटायु: विलपन्ती वैदेहीम् अपश्यत् । हतसारथि: रावण: भूमौ अपतत् ।
(ग) हतसारथिः
(घ) वामेन वामेन हस्तेन दानं न करणीयम् ।
(ङ) कवची रावणः कवची शरी च आसीत् ।
(आ) उदाहरणमनुसृत्य समस्तं पदं रचयत-
( उदाहरण के अनुसार समस्त पद बनाइए)
यथा- त्रयाणां लोकानां समाहारः = त्रिलोकी
(क) पञ्चानां वटानां समाहार: ……….
(ख) सप्तानां पदानां समाहार: ……….
(ग) अष्टानां भुजानां समाहार: ……….
(घ) चतुर्णां मुखानां समाहार: ……….
उत्तर- (क) पञ्चवटी, (ख) सप्तपदी, (ग) अष्टभुजा, (घ) चतुर्मुखम्।
योग्यताविस्तार:
यह पाठ्यांश आदिकवि वाल्मीकि प्रणीत रामायणम् के अरण्यकाण्ड से उद्धृत किया गया है जिसमें जटायु और रावण के युद्ध का वर्णन है। पंचवटी कानन में सीता का करुण विलाप सुनकर पक्षिश्रेष्ठ जटायु उनकी रक्षा के लिए दौड़े। वे महाबली जटायु अपने तीखे नखों तथा पञ्जों से रावण के शरीर में अनेक घाव कर देते हैं, जिसके कारण रावण विरथ होकर पृथ्वी पर गिर पड़ता है। कुछ ही क्षणों बाद क्रोधांध रावण जटायु पर प्राणघातक प्रहार करता है परंतु पक्षिश्रेष्ठ जटायु उससे अपना बचाव कर उस पर चञ्चु प्रहार करते हैं, उसके बायें भाग की दशों भुजाओं को क्षत-विक्षत कर देते हैं।
(क) कवि परिचय – महर्षि वाल्मीकि आदिकाव्य रामायण के रचयिता हैं। कहा जाता है कि वाल्मीकि का हृदय, एक व्याध द्वारा क्रीडारत क्रौञ्चयुगल (पक्षियों के जोड़े) में से एक के मार दिये जाने पर उसकी सहचरी के विलाप को सुनकर द्रवित हो गया तथा उनके मुख से शाप के रूप में जो वाणी निकली वह श्लोक के रूप में थी । वही श्लोक लौकिक संस्कृत का आदिश्लोक माना जाता है –
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वतीः समाः । यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ।।
(ख) भाव विस्तार – जटायु सूर्य के सारथी अरुण के दो पुत्र थे- सम्पाती और जटायु । जटायु पञ्चवटी वन के पक्षियों का राजा था जहाँ अपने पराक्रम एवं बुद्धिकौशल से शासन करता था। पञ्चवटी में रावण द्वारा अपहरण की गयी सीता के विलाप को सुनकर जटायु ने सीता की रक्षा के लिए रावण के साथ युद्ध किया और बीरगति पाई। इस प्रकार राज-धर्म की रक्षा में अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले जटायु को भारतीय संस्कृति का महान् नायक माना जाता है।
(ग) सीता विषयक सूचना देते हुए जटायु ने राम से जो वचन कहे वे इस प्रकार हैं-
यामोषधीमिवायुष्मन्नन्वेषसि महावने ।
सा च देवी मम प्राणाः रावणेनोभयं हृतम् ।।

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